पशुपालक महिलाओं की गोष्ठी, मिले टिप्स 

हिसार : लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, लुवास के विस्तार शिक्षा निदेशालय एवं पशुधन उत्पादन प्रबंधन विभाग द्वारा संयुक्त रूप से कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा के दिशानिर्देशन व डा. देवेंद्र बिढान की अध्यक्षता में हिसार के रावलवास खुर्द में पशुपालक गोष्ठी का आयोजन किया गया. पशुधन उत्पादन प्रबंधन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. देवेंद्र बिढान ने बताया कि इस गोष्ठी का आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की भैंस सुधार नेटवर्क परियोजना के लुवास सैंटर के एससीएसपी फंड के तहत किया गया.

कार्यक्रम में विस्तार शिक्षा निदेशक डा. वीरेंद्र पंवार ने मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत की. उन्होंने पशुपालक महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा कि लुवास पशुपालकों के द्वार तक पहुंचने के लिए कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करता रहता है. आज की पशुपालक गोष्ठी भी इसी कड़ी में आयोजित की गई है.

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि पशुपालन में महिला पशुपालकों की भागीदारी व उन की व्यस्तता को देखते हुए विश्वविद्यालय ही पशुपालकों के द्वार पर पशुपालन से संबंधित तौरतरीकों से अवगत करवाने के लिए पहुंच रहा है. पशुपालन में नस्ल के चुनाव के साथसाथ वैज्ञानिक तरीके से पशुओं का पोषण प्रबंधन, प्रजनन प्रबंधन और आवास प्रबंधन भी उतना ही जरूरी है. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा बताए गए वैज्ञानिक तौरतरीकों को अपने व्यवसाय में अपनाएं और दूसरे पशुपालक बहनों को भी इन के बारे में जागरूक करें. हमें पशुओं को संतुलित व पौष्टिक आहार देने की कोशिश करनी चाहिए. पशुओं को संतुलित आहार देने से पशुओं की उचित वृद्धि एवं अधिक उत्पादन होता है.

उन्होंने सभी पशुओं को उचित मात्रा में खनिज मिश्रण खिलाने पर बल दिया और प्रतिभागियों को आश्वासन दिया कि पशुपालन से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए विश्वविद्यालय हमेशा पशुपालकों के साथ खड़ा रहेगा.

इस गोष्ठी में अनुसूचित जाति की 50 महिलाओं ने भाग लिया. गोष्ठी में डा. मान सिंह, डा. मनोज कुमार वर्मा और रावलवास खुर्द के पशु चिकित्सक डा. राकेश ने अपनेअपने  व्याख्यानों से प्रतिभागियों का ज्ञानवर्धन किया.

गोष्ठी का सफल संचालन डा. दिपिन चंद्र यादव एवं डा. सरिता के द्वारा किया गया. इस मौके पर गांव के सरपंच व अन्य व्यक्ति भी मौजूद रहे.

कृषि विश्वविद्यालय कोटा में सातवां दीक्षांत समारोह आयोजित, 4 नई किस्में हुईं जारी

कोटा: कृषि विश्वविद्यालय, कोटा का सातवां दीक्षांत समारोह 25 जून, 2024 को सफलतापूर्वक आयोजित किया गया. इस समारोह की अध्यक्षता राज्यपाल कलराज मिश्र ने की. अतिथियों में डा. पंजाब सिंह, सचिव (डेयर) एवं पूर्व महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली और कुलाधिपति, रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी की उपस्थिति रही.

कुलपति डा. अभय कुमार व्यास ने बताया कि सातवां दीक्षांत समारोह में अकादमिक वर्ष 2022-23 की स्नातक, स्नातकोत्तर एवं विद्या वाचस्पति परीक्षाओं में उत्तीर्ण 310अभ्यर्थियों को उपाधियां प्रदान की गईं. इन में से 271 कृषि, उद्यानिकी एवं वानिकी स्नातक, 34 कृषि, उद्यानिकी एवं वानिकी स्नातकोत्तर और 5 कृषि एवं उद्यानिकी विद्या वाचस्पति के अभ्यर्थी शामिल हैं. इस समारोह में कुल 10 अभ्यर्थियों को स्वर्ण पदक प्रदान किए गए, जिन में से 6 स्वर्ण पदक छात्राओं और 4 छात्रों ने प्राप्त किए.

अकादमिक वर्ष 2022-23 के लिए श्वेता चुघ, स्नातक (औनर्स) उद्यानिकी को कुलपति स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया. इसी प्रकार अकादमिक वर्ष 2022-23 के लिए अश्विनी मेहता स्नातकोत्तर (कृषि) आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन को कुलाधिपति स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया.
इस के अलावा संजय सैनी, स्नातक (औनर्स) वानिकी एवं युक्तैश औदिच्य, स्नातक (औनर्स) कृषि को स्वर्ण पदक दिए गए.

स्नातकोत्तर अभ्यर्थियों में विश्वदीप बालयान, स्नातकोत्तर (उद्यानिकी) फल विज्ञान; संपत्ति यादव, स्नातकोत्तर (कृषि) उद्यानिकी, अश्विनी मेहता, स्नातकोत्तर (कृषि) आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन, बरखा कुमारी वर्मा, स्नातकोत्तर (कृषि) मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन एवं मनराज धाकड, स्नातकोत्तर (कृषि) पादप रोग विज्ञान को स्वर्ण पदक दिए गए.

दीक्षांत समारोह में राजस्थान के राज्यपाल एवं कुलाधिपति, कृषि विश्वविद्यालय, कोटा कलराज मिश्र ने कहा कि इस समय कृषि बहुत सारी चुनौतियों के साथ आधुनिक विकास की तरफ आगे बढ़ रही है. कृषि भूमि व पानी की कमी, जलवायु परिवर्तन एवं कृषि लागत में बढ़ोतरी जैसी बड़ी चुनौतियों को ध्यान में रख कर कृषि विश्वविद्यालय, कोटा किसानों के लिए हितकर योजनाओं के साथ ही आधुनिक ज्ञानविज्ञान के प्रसार केंद्र के रूप में भी अपनी भूमिका निभाएं. कोटा संभाग में एग्रीटूरिज्म के क्षेत्र में काफी संभावनाएं हैं. इसलिए इसे ध्यान में रखते हुए कैसे एग्रीटूरिज्म को बढ़ावा मिले, कैसे इस के तहत युवाओं को प्रेरित किया जाए, इस पर भी विश्वविद्यालय काम करे. साथ ही, उन्होंने कहा कि कृषि विश्वविद्यालयों को समान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए समन्वित तरीकों से परियोजनाओं पर काम करें, ताकि बड़े स्तर पर उस का लाभ किसानों को और उन के जरीए हमारी कृषि अर्थव्यवस्था को मिल सके. साथ ही, जैविक खेती की आधुनिकी के लिए जितना अधिक काम विश्वविद्यालय करेंगे, उतना ही हम पर्यावरण संकट से भी उबर पाएंगे.

डा. पंजाब सिंह, सचिव (डेयर) एवं पूर्व महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली और कुलाधिपति, रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी के द्वारा दीक्षांत उद्बोधन में कहा कि कृषि विश्वविद्यालय, कोटा ने कृषि की चुनौतियों और अवसरों को पूरा करने के लिए सार्थक प्रयास किए हैं, जिस से हाड़ौती के मेहनती किसानों की अच्छी प्रगति हुई है. साथ ही, कई किसानों को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार भी मिले हैं. बहुत ही अल्प समय में विश्वविद्यालय ने शिक्षा, अनुसंधान व प्रसार के क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है.

उन्होंने कहा कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन अब एक वास्तविकता है. मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों के कारण कार्बन डाईऔक्साइड, मीथेन और नाइट्रसऔक्साइड, ग्रीनहाउस गैसों की वायुमंडलीय सांद्रता में लगातार वृद्धि हो रही है. इसलिए क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर के लिए अधिक जोर देने की आवश्यकता है.

4 नई किस्मों का लोकार्पण

दीक्षांत समारोह के दौरान विश्वविद्यालय द्वारा विकसित चना एवं उड़द की 4 नई किस्मों (कोटा देशी चना-2, कोटा देशी चना-3, कोटा काबुली चना-4 एवं कोटा उडद-6) का लोकार्पण किया गया. इसी के साथ 5 इकाइयों का भी लोकार्पण किया गया, जिस में एक कौमन इंक्युबेशन सैंटर, 2 बीज संवर्धन एवं प्रसंस्करण इकाई, वातानुकूलित निराद्रीकृत बीज गोदाम व बीज गोदाम शामिल हैं.

समारोह के दौरान 2 प्रकाशनों सफल उद्यमी एवं विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई तकनीकों का विमोचन किया गया. विश्वविद्यालय द्वारा किए गए नवाचारों एवं उन्नत तकनीकियों और तैयार उत्पादों की प्रदर्शनी भी लगाई गई.

दीक्षांत कार्यक्रम में जिला प्रशासन के अधिकारी, विभिन्न विभागों के अधिकारी, कृषि उद्यमी, नवोन्मेषी किसान, कृषि स्टार्ट अप्स उद्यमी, विभिन्न उपाधि प्राप्त करने वाले अभ्यर्थी एवं उन के अभिभावक और प्रैस मीडिया, अखबारों, चैनल्स के संवाददाता इत्यादि समारोह में उपस्थित रहे.

सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार के लिए करें आवेदन

अनूपपुर : सबमिशन औन एग्रीकल्चर एक्सटेंशन आत्मा योजना के अंतर्गत जिले के उन्नत कृषि तकनीकों का उपयोग करते हुए सर्वोच्च उत्पादकता हासिल करने वाले कृषक और कृषक समूह को जिला स्तर व ब्लौक स्तर पर सर्वोत्तम कृषक/कृषक समूह पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.

उक्त आशय की जानकारी देते हुए जिले के परियोजना संचालक आत्मा परियोजना एनडी गुप्ता द्वारा बताया गया है कि जिले में वर्ष 2023-24 में वैज्ञानिक पद्धतियों का उपयोग करते हुए प्राकृतिक कृषि, उद्यानिकी, पशुपालन, मत्स्यपालन, रेशमपालन एवं कृषि अभियांत्रकीय में उत्कृष्ट कार्य के लिए कृषकों/कृषक समूहों को पुरस्कृत किया जाएगा.

इस के लिए जिले के समस्त प्रगतिशील किसान अपने क्षेत्र के अंतर्गत कार्यरत कृषि विस्तार अधिकारी या वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी कार्यालय से संपर्क कर आवेदन फार्म ले सकते हैं और उसे जरूरी दस्तावेजों के साथ भर कर 30 अगस्त, 2024 तक जमा कर सकते हैं.

नियत तिथि के बाद प्राप्त आवेदनों पर विचार नहीं किया जाएगा. किसान अधिक जानकारी के लिए विकासखंड स्तर पर वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी कार्यालय अनूपपुर, कोतमा, जैतहरी एवं पुष्पराजगढ़ एवं जिला स्तर पर कार्यालय परियोजना संचालक आत्मा जिला अनूपपुर में कार्यालयीन समय में संपर्क कर सकते हैं.

किसानों की बढ़ेगी आमदनी, करें ये काम

सागर : जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चलाएं एवं किसानों को उन्नत एवं लाभप्रद खेती के लिए प्रोत्साहित करें. फसलों में विविधता लाएं और ऐसी फसलों को प्राथमिकता दें, जो कम समय में तैयार हो जाती हैं. साथ ही, किसानों को प्रमाणित बीज, संतुलित उर्वरक एवं आधुनिक कृषि यंत्रों के उपयोग के लिए प्रेरित करें, जिस से अधिक उत्पादन हो और किसानों की आमदनी बढ़े.

उक्त निर्देश कृषि उत्पादन आयुक्त एसएन मिश्रा ने संभागीय समीक्षा बैठक में कृषि एवं उस से जुड़े विभागों की गतिविधियों की समीक्षा के दौरान दिए. बैठक के पहले चरण में सागर संभाग में गत रबी मौसम में हुए उत्पादन और खरीफ मौसम की तैयारियों की समीक्षा की गई. दूसरे चरण में पशुपालन, मत्स्यपालन एवं दुग्ध उत्पादन की समीक्षा हुई.

कलक्टर कार्यालय के सभागार में आयोजित

कृषि उत्पादन आयुक्त ने संभाग के सभी जिलों में खाद व बीज भंडारण की समीक्षा की. साथ ही, सभी जिला कलक्टर को निर्देश दिए कि खरीफ के मौसम में किसानों को खादबीज मिलने में दिक्कत न हो. वितरण केंद्रों का लगातार निरीक्षण कर यह सुनिश्चित किया जाए कि किसानों को कोई कठिनाई न हो.

कृषि उत्पादन आयुक्त एसएन मिश्रा ने कहा कि सागर संभाग में उद्यानिकी अर्थात फल, फूल व सब्जियों के उत्पादन को बढ़ावा देने की बड़ी गुंजाइश है. इसलिए संभाग के हर जिले में स्थानीय परिस्थितियों व जलवायु के अनुसार क्लस्टर बना कर उद्यानिकी फसलों से किसानों को जोड़ें. साथ ही, हर जिले में किसानों के एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) बनाने पर भी विशेष बल दिया.

कृषि उत्पादन आयुक्त एसएन मिश्रा ने कम पानी में अधिक सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने वाली पद्धतियों को बढ़ावा देने पर विशेष बल दिया. उन्होंने कहा कि सागर संभाग में स्प्रिंकलर व ड्रिप सिंचाई पद्धति अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित करें. साथ ही, खेत तालाब बनाने के लिए भी किसानों को बढ़ावा दें. उन्होंने कहा कि इन सिंचाई पद्धतियों के लिए सरकार द्वारा बड़ा अनुदान दिया जाता है.

मौसम एप का व्यापक प्रचारप्रसार करने पर बैठक में विशेष रूप से निर्देश दिए गए. इस एप पर एक हफ्ते की मौसम की जानकारी उपलब्ध रहती है. यह एप गूगल प्ले स्टोर से आसानी से डाउनलोड किया जा सकता है.

कृषि उत्पादन आयुक्त एवं अतिरिक्त मुख्य सचिव, कृषि ने कहा कि इस एप के माध्यम से किसानों को मौसम की जानकारी समय से मिल सकेगी और वे मौसम को ध्यान में रख कर अपनी खेतीबारी कर पाएंगे. साथ ही, अपनी फसल को भी सुरक्षित कर सकेंगे.

कृषि उपज मंडियों को बनाएं हाईटैक और कैशलेस

कृषि उत्पादन आयुक्त एसएन मिश्रा ने कृषि उपज मंडियों को हाईटैक, कैशलेस व सर्वसुविधायुक्त बनाने पर विशेष बल दिया. उन्होंने कहा कि इस के लिए शासन से आर्थिक मदद दिलाई जाएगी.

उन्होंने समझाया कि हाईटैक से आशय है कि मंडी में किसान की उपज की तुरंत खरीदी हो जाए, उन के बैठने के लिए बेहतर व्यवस्था हो, कैशलेस भुगतान की सुविधा हो और कृषि उपज की आटो पैकेजिंग व्यवस्था हो.

एसएन मिश्रा ने सभी जिला कलक्टर को सहकारी बैंकों की वसूली करा कर बैंकों को मजबूत करने के निर्देश भी बैठक में दिए. उन्होंने किसान क्रेडिटधारी किसानों के साथसाथ गैरऋणी किसानों की फसल का बीमा कराने के लिए भी कहा.

अतिरिक्त मुख्य सचिव, कृषि, अशोक वर्णवाल ने कहा कि कृषि यंत्रों का उपयोग किसानों के लिए हर तरह से लाभप्रद है. उन्होंने कृषि यंत्र एवं उपकरणों का प्रिजेंटेशन दिखाया और निर्देश दिए कि अनुदान के आधार पर हर जिले में किसानों को आधुनिक कृषि यंत्र उपलब्ध कराएं.

उन्होंने सागर संभाग में अरहर की वैरायटी अपनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के निर्देश दिए. अरहर की पूसा वैरायटी 6 महीने में तैयार हो जाती है और इस फसल के बाद किसान दूसरी फसल भी ले सकते हैं.

अशोक वर्णवाल ने प्रमाणित बीज व उर्वरकों के संतुलित उपयोग व मिट्टी परीक्षण के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने पर भी विशेष बल दिया. उन्होंने कहा कि मिट्टी परीक्षण के लिए स्थानीय कृषि स्नातक युवाओं के जरीए चलित लैब स्थापित कराई जा सकती हैं. इस से किसानों की ओर से मिट्टी परीक्षण की मांग बढ़ेगी और किसानों व कृषि स्नातक दोनों को फायदा होगा.

कृषि उत्पादन आयुक्त एसएन मिश्रा ने बैठक के द्वितीय चरण में पशुपालन, मत्स्यपालन एवं डेयरी उत्पादन सहित कृषि से जुड़ी गतिविधियों की समीक्षा की. उन्होंने कहा कि कृषि आधारित अर्थव्यवस्था बगैर पशुपालन के मजबूत नहीं रह सकती. इसलिए किसानों को उन्नत नस्ल के पशुपालन के लिए प्रोत्साहित करें.

एसएन मिश्रा ने पशु नस्ल सुधार पर भी विशेष बल दिया. साथ ही, बरसात से पहले सभी जिलों में मौसमी बीमारियों से बचाव के लिए अभियान बतौर टीकाकरण कराने के निर्देश दिए.

उन्होंने कहा कि हर जिले में गौशालाओं को प्रमुखता दें. अधूरी गौशालाएं जल्द से जल्द पूरी कराई जाएं और किसानों के दुग्ध व्यवसाय को संस्थागत रूप देने पर जोर देते हुए कहा कि उन्हें दुग्ध समितियों से जोड़ें.

बैठक में मत्स्यपालन को बढ़ावा देने और दुग्ध संघ को मजबूत करने के संबंध में उन्होंने जरूरी दिशानिर्देश दिए.

कृषि उत्पादन आयुक्त एसएन मिश्रा ने सभी कलक्टरों को निर्देश दिए कि बैंक अधिक से अधिक शासन की योजनाओं का लाभ हितग्राहियों को दे कर उन को लाभान्वित करें. उन्होंने समस्त किसानों से अपील की कि अधिक मात्रा में उर्वरक का छिड़काव न करें. उन्होंने कहा कि सभी जिलों में पर्याप्त मात्रा में उर्वरक एवं बीज का भंडारण सुनिश्चित किया जाए.

द्वितीय चरण की बैठक में प्रमुख सचिव मत्स्यपालन डा. नवनीत कोठारी सहित पशुपालन, डेयरी व मत्स्यपालन विभाग के राज्य स्तरीय अधिकारी मौजूद रहे.

संभाग आयुक्त डा. वीरेंद्र सिंह रावत ने कहा कि किसानों को जागरूक करने में सोशल मीडिया का उपयोग करें.

उन्होंने प्रगतिशील किसानों द्वारा की जा रही उन्नत खेती की वीडियो क्लीपिंग बना कर सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से अन्य किसानों को जागरूक करने का सुझाव दिया और किसानों को स्वसहायता समूहों में संगठित करें, जिस से कि वे अधिक लाभ कमा सकें. उन्होंने समय के अनुसार खेती में बदलाव लाने पर भी बल दिया.

सभी जिलों के कलक्टर ने बताई अपनेअपने जिले की कार्ययोजना

खेती को लाभप्रद बनाने के लिए संभाग के सभी जिलों में बनाई गई कार्ययोजना के बारे में सभी कलक्टरों ने अपनेअपने सुझाव दिए. जिले में नैनो यूरिया अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित किया जा रहा है. जिले में ज्वार, मक्का व उड़द और उद्यानिकी फसलों का रकबा बढ़ाया जाएगा.

धान फसल में रहस्यमय बीमारी, बौने रह गए पौधे

हिसार : वर्तमान में चावल की नर्सरी में स्पाइनारियोविरिडे समूह के वायरस हरियाणा में कई स्थानों पर देखे गए हैं. इस वायरस से प्रभावित पौधे बौने एवं ज्यादा हरे दिखाई देते हैं.

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि अभी संक्रमण छोटे स्तर पर है. इसलिए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे समय पर संक्रमण की रोकथाम के लिए कारगर कदम उठाएं, ताकि फसल को नुकसान से बचाया जा सके.

उन्होंने बताया कि प्रदेश के विभिन्न स्थानों से एकत्र किए गए नमूनों के प्रयोगशाला विश्लेषण से उक्त वायरस की उपस्थिति का पता चला है. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की एक टीम धान की फसल की नियमित निगरानी कर रही है और संदिग्ध नमूनों का प्रयोगशाला में परीक्षण किया जा रहा है.

किसानों के लिए सलाह

वैज्ञानिक डा. विनोद कुमार मलिक ने बताया कि अगेती नर्सरी बोआई पर सावधानीपूर्वक नजर रखनी चाहिए और प्रभावित चावल के पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए या खेतों से दूर मिट्टी में दबा देना चाहिए. असमान विकास पैटर्न दिखाने वाली नर्सरी का पौध रोपण के लिए उपयोग करने से बचें. हापर्स से नर्सरी की सुरक्षा की सब से अधिक जरूरत है. इस के लिए कीटनाशकों डिनोटफ्यूरान 20 एसजी 80 ग्राम या पाइमेट्रोजिन 50 डब्ल्यूजी 120 ग्राम प्रति एकड़. (10 ग्राम या 15 ग्राम प्रति कनाल नर्सरी क्षेत्र) का प्रयोग करें. सीधी बोआई वाले चावल की खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

उल्लेखनीय है कि हकृवि के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2022 के दौरान धान की फसल में पहली बार एक रहस्यमय बीमारी की सूचना दी थी, जिस के कारण हरियाणा राज्य में धान उगाने वाले क्षेत्रों में पौधे बौने रह गए थे जिस से सभी प्रकार की चावल किस्में प्रभावित हुई थीं.

प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा कर के डा. शिखा यशवीर, डा. दलीप, डा. महावीर सिंह, डा. सुमित सैनी, डा. विशाल गांधी और डा. मंजुनाथ की टीम ने बौनेपन की समस्या से ग्रसित पौधों के सैंपल एकत्रित किए.

डीएपी से बेहतर है एनपीके खाद (Fertilizer)

श्योपुर : खरीफ सीजन-2024 के लिए किसानों द्वारा उर्वरकों का अग्रिम उठाव किया जा रहा है. कृषि विभाग द्वारा किसानों से अपील की गई है कि डीएपी के स्थान पर एनपीके खाद बेहतर विकल्प है. एनपीके 12:32:16 और 16:16:16 उर्वरकों से फसलों में मुख्य पोषक तत्व नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश तत्व की पूर्ति होती है. इसी प्रकार 20:20:0:13 से नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं सल्फर की पूर्ति होती है.

कृषि विभाग द्वारा बताया गया है कि डीएपी से केवल 2 तत्व नत्रजन एवं फास्फोरस ही मिलते हैं, जबकि पोटाश तत्व की पूर्ति नहीं होती है. इस के अलावा सिंगल सुपर फास्फेट, जिस में 16 फीसदी फास्फोरस, 12 फीसदी सल्फर एवं 21 फीसदी कैल्शियम पाया जाता है. इस के उपयोग से फसलों के उत्पादन में वृद्धि होती है. वहीं तिलहन फसलों में सल्फर से तेल की मात्रा बढ़ती है.

जिले में खरीफ सीजन 2024 में मुख्य फसल धान, बाजरा, तिल, उड़द एवं सोयाबीन है. इस के लिए एनपीके उर्वरक का उपयोग किसान करें. ध्यान रखें कि कम से कम 4 इंच वर्षा होने के बाद ही खरीफ फसलों की बोआई करें. बोआई करने से पहले बीजों को फफूंदीनाशक दवा कार्बनडाइजिम 3 ग्राम दवा एक किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें, जिस से बीजजनित बीमारियों से बचाव हो सके.

कृषि उद्यमी की अनेक तकनीकों का मिला प्रशिक्षण

कटनी : मध्य प्रदेश शासन ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा आयोजित विकासखंड रीठी के दूरस्थ ग्राम पंचायत नयाखेड़ा में प्रोजैक्ट उन्नति के अंतर्गत मनरेगा में 100 दिवस कार्य कर चुके 35 महिला एवं पुरुषों को कृषि उद्यमी का 13 दिवसीय प्रशिक्षण भारतीय स्टेट बैंक ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान कटनी के संचालक पवन कुमार गुप्ता के मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण समन्वयक सुनील रजक और अनुपम पांडे के सहयोग से प्रशिक्षक रामसुख दुबे द्वारा दिया गया.

प्रशिक्षण में अनाज दलहनी व तिलहनी फसलों की खेती और धान की  विधि व अरहर की धरवाड़ विधि से कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त करने का तकनीकी प्रशिक्षण दिया गया. शुष्क खेती और सिंचाई के अंतर्गत स्प्रिंकलर से 80-90 फीसदी पानी की बचत के लिए टपक सिंचाई के उपयोग को सही बतलाया गया.

रोग नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा विरडी और कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए जैव उर्वरक दलहनी फसल के लिए राइजोबियम एक दलीय फसल के लिए एजेक्टोबेक्टर और सभी फसलों के लिए फास्फेटिका से बीजोपचार, भूमि उपचार और जड़कंद उपचार का तकनीकी प्रशिक्षण दिया गया.

वहीं सब्जियों की पौध तैयार करने के लिए नर्सरी प्रबंधन एवं औषधीय पौधों के विषय में बताया गया. नियंत्रित तापमान पर सब्जियों एवं फूलों की खेती के लिए पौलीहाउस और कृषि के लिए उन्नत कृषि यंत्रों के अंतर्गत जुताई, बोआई, निंदाई, गुड़ाई एवं कटाईगहाई के यंत्रों के उपयोग और कस्टम हायरिंग केंद्र लगाने के लिए शासन द्वारा दी जा रही सुविधाओं की जानकारी दी गई. पशुपालन से लाभ, गाय, भैंस एवं बकरी की नस्ल, दुग्ध उत्पादन, संतुलित पशु आहार, विभिन्न रोग एवं उन के नियंत्रण व टीकाकरण चारा, बरसीम, ज्वार, बाजरा, मक्का एवं नेपियर घास से अधिक दूध उत्पादन प्राप्त करने के विषय में बताया गया.

प्रशिक्षण में सरपंच खिलावन सिंह, सचिव रामस्वरूप पटेल एवं रोजगार सहायक प्रकाश कुमार और तमाम प्रशिक्षणार्थी उपस्थित रहे.

कृषि यंत्र अनुदान (Agricultural Equipment Grant) के लिए 26 जून तक करें आवेदन

मंडला : वर्ष 2024-25 में कृषि यंत्रों के लिए पोर्टल के माध्यम से औनलाइन आवेदन 26 जून, 2024 तक किए जा सकते हैं. कृषक स्वयं के बैंक खाते से धरोहर राशि का डिमांड ड्राफ्ट, सहायक कृषि यंत्री के नाम से बनवा कर औनलाइन आवेदन कर सकते हैं.

सहायक कृषि यंत्री से प्राप्त जानकारी के अनुसार रोटावेटर के लिए 5,000 रुपए, सीड ड्रिल के लिए 2,000 रुपए, सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, रेज्ड बेड प्लांटर, रिजफेरो प्लांटर एवं मल्टीक्राप प्लांटर के लिए 2,000 रुपए धरोहर राशि का डिमांड ड्राफ्ट स्वीकार किए जाएंगे.

पंजीयन में डिमांड ड्राफ्ट निश्चित राशि से कम का होने पर आवेदन अमान्य किया जाएगा और बैंक ड्राफ्ट केवल आवेदनकर्ता के नाम से तैयार करा कर प्रस्तुत करना अनिवार्य है.

ई-कृषि यंत्र अनुदान पोर्टल के माध्यम से नवीन तकनीक के चिन्हित उन्नत कृषि यंत्रों पर मांग के अनुसार श्रेणी अंतर्गत अनुदान उपलब्ध कराने की सुविधा दी गई है.

उन्नत कृषि यंत्र चिन्हित किए गए हैं. वर्तमान में हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, न्यूमेटिक प्लांटर, स्वचालित टूलवार, राइड औन टाइप धरोहर राशि 5,000 रुपए का डीडी बनवा कर इस श्रेणी के तहत औनलाइन आवेदन कर सकते हैं.

चना और तुअर के लिए स्टाक सीमा (Stock Limit) लागू, रुकेगी कालाबाजारी

नई दिल्ली : जमाखोरी और बेईमान सट्टेबाजी को रोकने और उपभोक्‍ताओं को किफायती दर पर तूर और चना की उपलब्‍धता को बेहतर बनाने के लिए भारत सरकार ने एक आदेश जारी किया है, जिस के तहत थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, बड़ी श्रंखला के खुदरा विक्रेताओं, मिल मालिकों और आयातकों के लिए दालों पर स्टाक सीमा लागू की गई है. विनिर्दिष्ट खाद्य पदार्थों पर लाइसैंसिंग आवश्यकताओं, स्टाक सीमाओं और आवागमन प्रतिबंधों को हटाना (संशोधन) आदेश, 2024 को 21 जून, 2024 से तत्काल प्रभाव से जारी किया गया है.

इस आदेश के तहत सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए 30 सितंबर, 2024 तक काबुली चना सहित तूर और चना के लिए स्टाक सीमा निर्धारित की गई है. प्रत्येक दाल पर व्यक्तिगत रूप से लागू स्टाक सीमा थोक विक्रेताओं के लिए 200 मीट्रिक टन, खुदरा विक्रेताओं के लिए 5 मीट्रिक टन, प्रत्येक खुदरा दुकान पर 5 मीट्रिक टन और बड़ी श्रंखला के खुदरा विक्रेताओं के लिए डिपो पर 200 मीट्रिक टन, मिल मालिकों के लिए उत्पादन के अंतिम 3 महीने या वार्षिक स्थापित क्षमता का 25 फीसदी, जो भी अधिक हो, होगी.

वहीं आयातकों के संबंध में आयातकों को सीमा शुल्क निकासी की तारीख से 45 दिनों से अधिक समय तक आयातित स्टाक को अपने पास नहीं रखना है. संबंधित कानूनी संस्थाओं को उपभोक्ता मामले विभाग के पोर्टल (https://fcainfoweb.nic.in/psp) पर स्टाक की स्थिति घोषित करनी है. अगर उन के पास मौजूद स्टाक निर्धारित सीमा से अधिक है, तो उन्हें इसे 12 जुलाई, 2024 तक निर्धारित स्टाक सीमा तक लाना होगा.

तूर और चना पर स्टाक सीमा लगाना सरकार द्वारा आवश्यक वस्तुओं की कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए उठाए गए कदमों का हिस्सा है. उपभोक्ता मामले विभाग स्टाक डिस्क्लोजर पोर्टल के माध्यम से दालों की स्टाक स्थिति पर नजर रख रहा था.

विभाग ने अप्रैल, 2024 के पहले सप्ताह में राज्य सरकारों को सभी स्टाक होल्डिंग संस्थाओं द्वारा अनिवार्य स्टाक प्रकटन लागू करने के लिए संदेश भेजा था, जिस के बाद अप्रैल के अंतिम सप्ताह से 10 मई, 2024 तक देशभर में प्रमुख दलहन उत्पादक राज्यों और व्यापारिक केंद्रों का दौरा किया गया.

व्यापारियों, स्टाकिस्टों, डीलरों, आयातकों, मिल मालिकों और बड़ी श्रंखला के खुदरा विक्रेताओं के साथ अलगअलग बैठकें भी आयोजित की गईं, ताकि उन्हें स्टाक के वास्तविक प्रकटन और उपभोक्ताओं के लिए किफायती दर पर दालों की उपलब्‍धता बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित और संवेदनशील बनाया जा सके.

उल्लेखनीय है कि सरकार ने घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिए 4 मई, 2024 से देशी चने पर 66 फीसदी आयात शुल्क को कम किया था.

शुल्क को कम करने से आयात में सुविधा हुई है और प्रमुख उत्पादक देशों में चने की बोआई में वृद्धि हुई है.

रिपोर्ट के अनुसार, आस्ट्रेलिया में साल 2023-24 में चना उत्पादन 5 लाख टन से बढ़ कर साल 2024-25 में 11 लाख टन होने का अनुमान है, जिस के अक्‍तूबर, 2024 से उपलब्ध होने की उम्मीद है.

किसानों को अच्छी कीमत मिलने और भारतीय मौसम विभाग द्वारा सामान्य से अधिक मानसूनी बारिश की भविष्यवाणी के कारण इस मौसम में तूर और उड़द जैसी खरीफ दालों की बोआई में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है.

इस के अतिरिक्त पूर्वी अफ्रीकी देशों से अगस्त, 2024 से चालू वर्ष की तूर फसल का आयात शुरू होने की उम्मीद है.

इन कारकों से आगामी महीने में तूर और उड़द जैसी खरीफ दालों की कीमतों में कमी लाने में मदद मिलने की उम्मीद है. आस्ट्रेलिया में चने की नई फसल की आवक और अक्‍तूबर, 2024 से आयात के लिए इस की उपलब्धता से उपभोक्ताओं को सस्ती कीमत पर चने की उपलब्धता बनाए रखने में मदद मिलेगी.