कृषि ज्ञान वाहन (Agricultural Knowledge Vehicle) पहुंचा गांवगांव

भागलपुर : कुलपति डा. डीआर सिंह द्वारा कृषि ज्ञान वाहन को हरी झंडी दिखा कर भेजा गया. कृषि एवं पशुपालन के चहुंमुखी उत्थान के उद्देश्य से बिहार सरकार द्वारा प्रदत्त इस ज्ञान वाहन से मिट्टी जांच की सुविधा, किसानों को फसल विशेष के लिए उर्वरक व्यवहार की मात्रा, पशुओं की समस्याओं का त्वरित निदान, कीटबीमारी सहित खरपतवार की पहचान एवं उस के प्रबंधन की जानकारी प्राप्त होगी.

कृषि ज्ञान वाहन द्वारा गोरडीह पंचायत के पिपरा गांव में किसानों को कृषि की नवीनतम जानकारी उपलब्ध कराने के साथ उन्हें जागरूक करने का कार्यक्रम किया गया. इस अवसर पर विश्वविद्यालय के सभी अधिष्ठाता, निदेशक और वैज्ञानिकों के साथ ही भागलपुर के सहनिदेशक, कृषि, मौजूद रहे.

इस अवसर पर कुलपति डा.  डीआर सिंह ने कहा, “कृषि ज्ञान वाहन द्वारा हम किसानों के द्वार पर पहुंच रहे हैँ. इस के माध्यम से पशुपालन, बागबानी या खेती में आने वाली समस्याओं का निदान किया जाएगा. अब किसानों को अपनी समस्या को ले कर इधरउधर भटकने की जरूरत नहीं है, बल्कि उस का निदान उन के द्वार पर ही हो जाएगा.”

कृषि ज्ञान वाहन (Agricultural Knowledge Vehicle)

क्या खास है कृषि ज्ञान वाहन में

किसानों के ज्ञान संवर्धन के लिए तकनीकी फिल्मों का प्रदर्शन के लिए 2 बड़ीबड़ी एलईडी स्क्रीनें लगाई गई हैं. इस के माध्यम से मिट्टी जांच नमूनों का संग्रह किया जाएगा, जिस की रिपोर्ट किसानों तक भेजी जाएगी. कृषि से जुड़ी समस्याओं को किसानों के द्वार पर निराकरण करने की सुविधा इस वाहन में मौजूद है. इस के माध्यम से कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों से जुड़ी व्यवहारिक समस्याओं का निदान संभव हो पाएगा. खाद्यान्न/बागबानी/अन्य फसलों के कीटबीमारी के साथसाथ पशु एवं पक्षी की सेहत संबंधी समस्याओं का समाधान किया गया. इस के माध्यम से कृषि उपादानों जैसे बीज, जैविक खाद, तरल बायोफर्टिलाइजर सहित मशरूम स्पान आदि उपलब्ध कराया जाएगा.

पिपरा गांव पहुंचा कृषि ज्ञान वाहन

परिचालन के पहले दिन कृषि ज्ञान वाहन गोरडीह पंचायत के पिपरा गांव पहुंचा, जहां कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को आम, लीची, ग्रीष्मकालीन सब्जी की खेती, मिट्टी जांच के साथसाथ पशुपालन पर भी जानकारी दी गई.

ग्रामीणों के सामने कृषि ज्ञान वाहन मे लगे एलईडी स्क्रीन पर समसामायिक विषयों पर फिल्मों का प्रदर्शन किया गया. ग्रामीणों ने अपने खेतोँ से मिट्टी का नमूना जांच संबंधित वैज्ञानिक को सौंपा.

इस अवसर पर बिहार कृषि विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरके सोहाने, कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक और प्रधान डा. राजेश कुमार, भागलपुर के जिला कृषि पदाधिकारी श्रीराम अनिल कुमार के साथसाथ केवीके के सभी वैज्ञानिक और कर्मचारी मौजूद रहे. प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरके सोहने ने पिपरा गांव के किसानों कों कृषि ज्ञान वाहन का भरपूर फायदा उठाने का आग्रह किया.

17वें ‘विश्व एग्री टूरिज्म दिवस’ पर वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित

हिसार : जिस प्रकार शरीर को पोषण के लिए भोजन की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार पर्यावरण को शुद्ध रखने के लिए पेड़पौधों की आवश्यकता होती है. पेड़पौधे पर्यावरण की अशुद्धियों को सोख लेते हैं और हमें शुद्ध वायु देते हैं. पर्यावरण व भूमि संरक्षण के लिए मौजूदा समय में वृक्षारोपण जरूरी है. वृक्षारोपण कर पर्यावरण को बचाने का संकल्प हम सभी को लेने की जरूरत है. हमारा कर्तव्य है कि पर्यावरण सुधार के लिए अधिक से अधिक तादाद में पौधारोपण करना चाहिए.

ये विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहे. वे 17वें विश्व एग्री टूरिज्म दिवस के अवसर पर एग्री टूरिज्म सैंटर में वृक्षारोपण कार्यक्रम के दौरान बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि पौधे हमें जीवनदायिनी औक्सीजन देते हैं और जीवन का आधार हैं. इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को पौधा अवश्य लगाना चाहिए. पेड़पौधों की कमी से निरंतर पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है. पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए पौधारोपण बहुत जरूरी है.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि एग्री टूरिज्म सैंटर को स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य कृषि अनुसंधानों व प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना और प्रकृति को स्वच्छ रखने के लिए पर्यावरण संरक्षण के प्रति अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करना है. साथ ही, एग्री इको पर्यटन से ले कर शैक्षणिक मूल्यों के प्रति दूसरों को प्रेरित करना है. इस के अलावा स्कूलों व कालेजों के विद्यार्थियों को जैव विविधता के बारे में जानने का भी अवसर मिलेगा.

उन्होंने कहा कि एग्री टूरिज्म सैंटर (कृषि पर्यटन केंद्र) को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय लगातार प्रयासरत है. इसी कड़ी में फूड कोर्ट व ट्री हाउस जैसे कई अन्य आकर्षण भी जोड़े जा रहे हैं. वनस्पति विज्ञान और पादप शरीर क्रिया विज्ञान में देशी और विदेशी पौधों की प्रजातियों का संग्रह किया गया है. जैव विविधता वाले 550 से अधिक पौधों की प्रजातियां यहां देखी जा सकती हैं. यह जैव विविधता शैक्षिक अनुसंधान का स्रोत है और आगंतुकों के लिए आकर्षण का केंद्र भी है.

एग्री टूरिज्म सैंटर के अध्यक्ष डा. अरविंद मलिक ने बताया कि सैंटर में हर साल हजारों की तादाद में लोग आ रहे हैं व यह तादाद लगातार बढ़ रही है. इस के अलावा यहां फलफूल व सब्जियों के पौधे भी बिक्री के लिए मौसम के मुताबिक उपलब्ध करवाए जाते हैं.

पौधारोपण कार्यक्रम का आयोजन एग्री टूरिज्म सैंटर व भू दृश्य सरंचना इकाई द्वारा संयुक्त रूप से किया गया. भू दृश्य सरंचना इकाई के अध्यक्ष डा. पवन कुमार ने कहा कि महत्वपूर्ण अवसरों पर हमें अवश्य पौधरोपण करना चाहिए. इस से लोगों में वृक्षों के प्रति जागरूकता आएगी. इस अवसर पर उपस्थित विश्वविद्यालय के विभिन्न कालेजों के अधिष्ठाताओं, निदेशकों, विभागाध्यक्षों, वैज्ञानिकों व गैरशिक्षक कर्मचारियों ने भी पौधारोपण किया.

हकृवि को 3 डिजाइन विकसित करने पर भारतीय पेटेंट (Indian Patent)

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय को वर्सेटाइल हैंडी ट्रौली, स्कौलर चेयर व मूवेबल मिल्किंग स्टूल नामक 3 डिजाइन विकसित करने पर भारतीय पेटेंट कार्यालय ने डिजाइन का पंजीकरण प्रदान किया है. इन सभी डिजाइनों को भारत सरकार की ओर से प्रमाणपत्र मिल गया है, जिस की डिजाइन संख्या है 386671-001, 386669-001 और 386668-001. इन सभी डिजाइनों को विश्वविद्यालय के मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. मंजु महता की देखरेख में 2 शोध छात्राओं आयशा और मीनू ने किया.

विश्वविद्यालय के लिए गौरव की बात

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि यह विश्वविद्यालय के लिए गर्व की बात है कि विश्वविद्यालय को एकसाथ 3 डिजाइन प्राप्त हुए हैं. उन्होंने विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों व शोधार्थियों से भविष्य में भी इसी प्रकार निरंतर प्रयासरत रहने की अपील की है, ताकि विश्वविद्यालय का नाम यों ही रोशन होता रहे.

उपरोक्त डिजाइनों की मुख्य विशेषताएं

वर्सेटाइल हैंडी ट्रौली

यह ट्रौली लोहे से बनी है. इसे मांसपेशियों के तनाव और थकान को कम करने के लिए डिजाइन किया गया है. यह भारी वजन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में मदद करती है, जिस से उत्पादकता बढ़ती है. ट्रौली के तीनों किनारों पर दिए गए रौड समर्थन प्रदान करती है, जिस से भारी सामग्री गिरने या फिसलने से बचती है.

उल्लेखनीय है कि पहले वाली ट्रौली, जिस में रौड नहीं थे व सामग्री गिरने का भी भय रहता था. उस ट्रौली द्वारा काफी कम मात्रा में सामान एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता था और थकान भी होती थी. विद्यार्थियों ने इस प्रक्रिया में अलगअलग तकनीक का भी अध्ययन किया और उन की उपयोगिता और स्थिरता की जांच की.

स्कौलर चेयर
इस चेयर के उपयोग के दौरान आराम पहुंचाने के लिए पीछे और सीट पर कुशन लगे हैं. पीठ पर तनाव को कम करने के लिए कुरसी के पिछले हिस्से को थोड़ा तिरछा किया गया है. लंबे समय तक बैठने पर आराम में सुधार के लिए एग्रोनोमिक फुट रेस्ट प्रदान किया गया है. इस से थकान कम होती है और पैरों को आराम मिलता है.

अध्ययन, ड्राइंग जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए कुरसी के बाईं ओर एक फोल्डेबल पैनल जुड़ा हुआ है. जब पैनल उपयोग में न हो, तो उसे वापस अपनी स्थिति में मोड़ा जा सकता है. यह चेयर काम करते समय व्यक्ति के शरीर को सहायता प्रदान करता है और रीड़ की हड्डी में किसी भी प्रकार की असुविधा से बचाता है.

मूवेबल मिल्किंग स्टूल

बैठने की सुविधा के लिए स्टूल की सीट गद्देदार बनाई गई है. स्टूल के साथ लगे छोटे पहियों की सहायता से बैठ कर स्टूल को घुमा कर दूध को आसानी से निकाला जा सकता है. यह स्टूल लोहे से बना है. इस के एक तरफ गिलास या मग रखने के लिए जगह दी गई है. यह मूवेबल मिल्किंग स्टूल उपयोग करने वालों को अनुचित मुद्रा के कारण होने वाले विभिन्न मांसपेशियों के तनाव से बचाता है.

यह स्टूल काम करते समय पीठ के निचले हिस्से, कूल्हे के जोड़ों और रीड़ की हड्डी को सहायता प्रदान करता है. स्टूल का मुख्य लाभ व्यक्ति के लिए झुकते और बैठते समय आरामदायक सुरक्षा प्रदान करना है.

इस अवसर पर ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय की अधिष्ठाता डा. बीना यादव, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य एवं आइपीआर सैल के प्रभारी डा. योगेश जिंदल उपस्थित रहे.

जीवों के लिए टैंकर से पानी, रूमा देवी फाउंडेशन की मुहिम

बाड़मेर: तपती गरमी के मौसम में एक ओर जहां आम जनजीवन पर असर होता है, वहीं दूसरी तरफ पशुधन का गरमी से बचाव करना भी  जरूरी  हो जाता है. अनेक इलाकों में गरमी के समय पशुचारे के साथसाथ पानी की भी समस्या  हो जाती है खासकर गरमी में तप रहे राजस्थान के रेगिस्तान में इनसानों के साथसाथ पशुपक्षी भी पीने की पानी की समस्या से त्रस्त दिखाई दे रहे हैं.

कई इलाकों में पेयजल की गंभीर समस्या बनी हुई है, जिसे देखते हुए सामाजिक कार्यकर्ता व फैशन डिजाइनर डा. रूमा देवी ने ऐसे जरूरतमंद गांवों में मीठे पानी के टैंकर भिजवाने के साथ ही राहत का काम शुरू कर दिया है.

रूमा देवी फाउंडेशन (Ruma Devi Foundation)

रूमा देवी ने बताया कि सूखे पड़े सार्वजनिक टांके, होदी, कुंड आदि की जानकारी प्राप्त कर उन की सफाई कर के वहीं के नजदीकी पेयजल स्त्रोत से ट्रैक्टर में पानी ला कर इन टांकों व कुंड में भरा जा रहा है. ग्रामीण इलाकों में मानसून के आने तक अगले एक महीने तक यह मुहिम जारी रहेगी.

पश्चिम राजस्थान के बाड़मेर व बालोतरा जिले में लगभग 2,000 टैंकर इस फाउंडेशन व जनसहयोग से उपलब्ध करवाने का काम जारी रहने वाला है. फाउंडेशन की जलसेवा मुहिम से प्रसन्न हो कर मुंबई के संत दुलाराम कुलरिया ट्रस्ट, प्रकाश फाउंडेशन और सुरत की टेक्सटाइल एशोसिएशन भी उन के साथ इस काम में उन की मदद कर रही हैं.

धान की सीधी बिजाई के लिए पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985   

पूसा, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में बासमती की रोबीनोवीड किस्में, पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985 की बिक्री शुरू हो गई है. यह किस्में धान की सीधी बिजाई के लिए संस्थान द्वारा जारी की गई हैं.

इस अवसर पर पूसा संस्थान के निदेशक डा. अशोक कुमार सिंह ने कहा कि उत्तर पश्चिमी भारत में धान की खेती में मुख्य समस्याएं गिरता जलस्तर, धान की रोपाई में लगने वाले श्रमिकों की कमी और जलभराव के साथ रोपाई विधि के दौरान होने वाले ग्रीनहाउस गैस मीथेन का उत्सर्जन है. धान की सीधी बिजाई में इन सभी समस्याओं का हल है.

उन्होंने आगे कहा कि धान की सीधी बिजाई विधि में धान की पारंपरिक जलभराव विधि की तुलना में पानी के उपयोग में काफी कमी आती है, क्योंकि सीधी बोआई विधि में लगातार धान खेत में जलभराव की आवश्यकता नहीं होती. इस में केवल जरूरत के अनुसार ही कम पानी का इस्तेमाल होता है.

रिसर्च के मुताबिक, सीधी बिजाई विधि से लगभग 33 फीसदी पानी की बचत हो सकती है. इसलिए यह विधि खासकर पानी की कमी वाले क्षेत्रों के लिए अच्छा विकल्प है.

धान की सीधी बिजाई विधि में मुख्य समस्या खरपतवारों की है, जिसे हल करना जरूरी है, ताकि सीधी बिजाई विधि सफल हो सके. इस दिशा में भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने बासमती धान की 2 रोबिनोवीड किस्में पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985 विकसित की हैं. खरपतवार भी इन किस्मों को नुकसान नहीं पहुंचा सकती. ये इमेजथापायर 10 फीसदी एसएल के प्रति सहिष्णु हैं और भारत में व्यावसायिक खेती के लिए विमोचित की गई हैं.

पूसा बासमती 1979 :

बासमती धान की यह किस्म पीबी 1121 की नजदीक वंश वाली है, जिस में इमेजथापायर 10 फीसदी एसएल के प्रति सहिष्णुता को संचालित करने वाले सभी उत्परिवर्तित एएचएएस एलील मौजूद होते हैं. इस की बीज से बीज तक परिपक्वता अवधि 130-133 दिन और औसत उपज 45.77 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

पूसा बासमती 1985 :

बासमती की यह किस्म पीबी 1509 की खरपतवारनाशी सहिष्णु आइसोजेनिक निकट वंशक्रम है, जिस में इमेजथापायर 10 फीसदी एसएल के प्रति सहिष्णुता को संचालित करने वाले सभी उत्परिवर्तित एएचएएस एलील मौजूद होते हैं. इस की बीज से बीज तक परिपक्वता अवधि 115-120 दिन और औसत उपज 52 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

इन किस्मों में धान की खेती में अच्छे बदलाव लाने की क्षमता है, जो धान की खेती की लागत को भी कम करेगी. साथ ही, यह किस्में न केवल निराईगुड़ाई से जुड़ी हुई मेहनत को घटाती हैं, बल्कि धान खेती की पारंपरिक विधियों के पर्यावरणीय प्रभावों को भी कम करती हैं.

डा. पीके सिंह, कृषि आयुक्त, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने इन किस्मों के लिए पूसा संस्थान के योगदान की सराहना की और कहा कि यह संस्थान अनेक उन्नत किस्मों के विकास का काम कर रहा है.

डा. डीके यादव, सहायक महानिदेशक (बीज), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने बताया कि बासमती धान की ये दोनों किस्में इस बासमती भौगोलिक सूचक क्षेत्र के किसानों के लिए खास साबित होंगी.

ध्यान देने वाली बात यह है कि देश के कुल बासमती धान निर्यात में पूसा संस्थान की बासमती किस्मों का हिस्सा 95 फीसदी है, जो 51,000 करोड़ रुपए बनता है.

डा. डीके यादव ने किसानों से आग्रह किया कि वे देश की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए इन उन्नत किस्मों का प्रचारप्रसार करें. इस दिशा में सार्थक कदम उठाते हुए इन किस्मों के बीजों का सशुल्क वितरण मंच पर हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के 4 किसानों को किया गया. अन्य इच्छुक किसानों को यह बीज संस्थान की बीज उत्पादन इकाई में दिया गया.

हरियाणा के किसान प्रीतम सिंह ने धान की सीधी बिजाई (डीएसआर) विधि के साथ अपने साल 2009 से अब तक के अनुभव के बारे में विस्तार से बताया. वे 40-50 एकड़ में इस की खेती करते हुए 27 क्विंटल प्रति एकड़ की शानदार पैदावार हासिल कर रहे हैं. इन की सफलता की कहानी इस बात की गवाही देती है कि धान की सीधी बिजाई खेती की एक सक्षम विधि है, विशेषकर तब, जब उसे उचित प्रबंधन पद्धतियों और किस्मों के साथ अपनाया जाता है.

डा. टीके दास, जो सस्य विज्ञान में विशेषज्ञ प्रधान वैज्ञानिक हैं, उन्होंने धान की सीधी बिजाई विधि में इस्तेमाल होने वाले खरपतवारनाशियों की विस्तृत श्रंखलाएं के बारे में चर्चा की.

डा. सी. विश्वनाथन (संयुक्त निदेशक, अनुसंधान), डा. आरएन पड़ारिया (संयुक्त निदेशक, प्रसार), डा. गोपाल कृष्णन (अध्यक्ष, आनुवंशिकी संभाग), डा. ज्ञानेंद्र सिंह (प्रभारी, बीज उत्पादन इकाई), पूसा संस्थान के संभागाध्यक्ष और वैज्ञानिक, किसान, बीज कंपनियां और मीडिया भी इस अवसर पर मौजूद रहे.

अरहर कुदरत 3 और मूंग जनकल्याणी की मिश्रित खेती (Mixed farming) : अधिक मुनाफा

दलहनी फसल अरहर व मूंग दोनों फसल को तैयार होने का समय अलगअलग है. अरहर लंबे समय में तैयार होती है, जबकि मूंग की उपज जल्दी मिल जाती है. इन दोनों की खेती को लाभकारी बनाने के लिए इन की मिश्रित खेती करना फायदेमंद है खासकर जब उन्नत किस्मों को लगाया जाए तो मुनाफे की संभावना कहीं अधिक बढ़ जाती है.

कुदरत कृषि शोध संस्था के प्रकाश सिंह रघुवंशी ने बताया कि उन्होंने अरहर कुदरत 3 की नई किस्म ईजाद की है. एक पौध में तकरीबन 1500 से 2000 फलियां लगती हैं. यह किस्म 210 दिन में पक जाती है. बोआई के लिए अरहर बीज की मात्रा 2 किलोग्राम प्रति एकड़ है. एक फली में 4 से 5 दाने होते हैं. दाना मोटा, बड़ा, वजनदार औरेंज कलर का होता है और उत्पादन क्षमता 12 से 14 क्विंटल प्रति एकड़ है.

विशेष गुण : इस की खासियत है कि इस किस्म के पौधे में उकठा रोग नहीं लगता है. साथ ही, पौधे में अधिक शाखाएं व फलफूल, फलियां लगती हैं. पोषक तत्वों से भरपूर यह दाल खाने में काफी स्वादिष्ठ भी होती है.

बोने की विधि : लाइन से लाइन की दूरी 4 फुट और बीज से बीज की दूरी 3 फुट पर इस किस्म के पौधे लगाएं, तो बेहतर उपज मिलती है.

मिश्रित खेती (Mixed farming)

कम समय में तैयार होती मूंग : मूंग जनकल्याणी महज 55 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. फलियां गुच्छों में लगती हैं. एक फल में तकरीबन 10-12 दाने होते हैं. फली लंबी व दाना मोटा होता है. दाना बड़ा और गहरा हरा रंग लिए होता है. इस प्रजाति में पीला रोग नहीं लगता.

मूंग की उत्पादन क्षमता : इस की पैदावार क्षमता 6-7 क्विंटल प्रति एकड़ मिलती है और बोआई के लिए बीज की मात्रा 6 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से लगती है. अरहर कुदरत 3 और जनकल्याणी मूंग एकसाथ लगा कर मिश्रित खेती कर के अधिक लाभ ले सकते हैं.

अधिक जानकारी के लिए आप किसान प्रकाश सिंह रघुवंशी के मोबाइल नंबर 9839253974, 9939253974 पर बात कर सकते हैं.

कोंडागांव में खुलेगा नेचुरोपैथी  एवं हर्बल कृषि पर्यटन सेंटर (Agro Tourism Center)

छत्तीसगढ़ राज्य में ईको पर्यटन के विकास एवं संरक्षण में विगत 5 सालों से कार्यरत संस्था ‘वसुंधरा प्रकृति संरक्षण समिति’ यानी विस्कान द्वारा प्रदेश में ईको पर्यटन सहित प्राकृतिक चिकित्सा एवं हर्बल खेती को बढ़ावा देने के लिए ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ के साथ करार किया गया.

इस अवसर पर मां दंतेश्वरी हर्बल के संस्थापक डा. राजाराम त्रिपाठी, डायरेक्टर अनुराग त्रिपाठी, जसमती नेताम,बली चक्रवर्ती, कृष्णा नेताम, व्यवस्थापक रमेशचंद्र पंडा, शंकर नाग, मैंगो नेताम, वसुंधरा प्रकृति संरक्षण समिति (विस्कान )के अध्यक्ष ज्ञानेंद्र पांडेय, विस्कान एग्रो कार्प के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अभिषेक चौधरी विशेष रूप से उपस्थित थे.

कोंडागांव स्थित मां दंतेश्वरी हर्बल एस्टेट में विकसित हो रहे ईको रिसोर्ट में ईको पर्यटन के 4 स्वरूपों का विकास किया जाना सुनिश्चित हुआ है. इन में कृषि पर्यटन, नेचुरोपैथी, ट्राइबल टूरिज्म एवं ग्रामीण पर्यटन शामिल हैं.

कृषि पर्यटन के अंतर्गत दुनियाभर में अपनी काली मिर्च की खेती एवं दुर्लभ औषधीय पौधों के संरक्षक के रूप में विख्यात डा. राजाराम त्रिपाठी के सान्निध्य में रह कर देशविदेश के किसान औषधीय पौधों की खेती का प्रशिक्षण ले सकेंगे. इस में ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षित कर रोजगार दिया जाएगा.

रिसोर्ट के नेचुरोपैथी सेंटर में लाइफस्टाइल से संबंधित बीमारियों के लिए आवश्यक दिनचर्या, जिस में योग, प्राणायाम, ध्यान, आयुर्वेदिक चिकित्सा, नाड़ी शोधन आदि शामिल हैं, के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ ले सकेंगे.

रिसोर्ट में पर्यटकों के लिए बस्तर की संस्कृति को देखने और आदिवासी गांवों में भ्रमण की सुविधा रहेगी.

संस्था द्वारा ग्रामीण पर्यटन के विकास के लिए स्थानीय युवकयुवतियों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा, जिस से पर्यटन के विकास के साथसाथ प्रकृति एवं संस्कृति का संरक्षण हो सके.

एमपीयूएटी को प्रौद्योगिकी (Technology) पर 32 पेटेंट

उदयपुर : क्षेत्रीय अनुसंधान एवं प्रसार सलाहकार समिति संभाग चतुर्थ-अ की बैठक 2 मई, 2024 को कृषि अनुसंधान केंद्र, उदयपुर में आयोजित की गई. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने गत वर्षों में विभिन्न प्रौद्योगिकी पर 32 पेटेंट प्राप्त किए. साथ ही, राष्ट्रीय स्तर पर बकरी की 3 नस्लें एवं भैंस की एक नस्ल को रजिस्टर्ड कराया. गत वर्ष को विश्वविद्यालय ने मिलेट वर्ष के रूप में मनाया एवं एक पिक्टोरियल गाईड भी जारी की.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि पिछले वर्ष अफीम की चेतक किस्म, मक्का की पीएचएम-6 किस्म के साथ असालिया एवं मूंगफली की किस्में विकसित की. उन्होंने सभी वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि सभी फसलों की नई किस्में विकसित की जाएं, ताकि किसानों को अधिक से अधिक लाभ मिल सके.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि आज कृषि में स्थायित्व लाने के लिए कीट, बीमारी प्रबंधन एवं जल प्रबंधन पर काम करना होगा. उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि विश्वविद्यालय ने जैविक/प्राकृतिक खेती में राष्ट्रीय पहचान बनाई है.

उन्होंने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक ने विश्वविद्यालय से कहा कि भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान के साथ मिल कर प्राकृतिक खेती की रूपरेखा तैयार की जाए.

अपने भाषण के दौरान उन्होंने कृत्रिम बुद्धिमत्ता व डिजिटल इंजीनियरिंग पर उत्कृष्टता केंद्र पर बल दिया. साथ ही, उन्होंने सभी वैज्ञानिकों को आह्वान किया कि विश्वविद्यालय की आय विभिन्न तकनीकियों द्वारा बढ़ाई जाए.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के निदेशक अनुसंधान डा. अरविंद वर्मा ने बैठक में अपने संबोधन में विश्वविद्यालय के द्वारा विभिन्न फसलों पर किए गए अनुसंधान द्वारा विकसित तकनीकियों के बारे में बताया. साथ ही, उन्होंने जैविक खेती पर विकसित पैकेज औफ प्रैक्टिस की जानकारी सदन को दी.

उन्होंने कहा कि गत वर्ष औषधीय एवं सुंगधित परियोजना को उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रथम स्थान मिला. विश्वविद्यालय ने गत वर्ष विभिन्न फसलों की 4 किस्में विकसित की.

डा. अरविंद वर्मा ने बताया कि हरित क्रांति के बाद कृषि तकनीकों के क्षेत्र में खासतौर पर बीज, मशीन और रिमोट संचालित तकनीकों में व्यापक बदलाव आया है. पिछले दशक में तकनीकी हस्तांतरण अंतराल ज्यादा था, लेकिन अब किसान ज्यादा जागरूक होने से तकनीकी हस्तांतरण ज्यादा गति से हो रहा है.

डा. पीके सिंह, अधिष्ठाता, अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय ने अपने उद्बोधन में सरकार द्वारा संचालित योजनाओं पर प्रकाश डाला. उन्होंने जल ग्रहण प्रबंधन की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने अपने उद्बोधन में राजस्थान प्रतिवेदन में जल बजटिंग एवं विभिन्न फसलों में जल उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिए सेंसर आधारित सिंचाई प्रणाली पर जोर दिया.

डा. लोकेश गुप्ता, राजस्थान कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता ने दूध की गुणवत्ता एवं उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया एवं उन्होंने पशुधन उत्पादकता बढ़ाने की तकनीकियों पर प्रकाश डाला.

बैठक के प्रारंभ में डा. राम अवतार शर्मा, अतिरिक्त निदेशक कृषि विभाग, भीलवाड़ा ने गत खरीफ में वर्षा का वितरण, बोई गई विभिन्न फसलों के क्षेत्र एवं उन की उत्पादकता के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

कृषि मशीनरी (Agricultural Machinery) को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण 

उदयपुर : 2 मई, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय द्वारा लघु एवं सीमांत किसान परिवारों में कृषि मशीनरी को बढ़ावा देने व कृषि में श्रम साध्य साधनों के उपयोग पर एकदिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन कृषि विज्ञान केंद्र, चित्तौड़गढ़ पर किया गया. यह प्रशिक्षण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित परियोजना के अंतर्गत आयोजित किया गया.

प्रशिक्षण के आरंभ में निदेशक प्रसार शिक्षा एवं प्रोजैक्ट इंचार्ज डा. आरए कौशिक ने किसान महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा कि बढ़ती हुई आबादी को देखते हुए किसानों को जरूरत है सघन एवं सूक्ष्म अवधि वाली खेती की. इस के लिए उन्नत बीज, खाद एवं समय पर खेती के कामों को पूरा करने के लिए आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग करना जरूरी हो गया है. इन के खेती में उपयोग से मानव श्रम काफी कम हो जाता है.

अनुसंधानों के आधार पर कहा जा सकता है कि कृषि यंत्रों के उपयोग से खेइत के कामों में लगने वाले श्रम व समय को 20-30 फीसदी तक कम हो जाता है. इस के अतिरिक्त उर्वरकों, बीजों व रसायनों पर होने वाले खर्च में भी तकरीबन 15-20 फीसदी की कमी आ जाती है.

प्रशिक्षण की मुख्य वक्ता डा. हेमु राठौड़, वैज्ञानिक एक्रिप ने किसान महिलाओं के श्रम व साध्य साधनों के उपयोग पर प्रकाश डाला. साथ ही, उन्नत दरांती, मक्का छीलक यंत्र, मूंगफली छीलक यंत्र, ट्रांसप्लांटर, वेजीटेबल पिकिंग बैग, सोलर हेट, उंगली में पहने जाने वाली सब्जी कटर आदि पर प्रशिक्षण दिया. साथ ही, महिलाओं द्वारा उन के सुरक्षित उपयोग को भी सुनिश्चित किया गया.

प्रशिक्षण में डा. लतिका व्यास ने खेती में महिलाओं के योगदान पर चर्चा की और बताया कि कृषि में खेती की तैयारी से भंडारण तक की 90 फीसदी क्रियाएं महिलाओं द्वारा की जाती हैं. इसी दिशा में कृषि को और भी समृद्ध बनाने के लिए किसान महिलाओं के लिए प्रशिक्षण आयोजित किए जा रहे हैं.

डा. आरएल सोलंकी, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केंद्र, चित्तौड़गढ़ ने किसान महिलाओं को भूमि एवं मिट्टी की उर्वरकता बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रकार के तरीकों पर तकनीकी जानकारी दी.

प्रशिक्षण के दौरान आदर्श शर्मा, प्रोग्राम अफसर, डा. कुसुम शर्मा, डा. दीपा इंदौरिया, अभिलाषा, मदन गिरी व राजेश विश्नोई आदि ने भी विचार व्यक्त किए.

मदार और  हुंदर गांव फिर बने स्मार्ट विलेज (Smart Villages)

उदयपुर : 30 अप्रैल, 2024. एमपीयूएटी के गोद लिए बड़गांव पंचायत समिति के गांव मदार और ब्राह्मणों की हुंदर ने एक बार फिर स्मार्ट विलेज का खिताब अपने नाम कर प्रदेश में अव्वल स्थान प्राप्त किया है. प्रदेश के सभी 27 राजकीय वित्तपोषित विश्वविद्यालयों को यूनिवर्सिटी सोशल रिस्पांसिबिलिटी (यूएसआर) के तहत गांव गोद ले कर उसे स्मार्ट विलेज में रूपांतरित करने की राज्यपाल की पहल को एमपीयूएटी ने पूरी गंभीरता से लिया.

एमपीयूएटी की ओर से उक्त दोनों स्मार्ट विलेज को जनवरी से मार्च, 2024 की त्रैमासिक अवधि में किए गए नवाचार और अन्य गतिविधियों की समीक्षा के बाद राज्यपाल कलराज मिश्र ने एमपीयूएटी के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक के साथ ही अन्य विश्वविद्यालयों के लिए भी इसे अनुकरणीय पहल के रूप में रेखांकित किया है. इस से पूर्व भी मदार और ब्राह्मणों की हुंदर गांव 2 बार यह खिताब मिल चुका है.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने एमपीयूएटी की विभिन्न टीमों ने इन गांवों में जा कर जो गतिविधियां की हैं, उस से न केवल कृषि, बल्कि सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक क्षेत्रों में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है. यहीं नहीं, कोरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) के तहत 1.5 रुपए करोड़ से ज्यादा के काम संपादित होने की खुशी गांव वालों के चेहरों पर साफ झलकती है.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि सीएसआर योजना के अंतर्गत नाबार्ड के सहयोग से राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, मदार में 5 केवी क्षमता वाले सोलर ट्री की स्थापना की गई. इस की अनुमानित लागत 9.08 लाख रुपए है. इस से प्रतिदिन 15-20 यूनिट बिजली बन रही है, जिस से स्कूल, पनघट व स्ट्रीट लाइट के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. आईआईएफएल, मुंबई और   ब्लूइनफिनिटी लेब्स प्रा. लि. के सहयोग से कीटनाशक/पेस्टीसाइड/उर्वरक छिड़काव के लिए 25 किलोग्राम क्षमता का ड्रोन विश्वविद्यालय को दिया गया.  इस की अनुमानित लागत 30 लाख रुपए है. इस का उपयोग स्मार्ट गांव में किया गया है. राजस्थान माइंस एवं मिनरल प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से बालिका उच्च प्राथमिक विद्यालय, मदार में 150 बच्चों को टेबल, स्टूल और 4 अलमारी 3.94 लाख रुपए का फर्नीचर उपलब्ध कराया गया.

उन्होंने बताया कि आईआईएफएल, मुंबई के सहयोग से राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, मदार को 50 कंप्यूटर टेबलेट, औक्सीजन कंसन्ट्रेटर और कोविड किट उपलब्ध कराए गए.

इस के अलावा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, मदार में कन्वेशन हाल को  बनाने में तकरीबन 42 लाख रुपए की लागत आई है. राजकीय बालिका उच्च प्राथमिक विद्यालय के लिए विधायक मद से 10 लाख रुपए की लागत से खेल मैदान की चारदिवारी का काम किया गया.

स्मार्ट गांव मदार एवं ब्राहम्णों की हुंदर में 8 स्वयं सहायता समूह की 120 किसान महिलाएं सदस्य हैं, जो कि सब्जी उत्पादन, सिलाई केंद्र, अनाज भंडारण, दूध उत्पादन, सोलर लाइट, सोलर कुकर, फल एवं सब्जी प्रसंस्करण इत्यादि गतिविधियों से लाभान्वित हो रही हैं.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि इस विश्वविद्यालय द्वारा मदार एवं ब्राहम्णों की हुंदर गांव पंचायत समिति, बड़गांव (उदयपुर) को सितंबर, 2020 में गोद लिए गए थे. इन गांवों के विकास की कार्ययोजना स्मार्ट गांव क्रियान्वयन कमेटी द्वारा आजीविका अवसर एवं आर्थिक सृदृढ़ीकरण हेतु विभिन्न स्किल ट्रेनिंग एवं इंटीग्रेटेड फार्मिंग के तरीकों से की जा रही है. विश्वविद्यालय के 130 वैज्ञानिकों एवं अन्य अधिकारियों द्वारा 42 बार भ्रमण कर कार्ययोजना के क्रियान्वयन का निरीक्षण किया. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा 36 एकदिवसीय प्रशिक्षणों के माध्यम से 2311 किसान एवं किसान महिलाएं लाभान्वित हुए.

निदेशक प्रसार डा. आरए कौशिक ने बताया कि विश्वविद्यालय के चयनित स्मार्ट गांव मदार एवं ब्राम्हणों की हुंदर में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के राष्ट्रीय कृषि प्रसार कार्यक्रम के अंतर्गत 6 किसानों के खेतों पर गेहूं की उन्नत किस्म एचआई 1034 के प्रदर्शन लगाए गए थे. इसी प्रकार सब्जी व फूल प्रदर्शन में प्याज, पालक, गाजर, पूसा साग एवं मैरी गोल्ड आदि के 16 किसानों के खेतों पर प्रदर्शन लगाए गये थे.

उन्होंने बताया कि बंजर भूमि विकास हेतु ग्राम पंचायत एवं वन विभाग के सहयोग से 175 पेड़ नीम, करंज, जामुन, सुबबूल एवं मोरिंगा आदि लगाए गए. पशुपालन विभाग के सहयोग से शिविर आयोजित कर 360 पशुओं और 590 भेड़बकरियों का टीकाकरण व उपचार किया गया. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से शिविर आयोजित कर 93 रोगियों का उपचार कर निःशुल्क दवाएं दी गईं. इसी क्रम में इफको के सहयोग से गेहूं की फसल पर ड्रोन द्वारा नैनो यूरिया का छिड़काव किया गया.