तुअर और उड़द की खरीद के लिए 10.66 लाख किसान पंजीकृत

पिछले 3 महीनों में मंडी कीमतों में गिरावट के साथ तुअर और उड़द की खुदरा कीमतों में गिरावट आई है या वे स्थिर बनी हुई हैं. उपभोक्ता मामला विभाग दालों की मंडी और खुदरा कीमतों के रुझानों पर विचारविमर्श करने के लिए भारतीय खुदरा विक्रेता संघ (आरएआई) और संगठित खुदरा श्रंखलाओं के साथ नियमित बैठकें कर के यह सुनिश्चित करता है कि खुदरा विक्रेता खुदरा मार्जिन को उचित स्तर पर बनाए रखें.

खुदरा बाजार में सीधे हस्तक्षेप करने के लिए सरकार ने बफर स्टाक से दालों के एक हिस्से को भारत दाल ब्रांड के तहत उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर खुदरा बिक्री के लिए उपलब्ध करवाया है. इसी तरह, भारत ब्रांड के तहत खुदरा उपभोक्ताओं को रियायती कीमतों पर आटा और चावल वितरित किया जाता है.

थोक बाजारों में उच्च मूल्य वाले उपभोक्ता केंद्रों और खुदरा दुकानों के माध्यम से कीमतों को कम करने के लिए बफर स्टाक से प्याज को एक संतुलित और लक्षित तरीके बाजार में उतारा जाता है. प्रमुख उपभोग केंद्रों में स्थिर खुदरा दुकानों और मोबाइल वैन के माध्यम से खुदरा उपभोक्ताओं के बीच प्याज 35 रुपए प्रति किलो की दर से वितरित किया जाता है. इन उपायों से दालों, चावल, आटा और प्याज जैसी आवश्यक खाद्य वस्तुएं उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराने और कीमतों को स्थिर करने में मदद मिली है.

घरेलू उपलब्धता बढ़ाने के लिए दालों का सुचारु और निर्बाध आयात सुनिश्चित करने के लिए तुअर और उड़द के आयात को 31 मार्च, 2025 तक ‘मुक्त श्रेणी’ में रखा गया है और मसूर के आयात पर 31 मार्च, 2025 तक कोई शुल्क नहीं लगाया गया है. इस के अतिरिक्त सरकार ने घरेलू बाजार में दालों की आपूर्ति बढ़ाने के लिए 31 मार्च, 2025 तक देशी चना के शुल्क मुक्त आयात की भी अनुमति दी है. तुअर, उड़द और मसूर की स्थिर आयात नीति व्यवस्था देश में तुअर और उड़द की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने में प्रभावी रही है, क्योंकि आयात का प्रवाह निरंतर बना हुआ है, जिस से दालों की उपलब्धता बनी हुई है और कीमतों में असामान्य वृद्धि पर अंकुश लगा है.

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने किसानों के जागरूकता अभियान, आउटरीच कार्यक्रम, बीज वितरण आदि के लिए एनसीसीएफ और नैफेड को सहायता प्रदान की. सरकार ने नैफेड और एनसीसीएफ के माध्यम से मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) और पीएम आशा योजना के मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) घटकों के तहत तुअर और उड़द की सुनिश्चित खरीद के लिए किसानों का पूर्व पंजीकरण लागू किया है. 22 नवंबर, 2024 तक एनसीसीएफ और नैफेड द्वारा कुल 10.66 लाख किसानों को पंजीकृत किया गया है.

खरीफ फसलों की स्थिति अच्छी है और मूंग, उड़द जैसी कम अवधि वाले फसलों की कटाई पूरी हो चुकी है, जबकि तुअर की फसल की कटाई अभी शुरू ही हुई है. फसल के लिए मौसम भी अनुकूल रहा है, जिस से उपभोक्ताओं तक आपूर्ति श्रंखला में अच्छा प्रवाह बना हुआ है और दालों की कीमतों में नरमी आने की उम्मीद है.

केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति राज्य मंत्री और सार्वजनिक वितरण मंत्री बीएल वर्मा ने पिछले दिनों लोकसभा में एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी.

National Milk Day: राष्ट्रीय दुग्ध दिवस 2024 के मौके पर बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी 2024 का लेखाजोखा

नई दिल्ली: केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय दुग्ध दिवस के अवसर पर पशुपालन एवं डेयरी विभाग के ‘बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी 2024’ के वार्षिक प्रकाशन का विमोचन किया. इस अवसर पर मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल और जार्ज कुरियन के साथसाथ पशुपालन और डेयरी विभाग की सचिव अलका उपाध्याय और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे.

बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी (बीएएचएस)- 2024 एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो पशुधन और डेयरी क्षेत्र के रुझानों के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है. बीएएचएस -2024, 1 मार्च, 2023 से 29 फरवरी, 2024 तक एकीकृत नमूना सर्वेक्षण के परिणामों पर आधारित है.

यह अनूठा सर्वे दूध, अंडे, मांस और ऊन जैसे प्रमुख पशुधन उत्पादों के उत्पादन अनुमानों पर महत्वपूर्ण डेटा उत्पन्न करता है, जो पशुधन क्षेत्र में नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस प्रकाशन में दुधारू पशुओं, पोल्ट्री पालतू पक्षी प्रजातियां, मारे गए जानवरों और ऊन निकाले गए भेड़ों की अनुमानित संख्या सहित प्रमुख पशुधन उत्‍पाद और प्रति व्यक्ति उपलब्धता का राज्यवार अनुमान शामिल है.

इस के अलावा यह पशु चिकित्सा अस्पतालों, पौलीक्लिनिक्स, गौशालाओं, राज्य फार्मों और अन्य बुनियादी ढांचे के विवरणों के साथसाथ कृत्रिम गर्भाधान की संख्या और पशुधन क्षेत्र संबंधित वैश्विक परिप्रेक्ष्य पर बहुमूल्य डेटा प्रस्तुत करता है.

National Milk Day

साल 2023-24 में दूध, अंडा, मांस और ऊन उत्पादन

बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी (बीएएचएस) देश में दूध, अंडे, मांस और ऊन के उत्पादन का सालाना अनुमान जारी करता है. यह एकीकृत नमूना सर्वे (आईएसएस) के परिणामों पर आधारित होता है, जो देशभर में 3 मौसमों यानी गरमी (मार्चजून), बरसात (जुलाईअक्तूबर) और सर्दी (नवंबरफरवरी) में आयोजित किया जाता है. इस सर्वे के नतीजे  इस प्रकार दिए गए हैं:

दूध उत्पादन

बीएएचएस 2024 में जारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2023-24 के दौरान देश में कुल दूध उत्पादन 239.30 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो पिछले 10 सालों की तुलना में 5.62 फीसदी ज्‍यादा है. साल 2014-15 में यह 146.3 मिलियन टन था. इस के अलावा, साल 2022-23 के अनुमानों की तुलना में साल 2023-24 के दौरान उत्पादन में 3.78 फीसदी की वृद्धि हुई है.

साल 2023-24 के शीर्ष 5 दूध उत्पादक राज्यों के बारे में बात की जाए तो, उत्तर प्रदेश 16.21 फीसदी के साथ कुल दूध उत्पादन में पहले स्‍थान पर था. उसके बाद राजस्थान (14.51 फीसदी), मध्य प्रदेश (8.91 फीसदी), गुजरात (7.65 फीसदी) और महाराष्ट्र (6.71 फीसदी) का स्‍थान है.

वार्षिक वृद्धि दर के संदर्भ में पिछले वर्ष की तुलना में सब से अधिक वृद्धि पश्चिम बंगाल (9.76 फीसदी) ने दर्ज की. उस के बाद झारखंड (9.04 फीसदी), छत्तीसगढ़ (8.62 फीसदी) और असम (8.53 फीसदी) का स्थान रहा.

अंडा उत्पादन

देश में साल 2023-24 के दौरान कुल अंडा उत्पादन 142.77 बिलियन रहने का अनुमान है. पिछले 10 सालों में साल 2014-15 के दौरान 78.48 बिलियन के अनुमान की तुलना में 6.8 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. इस के अलावा साल 2022-23 की तुलना में साल 2023-24 के दौरान उत्पादन में सालाना 3.18 फीसदी की वृद्धि हुई है.

कुल अंडा उत्पादन में सब से बड़ा योगदान आंध्र प्रदेश का है, जिस की कुल अंडा उत्पादन में हिस्सेदारी 17.85 फीसदी है. इस के बाद तमिलनाडु (15.64 फीसदी), तेलंगाना (12.88 फीसदी), पश्चिम बंगाल (11.37 फीसदी) और कर्नाटक (6.63 फीसदी) का स्थान है. सब से अधिक वार्षिक वृद्धि दर लद्दाख (75.88 फीसदी) में दर्ज की गई और उस के बाद मणिपुर (33.84 फीसदी) और उत्तर प्रदेश (29.88 फीसदी) का स्थान है.

मांस उत्पादन

देश में 2023-24 के दौरान कुल मांस उत्पादन 10.25 मिलियन टन होने का अनुमान है. साल 2014-15 में 6.69 मिलियन टन के अनुमान की तुलना में पिछले 10 सालों में 4.85 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. इस के अलावा साल 2022-23 की तुलना में साल 2023-24 में उत्पादन में 4.95 फीसदी की वृद्धि हुई.

कुल मांस उत्पादन में मुख्य योगदान पश्चिम बंगाल का है. इस की हिस्सेदारी 12.62 फीसदी है, उस के बाद उत्तर प्रदेश (12.29 फीसदी), महाराष्ट्र (11.28 फीसदी), तेलंगाना (10.85 फीसदी) और आंध्र प्रदेश (10.41 फीसदी) का स्थान है. उच्चतम वार्षिक वृद्धि दर असम (17.93 फीसदी) में दर्ज की गई है, जिस के बाद उत्तराखंड (15.63 फीसदी) और छत्तीसगढ़ (11.70 फीसदी) का स्थान है.

ऊन उत्पादन

देश में साल 2023-24 के दौरान कुल ऊन उत्पादन 33.69 मिलियन किलोग्राम रहने का अनुमान है, जो पिछले साल की तुलना में 0.22 फीसदी की मामूली वृद्धि दर्शाता है. साल 2019-20 के दौरान यह 36.76 मिलियन किलोग्राम और उस से पिछले साल 33.61 मिलियन किलोग्राम था.

कुल ऊन उत्पादन में सब से बड़ा योगदान राजस्थान का है, जिस की हिस्सेदारी 47.53 फीसदी है. उस के बाद जम्मू और कश्मीर (23.06 फीसदी), गुजरात (6.18 फीसदी), महाराष्ट्र (4.75 फीसदी) और हिमाचल प्रदेश (4.22 फीसदी) का स्थान है. सब से अधिक वार्षिक वृद्धि दर पंजाब (22.04 फीसदी) में दर्ज की गई. उस के बाद तमिलनाडु (17.19 फीसदी) और गुजरात (3.20 फीसदी) का स्थान है.

विश्व परिदृश्य

भारत दूध उत्पादन में विश्व में अग्रणी है, जबकि अंडा उत्पादन में दूसरे स्‍थान पर है.

छेना रसगुल्ला मीठा रसदार

रसगुल्ला का नाम आते ही हर किसी के मुंह में पानी भर आता है. भारत का ऐसा कोई शहर नहीं होगा, जहां पर रसगुल्ला न बिकता हो. यह भारत में सब से ज्यादा बिकने वाली मिठाइयों में शामिल है.

दूध से बनने वाली ज्यादातर मिठाइयां जहां कम दिनों में ही खराब होने लगती हैं, वहीं छेना रसगुल्ला देर तक चलता है. अगर सही तरह से इसे डब्बे में बंद किया जाए तो यह कई महीने तक रखा जा सकता है. यही वजह है कि डब्बाबंद मिठाइयों में सब से ज्यादा रसगुल्लों का ही बिजनेस होता है.

रसगुल्ला बंगाली मिठाई है, जो छेने से तैयार होती है. अच्छे रसगुल्ले एकदम मुलायम होते हैं. रसगुल्ले सफेद और हलके पीले रंग के बनाए जाते हैं. इन का आकार भी अलगअलग हो सकता है. छोटे आकार वाले रसगुल्ले ज्यादा पसंद किए जाते हैं. यह भले ही बंगाली मिठाई हो, पर इसे पूरे देश के लोग स्वाद ले कर खाते हैं.

रसगुल्ले के कारोबार में हुनर का खास योगदान होता है. जो कारीगर इसे सही तरह से बनाते हैं, उन की दुकानों में खरीदारों की भीड़ लगी रहती है. रसगुल्ले 350 रुपए से ले कर  500 रुपए प्रति किलोग्राम तक की कीमत में बिकते हैं.

कैसे तैयार करें रसगुल्ला

रसगुल्ला बनाने के लिए 150 ग्राम  छेना लें. इस के बाद एक साफ बरतन में 2 कप पानी में छेना डाल कर करीब 10 मिनट तक उबालें. इस के बाद पानी को ठंडा होने दें. अब छेना बाहर निकाल लें और दोनों हाथों में ले कर मलें. छेना तब तक मलें, जब तक यह पूरी तरह चिकना न हो जाए. छेना जितना चिकना होगा, रसगुल्ले उतने ही मुलायम बनेंगे.

इस छेने से 10 छोटे आकार के गोल रसगुल्ले तैयार करें. ध्यान रखें कि रसगुल्ले एक ही साइज के हों. चाशनी तैयार करने के लिए 2 कप चीनी में 4 कप पानी मिलाएं. इसे गरम करते हुए उबालें. जब यह मिश्रण थोड़ा गाढ़ा हो जाए तो उसे उंगली में लगा कर देखें. जब उस में तार बनने लगें तो उसे आंच से उतार लें. इस में 2 छोटे चम्मच गुलाबजल और इलायची पाउडर खुशबू के लिए डालें. तैयार चाशनी में रसगुल्ले डाल कर उन्हें 20 मिनट तक उबालें. हर 5 मिनट उबालने के बाद उस में थोड़ाथोड़ा पानी डालते रहें, ताकि रसगुल्ले जलने न पाएं.

तैयार रसगुल्लों को कुछ देर ठंडा होने के लिए रख दें. हलके व मुलायम रसगुल्ले चाशनी में ऊपर तक आ जाते हैं. जो रसगुल्ले अच्छे नहीं होते वे नीचे बैठ जाते हैं. छेना बनाने वाले कारीगर राजेश पाल कहते हैं, ‘छेने की मिठाइयों में रसगुल्ला सब से खास होता है. छेना अगर सही नहीं बनता तो रसगुल्ला भी सही नहीं बनता है. छेना बनाने के लिए दूध को फाड़ना पड़ता है. अगर घर पर छेने के रसगुल्ले बनाने हों, तो छेना बाजार से खरीदा जा सकता है.’

लखनऊ की रहने वाली रुचि खान कहती हैं, ‘आई लव रसगुल्ला, मुझे रसगुल्ले खाने में बहुत अच्छे लगते हैं. ताजेमुलायम रसगुल्ले खाने का मजा निराला होता है.’डेरी किसान

उठा सकते हैं लाभ

जो किसान डेरी का काम करते हैं, वे रसगुल्ले के कारोबार से जुड़ सकते हैं. वे अच्छे किस्म के दूध से छेना तैयार कर के बाजार में रसगुल्ले का कारोबार करने वाले दुकानदारों

को बेच सकते हैं. किसान चाहें तो रसगुल्ले तैयार कर के खुद बेच सकते हैं. इस से उन का मुनाफा कई गुना बढ़ सकता है.

किसान नरवाई जलाने से बचें, करें फसल अवशेष प्रबंधन

मैहर : कलक्टर अनुराग वर्मा और मैहर कलक्टर रानी बाटड ने अपनेअपने जिले के किसानों से अपील की है कि खेतों की फसल काटने के बाद किसान बचे फसल अवशेष को नष्ट करने व खेत में नरवाई न जलाएं. खेत में नरवाई जलाने से मिट्टी एवं भूउर्वरता, लाभदायक सूक्ष्म जीव के साथसाथ संचित नमी के वाष्पीकरण से अत्यधिक नुकसान होता है. मिट्टी के लाभदायक कीट एवं जीवांश नष्ट हो जाते है एवं अगली फसल का उत्पादन प्रभावित होता है.

ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश के क्रम में Air (Prevention & control of Pollution) Act 1981 के अंतर्गत प्रदेश में फसलों विशेषतः धान एवं गेहूं की कटाई के उपरांत फसल अवशेषों को खेतों में जलाए जाने को प्रतिबंधित किया गया है एवं उल्लंघन किए जाने पर व्यक्ति/निकाय को प्रावधान के अनुसार पर्यावरण क्षतिपूर्ति देय होगी. 2 एकड़ से कम भूमिधारक किसानों द्वारा राशि 2,500 रुपए प्रति घटना, 2 एकड़ से अधिक और 5 एकड़ से कम भूमिधारक किसानों द्वारा राशि 5,000 रुपए प्रति घटना और 5 एकड़ से अधिक भूमिधारकों द्वारा राशि 15,000 रुपए प्रति घटना पर्यावरण क्षतिपूर्ति देय होगी.

खेत में फसल अवशेष/नरवाई जलाने से मिट्टी के लाभदायक सूक्ष्मजीव एवं जैविक कार्बन जल कर नष्ट हो जाते हैं, जिस से मिट्टी सख्त एवं कठोर हो कर बंजर हो जाती है एवं फसल अवशेष जलाने से पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव देखा जा रहा है.

किसान फसल अवशेष/नरवाई न जलाएं, बल्कि इस का उपयोग आच्छादन यानी मल्चिंग एवं स्ट्रा रीपर से भूसा बना कर पशुओं के भोजन या भूसे के विपणन से अतिरिक्त लाभ प्राप्त कर सकते हैं. इस के अतिरिक्त गेहूं एवं चना की बोनी के लिए अधिक से अधिक हैप्पी सीडर/सुपर सीडर का उपयोग करें. किसानों को सलाह दी जाती है कि वे नरवाई जलाने से बचें.

किसान अपने खेतों की मिट्टी का करा सकेंगे परीक्षण

छतरपुर :मध्य प्रदेश शासन किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग मंत्रालय भोपाल के 22 अगस्त, 2024 से प्राप्त निर्देशानुसार जिले में नवीन निर्मित विकासखंड स्तरीय मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं को युवा उद्यमियों एवं संस्थाओं के माध्यम से प्रारंभ और संचालित किया जाना है. इस के लिए चयन के लिए इच्छुक उम्मीदवारों द्वारा आवेदन किए गए, जिस में जिले में कुल 17 संस्थाओं एवं 85 युवा उद्यमियों के आवेदन प्राप्त हुए.

इस के लिए छतरपुर कलक्टर पार्थ जैसवाल के निर्देश पर संस्थाओं एवं युवा उद्यमियों का चयन के लिए प्राप्त आवेदनों के परीक्षण के लिए जिला स्तर पर एक समिति बनाई गई, जिस के निर्देशन में संस्थाओं एवं युवा उद्यमियों द्वारा प्रस्तुत औनलाइन आवेदनों का परीक्षण किया गया और शासन के निर्देशानुसार उन का विकासखंडों में चयन किया गया.

विकासखंडवार चयनित संस्था एवं युवा उद्यमी

विकासखंडवार चयनित संस्था एवं युवा उद्यमी में बड़ामलहरा से एसआरएच फूड इंडस्ट्रीज प्रा. लि., छतरपुर से आरकेसीटी लेबोरेटरी प्रा. लि., बारीगढ़ से अपूर्वा फूड प्रा. लि., राजनगर से एसएमएजी एजुकेशन एंड सर्विस प्रा. लि., लवकुशनगर से वीरेंद्र कुमार पटेल, बिजावर से सर्वेश गुप्ता, बक्सवाहा से चतुर्भुज पाल का चयन किया गया है.

उपसंचालक, कृषि, डा. केके वैद्य ने कहा कि जिले में विकासखंड स्तर पर मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं का संचालन होने से जिले के किसानों को मिट्टी परीक्षण के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. उन्हें शीघ्र ही मिट्टी परीक्षण की रिपोर्ट और रिपोर्ट के अनुसार अनुशंसित पोषक तत्वों की पूर्ति की जानकारी प्राप्त होगी, जिस से कि वे अधिक उत्पादन के लिए सिफारिश की गई उर्वरकों की मात्रा का उपयोग कर सकेंगे. इस के लिए किसान अपने खेतों की मिट्टी जांच अवश्य कराएं.

परंपरागत खेती के साथ उद्यानिकी फसल लेने से बढ़ी आमदनी

जबलपुर : जिले के पाटन विकासखंड के ग्राम मुर्रई के किसान बृजराज सिंह राजपूत पारंपरिक गेहूं और धान की फसल के साथ प्राकृतिक खेती को अपना कर आसपास के किसानों के लिए कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त करने की मिसाल पेश कर रहे हैं.

कृषि अधिकारियों ने पिछले दिनों बृजराज सिंह के खेत में पहुंच कर उद्यानिकी फसल का अवलोकन किया. बृजराज सिंह अपने 10 एकड़ खेत में फसल विविधीकरण को अपना कर शिमला मिर्च, हरी मिर्च, मूंगफली, अदरक, टमाटर जैसी उद्यानिकी फसलें ले रहे हैं. साथ ही, उन्होंने उद्यानिकी फसलों के किनारे गेंदा भी लगाया है. इस से कीट नियंत्रण में मदद मिलने के साथ ही उन्हें अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त हो रही है.

किसान बृजराज सिंह  ने बताया कि उन्होंने उद्यानिकी फसलों को खेत के उत्तरदक्षिण दिशा में लगाया है. इस से फसल को सूरज की रोशनी सुबह और शाम पर्याप्त मात्रा में मिलती है. प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया अच्छी होने के परिणामस्वरूप पौधों का विकास भी अच्छा होता है.

किसान बृजराज सिंह ने आगे बताया कि उन के खेत के चारों ओर नीम के पेड़ भी लगे हुए हैं, जिस से कीटों का नियंत्रण होता है. बृजराज सिंह द्वारा विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक कीटनाशक बनाया जा रहा है. वे इन का उपयोग उद्यानिकी फसलों में कर रहे हैं, जिस से कीटों पर प्रभावी नियंत्रण के साथ उत्पादन लागत में कमी भी आ रही है.

कृषि अधिकारियों के अनुसार, बृजराज सिंह पहले उद्यानिकी फसलों में रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग करते थे, किंतु उन्हें प्रोत्साहित कर प्राकृतिक खेती में रुचि बढ़ाई गई. बृजराज सिंह अब जीवामृत, पांच पर्णी अर्क, नीम कड़ा आदि बना कर उपयोग कर रहे हैं.

इस किसान के खेत में मिनी औटोमैटिक वेदर स्टेशन भी लगाया गया है. इस से मौसम के पूर्वानुमान के साथ आने वाली बीमारी, कीडों का आगमन, मिट्टी में उपलब्ध नमी आदि की पूर्व जानकारी मोबाइल पर उपलब्ध हो जाती है. औटोमैटिक वेदर स्टेशन से मिली पूर्व जानकारी के आधार पर बृजराज सिंह को कृषि कार्य परिवर्तित करने में सहायता मिल रही है.

अनुविभागीय कृषि अधिकारी पाटन डा. इंदिरा त्रिपाठी ने बताया कि किसान बृजराज सिंह द्वारा प्राकृतिक खेती करना प्रारंभ कर दिया गया है और इन के खेत पर अन्य किसानों को भ्रमण कराया जा रहा है, जिस से वे भी प्रोत्साहित हो कर प्राकृतिक खेती के साथसाथ फसल विविधीकरण की ओर अग्रसर हों.

जिला स्तरीय ‘कृषि स्थायी समिति’ की बैठक हुई संपन्न

बालाघाट : जिला स्तरीय “कृषि स्थायी समिति” की बैठक जिला पंचायत सभाकक्ष में पिछले दिनों सभापति टामेश्वर पटले की अध्यक्षता में संपन्न की गई. बैठक में सहकारिता विभाग, कृषि विभाग, उद्यानिकी विभाग, “आत्मा समिति”, जिला सहकारी बैंक, कृषि उपज मंडी समिति, मत्स्य विभाग, पशुपालन विभाग, कृषि अभियांत्रिकी विभाग एवं कृषि से संबंधित अन्य विभागों की योजनाओं की जानकारी, लक्ष्य पूर्ति एवं विभागीय कार्यों की गतिविधियों की समीक्षा की गई.

बैठक में सभापति पटले द्वारा आत्मा परियोजना के अंतर्गत विकासखंड परसवाडा, बालाघाट, लालबर्रा, बिरसा, बैहर, खैरलांजी में स्टाफ के खाली पद को पूरा करने के लिए वरिष्ठालय को पत्र लिखने के निर्देश दिए गए, वहीं उद्यानिकी विभाग द्वारा विभागीय योजनाओं की जानकारी दी गई, जिस में पटले द्वारा पुष्प क्षेत्र विस्तार से संबंधित किसानों की सूची उपलब्ध कराने के लिए निर्देशित किया गया. साथ ही, मसाला क्षेत्र विस्तार एवं सब्जी विस्तार से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी ली गई.

इस दौरान सदस्य केसर बिसेन द्वारा केले की फसल के संबंध में जानकारी ली गई, जिस में सहायक संचालक उद्यानिकी द्वारा जानकारी दी गई कि विभाग ‌द्वारा बेरोजगार नौजवानों/युवतियों के लिए लघु उघोग खोलने के लिए विभाग से सब्सिडी प्रदान की जाती है. इच्छुक नौजवान या युवती विभाग के माध्यम से योजना का लाभ प्राप्त कर सकते हैं.

बैठक में सभापति पटले द्वारा सर्राठी जलासय ग्राम तेकाडी (लालबर्रा) के अंतर्गत मत्याखेट के लिए चल रहे समितियों के विवाद के संबंध में 7 दिसंबर के बाद कृषि फार्म मुरझड़ में बैठक आयोजित करने के निर्देश दिए गए.

उपसंचालक, पशु चिकित्सा द्वारा मुर्रा भैंस योजना, नंदीशाला योजना, बकरीपालन योजना, आचार्य विद्यासागर योजना के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई. लंपी बीमारी की रोकथाम के लिए किए जा रहे कार्य के संबंध में विस्तृत चर्चा की गई. साथ ही, पटले द्वारा आगामी बैठक में जिला विपणन अधिकारी को बैठक में आवश्यक रूप से उपस्थित रहने के लिए निर्देशित किया गया.

बैठक में रबी – 2024 के लिए बीज की उपलब्धता की समीक्षा की गई, जिस में सदस्य केशर बिसेन द्वारा फसल चक्रीकरण के संबंध में चर्चा की गई. कृषि विभाग द्वारा सचालित योजनाओं जैसे राखासुमि. औन ईडिबल औयल (तिलहन), राखासुमि (टरफा), राखासुमि (दलहन), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के स्वाइल हैल्थ एंड फर्टिलिटी योजना, परंपरागत कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के स्वाइल हैल्थ एंड फर्टिलिटी योजना के अंतर्गत नमूना एकत्रीकरण, राखासुमि (खरीफ) वर्ष 2024-25 के विकासखंडवार, मदवार, घटकवार भौतिक एवं वित्तीय लक्ष्यों का अनुमोदन लिया गया.

जिले में कृषि उपज मंडी समिति द्वारा निर्मित भवनों की नीलामी की कार्यवाही जल्द से जल्द किए जाने की कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए. सचिव कृषि उपज मंडी द्वारा जानकारी दी गई कि कार्यवाही प्रक्रियाधीन है. जल्द ही नीलामी की कार्यवाही की जाने वाली है.

उपसंचालक, कृषि द्वारा सुपर सीडर का उपयोग एवं महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई, वहीं बालाघाट में स्थित बीज निगम का कार्यालय बालाघाट से हटा कर सिवनी में शिफ्ट किया जा रहा है एवं उपस्थित कर्मचारी का स्थानांतरण किया जा रहा है, जिस पर सभापति पटले द्वारा वरिष्ठालय को कलक्टर के माध्यम से पत्र प्रेषित करने के लिए निर्देशित किया गया.

बैठक में सदस्य झाम सिंह नागेश्वर, डुलेंद्र ठाकरे, सदस्य मंशाराम मडावी, उपसंचालक, कृषि, राजेश खोबरागड़े, डा. एनडी पुरी (पशुपालन विभाग), पूजा रोडगे (मतस्य विभाग), क्षितिज करहाडे (सहायक संचालक उद्यान), पामेश भगत (सहायक कृषि यंत्री), अर्चना डोंगरे (परि. संचालक आत्मा), सुनील कुमार सोने, पुरुषोत्तम बिसेन (बीज निगम), मनीष मडावी (सचिव, कृषि उपज मंडी) आदि उपस्थित रहे.

एक भी गांव, खेत नहीं बचेगा, सभी जगह पहुंचेगा पानी

दमोह : ब्यारमा नदी पर 14 हजार करोड़ रुपए का प्रोजैक्ट है, जिस का पानी दमोह जिले के पूरे गांवों में पहुंचेगा. जिले का एक भी गांव, खेत नहीं बचेगा, सभी के खेतों पर पानी पहुंचेगा. आने वाले समय में दमोह जिले में पानी की कोई दिक्कत नहीं होगी. डेम बनना बहुत बड़ा काम है. डेम से पूरे जिले में पानी फैलाना और ढाई लाख हेक्टेयर की सिंचाई होना है, बहुत बड़ी बात है.

जिले में सिर्फ 2 लाख हेक्टेयर में सिंचाई होने के लिए बची है, बाकी में पहले से ही सिंचाई हो रही है, 4 डेम बने हुए हैं. इस आशय की बात प्रदेश के पशुपालन एवं डेयरी विभाग राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) लखन पटेल ने ग्राम नंदरई में प्रथम आगमन पर एक सभा को संबोधित करते हुए कही.

राज्यमंत्री लखन पटेल ने कहा कि 3 महीने पहले मुख्यमंत्री आए थे, हम ने उन से जब बात की कि ब्यारमा नदी पर एक डेम बनाया जाए, तो उन्होंने कहा कि इस की मंजूरी कर देंगे. बताते हुए खुशी है कि उस का टेंडर भी लग गया है, 30 करोड रुपए का सर्वे का टेंडर लग गया है, जिस में आप सभी की जिम्मेदारी है कि जब एजेंसी के लोग आएं तो कोई भी खेत न छूटे, एक बार पूरा एस्टीमेट या पूरी योजना बन गई. फिर कोई छूट गया, तो बहुत दिक्कत होती है.

राज्यमंत्री लखन पटेल ने कहा कि यहां के तालाबों में पानी की आवक नहीं हैं, जो कि सब से बड़ी दिक्कत है, खेतों से पाइपलाइन डल रही है, यह प्रयास किया जा रहा हैं कि साजली नदी से 2-3 किलोमीटर की पाइपलाइन मंजूर हो जाए. नंदरई और बांसा की सब से बडी सिंचाई की समस्या हल हो जाएगी.

उन्होंने कहा कि टंकी का काम शुरू हो जाएगा, इस में भी सालडेढ़ साल लगेगा, लेकिन हर घर तक टोंटी से पानी पहुंचेगा. छूटे हुए गांवों का फिर से सर्वे करा कर उन को जोड़ने का काम किया जा रहा है. खासतौर से नंदरई और बांसा जैसे गांव जो पूरे क्षेत्र में फैले हुए हैं, वहां सब से ज्यादा इस की आवश्यकता है, पानी गांव में तो आ गया है, लेकिन वहां नहीं पहुंचा.

राज्यमंत्री लखन पटेल ने कहा कि 40 फीसदी आबादी गांव में रह रही है, बाकी 60 फीसदी बाहर रह रहे हैं, यही स्थिति है, उस के लिए सर्वे किया जा रहा हैं. सर्वे के बाद आप सभी के घर पानी पहुंचाने का काम होगा.

इस अवसर पर उपाध्यक्ष जिला पंचायत मंजू धर्मेंद्र कटारे, गौरव पटैल, खरगराम पटेल, ललित पटेल, खिलान अहिरवार, नरेश सराफ, सुखई दाऊ, अशोक सिंह सहित अन्य गणमान्य नागरिक, पंचायत प्रतिनिधि, जनप्रतिनिधि मौजूद थे.

पालतू पशुओं की होगी गिनती – जिले में 21वीं पशु संगणना का काम शुरू

नीमच : उपसंचालक, पशु चिकित्सा सेवाएं ने बताया कि जिले में 21वीं पशु संगणना 2024 का काम प्रारंभ किया जा चुका है. पशु संगणना का यह काम भारत सरकार का राष्ट्रीय कार्यकम है. यह कार्य प्रत्येक 5 साल में किया जाता है.

जिले में 21वीं पशु गणना का काम ग्रामीण क्षेत्रों में 48 प्रगणकों एवं शहरी क्षेत्रों में 17 प्रगणकों और 7 सुपरवाइजरों द्वारा किया जा रहा है. नीमच जिले के तीनों विकासखंडों में पशुगणना का काम 4 माह में पूरा किया जावेगा.

पशु गणना का काम औनलाइन एप के माध्यम से किया जा रहा है. पशु गणना में सभी 16 प्रकार के पालतू पशुओं की गणना घरघर जा कर की जाएगी, जिस में एप पर पशु के प्रकार को दर्ज करने के लिए विस्तारपूर्वक जानकारी प्राप्‍त की जाएगी. साथ ही, क्षेत्र के अंतर्गत पाए जाने वाले सभी प्रकार के पशुओं के नस्लों की जानकारी भी ली जाएगी.

पशु चिकित्‍सा विभाग द्वारा जिले के नागरिकों से अपील की है कि वे अपने पशुओं की सहीसही जानकारी विभागीय अमले को अवगत कराएं, जिस से कि भविष्य में शासन द्वारा पशुपालन विकास की योजनाओं को मूर्त रूप दिया जा सके.

खेती की दुनिया से जुड़े नवंबर के काम

आमतौर पर तो पूरा साल ही खेती के लिहाज से खरा और खास होता है, पर हर महीने की अपनी अलगअलग अहमियत होती है.

चढ़ती सर्दी के मौसम वाले नवंबर महीने के दौरान भी खेतों में खासी गहमागहमी का आलम रहता है. मार्च से अक्तूबर के दौरान तपते मौसम में सुलगने के बाद नवंबर में किसान जिस्मानी तौर पर काफी राहत और सुकून महसूस करते हैं.

दो वक्त की रोटी से जुड़ी सब से अहम फसल गेहूं की बोआई का सिलसिला नवंबर से शुरू हो जाता है. तमाम खास फसलों के बीच गेहूं का अपना अलग और सब से ज्यादा वजूद होता है. भले ही मद्रासी, बंगाली और बिहारी नस्ल के लोग ज्यादा चावल खाते हों, मगर भारत में रोटी खाने वालों की तादाद सब से ज्यादा है. इसीलिए गेहूं की खेती का वजूद कुछ ज्यादा ही हो जाता है. उसी लिहाज से यह फसल किसानों की माली हालत बेहतर बनाने में भी खास साबित होती है.

माहिर किसान नवंबर की शुरुआत से ही गेहूं की बोआई के लिए खेतों की तैयारी में जुट जाते हैं. इन तैयारियों में मिट्टी की जांच कराना सब से खास होता है. पेश है नवंबर के दौरान होने वाले खेती संबंधी खास कामों का ब्योरा:

* जैसा कि पहले जिक्र किया जा चुका है, उसी के तहत गेहूं की बोआई से पहले अपने खेत की मिट्टी की जांच जरूर कराएं. मिट्टी की जांच किसी अच्छी लैब में ही कराएं ताकि सही नतीजे मिल सकें.

* गेहूं बोने से पहले खेतों में अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट जरूर डालें. खाद कितनी मात्रा में डालनी है, यह जानने के लिए अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक से बात करें और उस की सलाह के मुताबिक ही काम करें. गेहूं की बोआई का दौर 7 नवंबर से 25 नवंबर के बीच पूरे जोरशोर से चलता है.

* बोआई के लिए अपने इलाके के हवापानी के मुताबिक ही गेहूं की किस्मों का चुनाव करें. इस के लिए भी अपने इलाके के कृषि वैज्ञानिक से ही सलाह लें. इस मामले में उन से बेहतर राय और कोई नहीं दे सकता. वैज्ञानिक की सलाह के मुताबिक ही गेहूं के बीजों का इंतजाम करें.

* गेहूं के बीज किसी नामी कंपनी या सरकारी संस्था से ही लें, क्योंकि उन के बीज उम्दा होते हैं और उन्हें उपचारित करने की जरूरत नहीं होती है. दरअसल मशहूर बीज कंपनियां और सरकारी संस्थाएं अपने बीजों का उपचार पहले ही कर चुकी होती हैं, लिहाजा उन्हें फिर से उपचारित करने की कोई जरूरत नहीं होती है.

* कई बार छोटे किसान बड़े किसानों से ही बीज खरीद लेते हैं, क्योंकि ये बीज उन्हें काफी वाजिब दामों पर मिल जाते हैं. ऐसा करने में कोई बुराई या खराबी नहीं है, मगर ऐसे में बीजों को अच्छी फफूंदीनाशक दवा से उपचारित कर लेना चाहिए. बीजों को उपचारित किए बगैर बोआई करने से पैदावार घट जाती है.

* अगर छिटकवां विधि से गेहूं की बोआई करने का इरादा है, तो ऐसे में 125 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से लगेंगे. वैसे छिटकवां तरीके से बोआई करने पर काफी बीज बेकार चले जाते हैं, लिहाजा इस विधि से बचना चाहिए. मौजूदा दौर के कृषि वैज्ञानिक भी बोआई की छिटकवां विधि अपनाने की सलाह नहीं देते हैं.

* वैज्ञानिकों के मुताबिक सीड ड्रिल मशीन से गेहूं की बोआई करना मुनासिब रहता है. इस विधि के लिए प्रति हेक्टेयर महज 100 किलोग्राम बीजों की जरूरत होती है. इस विधि से बीजों की कतई बरबादी नहीं होती है.

* हमेशा गेहूं की बोआई लाइनों में ही करें और पौधों के बीच 20 सेंटीमीटर का फासला रखें. 2 पौधों के बीच फासला रखने से पौधों की बढ़वार बेहतर ढंग से होती है और खेत की निराईगुड़ाई करने में सरलता होती है.

* वैसे तो मिट्टी की जांच रिपोर्ट के मुताबिक ही खाद व उर्वरक वगैरह का इस्तेमाल करना चाहिए, मगर कई जगहों के किसानों के लिए मिट्टी की जांच करा पाना मुमकिन नहीं हो पाता. ऐसी हालत में प्रति हेक्टेयर 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिए.

* चने को गेहूं का जोड़ीदार अनाज माना जाता है. गेहूं के साथसाथ नवंबर में चने की बोआई का आलम भी रहता है. चने की बोआई 15 नवंबर तक कर लेने की सलाह दी जाती है.

* चने की बोआई के लिए साधारण चने की पूसा 256, पंत जी 114, केडब्ल्यूआर 108 और के 850 किस्में बेहतरीन होती हैं. यदि काबुली चने की बोआई करनी है तो पूसा 267 और एल 550 किस्में उम्दा होती हैं.

* चने की खेती के मामले में भी अगर हो सके तो मिट्टी की जांच करा कर वैज्ञानिकों से खादों व उर्वरकों की मात्रा तय करा लें, अगर ऐसा संभव न हो, तो प्रति हेक्टेयर 45 किलोग्राम फास्फोरस, 30 किलोग्राम पोटाश और 20 किलोग्राम नाइट्रोजन का इस्तेमाल करें.

* चने के बीजों को राइजोबियम कल्चर और पीएसबी कल्चर से उपचारित कर के बोएं. ऐसा करने से पौधे अच्छे निकलते हैं.

* बोआई के लिए प्रति हेक्टेयर बड़े आकार के दानों वाली चने की किस्मों के 100 किलोग्राम बीज इस्तेमाल करें. मध्यम और छोटे आकार के दानों वाली चने की किस्मों के 80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करें.

* अमूमन मटर व मसूर की बोआई का काम अक्तूबर महीने के दौरान ही निबटा लिया जाता है, लेकिन अगर किसी वजह से मटर व मसूर की बोआई बाकी रह गई हो, तो उसे 15 नवंबर तक जरूर निबटा लें.

* मटर की बोआई के लिए करीब 100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगते हैं, जबकि मसूर की बोआई के लिए करीब 40 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से लगते हैं.

* मसूर और मटर के बीजों को बोने से पहले राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना जरूरी है. ऐसा न करने से पैदावार पर बुरा असर पड़ता है.

* अक्तूबर में बोई गई मटर व मसूर के खेतों में अगर नमी की कमी नजर आए, तो जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. इस के अलावा खेत की बाकायदा निराईगुड़ाई भी करें ताकि खरपतवार काबू में रहें.

* मसूर और मटर की फसलों पर यदि तना छेदक या पत्ती सुरंग कीटों का प्रकोप दिखाई दे, तो मोनोक्रोटोफास 3 ईसी दवा का इस्तेमाल करें.

* आमतौर पर नवंबर में ही जौ की बोआई भी की जाती है. अच्छी तरह तैयार किए गए खेत में 25 नवंबर तक जौ की बोआई का काम निबटा लेना चाहिए.

* वैसे तो जौ की पछेती फसल की बोआई दिसंबर के अंत तक की जाती है, पर समय से बोआई करना बेहतर रहता है. आमतौर पर देरी से बोई जाने वाली फसल से उपज कम मिलती है.

* जौ की बोआई में हमेशा सिंचित और असिंचित खेतों का फर्क पड़ता है. उसी के हिसाब से कृषि वैज्ञानिक से बीजों की मात्रा पूछ लेनी चाहिए.

* नवंबर के दौरान अरहर की फलियां पकने लगती हैं, लिहाजा उन पर नजर रखनी चाहिए. जब 75 फीसदी फलियां पक कर तैयार हो जाएं, तो उन की कटाई करें.

* अरहर की देरी से पकने वाली किस्मों पर यदि फली छेदक कीट का प्रकोप नजर आए, तो मोनोक्रोटोफास 36 ईसी दवा की 600 मिलीलीटर मात्रा पर्याप्त पानी में मिला कर फसल पर छिड़काव करें.

* सरसों के खेत में अगर फालतू पौधे हों, तो उन की छंटाई करें. निकाले गए पौधों को मवेशियों को खिलाएं. फालतू पौधे निकालते वक्त खयाल रखें कि बचे पौधों के बीच करीब 15 सेंटीमीटर का फासला रहे.

* सरसों की बोआई को अगर 1 महीना हो चुका हो, तो नाइट्रोजन की बची मात्रा सिंचाई कर के छिटकवां तरीके से दें.

* सरसों के पौधों को आरा मक्खी व माहू कीट से बचाने के लिए इंडोसल्फान दवा की डेढ़ लीटर मात्रा 800 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* सरसों के पौधों को सफेद गेरुई और झुलसा बीमारियों से बचाने के लिए जिंक मैंगनीज कार्बामेट 75 फीसदी दवा की 2 किलोग्राम मात्रा पर्याप्त पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* नवंबर महीने के दौरान तोरिया की फलियों में दाना भरता है. इस के लिए खेत में भरपूर नमी होनी चाहिए. अगर नमी कम लगे तो फौरन खेत को सींचें ताकि फसल उम्दा हो.

* अपने आलू के खेतों का जायजा लें. अगर खेत सूखे दिखाई दें, तो फौरन सिंचाई करें ताकि आलुओं की बढ़वार पर असर न पड़े.

* अगर आलू की बोआई को 5-6 हफ्ते बीत चुके हों, तो 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से डालें और सिंचाई के बाद पौधों पर ठीक से मिट्टी चढ़ाएं.

* अक्तूबर के दौरान लगाई गई सब्जियों के खेतों का मुआयना करें और जरूरत के मुताबिक निराईगुड़ाई कर के खरपतवार निकालें. खेत सूखे नजर आएं, तो उन की सिंचाई करें.

* सब्जियों के पौधों व फलों पर अगर बीमारियों या कीड़ों का प्रकोप नजर आए, तो कृषि वैज्ञानिक से पूछ कर मुनासिब दवा का इस्तेमाल करें.

* अपने लहसुन के खेतों का मुआयना करें. अगर खेत सूखे लगें, तो उन की सिंचाई करें. इस के अलावा खेतों की तरीके से निराईगुड़ाई कर के खरपतवारों का सफाया करें.

* लहसुन के खेतों में 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से डालें. इस से फसल को काफी लाभ होगा.

* अगर लहसुन की पत्तियों पर पीले धब्बों का असर नजर आए, तो इंडोसल्फान एम 45 दवा के 0.75 फीसदी घोल का छिड़काव करें.

* भले ही आम का सीजन आने में अभी काफी वक्त है, फिर भी आम के पेड़ों का खयाल रखना जरूरी है. मिलीबग कीट से बचाव के लिए पेड़ों के तनों के चारों ओर पौलीथीन की करीब 30 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी बांध कर उस के सिरों पर ग्रीस लगा दें.

* आम के पेड़ों के तनों व थालों में फौलीडाल पाउडर छिड़कें. इस के साथ ही पेड़ों की बीमारी के असर वाली डालियों व टहनियों को काट कर जला दें.

* नवंबर की शुरुआती सर्दी से अपने मुरगेमुरगियों को बचाने का बंदोबस्त करें.

* सर्दी के आलम में अपने तमाम मवेशियों का पूरापूरा खयाल रखें, क्योंकि सर्दी उन के लिए भी घातक होती है.

* अपनी गायों, भैंसों व बकरियों वगैरह पर पैनी निगाह रखें. अगर उन में बुखार के लक्षण नजर आएं तो फौरन जानवरों के डाक्टर को बुलवाएं.

* पशुओं के टीकों वगैरह का भी पूरा खयाल रखें.