वैश्विक नीम (Neem) व्यापार मेले का आयोजन

नई दिल्ली: आईसीएआर के केंद्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान संस्थान, झांसी के सहयोग से नई दिल्ली में ‘नीम शिखर सम्मेलन और वैश्विक नीम व्यापार मेले’ का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम का आरंभ सचिव, डीएआरई और महानिदेशक, आईसीएआर डा. हिमांशु पाठक द्वारा व्यापार मेले के उद्घाटन के साथ हुआ. व्यापार मेले में देशविदेश की 22 कंपनियों ने भाग लिया और अपने उत्पाद प्रदर्शित किए.

इस के बाद सचिव, डीएआरई और महानिदेशक, आईसीएआर डा. हिमांशु पाठक ने अतिथियों डा. पीके सिंह, कृषि उत्पादन आयुक्त एवं न्यायमूर्ति केटी तातेड़, अध्यक्ष, मानवाधिकार आयोग, महाराष्ट्र सरकार के साथ ‘नीम शिखर सम्मेलन’ का उद्घाटन किया.

इस संगोष्ठी में 10 विदेशियों सहित तकरीबन 250 प्रतिभागियों ने भाग लिया. संगोष्ठी का विषय ‘टिकाऊ कृषि, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए नीम‘ है. डब्ल्यूएनओ के अध्यक्ष डा. बीएन व्यास ने अतिथियों का स्वागत किया. डा. ए. अरुणाचलम ने कार्यक्रम की शुरुआत की और डा. राजबीर सिंह ने नीम पर शुरुआती भाषण दिया.

विशिष्ट अतिथियों ने मानव कल्याण में नीम के महत्व को रेखांकित किया. देश में नीमलेपित यूरिया और नीम आधारित स्वास्थ्य उत्पादों को बढ़ावा देने को प्राथमिकता दिए जाने के साथ ही नीम उगाना महत्वपूर्ण हो गया है और इस के लिए एक राष्ट्रीय स्तर के मिशन की आवश्यकता है.

कुलमिला कर शिखर सम्मेलन के दौरान नीम को वृक्षारोपण वानिकी के विकल्प के रूप में चिह्नित किया गया, जो उद्योग की कच्चे माल की आवश्यकताएं पूरी करेगा. साथ ही, इस कार्यक्रम में कार्बन खेती के लिए भी नीम के पेड़ों की वकालत की गई.

इस 2 दिवसीय कार्यक्रम में समाज और उद्योग के लिए नीम अनुसंधान और विकास से संबंधित विभिन्न तकनीकी मामलों पर विचारविमर्श करने के लिए तकरीबन 7 तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया. इस दौरान स्मारिका, डब्ल्यूएनओ कलैंडर और ‘नीम फील्ड जीन बैंकः प्रोविजनिंग अपोरच्युनिटी फौर कंजर्वेशन एंड यूटिलाइजेशन‘ शीर्षक से तकनीकी बुलैटिन जारी किया गया, जिस के बाद डब्ल्यूएनओ वृत्तचित्र लौंच किया गया.

कंप्रैस्ड बायो गैस (Compressed Bio Gas) संयंत्र की स्थापना

संत कबीरनगर: जनपद में उत्तर प्रदेश राज्य जैव ऊर्जा नीति, 2022 के अंतर्गत कंप्रैस्ड बायो गैस (सीबीजी) संयंत्र की स्थापना के लिए जनपद में चिह्नित ग्राम सभा व सरकारी भूमि को अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत विभाग के पक्ष में उपलब्ध कराने के बारे में निदेशक, उत्तर प्रदेश नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विकास अभिकरण को अवगत कराया गया है.

जो प्रदेश सरकार द्वारा प्रख्यापित राज्य जैव ऊर्जा नीति, 2022 के अंतर्गत जनपद में कंप्रैस्ड बायो गैस (सीबीजी) संयंत्र की स्थापना के लिए राजस्व विभाग के उल्लिखित व्यवस्था के अनुसार भूमि चिह्नांकित कर अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत विभाग, उत्तर प्रदेश शासन के नाम पट्टे पर उपलब्ध कराना है.

उक्त जानकारी देते हुए जिलाधिकारी महेंद्र सिंह तंवर ने बताया कि चिन्हित भूमि का सीबीजी प्लांट के लिए प्रस्ताव उपजिलाधिकारी, खलीलाबाद द्वारा तहसील खलीलाबाद के विकास खंड, बघौली में राजस्व ग्राम परजूडीह के गाटा संख्या 280 (क्षेत्रफल 20.00) भूमि की प्रकृति व श्रेणी चारागाह चिन्हित किया गया है.

उन्होंने बताया कि पहला प्रस्ताव ग्राम परजुडीह, तहसील खलीलाबाद में भेजा गया है. साथ ही, तहसील धनघटा एवं मेहंदावल में भूमि तलाशी जा रही है. इस संबंध में जल्दी ही प्रस्ताव भेजा जाएगा. इस में तकरीबन 200 करोड़ रुपए का निवेश होने की संभावना है.

उन्होंने आगे बताया कि उत्तर प्रदेश राज्य जैव ऊर्जा नीति, 2022 के अनुसार, 10 टन क्षमता के सीबीजी प्लांट के अनुसार ऊर्जा उद्यम की स्थापना एवं संचालन के लिए 10 एकड़ भूमि जरूरी होगी. अतः 20 टन प्रति दिन क्षमता के सीबीजी प्लांट के लिए वर्तमान में 20 एकड़ भूमि उपलब्ध कराई जा रही है.

साथ ही, संयंत्र स्थापना एवं संचालन के लिए आवश्यक भूमि के अतिरिक्त अन्य शेष भूमि पर निराश्रित गोवंशों के लिए गोआश्रय स्थल एवं चारागाह बनाया जाना सीबीजी प्लांट एवं निराश्रित गोवंशों के लिए उपयुक्त होगा.

इस के संबंध में भी निदेशक, उत्तर प्रदेश नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विकास अभिकरण से मैसर्स आरएसपीएल लिमिटेड गुरुग्राम, हरियाणा को जरूरी दिशानिर्देश देने की अपेक्षा जिलाधिकारी द्वारा की गई है.

सीबीजी संयंत्र स्थापना हेतु उपजिलाधिकारी, खलीलाबाद संत कबीरनगर के स्तर से उपलब्ध कराए गए प्रस्ताव को जिलाधिकारी द्वारा निदेशक, उप्र नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विकास अभिकरण को इस अनुरोध के साथ प्रेषित किया गया कि जनपद में 20 टन प्रति दिन क्षमता के कंप्रैस्ड बायो गैस संयंत्र (सीबीजी) स्थापना की कार्यवाही उत्तर प्रदेश राज्य जैव ऊर्जा नीति 2022 एवं अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत विभाग उत्तर प्रदेश से प्राप्त निर्देशों के क्रम में करने का काम करें.

अफीम (Opium) की नई किस्म ’चेतक’ विकसित

उदयपुर: 15 फरवरी, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने परीक्षणों की लंबी प्रक्रिया के बाद अफीम की नई किस्म ’चेतक’ विकसित की है. परीक्षणों में पाया गया कि ’चेतक’ अफीम में न केवल मार्फिन, बल्कि डोडा पोस्त में भी ज्यादा उत्पादन प्राप्त होगा. अफीम की यह खास किस्म राजस्थान सहित मध्य प्रदेश व उŸार प्रदेश की जलवायु के लिए भी अति उत्तम है.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशक, डा. अरविंद वर्मा ने बताया कि इस किस्म का विकास अखिल भारतीय औषधीय एवं सगंधीय पौध अनुसंधान परियोजना, उदयपुर के तहत डा. अमित दाधीच, पादप प्रजनक एवं परियोजना प्रभारी की टीम ने किया है.

उन के मुताबिक, औषधीय एवं सगंधीय अनुसंधान निदेशालय, बोरीयावी, आणंद, गुजरात, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा आयोजित नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या, उत्तर प्रदेश में 7-9 फरवरी, 2024 को 31वीं वार्षिक समीक्षा बैठक में इस किस्म (चेतक अफीम) की पहचान भारत में अफीम की खेती करने वाले राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश के लिए की गई है.

अफीम (Opium)डा. अमित दाधीच ने बताया कि यदि किसान वैज्ञानिक तकनीक को आधार मान कर ‘चेतक’ अफीम की फसल का उत्पादन करता है, तो अफीम की खेती से औसतन 58 किलोग्राम अफीम प्रति हेक्टेयर साथ ही औसत मार्फिन उपज 6.84 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है, 10-11 क्विंटल औसत अफीम बीज प्रति हेक्टेयर एवं 9-10 क्विंटल औसत डोडा पोस्त प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त किया जा सकता है.

इस किस्म की विशेषता है कि इस के फूल सफेद रंग के होते हंै. इस किस्म में अफीम लूना (एकत्रित) करने के लिए बोआई के 100-105 दिन के बाद चीरा लगाना चाहिए. इस किस्म में मार्फिन की मात्रा औसतन 11.99 फीसदी है. इस किस्म के बीज 135-140 दिन में पूरी तरह पक जाते हैं. किसानों के खेतों पर ‘चेतक’ अफीम का प्रथम पंक्ति प्रदर्शन में भी अच्छा प्रदर्शन रहा है.

किसानों का बढे़गा आर्थिक लाभ

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि प्रदेश के चित्तौडगढ़, प्रतापगढ़, उदयपुर, भीलवाड़ा, कोटा, बांरां एवं झालावाड़ जिलों में अफीम की खेती बहुतायत में की जाती है. ऐसे में ‘चेतक’ अफीम की खेती से किसानों का आर्थिक लाभ बढ़ेगा. भारत सरकार के केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो के द्वारा जारी पट््टों (लाइसैंस) के आधार पर किसानों द्वारा इस की खेती की जा रही है.

नई तकनीक व अनुसंधान क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अखिल भारतीय औषधीय एवं संगधीय पौध अनुसंधान परियोजना को राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठ औषधीय एवं संगधीय पादप परियोजना, अनुसंधान निदेशालय केंद्र का वर्ष 2021-22 अवार्ड मिला है. डा. अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने बताया कि अखिल भारतीय औषधीय एवं संगधीय पौध अनुसंधान परियोजना के देश में 26 केंद्र हैं.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर को नई अनुसंधान तकनीकों, नए रिसर्च, किसानों को प्रशिक्षण देना एवं तकनीक को किसानों तक पहुंचाने आदि कामों के लिए यह अवार्ड दिया गया है.

घीया (Sponge Gourd) की खास किस्म ‘एचबीजीएच हाईब्रिड-35’

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित घीया की संकर किस्म ‘एचबीजीएच हाईब्रिड-35’ किस्म ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत है, जिस से कि किसान न केवल इस किस्म की अच्छी पैदावार पा सकते हैं, अपितु अच्छी आमदनी प्राप्त कर अपनी माली हालत को मजबूत भी कर सकते हैं. इसी कड़ी में चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और इंडियन फार्म फारेस्ट्री डवलपमैंट कोऔपरेटिव लिमिटेड (आईएफएफडीसी), हिसार के बीच एमओयू हुआ है.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज की उपस्थिति में विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा और इंडियन फार्म फारेस्ट्री डवलपमैंट कोऔपरेटिव लिमिटेड, दिल्ली के एमडी एसपी सिंह ने इस एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं. इस दौरान इंडियन फार्म फारेस्ट्री डवलपमेंट कोऔपरेटिव लिमिटेड, हिसार के डीजीएम मांगेराम भी मौजूद रहे.

इस अवसर पर इंडियन फार्म फौरेस्ट्री डवलपमैंट कोऔपरेटिव लिमिटेड, दिल्ली के एमडी एसपी सिंह ने कहा कि चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय किसानों से सीधेतौर से जुड़ कर उन के उत्थान में अग्रणी भूमिका निभा रहा है. विश्वविद्यालय द्वारा विकसित घीया की किस्म ‘एचबीजीएच हाईब्रिड-35’ के बीजों को खेत में बोने के बाद इस के फल पहली तुड़ाई के लिए तकरीबन 55 दिन बाद मंडी में आ जाती है. खास बात यह है कि इस किस्म के फलों का आकार बेलनाकर होने के कारण इसे काफी पसंद किया जाता है.

किस्म की खूबियां:

सब्जी विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डा. एसके तेहलान ने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित घीया की ‘एचबीजीएच हाईब्रिड-35’ की औसतन पैदावार बारिश एवं गरमी के मौसम में 300-310 क्विंटल प्रति हेक्टेयर आंकी गई है.

इस किस्म की घीया लंबाई में मध्यम, फलों का छिलका पतला एवं मुलायम होता है. साथ ही, इस के फल हलके हरे रंग में बेलनाकार आकार के होते हैं और इन्हें पकाने में भी कम समय लगता है. इसलिए किसान इस किस्म को उगाना अधिक पसंद करते हैं. घीया की एचबीजीएच हाईब्रिड-35 बरसात एवं गरमी की फसल दोनों में प्रमुख बीमारियों जैसे कि पत्ती का धब्बा रोग एवं एंथेक्नोज नामक बीमारी का प्रकोप भी कम मात्रा में होता है.

इस संकर किस्म में कीटों की शुरुआती अवस्था में लालड़ी नामक कीट का कम आक्रमण होता है, जिस को कीट विभाग द्वारा अनुमोदित कैमिकल से आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है.

सब्जी विज्ञान विभाग की वैज्ञानिक टीम द्वारा विकसित घीया की ‘एचबीजीएच हाईब्रिड-35’ को गरमी व बारिश के दिनों में उगाया जा सकता है. घीया की ‘एचबीजीएच हाईब्रिड-35’ पर बीते 3 सालों तक परीक्षण किए गए, जिन में बारिश के मौसम में इस किस्म की अधिकतम पैदावार 355 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और गरमी के मौसम में इस की पैदावार 260 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दर्ज की गई.

इन्हीं मौसमों में इस किस्म के साथ उगाए गए चेक संकर किस्मों से इस किस्म की पैदावार लगभग 25 फीसदी अधिक आंकी गई.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय की ओर से ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. मंजू महता, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य, एसवीसी कपिल अरोड़ा, डा. धर्मबीर मौजूद रहे.

कृषि यंत्रों (Agricultural Equipment) की लगी प्रदर्शनी

हिसारः चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के फार्म मशीनरी एवं पावर इंजीनियरिंग व नवीकरणीय और जैव ऊर्जा इंजीनियरिंग विभाग के अंतर्गत चल रही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की कृषि उपकरण एवं मशीनरी, कृषि एवं कृषि आधारित उद्योगों में ऊर्जा परियोजना के तहत गांव आर्य नगर में तकनीकी एवं मशीनरी प्रदर्शनी मेला-2024 का आयोजन किया गया.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डा. जीतराम शर्मा मुख्य अतिथि रहे. उन्होंने आधुनिक युग में कृषि तकनीकों एवं मशीनरी की विस्तृत रूप से जानकारी देते हुए उन के महत्व को बताया. कृषि यंत्रों व मशीनों के जरीए खेती को न केवल आसान बनाया जा सकता है, बल्कि समय व मेहनत की बचत के साथसाथ फसल उत्पादन को भी बढ़ाया जा सकता है. उन्होंने किसानों से कहा कि वे कृषि से संबंधित समस्या के निवारण के लिए विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की मदद ले सकते हैं.

मेले में कृषि महाविद्यालय एवं कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने किसानों से संवाद कर कृषि संबंधित समस्याएं सुनीं और सुझाव दिए. फार्म मशीनरी एवं पावर इंजीनियरिंग विभाग की विभागाध्यक्ष डा. विजया रानी ने सभी का स्वागत कर किसानों को खेती की तैयारी से ले कर फसल की कटाई के लिए उपलब्ध मशीनें, खेती में उपयोगी नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत इत्यादि के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

उन्होंने आगे कहा कि तकनीकी एवं मशीनरी प्रदर्शनी मेला-2024 में कृषि मशीनीकरण के अंतर्गत छोटी जोत वाले किसानों के लिए मशीनों व तकनीकों की प्रदर्शनी लगाई गई, जिस में किसानों के लिए छोटे ट्रैक्टर इंजनचालित जुताई व निराईगुड़ाई यंत्र, फसल अवशेष प्रबंधन के लिए उपयोगी मशीनें जैसे सुपर सीडर, मल्चर व बेलर आदि यंत्रों को प्रदर्शित किया गया. साथ ही, किसानों को इन उपरोक्त विषयों पर जानकारी दे कर इन्हें अपनाने के लिए प्रेरित किया.

इस अवसर पर मेले में विश्वविद्यालय के कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय से इंजीनियर स्वाप्रिल चैधरी, डा. गणेश उपाध्याय, इंजीनियर नरेश, भारत पटेल एव अमित कुमार सहित अन्य वैज्ञानिक उपस्थित रहे और अपनेअपने विषयों पर व्याख्यान दिए.

मेले में आर्य नगर सहित आसपास के गांवों के काफी तादाद में किसानों ने हिस्सा लिया. इस के अलावा आर्य नगर के स्कूलों के विद्यार्थियों के बीच कृषि यंत्रीकरण विषय पर भाषण प्रतियोगिता भी आयोजित की गई और विजेताओं को पुरस्कृत किया गया. किसानों के मनोरंजन के लिए हरियाणा कला परिषद की ओर से विकास सातरोड़ सहित कलाकारों ने सुंदरसुंदर प्रस्तुतियां दीं.

कृषि निर्यात (Agricultural Exports) के लिए एपीईडीए है खास

नई दिल्ली: वर्ष 1987-88 में 0.6 बिलियन अमेरिकी डालर के सालाना निर्यात की मामूली शुरुआत से कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) के सक्रिय सहयोग द्वारा वित्तीय वर्ष 2022-23 में कृषि निर्यात (Agricultural Exports) में 26.7 बिलियन अमेरिकी डालर की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. इस वृद्धि की यात्रा को 200 से अधिक देशों में निर्यात के विस्तार द्वारा रेखांकित किया गया है, यह 12 फीसदी की सराहनीय चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) को दर्शाता है.

वर्ष 2022-23 की अवधि में भारत का कृषि निर्यात 53.1 बिलियन अमरीकी डालर तक पहुंच गया. भारत के इस कृषि निर्यात में एपीईडीए का योगदान 51 फीसदी रहा. अप्रैलदिसंबर, 2023 की अवधि में एपीईडीए के निर्यात समूह में 23 प्रमुख वस्तुओं में से 18 ने सकारात्मक वृद्धि का प्रदर्शन किया.

विशेष रूप से 15 बड़ी प्रमुख वस्तुओं में से 13, जिन का निर्यात पिछले वर्ष 100 मिलियन अमेरिकी डालर से अधिक था, इन्होंने 12 फीसदी की औसत वृद्धि दर के साथ सकारात्मक वृद्धि की. वहीं ताजा फलों ने 29 फीसदी की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज करते हुए उत्कृष्टता प्राप्त की.

इस के अलावा इस अवधि में प्रसंस्कृत सब्जियों के निर्यात में 24 फीसदी की वृद्धि हुई. इस के बाद विविध प्रसंस्कृत वस्तुओं, बासमती चावल और ताजी सब्जियों के निर्यात में भी पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में पर्याप्त वृद्धि हुई. ताजा फलों के निर्यात में भारत ने उल्लेखनीय रूप से वृद्धि की. यह पिछले वर्ष के 102 गंतव्य देशों की तुलना में आज 111 देशों को अपनी सेवाएं दे रहा है.

एपीईडीए ने 13 फरवरी, 2024 को अपने 38वें स्थापना दिवस के अवसर पर कृषि निर्यात के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अद्वितीय वृद्धि और प्रगति का उत्सव मनाया. कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य के साथ वर्ष 1986 में स्थापित एपीईडीए भारत के कृषि निर्यात को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभर कर आया है.

अप्रैलनवंबर 2023 के दौरान कई प्रमुख वस्तुओं में पिछले वर्ष की तुलना में पर्याप्त वृद्धि देखी गई, जैसे केले में 63 फीसदी, दालें (सूखे और छिलके वाले) में 110 फीसदी, ताजे अंडे में 160 फीसदी और केसर व दशहरी आम में क्रमशः 120 फीसदी और 140 फीसदी रहा.

अप्रैल से दिसंबर, 2023 की अवधि के दौरान बासमती चावल के निर्यात मूल्य में 19 फीसदी की वृद्धि देखी गई, जो पिछले वर्ष के 3.33 बिलियन अमेरिकी डालर की तुलना में 3.97 बिलियन अमेरिकी डालर तक पहुंच गया. साथ ही, निर्यात की मात्रा में 11 फीसदी की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो समान समयसीमा में 31.98 लाख मीट्रिक टन से बढ़ कर 35.43 लाख मीट्रिक टन हो गई.

बासमती चावल ने शीर्ष बाजारों तक अपनी पहुंच बना ली है. ईरान, इराक, सऊदी अरब, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात इन निर्यातों के लिए शीर्ष 5 गंतव्यों के रूप में उभर कर आए हैं.

निर्यात का यह दमदार प्रदर्शन बासमती चावल की स्थायी लोकप्रियता और वैश्विक मांग की पुष्टि करता है, जिस से भारत के निर्यात क्षेत्र में एक प्रमुख कृषि उत्पाद के रूप में इस की स्थिति और अधिक मजबूत हो गई है.

किसान बना निर्यातक (Exporter) : आस्ट्रेलिया भेजा मोटा अनाज

नई दिल्ली: कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने मोटा अनाज आधारित मूल्यवर्धित उत्पादों के विपणन और निर्यात में तकरीबन 500 स्टार्टअप को सुविधा प्रदान की है. संगरूर के किसान दिलप्रीत सिंह निर्यातक बन गए हैं. उन्होंने 803 अमेरिकी डालर कीमत की 14.3 मीट्रिक टन मोटा अनाज की पहली खेप निर्यात की. एपीडा के अध्यक्ष अभिषेक देव ने उन की पहली खेप को हरी झंडी दिखा कर भेजा.

इस खेप में कोदो मिलेट, फौक्सटेल मिलेट, लिटिल मिलेट, ब्राउनटौप मिलेट और बार्नयार्ड मिलेट से बने रेडी टू कुक मोटा अनाज शामिल हैं. इस के अलावा रागी, ज्वार, बाजरा, फौक्सटेल, कोदो, बार्नयार्ड, ब्राउनटौप, लिटिल और प्रोसो मोटा अनाजों से तैयार आटा भी इस अद्वितीय निर्यात खेप में शामिल है.

सिडनी स्थित आयातक जसवीर सिंह ने भी वर्चुअल फ्लैगऔफ समारोह में भाग लिया.

उन्होंने इस सहकार्य को आसान बनाने में भरपूर मदद के लिए एपीडा के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया. वह मोटा अनाज को ले कर आगे व्यापार के अवसरों को बढ़ाने को ले कर आशावादी हैं. उन्होंने भविष्य में इस तरह की और खेपों का आयात जारी रखना सुनिश्चित किया है. किसान के पास शुरू से अंत तक संपूर्ण मूल्य श्रंखला नियंत्रण होता है, जो खरीदारों के लिए आवश्यक होता है. किसान अपने खेतों में बाजरा उगाते हैं, अपनी इकाई में वे इन का प्राथमिक और माध्यमिक प्रसंस्करण करते हैं, जिस में अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता की पैकेजिंग भी शामिल है.

सफलता की यह कहानी इस बात का उदाहरण है कि कृषि क्षेत्र को कैसे बदला जा सकता है. दिलप्रीत जैसे किसान कृषि निर्यात में प्रमुख योगदानकर्ता बन सकते हैं. यह अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में उतरने वाले स्थानीय किसानों के सशक्तीकरण का प्रतीक है.

साल 2021-22 में मोटा अनाज निर्यात 62.95 मिलियन अमेरिकी डालर से बढ़ कर साल 2022-23 में 75.45 मिलियन अमेरिकी डालर और अप्रैलनवंबर, 2023 तक 45.46 मिलियन अमेरिकी डालर के वर्तमान निर्यात के साथ मोटा अनाज वैश्विक बाजार में लोकप्रियता हासिल कर रहा है. मूल्यवर्धित मोटा अनाज उत्पादों सहित अन्य अनाज के निर्यात में यह उल्लेखनीय वृद्धि है. यह पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 12.4 फीसदी की वृद्धि है.

किसान ‘ई-उपार्जन पोर्टल’ (e-procurement portal) पर करें पंजीयन

रायसेन: किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री ऐदल सिंह कंषाना ने चना, मसूर एवं सरसों उत्पादक किसानों से अपील की है कि वे उपज के उपार्जन के लिए ‘ई-उपार्जन पोर्टल’ पर अपना पंजीयन जरूर कर लें.

उन्होंने बताया कि रबी वर्ष 2023-24 (विपणन वर्ष 2024-25) में ई-उपार्जन पोर्टल पर 20 फरवरी से 10 मार्च, 2024 तक पंजीयन की कार्यवाही होगी. मंत्री ऐदल सिंह कंषाना ने बताया कि भारत सरकार की प्राइस सपोर्ट स्कीम के अंतर्गत रबी वर्ष 2023-24 (विपणन वर्ष 2024-25) में ई-उपार्जन पोर्टल पर पंजीयन के लिए खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग ने विस्तृत निर्देश जारी कर दिए गए हैं.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि चना, मसूर एवं सरसों की फसलों के www.mpeuparjan.nic.in  पर किसानों को पंजीयन कराना होगा.

मंत्री एदल सिंह कंषाना ने यह भी बताया कि पंजीयन की व्यवस्था, पंजीयन केेद्रों के निर्धारण, पंजीयन केेद्रों पर अन्य व्यवस्थाओं के लिए निर्देश दे दिए हैं. उन्होंने आगे बताया कि चने की फसल का पंजीयन प्रदेश के समस्त जिलों में होगा. मसूर की फसल का पंजीयन 37 जिलों में एवं सरसों की फसल का पंजीयन प्रदेश के 40 जिलों में होगा.

इन जिलों में समर्थन मूल्य पर मसूर का पंजीयन

मसूर का पंजीयन भिंड, दतिया, शिवपुरी, अशोक नगर, सागर, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दमोह, सतना, रीवां, सीधी, सिंगरौली, उमरिया, शहडोल, अनूपपुर, मंडला, डिंडोरी, जबलपुर, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, सिवनी, कटनी, राजगढ़, विदिशा, रायसेन, सीहोर, नर्मदापुरम, बैतूल, हरदा, उज्जैन, मंदसौर, आगर, शाजापुर, रतलाम, नीमच एवं धार में किया जाएगा.

इन जिलों में समर्थन मूल्य पर सरसों का पंजीयन भिंड, मुरैना, श्योपुर कला, गुना, अशोक नगर, शिवपुरी, ग्वालियर, दतिया, सागर, दमोह, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, रीवां, सीधी, सिंगरौली, सतना, शहडोल, उमरिया, अनूपपुर, जबलपुर, कटनी, डिंडोरी, मंडला, सिवनी, छिंदवाड़ा, बालाघाट, शाजापुर, उज्जैन, रतलाम, मंदसौर, नीमच, देवास, आगर, विदिशा, राजगढ़, रायसेन, नर्मदापुरम, बैतूल, एवं हरदा में किया जाएगा.

किसानों को मिलेगा इजराइली तकनीक ( Israeli Technology) का लाभ

जयपुर: राजस्थान में इजराइल के कृषि एवं उद्यानिकी में तकनीकी सहयोग हेतु कृषि एवं उद्यानिकी मंत्री डा. किरोड़ी लाल मीणा ने पिछले दिनों सचिवालय में इजराइल के राजदूत नाओर गिलोन और इजराइली प्रतिनिधिमंडल के साथ विस्तृत चर्चा की. बैठक में प्रमुख शासन सचिव कृषि एवं उद्यानिकी वैभव गालरिया और उद्यानिकी आयुक्त लक्ष्मण सिंह कुड़ी भी उपस्थित रहे.

राज्य में अंगूर व खजूर की खेती की संभावना और उच्च विद्युत चालकता (ईसी) एवं पीएच के जल से कृषि उत्पादन पर नवीन तकनीकी सहयोग के संबंध में डा. किरोड़ी लाल मीणा ने इजराइल के राजदूत के साथ विस्तृत चर्चा की. कृषि मंत्री ने सवाई माधोपुर में उत्पादित किए जा रहे अमरूद की प्रोसैसिंग हेतु सहयोग की संभावना पर काम करने के लिए कहा. इजराइल के राजदूत द्वारा इस पर आश्वस्त किया गया कि वे इस पर काम कर शीघ्र ही अवगत कराएंगे.

बैठक के दौरान प्रमुख शासन सचिव ने इजराइल के तकनीकी सहयोग से स्थापित किए गए बस्सी एवं जयपुर में अनार, कोटा में सिट्रस व जैसलमेर में खजूर के उत्कृष्टता केंद्रों की प्रगति से अवगत कराया. उन्होंने बताया कि इन केंद्रों पर इजराइल के तकनीकी विशेषज्ञों की देखरेख में तकरीबन 2,500 हेक्टेयर क्षेत्र में उन्नत कृषि तकनीक के माध्यम से अनार, संतरा एवं खजूर की खेती की. तकरीबन 15,000 किसानों को प्रशिक्षित किया गया और 7 लाख, 70 हजार किसानों को पौध रोपण सामग्री उपलब्ध कराई गई.

Israeli Technology

उत्कृष्टता केंद्रों पर अपनाई जा रही तकनीक पर इजराइली प्रतिनिधिमंडल ने संतोष जाहिर कर बताया कि इजराइल के सहयोग से स्थापित तीनों उत्कृष्टता केंद्र किसानें के हित में काम कर रहे हैं और इन केंद्रों पर किसानों को आवश्यक प्रशिक्षण दिया जा रहा है. साथ ही, उच्च गुणवतायुक्त पौध रोपण सामग्री किसानों को उपलब्ध कराई जा रही है.

इजराइल के राजदूत ने कृषि मंत्री को आमंत्रित किया कि वे एक तकनीकी दल एवं किसानों के साथ इजराइल का भ्रमण करें, ताकि वे फल, फूल, सब्जी और अन्य बागबानी फसलों पर इजराइल द्वारा किए गए कामों का अवलोकन कर सकें, जिस से कृषि क्षेत्र में उन्नत तकनीकी की कार्ययोजना बनाई जा सके.

भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India) की बढ़ी पूंजी

नई दिल्लीः कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने और संपूर्ण देश में किसान कल्याण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सरकार ने कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए भारतीय खाद्य निगम की अधिकृत पूंजी 10,000 करोड़ रुपए से बढ़ा कर 21,000 करोड़ रुपए करने का ऐतिहासिक फैसला किया है. यह रणनीतिक कदम किसानों को समर्थन देने और भारत की कृषि अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए सरकार की दृढ़ प्रतिबद्धता को दर्शाता है.

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) देश की खाद्य सुरक्षा के स्तंभ के रूप में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खाद्यान्न की खरीद, रणनीतिक खाद्यान्न भंडार के रखरखाव, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को वितरण और बाजार में खाद्यान्न की कीमतों को स्थिर रखने सहित विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों में उल्लेखनीय भूमिका निभाता है.

अधिकृत पूंजी में वृद्धि अपने अधिदेश को प्रभावी ढंग से पूरा करने में भारतीय खाद्य निगम की परिचालन क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. पूंजी की आवश्यकता के अंतर को पूरा करने के लिए एफसीआई नकद ऋण, अल्पावधि ऋण, अन्य तरीकों और साधन आदि का माध्यम अपनाता है.

अधिकृत पूंजी में वृद्धि और आगे निवेश से ब्याज का बोझ कम होगा, आर्थिक लागत कम होगी और अंततः भारत सरकार की सब्सिडी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. पूंजी के इस प्रवाह के साथ भारतीय खाद्य निगम अपनी भंडारण सुविधाओं का आधुनिकीकरण, परिवहन नैटवर्क में सुधार और उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपनाने पर भी काम करेगा. ये उपाय न केवल फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करेंगे, बल्कि उपभोक्ताओं को खाद्यान्न का कुशल वितरण भी सुनिश्चित करेंगे.

सरकार, कार्यशील पूंजी की आवश्यकता और पूंजीगत संपत्ति के लिए एफसीआई को इक्विटी प्रदान करती है. एफसीआई मौजूदा आंतरिक प्रणालियों (एफएपी, एचआरएमएस) और बाहरी प्रणालियों (राज्य खरीद पोर्टल, सीडब्ल्यूसी व एसडब्ल्यूसी) का लाभ उठाते हुए एक एकीकृत सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) प्रणाली बनाने के लिए पहल कर रहा है. ईऔफिस प्रणाली लागू करने से यह कागजों का कम प्रयोग करने वाला संगठन बन गया है. एकीकृत सूचना प्रौद्योगिकी समाधानों की यह पहल सूचना का एकल स्रोत प्रदान करेगी और एक सामान्य डिजिटल कार्यों को सुव्यवस्थित करेगी.

भारतीय खाद्य निगम अपनी दक्षता बढ़ाने के लिए सीमेंट सड़क, छत के रखरखाव, रोशनी और वेटब्रिज अपग्रेड, खाद्य सुरक्षा वृद्धि सुनिश्चित करने जैसे कार्यों को निष्पादित कर रहा है. प्रयोगशाला उपकरणों की खरीद और क्यूसी प्रयोगशालाओं के लिए एक सौफ्टवेयर प्लेटफार्म के विकास का उद्देश्य गुणवत्ता जांच में सुधार करना है.

‘आउटटर्न रेशियो‘, ‘शेल्फलाइफ‘ और ‘‘फोर्टिफाइड चावल के लिए कीट प्रबंधन‘‘ पर अध्ययन एक कुशल और खाद्य सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली के निर्माण के लिए भारतीय खाद्य निगम की प्रतिबद्धता दर्शाता है. स्वचालित डिजिटल उपकरणों के एकीकरण का लक्ष्य पारदर्शी खरीद तंत्र के लिए मानवीय हस्तक्षेप को दूर करना और कर्मचारियों के लिए आधारभूत संरचना ढांचे का विस्तार करना, किराए पर बचत करना और एफसीआई के लिए संपत्ति अर्जित करना है.

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) आधारित खरीद और भारतीय खाद्य निगम की परिचालन क्षमताओं में निवेश के लिए सरकार की दोहरी प्रतिबद्धता किसानों को सशक्त बनाने, कृषि क्षेत्र को सुदृढ़ करने और राष्ट्र के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक सहयोगात्मक प्रयास का प्रतीक है. इन उपायों का मुख्य लक्ष्य किसान कल्याण है और कृषि क्षेत्र का समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करना है.

सरकार खाद्य सुरक्षा बनाए रखने में भारतीय खाद्य निगम की उल्लेखनीय भूमिका को देखते हुए समयसमय पर एफसीआई और नामित केंद्रीय पूल (डीसीपी) राज्यों द्वारा बनाए जाने वाले खाद्यान्न भंडार के रणनीतिक स्तर को निर्दिष्ट करती है. यह भविष्य की किसी भी प्रतिकूल स्थिति से निबटने के लिए इन मानदंडों का पालन करता है, जिस से देश की खाद्य संबंधी चुनौतियों के प्रति लचीला दृष्टिकोण सुनिश्चित होता है.