पशु चिकित्सक (Veterinarian) बनें या करें उद्यम, खुले अनेक रास्ते

हिसार : लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास), हिसार के पशु चिकित्सा महाविद्यालय के वर्ष 2018 बैच के 67 नवप्रशिक्षित स्नातक विद्यार्थियों के लिए शपथ समारोह का आयोजन किया गया, जिन में 21 छात्राएं और 46 छात्र शामिल रहे.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा मुख्य अतिथि एवं आईपीवीएस निदेशक डा. एसपी दहिया, छात्र कल्याण निदेशक डा. पवन कुमार मंच पर उपस्थित रहे.

कार्यक्रम की अध्यक्षता पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग ने की. इस के बाद नवप्रशिक्षित स्नातकों को पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग ने शपथ दिलाई.

शपथ समारोह के बाद मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा द्वारा नवप्रशिक्षित स्नातक विद्यार्थियों को इंटर्नशिप कंप्लीशन सर्टिफिकेट वितरित किए गए.

इस अवसर पर मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा ने नवप्रशिक्षित स्नातक छात्रों को कहा कि उन की शिक्षा यहीं खत्म नहीं हुई है, आप लोग आगे भी अपने ज्ञान में लगातार वृद्धि करते रहना है, क्योंकि सीखना एक निरंतर प्रक्रिया है. समय और स्थान के मुताबिक अपनेआप को अपडेट करना भी बहुत जरूरी है.

उन्होंने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि पशु चिकित्सक आज के समाज का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और पशु चिकित्सा एक चुनौतीपूर्ण व्यवसाय है. नवप्रशिक्षित स्नातक विद्यार्थियों को इसे इसी परिप्रेक्ष्य में पूरा करना है. आप ने इस पाठ्यक्रम में जो वैज्ञानिक ज्ञान और कौशल हासिल किया है, उस का प्रयोग समाज की उन्नति के लिए करना है और अपने कार्यस्थल पर ड्यूटी का निर्वहन पूरी ईमानदारी से करना है, ताकि वे समाज को अच्छी सेवाएं दे सकें.

डा. वीके वर्मा ने कहा कि हमारा व्यवसाय भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है और हमें चाहिए कि हम उद्यमिता की तरफ ध्यान दें और नौकरी तलाशने वाले न बन कर नौकरी देने वाले बनें, जिस के लिए आप स्टार्टअप के तौर पर दुग्ध एवं मांस प्रसंस्करण संयंत्र, पशु चिकित्सा निदान प्रयोगशालाएं, औनलाइन पशु उत्पाद/पशु बाजार जैसे कई अन्य उद्यम शुरू कर सकते हैं.

 

पशु चिकित्सक (Veterinarian)लुवास कुलपति ने उपस्थित अधिकारियों, विभागाध्यक्षों, फैकल्टी सदस्यों, शपथ लेने वाले पशु चिकित्सक छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि आप सब बधाई के पात्र हैं, क्योंकि आप सब की अथक मेहनत के कारण ही हम ये आज का समारोह मना रहे हैं. लुवास परिवार की कड़ी मेहनत से ही आप आज समाज में एक उत्तम स्थान लेने के लिए सजग हैं.

कुलपति ने उपस्थित अभिभावकों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि आप ने आज से साढ़े 5 वर्ष पूर्व अपने बच्चों को जिस भरोसे के साथ लुवास में प्रवेश दिलाया था, विश्वविद्यालय उस भरोसे को कायम रखते हुए उन बच्चों को परिपक्व पशु चिकित्सा विशेषज्ञों के रूप में लौटा रहा है.

अंत में उन्होंने प्रशिक्षित छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि अब आप स्वतंत्र पशु चिकित्सा करने योग्य होंगे एवं समाज को अपनी सेवाएं प्रदान कर सकेंगे.

पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग ने नवप्रशिक्षित स्नातक छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि आने वाले समय में उन्हें एक परिपक्व पशु चिकित्सक की तरह प्रदेश के पशुधन की सेवा करनी है, जिस से कि विश्वविद्यालय का नाम रोशन हो.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि आने वाले समय में आप को समाज की अगुआई करनी है. उम्मीद है, पशु चिकित्सा की पढ़ाई खत्म होने के बाद अब आप पशुपालकों, समाज, राज्य और देश की उन्नति के लिए हर संभव प्रयास करेंगे.

पशु चिकित्सक (Veterinarian)

शपथ लेने वाले नव पशु चिकित्सा छात्रों में से बाद में डा. आशीष चौहान, डा. करन एवं डा. जैस्मिन ने डिगरी के दौरान के अनुभव साझा किए व डा. रमन मोर ने अपने सभी दोस्तों को याद करते हुए एक कविता प्रस्तुत की.

इस अवसर पर लुवास विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. एसएस ढाका, अनुसंधान निदेशक डा. नरेश जिंदल, स्नातकोत्तर अधिष्ठाता डा. मनोज रोज, मानव संसाधन एवं प्रबंध निदेशक डा. राजेश खुराना, डेयरी साइंस कालेज के अधिष्ठाता डा. सज्जन सिहाग, विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष व विद्यार्थी उपस्थित रहे.

डा. दिव्या अग्निहोत्री ने मंच का संचालन किया और संक्षेप में इंटर्नशिप प्रोग्राम के बारे में बताया. अंत में टीवीसीसी निदेशक डा. ज्ञान सिंह ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया.

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) में जीवाणु व केंचुए कैसे हैं मददगार

प्राकृतिक खेती में केंचुए और जीवाणुओं का खासा महत्व है. वह खेत की मिट्टी को प्राकृतिक तरीके से सुधारने का काम करते हैं. इसी विषय पर अधिक जानकारी के लिए प्राकृतिक खेती करने वाले प्रगतिशील किसान राममूर्ति मिश्रा से विस्तार से जानिए.

प्राकृतिक खेती से मिट्टी में लाभदायक कीटों और केंचुओं की संख्या में कैसे इजाफा होता है?

प्राकृतिक खेती में जैविक खेती की तरह जैविक कार्बन खेत की ताकत का इंडिकेटी नहीं है, बल्कि केंचुए की मात्रा, जीवाणुओं की मात्रा व गुणवत्ता खेत की ताकत के द्योतक हैं. खेत में जब जैविक पदार्थ विघटित होता है और जीवाणु व केंचुए बढ़ते हैं, तो खेत का जैविक कार्बन स्वतः ही बढ़ जाता है. जीवाणुओं का शरीर प्रोटीन मास होता है और जब जीवाणुओं की मृत्यु होती है तो यह प्रोटीन मास जडों के पास ह्यूमस के रूप में जमा हो कर पौध का हर प्रकार से पोषण करने में सहायक होता है. दूसरे लाभदायक जीवाणु, जो रासायनिक खाद व दवाओं के कारण भूमि में नहीं पनप पाते हैं. प्राकृतिक खेती से वे जीवाणु भी बढ़ जाते हैं, जिस के फलस्वरूप भूमि व पौधों की कीट, बीमारियों, नमक, सूखा, बदलता मौसम आदि विषमताओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है.

प्राकृतिक खेती के लिए जीवामृत का निर्माण किसान कैसे करें?

जीवामृत, जो कि वह सूक्ष्म जीवाणुओं का महासागर है. इस को बनाने के लिए 10 लिटर देशी गाय का गौमूत्र, 10 किलोग्राम ताजा देशी गाय का गोबर, 2 किलोग्राम बेसन, 2 किलोग्राम गुड़ व 200 ग्राम बरगद के पेड़ के नीचे की जीवाणुयुक्त मिट्टी को 200 लिटर पानी में मिला कर इन को जूट की बोरी से ढ़क कर छाया में रखना चाहिए. फिर सुबहशाम डंडे से घड़ी की सुई की दिशा में घोलना चाहिए. अंत में 48 घंटे बाद छान कर सात दिन के भीतर ही प्रयोग किया जाना चाहिए.

छोटे और मझोले किसान प्राकृतिक या जैविक खेती कैसे करें?

देश में 86 फीसदी किसान छोटे और मझोले हैं. जैविक खेती के आरंभ में वर्षों में उपज में जो कमी आती है, उसे वे सहन नहीं कर सकते हैं. इस के अतिरिक्त जैविक खाद व जैविक दवाओं की कीमत रासायनिक इनपुट से भी अधिक है, जिस से जैविक खेती में छोटे किसानों का शोषण होता है. जैविक और प्राकृतिक खेती में खेत में किसी भी खाद का प्रयोग नहीं किया जाता है, बल्कि जीवामृत व घनजीवामृत के माध्यम से जीवाणुओं का कल्चर डाला जाता है.

जीवामृत जब सिंचाई के साथ खेत में दिया जाता है, तो इस में विद्यमान जीवाणु भूमि में जा कर मल्टीप्लाई करने लगते हैं और इन में ऐसे अनेक जीवाणु होते हैं, जो वायुमंण्डल में मौजूद 78 फीसदी नाइट्रोजन को पौधे की जडों व भूमि में स्थिर कर देते हैं. दूसरे, पोषक तत्वों की उपलब्धि बढ़ाने में जीवाणुओं के साथ केंचुआ भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, जो भूमि की निचली सतहों से पोषक तत्व ले कर पौधे की जडों को उपलब्ध करवाता है.

प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को क्या सलाह देना चाहेंगे?

प्राकृतिक खेती में यदि जीवामृत व घनामृत के अतिरिक्त कुछ सस्य क्रियाओं को अपनाया जाए, तो पहले ही वर्ष उपज में कमी नहीं आती है. फिर भी किसानों को सलाह दी जाती है कि पहले वर्ष केवल आधा या एक एकड़ में प्राकृतिक खेती करें और अनुभव होने के बाद ही इस के अंतर्गत क्षेत्रफल बढ़ाए जाए, ताकि यदि किसी कारणवश उपज में कमी आए, तो इस से किसान की आमदनी कम से कम प्रभावित हो और देश की खाद्य सुरक्षा किसी भी हालत में प्रभावित न हो.

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) उत्पाद को मिले बेहतर दाम

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में ‘वैज्ञानिककिसान विचारविमर्श’ संगोष्ठी का आयोजन किया गया. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने इस मीटिंग की अध्यक्षता की. इस मीटिंग में प्रबंधन मंडल के भूतपूर्व सदस्य सीपी आहुजा, शरद बतरा व शिवांग बतरा भी मौजूद रहे. कार्यक्रम में प्राकृतिक खेती कर रहे विभिन्न जिलों के प्रगतिशील किसानों ने भाग लिया.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने आधुनिक युग में प्राकृतिक खेती के विस्तार से ले कर उस की अहमियत पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि ‘वैज्ञानिककिसान विचारविमर्श’ संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक खेती कर रहे किसानों की समस्याओं को जान कर उन का हल करना व शोध कार्यों को उन के अनुरूप बनाना है.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों के उत्पादों को बेहतर दाम दिलवाने के लिए उपभोक्ताओं से सामंजस्य व सीधे तौर पर जुड़ कर आपस में विश्वास पैदा करना जरूरी है.

उन्होंने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए विशेष रूप से पाठ्यक्रम बनाना, अधिक से अधिक प्रशिक्षणों का आयोजन व किसान समुदाय द्वारा तैयार किए गए कृषि मौडल की प्रदर्शनी भी लगाने पर जोर दिया. प्राकृतिक खेती कर रहे किसान व्हाट्सएप ग्रुप बनाएं, जिस में वे अपनी समस्याएं व समाधान शेयर करें, ताकि उस का तुरंत एकदूसरे को लाभ पहुंच सके, साथ ही आपस में तकनीकों का भी आदानप्रदान हो.

उन्होंने आगे बताया कि भावी पीढ़ियों को रसायनमुक्त व पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ उपलब्ध करवाना वैज्ञानिकों व किसानों की मुख्य प्राथमिकता है. इस के लिए उन्होंने कहा कि किसान शुरुआत में कम जगह पर प्राकृतिक खेती को अपनाएं और धीरेधीरे उस का क्षेत्रफल बढ़ाते जाएं.

उन्होंने वैज्ञानिकों से भी आह्वान किया कि वे आधुनिक युग में आने वाली समस्याओं को ध्यान में रखते हुए जब भी शोध करें, तो विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों, पानी की उपलब्धता और गुणवत्ता, श्रमिकों की उपलब्धता, वर्षा, जमीन का और्गेनिक कार्बन, खरपतवार, पूरे साल का फसल चक्र, कीट और बीमारियों के प्रबंधन से संबंधित बातों पर मंथन जरूर करें.

हकृवि में स्थापित पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैविक खेती उत्कृष्टता केंद्र के निदेशक डा. अनिल कुमार ने विभिन्न विषयों पर चल रहे प्रयोगों के बारे में जानकारियां साझा की. साथ ही, किसानों के सवालों के जवाब भी दिए.

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती के तहत विभिन्न फलों एवं सब्जियों पर शोध किए जा रहे हैं. अनुसंधानों के उचित परिणामों को किसानों तक पहुंचाया जा रहा है, जिस से कि वे प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए अधिक से अधिक जागरूक हों. संगोष्ठी में किसानों का यह मत था कि प्राकृतिक खेती के प्रमाणीकरण की प्रक्रिया को सरल बनाया जाए.

इस अवसर पर अतिरिक्त अनुसंधान निदेशक डा. राजेश कुमार गेरा, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य सहित सहायक निदेशक डा. सुरेंद्र यादव, संयुक्त निदेशक डा. सुरेश कुमार, डा. सुमित देशवाल, डा. सुरेश कुमार, डा. किशोर कुमार, डा. दीपिका, मंजीत सहित प्रगतिशील किसान, जिन में सुधीर महता, सुभाष बेनीवाल, कमल वीर, पंकज माचरा, मुल्कराज चावला, सुरेन्द्र कुमार, राजेंद्र कुमार, रणधीर सिंह, मनेाज कुमार, सूरजभान, धर्मवीर पूनिया, सुरजीत सिंह, नरेश कुमार, अमनदीप, वीरेंद्र कुमार, कृष्ण, दलजीत सिंह, गौरव तनेजा, मुकेश कंबोज, आशीष महता, डा. बलविंदर सिंह, संजय व दिलेर भी उपस्थित रहे.

विश्वविद्यालय (University) को ऊंचाई पर ले जाने का काम किया

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के फ्लैचर भवन के सभा कक्ष में सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए सेवा सम्मान समारोह का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में कुलपति प्रो. बीआर कंबोज मुख्य अतिथि थे. उन्होंने अगस्त, सितंबर, अक्तूबर व नवंबर माह के दौरान 25 सेवानिवृत्त हुए विश्वविद्यालय के कर्मचारियों को शाल और स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया. कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने सेवानिवृत्त कर्मचारियों की सेवाओं की प्रशंसा की.

उन्होंने कहा कि सभी ने मिल कर विश्वविद्यालय को ऊंचाई पर ले जाने का काम किया है. यह अधिकारियों एवं कर्मचारियों के द्वारा किए गए उल्लेखनीय कामों का ही नतीजा है कि विश्वविद्यालय आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाए हुए है.

उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय सदैव सेवानिवृत्त कर्मचारियों का ऋणी रहेगा. आप के द्वारा दिए गए योगदान का ऋण उतारा नहीं जा सकता. कर्मचारी अपनेआप को सेवानिवृत्त न समझ कर परिवार व समाज को अपनी सेवाएं प्रदान करें. उन्हें विश्वविद्यालय से जुड़े रह कर भी उस के विकास में अपना सकारात्मक योगदान देते रहना चाहिए.

उन्होंने कर्मचारियों से विश्वविद्यालय के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखने और भावी पीढ़ी से अपने अनुभव साझा करने का आह्वान किया, ताकि वे भी उन की तरह सहनशीलता के साथ कार्य निष्पादन कर सकें.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अधिकारियों से कहा कि जब कभी भी रिटायर्ड कर्मचारी विश्वविद्यालय में आएं, तो उन्हें उचित मानसम्मान दिया जाए.

विश्वविद्यालय के वित्त नियंत्रक नवीन जैन ने रिटायर हुए कर्मचारियों का स्वागत करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के दरवाजे सदैव रिटायर कर्मचारियों के लिए खुले हुए हैं. वह अपने काम के लिए किसी भी समय यहां आ सकते हैं. उन्होंने रिटायर हुए कर्मचारियों को मिलने वाले लाभों की विस्तार से जानकारी दी.

रजिस्ट्रार डा. बलवान सिंह मंडल ने सेवानिवृत्त वैज्ञानिकों व कर्मचारियों को बधाई दी, साथ ही उन के अच्छे स्वास्थ्य व लंबी उम्र की कामना की.

इस अवसर पर ओएसडी डा. अतुल ढ़ींगड़ा, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य व अंशुल भी उपस्थित रहे.

विश्वविद्यालय से गत 4 माह में कुल 5 वैज्ञानिक और 20 गैरशिक्षक कर्मचारी रिटायर हुए.

वैज्ञानिकों में डा. तेजेंदर पाल मलिक, डा. कुशल राज, डा. राकेश महरा, डा. योगेंद्र कुमार यादव व डा. एसएस जाखड़ हैं, जबकि गैरशिक्षक कर्मचारियों में सुदेश, राकेश कुमार, मदन लाल, शिव सेवक, अल्का अरोड़ा, केशव प्रसाद, शशि बाला, राममेहर सिंह, अशोक कुमार, राजेंद्र कुमार, बहादुर सिंह, पृथ्वी सिंह, मोहन लाल, छांगा राम, रामबाई, रतन सिंह, सियाराम, सतनारायण, कर्ण सिंह व रमेश कुमार शामिल हैं.

मत्स्यपालन में स्वरोजगार (Self-Employment in Fisheries) की अपार संभावनाएं

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय में मत्स्यपालन के प्रति जागरूक करने व बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं, जिस में विभिन्न कालेज व स्कूलों के विद्यार्थियों ने भाग लिया.

इस समारोह में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. नीरज कुमार ने की.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अपने संबोधन में कहा कि विश्वविद्यालय के उन्नत अनुसंधानों के माध्यम से प्रदेश के मत्स्यपालन क्षेत्र को बढ़ाने में उपरोक्त महाविद्यालय की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी. मत्स्यपालन में स्वरोजगार की भी अपार संभावनाएं हैं.

उन्होंने विद्यार्थियों एवं शिक्षकों से आह्वान करते हुए कहा कि वे नीली क्रांति को बढ़ावा देेने के लिए कारगर कदम उठाएं. मत्स्यपालन के व्यवसाय में बढ़ोतरी करने के लिए भी विभिन्न योजनाओं एवं कार्यक्रमों को प्रभावशाली ढंग से क्रियान्वित किया जा रहा है.

उन्होंने शिक्षकों से कहा कि वे विद्यार्थियों में नेतृत्व गुणों को विकसित करें, ताकि विद्यार्थी राष्ट्र के नवनिर्माण में अपना योगदान दे सकें. उन्होंने छात्रों एवं शिक्षकों को नियमित बैठकें आयोजित करने का भी सुझाव दिया.

अधिष्ठाता डा. नीरज कुमार ने सभी का स्वागत करते हुए महाविद्यालय की प्रगति एवं गतिविधियों पर प्रकाश डाला, जबकि डा. रचना गुलाटी ने समारोह में सभी का धन्यवाद किया. मंच का संचालन अंकित व अजय ने किया. इस अवसर पर उपरोक्त महाविद्यालय के सभी शिक्षक, गैरशिक्षक कर्मचारी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे.

विभिन्न स्कूलों एवं महाविद्यालयों के विद्यार्थियों की रंगोली, पोस्टर, स्लोगन, वादविवाद, एक्वास्केपिंग व मत्स्यपालन क्षेत्र में उद्यमिता से संबंधित अनेक प्रतियोगिताएं भी करवाई गईं.

ये रहा प्रतियोगिताओं का परिणाम

इनोवेशन एंड एंटरप्रेंन्योरशिप प्रतियोगिता में उमेश ने प्रथम, कार्तिक ने द्वितीय और सूरज ने तृतीय स्थान, एक्वास्केपिंग में पूर्णिमा व आरजू ने प्रथम, रमन, कार्तिक व अमित ने द्वितीय, जबकि अंकित व विजय ने तृतीय स्थान प्राप्त किया.

वादविवाद प्रतियोगिता में विजयी निशा ने पहला, आशिका व उमेश ने दूसरा, जबकि विधि और शाइना ने तीसरा स्थान प्राप्त किया. उक्त प्रतियोगिता में कैंपस स्कूल की आरोही प्रथम, जबकि कृष्णा दूसरे स्थान पर रहे.

रंगोली प्रतियोगिता में मनोज व युक्ति प्रथम, दिव्या, खुशी, मुस्कान व प्रमोद द्वितीय, जबकि सुनील, दीक्षा, पूजा व निकिता तृतीय स्थान पर रहे. निकिता, कीर्ति, दीपक व महक ने सांत्वना पुरस्कार प्राप्त किया.

उक्त प्रतियोगिता में कैंपस स्कूल की कृति ने पहला, विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित राजकीय माध्यमिक विद्यालय की रेणुका, अंजली, भानू, सुशील, नंदिनी व प्रिया ने दूसरा, जबकि कैंपस स्कूल की तनीक्षा व नितीका ने तीसरा व नंदिनी और हिमांशी ने सांत्वना पुरस्कार प्राप्त किया.

समारोह में विद्यार्थियों द्वारा नृत्य एवं गायन सहित अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए, जिस में मानसी, खुशी, दीप्ति, मोहित, अमित, साहिल, सुहानी व जतिन ने भाग लिया.

कम लागत में प्राकृतिक खेती (Natural Farming) से कैसे करें अच्छी कमाई?

प्राकृतिक खेती के जरीए खेती की लागत में न केवल कमी लाई जा सकती है, बल्कि फसलों पर किए जाने वाले अंधाधुंध रसायनों के प्रयोग पर लगाम लगा कर सेहतमंद अनाज, फलसब्जियों आदि का उत्पादन भी किया जा सकता है.

प्राकृतिक खेती का सब से प्रमुख आधार है पशुपालन. क्योंकि पशुपालन से प्राप्त गोबर और गौमूत्र को मिट्टी की उत्पादन कूवत में कई गुना वृद्धि करने में सहायक माना जाता है.

गौपालन के जरीए खेती करने वाले प्रगतिशील किसान राममूर्ति मिश्रा ने अपने खेत की लागत को न केवल कम करने में सफलता पाई है, बल्कि वह जहरमुक्त खेती के जरीए लोगों की सेहत को सुधारने का काम भी कर रहे हैं.

किसान राममूर्ति मिश्रा से गौआधारित खेती को ले कर लंबी बातचीत हुई. पेश है उन से हुई बातचीत के खास अंश :

खेती की लागत में कमी लाने के साथ उसे टिकाऊ कैसे बनाएं?

खेती में प्रयुक्त रसायनों की बढ़ती कीमतों एवं घटती उत्पादकता और मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण प्रदूषण जैसी चुनौतियों का समाधान प्राकृतिक खेती में ही संभव है. अगर किसान फसल चक्र अपनाएं, तो खेती में विविधीकरण होता है और इस से पैदावार बिना लागत बढ़ाए ही बढ़ जाती है. प्राकृतिक खेती करने पर पारिस्थितिकी में विभिन्न वनस्पतियों, जीवों व जंतुओं की विविधता अधिक होने से इन का संतुलन बना रहता है और फसलों के स्वस्थ होने पर उन में रोग व व्याधि भी नहीं लगते. साथ ही, पैदावार भी अधिक प्राप्त होती है.

अगर किसान खेती की लागत में कमी के साथ टिकाऊ बनाना चाहते हैं, तो उन्हें गौआधारित प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए आगे कदम बढ़ाना होगा.

चूंकि प्राकृतिक खेती से प्राप्त उपज को सेहतमंद माना जाता है, इसलिए किसानों को उत्पाद की कीमत अधिक मिलती है.

अगर किसान जैविक खेती प्रमाणीकरण के नियमों का पालन कर जैविक प्रमाणीकरण करा लें, तो उन की उपज की मांग अपनेआप बढ़ जाती है.

प्राकृतिक खेती से मिट्टी की उत्पादन कूवत कैसे बढ़ती है?

हरित क्रांति से उत्पादन तो बढ़ा, लेकिन कई प्रकार की गंभीर समस्याएं भी पैदा हुई हैं. रसायनों के बहुत ज्यादा उपयोग के कारण कीटों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने से उन की जनसंख्या का नियंत्रण नहीं हो पा रहा है. साथ ही, जैव विविधता में कमी आ रही है. प्राकृतिक खेती से मिट्टी की सेहत अच्छी होगी और उत्पादन भी बेहतर होगा.

प्राकृतिक खेती में जीवाणु और केंचुए की संख्या बढ़ाने के लिए कुछ सस्य क्रियाएं, जैसे खेत की कम से कम जुताई, जीवाणुओं के फूड सोर्स के तौर पर फसल अवशेष व हरी खाद का प्रयोग, मल्चिंग, वापसा, जैव विविधता और ड्रिप सिंचाई के माध्यम से जीवामृत के प्रयोग खेत में जीवाणुओं की वृद्धि करने में सहायक होते हैं. इसे अपना कर किसान कृषि निवेशों की बाजार से निर्भरता को कम कर सकते हैं. इस प्रकार लागत में भी कमी आएगी. इस से उत्पादित खाद्य पदार्थों से मानव स्वास्थ्य को सुरक्षित बनाया जा सकता है. साथ ही, मृदा स्वास्थ्य को सुधारा जा सकता है.

किसान शुरुआत में प्राकृतिक खेती के जरीए थोड़ी सी भूमि पर इस का परीक्षण अवश्य करें.

आधुनिक रासायनिक खेती से उत्पादन बढ़ा है, तो किसानों की आय भी बढ़ी है, किंतु आमदनी का ज्यादा हिस्सा बीमारी में चला जाता है और पर्यावरण का नुकसान हो रहा है. साथ ही, उत्पादकता भी घट रही है. इसलिए प्राकृतिक खेती एक अच्छा विकल्प हो सकती है.

एक देशी गाय से किसान कितने क्षेत्रफल में प्राकृतिक खेती कर सकते हैं?

प्राकृतिक खेती में एक देशी गाय से 30 एकड़ तक की खेती की जा सकती है, क्योंकि एक एकड़ की खुराक तैयार करने के लिए गाय के एक दिन के गोबर और गौमूत्र की आवश्यकता होती है. प्राकृतिक खेती में बाजार से कुछ भी खरीदने की जरूरत नहीं है, जबकि जैविक खेती एक महंगी पद्धति है.

पशु चिकित्सा, जनस्वास्थ्य एवं महामारी पर कार्यशाला

हिसार : लाला लाजपत राय पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार के पशु चिकित्सा जनस्वास्थ्य एवं महामारी विज्ञान विभाग में क्रोमैटोग्राफी तकनीकों के प्रयोग द्वारा खाद्य एवं पर्यावरण संबंधी नमूनों में दूषित पदार्थों (संदूषकों) की जांच विषय पर तीनदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डा. विनोद कुमार वर्मा के दिशानिर्देशन में किया गया.

इस कार्यशाला के समापन समारोह में डा. सज्जन सिहाग, अधिष्ठाता, डेयरी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए. इस अवसर पर डा. सज्जन सिहाग ने कहा कि इस कार्यशाला में सभी प्रतिभागी निश्चित रूप से लाभान्वित हुए होंगे और इन क्रोमैटोग्राफी तकनीकों को अपनेअपने कार्यक्षेत्रों में प्रयोग करने के लिए सभी प्रतिभागियों को प्रेरित किया.

डा. सज्जन सिहाग ने इन क्रोमैटोग्राफी आधारित तकनीकों से संबंधित कार्यशालाओं को भविष्य में आयोजन करने और इन के प्रयोग द्वारा खाद्य व पशुओं के खाद्य पदार्थों में विभिन्न टोक्सिकनों की जांच के लिए तकनीकों के प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया.

सभी प्रतिभागियों को मुख्य अतिथि द्वारा प्रमाणपत्र दिए गए
प्रशिक्षण के सफल आयोजन के बारे में जानकारी देते हुए पशु चिकित्सा, जनस्वास्थ्य एवं महामारी विज्ञान के विभागाध्यक्ष एवं निदेशक मानव संसाधन एवं प्रबंधन डा. राजेश खुराना ने बताया कि इस तीनदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में प्रदेश के विभिन्न संस्थानों के 20 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया.

उन्होंने बताया कि भविष्य में भी क्रोमैटोग्राफी तकनीकों से संबंधित अन्य तरीकों एवं उन के उपयोग पर भी कार्यशालाओं एवं प्रशिक्षण का आयोजन किया जाएगा.

इस कार्यक्रम का संचालन विभाग के प्राध्यापक एवं प्रशिक्षक संयोजक डा. विजय जाधव द्वारा किया गया. उन्होंने प्रतिभागियों से इस कार्यशाला से हुए फायदे व भविष्य में इस को अधिक प्रभावी तरीके से आयोजन करने के लिए फीडबैक लिया.

इस अवसर पर विभाग के अन्य संकाय सदस्य डा. दिनेश मित्तल, डा. रेनू गुप्ता, डा. पल्लवी मुदगिल एवं डा. मनेश कुमार भी उपस्थित रहे. कार्य्रकम के अंत में धन्यवाद प्रस्ताव डा. विजय जाधव द्वारा प्रस्तुत किया गया.

मत्स्य आहार संयंत्र (Fish Feed Plant) से सानिया बनी सफल उद्यमी

छिंदवाड़ा : प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना छिंदवाड़ा जिले के विकासखंड परासिया के ग्राम जाटाछापर की सानिया अली और उन के पति जुनेद खान के लिए खासी अच्छी साबित हुई है. इस योजना के अंतर्गत जिले के विकासखंड छिंदवाड़ा के ग्राम भैंसादंड में लगभग साढ़े 3 करोड़ रुपए की लागत से स्थापित 20 टन प्रति दिवस के उत्पादन क्षमता के प्रदेश के पहले मत्स्य आहार संयंत्र की स्थापना कर सानिया अली और उन के पति जुनेद खान सफल उद्यमी बन गए हैं. उन की माली हालत अब अत्यंत सुदृढ़ हो गई है.

सानिया अली और उन के पति जुनेद खान ने अपनी जेके इंडस्ट्रीज की स्थापना से जहां वर्ष 2023-24 में लगभग 90 लाख रुपए और वर्ष 2023-24 में लगभग पौने 2 करोड़ रुपए का टर्नओवर प्राप्त किया है, वहीं अपने इस उद्योग से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 200 व्यक्तियों को रोजगार भी दिया है. अब वर्ष 2024-25 में उन्हें अपने व्यापार से लगभग ढाई से 3 करोड़ रुपए का टर्नओवर प्राप्त होने की संभावना है. हितग्राही को इस मत्स्य आहार संयंत्र में उत्पादित मत्स्य आहार के विक्रय से प्रतिवर्ष लगभग 8 से 10 लाख रुपए तक की आय प्राप्त हो रही है.

जेके इंडस्ट्रीज, भैंसादंड की स्वामी सानिया अली अपने पति जुनेद खान के साथ इस मत्स्य आहार संयंत्र का संचालन कर रही हैं. उन्होंने अपने पति जुनेद खान को इस इंडस्ट्रीज का मुख्य कार्यपालन अधिकारी नियुक्त किया है. मुख्य कार्यपालन अधिकारी जुनेद खान इस इंडस्ट्रीज को संचालित करने के लिए अपनी पत्नी सानिया अली को भरपूर सहयोग देते हैं. उन की मेहनत व संघर्ष का नतीजा है कि उन का व्यापार अब सफलता की ओर निरंतर बढ़ रहा है और एक सफल उद्यमी के रूप में उन की पहचान बन रही है.

जुनेद खान ने बताया कि वे लगभग 16 वर्ष की आयु से मत्स्यपालन के क्षेत्र में काम कर रहे हैं, इस के पूर्व वे वर्ष 2018 में जिले के जुन्नारदेव विकासखंड के ग्राम घोड़ावाड़ी में एक पौंड को किराए पर ले कर मत्स्यपालन कर चुके हैं.

2 साल तक उन्हें इस काम में घाटा हुआ और तीसरे वर्ष इस काम से उन्हें लाभ प्राप्त होना शुरू हुआ, किंतु अनुभव की कमी के कारण इस में अधिक सफलता नहीं मिली. वे मत्स्य आहार के क्षेत्र में कुछ बेहतर करना चाहते थे, इसलिये वे उचित मार्गदर्शन के लिए मत्स्य विभाग पहुंचे, जहां तत्कालीन सहायक संचालक मत्स्योद्योग द्वारा पुन: 5 लाख रुपए तक की मत्स्य यूनिट की जानकारी दी गई, जिस से उन्हें संतुष्टि नहीं मिली.

उन्होंने अन्य बड़ी योजनाओं के संबंध में जानकारी प्राप्त करना चाही, तो उन्हें प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की जानकारी हुई, जिस में निजी क्षेत्र में मत्स्य आहार संयंत्र की स्थापना के लिए 2 करोड़ रुपए तक का लोन और 60  फीसदी का अनुदान उपलब्ध कराया जाता है. इस जानकारी से उन का मन प्रसन्न हो गया और उन्होंने अपनी पत्नी के नाम से इस योजना के अंतर्गत अपना प्रकरण तैयार कराया और मत्स्य विभाग के माध्यम से उन्हें 2 करोड़ रुपए का लोन और 60 फीसदी अर्थात 1.20 करोड़ रुपए का अनुदान प्राप्त हुआ. इस संयंत्र की 13 सितंबर, 2021 को स्थापना की गई, जिस का उद्घाटन तत्कालीन संचालक मत्स्योद्योग भरत सिंह, संयुक्त संचालक शशिप्रभा धुर्वे और सहायक संचालक मत्स्योद्योग रवि गजभिये द्वारा किया गया.

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री डा. एल. मुरुगन ने 4 अप्रैल, 2023 को मध्य प्रदेश के इस प्रथम मत्स्य आहार संयंत्र का अवलोकन किया और संयंत्र के माध्यम से तैयार किए जा रहे मत्स्य आहार की प्रक्रिया की जानकारी के साथ ही मत्स्य आहार की गुणवत्ता, उत्पादन क्षमता, विक्रय दर, मत्स्य आहार की पैकिंग, निर्यात आदि के संबंध में विस्तार से जानकारी प्राप्त कर इस संयंत्र के माध्यम से तैयार किए जा रहे मत्स्य आहार और अन्य प्रक्रियाओं पर संतोष व्यक्त करते हुए इस की सराहना भी की.

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के देश में क्रियान्वयन के सफल 3 वर्ष पूरे होने पर 15 सितंबर, 2023 को ब्रिलिएंट कन्वेंशन सेंटर, इंदौर में केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला के मुख्य आतिथ्य में आयोजित कार्यक्रम में भी उन्होंने प्रदेश के प्रथम मत्स्य आहार संयंत्र के रूप में अपने संयंत्र का स्टाल लगा कर प्रदर्शन भी किया, जिस की केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला, केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री डा. एल. मुरुगन और प्रदेश के अन्य मंत्रियों ने सराहना की.

मत्स्य आहार संयंत्र से छिंदवाड़ा जिले के साथ ही आसपास के जिलों बैतूल, सिवनी, बालाघाट, इंदौर, भोपाल, खंडवा, राजगढ़, नर्मदापुरम आदि एवं प्रदेश के बाहर के प्रदेशों असम, ओड़िसा, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश आदि में भी विक्रय किया जा रहा है.

मुख्य कार्यपालन अधिकारी जुनेद खान ने बताया कि इस संयंत्र की स्थापना में उन की पत्नी और उन्हें अत्यंत कड़ा संघर्ष करना पड़ा.

उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि संयंत्र की स्थापना के लिए मत्स्य विभाग से लोन और अनुदान प्राप्त करने के अलावा अपने पिता जमील खान से लगभग 30 लाख रुपए की लागत से एक एकड़ भूमि खरीदवाई, बैंक औफ बड़ौदा की छिंदवाड़ा शाखा से 50 लाख रुपए का कर्जा लिया, व्यक्तिगत कर्ज लिया और अपनी सारी जमापूंजी लगाने के साथ ही अन्य रिश्तेदारों से भी माली मदद ली. भवन व अधोसंरचना निर्माण में लगभग 80 लाख रुपए, मुख्य आहार निर्माण मशीन में लगभग सवा करोड़ रुपए निजी ट्रांसफार्मर की स्थापना पर लगभग 12 लाख रुपए, रौ मेटेरियल पर लगभग 13 से 14 लाख रुपए, पैकिंग सामग्री पर लगभग 4 लाख रुपए, ट्रेड मार्क लेने पर लगभग 3 लाख रुपए और अन्य मदों पर राशि खर्च हुई.

उन्होंने आगे बताया कि आहार संयंत्र की स्थापना में पहले 2 साल बहुत ही मुश्किल हालात में बीते. राजस्थान और चीन से आहार संयंत्र की अत्याधुनिक मशीनें खरीदी गई थीं, किंतु राजस्थान से खरीदी मशीन बारबार बंद हो रही थी और उस के पार्ट्स व इंजीनियर को राजस्थान से बुलवाने में काफी समय लगता था. ऐसी स्थिति में 4 से 7 दिनों तक उत्पादन प्रभावित होता था. सुबह 9 बजे से लगातार रात 4 से 5 बजे तक मशीन का सुधार कार्य चलता था और इस काम में 3 से 4 दिन लग जाते थे. इस स्थिति से परेशान हो कर संबंधित कंपनी को मशीन वापस भेज कर उस से दूसरी मशीन रिप्लेस करवाई गई और काम शुरू किया गया.

मशीनरी ठीक होने के बाद जब अप्रैलमई, 2022 में उत्पादन प्रारंभ हुआ, तो मार्केटिंग की समस्या सामने आई और इस में एक वर्ष तक घाटे की स्थिति रही. ऐसा प्रतीत हो रहा था कि संयंत्र को बंद करना पड़ सकता है, किंतु उन्होंने हार नहीं मानी और न ही उन की हिम्मत टूटी.

अपनी जिद और जुनून के दम पर उन्होंने मार्केटिंग के लिए अपनी इंडस्ट्री का ट्रेडमार्क लिया और देश के विभिन्न राज्यों में 15 डीलर नियुक्त किए, जिन के माध्यम से उन्हें व्यापार में सफलता मिलनी शुरू हुई.

मुख्य कार्यपालन अधिकारी जुनेद खान ने बताया कि मत्स्य आहार बनाने के लिए उन्होंने कोलकाता और नई दिल्ली के वैज्ञानिकों और डाक्टरों से रेसिपी प्राप्त की और आहार बनाना शुरू किया. मत्स्य आहार बनाने के लिए रौ मेटेरियल के रूप में सोयाबीन व सरसों की खली, गेहूं, मक्का, चावल, सूखी मछली, मछली का तेल, मेडिसन, मिनरल्स और अन्य सामग्री का उपयोग किया जा रहा है. उन के संयंत्र में मछलियों के साइज के हिसाब से आहार तैयार किया जाता है, जिस में 20 किलोग्राम और 35 किलोग्राम के पैकेट तैयार किए जाते हैं. 20 किलोग्राम की पैकिंग में 4 प्रकार के आहार बनाए जाते हैं, जिस में डस्ट में 40 फीसदी प्रोटीन व 6 फीसदी फेट, एक एमएम में 32 फीसदी प्रोटीन व 6 फीसदी फेट, 2 एमएम में 30 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट और 28 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट रहता है.

वहीं दूसरी ओर 35 किलोग्राम की पैकिंग में 3 एमएम में 28 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट, 4 व 6 एमएम में 28 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट, 4 एमएम में 26 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट, 4 एमएम में 24 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट और 4 एमएम में 20 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट रहता है.

इस पौष्टिक आहार से 6 माह में ही मछलियों का विकास एक से डेढ़ किलोग्राम तक होने पर वे बिकने को तैयार हो जाती हैं. इन के बिकने से कम समय में अधिक आय प्राप्त होती है और मत्स्यपालक लाभान्वित होते हैं, जबकि दूसरी कंपनियों के आहार में यह विकास 8 से 10 माह में होता है. बाजार मूल्य से 20 फीसदी कम मूल्य पर मत्स्य आहार उपलब्ध कराने पर हमारे संयंत्र से उत्पादित पौष्टिक आहार की मांग बढ़ती जा रही है.

उन्होंने आगे बताया कि मुख्य संयंत्र में प्रत्यक्ष रूप से 20 कर्मचारी काम कर रहे हैं, जिन्हें स्थायी रोजगार मिला है, जबकि अप्रत्यक्ष रूप से 15 डीलरों के पास 10-10 किसानों के अलावा 15 से 20 अन्य व्यक्ति रोजगार प्राप्त करते हैं और ट्रांसपोर्ट के काम में लगे 10 ट्रकों के 20-20 ड्राइवरों व कंडक्टरों को भी स्थायी रोजगार मिला है.

उन्होंने यह भी बताया कि उन के परिवार में पतिपत्नी के अलावा उन का एक 7 साल का बेटा व 3 साल की बेटी है. उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की तालीम हासिल की है, जबकि उन की पत्नी इलेक्ट्रिक इंजीनियर हैं.

अपने मत्स्य आहार संयंत्र को उन्होंने भारत का सब से बड़ा आहार निर्माण संयंत्र बनाने का संकल्प लेते हुए अपने लक्ष्य की पूर्ति की ओर वे निरंतर बढ़ रहे हैं.

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होने से उन्हें समाज में भी सम्मान मिला है. वह और अन्य उद्यमियों को इस योजना का लाभ लेने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं.

उन्होंने अपने पिता जमील खान, जिन्हें वे अपना गुरु मान कर उनके सिखाए रास्ते पर अपने उद्योग को चला रहे हैं, के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित किया है. साथ ही, इस योजना के अंतर्गत मत्स्य आहार संयंत्र चलाने में मार्गदर्शन और तकनीकी सहयोग प्रदान करने के लिए सहायक संचालक मत्स्योद्योग राजेंद्र सिंह, सहायक मत्स्योद्योग अधिकारी संजय अंबोलीकर और मत्स्य निरीक्षक अनिल राउत के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित किया है.

 किसानों के खेतों पर लगेंगे 50 हजार से अधिक सोलर पंप (Solar Pumps)

जयपुर : मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि प्रदेश सरकार किसानों की आमदनी बढ़ा कर उन्हें खुशहाल और समृद्ध करने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने आते ही सब से अधिक फैसले किसान हित में लिए हैं. पीएम किसान सम्मान निधि के तहत किसानों के लिए वित्तीय सहायता को 6,000 से बढ़ा कर 8,000 रुपए प्रतिवर्ष किया गया है और गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 125 रुपए प्रति क्विंटल का अतिरिक्त बोनस दे कर इसे 2,400 रुपए कर दिया गया है.

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा पिछले दिनों जयपुर के दुर्गापुरा स्थित राज्य कृषि प्रबंध संस्थान में आयोजित पीएम कुसुम सौर पंप संयंत्र स्वीकृतिपत्र वितरण समारोह को संबोधित कर रहे थे. समारोह में 500 से ज्यादा किसान उपस्थित थे, जिन में से 10 किसानों को मुख्यमंत्री और कृषि एवं उद्यानिकी मंत्री डा. किरोड़ी लाल ने स्वीकृतिपत्र प्रदान किए.

विभिन्न जिलों में पंचायत समिति केंद्रों पर किसान वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से जुड़े. सोलर पंप के लिए प्रदेश के लगभग 50,000 किसानों को स्वीकृतियां जारी की गई हैं, इस पर लगभग 1,830 करोड़ रुपए का खर्च होगा, जिस में से 908 करोड़ रुपए अनुदान के रूप में किसानों को प्रदान कर लाभान्वित किया जाएगा. इन सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना से लगभग 200 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा.

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि हमारे किसानों की कड़ी मेहनत के कारण ही आज राजस्थान इसबगोल एवं जीरा उत्पादन में देशभर में प्रथम, मैथी, लहसुन एवं सौंफ के उत्पादन में दूसरे और अजवाइन एवं धनिया के उत्पादन में तीसरे स्थान पर है. किसानों की उपज बढ़ाने के लिए राज्य बजट में 12 लाख किसानों को मक्का, 8 लाख किसानों को बाजरा, 7 लाख किसानों को सरसों, 4 लाख किसानों को मूंग एवं 1-1 लाख किसानों को ज्वार एवं मोठ के बीज की मिनीकिट निःशुल्क उपलब्ध कराने की घोषणा की गई है.

उन्होंने यह भी कहा कि उन्नत कृषि यंत्र किसानों को किराए पर उपलब्ध कराने के लिए 500 कस्टम हायरिंग केंद्रों की भी स्थापना की जाएगी.

पेयजल और सिंचाई के लिए पानी की समस्या होगी दूर
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि राज्य सरकार ने अपने 3 माह के अल्प कार्यकाल में पानी की समस्या को दूर करने के लिए प्राथमिकता से काम किया है. पूर्वी राजस्थान के लिए ईआरसीपी एकीकृत परियोजना और शेखावाटी क्षेत्र के लिए ताजेवाला हैडवर्क्स के ऐतिहासिक एमओयू के माध्यम से इन क्षेत्रों में पेयजल एवं सिंचाई के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध हो सकेगा. साथ ही, उदयपुर में देवास बांध परियोजना तृतीय एवं चतुर्थ के माध्यम से दक्षिण राजस्थान में भी जल की आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है. उन्होंने यह भी कहा कि इंदिरा गांधी नहर के 15 किलोमीटर लंबे कच्चे हिस्से को भी पक्का करवाने की मंजूरी दे दी गई है.

ऊर्जा के क्षेत्र में सरप्लस स्टेट बनेगा राजस्थान
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि किसानों को समय पर और पर्याप्त बिजली आपूर्ति सुनिश्चित हो, इस के लिए हम ने किसानों को सौ दिन की कार्ययोजना में 20 हजार से अधिक कृषि कनेक्शन जारी किए हैं. हाल ही में 3,325 मेगावाट क्षमता की थर्मल आधारित और 28,500 मेगावाट क्षमता की अक्षय ऊर्जा आधारित विद्युत परियोजनाओं के लिए 1 लाख, 60 हजार करोड़ रुपए के एमओयू किए हैं. इन परियोजनाओं की स्थापना के बाद प्रदेश ऊर्जा क्षेत्र में सरप्लस स्टेट बनेगा. हम भविष्य में बिजली खरीदने के बजाय बेचेंगे.

उन्होंने कहा कि पिछली सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन के कारण राज्य की समस्त बिजली कंपनियों पर ऋण भार बढ़ कर डेढ़ गुना हो गया था.

किसानों का हो रहा उत्थान
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि आजादी के बाद ‘गरीबी हटाओ’ के नारे बहुत लगे, मगर धरातल पर काम नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि देश में किसानों को संबल प्रदान करने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं. उन्होंने सोलर एनर्जी को बढ़ावा देने के लिए ’पीएम सूर्य घर : मुफ्त बिजली योजना’ शुरू करने की घोषणा की है, जिस में एक करोड़ घरों को 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली दी जाएगी.

उन्होंने कहा कि प्रदेश में सौर पंप सैट लगाने की दिशा में उल्लेखनीय काम हो रहा है. अब तक डेढ़ लाख से अधिक सोलर पंप सेट लगाए जा चुके हैं. राज्य सरकार पीएम कुसुम योजना के अंतर्गत प्रदेश में सभी मौजूदा ट्यूबवैलों का सौ फीसदी सौर ऊर्जा द्वारा संचालन सुनिश्चित करेगी.

गरीब किसान के सपने नहीं होंगे चकनाचूर
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि किसान कठिन हालात में संघर्ष कर अपने बच्चों को पढ़ने के लिए शहर भेजता है, ताकि वह सरकारी सेवा में आ कर जीवन में आगे बढ़ सके. मगर जब पेपर लीक होता है, तो किसानों के सपने चकनाचूर हो जाते हैं. हम ने सरकार बनते ही पेपर लीक के दोषियों पर सख्त कार्रवाई की और एसआईटी का गठन किया. आज गुनाहगारों की गिरफ्तारियां हो रही हैं. हमारा वादा है कि पेपर लीक का एक भी दोषी सजा से बच नहीं पाएगा.

इस अवसर पर कृषि एवं उद्यानिकी मंत्री किरोड़ी लाल ने कहा कि इस कार्यक्रम के माध्यम से पीएम कुसुम योजना के बी कंपोनेंट की शुरुआत प्रदेश में की गई है. जल्द ही राज्य सरकार ‘कृषि विभाग आप के द्वार’ अभियान शुरू करेगी, जिस में किसानों के घरघर जा कर उन्हें विभागीय योजनाओं की जानकारी दी जाएगी.

ये है पीएम कुसुम योजना
योजना में केंद्र व राज्य सरकार द्वारा किसानों को खेतों में सोलर पंप लगाने पर 60 फीसदी दिया जाता है, जिस में से 30 फीसदी अंशदान केंद्र व 30 फीसदी अंशदान राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है. इस के अतिरिक्त प्रदेश के अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के किसानों के लिए राज्य मद से 45 हजार रुपए का प्रति किसान  अतिरिक्त अनुदान भी दिया जा रहा है. जनजातीय क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति के किसानों को 3 एचपी एवं 5 एचपी क्षमता के सौर संयंत्र लगाने पर सौ फीसदी अनुदान दिया जा रहा है.
कार्यक्रम में ऊर्जा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हीरालाल नागर, सांसद रामचरण बोहरा, ऊर्जा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव आलोक, कृषि एवं उद्यानिकी विभाग के प्रमुख शासन सचिव वैभव गालरिया सहित विभिन्न जनप्रतिनिधि, तमाम अधिकारी, प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए किसान और बड़ी संख्या में आम लोग मौजूद रहे.

बीज परीक्षण (Seed Testing) के लिए बनेंगी प्रयोगशालाएं

कटनी : मध्य प्रदेश में उद्यानिकी फसलों के बीज परीक्षण के लिए प्रयोगशालाएं स्थापित की जाएंगी. राज्य सरकार “एक जिला-एक नर्सरी” योजना के तहत नर्सरियों को हाईटैक नर्सरी के रूप में विकसित करेगी. उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण मंत्री नारायण सिंह कुशवाह ने यह जानकारी उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा “आधुनिक तकनीकी से उद्यानिकी का समग्र विकास’’ विषय पर आयोजित दोदिवसीय कार्यशाला में दी.

मंत्री नारायण सिंह कुशवाह ने कहा कि लघु एवं सीमांत किसानों को उद्यानिकी की ओर आकर्षित करने के लिए आवश्यक है कि उन्हें उद्यानिकी फसलों के प्रमाणित बीज और पौध आसानी से उपलब्ध कराए जाएं. उन्होंने कहा कि इस के लिए उद्यानिकी विभाग प्रदेश में उन्नत बीज परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित करेगा.

उन्होंने कार्यशाला में विषय विशेषज्ञों द्वारा दिए गए सुझावों पर भी विस्तृत कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए. कार्यशाला के प्रथम सत्र में कृषि उत्पादन आयुक्त एसएन मिश्रा ने कहा कि उद्यानिकी गतिविधियां कृषि का महत्वपूर्ण घटक है. किसानों की संपन्नता के लिए उन्हें कृषि के साथसाथ उद्यानिकी फसलों के प्रति आकर्षित किया जाना आवश्यक है.

प्रमुख सचिव उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण सुखवीर सिंह ने कहा कि किसानों को उद्यानिकी फसलों की ओर आकर्षित करने के साथसाथ उन्हें नवीन तकनीकी और उत्पादित माल की विक्रय प्रक्रिया पर भी योजना बनाई जा रही है. कार्यशाला में आए सुझावों पर उद्यानिकी और खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा समयसीमा में कार्यवाही की जाएगी.

तकनीकी सत्र में नागपुर के वैज्ञानिक डा. आरके सोनकर द्वारा नीबूवर्गीय फलों के गुणवत्तापूर्ण उत्पादन, प्रसंस्करण एवं विपणन पर वाराणसी के वैज्ञानिक शैलेष तिवारी ने मध्य प्रदेश में संकर सब्जी बीज उत्पादन की संभावनाओं पर, वैज्ञानिक डा. आरके जायसवाल ने फल पौध नर्सरी के अनिवार्य घटक, डा. केवीआर राव द्वारा मध्य प्रदेश उद्यानिकी फसलों की संरक्षित खेती की संभावनाओं पर तकनीकी, उपसंचालक एके तोमर द्वारा नर्सरी एक्रीडेशन करने के मापदंड और सुझावों पर अपने विचार व्यक्त किए. कार्यक्रम में उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के संचालक एम. सेलवेंद्रन सहित अन्य विभागीय अधिकारी उपस्थित थे.