फसलों में कीटरोग नियंत्रण के लिए अपनाएं एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन तकनीक

शिवपुरी : भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के केंद्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र, मुरैना द्वारा दोदिवसीय आईपीएम ओरिएंटेशन प्रशिक्षण कार्यक्रम पिछले दिनों कृषि विज्ञान केंद्र, शिवपुरी में आयोजित किया गया.

कार्यक्रम का उद्घाटन वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख कृषि विज्ञान केंद्र, शिवपुरी के डा. पुनीत कुमार, अतिथि के रूप में उपसंचालक, कृषि, यूएस तोमर और केंद्र के प्रभारी अधिकारी सुनीत कुमार कटियार द्वारा किया गया.

केंद्र के प्रभारी अधिकारी सुनीत कटियार द्वारा आईपीएम की विभिन्न तकनीक जैसे सस्य, यांत्रिक, जैविक और रासायनिक विधियों का क्रमिक उपयोग और महत्ता के बारे में बताया. आईपीएम के महत्व, आईपीएम के सिद्धांत एवं उस के विभिन्न आयामों सस्य, यांत्रिक जैसे येलो स्टिकी, ब्लू स्टिकी, फैरोमौन ट्रैप, फलमक्खी जाल, विशिष्ट ट्रैप, ट्राइकोडर्मा से बीजोपचार के उपयोग के बारे में और जैविक विधि, नीम आधारित एवं अन्य वानस्पतिक कीटनाशक और रासायनिक आयामों के इस्तेमाल के विषय में विस्तार से बताया गया.

उन्होंने आगे कहा कि किसान फसलों में रासायनिक कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं, जिस से मनुष्यों में तमाम तरह की बीमारियां जैसे कैंसर इत्यादि बहुत तेजी से बढ़ी है. इसलिए हमें किसानों को जागरूक करना है कि रासायनिक कीटनाशकों को अनुशंसित मात्रा में ही उपयोग करें.

वनस्पति संरक्षण अधिकारी प्रवीण कुमार यदहल्ली द्वारा जिले में चूहे का प्रकोप एवं नियंत्रण और फौलआर्मी वर्म के प्रबंधन, मित्र एवं शत्रु कीटों की पहचान के बारे में बताया गया.

सहायक वनस्पति संरक्षण अधिकारी अभिषेक सिंह बादल द्वारा जिले की प्रमुख फसलों के रोग और कीट व प्रबंधन, मनुष्य पर होने वाले कीटनाशकों का दुष्प्रभाव और कीटनाशकों का सुरक्षित और विवेकपूर्ण उपयोग, साथ ही साथ केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति द्वारा अनुमोदित रसायन का कीटनाशकों के लेवल एवं कलर कोड पर आधारित उचित मात्रा में ही प्रयोग करने का सुझाव दिया. साथ ही, भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के एनपीएसएस (नेशनल पेस्ट सर्विजिलेंस सिस्टम) एप के उपयोग एवं महत्व की जानकारी दी गई.

कार्यक्रम के दौरान केंद्र के अधिकारियों द्वारा आईपीएम प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया. जागरूकता के लिए किसानों को फैरोमौन ट्रैप, ल्यूर, जैविक कीटरोग नियंत्रण के लिए उपयोगी सामग्री जैसे ब्यूवेरिया बेसियाना, माइकोराइजा, ट्राइकोडरमा, फल छेदक कीट नियंत्रण के लिए विशेष फैरोमौन ट्रैप इत्यादि भी सैंपल के रूप में दिए गए.

प्रशिक्षण समन्वयक डा. एमके भार्गव, वरिष्ठ वैज्ञानिक (सस्य विज्ञान) द्वारा समन्वित कीटरोग नियंत्रण के आयामों के साथसाथ प्राकृतिक खेती की ओर भी जागरूकता के बारे में बतलाया गया. वैज्ञानिक (पौध संरक्षण) जेसी गुप्ता द्वारा भी प्राकृतिक खेती में फसल सुरक्षा घटकों की जानकारी दी गई, जिस में आईपीएम के विभिन्न आयामों का प्रदर्शन किया गया.

कार्यक्रम के दूसरे दिन किसानों को खेत भ्रमण करा कर कृषि पारिस्थितिकी तंत्र विश्लेषण के बारे में बताया गया. कार्यक्रम में 70 से अधिक प्रगतिशील किसानों और राज्य कृषि कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया गया.

29 अगस्त को ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान में कृषि विज्ञान केंद्र, शिवपुरी पर वृक्षारोपण भी किया गया, जिस में आंवला, नीम एवं बकाइन के पौधे रोपित किए गए.

गौपालन किसानों के लिए लाभकारी

झाबुआ : महिला एवं बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया ने पिछले दिनों ग्राम पंचायत बलोला के ग्राम मातासुला बारिया में 23.32 लाख रुपए की लागत से बन रही “श्री कृष्ण गोशाला” का शुभारंभ किया. उन्होंने गोशाला परिसर में संचालक व अन्य नागरिकों के साथ “एक पेड़ मां के नाम” अभियान के अंतर्गत पौध रोपण कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया.

महिला एवं बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया ने कहा कि गाय हर किसान को पालनी चाहिए. वह हम सब की पालक है. वह पौष्टिक दूध तो देती ही है, साथ ही साथ उस का गोबर भी हमारे लिए उपयोगी होता है. वह जहां बैठती है, उस के आसपास का वातावरण भी शुद्ध कर देती है.

उन्होंने आगे कहा कि गाय को प्राचीन भारत और वर्तमान समय में भी समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. प्रदेश सरकार गोशालाओं का निर्माण करा कर गायपालन को बढ़ावा दे रही है.

मंत्री निर्मला भूरिया ने कहा कि कृषि क्षेत्र में किसानों के लिए गौपालन लाभदायक माना जाता है. गाय के गोबर का उपयोग खेतों में उर्वरक के रूप में भी किया जाता है. इस के अलावा गोबर को सुखाया जाता है और ईंधन के काम में लाया जाता है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि फसलों के लिए गोमूत्र सब से अच्छा उर्वरक है. गाय का घी और गोमूत्र का उपयोग कई आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने में भी किया जाता है.

इस अवसर पर वरिष्ठ जनप्रतिनिधि छीतु सिंह मेड़ा, जिला पंचायत सदस्य वालसिंह मसानिया, ओंकार डामोर, चेनसिंह बारिया, किरन बेन, सरपंच हिंगली बाई, किशोर शाह सहित बड़ी संख्या में गांव वाले और अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित थे.

मध्य प्रदेश को फिर मिला “सोया प्रदेश” का ताज

इंदौर : मध्य प्रदेश ने सोयाबीन उत्पान में अपने निकटतम प्रतियोगी राज्यों महाराष्ट्र और राजस्थान को पीछे छोड़ते हुए फिर से ”सोयाबीन प्रदेश” बनने का ताज हासिल कर लिया है. भारत सरकार के जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश 5.47 मिलियन टन सोयाबीन उत्पादन के साथ पहले नंबर पर आ गया है. देश के कुल सोयाबीन उत्पादन में मध्य प्रदेश का योगदान 41.92 फीसदी है. महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर है, जबकि राजस्थान तीसरे नंबर पर.

पिछले 2 सालों में मध्य प्रदेश में सोयाबीन उत्पादन में कमी आने से मध्य प्रदेश पिछड़ गया था. वर्ष 2022-23 में महाराष्ट्र 5.47 मिलियन टन उत्पादन के साथ पहले स्थान पर था और देश के कुल सोयाबीन उत्पादन में 42.12 फीसदी का योगदान था, जबकि मध्य प्रदेश 5.39 मिलियन टन के साथ दूसरे नंबर पर था.

इस के पहले साल 2021-22 में भी महाराष्ट्र 6.20 मिलियन टन उत्पादन के साथ पहले स्थान पर था और देश के सोयाबीन उत्पादन में 48.7 फीसदी का योगदान था, जबकि मध्य प्रदेश 4.61 मिलियन टन के साथ दूसरे नंबर पर था.

प्रदेश में सोयाबीन का रकबा साल 2022-23 की अपेक्षा साल 2023-24 में 1.7 फीसदी बढ़ा है और क्षेत्रफल पिछले साल 5975 हजार हेक्टेयर से बढ़ कर साल 2023-24 में 6679 हेक्टेयर हो गया है. सोयाबीन का क्षेत्रफल बढ़ने से उत्पादन भी बढ़ा. पिछले साल 2022-23 में सोयाबीन उत्पादन 6332 हजार मीट्रिक टन से बढ़ कर साल 2023-24 में 6675 हजार मीट्रिक टन हो गया.

पिछले कुछ सालों में सोयाबीन उत्पादन और क्षेत्रफल में उतारचढ़ाव होता रहा. सोयाबीन के क्षेत्रफल में साल 2018-19 की तुलना में साल 2019-20 में 14.30 फीसदी की वृद्धि हुई. सोयाबीन क्षेत्रफल साल 2018-19 में 5019 हजार हेक्टेयर था, जो साल 2019-20 में बढ़ कर 6194 हजार हेक्टेयर हो गया. इसी दौरान सोयाबीन का उत्पादन साल 2018-19 में 5809 हजार मीट्रिक टन था, जो बढ़ कर साल 2019-20 में कम हो कर 3856 मीट्रिक टन हो गया.

पशुपालन (Animal husbandry) से मीरा की आमदनी हुई डेढ़ लाख रुपए सालाना

निवाड़ी: शासन द्वारा संचालित एनआरएलएम के अंतर्गत स्वयंसहायता समूह से जुड़ कर अन्य दीदियों के साथ ही निवाड़ी जिल के गांव रामनगर की रहने वाली मीरा अहिरवार की खेती एवं पशुपालन से न्यूनतम आय सालाना लगभग डेढ़ लाख रुपए से अधिक हो गई. आजीविका मिशन से जुड़ने से उन्हें जो सहारा मिला, उस के कारण आज वे इस स्थिति में पहुंच गई हैं कि उन्हें पूरा समाज जानने एवं पहचानने लगा है. आज वे अपने परिवार को एक खुशहाल जिंदगी जीने का अवसर दे पा रही हैं.

पशुपालक मीरा ने बताया कि समूह से जुड़ कर उन्होंने 10 रुपए की साप्ताहिक बचत से शुरुआत की एवं समूह से छोटेबड़े लोन ले कर अपने परिवार की जरूरत को पूरी किया. समूह से जुड़ने के बाद समूह द्वारा उन्हें पहली बार 1000 रुपए की आरएफ राशि मिली, जिसे उन्होंने एक महीने बाद चुका दिया. इस के बाद उन्होंने समूह से 10000 रुपए लिए और उन रुपयों से सब से पहले जैविक खाद उपयोग कर खेत की उर्वराशक्ति बढ़ाई गई.

इस के लिए उन्होंने एक भैंस एवं कुछ बकरियां लीं, जिस से और आमदनी बढ़ी और समूह से लिया गया पैसा समय पर चुका दिया. उन्होंने बताया कि मुझे साल में लगभग डेढ़ लाख रुपए से अधिक आय हो रही है.

रेशम उत्पादन से मिल रहा रोजगार

नर्मदापुरम : प्रदेश में नर्मदपुरम संभाग के नर्मदापुरम एवं बैतूल जिले में रेशम उत्पादन के क्षेत्र में अग्रणी जिले हैं. नर्मदापुरम जिले के मालाखेड़ी रेशम परिसर में प्रदेश का रेशम वस्त्रों का सब से बड़ा शोरूम ‘प्राकृत’ संचालित किया जाता है, जिस में नवीन वस्‍त्रों की श्रंखला में नवीन बाघ प्रिंट, कलमकारी प्रिंट, पचेड़ी प्रिंट, बनारसी और जामदानी के शुद्ध रेशमी वस्त्र विक्रय एवं प्रदर्शन के लिए उपलब्ध हैं. साथ ही, उक्त परिसर में ही मलबरी रेशम धागाकरण, टसर धागाकरण, मूंगा रेशम धागाकरण व रेशम वस्त्र बुनाई का काम भी किया जाता है. रेशम परिसर मालाखेड़ी में रेशम उत्पादन प्रक्रिया से जोड़ कर लगभग 80 महिलाओं को रोजगार भी दिया जा रहा है.

जिला रेशम अधिकारी रविंद्र सिंह ने बताया कि जिले में रेशम उत्पादन का काम सोहागपुर, गूजरवाडा, सुखतवा बनखेड़ी, डोकरीखेड़ा, पनारी, पिपरिया व राजलढाना में मुख्य रूप से किया जाता है. उल्लेखनीय है कि जिले में मलबरी रेशम के 1,80,295 पौधों का रोपण भी किया गया है एवं आगामी फसल में टसर काकून की भी बंपर पैदावार होने की संभावना है.

संभाग के बैतूल जिले में भी इस वित्तीय वर्ष में निजी और शासकीय क्षेत्र में कुल 100 एकड़ प्रक्षेत्र में 4 लाख से भी अधिक पौधों का रोपण किया गया है. बैतूल जिले में सतपुड़ा वूमेन सिल्क प्रोड्यूसर कंपनी द्वारा रेशम उत्पादन का काम पाढर में संचालित किया जा रहा है. लगभग 300 किसानों द्वारा यहां मलबरी रेशम ककून उत्पादन और धागाकरण का काम किया जाता है. क्षेत्र में इस बार भी 100 परिवारों को रेशम गतिविधि से जोड़ा गया है. रेशम से जुड़ कर इन परिवारों ने रोजगार प्राप्त किया है एवं आत्मनिर्भर हुए हैं. कई दीदियां लखपति दीदी भी बनी हैं.

जीवों के लिए टैंकर से पानी, रूमा देवी फाउंडेशन की मुहिम

बाड़मेर: तपती गरमी के मौसम में एक ओर जहां आम जनजीवन पर असर होता है, वहीं दूसरी तरफ पशुधन का गरमी से बचाव करना भी  जरूरी  हो जाता है. अनेक इलाकों में गरमी के समय पशुचारे के साथसाथ पानी की भी समस्या  हो जाती है खासकर गरमी में तप रहे राजस्थान के रेगिस्तान में इनसानों के साथसाथ पशुपक्षी भी पीने की पानी की समस्या से त्रस्त दिखाई दे रहे हैं.

कई इलाकों में पेयजल की गंभीर समस्या बनी हुई है, जिसे देखते हुए सामाजिक कार्यकर्ता व फैशन डिजाइनर डा. रूमा देवी ने ऐसे जरूरतमंद गांवों में मीठे पानी के टैंकर भिजवाने के साथ ही राहत का काम शुरू कर दिया है.

रूमा देवी फाउंडेशन (Ruma Devi Foundation)

रूमा देवी ने बताया कि सूखे पड़े सार्वजनिक टांके, होदी, कुंड आदि की जानकारी प्राप्त कर उन की सफाई कर के वहीं के नजदीकी पेयजल स्त्रोत से ट्रैक्टर में पानी ला कर इन टांकों व कुंड में भरा जा रहा है. ग्रामीण इलाकों में मानसून के आने तक अगले एक महीने तक यह मुहिम जारी रहेगी.

पश्चिम राजस्थान के बाड़मेर व बालोतरा जिले में लगभग 2,000 टैंकर इस फाउंडेशन व जनसहयोग से उपलब्ध करवाने का काम जारी रहने वाला है. फाउंडेशन की जलसेवा मुहिम से प्रसन्न हो कर मुंबई के संत दुलाराम कुलरिया ट्रस्ट, प्रकाश फाउंडेशन और सुरत की टेक्सटाइल एशोसिएशन भी उन के साथ इस काम में उन की मदद कर रही हैं.