गेहूं (Wheat) फसल में जड़ माहू कीट लगे तो करें ये काम

सीहोर : वर्तमान मौसम परिर्वतन के कारण गेहूं में जड़ माहू कीट एवं विभूति आदि कीटों का प्रभाव हो सकता है. यदि गेहूं में जड़ माहू कीट का प्रभाव एवं गेहूं में पीलापन दिख जाए, तो दवा का छिड़काव जरूर करें.

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार इस वर्ष भी गेहूं फसल में जड़ माहू कीट का प्रकोप दिखाई दे रहा है. गेहूं फसल के खेतों में अनेक स्थानों पर पौधे पीले हो कर सूख रहे हैं. समय पर निदान न किए जाने पर इस कीट द्वारा गेहूं फसल में बड़ी क्षति की संभावना रहती है.

जड़ माहू कीट गेहूं के पौधे के जड़ भाग में चिपका हुआ रहता है, जो रस चूस कर पौधे को कमजोर व सुखा देता है. प्रभावित खेतों में पौधे को उखाड़ कर ध्यान से देखने पर बारीकबारीक हलके पीले, भूरे व काले रंग के कीट चिपके हुए दिखाई देते हैं. मौसम में उच्च आर्द्रता व उच्च तापमान होने पर यह कीट अत्यधिक तेजी से फैलता है. अनुकूल परिस्थिति होने पर यह कीट पूरी फसल को नष्ट करने की क्षमता रखता है.

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, जिन क्षेत्रों में अभी तक गेहूं फसल की बोआई नहीं की गई है, वहां पर बोआई से पहले इमिडाक्लोरोप्रिड 48 फीसदी, एफएस की 01 मिलीलिटर दवा अथवा थायोमेथाक्जाम 30 फीसदी, एफएस दवा की 1.5 मिलीलिटर मात्रा प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार जरूर करें.

Special ID card: किसानों का बनेगा खास आईडी कार्ड, मिलेगा लाभ

बुरहानपुर : कृषि क्षेत्र के विकास के लिए चलाई जा रही विभिन्न महत्वपूर्ण योजनाओं का लाभ पात्र व्यक्तियों तक समय से पहुंचे, जिस से संसाधनों के समुचित उपयोग से कृषि क्षेत्र का पूर्ण विकास संभव हो सकेगा. एग्रीस्टैक (डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर फौर एग्रीकल्चर) के अंतर्गत फार्मर रजिस्ट्री तैयार के संबंध में निर्देश हैं.

जिले में राजस्व महाअभियान 3.0 के तहत युद्ध स्तर पर राजस्व विभाग द्वारा विभिन्न कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है. अभिलेख दुरस्ती, नक्शा तरमीम, नामांतरण, बंटवारा प्रकरणों के निराकरण, एनपीसीआई सहित अन्य सुविधाएं नागरिकों को दी जा रही हैं. इन्हीं सुविधाओं में फार्मर रजिस्ट्री भी शामिल है.

मध्य प्रदेश फार्मर रजिस्ट्री प्रणाली के तहत प्रत्येक किसान का एक विशिष्ट किसान आईडी कार्ड (फार्मर आईडी) बनाया जाएगा, जिस के माध्यम से किसानों को शासकीय योजनाओं का लाभ आसानी से मिल सकेगा. यह मध्य प्रदेश राज्य के किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है.

कलक्टर भव्या मित्तल के मार्गदर्शन में राजस्व महाअभियान के अंतर्गत किसानों की फार्मर रजिस्ट्री बनाने का कार्य किया जा रहा है. इस के साथ ही किसानों को फार्मर रजिस्ट्री के फायदे भी बतलाए जा रहे है. ग्राम डवाली रै., रायतलाई, सारोला, टिटगांवकला सहित जिले के अन्य ग्रामों में भी अभियान के तहत कार्य किया जा रहा है. फार्मर रजिस्ट्री का उद्देश्य एवं लाभ –

1. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के लिए फार्मर रजिस्ट्री अनिवार्य है. दिसंबर, 2024 के उपरांत केवल फार्मर आईडी उपलब्ध होने पर ही योजना का लाभ हितग्राहियों को प्राप्त हो सकेगा.

2. योजनाओं का नियोजन, लाभार्थियों का सत्यापन, कृषि उत्पादों का सुविधाजनक विपणन.

3. प्रदेश के सभी किसानों को राज्य की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सुगम एवं पारदर्शी तरीके से प्रदान करने हेतु लक्ष्य निर्धारण एवं पहचान.

4. किसानों के लिए कृषि ऋण एवं अन्य सेवा प्रदाताओं के लिए कृषि सेवाओं की सुगमता.

5. विभिन्न विभागों द्वारा डाटा का बेहतर उपयोग.

6. फसल बीमा योजना का लाभ प्राप्त करने में सुगमता.

7. न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद में किसानों के पंजीयन में सुगमता.

8. विभिन्न शासकीय योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिए बारबार सत्यापन की आवश्यकता नहीं होगी.

वैज्ञानिक तरीके से सिंचाई एवं खाद प्रबंधन से फसल उत्पादन में वृद्धि

बड़वानी : कृषि विज्ञान केंद्र, बड़वानी द्वारा कृषि आदान विक्रेताओं के एकवर्षीय डिप्लोमा कार्यक्रम (देसी) के अंतर्गत प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डा. एसके बड़ोदिया के मार्गदर्शन में केंद्र के सभागार में आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि एवं प्रमुख वक्ता के रूप में अधिष्ठाता बीएम कृषि महाविद्यालय खंडवा के डा. डीएच रानाडे द्वारा भागीदारी की गई.

सर्वप्रथम अधिष्ठाता डा. डीएच रानाडे ने कहा कि छोटीछोटी सावधानियां एवं प्रबंधन कार्य कर के फसल उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है जैसे अपने खेत की मिट्टी के अनुसार फसल का चयन, उपयुक्त प्रजाति का चुनाव, सिंचाई एवं उर्वरक का समुचित प्रबंधन कर 30-40 फीसदी तक उत्पादन में वृद्धि लाई जा सकती है.

अगर फसल में ड्रिप सिचांई पद्धति से सिंचाई की जाए व उचित उर्वरक प्रबंधन किया जाए, तो फसल में अच्छा उत्पादन देखा गया है. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हमें जल प्रबंधन की शुरुआत कृषि क्षेत्र से करनी चाहिए, क्योंकि सर्वाधिक मात्रा में कृषि कार्यों में ही जल का उपयोग किया जाता है और सिंचाई में जल का दुरुपयोग एक गंभीर समस्या है, जनमानस में धारणा है कि अधिक पानी, अधिक उपज, जो कि गलत है, क्योंकि फसलों के उत्पादन में सिंचाई का योगदान 15-16 फीसदी होता है. फसल के लिए भरपूर पानी का मतलब मात्र मिट्टी में पर्याप्त नमी ही होती है, परंतु वर्तमान कृषि पद्धति में सिंचाई का अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा रहा है. धरती के गर्भ से पानी की आखिरी बूंद भी खींचने की कवायद की जा रही है.

देश में हरित क्रांति के बाद से कृषि के जरीए जल संकट का मार्ग प्रशस्त हुआ है. बूंदबूंद सिंचाई यानी बौछार (फव्वारा तकनीकी) और खेतों के समतलीकरण से सिंचाई में जल का दुरुपयोग रोका जा सकता है. फसलों के जीवनरक्षक या पूरक सिंचाई दे कर उपज को दोगुना किया जा सकता है.

जल उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिए पौधों को संतुलित पोषक तत्वों को प्रबंध करने की आवश्यकता है, जल की सतत आपूर्ति के लिए आवश्यक है कि भूमिगत जल का पुनर्भरण किया जाए, खेतों के किनारे फलदार पेड़ लगाने चाहिए, छोटेबड़े सभी कृषि क्षेत्रों पर क्षेत्रफल के हिसाब से तालाब बनाने जरूरी हैं. रासायनिक खेती की बजाय जैविक खेती पद्धति अपना कर कृषि में जल का अपव्यय रोका जा सकता है. ऊंचे स्थानों, बांधों इत्यादि के पास गहरे गड्ढ़े खोदे जाने चाहिए, जिस से उन में वर्षा का जल एकत्रित हो जाए और बह कर जाने वाली मिट्टी को अन्यत्र जाने से रोका जा सके.

कृषि भूमि में मिट्टी की नमी को बनाए रखने के लिए हरित खाद और उचित फसल चक्र अपनाया जाना चाहिए. कार्बनिक अवशिष्टों को प्रयोग कर इस नमी को बचाया जा सकता है. वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए शहरी मकानों में आवश्यक रूप से वाटर टैंक लगाए जाने चाहिए. इस जल का उपयोग अन्य घरेलू जरूरतों में किया जाना चाहिए. जल का संरक्षण करना वर्तमान समय की जरूरत है.

इस अवसर पर डा. रानाडे द्वारा केंद्र की प्रदर्शन इकाइयों बकरीपालन, मुरगीपालन, केंचुआ खाद इकाई, अजोला इकाई, डेयरी आदि का अवलोकन कर प्रशंसा व्यक्त की.

नरवाई प्रबंधन (Weed Management) के लिए आधुनिक कृषि यंत्रों से करें बोआई

उमरिया : फसलों की कटाई के बाद उन के जो अवशेष खेत में रह जाते हैं, उसे नरवाई या पराली कहते हैं. मशीनों से फसल की कटाई होने पर बड़ी मात्रा में नरवाई खेत में रहती है. इस को हटाने के लिए किसान प्रायः इसे जला देते हैं. इस से खेत की मिट्टी की उपरी परत में रहने वाले फसलों के लिए उपयोगी जीवाणु नष्ट हो जाते हैं. मिट्टी में कड़ापन आ जाता है और इस की जलधारण क्षमता बहुत कम हो जाती है.

किसान नरवाई प्रबंधन के लिए आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग करें. इन उपकरणों के उपयोग से नरवाई को नष्ट कर के खाद बना दिया जाता है, जिस से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है. नरवाई जलाने से मिट्टी को होने वाले नुकसान और धुएं से होने वाला पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होता है.

किसान धान और अन्य फसलों की नरवाई खेत से हटाने के लिए सुपर सीडर और हैप्पी सीडर का उपयोग करें. ये उपकरण किसी भी ट्रैक्टर, जो 50 एचपी के हों, उस में आसानी से फिट हो जाते हैं. इन के उपयोग से एक ही बार में नरवाई नष्ट होने के साथसाथ खेत की जुताई और बोआई हो जाती है. इस से जुताई का खर्च और समय दोनों की बचत होती है. इस के अलावा किसान ट्रैक्टर में स्ट्राबेलर का उपयोग कर के नरवाई को खाद में बदल सकते हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र, उमरिया और कृषि आभियांत्रिकी विभाग, उमरिया के संयुक्त तत्वावधान में गांव कछरवार में सुपर सीडर द्वारा गेहूं फसल की बोआई की गई. कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एव प्रमुख डा. केपी तिवारी ने बताया कि धान की फसल यदि हार्वेस्टर से की जाती है, तो खेत में फसल के अवशेष रह जाते हैं, जिन की सफाई के बिना बोआई करना बहुत बड़ी चुनौती रहती है, लेकिन सुपर सीडर एक ऐसी मशीन है, जो बिना सफाई के आसानी से गेहूं या चना की बोआई कर सकती है.

उन्होंने आगे बताया कि नरवाई जलाने से मिट्टी में उत्पन्न होने वाले कार्बनिक पदार्थ में कमी आ जाती है. सूक्ष्म जीव जल कर नष्ट हो जाते हैं, जिस के फलस्वरूप जैविक खाद का बनना बंद हो जाता है. भूमि की ऊपरी परत में ही पौधों के लिए जरूरी पोषक तत्व उपलब्ध रहते हैं. आग लगाने के कारण ये पोषक तत्व जल कर नष्ट हो जाते हैं. बोआई के दौरान तकरीबन 25 किसान उपस्थित थे.

सहायक यंत्री कृषि आभियांत्रिकी मेघा पाटिल द्वारा सुपर सीडर पर मिलने वाली छूट के बारे में बताया कि यह मशीन 3 लाख रुपए की आती है, जिस में 1 लाख, 5 हजार रुपए की छूट मिलती है. सुपर सीडर एकसाथ तीन काम करती है, जिस से हार्वेस्टर के बाद बचे फसल अवशेष को बारीक काट कर मिट्टी में मिला देता है, जिस से मिट्टी में कार्बन कंटेंट बढ़ेगा. मिटटी उपजाऊ होगी और खेत में कटाई के उपरांत तुरंत बोनी का काम हो जाएगा.

कृषि विज्ञान केंद्र, उमरिया के वैज्ञानिक डा. धनंजय सिंह ने बताया कि फसल अवशेषों को जलाने के बजाय उन को वापस भूमि में मिला देने से कई लाभ होते हैं जैसे कि कार्बनिक पदार्थ की उपलब्धता में वृद्धि, पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि, मिट्टी के भौतिक गुणों में सुधार होता है. फसल उत्पादकता में वृद्धि आती है. खेतों में नरवाई का उपयोग खाद एवं भूसा बनाने में करें. नरवाई से कार्बनिक पदार्थ भूमि में जा कर मृदा पर्यावरण में सुधार कर सूक्ष्म जीवी अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं, जिस से कृषि टिकाऊ रहने के साथसाथ उत्पादन में वृद्धि होती है.

रेशम फसल की बीमा (Insurance) योजना होगी तैयार

नर्मदापुरम : कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) दिलीप जायसवाल ने मालाखेड़ी नर्मदापुरम के रेशम परिसर का भ्रमण कर परिसर का अवलोकन किया. भ्रमण के दौरान मंत्री दिलीप जायसवाल ने मालाखेड़ी ककून मार्केट में किसानों के द्वारा उन के ककून विक्रय की प्रक्रिया का अवलोकन किया. इस दौरान उन्होंने देश के कर्नाटक और पश्चिम बंगाल से आए व्यापारियों और मार्केट में मौजूद किसानों से संवाद किया.

मंत्री दिलीप जायसवाल ने किसानों से चर्चा करने के बाद बताया कि मध्य प्रदेश सिल्क फेडरेशन की दरों की अपेक्षा मार्केट में अधिक दरें प्राप्त हो रही हैं, जिस से किसानों में प्रसन्नता है.

राज्य मंत्री दिलीप जायसवाल ने मध्य प्रदेश सिल्क फेडरेशन की क्रय दरें बाजार अनुरूप ककून दरें संशोधित करने के निर्देश दिए, जिस से मध्य प्रदेश सिल्क फेडरेशन भी ककून खरीद सकेगा व स्थापित मशीनें संचालित रहेंगी. मध्य प्रदेश सिल्क फेडरेशन ककून उत्पादन से वस्त्र उत्पादन तक की पूरी प्रक्रिया संचालित करेंगे, जिस से धागाकरणों व ट्विस्टिंग बुनकरों को रोजगार प्राप्त हो सकेगा. सिल्क समग्र 2 लागू की जाएगी, जिस से किसानों को लाभ होगा.

उन्होंने परिसर में संचालित रेशम वस्त्र बुनाई का काम का अवलोकन किया एवं प्राकृत शोरूम का भी अवलोकन किया. इस दौरान कुटीर एवं ग्रामाद्योग विभाग के अन्य घटक के अधिकारी भी उपस्थित थे. बताया गया कि रेशम के समग्र विकास के लिए ज्वाइंट वेंचर एसपीवी, एडीवी आदि विकल्पों पर भी विचार किया जाएगा और किसानों की रेशम फसल की बीमा योजना तैयार की जाएगी. निरीक्षण के दौरान जिला रेशम अधिकारी रविंद्र सिंह उपस्थित थे.

खेती के जरीए आजीविका को बढ़ावा देने का काम कर रही सामाजिक संस्थाएं

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देशभर में किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए अनेक सरकारी, गैरसरकारी संस्थान किसानों को अनेक उन्नत कृषि तकनीकों से रूबरू कराते हैं, समयसमय पर अनेक ट्रेनिंग देते हैं, जिस से कृषि क्षेत्र उन्नति कर सके और इस से जुड़े किसानों की आय में भी इजाफा हो.

ऐसी ही कड़ी में राजस्थान के सीकर में विश्व युवक केंद्र और बजाज फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से 11 नवंबर से 15 नवंबर तक आयोजित ध्येय कार्यक्रम के तहत देश की सामाजिक संस्थाओं और कृषि उत्पादक संगठनों के करीब 100 प्रतिनिधियों को कृषि, जल, शिक्षा और आजीविका पर विषय पर प्रशिक्षित किया गया.

इस अवसर पर बजाज समूह के संस्थापक जमनालाल बजाज की जन्मस्थली सीकर और उस के आसपास के क्षेत्रों में जमनालाल कनीराम बजाज ट्रस्ट द्वारा 1963 से अब तक किए गए सतत प्रयासों से कृषि, जल, शिक्षा और आजीविका के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय कार्यों को बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया गया.

आयोजकों ने साझा किया ट्रेनिंग का उद्देश्य

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Hari Bhai

ट्रेनिंग के पहले दिन बजाज फाउंडेशन में सीएसआर के प्रेसिडेंट हरिभाई मोरी ने जल संसाधनों के विकास पर विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने सभी संस्थाओं से आह्वान किया कि अगर सभी सामाजिक संगठन एकजुट हो कर कृषि और जल पर काम करें, तो देश को विकास की नई परिभाषा गढ़ी जा सकती है.

उन्होंने बताया कि बजाज फाउंडेशन द्वारा सीकर में कृषि, जल पुनर्भरण, शिक्षा और आजीविका पर सघन और सफल रूप से काम किया जा रहा है, जिस के सफल अनुभवों से रूबरू कराने के लिए देश अभी तक 500 के करीब ऐसे सामाजिक सगठनों और किसान उत्पादक संस्थाओं को प्रशिक्षित किया गया है, जो खेती के जरीए आजीविका को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं.

 

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Uday Shanker Singh

विश्व युवक केंद्र के मुख्य कार्यकारी अधिकारी उदय शंकर सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला. इस दौरान बजाज फाउंडेशन और विश्व युवक केंद्र के कार्यों पर एक डौक्यूमेंट्री भी प्रस्तुत की गई.

उन्होंने बताया कि सीकर में गांव का पैसा गांव में और शहर का पैसा गांव में सपने को साकार करने के लिए सामाजिक संस्थाएं अहम भूमिका निभा सकती हैं. ऐसे में सीकर में अपनाए जा रहे इस मौडल को समझाना भी एक उद्देश्य रहा है.

उन्होंने यह भी बताया कि सीकर में लोगों ने बारिश के पानी को अपने घर की छत के जरीए संचयन करने का काम किया है. वर्षा जल संचयन की इस संरचना के लाभों को समझने के लिए यह ट्रेनिंग इन प्रतिभागियों के लिए काफी मददगार साबित हो रही है.

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Ranbir Singh

विश्व युवक केंद्र में कार्यक्रम अधिकारी रणवीर सिंह ने बताया कि देश में आने वाले समय में जल संकट एक बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आ सकता है. ऐसे में जल की कमी वाले सीकर में ट्रेनिंग आयोजित किए जाने का मुख्य उद्देश्य यह था कि लोग यहां के जल संचयन, खेती और सिंचाई में जल प्रबंधन सहित आजीविका के उपायों को सीखें और अपने क्षेत्रों में लागू करें.

 

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Anand Kumar

विश्व युवक केंद्र में ही कार्यक्रम अधिकारी आनंद कुमार ने कहा कि कृषि, जल पुनर्भरण, शिक्षा और आजीविका जैसे विषय पर लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक किए जाने की जरूरत है. ऐसे में सफल अनुभवों को एकदूसरे से साझा किए जाने के लिए सोशल मीडिया एक बड़ा माध्यम साबित हो सकता है. उन्होंने सभी प्रतिभागियों से आह्वान किया कि सभी लोग समयसमय पर सोशल मीडिया के जरीए सफलता की कहानियों को साझा करते रहें, जिस से बदलाव की कहानियों से सीख ले कर दूसरे क्षेत्रों में भी लोग इसे अपना पाएं.

 

पद्मश्री जगदीश पारीक ने कृषि के नवाचारों को किया साझा

पद्मश्री और गोभीमैन औफ इंडिया के नाम से विख्यात जगदीश पारीक ने कम पानी में खेती और बागबानी का अनुभव साझा किया और अपने नवाचारों पर जानकारी दी. कार्यक्रम में एफपीओ और कृषि उद्यमिता, प्राकृतिक खेती और मूल्य संवर्धन मौडल, आत्मनिर्भर परिवार, लघु पैमाने पर कृषि उद्यमिता, वर्षा जल पुनर्भरण संरचना पर प्रकाश डाला गया.

सीकर जिले के अजीतगढ़ निवासी किसान जगदीश प्रसाद पारीक ने बताया कि वे खेती में नएनए प्रयोग करते हैं. वे सब्जियों की नई किस्म तैयार करने से ले कर किसानों को और्गेनिक खेती के लिए प्रेरित करते हैं.

खेती के नाम कई रिकौर्ड

पद्मश्री जगदीश पारीक ने बताया कि वह अपने खेत में 25 किलो ढाई सौ ग्राम वजनी गोभी का फूल, 86 किलो कद्दू, 6 फीट लंबी घीया, 7 फीट लंबी तोरिया, 1 मीटर लंबा और 2 इंच का बैगन, 5 किलो गोल बैगन, ढाई सौ ग्राम मोटा प्याज, साढ़े 3 फीट लंबी गाजर और एक पेड़ से 150 मिर्ची तक उगा चुके हैं.

उन्होंने बताया कि सब से अधिक किस्में फूलगोभी की हैं. यही वजह है कि लोग इन्हें ‘गोभी मैन’ कह कर भी बुलाते हैं.

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पद्मश्री और गोभीमैन औफ इंडिया के नाम से विख्यात जगदीश पारीक

54 साल से कर रहे जैविक खेती

जगदीश पारीक ने बताया कि वह साल 1970 से और्गेनिक खेती कर रहे हैं. पिता के निधन के बाद पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर उन्होंने खेती करना शुरू कर दिया. उन्होंने गोभी से इस की शुरुआत की और इस की किस्मों को ले कर कई नए प्रयोग किए. उन्हें प्रदेश में जैविक और शून्य लागत की खेती के प्रणेता के रूप में पहचान मिली है. इसी वजह से साल 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया था.

रेतीले इलाके में सफल खेती

जगदीश पारीक का खेत ड्राई जोन का हिस्सा है. उन्होंने बताया कि बरसात के पानी से आने वाले बहाव को वह अपने खेत में डायवर्ट करते हैं, जिस से उन का कुआं रिचार्ज हो जाता है और सालभर वह उसी पानी का इस्तेमाल खेती के लिए करते हैं. एक बरसात के सीजन में वह 3 बार पानी की राह रोक कर अपने खेत में मोड़ देते हैं. जिसे जमीन सोख लेती है और उसी पानी से उन के खेत पर बना कुआं जीवंत हो जाता है.

खेती के अनुभवों को करते हैं साझा

जगदीश पारीक की खेती में प्रयोगधर्मिता से न सिर्फ किसान, बल्कि कृषि अधिकारी तक प्रभावित हैं. यही वजह है कि कृषि से जुड़े सैमिनार हों या वर्कशाप देशभर से जगदीश पारीक को बुलाया जाता है और उन के अनुभवों से सीखा जाता है.

फील्ड विजिट कर प्रतिभागी कृषि, जल और आजीविका के अनुभव से हुए रूबरू

विश्व युवक केंद्र और बजाज फाउंडेशन द्वारा सीकर में आयोजित पांचदिवसीय प्रशिक्षण और फील्ड विजिट कार्यक्रम के तीसरे दिन प्रतिभागियों ने लक्ष्मणगढ़ ब्लौक खिनवासर गांव के प्रगतिशील किसान अमरचंद काजला के प्राकृतिक खेती, मीठे नीबू के भूखंड और बायोगैस प्लांट का दौरा किया.

इस दौरान अमरचंद काजला ने अपने प्राकृतिक खेती के मौडल पर प्रतिभागियों को जानकारी दी. उन्होंने बताया कि वह जिस क्षेत्र में खेती कर रहे हैं, वहां का क्लाइमेट खेती के लिए बहुत जटिल है, फिर भी उन्होंने प्राकृतिक खेती के जरीए खेती में सफलता के नए आयाम गढ़ते हुए सफलता प्राप्त की है.

उन्होंने बताया कि उन के कृषि उत्पादों को बेचने के लिए वह एप का सहारा लेते हैं, जिस से उन्हें किसी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है. उन्होंने अपने गोबर गैस प्लांट की कार्यप्रणाली को दिखाते हुए उस के फायदे भी गिनाए.

बजाज फाउंडेशन में सीएसआर के प्रेसिडेंट हरिभाई मोरी ने अमरचंद काजला के गौ आधारित खेती के मौडल की प्रशंसा करते हुए उसे आगे बढ़ाते हुए पूरे देश में लागू करने पर जोर दिया. वीवाईके के मुख्य कार्यकारी अधिकारी उदय शंकर सिंह ने सीकर में अपनाए जा रहे जल उपयोग प्रणाली, जैविक, प्राकृतिक और गौ आधारित खेती को आज की आवश्यकता बताते हुए मानव स्वास्थ्य के लिए जरूरी बताया.

उन्होंने सीकर के आजीविका मौडल और भूमि जल पुनर्भरण मौडल की सराहना की और उसे अन्य राज्यों में भी लागू किए जाने की वकालत की.

इस के बाद दौरे पर आई टीम ने इस बलारा गांव में कृषि प्रसंस्करण इकाई तेल मिल और मसाला मिल का दौरा कर मूल्य संवर्धन और आजीविका से जुड़ी सफलता के बारे में जानकारी प्राप्त की.

ध्येय प्रोग्राम के तहत दौरे पर आई यह टीम सिंहोदरा गांव के पवन कुमार शर्मा के फार्म पर प्राकृतिक खेती और वृक्षारोपण के तहत 3 लेयर खेती, बाजरा प्रसंस्करण इकाई, खेत टांका और वृक्षारोपण के बारे में भी जानकारी प्राप्त की.

टीम ने ड्रिप के जरीए किन्नू और मीठे नीबू के बाग का अध्ययन करने के लिए रामचंद्र सेन के फार्म का दौरा किया. छत पर वर्षा जल संचयन संरचना के लाभों को समझने के लिए ओमप्रकाश मेहेरिया के फार्म का भी दौरा किया. इस दौरान टीम ने भूमि समतलीकरण गतिविधि के लाभों को समझने के लिए राजेश स्वामी से जानकारियां प्राप्त की.

राजस्थान के सूखे खेतों में फूलों की लहलहाती खेती ने किया हैरान

राजस्थान की जमीन रेतीली होने और कम बारिश के चलते देश के अन्य हिस्सों की तुलना में खेती किया जाना कठिन काम है, लेकिन सीकर जिले के तमाम किसानों ने बजाज फाउंडेशन के सहयोग के बारिश के पानी को संरक्षित करते हुए ड्रिप इरिगेशन के जरीए तमाम ऐसी फसलों को उगाने में सफलता पाई है, जिसे ज्यादा सिंचाई की जरूरत होती है. सीकर की इसी खेती की विधि को सीखने के लिए टीम जब तसरबाड़ी गांव पहुची, तो यहां के किसान भंवर लाल के एकीकृत खेती के मौडल करीब 40 एकड़ क्षेत्र में गेदे और गुलदाऊदी फूल की सफल खेती को देख कर अचंभित हो गई.

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इस मौके पर किसान भंवर लाल ने बताया कि वह करीब 40 एकड़ क्षेत्र में पानी का बेहतर प्रबंधन करते हुए फूलों की खेती कर करीब 70 लाख रुपए की आमदनी हर साल कर लेते हैं. उन्होंने बताया कि वह बारिश के पानी को संरक्षित करते हैं, जिसे ड्रिप के जरीए फसल की सिंचाई करते हैं. उन्होने अपने फार्म, तालाब, पौलीहाउस, बगीचे का भ्रमण भी कराया और खेती के सफल मौडल की जानकारी दी.

प्रतिभागियों ने सराहा

विश्व युवक केंद्र और बजाज फाउंडेशन द्वारा कृषि, जल पुनर्भरण, शिक्षा और आजीविका विषय पर आयोजित ट्रेनिंग और एक्सपोजर विजिट कार्यक्रम में देश के करीब 12 राज्यों से 100 से भी अधिक प्रतिभागी शामिल हुए. प्रतिभागियों ने राजस्थान के सीकर में कम पानी में किए जा रहे सफल खेती और आजीविका के मौडल को सराहा और अपनेअपने क्षेत्रों में लागू किए जाने पर बल दिया.

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले से नैशनल अवार्डी किसान राममूर्ति मिश्र ने कहा कि उन्हें सीकर में अपनाए जा रहे एक लिटर पानी में पौधारोपण के सफल प्रयोग ने काफी प्रभावित किया है. उन्होंने कहा कि जब राजस्थान में हरियाली बढ़ाई जा सकती है, तो देश के सिंचित और वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे और भी सफलतापूर्वक लागू किया जा सकता है.

 

ट्रेनिंग में आए रूरल अवेयरनेस फौर कम्युनिटी इवोलूशन के अध्यक्ष नितेश शर्मा ने सीकर में किसानों द्वारा जल संसाधन विकास के लिए किए जा रहे प्रयासों को सराहा. उन्होंने कहा कि सीकर में किसानों द्वारा संचालित एफपीओ कृषि उद्यमिता की मिसाल है. इस से देश के अन्य किसानों को सीखने में मदद मिलेगी.

 

 

 

 

 

 

 

विश्वनाथ चौधरी ने विजिट के दौरान प्राकृतिक खेती और मूल्य संवर्धन के मौडल और उस से आत्मनिर्भर बने किसान परिवारों के अनुभवों को साझा किया. प्रतिभागी नीलम मिश्रा ने एसएचजी फेडरेशन के जरीए सीकर में हुए महिला सशक्तीकरण को सराहा.

गेहूं (Wheat) की वैज्ञानिक खेती

भारत गेहूं की पैदावार में दुनिया में दूसरा बड़ा देश है.  इस का पूरा श्रेय शोध, प्रचार कार्यक्रमों और देश के प्रगतिशील किसानों की लगन को जाता है.

गेहूं की कम उत्पादकता के खास कारण

* बासमती धान गेहूं फसलचक्र के कारण गेहूं की बोआई का देर से होना.

* धान के बाद गेहूं की बोआई में खरपतवारों का होना.

* समय से उन्नतशील प्रजातियों के बीज मौजूद न होना.

* उन्नत शस्य क्रियाएं जैसे बीज उपचार व सही विधि और सही गहराई पर बोआई न करना, सही खरपतवारनाशी का इस्तेमाल न करना, सही उर्वरक का इस्तेमाल न करना, ढंग से सिंचाई न करना और सही समय कीटबीमारियों की रोकथाम न करना.

प्रजातियों का चुनाव : उन्नतशील प्रजाति का चयन कर के समय पर सही विधि से बोआई करने पर पैदावार 15-20 फीसदी तक बढ़ जाती है.

बोआई की विधि और बीजों की मात्रा

छिटकवां विधि : 125-130 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर.

शून्य या बिना जुताई बोआई : 80-100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर.

हल के पीछे कूड़ों में (पोरा विधि) : 80-100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर.

फर्टिकम सीड ड्रिल : 80-100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर.

बेड बोआई : 40-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर.

बीज उपचार : मिट्टी के बर्तन में 20 लीटर कुनकुने पानी में 10 किलोग्राम बीज डालने पर बेकार और हलके बीज ऊपर तैरने लगे हैं, उन्हें निकाल कर अलग कर दें. उस के बाद 4 लीटर देशी गाय का मूत्र, 3 किलोग्राम वर्मी कंपोस्ट व 2 किलोग्राम गुड़ आपस में अच्छी तरह मिलाएं. तैयार मिश्रण 1 एकड़ के हिसाब से है.

तैयार मिश्रण को 6 से 8 घंटे के लिए अलग रखें. इस के बाद जूट के बोरे में मिश्रण रख कर हलका पानी छिड़कें, फिर 2 ग्राम बावस्टीन और 1 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से या 2-3 ग्राम ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदीनाशक, 7.5 ग्राम पीएसवी कल्चर और 6 ग्राम एजोवैक्टर को प्रति किलोग्राम बीज दर से बीजों पर अच्छी तरह चढ़ाएं. इस के बाद करीब 10-12 घंटे इन बीजों को किसी नमी युक्त जूट के बोरे में अंकुरण के लिए रखें, अंकुरण के बाद बीज बोआई के लिए तैयार हो जाते हैं. जहां दीमक या भूमिगत कीड़ों का हमला होता है, उस  क्षेत्र में ब्यूवेरिया वेसियाना 2.5-3.0 किलोग्राम को 80-100 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट में मिला कर बोआई से पहले खेत में आखिरी जुताई के समय मिला दें.

उर्वरकों का इस्तेमाल : मिट्टी की जांच के आधार पर उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए. सामान्य तौर पर 150:60:40:25 के अनुपात में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और जिंक प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करने के लिए 263-275 किलोग्राम यूरिया, 130-140 किलोग्राम डीएपी, 67-70 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. देरी से बोआई करने पर 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 30 किलोग्राम पोटाश और 20-25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. इस के लिए 140 किलोग्राम यूरिया, 94 किलोग्राम डीएपी, 50 किलोग्राम पोटाश और 20-25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए.

नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस, पोटाश व जिंक की पूरी मात्रा बोआई के समय जड़ क्षेत्र में इस्तेमाल करनी चाहिए. बाकी नाइट्रोजन (यूरिया) की आधी मात्रा पहली सिंचाई यानी करीब 25 दिनों बाद और आधी मात्रा 45-50 दिनों बाद दौज बनने की अवस्था में दूसरी सिंचाई के बाद जब पैर चिपकने लगे तब डालनी चाहिए. बढ़वार की अवस्था में 2 फीसदी यूरिया के घोल का छिड़काव करने से 20-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से यूरिया की बचत की जा सकती है.

जिंक की कमी : इस से ऊपर से तीसरी पत्ती पर सफेटपीले ऊतकों की एक पट्टी बन जाती है, जो आमतौर पर मध्य शिरा और पत्ती के किनारों के बीच दिखाई देती है. जिंक की कमी दूर करने के लिए 5 किलोग्राम जिंक और 2.5 किलोग्राम बुझा चूना या 2.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 1.25 किलोग्राम बुझा चुना या 12.5 किलोग्राम यूरिया 500 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिनों के फासले पर 2 बार छिड़काव करें.

मैंगनीज की कमी के लक्षण दिखाई देने पर 0.5 फीसदी मैंगनीज सल्फेट के छिड़काव के लिए 2.5 किलोग्राम मैंगनीज सल्फेट 500 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

सिंचाई : गेहूं में 5-6 बार मिट्टी और मौसम के मुताबिक सिंचाई की जाती है. पहली सिंचाई ताज मूल अवस्था पर न होने की दशा में उपज में भारी गिरावट आती है.

खरपतवारों की रोकथाम : गेहूं में ज्यादातर गेहूं का बथुआ, चटरीमटरी, हिरन खुटी, सेंजी, जंगली गाजर, कृष्ण नील, जंगली पालक, जंगली जई, मोथा और गेहूंसा आदि खरपतवार पाए जाते हैं. सब से अच्छा तो यह है कि गेहूं की फसल को बोआई के 30-35 दिनों व 55-60 दिनों की अवस्था में खुरपी या कुदाल द्वारा निराईगुड़ाई कर के खरपतवारों से मुक्त रखा जाए.

आस्ट्रेलियन टीक (एमएचएटी 16) : 10 सालों में 5 करोड़ तक की आमदनी

आमतौर पर विश्व में अकेसिया बबूल की 1200 से भी ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं. भारत में लगभग सभी जगह पाया जाने वाला बबूल भी इसी अकेसिया की एक प्रजाति है. पान में जिस कत्था को हम खाते हैं, वह भी इसी की एक अन्य प्रजाति की लकड़ी से प्राप्त किया जाता है.

आज हम इस की एक विशेष प्रजाति की चर्चा कर रहे हैं, जिस का आस्ट्रेलिया और अन्य कई देशों में बहुत बड़े पैमाने पर व्यावसायिक रोपण किया गया है और इस से वहां के किसान भरपूर मुनाफा कमा रहे हैं. इस की लकड़ी का व्यापार जगत में लोकप्रिय नाम आस्ट्रेलियन टीक है. बेहतरीन, खूबसूरत, टिकाऊ, बहुमूल्य लकड़ी के सभी प्रमुख गुणों जैसे कठोरता, घनत्व, मजबूती एवं लकड़ी में पाए जाने वाले रेशों के मापदंड पर इस की लकड़ी आजकल पाए जाने वाले सागौन से कहीं भी उन्नीस नहीं बैठती. यही कारण है कि अल्पकाल में ही इस ने न केवल अपार लोकप्रियता हासिल की कर ली है और लकड़ी के व्यापार में बहुत बड़ा मुकाम बना लिया है.

भारत हर साल लगभग 40 लाख करोड़ रुपए की लकड़ी व नौनटिंबरवुड आयात करता है. बिहार से इस की खेती करने पर किसानों को न केवल बेहतरीन आमदनी होगी, बल्कि देश की बहुमूल्य विदेशी पैसे की बचत भी होगी.

यह एक तेजी से बढ़ने वाली प्रजाति है, जो न केवल उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करती है, बल्कि इस की लकड़ी का व्यापारिक मूल्य भी अत्यधिक है.

मौडर्न तो श्री हर्बल फार्म 2017 सैंटर पर पिछले 30 सालों में किए गए प्रयोगों से यह स्पष्ट हो गया कि इस की बढ़वार लंबाई और मोटाई दोनों ही मामलों में महोगनी, शीशम, मिलिया डुबिया, मलाबार नीम और टीक की अन्य प्रजातियों की तुलना में सर्वाधिक है. कई मामलों में तो इस की वृद्धि ‌इन सब से दोगुनी तक पाई गई है. इस की विशेषता तेज वृद्धि, उच्च गुणवत्ता की लकड़ी और मिट्टी को समृद्ध करने की क्षमता में निहित है.

वर्तमान में देश में उपलब्ध सब से तेजी से बढ़ने वाली और उच्चतम गुणवत्ता की लकड़ी उत्पादन देने वाली एकेसिया मंगियम (Acacia Mangium) की एकमात्र विकसित प्रजाति एमएचएटी-16 (MHAT-16) है, जिसे ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म्स एवं रिसर्च सेंटर’, कोंडागांव ने पिछले कई दशकों के प्रयास से विकसित किया है. यह न केवल बेहतर गुणवत्ता की लकड़ी उत्पादन देती है, बल्कि मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा भी बड़ी तेजी से बढ़ाती है, जिस से यह एक टिकाऊ और लाभकारी और इकोफ्रैंडली विकल्प बन जाती है.

सही पौधे का चयन : सफलता की कुंजी

एकेसिया मंगियम (Acacia Mangium) वृक्षारोपण की सफलता सब से पहले इस बात पर निर्भर करती है कि कौन से पौधे चुने जाते हैं. इस प्रजाति में चयन करने की दिक्कत इसलिए बढ़ जाती है कि ज्यादातर प्रजातियों के पत्ते लगभग एकजैसे ही दिखाई देते हैं, लेकिन असली फर्क लकड़ी की गुणवत्ता में रहता है. एमएचएटी-16 (MHAT-16) प्रजाति का पौधा अपने तेजी से विकास और मजबूत जड़ प्रणाली के लिए प्रसिद्ध है. पौधे के स्वास्थ्य, उस की जड़ प्रणाली और तने की मोटाई जैसे कारकों को ध्यान में रखना चाहिए. उच्च शूट/रूट (shoot/root) अनुपात वाले पौधे तेजी से बढ़ते हैं और विपरीत परिस्थितियों में बेहतर जीवित रहते हैं.

मुख्य बिंदु :
– पौधा रोगमुक्त और कीटमुक्त होना चाहिए.
– अच्छी तरह से विकसित जड़ प्रणाली (lateral root system) होना चाहिए.
– तना मजबूत और काष्ठीय होना चाहिए.

पौधों का रोपण : समय पर और सही जगह :

एकेसिया मंगियम (Acacia Mangium) एमएचएटी-16 (MHAT-16) के पौधों को 3 से 5 महीने की आयु के बाद रोपण के लिए तैयार किया जा सकता है. इस के पौधे पौलीबैग या रूट ट्रेनर्स (root trainers) में उगाए जाते हैं. वर्षा ऋतु रोपण के लिए सर्वोत्तम समय है. हालांकि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो, तो इसे शीत ऋतु में भी लगाया जा सकता है. जिस किसान के पास ड्रिप इरीगेशन की सुविधा हो, तो वे इसे मध्य मार्च तक भी लगा सकते हैं.

मुख्य बिंदु :
– पौधों की ऊंचाई 25-40 सैंटीमीटर होनी चाहिए.
– रोपण के लिए मानसून का समय आदर्श होता है.

कटिंग से पौधों का उत्पादन : एक सस्ती और कारगर विधि :

एकेसिया मंगियम (Acacia Mangium) की इस विशेष प्रजाति के पौधे मुख्य रूप से स्टेम कटिंग (stem cuttings) के माध्यम से उगाए जाते हैं. एमएचएटी- 16 (MHAT-16) प्रजाति की कटिंग से उगाए गए पौधे तेजी से बढ़ते हैं और उन की जड़ प्रणाली मजबूत होती है. कटिंग्स को आईबीए (IBA (Indole-3-butyric acid) के विशेष अनुपात के साथ उपचारित किया जाता है, ताकि जड़ें जल्दी विकसित हों.

मुख्य बिंदु :
– जड़ों के तीव्र गति से विकास के लिए वर्मी कंपोस्ट और साफसुथरी रेती का मिश्रण सब से उपयुक्त होता है.

सिंचाई :

पौधों की वृद्धि की आवश्यकता : एकेसिया मंगियम (Acacia Mangium) एमएचएटी -16 (MHAT-16) के पौधों को नर्सरी अवस्था में तो नियमित नमी की आवश्यकता होती है. पौधों को हर दूसरे दिन पानी देना चाहिए, विशेषकर गरम मौसम में. इस से पौधों का विकास तेजी से होता है और उन के मुरझाने की संभावना कम होती है. खेतों में लगाने के बाद एक बार भलीभांति जड़ पकड़ लेने के बाद इसे कोई विशेष सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती. हालांकि सिंचाई करते रहने पर इस के वृद्धि दर में बहुत अच्छे परिणाम देखे गए हैं.

मुख्य बिंदु :
– पौधों में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें.
– गरम मौसम में पौधे की हालत को देखते हुए पानी की मात्रा और आवृति तय करें.

ग्रेडिंग : गुणवत्ता का मानक :
एकेसिया मंगियम (Acacia Mangium) के पौधों की ग्रेडिंग से यह सुनिश्चित किया जाता है कि केवल उच्च गुणवत्ता वाले पौधों का रोपण किया जाए. एमएचएटी-16 (MHAT-16) प्रजाति के पौधों की जड़ प्रणाली मजबूत होती है और तने की मोटाई अच्छी होती है, जो प्लांटेशन  की सफलता को सुनिश्चित करता है.

मुख्य बिंदु :
– उच्च गुणवत्ता वाले पौधों का उपयोग प्लांटेशन की सफलता के लिए अनिवार्य है.
– ग्रेडेड पौधों के रोपण से पौधे खेतों में बहुत कम मरते हैं और दोबारा रोपण की आवश्यकता कम होती है.

संभावित आर्थिक लाभ : निवेश का सुनहरा अवसर

एकेसिया मंगियम (Acacia Mangium) एमएचएटी-16 (MHAT-16) से प्राप्त लकड़ी उच्च गुणवत्ता की होती है. कई मायनों में यह आजकल मिलने वाली टीक की लकड़ी से भी बेहतर होती है. लगभग 10 साल बाद प्रत्येक पेड़ से औसतन 30-40 घन फीट लकड़ी प्राप्त की जा सकती है. इस की वर्तमान बाजार दर 1000-1500 प्रति घन फीट है. यदि एक एकड़ में लगाए गए 800 पेड़ों में से 600 पेड़ भी सफलतापूर्वक विकसित होते हैं, तो 10 वर्षों के बाद होने वाली कुल आय करोड़ों रुपए में हो सकती है.

आयव्यय के वास्तविक आंकड़े और विश्लेषण:-
(स्रोत:मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म्स एवं रिसर्च सैंटर, कोंडागांव, छत्तीसगढ़)
एक एकड़ में औसतन लगेंगे कुल पौधे – 800
प्रति पौधा लागत रु.100-150 औसतन – 125
कुल प्रारंभिक खर्च – 1,16,000
रखरखाव लागत (प्रति वर्ष) प्रति एकड़ – 10,000
(नोट: क्षेत्रफल बढ़ने पर या राशि कम होती जाती है.)

कुल 10 वषों में कुल रखरखाव लागत 10000×10=₹1,00,000.

कुल खर्च (10 वर्षों) में 116000 + 100000 =₹2,16,000 (2 लाख, 16 हजार रुपए)

आमदनी :
औसतन लकड़ी उत्पादन प्रति पेड़ – 35 घन फीट
लकड़ी की संभावित औसतन न्यूनतम कीमत (टीक के औसतन मूल्य 5000 प्रति क्यूबिक फीट का केवल 25= 1250 प्रति घन फीट
लगाए गए 800 पेड़ों में से केवल 600 उत्पादक पेड़ों से कुल लकड़ी – 600 x35 = 21,000 घन फीट,
लकड़ी का मूल्य = 1250× 21000 रुपए घन फीट – 2,62,5000 (2 करोड़, 62 लाख, 50 हजार रुपए)
कुल आय (10 वर्षों में) – 2,62,50,000 रुपए
शुद्ध आय (10 वर्षों में) कुल आय 26250000- कुल खर्च 216000= 2,60,34,000 रुपए
प्रति वर्ष औसत आय – 26034000 ÷ 10 वर्ष = 26,03,400 (लगभग छ्ब्बीस लाख रुपए) सालाना

नोट : यह गणना प्राप्त होने वाली लकड़ी के संभावित न्यूनतम मूल्य 1250 रुपए के बीच फीट पर की गई है और एक एकड़ के 800 पेड़ों में से केवल 600 पेड़ों के औसत उत्पादन की गणना की गई है. पौधों की बेहतर देखभाल से उत्पादन में वृद्धि और लकड़ी का सही मूल्य मिलने पर एक एकड़ की आमदनी इस से दोगुनी अर्थात 5 करोड रुपए प्रति एकड़ तक भी हो सकती है.)

अतिरिक्त आय : आस्ट्रेलियन टीक (MHAT-16) के पेड़ों पर काली मिर्च एमडीबीपी-16 (MDBP-16) की बेल चढ़ा कर को 5 लाख से ले कर 15 लाख रुपया सालाना की अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है. आस्ट्रेलियन टीक और काली मिर्च के अलावा वृक्षारोपण के बीच खाली पड़ी 50 फीसदी भूमि पर अंतरवर्ती फसल के रूप में औषधि और सुगंधी पौधों की खेती से भी अतिरिक्त कमाई की जा सकती है.

आस्ट्रेलियन टीक (MHAT-16) प्रजाति तेजी से बढ़ने वाली, टिकाऊ और अत्यधिक लाभदायक प्रजाति है, जो न केवल उच्च गुणवत्ता की लकड़ी प्रदान करती है, सालभर में अपनी पत्तियों से लगभग 6 टन बेहतरीन हरी खाद भी देता है.

इस के अलावा यह अपनी तरह का एकलौता पौधा है, जो वायुमंडल की नाइट्रोजन को ले कर धरती में इतनी ज्यादा मात्रा में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करता है कि इसे जैविक नाइट्रोजन की फैक्टरी भी कहा जाता है. इस के रोपण से प्राप्त होने वाले आर्थिक लाभ और कम लागत ने आज इसे किसानों और निवेशकों के लिए एक आदर्श विकल्प बना दिया है.

आस्ट्रेलियन टीक (MHAT-16) प्रजाति की विशेषताएं इसे अन्य किस्मों से बेहतर बनाती है, जिस से यह निवेश का सुनहरा अवसर देती है.

मुख्य लाभ :
– तेजी से बढ़ने वाली प्रजाति (MHAT-16)
– उच्च गुणवत्ता वाली लकड़ी का उत्पादन
– नाइट्रोजन स्थिरीकरण से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार
– अंतरवर्ती फसलों से अतिरिक्त आय
– साल में इस के पत्तों से लगभग 6 टन की बेहतरीन गुणवत्ता की हरी खाद का उत्पादन
– इस पेड़ पर काली मिर्च चढ़ाने पर इस से मिलने वाली नाइट्रोजन और पत्तों की हरी खाद के कारण काली मिर्च का उत्पादन कई गुना बढ़ गया है और इस से किसान की आमदनी में भी जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है.

सुझाव :

एकेसिया मंगियम (Acacia Mangium) एमएचएटी- 16 (MHAT-16) प्लांटेशन को आर्थिक समृद्धि और पर्यावरणीय संरक्षण के दृष्टिकोण से एक आदर्श योजना माना जा सकता है. इस का सही प्रबंधन और देखभाल आप के निवेश को बड़े पैमाने पर लाभदायक बना सकता है.
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आंकड़ों का स्रोत : ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म्स एवं रिसर्च सैंटर, कोंडागांव, छत्तीसगढ़)

मक्का है मेवाड़ के लिए खास 

उदयपुर : कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि मेवाड़ के लिए मक्का बहुत खास फसल है. वैसे भी यहां कहावत है, ’गेहूं छोड़ ’न मक्का खाणो – मेवाड़ छोड़ न कठैई नी जाणों’. मक्का कभी अनाज और चारे के लिए बोया जाता था, लेकिन अनुसंधान और कृषि वैज्ञानिकों के प्रयासों की बदौलत मक्का से पोपकौर्न, बेबीकौर्न, जर्म औयल (मक्का का तेल), जिस में एंटीऔक्सीडेंट भरपूर मात्रा उपलब्ध है. यही नहीं, मक्का से स्टार्च के बाद इथेनाल उत्पादन भी संभव है, जिसे भविष्य में पैट्रोल के विकल्प के रूप में अपनाया जा सकता है.

उन्होंने आश्वस्त किया कि ग्रीन फ्यूल की दिशा में एपपीयूएटी हर संभव मदद करेगा. कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि साल 1955 में स्थापित राजस्थान कृषि महाविद्यालय कोई छोटामोटा कालेज नहीं है, बल्कि देश का दूसरा कृषि विश्वविद्यालय है.

उन्होंने आगे कहा कि एमपीयूएटी ने हाल ही प्रताप-6 संकर मक्का बीज पैदा किया है, जिस का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 65 क्विंटल है. कृषि राज्यमंत्री भागीरथ चौधरी की मंशानुरूप इस बीज के प्रयोग से मक्का का क्षेत्रफल बढ़ाने की जरूरत नहीं है, बल्कि उत्पादन दोगुना हो सकता है.

देश का पहला प्राकृतिक खेती का सैंटर भी इस विश्वविद्यालय के अधीन भीलवाड़ा में कार्यरत है. डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि एमपीयूएटी के अंतर्गत 8 कृषि विज्ञान केंद्र हैं, जबकि 9वां कृषि विज्ञान केंद्र विद्याभवन में चल रहा है, लेकिन वह भी इसी विश्वविद्यालय का अहम हिस्सा है.

उन्होंने बताया कि एमपीयूएटी ने वर्ष 2024 में 24 पेटेंट प्राप्त किए. यह पेटेंट किसी सिफारिश से नहीं, बल्कि भारत सरकार के कठिन नियमशर्तों पर खरे उतरने पर मिले. मिलेट्स की दिशा में भी एमपीयूएटी ने सराहनीय काम किए. अब जरूरत है तकनीक को विश्वविद्यालय हित में मोनीटाइजेशन किया जाए.

आंरभ में पूर्व छात्र परिषद के संरक्षक डा. आरबी दुबे ने बताया कि जुलाई, 1955 में स्थापित राजस्थान कृषि महाविद्यालय से अब तक 4,441 छात्रछात्राएं स्नातकोत्तर, 3013 स्नातक, जबकि 883 विद्यार्थी पीएचडी डिगरी प्राप्त कर चुके हैं. विगत 5 सालों में 915 विद्यार्थियों का देशविदेश में विभिन्न सेवाओं में चयन हुआ है.

पूर्व छात्र डा. लक्ष्मण सिंह राठौड़, पूर्व कुलपति उमाशंकर शर्मा के अलावा पूर्व छात्र परिषद के पदाधिकारी डा. आरबी दुबे, डा. एनस बारहट, डा. जेएल चौधरी, डा. दीपांकर चक्रवर्ती, डा. सिद्धार्थ मिश्रा आदि ने अतिथियों को साफा, पुष्पगुच्छ, स्मृति चिन्ह दे कर सम्मानित किया.

समारोह में पूर्व छात्र परिषद की ओर से 30 से ज्यादा छात्रछात्राओं, शिक्षकों, किसानों को सम्मानित किया गया. सम्मानित होने वाले प्रमुख नाम किसान राधेश्याम कीर, रमेश कुमार डामोर, डा. केडी आमेटा, डा. एस. रमेश बाबू, रजनीकांत शर्मा, डा. भावेंद्र तिवारी, वर्षा मेनारिया व अमीषा बेसरवाल आदि हैं.

कालेज के गलियारों में खूब की हंसीठिठोली, राष्ट्रीय सम्मेलन में शरीक हुए 500 से ज्यादा विद्यार्थी

जीवन के उत्तरार्द्ध में डग भर रहे सैकड़ों पूर्व कृषि छात्रों ने पिछले दिनों एकदूसरे को गले लगा कर न केवल पुरानी यादों को ताजा किया, बल्कि भूलेबिसरे किस्सों को याद करते हुए खूब अट्ट़हास किए. मौका था- राजस्थान कृषि महाविद्यालय पूर्व छात्र परिषद के 23वें राष्ट्रीय सम्मेलन का. पूर्व छात्रों के सम्मेलन में देशविदेश के 500 से ज्यादा छात्र शामिल हुए.

पूर्व छात्रों ने महाविद्यालय के गलियारों में घूमते हुए कालेज के दिनों की यादों को ताजा किया. साथ ही, एकदूसरे से जुड़ने, मोबाइल नंबर लेतेदेते हुए भविष्य में नित्य एकदूसरे से बतियाने का वादा किया.

उल्लेखनीय है कि इस महाविद्यालय ने विश्वस्तरीय वैज्ञानिक दिए हैं. पद्मश्री डा. आरएस परोदा, डा. एसएल मेहता, डा. पीके दशोरा, डा. लक्ष्मण सिंह राठौड़, डा. भागीरथ चौधरी जैसे अनेकानेक नाम हैं, जिन्होंने देशविदेश में नाम किया.

इस मौके पर पूर्व छात्र परिषद के अध्यक्ष डा. नरेंद्र सिंह बारहठ ने कहा कि परिषद की ओर से अगले वर्ष से प्रतिभावन छात्रछात्राओं को 6 स्कौलरशिप प्रदान की जाएगी. उन्होंने बताया कि पूर्व छात्र परिषद को निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) वाला बनाने के प्रयास होंगे. इस के अलावा परिषद के तत्वावधान में प्रति वर्ष पूर्व छात्रों की क्रिकेट प्रतियोगिता आयोजित होगी.

इस मौके पर परिषद की ओर से पूर्व छात्रों के लिए अतिथिगृह बनाने की पेशकश की गई. साथ ही, इस के लिए कुलपति से जमीन उपलब्ध कराने का आग्रह किया गया. अतिथिगृह बनाने के लिए प्रयोग पूर्व छात्र ने अपने जन्मदिन पर एक हजार रुपए देने की घोषणा की.

कालेज के पूर्व छात्र रहे डा. डीपी शर्मा की स्मृति में उन की बहन हेमलता ने परिषद को 2 लाख रुपए भेंट किए. स्वर्ण जयंती की दहलीज पर पहुंच चुके राजस्थान कृषि महाविद्यालय की नींव जुलाई, 1955 में डा. ए. राठौड़ ने रखी. आरंभ में अतिथियों ने पूर्व छात्र परिषद की स्मारिका का विमोचन भी किया गया.

फसल अवशेष (Crop Residues) हैं कमाई का जरीया

उमरिया : कलक्टर एवं जिला दंडाधिकारी धरणेन्द्र कुमार जैन के संज्ञान में यह बात आई है कि वर्तमान में गेहूं एवं धान की फसल कटाई अधिकांशतः कंबाइंड हार्वेस्टर से की जाती है. कटाई के उपरांत बचे हुए गेहूं के डंठलों (नरवाई) से भूसा न बना कर जला देने और धान के पैरा यानी पुआल को जला देने से धान का पुआल एवं भूसे की आवश्यकता पशु आहार के साथ ही अन्य वैकल्पिक रूप में एकत्रित भूसा ईंटभट्ठा एव अन्य उद्योग भी प्रभावित होते हैं. गेहूं एवं धान के पुआल की मांग प्रदेश के अन्य जिलों के साथ अनेक प्रदेशों में भी होती है. एकत्रित भूसा 4-5 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर विक्रय किया जा सकता है.

इसी तरह गेहूं का पुआल भी बहुपयोगी है. पर्याप्त मात्रा में भूसा/पुआल उपलब्ध न होने के कारण पशु अन्य हानिकारक पदार्थ जैसे पौलीथिन आदि खाते हैं, जिस से वे बीमार होते हैं और अनेक बार उन की मृत्यु हो जाने से पशुधन की हानि होती है.

नरवाई का भूसा 2-3 माह बाद दोगुनी कीमत पर विक्रय होता है और किसानों को यही भूसा बढ़ी हुई कीमतों पर खरीदना पड़ता है. साथ ही, नरवाई एवं धान के पुआल में आग लगाना खेती के लिए नुकसानदायक होने के साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक है. इस की वजह से विगत सालों में गंभीर आग लगने की घटनाएं होने से बड़े पैमाने पर संपत्ति की हानि हुई है.

गरमी के सीजन में बढ़ते जल संकट में बढ़ोतरी के साथ ही कानून व्यवस्था के विपरीत परिस्थितियां बन जाती हैं. खेत की आग के अनियंत्रित होने पर जनधन, संपत्ति, प्राकृतिक वनस्पति एव जीवजंतु आदि नष्ट होने से व्यापक नुकसान होने के साथ ही खेत की मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवाणुओं के नष्ट होने से खेत की उर्वराशक्ति धीरेधीरे घट रही है और उत्पादन प्रभावित हो रहा है.

वहीं खेत में पड़ा कचरा, भूसाडंठल सड़ने पर भूमि को प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनाते हैं, जिन्हें जला कर नष्ट करना ऊर्जा को नष्ट करना है. आग जलाने से हानिकारक गैसों के उत्सर्जन से पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ रहा है. ऐसी स्थिति में गेहूं एवं धान की फसल कटाई के उपरांत बचे हुए गेहूं के डंठलों (नरवाई) और धान के पुआल को जलाना प्रतिबंधित करने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के अंतर्गत प्रतिबंधात्मक आदेश जारी करना आवश्यक है. अत्यावश्यक परिस्थितियां बनने व समयाभाव के कारण सार्वजनिक रूप से जनसामान्य को सूचना दे कर आपत्तियों को सुना जाना संभव नहीं है.

कलक्टर एवं जिला दंडाधिकारी ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के अंतर्गत जनसामान्य के हित सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा, पर्यावरण की हानि रोकने एंव लोक व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रत्येक कंबाइंड हार्वेस्टर के साथ भूसा तैयार करने के लिए स्ट्रा रीपर अनिवार्य करते हुए संपूर्ण उमरिया जिले की राजस्व सीमा क्षेत्र में गेहूं एव धान की फसल कटाई के उपरांत बचे हुए गेहूं के डंठलों (नरवाई) और धान के पुआल को जलाने (आग लगाए जाने) को एकपक्षीय रूप से प्रतिबंधित किया है. आदेश का उल्लंघन भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 223 के अंतर्गत दंडनीय होगा.