Storage: 500 किसानों को मुफ्त कोठिला बांटे गए

Free houses :  भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कुश्मौर के निर्देशन में 500 किसानों को मुफ्त विंस (कोठिला) वितरित किया गया. संस्थान द्वारा चलाए जा रहे अनुसूचित जाति उप योजना के अंतर्गत यह कार्यक्रम बिलौझा स्थित मथुरा मैमोरियल आईटीआई कालेज और रतनपुरा स्थित सिद्धिविनायक मैरिज हाल में आयोजित किया गया.

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिलाध्यक्ष रामाश्रय मौर्य ने किसानों से कहा कि केंद्र सरकार द्वारा अनुसूचित जाति के किसानों को यह सुविधा संस्थान की तरफ से प्रदान की गई है, ताकि वह फसलों से उत्पादित अनाज का विंस में सुरक्षित ढंग से भंडारण कर सकें. इस से उन्हें अनाज संग्रहित करने में जहां सुविधा होगी, वहीं सरकार की तरफ से उन्हें यह एक बड़ा सहयोग हो जाएगा.

इस कार्यक्रम में किसानों को खरीफ फसल उत्पादन, बीज उपचार, मृदा परीक्षण, खरपतवार नाशी उपचार, बागबानी, पशुपालन, मुरगी, भेड़, मधुमक्खी पालन इत्यादि के बारे में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विस्तार से जानकारी प्रदान की गई.

इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कुश्मौर के निदेशक डा. संजय कुमार, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली के प्रधान वैज्ञानिक डा. राजीव कुमार सिंह, राष्ट्रीय बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कुश्मौर के प्रधान वैज्ञानिक डा. अंजनी कुमार सिंह, वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. कल्याणी, डा. अजय कुमार, वैज्ञानिक डा. विनेश, डा. पवित्रा और कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डा. विनय कुमार सिंह, डा. अंगद प्रसाद, सत्यनारायण सिंह, प्रोफैसर केके सिंह, डा. देवेंद्र चौहान, सुरेश कुमार श्रीवास्तव, सचींद्र सिंह, मंडल अध्यक्ष दयाशंकर श्रीवास्तव, यशपाल सिंह, नीतीश गौड़ आदि उपस्थित थे.

Dhan Dhanya Agriculture Scheme : प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजन

Dhan Dhanya Agriculture Scheme : केंद्रीय सरकार ने 16 जुलाई, 2025 को 6 साल की अवधि के लिए “प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना” को मंजूरी दे दी है. यह योजना 2025-26 से 100 जिलों में लागू होगी. नीति आयोग के आकांक्षी जिला कार्यक्रम से प्रेरित प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना, कृषि और उस से संबंधित क्षेत्रों पर आधारित पहली विशिष्ट योजना है.

इस योजना का उद्देश्य कृषि उत्पादकता में बढ़ोत्तरी, फसल विविधीकरण और सतत कृषि पद्धतियों को अपनाना, कटाई के बाद पंचायत और प्रखंड लैवल पर भंडारण क्षमता में वृद्धि, सिंचाई सुविधा में सुधार और दीर्घ व अल्प काल के लिए ऋण उपलब्धता सुगम बनाना है. यह 2025-26 के केंद्रीय बजट में “प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना” के अंतर्गत 100 जिले विकसित किए जाने की घोषणा के अनुरूप हैं. इस योजना का क्रियान्वयन 11 विभागों की 36 मौजूदा योजनाओं, राज्यों की अन्य योजनाओं और निजी क्षेत्र की स्थानीय भागीदारी में किया जाएगा.

इस योजना के तहत 3 प्रमुख घटकों कम उत्पादकता, कम फसल सघनता और अल्प ऋण वितरण के आधार पर 100 जिलों को चुना जाएगा. प्रति एक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में जिलों की संख्या शुद्ध फसल क्षेत्र (वह कुल क्षेत्रफल, जहां किसी कृषि वर्ष में वास्तव में फसलें उगाई जाती हैं) और परिचालन जोत के हिस्से पर आधारित होगी. इस योजना में प्रति एक राज्य से कम से कम एक जिले का चयन किया जाएगा.

इस योजना के नियोजन, क्रियान्वयन और निगरानी के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर समितियां गठित की जाएंगी. जिला धन धान्य समिति द्वारा जिला कृषि और संबद्ध गतिविधि योजना को अंतिम रूप दिया जाएगा. इस समिति में प्रगतिशील किसान भी सदस्य होंगे. जिले की योजनाएं फसल विविधीकरण, जल और मृदा स्वास्थ्य संरक्षण, कृषि व उस से संबंधित क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता और प्राकृतिक व जैविक खेती को विस्तार देने जैसे राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप होंगी.

प्रत्येक धन धान्य जिले में योजना में प्रगति की निगरानी प्रति महीने डैशबोर्ड के माध्यम से 117 प्रमुख कार्य करने के संकेतकों के अनुसार की जाएगी. जिस में नीति आयोग भी जिला योजनाओं की समीक्षा और मार्गदर्शन करेगा. इस के अलावा, प्रत्येक जिले में नियुक्त केंद्रीय नोडल अधिकारी भी निरंतर योजना की समीक्षा करेंगे.

इन 100 जिलों में लक्षित परिणामों में सुधार के साथ देश के प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों के मुकाबले समग्र औसत में वृद्धि होगी. इस योजना के परिणामस्वरूप उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होगी, कृषि और उस से संबंधित क्षेत्र में मूल्यवर्धन (उत्पाद और सेवा में उत्थान)  होगा और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार सृजित होगा. इस प्रकार इस योजना से घरेलू उत्पादन में वृद्धि और देश में आत्मनिर्भरता हासिल होगी. इन 100 जिलों के संकेतकों में सुधार के साथ देश के संकेतकों में भी वृद्धि होगी.

अनुसंधान अब पूसा में नहीं खेत और किसान के हिसाब से तय होंगे

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान 16 जुलाई, 2025 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 97वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम शामिल हुए. इस कार्यक्रम का आयोजन भारत रत्न सी. सुब्रमण्यम औडिटोरियम, एनएएससी कौम्प्लेक्स, पूसा, नई दिल्ली में किया गया. इस अवसर पर केंद्रीय कृषि मंत्री ने उत्कृष्ट योगदान के लिए वैज्ञानिकों को राष्ट्रीय कृषि विज्ञान पुरस्कार भी वितरित किए. कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने परिसर में आयोजित विकसित कृषि प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया. साथ ही विभिन्न कृषि उत्पादों व प्रौद्योगिकी की जानकारी भी ली. इस कार्यक्रम में 10 कृषि प्रकाशनों का विमोचन किया गया. साथ ही कृषि क्षेत्र के विभिन्न समझौता ज्ञापनों का विमोचन भी किया गया.

इस कार्यक्रम में कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी, कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी, आईसीएआर के महानिदेशक डा. एमएल जाट सहित देशभर से आए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक, अन्य वरिष्ठ अधिकारी, वैज्ञानिक और बड़ी संख्या में किसान शामिल रहे.

इस अवसर पर संबोधित करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संपूर्ण भारतवासियों की तरफ से पूरी आईसीएआर की टीम को बधाई दी. उन्होंने कहा कि आईसीएआर के साथ जिन देशों ने समझौता किया है और जिन देशों में भारतीय कृषि उत्पादों का निर्यात हो रहा है, उन की तरफ से भी आईसीएआर को बधाई. देश के जिन 80 करोड़ लोगों को राशन उपलब्ध हो रहा है, उन की तरफ से भी आईसीएआर बधाई का पात्र है. स्थापना दिवस गर्व का विषय है. स्थापना दिवस उत्सव के रूप में मनाया जाना चाहिए.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हमारे वैज्ञानिकों की बौद्धिक क्षमता तुलना से परे है. अपने काम के दम पर  हमारे वैज्ञानिक आज किसान कल्याण व विकास का मार्ग तय कर रहे हैं. उन्होंने कहा आज हम गेहूं का निर्यात कर रहे हैं. चावल उत्पादन में भी काफी बढ़ोतरी हुई है. इस बार चावल का इतना उत्पादन हुआ है कि रखने के लिए अतिरिक्त जगह का प्रबंध किया जा रहा है. रिकौर्ड स्तर पर उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हरित क्रांति के दौरान वर्ष 1966 से 1979 तक हमारा खाद्यान्न उत्पादन प्रति वर्ष 2.7 मिलियन टन बढ़ा. वर्ष 1980 से 1990 तक उत्पादन में 6.1 मिलियन टन प्रति वर्ष उत्पादन में बढ़ोतरी हुई.  वर्ष 2000 से 2013-14 तक खाद्यान्न उत्पादन में 3.9 मिलियन टन प्रति वर्ष बढ़ोतरी देखी गई. लेकिन 2013-14 से 2025 तक खाद्यान्न उत्पादन में 8.1 मिलियन टन की बढ़ोतरी हुई है. पिछले 11 सालों में खाद्यान्न उत्पादन में ढाई से तीन गुना वृद्धि देखी गई.

उन्होंने आगे बागबानी के क्षेत्र में हुई वृद्धि के बारे में बताया कि वर्ष 1966-1980 तक 1.3 मिलियन टन प्रति वर्ष बढ़ोतरी हुई थी. साल 1980-1990 में 2 मिलियन टन वृद्धि हुई. फिर साल 1990 से 2000 के दौरान 6 मिलियन टन वृद्धि हुई है। पिछले 11 सालों में बागबानी क्षेत्र में 7.5 मिलियन टन की बढ़ोतरी के साथ फल और सब्जियों का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. उन्होंने कहा कि दूध उत्पादन में भी नवीन प्रौद्योगिकियों के साथ उत्पादन में वृद्धि हो रही है. दूध उत्पादन में साल 2000 से 2014 तक 4.2 मिलियन टन की वृद्धि देखी गई जबकि साल 2014 से 2025 के समय में यह वृद्धि 10.2 मिलियन टन प्रति वर्ष रही. यह आंकडे स्वयं में पिछले 11 सालों में उत्पादन क्षेत्र में हुई उल्लेखनीय उपलब्धि को दर्शाते हैं.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि जलवायु परिवर्तन, छोटी जोत, वायरस अटैक और पशुपालन से जुड़ी विभिन्न चुनौतियों के बावजूद भी वैज्ञानिकों के असाधारण योगदान के कारण उत्पादन में लगातार वृद्धि हुई है. उन्होंने आगे कहा कि प्राकृतिक खेतों को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. आने वाली पीढ़ियों के लिए धरती को सुरक्षित रखना है. इस के लिए उन्होंने वैज्ञानिकों से प्राकृतिक खेती के जरीए गुणवत्तापूर्ण उत्पाद की दिशा में काम करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि दलहन और तिलहन में प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाने के लिए कदम उठाने और बड़े स्तर पर शोध करने की आवश्यकता है. मुझे विश्वास है कि वैज्ञानिक इस दिशा में आगे बढेंगे.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ दुनिया का सब से बड़ा अभियान था. इस अभियान के माध्यम से कई बातें निकल कर सामने आईं. इस के जरीए फसलवार और राज्यवार फसलों पर बैठकें करने और समाधान के प्रयास का रास्ता तय हुआ. सोयाबीन और कपास के बाद अब गन्ने व मक्के पर भी बैठक आयोजित की जाएगी. कपास को ले कर सवाल उठा कि इतनी किस्में विकसित होने के बावजूद उत्पादन क्यों घट गया. मैं बताना चाहता हूं कि वायरस अटैक के कारण फसलें प्रभावित हो रही है, बीटी कौटन भी वायरस अटैक की समस्या से जूझ रहा है. इस अभियान के जरीए शोध के लिए 500 विषय उभर कर हमारे सामने आए हैं, जिन पर काम किया जाएगा. अनुसंधान अब पूसा में तय नहीं होगा, खेत और किसान के हिसाब से आगे के शोध के रास्ते तय होंगे. उन्होंने आईसीएआर के महानिदेशक को ‘एक टीम-एक लक्ष्य’ की संकल्पना पर भी काम करने के निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि एक लक्ष्य के साथ वैज्ञानिकों की टीम बना कर, किसान कल्याण के लिए कार्य करें.

केंद्रीय कृषि मंत्री ने किसानों की तरफ से उर्वरक की जांच के उपकरण सहित विभिन्न आधुनिकतम प्रौद्योगिकी के विकास की मांग को ले कर भी चर्चा की. उन्होंने कहा कि हमारे देश में जोत के आकार छोटे हैं, बड़ी मशीनों की जरूरत नहीं. छोटी मशीनें बनाने पर जोर देना होगा. जल्दी खराब होने वाले कृषि उत्पादों की शेल्फ लाइफ बढ़ाने की दिशा में शोध होना चाहिए. जो विषय किसान ने दिए उस पर शोध होना चाहिए. कोई भी समझौता ज्ञापन करते समय ध्यान दिया जाए कि जिन कंपनियों के साथ समझौता हो रहा है वह किस कीमत पर बीज व उत्पाद बेच रही हैं. केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस दिशा में आईसीएआर और कृषि विभाग को मिलकर एक साथ काम करने के निर्देश दिए.

उन्होंने किसानों से कहा कि अगर आप के साथ किसी भी तरह का धोखा हो रहा है, तो टोल- फ्री नंबर पर जरूर अपनी शिकायत दर्ज करवाइएगा. आधिकारिक तौर पर टोल फ्री नंबर जारी किया जाएगा. किसान भाइयोंबहनों के साथ धोखाधड़ी बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाएगी. किसी ने भी अमानक उर्वरक या बीज बनाया तो सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने कहा कि 30 हजार बायोस्टिमुलेंट बेचे जा रहे थे. जिस के संबंध में सख्ती से कदम उठाया गया है. मैंने सारे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिख कर इस संबंध में उचित कार्रवाई के लिए भी कहा है. किसी भी किसान को गैर उपयोगी उत्पाद खरीदने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. जिस प्रकार से जन औषधि केंद्रों के रूप में सस्ती दवाइयों की दुकान हैं, वैसे ही सस्ते उर्वरकों के लिए भी केंद्र या दुकान खोलने पर विचार किया जा सकता है.

अंत में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वैज्ञानिकों से आह्वान करते हुए कहा कि आईसीएआर के स्थापना दिवस के इस अवसर पर किसान कल्याण के लिए समर्पित हो कर काम करने का संकल्प लें. मैं जानता हूं कि वैज्ञानिक आजीविका निर्वाह के लिए नौकरी नहीं करते, वैज्ञानिक का जीवन यज्ञ के समान है, जिस में सबकी सेवा का भाव निहित रहता है. मुझे विश्वास है कि आप अपनी क्षमता का पूरा उपयोग करते हुए विकसित भारत के निर्माण में अहम योगदान करेंगे. एक बार और पूरी आईसीएआर की टीम को बहुतबहुत बधाई.

Turmeric Processing : हलदी प्रसंस्करण : रोजगार का जरीया 

Turmeric Processing : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के सामुदायिक एवं व्यावहारिक विज्ञान महाविद्यालय द्वारा राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत संचालित परियोजना मेवाड़ क्षेत्र की परंपरागत फसलों के प्रसंस्करणों का उत्कृष्टता केंद्र के तहत चित्तौड़गढ़ में 2 दिवसीय कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम का सफल आयोजन किया गया. इस प्रशिक्षण का मुख्य विषय “हलदी प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन” था.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य प्रतिभागियों को हलदी आधारित उत्पादों की व्यावसायिक संभावनाओं से अवगत कराना और उन्हें स्वरोजगार की दिशा में प्रेरित करना था. परियोजना की प्रमुख अन्वेषक डा. कमला महाजनी ने बताया की हलदी की कृषि, औषधीय एवं पोषणीय है. उन्होंने आगे यह भी बताया कि हलदी न केवल रसोई की आवश्यकता है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण औषधि और आर्थिक रूप से लाभकारी फसल भी है.

डा. कमला महाजनी ने कहा कि महिलाओं के लिए हलदी एक सशक्त माध्यम हो सकता है जिस से वे अपने घर पर ही मसालों, अचार और अन्य उत्पादों का निर्माण कर एक सफल स्टार्टअप शुरू कर सकती हैं. इस के बाद योगिता पालीवाल द्वारा प्रायोगिक प्रशिक्षण का आयोजन किया गया जिस में प्रतिभागियों को हलदी से बने मूल्य संवर्धित उत्पादों जैसे हलदी का अचार, चटनी, गरम मसाला, सांभर मसाला इत्यादि की निर्माण विधियों की विस्तार से जानकारी दी गई.

इस प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और घरेलू स्तर पर व्यावसायिक दृष्टिकोण से इन उत्पादों के निर्माण की प्रक्रिया को सीखा. इस कार्यक्रम में डा. अंजली द्वारा उत्पादों की वैज्ञानिक पैकेजिंग, लेबलिंग और ब्रांडिंग के महत्व के बारे में भी बताया गया. उन्होंने बताया कि उचित पैकेजिंग उत्पाद की बाजार में पहचान, गुणवत्ता और बिक्री में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

यह प्रशिक्षण कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं और किसानों को रोजगार के नए अवसरों से जोड़ने की दिशा में एक मजबूत कदम है. इस प्रशिक्षण के समापन पर प्रतिभागियों ने इस तरह के कार्यक्रमों को नियमित रूप से आयोजित करने की मांग की और धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ. यह प्रशिक्षण कार्यक्रम न केवल मेवाड़ की पारंपरिक फसलों के संरक्षण में लाभकारी सिद्ध होगा, बल्कि महिला सशक्तीकरण और ग्रामीण उद्यमिता को भी एक नई दिशा प्रदान करेगा.

Soil : मृदा में जैविक पदार्थों की कमी से कृषि वैज्ञानिकों की बढ़ी चिंता 

Soil : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में मृदा विज्ञान विभाग द्वारा पिछले दिनों एक तकनीकी कार्यक्रम आयोजित किया गया. कुलपति प्रो. बीआर कंबोज के मार्गदर्शन में आयोजित इस कार्यक्रम में उपरोक्त विभागाध्यक्ष डा. दिनेश तोमर, मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. रमेश कुमार सहित विभाग के अधिकारी, विश्वविद्यालय के सभी विभागाध्यक्ष और मृदा विभाग के वैज्ञानिक उपस्थित रहे.

इस कार्यक्रम में अनुसंधान निदेशक डा राजबीर गर्ग ने कहा कि प्रयोगों की संख्या कम होने के साथसाथ उन की दक्षता बढ़नी चाहिए. सतत खेती के तरीके खोजने के लिए गिनती की बजाय रिसर्च की गुणवत्ता पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने वैज्ञानिकों से आह्वान करते हुए कहा कि वे ऐसे अनुसंधान कार्यों को पहले करें, जिस से किसानों के साथसाथ पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिल सके.

डा. राजबीर गर्ग ने कार्यशाला में सेवानिवृत अनुभवी वैज्ञानिकों की एक समिति गठित करनें का सुझाव भी दिया, ताकि भविष्य में वैज्ञानिक अपने अनुभव का इस्तेमाल करते हुए दीर्घकालिक प्रयोगों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें. जिस से आने वाली पीढ़ियों के लिए उन की अहमियत और वैज्ञानिक सटीकता बनी रहेगी. उन्होंने दीर्घकालिक उर्वरक प्रयोगों की गहराई से समीक्षा करने के साथसाथ उसे बेहतर तरीके से लागू करने पर भी जोर दिया.

उन्होंने आगे पोषक तत्व, सिंचाई एवं फसल अवशेष प्रबंधन के लिए टिकाऊ विकल्प खोजने व बढ़ती मृदा लवणता और खराब जल गुणवत्ता की समस्याओं का प्रभावी समाधान निकालने पर भी विशेष बल दिया. डा. राजबीर गर्ग ने फसलों में बहुपोषक तत्वों की कमी को पोषक तत्वों के उपयुक्त संयोजन से दूर करने और अन्य कृषि रसायनों के साथ इन की संगतता खोजने के लिए  बहुविषयी दृष्टिकोण अपनाने की भी सलाह दी.

उन्होंने कहा कि नए प्रयोगों में केवल गोबर की खाद तक सीमित न रहते हुए, प्रेसमड (गन्ने की मैली), प्रोम, फसल अवशेष जैसे जैविक खाद शामिल किए जाएं, ताकि कृषि में संसाधनों का अधिक टिकाऊ उपयोग सुनिश्चित हो सके.

अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने मृदा में जैविक पदार्थों की कमी जैसे पर्यावरण से जुड़ी एक बड़ी चिंता भी वैज्ञानिकों को ध्यान दिलाई. उन्होंने समस्या को समझने और हल करने के लिए खास अध्ययनों की जरूरत पर भी जोर दिया, जो मृदा स्वास्थ्य, उर्वरता और पैदावार को बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी है. सतत प्रथाओं को बढ़ावा देने के साथ उन्होंने फास्फोरस रिच औ और्गैनिक मैन्योर के महत्व को दोहराया. इस कार्यशाला के समापन अवसर पर विभागाध्यक्ष डा. दिनेश तोमर ने सभी अधिकारियों का धन्यवाद किया.

Biotechnology : जैव प्रौद्योगिकी पर 15 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम

Biotechnology : कालेज औफ एग्रीकल्चरल बायोटैक्नोलौजी, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर द्वारा 1 से 15 जुलाई, 2025 तक “हैंडस औन एक्सपोजर टू बेसिक टैक्निक्स औफ मौलिक्युलर एंड माइक्रोबियल बायोटैक्नोलौजी” विषय पर 15 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. यह प्रशिक्षण कार्यक्रम भागलपुर स्थित टीएनबी कालेज के बी.एससी बायोटैक्नोलौजी (औनर्स), के द्वितीय साल के 22 छात्रछात्राओं के लिए आयोजित किया गया था.

इस प्रशिक्षण का उद्देश्य छात्रों को जैव प्रौद्योगिकी के मूल तकनीकों जैसे मौलिक्युलर बायोटैक्नोलौजी, सूक्ष्मजीवों की संस्कृति और पीसीआर आधारित अनुप्रयोगों का व्यवहारिक ज्ञान देना था. इस प्रशिक्षण के दौरान बायोइनफौरमैटिक्स पर एक विशेष सत्र भी आयोजित किया गया, जिस में छात्रों ने नेशनल सैंटर फौर बायोटैक्नोलौजी इंफौर्मेशन और  डीएनए डाटा बैंक औफ जापान जैसे सार्वजनिक डाटाबेस का उपयोग कर बड़े जैविक डाटा का विश्लेषण सीखा. इस से उन्हें आधुनिक जैविक अनुसंधान के लिए आवश्यक कंप्यूटेशनल स्किल्स प्राप्त हुईं.

इस प्रशिक्षण में कई छात्रों के लिए यह उन की शिक्षा का पहला अवसर था जब उन्होंने मौलिक्युलर तकनीकों का सीधा अभ्यास किया. यह प्रशिक्षण न केवल उन की तकनीकी क्षमता को मजबूत करेगा, बल्कि उन्हें उच्च शिक्षा और जैव प्रौद्योगिकी में कैरियर की ओर प्रेरित भी करेगा.
इस कार्यक्रम का समापन समारोह 15 जुलाई, 2025 को कालेज परिसर में आयोजित किया गया, जिस में छात्रों ने अपने अनुभव साझा किए. समापन सत्र में डा. रवि केसरी, एसोसिएट प्रोफैसर, आणविक जीवविज्ञान और आनुवंशिक अभियांत्रिकी विभाग, ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की और सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरित किए.

यह प्रशिक्षण कार्यक्रम डा. रंजना कुमारी, सहायक प्राध्यापक सहकनिष्ठ वैज्ञानिक, कालेज औफ एग्रीकल्चरल बायोटैक्नोलौजी के समन्वय में आयोजित हुआ. व्यावहारिक सत्रों का संचालन कालेज औफ एग्रीकल्चरल बायोटैक्नोलौजी और आणविक जीवविज्ञान और आनुवंशिक अभियांत्रिकी विभाग विभाग के वैज्ञानिकों और शिक्षकों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया.

यह पहल स्नातक छात्रों के कौशल विकास और अकादमिक औद्योगिक सहभागिता को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

Mango Varieties : आईएआरआई द्वारा विकसित उन्नत आम किस्मों को बढ़ावा

Mango Varieties : पूसा आम प्रक्षेत्र दिवस 14 जुलाई, 2025 को आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के फल एवं बागबानी प्रौद्योगिकी प्रभाग के एमबी7 प्रक्षेत्र में आयोजित किया गया. इस प्रक्षेत्र दिवस में आम उद्योग से जुड़े किसानों, संकाय सदस्यों और छात्रों ने भाग लिया. यह कार्यक्रम आउटरीच कार्यक्रम के तहत आयोजित किया गया था जिस का उद्देश्य आईएआरआई द्वारा विकसित उन्नत आम संकरों को बढ़ावा देना था.

पांच राज्यों पश्चिम बंगाल, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के हितधारकों की भागीदारी के साथ, इस कार्यक्रम ने कृषि नवाचार और अत्याधुनिक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए आईएआरआई की प्रतिबद्धता पर जोर दिया.

इस कार्यक्रम का नेतृत्व करते हुए, आईसीएआरआईएआरआई के निदेशक और कुलपति डा. चौ श्रीनिवास राव ने उपस्थित लोगों को आम की खेती की तकनीकों में नवीनतम सुधारों के बारे में जानकारी प्रदान की. साथ ही, उन्होंने आईएआरआई की आम किस्मों के बारे में किसानों और लाइसैंसधारियों से आए फीडबैक पर विचार और उसे शामिल करने, विशेष रूप से पौधों की संख्या बढ़ाने और उपभोक्ता स्तर पर इन नई किस्मों की पहुंच बढ़ाने के लिए व्यावहारिक रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित किया, ताकि उत्पादकों को बेहतर मूल्य प्राप्त हो सके.

संयुक्त अनुसंधान निदेशक डा. विश्वनाथन चिन्नुसामी ने आम पर आउटरीच कार्यक्रम के समग्र लक्ष्यों के बारे में जानकारी प्रदान की. उन्होंने सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच तालमेल बना कर गुणवत्तापूर्ण आम रोपण सामग्री की उपलब्धता बढ़ाने के इस पहल के उद्देश्य के बारे में विस्तार से बताया. इन प्रयासों पर जोर देने का उद्देश्य आम की खेती के एक अधिक टिकाऊ और प्रतिस्पर्धी वातावरण को बढ़ावा देना है.
फल और बागबानी प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख डा. ओपी अवस्थी ने कार्यक्रम में आए सदस्यों और किसानों का स्वागत करते हुए विभाग की उपलब्धियों, विशेष रूप से आम की किस्मों के विकास, के बारे में जानकारी दी.

इस आउटरीच कार्यक्रम की आम परियोजना के प्रधान वैज्ञानिक और प्रधान अन्वेषक डा. जय प्रकाश ने उच्च घनत्व वाले रोपण के लिए उपयुक्त आईएआरआई के नवीन आम संकरों की किस्मों के प्रदर्शन और प्रमुख विशेषताओं के बारे में विस्तार से बताया.

Mango Varietiesउन्होंने भाग लेने वाले राज्यों के किसानों और लाइसैंसधारियों के अलगअलग समूहों के साथ आईएआरआई परिसर के छात्रों और संकाय सदस्यों का परिचय कराया, जिस से वहां मौजूद लोगों में सामुदायिक भावना और साझा उद्देश्य को बढ़ावा मिल सके.

इस कार्यक्रम ने आईएआरआई  की उल्लेखनीय आम किस्मों यानी आम्रपाली, मल्लिका, पूसा अरुणिमा, पूसा प्रतिभा, पूसा सूर्या, पूसा पीताम्बर और पूसा लालिमा को प्रदर्शित करने के लिए एक बेहतरीन मंच के रूप में काम किया. किसानों की ओर से उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली और कई लोगों ने उपज और अपना लाभ बढ़ाने के साधन के रूप में इन किस्मों को अपने बागों में अपनाने की उत्सुकता दिखाई.

इस पहल का उद्देश्य न केवल उपभोक्ताओं तक अच्छी गुणवत्ता वाले फलों की पहुंच बढ़ाना है, बल्कि सप्लाई चैन में सुधार हेतु प्रगतिशील दृष्टिकोण को भी दर्शाता है. राष्ट्रीय बागबानी बोर्ड और कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) के साथ सहयोगात्मक प्रयासों से निर्यात के अवसरों को बढ़ावा मिलने से आम की खेती में सतत विकास को समर्थन मिलने की उम्मीद है.

इस कार्यक्रम के दौरान शैक्षिक सामग्री और मल्टीमीडिया विज्ञापन ने मिल कर   यह पक्का किया कि मुख्य संदेश बड़े स्तर पर दर्शकों तक पहुंचे. गतिशील बाजार रुझानों और उपभोक्ता वरीयताओं के प्रति आईएआरआई की स्वीकृति, कृषि के विकसित होते परिदृश्य और आधुनिक खानपान संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए कस्टम-टैलिंग रणनीतियां इस में हुए सुधार को दिखलाती है.

फील्ड डे यानी प्रक्षेत्र दिवस केवल आम की किस्मों की एक प्रदर्शनी नहीं थी, बल्कि एक प्रतिस्पर्धी कृषि वातावरण की चुनौतियों के बीच फलनेफूलने के लिए तैयार जानकार और अनुकूलनशील किसानों को विकसित करने का एक ठोस प्रयास था.

डा. चौ. श्रीनिवास राव ने आईएआरआई द्वारा विकसित नए आम संकरों को अपनाने वाले किसानों के अनुभवों को उजागर करने वाली सफलता की कहानियों के विकास और व्यापक पहुंच के लिए विभिन्न डिजिटल प्लेटफार्मों का लाभ उठाने का सुझाव दिया. इस के अलावा  जून, 2026 में होने वाले राष्ट्रीय आम दिवस कार्यक्रम के आयोजन का भी सुझाव दिया.

Golden Mushroom : राजस्थान में मिली गोल्डन ओएस्टर मशरूम 

Golden Mushroom : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के अधीन मशरूम अनुसंधान निदेशालय चंबाघाट सोलन, हिमाचल प्रदेश में स्थित है. इस संसथान के मशरूम अनुसंधान के अंतर्गत भारत के विभिन जलवायु क्षेत्रों के जंगलो, वन्य जीव अभ्यारणों एवं मरुस्थलों से खादय एवं औषधीय मशरूम के जर्मप्लास्म के संग्रहण एवं संरक्षण के अंतर्गत महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविधालय उदयपुर में संचालित अखिल भारतीय समन्वित मशरूम अनुसंधान परियोजना के दल ने राजस्थान के विभिन जंगलो, वन्य जीव अभ्यारणों एवं मरुस्थलों का जून से जुलाई, 2025 में गहन सर्वेक्षण किया.

जहां उन्हें उदयपुर जिले के केसरियाजी तहसील के सागवाड़ा पाल के जंगल में ढींगरी मशरूम की एक नई प्रजाति गोल्डन ओएस्टर मिली है. जिस का वैज्ञानिक नाम प्लूरोटस सिट्रिनोपिलेटस है. जो खादय एवं औषधीय गुन से भरपूर है. अखिल भारतीय समन्वित मशरूम अनुसंधान परियोजना के मुख्य वैज्ञानिक प्रोफैसर नारायण लाल मीना ने बताया कि इस प्रकार की गोल्डन ओएस्टर प्रजाति राजस्थान में प्रथम बार रिपोर्ट हुई है.

इस मशरूम का रंग सोने के रंग जैसा होता है. इस मशरूम के कैप का परिमाप 18×12 सैंटीमीटर, कौनकेट टाइप, तने का परिमाप 9×1.7 सैंटीमीटर और एक फ्रैश मशरूम के गुच्छे का वजन 300 ग्राम दर्ज किया गया है. यह पोषणीय एवं औषधीय गुणों के कारण अधिक महत्त्वपूर्ण है. इस मशरूम में प्रोटीन 31.7 फीसदी, रेशा तकरीबन 25.7 फीसदी और इस में सैल्यूलोस, हैमिसेलुलोसे और स्टार्च की अच्छी मात्रा होती है. इस में वसा की काम मात्रा 1 फीसदी व लिग्निन भी पाया जाता है.

इस के अलावा इस में सूक्षम पोषक तत्व, विभिन बायोएक्टिव योगिक जैसे पौलिसैक्राइड, एमिनोएसिड और अन्य लाभकारी पोषक तत्त्वों का भी अच्छा स्रोत है. एमिनोएसिड में ग्लुटामिन, एस्पार्टिक एसिड, विटामिंस में विटामिन डी (अर्गोस्टेरौल) पोटाशियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम एवं एंटीऔक्सिडेंटस में फिनौल, फ्लेवेनौयडस जो कि कोशिका को नष्ट होने से बचाता है. वसा अम्लों में असंतृप्तत वसा अमल विशेष रूप से पामिटिक, ओलिक और लिनोलिक एसिड का भी अच्छा स्त्रोत है.

गोल्डन ओएस्टर प्रजाति एक स्वस्थ आहार एवं औषधीय उपयोग के लिए एक मूलयवान खाद्य मशरूम है. वर्तमान में इस मशरूम पर गहन अध्ययन के लिए अनुसंधान शुरू हो चूका है.

Machinery : ऐसी मशीनरी विकसित हो जिस से कृषि लागत हो कम  

Machinery: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के फार्म मशीनरी व पावर इंजीनियरिंग विभाग द्वारा संचालित तकनीकी कार्यक्रम की वर्ष 2024-25 की समीक्षा और वर्ष 2025-26 की रूपरेखा तैयार करने के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई. इस बैठक में कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की जबकि अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अपने संबोधन में कहा कि वैज्ञानिकों को ऐसे मशीनरी/उपकरण विकसित करने चाहिए जिस से किसानों की कृषि लागत को कम किया जा सके. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय का अनुसंधान तंत्र किसानों की आवश्यकताओं के अनुरूप कार्य कर रहा है, ताकि प्रदेश व देश की कृषि समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया जा सके. साथ ही, आधुनिक तकनीकों के माध्यम से नवीनतम टैक्नोलौजी पर आधारित कृषि उपकरण की तैयारी पर जोर दिया, ताकि खेतीबारी के कार्यों को आसान बनाया जा सके.

उन्होंने आगे कृषि उत्पादन बढ़ाने और लागत कम करने पर भी जोर दिया. कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना, कृषि दक्षता में सुधार करना और मशीनरी एवं विद्युत संसाधनों का जिम्मेदारी से उपयोग सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है.

अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने क्षेत्रीय कृषि समस्याओं, अनुसंधान प्रयासों, तकनीकी नवाचारों और किसानों की आवश्यकताओं पर केंद्रित समाधानों पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक ऐसी तकनीकों का विकास करें जो स्थानीय किसानों की आवश्यकताओं को स्टीक रूप से पूरा कर सके. साथ ही, विकसित की गई तकनीक का मैदानी स्तर पर प्रभावी प्रदर्शन किया जाना चाहिए, ताकि उन की प्रायोगिक उपयोगिता प्रमाणित हो सके. उन्होंने आगे लघु व सीमांत किसानों की आवश्यकताओं को मद्देनजर रखते हुए इंटर कल्चर औपरेशन के लिए बैटरी चालित, बहुउपयोगी छोटे कृषि यंत्रों के विकास पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता जताई.

डा. राजबीर गर्ग ने फसल अवशेष प्रबंधन को ले कर पराली जलाने की समस्या को दूर करने के लिए यांत्रिक समाधानों जैसे हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम आदि के प्रभाव उन की उपयोगिता के संदर्भ में किसानों को जागरूकता किया.

इस बैठक के दौरान वैज्ञानिकों द्वारा वर्ष 2024-2025 में किए गए अनुसंधान कार्यों की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई. इस कार्यक्रम के समापन अवसर पर कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद किया. इस अवसर पर सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी, विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, अनुभाग प्रमुख और संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ उपस्थित रहे.

Cotton : मिशन कॉटन की ओर बढ़ते कदम

Cotton : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में पिछले दिनों तमिलनाडु, कोयंबटूर के आईसीएआर गन्ना प्रजनन संस्थान में कपास उत्पादकता बढ़ाने को ले कर अहम बैठक का आयोजन हुआ.

इस बैठक में भारत में कपास का इतिहास, परिदृश्य, चुनौतियां, उत्पादकता बढ़ाने के लिए आगामी रणनीतियों पर गहन विचारविमर्श हुआ. इस अवसर पर केंद्रीय कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह, हरियाणा के कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा, महाराष्ट्र के कृषि मंत्री माणिकराव कोकाटे, विभिन्न राज्यों के कृषि विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर, आईसीएआर के महानिदेशक एमएल जाट, अधिकारीगण, हितधारक, वैज्ञानिक और किसान उपस्थित रहे.

इस बैठक से पहले केंद्रीय कृषि मंत्री ने खेतों में जा कर कपास उत्पादक किसानों से बातचीत की और हितधारकों से परामर्श करते हुए उन की समस्याओं एवं चुनौतियों के बारे में भी जाना. इस के बाद बैठक की शुरुआत हुई. जहां केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि तमिलनाडु, भारत का अत्यंत प्राचीन और महान प्रदेश है. तमिलनाडु की इस धरती से अब कपास की क्रांति की शुरुआत होने जा रही है. इस बैठक का विचारमंथन मात्र औपचारिकता नहीं है.

उन्होंने आगे कहा कि जिंदगी में रोटी के बाद सब से बड़ी जरूरत कपड़ा है. जैसे रोटी के बिना नहीं रहा जा सकता, वैसे ही कपड़े के बिना भी रहना असंभव है. कपड़ा बनता है कपास से और कपास पैदा करते हैं किसान. कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और किसान उस की आत्मा है. कपास उत्पादन में कुछ समस्याएं सामने आ रही हैं. दूसरे देशों के मुकाबले देश में उत्पादन कम हो रहा है. कपास उत्पादन के लिए विकसित बीटी कॉटन किस्म में वायरस अटैक के कारण कई तरह की समस्या पैदा हो गई हैं, जिस कारण उत्पादन बढ़ने की बजाय घट रहा है. जिस के लिए हमें काम करना होगा.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि दुनिया के बाकी देशों के समान भारत में भी कपास उत्पादन बढ़ाने को ले कर हरसंभव कदम उठाने होंगे. आधुनिकतम प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर अपने लक्ष्यों को साथ ले कर हमें आगे बढ़ना होगा. वायरस प्रतिरोधी उन्नत बीज बनाने होंगे. एक तय समय सीमा में किसानों तक इन उन्नत किस्म के बीज की पहुंच भी करनी होगी. साथ ही, उन्होंने कहा कि कई बार उन्नत किस्म के बीज तैयार कर लिए जाते हैं, लेकिन उचित समय पर किसानों तक नहीं पहुंच पाते. इस काम की पूर्ति के लिए वैज्ञानिकों को पूरी ताकत से काम करना होगा.

उन्होंने कहा कि अलगअलग राज्यों से आए किसानों की समस्याओं और मांगों को सुन कर उसी के आधार पर आगे की रणनीति तय की जाएगी. कपड़ा बनाने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले कपास की जरूरत है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें प्रतिबद्धता से काम करना है. विकसित भारत में कपास बाहर से क्यों मंगवाना पड़े. अपने देश की जरूरत के अनुसार अच्छी गुणवत्ता वाला कपास पैदा करने की चुनौती और लक्ष्य हमारे सामने है, जिस के लिए हम सब एकजुट होकर प्रयास करेंगे.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि वर्तमान में कपड़ा उद्योग जगत द्वारा विदेशों से कपास आयात के लिए आयात शुल्क खत्म करने की मांग की जाती है. किसान अपनी बात रखते हुए कहते हैं कि अगर बाहर से कपास सस्ता आएगा तो देश में हमारे कपास की कीमत भी कम हो जाएगी. इसलिए हमें किसान और उद्योग जगत दोनों का ध्यान रखना है.

उन्होंने कहा कि उद्योग जगत को जिस प्रकार के लंबे स्टेपल गुणवत्तापूर्ण कॉटन की जरूरत है, हमारी कोशिश होगी कि उसी स्तर के कॉटन का उत्पादन हो सके. उन्होंने कहा कि इस के लिए टीम कॉटन का गठन किया जाएगा जिस में कपड़ा मंत्रालय, कृषि मंत्रालय और आईसीएआर (जो कृषि मंत्रालय के अधीन है), केंद्र सरकार और राज्य सरकार के प्रतिनिधि, कृषि विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर, प्रगतिशील किसान शामिल होंगे. साथ ही साथ कॉटन इंडस्ट्री से जुड़े लोग, बीज/सीड इंडस्ट्री से जुड़े लोग, मशीनीकरण (मैकेनाइजेशन) के काम में लगे लोग चाहे वो मैकेनाइजेशन आईसीएआर का डिवीजन हो या प्राइवेट सेक्टर में लोग काम कर रहे हों, सभी मिल कर एक दिशा में काम करेंगे और जो लक्ष्य तय किया है, उस लक्ष्य को हम 2030 से पहले ही प्राप्त करेंगे. मिशन कॉटन को सफल बनाने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएंगे.