विकास के लिए स्मार्ट कृषि (Smart Agriculture) जरूरी

उदयपुर: 5 मार्च, 2024. डा. राजेंद्र प्रसाद सैंट्रल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (आरपीसीएयू), समस्तीपुर, बिहार के वाइस चांसलर डा. पीएल गौतम ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2047 में सब से बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में आना है. कृषि और ग्रामीण क्षेत्र सतत विकास के अभिन्न और आवश्यक घटक हैं.

इस में किसानों की आजीविका में सुधार, गरीबी कम करना, पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, ग्रामीण बुनियादी ढांचे को बढ़ाना व संसाधनों और अवसरों के समान वितरण को बढ़ावा देना शामिल है. ये लक्ष्य कृषि पद्धतियों के संदर्भ में आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण के बीच संतुलन बनाना चाहते हैं.

5 मार्च, 2024 को सोसायटी फौर कम्यूनिटी, मोबिलाइजेशन फौर सस्टेनेबल डवलपमैंट, नई दिल्ली व महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के संयुक्त सहयोग से राजस्थान कृषि महाविद्यालय के नवीन सभागार में आयोजित ’परिवर्तनकारी कृषि और सतत विकास: बदलती दुनिया के लिए कृषि पर पुनर्विचार’ विषयक तीनदिवसीय 11वीं राष्ट्रीय सैमिनार के उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि भारत के कृषि क्षेत्र को कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिस ने इस की वृद्धि और विकास को बाधित किया है. अमृतकाल में विकसित राष्ट्र बनने की चाह रखने वाला देश प्रतिदिन प्रयास में लगा हुआ है. एक मजबूत कृषि क्षेत्र आंतरिक ईंधन है, जो किसी राष्ट्र की समग्र अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा को आगे बढ़ाता है.

मानवता को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और उन में से अधिकांश तेजी से बढ़ती आबादी की खाद्य सुरक्षा से जुड़ी हैं, जिस के वर्ष 2050 तक 9 बिलियन का आंकड़ा पार करने की उम्मीद है. अकेले भारत को अपने खाद्यान्न उत्पादन को बनाए रखने के लिए वर्ष 2050 तक अपने खाद्यान्न उत्पादन को दोगुना (लगभग 650 मिलियन टन) करने की आवश्यकता है.

स्मार्ट कृषि (Smart Agriculture

बढ़ती आबादी कम उत्पादकता, घटती मिट्टी की उर्वरता, पानी की कमी, खंडित भूमि जोत, जलवायु परिवर्तन और बाजारों व प्रौद्योगिकियों तक सीमित पहुंच कृषि के सामने बड़ी चुनौतियां हैं. बढ़ती वैश्विक आबादी को देखते हुए खाद्य उत्पादन की मात्रा, प्रभावशीलता और सुरक्षा के बारे में चिंताएं भी सामने आई हैं.

अध्यक्षता करते हुए एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. अजीत कुमार कर्नाटक ने अतिथियों का विस्तृत परिचय देते हुए स्वागत किया और कहा कि हर वक्त जलवायु परिवर्तन का असर नकारात्मक नहीं होता, कभी इस के कृषि पर सकारात्मक प्रभाव भी होते हैं जैसे कि इस वर्ष जलवायु परिवर्तन की वजह से गेहूं की 20 फीसदी से अधिक उत्पादन का अनुमान है.

डा. जेपी शर्मा, पूर्व कुलपति शेर ए कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू एवं अध्यक्ष मोबिलाइजेशन ने कहा कि भारत में कृषि के लिए 0.8 हेक्टेयर भूमि उपलब्ध रह गई है. खेती के लिए पानी, जमीन और किसान निरंतर कम होते जा रहे हैं. अब धीरेधीरे तीनों कम होने की कगार पर हैं. वर्ष 2050 तक हमारी आबादी बहुत अधिक हो जाएगी. इस के भरणपोषण का जिम्मा कृषि का ही है. इसलिए कृषि में जलवायु स्मार्ट कृषि की ओर कदम बढ़ाना जरूरी है.

जीरो हंगर जीरो वेस्टेज

हम अगर कृषि उत्पादन की बरबादी को बचा लें, तो हर भूखे व्यक्ति तक भोजन पहुंच पाएगा. आज का समय मार्केटिंग का है. किसानों को इस से रूबरू करना होगा.

दीनदयाल शोध संस्थान, नई दिल्ली के महासचिव अतुल जैन ने कहा कि दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म दर्शन और नानाजी देशमुख भी आनंद शब्द पर जोर देते रहे. विकास की सभी की अपनीअपनी सोच होती है. हमें कृषि को फिर से पुरानी कृषि से जोड़ना होगा. कल्चरल प्रैक्टिसैस, रीतिरिवाज, लोककथाएं आदि उस समय थीं, जिन्हें आज हम ने पोषण उत्सव के रूप में समेटा है.

पैसिफिक ग्रुप औफ ऐजुकेशन, उदयपुर के ग्रुप चेयरमैन और यूनैस्को (एमजीआईईपी) के अध्यक्ष डा. बीपी शर्मा ने कहा कि आज सस्टेनेबल और ट्रांसफार्मिंग एग्रीकल्चर की जरूरत है. खाद्य आवश्यकताओं की जरूरतें पूरी करने के लिए भारत को वरदान है. 20 करोड़ हेक्टेयर पानी नदी में बह जाता है. पहले 20 फुट नीचे पानी आ जाता था. एक हेक्टेयर में पहले अर्थ वर्म ऊपर से नीचे आनेजाने में 6 लाख छेद कर देते थे. पहले हर कालेज में मधुमक्खी के छत्ते दिखाई देते थे, जो अब नष्ट होते जा रहे हैं. सस्टेनेबल प्रैक्टिसैस के बारे में सोचने के लिए अर्थ वर्म, वाटर रिचार्ज, इनसैक्ट्स पर विचार जरूरी है.

कुलपति को नवाजा लाइफ टाइम एचीवमैंट अवार्ड से

सोसायटी की ओर से लाइफटाइम एचीवमैंट अवार्ड एमपीयूएटी के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक को प्रदान किया गया. कृषि के क्षेत्र में 40 से भी अधिक वर्षांे तक उन के शिक्षण, अनुसंधान एवं प्रसार कार्यों में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया गया.

इस अवसर पर डा. धृति सोलंकी, डा. राजश्री, ऋषिका नेगी, डा. अरविंद वर्मा, अमित त्रिवेदी एवं डा. हेमु द्वारा लिखित 2 पुस्तकें, कौफी टेबल बुक, कलैंडर का विमोचन किया गया. संगोष्ठी में देशभर के 12 राज्यों से तकरीबन 300 कृषि वैज्ञानिक, अनुसंधानकर्ता और प्रगतिशील किसानों ने हिस्सा लिया.

उन्नत दूध और दूध उत्पाद प्रसंस्करण (Milk Product Processing) पर प्रशिक्षण

हिसार: लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के डेयरी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के अनुसूचित जाति उपयोजना के अंतर्गत किसानों के लिए उन्नत दूध और दूध उत्पाद प्रसंस्करण पर एक व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ कुलपति लुवास डा. विनोद कुमार वर्मा द्वारा किया गया.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कुलपति डा. विनोद कुमार वर्मा ने उपस्थित पशुपालक प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए बताया कि डेयरी उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालकों की जीविका को बढ़ावा देने में अत्यधिक महत्त्व रखता है. यह लाखों किसानों के लिए आय का महत्त्वपूर्ण स्रोत है, विशेष रूप से महिला किसानों के लिए, जो डेयरी उत्पादन और दूध प्रसंस्करण में मुख्य भूमिका निभाती हैं. डेयरी क्षेत्र का महत्त्व अत्यधिक है, क्योंकि यह न केवल रोजगार के अवसर प्रदान करता है, बल्कि खाद्य सुरक्षा और पोषण में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देता है.

लुवास के कुलपति डा. विनोद कुमार वर्मा ने प्रशिक्षण कार्यक्रम के परिवर्तनात्मक संभावनाओं पर जोर दिया और इसे डेयरी क्षेत्र में उत्पादकता और गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में माना. उन्होंने किसानों को दूध प्रसंस्करण में उन्नत जानकारी और कौशल के साथ संपन्न करने की महत्त्वता को भी जाहिर किया, जिस से ऐसे सशक्तीकरण से उन के उद्यमी प्रयासों को मजबूती मिल सकती है और उन की सामाजिक व आर्थिक स्थिति को उन्नत किया जा सकता है.

इस अवसर पर मुख्य अतिथि व अन्य विशिष्ट अतिथियों द्वारा “किसानों के लिए उन्नत दूध और दूध उत्पाद प्रसंस्करण‘‘ नामक एक पुस्तिका का लोकार्पण भी किया गया .

कार्यक्रम की शुरुआत में डेयरी साइंस कालेज के अधिष्ठाता एवं पाठ्यक्रम निदेशक डा. सज्जन सिहाग ने अतिथियों का स्वागत करते हुए किसानों को व्यावसायिक कौशल और व्यावसायिक जानकारी के साथ उन्नत दूध प्रसंस्करण तकनीकों में सशक्त करने के लिए तैयार किए गए व्यापक पाठ्यक्रम के बारे में अवगत कराया.

निदेशक डा. सज्जन सिहाग ने नवीनतम तकनीक और दूरस्थ प्रथाओं को एकत्रित करने की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता पर जोर दिया और डेयरी उत्पादन को अनुकूलित करने और उच्च गुणवत्ता परिणाम सुनिश्चित करने के लिए दूध प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता को उजागर किया.

उन्होंने आगे बताया कि यह तीनदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम 4 से 6 मार्च, 2024 तक चलने वाले इस कार्यक्रम का आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान, हिसार के साथ संयुक्त रूप से किया गया. इस पहल का उद्देश्य किसानों को दूध प्रसंस्करण में उन्नत जानकारी और कौशल प्रदान करना है. इस कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों से 30 प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं.

कार्यक्रम समन्वयक के रूप में उपस्थित प्रधान वैज्ञानिक एवं टीओटी प्रभारी डा. नवनीत सक्सेना ने प्रोग्राम के उद्देश्यों को समझाया. उन्होंने बताया कि ये कार्यक्रम किसानों को सशक्त बनाने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं और उन की उत्पादकता और आय स्तरों को बढ़ाने में मदद करते हैं.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डा. नरेश जिंदल, एचआरएम के निदेशक डा. राजेश खुराना, विस्तार शिक्षा निदेशक डा. वीएस पंवार, छात्र कल्याण निदेशक डा. पवन कुमार, स्नातकोत्तर अधिष्ठाता डा. मनोज रोज व अन्य अधिकारी व विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, वैज्ञानिक एवं संकाय सदस्य उपस्थित रहे. इस प्रशिक्षण के समन्वयक डा. शालिनी अरोडा, डा. गुरुराज एवं डा. रचना ने किया.

कैसा हो पशु आहार(Animal Feed)? हकृवि में प्रशिक्षण

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशालय के अंतर्गत चल रहे फार्मर फस्र्ट प्रोग्राम के तहत किसानों के लिए ‘‘पशुओं के आहार में खनिज मिश्रण की उपयोगिता’’ विषय पर एकदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में हिसार जिले के गांव पायल व चिड़ोद के किसानों ने भाग लिया.

फार्मर फस्र्ट प्रोग्राम के प्रमुख अन्वेषक डा. अशोक गोदारा ने बताया कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य पशुपालकों को पशुओं को स्वस्थ बनाए रखने व दूध उत्पादन बढ़ाने की जानकारी देना है, ताकि किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सकें. फार्मर फस्र्ट प्रोग्राम (एफएफपी) के तहत उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के अलावा किसानवैज्ञानिक इंटरफेस को बढ़ा कर छोटे किसानों की कृषि और अधिकांश किसानों की जटिल, विविध और जोखिम वाली वास्तविकताओं को महत्त्व देने के लिए आईसीएआर की एक पहल है.

उन्होंने बताया कि इस प्रोग्राम के अंतर्गत कृषि में संसाधन प्रबंधन, जलवायु लचीली कृषि, भंडारण, बाजार, आपूर्ति श्रंखला, मूल्य श्रंखला, नवाचार, सूचना प्रणाली आदि सहित उत्पादन प्रबंधन पर विशेष जोर दिया जाता है.

कार्यक्रम में पशु पोषण वैज्ञानिक डा. सज्जन सिहाग ने पशुओं को उन की अवस्था के अनुसार संतुलित आहार, जिस में हरा चारा, सूखा चारा, चोकर व मिनरल मिक्सचर खिलाने की सलाह दी.

उन्होंने कहा कि पशु के अंदर खनिज मिश्रण की कमी के कारण पशु जकड़न व नया दूध नहीं होता, पशु मूत्र पीते हैं, दीवार चाटते हैं, कपड़ा, गाभा व मिट्टी खाते हैं. इसलिए पशुओं को खनिज मिश्रण पूरे साल रोज देते रहें. इस से पशु को बहुत ही फायदा होगा.

चारा अनुभाग के सस्य वैज्ञानिक डा. सतपाल ने हरा चारा उत्पादन व पशुओं के अच्छे स्वास्थ्य के लिए सालभर हरा चारा उपलब्ध करवाने के लिए फसल चक्रों के बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया कि कम खर्च पर अधिक दूध उत्पादन के लिए जरूरी है कि पशुओं को पौष्टिक व संतुलित मात्रा में हरा चारा पूरे साल मिलता रहे. साल के कुछ माह में जैसे अक्तूबरनवंबर व मईजून में हरे चारे की कमी आ जाने के कारण हम पशुओं को हरा चारा पूरी मात्रा में नहीे दे पाते हैं, जिस के फलस्वरूप पशुओं की सेहत खराब हो जाती है और दूध उत्पादन में कमी आ जाती है.

उन्होंने बताया कि मईजून माह में हरे चारे की कमी न हो, इस के लिए पशुपालक मार्च माह में ही ज्वार, मक्का, लोबिया आदि फसलों की बिजाई कर सकते हैं. मार्च माह में अनेक कटाई देने वाली ज्वार की किस्म जैसे एसएसजी 59-3 व सीएसवी 33 एमएफ (अनंत) व सीएसएच 24 एमएफ की बिजाई कर सकते हैं, जिस से 4 से 5 कटाई में नवंबर माह तक हरा चारा मिलता रहेगा.

कार्यक्रम के अंत में पशुपालकों को पशु स्वास्थ्य सुधार के लिए मिनरल मिक्सचर के 5-5 किलोग्राम के पैकेट महत्त्वपूर्ण इनपुट के तौर पर निःशुल्क वितरित किए गए. इस अवसर पर पौध रोग विशेषज्ञ डा. एचएस सहारण व एसआरएफ डा. बिट्टू राम भी मौजूद रहे.

‘ई-किसान उपज निधि‘ का शुभारंभ, अनाज भंडारण (Grain Storage) होगा आसान

नई दिल्ली: केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण, वाणिज्य और उद्योग एवं वस्त्र मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि कृषि क्षेत्र 2047 तक राष्ट्र को ‘विकसित भारत‘ बनाने की दिशा में आधारस्तंभ होगा.

नई दिल्ली में पिछले दिनों वेयर हाउसिंग डवलपमैंट एंड रेगुलेटरी अथौरिटी (डब्ल्यूडीआरए) के ‘ई-किसान उपज निधि‘ (डिजिटल गेटवे) के शुभारंभ समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने लाखों भारतीयों के जीवन को सुरक्षित करने के लिए किसानों को धन्यवाद दिया और कहा कि ‘ई-किसान उपज निधि‘ पहल के साथ प्रौद्योगिकी की सहायता से किसानों की भंडारण व्यवस्था सुगम हो जाएगी और किसानों को उन की उपज के लिए उचित मूल्य प्राप्त करने में सहायता मिलेगी.

पीयूष गोयल ने इस अवसर पर घोषणा की कि ज्यादा किसानों, विशेषकर छोटे किसानों को गोदामों का उपयोग करने और उन की आय बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए डब्ल्यूडीआरए पंजीकृत गोदामों पर सुरक्षा जमा शुल्क जल्द ही कम किया जाएगा.

उन्होंने यह भी कहा कि इन गोदामों में किसानों को पहले अपनी उपज का भंडारण करने के लिए 3 फीसदी सुरक्षा जमा राशि का भुगतान करना पड़ता था, अब केवल 1 फीसदी ही सुरक्षा जमा राशि के भुगतान करने की आवश्यकता होगी.

मंत्री पीयूष गोयल ने आगे कहा कि ‘डिजिटल गेटवे’ पहल खेती को आकर्षक बनाने के हमारे प्रयास में एक महत्वपूर्ण कदम है. बिना किसी संपत्ति को गिरवी रखे, अतिरिक्त सुरक्षा जमा नीति, ‘ई-किसान उपज निधि‘ किसानों द्वारा संकट के समय में उन की उपज बिक्री को रोक सकती है, जिन्हें फसल के बाद भंडारण की अच्छी रखरखाव सुविधाओं के न होने के कारण अकसर अपनी पूरी फसल को सस्ती दरों पर बेचना पड़ता है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि डब्लूडीआरए के अंतर्गत गोदामों की अच्छी तरह से निगरानी की जाती है, इन की स्थिति बहुत अच्छी है और ये बुनियादी ढांचे से सुसज्जित हैं, जो कृषि उपज को अच्छी हालत में रखते हैं और खराब नहीं होने देते. इस तरह ये किसानों के कल्याण को बढ़ावा देते हैं.

उन्होंने डब्ल्यूडीआरए के अंतर्गत राज्यों में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा उपयोग किए जाने वाले गोदामों के अनिवार्य पंजीकरण और राज्यों के गोदामों से संबंधित बुनियादी ढांचे को पूरी तरह से तैयार रखने के लिए एक रोडमैप तैयार करने पर बल दिया.

‘ई-किसान उपज निधि‘ प्लेटफार्म के बारे में विस्तार से बताते हुए पीयूष गोयल ने कहा कि अपनी सरलीकृत डिजिटल प्रक्रिया के साथ यह पहल किसानों के लिए किसी भी पंजीकृत डब्ल्यूडीआरए गोदाम में 6 महीने की अवधि के लिए 7 फीसदी प्रति वर्ष ब्याज पर भंडारण की प्रक्रिया को आसान बना सकती है.

उन्होंने गोदाम पंजीकरण के लिए एक औनलाइन प्लेटफार्म प्रदान करने की डब्ल्यूडीआरए पहल की सराहना की, जिस में साल दर साल उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है. इस पोर्टल पर तकरीबन एक लाख गोदामों को पंजीकृत करने का लक्ष्य रखा गया है. उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष 1,500 गोदाम पंजीकृत किए गए थे.

मंत्री पीयूष गोयल ने इस बात पर भी बल दिया कि ‘ई-किसान उपज निधि‘ और ‘ई-एनएएम’ के साथ, किसान एक इंटरकनैक्टिड मार्केट की प्रौद्योगिकी का उपयोग करने में सक्षम होंगे, जो उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर या उस से ज्यादा दाम पर अपनी उपज को सरकार को बेचने का फायदा पहुंचाती है. उन्होंने कहा कि पिछले दशक में एमएसपी के जरीए सरकारी खरीद ढाई गुना बढ़ी है.

विश्व की सब से बड़ी सहकारी खाद्यान्न भंडारण योजना के शुभारंभ के बारे में बोलते हुए मंत्री पीयूष गोयल ने डब्ल्यूडीआरए से सहकारी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी गोदामों का मुफ्त पंजीकरण प्रदान करने के एक प्रस्ताव की योजना बनाने का आग्रह किया.

उन्होंने कहा कि सहकारी क्षेत्र के गोदामों को सहायता देने की पहल से किसानों को डब्ल्यूडीआरए गोदामों में अपनी उपज का भंडारण करने के लिए बढ़ावा मिलेगा, जिस से उन्हें अपनी फसल बेचने पर उचित मूल्य मिल सकेगा.

सूअरपालन (Pig Farming) इकाई का उद्घाटन

हिसार: लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के पशुधन फार्म परिसर विभाग में आयोजित ‘वैज्ञानिक पद्धति से सूअरपालन‘ के विषय में तीनदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला एवं प्रशिक्षण का शुभारंभ मुख्य अतिथि, लुवास के कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा द्वारा किया गया.

इस अवसर पर कुलपति डा. विनोद कुमार वर्मा ने सूअरपालन इकाई का उद्घाटन भी किया. उन्होंने कहा कि सूअरपालन दुनियाभर में बढ़ रहा है. सूअर की उच्च प्रजनन क्षमता और उच्च चारा रूपांतरण अनुपात के कारण सूअरपालन हमेशा से लाभदायक रहा है. इस इकाई का उद्देश्य प्रदेश के युवाओं को प्रशिक्षण देना व उन्हें सूअरपालन में व्यवसाय स्थापित करने के लिए प्रेरित करना रहेगा.

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक किसानों की मदद कर सूअरपालन के अर्थशास्त्र पर काम करेंगे. इस अवसर पर कुलपति डा. विनोद कुमार वर्मा ने विभागाध्यक्ष, इकाई के प्रमुख और विभाग के संकाय सदस्यों को सूअरपालन इकाई की स्थापना पर बधाई दी.

सूअरपालन (Pig Farming)

पशुधन फार्म परिसर विभाग के अध्यक्ष डा. वीरेंदर सिंह पंवार ने ‘वैज्ञानिक पद्धति से सूअरपालन‘ पर तीनदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला एवं प्रशिक्षण की विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने बताया कि इस प्रथम आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में कुल 12 प्रतिभागियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा.

इन 3 दिनों में सूअरपालन के विभिन्न विषयों पर वैज्ञानिक जानकारी प्रदान की जाएगी. इस प्रशिक्षण में प्रतिभागियों को सूअर की देखभाल, उन के प्रजनन, प्रबंधन, भोजन प्रबंधन और स्वास्थ्य देखभाल प्रबंधन के बारे में सिखाया जाएगा.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डा. नरेश जिंदल, विस्तार शिक्षा निदेशक डा. वीएस पंवार, छात्र कल्याण निदेशक डा. पवन कुमार, स्नातकोत्तर अधिष्ठाता डा. मनोज रोज, आईपीवीएस निदेशक डा. एसपी दहिया, मानव संसाधन एवं प्रबंधन निदेशक डा. राजेश खुराना, सूअरपालन इकाई प्रमुख डा. नरेंद्र लांगयाण व अन्य अधिकारी एवं कर्मचारी व प्रतिभागी उपस्थित रहे.

वजन 2 किलोग्राम, कटहल की साइज का आलू (Potato)

फर्रुखाबाद: उत्तर प्रदेश में किसान आलू (Potato) की खेती बड़े पैमाने पर करते आए हैं. वैसे, इन दिनों आलू (Potato) की खुदाई का काम जोरों पर है. ये सामान्य सी बात है, लेकिन हाल ही में केवल अकेले आलू (Potato) के साइज और वजन को ले कर खासी चर्चा है.

उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में एक किसान के खेत से खुदाई के दौरान 2 किलोग्राम वजन का आलू मिला, जो अपनेआप में चैकाने वाली खबर है. जिस किसान के खेत यह आलू उगा है, वह किसान भी रातोंरात चर्चा में आ गया.

दरअसल, उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद के पतौजा गांव में मेराज हुसैन नाम के एक किसान के खेत से 2 किलोग्राम का आलू मिलने से हर तरफ चर्चा का माहौल है. उस किसान का कहना है कि वह कई सालों से आलू की खेती करता आया है, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है, जब खेत से इतना बड़े साइज का वजनदार आलू निकला.

इन दिनों आलू पक कर तैयार हो जाता है और किसान आलू की खुदाई के बाद उपज बेचते भी हैं और अगले साल के लिए बीज सहेज कर कोल्ड स्टोर में भी रखते हैं. जो भी हो, आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है और 2 किलोग्राम के आलू ने अपनी शहंशाही यहां दिखा ही दी.

ये अजूबा हुआ उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद के एक गांव पतौजा में, जहां 2 किलोग्राम का आलू खेत में उगा है, जिस ने भी सुना उसी को हैरत हुई. आसपास के गांव के लोग तो आलू देखने पहुंचने लगे हैं. आलू को देख सभी को हैरानी में डाल दिया है.

पतौजा गांव के उस किसान का कहना है कि वह परंपरागत तौर से खेती करते हैं. आलू की फसल को जैविक और रासायनिक दोनों तरीके से उगाते हैं. उस किसान ने बताया कि इस बार उस के खेत में आलू की अच्छी पैदावार हुई है. इस बार उसे अच्छा मुनाफा भी मिलेगा.

आसपास में भी अधिकांश किसान आलू की खेती करते हैं. वह सभी आलू की फसल को फायदे का सौदा मानते हैं. जो भी हो, पतौजा गांव के किसान मेराज हुसैन को आलू ने एक अलग पहचान तो दिला ही दी.

स्ट्राबेरी (Strawberry) को बढ़ावा देने के लिए प्रक्षेत्र दिवस (Field Day) का आयोजन

सबौर: बिहार कृषि महाविद्यालय, सबौर में स्ट्राबेरी प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन किया गया, जिस का मुख्य उद्देश्य किसानों के बीच स्ट्राबेरी के उत्पादन तकनीक को दिखाना एवं राज्य में स्ट्राबेरी के उत्पादन को बढ़ावा देना है, ताकि किसानों को ज्यादा से ज्यादा आमदनी प्राप्त हो सके. स्ट्राबेरी प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन उद्यान विभाग, बिहार कृषि महाविद्यालय, सबौर एवं कृषि विज्ञान केंद्र, सबौर द्वारा संयुक्त रूप से किया गया.

कार्यक्रम का आयोजन स्ट्राबेरी शोध परियोजना की मुख्य अन्वेशक डा. रूबी रानी ने परियोजना के तहत किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता सहअधिष्ठाता एवं प्राचार्य डा. एसएन राय ने की. इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अधिष्ठाता कृषि डा. अजय कुमार साह थे. इस में विभाग के अध्यक्ष डा. अहमर आफताब, उपनिदेशक शोध डा. शैलबाला देई, विभाग के वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र की वैज्ञानिक डा. ममता कुमारी, किसान और आरएडब्ल्यूई के विद्यार्थियों ने भाग लिया.

स्ट्राबेरी (Strawberry)

कार्यक्रम के दौरान डा. रूबी रानी ने राज्य के स्ट्राबेरी उत्पादन एवं समस्याओं पर प्रकाश डाला और विश्वविद्यालय द्वारा किए गए प्रयासों एवं स्ट्राबेरी पर किए गए शोध की संक्षिप्त जानकारी दी.

कार्यक्रम के दौरान स्ट्राबेरी किसानों ने स्ट्राबेरी प्लांटिंग मैटीरियल की समस्या से अवगत कराया और बताया कि स्ट्राबेरी के नए पौध हमेशा पूना, महाबलेश्वर या हिमाचल प्रदेश से लाना पड़ता है और सही समय पर उपयुक्त मात्रा में प्राप्त नहीं हो पाता, जिस से फलन प्रभावित होता है.

उपनिदेशक शोध डा. शैलबाला देई ने अपने संबोधन में इन समस्या का शोध के द्वारा निदान करने पर बल दिया. अध्यक्ष, उद्यान विभाग (फल) डा. अहमर आफताब ने बताया कि स्ट्राबेरी के मूल्यवर्धित उत्पाद जैसे जैम, शरबत, स्कवास आदि से ज्यादा मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है. अधिष्ठाता कृषि ने पौधा उपलब्धि की कमी को दूर करने पर बल दिया और बिहार के जलवायु अनुकूल किस्मों की आवश्यकता पर भी बल दिया. कार्यक्रम का समापन डा. रूबी रानी के धन्यवाद ज्ञापन से हुई.

फसल कीट (Crop Pest) व बीमारी निगरानी पर प्रशिक्षण

रीवां: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कार्यालय केंद्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र, मुरैना द्वारा एकदिवसीय राष्ट्रीय कीट निगरानी प्रणाली प्रशिक्षण स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र, रीवां के सभागार में आयोजित किया गया.

कार्यक्रम में संभाग के किसानों एवं जिला नोडल अधिकारियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया. सुनीत कुमार कटियार ने आईपीएम एवं एनपीएसएस के बारे में बताया और प्रवीण कुमार यडहल्ली, वनस्पति संरक्षण अधिकारी द्वारा फसलों में लगने वाले कीट एवं बीमारियों के बारे में बताया.

अभिषेक सिंह बादल, सहायक वनस्पति संरक्षण अधिकारी द्वारा पैस्टिसाइड लेवल क्लेम, पेस्ट एवं डिजीज हौटस्पौट एवं अन्य बिंदुओं पर चर्चा की गई. डा. अखिलेश कुमार, वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र ने संभाग के वर्तमान कीट परिदृश्य के बारे में बताया.

सहायक संचालक प्रीति द्विवेदी ने संभाग में फसलों में कीट व बीमारियों के प्रकोप से सुरक्षा के लिए एनपीएस के संबंध में जिलों के नोडल अधिकारियों को जागरूकता एवं एडवाइजरी जारी किए जाने के लिए निर्देशित किया.

कार्यक्रम का आरंभ प्रीति द्विवेदी, सहायक संचालक, संयुक्त संचालक कृषि कार्यालय एवं डा. एके पांडे, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा किया गया.

थारमणि एफपीओ (FPO) करवाएगा अनार (Pomegranate) की जहरमुक्त बागबानी

बाड़मेर: इस जिले में लगातार बढ़ रहे अनार बागबानी क्षेत्रफल और किसानों की आय बढ़ाने का बड़ा जरीया अनार बागबानी अब किसानों के हाथों से फिसलने लगी है, जहां अनार बागबानी में अत्यधिक रसायन के इस्तेमाल से निर्यात न हो पाने से भाव नहीं मिल रहे हैं, तो अब लंबे समय तक ज्यादा रासायनिक उपयोग के चलते अनार के पौधों का इम्यून सिस्टम भी जवाब देने लग गया है, जो पौधे 20 से 25 वर्ष तक पैदावार देते थे, वह पौधे 8-10 सालों में ही हांफने लगे हैं और किसान उन पौधों को उखाड़ने भी लग गए हैं.

भारत सरकार के 10,000 एफपीओ योजना के सहयोग से निर्मित किसान उत्पादक कंपनी थारमणि और्गैनिक प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड, गुड़ामालानी ने बाड़मेर व जालौर जिलों के अनार उत्पादक किसानों की इस गंभीर समस्या को समझते हुए समाधान के प्रयास शुरू किए हैं, जिस के तहत देश के नामी व परिणाम देने मंे सक्षम रहे जैविक कृषि गुरु और कृषि विशेषज्ञ ताराचंद बेलजी को बाड़मेर मंे अनार बागबानी किसानों को सहयोग के लिए आमंत्रित कर किसानों को प्रशिक्षण देने व रसायनों के बेतहाशा इस्तेमाल की जगह जैविक विकल्प देने के प्रयास में आगामी 13 व 14 मार्च को गुड़ामालानी में दोदिवसीय जहरमुक्त अनार प्रशिक्षण तय किया है.

ताराचंद बेलजी, जिन्होंने स्वयं के अनुसंधानों व जैविक तरीके से अभी तक देशभर में 38 फसलों का जैविक तरीके से रिकौर्ड उत्पादन लेने में सफलता हासिल कर चुके हैं.

प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए निर्मित ब्रोसर व बैनर का विमोचन 4 मार्च को जिला कलक्टर, बाड़मेर कार्यालय में कलक्टर प्रशांत जैन, संयुक्त निदेशक, कृषि, पदम सिंह भाटी, गुड़ामालानी प्रधान बिजलाराम चैहान, आडेल प्रधान प्रतिनिधि नगाराम बेनीवाल, भारतीय किसान संघ संभाग प्रचार प्रमुख व थारमणि चेयरमैन प्रहलाद सियोल, थारमणि सचिव दुर्गादास वैष्णव व डायरैक्टर रिड़मल राम देवासी द्वारा किया गया.

इस मौके पर जिला कलक्टर प्रशांत जैन ने भारत सरकार की एफपीओ योजना का अधिक से अधिक किसानों को लाभ लेने व जैविक खेती को जमीन, फसल व किसान हित में प्रोत्साहित करने का आह्वान किया.

पदम सिंह भाटी, संयुक्त निदेशक, कृषि विभाग ने अनार बागबानी में अत्यधिक रसायनों के इस्तेमाल पर चिंता जाहिर करते हुए एफपीओ के माध्यम से किसानों को प्राकृतिक व जैविक विकल्पों के उपयोग पर बल देने व जागरूकता के साथ समय की मांग के अनुसार खेती करने की बात कही.

थारमणि एफपीओ चेयरमैन प्रहलाद सियोल ने बताया कि अनार बागबानी में किसानों के सामने रसायनों के विकल्प, सामूहिक प्रयासो की कमी, जैविक उत्पादों की बिक्री की समस्या है, जिसे थारमणि एफपीओ अनार किसानों को कैमिकल रसायनों के विकल्प के रूप में जैविक उत्पाद व देशी फार्मूलों का सटीक व सफल परिणाम देने वाले उत्पादों को किसानों तक उपलब्ध कराने, अनार किसानों को संगठित करने व जैविक अनार उत्पादों को बाजार उपलब्ध करवाने का काम करने के तहत प्रशिक्षण के माध्यम से किसान, जमीन व अनार बागबानी जहर से छुटकारा पा कर जैविक व प्राकृतिक तरीके से स्वस्थ जीवन व कम खर्च में अधिक उत्पादन ले सकें, ऐसा प्रयास किया जा रहा है. अगर कोई अनार बागबान इस प्रशिक्षण में शामिल होना चाहते हैं, वह प्रहलाद सियोल के मोबाइल नंबर 9001171800 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं.

रबी व खरीफ उपज खरीद के लिए राज्य खाद्य सचिवों की बैठक

नई दिल्लीः भारत सरकार के उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अधीन खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) ने 28 फरवरी, 2024 को नई दिल्ली में राज्यों के खाद्य सचिवों की एक बैठक आयोजित की. इस बैठक का उद्देश्य रबी विपणन सीजन (Rabi Marketing Season)  2024-25 और खरीफ विपणन सीजन (Kharif Marketing Season) 2023-24 में रबी फसलों की खरीद व्यवस्था पर चर्चा करना था. इस बैठक की अध्यक्षता भारत सरकार के डीएफपीडी सचिव ने की.

इस बैठक में खरीद को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों जैसे कि मौसम की स्थिति का पूर्वानुमान, उत्पादन का अनुमान और राज्यों की तैयारी की समीक्षा की गई. इस में विचारविमर्श के बाद आगामी आरएमएस 2024-25 के दौरान गेहूं खरीद का अनुमान 300-320 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) की सीमा में तय किया गया. इसी प्रकार केएमएस 2023-24 (रबी फसल) के दौरान धान की खरीद का अनुमान 90-100 लाख मीट्रिक टन की सीमा में तय किया गया.

वहीं, केएमएस 2023-24 (रबी फसल) के दौरान राज्यों की ओर से खरीद के लिए तकरीबन 6.00 लाख मीट्रिक टन मोटे अनाज व बाजरा (श्रीअन्न) की मात्रा का भी अनुमान लगाया गया. राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को फसलों के विविधीकरण और आहार स्वरूप में पोषण बढ़ाने के लिए मोटे अनाज की खरीद पर अपना ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी गई.

इस के अलावा तेलंगाना राज्य सरकार ने आपूर्ति श्रंखला अनुकूलन के संबंध में अपनाई गई अच्छे अभ्यासों को साझा किया और भारत सरकार की इस पर्यावरण अनुकूल पहल के माध्यम से सालाना 16 करोड़ रुपए की बचत का उल्लेख किया. उत्तर प्रदेश सरकार ने ई-पीओएस को इलैक्ट्रौनिक वजन पैमाने के साथ जोड़ने के संबंध में सफल पहल साझा की, जिस ने लाभार्थियों को उन के लिए निर्धारित मात्रा के अनुसार खाद्यान्न की आपूर्ति प्रभावी ढंग से सुनिश्चित की है.

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने राज्य एमएसपी खरीद अनुप्रयोगों की डिजिटल परिपक्वता पर अपना मूल्यांकन अध्ययन प्रस्तुत किया. इस के अलावा राज्य सरकारों को केएमएस 2024-25 की शुरुआत से पहले खरीद प्रणाली में पारदर्शिता व दक्षता लाने के लिए एग्रीस्टैक पोर्टल के मानक और मुख्य विशेषताओं के अनुरूप अपने मौजूदा अनुप्रयोगों को अपनाने या उन में सुधार की सलाह दी गई.

इस बैठक के दौरान नामित डिपो से उचित मूल्य की दुकानों तक खाद्यान्न के परिवहन के लिए आपूर्ति श्रंखला अनुकूलन, खरीद केंद्रों में बुनियादी ढांचे में सुधार, सर्वश्रेष्ठ पिसाई अभ्यासों व डिजिटल कौमर्स के लिए ओपन नैटवर्क (ओएनडीसी) पर उचित मूल्य की दुकानों को लाने से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की गई.

इस बैठक में एफसीआई के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक और राज्यों के प्रधान सचिव व सचिव (खाद्य) सहित भारतीय मौसम विभाग, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, भारतीय कृषि सहकारी विपणन संघ और भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारिता संघ लिमिटेड के अधिकारी उपस्थित थे.