पटना राजभवन में आयोजित होगा बिहार आमोत्सव (Bihar Mango Festival) -2024

पटना : 15 जून से 16 जून, 2024 को राजभवन पटना में  “बिहार आमोत्सव -2024” का आयोजन बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर और कृषि विभाग, बिहार सरकार द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा.

इस अवसर पर राजभवन पटना में राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर द्वारा  ‘आमोत्सव-2024’ का पोस्टर एवं प्रतीक चिन्ह यानी लोगो का पिछले दिनों लोकार्पण किया गया. इस अवसर पर बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीआर सिंह और निदेशक, उद्यान, अभिषेक कुमार उपस्थित रहे.

आमोत्सव कार्यक्रम में बिहार में पाई जाने वाली आम की विविधता को प्रदर्शित किया जाएगा. कार्यक्रम का सूक्ति वाक्य रखा गया है, “स्वाद, संस्कृति एवं समृद्धि का उत्सव”.

गौरतलब है कि बिहार में आम की विविधता प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, लेकिन इस की जानकारी आम उत्पादक किसानों और अधिकांश लोगों को नहीं है. अतः इस कार्यक्रम के माध्यम से आम के प्रचलित प्रभेदों के अलावा अन्य लुप्त होती किस्मों को भी प्रदर्शित किया जाएगा.

आम उत्पादक और कृषि व्यवसायों के लिए बाजार के अवसर सृजित कर के आम उद्योग के आर्थिक विकास के साथसाथ उद्यमिता करना भी प्रदर्शनी का उद्देश्य है. ग्रामीण युवा को स्वरोजगार उत्पन्न करने के लिए आम प्रसंस्करण यानी प्रोसैसिंग, पैकेजिंग और निर्यात गतिविधियों में निवेश की जानकारी आदि उपलब्ध कराया जाएगा.

बिहार आमोत्सव 24 के आयोजन से बिहार में पाई जाने वाली आम की विभिन्न किस्मों को प्रदर्शित करने का सुनहरा अवसर मिलेगा और आम उत्पादक किसान/वैज्ञानिक अच्छे किस्मों को संग्रहित एवं संरक्षित कर सकेंगे.

बिहार राज्य के सभी क्षेत्रों के फल उत्पादक एवं संबंधित संस्थाएं और नर्सरियां इस में भाग ले सकते हैं. इस प्रदर्शनी में कोई भी प्रतिभागी किसी भी खंड में भाग ले सकता है. इस के लिए शर्त यह है कि प्रदर्शन में लाई जाने वाली वस्तु प्रतिभागी के अपने खेत या बाग का होना अनिवार्य है.

वंदना कुमारी को मिला नवोन्मेषी कृषक पुरस्कार

भागलपुर: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के तत्वावधान में आयोजित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान – नवोन्मेषी कृषक सम्मेलन-2024 के अवसर पर बिहार के बांका जिले के भेड़ा गांव की प्रगतिशील महिला किसान वंदना कुमारी को नवोन्मेषी कृषक पुरस्कार से नवाजा गया. यह पुरस्कार पूर्व निदेशक आईएआरआई, नई दिल्ली ने दिया गया.

कृषि गतिविधियों में प्राकृतिक संसाधन संरक्षण के माध्यम से यह काम भेड़ा गांव में किया गया. निकरा परियोजना के तहत सूखा/वर्षाधीत क्षेत्र में संकलित अंगीकृत गांव भेड़ा में वंदना कुमारी ने फसल उत्पादन में सूखारोधी प्रभेद सबौर दीप और सबौर अर्धजल का क्षैतिज हस्तांतरण करने के साथसाथ सघन बागबानी अमरूद, डेयरी, सालभर हरा चारा उपलब्धता, सामुदायिक बीज बैंक, टी सामुदायिक पशु स्वास्थ्य चिकित्सा केंद्र, पोषक वाटिका जैसी अनेक नवोन्मेषी कृषि काम को अंजाम दिया है, जिस का परिणाम भेड़ा गांव एवं आसपास के गांवों में देखने को मिलता है.

वंदना कुमारी ने बड़े पैमाने पर अपने गांव एवं आसपास के गांवो में इकाई विकसित कराई है. इन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र, बांका से प्रशिक्षण प्राप्त कर के अभी कई विषयों पर मास्टर ट्रेनर बन कर प्रगतिशील किसानों एवं महिला किसानों के बिहार के अलावा दूसरे प्रदेशों में प्रशिक्षित करने का काम करती हैं. कृषि एवं पशुपालन के साथसाथ समाजिक काम जैसे छोटे बच्चों का पढ़ाना, सिलाई, कटाई में ग्रामीण युवतियों को प्रशिक्षण देना आदि जैसे काम भी उन के द्वारा किए जाते हैं.

इस पुरस्कार के पूर्व वंदना कुमारी को बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, आत्मा, बिहार सरकार आदि जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं. वंदना कुमारी ने कृषि मशीनीकरण, यंत्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए प्रत्यक्षण के तौर पर निकरा परियोजना के माध्यम से लोगों से जागरूक करने का काम भी किया है. इसी कार्यक्रम में बिहार के एक प्रगतिशील किसान महादेव सैनी, मधुबनी को भी इसी पुरस्कार से उन के उत्कृष्ट कार्यों के लिए नवाजा गया है.

कृषि विश्वविध्यालय में आवेदन (Application) की बढ़ी तारीख

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में विभिन्न स्नातक, स्नातकोत्तर व पीएचडी पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए उम्मीदवार अब 17 जून, 2024 तक आवेदन कर सकेंगे. उल्लेखनीय है कि विश्वविद्यालय द्वारा आवेदन करने की अंतिम तिथि 10 जून निर्धारित की गई थी. इसी प्रकार प्रवेश परीक्षा की तारीख में भी बदलाव किया गया है. अब 22 जून को होने वाली प्रवेश परीक्षा 30 जून को होगी और 30 जून को होने वाली प्रवेश परीक्षा 14 जुलाई को आयोजित की जाएगी. विभिन्न पाठ्यक्रमों की प्रवेश परीक्षा संबंधित विस्तृत जानकारी विश्वविद्यालय की वैबसाइट  hau.ac.in  और admissions.hau.ac.in पर उपलब्ध हैं.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने यह जानकारी देते हुए बताया कि विश्वविद्यालय में इन दिनों शैक्षिणक सत्र 2024-25 के लिए आवेदन प्रक्रिया जारी है, जिस में कृषि महाविद्यालय, मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय, बायोटैक्नोलौजी महाविद्यालय, सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय, कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय एवं इंस्टीट्यूट औफ बिजनैस मैनेजमेंट एंड एग्रीप्रेन्योरशिप गुरूग्राम में विभिन्न स्नातक व स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में दाखिले किए जाएंगे.

पीजी डिप्लोमा प्रोग्राम में होंगे दाखिले

कुलसचिव डा. बलवान सिंह मंडल ने बताया कि पीजी डिप्लोमा प्रोग्राम में कम्यूनिकेशन स्किल इन इंगलिश, इंगलिशहिंदी ट्रांसलेशन, रिमोट सेंसिंग एंड जियोग्राफिकल इनफोरमेशन सिस्टम एप्लीकेशन इन एग्रीकल्चर एंड इन्वायरमेंट कोर्स भी शामिल है.

उन्होंने यह भी बताया कि उपरोक्त पाठ्यक्रमों में आवेदन के लिए उम्मीदवार का हरियाणा प्रदेश का स्थायी निवासी होना अनिवार्य है. औनलाइन आवेदन फार्म एवं प्रोस्पेक्टस विश्वविद्यालय की वैबसाइट पर उपलब्ध हैं. सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार के लिए आवेदन की फीस 1500 रुपए, जबकि अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, पीडब्ल्यूडी (दिव्यांग) उम्मीदवारों के लिए 375 रुपए होगी.

इस के अलावा उपलब्ध सीटों की संख्या, महत्वपूर्ण तिथियां, न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता, दाखिला प्रक्रिया आदि संबंधी सभी जानकारियां विश्वविद्यालय की वैबसाइट hau.ac.in और admissions.hau.ac.in पर दिए गए प्रोस्टपेक्टस में उपलब्ध हैं.

समय हो कम तो ड्रम सीडर (Drum Seeder) से करें धान की सीधे बोआई

धान की खेती आमतौर पर धान की पौध की रोपाई कर के की जाती है, लेकिन इस काम के लिए कुशल मजदूरों की कमी के चलते धान की रोपाई में अधिक खर्चा व समय भी अधिक लगता है. सही समय पर मजदूर नहीं मिलना भी एक बड़ी समस्या है. मजदूर मिलते भी हैं, तो अधिक मजदूरी की मांग होती है, जिस से धान की खेती की लागत बढ़ जाती है. ऐसी स्थिति आने  पर अब किसान खेत में धान की छिटकवां विधि से सीधे बोआई करने लगे हैं या बीज की बोआई के लिए ड्रम सीडर जैसे कृषि यंत्रों का भी सहारा लेने लगे हैं.

धान की इस तरह छिटकवां विधि से बोआई करने पर खेत में जमे हुए धान के पौधे एकसमान नहीं उगते या पौधों के बीच कहीं अधिक दूरी तो कहीं कम दूरी पर पौधे उगते हैं. पौधों के उगने की इस असमानता की वजह से धान की खेती से अच्छी उपज  नहीं मिल पाती है.

इस समस्या का समाधान तैयार किए गए  खेत में धान की ड्रम सीडर यंत्र  से सीधे बोआई  की जा सकती है.  ड्रम सीडर कृषि यंत्र से धान की  सीधी बोआई करने के लिए खेत एकसमान और समतल होना चाहिए. खेत की मिट्टी की सही मल्चिंग भी होनी चाहिए. इस तरह की बोआई के लिए खेत में अधिक पानी नहीं भरा जाता.

ड्रम सीडर द्वारा लेव किए खेत में धान की सीधी बोआई तकनीक में कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए :

ड्रम सीडर से धान बोने का समय : 

ड्रम सीडर द्वारा धान बीज को अंकुरित कर के बोया जाता है. धान की सीधी बोआई मानसून आने से  लगभग एक सप्ताह पहले कर लेनी चाहिए, जिस से मानसूनी बरसात होने से पहले ही धान अंकुरित हो कर खेत में पौधा बन जाए, अन्यथा  बरसात शुरू होने के बाद खेत में अधिक जलभराव होने पर धान का पौधा नहीं पनप पाएगा या बीज सड़गल जाएगा.

खेत का समतल होना जरूरी और पानी न भरा हो :

एकसार खेत  न होने पर धान के बीज का जमाव एकसमान नहीं हो पाता. खेत से पानी की निकासी  भी सही होनी चाहिए, क्योंकि खेत में अधिक वर्षा का पानी भरा होने पर अंकुरित पौधों के मरने की संभावना कहीं ज्यादा हो जाती है.

ड्रम सीडर से बोआई के समय रखें ध्यान :

ड्रम सीडर यंत्र से धान की बोआई के समय खेत में दोढाई इंच से अधिक पानी न भरा हो, तैयार खेत में केवल इतना ही पानी हो, जिस से ड्रम सीडर यंत्र को खेत में आसानी से चलाया जा सके.

तैयार खेत में 5-6 घंटे के भीतर ही ड्रम सीडर द्वारा धान की सीधी बोआई कर देनी चाहिए. इस से अधिक देरी होने पर धान की खेत की मिट्टी कड़ी होने लगती है, जिस से धान बीज रोपण के समय कठिनाई और धान के पौधों की शुरुआती बढ़वार में कमी आ सकती है, जिस से उपज में कमी हो सकती है.

प्रजातियां : 

धान की जल्दी तैयार होने वाली प्रजातियों में नरेंद्र-97, मालवीय धान-2 (एचयूआर-3022) आदि हैं. मध्यम व देर से पकने वाली प्रजातियों में नरेंद्र-359, सूरज-52 आदि हैं.

खरपतवार की रोकथाम :

ड्रम सीडर द्वारा धान की सीधी बोआई तकनीक में खरपतवार प्रबंधन भी आसान हो जाता है. कतार में बोआई होने के कारण मजदूरों द्वारा खुरपी से निराई आसानी से हो सकती है या उपयुक्त निराईगुड़ाई यंत्र का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. पहली निराई बोआई के लगभग 20 दिन बाद, दूसरी निराई 40 दिन के बाद करनी चाहिए. साथ ही, खेत का मुआयना करें, जब लगे कि खरपतवार पनप रहे हैं, तो उन को हटाने का काम करें.

निराईगुड़ाई यंत्र :

आज हाथ से चलने वाले अनेक निराईगुड़ाई यंत्र बाजार में मौजूद हैं, जो सस्ते होने के साथसाथ अच्छा काम भी करते हैं. खेती में उन का इस्तेमाल आसानी से किया जा सकता है. इस के अलावा जरूरत हो तो खरपतवार की रोकथाम के लिए रासायनिक तरीके भी अपनाए जा सकते हैं.

ड्रम सीडर से धान की बोआई करने से लाभ :

ड्रम सीडर से बोआई करने पर  मजदूरों की लागत में कमी आती है, पानी की बचत होती है और धान फसल तैयार होने की अवधि में भी कमी आती है, जिस से अगली फसल  रबी में गेहूं की बोआई समय से हो सकती है.

फायदेमंद है ड्रम सीडर विधि :

किसी कारणवश समय पर धान की नर्सरी तैयार न हो पाए, तो ड्रम सीडर से धान की सीधे बोआई की जा सकती है. ड्रम सीडर से धान की बोआई कतार में होने के कारण खरपतवार नियंत्रण में आसानी होती है.

ड्रम सीडर मानवचालित यंत्र है. इसे चलाने के लिए किसी अन्य ऊर्जा स्रोत की जरूरत नहीं होती. कीमत में कम, रखरखाव आसान और इस्तेमाल करना भी आसान है. यही इस की खासियत है, जो किसान के काम को आसान करती है.

पर्यावरण रक्षा (Environmental Protection) के नाम पर पेड़ लगाने का दिखावा

आजादी के बाद से अब तक हम ने देश में जितने भी पौधे रोपित किए, अगर उन में से  50 फीसदी भी जिंदा होते और जंगल बचाए जाते, तो हरित संपदा में हम  दुनिया में नंबर वन होते. यहां मनुष्य को खड़े होने के लिए जगह नहीं बचती.

डेढ़ 2 महीने की चुनावी कवायद के बाद देश की  सरकार बनने की आपाधापी के दरमियान 5 जून का ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ कब दबे पांव आया और निकल लिया, यह आम अवाम को तो पता भी न‌ चला. किंतु सोशल मीडिया व दूसरे दिन के समाचारपत्रों से पता चला कि देशभर में विभिन्न संस्थाओं, सरकारी कार्यालयों में हीट वेव में भी जबरदस्त वृक्षारोपण कार्य संपन्न हुआ है.

पिछले 30 वर्षों से हम खुद पेड़ लगा रहे हैं, पर आज तक यह नहीं समझ पाए कि हमारे देश के किस विद्वान के दिमाग की उपज थी कि यहां ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ 5 जून के दिन ही हो और इस दिन वृक्षारोपण किए जाएं, जबकि विशेषज्ञों का मत है कि असिंचित क्षेत्रों में वृक्षारोपण का आदर्श समय जुलाईअगस्त माह होना चाहिए.

अब चूंकि यह रिवाज बन गया है, इसलिए शासकीय कार्यालयों में, स्कूलों में, अधिकारी, नेता, शिक्षक, बच्चे सभी 5 जून को वृक्षारोपण कर रहे हैं, वन विभाग इस में सब से आगे है,  जबकि देश के ज्यादातर हिस्सों में अभी भी नौतपा का ताप उतरा नहीं है. कई जगहों पर लू चल रही है.

लू से बचने के तमाम तरीकों की जानकारी रखते हुए पढ़ेलिखे जानकार तमाम डाक्टर एवं दवाओं के रहते भी मौत के मुंह में समा रहे हैं. ऐसी हालत में 5 जून को लगाए गए ये नन्हे पौधे 48 घंटे भी जिंदा रह पाएंगे, यह कहना कठिन है.

यह भी सच है कि भारत में मानसून आमतौर पर  15 जून के बाद ही सक्रिय हो पाता है, पर ‘पर्यावरण दिवस’ के नाम पर सरकारी वृक्षारोपण की खानापूर्ति 5 जून को ही होना अनिवार्य है.

इस काम में हमारे वन विभाग हर साल सब को पीछे छोड़ देते हैं. स्वनाम धन्य वन विभाग को इस में सब से आगे होना भी चाहिए, क्योंकि देश के हजारों साल पुराने व जैव विविधता से समृद्ध लगभग सभी जंगलों को तो इन्होंने काट कर, कटवा कर, बेच कर फूंकताप लिया है. इन की सफाईपसंदगी का यह आलम है कि जंगलों में ठूंठ तक नहीं छोड़ा गया है. इधर कुछेक दशकों से वृक्षारोपण नामक नए चारागाह को जंगलों की रक्षा के नाम पर बनी ये बाड़ें निर्द्वंद्व भाव से चट करते जा रही हैं.

हर साल नए पेड़ लगाने, पुराने वनों का सुधार, परती भूमि संरक्षण आदि तरहतरह की योजनाएं बना कर सरकार से जनता के पैसे लो, वृक्षारोपण की नौटंकी करो, फिर उन की देखरेख भी मत करो, ताकि सारे पौधे मर जाएं. अगले साल फिर योजना बनाओ, फिर पैसे लो, फिर वृक्षारोपण की नौटंकी करो. यही इस साल भी हुआ.

वृक्षारोपण की फोटो खिंचवा कर सोशल मीडिया पर डालना एक रिवाज बन गया है, बस किसी तरह समाचारपत्र में यह छप जाए कि अमुक ने पौधा रोप कर देश के पर्यावरण पर एहसान कर दिया है, अब आगे पौधा पनपे या सूख जाए.

हमारे देश में सरकारी वृक्षारोपण की हालत यह है कि आजादी के बाद वृक्षारोपण कर जितने पौधे लगाए गए, उन में से 50 फीसदी भी अगर जिंदा रह जाते तो या देश विश्व का सब से हराभरा  देश होता.

5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के रूप में हम 1973 से लगातार इसे मना रहे हैं. हर साल पर्यावरण की रक्षा के लिए विभिन्न काम निर्धारित किए जाते हैं, जिस पर हर देश से पूरे वर्ष प्राथमिकता के आधार पर ठोस काम करने की अपेक्षा की जाती है.

सऊदी अरब ‘पर्यावरण दिवस समारोह 2024’ की मेजबानी कर रहा है. पर्यावरण की रक्षा के लिए इस वर्ष भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखे से निबटने पर संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य अपना ध्यान केंद्रित करते हुए बहुद्देशीय योजनाओं पर काम कर रहे हैं. हम इस में क्याक्या कर रहे हैं, यह सोचने का अलग विषय है. हमारे देश में पर्यावरण रक्षा के नाम पर केवल पेड़ लगाने की नौटंकी मात्र की जाती है. लगाने के बाद इन पेड़ों को इन के हाल पर छोड़ दिया जाता है. इन में से ज्यादातर पौधे मर जाते हैं.

पेड़ों के मामले में सब से धनी देश कनाडा में प्रति व्यक्ति पेड़ों की संख्या 10,163 है, वहीं हमारे देश में पिछले 7 दशकों की सतत नौटंकी के बावजूद प्रति व्यक्ति महज 28  पेड़  बचे हैं. विश्व में सब से गरीब देशों में शुमार किए जाने वाला देश इथोपिया भी हरित संपदा के मामले में प्रति व्यक्ति 143 पेड़ों के साथ हम से 5 गुना ज्यादा समृद्ध है.

इस पर्यावरण दिवस की खानापूर्ति करने के लिए हम ने भी पीपल का पेड़ अपने “इथनो मैडिको हर्बल गार्डन” में लगाया है.

खैर, हम ने जो पीपल का पौधा रोपा है, वह तो हम  हर हाल में जिंदा रख लेंगे, पर क्या आप सभी, जिन्होंने इस दिन पौधों का रोपण किया है, क्या ईमानदारी से वादा करेंगे कि आप ने इस बार जितने पौधे रोपे हैं, उन्हें हर हाल में जिंदा रखेंगे?

पूसा संस्थान में ‘नवोन्मेषी किसान सम्मेलन’ का आयोजन

नई दिल्ली : राजधानी नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा संस्थान) के डा. बीपी पाल सभागार में 6 जून, 2024 को देशभर के प्रगतिशील किसानों का सम्मेलन होने जा रहा है, जिस में इस वर्ष 6 राज्यों के 7 किसानों को ‘अध्येता किसान’ यानी फैलो फार्मर और 22 राज्यों के 33 किसानों को ‘नवोन्मेषी किसान’ यानी इनोवेटिव फार्मर पुरस्कार  से सम्मानित किया जाएगा. इस में 8 राज्यों से 9 महिला किसान, 6 आदिवासी किसान  शामिल हैं.

सभी पुरस्कृत किसानों ने खेती के विभिन्न मौडल तैयार कर अपनेअपने क्षेत्रों में स्थानीय रूप से समेकित कृषि प्रणाली का विकास किया है. इस में खाद्यान्न फसलें, बागबानी आदि शामिल किया है. कई सफल किसानों ने फसल विविधीकरण को अपना कर अपनी आय को बढ़ाया है.

इस के अलावा हाईटैक कृषि पद्धतियों जैसे संरक्षित खेती, गैरपारंपरिक ऊर्जा स्रोत, सोलर प्रणालियों, जल संसाधन के संरक्षण एवं उपयोग दक्षता बढ़ाने वाली तकनीकों को अपनाया. विभिन्न किसानों ने आईपीएम, उन्नत कृषि मशीनरी और हाइड्रोपोनिक्स इत्यादि को अपनी खेती में शामिल किया है.

पूसा संस्थान (Pusa Institute)

अनेक किसानों ने उत्पादन के साथसाथ प्रसंस्करण यानी प्रोसैसिंग, मूल्य संवर्धन और विपणन के लिए भी नवाचार किए हैं. किसानों ने प्रमुख रूप से खाद्यान्न फसलों के बीज उत्पादन के क्षेत्र में बहुत योगदान किया. इस में सतत कृषि की पद्धतियों को अपनाया, जिस में प्रमुख रूप से जैविक नाशीजीव, जैव उर्वरक, केंचुआ खाद, बायोगैस स्लरी के उपयोग के साथसाथ उत्पादन इकाइयों का निर्माण किया. फसलों के अवशेष प्रबंधन के लिए पूसा डीकंपोजर का इस्तेमाल किया और पराली से खाद बनाई. किसानों की एक बड़ी उपलब्धि यह रही है कि उन्होंने इन उन्नत तरीकों को न स्वयं अपनाया, बल्कि साथी किसानों को भी हस्तांतरित किया. उन्होंने किसान उत्पादक संगठन, स्वयं सहायता समूह भी बनाया और रोजगार भी पैदा किया.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान हर साल लगभग 40 किसानों को चिह्नित कर सम्मानित करता है. संस्थान में साल 2008 से नवोन्मेषी किसान सम्मान और साल 2012 से अध्येता किसान सम्मान की शुरुआत की गई.  अब तक देशभर के विभिन्न राज्यों के 400 से अधिक किसानों को भाकृअसं-अध्येता किसान और नवोन्मेषी किसान के रूप में सम्मानित किया जा चुका है.

इस अवसर पर 4 पद्मश्री से सम्मानित किसानों को भी आमंत्रित किया गया. इस एकदिवसीय कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण ‘किसान, वैज्ञानिक और विद्यार्थी संवाद’ है.

इस कार्यक्रम में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उपमहानिदेशक (कृषि प्रसार) डा. यूएस गौतम, पूसा संस्थान के निदेशक डा. एके सिंह, संस्थान के सभी संयुक्त निदेशक और सभी संभागाध्यक्ष एवं कृषि छात्र भाग ले रहे हैं.

इस ज्ञानमंथन से जहां एक ओर सम्मानित किसानों को परस्पर संवाद करने का मौका मिल रहा है, वहीं विशेषज्ञों को भावी अनुसंधान की दिशा तय करने और विद्यार्थियों को भी प्रेरणा मिलेगी.

यह बहुआयामी कार्यक्रम संस्थान के निदेशक डा. एके सिंह और संयुक्त निदेशक (प्रसार) डा. आरएन पड़ारिया भाकृअसं, नई दिल्ली के नेतृत्व में आयोजित किया जा रहा है.

किसान पाठशाला में मिल रही कृषि तकनीकी (Agricultural Technology) जानकारी

बस्ती : खरीफ 2024 में बस्ती मंडल के समस्त जनपद में ग्राम पंचायत स्तर पर गोष्ठी/किसान पाठशाला का आयोजन प्रत्येक ग्राम पंचायत पर 1 जून से 14 जून 2024 तक जारी है. यह जानकारी देते हुए संयुक्त कृषि निदेशक अविनाश चंद्र तिवारी ने बताया कि दलहन विकास, तिलहन विकास, मिलेट्स पुनरुद्धार त्वरित मक्का विकास योजना एवं आरकेबीवाई योजना के अंतर्गत बस्ती जिले में 677, संत कबीर नगर में 433 एवं सिद्धार्थनगर में 654 किसान पाठशालाओं का आयोजन कराया जाना है.

प्रत्येक किसान पाठशाला में 80 से 100 किसानों की सहभागिता के साथ जनप्रतिनिधियों, एफपीओ के सदस्यों की प्रतिभागिता कराई जानी है.

उन्होंने बताया कि प्रत्येक ग्राम पंचायत के लिए 2 मुख्य खरीफ फसलों जो फसल बीमा के लिए अधिसूचित हो, को चिन्हांकित कर किसानों को फसल उत्पादन नवीनतम तकनीकी की जानकारी दी जाएगी.

किसान पाठशाला में उस विकास खंड में पुरस्कृत/प्रगतिशील किसान के द्वारा अधिक उत्पादन करने के संबंध में बात करा कर किसानों को एफपीओ के गठन/पराली प्रबंधन/डिजिटल क्राप सर्वे/आपदा प्रबंधन/प्राकृतिक खेती धान की डीएसआर विधि दलहन, तिलहन, मक्का उत्पादन तकनीकी, कृषि विभाग की विभिन्न योजनाएं जैसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, सबमिशन औन एग्रीकल्चर ऐक्सटेंशन, सबमिशन औन एग्रीकल्चर मेकैनाइजेशन, पीएम कुसुम (सोलर पंप), पीएम किसान आदि एवं सहयोगी विभाग उद्यान, मत्स्य, पशुपालन, गन्ना, रेशम आदि विभागों द्वारा संचालित योजनाओं और चिन्हित फसल उत्पादन की तकनीकी जानकारी दी जाएगी. सुविधानुसार गोष्ठी/पाठशाला में ड्रोन का प्रदर्शन और उस के तकनीकी का प्रचारप्रसार भी कराया जाएगा.

उन्होंने किसानों से कहा है कि अपने जनपद के कृषि विभाग के अधिकारीयों/कर्मचारियों से संपर्क कर निर्धारित तिथि को ग्राम पंचायत स्तर पर गोष्ठी/किसान पाठशाला में प्रतिभाग करें, जिस से विभागीय योजनाओं के साथसाथ कृषि में उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए नईनई तकनीकी जानकारी प्राप्त कर सके.

धान थ्रैशर मशीन (Paddy thresher machine) को मिला पेटेंट

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक और उपलब्धि को विश्वविद्यालय के नाम किया है. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई ड्रायर, डी हस्कर और पौलिशर के साथ एकीकृत धान थ्रैशर मशीन को भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय की ओर से पेटेंट मिल गया है.

विश्वविद्यालय के कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह मशीन किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होगी. मशीन का आविष्कार महाविद्यालय के फार्म मशीनरी और पावर इंजीनियरिंग विभाग के डा. मुकेश जैन, आईसीएआर के पूर्व एडीजी डा. कंचन के. सिंह और आईआईटी दिल्ली की प्रो. सत्या की अगुआई में किया गया. इस मशीन को भारत सरकार की ओर से इस का प्रमाणपत्र मिल गया है.

वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत का नतीजा है विश्वविद्यालय की उपलब्धियां

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि विश्वविद्यालय को लगातार मिल रही उपलब्धियां यहां के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत का ही नतीजा हैं. विकसित की गई इस नई तकनीक के लिए पेटेंट मिलने पर उन्होंने सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी.

उन्होंने कहा कि यह बहुत ही गौरव की बात है कि इस तरह की तकनीकों के विकास में सकारात्मक प्रयासों को विश्वविद्यालय हमेशा प्रोत्साहित करता रहता है.

वैज्ञानिकों की सराहना करते हुए उन्होंने भविष्य में भी इसी प्रकार निरंतर प्रयास जारी रखने की अपील की.

उन्होंने आगे कहा कि चावल लोगों के मुख्य खाद्य पदार्थों में शामिल है. अब किसान खेत में ही मशीन का उपयोग कर के धान के दानों को फसल से अलग कर सकेंगे, सुखा सकेंगे, भूसी निकाल सकेंगे (भूरे चावल के लिए) और पौलिश कर सकेंगे (सफेद चावल के लिए). पहले किसानों को धान से चावल निकालने के लिए मिल में जाना पड़ता था. अभी तक खेत में ही चावल निकालने की कोई मशीन नहीं थी. अब किसान अपने घर के खाने के लिए भी ब्राउन राइस (भूरे चावल) निकाल सकेंगे. सफेद चावल की तुलना में इस में ज्यादा पोषक तत्व होते हैं, क्योंकि यह किसी रिफाइन या पौलिश प्रक्रिया से नहीं गुजरता. सिर्फ इस के ऊपर से धान के छिलके उतारे जाते हैं. इस से शरीर को पर्याप्त मात्रा में कैलोरी मिलती है. साथ ही, यह फाइबर, विटामिन और मिनरल्स का एक अच्छा स्रोत है. ब्राउन राइस खाने से कोलेस्ट्रोल नियंत्रित रहता है. यह मधुमेह, वजन और हड्डियों को तंदुरुस्त रखने के साथसाथ रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.

धान थ्रैशर की मुख्य विशेषताएं

कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने बताया कि यह मशीन 50 एचपी ट्रैक्टर के लिए अनुकूल है. ड्रायर में 18 सिरेमिक इंफ्रारेड हीटर (प्रत्येक 650 वाट) शामिल है. इस मशीन की चावल उत्पादन क्षमता 150 किलोग्राम प्रति घंटा तक पहुंच जाती है. इस मशीन की अनुमानित कीमत 6 लाख रुपए है.

इस अवसर पर ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, फार्म मशीनरी और पावर इंजीनियरिंग विभाग की अध्यक्ष डा. विजया रानी, डा. अमरजीत कालड़ा, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य, डा. अनिल सरोहा व श्याम सुंदर शर्मा उपस्थित रहे.

तिलहनी फसलों (Oilseed Crops) पर अनुसंधान , बढ़ेगी पैदावार

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने 31 मई, 2024 को तिलहनी फसलों में अनुसंधान को गति प्रदान करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान, राजेंद्र नगर, हैदराबाद से सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर किए. इस अवसर पर डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने कहा कि हमारे राष्ट्र ने खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर ली है, परंतु तिलहन व दलहन फसलों में आज भी हमें उत्पादन बढ़ाने की जरूरत है. हमारी संपूर्ण जनसंख्या को तिलहन व दलहन आपूर्ति के लिए हमें इन का आयात करना पड़ता है.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए अधिक उपज देने वाली किस्मों की आवश्यकता बताई. साथ ही, उन्होंने कहा कि तिलहनी फसलों के पैकेज एंड प्रैक्टिस में सुधार अत्यंत आवश्यकता है एवं उच्च कोटि के अनुसंधान द्वारा तिलहनी फसलों के हर पहलू पर नई तकनीकी किसानों को उपलब्ध कराई जानी चाहिए.

इस अवसर पर डा. रवि कुमार माथुर, निदेशक, भारतीय तिलहन अनुसंधान केंद्र ने कहा कि इस सहमतिपत्र के हस्ताक्षर के बाद दोनों ही संस्थाओं में तिलहनी फसलों पर संयुक्त रूप से अनुसंधान किए जा सकेंगे. दोनों संस्थाओं के विशेषज्ञ, वैज्ञानिक एवं विद्यार्थी उपलब्ध संसाधनों का लाभ उठा सकेंगे.

सहमतिपत्र के अनुसार, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के छात्र हैदराबाद जा कर तिलहनी फसलों पर उच्च कोटि का अनुसंधान वहां के वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में कर सकेंगे. डा. अरविंद वर्मा, अनुसंधान निदेशक, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने इस अवसर पर सहमतिपत्र की विभिन्न तकनीकी पहलुओं पर चर्चा की. उन्होंने बताया कि भारतीय तिलहन अनुसंधान केंद्र मुख्य रूप से 6 तिलहनी फसलों जैसे अरंडी, अलसी, तिल, कुसुम, सूरजमुखी एवं नाइजर पर अनुसंधान कर रही है.

यह सभी फैसले जलवायु अनुकूलित फैसले हैं और वर्तमान में बढ़ती हुई स्वास्थ्य जागरूकता को देखते हुए इन सभी तिलहनी फसलों की मांग बहुत अधिक है, जिस से कि इन फसलों में अनुसंधान व उत्पादन बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं. ऐसे में इस सहमतिपत्र के अनुसार, दोनों संस्थान अनुसंधान, शिक्षण व प्रसार के क्षेत्र में संयुक्त रूप से काम कर राष्ट्र के तिलहन उत्पादन को बढ़ाने में अपना अतुलनीय योगदान दे सकते हैं. सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर के समय विश्वविद्यालय की वरिष्ठ अधिकारी व परिषद के सदस्य भी उपस्थित रहे.

बंदर के मोतियाबिंद (Cataract) का हुआ सफल आपरेशन

हिसार : लुवास के कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा के मार्गदर्शन में पशु चिकित्सा महाविद्यालय हिसार के पशु शल्य चिकित्सा एवं रेडियोलौजी विभाग में अभी हाल में ही स्थापित पशु नेत्र चिकित्सा इकाई में एक अंधे बंदर का सफलतापूर्वक मोतियाबिंद का आपरेशन किया गया. पूरे हरियाणा में बंदर के मोतियाबिंद की पहली सर्जरी है.

विभागाध्यक्ष डा. आरएन चौधरी ने बताया कि यह बंदर हांसी के मुनीष द्वारा बिजली के करंट से झुलसने के बाद बचाया गया. शुरू में उस के शरीर पर जलने के कई घाव थे. वह चलनेफिरने में असमर्थ था. कई दिनों की सेवा व उपचार के बाद जब बंदर चलने लगा, तो उन्होंने पाया कि बंदर अंधा है. इस के बाद तब बंदर के मालिक उपचार के लिए लुवास के सर्जरी विभाग में लाए.

पशु नेत्र चिकित्सा इकाई में जांच के उपरांत डा. प्रियंका दुग्गल ने पाया कि बंदर की दोनों आंखों में सफेद मोतिया हो गया है. एक आंख में विट्रस भी क्षतिग्रस्त हो चुका था, अतः दूसरे आंख की सर्जरी की गई और सर्जरी के पश्चात बंदर देखने लग गया. बंदर की लौटी रोशनी देख कर पशु प्रेमी मुनीश और उन के साथियों ने सर्जरी टीम का तहेदिल से धन्यवाद किया.

डा. प्रियंका व उन की टीम भी सर्जरी की सफलता से काफी उत्साहित है. कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा, डीन डा. गुलशन नारंग व अनुसंधान निदेशक डा. नरेश जिंदल ने पशु कल्याण व बंदर में फेकोइमलसिफिकेशन द्वारा सफलतापूर्वक मोतियाबिंद की सर्जरी के लिए टीम सर्जरी को बधाई दी एवं भविष्य में पशु चिकित्सा एवं पशु कल्याण में और नए आयाम स्थापित करने का संदेश दिया है.