मत्स्य प्रसंस्करण इकाई (Fish Processing Unit) का उद्घाटन

उदयपुर: 28 फरवरी, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संघटक मात्स्यकी महाविद्यालय में दूसरे दिन छोटी मत्स्य प्रसंस्करण इकाई का उद्घाटन मात्स्यकी महाविद्यालय के डा. आरए कौशिक, अधिष्ठाता द्वारा एवं डा. बीके शर्मा, पूर्व अधिष्ठाता, डा. आशीष झा, प्रमुख वैज्ञानिक आईसीएआर-सीआईएफटी और डा. सुमन ताकर की मौजूदगी में संपन्न हुआ.

इस अवसर पर महाविद्यालय के पूर्व अधिष्ठाता डा. बीके शर्मा ने सभी अतिथियों का स्वागत किया. उद्घाटन के दौरान मात्स्यकी महाविद्यालय के समस्त शिक्षक और छात्र समुदाय उपस्थित थे.

मत्स्य प्रसंस्करण इकाई की स्थापना आईसीएआर-सीआईएफटी के द्वारा की गई. इस के लिए डा. आरए कौशिक ने निदेशक आईसीएआर-सीआईएफटी का दिल से धन्यवाद प्रेषित किया. यह इकाई यहां के आदिवासी बहुल क्षेत्र के मत्स्य किसानों के लिए मील का पत्थर साबित होगी. इस के लिए विभिन्न प्रकार मत्स्य सहउत्पादों का प्रशिक्षण आयोजित किया जा सकेगा.

प्रशिक्षण के दूसरे दिन डाया मत्स्य सहकारी समिति के 60 मत्स्यपालकों ने अलगअलग प्रकार के मत्स्य सहउत्पाद बनाने की कला को पूरी जिज्ञासा के साथ सीखा, जिस में मुख्य रूप से फिश फिंगर, फिश कटलेट, झींगा मछली (झींगा के साथ), फिश बाल, फिश समोसा, फिश पकोड़ा, फिश ब्रेड पकोड़ा एवं मत्स्य अचार मत्स्य किसानों ने स्वयं अपने हाथों से बनाए, जिस में आईसीएआर-सीआईएफटी से आए हुए सभी टीम के साथियों एवं महाविद्यालय के डा. बीके शर्मा, डा. एमएल ओझा एंव डा. सुमन ताकर ने इन सहउत्पादों को बनाने में प्रशिक्षणार्थियों को अपना सहयोग प्रदान किया.

महाविद्यालय के तृतीय वर्ष के विद्यार्थियों ने वर्तमान सत्र में चल रहे कोर्सों का प्रायोगिक जानकारी अर्जित की. साथ ही, मत्स्य सहउत्पादों के विभिन्न व्यंजनों को बनाने में अपनी पूरी रुचि भी दिखाई.

किसानों को दिया गया जैविक खेती (Organic Farming) पर प्रशिक्षण

उदयपुर: 29 फरवरी, 2024. प्रसार शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में विषय विशेषज्ञों द्वारा जैविक खेती के संदर्भ में आवश्यक प्रशिक्षण दिया गया. साथ ही, जैव उर्वरकों और जैव कीटनाशियों आदि जैविक उत्पादों का किसानों द्वारा स्वयं अपने स्तर पर उपलब्ध संसाधनों के उपयोग से तैयार कर उपयोग करने के संबंध में सजीव प्रदर्शन के साथ जानकारी प्रदान की गई.

वर्तमान में कृषि में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, कवकनाशियों और दूसरे रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से इनसान, दूसरे जीवजंतुओं एवं मृदा स्वास्थ्य पर हानिकारक व विपरीत प्रभावों को ध्यान में रखते हुए उक्त रसायनों के संतुलित उपयोग के साथ ही जिला सलूंबर में जैविक खेती के बेहतर विकल्प को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से आदर्श किसान तैयार कर इन किसानों के जरीए जिले में दूसरे किसानों को भी जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित कर के जैविक खेती में आदर्श और अग्रणी बनाए जाने की जरूरत को महसूस किया गया.

अतः उक्त अवधारणा को जिला कलक्टर, सलूंबर की पहल पर नवाचार कार्यकम के तौर पर ले कर क्रियान्वित करने के लिए जिले के प्रत्येक ब्लौक से 5-5 किसानों को चुना गया. किसानों को विश्वविद्यालय परिसर में ही केवल जैविक उत्पादों के उपयोग से बेहतरीन बढ़वार के साथ तैयार गेहूं, चना, मैथी आदि फसलों का मुआयना भी करवाया गया.

उक्त कार्यकम संयुक्त निदेशक कृषि (विस्तार), गौस मोहम्मद, सलूंबर द्वारा क्रियान्वित एवं हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड, जावर माइंस, अभिमन्यु सिंह (जनसंपर्क अधिकारी) के सहयोग से संपादित किया गया.
उक्त प्रशिक्षक में जिला कलक्टर जसमित सिंह संधु स्वयं प्रशिक्षण में उपस्थित हो कर विश्वविद्यालय की विभिन्न इकाइयों का अवलोकन किया और किसानों से गोष्ठी में सवांद स्थापित किया एवं जैविक खेती अपनाने पर बल दिया.

डा. आरए कौशिक, निदेशक प्रसार, शिक्षा निदेशालय, डा. आरएस राठौड़, समन्वयक कृषि प्रौद्योगिकी सूचना केंद्र, पुरुषोत्तम लाल भट्ट, उपनिदेशक, उद्यान सलूंबर, अभिमन्यु सिंह, नेहा दिवान (सीएसआर) इत्यादि ने इस गोष्ठी में भाग लिया.

डा. रविकांत शर्मा, परियोजना प्रभारी, अखिल भारतीय नैटर्वक, श्रवण कुमार यादव एवं रवि जैन, जैविक अनुसंधान परियोजना इकाई का अवलोकन कराया व इस की उपयोगिता बताई.

आईसीएआर (ICAR) सोसायटी की 95वीं वार्षिक आम बैठक

नई दिल्ली: 28 फरवरी 2024, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) सोसायटी की 95वीं वार्षिक आम बैठक केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा की अध्यक्षता में हुई. केंद्रीय मंत्री डा. जितेंद्र सिंह व श्री कैलाश चैधरी, उत्तर प्रदेश के पशुपालन एवं डेयरी मंत्री धर्मपाल सिंह, नागालैंड के कृषि मंत्री माथुंग यंथन एवं आईसीएआर के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक भी मौजूद थे.

बैठक में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि आईसीएआर ने देश को भूख व कुपोषण से निकाल कर स्वस्थ कृषि उत्पादन की ओर ले जाने की दिशा में कृषि क्षेत्र में नवाचार का नेतृत्व किया है. पिछली बैठक में 46 से अधिक सुझाव आए थे, जिन सभी पर आईसीएआर ने काम पूरा किया है.

उन्होंने आगे कहा कि यह प्रधानमंत्री मोदी के कुशल नेतृत्व में केंद्र सरकार की उपलब्धि का ही नतीजा है कि विश्व में सर्वाधिक आबादी होने के बावजूद भारत में 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को केंद्र द्वारा मुफ्त अनाज दिया जा रहा है. कई उपलब्धियों के बावजूद भी कुछ चुनौतियां हैं, जिन का समाधान तलाशते हुए हमें अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढना है. प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन में कृषि, किसान को समृद्ध बनाते हुए देश को आगे बढ़ाने का काम सुनिश्चित किया जा रहा है. साथ ही, कृषि संबद्ध क्षेत्रों, पशुपालन, मत्स्यपालन, मुधमक्खीपालन आदि को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है.

आईसीएआर (ICAR)

हमें जलवायु परिवर्तन, मृदा क्षरण जैसी चुनौतियों के समाधान की दिशा में तेजी से काम करते हुए किसानों की उन्नति का रास्ता साफ करना है. खुशी की बात है कि इस में आईसीएआर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. आईसीएआर ने साल 2005 से 2014 के दौरान जहां अधिक पैदावार देने वाली 1,225 फसल किस्में जारी की गई थीं, वहीं 2014 से 2023 के दौरान 2,279 ऐसी किस्में जारी की गई हैं, जो लगभग दोगुना है.

अब ध्यान पौषणिक सुरक्षा पर है, इस के लिए जैव प्रबलित किस्मों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है. इस दिशा में प्रभावी ढंग से आगे बढ़ने के लिए बैठक में आने वाले सुझाव काफी मददगार होंगे.
मंत्री अर्जुन मुंडा ने यह भी कहा कि मानव समाज के लिए, कृषि क्षेत्र की प्रगति के बिना किसी और क्षेत्र की प्रगति नहीं हो सकती है.

इस का संतुलन बना कर व तमाम चुनौतियों का सही आंकलन कर उस का निराकरण करते हुए बेहतर परिणाम देने का प्रयास होना चाहिए. सुदूर क्षेत्र में रहने वाले छोटे से छोटे किसान में आत्मस्वावलंबन हो, उन की प्रगति हो, कृषि उत्पादन बढ़े और हर दृष्टि से आत्मनिर्भरता हो, इस की कोशिश होनी चाहिए. इस दिशा में हम सब को मिल कर विचार करते हुए काम करने की जरूरत है, ताकि आने वाले दिनों में लक्ष्य हासिल करें और जो संकल्प लिया है, उसे पूरा कर सकें.

उन्होंने ने आईसीएआर के प्रकाशन व 22 फसलों की 24 किस्में जारी कीं, जिन में धान, गेहूं, मक्का, सावां, रागी, सरसों, सोयाबीन, सूरजमुखी, चना, अरहर, मसूर, मोठ, जूट, टमाटर, भिंडी, चैलाई, सेम, खीरा, मटर, आलू, मशरूम, अमरूद हैं. डीजी डा. हिमांशु पाठक ने आईसीएआर की उपलब्धियों पर रिपोर्ट पेश की.

व्यापारिक पशुपालन बढ़ाएगा आय

दमोह: ग्रामीण क्षेत्र में अधिकतर लोग किसान ही हैं, हम पशुपालन इसलिए करते हैं कि घर में दूध हो जाएगा, घी बन जाएगा. यदि हम पशुपालन को व्यापारिक दृष्टि से करने लगें, तो निश्चित रूप से यह आय बढ़ाने का काम तो करेगा.

इस विभाग के माध्यम से प्रदेश का नक्शा बदला जा सकता है. यहां काम की काफी संभावनाएं हैं. मार्गों पर गौवंश बड़ी समस्या है, सरकार इस दिशा में काम कर रही है, जल्द ही इस के परिणाम दिखेंगे.

यह विचार मध्य प्रदेश के पशुपालन एवं डेयरी विभाग राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) लखन पटेल ने पथरिया विकासखंड के ग्राम बोतराई में आयोजित पशु जागृति अभियान के तहत पशु बांझपन शिविर एवं जागरूकता गोष्ठी को संबोधित करते हुए व्यक्त किया.

इस अवसर पर नानाजी देशमुख वेटनरी विज्ञान यूनिवर्सिटी, जबलपुर के कुलपति प्रो. डा. सीता प्रसाद तिवारी, अधिष्ठाता डा. राजेश कुमार शर्मा, निदेशक विस्तार शिक्षा डा. सुनील नायक, जनपद अध्यक्ष खिलान अहिरवार खासतौर पर मौजूद थे.

पशुपालन राज्यमंत्री लखन पटेल ने कहा कि नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर द्वारा एक संगोष्ठी आयोजित की गई, जिस में गौवंश आदि की हेल्थ, उन को दिए जाने वाली दवाई और सरकार की जोजो भी योजना है, के बारे में किसानों और पशुपालकों को अवगत कराया है.

राज्यमंत्री लखन पटेल ने कहा कि विश्वविद्यालय की सभी टीम ने आ कर मेरे क्षेत्र के गांव को चुना, उस के लिए उन का धन्यवाद करता हूं. इस कैंप से लोगों में जागरूकता तो आएगी, साथ ही यहां का प्रचारप्रसार होगा, तो दूसरे गांव के लोग भी यहां पर शामिल होंगे.

उन्होंने कहा कि मैं ने बड़े स्तर पर कोई एक ऐसे मेले का आयोजन करने को कहा था, जिस में पूरे जिले के लोग तो शामिल होंगे ही, साथ में संभाग और प्रदेश के लोग भी यहां आएं, जो कि हमारे मुख्यमंत्री का सपना है, उस को पूरा कर सकें और उन को भी आयोजन में बुला सकें.

पशुपालन राज्यमंत्री लखन पटेल ने कहा कि गौवंश-पशुपालन से किसानों की आमदनी दोगुनी करने का काम किया जा सकता है. हमारे पास दूध तो है, लेकिन उस की खपत नहीं है तो दूध का बहुत ज्यादा स्टाक हो जाता है, अमूल के साथ टाईअप कर के इस काम को आगे बढ़ने का काम करेंगे.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि मैं ने दिल्ली में पशुपालन और डेयरी के मंत्री परशोत्तम रूपाला से मिल कर अपनी समस्या के बारे में आग्रह किया, तो उन्होंने कहा कि आप बड़ेबड़े गौ अभ्यारण बनाइए, बाउंड्री बनाने के लिए, शेड बनाने के लिए, पानी के लिए जिस का पूरा पैसा हम देंगे.

उन्होंने बताया कि एक हिमाचल प्रदेश के व्यक्ति ने कहा कि हम आप के साथ काम करना चाहते हैं, हम सांची डेयरी है, उस के साथ टाईअप करना चाहते हैं, इस में पैसे की कोई दिक्कत नहीं है. हम इनवेस्ट करेंगे और सांची के साथ कोलैबोरेट कर के ईको वर्ल्ड वाईज बनाएं. वे कुछ दिन बाद यहां आ कर एग्रीमेंट करने वाले हैं.

पशुपालन राज्यमंत्री लखन पटेल ने कहा कि हमारी सब से बड़ी समस्या है सड़कों पर जो गौवंश घूम रही है, इस संबंध में मंत्री परशोत्तम रूपाला से चर्चा हुई, जिस की योजना बना कर 5 से 10 गांव में एक बड़ा गोबर गैस प्लांट लगा कर उन्हें गैस दी जा सके. इस के लिए योजना तैयार की गई है, इस में समय लगेगा, क्योंकि यह बड़ा काम है, जब गाय का गोबर आप के घर से बिकने लगेगा, तो आप गौवंश को कहीं बेसहारा नहीं छोड़ेंगे.

मैं उसी दिन से यह सपना देख रहा हूं कि जिस दिन से यह तीनों चीजें हो गई, तो आप यह मान कर चलिए कि मध्य प्रदेश का नाम पूरे हिंदुस्तान में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में सब से ऊपर हो जाएगा.

नानाजी देशमुख वेटनरी विज्ञान यूनीर्वसिटी, जबलपुर के कुलपति डा. सीता प्रसाद तिवारी ने कहा कि कृषि से संबंधित जो बृहद नालेज आप सभी के पास है. हम पशुपालन के क्षेत्र को गांवगांव तक ले जाएं, पशुपालन के माध्यम से जो किसान आत्मनिर्भर हो और अपनी आमदनी को बढ़ाने के सुझाव दिए.

उन्होंने कहा कि गौशाला में हम वर्मी कंपोस्ट बना सकते हैं, और हम गौशाला में कुछ ट्रेनिंग प्रोग्राम भी कर सकते हैं, सर्टिफिकेट कोर्सेज स्टार्ट कर सकते हैं और जो पैसा हमारे पास आएगा, उस पैसे को हम गौशाला को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लगाएंगे. इस की विविध जानकारी पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय, जबलपुर देता है.

उन्होंने कहा कि क्लिनिकल कैंप के माध्यम से यहां के बीमार पशुओं का इलाज भी कराया जाएगा. हम चाहते हैं कि विश्वविद्यालय से जो डाक्टर है, वह एक या दो महीने में कम से कम एक बार यहां पर सेवाएं दें. बोतराई गांव में आगे चल कर जो भी पशुपालन एवं पशु चिकित्सा से संबंधित जो भी एक्टिविटी है, इस का एक केंद्र बने. हमें रोजगार भी निर्मित करना है और हमारे यहां के जो लोग हैं, काफी दूर तक पढ़ाई करने जाते हैं, 12वीं के बाद एक डिप्लोमा का कार्यक्रम, पशु चिकित्सा महाविद्यालय चलाता है.

वेटनरी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. राजेश शर्मा ने कहा कि दवाएं वितरण कर रहे हैं, जिस में कैल्शियम मिनरल मिक्सचर और फिर संगोष्ठी भी साथ में, जो हमारे युवा वर्ग है जो हमेशा रोजगार के लिए परेशान रहते हैं, पशुपालन से जो हमारे प्रधानमंत्री मोदी का सपना है कि आय को दोगुना करना है.

कृषि और पशुपालन जब साथसाथ दोनों व्यवसाय किए जाएंगे, तब आय निश्चित रूप से दोगुनी हो सकती है. तो हम पशु चिकित्सा महाविद्यालय के सभी हमारे शिक्षक, जो आए हैं पीजी, पीएचडी के स्टूडेंट भी साथ में आए हुए हैं, वे दिनभर गांव के जो भी पशुओं की समस्या है, उन का निराकरण करेंगे और जितना संभव हो सकेगा, इतना उपचार देंगे.

इस के पूर्व उन्होंने गौपालकों को दवाई की किट भी वितरित की. नानाजी देशमुख वेटनरी विज्ञान यूनिर्वसिटी, जबलपुर से आए पीजी, पीएचडी के स्टूडेंट से पशुओं का इलाज किया.

कार्यक्रम में खरगराम पटेल, लाखन प्रजापति, बद्री पटेल, बलराम पटेल, राजेश कुर्मी, रणवीर, अन्य जनप्रतिनिधि, उपसंचालक पशु चिकित्सा डा. एडब्ल्यू खान सहित विभाग के अधिकारी व कर्मचारी मौजूद रहे.

आजीविका मिशन (Livelihood Mission) से जुड़ बकरीपालन कर आत्मनिर्भर बुटैया

सीधी: मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर स्थिति ग्राम समरदह विकासखंड सिहावल के अंतर्गत वनों से ढके आदिवासी परंपराओं से ओतप्रोत ग्राम की बुटैया सिंह बताती हैं कि आजीविका मिशन (Livelihood Mission) के माध्यम से जय बजरंगबली स्व सहायता समूह से जुड़ कर उन्हें बड़ा सहारा प्राप्त हुआ. समूह से 10,000 रुपए का लोन ले कर आजीविका गतिविधि की. पुनः 20,000 रुपए ले कर खेतीकिसानी करने लगी और बकरी खरीद कर बकरीपालन करने लगी. उन बकरी को बीमारी न हो, उन का रहनसहन, साफ एवं स्वच्छ रहे, इस के लिए टीएडीपी योजना से 13,877 रुपए की राशि प्राप्त कर मचान बना कर बकरीपालन किया, जिस से काफी लाभ प्राप्त होता है.

आवश्यकता पर बकरी विक्रय कर अच्छा मुनाफा होता है.

बुटैया सिंह बताती हैं कि उन के गांव में कुल 24 परिवार समूह से पैसा ले कर बकरीपालन का काम कर रहे हैं. यह आजीविका मिशन की देन है.

जिला परियोजना प्रबंधक पुष्पेंद्र कुमार सिंह के निर्देशन में 24 बकरी शेड टीएडीपी के सहयोग से बनाया गया. आज 24 परिवार लखपति क्लब में शामिल हो गए हैं. बकरियों को नियमित टीकाकरण, पोषण आहार एवं वैक्सीन का काम नियमित रूप से पशु सखी के माध्यम से किया जाता है. बकरी गरीब परिवारों के लिए एटीएम की तरह काम करती है. जब आवश्यकता पड़ती है, तो बिक्री कर आय प्राप्त की जा सकती है.

फसल की जानकारी एमपीकिसान एप (MPKisan App) से कर सकेंगे दर्ज

कटनी: किसान ‘मेरी गिरदावरी- मेरा अधिकार’ में अब किसान निश्चिंत हो कर अपनी फसल की जानकारी एमपीकिसान एप  (MPKisan App) के माध्यम से दर्ज कर सकेंगे. इस जानकारी का उपयोग फसल हानि, न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना, भावांतर योजना, किसान क्रेडिट कार्ड और कृषि ऋण में किया जाएगा.

किसान की इस जानकारी का आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस एवं पटवारी से सत्यापन होगा. ‘मेरी गिरदावरी-मेरा अधिकार’ में किसान को यह सुविधा उपलब्ध करवाई गई है कि वे अपने खेत से ही स्वयं फसल की जानकारी एमपीकिसान एप पर दर्ज कर अपनेआप को रजिस्टर सकते हैं. इस एप को गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है. किसान एप पर लौगिन कर फसल स्वघोषणा, दावा आपत्ति औप्शन पर क्लिक कर अपने खेत को जोड़ सकते हैं.

खाता जोड़ने के लिए प्लस औप्शन पर क्लिक कर जिला, तहसील, ग्राम, खसरा आदि का चयन कर एक या अधिक खातों को जोड़ा जा सकता है. खाता जोड़ने के बाद खाते के समस्त खसरे की जानकारी एप में उपलब्ध होगी. उपलब्ध खसरे की जानकारी में से किसी भी खसरे पर क्लिक करने पर एआई के माध्यम से जानकारी उपलब्ध होगी.

किसान के सहमत होने पर एक क्लिक से फसल की जानकारी को दर्ज किया जा सकेगा. संभावित फसल की जानकारी से असहमत होने पर खेत में बोई गई फसल की जानकारी खेत में उपस्थित हो कर लाइव फोटो के साथ दर्ज की जा सकती है.

कृषि आय को कई गुना बढ़ाने के लिए करें मछली से उत्पाद (Fish Products) तैयार

उदयपुर: 27 फरवरी, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संघटक मात्स्यकी महाविद्यालय में 3 दिवसीय मूल्य संवर्धित उत्पाद पर प्रशिक्षण कार्यक्रम हुआ. कार्यक्रम में डाया, बांध उदयपुर सहकारी समिति के 60 महिला एवं पुरुष प्रशिक्षणार्थियों ने हिस्सा लिया.

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए डा. आरए कौशिक ने मूल्य संवर्धित उत्पादों से किसानों की आय को 3 से 4 गुना बढ़ाने एवं सामाजिक स्तर को सुधारने के साथसाथ सीताफल प्रसंस्करण से दूसरे समूहों की सफलता की कहानी से प्रशिक्षणाथियों को सीखने एवं मत्स्य सहउत्पादों को तैयार कर जीवनस्तर सुधारने का आह्वान किया.

उन्होंने अपने संबोधन में प्रशिक्षणार्थियों को बतलाया कि इस प्रशिक्षण से उन्हें एक नए व्यवसाय के रूप में पूरी जानकारी दी जाएगी, जिस से किसानों को अपनी आमदनी को बढ़ाने में सहायता मिलेगी.

विशिष्ट अतिथि के रूप में मात्स्यकी महाविद्यालय के पूर्व अधिष्ठाता डा. बीके शर्मा ने प्रशिक्षणार्थियों को विभिन्न प्रकार के मत्स्य सहउत्पाद जैसे मछली का अचार, पकोड़े, कटलेट, नमकीन, फाफड़े आदि कैसे बनाएगे, इस बारे में किसानों को अवगत कराया.

साथ ही, इस से नए व्यवसाय को कैसे शुरू कर सकते हैं, के बारे मे भी जानकारी दी और उन से होने वाली आय एवं इन को तैयार कर बाजार में भेजने के लिए तैयार करने के साथसाथ अपनी आय को बढ़ाने एवं आर्थिक रूप से सामाजिक स्तर को सुधारने पर जोर दिया.

डा. बीके शर्मा ने यह जानकारी भी प्रशिक्षणार्थियों के साथ साझा की कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम आईसीएआर के केंद्रीय मात्स्यकी प्रौद्योगिकी संस्थान (सीआईएफटी) द्वारा प्रायोजित किया गया.

इस प्रशिक्षण को आयोजित करने के लिए मात्स्यकी महाविद्यालय में सीआईएफटी के द्वारा एक छोटी प्रसंस्करण इकाई की स्थापना की गई, जो यहां के आदिवासी बहुल क्षेत्र के किसानों के लिए बहुत ही उपयोगी एवं सार्थक सिद्ध होगी. डा. बीके शर्मा ने निदेशक, सीआईएफटी को इकाई स्थापित करने के लिए महाविद्यालय परिवार की तरफ से आभार व्यक्त किया.

मछली उत्पाद (Fish Products)

डा. आशीष झा, प्रमुख वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान-सीआईएफटी ने प्रशिक्षणार्थियों को बताया कि हम मछली से अनेक प्रकार के उत्पाद एवं सहउत्पाद बना कर एक अच्छा व्यवसाय शुरू कर अपने जीवनस्तर को सुधार कर समाज के लिए एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं.

उन्होंने प्रशिक्षणार्थियों को सीआईएफटी द्वारा इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए प्रशिक्षण एवं संसाधन उपलब्ध कराना एवं हर समय उन के लिए तैयार रहने का आश्वासन दिया.

डा. आशीष झा ने गुजरात राज्य द्वारा समुद्री उत्पाद को विदेशों में निर्यात कर करोड़ों रुपए की आय अर्जित करने का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि अगर गुजरात से इस तरह का निर्यात कर सकते हैं, तो राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में दूरदराज के किसान स्वयं सहायता समूह बना कर इस व्यवसाय को भी कर सकते हैं.

महाविद्यालय के सहआचार्य डा. एमएल ओझा ने इस प्रशिक्षण में भाग लेने वाले किसानों को राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी एवं प्रोजैक्ट के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की और साथ ही कैसे उस से लाभान्वित हो सकेंगे, इस के बारे में बताया.

भोजन अवकाश के उपरांत प्रशिक्षणार्थियों ने प्रायोगिक कार्य में बढ़चढ़ कर भाग लिया एवं विभिन्न प्रकार की मछलियों एवं उन की साफसफाई और उन से बनने वाले सहउत्पादों की रुचि ले कर अपने जानकारी को बढ़ाया.

वन मेले (Forest Fair) का आयोजन

अलीराजपुर: जिले में आयोजित वन मेले को संबोधित करते हुए जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट ने कहा कि वन मेले का आयोजन अलीराजपुर में किया जाना गर्व की बात है. इस से क्षेत्रवासियों को जड़ीबूटियों की जानकारी होगी.

यह आयोजन जनजातीय पहचान को बढ़ावा देने की विशेष पहल और महत्वपूर्ण श्रृंखला है.

उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार संस्कृति और परंपराओं को सुदृढ़ करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है. प्रदेश का महुआ विदेशों में पहचान बना रहा है. उन्होंने पेसा कानून की जानकारी मैदानी स्तर पर प्रभावी तरीके से पहुंचाने हेतु विशेष प्रयास संबंधित निर्देश दिए.

उन्होंने कहा कि केंद्र और प्रदेश सरकार योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन एवं अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को योजनाओं का लाभ दिलाए जाने के लिए प्रतिबद्ध हो कर काम कर रही है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि साल 2003 में प्रदेश का सिंचाई रकबा 6 से 7 लाख हेक्टेयर था, जो वर्तमान में 47 लाख हेक्टेयर तक पंहुच गया है. साल 2025 में इस के 65 लाख हेक्टेयर करने का लक्ष्य है. विकास प्रगति और उन्नति के लिए प्रतिबद्धता के साथ काम किया जा रहा है.

उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि प्रदेश के 89 जनजातीय बाहुल्य ब्लौक में मेले को ले कर विशेष प्रयास किए जाएं. उन्होंने कहा कि जिले में व्यापक स्तर पर विकास नजर आता है.

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वन, पर्यावरण एवं अनुसूचित जाति विकास विभाग मंत्री नागर सिंह चौहान ने कहा कि वन मेले की परिकल्पना को भोपाल से अलीराजपुर स्तर पर ले कर आने का मुख्य उद्देष्य है कि प्रदेशभर में उत्पादित होने वाली जड़ीबूटियों और उन से उत्पादित दवाओं आदि को आम लोग जानें. जिले के लोगों को जड़ीबूटियों के बारे में जानकारी मिल सके.

उन्होंने बताया कि अलीराजपुर में आयोजित वन मेले के माध्यम से 15 लाख रुपए से अधिक की जड़ीबूटियां एवं इन से तैयार उत्पाद का विक्रय हुआ है. बडी संख्या में आम लोगों ने वन मेले का लाभ लिया है.

उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार वनोपज को विशेष पहचान दिलाने के लिए प्रयासरत है. उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश में वन धन केंद्र की स्थापना से वनोपज संग्रहण करने वालों की माली हालत में बदलाव होगा. उन्हें संग्रहित वनोपज का उचित दाम और मार्केट मिलेगा.

उन्होंने आगे कहा कि जिले के विकास हेतु प्रतिबद्धता के साथ काम किया जा रहा है. उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के बारे में बताया.

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सांसद गुमान सिंह डामोर ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार के प्रयासों से क्षेत्र में विकास नजर आता है. प्रधानमंत्री मोदी ने जनजातीय समाज का गौरव बढ़ाने के लिए विशेष प्रयास किए हैं. विकसित भारत के रोड मैप के साथ सरकार पूरी प्रतिबद्धता के साथ काम कर रही है. उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं का उल्लेख किया.

कार्यक्रम को विभागाध्यक्ष लघु वनोपज संघ विभाष ठाकुर ने संघ के कामों एवं प्रगति की जानकारी दी. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कलक्टर डा. अभय अरविंद बेडेकर ने वन मेले के महत्व पर प्रकाश डालते हुए जिले में बीज मेले, वन भाजी मेले एवं वन मेले के संबंध में अपने विचार व्यक्त किए.

उन्होंने आगे कहा कि अलीराजपुर जिले में मोटे अनाज, विभिन्न प्रकार की भाजियों एवं जड़ीबूटी की पहचान और उन के संग्रहण व आम लोगों को इन की जानकारी देने के साथ ही महत्व के बारे में बताने की आवश्यकता है. इस के लिए सभी स्तर पर प्रयास किए जाएंगे.

कार्यक्रम में सीईओ ईको पर्यटन मंत्री समीता राजौरा, मध्य प्रदेश लघु वनोपज संघ एएमडी मनोज अग्रवाल, एपीसीसीएफ बीएल अन्ना गेरी, सीसीएफ इंदौर, नरेंद्र कुमार सनोडिया, पुलिस अधीक्षक राजेश व्यास, सीईओ जिला पंचायत अभिषेक चौधरी, भाजपा जिलाध्यक्ष मकू परवाल, सांसद प्रतिनिधि विशाल रावत, जिला पंचायत सदस्य भदू पचाया, जयपाल खरत सहित गणमान्य लोग एवं जनप्रतिनिधिगण उपस्थित थे.

कार्यक्रम में अतिथिगण द्वारा ढोलमांदल नृत्य प्रतियोगिता में प्रथम विजेता साकडी दल को 11,000 रुपए, द्वितीय कुलवट दल के 7,000 रुपए, तृतीय किलोडा दल को 5,000 रुपए एवं सांत्वना पुरस्कार के रूप में भिताडा दल को 5,000 रुपए का पुरस्कार प्रदान किया गया.

अतिथियों ने विभिन्न जड़ीबूटियों एवं उन के उत्पादों से संबंधित प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया. अतिथियों का स्वागत साफा बांध कर, तीरकमान भेंट कर, पांरपरिक जैकेट पहना कर एवं पुष्पमाला से किया गया. कार्यक्रम में बडी संख्या में गांव वाले, आम लोग, गणमान्य लोग आदि उपस्थित थे. आभार डीएफओ मयंक गुर्जर ने माना.

कैसे आएं लड़कियां कृषि शिक्षा (Agricultural Education) में

अविकानगर: केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में मालपुरा के सदरपुरा रोड स्थित लक्ष्मीबाई महिला महाविद्यालय के प्राचार्य डा. रामराज शर्मा के मार्गदर्शन में महाविद्यालय की छात्राओं का 3 बसों से एकदिवसीय एजुकेशनल भ्रमण के तहत संस्थान की विभिन्न इकाइयों और लैब का भ्रमण किया गया.

महाविद्यालय की लड़कियों द्वारा अविकानगर में स्थित खरगोश, अविशान भेड़ व दुम्बा भेड़ इकाइयों और प्रजनन के विभिन्न अनुसंधान केंद्रों व ऊनी कपड़ा निर्माण इकाई का अवलोकन कर संस्थान की उपलब्धियों को जाना एवं भविष्य में कैसे वे अपने लिए इन क्षेत्र में आए के बारे में विस्तार से जाना.

महाविद्यालय की सभी लड़कियों को विज्ञान में उच्च शिक्षा में जाने के अवसर के बारे में अविकानगर के वैज्ञानिक से जानकारी प्राप्त कर संस्थान की शोध, प्रसार गतिविधियों का अवलोकन किया गया.

छात्राओं के साथ महाविद्यालय की डा. सुनीता गौतम, डा. बृजेश शर्मा, डा. गणेश नारायण शर्मा, रामजी लाल कुमावत, जाह्नवी सोनी, राजेंद्र मीणा, योगेश सोनी, बुद्धि प्रकाश, मोहन लाल, कैलाश इत्यादि स्टाफ सदस्य उपस्थित रहे. जिन्होंने भी अविकानगर के विभिन्न सैक्टर्स एवं लैब में विभिन्न प्रश्न पूछ कर अपने महाविद्यालय की लड़कियों की विभिन्न अवसरों को जाना.

मालपुरा की लक्ष्मीबाई कालेज की लड़कियों को निदेशक डा.;अरुण कुमार तोमर, डा. लीलाराम गुर्जर, नेहरू लाल मीना, कृष्णकांत मीना एवं एटीक सैंटर पर कार्यरत मोहन सिंह द्वारा एकदिवसीय भ्रमण करवाने में पूरा सहयोग व आवश्यक मार्गदर्शन किया गया.

समन्वित नाशीजीव प्रबंधन (Integrated Pest Management) पर किसानों को किया जागरूक

बड़वानी : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन (Integrated Pest Management) अनुसंधान केंद्र, नई दिल्ली एवं कृषि विज्ञान केंद्र, बड़वानी के संयुक्त तत्वावधान में समन्वित नाशीजीव प्रबंधन पर कृषक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया.

यह कार्यक्रम प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डा. एसके बड़ोदिया के मार्गदर्शन में केंद्र के सभागार में आयोजित किया गया.

इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डा. केएन पाठक, अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय, खंडवा व विशेष अतिथि के रूप में डा. एचएल खपेड़िया प्रधान वैज्ञानिक द्वारा भागीदारी की गई.

इस औनलाइन/औफलाइन कृषक जागरूकता कार्यक्रम में सर्वप्रथम प्रधान वैज्ञानिक डा. एसके बड़ोदिया द्वारा सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए उपस्थित किसानों को गरमी में मूंगफली फसल की उन्नत उत्पादन तकनीकी व मूंग फसल में नाशीजीव प्रबंधन के साथसाथ प्राकृतिक खेती अपनाने की बात कही.

इस अवसर पर डा. एचएल खपेड़िया, प्रधान वैज्ञानिक ने किसानों को गरमी में गहरी जुताई करने की सलाह देते हुए पेड़पौधों की पत्तियों व अन्य घरेलू चीजों से जैविक कीटनाशी तैयार करने की बात कहीं.

मुख्य अतिथि डा. केएन पाठक ने कृषि विज्ञान केंद्र की जिले में की जा रही गतिविधियों की प्रशंसा करते हुए समन्वित कृषि प्रणाली अपनाने की बात कही.

वहीं केंद्र के मृदा वैज्ञानिक डा. कुमरावत ने मिट्टी परीक्षण के महत्व की जानकारी दे कर पोषण तत्व प्रबंधन द्वारा मृदा स्वास्थय सुधार की बात कही.

मौसम वैज्ञानिक रविंद्र सिकरवार ने किसानों को जलवायु परिवर्तन आधारित कृषि उत्पादन तकनीकी को अपनाने पर जोर दिया.

विषय विशेषज्ञ के रूप में राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केंद्र, नई दिल्ली से प्रधान वैज्ञानिक डा. मुकेश सहगल औनलाइन गूगल मीट के माध्यम से जुड़ कर नाशीजीव कीट प्रबंधन के लिए अच्छी किस्म के बीजों का प्रयोग, बीजोपचार कर बोआई करने की बात कही.

मूंगफली/मूंग फसल में बीजोचार के लिए जैव उर्वरकों राइजोबियम कल्चर, ट्राइकोडर्मा विरडी का प्रयोग की बात कही, जिस से कीट व रोग के प्रकोप से फसल सुरक्षित रहती है. कीटों से बचाव के लिए जैविक एवं रासायनिक दवाओं की अनुशंसित मात्रा के प्रयोग एवं कृषि के मित्र कीटों के संरक्षण के लिए भी जानकारी दी गई.

इस जागरूकता कार्यक्रम मंच का संचालन केंद्र के तकनीकी अधिकारी उदय सिंह अवास्या ने किया. साथ ही, कार्यक्रम के सफलतापूर्वक आयोजन में सहयोग रंजीत बारा, कार्यालय अधीक्षक सह लेखपाल द्वारा दिया गया.

कार्यक्रम के दौरान किसानों को कृषि आदान सामग्री आदिवासी उपयोजना के अंतर्गत वितरित किए गए एवं इस के उपयोग की जानकारी दी. इस कार्यक्रम में जिले के विभिन्न विकासखंड के लगभग 50 किसानों ने भागीदारी की