खुशबू ने बनाई मोटाइल कैटल फीडिंग ट्रौली (Cattle Feeding Trolley)

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार को मोटाइल कैटल फीडिंग ट्रौली नामक डिजाइन किए गए उत्पाद पर 10 साल का डिजाइन अधिकार मिला है. भारतीय पेटेंट कार्यालय की ओर से जारी डिजाइन प्रमाणपत्र में इस उत्पाद को 371981-001 पंजीकरण संख्या प्रदान की गई. मोटाइल कैटल फीडिंग ट्रौली का डिजाइन विश्वविद्यालय के मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. मंजु महता की देखरेख में शोधार्थी खुशबू ने किया. कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने इस उपलब्धि के लिए उन्हें बधाई व शुभकामनाएं दी.

इसलिए डिजाइन की गई मोटाइल कैटल फीडिंग ट्रौली

पशुपालन में महिलाओं को चारा डालने में सब से ज्यादा समस्या होती है. इसलिए ऐसे काम को करने के लिए उपयुक्त साधन की जरूरत होती है. इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए मोटाइल कैटल फीडिंग ट्रौली (पशु चारा ट्रौली) बनाई गई है. यह ट्रौली आयरन शीट और रबड़ से बनी हुई है. इस में एक पहिया, एक बेरो, पीछे 2 स्टैंड और 2 हैंडल हैं, ताकि उपयोगकर्ता पर लोड के वजन को कम किया जा सके. ट्रौली का इस्तेमाल हम चारा डालने के साथसाथ पशुओं को पानी पिलाने के लिए कर सकते हैं.

मोटाइल कैटल फीडिंग ट्रौली ऐसा साधन है, जिस में चारा आसानी से उठाया जा सकता है और एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से ले जाया जा सकता है. इस ट्रौली में चारा व पानी आसानी से जहां पशु बंधे होते हैं, वहां ले जाया जा सकता है, जिस से महिलाओं की कार्यक्षमता बढ़ेगी और उन के समय एवं ऊर्जा की बचत होगी. इस से मांसपेशियों एवं हड्डियों पर कम दबाव पड़ेगा.
इस अवसर पर ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय की अधिष्ठाता डा. बीना यादव, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य एवं आइपीआर सैल के प्रभारी डा. योगेश जिंदल उपस्थित रहे.

पशुओं और खुद को हीट स्ट्रोक (Heat Stroke) से कैसे बचाएं

अविकानगर : केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने अधिक गरमी एवं हीट स्ट्रोक के चलते संस्थान के भेड़बकरी के सैक्टर पर काम कर रहे कर्मचारियों की मीटिंग ले कर पशुओं और चरवाहों को अधिक तापमान के आघात से बचाव के लिए जरूरी सुझाव के साथ अधिक गरमी में सुबह एवं शाम के ठंडे समय में पशुओं को फील्ड में चराने के लिए भी सुझाव दिया. उन्होंने दोपहर 11 बजे से ले कर 3 बजे तक पशुओं को घने पेड़ की छांव में आराम करने के साथ एक घंटे के अंतराल पर ठंडा पानी पिलाने का निर्देश दिया. इस के अलावा रात में पशुओं को खुले आसमान के नीचे रखने के निर्देश दिए.

निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर द्वारा चारा, दाना एवं आवास प्रबंधन पर जरूरी बातों का पालन करने के लिए निर्देशित किया गया. उन्होंने अंत में अविकानगर संस्थान में पेड़पौधे एवं पशुओं का इस गरमी के मौसम में विशेष सावधानी रखने के लिए सभी को निर्देशित किया, जिस से प्रतिकूल वातावरण से आदमी एवं पशुओं को बचाया जा सके.
उन्होंने सभी सैक्टर पर कार्यरत कर्मचारियों से रोजाना की गतिविधियों की प्रगति रिपोर्ट लेते हुए बताई बातों के पालन पर जोर दिया. साथ ही, निदेशक ने सभी प्रभारियों को पशुपक्षियों के लिए भी पानी के साथ दाने की व्यवस्था करने का निर्देश दिया.

मीटिंग में डा. अमर सिंह मीना, डा. रणजीत गोदारा, डा. सृष्टि सोनी, आरके मीना, योगीराज मीना, सुरेंद्र राजपूत, जगदीश गुर्जर, सुनील लड्डा विभिन्न सैक्टर पर कार्यरत स्टाफ उपस्थित रहे.

एग्रीकल्चर (Agriculture) में करें पढ़ाई, 10 जून तक करें आवेदन

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने जानकारी देते हुए बताया कि स्नातक पाठ्यक्रमों में 2+4 वर्षीय बीएससी (औनर्स) एग्रीकल्चर में दाखिला 10वीं के बाद एग्रीकल्चर एप्टीट्यूड टेस्ट, जबकि चारवर्षीय पाठ्यक्रम, जिस में बीएससी (औनर्स) एग्रीकल्चर, बीएफएससी (बैचलर औफ फिशरीज साइंस), बीएससी (औनर्स) कम्युनिटी साइंस व बीएससी (औनर्स) एग्रीबिजनेस मैनेजमैंट में दाखिले के लिए 12वीं के बाद एंट्रेंस टेस्ट के आधार पर होगा. बी. टैक (एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग) व बी. टैक (एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग एलईईटी) में दाखिला हरियाणा राज्य काउंसलिंग सोसायटी द्वारा ज्वाइंट एंट्रेस टेस्ट (मैन) 2024 और एलईईटी 2024 की मेरिट के आधार पर होगा.

इन प्रोग्राम में होंगे स्नातकोत्तर व पीएचडी में दाखिले

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि विश्वविद्यालय के विभिन्न महाविद्यालयों में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में भी दाखिला कौमन एंट्रेस टेस्ट के आधार पर होगा. उन्होंने बताया कि कृषि महाविद्यालय में एग्रीकल्चरल इकोनोमिक्स, एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन एजुकेशन, एग्री. मेटीयोरोलौजी, एग्रोनोमी, फ्रूट सांइस/फ्लोरिकल्चरल एंड लेंडस्केपिंग, जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग, नेमोटोलोजी, प्लांट पैथोलौजी, प्लांट प्रोटैक्शन-इंटोमोलौजी, सीड साइंस एवं टैक्नोलौजी, सिल्वीकल्चर एंड एग्रोफोरेस्ट्री, सायल साइंस, वैजीटेबल साइंस, पीएचडी इन एग्रीबिजनेस मैनेजमेंट व बिजनेस मैनेजमेंट शामिल है. मौलिक एवं मानविकी महाविद्यालय में बायोकैमिस्ट्री, कैमिस्ट्री, एनवायरमेंटल साइंस, फूड साइंस एंड टैक्नोलौजी, मैथेमेटिक्स, माइक्रोबायोलौजी, फिजिक्स, प्लांट फिजियोलौजी, सोशियोलौजी, स्टेटिसटिक्स व जूलौजी कोर्स शामिल हैं.

सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय में एपारेल एंड टैक्सटाइल साइंस, ऐक्सटेंशन एजुकेशन एंड कम्युनिकेशन मैनेजमेंट, फूड एंड न्यूट्रिशियन, ह्यूमन डवलेपमेंट एंड फैमिली स्टडीज व रिसोर्स मैनेजमेंट एंड कन्ज्यूमर साइंस कोर्स शामिल हैं.

कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय में फार्म मशीनरी एवं पावर इंजीनियरिंग, सौयल एंड वाटर कंजरवेशन इंजीनियरिंग, रिन्यूऐबल एनर्जी इंजीनियरिंग व प्रोसैसिंग एंड फूड इंजीनियरिंग कोर्स शामिल है. कालेज औफ बायोटैक्नोलौजी में एग्रीकल्चरल बायोटैक्नोलौजी, बायोइंफोरमेटिक्स व मोलेक्यूलर बायोलौजी एंड बायोटैक्नोलौजी, जबकि पीएचडी के लिए बायोइंफोरमेटिक्स व मोलेक्यूलर बायोलौजी एंड बायोटैक्नोलौजी कोर्स के लिए इच्छुक विद्यार्थी दाखिला ले सकते हैं.

कालेज औफ फिशरीज साइंस में एक्वाकल्चर, एक्वाटिक एनिमल हेल्थ मैनेजमेंट, फिश प्रोसैसिंग टैक्नोलौजी, फिशरीज रिसोर्स मैनेजमेंट, एक्वाटिक एनवायरमेंट मैनेजमेंट, फिश इंजीनियरिंग, फिशरीज एक्सटेंशन व फिशरीज इकोनोमिक्स विषय शामिल हैं.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि सीएसआईआर-यूजीसी-जेआरएफ व आईसीएआर के विद्यार्थियों के अलावा पीएचडी में दाखिले दूसरे सैमेस्टर (2024-25) में होंगे. इसी प्रकार इंस्टीट्यूट औफ बिजनेस मैनेजमेंट एंड एग्रीप्रीन्यूरशिप, गुरुग्राम में एमबीए एग्री-बिजनेस, एमबीए जनरल, मास्टर्स इन रूरल मैनेजमेंट व पीएचडी इन रूरल मैनेजमेंट विषय शामिल है. कृषि महाविद्यालय, हिसार के बिजनेस मैनेजमेंट विभाग में एमबीए जनरल व एमबीए एग्री-बिजनेस कोर्स शामिल है.

इन पीजी डिप्लोमा प्रोग्राम में होंगे दाखिले

कुलसचिव डा. बलवान सिंह मंडल ने बताया कि पीजी डिप्लोमा प्रोग्राम में कम्यूनिकेशन स्किल इन इंगलिश, इंगलिशहिंदी ट्रांसलेशन, रिमोट सेंसिंग एंड जियोग्रेफिकल इनफोरमेशन सिस्टम एप्लीकेशन इन एग्रीकल्चर एंड एनवायरमेंट कोर्स भी शामिल है.

उन्होंने यह भी बताया कि उपरोक्त पाठ्यक्रमों में आवेदन के लिए उम्मीदवार हरियाणा प्रदेश का स्थायी निवासी होना चाहिए. औनलाइन आवेदन फार्म एवं प्रोस्पेक्टस विश्वविद्यालय की वैबसाइट पर उपलब्ध हैं. सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार के लिए आवेदन की फीस 1,500 रुपए, जबकि अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति, आर्थिक रूप से कमजोर, पीडब्ल्यूडी (दिव्यांग) उम्मीदवारों के लिए 375 रुपए होगी. इस के अलावा उपलब्ध सीटों की संख्या, महत्वपूर्ण तिथियां, न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता, दाखिला प्रक्रिया आदि सभी जानकारियां विश्वविद्यालय की वैबसाइट hau.ac.in और admissions.hau.ac.in पर उपलब्ध होगी.

कैलकुलेटर एप (Calculator App) के लिए मिला कौपीराइट

हिसार: लुवास कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा के निर्देशानुसार, पशु चिकित्सा माइक्रोबायोलौजी विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा डिजाइन किए गए एप  के लिए कौपीराइट अधिग्रहण (एसडब्ल्यू-18808/2024) प्राप्त हुआ है. इस एप की मदद से गाय, भैंस, भेड़बकरी और सूअरों में मुंहखुर की बीमारी (एफएमडी) के प्रकोप से होने वाले आर्थिक नुकसान का सटीक आकलन किया जा सकता है.

कुलपति डा. विनोद कुमार वर्मा ने पशु चिकित्सा माइक्रोबायोलौजी विभाग, लुवास, हिसार के वैज्ञानिकों के प्रयासों की सराहना की और बौद्धिक संपदा, कौपीराइट कार्यालय, भारत सरकार द्वारा जारी कौपीराइट प्रमाणपत्र सार्वजनिक किया. उन्होंने उम्मीद जताई कि यह एप मुंहखुर रोग जैसे उभरते खतरों के बीच पशु स्वास्थ्य की सुरक्षा और कृषि स्थिरता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण सिद्ध होगी.

माइक्रोबायोलौजी विभाग, लुवास में हुए शोध के आधार पर हरियाणा ऐसा पहला राज्य बना है, जिसे पशुपालन और डेयरी विभाग, भारत सरकार ने मुंहखुर और गलघोंटू रोग के संयुक्त टीकाकरण की अनुमति दी है.

“लुवास एफएमडी ईलौस कैलकुलेटर” के बारे जानकरी देते हुए डा. नरेश कक्कड़ ने बताया कि यह एप मुंहखुर रोग के प्रकोप से होने वाले आर्थिक नुकसान का सटीक आकलन की सुविधा देता है और रोग नियंत्रण कार्यक्रम के कार्यान्वयन को बढ़ाता है. कुछ समय पहले राष्ट्रीय खुरपका एवं मुंहपका रोग संस्थान, भुवनेश्वर में देशभर के क्षेत्रीय खुरपकामुंहपका रोग केंद्रों और नेटवर्क इकाइयों की एक बैठक के दौरान, मुंहखुर रोग से होने वाले आर्थिक नुकसान के आकलन की सटीक पद्धति की जरूरत सामने आई थी.

इस का संज्ञान लेते हुए लुवास वैज्ञानिकों ने कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा के निर्देशानुसार मुंहखुर रोग से होने वाले आर्थिक नुकसान को निर्धारित करने के लिए शोधकर्ता डा . स्वाति दहिया, डा. नीलम रानी और डा. नरेश. के. कक्कड़ ने एक एप पर काम करना शुरू किया था.

इस अवसर पर डा. स्वाति दहिया ने बताया कि एप को बनाने की प्रक्रिया में पहले से मौजूद बेसलाइन डेटा का उपयोग और कंप्यूटर प्रोग्रामिंग/सौफ्टवेयर के साथ इस के इंटरफेस पर काम किया गया है, जिस से पशुओं के आयु और लिंग के अनुसार होने वाले नुकसान को सही तरीके से कैलकुलेट किया जा सकता है. यह एप किसानों को मुंहखुर रोग टीकाकरण कार्यक्रम के लिए जागरूक करेगी और मुंहखुर से प्रभावित जानवरों यानी गाय, भैंस, भेड़, बकरी और सूअरों में होने वाले आर्थिक नुकसान जैसे दूध उत्पादन में कमी, मृत्यु दर इत्यादि की सटीक गणना की जा सकेगी.

वैज्ञानिकों के टीम ने इस अवसर पर कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा, कुलसचिव डा. एसएस ढाका, अनुसंधान निदेशक डा. नरेश जिंदल, पशु विज्ञान महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग, स्नातकोत्तर अधिष्ठाता डा. मनोज रोज, मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. राजेश खुराना, पशु चिकित्सा सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डा. राजेश छाबड़ा का विशेषकर आभार प्रकट किया, जिन के मार्गदर्शन में इस एप को बनाने और कौपीराइट प्राप्त करने में कामयाबी मिली है.

कृषि ज्ञान वाहन (Agricultural Knowledge Vehicle) पहुंचा गांवगांव

भागलपुर : कुलपति डा. डीआर सिंह द्वारा कृषि ज्ञान वाहन को हरी झंडी दिखा कर भेजा गया. कृषि एवं पशुपालन के चहुंमुखी उत्थान के उद्देश्य से बिहार सरकार द्वारा प्रदत्त इस ज्ञान वाहन से मिट्टी जांच की सुविधा, किसानों को फसल विशेष के लिए उर्वरक व्यवहार की मात्रा, पशुओं की समस्याओं का त्वरित निदान, कीटबीमारी सहित खरपतवार की पहचान एवं उस के प्रबंधन की जानकारी प्राप्त होगी.

कृषि ज्ञान वाहन द्वारा गोरडीह पंचायत के पिपरा गांव में किसानों को कृषि की नवीनतम जानकारी उपलब्ध कराने के साथ उन्हें जागरूक करने का कार्यक्रम किया गया. इस अवसर पर विश्वविद्यालय के सभी अधिष्ठाता, निदेशक और वैज्ञानिकों के साथ ही भागलपुर के सहनिदेशक, कृषि, मौजूद रहे.

इस अवसर पर कुलपति डा.  डीआर सिंह ने कहा, “कृषि ज्ञान वाहन द्वारा हम किसानों के द्वार पर पहुंच रहे हैँ. इस के माध्यम से पशुपालन, बागबानी या खेती में आने वाली समस्याओं का निदान किया जाएगा. अब किसानों को अपनी समस्या को ले कर इधरउधर भटकने की जरूरत नहीं है, बल्कि उस का निदान उन के द्वार पर ही हो जाएगा.”

कृषि ज्ञान वाहन (Agricultural Knowledge Vehicle)

क्या खास है कृषि ज्ञान वाहन में

किसानों के ज्ञान संवर्धन के लिए तकनीकी फिल्मों का प्रदर्शन के लिए 2 बड़ीबड़ी एलईडी स्क्रीनें लगाई गई हैं. इस के माध्यम से मिट्टी जांच नमूनों का संग्रह किया जाएगा, जिस की रिपोर्ट किसानों तक भेजी जाएगी. कृषि से जुड़ी समस्याओं को किसानों के द्वार पर निराकरण करने की सुविधा इस वाहन में मौजूद है. इस के माध्यम से कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों से जुड़ी व्यवहारिक समस्याओं का निदान संभव हो पाएगा. खाद्यान्न/बागबानी/अन्य फसलों के कीटबीमारी के साथसाथ पशु एवं पक्षी की सेहत संबंधी समस्याओं का समाधान किया गया. इस के माध्यम से कृषि उपादानों जैसे बीज, जैविक खाद, तरल बायोफर्टिलाइजर सहित मशरूम स्पान आदि उपलब्ध कराया जाएगा.

पिपरा गांव पहुंचा कृषि ज्ञान वाहन

परिचालन के पहले दिन कृषि ज्ञान वाहन गोरडीह पंचायत के पिपरा गांव पहुंचा, जहां कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को आम, लीची, ग्रीष्मकालीन सब्जी की खेती, मिट्टी जांच के साथसाथ पशुपालन पर भी जानकारी दी गई.

ग्रामीणों के सामने कृषि ज्ञान वाहन मे लगे एलईडी स्क्रीन पर समसामायिक विषयों पर फिल्मों का प्रदर्शन किया गया. ग्रामीणों ने अपने खेतोँ से मिट्टी का नमूना जांच संबंधित वैज्ञानिक को सौंपा.

इस अवसर पर बिहार कृषि विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरके सोहाने, कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक और प्रधान डा. राजेश कुमार, भागलपुर के जिला कृषि पदाधिकारी श्रीराम अनिल कुमार के साथसाथ केवीके के सभी वैज्ञानिक और कर्मचारी मौजूद रहे. प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरके सोहने ने पिपरा गांव के किसानों कों कृषि ज्ञान वाहन का भरपूर फायदा उठाने का आग्रह किया.

17वें ‘विश्व एग्री टूरिज्म दिवस’ पर वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित

हिसार : जिस प्रकार शरीर को पोषण के लिए भोजन की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार पर्यावरण को शुद्ध रखने के लिए पेड़पौधों की आवश्यकता होती है. पेड़पौधे पर्यावरण की अशुद्धियों को सोख लेते हैं और हमें शुद्ध वायु देते हैं. पर्यावरण व भूमि संरक्षण के लिए मौजूदा समय में वृक्षारोपण जरूरी है. वृक्षारोपण कर पर्यावरण को बचाने का संकल्प हम सभी को लेने की जरूरत है. हमारा कर्तव्य है कि पर्यावरण सुधार के लिए अधिक से अधिक तादाद में पौधारोपण करना चाहिए.

ये विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहे. वे 17वें विश्व एग्री टूरिज्म दिवस के अवसर पर एग्री टूरिज्म सैंटर में वृक्षारोपण कार्यक्रम के दौरान बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि पौधे हमें जीवनदायिनी औक्सीजन देते हैं और जीवन का आधार हैं. इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को पौधा अवश्य लगाना चाहिए. पेड़पौधों की कमी से निरंतर पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है. पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए पौधारोपण बहुत जरूरी है.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि एग्री टूरिज्म सैंटर को स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य कृषि अनुसंधानों व प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना और प्रकृति को स्वच्छ रखने के लिए पर्यावरण संरक्षण के प्रति अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करना है. साथ ही, एग्री इको पर्यटन से ले कर शैक्षणिक मूल्यों के प्रति दूसरों को प्रेरित करना है. इस के अलावा स्कूलों व कालेजों के विद्यार्थियों को जैव विविधता के बारे में जानने का भी अवसर मिलेगा.

उन्होंने कहा कि एग्री टूरिज्म सैंटर (कृषि पर्यटन केंद्र) को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय लगातार प्रयासरत है. इसी कड़ी में फूड कोर्ट व ट्री हाउस जैसे कई अन्य आकर्षण भी जोड़े जा रहे हैं. वनस्पति विज्ञान और पादप शरीर क्रिया विज्ञान में देशी और विदेशी पौधों की प्रजातियों का संग्रह किया गया है. जैव विविधता वाले 550 से अधिक पौधों की प्रजातियां यहां देखी जा सकती हैं. यह जैव विविधता शैक्षिक अनुसंधान का स्रोत है और आगंतुकों के लिए आकर्षण का केंद्र भी है.

एग्री टूरिज्म सैंटर के अध्यक्ष डा. अरविंद मलिक ने बताया कि सैंटर में हर साल हजारों की तादाद में लोग आ रहे हैं व यह तादाद लगातार बढ़ रही है. इस के अलावा यहां फलफूल व सब्जियों के पौधे भी बिक्री के लिए मौसम के मुताबिक उपलब्ध करवाए जाते हैं.

पौधारोपण कार्यक्रम का आयोजन एग्री टूरिज्म सैंटर व भू दृश्य सरंचना इकाई द्वारा संयुक्त रूप से किया गया. भू दृश्य सरंचना इकाई के अध्यक्ष डा. पवन कुमार ने कहा कि महत्वपूर्ण अवसरों पर हमें अवश्य पौधरोपण करना चाहिए. इस से लोगों में वृक्षों के प्रति जागरूकता आएगी. इस अवसर पर उपस्थित विश्वविद्यालय के विभिन्न कालेजों के अधिष्ठाताओं, निदेशकों, विभागाध्यक्षों, वैज्ञानिकों व गैरशिक्षक कर्मचारियों ने भी पौधारोपण किया.

हकृवि को 3 डिजाइन विकसित करने पर भारतीय पेटेंट (Indian Patent)

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय को वर्सेटाइल हैंडी ट्रौली, स्कौलर चेयर व मूवेबल मिल्किंग स्टूल नामक 3 डिजाइन विकसित करने पर भारतीय पेटेंट कार्यालय ने डिजाइन का पंजीकरण प्रदान किया है. इन सभी डिजाइनों को भारत सरकार की ओर से प्रमाणपत्र मिल गया है, जिस की डिजाइन संख्या है 386671-001, 386669-001 और 386668-001. इन सभी डिजाइनों को विश्वविद्यालय के मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. मंजु महता की देखरेख में 2 शोध छात्राओं आयशा और मीनू ने किया.

विश्वविद्यालय के लिए गौरव की बात

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि यह विश्वविद्यालय के लिए गर्व की बात है कि विश्वविद्यालय को एकसाथ 3 डिजाइन प्राप्त हुए हैं. उन्होंने विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों व शोधार्थियों से भविष्य में भी इसी प्रकार निरंतर प्रयासरत रहने की अपील की है, ताकि विश्वविद्यालय का नाम यों ही रोशन होता रहे.

उपरोक्त डिजाइनों की मुख्य विशेषताएं

वर्सेटाइल हैंडी ट्रौली

यह ट्रौली लोहे से बनी है. इसे मांसपेशियों के तनाव और थकान को कम करने के लिए डिजाइन किया गया है. यह भारी वजन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में मदद करती है, जिस से उत्पादकता बढ़ती है. ट्रौली के तीनों किनारों पर दिए गए रौड समर्थन प्रदान करती है, जिस से भारी सामग्री गिरने या फिसलने से बचती है.

उल्लेखनीय है कि पहले वाली ट्रौली, जिस में रौड नहीं थे व सामग्री गिरने का भी भय रहता था. उस ट्रौली द्वारा काफी कम मात्रा में सामान एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता था और थकान भी होती थी. विद्यार्थियों ने इस प्रक्रिया में अलगअलग तकनीक का भी अध्ययन किया और उन की उपयोगिता और स्थिरता की जांच की.

स्कौलर चेयर
इस चेयर के उपयोग के दौरान आराम पहुंचाने के लिए पीछे और सीट पर कुशन लगे हैं. पीठ पर तनाव को कम करने के लिए कुरसी के पिछले हिस्से को थोड़ा तिरछा किया गया है. लंबे समय तक बैठने पर आराम में सुधार के लिए एग्रोनोमिक फुट रेस्ट प्रदान किया गया है. इस से थकान कम होती है और पैरों को आराम मिलता है.

अध्ययन, ड्राइंग जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए कुरसी के बाईं ओर एक फोल्डेबल पैनल जुड़ा हुआ है. जब पैनल उपयोग में न हो, तो उसे वापस अपनी स्थिति में मोड़ा जा सकता है. यह चेयर काम करते समय व्यक्ति के शरीर को सहायता प्रदान करता है और रीड़ की हड्डी में किसी भी प्रकार की असुविधा से बचाता है.

मूवेबल मिल्किंग स्टूल

बैठने की सुविधा के लिए स्टूल की सीट गद्देदार बनाई गई है. स्टूल के साथ लगे छोटे पहियों की सहायता से बैठ कर स्टूल को घुमा कर दूध को आसानी से निकाला जा सकता है. यह स्टूल लोहे से बना है. इस के एक तरफ गिलास या मग रखने के लिए जगह दी गई है. यह मूवेबल मिल्किंग स्टूल उपयोग करने वालों को अनुचित मुद्रा के कारण होने वाले विभिन्न मांसपेशियों के तनाव से बचाता है.

यह स्टूल काम करते समय पीठ के निचले हिस्से, कूल्हे के जोड़ों और रीड़ की हड्डी को सहायता प्रदान करता है. स्टूल का मुख्य लाभ व्यक्ति के लिए झुकते और बैठते समय आरामदायक सुरक्षा प्रदान करना है.

इस अवसर पर ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय की अधिष्ठाता डा. बीना यादव, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य एवं आइपीआर सैल के प्रभारी डा. योगेश जिंदल उपस्थित रहे.

जीवों के लिए टैंकर से पानी, रूमा देवी फाउंडेशन की मुहिम

बाड़मेर: तपती गरमी के मौसम में एक ओर जहां आम जनजीवन पर असर होता है, वहीं दूसरी तरफ पशुधन का गरमी से बचाव करना भी  जरूरी  हो जाता है. अनेक इलाकों में गरमी के समय पशुचारे के साथसाथ पानी की भी समस्या  हो जाती है खासकर गरमी में तप रहे राजस्थान के रेगिस्तान में इनसानों के साथसाथ पशुपक्षी भी पीने की पानी की समस्या से त्रस्त दिखाई दे रहे हैं.

कई इलाकों में पेयजल की गंभीर समस्या बनी हुई है, जिसे देखते हुए सामाजिक कार्यकर्ता व फैशन डिजाइनर डा. रूमा देवी ने ऐसे जरूरतमंद गांवों में मीठे पानी के टैंकर भिजवाने के साथ ही राहत का काम शुरू कर दिया है.

रूमा देवी फाउंडेशन (Ruma Devi Foundation)

रूमा देवी ने बताया कि सूखे पड़े सार्वजनिक टांके, होदी, कुंड आदि की जानकारी प्राप्त कर उन की सफाई कर के वहीं के नजदीकी पेयजल स्त्रोत से ट्रैक्टर में पानी ला कर इन टांकों व कुंड में भरा जा रहा है. ग्रामीण इलाकों में मानसून के आने तक अगले एक महीने तक यह मुहिम जारी रहेगी.

पश्चिम राजस्थान के बाड़मेर व बालोतरा जिले में लगभग 2,000 टैंकर इस फाउंडेशन व जनसहयोग से उपलब्ध करवाने का काम जारी रहने वाला है. फाउंडेशन की जलसेवा मुहिम से प्रसन्न हो कर मुंबई के संत दुलाराम कुलरिया ट्रस्ट, प्रकाश फाउंडेशन और सुरत की टेक्सटाइल एशोसिएशन भी उन के साथ इस काम में उन की मदद कर रही हैं.

धान की सीधी बिजाई के लिए पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985   

पूसा, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में बासमती की रोबीनोवीड किस्में, पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985 की बिक्री शुरू हो गई है. यह किस्में धान की सीधी बिजाई के लिए संस्थान द्वारा जारी की गई हैं.

इस अवसर पर पूसा संस्थान के निदेशक डा. अशोक कुमार सिंह ने कहा कि उत्तर पश्चिमी भारत में धान की खेती में मुख्य समस्याएं गिरता जलस्तर, धान की रोपाई में लगने वाले श्रमिकों की कमी और जलभराव के साथ रोपाई विधि के दौरान होने वाले ग्रीनहाउस गैस मीथेन का उत्सर्जन है. धान की सीधी बिजाई में इन सभी समस्याओं का हल है.

उन्होंने आगे कहा कि धान की सीधी बिजाई विधि में धान की पारंपरिक जलभराव विधि की तुलना में पानी के उपयोग में काफी कमी आती है, क्योंकि सीधी बोआई विधि में लगातार धान खेत में जलभराव की आवश्यकता नहीं होती. इस में केवल जरूरत के अनुसार ही कम पानी का इस्तेमाल होता है.

रिसर्च के मुताबिक, सीधी बिजाई विधि से लगभग 33 फीसदी पानी की बचत हो सकती है. इसलिए यह विधि खासकर पानी की कमी वाले क्षेत्रों के लिए अच्छा विकल्प है.

धान की सीधी बिजाई विधि में मुख्य समस्या खरपतवारों की है, जिसे हल करना जरूरी है, ताकि सीधी बिजाई विधि सफल हो सके. इस दिशा में भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने बासमती धान की 2 रोबिनोवीड किस्में पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985 विकसित की हैं. खरपतवार भी इन किस्मों को नुकसान नहीं पहुंचा सकती. ये इमेजथापायर 10 फीसदी एसएल के प्रति सहिष्णु हैं और भारत में व्यावसायिक खेती के लिए विमोचित की गई हैं.

पूसा बासमती 1979 :

बासमती धान की यह किस्म पीबी 1121 की नजदीक वंश वाली है, जिस में इमेजथापायर 10 फीसदी एसएल के प्रति सहिष्णुता को संचालित करने वाले सभी उत्परिवर्तित एएचएएस एलील मौजूद होते हैं. इस की बीज से बीज तक परिपक्वता अवधि 130-133 दिन और औसत उपज 45.77 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

पूसा बासमती 1985 :

बासमती की यह किस्म पीबी 1509 की खरपतवारनाशी सहिष्णु आइसोजेनिक निकट वंशक्रम है, जिस में इमेजथापायर 10 फीसदी एसएल के प्रति सहिष्णुता को संचालित करने वाले सभी उत्परिवर्तित एएचएएस एलील मौजूद होते हैं. इस की बीज से बीज तक परिपक्वता अवधि 115-120 दिन और औसत उपज 52 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

इन किस्मों में धान की खेती में अच्छे बदलाव लाने की क्षमता है, जो धान की खेती की लागत को भी कम करेगी. साथ ही, यह किस्में न केवल निराईगुड़ाई से जुड़ी हुई मेहनत को घटाती हैं, बल्कि धान खेती की पारंपरिक विधियों के पर्यावरणीय प्रभावों को भी कम करती हैं.

डा. पीके सिंह, कृषि आयुक्त, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने इन किस्मों के लिए पूसा संस्थान के योगदान की सराहना की और कहा कि यह संस्थान अनेक उन्नत किस्मों के विकास का काम कर रहा है.

डा. डीके यादव, सहायक महानिदेशक (बीज), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने बताया कि बासमती धान की ये दोनों किस्में इस बासमती भौगोलिक सूचक क्षेत्र के किसानों के लिए खास साबित होंगी.

ध्यान देने वाली बात यह है कि देश के कुल बासमती धान निर्यात में पूसा संस्थान की बासमती किस्मों का हिस्सा 95 फीसदी है, जो 51,000 करोड़ रुपए बनता है.

डा. डीके यादव ने किसानों से आग्रह किया कि वे देश की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए इन उन्नत किस्मों का प्रचारप्रसार करें. इस दिशा में सार्थक कदम उठाते हुए इन किस्मों के बीजों का सशुल्क वितरण मंच पर हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के 4 किसानों को किया गया. अन्य इच्छुक किसानों को यह बीज संस्थान की बीज उत्पादन इकाई में दिया गया.

हरियाणा के किसान प्रीतम सिंह ने धान की सीधी बिजाई (डीएसआर) विधि के साथ अपने साल 2009 से अब तक के अनुभव के बारे में विस्तार से बताया. वे 40-50 एकड़ में इस की खेती करते हुए 27 क्विंटल प्रति एकड़ की शानदार पैदावार हासिल कर रहे हैं. इन की सफलता की कहानी इस बात की गवाही देती है कि धान की सीधी बिजाई खेती की एक सक्षम विधि है, विशेषकर तब, जब उसे उचित प्रबंधन पद्धतियों और किस्मों के साथ अपनाया जाता है.

डा. टीके दास, जो सस्य विज्ञान में विशेषज्ञ प्रधान वैज्ञानिक हैं, उन्होंने धान की सीधी बिजाई विधि में इस्तेमाल होने वाले खरपतवारनाशियों की विस्तृत श्रंखलाएं के बारे में चर्चा की.

डा. सी. विश्वनाथन (संयुक्त निदेशक, अनुसंधान), डा. आरएन पड़ारिया (संयुक्त निदेशक, प्रसार), डा. गोपाल कृष्णन (अध्यक्ष, आनुवंशिकी संभाग), डा. ज्ञानेंद्र सिंह (प्रभारी, बीज उत्पादन इकाई), पूसा संस्थान के संभागाध्यक्ष और वैज्ञानिक, किसान, बीज कंपनियां और मीडिया भी इस अवसर पर मौजूद रहे.

अरहर कुदरत 3 और मूंग जनकल्याणी की मिश्रित खेती (Mixed farming) : अधिक मुनाफा

दलहनी फसल अरहर व मूंग दोनों फसल को तैयार होने का समय अलगअलग है. अरहर लंबे समय में तैयार होती है, जबकि मूंग की उपज जल्दी मिल जाती है. इन दोनों की खेती को लाभकारी बनाने के लिए इन की मिश्रित खेती करना फायदेमंद है खासकर जब उन्नत किस्मों को लगाया जाए तो मुनाफे की संभावना कहीं अधिक बढ़ जाती है.

कुदरत कृषि शोध संस्था के प्रकाश सिंह रघुवंशी ने बताया कि उन्होंने अरहर कुदरत 3 की नई किस्म ईजाद की है. एक पौध में तकरीबन 1500 से 2000 फलियां लगती हैं. यह किस्म 210 दिन में पक जाती है. बोआई के लिए अरहर बीज की मात्रा 2 किलोग्राम प्रति एकड़ है. एक फली में 4 से 5 दाने होते हैं. दाना मोटा, बड़ा, वजनदार औरेंज कलर का होता है और उत्पादन क्षमता 12 से 14 क्विंटल प्रति एकड़ है.

विशेष गुण : इस की खासियत है कि इस किस्म के पौधे में उकठा रोग नहीं लगता है. साथ ही, पौधे में अधिक शाखाएं व फलफूल, फलियां लगती हैं. पोषक तत्वों से भरपूर यह दाल खाने में काफी स्वादिष्ठ भी होती है.

बोने की विधि : लाइन से लाइन की दूरी 4 फुट और बीज से बीज की दूरी 3 फुट पर इस किस्म के पौधे लगाएं, तो बेहतर उपज मिलती है.

मिश्रित खेती (Mixed farming)

कम समय में तैयार होती मूंग : मूंग जनकल्याणी महज 55 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. फलियां गुच्छों में लगती हैं. एक फल में तकरीबन 10-12 दाने होते हैं. फली लंबी व दाना मोटा होता है. दाना बड़ा और गहरा हरा रंग लिए होता है. इस प्रजाति में पीला रोग नहीं लगता.

मूंग की उत्पादन क्षमता : इस की पैदावार क्षमता 6-7 क्विंटल प्रति एकड़ मिलती है और बोआई के लिए बीज की मात्रा 6 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से लगती है. अरहर कुदरत 3 और जनकल्याणी मूंग एकसाथ लगा कर मिश्रित खेती कर के अधिक लाभ ले सकते हैं.

अधिक जानकारी के लिए आप किसान प्रकाश सिंह रघुवंशी के मोबाइल नंबर 9839253974, 9939253974 पर बात कर सकते हैं.