श्रीअन्न (Shri Anna) जागरूकता कार्यक्रम वाहन को हरी झंडी

संत कबीर नगर: अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष 2023 के क्रम में शासन की मंशा अनुरूप जनपद स्तरीय श्रीअन्न (Shri Anna) जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया. जागरूकता रैली को विधायक सदर अंकुर राज तिवारी, जिलाधिकारी महेंद्र सिंह तंवर, मुख्य विकास अधिकारी संत कुमार द्वारा हरी झंडी दिखा कर रवाना किया गया.

इस कार्यक्रम के साथ ही मुख्य विकास अधिकारी संत कुमार के नेतृत्व में उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों द्वारा स्वीप कार्यक्रम के अंतर्गत मतदाता जागरूकता रैली को भी हरी झंडी दिखा कर रवाना किया गया, जिस से कि आगामी चुनाव में मतदान के लिए मतदाताओं में जागरूकता बढ़े.

विधायक सदर अंकुर राज तिवारी द्वारा बताया गया कि श्रीअन्न की खेती पुराने समय में किसानों द्वारा की जाती थी, जिसे ‘मोटा अनाज’ कहा जाता था. यह सेहत के लिए पोषक तत्वों से भरपूर होता है, जिस से मोटापा, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर व दिल की बीमारियां नहीं होती हैं.

जिलाधिकारी महेंद्र सिंह तंवर ने बताया कि यह रैली मुख्यतया किसानों द्वारा श्रीअन्न की खेती को बढ़ावा देने के साथ ही उपभोक्ताओं में भी इस की गुणवत्ता को ले कर जागरूकता बढ़ाने के लिए की जा रही है, जिस से कि उपभोक्ता श्रीअन्न के गुणों से जागरूक हों और दैनिक आहार में इस को शामिल करें, इस से वे स्वस्थ रहेंगे, खुशहाल जीवन बिताएंगे और उन का मैडिकल का खर्च भी कम होगा.

इस कार्यक्रम में उपनिदेशक कृषि डा. राकेश सिंह, भूमि संरक्षण अधिकारी सीपी सिंह, जिला कृषि अधिकारी पीसी विश्वकर्मा, जिला कृषि रक्षा अधिकारी शशांक, मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डा. यशपाल सिंह, खंड शिक्षा अधिकारी खलीलाबाद अर्जुन सहित संबंधित अधिकारी उपस्थित रहे.

जैविक उत्पाद (Organic Products) से अच्छी आमदनी: समूह में कर रहे खेती

बालाघाट: प्राकृतिक व जैविक खेती के सिद्धांतों पर किसान फिर से लौटने लगे हैं. किसानों में यह समझ जागने लगी है कि रसायनों से भूमि को नुकसान होने के साथ ही स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव पड़ने लगा है. इस प्रभाव को कम करना है, तो हमारी देशी या जैविक व प्राकृतिक खेती ही सब से अच्छा उपचार है.

बालाघाट जिले में देशी या प्राकृतिक व जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए पिछले 20 वर्षों में कई प्रयास किए गए. इन प्रयासों के बाद किसानों की समझ विकसित हुई है और अब प्राकृतिक व जैविक खेती का रकबा और किसान दोनों बढ़ने लगे हैं. इस का अनुमान बालाघाट से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर गड़दा के किसानों के प्रयासों से भी लगा सकते हैं.

यहां के किसान मुन्ना लाल कुमरे ने वर्ष 2002 से आत्मा परियोजना और कृषि व उद्यानिकी विभाग द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न प्रशिक्षणों व जिले के अंदर व राज्य के बाहर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों के साथ प्रारंभ किया था. आज न सिर्फ व्यक्तिगत प्रयास कर, बल्कि 3 अन्य महिला समूहों के अलावा जैविक उत्पादन के लिए काम करने वाले किसानों के समूहों के साथ काम कर रहे हैं. ये समूह आज अच्छे किस्म के जैविक उत्पाद बना कर विक्रय कर अच्छी आमदनी प्राप्त करने लगे हैं. सब से अच्छा पक्ष यह भी सामने आया है कि समूह अब अन्य किसानों और व्यापारियों के लिए भी जैविक उत्पादन के लिए और्डर ले रहे हैं.

जागृति, प्रेरणा और अन्नपूर्णा महिला समूहों में साथ जैविक उत्पादनों का बनाया व्यवसाय

वैसे तो मुन्ना लाल अब तक 1,000 से अधिक किसानों को प्राकृतिक खेती के तौरतरीके सिखा चुके हैं. इस में वे भूमि की सुरक्षा और बैक्टीरिया बढ़ाने के लिए जीवामृत, वेस्ट के उपयोग के लिए वेस्ट डीकंपोजर, कीटपतंगों से रक्षा के लिए दशपर्णी, बीजोपचार के लिए बीजामृत, हानिकारक कीटनाशकों के लिए अग्निअस्त्र, ब्रम्हास्त्र व नीमास्त्र सरीखे तकरीबन 10 प्रकार के जैविक उत्पादों से खरीफ व रबी के सीजन में तकरीबन 1 लाख, 20 हजार तक की इनकम कर लेते हंै. इतना ही नहीं, गांव में ही इन्होंने जागृति, प्रेरणा और अन्नपूर्णा नाम से महिलाओं के 3 समूह बनाए हैं. इन समूहों में भी 50-50 महिलाएं केंचुआ खाद के 1 व 2 किलोग्राम के पैकेट और 2 से 5, 10 लिटर तक के कीटनाशक भी तैयार कर विक्रय करने लगी हैं.

अब ये समूह इतने परिपक्व हो चुके हैं कि जिले व जिले के बाहर के बगीचे वाले बड़े किसान व अन्य व्यापारी भी और्डर पर जैविक उत्पाद तैयार करवा रहे हैं.

कमीशन पर काम कर 3 लाख तक मुनाफा लिया

किसान मुन्ना लाल ने बताया कि उन के पास पर्याप्त साधन नहीं थे, तो उन्होंने कमीशन पर जगह और पानी लिया. यहां उन्होंने अच्छी मात्रा में जैविक उत्पादन तैयार किया और  3 लाख रुपए तक का मुनाफा लिया.
मुन्ना लाल कुमरे जैविक बीज के तौर पर भी कंपनियों के लिए तकरीबन 500 किसानों के साथ 1-1 एकड़ में जैविक धान के बीज उत्पादित कर रहे हंै. मुन्ना लाल कुमरे को वर्ष 2023 में जिला स्तरीय सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार के रूप में 25,000 का इनाम भी दिया गया है.

बिजली के लाइट में आने वाले कीड़ों पर करते हैं प्रयोग

किसान मुन्ना लाल ने बताया कि अग्निअस्त्र, ब्रम्हास्त्र, नीमास्त्र आदि उत्पादों के प्रयोग वे घर पर बल्ब की रोशनी में आने वाले कीटों पर भी करते हैं यानी वे बल्ब के पास मिर्च या अन्य फसलों को लटका दिया करते हैं. इस के बाद फसलों पर कीट आने पर छिड़काव करते हैं. फिर घड़ी मिला कर समय देखते हंै कि कितनी देर में कीटों पर असर हुआ. इस के बाद जब कीट बेहोश या मर जाते हैं, तो एक डब्बे में बंद कर कीटों की जानकारी निकालते हैं. इस प्रयोग के अलावा घर की बागबानी में निरंतर प्रयोग कर अपने उत्पादों को परिपक्व बना रहे हैं.

246 सक्रिय जैविक खेती समूह

आत्मा परियोजना के संचालक अर्चना डोंगरे ने बताया कि वर्ष 2015-16 से जिले में देशी व जैविक खेती, बीज आदि के लिए समूह बनाने का काम शुरू हुआ. इस में किसानों को प्रशिक्षित किया गया. वर्तमान में 246 ऐसे समूह हैं, जो जैविक खेती के लिए काम कर रहे हैं. इस में तकरीबन 4,550 किसान जुड़े हैं, जो जैविक उत्पादों के साथ बीजों पर भी काम कर रहे हैं.

रबर उद्योग (Rubber Industry) को बढ़ावा : बनेंगे रबर प्रशिक्षण संस्थान

नई दिल्ली: ‘प्राकृतिक रबर क्षेत्र के सतत और समावेशी विकास‘ के अंतर्गत रबर क्षेत्र के लिए वित्तीय सहायता अगले 2 वित्तीय वर्षों (2024-25 और 2025-26) के लिए 576.41 करोड़ रुपए से 23 फीसदी बढ़ा कर 708.69 करोड़ रुपए कर दी गई है.

रबर उद्योग को समर्थन देने के लिए वर्ष 2024-25 और 2025-26 के दौरान 43.50 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ पारंपरिक क्षेत्रों में 12,000 हेक्टेयर में रबर का रोपण किया जाएगा. इस के लिए सहायता दर पहले के 25,000 रुपए प्रति हेक्टेयर से बढ़ कर 40,000 रुपए प्रति हेक्टेयर कर दी गई है.

इस से उत्पादन की बढ़ी हुई लागत को कवर करने में मदद मिलने के साथ ही उत्पादकों को रबर लगाने के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन भी मिलेगा. इसी अवधि के दौरान 18.76 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ गैरपारंपरिक क्षेत्रों में 3752 हेक्टेयर क्षेत्र को रबर की खेती के अंतर्गत लाया जाएगा.

रबर बोर्ड द्वारा 50,000 रुपए प्रति हेक्टेयर मूल्य की रोपण सामग्री की आपूर्ति की जाएगी. यह उत्तरपूर्व में समर्थित विकास हेतु भारतीय प्राकृतिक रबर संगठन (इंडियन नैचुरल रबर और्गेनाइजेशंस फौर असिस्टैड डवलपमैंट इनरोड यानी आईएनआरओएडी) परियोजना के अंतर्गत किए जा रहे वृक्षारोपण के अतिरिक्त होगा. गैरपारंपरिक क्षेत्रों में अनुसूचित जाति के उत्पादकों के लिए 2 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से रोपण सहायता प्रदान की जाएगी.

प्रायोजित नर्सरी को बढ़ावा दिया जाएगा

अच्छी गुणवत्ता वाली रोपण सामग्री पैदा करने के लिए गैरपारंपरिक क्षेत्रों में बोर्ड द्वारा प्रायोजित नर्सरी को बढ़ावा दिया जाएगा. ऐसी 20 नर्सरियों को ढाई लाख रुपए की सहायता प्रदान की जाएगी.

सरकार उत्पादित रबर की उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से कई उपायों की योजना बना रही है. इस दिशा में, 67,000 हेक्टेयर (पारंपरिक में 60,000, गैरपारंपरिक (नौनट्रेडिशनल यानी एनटी) में 5,000 और पूर्वोत्तर में 2,000) क्षेत्र में बारिश से बचाव और 22,000 हेक्टेयर (पारंपरिक में 20,000 और गैरपारंपरिक में 2,000) में पौधों की सुरक्षा (छिड़काव) के लिए सहायता प्रदान की जाएगी. अगले 2 सालों में इस के लिए 35.60 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराने की परिकल्पना की गई है.

रबर प्रोड्यूसर्स सोसाइटी को बढ़ावा

यह योजना रबर उत्पादकों के सशक्तीकरण के लिए रबर के छोटे धारकों जैसे रबर उत्पादक समितियों (रबर प्रोड्यूसर्स सोसाइटी यानी आरपीएस) के मंचों को बढ़ावा देती है. अगले 2 सालों तकरीबन 250 नए आरपीएस के गठन के लिए सहायता प्रदान की जाएगी. इस सहायता का पैमाना 3,000 रुपए से बढ़ा कर 5,000 रुपए कर दिया गया है और इस से हितधारकों के समग्र लाभ के लिए किसान शिक्षा, सैमिनार, समूह बैठकें, क्षमता निर्माण गतिविधियां, ऐक्सपोजर विजिट, मौडल फार्म और अन्य गतिविधियों का समर्थन करने में सहायता मिलेगी.

1,450 किसान समूहों के गठन का समर्थन

गैरपारंपरिक और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में अन्य 1,450 किसान समूहों के गठन का समर्थन किया जाएगा. रबर उत्पादकों को रबर उत्पादक समितियों में संगठित करने से उत्पादकों द्वारा उत्पादित रबर की कीमत वसूली में सुधार करने में भी सहायता मिलेगी.

55 रबर उत्पादक समितियों (रबर प्रोड्यूसर्स सोसाइटी) को लेटेक्स संग्रह और डीआरसी परीक्षण उपकरण के लिए प्रति आरपीएस 40,000 रुपए तक की सहायता प्रदान की जाएगी. कृषि मशीनीकरण और स्प्रेयर व डस्टर खरीदने के लिए आरपीएस को सहायता दी जाएगी.

180 उत्पादक समितियों (रबर प्रोड्यूसर्स सोसाइटी) को प्रति आरपीएस 30,000 रुपए तक की सहायता प्रदान की जाएगी. रबर शीट की गुणवत्ता और मानकीकरण सुनिश्चित करने के लिए समूह प्रसंस्करण केंद्र (ग्रुप प्रोसैसिंग सैंटर्स) की स्थापना को बढ़ावा दिया जा रहा है. उत्तरपूर्व और गैरपारंपरिक क्षेत्रों में 18 जीपीसी के निर्माण का समर्थन किया जाएगा.

पारंपरिक क्षेत्र में 10 जीपीसी यानी ग्रुप प्रोसैसिंग सैंटर्स के निर्माण का समर्थन किया जाएगा. वर्तमान जीपीसी को टनल स्मोक हाउस की स्थापना, भट्टी के नवीनीकरण, शीटिंग बैटरी को बदलने, बायो गैस प्लांट की ओवरहालिंग, ट्रौली रैक, प्रैशर वाशर, टेट्रा पैन और सोलर ड्रिपिंग सुविधा की खरीद के माध्यम से आधुनिकीकरण करने का प्रस्ताव है. 77 जीपीसी (पारंपरिक क्षेत्र में 50, गैरपारंपरिक क्षेत्रों में 2 और उत्तरपूर्व में 25) को सहायता प्रदान की जाएगी.

समूह प्रसंस्करण केंद्रों के लिए अतिरिक्त धूम्रपानगृहों (स्मोक हाउस) की स्थापना और प्रवाह उपचार प्रणालियों (एंफ्लुएंट ट्रीटमैंट सिस्टम) की स्थापना के लिए सहायता प्रदान की जाएगी. 79 जीपीसी (अतिरिक्त स्मोक हाउस-37 नग और एंफ्लुएंट ट्रीटमैंट-42 नग) के लिए सहायता प्रदान की जाएगी.

रबर अनुसंधान को वित्तपोषित करने के लिए अगले 2 सालों के लिए 29.00 करोड़ रुपए का परिव्यय प्रदान किया गया है. इस का उद्देश्य देश में बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए रबर की खेती को नए क्षेत्रों में विस्तारित करने के लिए देश के विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों के लिए उपयुक्त रबर क्लोन विकसित करना होगा. इस में हर साल संकर पौधों की वृद्धि, उत्पादकता और रोग सहनशीलता का मूल्यांकन करने के लिए जर्म प्लाज्म का संरक्षण, पौध प्रजनन और व्यापक बहुस्थानीय क्षेत्र परीक्षण शामिल हैं.

रबर उत्पादकों को सेवा वितरण में सुधार लाने के उद्देश्य से रबर बोर्ड अपने डिजिटलीकरण प्रयासों को तेज करेगा और अपने मोबाइल आधारित एप्स के माध्यम से तीव्र एवं त्वरित सेवाएं प्रदान करने के साथ ही जियो टैगिंग आदि के लिए ड्रोन का उपयोग करेगा. रबर बोर्ड के समग्र डिजिटलीकरण के लिए 8.91 करोड़ रुपए की राशि प्रदान की गई है.

पूर्वोत्तर क्षेत्र अगरतला, गुवाहाटी और नागालैंड में राष्ट्रीय रबर प्रशिक्षण संस्थान (नैशनल रबर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट-एनआईआरटी) के ऐसे 3 नोडल केंद्रों की स्थापना अगले 2 सालों में 5.25 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ प्रस्तावित की गई है, जिन का उद्देश्य मुख्य रूप से उत्पाद निर्माण और गुणवत्ता नियंत्रण में प्रशिक्षण प्रदान कर के इस क्षेत्र में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमईएस) को बढ़ावा देना है.

साल 2024-25 और 2025-26 के दौरान देशभर में कुल 712 प्रशिक्षण कार्यक्रमों की योजना बनाई गई है, जिस से पूर्वोत्तर क्षेत्र के 3,800 व्यक्तियों सहित 10,700 व्यक्तियों को लाभ होगा.

श्रमिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने, वर्तमान में पेड़ों से प्राकृतिक रबर एकत्र करने वाले (टैपर्स) व श्रमिकों को बनाए रखने और अधिक टैपर्स, विशेषकर महिला टैपर्स को आकर्षित करने के लिए कल्याणकारी उपाय लागू किए गए हैं. अगले 2 सालों के लिए 7.02 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ शैक्षिक छात्रवृत्ति , महिला सशक्तीकरण योजनाएं, गृह निर्माण के लिए सहायता, समूह जीवन बीमा सह टर्मिनल लाभ, व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना और पेंशन योजना जैसे विभिन्न उपायों के प्रावधान किए गए हैं.

मोटे अनाज (Coarse grain) के उत्पादों के मिलते हैं अधिक दाम

सतना: 20 फरवरी, 2024. नगरीय विकास एवं आवास राज्यमंत्री प्रतिमा बागरी ने कहा कि हमारे किसानों द्वारा उगाए गए अनाज से प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है. साथ ही, प्रदेश का किसान आर्थिक रूप से सशक्त भी हो रहा है.

सरकार की फसलों पर समर्थन मूल्य देने की नीति से किसानों की आर्थिक उन्नति हुई है. सरकार का किसानों से दोगुनी आय करने के संकल्प को पूरा करने में गति मिली है.

राज्यमंत्री प्रतिमा बागरी ने कहा कि हमारे किसानों द्वारा उगाई गई फसल रूपी से सोने का सेवन करने से हमें काम करने की शक्ति मिलती है. वास्तव में अन्नदाता ही हमारा जीवनदाता है. उन्होंने एकेएस विश्वविद्यालय, सतना में प्रदेश स्तरीय तृतीय कृषि विज्ञान मेले का शुभारंभ किया.

इस अवसर पर पद्मश्री बाबूलाल दहिया, निशांत कुमार टाक, महाप्रबंधक, कृषि जागरण डा.दिनेश कुमार, कृषि वैज्ञानिक एके चतुर्वेदी, साउथ अफ्रीका से तोजामा कुलाटी सिविसा, डा. आरपी चैधरी, भरत मिश्रा, बीके खरे, उपसंचालक कृषि मनोज कश्यप, संचालक आत्मा परियोजना राजेश त्रिपाठी, जिला पंचायत उपाध्यक्ष सुष्मिता सिंह परिहार, नेपाल झा, जयप्रताप बागरी, कृषि विज्ञान केंद्र, मझगवां से डा. आरएस नेगी सहित बड़ी संख्या में किसान और विश्वविद्यालय के एग्रीकल्चर संकाय के विद्यार्थी उपस्थित रहे. कार्यक्रम का संचालन प्रो. आरसी त्रिपाठी ने किया.

रसायनमुक्त खेती की ओर बढ़ें किसान

राज्यमंत्री प्रतिमा बागरी ने कृषि मेले का शुभारंभ करते हुए कहा कि मेले की थीम एमपावरिंग द फार्मर थू्र नैचुरल और्गैनिक फार्मिंग पर आगे बढ़ते हुए किसान जैविक और प्राकृतिक खेती को अपनाएं और रसायनमुक्त खेती को महत्व दें. प्राकृतिक और जैविक खेती सही माने में हमारे स्वास्थ्य और मृदा स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद हैं.

उन्होंने कहा कि रसायनयुक्त खेती के अनेकों दुष्प्रभाव हैं. वर्तमान में खेती की उपज ज्यादा लेने के उद्देश्य से रसायनों का बिना सोचेसमझे उपयोग किया जा रहा है. नतीजतन, हमें विभिन्न प्रकार के गंभीर रोग की समस्यायों से जूझना पड़ रहा है.

मोटे अनाज के उत्पादों को मिलती है अच्छी कीमत

राज्यमंत्री प्रतिमा बागरी ने कहा कि आज का समय आधुनिकता का है. सभी क्षेत्रों में हम आधुनिकता के साथ आगे बढ़ रहे हैं. किसान भी खेती के कामों को आधुनिकता के साथ करें. मोटे अनाजों की खेती को बढ़ाने में किसान सहयोग करें. मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी सहयोग कर रही है. मोटे अनाज के उत्पादों की कीमत पारंपरिक खेती के उत्पादों से ज्यादा होती है. इस का बाहर निर्यात होने से किसानों को अच्छी कीमत मिलेगी. प्रदेश में गेहूं निर्यात इस का एक उदाहरण है. गेहूं का उत्पादन बढ़ने से निर्यात में वृद्धि हुई है और किसानों को इस का फायदा भी मिल रहा है.

मोटे अनाज (मिलेट्स) की खेती से होने वाले फायदों पर जोर दिया जा रहा है. विदेशों में भारतीय उत्पादों की मांग बहुत ज्यादा है. मध्य प्रदेश ने प्रदेश के कृषि निर्यात के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है.
जिले के किसान और्गैनिक खेती को अपनाएं

राज्यमंत्री प्रतिमा बागरी ने कहा कि मिलेट्स हमारी सभ्यता का, हमारे भोजन का अभिन्न अंग था. धीरेधीरे इस की मात्रा हमारे भोजन में कम होने लगी. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिलेट्स को बढ़ावा देने की अभिनव पहल की और सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं. सरकार के प्रयासों से मोटे अनाज की खेती को करने में किसान भी अपनी रुचि दिखा रहे हैं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि सतना जिले में सब से बड़ी आबादी किसानों की है. राज्य सरकार और मेहनती किसान मिल कर प्रदेश को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे.

उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश में फसल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनेक प्रोत्साहन योजनाएं और मार्गदर्शी कार्यक्रमों का संचालन केंद्र और राज्य सरकार द्वारा किया जा रहा है. अब शिक्षित युवाओं द्वारा भी कृषि को रोजगार के रूप में अपनाना प्रारंभ किया गया है. विश्वविद्यालय में अध्ययनरत कृषि संकाय के विद्यार्थी आधुनिक कृषि और उस की तकनीकों के बारे में गहन अध्ययन करें.

अतिथियों द्वारा मेले का उद्घाटन एवं कृषि प्रदर्शनी का अवलोकन किया गया. अतिथियों का स्वागत एवं परिचय डा. हर्षवर्धन ने दिया. इस के पश्चात अधिष्ठाता कृषि एवं तकनीकी संकाय डा. एसएस तोमर ने कृषि विज्ञान मेले का उद्देश्य निरूपित किया.

पशु चिकित्सा एवं मत्स्य विज्ञान की नीट प्रवेश परीक्षा के लिए रहें तैयार

सीहोर: मध्य प्रदेश शासन के पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के बैचलर औफ वेटरनरी साइंस एंड एनिमल हसबेंडरी और बैचलर औफ फिशरीज साइंस पाठ्यक्रम के राज्य कोटा की सीटों पर वर्ष 2024-25 से नीट एग्जाम की प्रावीण्य सूची के आधार पर प्रवेश होगा.

पशुपालन एवं डेयरी विभाग के आदेश अनुसार, विश्वविद्यालय द्वारा सूचना जारी कर दी गई है. इन पाठ्यक्रमों के लिए आगामी 9 मार्च तक औनलाइन आवेदन वैबसाइट https://nta.ac.in/NEET  पर किए जा सकते हैं.

नीट प्रवेश परीक्षा 5 मई, 2024 को दोपहर 2 बजे से शाम 5ः20 तक होगी. गुलशन बामरा, प्रमुख सचिव, पशुपालन एवं डेयरी ने बताया कि पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के अंतर्गत संचालित जबलपुर, महू एवं रीवां के पशु चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालयों में बैचलर औफ वेटरनरी साइंस एंड एनिमल हसबेंडरी पाठ्यक्रम की राज्य कोटा की 255 अर्थात 85 फीसदी सीटों पर वर्ष 2024-25 से नीट की प्रावीण्य सूची के आधार पर प्रवेश दिया जाएगा.

इसी प्रकार विश्वविद्यालय के अंतर्गत संचालित मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय, जबलपुर में बैचलर औफ फिशरीज साइंस पाठ्यक्रम की राज्य कोटा की 46 अर्थात 80 फीसदी सीटों पर भी वर्ष 2024-25 से नीट के माध्यम से प्रवेश होगा.

कृषि (Agriculture) को बढ़ावा देने में कसर नहीं, मिल रही सुविधाएं

विदिशा: प्रदेश के किसानों को सभी प्रकार की कृषि संबंधी सहूलियतें दी जा रही हैं. सरकार द्वारा किसानों की आमदनी को दोगना करने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं. यहां किसानों को उन्नत किस्म के खाद, बीज, ऋण, केसीसी के अलावा कृषि संबंधी अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं. उक्त आशय के विचार विदिशा विधायक मुकेश टंडन ने कृषि विज्ञान मेले के शुभांरभ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए व्यक्त किए.

उन्होंने कहा कि कृषि विभाग द्वारा किसानो को समय पर उचित सलाह दी जा रही है, ताकि कृषि आदान संबंधी व्यवस्थाओं में कोई दिक्कत ना आए. कार्यक्रम को जिला पंचायत की कृषि समिति के सभापति धनराज सिंह दांगी के अलावा तोरण सिंह दांगी, श्यामसुंदर शर्मा ने भी संबोधित किया.

जिला मुख्यालय पर आयोजित दोदिवसीय कृषि विज्ञान सह प्रदर्शनी का आयोजन पीएनबी कृषक प्रशिक्षण केंद्र में आयोजित किया गया. यह मेला कृषि विभाग की आत्मा परियोजना एवं मध्य प्रदेश राज्य मिलेट मिशन योजना के अंतर्गत आयोजित किया गया.

इस मेले का उद्देश्य किसानों को नई कृषि तकनीक से परिचित कराना एवं किसानवैज्ञानिक परिचर्चा के माध्यम से कृषि समस्याओं का निराकरण करना है. इस कार्यक्रम में विभिन्न विभागों द्वारा प्रदर्शनी एवं स्टाल लगाए गए हैं, जिन में विभाग द्वारा संचालित योजनाओं एवं गतिविधियों की जानकारी दी जा रही है. मेले में कृषि संबंधी उपयोगी विभिन्न यंत्र, जिन में रोटावेटर, सीड ड्रिल, कृषि में ड्रोन का उपयोग आदि का प्रदर्शन भी किया गया.

कार्यक्रम के शुभारंभ पर स्थानीय विधायक मुकेश टंडन, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष तोरन सिंह दांगी, कृषि स्थाई समिति के अध्यक्ष अन्नु धनराज दांगी, सांसद प्रतिनिधि राकेश शर्मा, जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के पूर्व अध्यक्ष श्यामसुंदर शर्मा एवं अन्य जनप्रतिनिधि उपस्थित थे.

तोरण सिंह दांगी ने मेले में आए किसानों से प्रदर्शनी का अवलोकन कर अधिक से अधिक तकनीकी जानकारी लेने की सलाह दी. मुकेश टंडन ने कृषि विभाग को सलाह दी कि किसानों को समय पर सही सलाह मिल सके, ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित हो.

कृषि महाविद्यालय गंजबासोदा के डीन डा. विनोद गर्ग ने खेती में कम लागत वाली तकनीकों पर प्रकाश डाला. साथ ही, महाविद्यालय के वैज्ञानिक डा. केसी महाजन ने मिलेट यानी श्रीअन्न खाद्यान्नांे जैसे रागी, ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी आदि के उत्पादन प्रसंस्करण और मनुष्य के लिए इन का पोषण में महत्व के बारे में विस्तार से बताया.

कृषि महाविद्यालय के ही घनश्याम जामलिया ने प्राकृतिक खेती के बारे में किसानों से बातचीत की. कार्यक्रम के शुभारंभ के अवसर पर कृषि विभाग के उपसंचालक केएस खपेड़िया द्वारा इस मेले के आयोजन के उद्देश्य एवं कृषि विभाग द्वारा की जा रही गतिविधियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई.
कार्यक्रम का संचालन जिला सलाहकार डा. डीके तिवारी और राम लखन शर्मा द्वारा किया गया.

इस अवसर पर जिला मुख्यालय के साथसाथ खंड मुख्यालयों से आए किसानों ने सहभागिता ही नहीं निभाई, बल्कि कृषि क्षेत्र के संबंध में हुए नवाचारों से अवगत हुए और अपनी जिज्ञासाओं का समाधान किया.

उक्त कार्यक्रम में जिले के कृषि व्यापार संघ एवं अन्य कृषि आदान विक्रेता द्वारा भी प्रदर्शनी लगा कर बढ़चढ़ कर भाग लिया. मेले में किसानों से कृषि संबंधी प्रश्नोत्तरी भी की गई एवं सही जवाब देने वाले किसानों को पुरस्कृत भी किया गया.

कार्यक्रम के दौरान सहायक संचालक कृषि महेंद्र सिंह ठाकुर ने मेले में उपस्थित समस्त अतिथियों, किसानों, कृषि आदान सामग्री विक्रेता और महिलाओं का आभार जताया. विकासखंड तकनीकी प्रबंधक अशोक रघुवंशी ने मेले में किसानों को धन्यवाद दिया. इस अवसर पर कृषि विभाग के समस्त मैदान ए अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित थे.

बनाना फेस्टिवल (Banana Festival) : बुरहानपुर जिले ने बनाया रिकौर्ड

बुरहानपुर: जिले में केला उत्पादन और प्रसंस्करण की अपार संभावनाओं को देखते हुए जिले को ‘बनाना हब‘ बनाने के लिए कार्ययोजना बनाई जाएगी. बुरहानपुर में अनूठे बनाना फेस्टिवल 2024 का शुभारंभ हुआ. इस में बड़ी संख्या में विषय विशेषज्ञों, निर्यातकों एवं केला उत्पादक किसानों एवं विभिन्न संस्थाओं के प्रमुखों ने भाग लिया.

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने प्रतिभागियों को दिए अपने संदेश में कहा कि बनाना फेस्टिवल के आयोजन से केले से निर्मित विभिन्न उत्पादों की मार्केटिंग, पैकेजिंग और प्रोसैसिंग की प्रक्रियाओं से आम लोगों को अवगत करवाने से ले कर इस उत्पाद की निर्यात वृद्धि की संभावनाएं बनेंगी.

मंत्री उद्यानिकी और खाद्य प्रसंस्करण नारायण सिंह कुशवाह ने बनाना फेस्टिवल 2024 की सराहना करतेे हुए कहा कि इस से समृद्धि एवं विकास के अवसर बनेंगे.

बुरहानपुर जिले ने राष्ट्रीय स्तर पर नया कीर्तिमान रचा

सांसद ज्ञानेश्वर पाटील ने कहा कि ‘एक जिला एक उत्पाद‘ में बुरहानपुर जिले ने राष्ट्रीय स्तर पर नया कीर्तिमान रचा है. महिला सशक्तीकरण की दिशा में भी यह योजना रोजगार के नए अवसर दे कर आर्थिक रूप से इस व्यवसाय से जुडी महिलाओ को सशक्त बना रही है. लोकल फौर वोकल के तहत ‘एक जिला एक उत्पाद’ योजना की शुरुआत से आत्मनिर्भर भारत के विजन को साकार करने की दिशा में अनेक कदम बढ़ाए हैं.

बुरहानपुर जिले में लगभग 16 लाख मीट्रिक टन केले का उत्पादन हो रहा है. ‘एक जिला एक उत्पाद’ में जिले ने स्पैशल मेंशन अवार्ड 2023 में प्रथम राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल कर बुरहानपुर जिले का नाम रोशन किया है.

बुरहानपुर विधायक अर्चना चिटनीस ने कहा कि ‘एक जिला एक उत्पाद’ का उद्देश्य स्थानीय उत्पादों के माध्यम से प्रत्येक क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है. जिले में केले के बाद सर्वाधिक उत्पादन वाली फसल हलदी है. केला और हलदी दोनों ही फसलों की प्रोसैसिंग और मूल्य संवर्धन की गतिविधियों से इन्हें उगाने वाले किसानों की आय में और वृद्धि होने की अपार संभावनाएं हैं.

नेपानगर विधायक मंजू दादू ने कहा कि प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन के लिए निजी निवेश आमंत्रित कर के स्थानीय लोगों को रोजगार और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है. इस के लिए केले के फाइबर से टेक्सटाइल व अन्य वस्तुओं के निर्माण की गतिविधियों का उत्पादन वाणिज्यिक स्तर पर करने की आवश्यकता है.

कलक्टर भव्या मित्तल ने कहा कि बनाना फेस्टिवल का मुख्य उद्देश्य ‘एक जिला एक उत्पाद’ के अंतर्गत केले से निर्मित विभिन्न उत्पाद, उन की मार्केटिंग, पैकेजिंग, प्रोसैसिंग जैसी अन्य प्रक्रियाओं से अवगत कराना है. बनाना फेस्टिवल में केले एवं हलदी के प्रसंस्करण में तकनीक, अन्वेषण एवं ब्रिक्री पर जोर देना है. भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए केले के रेशे से हस्तशिल्प उत्पाद, केले के रेशे से कपड़ा एवं विविध खाद्य उत्पादों के लिए प्रेरित किया जा रहा है.

प्रदर्शनी का अवलोकन सांसद ज्ञानेश्वर पाटील, विधायक अर्चना चिटनीस, विधायक मंजू दादू एवं कलक्टर भव्या मित्तल सहित अनेक अतिथियों ने बनाना फेस्टिवल में आयोजित केले के विभिन्न हस्तशिल्प उत्पादों की प्रदर्शनी का अवलोकन किया और सराहना भी की. वहीं केले से बने व्यंजन को चख कर प्रसन्नता व्यक्त की. प्रदर्शनी का शुभारंभ फीता काट कर किया गया.

वैज्ञानिकों एवं विषय विशेषज्ञों ने विभिन्न तकनीकियों, प्रक्रियाओं एवं बारीकियों से कराया अवगत कराया. बनाना फेस्टिवल के अंतर्गत होटल उत्सव में 3 कक्षों में विभिन्न स्तर पर सैशन आयोजित रहे, जिस में गु्रप-1 पर्ल हाल, गु्रप-2 अंबर हाल और गु्रप-3 रूबी हाल में सैशन आयोजित किए गए.

बनाना फेस्टिवल में वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों द्वारा मुख्य विषयों पर जानकारी दी गई. भव्या झा, फैशन डिजाइनर प्रोडक्ट डवलपमैंट एंड मार्केटिंग ने बनाना प्रोडक्ट का महत्व, भविष्य में संभावनाएं, हैंडी क्राफ्ट प्रोडक्ट बनाने के तौरतरीके बताए.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि प्रोडक्ट कम बनें, लेकिन अच्छे होने चाहिए. मार्केट, ग्राहक की अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए प्रोडक्ट बनाना चाहिए और प्रोडक्ट में फिनिशिंग होनी चाहिए. ब्रांडिंग के लिए सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग करें, जिस से कि आप के द्वारा बनाए गए प्रोडक्ट की पहुंच अधिक से अधिक व्यक्तियों तक हो सके.

अमृता दोषी, इंचार्ज हैड एसपीआरईआरआई बड़ोदरा ने बनाना की उपयोगिता एवं यूटिलाईजेशन औफ बनाना एग्रोवेस्ट इन टू टेक्सटाइल का महत्व बताया. उन्होंने पावर पाइंट प्रिजेंटेशन के माध्यम से बनाना के विभिन्न पहलुओं पर जानकारी दे कर अवगत कराया.

उन्होंने कहा कि हम बनाना फाइबर पर काम कर रहे हैं. कौटन फाइबर से बनाना फाइबर स्ट्रांग होता है. उत्पाद बनाते समय क्वालिटी पर विशेष ध्यान देना चाहिए. शशांक श्रीवास्तव, उद्यमी, प्लांटेरा बनाना फाइबर प्राइवेट लिमिटेड, जयपुर ने ट्रांसफार्मिंग वेस्ट इन टू वेरेबल टेक्सटाइल संबंधी आवश्यक जानकारी दी.

डा. रविंद्र नाईक, प्रधान वैज्ञानिक आईसीएआर ने केले के मूल्यवर्धन एवं तकनीक की जानकारी दी. उन्होंने मशीन के माध्यम से केले के रेशे निकालने की विभिन्न प्रक्रियाओं के चरणबद्ध प्रणाली से अवगत कराया.

वैज्ञानिक डा. चिराग देसाई ने बनाना पेपर टैक्नोलौजी की बारीकियों के साथ जानकारी दी. उन्होंने बताया कि केले के फाइबर से यूनिफार्म बनाए जा रहे हैं. बनाना पेपर काफी लंबे समय तक उपयोगी होता है एवं पर्यावरण हितैषी भी है.

उमा थेरे, एमजीआईआरआई सीनियर लैबोरेटरी असिस्टैंट ने बनाना पल्प प्रोसैसिंग की प्रक्रिया से उपस्थित लोगों को रूबरू कराया. वैज्ञानिक डा. केएन शिवा ने केले के तने एवं मध्य भाग से मूल्यवर्धित उत्पाद की जानकारी देते हुए बताया कि प्रोसैसिंग करते समय मौसम एवं गुणवत्ता की प्रमुखता होनी चाहिए. उन्होंने निर्यात के दौरान रखे जाने वाले मापदंड एवं आवश्यक विषयों की जानकारी दी.

आयोजित सैशन में रवि कुमार, वरिष्ठ सलाहकार, एमजीआईआरआई द्वारा हलदी प्रसंस्करण की बेहतर तकनीक से अवगत कराया गया. उन्होंने बताया कि प्रोसैसिंग में सौर ऊर्जा का उपयोग कर के कम लागत में अच्छाखासा मुनाफा कमा सकते हैं.

प्रांजुल रहेजा ने बताया कि यदि हम सोलर ड्रायर का इस्तेमाल करते हैं, तो समय की बचत एवं नवीन तकनीक से रूबरू हो सकेंगे. उन्होंने कहा कि इस तकनीक की खास बात यह है कि किसी भी खाद्य सामग्री की गुणवत्ता कम नहीं होने देता. इस में किसान लंबे समय तक अपनी लागत मूल्य को आसानी से निकाल सकते हैं. इस दौरान सैशन में विषय विशेषज्ञों ने वहां मौजूद लोगों द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब दे कर समाधान भी किया.

समूह की कहानी अपनी जबानी

बनाना फेस्टिवल में आजीविका केले के रेशे से निर्मित उत्पाद ‘‘समूह की कहानी अपनी जबानी‘‘ के तहत गौरी स्वयं सहायता समूह शाहपुर की सदस्य उषा उदलकर बताती हैं कि समूह की महिलाओं द्वारा केले के रेशे से विभिन्न उत्पाद बनाए जा रहे हैं.

वे आगे बताती हैं कि यूनिट में 6 मशीनों से प्रतिमाह लगभग 2500 किलोग्राम रेशा प्राप्त होता है. इस रेशे से दीप, झाडू, पेड़ सहित अन्य उत्पाद बनाए जा रहे हैं. इस से महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं. इस काम से दीदियों की माली हालत भी मजबूत हो रही है.

एपीडा की मदद से रूस को होंगे ताजा फल निर्यात (Fresh Fruits Export)

नई दिल्ली: वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण ने समुद्री रास्ते के जरीए भारत से रूस तक केले के निर्यात की सुविधा प्रदान की है. मुंबई में रहने वाले फलों और सब्जियों के निर्यातक मैसर्स गुरुकृपा कारपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड नियमित रूप से यूरोपीय संघ और मध्यपूर्व में ताजा फल और सब्जियों का निर्यात करता है.

महाराष्ट्र से 20 मीट्रिक टन (1,540 बक्से) केले की एक खेप को एपीडा के अध्यक्ष अभिषेक देव ने हरी झंडी दिखा कर भेजा. इस काम में केंद्रीय उपोष्ण कटिबंधीय बागबानी संस्थान का सहयोग रहा. एपीडा ने पारगमन में फलों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए संस्थान द्वारा इस शिपमैंट के लिए नियोजित समुद्री प्रोटोकाल, समुद्री अंतर्राष्ट्रीय संधि का पालन किया.

एपीडा के अध्यक्ष अभिषेक देव ने नए उत्पादों को नए गंतव्यों तक भेजने के लिए नए तरीके अपनाने के लिए निर्यातकों को प्रोत्साहित किया. एपीडा इन प्रयासों का समर्थन कर रहा है और सुविधाएं प्रदान कर रहा है.

उन्होंने एपीडा की वित्तीय सहायता योजना के बारे में जानकारी दी और बताया कि इस सहायता योजना में महिला उद्यमियों को अधिक समर्थन दिए जाने पर बल दिया जा रहा है. उन्होंने समुद्री प्रोटोकाल के विकास में केंद्रीय उपोष्ण कटिबंधीय बागबानी संस्थान के योगदान की सराहना की और सभी मुलाजिमों को बधाई दी.

हाल ही में रूस ने भारत से उष्ण कटिबंधीय फलों की खरीद में गहरी दिलचस्पी दिखाई है, जिन में से एक केला है. भारत से रूस में प्रमुख रूप से केले का आयात किया जाता है. इस से पहले रूस लैटिन अमेरिका में इक्वाडोर से केले का आयात करता था.

भारतीय केले के प्रमुख निर्यात स्थलों में ईरान, इराक, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, उज्बेकिस्तान, सऊदी अरब, नेपाल, कतर, कुवैत, बहरीन, अफगानिस्तान और मालदीव शामिल हैं. इस के अलावा अमेरिका, रूस, जापान, जरमनी, चीन, नीदरलैंड, ब्रिटेन और फ्रांस भारत को प्रचुर निर्यात अवसर प्रदान करते हैं.

इस खेप को मैसर्स गुरुकृपा कारपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड के बैनर तले भेजा गया. यह महिला उद्यम एपीडा में प्रमुख पंजीकृत निर्यातक है. गुरुकृपा कारपोरेशन ने आंध्र प्रदेश के किसानों से सीधे केले खरीदे.

कटाई के बाद केले को एपीडा द्वारा अनुमोदित पैकहाउस में लाया गया, महाराष्ट्र में इसे श्रेणियों में बांटा गया और पैक किया गया. उस के बाद कंटेनरों में भरा गया और कंटेनरों को रूस में मास्को भेजे जाने के लिए जवाहर लाल नेहरू बंदरगाह से रूस के नोवोरोस्सिएस्क बंदरगाह के लिए रवाना किया गया.

भारत में आंध्र प्रदेश केले का सब से बड़ा उत्पादक राज्य है. यहां की मुख्य फसल केला है. इस के बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश हैं. इन 5 राज्यों ने वित्तीय वर्ष 2022-2023 में भारत के केला उत्पादन में सामूहिक रूप से तकरीबन 67 फीसदी का योगदान दिया.

केले का सब से बड़ा वैश्विक उत्पादक होने के बावजूद भारत बड़ी मात्रा में विश्व को केले निर्यात नहीं करता. वैश्विक बाजार में भारत का निर्यात का हिस्सा महज एक फीसदी है, जबकि विश्व के केला उत्पादन (35.36 मिलियन मीट्रिक टन) में देश की हिस्सेदारी 26.45 फीसदी है. वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत ने 176 मिलियन अमरीकी डालर केले का निर्यात किया, जो 0.36 मिलियन मीट्रिक टन के बराबर है.

अगले 5 सालों में भारत से केले के निर्यात में एक बिलियन अमरीकी डालर का लक्ष्य हासिल करने की उम्मीद है. यह उपलब्धि किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित करेगी और 25,000 से अधिक किसानों की आजीविका में सुधार करेगी. इस से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आपूर्ति श्रंखला से जुड़े 50,000 से अधिक एग्रीगेटर्स के लिए रोजगार सृजन का अनुमान है.

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात में वृद्धि एपीडा द्वारा कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात को बढ़ावा देने के लिए की गई विभिन्न पहलों का परिणाम है. इन पहलों मंे विभिन्न देशों में बी2बी प्रदर्शनियों का आयोजन, उत्पाद विशिष्ट और सामान्य विपणन अभियानों के माध्यम से नए संभावित बाजारों की खोज करना, प्राकृतिक, जैविक और भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग वाले कृषि उत्पादों पर विशेष ध्यान देने के साथ ही भारतीय दूतावासों की सक्रिय भागीदारी के साथ प्रयास किए गए हैं.

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ताजा फलों और सब्जियों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयासरत है. विशेष रूप से लंबी दूरी के गंतव्यों के लिए, फलों और सब्जियों की गुणवत्ता और विशेषताओं को बनाए रखना और समुद्री प्रोटोकाल का विकास एपीडा के अग्रसर रहने का प्रमुख लक्ष्य है.

पीएम विश्वकर्मा योजना (PM Vishwakarma scheme) बनाएगी आत्मनिर्भर

संत कबीर नगर: जिलाधिकारी महेंद्र सिंह तंवर की अध्यक्षता में पीएम विश्वकर्मा योजना के क्रियान्वयन हेतु बैठक आयोजित की गई. इसी क्रम में उपायुक्त उद्योग द्वारा अवगत कराया गया कि भारत सरकार द्वारा देश के ऐसे सभी नागरिको को, जो पांरपरिक शिल्पकार या कारीगर हों, उन के लिए महत्वाकांक्षी योजना पीएम विश्वकर्मा योजना की घोषणा की गई है.

इस योजना में लाभ प्राप्त करने के लिए पंरपरागत 18 ट्रेड से जुडे़ व्यक्तियों जैसे- कारपेंटर (सुथार), नाव बनाने वाले (बोट मेकर), अस्त्र बनाने वाले (आरमोरर), लोहार (ब्लैकस्मिथ), ताला बनाने वाले (लौकस्मिथ), हथौड़ा और टूलकिट बनाने वाले (हैमर और टूलकिट मेकर), सुनार (गोल्डस्मिथ) कुम्हार (पौटर), मूर्तिकार (स्कल्पटर), मोची (कौबलर, शूस्मिथ), राजमिस्त्री (मेसन), डलिया, चटाई, झाड़ू बनाने वाले (कोईर, मैट, ब्रूम मेकर), गुड़िया और खिलौने बनाने वाले (डौल एंड टौय मेकर), नाई (बार्बर), मालाकार (गारलैंड मेकर) धोबी (वाशरमैन), दर्जी (टेलर), मछली का जाल बनाने वाले (फिशिंग नेट मेकर) इत्यादि को कौशल प्रशिक्षण प्रदान कर उन की कुशलता में वृद्धि एवं आत्मनिर्भर बनाना है.

इस योजना में आवेदक की उम्र न्यूनतम 18 वर्ष हो, आवेदक पांरपरिक शिल्पकार या कारीगर हो.

आवेदक को स्वतः जन सेवा केंद्र के माध्यम से अपने को पंजीकृत कराना है. पंजीयन के बाद चयनित अभ्यर्थी को 5 दिवसीय कौशल प्रशिक्षण के बाद 15,000 रुपए का ई-वाउचर दिया जाएगा, जिस से वह संबंधित टूलकिट प्राप्त कर स्वतः रोजगार में लग जाएंगे.

इच्छुक अभ्यर्थी को बैंक के माध्यम से एक लाख रुपए तक का कर्ज 5 फीसदी ब्याज पर देय होगा. अभ्यर्थी जनसेवा केंद्र के माध्यम से वैबसाइट पर अपना पंजीयन कर सकते हंै.

बैठक को संबोधित करते हुए जिलाधिकारी महेंद्र सिंह तंवर द्वारा विवेक कुमार पांडेय, प्रतिनिधि, डीपीआरओ को निर्देशित किया गया कि सभी ग्राम पंचायत के ग्राम प्रधानों को पोर्टल पर विशेष अभियान चला कर औनबोर्ड कराना सुनिश्चित करें.

बैठक में उपस्थित संबंधित समस्त विभागों के अधिकारियों को उक्त योजना में अधिक से अधिक लोगांे को लाभान्वित कराने का निर्देश दिया गया. साथ ही, यह भी निर्देशित किया गया कि इस योजना का प्रचारप्रसार ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में व्यापक रूप से कराया जाए और इन के कुशल प्रशिक्षण, उत्पादकता, उत्पाद की पैकेजिंग, ब्रांडिंग एवं मार्केटिंग लिंकेज पर विशेष ध्यान दिया जाए.

इस अवसर पर परियोजना निदेशक संजय कुमार नायक, पीओ डूडा प्रमेंद्र सिंह, प्रधानाचार्य आईटीआई, खलीलाबाद, बृजेश कुमार, प्रधानाचार्य आईटीआई मेहंदावल, उदय नारायण, उपप्रबंधक रोहित कुमार गौड़, बीडीओ, बेलहरकला राकेश कुमार श्रीवास्तव, एडीओ, खलीलाबाद अशोक कुमार गुप्त, बीडीओ मेहंदावल सुरेश कुमार मौर्य, एलबी सिंह, प्रभारी अधिकारी खादी ग्रामोद्योग राकेश पांडेय, टैक्सटाइल इंस्पैक्टर मनोज कुमार, श्रम विभाग, डा. राकेश कुमार सिंह, डीडी (ए,जी) विवेक कुमार पांडेय, (डीपीआरओ प्रतिनिधि) विवेकानंद वर्मा, शिवशंकर विश्वकर्मा सदस्य सहित अन्य जनपद स्तरीय अधिकारी उपस्थित रहे.

मछुआरों को मिलेगा डिजिटल मंच (Digital Platform)

नई दिल्ली: मत्स्यपालन विभाग ने केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला, राज्य मंत्री डा. एल. मुरुगन, सचिव (मत्स्यपालन) डा. अभिलक्ष लिखी, संयुक्त सचिव (अंतर्देशीय मत्स्यपालन), सागर मेहरा, एमडी, ओएनडीसी टी. कोशी और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में नई दिल्ली में डिजिटल कौमर्स संबंधी ओपन नैटवर्क (ओएनडीसी) के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया. मंत्री परषोत्तम रूपाला ने इस अवसर पर एक पुस्तिका ‘‘फ्रौम कैच टू कौमर्स, इंक्रीजिंग मार्केट एक्सेस थ्रू डिजिटल ट्रांसफौर्मेशन‘‘ का विमोचन भी किया.

इस सहयोग का उद्देश्य एक डिजिटल मंच प्रदान करना और पारंपरिक मछुआरों, मछली किसान उत्पादक संगठनों, मत्स्यपालन क्षेत्र के उद्यमियों सहित सभी हितधारकों को ई-मार्केट प्लेस के माध्यम से अपने उत्पाद खरीदने और बेचने के लिए सशक्त बनाना है. ओएनडीसी ई-मार्केटिंग का एक अनूठा मंच है, जो मछुआरों, मछली किसानों, एफएफपीओ, स्वयं सहायता समूहों और अन्य मछुआरा सहकारी समितियों को एक संरचित तरीके से जोड़ कर मत्स्यपालन क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.

केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रुपाला ने एफएफपीओ के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की, जिन्होंने ओएनडीसी मंच पर शामिल होने से पहले और बाद के अपने अनुभवों को साझा किया. इस के बाद एफएफपीओ ने जिंदा मछली परिवहन इकाई के विकास जैसी अपनी सफलता की कहानियों को भी साझा किया. उन्होंने एफएफपीओ के प्रयासों की सराहना की और भविष्य में मछली उत्पादों के प्रसंस्करण में और अधिक आटोमेशन अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया.

मंत्री परषोत्तम रूपाला ने एमओयू हस्ताक्षर समारोह के दौरान मछुआरों और एफएफपीओ के साथ बातचीत करते हुए मूल्य श्रंखला और मछली प्रसंस्करण इकाइयों में स्वचालन की आवश्यकता पर जोर दिया.

उन्होंने आगे बताया कि ओएनडीसी के साथ मत्स्यपालन विभाग का यह सहयोग न केवल इन चुनौतियों को संबोधित करेगा, बल्कि यह भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र में डिजिटल वाणिज्य की क्षमताओं को सामने लाने में मदद भी करेगा.

उन्होंने इस बात पर बल दिया कि इस सहयोग से मत्स्यपालन उद्योगों को कई लाभ मिलेंगे, जैसे लेनदेन लागत में कमी, बाजार तक पहुंच में वृद्धि, पारदर्शिता में सुधार, प्रतिस्पर्धा और प्रतिस्पर्धी क्षमता में वृद्धि, नवाचार और रोजगार सृजन आदि. इस के अलावा उन्होंने पारंपरिक मछुआरों, एफएफपीओ और अन्य हितधारकों को ई-मार्केट के माध्यम से मछली और मछली उत्पादों को खरीदने और बेचने के लिए डिजिटल मंच प्रदान करने पर खुशी जताई.

उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि यह डिजिटल इंडिया पहल को पूरा करने की दिशा में डीओएफ और ओएनडीसी के बीच एक ऐतिहासिक समझौता ज्ञापन है.

वहीं डा. एल. मुरुगन ने कहा कि ओएनडीसी के साथ मत्स्यपालन विभाग का यह सहयोग क्रांति लाने के लिए एक अभूतपूर्व पहल होगी. यह पहल मूल्यवर्धित मत्स्यपालन से संबंधित उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए एक मंच भी प्रदान करेगी, जो उत्पादकों को उच्च मार्जिन हासिल करने और अपने उत्पाद की पेशकश में विविधता लाने की अनुमति देगी.

उन्होंने घरेलू मछली की खपत को बढ़ाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला और मछली उत्पादों को खरीदने और बेचने के लिए सभी पारंपरिक मछुआरों, एफएफपीओ को डिजिटल प्लेटफार्म पर जोड़ने की डीओएफ की इस पहल से घरेलू मछली की खपत को प्रोत्साहित करने में मदद मिलेगी.

डा. अभिलक्ष लिखी ने डिजिटल कौमर्स संबंधी ओपन नैटवर्क के विभिन्न इस्तेमालों और विशेषताओं का उपयोग करने के लिए मछुआरों को सशक्त बनाने के लिए क्षमता निर्माण, उन के प्रशिक्षण और उन तक कैसे पहुंच बनाई जाए, इन बातों पर प्रकाश डाला. साथ ही, उन्होंने इस बात पर भी रोशनी डाली कि हितधारकों को गुणवत्ता, प्रमाणन, टिकाऊ प्रथाओं के आधार पर अपने उत्पादों को डिफ्रेंशिएट  अलग करने में भी सक्षम बनाया जाएगा और उन को उन में से विकल्प चुनने की अनुमति दी जाएगी.

Fisherman

संयुक्त सचिव (मत्स्यपालन), सागर मेहरा ने ओएनडीसी के सहयोग से मत्स्यपालन विभाग की पहल के बारे में प्रकाश डालते हुए कहा कि डीओएफ ने पीएमएमएसवाई के तहत 2,195 एफएफपीओ के गठन का समर्थन किया है और लगभग 35 एफएफपीओ को पहले ही ओएनडीसी के नैटवर्क से जोड़ दिया गया है, जो 10 राज्यों (आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल) को कवर करते हैं.

टी. कोशी ने एक लघु वीडियो के जरीए सहयोग के माध्यम से मछुआरों, एफएफपीओ, मछुआरों की सहकारी समितियों, विक्रेताओं आदि को होने वाले लाभों पर प्रकाश डालते हुए ओएनडीसी के बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया कि तकरीबन 3,000 किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) ने विभिन्न नैटवर्क के माध्यम से ओएनडीसी पर पंजीकरण कराया है. इस के अलावा तकरीबन 400 स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी), सूक्ष्म उद्यमियों और सामाजिक क्षेत्र के उद्यमों को बाजार में प्रीमियम कीमतों पर नियंत्रण रखने और उपभोक्ता के अनुरूप मूल्यवर्धित उत्पाद बनाने के लिए नैटवर्क पर शामिल किया गया है.

इस अवसर पर मत्स्यपालन विभाग के अधिकारी, मछुआरे, मछली किसान उत्पादक संगठन, उद्यमी, मछुआरा सहकारी समितियां आदि के 120 हितधारकों ने प्रत्यक्ष रूप से भागीदारी की. एसएफएसी, नेफेड, एनसीडीसी आदि संबंधित संगठनों से एफएफपीओ जैसे विस्तारित प्रतिभागी वीडियो कौंफ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़े थे. यह कार्यक्रम एक व्यापक दृष्टिकोण की परिकल्पना करता है, जो यह सुनिश्चित करेगा कि छोटे स्तर के मछुआरों और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को बाजार के अवसरों तक समान पहुंच मिले, सामाजिक समावेशन और समान आर्थिक विकास को बढ़ावा मिले.

सरकार मत्स्यपालन क्षेत्र को व्यापक तरीके से बदलने और नीली क्रांति, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई), मत्स्यपालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास निधि (एफआईडीएफ), किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) और विभिन्न अन्य कार्यक्रमों जैसी योजनाओं एवं पहलों के माध्यम से आर्थिक उत्थान और समृद्धि लाने में हमेशा सब से आगे रही है. वैश्विक मछली उत्पादन में 8 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ भारत झींगा उत्पादक में पहला सब से बड़ा, जलीय कृषि उत्पादक में दूसरा सब से बड़ा, तीसरा सब से बड़ा मछली उत्पादक और मछली एवं मत्स्यपालन उत्पादों के निर्यात में चैथा सब से बड़ा देश है.