फलफूल, सब्जी और मधुमक्खीपालन पर फ्री ट्रेनिंग (Free Training)

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान द्वारा 18 से 20 जून तक नर्सरी रेजिंग (फल, फूल, सब्जी) और 24 से 26 जून तक मधुमक्खीपालन पर 3 दिवसीय व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में देश व प्रदेश से किसी भी वर्ग, आयु के इच्छुक महिला व पुरुष भाग ले सकेंगे.

सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान के सहनिदेशक (प्रशिक्षण) डा. अशोक गोदारा ने बताया कि प्रशिक्षण में भाग लेने वाले उम्मीदवारों को विश्वविद्यालय की तरफ से प्रमाणपत्र दिए जाएंगे. प्रशिक्षण के दौरान वैज्ञानिकों द्वारा उत्पादन तकनीकों की जानकारी दे कर युवाओं का कौशल विकास किया जाएगा. व्यावहारिक ज्ञान के लिए प्रशिक्षण से संबंधित स्थापित इकाइयों का भी भ्रमण करवाया जाएगा.

यह प्रशिक्षण नि:शुल्क होगा. इच्छुक युवक व युवतियां पंजीकरण के लिए सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान में उपर्युक्त प्रशिक्षण की तारीख को ही सुबह 7 बजे पहुंच कर अपना पंजीकरण करवा कर प्रशिक्षण में भाग ले सकते हैं.

यह संस्थान विश्वविद्यालय के गेट नंबर-3, लुदास रोड पर स्थित है. प्रशिक्षण में प्रवेश पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर दिया जाएगा. पंजीकरण के लिए उम्मीदवारों को एक फोटो व आधारकार्ड की फोटोकौपी साथ ले कर आनी होगी.

किसान सम्मान निधि के तहत 20,000 करोड़  की 17वीं किस्त जारी

नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पीएम-किसान के तहत लगभग 20,000 करोड़ रुपए की 17वीं किस्त जारी करने के संबंध में जानकारी दी. प्रधानमंत्री किसानों को पीएम किसान योजना की 17वीं किस्त जारी करने और कृषि सखियों के रूप में 30,000 से अधिक स्वयं सहायता समूहों को प्रमाणपत्र प्रदान करने के लिए 18 जून, 2024 को वाराणसी का दौरा किया.

यह कार्यक्रम केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उत्तर प्रदेश सरकार के कई अन्य मंत्री सहित कई प्रतिष्ठित व्यक्ति उपस्थित रहे.

अपने संबोधन में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कृषि जैसे महत्वपूर्ण विभाग का दायित्व सौंपने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि विकसित भारत का संकल्प पूरा करने के लिए कृषि सब से महत्वपूर्ण आधार है.

शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव है. आज भी रोजगार के सब से ज्यादा अवसर कृषि के माध्यम से ही सृजित होते हैं.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि आज किसान देश के अन्न के भंडार भर रहा है. पहले भी कृषि और किसान प्रधानमंत्री मोदी की सर्वोच्च प्राथमिकता रही है, जिस के चलते किसानों के कल्याण के लिए अनेकों कदम उठाए गए और अभी भी प्रधानमंत्री मोदी ने पद ग्रहण करने के बाद सब से पहले किसान सम्मान निधि की 17वीं किस्त किसानों को जारी करने के लिए हस्ताक्षर किए.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने सब से पहले कार्यक्रम में पीएम किसान की बहुप्रतीक्षित 17वीं किस्त, 20,000 करोड़ रुपए से अधिक की राशि, 9.26 करोड़ से अधिक लाभार्थी किसानों को प्रधानमंत्री द्वारा वाराणसी से बटन के एक क्लिक से वितरित की गई.

शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि किसान सम्मान निधि 24 फरवरी, 2019 को शुरू की गई एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, जिस का उद्देश्य उच्च आय की स्थिति के कुछ बहिष्करण मानदंडों के अधीन सभी भूमिधारक किसानों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करना है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि लाभार्थियों के पंजीकरण और सत्यापन में पूरी तरह से पारदर्शिता बनाए रखते हुए, भारत सरकार ने देशभर में अब तक 11 करोड़ से अधिक किसानों को 3.04 लाख करोड़ रुपए से अधिक का वितरण किया है और इस रिलीज के साथ ही, योजना की शुरुआत से लाभार्थियों को हस्तांतरित कुल राशि 3.24 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो जाएगी.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि 18 जून को अन्नदाताओं की खुशहाली के लिए कई केंद्रीय मंत्री किसानों से बात करने और उन में विभाग की विभिन्न योजनाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए 50 केवीके का दौरा करेंगे और वर्चुअली कार्यक्रम से जुड़ेंगे.

उन्होंने यह भी कहा कि देशभर से लगभग 2.5 करोड़ किसान इस कार्यक्रम में शामिल होंगे. किसानों में जागरूकता पैदा करने के लिए देशभर से 732 कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), 1.0 लाख से अधिक प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां और 5.0 लाख कौमन सर्विस सैंटर (सीएससी) भी इस कार्यक्रम में भाग लेंगे.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री  का संकल्प है 3 करोड़ लखपति दीदी बनाने का, जिस में से लगभग एक करोड़ लखपति दीदी बन चुकी हैं, 2 करोड़ और बनानी हैं. उसी का एक आयाम है कृषि सखी.

उन्होंने कहा कि किसानों की सहायता के लिए कई बहनों को प्रशिक्षण दे कर तैयार किया है, ताकि वे खेती में अलगअलग कामों के माध्यम से किसानों का सहयोग कर सकें और लगभग 60-80 हजार रुपए तक की सालाना अतिरिक्त आय अर्जित कर पाएं.

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पीएम किसान की किस्त जारी करने के कार्यक्रम के साथसाथ प्रधानमंत्री मोदी 30,000 से अधिक स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को कृषि सखियों के रूप में प्रमाणपत्र भी प्रदान करेंगे और एक प्रतीक के रूप में प्रधानमंत्री 5 कृषि सखियों को प्रमाणपत्र वितरित करेंगे.

उन्होंने कहा कि कृषि सखी कार्यक्रम को चरण-1 में 12 राज्यों गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, ओडिशा, झारखंड, आंध्र प्रदेश और मेघालय में शुरू किया गया है. आज तक, 70,000 में से 34,000 से अधिक कृषि सखियों को पैराएक्सटेंशन वर्कर के रूप में प्रमाणित किया जा चुका है.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कृषि सखियों को कृषि पैराविस्तार कार्यकर्ताओं के रूप में इसलिए चुना जाता है, क्योंकि वे विश्वसनीय सामुदायिक संसाधन व्यक्ति और अनुभवी किसान हैं. कृषि सखियों को पहले से ही विभिन्न कृषि पद्धतियों में व्यापक प्रशिक्षण प्राप्त है, जिस से वे साथी किसानों को प्रभावी ढंग से सहायता और मार्गदर्शन देने के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित हैं.

शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कृषि में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए कृषि और ग्रामीण विकास मंत्रालय ने एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए हैं.

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) मोड के माध्यम से देशभर के किसानों के परिवारों के बैंक खातों में हर 4 महीने में 3 समान किस्तों में 6,000 रुपए हर साल का वित्तीय लाभ हस्तांतरित किया जा रहा है, तो वहीं प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत 4 करोड़ से ज्यादा किसानों को आर्थिक सुरक्षा की गारंटी दी गई है.

उन्होंने प्रसन्नता जताई कि वैश्विक कीमतों में उछाल के बावजूद भी किसानों को 11 लाख करोड़ की सब्सिडी उपलब्ध करा कर सस्ती दरों पर खाद उपलब्ध कराने का काम निरंतर जारी है.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण डीडी, डीडी किसान, माय गोव, विकास खंड कार्यालय से ले कर ग्राम पंचायतों, यूट्यूब, फेसबुक, अलगअलग कृषि विज्ञान केंद्रों में और देशभर के 5 लाख से अधिक कौमन सर्विस पर भी किया जाएगा.

उन्होंने किसानों से अपील की कि वे इस कार्यक्रम में किसी भी माध्यम से सीधे भाग ले कर कार्यक्रम से और प्रधानमंत्री मोदी से जुड़ें. कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सचिव मनोज आहूजा, कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव  हिमांशु पाठक भी उपस्थित रहे.

किसानों की तरक्की और कृषि उत्पादन व गुणवत्ता पर करें फोकस

नई दिल्ली : 12 जून 2024 को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कृषि भवन में बैठक ले कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्प अनुसार 100 दिनों की कृषि कार्ययोजना के संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों से विस्तार से चर्चा की.

इस दौरान उन्होंने अधिकारियों से कहा कि वे अपना पूरा फोकस किसानोन्मुखी कार्यों पर करें, ताकि देश के किसानों और कृषि क्षेत्र के निरंतर विकास के लिए तेजी से काम किया जा सके.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सरकार के तीसरे कार्यकाल में, पहले 100 दिनों की विभागीय कार्ययोजना के सभी पहलुओं को समझने के साथ ही देश के कृषि क्षेत्र की मजबूती और किसानों के दुखदर्द को कम करने के लिए सशक्तता के साथ कदम उठाने के लिए दिशानिर्देश दिए.

उन्होंने कहा कि हमारे किसान भाइयोंबहनों को गुणवत्तापूर्ण खादबीज आदि आदानों की उपलब्धता प्राथमिकता से सुनिश्चित की जानी चाहिए, इस संबंध में उन्हें कहीं कोई परेशानी नहीं आनी चाहिए, इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस बात पर जोर दिया कि देश में कृषि उत्पादन व उत्पादकता बढ़ना चाहिए, साथ ही हम अपनी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के अलावा दुनिया के अन्य देशों को भी जरूरत के अनुसार गुणवत्तापूर्ण कृषि उत्पाद निर्यात कर सकें, ऐसी ठोस कार्ययोजना पर अमल करना चाहिए. बैठक में वरिष्ठ अधिकारियों ने विभागवार योजनाओं की प्रस्तुतियां दीं.

बैठक में कैबिनेट मंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर और भागीरथ चौधरी और कृषि सचिव मनोज अहूजा व कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग (डेयर) के सचिव एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक उपस्थित थे.

यंत्रीकरण और आधुनिक तकनीकियों से कृषि क्षेत्र (Agriculture Sector) में क्रांति संभव

नई दिल्ली: कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आगामी खरीफ सीजन के लिए खाद, बीज एवं कीटनाशकों की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर दिया है.

उन्होंने कृषि भवन में विभिन्न विभागों के अधिकारियों के साथ खरीफ सीजन 2024 की तैयारियों की समीक्षा करते हुए उन्हें फसलों के लिए इनपुट सामग्रियों का समय पर वितरण एवं गुणवत्तापूर्ण आपूर्ति सुनिश्चित करने के निर्देश दिए.

उन्होंने कहा कि आपूर्ति श्रंखला में किसी भी प्रकार की बाधा से बोआई में देरी होती है. इस के परिणामस्वरूप उत्पादन प्रभावित होता है और इसे हर कीमत पर टाला जाना चाहिए.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संबंधित विभाग को स्थिति की निरंतर निगरानी एवं समीक्षा करने के निर्देश दिए, ताकि किसानों को किसी भी प्रकार की कठिनाई न हो. उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि इस वर्ष दक्षिणपश्चिम मानसून का पूर्वानुमान सामान्य से बेहतर है.

इस अवसर पर उर्वरक विभाग, केंद्रीय जल आयोग और भारतीय मौसम विभाग के अधिकारियों ने प्रस्तुतीकरण दिए. कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सचिव मनोज आहूजा और मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री को खरीफ सीजन की तैयारियों के बारे में जानकारी दी.

इस से पहले कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग (डीएआरई) के कामकाज की समीक्षा करते हुए शिवराज सिंह चौहान ने कृषि उत्पादकता में सुधार के लिए खेतों के मशीनीकरण को बढ़ाने का आह्वान किया. साथ ही, कृषि शिक्षा को पेशे से जोड़ने की आवश्यकता पर भी जोर दिया, ताकि कृषि विज्ञान में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले लोग खेती के तरीकों से जुड़ सकें.

उन्होंने किसान विकास केंद्रों (केवीके) की उपयोगिता में सुधार के लिए गहन चर्चा पर जोर दिया, ताकि उन्हें देश के अंतिम किसान तक पहुंचाया जा सके. उन्होंने कहा कि तकनीकी प्रणालियों का प्रभावी इस्तेमाल कृषि क्षेत्र में क्रांति ला सकता है.

उन्होंने वैज्ञानिकों से उत्पादकता में सुधार और नई नस्लों के विकास पर लगातार काम करने का आह्वान किया. साथ ही, यह भी बताया कि प्राकृतिक खेती प्रणालियों को सरल बनाने की आवश्यकता है, ताकि अधिक से अधिक किसान इसे अपनी खेती के लिए अपनाएं.

कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव और भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र (आईसीएआर) के महानिदेशक हिमांशु पाठक ने केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की गतिविधियों और 100 दिवसीय योजना के बारे में जानकारी दी.

उन्होंने बताया कि आईसीएआर की 100 दिवसीय योजना में एक सौ फसल किस्मों का विकास और नई प्रौद्योगिकियों का एक सौ प्रमाणन शामिल है. कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर और भागीरथ चौधरी भी बैठकों के दौरान मौजूद थे.

पटना राजभवन में आयोजित होगा बिहार आमोत्सव (Bihar Mango Festival) -2024

पटना : 15 जून से 16 जून, 2024 को राजभवन पटना में  “बिहार आमोत्सव -2024” का आयोजन बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर और कृषि विभाग, बिहार सरकार द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा.

इस अवसर पर राजभवन पटना में राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर द्वारा  ‘आमोत्सव-2024’ का पोस्टर एवं प्रतीक चिन्ह यानी लोगो का पिछले दिनों लोकार्पण किया गया. इस अवसर पर बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीआर सिंह और निदेशक, उद्यान, अभिषेक कुमार उपस्थित रहे.

आमोत्सव कार्यक्रम में बिहार में पाई जाने वाली आम की विविधता को प्रदर्शित किया जाएगा. कार्यक्रम का सूक्ति वाक्य रखा गया है, “स्वाद, संस्कृति एवं समृद्धि का उत्सव”.

गौरतलब है कि बिहार में आम की विविधता प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, लेकिन इस की जानकारी आम उत्पादक किसानों और अधिकांश लोगों को नहीं है. अतः इस कार्यक्रम के माध्यम से आम के प्रचलित प्रभेदों के अलावा अन्य लुप्त होती किस्मों को भी प्रदर्शित किया जाएगा.

आम उत्पादक और कृषि व्यवसायों के लिए बाजार के अवसर सृजित कर के आम उद्योग के आर्थिक विकास के साथसाथ उद्यमिता करना भी प्रदर्शनी का उद्देश्य है. ग्रामीण युवा को स्वरोजगार उत्पन्न करने के लिए आम प्रसंस्करण यानी प्रोसैसिंग, पैकेजिंग और निर्यात गतिविधियों में निवेश की जानकारी आदि उपलब्ध कराया जाएगा.

बिहार आमोत्सव 24 के आयोजन से बिहार में पाई जाने वाली आम की विभिन्न किस्मों को प्रदर्शित करने का सुनहरा अवसर मिलेगा और आम उत्पादक किसान/वैज्ञानिक अच्छे किस्मों को संग्रहित एवं संरक्षित कर सकेंगे.

बिहार राज्य के सभी क्षेत्रों के फल उत्पादक एवं संबंधित संस्थाएं और नर्सरियां इस में भाग ले सकते हैं. इस प्रदर्शनी में कोई भी प्रतिभागी किसी भी खंड में भाग ले सकता है. इस के लिए शर्त यह है कि प्रदर्शन में लाई जाने वाली वस्तु प्रतिभागी के अपने खेत या बाग का होना अनिवार्य है.

वंदना कुमारी को मिला नवोन्मेषी कृषक पुरस्कार

भागलपुर: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के तत्वावधान में आयोजित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान – नवोन्मेषी कृषक सम्मेलन-2024 के अवसर पर बिहार के बांका जिले के भेड़ा गांव की प्रगतिशील महिला किसान वंदना कुमारी को नवोन्मेषी कृषक पुरस्कार से नवाजा गया. यह पुरस्कार पूर्व निदेशक आईएआरआई, नई दिल्ली ने दिया गया.

कृषि गतिविधियों में प्राकृतिक संसाधन संरक्षण के माध्यम से यह काम भेड़ा गांव में किया गया. निकरा परियोजना के तहत सूखा/वर्षाधीत क्षेत्र में संकलित अंगीकृत गांव भेड़ा में वंदना कुमारी ने फसल उत्पादन में सूखारोधी प्रभेद सबौर दीप और सबौर अर्धजल का क्षैतिज हस्तांतरण करने के साथसाथ सघन बागबानी अमरूद, डेयरी, सालभर हरा चारा उपलब्धता, सामुदायिक बीज बैंक, टी सामुदायिक पशु स्वास्थ्य चिकित्सा केंद्र, पोषक वाटिका जैसी अनेक नवोन्मेषी कृषि काम को अंजाम दिया है, जिस का परिणाम भेड़ा गांव एवं आसपास के गांवों में देखने को मिलता है.

वंदना कुमारी ने बड़े पैमाने पर अपने गांव एवं आसपास के गांवो में इकाई विकसित कराई है. इन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र, बांका से प्रशिक्षण प्राप्त कर के अभी कई विषयों पर मास्टर ट्रेनर बन कर प्रगतिशील किसानों एवं महिला किसानों के बिहार के अलावा दूसरे प्रदेशों में प्रशिक्षित करने का काम करती हैं. कृषि एवं पशुपालन के साथसाथ समाजिक काम जैसे छोटे बच्चों का पढ़ाना, सिलाई, कटाई में ग्रामीण युवतियों को प्रशिक्षण देना आदि जैसे काम भी उन के द्वारा किए जाते हैं.

इस पुरस्कार के पूर्व वंदना कुमारी को बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, आत्मा, बिहार सरकार आदि जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं. वंदना कुमारी ने कृषि मशीनीकरण, यंत्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए प्रत्यक्षण के तौर पर निकरा परियोजना के माध्यम से लोगों से जागरूक करने का काम भी किया है. इसी कार्यक्रम में बिहार के एक प्रगतिशील किसान महादेव सैनी, मधुबनी को भी इसी पुरस्कार से उन के उत्कृष्ट कार्यों के लिए नवाजा गया है.

कृषि विश्वविध्यालय में आवेदन (Application) की बढ़ी तारीख

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में विभिन्न स्नातक, स्नातकोत्तर व पीएचडी पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए उम्मीदवार अब 17 जून, 2024 तक आवेदन कर सकेंगे. उल्लेखनीय है कि विश्वविद्यालय द्वारा आवेदन करने की अंतिम तिथि 10 जून निर्धारित की गई थी. इसी प्रकार प्रवेश परीक्षा की तारीख में भी बदलाव किया गया है. अब 22 जून को होने वाली प्रवेश परीक्षा 30 जून को होगी और 30 जून को होने वाली प्रवेश परीक्षा 14 जुलाई को आयोजित की जाएगी. विभिन्न पाठ्यक्रमों की प्रवेश परीक्षा संबंधित विस्तृत जानकारी विश्वविद्यालय की वैबसाइट  hau.ac.in  और admissions.hau.ac.in पर उपलब्ध हैं.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने यह जानकारी देते हुए बताया कि विश्वविद्यालय में इन दिनों शैक्षिणक सत्र 2024-25 के लिए आवेदन प्रक्रिया जारी है, जिस में कृषि महाविद्यालय, मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय, बायोटैक्नोलौजी महाविद्यालय, सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय, कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय एवं इंस्टीट्यूट औफ बिजनैस मैनेजमेंट एंड एग्रीप्रेन्योरशिप गुरूग्राम में विभिन्न स्नातक व स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में दाखिले किए जाएंगे.

पीजी डिप्लोमा प्रोग्राम में होंगे दाखिले

कुलसचिव डा. बलवान सिंह मंडल ने बताया कि पीजी डिप्लोमा प्रोग्राम में कम्यूनिकेशन स्किल इन इंगलिश, इंगलिशहिंदी ट्रांसलेशन, रिमोट सेंसिंग एंड जियोग्राफिकल इनफोरमेशन सिस्टम एप्लीकेशन इन एग्रीकल्चर एंड इन्वायरमेंट कोर्स भी शामिल है.

उन्होंने यह भी बताया कि उपरोक्त पाठ्यक्रमों में आवेदन के लिए उम्मीदवार का हरियाणा प्रदेश का स्थायी निवासी होना अनिवार्य है. औनलाइन आवेदन फार्म एवं प्रोस्पेक्टस विश्वविद्यालय की वैबसाइट पर उपलब्ध हैं. सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार के लिए आवेदन की फीस 1500 रुपए, जबकि अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, पीडब्ल्यूडी (दिव्यांग) उम्मीदवारों के लिए 375 रुपए होगी.

इस के अलावा उपलब्ध सीटों की संख्या, महत्वपूर्ण तिथियां, न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता, दाखिला प्रक्रिया आदि संबंधी सभी जानकारियां विश्वविद्यालय की वैबसाइट hau.ac.in और admissions.hau.ac.in पर दिए गए प्रोस्टपेक्टस में उपलब्ध हैं.

समय हो कम तो ड्रम सीडर (Drum Seeder) से करें धान की सीधे बोआई

धान की खेती आमतौर पर धान की पौध की रोपाई कर के की जाती है, लेकिन इस काम के लिए कुशल मजदूरों की कमी के चलते धान की रोपाई में अधिक खर्चा व समय भी अधिक लगता है. सही समय पर मजदूर नहीं मिलना भी एक बड़ी समस्या है. मजदूर मिलते भी हैं, तो अधिक मजदूरी की मांग होती है, जिस से धान की खेती की लागत बढ़ जाती है. ऐसी स्थिति आने  पर अब किसान खेत में धान की छिटकवां विधि से सीधे बोआई करने लगे हैं या बीज की बोआई के लिए ड्रम सीडर जैसे कृषि यंत्रों का भी सहारा लेने लगे हैं.

धान की इस तरह छिटकवां विधि से बोआई करने पर खेत में जमे हुए धान के पौधे एकसमान नहीं उगते या पौधों के बीच कहीं अधिक दूरी तो कहीं कम दूरी पर पौधे उगते हैं. पौधों के उगने की इस असमानता की वजह से धान की खेती से अच्छी उपज  नहीं मिल पाती है.

इस समस्या का समाधान तैयार किए गए  खेत में धान की ड्रम सीडर यंत्र  से सीधे बोआई  की जा सकती है.  ड्रम सीडर कृषि यंत्र से धान की  सीधी बोआई करने के लिए खेत एकसमान और समतल होना चाहिए. खेत की मिट्टी की सही मल्चिंग भी होनी चाहिए. इस तरह की बोआई के लिए खेत में अधिक पानी नहीं भरा जाता.

ड्रम सीडर द्वारा लेव किए खेत में धान की सीधी बोआई तकनीक में कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए :

ड्रम सीडर से धान बोने का समय : 

ड्रम सीडर द्वारा धान बीज को अंकुरित कर के बोया जाता है. धान की सीधी बोआई मानसून आने से  लगभग एक सप्ताह पहले कर लेनी चाहिए, जिस से मानसूनी बरसात होने से पहले ही धान अंकुरित हो कर खेत में पौधा बन जाए, अन्यथा  बरसात शुरू होने के बाद खेत में अधिक जलभराव होने पर धान का पौधा नहीं पनप पाएगा या बीज सड़गल जाएगा.

खेत का समतल होना जरूरी और पानी न भरा हो :

एकसार खेत  न होने पर धान के बीज का जमाव एकसमान नहीं हो पाता. खेत से पानी की निकासी  भी सही होनी चाहिए, क्योंकि खेत में अधिक वर्षा का पानी भरा होने पर अंकुरित पौधों के मरने की संभावना कहीं ज्यादा हो जाती है.

ड्रम सीडर से बोआई के समय रखें ध्यान :

ड्रम सीडर यंत्र से धान की बोआई के समय खेत में दोढाई इंच से अधिक पानी न भरा हो, तैयार खेत में केवल इतना ही पानी हो, जिस से ड्रम सीडर यंत्र को खेत में आसानी से चलाया जा सके.

तैयार खेत में 5-6 घंटे के भीतर ही ड्रम सीडर द्वारा धान की सीधी बोआई कर देनी चाहिए. इस से अधिक देरी होने पर धान की खेत की मिट्टी कड़ी होने लगती है, जिस से धान बीज रोपण के समय कठिनाई और धान के पौधों की शुरुआती बढ़वार में कमी आ सकती है, जिस से उपज में कमी हो सकती है.

प्रजातियां : 

धान की जल्दी तैयार होने वाली प्रजातियों में नरेंद्र-97, मालवीय धान-2 (एचयूआर-3022) आदि हैं. मध्यम व देर से पकने वाली प्रजातियों में नरेंद्र-359, सूरज-52 आदि हैं.

खरपतवार की रोकथाम :

ड्रम सीडर द्वारा धान की सीधी बोआई तकनीक में खरपतवार प्रबंधन भी आसान हो जाता है. कतार में बोआई होने के कारण मजदूरों द्वारा खुरपी से निराई आसानी से हो सकती है या उपयुक्त निराईगुड़ाई यंत्र का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. पहली निराई बोआई के लगभग 20 दिन बाद, दूसरी निराई 40 दिन के बाद करनी चाहिए. साथ ही, खेत का मुआयना करें, जब लगे कि खरपतवार पनप रहे हैं, तो उन को हटाने का काम करें.

निराईगुड़ाई यंत्र :

आज हाथ से चलने वाले अनेक निराईगुड़ाई यंत्र बाजार में मौजूद हैं, जो सस्ते होने के साथसाथ अच्छा काम भी करते हैं. खेती में उन का इस्तेमाल आसानी से किया जा सकता है. इस के अलावा जरूरत हो तो खरपतवार की रोकथाम के लिए रासायनिक तरीके भी अपनाए जा सकते हैं.

ड्रम सीडर से धान की बोआई करने से लाभ :

ड्रम सीडर से बोआई करने पर  मजदूरों की लागत में कमी आती है, पानी की बचत होती है और धान फसल तैयार होने की अवधि में भी कमी आती है, जिस से अगली फसल  रबी में गेहूं की बोआई समय से हो सकती है.

फायदेमंद है ड्रम सीडर विधि :

किसी कारणवश समय पर धान की नर्सरी तैयार न हो पाए, तो ड्रम सीडर से धान की सीधे बोआई की जा सकती है. ड्रम सीडर से धान की बोआई कतार में होने के कारण खरपतवार नियंत्रण में आसानी होती है.

ड्रम सीडर मानवचालित यंत्र है. इसे चलाने के लिए किसी अन्य ऊर्जा स्रोत की जरूरत नहीं होती. कीमत में कम, रखरखाव आसान और इस्तेमाल करना भी आसान है. यही इस की खासियत है, जो किसान के काम को आसान करती है.

पर्यावरण रक्षा (Environmental Protection) के नाम पर पेड़ लगाने का दिखावा

आजादी के बाद से अब तक हम ने देश में जितने भी पौधे रोपित किए, अगर उन में से  50 फीसदी भी जिंदा होते और जंगल बचाए जाते, तो हरित संपदा में हम  दुनिया में नंबर वन होते. यहां मनुष्य को खड़े होने के लिए जगह नहीं बचती.

डेढ़ 2 महीने की चुनावी कवायद के बाद देश की  सरकार बनने की आपाधापी के दरमियान 5 जून का ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ कब दबे पांव आया और निकल लिया, यह आम अवाम को तो पता भी न‌ चला. किंतु सोशल मीडिया व दूसरे दिन के समाचारपत्रों से पता चला कि देशभर में विभिन्न संस्थाओं, सरकारी कार्यालयों में हीट वेव में भी जबरदस्त वृक्षारोपण कार्य संपन्न हुआ है.

पिछले 30 वर्षों से हम खुद पेड़ लगा रहे हैं, पर आज तक यह नहीं समझ पाए कि हमारे देश के किस विद्वान के दिमाग की उपज थी कि यहां ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ 5 जून के दिन ही हो और इस दिन वृक्षारोपण किए जाएं, जबकि विशेषज्ञों का मत है कि असिंचित क्षेत्रों में वृक्षारोपण का आदर्श समय जुलाईअगस्त माह होना चाहिए.

अब चूंकि यह रिवाज बन गया है, इसलिए शासकीय कार्यालयों में, स्कूलों में, अधिकारी, नेता, शिक्षक, बच्चे सभी 5 जून को वृक्षारोपण कर रहे हैं, वन विभाग इस में सब से आगे है,  जबकि देश के ज्यादातर हिस्सों में अभी भी नौतपा का ताप उतरा नहीं है. कई जगहों पर लू चल रही है.

लू से बचने के तमाम तरीकों की जानकारी रखते हुए पढ़ेलिखे जानकार तमाम डाक्टर एवं दवाओं के रहते भी मौत के मुंह में समा रहे हैं. ऐसी हालत में 5 जून को लगाए गए ये नन्हे पौधे 48 घंटे भी जिंदा रह पाएंगे, यह कहना कठिन है.

यह भी सच है कि भारत में मानसून आमतौर पर  15 जून के बाद ही सक्रिय हो पाता है, पर ‘पर्यावरण दिवस’ के नाम पर सरकारी वृक्षारोपण की खानापूर्ति 5 जून को ही होना अनिवार्य है.

इस काम में हमारे वन विभाग हर साल सब को पीछे छोड़ देते हैं. स्वनाम धन्य वन विभाग को इस में सब से आगे होना भी चाहिए, क्योंकि देश के हजारों साल पुराने व जैव विविधता से समृद्ध लगभग सभी जंगलों को तो इन्होंने काट कर, कटवा कर, बेच कर फूंकताप लिया है. इन की सफाईपसंदगी का यह आलम है कि जंगलों में ठूंठ तक नहीं छोड़ा गया है. इधर कुछेक दशकों से वृक्षारोपण नामक नए चारागाह को जंगलों की रक्षा के नाम पर बनी ये बाड़ें निर्द्वंद्व भाव से चट करते जा रही हैं.

हर साल नए पेड़ लगाने, पुराने वनों का सुधार, परती भूमि संरक्षण आदि तरहतरह की योजनाएं बना कर सरकार से जनता के पैसे लो, वृक्षारोपण की नौटंकी करो, फिर उन की देखरेख भी मत करो, ताकि सारे पौधे मर जाएं. अगले साल फिर योजना बनाओ, फिर पैसे लो, फिर वृक्षारोपण की नौटंकी करो. यही इस साल भी हुआ.

वृक्षारोपण की फोटो खिंचवा कर सोशल मीडिया पर डालना एक रिवाज बन गया है, बस किसी तरह समाचारपत्र में यह छप जाए कि अमुक ने पौधा रोप कर देश के पर्यावरण पर एहसान कर दिया है, अब आगे पौधा पनपे या सूख जाए.

हमारे देश में सरकारी वृक्षारोपण की हालत यह है कि आजादी के बाद वृक्षारोपण कर जितने पौधे लगाए गए, उन में से 50 फीसदी भी अगर जिंदा रह जाते तो या देश विश्व का सब से हराभरा  देश होता.

5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के रूप में हम 1973 से लगातार इसे मना रहे हैं. हर साल पर्यावरण की रक्षा के लिए विभिन्न काम निर्धारित किए जाते हैं, जिस पर हर देश से पूरे वर्ष प्राथमिकता के आधार पर ठोस काम करने की अपेक्षा की जाती है.

सऊदी अरब ‘पर्यावरण दिवस समारोह 2024’ की मेजबानी कर रहा है. पर्यावरण की रक्षा के लिए इस वर्ष भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखे से निबटने पर संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य अपना ध्यान केंद्रित करते हुए बहुद्देशीय योजनाओं पर काम कर रहे हैं. हम इस में क्याक्या कर रहे हैं, यह सोचने का अलग विषय है. हमारे देश में पर्यावरण रक्षा के नाम पर केवल पेड़ लगाने की नौटंकी मात्र की जाती है. लगाने के बाद इन पेड़ों को इन के हाल पर छोड़ दिया जाता है. इन में से ज्यादातर पौधे मर जाते हैं.

पेड़ों के मामले में सब से धनी देश कनाडा में प्रति व्यक्ति पेड़ों की संख्या 10,163 है, वहीं हमारे देश में पिछले 7 दशकों की सतत नौटंकी के बावजूद प्रति व्यक्ति महज 28  पेड़  बचे हैं. विश्व में सब से गरीब देशों में शुमार किए जाने वाला देश इथोपिया भी हरित संपदा के मामले में प्रति व्यक्ति 143 पेड़ों के साथ हम से 5 गुना ज्यादा समृद्ध है.

इस पर्यावरण दिवस की खानापूर्ति करने के लिए हम ने भी पीपल का पेड़ अपने “इथनो मैडिको हर्बल गार्डन” में लगाया है.

खैर, हम ने जो पीपल का पौधा रोपा है, वह तो हम  हर हाल में जिंदा रख लेंगे, पर क्या आप सभी, जिन्होंने इस दिन पौधों का रोपण किया है, क्या ईमानदारी से वादा करेंगे कि आप ने इस बार जितने पौधे रोपे हैं, उन्हें हर हाल में जिंदा रखेंगे?

पूसा संस्थान में ‘नवोन्मेषी किसान सम्मेलन’ का आयोजन

नई दिल्ली : राजधानी नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा संस्थान) के डा. बीपी पाल सभागार में 6 जून, 2024 को देशभर के प्रगतिशील किसानों का सम्मेलन होने जा रहा है, जिस में इस वर्ष 6 राज्यों के 7 किसानों को ‘अध्येता किसान’ यानी फैलो फार्मर और 22 राज्यों के 33 किसानों को ‘नवोन्मेषी किसान’ यानी इनोवेटिव फार्मर पुरस्कार  से सम्मानित किया जाएगा. इस में 8 राज्यों से 9 महिला किसान, 6 आदिवासी किसान  शामिल हैं.

सभी पुरस्कृत किसानों ने खेती के विभिन्न मौडल तैयार कर अपनेअपने क्षेत्रों में स्थानीय रूप से समेकित कृषि प्रणाली का विकास किया है. इस में खाद्यान्न फसलें, बागबानी आदि शामिल किया है. कई सफल किसानों ने फसल विविधीकरण को अपना कर अपनी आय को बढ़ाया है.

इस के अलावा हाईटैक कृषि पद्धतियों जैसे संरक्षित खेती, गैरपारंपरिक ऊर्जा स्रोत, सोलर प्रणालियों, जल संसाधन के संरक्षण एवं उपयोग दक्षता बढ़ाने वाली तकनीकों को अपनाया. विभिन्न किसानों ने आईपीएम, उन्नत कृषि मशीनरी और हाइड्रोपोनिक्स इत्यादि को अपनी खेती में शामिल किया है.

पूसा संस्थान (Pusa Institute)

अनेक किसानों ने उत्पादन के साथसाथ प्रसंस्करण यानी प्रोसैसिंग, मूल्य संवर्धन और विपणन के लिए भी नवाचार किए हैं. किसानों ने प्रमुख रूप से खाद्यान्न फसलों के बीज उत्पादन के क्षेत्र में बहुत योगदान किया. इस में सतत कृषि की पद्धतियों को अपनाया, जिस में प्रमुख रूप से जैविक नाशीजीव, जैव उर्वरक, केंचुआ खाद, बायोगैस स्लरी के उपयोग के साथसाथ उत्पादन इकाइयों का निर्माण किया. फसलों के अवशेष प्रबंधन के लिए पूसा डीकंपोजर का इस्तेमाल किया और पराली से खाद बनाई. किसानों की एक बड़ी उपलब्धि यह रही है कि उन्होंने इन उन्नत तरीकों को न स्वयं अपनाया, बल्कि साथी किसानों को भी हस्तांतरित किया. उन्होंने किसान उत्पादक संगठन, स्वयं सहायता समूह भी बनाया और रोजगार भी पैदा किया.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान हर साल लगभग 40 किसानों को चिह्नित कर सम्मानित करता है. संस्थान में साल 2008 से नवोन्मेषी किसान सम्मान और साल 2012 से अध्येता किसान सम्मान की शुरुआत की गई.  अब तक देशभर के विभिन्न राज्यों के 400 से अधिक किसानों को भाकृअसं-अध्येता किसान और नवोन्मेषी किसान के रूप में सम्मानित किया जा चुका है.

इस अवसर पर 4 पद्मश्री से सम्मानित किसानों को भी आमंत्रित किया गया. इस एकदिवसीय कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण ‘किसान, वैज्ञानिक और विद्यार्थी संवाद’ है.

इस कार्यक्रम में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उपमहानिदेशक (कृषि प्रसार) डा. यूएस गौतम, पूसा संस्थान के निदेशक डा. एके सिंह, संस्थान के सभी संयुक्त निदेशक और सभी संभागाध्यक्ष एवं कृषि छात्र भाग ले रहे हैं.

इस ज्ञानमंथन से जहां एक ओर सम्मानित किसानों को परस्पर संवाद करने का मौका मिल रहा है, वहीं विशेषज्ञों को भावी अनुसंधान की दिशा तय करने और विद्यार्थियों को भी प्रेरणा मिलेगी.

यह बहुआयामी कार्यक्रम संस्थान के निदेशक डा. एके सिंह और संयुक्त निदेशक (प्रसार) डा. आरएन पड़ारिया भाकृअसं, नई दिल्ली के नेतृत्व में आयोजित किया जा रहा है.