सरकार ने बढ़ाई खरीद सीमा, किसानों को होगा जम कर मुनाफा

बाजार हस्तक्षेप योजना (एमआईएस) पीएम आशा योजना का ही एक घटक है. बाजार हस्तक्षेप योजना (एमआईएस) को राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकार के अनुरोध पर अलगअलग तरह की जल्दी खराब होने वाली कृषि/बागबानी वस्तुओं जैसे टमाटर, प्याज और आलू आदि की खरीद के लिए लागू किया जाता है, जिन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागू नहीं होता है.

जब राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में पिछले सामान्य मौसम की दरों की तुलना में बाजार में कीमतों में कम से कम 10 फीसदी  की कमी होती है, ऐसी स्थिति में किसानों को अपनी उपज को मजबूरी में कम दाम पर बेचने के लिए मजबूर न होना पड़े, इसलिए बाजार हस्तक्षेप योजना लागू की जाती है, ताकि किसानों को उन की उपज का सही दाम मिले और वह घाटे में न रहे.

बाजार हस्तक्षेप योजना के कार्यान्वयन के लिए अधिक राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए, सरकार ने बाजार हस्तक्षेप योजना के दिशानिर्देशों के निम्नलिखित प्रावधानों में बदलाव किया है:

– बाजार हस्तक्षेप योजना को पीएम आशा की व्यापक योजना का एक घटक बनाया.

– पिछले सामान्य वर्ष की तुलना में प्रचलित बाजार मूल्य में न्यूनतम 10 फीसदी की कमी होने पर ही बाजार हस्तक्षेप योजना लागू की जाएगी.

– फसलों की उत्पादन मात्रा की खरीद/कवरेज सीमा को मौजूदा 20 फीसदी से बढ़ा कर 25 फीसदी कर दिया गया है.

– राज्य के पास भौतिक खरीद के स्थान पर सीधे किसानों के बैंक खाते में बाजार हस्तक्षेप मूल्य और बिक्री मूल्य के बीच के अंतर के भुगतान करने का विकल्प भी दिया गया है.

–  इस के अलावा जहां उत्पादन और उपभोक्ता राज्यों के बीच टौप फसलों (टमाटर, प्याज और आलू) की कीमत में अंतर है, वहां किसानों के हित में नाफेड ( NAFED) और एनसीसीएफ (NCCF) जैसी केंद्रीय नोडल एजंसियों द्वारा उत्पादक राज्य से अन्य उपभोक्ता राज्यों तक फसलों के भंडारण और परिवहन में होने वाली सभी परिचालन लागत की भरपाई की जाएगी. मध्य प्रदेश से दिल्ली तक 1,000 मीट्रिक टन तक खरीफ टमाटर के परिवहन के लिए परिवहन लागत की भरपाई के लिए एनसीसीएफ (NCCF)  को मंजूरी दे दी गई है.

बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत शीर्ष फसलों की खरीद करने और कार्यान्वयन करने वाले राज्य के साथ समन्वय में उत्पादक राज्य और उपभोक्ता राज्य के बीच मूल्य अंतर की स्थिति में उत्पादक राज्य से उपभोक्ता राज्य तक भंडारण और परिवहन की व्यवस्था करने के लिए, NAFED और NCCF के अलावा किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ), किसान उत्पादक कंपनियों (एफपीसी), राज्य द्वारा नामित एजेंसियों और अन्य केंद्रीय नोडल एजेंसियों को शामिल करने का प्रस्ताव किया जा रहा है.

दलहन (Pulses) की सौ फीसदी खरीदी करेगी सरकार

भारत सरकार ने 15वें वित्त आयोग के तहत 2025-26 तक एकीकृत प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम आशा) योजना को जारी रखने की मंजूरी दी है. इस योजना में मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस), मूल्य कमी भुगतान योजना (पीडीपीएस), बाजार हस्तक्षेप योजना (एमआईएस) और मूल्य स्थिरीकरण निधि (पीएसएफ) जैसे कई घटक शामिल हैं.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि पीएम आशा योजना का उद्देश्य किसानों को उन की उपज के लिए लाभकारी मूल्य देने के साथसाथ उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना है.

उन्होंने साल 2024-25 के खरीफ सीजन के लिए छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और तेलंगाना में सोयाबीन की खरीद को भी मंजूरी दे दी है. 9 फरवरी, 2025 तक 19.99 लाख मिलियन टन सोयाबीन की खरीद की गई है, जिस से 8,46,251 किसान लाभान्वित हुए हैं.

उन्होंने किसानों को फायदा पहुंचाने के लिए महाराष्ट्र में खरीद की 90 दिनों की सामान्य अवधि को 24 दिनों के लिए और तेलंगाना में 15 दिनों के लिए और अधिक बढ़ा दिया है, ताकि किसानों को अधिक समय मिले.

इसी तरह सरकार ने खरीफ 2024-25 के लिए आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में मूल्य समर्थन योजना के तहत मूंगफली की खरीद को मंजूरी दी है. इस के अलावा कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य के किसानों के लिए गुजरात में मूंगफली की 90 दिनों की सामान्य खरीद अवधि को 6 दिन और कर्नाटक में 25 दिन के लिए और बढ़ा दिया है.

इस के साथ ही केंद्र सरकार ने दालों के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने में योगदान देने वाले किसानों को प्रोत्साहित करने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए खरीद साल 2024-25 के लिए राज्य के उत्पादन के सौ फीसदी के बराबर पीएसएस के तहत तुअर, उड़द और मसूर की खरीद की अनुमति दे दी है.

सरकार ने बजट 2025 में यह भी घोषणा की है कि देश में दालों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए केंद्रीय नोडल एजेंसियों के माध्यम से राज्य के उत्पादन के सौ फीसदी  तक तुअर, उड़द और मसूर की खरीद अगले 4 सालों तक जारी रहेगी, जिस से दालों के घरेलू उत्पादन में वृद्धि होगी, आयात पर निर्भरता कम होगी और भारत दालों में आत्मनिर्भर बनेगा.

किसान कृषि विज्ञान केंद्रों का लाभ लें, कृषि उत्पादों के व्यापार से जुड़ें

पिछले दिनों उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने चित्तौरगढ़ में अखिल मेवाड़ क्षेत्र जाट महासभा को संबोधित करते हुए कहा कि किसान दाता है और उसे किसी की मदद का मोहताज नहीं होना चाहिए.

उन्होंने आगे कहा कि किसान की आर्थिक व्यवस्था में जब उत्थान आता है, तो देश की व्यवस्था में उद्धार आता है. बाकी किसान दाता है, किसान को किसी की ओर नहीं देखना चाहिए,  क्योंकि किसान के सबल हाथों में राजनीतिक ताकत है, आर्थिक योग्यता है.

उन्होंने जोर दे कर कहा कि कुछ भी हो जाए, कितनी ही बाधाएं आएं, कोई भी रोड़ा बने, आज के दिन विकसित भारत की महायात्रा में किसान की भूमिका को कोई हताश नहीं कर सकता.

25 साल पहले हुए जाट आरक्षण आंदोलन के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि यहां मैं 25 साल बाद आया हूं. 25 साल पहले इसी जगह पर सामाजिक न्याय की लड़ाई की शुरुआत की थी, जाट और कुछ जातियों को आरक्षण मिले. यह शुरुआत 1999 की थी, समाज के प्रमुख लोग उपस्थित थे, मैं भी उन में से एक था. हम ने इस पवित्र भूमि, देवनगरी, मेवाड़ के हरिद्वार में संरचना की, कार्यसिद्धि मिली और आज उस के नतीजे देश और राज्य की प्रशासनिक सेवाओं में मिल रहे हैं.

उन्होंने कहा कि उसी आधार पर, उसी सामाजिक न्याय पर, उसी आरक्षण पर जिन को लाभ मिला है, आज वे सरकार में प्रमुख पदों पर हैं. उन से मेरा आग्रह है कि पीछे मुड़ कर जरूर देखें और कभी नहीं भूलें कि इस समाज के सहयोग की वजह से हमें सामाजिक न्याय मिला. जब भी कोई आंदोलन होता है, खासतौर से आरक्षण से जुड़ा हुआ, तो लोग आतंकित हो जाते हैं, हिंसक हो जाते हैं और कई दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते हैं. लेकिन इस पावन भूमि पर मेरा सिर गौरव से ऊंचा है, छाती चौड़ी है कि हमारा आंदोलन सामाजिक न्याय का दुनिया के लिए सब से बड़ी मिसाल है. कहीं कोई अव्यवस्था नहीं हुई, कहीं कोई हिंसा नहीं हुई.

किसानों से कृषि विज्ञान केंद्रों का लाभ लेने का आग्रह करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने   कहा कि किसान को मदद करने के लिए 730 से ज्यादा कृषि विज्ञान केंद्र हैं. उन को अकेला मत छोड़िए, वहां पर जाइए और उन से कहिए कि आप हमारी क्या सेवा करेंगे? नई तकनीकों की जानकारी लीजिए, सरकारी नीतियों की जानकारी लीजिए. तब आप को पता लगेगा कि सरकार ने आप के लिए खजाना खोल रखा है, जिस की जानकारी आप को नहीं है. सहकारिता क्या कर सकती है, आप को जानकारी नहीं है.

उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि अगर महीने में 1-2 बार भी आप जाएंगे, एक तो जो लोग काम कर रहे हैं, उन की नींद खुलेगी, वे सक्रिय होंगे, उन को पता लगेगा कि अन्नदाता जाग गया है, अन्नदाता की सेवा करनी पड़ेगी, अन्नदाता हमारा लेखाजोखा ले रहा है और जब आप लेखाजोखा लेंगे, तो गुणात्मक सुधार आएगा.

किसानों से कृषि उत्पादों के व्यापार और मूल्य संवर्धन में अपनी भागीदारी बढ़ाने पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि किसान अपने उत्पाद की मूल्य वृद्धि क्यों नहीं कर रहा? अनेक व्यापार किसान के उत्पाद पर चालू हैं. आटा मिल, तेल मिल, अनगिनत हैं. हम सब को मिल कर करना चाहिए. किसान को पशुधन की ओर ध्यान देना चाहिए.

खुशी होती है कि जब डेयरी बढ़ती है, लेकिन इस में और ज्यादा उछाल आना चाहिए. हमें दूध तक नहीं सिमटा रहना है, दही, छाछ तक ही नहीं रहना है, बल्कि जितने उत्पाद दूध के बन सकते हैं, पनीर हो, चाहे आइसक्रीम हो या रसगुल्ला हो, किसान का योगदान उन सब में होना चाहिए.

युवाओं को कृषि व्यापार से जुड़ने पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि मेरा आग्रह किसान से है, किसान के बेटेबेटी से है. दुनिया का सब से बड़ा व्यापार, बेशकीमती व्यापार कृषि उत्पादन का है. किसान अपने उत्पाद के व्यापार से क्यों नहीं जुड़ा हुआ है? किसान उस में क्यों नहीं भागीदारी ले रहा है? हमारे नौजवान प्रतिभाशाली हैं. ज्यादा से ज्यादा किसानों को सहकारिता का फायदा लेते हुए, अन्य व्यवसायों में, कृषि उत्पादन के व्यवसायों में अपनेआप को लगन से काम करते रहना चाहिए. आप लिख कर ले लीजिए कि इस के दूरगामी आर्थिक सकारात्मक नतीजे होंगे.

ई-नाम प्लेटफार्म पर 10 नई वस्तुओं को जोड़ा, संख्या 231 तक पहुंची

किसानों, व्यापारियों और अन्य हितधारकों की ओर से अधिक कृषि वस्तुओं को शामिल करने की निरंतर मांग को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने ई-नाम के तहत व्यापार के दायरे को और बढ़ाने का फैसला किया है.

इस पहल का उद्देश्य कृषि वस्तुओं की कवरेज को बढ़ाना और किसानों व व्यापारियों को डिजिटल ट्रेडिंग प्लेटफार्म से लाभ उठाने के लिए अधिक अवसर प्रदान करना है, विपणन एवं निरीक्षण निदेशालय (डीएमआई) ने 10 अतिरिक्त कृषि वस्तुओं के लिए व्यापार योग्य मापदंड तैयार किए हैं.

ये नए वस्तु मापदंड राज्य की एजेंसियों, व्यापारियों, विषय विशेषज्ञों और एसएफएसी सहित प्रमुख हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श और केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान से अनुमोदन के परिणामस्वरूप है.

डीएमआई को ई-नाम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) प्लेटफार्म पर व्यापार की जाने वाली कृषि वस्तुओं के लिए व्यापार योग्य मापदंडों को तैयार करने का काम सौंपा गया है. ये व्यापार योग्य मापदंड किसानों को कृषि उत्पादों की गुणवत्ता और व्यावसायिकता सुनिश्चित कर के उन की उपज के लिए बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद करने के लिए डिजाइन किए गए हैं. यह पहल पारदर्शिता बढ़ाती है, निष्पक्ष व्यापार कार्यप्रणालियों को सुविधाजनक बनाती है और कृषि क्षेत्र के समग्र विकास में योगदान देती है.

डीएमआई ने 221 कृषि वस्तुओं के लिए व्यापार योग्य मापदंड तैयार किए हैं, जो ई-नाम प्लेटफार्म पर उपलब्ध हैं और 10 अतिरिक्त वस्तुओं को शामिल करने से सूची में 231 वस्तुएं शामिल हो जाएंगी.

विविध वस्तुएं :

      1. तुलसी के सूखे पत्ते
      2. बेसन(चने का आटा)
      3. गेहूं का आटा
      4. चना सत्तू(भुने हुए चने का आटा)
      5. सिंघाड़े का आटा

मसाले :

      1. हींग
      2. सूखे मेथी के पत्ते

सब्जियां :

      1. सिंघाड़ा
      2. बेबीकौर्न

फल :

      1. ड्रैगन फ्रूट

नंबर 4 से 7 तक की वस्तुएं द्वितीयक व्यापार की श्रेणी में आती हैं और इस से एफपीओ को मूल्यवर्धित उत्पादों के विपणन के साथसाथ इस क्षेत्र में व्यापार को औपचारिक बनाने में मदद मिल सकती है.

ये नए स्वीकृत व्यापार योग्य मापदंड ई-नाम पोर्टल (enam.gov.in) पर उपलब्ध होंगे, जिस से कृषि वस्तुओं के डिजिटल व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए प्लेटफार्म की क्षमता और मजबूत होगी. यह कदम किसानों को बेहतर बाजार पहुंच, बेहतर मूल्य निर्धारण और बेहतर गुणवत्ता आश्वासन प्रदान करेगा, जिस से उन के आर्थिक कल्याण को बढ़ावा मिलेगा. इन अतिरिक्त व्यापार योग्य मापदंडों को तैयार किया जाना कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाने, अधिक समावेशिता, दक्षता और बाजार पारदर्शिता सुनिश्चित करने के सरकार के जारी प्रयासों के अनुरूप है.

बागबानी फसलों (Horticulture Crops) में बढ़ रहा रिकौर्ड उत्पादन

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बागबानी फसलों के इन आंकड़ों को मंजूरी देने के साथ ही इन्हें जारी करते हुए बताया कि केंद्र सरकार द्वारा खेतीकिसानी के विकास के लिए निरंतर काम किया जा रहा है और कृषि मंत्रालय द्वारा अनेक योजनाओं के माध्यम से किसानों को निरंतर बढ़ावा दिया जा रहा है, जिस के फलस्वरूप बागबानी उत्पादन भी रिकौर्ड स्तर पर बढ़ रहा है.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने विभिन्न बागबानी फसलों के क्षेत्र और उत्पादन के 2023-24 के अंतिम अनुमान और 2024-25 के प्रथम अग्रिम अनुमान जारी कर दिए हैं. वर्ष 2023-24 में देश में बागबानी उत्पादन 354.74 मिलियन टन एवं बागबानी क्षेत्र 29.09 मिलियन हेक्टेयर होने का अनुमान है. वर्ष 2022-23 की तुलना में 2023-24 में 2.28 फीसदी (0.65 मिलियन हेक्टेयर) क्षेत्र में वृद्धि देखी गई है.

इसी प्रकार देश में वर्ष 2024-25 (प्रथम अग्रिम अनुमान) में बागबानी उत्पादन लगभग 362.09 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो कि वर्ष 2023-24 (अंतिम अनुमान) की तुलना में लगभग 73.42 लाख टन (2.07 फीसदी) अधिक है.

2023-24 (अंतिम अनुमानके मुख्य बिंदु :

  • वर्ष2023-24 में देश में बागबानी उत्पादन 354.74 मिलियन टन एवं बागबानी क्षेत्र 29.09 मिलियन हेक्टेयर होने का अनुमान है. वर्ष 2022-23 की तुलना में 2023-24 में 2.28 फीसदी या 0.65 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में वृद्धि देखी गई है.
  • वर्ष2023-24 में फलों, सुगंधित एवं औषधीय पौधों, शहद, फूलों, बागान फसलों और मसालों के उत्पादन में वर्ष 2022-23 से वृद्धि देखी गई है.
  • वर्ष2023-24 में फलों का उत्पादन 1129.78 लाख टन रहने का अनुमान है, जिस का मुख्य कारण आम, केला, शरीफा, अंगूर और कटहल के उत्पादन में वृद्धि होना है.
  • सब्जियोंका उत्पादन 2072.08 लाख टन होने का अनुमान है. टमाटर, लौकी, गोभी, गाजर, टैपिओका, करेला और  खीरे के उत्पादन में वृद्धि देखी गई है.
  • साल 2023-24 में प्याज का उत्पादन 242.67 लाख टनहोने का अनुमान है, जबकि पिछले साल यह 302.08 लाख टन था.
  • टमाटरका उत्पादन 2022-23 की तुलना में 2023-24 में 4.40 फीसदी बढ़ कर 213.23 लाख टन होने का अनुमान है.
  • सुगंधितएवं औषधीय पौधों के उत्पादन में लगभग 19.44 फीसदी अर्थात 2022-23 में 6.08 लाख टन से बढ़ कर 2023-24 में 7.26 लाख टन तक की वृद्धि देखी गई है.
  • देशमें फूलों का उत्पादन साल 2022-23 में 30.97 लाख टन से बढ़ कर 2023-24 में 35.35 लाख टन होने का अनुमान है.
  • वर्ष2023-24 में बागान फसलों  का उत्पादन 176.66 लाख टन होने का अनुमान है, जो कि वर्ष 2022-23 में 170.49 लाख टन से अधिक है.
  • साल 2023-24 मेंमसालों का कुल उत्पादन लगभग 124.84 लाख टन होने का अनुमान है. जीरा, सौंफ, अदरक और लाल मिर्च (सूखी) के उत्पादन में वृद्धि देखी गई है.

2024-25 (प्रथम अग्रिम अनुमान) के मुख्य बिंदु :

  • देशमें वर्ष 2024-25 (प्रथम अग्रिम अनुमान) में बागबानी उत्पादन लगभग 362.09 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो कि वर्ष 2023-24 (अंतिम अनुमान) की तुलना में लगभग 73.42 लाख टन (2.07 फीसदी) अधिक है.
  • फलों, सब्जियों, फूलोंऔर बागान फसलों के उत्पादन में वृद्धि की परिकल्पना की गई है.
  • वर्ष2024- 25 में फलों का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में 2.48 लाख टन बढ़ कर 1132.26 लाख टन तक पहुंचने की उम्मीद है, जिस का मुख्य कारण आम, अंगूर और केले के उत्पादन में वृद्धि होना है.
  • सब्जियोंका उत्पादन वर्ष 2023-24 के 2072.08 लाख टन से बढ़ कर 2024-25 में 2145.63 लाख टन होने की उम्मीद है. प्याज, आलू, टमाटर, हरी मिर्च, फूलगोभी और मटर में वृद्धि की उम्मीद है.
  • वर्ष2024-25 में प्याज का उत्पादन पिछले वर्ष लगभग  242.67 लाख टन की तुलना में लगभग  288.77 लाख टन होने की उम्मीद है, जो कि 46.10 लाख टन अधिक है.
  • आलूउत्पादन 595.72 लाख टन तक पहुंचने की उम्मीद है, जो गत वर्ष की तुलना में 25.19 लाख टन अधिक है.
  • टमाटरका उत्पादन पिछले वर्ष के लगभग  213.23 लाख टन की तुलना में लगभग 215.49 लाख टन होने की उम्मीद है, जो 1.06 फीसदी अधिक है.
  • बागानफसलों का उत्पादन 179.37 लाख टन होने का अनुमान है, जो 2023-24 में 176.66 लाख टन (लगभग 1.53 फीसदी) से अधिक है.
  • मसालोंका उत्पादन 119.96 लाख टन होने का अनुमान है. लहसुन व हलदी के उत्पादन में वृद्धि देखी गई है.

जैविक खेती (Organic Farming) को बढ़ावा, मिलती है माली मदद

सरकार सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़ कर) में परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है. पूर्वोत्तर राज्यों के लिए सरकार पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए मिशन और्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (एमओवीसीडीएनईआर) योजना लागू कर रही है. दोनों योजनाएं जैविक खेती में लगे किसानों को उत्पादन से ले कर प्रसंस्करण यानी प्रोसैसिंग, प्रमाणीकरण और विपणन और कटाई के बाद प्रबंधन प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण तक एंड-टू-एंड समर्थन पर जोर देती है.

पीकेवीवाई के अंतर्गत जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए 3 साल की अवधि के लिए प्रति हेक्टेयर 31,500 रुपए की सहायता प्रदान की जाती है. इस में से जैविक खेती अपनाने वाले किसानों को औन-फार्म/औफ-फार्म जैविक इनपुट के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से 3 साल की अवधि के लिए 15,000 रुपए प्रति हेक्टेयर की सहायता प्रदान की जाती है.

जैविक उत्पादों की गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए 2 प्रकार की जैविक प्रमाणन प्रणालियां विकसित की गई हैं, जो नीचे दी गई हैं:

  • निर्यात बाजार के विकास के लिए वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (एनपीओपी) योजना के अंतर्गत मान्यताप्राप्त प्रमाणन एजेंसी द्वारा तृतीय पक्ष प्रमाणन. एनपीओपी प्रमाणन योजना के अंतर्गत जैविक उत्पादों के लिए उत्पादन, प्रसंस्करण, व्यापार और निर्यात आवश्यकताओं जैसे सभी चरणों में उत्पादन और संचालन गतिविधियों को कवर किया जाता है.
  • कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत भागीदारी गारंटी प्रणाली (पीजीएस-इंडिया) जिस में हितधारक (किसान/उत्पादक सहित) एकदूसरे के उत्पादन प्रथाओं का आकलन, निरीक्षण और सत्यापन कर के और सामूहिक रूप से उत्पाद को जैविक घोषित कर के पीजीएस-इंडिया प्रमाणन के संचालन के बारे में निर्णय लेने में शामिल होते हैं. पीजीएस-इंडिया प्रमाणन घरेलू बाजार की मांग को पूरा करने के लिए है.

पीकेवीवाई के अंतर्गत एनपीओपी प्रमाणीकरण और पीजीएस-इंडिया प्रमाणीकरण के अंतर्गत कवर किया गया कुल बढ़ता हुआ राज्यवार जैविक क्षेत्र 59.74 लाख हेक्टेयर है, जो अनुलंग्नक-I में दिया गया है.

पीकेवीवाई के अंतर्गत मूल्य संवर्धन, विपणन और प्रचार की सुविधा के लिए 3 वर्षों के लिए 4,500 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से सहायता प्रदान की जाती है. किसानों के लिए पीकेवीवाई के अंतर्गत 3 वर्षों के लिए 3,000 रुपए प्रति हेक्टेयर और 7,500 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से प्रमाणन और प्रशिक्षण व हैंडहोल्डिंग और क्षमता निर्माण के लिए सहायता प्रदान की जाती है, जबकि एमओवीसीडीएनईआर योजना के अंतर्गत प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और प्रमाणीकरण के लिए 3 वर्षों के लिए 10,000 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से सहायता प्रदान की जाती है.

बाजार की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए राज्य अपने क्षेत्र या अन्य राज्यों के प्रमुख बाजारों में सेमिनार, सम्मेलन, कार्यशालाएं, क्रेताविक्रेता बैठकें, प्रदर्शनियां, व्यापार मेले और जैविक उत्सव आयोजित करते हैं. सरकार ने किसानों द्वारा उपभोक्ताओं को जैविक उत्पादों की सीधी बिक्री के लिए औनलाइन मार्केटिंग प्लेटफार्म के रूप में वैब पोर्टल- www.Jaivikkheti.in/ विकसित किया है, ताकि उन्हें बेहतर मूल्य प्राप्ति में मदद मिल सके. जैविक खेती पोर्टल के अंतर्गत कुल 6.22 लाख किसान पंजीकृत हैं.

ई-नाम (E-NAM) प्लेटफार्म से मिल रही कृषि उपज की अच्छी कीमत

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने  केंद्र सरकार की उपलब्धियां गिनाईं. उन्होंने ई-नाम पोर्टल, एफपीओ और न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी सहित किसान कल्याण की योजनाओं के संबंध में विस्तार से बताया.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हमारी  किसान कल्याण और कृषि का विकास उन की सर्वोच्च प्राथमिकता है. सरकार  किसानों के हित में लगातार काम कर रही है और नवाचार के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि  सरकार ने तय किया है कि उत्पादन की लागत पर कम से कम 50 फीसदी लाभ जोड़ कर ही एमएसपी तय की जाएगी. हम ने किसानों के लिए 6 सूत्रीय रणनीति बनाई है, जिस में उत्पादन बढ़ाना, लागत घटाना, नुकसान की भरपाई, फसलों के ठीक दाम, फसलों का विविधीकरण और प्राकृतिक खेती शामिल है, जिस से किसानों को बेहतर दाम और लाभ मिल सके.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि ई-नाम मतलब राष्ट्रीय कृषि बाजार.  14 अप्रैल, 2016 को ई-नाम लौंच किया. ये एक औनलाइन ट्रैडिंग प्लेटफार्म है, जो किसानों को बेहतर मूल्य दिलाने में मदद करता है. किसान को केवल अपनी मंडी में ही अपना उत्पादन बेचना पड़ता था, बाकी जगह अगर मंडियों में दाम अच्छे होते थे, तो उस की जानकारी भी किसानों को नहीं होती थी.

ई-नाम ‘एक राष्ट्र एक बाजार’ की अवधारणा को ले कर कृषि उपज मंडियों को डिजिटल माध्यम से जोड़ता है, ताकि जहां किसान को उच्चतम मूल्य मिले, उच्चतम बोली लगे, वहां किसान अपनी फसल बेच पाए और इस से किसान को एक बाजार उपलब्ध हुआ है.

मंत्री शिवराज सिंह ने कहा कि मुझे बताते हुए प्रसन्नता है कि ई-नाम प्लेटफार्म के तहत एक फार्मगेट मौड्यूल बनाया गया है, ताकि किसान अपनी उपज के फोटो को फार्मगेट से ही अपलोड कर सके. उपज को भौतिक रूप से लाने की आवश्यकता मंडी में नहीं है, बिना उपज को लाए ही ई-नाम पर बोली सुविधा का वह लाभ उठा सकता है.

ई-नाम मोबाइल एप के माध्यम से किसान अपनी उपज के ढेर को 360 डिगरी चारों दिशाओं से फोटो खींच कर पोर्टल पर डाल सकता है, जिसे खरीदार बोली लगाने से पहले देख सकते हैं कि वह कैसा है. ई-नाम एप के माध्यम से किसान अपनी उपज का डाटा बना कर अपने घर से ही अग्रिम पंजीकरण कर सकता है. यह बहुत बड़ी सुविधा किसानों के लिए खासी मददगार है.

उन्होंने आगे कहा कि छोटेछोटे किसान, जिन की उपज कम होती है, वह अपनी उपज के बेहतर दाम अकेले प्राप्त नहीं कर पाते हैं, उस के लिए छोटेछोटे किसानों को जोड़ कर एफपीओ (FPO) बनाया जा रहा है. अब तक 10 हजार से ज्यादा एफपीओ बनाए गए हैं. ये एफपीओ संगठित हो कर अपने आदान की व्यवस्था करते हैं, अपने सामान की मार्केटिंगब्रांडिंग कर सकते हैं. जब ये संगठित होते हैं, तो इन की उचित मूल्य प्राप्त करने की ताकत बढ़ जाती है और मुझे प्रसन्नता है कि कई एफपीओ किसानों के सशक्तीकरण का उदाहरण बन गए हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी लगातार इन एफपीओ की समीक्षा कर रहे हैं. मुझे बताते हुए प्रसन्नता है कि एफपीओ भी ई-नाम प्लेटफार्म पर अपने सामान को बेच सकते हैं. इस पोर्टल का लाभ उठाने के लिए उन को सारी जानकारी, अपनी उपज का 360 डिगरी फोटो डालना होता है और अब तक लगभग 31 दिसंबर, 2024 तक 4 हजार, 362 किसान उत्पादक संगठन ई-नाम से जुड़ चुके हैं और इस का लाभ उठा रहे हैं. इस के द्वारा कृषि उत्पाद की बिक्री में किसानों को औनलाइन पेमेंट भी प्राप्त होती है, जिस में एफपीओ भी शामिल हैं, औनलाइन रसीद की प्राप्ति करने में आसानी होती है.

कृषि विस्तार योजना (Agricultural Extension Scheme) से किसानों को लाभ

विस्तार परियोजना (वर्चुअली इंटीग्रेटेड सिस्टम टू एक्सेस एग्रीकल्चरल रिसोर्सेज) का उद्देश्य प्लेटफार्मों पर विश्वसनीय, सत्यापित और नए संसाधनों को एकीकृत कर के कृषि के लिए एक एकीकृत, संघीय डिजिटल ईकोसिस्टम विकसित करना है.

यह किसान फीडबैक को शामिल करने के लिए दोतरफा संचार को सक्षम करते हुए डिजिटल समाधानों की मापनीयता, पहुंच और समावेशिता को बढ़ाने पर केंद्रित है. यह केंद्रराज्य सम्मलेन को बढ़ावा देने, हितधारकों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने और आईसीएआर संस्थानों और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के प्रयासों के साथ मिलकर के,  कृषि विस्तार के लिए मजबूत डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के विकास को बढ़ावा देता है.

इस का लक्ष्य किसानों को कार्यवाही योग्य जानकारी के साथ सशक्त बनाना, सहयोग को सुव्यवस्थित करना और डिजिटल कृषि विस्तार पहलों को लंबे समय तक सस्टेनेबल बनाए रखना हैं.

मौजूदा कृषि विस्तार प्रणाली का डिजिटीकरण और इस का दायरा काफी हद तक बढ़ाने और हर किसान को फसल उत्पादन, विपणन, मूल्य और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन और जलवायु स्मार्ट कृषि प्रथाओं, मौसम सलाह आदि पर उच्च गुणवत्ता वाली सलाहकार सेवाओं तक पहुंचाने का काम करता है. साथ ही, ये सलाहकार सेवाएं कृषि और उस से संबंधित क्षेत्रों से जुड़ी सभी सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं जिस से किसानों को लाभ होता है.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्यों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं ताकि उन की तकनीकी और सामग्री समीक्षा समितियों को नेटवर्क पर लाया जा सके और छोटे पायलटों पर काम शुरू किया जा सके.वर्तमान में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग मौजूदा ‘विस्तार  परियोजना’ का  कार्यान्वयन कर रहा है.

विस्तार परियोजना  का उद्देश्य किसानों को नईनई जानकारी तक पहुंच प्रदान करने के लिए नेटवर्क के जरिए सभी पहलों और समाधानों के साथ एकीकरण करना है. इस में जमीनी स्तर पर तैनात एआई  सक्षम चैटबौट का लाभ उठाना और बाद में एग्रीस्टैक  के साथ एकीकरण शामिल है.

विस्तार परियोजना के प्रयासों में डिजिटल बौट्स पर एक्सटेंशन कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण शामिल है. इसे वीडियो तैयार करने के कौशल को बढ़ाने और किसानों को चरणबद्ध तरीके से आगे प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए, जमीनी स्तर पर आवश्यक जानकारी तक पहुंचने के लिए, उन्नत आईटी  उपकरणों को संभालने के लिए, फ्रंट लाइन एक्सटेंशन वर्कर्स को प्रशिक्षण आयोजित करने के लिए, मौजूदा भागीदारी और नेटवर्क स्वयंसेवकों के माध्यम से और सरल बनाया जा सकता है.

उन्नत फसल विविधीकरण (Crop Diversification) पर प्रशिक्षण

उदयपुर : 6 फरवरी, 2025 को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय के अंतर्गत फसल विविधीकरण परियोजना के तहत “सतत कृषि की क्षमता को बढ़ाने हेतु उन्नत फसल विविधीकरण रणनीतियों” पर दो दिवसीय विस्तार अधिकारियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत हुई.

कार्यक्रम में कृषि अधिकारियों, शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों ने सतत कृषि और फसल विविधीकरण के नवीन दृष्टिकोणों पर विचारविमर्श किया जाएगा. यह प्रशिक्षण कार्यक्रम जलवायु परिवर्तन, मृदा क्षरण और खाद्य सुरक्षा जैसी बढ़ती चुनौतियों का समाधान करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया है. इस का मुख्य उद्देश्य अधिकारियों को उन्नत ज्ञान और रणनीतियों से सुसज्जित करना है, ताकि वे फसल विविधीकरण को बढ़ावा देकर कृषि उत्पादकता बढ़ाने और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने में योगदान कर सकें.

कार्यक्रम में डा.अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान ने प्रशिक्षण के उद्देश्यों की जानकारी दी. उन्होंने विविधीकृत फसल प्रणालियों को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया, जिस से मृदा स्वास्थ्य में सुधार होगा, एकल फसल पर निर्भरता कम होगी और किसानों की आय में वृद्धि होगी. साथ ही, उन्होंने फसल विविधीकरण में खरपतवार प्रबंधन की उन्नत तकनीकों पर भी विस्तार से चर्चा करी.

इस कार्यक्रम में परियोजना प्रभारी डा. हरि सिंह ने सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने में फसल विविधीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला. उन्होंने पारंपरिक कृषि ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों के समावेश से कृषि प्रणालियों को अधिक सक्षम और लचीला बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया.

डा. एचएल बैरवा, ने पर्यावरण अनुकूल और लाभकारी विविधीकृत उद्यानिकी में फसल विविधीकरण पर चर्चा करी. डा. एचएल बैरवा ने किसानों को विभिन्न फसलों को उद्यानिकी फसलों के साथ एकीकृत करने के आर्थिक और पारिस्थितिक लाभों के बारे में बताया. उन्होंने फलोत्पादन के 10 आयाम बताए जिस से किसानों की आय व रोजगार में वृद्धि हो सके.

फसल विविधीकरण (Crop Diversification)

डा. लतिका व्यास, ने फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने में कृषि विज्ञान केंद्रों की महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा करी. उन्होंने अधिकारियों को उन्नत कृषि तकनीकों के प्रभावी स्थानांतरण की विभिन्न विधियों का प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रदान किया, जिस से वे किसानों को नवाचारों और सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकें.

कार्यक्रम में उपस्थित मृदा वैज्ञानिक डा. सुभाष मीणा, ने कहा कि लगातार एक ही फसल उगाने से मृदा में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, जिस से उत्पादकता प्रभावित होती है. साथ ही, उन्होंने फसल चक्र, मिश्रित फसल प्रणाली और जैविक खादों के उपयोग पर भी जोर दिया.

इस दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान प्रतिष्ठित कृषि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों द्वारा विभिन्न तकनीकी सत्र आयोजित किए जाएगें, जिन में विस्तार अधिकारियों को जलवायु अनुकूलन,  मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, समेकित कृषि प्रणाली, नीतिगत ढांचे और सरकारी पहल व्याख्यान व व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाएगा.

मिट्टी की सेहत को सुधारने पर चर्चा करेंगे देशभर के मृदा वैज्ञानिक

उदयपुर : 5 फरवरी, 2025  को मृदा संसाधन मानचित्रण और प्रबंधन की नवीनतम तकनीक पर आधारित 21 दिवसीय शीतकालीन प्रशिक्षण उदयपुर व नागपुर केंद्रों पर आरंभ हुआ. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा घोषित राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो क्षेत्रीय केंद्र, उदयपुर व नागपुर में आयोजित इस प्रशिक्षण में देशभर के 50 से ज्यादा मृदा वैज्ञानिक हिस्सा ले रहे हैं.

क्षेत्रीय केंद्र, उदयपुर में आयोजित उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक थे, जबकि नागपुर केंद्र के समारोह में मुख्य अतिथि परिमल सिंह, परियोजना निदेशक, नानाजी देशमुख कृषि संजीवनी प्रकल्प (पोकरा) महाराष्ट्र थे. इस समारोह में नागपुर केंद्र औनलाइन जुड़ा.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि देश को आजाद हुए 78 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन किसान आज भी पारंपरिक विधियों से कृषि व इस के मूलाधार मिट्टी को संरक्षित किए हुए है. आजादी के बाद हाल के वर्षों में तकनीक के मामले में भारत ने अद्वितीय सफलता हासिल की है. इन में एआई, रिमोट सेंसिंग, भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस), डिजिटल मृदा मानचित्रण (डीएसएम) जैसे उपकरण एवं मृदा संसाधन प्रबंधन की जटिलताओं से निबटने के लिए स्थानिक डाटा का उपयोग करते हैं.

ये प्रौद्योगिकियों मिट्टी के गुणों के विस्तृत विश्लेषण, मिट्टी की प्रक्रियाओं की मौडलिंग और स्थाई भूमि प्रबंधन के लिए रणनीतियों के विकास की सुविधा प्रदान करती हैं. उन्होंने कहा कि मैन्युअल से उच्च तकनीक के जरीए खेती करना किसान के लिए चुनौतीपूर्ण काम है, लेकिन हमारे देश के युवा वैज्ञानिकों की टीम दोनों में तालमेल बिठाने में सक्षम है. इस से किसान व कृषि क्षेत्र में तरक्की सुनिश्चित है.

विशिष्ट अतिथि, पूर्व प्रधान वैज्ञानिक एवं क्षेत्रीय केंद्र, नई दिल्ली के प्रमुख डा. जेपी शर्मा ने कहा कि यह कार्यक्रम मृदा सर्वेक्षण, भूआकृति पहचान और भूस्थानिक उपकरणों के बारे में व्यावहारिक जानकारी देगा.

जल संसाधन एवं पर्यावरण इंजीनियरिंग, भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के प्रो. शेखरमुद्दू ने कहा कि इस प्रशिक्षण में प्रतिभागियों को मृदा संसाधन मानचित्रण और प्रबंधन में मूल्यवान कौशल प्राप्त होगा. इस से वे मृदा आधारित विकास कार्यक्रमों और टिकाऊ भूमि प्रबंधन में प्रभावी रूप से योगदान करने में सक्षम होंगे.

निदेशक, नागपुर, डा. एनजी पाटिल ने कहा कि मृदा या मिट्टी एक बेहद महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है, जो स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र को आधार प्रदान करता है. साथ ही कृषि, वानिकी और पर्यावरणीय स्थिरता की आधारशिला के रूप में काम करता है.

प्रधान वैज्ञानिक एवं पाठ्यक्रम प्रमुख क्षेत्रीय केंद्र, उदयपुर के डा. आरपी शर्मा ने बताया कि इस  दीर्घकालिक प्रशिक्षण में न केवल राजस्थान, बल्कि पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और ओड़िसा से मृदा वैज्ञानिक अपनेअपने क्षेत्र की मिट्टी की संरचना व संरक्षण की दिशा में अपनाई जा रही तकनीक पर गहन विचारविमर्श करेंगे, ताकि किसानों के लिए तैयार की जाने वाली पौलिसी को नई दिशा दी जा सके.

राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो क्षेत्रीय केंद्र, उदयपुर के प्रमुख एवं  प्रधान वैज्ञानिक डा. बीएल मीना ने अतिथियों का स्वागत किया, जबकि डा. बृजेश यादव, वैज्ञानिक ने धन्यवाद ज्ञापित किया.

प्रशिक्षण में इन पर रहेगा फोकस

मृदा-भूमि रूप संबंधों और मृदा निर्माण पर उन के प्रभाव को समझना, आधुनिक मृदा सर्वेक्षण तकनीकों और भूमि संसाधन सूची विधियों की खोज, रिमोट सेंसिंग (आरएस), जीआईएस और डिजिटल मृदा मानचित्रण (डीएसएम) में जानकारी बढ़ाना, गूगल अर्थ इंजन और भूसांख्यिकी में व्यावहारिक प्रशिक्षण, मिट्टी और जल संरक्षण, भूमि उपयोग नियोजन और टिकाऊ प्रबंधन में भूस्थानिक तकनीकों का प्रयोग आदि.

इस के अलावा मृदा निर्माण के कारक एवं प्रक्रियाओं को समझना, क्षेत्र भ्रमण, मिट्टी की प्रोफाइल का अध्ययन व गुणों का अवलोकन, मृदा संसाधन प्रबंधन में उपग्रह डाटा और उन का अनुप्रयोग, मृदा सर्वेक्षण डेटा व्याख्या.

भूमि संसाधन सूची के लिए मृदा सर्वेक्षण तकनीक को समझना, मृदा एवं जल संरक्षण और भूमि उपयोगनियोजन आदि.