सांची का नैचुरल नारियल पानी (Coconut Water) लौंच

भोपाल: पशुपालन एवं डेयरी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) लखन पटेल ने कहा कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए दुग्ध उत्पादन से बड़ा कोई रास्ता नहीं है. मध्य प्रदेश सहकारी दुग्ध संघ अपने सांची ब्रांड के माध्यम से नएनए गुणवत्तापूर्ण उत्पाद बाजार में ला रहा है. हाल ही में सांची ने नैचुरल नारियल पानी लौंच किया है, जो कि अत्यंत गुणवत्तापूर्ण और स्वास्थ्यवर्धक है.भविष्य में दुग्ध संघ की माइनर मिलेट्स कोदोकुटकी के उत्पाद भी बाजार में लाने की योजना है.

मंत्री लखन पटेल ने भोपाल सहकारी दुग्ध संघ के मुख्य डेयरी प्लांट में सांची के नवीन उत्पाद पाश्चरीकृत नैचुरल नारियल पानी की बिक्री का शुभारंभ किया. इस अवसर पर वेटरनरी कौंसिल औफ इंडिया के अध्यक्ष डा. उमेश शर्मा, संचालक पशुपालन एवं डेयरी डा. पीएस पटेल आदि उपस्थित थे.

मंत्री लखन पटेल ने स्वयं भी नारियल पानी पिया और उस की सराहना की. कार्यक्रम में उपस्थित सभी ने सांची नारियल पानी का सेवन किया और उसे गुणवत्ता एवं स्वादयुक्त बताया.

उन्होंने कहा कि भोपाल दुग्ध संघ की आय निरंतर बढ़ रही है. इस वर्ष अभी तक लगभग 700 करोड़ रुपए का लाभ दुग्ध संघ को हुआ है. दुग्ध संघ निरंतर किसानों के लाभ के लिए कार्य तो कर ही रहा है, संघ के कर्मचारियों के कल्याण में भी पीछे नहीं है. अब किसानों के साथ ही कर्मचारियों का भी बीमा कराया जाएगा.

मंत्री लखन पटेल ने आगे कहा कि सहकारिता का मूल सिद्धांत है पारदर्शिता और जुड़े हुए हर व्यक्ति तक लाभ पहुंचाना. हमारी सरकार इसी सिद्धांत पर कार्य कर रही है. हमारा उद्देश्य है दुग्ध उत्पादक किसानों को अधिक से अधिक आमदनी हो और हम इस के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव के नेतृत्व में इस वर्ष हमारी सरकार गौ संरक्षण एवं गौ संवर्धन वर्ष मना रही है. इन कार्यक्रमों में अधिक से अधिक संख्या में भाग लें और अपना योगदान दें.

भोपाल दुग्ध संघ के मुख्य कार्यपालन अधिकारी आरपी तिवारी ने बताया कि दूध, दही, श्रीखंड, बृज पेड़ा, केशव पेड़ा, सांची नीर और सांची खीर के बाद अब सांची दुग्ध संघ अपना नया उत्पाद शुद्ध नैचुरल और पाश्चुरीकृत “सांची नारियल पानी” बाजार में लाया है. इसे नारियल उत्पादन क्षेत्र तमिलनाडु के पोलाची (जिला कोयंबटूर) में 200 एमएल की बोतल में पैक कराया जा रहा है. इस का बाजार मूल्य 50 रुपया प्रति बोतल रखा गया है और इस की उपयोग अवधि 9 माह है. इसे तैयार करने के लिए ताजे नारियल से संयंत्र में हैंड्स फ्री तकनीकी से पानी निकाला जाता है और उसे रिटोर्ट मेथड से 99 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान तक गरम कर पाश्चरीकृत कर बोतल में पैक किया जाता है.

उन्होंने बताया कि भविष्य में दुग्ध संघ की ब्रेड, चाय पत्ती, चिप्स आदि भी बाजार में लाने की योजना है.

धान और मोटा अनाज (Paddy and Coarse Grains) के लिए बनाए गए सैकड़ों उपार्जन केंद्र

भोपाल : खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने बताया कि किसानों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए धान विक्रय के लिए 1412 और मोटा अनाज (ज्वारबाजरा) के लिए 104 उपार्जन केंद्र बनाए गए हैं. ज्वारबाजरा का उपार्जन 22 नवंबर से और धान का उपार्जन 2 दिसंबर से होगा.

जिला बालाघाट में 185, सतना में 144, जबलपुर में 125, रीवा में 123, सिवनी में 99, कटनी में 84, मंडला में 67, नर्मदापुरम में 65, सिंगरौली में 58, शहडोल में 55, पन्ना में 47, नरसिंहपुर में 45, सीधी में 43, उमरिया में 42, अनूपपुर में 34, दमोह में 33, डिंडोरी में 31, रायसेन में 25, सागर में 24, सीहोर में 17, बैतूल में 17, छिंदवाड़ा में 9, शिवपुरी में 8, भिंड में 7, दतिया में 7, ग्वालियर में 6, हरदा में 3, विदिशा में 2, मुरैना में 2 और अलीराजपुर, झाबुआ, गुना, भोपाल एवं अशोकनगर में एकएक धान उपार्जन केंद्र बनाए गए हैं.

इसी तरह ज्वारबाजरा के उपार्जन के लिए रीवा में 2, सिंगरौली में 3, भिंड में 20, दतिया में 4, ग्वालियर में 12, मुरैना में 51 और नर्मदापुरम, शहडोल, पन्ना, नरसिंहपुर, सीधी, सागर, बैतूल, शिवपुरी, विदिशा, बड़वानी, बुरहानपुर और श्योपुर में एकएक उपार्जन केंद्र बनाए गए हैं.

टमाटर (Tomato) के दामों में हुई गिरावट

नई दिल्ली : मंडी में टमाटर की कीमत में कमी के चलते खुदरा कीमत में भी कमी आ रही है. 14 नवंबर, 2024 को अखिल भारतीय औसत खुदरा मूल्य 52.35 रुपए प्रति किलोग्राम था, जो 14 अक्तूबर, 2024 को 67.50 रुपए प्रति किलोग्राम से 22.4 फीसदी कम है. इसी अवधि के दौरान टमाटर की आवक में वृद्धि होने से आजादपुर मंडी में मौडल कीमतें लगभग 50 फीसदी से घट कर 5,883 रुपए प्रति क्विंटल से 2,969 रुपए प्रति क्विंटल हो गईं.

पिंपलगांव, मदनपल्ले और कोलार जैसे बेंचमार्क बाजारों से भी मंडी की कीमतों में भी इसी तरह की कमी की सूचना मिली है.

कृषि विभाग के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, साल 2023-24 में टमाटर का कुल वार्षिक उत्पादन 213.20 लाख टन है, जो 2022-23 में 204.25 लाख टन से 4 फीसदी अधिक है. हालांकि टमाटर का उत्पादन पूरे वर्ष होता है, लेकिन उत्पादन क्षेत्रों और उत्पादन की मात्रा में मौसमी परिवर्तन होता रहता है. मौसम की प्रतिकूल स्थिति और आपूर्ति में मामूली व्यवधान के कारण टमाटर की फसल की उच्च संवेदनशीलता और फलों के शीघ्र खराब होने की प्रवृत्ति के कारण कीमतों पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है. अक्तूबर, 2024 के दौरान टमाटर की कीमतों में उछाल आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में अत्यधिक और लंबे समय तक बारिश के कारण था.

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में टमाटर उत्पादन में सामान्य मौसमी प्रभाव से पता चलता है कि प्रमुख टमाटर उत्पादक राज्यों में अक्तूबर और नवंबर में बोआई होती है. हालांकि, फसल की खेती की कम अवधि और फलों के कई बार तोड़ने के कारण बाजार में टमाटर की निरंतर उपलब्धता रहती है.

हालांकि मदनपप्ले और कोलार के प्रमुख टमाटर केंद्रों पर आवक में कमी हुई है, लेकिन महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों से मौसमी आवक के कारण कीमतों में कमी आई है. यह मौसमी आवक पूरे देश में टमाटर की आपूर्ति में कमी को पूरा कर रही है. अभी तक मौसम भी फसल के लिए अनुकूल रहा है और खेतों से ले कर उपभोक्ताओं तक आपूर्ति में अच्छा प्रवाह बनाए रखने के ठीक रहा है.

800 मीट्रिक टन उत्पादन पशु आहार संयंत्र से मिलेंगे रोजगार (Employment)

साबरकांठा: केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों गुजरात के साबरकांठा जिले के हिम्मतनगर में 800 मीट्रिक टन उत्पादन क्षमता वाले अत्याधुनिक पशु आहार संयंत्र का उद्घाटन किया. इस अवसर पर गुजरात के विधानसभा अध्यक्ष शंकर चौधरी सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि साबर डेयरी की स्थापना के रूप में जो बीज बोया गया था, वह आज एक वट वृक्ष बन कर साढ़े 3 लाख से ज्यादा परिवारों की आजीविका का साधन बन चुका है.

अमित शाह ने यह भी कहा कि पशुपालन से जुड़ी कुछ महिलाओं से उन्होंने मुलाकात की. इन महिलाओं ने बताया कि साबर डेयरी और उस के दूध के व्यापार की वजह से ही वे आज सम्मान से जीवन जी रही हैं.

सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि दूध उत्पादन के क्षेत्र में अच्छे प्रदर्शन के लिए जिन 2 मंडलियों को सम्मानित किया गया, उन में दूध के व्यापार से एक करोड़ रुपए से अधिक का चैक हासिल करने वाली मंडली भी शामिल है.

उन्होंने आगे कहा कि सहकारी डेयरी आंदोलन ने न सिर्फ महिलाओं का सशक्तिकरण किया, बल्कि गांवों में समृद्धि लाने और पोषण प्रदान का भी काम किया है.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि अमूल द्वारा शुरू की गई श्वेत क्रांति के कारण यह सफलता देखने को मिली है.

सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि तकरीबन 210 करोड़ रुपए की लागत से साबर डेयरी के पशु आहार संयंत्र स्थापना की गई है, ताकि स्थानीय लोगों के मवेशियों को पोषक आहार मिल सके.

उन्होंने कहा कि 800 मीट्रिक टन क्षमता का यह अत्याधुनिक चारा संयंत्र न केवल साबरकांठा और अरावली के किसानों की चारा संबंधी जरूरतों को पूरा करेगा, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा करेगा.

उन्होंने कहा कि वर्ष 1976 में अपनी स्थापना से ले कर पशु आहार संयंत्र के उद्घाटन तक साबर डेयरी ने 2050 मीट्रिक टन पशु आहार क्षमता हासिल की है.

भारत में वर्ष 1970 में प्रतिदिन सिर्फ 40 लिटर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष दूध उपलब्ध था, जबकि 2023 में देश में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 167 लिटर दूध की उपलब्धता थी. इस का मतलब है कि दुनिया के सभी देशों में प्रति व्यक्ति दूध उत्पादन की सब से ज्यादा औसत भारत की है और इस में सहकारी आंदोलन का बहुत बड़ा योगदान है.

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने किसानों से प्राकृतिक खेती अपनाने की अपील करते हुए कहा कि आने वाले दिनों में प्राकृतिक खेती किसान की समृद्धि का कारण बनेगी और देश एवं दुनिया के नागरिकों को कैंसर, डायबिटीज और ब्लडप्रेशर से मुक्त करने का साधन भी बनेगी.

उन्होंने आगे कहा कि प्राकृतिक खेती काफी आसान है और इस से समाज का स्वास्थ्य एवं आय बढ़ाने में काफी मदद मिल सकती है. प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को उन के उत्पाद के लिए अच्छी कीमत दिलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय सहकारी आर्गेनिक लिमिटेड और राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड की स्थापना की है, जो किसानों से प्राकृतिक खेती से उगाए गए उत्पाद खरीद कर उन का निर्यात करेगी.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि प्राकृतिक खेती करने पर पहले साल में फसल थोड़ी कम हो सकती है, लेकिन दूसरे और तीसरे साल में लाभ होगा.।प्राकृतिक खेती करने पर केंचुए से ही खेत काफी समृद्ध हो जाएगा और कोई कीटनाशक छिड़कने की आवश्यकता नहीं होगी.

उन्होंने कहा कि इस प्रयोग को गुजरात में काफी अपनाया गया है और डेयरी क्षेत्र को अपने प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्राकृतिक खेती के प्रशिक्षण को शामिल करना चाहिए.

सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी मोदी ने ‘गोबरधन योजना’ की शुरुआत की है. यह योजना उन लोगों के लिए है, जिन के पास ज्यादा पशुधन है. गुजरात की कई डेयरियों ने गोबरधन की अवधारणा पर बहुत अच्छे तरीके से अमल किया है. गोबरधन से बनी खाद खेतों को समृद्ध बनाती है.

उन्होंने आगे कहा कि जब सहकारिता आंदोलन में डेयरी की शुरुआत की गई, उस समय किसी को नहीं पता था कि अमूल 60 हजार करोड़ रुपए का बड़ा तंत्र बन जाएगा.

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती की शुरुआत में भी यह प्रयोग व्यर्थ लग सकता है, लेकिन अंतत: यह भारत के किसानों के लिए 10 लाख करोड़ रुपए का वैश्विक बाजार खोलने और देश में समृद्धि लाने का साधन बनेगी.

मत्स्य योजना (Fishery Scheme) का प्रचार प्रसार जरूरी

भोपाल : मछुआ कल्याण एवं मत्स्य विकास (स्वतंत्र प्रभार) राज्यमंत्री नारायण सिंह पवार ने कहा कि समिति सदस्यों को मत्स्य उत्पादन के साथ लक्ष्यों को पूरा करने के लिए योजनाओं का व्यापक प्रचारप्रसार कर अधिक से अधिक लोगों को लाभान्वित करने के लिए प्रेरित करें.

मंत्री नारायण सिंह पवार 27वीं वार्षिक साधारण सभा को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि खेती के साथ आजीविका के लिए आय के अन्य स्त्रोत का भी होना आवश्यक है. समिति के लोग 10 माह मत्स्य उत्पादन का काम करते हैं. साथ ही, जल संरक्षण के कार्यों को आगे बढ़ाएं. शासन द्वारा रोजगार के साधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं.

राज्य मंत्री नारायण सिंह पवार ने कहा कि शासन द्वारा 70 साल की उम्र से अधिक के सभी वर्ग के लोगों के लिए आयुष्मान कार्ड बनाए जा रहे हैं. 5 लाख तक का नि:शुल्क स्वास्थ्य लाभ मिलता है. अधिक से अधिक लोग आयुष्मान कार्ड बनवा कर शासन की योजनाओं का लाभ उठाएं.

उन्होंने आगे कहा कि योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए वास्तविक हितग्राहियों को लाभ मिले, ऐसे प्रयास किए जाएं और अधिक से अधिक समितियों का पंजीयन कराने में सहयोग करें. खूब प्रचारप्रसार करें और गरीब बस्तियों में पंपलेट बंटवा कर अधिक से अधिक लोगों को लाभ दिलाएं और अपने संसाधनों को बढ़ाएं.

उन्होंने मछुआ समिति सदस्यों से चर्चा की और बताया कि मत्स्य महासंघ का मुख्य उद्देश्य शासन द्वारा 1,000 हेक्टेयर से ऊपर से सौंपे गए बड़े एवं मध्यम जलाशयों में आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर मत्स्य विकास करना एवं महासंघ के जलाशयों में कार्यरत मछुआरों और उन के परिवारों की आजीविका सुरक्षित करते हुए सामाजिक, आर्थिक उन्नति करना है. शासन द्वारा महासंघ को 7 वृहद एवं 21 मध्यम सहित कुल 28 जलाशय उपलब्ध कराए गए हैं, जिन का कुल जल क्षेत्र लगभग 2.31 लाख हेक्टेयर है. 31 मार्च, 2024 की स्थिति में महासंघ के अधीन “क” वर्ग की 222 मत्स्य सहकारी समिति के 15,200 पंजीकृत सदस्य हैं.

वर्ष 2023-24 में जलाशयों में निर्धारित लक्ष्य अनुसार, कुल 896.50 लाख के विपक्ष में कुल 494.86 लाख मत्स्य बीज संचय किया गया है.

उन्होंने योजनाओं की विस्तृत जानकारी दी. इस अवसर पर मत्स्य महासंघ द्वारा संचालित प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत प्रत्येक वित्तीय वर्ष में सर्वश्रेष्ठ कार्य करने वाली मछुआ सहकारी समितियों एवं मछुआरों को प्रोत्साहित किया जाता है.

प्रोत्साहन पुरस्कार योजना के अंतर्गत

गांधी सागर इकाई

      • (अ) उत्कृष्ट मत्स्य सहकारी समिति में प्रथम पुरस्कार नवीन आदर्श म.स.स. बर्डिया को 50 हजार रुपए, द्वितीय पुरस्कार ग्रामीण आदर्श म.स.स. हाड़ाखेड़ी को 40 हजार रुपए, तृतीय पुरस्कार जय भवानी म.स.स. जमालपुरा और चतुर्थ पुरस्कार जय राधा कृष्ण म.स.स. गांधीसागर 20 हजार रुपए
      • (ब) उत्कृष्ट मछुआ प्रथम पुरस्कार गौतम मांझी जय लक्ष्मी म.स.स. 30 हजार रुपए, द्वितीय पुरस्कार भरत नवीन आदर्श म.स.स. बर्डिया 25 हजार रुपए, तृतीय पुरस्कार गिरधारी नवीन आदर्श म.स.स. बर्डिया 20 हजार रुपए, चतुर्थ पुरस्कार श्यामल मंडल जय श्री राधे म.स.स. गांधीसागर 18 हजार रुपए, पंचम पुरस्कार नवीन आदर्श म.स.स. बर्डिया 15 हजार रुपए, छठवां पुरस्कार दिप्तसुंदर जय लक्ष्मी नारायण म.स.स.गांधीसागर,

बाणसागर इकाई

      • (अ) उत्कृष्ट मत्स्य सहकारी समिति प्रथम पुरस्कार कुंदन म.स.स. खजूरी 35 हजार रुपए, द्वितीय पुरस्कार विन्ध्यांचल म.स.स. रामनगर 30 हजार रुपए
      • (ब) उत्कृष्ट मछुआ प्रथम पुरस्कार मो. अजील कुंदन म.स.स. खजूरी 20 हजार रुपए,

जबलपुर

      • (अ) उत्कृष्ट मत्स्य सहकारी समिति प्रथम पुरस्कार आदर्श म.स.स. छपारा 1500 हजार रुपए, द्वितीय पुरस्कार बरमैया म.स.स. झुल्लपुर 10 हजार रुपए
      • (ब) उत्कृष्ट मछुआ प्रथम पुरस्कार कमलू बर्मन आदर्श म.स.स. भीमगढ़ 10 हजार रुपए, द्वितीय अर्जुन बर्मन म.स.स. संकल्प माचागोरा 8 हजार रुपए, तृतीय पुरस्कार नंदलाल बर्मन आदर्श म.स.स. भामगढ़ 7 हजार रुपए,

भोपाल

      • (अ) उत्कृष्ट मत्स्य सहकारी समिति प्रथम पुरस्कार राजीव गांधी म.स.स. नीनोद 25 हजार रुपए, द्वितीय पुरस्कार बूधौरकला म.स.स. बूधौर 15 हजार रुपए, तृतीय पुरस्कार अध्यक्ष संजय सागर म.स.स. शामशाबाद 10 हजार रुपए,
      • (ब) उत्कृष्ट मछुआ तृतीय पुरस्कार रहजीत म.स.स. पोनिया 6 हजार रुपए, सांत्वाना पुरस्कार अनीस खान म.स.स.पोनिया, सीताराम महामई म.स.स. सांगुल, मीराबाई चंद्रशेखर आजाद म.स.स. कायमपुर और सुरैया बाई मछुआ समूह मजूसखर्द को 5-5 हजार रुपए पुरस्कार,

राजगढ़

      • (अ) उत्कृष्ट मत्स्य सहकारी समिति प्रथम पुरस्कार म.स. समिति मुरारिया 10 हजार रुपए
      • (ब) उत्कृष्ट मछुआ प्रथम पुरस्कार देवकरण म.स. समिति तलेन 8 हजार रुपए,

अटलसागर

      • (अ) उत्कृष्ट मत्स्य सहाकारी समिति प्रथम पुरस्कार एकलव्य म.स.स. मगरोनी 40 हजार रुपए, द्वितीय पुरस्कार बुंदेलखंड म.स.स. 15 हजार रुपए,

छतरपुर

      • (अ) उत्कृष्ट सहकारी समिति प्रथम पुरस्कार भोला म.स. समिति 12 हजार रुपए, द्वितीय पुरस्कार म.स. समिति किरवाहा 10 हजार रुपए,
      • (ब) उत्कृष्ट मछुआ प्रथम पुरस्कार समकिशन म.स.स.किरवाह 10 हजार रुपए पुरस्कार वितरित किए.

इस अवसर पर प्रमुख सचिव डीपी आहूजा सहित विभागीय अधिकारी मत्स्य महासंघ के सदस्य उपस्थित थे.

प्याज (Onion) के गिरेंगे दाम, चौथी खेप रेल से पहुंची दिल्ली

नई दिल्ली: सरकार के मूल्य स्थिरीकरण बफर से 840 मीट्रिक टन प्याज महाराष्ट्र में नासिक से रेल रेक के जरीए 17 नवंबर, 2024 की सुबह दिल्ली के किशनगंज रेलवे स्टेशन पर पहुंचा, जिसे नैफेड ने भेजा था. इस प्याज को मदर डेयरी (500 मीट्रिक टन), एनसीसीएफ (190 मीट्रिक टन) और नैफेड (150 मीट्रिक टन) को दिल्ली व एनसीआर में 35 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से खुदरा बिक्री के लिए आवंटित किया गया है.

कीमतों में स्थिरता आने के बाद से दिल्ली में प्याज की यह चौथी खेप है. कंडा एक्सप्रैस से 1,600 मीट्रिक टन प्याज की पहली खेप 20 अक्तूबर, 2024 को पहुंची, 840 मीट्रिक टन की दूसरी खेप 30 अक्तूबर, 2024 को पहुंची और 730 मीट्रिक टन की तीसरी खेप 12 नवंबर, 2024 को पहुंची. 720 मीट्रिक टन की एक और खेप भी नासिक से रवाना हो चुकी है और 21 नवंबर तक इस के दिल्ली पहुंचने की संभावना है. यह इस श्रृंखला की 5वीं खेप है.

थोक मात्रा में प्याज की इस आवक से दिल्ली में मंडी और खुदरा दोनों जगहों पर प्याज की कीमतों पर काफी प्रभाव पड़ा. दिल्ली के अलावा चेन्नई और गुवाहाटी के लिए भी प्याज की बड़ी खेप भेजी गई.

23 अक्तूबर, 2024 को नासिक से रेल रेक के जरीए 840 मीट्रिक टन प्याज भेजा गया था, जो 26 अक्तूबर, 2024 को चेन्नई पहुंचा.

वहीं रेल रेक के जरीए 840 मीट्रिक टन प्याज की खेप 5 नवंबर, 2024 को गुवाहाटी के चांगसारी स्टेशन पर पहुंची, जिसे असम, मेघालय, त्रिपुरा और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के विभिन्न जिलों में वितरित किया गया.

इस सप्ताह रेल रेक के जरीए असम के गुवाहाटी के लिए 840 मीट्रिक टन की एक और खेप भेजने की योजना है. गुवाहाटी के लिए थोक खेप भेजने से पूर्वोत्तर क्षेत्र में प्याज की उपलब्धता बढ़ेगी और क्षेत्र में प्याज की कीमतें स्थिर होंगी.

इस के अलावा लखनऊ में अमौसी के लिए रेल रेक के जरीए 840 मीट्रिक टन की एक और खेप अगले 2-3 दिनों में आने की उम्मीद है.

सरकार ने त्योहारी सीजन और मंडियों के बंद होने के कारण पिछले 2-3 दिनों में कुछ बाजारों में प्याज की आपूर्ति में आई अस्थायी बाधा को दूर करने के लिए प्याज की आपूर्ति को बढ़ाने का निर्णय लिया है.

उपभोक्ता मामले विभाग, एनसीसीएफ और नैफेड के अधिकारियों की एक टीम ने देशभर में प्याज की आपूर्ति में तेजी लाने के लिए हाल ही में नासिक का दौरा किया था.

नैफेड ने इस सप्ताह दिल्ली व एनसीआर के लिए 2 और रेक व गुवाहाटी के लिए एक रेक मंगवाया है. इसी तरह बाजारों में प्याज की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सड़क परिवहन के माध्यम से भी प्याज की आपूर्ति बढ़ाई जा रही है. एनसीसीएफ द्वारा रेल और सड़क परिवहन दोनों के माध्यम से अधिक आपूर्ति से प्याज की उपलब्धता और बढ़ेगी. एनसीसीएफ ने आने वाले सप्ताह में एक और रेक मंगवाने की भी योजना बनाई है.

सरकार ने पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश, जम्मूकश्मीर, दिल्ली आदि की जरूरतों को पूरा करने के लिए सोनीपत के कोल्ड स्टोरेज में रखे प्याज को निकालने का भी निर्णय लिया है. साथ ही, कर्नाटक, महाराष्ट्र, असम आदि में प्याज की आपूर्ति बढ़ाने के लिए आरजेवीएम, सीडब्ल्यूसी कोल्ड स्टोरेज नासिक से भी प्याज भेजने का निर्णय लिया है.

सरकार बाजार के घटनाक्रमों से भलीभांति परिचित है और प्याज की कीमतों को बढ़ने से रोकने के लिए कड़ी निगरानी रख रही है.

सरकार ने इस साल मूल्य स्थिरीकरण बफर के लिए 4.7 लाख टन प्याज रबी सीजन में खरीदा था और 5 सितंबर, 2024 से 35 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से खुदरा बिक्री के माध्यम से और देशभर की प्रमुख मंडियों में थोक बिक्री के माध्यम से जारी करना शुरू कर दिया था. अब तक बफर में 1.50 लाख टन से अधिक प्याज नासिक और अन्य स्रोत केंद्रों से उपभोग केंद्रों तक भेजा जा चुका है.

पीएसएफ के जरीए पहले से विभिन्न राज्यों में प्याज की कीमतों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, तेलंगाना, गुजरात, चंडीगढ़, हरियाणा, गोवा जैसे अधिकांश राज्यों में औसत खुदरा कीमतें राष्ट्रीय औसत से कम रही हैं.

उत्पादन के संदर्भ में, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के आकलन के अनुसार, इस वर्ष खरीफ की वास्तविक बोआई रकबा 3.82 लाख हेक्टेयर था, जो पिछले वर्ष की बोआई रकबा 2.85 लाख हेक्टेयर से 34 फीसदी अधिक है. नवंबर के पहले सप्ताह तक 1.28 लाख हेक्टेयर में बोआई के साथ देर से खरीफ प्याज की बोआई की प्रगति भी सामान्य बताई गई है.

बाजारों में अधिक खरीफ प्याज की आवक के साथसाथ बफर स्टाक से प्याज निकालने में वृद्धि और देर से खरीफ की अच्छी बोआई प्रगति से उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर प्याज की उपलब्धता सुनिश्चित होगी.

उन्नत तकनीक से करें ब्रोकली (Broccoli) की खेती

भारत में तकरीबन 40-50 किस्मों की अलगअलग तरह की सब्जियों की खेती काफी पहले से की जाती है, लेकिन अब भी कुछ ऐसी सब्जियां हैं, जिन से काफी किसान अनजान हैं.

ऐसी ही एक सब्जी है ब्रोकली यानी हरे रंग की गोभी. गोभी वर्ग की यह खास सब्जी कभीकभी बैगनी या सफेद रंग की भी होती है. इस के खाने लायक शीर्ष भाग के अलावा मांसल पुष्पदंड का भी सलाद और सूप के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. देश में इस की खेती पिछले कुछ सालों से शुरू की गई है. ब्रोकली की सब्जी की मांग बड़ेबड़े होटलों और पर्यटन स्थलों पर काफी तेजी से बढ़ी है.

पोषक तत्त्व : ब्रोकली में फूलगोभी, पत्तागोभी, गांठगोभी के मुकाबले प्रोटीन, विटामिन और खनिज पदार्थ ज्यादा होते हैं. इस के अलावा थियोमिन, रोइबोफलेविन व नियासिन वगैरह तत्त्व भी इस में भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं. इस के अलावा इस सब्जी का और भी महत्त्व है, क्योंकि खोजों से पता चला है कि ब्रोकली में मौजूद आईसोथियोसिनेट्रस श्रेणी के रसायन फाइटोकैमिकल्स के रूप में मौजूद होते हैं, जो कैंसर रोगियों का कैंसर से बचाव करते हैं और स्वस्थ लोगों में कैंसर की आशंका काफी कम करते हैं. इस के इस्तेमाल से खून में सीरम कोलेस्ट्राल का स्तर कम होता है, जो हृदय रोगियों के लिए लाभयदायक है. ब्रोकली के सूखे अंकुर ट्यूमर के खतरे को भी कम करते हैं. ब्रोकली में तमाम पौष्टिक तत्त्व दूसरी गोभियों की तुलना में ज्यादा पाए जाते हैं.

जलवायु : ब्रोकली शीतोष्ण जलवायु की फसल है, लेकिन इसे अन्य इलाकों में भी आसानी से उगाया जा सकता है. अधिकतर भागों में इस की खेती रबी मौसम में की जाती है, जबकि ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में इस की खेती गरमी के मौसम में की जाती है. ब्रोकली की अच्छी पैदावार के लिए 20-25 डिगरी सेल्सियस और शीर्ष विकास के लिए 12-18 डिगरी सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है.

खेत की तैयारी : सब  पहले खेत की गहरी जुताई के बाद ढेलों को तोड़ कर जमीन को समतल और मुलायम किया जाता है. नीम की खली 100 किलोग्राम और ट्राइकोडर्मा 1 किलोग्राम का मिश्रण (200 ग्राम प्रतिवर्ग मीटर) डाल कर अच्छी तरह मिला लें. पौध लगाने से पहले प्रतिवर्ग मीटर में नाइट्रोजन 5 ग्राम, फास्फोरस 5 ग्राम और पोटाश 5 ग्राम डाली जाती है. 100 सेंटीमीटर चौड़ी और 15 सेंटीमीटर ऊंची क्यारियां बनाई जाती हैं और कतारों के बीच 50 सेंटीमीटर का फासला रखा जाता है. सड़ी गोबर की खाद 20 किलोग्राम प्रतिवर्ग मीटर में डाल कर मिट्टी में अच्छी तरह मिलाई जाती है.

किस्में : ब्रोकली की खेत के लिए बोआई के समय और उगाए जाने वाले क्षेत्र के मुताबिक उन्नत किस्मों का चयन करते हैं. ब्रोकली की 3 किस्में होती हैं, हरी, बैगनी और सफेद. हरे रंग की गढे़ हुए शीर्ष वाली किस्मों को लोग ज्यादा पसंद करते हैं. पकने के आधार पर इन किस्मों को 3 हिस्सों में बांटा जाता है.

अगेती किस्में : ये किस्में रोपाई के बाद 40-50 दिनों में तैयार हो जाती हैं. ये मध्यम ठंड में ही पकती है. इन में मुख्य हैं: ऐश्वर्य, डीसिम्को, ग्रीनबड और स्पार्टनअली.

मध्यावधि किस्में : ये किस्में 100 दिनों में तैयार हो जाती हैं. सकाटा, अर्या, ग्रीन स्प्राउटिंग अच्छी मध्यावधि किस्में हैं.

पछेती किस्में : ये किस्में तकरीबन 120 दिनों में तैयार होती हैं. इन में मुख्य हैं, पूसा ब्रोकली व केटी सलेक्शन 1, जो 90 से 105 दिनों में तैयार हो जाती है.

संकर किस्में : निजी बीज कंपनियों ने ब्रोकली की अच्छी संकर किस्में तैयार की हैं.

अगेती संकर किस्में : प्रीमियम क्राप, लेसर, कलियर.

मध्यावधि संकर किस्में : लौर सायर, कुइजर, ऐक्स कैलिबर.

पछेती संकर किस्में : स्टिफकायक, ग्रीन सर्फ आदि.

बोआई : मैदानी भागों में ब्रोकली की बोआई मध्य सितंबर से नवंबर के पहले हफ्ते के बीच की जाती है. पहाड़ी इलाकों में बोआई का समय सितंबरअक्तूबर होता है. मध्यावधि किस्मों की बोआई सितंबरअक्तूबर में पौधशाला में करनी चाहिए. पछेती किस्मों के बीजों की बोआई का सही समय अक्तूबर के आखिर से मध्य नवंबर तक है. काफी ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में मार्चअप्रैल में बोआई करते हैं.

नर्सरी तैयार करना : 98 छेदों वाली प्रोट्रे यानी प्लास्टिक की ट्रे का इस्तेमाल पौध तैयार करने के लिए किया जा सकता है. इस प्रोटे्र का आकार आमतौर पर 54 सेंटीमीटर लंबा और 27 सेंटीमीटर चौड़ा होता है. सड़ी गोबर की खाद और जैविक मिश्रण का रोगमुक्त पौध उगाने के लिए इस्तेमाल किया जाना जरूरी है.

नर्सरी में परंपरागत मिश्रण, मिट्टी, गोबर की खाद, कोकोपीट, वर्मीकुलाइट, बालू या परलाइट मिश्रण का इस्तेमाल किया जा सकता है. यह रोगमुक्त होने के साथसाथ एकदम भुरभुरा होता है, जिस से जड़ों का अच्छी तरह विकास होता है. प्रोट्रे के हर छेद में 1 बीज डाल कर वर्मीकुलाट से बीज को ढक देना चाहिए. इस के बाद हजारे की मदद से हलकी सिंचाई कर के प्रोट्रे को एकदूसरे के ऊपर जमा कर पौलीथिन शीट से ढक देना चाहिए. इस से बीज आसानी से अंकुरित हो जाता है. अंकुरण सामान्यत: 6 से 8 दिनों में हो जाता है. अंकुरण के बाद पौलीथिन शीट हटाने के बाद प्रोट्रे को एकएक कर के जमीन पर रख देना चाहिए. पौधे 4 से 6 हफ्ते के भीतर रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

रोपाई : उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में पौधों की रोपाई अक्तूबर के पहले हफ्ते से नवंबर के पहले हफ्ते और पहाड़ी इलाकों में मई में की जाती है. नर्सरी में जब पौधे 10-12 सेंटीमीटर या 4-5 हफ्ते के हो जाते , तब खेत में इन की रोपाई कर देनी चाहिए. रोपाई से पहले 1 लीटर पानी में 1 ग्राम फफूंदीनाशक दवा यानी कार्बेंडाजिम डाल कर इस मिश्रण से जड़ों का उपचार करना चाहिए.

पौधों को पौलीथिन शीट के छेदों के बीच में लगाया जाता है, जिस से पौधे कहीं भी पौलीथिन शीट को न छुएं. रोपाई के फौरन बाद हजारे से हलकी सिंचाई की जाती है. पौधों की रोजाना इसी तरह हलकी सिंचाई करनी चाहिए. इस की रोपाई लाइनों में की जाती है. इस की किस्मों के अनुसार लाइनों की दूरी 45-60 सेंटीमीटर तक रखते हैं. ध्यान रहे कि पौधे 3-4 सेंटीमीटर से ज्यादा गहरे नहीं लगाने चाहिए.

पोषक तत्त्वों का मिश्रण : खाद और उर्वरक का इस्तेमाल मिट्टी की जांच के आधार पर करें. आमतौर पर 150-200 क्विंटल गोबर की खाद, 120-125 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 से 80 किलोग्राम सुपरफास्फेट और 25 से 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर में डालनी चाहिए. गोबर की खाद, सुपरफास्फेट और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बोआई के समय और शेष आधी मात्रा को खड़ी फसल पर छिड़काव यानी टापड्रेसिंग विधि से दें.

टापड्रेसिंग के बाद सिंचाई जरूर करें. इस के अलावा इस फसल में कुछ सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की भी जरूरत होती है, जैसे बोरान मोलिब्डेनम. इन सूक्ष्म तत्त्वों की कमी दूर करने के लिए रोपाई से पहले खेत की तैयारी करते समय 10-15 किलोग्राम बोरेक्स और 500 ग्राम अमोनियम मोलिब्डेट प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करते हैं.

मल्चिंग : तैयार क्यारियों को 100 गेज यानी 25 माइक्रोन की काली पौलीथिन शीट से ढक देना चाहिए और दोनों तरफ किनारों को मिट्टी से दबा देना चाहिए.

सिंचाई : पहली हलकी सिंचाई रोपाई के एकदम बाद और दूसरी रोपाई के 6 से 7 दिनों बाद करें. इस के बाद फिर हलकी सिंचाई करें. इस तरह 5-6 बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है. पानी खेत में ज्यादा समय तक नहीं रुकना चाहिए. खास बात यह है कि फसल की शुरुआत में और बीज निकलते समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए.

खरपतवारों की रोकथाम : खरपतवारों की रोकथाम के लिए बेसालिन 2.0 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से रोपाई से पहले खेत में छिड़काव कर के मिट्टी में मिला दें. इस के अलावा 15 दिनों के अंतर पर 2-3 बार निराईगुड़ाई करें.

तोड़ाई : अगेती किस्मों की फसल दिसंबर में तोड़ाई लायक हो जाती है. मध्यावधि प्रजातियां जनवरीफरवरी में और पछेती प्रजातियां फरवरी के बाद तोड़ाई लायक होती हैं.

उपज : यदि ब्रोकली की खेती बताई गई विधि से करते हैं, तो 100-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज हासिल की जा सकती है. इस का इस्तेमाल बड़ेबड़े होटलों में सब्जी और सलाद के रूप में किया जाता है.

गाजर (Carrot) के बीज तैयार करें

गाजर (Carrot) में बोआई के 90-100 दिनों बाद रोपाई के लिए जड़ें तैयार हो जाती हैं. बोई गई किस्म से मेलखाती जड़ों को जमीन से निकाल कर रंग, आकार व रूप के आधार पर छांट लेते हैं. छांटी गई जड़ों का नीचे से एक तिहाई भाग और पत्तियों को 5-8 सेंटीमीटर रख कर काट देते हैं. छांटी गई जड़ों की रोपाई करने से पहले उन्हें फफूंदीनाशक से उपचारित कर लें.

रोपाई से पहले हैरो या कल्टीवेटर द्वारा खेत को अच्छी तरह तैयार करें. जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए. खेत की तैयारी के समय 150-200 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद, 25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाएं.

इस के अलावा प्रति हेक्टेयर की दर से 25 किलोग्राम नाइट्रोजन रोपाई के 21 दिनों बाद शाखाओं के निकलते समय और 25 किलोग्राम नाइट्रोजन फूल आना शुरू होने से पहले छिड़काव द्वारा दिया जाना चाहिए. गाजर की छांटी गई जड़ों को 30 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाते हैं. गाजर की रोपाई का सही समय मध्य दिसंबर से मध्य जनवरी तक होता है. जड़ों की रोपाई करने के बाद खेत को सींचा जाता है. रोपाई के 15-20 दिनों बाद बढ़ते पौधों पर मिट्टी चढ़ाना जरूरी है.

Carrot seeds

बेकार पौधों को निकालना

फूलों के खिलने के समय जो पौधे बहुत जल्दी फलन की अवस्था में आते हैं और जो पौधे काफी बाद में फूल की अवस्था में आते हैं, उन को खेत से निकाल देना चाहिए. जिन पौद्यों में बीमारी (खासकर बीजों से पैदा होने वाली बीमारी जैसे ब्लैक लैग या ब्लैक रोट) के लक्षण दिखाई दें, उन्हें भी खेत से निकाल देना चाहिए. हर अवस्था में जो भी बेकार पौधे दिखाई दें उन्हें निकालते रहना चाहिए.

परपरागित फसल होने के कारण गाजर का शुद्ध बीज लेने के लिए यह जरूरी है कि 2 किस्मों के बीच कुछ दूरी जरूर रखी जाए. आमतौर पर आधार बीज उत्पादन के लिए गाजर में 1000 मीटर की दूरी रखते हैं, जबकि प्रमाणित बीज के लिए गाजर में 800 मीटर की दूरी रखते हैं.

परागण में मदद के लिए मधुमक्खियों का इस्तेमाल : गाजर में परपरागण होता है, जिस में मधुमक्खियां व अन्य कीड़े परागण में मदद करते हैं. इस से अच्छी क्वालिटी वाले बीजों की कुल पैदावार बढ़ जाती है. परागण के लिए खेत में फूल आना शुरू होने के समय मधुमक्खियों के 2-4 बक्से प्रति एकड़ की दर से रखना फायदेमंद होता है.

कीट व रोग

आमतौर पर इस फसल में कीटों व रोगों का प्रकोप कम होता है. कभीकभी माहू, चेपा व फुदका पत्तियों व तनों से रस चूसते हैं. इन से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.25 मिलीलीटर या रोगार 2.0 मिलीलीटर दवा का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. पत्ती कुतरने वाले कीट से बचाव के लिए कार्बेरिल 2.0 ग्राम या डाइमिथोएट 30ईसी या मैलाथियान 50ईसी या मिथाइल डेमेटोन 25ईसी दवा का 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. बीज, पौध व जड़ सड़न रोग से बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 4 ग्राम या कार्बंडाजिम 2 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजों का उपचार करें. पत्ती धब्बा रोग से बचाव के लिए कार्बंडाजिम या डाइथेन एम 45 के 0.25 फीसदी के घोल का छिड़काव करें.

बीज फसल की कटाई

फलियों को समय से तोड़ कर उन से बीज निकालना ठीक रहता है. इस में लापरवाही बरतने पर बीज की उपज व गुणवत्ता में कमी आती है. बीज की फसल मार्चमई के दौरान तैयार हो जाती है. फसल को सुबह के समय काटना ठीक रहता है. खलिहान में पौधों को अच्छी तरह सुखा कर फलियों से बीजों को अलग कर के साफ किया जाता है.

Carrot seeds

बीज की उपज व भंडारण

गाजर में प्रति हेक्टेयर 500-550 किलोग्राम बीज की औसत पैदावार हो जाती है. साफ किए गए बीजों को 7-8 फीसदी तक सुखा कर, नमीरोघी थैलों में भरा जाता है. भंडारण के दौरान बीजों को कीटों से बचाने के लिए इमिडाक्लोप्रिड चूर्ण 0.1 ग्राम या मेलाथियान चूर्ण 0.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से ले कर बीजोपचार करें. फफूंदीजनक रोगों से बचाव के लिए थीरम या कार्बंडाजिम चूर्ण 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से ले कर बीजोपचार करें. बीजों का भंडारण सूखी व ठंडी जगह पर करें और समयसमय पर भंडारित बीजों की जांच करते रहें.

हरी सब्जियों (Green Vegetables) का सूखावटा

सात के दिनों में हरी सब्जियों (Green Vegetables) के दाम आसमान छूने लगते हैं और इन पानी के दिनों में इन का स्वाद भी फीकाफीका सा लगने लगता है. ऐसे में हरी सब्जियों का ही बना सूखावटा बहुत काम आता है. सूखावटा उसी तरह से बनाया जाता है, जिस तरह से हरी सब्जियां बनाई जाती हैं.

आलू, फूलगोभी, चने का साग, हरा धनिया व टमाटर वगैरह को सुखा कर उन का सूखावटा बनाया जाता है. इन सब्जियों का बनाया हुआ सूखावटा बरसात के दिनों में पका कर खाने में सोंधा और स्वादिष्ठ लगता है. हरी सब्जियों का सूखावटा बाजार में नहीं बिकता है, क्योंकि इसे बनाने का तरीका ज्यादा लोगों को नहीं मालूम है और न ही यह ज्यादा प्रचलित  है.

इसे काफी मात्रा में बना कर बाजार में बेचा जा सकता है. इसे बेचने के साथ पकाने की विधि बताना जरूरी है. अकसर कई सब्जियों की उपज जरूरत से ज्यादा होने के कारण किसानों को उन्हें फेंकना पड़ता है. वैसी हालत में उन सब्जियों का सूखावटा बना कर बाजार में बेचने से किसानों को फायदा होगा.

हरी सब्जियों का सूखावटा बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में बहुत प्रचलित है. वहां इस का इस्तेमाल खाने में खूब होता है. वहां बरसात के दिनों में जब हरी सब्जियों की कमी हो जाती है, तो हरी सब्जियों का सूखावटा खूब पसंद किया जाता है.

हरी सब्जियों में पत्तागोभी, फूलगोभी, चने का साग, धनिया की पत्ती, टमाटर और आलू वगैरह की उपज जाड़े के मौसम में काफी मात्रा में होती है. इन सब्जीभाजियों को खाने से जब मन भर जाता है, तो उन्हें सुखा कर बरसात के दिनों के लिए सुरक्षित रख लिया जाता है.

बरसात के दिनों में सब्जियों के दाम आसमान छू रहे होते हैं. ऐसे ही समय में सूखावटा की याद आती है. हरी सब्जियों का सूखावटा बरसात के दिनों में खाने का स्वाद बढ़ा देता है और सेहत भी बरकरार रखता है.

फूलगोभी का सूखावटा

जाड़े के दिनों में फूलगोभी की पैदावार काफी होती है. मौसम की शुरुआत में इस की सब्जी खाने में बहुत मजेदार लगती है. लेकिन धीरेधीरे इस का स्वाद बेकार लगने लगता है.

उस समय तक आलम यह होता है कि बाजार में भारी मात्रा में इस की खेप आ जाने से रेट भी काफी गिर जाते हैं. यही समय होता है, जब इसे ज्यादा मात्रा में खरीद कर सूखावटा बनाया जाए.

सूखावटा बनाने के लिए सब से पहले फूलगोभी को टुकड़ों में काट लेते हैं. फिर इन टुकड़ों को सुतली की माला में पिरो कर धूप में सूखने के लिए रख दिया जाता है. धूप में यह धीरेधीरे सूखता रहता है. जब यह पूरी तरह से सूख जाता है, तो डब्बे में बंद कर के रख दिया जाता है. जब बरसात का मौसम आता है, तब इसे डब्बे से निकाल कर गरम पानी में धो लिया जाता है, उस के बाद इस की सब्जी सामान्य तरीके से बनाई जाती है. इस का सोंधा सा स्वाद खाने में  लाजवाब लगता है. सूखने के बाद भी इस में विटामिंस और मिनरल्स काफी मात्रा में मौजूद रहते हैं, लिहाजा यह सेहत के लिहाज से भी मुनासिब है.

चने के साग का सूखावटा

चने के साग का सूखावटा तो सूखने के बाद खाने में और भी ज्यादा मजेदार लगता है. चने के साग की पैदावार कम होने के कारण कहींकहीं यह बहुत महंगा भी मिलता है. वैसे तमाम लोग चने का साग काफी चाव से कच्चा ही नमक, तेल, लहसुन और मिर्च के साथ मिला कर खाते हैं. खेत में जब इस की लंबाई करीब 6 इंच हो जाती है, तब इसे खोट कर (जड़ छोड़ कर ऊपरी भाग को तोड़ना) साग के रूप में पका कर भी खाया जाता है. यह बहुत ही स्वादिष्ठ और सेहत के लिए मुफीद होता है.

चने के साग का सूखावटा बनाने के लिए सब से पहले हरे साग को खेत से खोट लिया जाता है. अलग से चने की दाल को पानी में भिगो कर फुला लिया जाता है. फिर दाल को गीला पीस कर उस में हरे साग को मिला दिया जाता है. जब हरे साग में दाल का गीला घोल पूरी तरह मिल जाता है, तब उसे हाथ से गोलगोल आकार दे कर कड़ी धूप में पुराने कपड़े पर सूखने के लिए फैला दिया जाता है.

10-12 दिनों में जब वह पूरी तरह से सूख जाता है, तो उसे डब्बे में बंद कर के रख दिया जाता है. बरसात के दिनों मे इस की सब्जी बेहद स्वादिष्ठ और सोंधी लगती है.

बिहार के गांवों में चने के साग का बना सूखावटा बहुत मशहूर है. जाड़े के दिनों में चने का साग भरपूर मात्रा में मौजूद रहताहै. तभी इसे बना कर रख लिया जाता है.

आलू का सूखावटा

आलू की गिनती सदाबहार सब्जियों में होती है. घर में कोई सी भी हरी सब्जी हो या न हो, बस आलू होना चाहिए और कुछ भी नहीं हो तो आलू का चोखा ही स्वादिष्ठ रेसिपी बन जाता है. लेकिन हमेशा आलू की रेसिपी खाने से भी मन ऊब जाता है. ऐसे में आलू का बना सूखावटा बरसात के दिनों में चावल या रोटी के साथ खाने का मजा दोगुना कर देता है.

आलू का सूखावटा बनाने के लिए सब से पहले मध्यम आकार के आलुओं को चुन कर उन्हें उबालना होता है. जब आलू पूरी तरह से उबल जाते हैं, तो उन को छील दिया जाता है. फिर किसी धारदार चाकू से आलुओं को संतरे की फांक की तरह काट दिया जाता है. कटी हुई फांकों को एक पुराने कपड़े में डाल कर धूप में सूखने के लिए फैला दिया जाता है. जब आलू की फांकें पूरी तरह से सूख जाती हैं, तो सूखावटा तैयार हो जाता है. उसे किसी डब्बे में भर कर रख दिया जाता है.

आलू का सूखावटा सूखने के बाद ठोस हो जाता है. सब्जी बनाने से पहले आलू के सूखावटा को पानी में थोड़ी देर फूलने के लिए छोड़ दिया जाता है. फिर सब्जी बनाई जाती है, जो बेहद स्वादिष्ठ होती है.

ध्यान रहे कि हरी सब्जियों से बने सूखावटा में बहुत जल्दी ही फफूंद लगने का डर रहता है. बरसात के दिनों में तो और भी जल्दी फफूंद लग जाती है, इसलिए इसे किसी एयर टाइट डब्बे में रखना ही ठीक रहता है. इसे किसी मिट्टी के बर्तन में भी रख सकते हैं. उस में फफूंद लगने का उतना डर नहीं होता है. बरसात के दिनों इसे कभी भी बना कर खाया जा सकता है.

खरपतवार प्रबंधन (Weed Management) पर कार्यक्रम

उदयपुर. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय के अंतर्गत खरपतवार नियंत्रण पर विस्तार अधिकारियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम का सफल आयोजन किया गया. इस प्रशिक्षण का नेतृत्व महाराणा प्रताप कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी), उदयपुर के अनुसंधान निदेशक डा. अरविंद वर्मा सहित प्रतिष्ठित वक्ताओं ने किया. उन के साथ सहायक कृषि निदेशक, बडगांव, श्याम लाल सालवी, डा. हरि सिंह, डा. रविकांत शर्मा और डा. श्रवण भी शामिल थे, जिन्होंने विभिन्न विषयों पर अपने विशेष ज्ञान को साझा किया.

अपने उद्घाटन भाषण में डा. अरविंद वर्मा ने फसल उत्पादकता और स्थायी कृषि पद्धतियों को सुनिश्चित करने में प्रभावी खरपतवार प्रबंधन की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि फसलों के उत्पादन में खरपतवार एक गंभीर समस्या है. खरपतवारों का प्रकोप अकसर मृदा प्रकार, वर्षा, मौसम, फसल प्रणाली, इत्यादि कारणों द्वारा प्रभावित होता है. खरपतवारों की तीव्रता की वजह से कभीकभी फसल पूर्णत नष्ट हो जाती है, इसलिए विभिन्न प्रकार की फसलों का अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए खरपतवारों का कुशल एवं समय पर प्रबंधन आवश्यक है. गुणवत्तापूर्ण फसलोत्पादन में खरपतवार मुख्य रूप से बाधक होते हैं, जो कीट एवं बीमारियों की अपेक्षाकृत फसल को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाते हैं. फसलों में खरपतवारों के प्रकोप से प्रत्येक वर्ष में अनुमानित 2,000 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है. अनुसंधानों एवं सर्वेक्षणों से ज्ञात है की फसल में खरपतवारों के प्रकोप द्वारा उपज में 37 प्रतिशत तक की गिरावट आती है.

खरपतवार वे अवांछित पौधे होते हैं जिन की निश्चित स्थान एवं समय पर आवश्यकता नहीं होती है और बिना बोए उग जाते हैं, जिस से लाभ की तुलना में हानि अधिक होती है, क्योंकि खरपतवार फसल के साथ पोषक तत्त्व, जल, स्थान, प्रकाश आदि के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे फसलों के लिए पोषक तत्त्वों की उपलब्धता कम पड़ जाती है और फसलों से वंछित उत्पादन नहीं मिलता.

फसलों में खरपतवार प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है. खरपतवारों के निवारण के लिए ऐसी प्रभावशाली पद्धति एवं तकनीक को उपयोग में लाना चाहिए जो वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित हो, जिस से किसानों को प्रति इकाई क्षेत्रफल से फसल उत्पादन वृद्धि के साथसाथ पर्यावरण भी सुरक्षित हो और आगामी कृषि भी प्रभावित न हो सके.

डा. हरि सिंह ने कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर इस के प्रभाव को रेखांकित करते हुए खरपतवार से आर्थिक नुकसान एवं उन की रोकथाम पर बोलते हुए कहा कि प्रशिक्षण में सामान्य और आक्रामक खरपतवार प्रजातियों की पहचान, मैनुअल और रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के सर्वोत्तम तरीकों और पर्यावरण के अनुकूल नवीनतम तकनीकों सहित कई विषयों को शामिल किया गया. कार्यशालाओं और व्यावहारिक प्रदर्शनों के माध्यम से, विस्तार अधिकारियों को वास्तविक परिस्थितियों में लागू करने योग्य व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया गया.

डा. रविकांत शर्मा ने देश के विभिन्न हिस्सों में लागू की गई फसल खरपतवार नियंत्रण रणनीतियों के अध्ययन प्रस्तुत किए.

श्यामलाल सालवी, सहायक कृषि निदेशक, बडगांव ने अपने क्षेत्रीय अनुभवों से व्यावहारिक चुनौतियों से निबटने के लिए उपयोगी सुझाव दिए. उन्होंने बताया कि आज के प्रशिक्षण कार्यक्रम में अधिकारियो ने व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया. इस ज्ञान को किसानों तक ले कर जाएंगे जिस से किसानों की आय व उत्पादकता में बढ़ोतरी होगी.

डा. श्रवण ने सत्र का समापन करते हुए खरपतवार विज्ञान में भविष्य के रुझानों और सतत कृषि विकास के लिए निरंतर शिक्षा के महत्त्व पर चर्चा की. इस प्रशिक्षण में खरीफ और रबी की फसलों में खरपतवार प्रबंधन के साथ जैविक खेती में खरपतवारों के नियंत्रण पर व्याख्यान दिए गए. वर्तमान कृषि के परिपेक्ष्य में ड्रोन आधारित खरपतवारों के प्रयोग एवं उन की अनुशंसाओं के बारे में प्रशिक्षण दिया गया.

प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि प्राप्त ज्ञान उन के क्षेत्र के लिए एक महत्त्वपूर्ण संसाधन साबित होगा. कार्यक्रम में बडगांव व गिर्वा तहसील के 35 से अधिक सहायक कृषि अधिकारियों व कृषि पर्यवेक्षकों ने भाग लिया.