छोटे और सीमांत किसानों के लिए नया कौम्पैक्ट यूटिलिटी ट्रैक्टर

नई दिल्ली: एक नया विकसित कौम्पैक्ट, किफायती और आसानी से चलने वाला ट्रैक्टर छोटे और सीमांत किसानों को लागत कम रखते हुए कृषि उत्पादकता बढ़ाने में मदद कर सकता है. किसानों को आपूर्ति के लिए ट्रैक्टरों के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए एक एमएसएमई ने विनिर्माण संयंत्र स्थापित करने की योजना बनाई है.

भारत में 80 फीसदी से ज्यादा सीमांत और छोटे किसान हैं. उन में से एक बड़ी आबादी अभी भी बैलों से खेती करने पर निर्भर है, जिस में परिचालन लागत, रखरखाव और खराब रिटर्न एक चुनौती है. हालांकि पावर टिलर बैलों से चलने वाले हल की जगह ले रहे हैं, लेकिन उन्हें चलाना बोझिल है. दूसरी ओर ट्रैक्टर छोटे किसानों के लिए काफी महंगे हैं.

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए  सीएसआईआर-केंद्रीय यांत्रिक इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीएमईआरआई) ने डीएसटी के एसईईडी प्रभाग के सहयोग से सीमांत और छोटे किसानों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए कम हौर्सपावर रेंज का एक कौम्पैक्ट, किफायती और आसानी से चलने वाला ट्रैक्टर विकसित किया है.

उन्होंने कई मौजूदा एसएचजी के बीच इस तकनीक को बढ़ावा दिया है और इस तकनीक के लिए विशेष रूप से नए एसएचजी बनाने के प्रयास किए गए हैं. सीएसआईआर-सीएमईआरआई बड़े पैमाने पर निर्माण के लिए स्थानीय कंपनियों को इस का लाइसैंस देने पर भी विचार कर रहा है, ताकि इस का लाभ स्थानीय किसानों तक पहुंच सके.

ट्रैक्टर को 9 एचपी डीजल इंजन के साथ विकसित किया गया है, जिस में 8 फौरवर्ड और 2 रिवर्स स्पीड, 540 आरपीएम पर 6 स्प्लिन के साथ पीटीओ है. ट्रैक्टर का कुल वजन लगभग 450 किलोग्राम है, जिस में आगे और पीछे के पहिए का आकार क्रमशः 4.5-10 और 6-16 है. व्हीलबेस, ग्राउंड क्लीयरेंस और टर्निंग रेडियस क्रमशः 1200 मिमी., 255 मिमी. और 1.75 मीटर है. इस से खेती में तेजी आएगी, बैलगाड़ी से खेती करने में लगने वाले कई दिनों की तुलना में खेती कुछ ही घंटों में हो जाएगी और किसानों की पूंजी और रखरखाव लागत भी कम हो जाएगी. इसलिए, छोटे और सीमांत किसानों के लिए बैल से चलने वाले हल की जगह किफायती कौम्पैक्ट ट्रैक्टर ले सकता है.

इस तकनीक का प्रदर्शन आसपास के गांवों और विभिन्न निर्माताओं के सामने किया गया. रांची स्थित एक एमएसएमई ने ट्रैक्टर के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए एक संयंत्र स्थापित कर के इस के निर्माण में रुचि दिखाई है. वे विभिन्न राज्य सरकार की निविदाओं के माध्यम से किसानों को सब्सिडी दरों पर विकसित ट्रैक्टर की आपूर्ति करने की योजना बना रहे हैं.

समन्वित कृषि प्रणाली से निरंतर मुनाफा

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय द्वारा लघु एवं सीमांत कृषक परिवारों में समन्वित कृषि प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए एकदिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन प्रसार शिक्षा निदेशालय द्वारा लक्ष्मीपुरा चित्तौड़गढ़ में किया आयोजित किया गया. प्रशिक्षण के आरंभ में निदेशक प्रसार शिक्षा एवं प्रोजैक्ट इंचार्ज डा. आरए कौशिक ने कृषक महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा कि समन्वित कृषि प्रणाली एक ऐसी प्रणाली है, जिस में कृषि के विभिन्न उद्यमों जैसे फसल उत्पादन, पशुपालन, फल एवं सब्जी उत्पादन, मछली उत्पादन, मुरगीपालन, दुग्ध एवं खाद्य प्रसंस्करण, वानिकी इत्यादि का इस प्रकार समायोजन किया जाता है कि ये उद्यम एकदूसरे के पूरक बन कर किसानों को निरंतर आमदनी प्रदान करते हैं.

समन्वित कृषि प्रणाली में संसाधनों की क्षमता का न केवल सदुपयोग होता है, अपितु उत्पादकता एवं लाभप्रदता में भी अतिशीघ्र वृद्धि होती है. समन्वित कृषि प्रणाली को अपनाने से कृषि लागत में कमी आती हैं एवं रोजगार और आमदनी में वृद्धि होती है.

प्रशिक्षण में डा. लतिका व्यास ने कौशल विकास पर चर्चा की और बताया कि भारत में युवाओं की आबादी दुनियाभर में सब से ज्यादा है और इन में से आधे युवा 25 वर्ष की आयु से कम के हैं. भारत में जनसांख्यिकीय लाभ के वर्णन में देखा जाए तो प्रत्येक वर्ष 8 लाख लोग नए रोजगार की तलाश करते हैं, जिस में सिर्फ 5.5 लाख रोजगारों का सृजन हो पाता है या उस से भी कम, इसलिए युवाओं में कौशल विकास करना बहुत जरूरी है, ताकि उन्हें स्वरोजगार से जोड़ा जा सके और समन्वित कृषि प्रणाली से परिवार के सभी लोगों को वर्षपर्यंत रोजगार मिलता रहता है व इस प्रणाली द्वारा कृषि अवशेषों का उचित प्रंबधन आसान है.

प्रशिक्षण दौरान डा. कपिल देव आमेट, सहआचार्य, उद्यानिकी विभाग ने कहा कि कम जमीन में आमदनी को बढ़ाने के लिए फसलों के साथसाथ सब्जियों की खेती करना चाहिए. साथ ही यह भी बताया कि फसलों में नर्सरी का विशेष महत्व होता हैं, क्योंकि सब्जी की फसल से होने वाला उत्पादन नर्सरी में पौधों की गुणवता पर निर्भर करता है. अधिकांश सब्जियों की खेती नर्सरी तैयार कर के की जाती है जैसे टमाटर, बैगन, मिर्ची, शिमला मिर्च, फूलगोभी, पत्तागोभी, गांठगोभी, ब्रोकली, बेसील, सेलेरी, पार्सले, लेट्यूस, पाकचोई, प्याज इत्यादि. साथ ही, प्रौ ट्रे में कद्दूवर्गीय सब्जियां जैसे खीरा, लौकी, तुरई, करेला, कद्दू, तरबूज, खरबूजा की भी नर्सरी तैयारी की तकनीकी जानकारी का विस्तृत वर्णन किया.

डा. आरएल सोलंकी, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केंद्र, चित्तौड़गढ़ ने किसान महिलाओं को वर्मी कंपोस्ट कैसे बनाया जाता है व इस के फायदे क्या हैं और वर्मी कंपोस्ट को बाजार में बेच कर भी अतिरिक्त आमदनी अर्जित की जा सकती है के बारे में बताया.

प्रोग्राम अफसर, आदर्श शर्मा ने बताया कि यह प्रशिक्षण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित परियोजना के अंतर्गत आयोजित किया गया. इस प्रशिक्षण में कुल 35 प्रशिक्षणर्थियो ने भाग लिया.

नीरा पाउडर को मिला जरमन का पेटेंट (Patent)

सबौर : नीरा ताड़ के पेड़ का ताजा रस है, जिस का इस्तेमाल बिहार में बड़े पैमाने पर शराब बनाने के लिए किया जाता है. हालांकि, बिहार में शराब पर प्रतिबंध है, जो किसानों के लिए, खासकर टोडी निकालने वालों के लिए एक बड़ी समस्या पैदा करता है.

टोडी निकालने वाले बिहार का एक समुदाय है, जिस की सामाजिकआर्थिक स्थिति टोडी संग्रह और विपणन पर निर्भर करती है. टोडी एक नशीला पेय है, जिसे बिहार में बेचा नहीं जा सकता, क्योंकि यह शुष्क राज्य होने के कारण अवैध है.

इस संबंध में बिहार सरकार ने हाल ही में नीरा आधारित उद्योगों को शुरू किया है, ताकि इस के स्वस्थ उपभोग को बढ़ावा दिया जा सके और टोडी निकालने वालों के समुदाय को रोजगार दिया जा सके. टोडी के अलावा, नीरा को स्क्वैश, आरटीएस, गुड़ आदि जैसे विभिन्न उत्पादों में प्रोसैस किया जा सकता है. इस के अतिरिक्त, ताजा नीरा विटामिन, खनिज और अन्य स्वास्थ्यवर्धक यौगिकों का समृद्ध स्रोत है. इस का ताजा सेवन कई बीमारियों को दूर करने में मदद करता है. लेकिन ताजा नीरा का संग्रह मुश्किल है, क्योंकि यह संग्रह के तुरंत बाद किण्वन के लिए प्रवृत्त होता है और तापमान और समय अवधि बढ़ने के साथ यह बढ़ता जाता है. किण्वन को रोकने के लिए कई परिरक्षण विधियों का अभ्यास किया गया है, लेकिन अब तक कोई सही समाधान नहीं मिला है. इसलिए, किण्वन प्रक्रिया को रोके हुए ताजा नीरा को संरक्षित करने के लिए एक परिरक्षण पद्धति की आवश्यकता है.

इस पहलू में, डा. मोहम्मद वसीम सिद्दीकी, वैज्ञानिक, खाद्य विज्ञान और कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी विभाग, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर ने नीरा को पाउडर के रूप में संरक्षित करने की एक प्रक्रिया विकसित की है. ताड़ के नीरा से पाउडर बनाने की प्रक्रिया को जरमनी से पेटेंट प्राप्त हुआ है. यह तकनीक नीरा उत्पादकों के लिए नए उद्यमशीलता के रास्ते खोलेगी और लंबे समय तक नीरा को सुरक्षित रखने में सहायक होगी. यह पेटेंटेड तकनीक पूरे साल नीरा के स्वाद और आनंद को लेने में मदद करेगी.

ताजा नीरा का परिरक्षण अत्यंत कठिन होता है, इसलिए यह तकनीक स्प्रे ड्रायर का उपयोग कर के ताजा नीरा को पाउडर में बदल देती है. इस विधि में महीन बूंदों को सूखे पाउडर में बदलना शामिल है. चरणों में वाहक सामग्री की विभिन्न सांद्रता के साथ नीरा का समरूपीकरण शामिल है. बाद में एक नोजल के माध्यम से होमोजेनाइज्ड नीरा घोल का परमाणुकरण होता है, इस के बाद गरम हवा के प्रवाह के संपर्क में तेजी से विलायक वाष्पीकरण होता है. सूखे कणों को फिर एक संग्रह कंटेनर के अंदर एकत्र किया जाता है.

पाउडर को एक साल तक एयरटाइट कंटेनर में स्टोर किया जा सकता है. पानी में घोलने के बाद इस का इस्तेमाल किया जा सकता है. घोलने के बाद इस के संवेदी गुण लगभग ताजा नीरा के समान ही होते हैं. इस के अलावा सुविधा के लिए इसे किसानों की आवश्यकतानुसार संशोधित किया जा सकता है.

एचएयू में 30 जून को होगी प्रवेश परीक्षा (Entrance Exam)

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के बीएससी औनर्स एग्रीकल्चर 4 वर्षीय कोर्स, बीएससी औनर्स एग्रीबिजनेस मैनेजमेंट, बीटैक बायोटैक्नोलौजी, मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय में बायोकैमिस्ट्री, कैमिस्ट्री, इनवायरमेंटल साइंस, फूड साइंस एंड टैक्नोलौजी, मैथेमेटिक्स, माइक्रोबायोलौजी, फिजिक्स, प्लांट फिजियोलौजी, सोशियोलौजी, स्टेटिसटिक्स व जूलौजी कोर्स, कालेज औफ बायो टैक्नोलौजी में एग्रीकल्चरल बायोटैक्नोलौजी, बायोइंफोरमेटिक्स व मोलेक्यूलर बायोलौजी एंड बायो टैक्नोलौजी में एमएससी कोर्स के लिए 30 जून, 2024 को आयोजित होने वाली प्रवेश परीक्षा की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि उपरोक्त पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए 8491 उम्मीदवारों ने आवेदन किए हैं. उन्होंने बताया कि प्रवेश परीक्षा के लिए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय सहित हिसार शहर में 18 परीक्षा केंद्र बनाए गए हैं, ताकि परीक्षार्थियों को किसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े.

उन्होंने आगे बताया कि परीक्षा संबंधी सभी तैयारियों को अंतिम रूप देते हुए परीक्षा केंद्रों पर परीक्षार्थियों के लिए बैठने से संबंधित अन्य समुचित व्यवस्था भी कर ली गई है. सभी परीक्षार्थियों को परीक्षा भवन में प्रवेशपत्र देख कर ही प्रवेश करने की अनुमति होगी.

कुलसचिव डा. बलवान सिंह मंडल के अनुसार, प्रवेश परीक्षा में नकल करने और दूसरे के स्थान पर परीक्षा देने वालों पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी. इस के लिए विशेष निरीक्षण दलों का गठन किया गया है. प्रत्येक उम्मीदवार की फोटोग्राफी भी की जाएगी.

उन्होंने यह भी बताया कि उम्मीदवारों को परीक्षा केंद्र में मोबाइल, कैलकुलेटर व इलैक्ट्रोनिक डायरी जैसे इलैक्ट्रोनिक उपकरण ले कर जाने की अनुमति नहीं होगी. इन उपकरणों को उन्हें परीक्षा केंद्र के बाहर छोडऩा होगा, जिन की सुरक्षा की जिम्मेदारी उम्मीदवारों की ही होगी.
विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक डा. पवन कुमार ने बताया कि उम्मीदवारों को अपना एडमिट कार्ड डाउनलोड कर के सत्यापित फोटो के साथ लाना होगा. बिना एडमिट कार्ड के वे परीक्षा केंद्र में प्रवेश नहीं पा सकेंगे.

उन्होंने आगे बताया कि उपरोक्त प्रवेश परीक्षा का समय बीएससी 4 वर्षीय पाठ्यक्रम, बीएससी औनर्स एग्रीबिजनेस मैनेजमेंट व बीटैक बायोटैक्नोलौजी के लिए प्रात: 10.00 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक, जबकि शेष पाठ्यक्रमों के लिए प्रात: 10:00 से दोपहर 12.30 बजे तक होगा. परंतु उम्मीदवारों को परीक्षा आरंभ होने के एक घंटा पहले यानी 9.00 बजे तक अपने परीक्षा केंद्र पर पहुंचना होगा.

उन्होंने कहा कि किसी भी समस्या के लिए उम्मीदवार विश्वविद्यालय के फ्लैचर भवन स्थित सहायक कुलसचिव (एकेडमिक) के कार्यालय में प्रात: 7.00 बजे से दोपहर 2.00 बजे तक आ कर मिल सकते हैं, अन्यथा कार्यालय के फोन नंबर 01662-255254 पर संपर्क कर सकते हैं. उम्मीदवार प्रवेश परीक्षा संबंधी सभी महत्वपूर्ण जानकारियां विश्वविद्यालय की वैबसाइट  hau.ac.in  और  admissions.hau.ac.in पर उपलब्ध प्रोस्टपेक्टस में देख सकते हैं.

पशुपालक महिलाओं की गोष्ठी, मिले टिप्स 

हिसार : लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, लुवास के विस्तार शिक्षा निदेशालय एवं पशुधन उत्पादन प्रबंधन विभाग द्वारा संयुक्त रूप से कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा के दिशानिर्देशन व डा. देवेंद्र बिढान की अध्यक्षता में हिसार के रावलवास खुर्द में पशुपालक गोष्ठी का आयोजन किया गया. पशुधन उत्पादन प्रबंधन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. देवेंद्र बिढान ने बताया कि इस गोष्ठी का आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की भैंस सुधार नेटवर्क परियोजना के लुवास सैंटर के एससीएसपी फंड के तहत किया गया.

कार्यक्रम में विस्तार शिक्षा निदेशक डा. वीरेंद्र पंवार ने मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत की. उन्होंने पशुपालक महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा कि लुवास पशुपालकों के द्वार तक पहुंचने के लिए कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करता रहता है. आज की पशुपालक गोष्ठी भी इसी कड़ी में आयोजित की गई है.

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि पशुपालन में महिला पशुपालकों की भागीदारी व उन की व्यस्तता को देखते हुए विश्वविद्यालय ही पशुपालकों के द्वार पर पशुपालन से संबंधित तौरतरीकों से अवगत करवाने के लिए पहुंच रहा है. पशुपालन में नस्ल के चुनाव के साथसाथ वैज्ञानिक तरीके से पशुओं का पोषण प्रबंधन, प्रजनन प्रबंधन और आवास प्रबंधन भी उतना ही जरूरी है. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा बताए गए वैज्ञानिक तौरतरीकों को अपने व्यवसाय में अपनाएं और दूसरे पशुपालक बहनों को भी इन के बारे में जागरूक करें. हमें पशुओं को संतुलित व पौष्टिक आहार देने की कोशिश करनी चाहिए. पशुओं को संतुलित आहार देने से पशुओं की उचित वृद्धि एवं अधिक उत्पादन होता है.

उन्होंने सभी पशुओं को उचित मात्रा में खनिज मिश्रण खिलाने पर बल दिया और प्रतिभागियों को आश्वासन दिया कि पशुपालन से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए विश्वविद्यालय हमेशा पशुपालकों के साथ खड़ा रहेगा.

इस गोष्ठी में अनुसूचित जाति की 50 महिलाओं ने भाग लिया. गोष्ठी में डा. मान सिंह, डा. मनोज कुमार वर्मा और रावलवास खुर्द के पशु चिकित्सक डा. राकेश ने अपनेअपने  व्याख्यानों से प्रतिभागियों का ज्ञानवर्धन किया.

गोष्ठी का सफल संचालन डा. दिपिन चंद्र यादव एवं डा. सरिता के द्वारा किया गया. इस मौके पर गांव के सरपंच व अन्य व्यक्ति भी मौजूद रहे.

किसानों की बढ़ेगी आमदनी, करें ये काम

सागर : जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चलाएं एवं किसानों को उन्नत एवं लाभप्रद खेती के लिए प्रोत्साहित करें. फसलों में विविधता लाएं और ऐसी फसलों को प्राथमिकता दें, जो कम समय में तैयार हो जाती हैं. साथ ही, किसानों को प्रमाणित बीज, संतुलित उर्वरक एवं आधुनिक कृषि यंत्रों के उपयोग के लिए प्रेरित करें, जिस से अधिक उत्पादन हो और किसानों की आमदनी बढ़े.

उक्त निर्देश कृषि उत्पादन आयुक्त एसएन मिश्रा ने संभागीय समीक्षा बैठक में कृषि एवं उस से जुड़े विभागों की गतिविधियों की समीक्षा के दौरान दिए. बैठक के पहले चरण में सागर संभाग में गत रबी मौसम में हुए उत्पादन और खरीफ मौसम की तैयारियों की समीक्षा की गई. दूसरे चरण में पशुपालन, मत्स्यपालन एवं दुग्ध उत्पादन की समीक्षा हुई.

कलक्टर कार्यालय के सभागार में आयोजित

कृषि उत्पादन आयुक्त ने संभाग के सभी जिलों में खाद व बीज भंडारण की समीक्षा की. साथ ही, सभी जिला कलक्टर को निर्देश दिए कि खरीफ के मौसम में किसानों को खादबीज मिलने में दिक्कत न हो. वितरण केंद्रों का लगातार निरीक्षण कर यह सुनिश्चित किया जाए कि किसानों को कोई कठिनाई न हो.

कृषि उत्पादन आयुक्त एसएन मिश्रा ने कहा कि सागर संभाग में उद्यानिकी अर्थात फल, फूल व सब्जियों के उत्पादन को बढ़ावा देने की बड़ी गुंजाइश है. इसलिए संभाग के हर जिले में स्थानीय परिस्थितियों व जलवायु के अनुसार क्लस्टर बना कर उद्यानिकी फसलों से किसानों को जोड़ें. साथ ही, हर जिले में किसानों के एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) बनाने पर भी विशेष बल दिया.

कृषि उत्पादन आयुक्त एसएन मिश्रा ने कम पानी में अधिक सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने वाली पद्धतियों को बढ़ावा देने पर विशेष बल दिया. उन्होंने कहा कि सागर संभाग में स्प्रिंकलर व ड्रिप सिंचाई पद्धति अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित करें. साथ ही, खेत तालाब बनाने के लिए भी किसानों को बढ़ावा दें. उन्होंने कहा कि इन सिंचाई पद्धतियों के लिए सरकार द्वारा बड़ा अनुदान दिया जाता है.

मौसम एप का व्यापक प्रचारप्रसार करने पर बैठक में विशेष रूप से निर्देश दिए गए. इस एप पर एक हफ्ते की मौसम की जानकारी उपलब्ध रहती है. यह एप गूगल प्ले स्टोर से आसानी से डाउनलोड किया जा सकता है.

कृषि उत्पादन आयुक्त एवं अतिरिक्त मुख्य सचिव, कृषि ने कहा कि इस एप के माध्यम से किसानों को मौसम की जानकारी समय से मिल सकेगी और वे मौसम को ध्यान में रख कर अपनी खेतीबारी कर पाएंगे. साथ ही, अपनी फसल को भी सुरक्षित कर सकेंगे.

कृषि उपज मंडियों को बनाएं हाईटैक और कैशलेस

कृषि उत्पादन आयुक्त एसएन मिश्रा ने कृषि उपज मंडियों को हाईटैक, कैशलेस व सर्वसुविधायुक्त बनाने पर विशेष बल दिया. उन्होंने कहा कि इस के लिए शासन से आर्थिक मदद दिलाई जाएगी.

उन्होंने समझाया कि हाईटैक से आशय है कि मंडी में किसान की उपज की तुरंत खरीदी हो जाए, उन के बैठने के लिए बेहतर व्यवस्था हो, कैशलेस भुगतान की सुविधा हो और कृषि उपज की आटो पैकेजिंग व्यवस्था हो.

एसएन मिश्रा ने सभी जिला कलक्टर को सहकारी बैंकों की वसूली करा कर बैंकों को मजबूत करने के निर्देश भी बैठक में दिए. उन्होंने किसान क्रेडिटधारी किसानों के साथसाथ गैरऋणी किसानों की फसल का बीमा कराने के लिए भी कहा.

अतिरिक्त मुख्य सचिव, कृषि, अशोक वर्णवाल ने कहा कि कृषि यंत्रों का उपयोग किसानों के लिए हर तरह से लाभप्रद है. उन्होंने कृषि यंत्र एवं उपकरणों का प्रिजेंटेशन दिखाया और निर्देश दिए कि अनुदान के आधार पर हर जिले में किसानों को आधुनिक कृषि यंत्र उपलब्ध कराएं.

उन्होंने सागर संभाग में अरहर की वैरायटी अपनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के निर्देश दिए. अरहर की पूसा वैरायटी 6 महीने में तैयार हो जाती है और इस फसल के बाद किसान दूसरी फसल भी ले सकते हैं.

अशोक वर्णवाल ने प्रमाणित बीज व उर्वरकों के संतुलित उपयोग व मिट्टी परीक्षण के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने पर भी विशेष बल दिया. उन्होंने कहा कि मिट्टी परीक्षण के लिए स्थानीय कृषि स्नातक युवाओं के जरीए चलित लैब स्थापित कराई जा सकती हैं. इस से किसानों की ओर से मिट्टी परीक्षण की मांग बढ़ेगी और किसानों व कृषि स्नातक दोनों को फायदा होगा.

कृषि उत्पादन आयुक्त एसएन मिश्रा ने बैठक के द्वितीय चरण में पशुपालन, मत्स्यपालन एवं डेयरी उत्पादन सहित कृषि से जुड़ी गतिविधियों की समीक्षा की. उन्होंने कहा कि कृषि आधारित अर्थव्यवस्था बगैर पशुपालन के मजबूत नहीं रह सकती. इसलिए किसानों को उन्नत नस्ल के पशुपालन के लिए प्रोत्साहित करें.

एसएन मिश्रा ने पशु नस्ल सुधार पर भी विशेष बल दिया. साथ ही, बरसात से पहले सभी जिलों में मौसमी बीमारियों से बचाव के लिए अभियान बतौर टीकाकरण कराने के निर्देश दिए.

उन्होंने कहा कि हर जिले में गौशालाओं को प्रमुखता दें. अधूरी गौशालाएं जल्द से जल्द पूरी कराई जाएं और किसानों के दुग्ध व्यवसाय को संस्थागत रूप देने पर जोर देते हुए कहा कि उन्हें दुग्ध समितियों से जोड़ें.

बैठक में मत्स्यपालन को बढ़ावा देने और दुग्ध संघ को मजबूत करने के संबंध में उन्होंने जरूरी दिशानिर्देश दिए.

कृषि उत्पादन आयुक्त एसएन मिश्रा ने सभी कलक्टरों को निर्देश दिए कि बैंक अधिक से अधिक शासन की योजनाओं का लाभ हितग्राहियों को दे कर उन को लाभान्वित करें. उन्होंने समस्त किसानों से अपील की कि अधिक मात्रा में उर्वरक का छिड़काव न करें. उन्होंने कहा कि सभी जिलों में पर्याप्त मात्रा में उर्वरक एवं बीज का भंडारण सुनिश्चित किया जाए.

द्वितीय चरण की बैठक में प्रमुख सचिव मत्स्यपालन डा. नवनीत कोठारी सहित पशुपालन, डेयरी व मत्स्यपालन विभाग के राज्य स्तरीय अधिकारी मौजूद रहे.

संभाग आयुक्त डा. वीरेंद्र सिंह रावत ने कहा कि किसानों को जागरूक करने में सोशल मीडिया का उपयोग करें.

उन्होंने प्रगतिशील किसानों द्वारा की जा रही उन्नत खेती की वीडियो क्लीपिंग बना कर सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से अन्य किसानों को जागरूक करने का सुझाव दिया और किसानों को स्वसहायता समूहों में संगठित करें, जिस से कि वे अधिक लाभ कमा सकें. उन्होंने समय के अनुसार खेती में बदलाव लाने पर भी बल दिया.

सभी जिलों के कलक्टर ने बताई अपनेअपने जिले की कार्ययोजना

खेती को लाभप्रद बनाने के लिए संभाग के सभी जिलों में बनाई गई कार्ययोजना के बारे में सभी कलक्टरों ने अपनेअपने सुझाव दिए. जिले में नैनो यूरिया अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित किया जा रहा है. जिले में ज्वार, मक्का व उड़द और उद्यानिकी फसलों का रकबा बढ़ाया जाएगा.

धान फसल में रहस्यमय बीमारी, बौने रह गए पौधे

हिसार : वर्तमान में चावल की नर्सरी में स्पाइनारियोविरिडे समूह के वायरस हरियाणा में कई स्थानों पर देखे गए हैं. इस वायरस से प्रभावित पौधे बौने एवं ज्यादा हरे दिखाई देते हैं.

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि अभी संक्रमण छोटे स्तर पर है. इसलिए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे समय पर संक्रमण की रोकथाम के लिए कारगर कदम उठाएं, ताकि फसल को नुकसान से बचाया जा सके.

उन्होंने बताया कि प्रदेश के विभिन्न स्थानों से एकत्र किए गए नमूनों के प्रयोगशाला विश्लेषण से उक्त वायरस की उपस्थिति का पता चला है. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की एक टीम धान की फसल की नियमित निगरानी कर रही है और संदिग्ध नमूनों का प्रयोगशाला में परीक्षण किया जा रहा है.

किसानों के लिए सलाह

वैज्ञानिक डा. विनोद कुमार मलिक ने बताया कि अगेती नर्सरी बोआई पर सावधानीपूर्वक नजर रखनी चाहिए और प्रभावित चावल के पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए या खेतों से दूर मिट्टी में दबा देना चाहिए. असमान विकास पैटर्न दिखाने वाली नर्सरी का पौध रोपण के लिए उपयोग करने से बचें. हापर्स से नर्सरी की सुरक्षा की सब से अधिक जरूरत है. इस के लिए कीटनाशकों डिनोटफ्यूरान 20 एसजी 80 ग्राम या पाइमेट्रोजिन 50 डब्ल्यूजी 120 ग्राम प्रति एकड़. (10 ग्राम या 15 ग्राम प्रति कनाल नर्सरी क्षेत्र) का प्रयोग करें. सीधी बोआई वाले चावल की खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

उल्लेखनीय है कि हकृवि के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2022 के दौरान धान की फसल में पहली बार एक रहस्यमय बीमारी की सूचना दी थी, जिस के कारण हरियाणा राज्य में धान उगाने वाले क्षेत्रों में पौधे बौने रह गए थे जिस से सभी प्रकार की चावल किस्में प्रभावित हुई थीं.

प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा कर के डा. शिखा यशवीर, डा. दलीप, डा. महावीर सिंह, डा. सुमित सैनी, डा. विशाल गांधी और डा. मंजुनाथ की टीम ने बौनेपन की समस्या से ग्रसित पौधों के सैंपल एकत्रित किए.

डीएपी से बेहतर है एनपीके खाद (Fertilizer)

श्योपुर : खरीफ सीजन-2024 के लिए किसानों द्वारा उर्वरकों का अग्रिम उठाव किया जा रहा है. कृषि विभाग द्वारा किसानों से अपील की गई है कि डीएपी के स्थान पर एनपीके खाद बेहतर विकल्प है. एनपीके 12:32:16 और 16:16:16 उर्वरकों से फसलों में मुख्य पोषक तत्व नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश तत्व की पूर्ति होती है. इसी प्रकार 20:20:0:13 से नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं सल्फर की पूर्ति होती है.

कृषि विभाग द्वारा बताया गया है कि डीएपी से केवल 2 तत्व नत्रजन एवं फास्फोरस ही मिलते हैं, जबकि पोटाश तत्व की पूर्ति नहीं होती है. इस के अलावा सिंगल सुपर फास्फेट, जिस में 16 फीसदी फास्फोरस, 12 फीसदी सल्फर एवं 21 फीसदी कैल्शियम पाया जाता है. इस के उपयोग से फसलों के उत्पादन में वृद्धि होती है. वहीं तिलहन फसलों में सल्फर से तेल की मात्रा बढ़ती है.

जिले में खरीफ सीजन 2024 में मुख्य फसल धान, बाजरा, तिल, उड़द एवं सोयाबीन है. इस के लिए एनपीके उर्वरक का उपयोग किसान करें. ध्यान रखें कि कम से कम 4 इंच वर्षा होने के बाद ही खरीफ फसलों की बोआई करें. बोआई करने से पहले बीजों को फफूंदीनाशक दवा कार्बनडाइजिम 3 ग्राम दवा एक किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें, जिस से बीजजनित बीमारियों से बचाव हो सके.

कृषि उद्यमी की अनेक तकनीकों का मिला प्रशिक्षण

कटनी : मध्य प्रदेश शासन ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा आयोजित विकासखंड रीठी के दूरस्थ ग्राम पंचायत नयाखेड़ा में प्रोजैक्ट उन्नति के अंतर्गत मनरेगा में 100 दिवस कार्य कर चुके 35 महिला एवं पुरुषों को कृषि उद्यमी का 13 दिवसीय प्रशिक्षण भारतीय स्टेट बैंक ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान कटनी के संचालक पवन कुमार गुप्ता के मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण समन्वयक सुनील रजक और अनुपम पांडे के सहयोग से प्रशिक्षक रामसुख दुबे द्वारा दिया गया.

प्रशिक्षण में अनाज दलहनी व तिलहनी फसलों की खेती और धान की  विधि व अरहर की धरवाड़ विधि से कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त करने का तकनीकी प्रशिक्षण दिया गया. शुष्क खेती और सिंचाई के अंतर्गत स्प्रिंकलर से 80-90 फीसदी पानी की बचत के लिए टपक सिंचाई के उपयोग को सही बतलाया गया.

रोग नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा विरडी और कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए जैव उर्वरक दलहनी फसल के लिए राइजोबियम एक दलीय फसल के लिए एजेक्टोबेक्टर और सभी फसलों के लिए फास्फेटिका से बीजोपचार, भूमि उपचार और जड़कंद उपचार का तकनीकी प्रशिक्षण दिया गया.

वहीं सब्जियों की पौध तैयार करने के लिए नर्सरी प्रबंधन एवं औषधीय पौधों के विषय में बताया गया. नियंत्रित तापमान पर सब्जियों एवं फूलों की खेती के लिए पौलीहाउस और कृषि के लिए उन्नत कृषि यंत्रों के अंतर्गत जुताई, बोआई, निंदाई, गुड़ाई एवं कटाईगहाई के यंत्रों के उपयोग और कस्टम हायरिंग केंद्र लगाने के लिए शासन द्वारा दी जा रही सुविधाओं की जानकारी दी गई. पशुपालन से लाभ, गाय, भैंस एवं बकरी की नस्ल, दुग्ध उत्पादन, संतुलित पशु आहार, विभिन्न रोग एवं उन के नियंत्रण व टीकाकरण चारा, बरसीम, ज्वार, बाजरा, मक्का एवं नेपियर घास से अधिक दूध उत्पादन प्राप्त करने के विषय में बताया गया.

प्रशिक्षण में सरपंच खिलावन सिंह, सचिव रामस्वरूप पटेल एवं रोजगार सहायक प्रकाश कुमार और तमाम प्रशिक्षणार्थी उपस्थित रहे.