कोंडागांव में खुलेगा नेचुरोपैथी  एवं हर्बल कृषि पर्यटन सेंटर (Agro Tourism Center)

छत्तीसगढ़ राज्य में ईको पर्यटन के विकास एवं संरक्षण में विगत 5 सालों से कार्यरत संस्था ‘वसुंधरा प्रकृति संरक्षण समिति’ यानी विस्कान द्वारा प्रदेश में ईको पर्यटन सहित प्राकृतिक चिकित्सा एवं हर्बल खेती को बढ़ावा देने के लिए ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ के साथ करार किया गया.

इस अवसर पर मां दंतेश्वरी हर्बल के संस्थापक डा. राजाराम त्रिपाठी, डायरेक्टर अनुराग त्रिपाठी, जसमती नेताम,बली चक्रवर्ती, कृष्णा नेताम, व्यवस्थापक रमेशचंद्र पंडा, शंकर नाग, मैंगो नेताम, वसुंधरा प्रकृति संरक्षण समिति (विस्कान )के अध्यक्ष ज्ञानेंद्र पांडेय, विस्कान एग्रो कार्प के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अभिषेक चौधरी विशेष रूप से उपस्थित थे.

कोंडागांव स्थित मां दंतेश्वरी हर्बल एस्टेट में विकसित हो रहे ईको रिसोर्ट में ईको पर्यटन के 4 स्वरूपों का विकास किया जाना सुनिश्चित हुआ है. इन में कृषि पर्यटन, नेचुरोपैथी, ट्राइबल टूरिज्म एवं ग्रामीण पर्यटन शामिल हैं.

कृषि पर्यटन के अंतर्गत दुनियाभर में अपनी काली मिर्च की खेती एवं दुर्लभ औषधीय पौधों के संरक्षक के रूप में विख्यात डा. राजाराम त्रिपाठी के सान्निध्य में रह कर देशविदेश के किसान औषधीय पौधों की खेती का प्रशिक्षण ले सकेंगे. इस में ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षित कर रोजगार दिया जाएगा.

रिसोर्ट के नेचुरोपैथी सेंटर में लाइफस्टाइल से संबंधित बीमारियों के लिए आवश्यक दिनचर्या, जिस में योग, प्राणायाम, ध्यान, आयुर्वेदिक चिकित्सा, नाड़ी शोधन आदि शामिल हैं, के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ ले सकेंगे.

रिसोर्ट में पर्यटकों के लिए बस्तर की संस्कृति को देखने और आदिवासी गांवों में भ्रमण की सुविधा रहेगी.

संस्था द्वारा ग्रामीण पर्यटन के विकास के लिए स्थानीय युवकयुवतियों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा, जिस से पर्यटन के विकास के साथसाथ प्रकृति एवं संस्कृति का संरक्षण हो सके.

एमपीयूएटी को प्रौद्योगिकी (Technology) पर 32 पेटेंट

उदयपुर : क्षेत्रीय अनुसंधान एवं प्रसार सलाहकार समिति संभाग चतुर्थ-अ की बैठक 2 मई, 2024 को कृषि अनुसंधान केंद्र, उदयपुर में आयोजित की गई. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने गत वर्षों में विभिन्न प्रौद्योगिकी पर 32 पेटेंट प्राप्त किए. साथ ही, राष्ट्रीय स्तर पर बकरी की 3 नस्लें एवं भैंस की एक नस्ल को रजिस्टर्ड कराया. गत वर्ष को विश्वविद्यालय ने मिलेट वर्ष के रूप में मनाया एवं एक पिक्टोरियल गाईड भी जारी की.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि पिछले वर्ष अफीम की चेतक किस्म, मक्का की पीएचएम-6 किस्म के साथ असालिया एवं मूंगफली की किस्में विकसित की. उन्होंने सभी वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि सभी फसलों की नई किस्में विकसित की जाएं, ताकि किसानों को अधिक से अधिक लाभ मिल सके.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि आज कृषि में स्थायित्व लाने के लिए कीट, बीमारी प्रबंधन एवं जल प्रबंधन पर काम करना होगा. उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि विश्वविद्यालय ने जैविक/प्राकृतिक खेती में राष्ट्रीय पहचान बनाई है.

उन्होंने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक ने विश्वविद्यालय से कहा कि भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान के साथ मिल कर प्राकृतिक खेती की रूपरेखा तैयार की जाए.

अपने भाषण के दौरान उन्होंने कृत्रिम बुद्धिमत्ता व डिजिटल इंजीनियरिंग पर उत्कृष्टता केंद्र पर बल दिया. साथ ही, उन्होंने सभी वैज्ञानिकों को आह्वान किया कि विश्वविद्यालय की आय विभिन्न तकनीकियों द्वारा बढ़ाई जाए.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के निदेशक अनुसंधान डा. अरविंद वर्मा ने बैठक में अपने संबोधन में विश्वविद्यालय के द्वारा विभिन्न फसलों पर किए गए अनुसंधान द्वारा विकसित तकनीकियों के बारे में बताया. साथ ही, उन्होंने जैविक खेती पर विकसित पैकेज औफ प्रैक्टिस की जानकारी सदन को दी.

उन्होंने कहा कि गत वर्ष औषधीय एवं सुंगधित परियोजना को उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रथम स्थान मिला. विश्वविद्यालय ने गत वर्ष विभिन्न फसलों की 4 किस्में विकसित की.

डा. अरविंद वर्मा ने बताया कि हरित क्रांति के बाद कृषि तकनीकों के क्षेत्र में खासतौर पर बीज, मशीन और रिमोट संचालित तकनीकों में व्यापक बदलाव आया है. पिछले दशक में तकनीकी हस्तांतरण अंतराल ज्यादा था, लेकिन अब किसान ज्यादा जागरूक होने से तकनीकी हस्तांतरण ज्यादा गति से हो रहा है.

डा. पीके सिंह, अधिष्ठाता, अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय ने अपने उद्बोधन में सरकार द्वारा संचालित योजनाओं पर प्रकाश डाला. उन्होंने जल ग्रहण प्रबंधन की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने अपने उद्बोधन में राजस्थान प्रतिवेदन में जल बजटिंग एवं विभिन्न फसलों में जल उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिए सेंसर आधारित सिंचाई प्रणाली पर जोर दिया.

डा. लोकेश गुप्ता, राजस्थान कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता ने दूध की गुणवत्ता एवं उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया एवं उन्होंने पशुधन उत्पादकता बढ़ाने की तकनीकियों पर प्रकाश डाला.

बैठक के प्रारंभ में डा. राम अवतार शर्मा, अतिरिक्त निदेशक कृषि विभाग, भीलवाड़ा ने गत खरीफ में वर्षा का वितरण, बोई गई विभिन्न फसलों के क्षेत्र एवं उन की उत्पादकता के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

कृषि मशीनरी (Agricultural Machinery) को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण 

उदयपुर : 2 मई, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय द्वारा लघु एवं सीमांत किसान परिवारों में कृषि मशीनरी को बढ़ावा देने व कृषि में श्रम साध्य साधनों के उपयोग पर एकदिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन कृषि विज्ञान केंद्र, चित्तौड़गढ़ पर किया गया. यह प्रशिक्षण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित परियोजना के अंतर्गत आयोजित किया गया.

प्रशिक्षण के आरंभ में निदेशक प्रसार शिक्षा एवं प्रोजैक्ट इंचार्ज डा. आरए कौशिक ने किसान महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा कि बढ़ती हुई आबादी को देखते हुए किसानों को जरूरत है सघन एवं सूक्ष्म अवधि वाली खेती की. इस के लिए उन्नत बीज, खाद एवं समय पर खेती के कामों को पूरा करने के लिए आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग करना जरूरी हो गया है. इन के खेती में उपयोग से मानव श्रम काफी कम हो जाता है.

अनुसंधानों के आधार पर कहा जा सकता है कि कृषि यंत्रों के उपयोग से खेइत के कामों में लगने वाले श्रम व समय को 20-30 फीसदी तक कम हो जाता है. इस के अतिरिक्त उर्वरकों, बीजों व रसायनों पर होने वाले खर्च में भी तकरीबन 15-20 फीसदी की कमी आ जाती है.

प्रशिक्षण की मुख्य वक्ता डा. हेमु राठौड़, वैज्ञानिक एक्रिप ने किसान महिलाओं के श्रम व साध्य साधनों के उपयोग पर प्रकाश डाला. साथ ही, उन्नत दरांती, मक्का छीलक यंत्र, मूंगफली छीलक यंत्र, ट्रांसप्लांटर, वेजीटेबल पिकिंग बैग, सोलर हेट, उंगली में पहने जाने वाली सब्जी कटर आदि पर प्रशिक्षण दिया. साथ ही, महिलाओं द्वारा उन के सुरक्षित उपयोग को भी सुनिश्चित किया गया.

प्रशिक्षण में डा. लतिका व्यास ने खेती में महिलाओं के योगदान पर चर्चा की और बताया कि कृषि में खेती की तैयारी से भंडारण तक की 90 फीसदी क्रियाएं महिलाओं द्वारा की जाती हैं. इसी दिशा में कृषि को और भी समृद्ध बनाने के लिए किसान महिलाओं के लिए प्रशिक्षण आयोजित किए जा रहे हैं.

डा. आरएल सोलंकी, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केंद्र, चित्तौड़गढ़ ने किसान महिलाओं को भूमि एवं मिट्टी की उर्वरकता बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रकार के तरीकों पर तकनीकी जानकारी दी.

प्रशिक्षण के दौरान आदर्श शर्मा, प्रोग्राम अफसर, डा. कुसुम शर्मा, डा. दीपा इंदौरिया, अभिलाषा, मदन गिरी व राजेश विश्नोई आदि ने भी विचार व्यक्त किए.

मदार और  हुंदर गांव फिर बने स्मार्ट विलेज (Smart Villages)

उदयपुर : 30 अप्रैल, 2024. एमपीयूएटी के गोद लिए बड़गांव पंचायत समिति के गांव मदार और ब्राह्मणों की हुंदर ने एक बार फिर स्मार्ट विलेज का खिताब अपने नाम कर प्रदेश में अव्वल स्थान प्राप्त किया है. प्रदेश के सभी 27 राजकीय वित्तपोषित विश्वविद्यालयों को यूनिवर्सिटी सोशल रिस्पांसिबिलिटी (यूएसआर) के तहत गांव गोद ले कर उसे स्मार्ट विलेज में रूपांतरित करने की राज्यपाल की पहल को एमपीयूएटी ने पूरी गंभीरता से लिया.

एमपीयूएटी की ओर से उक्त दोनों स्मार्ट विलेज को जनवरी से मार्च, 2024 की त्रैमासिक अवधि में किए गए नवाचार और अन्य गतिविधियों की समीक्षा के बाद राज्यपाल कलराज मिश्र ने एमपीयूएटी के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक के साथ ही अन्य विश्वविद्यालयों के लिए भी इसे अनुकरणीय पहल के रूप में रेखांकित किया है. इस से पूर्व भी मदार और ब्राह्मणों की हुंदर गांव 2 बार यह खिताब मिल चुका है.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने एमपीयूएटी की विभिन्न टीमों ने इन गांवों में जा कर जो गतिविधियां की हैं, उस से न केवल कृषि, बल्कि सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक क्षेत्रों में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है. यहीं नहीं, कोरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) के तहत 1.5 रुपए करोड़ से ज्यादा के काम संपादित होने की खुशी गांव वालों के चेहरों पर साफ झलकती है.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि सीएसआर योजना के अंतर्गत नाबार्ड के सहयोग से राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, मदार में 5 केवी क्षमता वाले सोलर ट्री की स्थापना की गई. इस की अनुमानित लागत 9.08 लाख रुपए है. इस से प्रतिदिन 15-20 यूनिट बिजली बन रही है, जिस से स्कूल, पनघट व स्ट्रीट लाइट के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. आईआईएफएल, मुंबई और   ब्लूइनफिनिटी लेब्स प्रा. लि. के सहयोग से कीटनाशक/पेस्टीसाइड/उर्वरक छिड़काव के लिए 25 किलोग्राम क्षमता का ड्रोन विश्वविद्यालय को दिया गया.  इस की अनुमानित लागत 30 लाख रुपए है. इस का उपयोग स्मार्ट गांव में किया गया है. राजस्थान माइंस एवं मिनरल प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से बालिका उच्च प्राथमिक विद्यालय, मदार में 150 बच्चों को टेबल, स्टूल और 4 अलमारी 3.94 लाख रुपए का फर्नीचर उपलब्ध कराया गया.

उन्होंने बताया कि आईआईएफएल, मुंबई के सहयोग से राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, मदार को 50 कंप्यूटर टेबलेट, औक्सीजन कंसन्ट्रेटर और कोविड किट उपलब्ध कराए गए.

इस के अलावा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, मदार में कन्वेशन हाल को  बनाने में तकरीबन 42 लाख रुपए की लागत आई है. राजकीय बालिका उच्च प्राथमिक विद्यालय के लिए विधायक मद से 10 लाख रुपए की लागत से खेल मैदान की चारदिवारी का काम किया गया.

स्मार्ट गांव मदार एवं ब्राहम्णों की हुंदर में 8 स्वयं सहायता समूह की 120 किसान महिलाएं सदस्य हैं, जो कि सब्जी उत्पादन, सिलाई केंद्र, अनाज भंडारण, दूध उत्पादन, सोलर लाइट, सोलर कुकर, फल एवं सब्जी प्रसंस्करण इत्यादि गतिविधियों से लाभान्वित हो रही हैं.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि इस विश्वविद्यालय द्वारा मदार एवं ब्राहम्णों की हुंदर गांव पंचायत समिति, बड़गांव (उदयपुर) को सितंबर, 2020 में गोद लिए गए थे. इन गांवों के विकास की कार्ययोजना स्मार्ट गांव क्रियान्वयन कमेटी द्वारा आजीविका अवसर एवं आर्थिक सृदृढ़ीकरण हेतु विभिन्न स्किल ट्रेनिंग एवं इंटीग्रेटेड फार्मिंग के तरीकों से की जा रही है. विश्वविद्यालय के 130 वैज्ञानिकों एवं अन्य अधिकारियों द्वारा 42 बार भ्रमण कर कार्ययोजना के क्रियान्वयन का निरीक्षण किया. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा 36 एकदिवसीय प्रशिक्षणों के माध्यम से 2311 किसान एवं किसान महिलाएं लाभान्वित हुए.

निदेशक प्रसार डा. आरए कौशिक ने बताया कि विश्वविद्यालय के चयनित स्मार्ट गांव मदार एवं ब्राम्हणों की हुंदर में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के राष्ट्रीय कृषि प्रसार कार्यक्रम के अंतर्गत 6 किसानों के खेतों पर गेहूं की उन्नत किस्म एचआई 1034 के प्रदर्शन लगाए गए थे. इसी प्रकार सब्जी व फूल प्रदर्शन में प्याज, पालक, गाजर, पूसा साग एवं मैरी गोल्ड आदि के 16 किसानों के खेतों पर प्रदर्शन लगाए गये थे.

उन्होंने बताया कि बंजर भूमि विकास हेतु ग्राम पंचायत एवं वन विभाग के सहयोग से 175 पेड़ नीम, करंज, जामुन, सुबबूल एवं मोरिंगा आदि लगाए गए. पशुपालन विभाग के सहयोग से शिविर आयोजित कर 360 पशुओं और 590 भेड़बकरियों का टीकाकरण व उपचार किया गया. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से शिविर आयोजित कर 93 रोगियों का उपचार कर निःशुल्क दवाएं दी गईं. इसी क्रम में इफको के सहयोग से गेहूं की फसल पर ड्रोन द्वारा नैनो यूरिया का छिड़काव किया गया.

आम की अच्छी कीमत दिलाए अच्छी पैकेजिंग (Packaging)

आम के फलों को अगर अच्छे बाजार मूल्य पर बेचना चाहते हैं, तो इस के लिए जरूरी है कि आम के फल देखने में दागधब्बे रहित हों और दिखने में सुंदर भी हों. साथ में उस की साइज भी औसत में एकजैसी होनी जरूरी होती है. इस के लिए जितना जरूरी आम के बागों की समय से सिंचाई, गुड़ाईजुताई और कीट व बीमारियों का प्रबंधन होता है, उतना ही जरूरी हो जाता है कि फलों की बढ़वार की नियमित निगरानी और उस का बैगिंग किया जाना.

आम की परंपरागत और अधिक ऊंचाई वाली किस्मों में बैगिंग किया जाना तो संभव नहीं है, लेकिन देश में प्रचलित रंगीन बौनी किस्में, जिन्हें व्यवसाय के नजरिए  से अच्छा माना जाता है और जिन के पौधों की बढ़वार बहुत कम होती है या जिन किस्मों की नियमित अंतराल पर प्रूनिंग का काम पूरा किया जाता है, उन किस्मों की फलत में बैगिंग किया जाना आसान होता है.

आम की सघन बागबानी वाली सभी किस्मों की बैगिंग किया जाना आसान होता है. ऐसे में किसान समय से आम के फलों की बैगिंग कर के अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. बैगिंग किए जाने से फलों की क्वालिटी में गुणात्मक बढ़ोतरी हो जाती है. जो किसानों बागबानों को अधिक बाज़ार मूल्य दिलाने में मददगार होता है.

कब करें बैगिंग या थैलाबंदी

आम के फलों की बैगिंग का सब से मुफीद समय आम के फलों के आंवले के साइज के आकार के होने पर होता है. इस दौरान सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे जिंक, सल्फेट, कौपर सल्फेट और बोरेक्स का पर्णीय छिड़काव करने के बाद एक थैले में एक ही फल को बंद कर के बैगिंग कर लेना चाहिए.

सघन बागबानी वाली किस्मों की कैसे करें थैलाबंद

सघन बागबानी के तहत रोपे गए आम के पौधे बौने साइज के होते हैं. ऐसे में इन किस्मों की थैलाबंदी आसान होती है. आम के फलों की थैलाबंदी के लिए जिन थैलों का प्रयोग किया जाता है, वह बाहर से भूरे और अंदर से काले रंग के होते हैं.

आप थैलाबंदी करते समय एकएक फलों पर थैला पहना कर उसे धागे से बांध दें. अगर थैलों की बंधाई नहीं की जाती है, तो हवा के झोंकों से थैले नीचे गिर सकते हैं.

कब करे थैलाबंद फलों की तुड़ाई

अगर आप ने अपने आम के बगीचे में फलों की थैलाबंदी कर रखी है, तो यह ध्यान रखें कि जब आम के फल पकने की अवस्था में पहुंच गए हों और उन के छिलके का रंग सुनहरा पीला हो गया हो, तभी तुड़ाई का काम शुरू करें.

चूंकि सघन बागबानी में पौधों की ऊंचाई कम होती है, ऐसे में फलों की तुड़ाई हाथ से आसान होती है. फलों को तोड़ते समय यह ध्यान रखें कि जब भी फल तोड़े जाएं, तो उन के साथ तकरीबन 1 सैंटीमीटर का डंठल जरूर लगा हुआ हो.

तुड़ाई के दौरान यह भी ध्यान रखें कि फलों को तोड़ते समय चोट न पहुंचे, अन्यथा फलों में सड़न पैदा हो सकती है. आप जब फलों की तुड़ाई कर लें, तो उन का भंडारण छायादार जगह पर ही करें. इस से फलों को लंबे समय तक महफूज रखा जा सकता है.

पैकेजिंग (Packaging)

थैलाबंदी का फल की क्वालिटी पर असर

आम ही नहीं, बल्कि किसी भी फल की अगर थैलाबंदी कर दी जाए, तो उस के फल सामान्य आकार, चमकदार रंग के साथ दागधब्बा रहित होते हैं. थैलाबंदी वाले फलों की मिठास, क्वालिटी और भंडारण क्षमता खुले में तैयार फलों की तुलना में काफी अच्छी मानी जाती है. इस से न केवल फलों का वजन अच्छा बढ़ता है, बल्कि फल में मौजूद पोषक तत्वों की मात्रा भी बढ़ जाती है.

छात्रों को कृषि के क्षेत्र में कैरियर बनाने का सुनहरा अवसर

आज हमारा देश बहुत से कृषि उत्पादों के उत्पादन में विश्व स्तर पर पहला स्थान रखता है. अब जरूरत है कि कृषि उत्पादन बढ़ाने के साथ ही उत्पादों की क्वालिटी भी सुनिश्चित की जाए, जिस से कि मानव की सेहत बेहतर हो. साथ ही, पर्यावरण भी सुरक्षित हो सके.

आज के परिवेश में दूसरी सब से अधिक जरूरत है कृषि में उद्यम स्थापना की, जिस से कि ग्रामीण युवा बेरोजगारों को अपने गांव में ही आय और रोजगार के साधन मुहैया हो सकें. विगत दशकों में कृषि का क्षेत्र विभिन्न कारणों से उपेक्षित रहा है और कृषि के काम में लगे लोगों को यथोचित सम्मान नहीं मिला, लेकिन पिछले दशक से कृषि में उद्यमिता स्थापित करने का चलन बढ़ा है. इस क्षेत्र में न केवल कृषि के छात्र, बल्कि बड़ीबड़ी निजी कंपनियां और स्टार्टअप भी आ रहे हैं.

देश के विकास में कृषि शिक्षा और अनुसंधान में बढ़ती संभावनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. कृषि के क्षेत्र में छात्रों की अच्छी तालीम, अनुसंधान व दक्षता अभिवृद्धि के लिए राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर पर 5 कृषि विश्वविद्यालय हैं, जिन में प्रवेश परीक्षा के जरीए एडमिशन दिया जाता है.

Ramji Singhसरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ के कुलसचिव प्रो. रामजी सिंह ने बताया कि राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में छात्रों का प्रवेश प्रदेश स्तरीय संयुक्त प्रवेश परीक्षा (यूपी कैटेट) के माध्यम से होता है. इस वर्ष यूपी कैटेट 2024 प्रवेश परीक्षा का आयोजन कृषि विश्वविद्यालय, मेरठ द्वारा ही कराया जा रहा है, जिस में आवेदन 17 मार्च, 2024 से ही प्राप्त किए जा रहे हैं. आवेदन की अंतिम तिथि 7 मई, 2024 है.

उन्होंने आगे बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी में ज्यादातर छात्र इस परीक्षा को देने से वंचित रह जाते हैं, जिस से कि आगे चल कर उन के भविष्य पर इस का विपरीत प्रभाव होता है. खासकर यदि पूर्वांचल क्षेत्र की बात करें, तो इस क्षेत्र में छात्रों एवं अभिभावकों में कृषि शिक्षा की जागरूकता और भी कम है. इंटरमीडिएट विज्ञान अथवा कृषि में उत्तीर्ण छात्र बीएससी (कृषि) अथवा अन्य समकक्ष पाठ्यक्रम जैसे बागबानी, वानिकी, कृषि अभियंत्रण, खाद्य व दुग्ध प्रौद्योगिकी, पशु चिकित्सा विज्ञान, गृह (सामुदायिक) विज्ञान, मत्स्य विज्ञान व गन्ना प्रौद्योगिकी में प्रवेश ले सकते हैं. इस के अतिरिक्त एमएससी (कृषि) व पीएचडी में भी प्रवेश ले सकते हैं.

Rodra Pratapकृषि विज्ञान केंद्र, कोटवा, आजमगढ़ में कार्यरत कृषि वैज्ञानिक डा. रुद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में कृषि शिक्षा व अनुसंधान को बढ़ावा दिए जाने के लिए वर्तमान में कुल 5 राज्य कृषि विश्वविद्यालय संचालित हैं. इन विश्वविद्यालयों में शिक्षा और अनुसंधान का स्तर अन्य महाविद्यालयों से बेहतर होता है. साथ ही, छात्रों को विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की जानकारी और अच्छा शैक्षणिक माहौल भी मिलता है. यदि कृषि के क्षेत्र में नौकरी की बात करें, तो आज भी कृषि के क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की तुलना में अपार संभावनाएं हैं. लेकिन इस के लिए शिक्षा संस्थान जहां से शिक्षा ली गई है, बेहद मायने रखता है. श्री दुर्गाजी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, चंदेश्वर, आजमगढ़ के सहायक प्राध्यापक डा. सर्वेश कुमार ने बताया कि स्थानीय विद्यालयों एवं महाविद्यालयों से उत्तीर्ण छात्रछात्राएं भी विश्वविद्यालयों में प्रवेश प्राप्त कर अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं.

Mulayam Yadavकृषि विभाग, आजमगढ़ में वरिष्ठ प्राविधिक सहायक के पद पर काम कर रहे डा. मुलायम यादव ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालयों में बीएससी (कृषि), एमएससी (कृषि) व पीएचडी कर के प्रशासनिक पदों के साथ ही कृषि व अन्य संबंधित विभागों में अधिकारी व कर्मचारी के रूप में चयनित हो सकते हैं. साथ ही, ऊंची तालीम ले कर विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में वैज्ञानिक, महाविद्यालय व विश्वविद्यालयों मे सहायक प्राध्यापक आदि पदों पर भी चयनित हो सकते हैं. इस के अलावा बैंकों व अर्धसरकारी कंपनी व निजी कंपनियों में भी कृषि के छात्रों को अच्छी नौकरी मिलती है.

Roopaliआचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या की शोध छात्रा रूपाली सिंह ने बताया कि ग्रामीण छात्राओं के लिए भी कृषि विश्वविद्यालयों से शिक्षा लेना एक बेहतर विकल्प है. यहां से शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त कर ग्रामीण युवा कृषि के विभिन्न क्षेत्रों में उद्यम स्थापित कर के न केवल अपना भविष्य संवार  सकते हैं, बल्कि अन्य लोगों को रोजगार के साधन मुहैया करा सकते हैं.

फसल अवशेष ( Crop Residue) जलाने पर होगी कार्यवाही

बस्ती : गेहूं फसल अवशेष जलने की घटना का स्थलीय सत्यापन एवं घटनाओं के नियंत्रण के लिए क्षेत्रीय कर्मचारियों के माध्यम से किसानों को जागरूक करने के साथ ही शासन एवं कृषि विभाग द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन कराने के लिए संयुक्त निदेशक, कृषि, अविनाश चंद्र तिवारी ने मंडल के तीनों उपनिदेशक कृषि एवं जिला कृषि अधिकारियों को निर्देशित किया है.

अधिकारियों को लिखे पत्र में संयुक्त निदेशक, कृषि, अविनाश चंद्र तिवारी ने कहा है कि जनपद स्तर पर एक सेल का गठन करते हुए प्रत्येक दिन की घटनाओं का अनुश्रवण किए जाने एवं प्रत्येक गांव के ग्राम प्रधान एवं क्षेत्रीय लेखपाल को प्रत्येक दशा में अपने से संबंधित क्षेत्र में पराली/कृषि अपशिष्ट जलाने की घटना को रोके जाने के लिए निर्देशित करें.

उन्होंने कहा कि प्रत्येक राजस्व ग्राम अथवा राजस्व ग्राम क्लस्टर के लिए एक राजकीय कर्मचारी को नोडल अधिकारी नामित करें, जो कि सभी के बीच प्रचारप्रसार करते हुए फसल अवशेष आदि को न जलने के लिए प्रेरित करे. लेखपाल की जिम्मेदारी होगी कि अपने क्षेत्र में फसल अवशेष जलने की घटनाएं बिलकुल न होने दें, अन्यथा शिकायत मिलने पर उन के विरुद्ध भी कार्यवाही की जाएगी. जनपद स्तर पर अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व की अध्यक्षता में एक सेल स्थापित करने के निर्देश पूर्व में दिए जा चुके हैं.

उपजिलाधिकारी के अंतर्गत गठित सचल दस्ते का दायित्व होगा कि फसल अवशेष आदि जलने की घटना की सूचना मिलते ही तत्काल मौके पर पहुंच कर संबंधित के विरुद्ध विधिक कार्यवाही सुनिश्चित करेंगे.

उन्होंने बताया कि 2 एकड़ से कम जोत वाले किसानों के लिए फसल अवशेष जलाने पर 2,500 रुपए प्रति घटना और 2 एकड़ से अधिक जोत वाले किसानों से 5,000 रुपए प्रति घटना तहसीलदार के स्तर से आर्थिक दंड लगाया जाएगा.

उन्होंने आगे बताया कि फसल कटाई के दौरान प्रयोग की जाने वाली कंबाइन हार्वेस्टर के साथ सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम अथवा स्ट्रा रीपर अथवा स्ट्रा रेक एवं बेलर अथवा अन्य कोई फसल अवशेष प्रबंधन यंत्र का उपयोग किया जाना अनिवार्य होगा.

यह भी सुनिश्चित किया जाए कि उक्त व्यवस्था बगैर आप के जनपद में कोई कंबाइन हार्वेस्टर से कटाई न करने पाए. प्रत्येक कंबाइन हार्वेस्टर के साथ कृषि विभाग/ग्राम्य विकास का एक कर्मचारी नामित रहे, जो कि अपनी देखरेख में कटाई काम कराएं. फसल अवशेष प्रबंधन यंत्रों के बगैर चलते हुए पाए जाए, तो उस को तत्काल सीज कर लिया जाए और कंबाइन मालिक के स्वयं के खर्चे पर सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम लगवा कर ही छोड़ा जाए.

हकृवि और प्राग के अनुबंध से मिलेगी मजबूती

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और चेक यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग के बीच अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध को अगले 5 साल के लिए बढ़ाया गया. इस अनुबंध के अनुसार दोनों संस्थान शिक्षा व कृषि विश्वविद्यालय के प्रमुख अनुसंधानों में सहयोग को और अधिक सुदृढ़ करेंगे.

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की ओर से कुलपति प्रो. बीआर कंबोज, जबकि चेक यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग की ओर से प्रो. थामस सुब्रत अधिष्ठाता, फैकल्टी औफ इकोनोमिक्स एंड मैनेजमेंट ने इस समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए.

इस अवसर पर चेक यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग के डा. यान हुको, डा. शेल्वी कोबजेव, इंजीनियर सुकुमार और विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी व वैज्ञानिक उपस्थित रहे.

दोनों विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को होगा फायदा

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि इस प्रकार के समझौता ज्ञापनों के तहत हम आपसी हित के क्षेत्रों की पहचान और सुदृढ़ कर रहे हैं. इस अनुबंध के पश्चात मिल कर अनुसंधान कार्य करने के अतिरिक्त दोनों विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों और शोधार्थियों के आदानप्रदान, वैज्ञानिक संगोष्ठियों व शैक्षणिक बैठकों में भाग लेने, शैक्षणिक सूचनाओं के लेनदेन आदि को बढ़ाया जाएगा.

इस एमओयू से हकृवि के विद्यार्थियों और शोधार्थियों को यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग की अनुसंधान व प्रौद्योगिकी को जानने व शिक्षा ग्रहण करने को बढ़ावा मिलेगा. इस अनुबंध के तहत दोनों विश्वविद्यालय के विद्यार्थी अपनी शोध को नई तकनीकों के साथ दोनों संस्थानों में निपुणता के साथ पूरा करने में एकदूसरे का सहयोग करेंगे, जिस से शोध की गुणवत्ता में सुधार होगा और विद्यार्थियों को उच्च शैक्षणिक संस्थानों में रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे.

इंटरेक्शन मीट का आयोजन

विश्वविद्यालय की इंटरनेशनल अफेयर सेल ने चेक यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज के विदेशी प्रतिनिधियों के साथ एक इंटरेक्शन मीट का आयोजन किया गया, जिस में यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग के वैज्ञानिक डा. थामस सुब्रत, डा. यान हुको, डा. शेल्वी कोबजेव और इंजीनियर सुकुमार ने विश्वविद्यालय के अधिकारियों, वैज्ञानिकों व विद्यार्थियों के साथ शोध और शैक्षणिक विषयों के बारे में चर्चा की. डा. थामस ने यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग के विभिन्न पाठ्यक्रमों और शोध तकनीकियों के बारे में विस्तार से बताया.

उन्होंने भारतीय छात्रों को दी जाने वाली यूरोपीय संघ के इरास्मस मुंडस फेलोशिप के बारे में बताया. उन्होंने विद्यार्थियों को कार्यक्रम के माध्यम से छात्रवृत्ति एवं शैक्षणिक सहयोग की दिशा में प्रोत्साहित किया. उन्होंने इन फेलोशिप द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता जैसे यात्रा भत्ते, अनुसंधान अनुदान और ट्यूशन छूट पर व्यावहारिक जानकारी प्रदान की.

इस कार्यक्रम के अंतर्गत विश्वविद्यालय के छात्र शैक्षणिक गुणवत्ता के क्षेत्र में प्राग विश्वविद्यालय में अपने अध्ययन को पूरा कर सकते हैं. ज्ञात रहे कि इस अनुबंध के अंतर्गत गत वर्षों में विश्वविद्यालय के 61 विद्यार्थी चेक यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग में प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं.

स्नातकोत्तर शिक्षा अधिष्ठाता डा. केडी शर्मा ने अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों का स्वागत किया. अंतर्राष्ट्रीय मामलों की प्रभारी डा. आशा क्वात्रा ने उन का आभार व्यक्त किया और मीटिंग के उद्देश्य के बारे में संक्षेप में बताया. अंतर्राष्ट्रीय मामलों के संयोजक डा. अनुज राणा ने यूनिवर्सिटी औफ लाइफ साइंसेज, प्राग के वैज्ञानिकों का परिचय करवाया. इस अवसर पर मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. मंजु महता, सयुंक्त निदेशक डा. जंयती टोकस, आईडीपी के लाइज़न अफसर डा. मुकेश सैनी व डा. गणेश भी उपस्थित रहे.

आत्मनिर्भर भारत (Self-Reliant India) बनाने में कृषि क्षेत्र की खास भूमिका

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से चौथी अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिस का मुख्य विषय ‘रिसेंट एडवांसेज इन एग्रीकल्चर फार आत्मनिर्भर भारत’ (आरएएएबी-2024) था. यह कार्यशाला आरवीएसकेवीवी, ग्वालियर द्वारा आभासी मोड में आयोजित की गई. कार्यशाला में मुख्य अतिथि एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट्स रिक्रूटमेंट बोर्ड (एएसआरबी), नई दिल्ली के चेयरमैन डा. संजय कुमार, चीफ पैटर्न के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में यूएएस थारवाड विश्वविद्यालय के कुलपति डा. पीएल पाटिल व आईजीकेवी, रायपुर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. गिरीश चंदेल इत्यादि उपस्थित रहे. कार्यशाला के आयोजक सचिव डा. अंकुर शर्मा रहे.

मुख्य अतिथि डा. संजय कुमार ने कहा कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने की घोषणा 2020 में की गई थी, जिस का मुख्य उद्देश्य स्थानीय उत्पादों को प्रचलित व बढ़ावा देना है और कृषि क्षेत्र सहित भारत में विनिर्माण को प्रोत्साहित करना है. इस मिशन के तहत ‘मेक इन इंडिया’ के संकल्प को पूरा करने में कृषि भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. अब भारतीय कृषि न केवल उत्पादकता और लाभप्रदता पर, बल्कि स्थिरता पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है.

उन्होंने कहा कि आज के समय में कृषि पारिस्थितिकी, जैविक खेती, प्राकृतिक खेती और संरक्षण कृषि का चलन बढ़ रहा है, क्योंकि किसान तेजी से मिट्टी के स्वास्थ्य, जैव विविधता और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के महत्व को पहचान रहे हैं. इन  को अपना कर, किसान मिट्टी की उर्वरता में सुधार कर सकते हैं, मिट्टी के कटाव को कम कर सकते हैं और रसायनों के प्रयोग को कम कर सकते हैं, जिस से जलवायु परिवर्तन से होने वाली समस्याओं से निबटा जा सकता है.

उन्होंने आगे बताया कि नई और आधुनिक तकनीकों को अपना कर किसान अपनी फसलों के उत्पादन को बढ़ा रहा है और देश को आत्मनिर्भर बनाने में भी अपना योगदान दे रहा है.

आत्मनिर्भर भारत (Self-Reliant India)कार्यशाला के चीफ पैटर्न व हकृवि के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अपने संबोधन में कहा कि आने वाले समय में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में कृषि क्षेत्र की अह्म भूमिका रहेगी. कृषि हमेशा से हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है. यह लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करती है और हमारी विशाल आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है. हाल ही के वर्षों में,  इस क्षेत्र में उत्पादकता, स्थिरता और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कृषि पद्धतियों और प्रौद्योगिकियों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, जो इस क्षेत्र को बढ़ाने और आत्मनिर्भरता की दिशा में हमारे संकल्प को मजबूत करने में मदद करेगी.

उन्होंने आगे बताया कि आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण और उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए देश को उत्पादों के आयात पर निर्भरता कम करनी होगी, स्थानीय उत्पादों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देना होगा और उत्पादों के निर्यात को बढ़ाने के बारे में भी सोचना होगा. कृषि क्षेत्र में युवाओं और हितधारकों को आकर्षित करने की आवश्यकता है, क्योंकि कृषि शिक्षा आत्मनिर्भर भारत के लिए सब से अच्छे रोडमैप में से एक हो सकती है, क्योंकि यह कृषि आधारित स्टार्टअप के लिए आधार तैयार करती है.

उन्होंने कहा कि फसल उत्पादन बढ़ाने और युवाओं की कृषि क्षेत्र में भागीदारी बढ़ाने के लिए जीपीएस, सेंसर, ड्रोन और डेटा एनालिटिक्स जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करने की जरूरत है. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय भी किसानों के हित के लिए शोध कार्यों, नवीनतम तकनीकों,  शैक्षणिक गतिविधियों व विस्तार कार्यों जैसी गतिविधियों से भारत को आत्मनिर्भर बनाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है.

इस दौरान एग्रीमीट फांउडेशन, यूपी की अध्यक्ष डा. हर्षदीप कौर द्वारा कार्यशाला में भाग लेने वाले अतिथियों का परिचय करवाया गया. कार्यशाला में आरएलबीसीएयू, झांसी, उत्तर प्रदेश के अनुसंधान निदेशक डा. एसके चतुर्वेदी, एसकेएलटीएसएचयू, तेलंगाना की कुलपति डा. नीरजा प्रभाकर,  आईसीएआर-डीसीआर, पुटुर के निदेशक डा. जेडी अडिगा, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर के कुलपति प्रो. एके शुक्ला ने भी अपने विभिन्न विषयों पर व्याख्यान दिए.

आईसीएआर-एनआईबीएसएम, रायपुर के संयुक्त निदेशक डा. अनिल दीक्षित ने सभी का स्वागत किया, जबकि कार्यशाला के अंत में आईसीएआर-एनआईबीएसएम, रायपुर, छत्तीसगढ़ के वैज्ञानिक डा. एन. अश्विनी ने धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया.

पृथ्वी को प्रदूषणरहित (Pollution Free) रखना हम सभी का कर्तव्य

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में भूदृश्य संरचना इकाई द्वारा संपदा कार्यालय के सामने विश्व पृथ्वी दिवस के उपलक्ष्य में पौध रोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित रहे. उन्होंने कार्यक्रम में पौध रोपण कर के ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ पर सभी को पौध रोपण करने के लिए प्रेरित किया.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ मनाया जाता है, पहली बार 22 अप्रैल, 1970 को ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ मनाया गया था. इस वर्ष पृथ्वी दिवस का थीम ‘प्लेनेट बनाम प्लास्टिक’ है, जिस का मुख्य उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण से प्रकृति को होने वाले नुकसान के बारे में सचेत करना है.

एक अनुमान के मुताबिक, 90 फीसदी प्लास्टिक रिसाइकिल नहीं हो पाता है, जो पर्यावरण के लिए घातक है. प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण पर्यावरण में असंतुलन बढ़ रहा है, जिस की वजह से स्थिति  दयनीय होती जा रही है.

उन्होंने कहा कि पृथ्वी को प्रदूषणरहित रखना हम सभी का कर्तव्य है. ऐसे में हमें पृथ्वी के प्रति अपने कर्तव्यों को समझना पड़ेगा और इसे बेहतर बनाने में योगदान देना होगा.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि लगातार पेड़ों की कटाई, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, रासायनिक खाद व कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग व प्लास्टिक के प्रयोग से हमारी धरती का स्वरूप एवं पर्यावरण दूषित होता जा रहा है. ऐसे में इसे बचाए रखने के लिए समाज को अहम कदम उठाते हुए सामूहिक प्रयास की जरूरत है.

प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि दिनप्रतिदिन बढ़ते जा रहे पर्यावरण प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए पौध रोपण करना बहुत जरूरी है. पृथ्वी को स्वस्थ व पहले की तरह बनाने के लिए हम सभी का कर्तव्य है कि अपनी धरती को हराभरा और बेहतर बनाने का संकल्प लेना पड़ेगा, ताकि संसार के सभी पेड़पौधों पशुपक्षियों एवं जंतुओं की जैव विविधता का संरक्षण किया जा सके.

‘विश्व पृथ्वी दिवस’ पर जकरंदा के 200 पौधे किए रोपित

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के भूदृश्य संरचना इकाई के अध्यक्ष डा. पवन कुमार ने बताया कि पौध रोपण कार्यक्रम के तहत जकरंदा के 200 पौधे रोपित किए गए. इस अवसर पर विश्वविद्यालय के सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित रहे और पौध रोपण भी किया.