‘सुफलम 2024’ में नवाचार (Innovation) पर जोर

नई दिल्ली: स्टार्टअप फोरम फौर एस्पायरिंग लीडर्स एंड मेंटर्स (सुफलम) 2024 का समापन इस संदेश के साथ हुआ कि खाद्य प्रसंस्करण के विभिन्न पहलुओं में नवाचार, सहयोग और उन्नत प्रौद्योगिकियां खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में स्टार्टअप को स्थापित खाद्य व्यवसायों में बदलने में प्रमुख प्रेरक की भूमिका निभाती हैं.

13 फरवरी और 14 फरवरी को नई दिल्ली में आयोजित इस दोदिवसीय कार्यक्रम का उद्घाटन केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री पशुपति कुमार पारस ने कृषि एवं किसान कल्याण एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्यमंत्री शोभा करंदलाजे, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय में सचिव अनीता प्रवीण, कुंडली स्थित एनआईएफटीईएम के निदेशक डा. हरिंदर ओबेराय और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय में अपर सचिव मिन्हाज आलम की गरिमामयी उपस्थिति में किया.

इस आयोजन में 250 से अधिक हितधारकों की भागीदारी देखी गई, जिस में स्टार्टअप, खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारी, एमएसएमई व वित्तीय संस्थानों के प्रतिनिधि, उद्यम पूंजीपति और शिक्षाविद शामिल थे.

2 दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में 3 ज्ञान सत्र, 2 पिचिंग सत्र, 2 पैनल चर्चा, नैटवर्किंग सत्र और एक प्रदर्शनी शामिल थी. स्टार्टअप सिंहावलोकन एवं लाभों से जुड़े ज्ञान सत्र के दौरान प्रतिभागियों को स्टार्टअप इंडिया की भूमिका, स्टार्टअप इंडिया के तहत मैंटरशिप एवं नवाचारों से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों और इस पहल द्वारा देश में स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ावा देने में मदद करने के बारे में बताया गया.

खाद्य विनियमों से जुड़े अन्य ज्ञान सत्र के दौरान प्रतिभागियों को एफएसएसएआई एवं ईआईसी नियमों के अनुसार, विभिन्न खाद्य उत्पादों के घरेलू उपयोग, आयात और निर्यात में विभिन्न नियमों, प्रमाणपत्रों और अनुपालनों के बारे में उचित जानकारी दी गई. ताजा और प्रोसैस्ड खाद्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एपीडा के तहत विभिन्न योजनाओं के बारे में नई जानकारी स्टार्टअप के लिए व्यवसाय और वित्तीय मौडलिंग थी, जिस में व्यवहार्यता और स्थिरता दिखाने वाली व्यवसाय योजना की तैयारी और किसी भी व्यवसाय की वित्तीय योजना में मुक्त नकदी प्रवाह के महत्व एवं उचित नकदी प्रवाह प्रबंधन पर स्टार्टअप को विभिन्न सुझाव दिए गए.

खाद्य प्रणालियों को बदलने से जुड़ी पैनल चर्चा कच्चे माल के विविधीकरण, शैवाल एवं मिलेट्स जैसे जलवायु अनुकूल विकल्पों और उद्यमिता में रचनात्मकता पर केंद्रित थी. खाद्य सुरक्षा मानकों को पूरा करने एवं आपूर्ति श्रंखलाओं को अनुकूलित करने के लिए प्रोसैसिंग मशीनरी, कच्चे माल और नवीन कृषि तकनीकी उपायों की डिजाइनिंग पर प्रकाश डाला गया. कच्चे माल की सोर्सिंग में हस्तक्षेप, प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थों और टिकाऊ पैकेजिंग में अवसरों की खोज और निरंतर नवाचारों के लिए सहयोग पर भी चर्चा की गई.

फूड प्रोसैसिंग से जुड़े उद्यमियों के लिए स्टार्टअप कौन्क्लेव पर सत्र के दौरान खाद्य नवाचार केंद्र के रूप में भारत की क्षमता, उद्योग, स्टार्टअप और संस्थानों के बीच तालमेल की जरूरत पर बल देते हुए चर्चा की गई. मुख्य चर्चाएं उपभोक्ता प्राथमिकताओं और अनुपालन मानकों के अनुरूप टिकाऊ पैकेजिंग के महत्व पर केंद्रित थीं. स्टार्टअप से गुणवत्तापूर्ण कच्चे माल की सोर्सिंग, किसानों के साथ सहयोग करने और प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थों और किफायती पोषण आधारित उत्पादों में उद्यम करने में सक्रिय भूमिका निभाने का आग्रह किया गया. यह सत्र निरंतर नवाचार के लिए सभी क्षेत्रों में विशेष रूप से क्रेडिट नवाचार और क्रौस उद्योग साझेदारी के माध्यम से सहयोग पर जोर देने के साथ संपन्न हुआ.

दोनों ही दिन निर्धारित 2 पिचिंग सत्रों में 12 चयनित स्टार्टअप ने खाद्य प्रौद्योगिकीविदों, एसबीआई और एचडीएफसी बैंक के शीर्ष बैंकिंग अधिकारियों, वीसी, एनआईएफटीएम के संकाय और उद्योग पेशेवरों के एक पैनल के सामने अपने विचार पेश किए. 6 स्टार्टअप को उत्पाद परिशोधन, बाजार लिंकेज के साथसाथ निवेशक जुड़ाव के बारे में सलाह एवं सहायता की पेशकश की गई.

पैनलिस्टों ने इस पहल का स्वागत किया और उभरते छोटे उद्यमों को मार्गदर्शन एवं मार्गदर्शन के लिए भविष्य में ऐसे प्रयासों के लिए समर्थन की पेशकश की. इस दोदिवसीय कार्यक्रम के दौरान 26 स्टार्टअप, 9 पीएमएफएमई लाभार्थियों और 3 सरकारी एजेंसियों सहित कुल 38 प्रदर्शकों ने अपने उत्पादों, योजनाओं और प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन किया. इस के अलावा स्टार्टअप और उद्योग के बीच अलगअलग नैटवर्किंग सत्र भी हुए, जहां स्टार्टअप को मदद और तकनीकी सहायता देने पर चर्चा हुई.

‘सुफलम 2024’ ने परिवर्तनकारी चर्चाओं के एक उत्प्रेरक के रूप में काम किया है और इन चर्चाओं ने नवाचार संचालित विकास की दिशा में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का मार्ग प्रशस्त किया है और स्टार्टअप, उद्योग और शिक्षाविदों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया है.

एपीडा 38वां स्थापना दिवस: कृषि आय (Agricultural Income) बढ़ाने में सक्षम

मिर्जापुर: पूर्वी उत्तर प्रदेश, जिसे पूर्वांचल भी कहा जाता है, से कृषि और प्रोसैस्ड फूड प्रोडक्ट्स की निर्यात क्षमता का लाभ उठाने के लिए एपीडा यानी कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण ने 14 फरवरी, 2024 को मिर्जापुर में ‘कृषि निर्यात: क्षमता निर्माण और क्रेताविक्रेता बैठक‘ का आयोजन किया.

इस कार्यक्रम में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल मुख्य अतिथि रहीं. राज्यसभा सांसद राम शकल की अगुआई में कई वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, निर्यातक संघों के प्रतिनिधि, किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ), हितधारकों और क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने भी इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई. इस कार्यक्रम को किसानों से बहुत उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली और 1500 से अधिक किसानों ने कार्यक्रम में भाग लिया.

अपने मुख्य भाषण में अनुप्रिया पटेल ने कृषि निर्यात बढ़ाने के महत्व पर जोर देते हुए न केवल देश की विदेशी मुद्रा में योगदान देने की उन की क्षमता पर प्रकाश डाला, बल्कि रोजगार के मामले में सब से बड़ा क्षेत्र होने के नाते किसानों की आय में भी उल्लेखनीय वृद्धि की भी चर्चा की.

उन्होंने भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं का हवाला देते हुए किसानों की आय बढ़ाने में भारत सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई और वैश्विक बाजारों तक उन की पहुंच को सुविधाजनक बनाने के लिए वाणिज्य विभाग के संकल्प को रेखांकित किया.

उन्होंने बागबानी, मसालों और समुद्री उत्पादों जैसे विभिन्न कृषि क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास पर सरकार के फोकस को भी रेखांकित किया. उन्होंने ऐसी ही एक आगामी महत्वपूर्ण परियोजना, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में चुनार उपमंडल में बनने वाली ‘सरदार वल्लभभाई पटेल निर्यात सुविधा केंद्र‘ पर प्रकाश डाला, जो निकट अवधि में पूरा होने पर इस क्षेत्र से कृषि निर्यात को काफी बढ़ावा देगा, जिस से पूर्वांचल देश का एक कृषि निर्यात हब बन जाएगा.

एपीडा के अध्यक्ष अभिषेक देव ने बाजार संबंधों पर ध्यान केंद्रित कर के और निर्यात बुनियादी ढांचे को बढ़ा कर एफपीओ और किसानों के लिए निर्यात के अवसरों को बढ़ाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता व्यक्त की.

उन्होंने आगे बताया कि एपीडा, जिस ने 13 फरवरी, 2024 को अपना 38वां स्थापना दिवस मनाया, कृषि निर्यात मूल्य श्रंखला में सभी हितधारकों, विशेषकर किसानों को उभरते बाजार के अवसरों के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और जोखिम प्रदान कर के उन की आय बढ़ाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है. उन्होंने दोहराया कि एपीडा सभी हितधारकों के लाभ के लिए निकट भविष्य में भी ऐसे आयोजन करना जारी रखेगा.

Agricultural Income

‘सरदार वल्लभभाई पटेल निर्यात सुविधा केंद्र‘ कृषि और इस से जुड़े क्षेत्र के निर्यात को आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. इस नए विकासशील बुनियादी ढांचे की कल्पना एफपीओ, किसानों, निर्यातकों और अन्य हितधारकों की जरूरतों को पूरा करने वाली एक व्यापक सिंगल विंडो सिस्टम के रूप में की गई है. मिर्जापुर जिले के चुनार उपमंडल में 5 एकड़ क्षेत्र में फैली इस परियोजना में सभी आवश्यक सुविधाओं के साथ एक आधुनिक पैकहाउस की भी सुविधा है. इस के अलावा परियोजना में एक प्रशिक्षण सुविधा भी है, जिस से क्षेत्र के सभी किसानों और एफपीओ और एफपीसी को लाभ होगा.

अंत में इस परियोजना में प्रमुख निर्यात उन्मुख सरकारी निकायों जैसे एमपीईडीए, मसाला बोर्ड, आईआईपी, ईआईसी के कार्यालय भी होंगे, जो क्षेत्र के कृषि निर्यात ईकोसिस्टम के लिए सेवाएं देंगे.
एपीडा के प्रयासों के साथ अब पूर्वांचल क्षेत्र के वाराणसी हवाईअड्डे पर कोल्डरूम, क्वारंटीन और कस्टम क्लीयरेंस सेवाओं और कृषि एयर कार्गो के लिए हवाईअड्डे की सक्रियता जैसी महत्वपूर्ण निर्यात सुविधाएं भी उपलब्ध हैं, जिन में से सभी में वर्ष 2019 से पहले कुछ न कुछ कमी थी.

वाराणसी हवाईअड्डे द्वारा दिसंबर, 2023 तक 702 मीट्रिक टन जल्दी खराब होने वाले माल की हैंडलिंग हुई, जो पिछले साल के 561 मीट्रिक टन के आंकड़े के मुकाबले काफी ज्यादा रही और वास्तव में यह क्षेत्र की कृषि निर्यात क्षमताओं में उल्लेखनीय प्रगति को दर्शाता है. एपीडा ने पूरे भारत से अग्रणी खरीदारों को आमंत्रित करने, एफपीओ और किसानों को सीधे अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से जोड़ने के लिए क्रेताविक्रेता बैठकें आयोजित करने में भी मदद की.

इस बात पर जोर दिया जा सकता है कि एपीडा की पहल ने उत्तर प्रदेश को वित्त वर्ष 2023-24 (23 अप्रैल से 23 नवंबर) में केवल गुजरात और महाराष्ट्र को पीछे छोड़ते हुए तीसरा सब से बड़ा निर्यातक राज्य बनने के लिए प्रेरित किया है.

Agricultural Incomeएपीडा द्वारा गंगा क्षेत्र की क्षमता के सफल दोहन ने एफपीओ और निर्यातकों को क्षेत्र से कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सशक्त बनाया है. लगभग 50 एफपीओ को कृषि निर्यात के लिए निर्यातकों के रूप में बढ़ावा दिया गया है, जिन में से 20 से अधिक सक्रिय रूप से प्रत्यक्ष और डीम्ड निर्यात दोनों में लगे हुए हैं. हरी मिर्च, आम, टमाटर, भिंडी, आलू, सिंघाड़ा, क्रैनबेरी, केला, जिमीकंद, लौकी, परवल, अरवी, अदरक, ताजा गेंदा जैसे ताजे फल और सब्जियों और चावल सहित कृषि उत्पादों की एक बड़ी रेंज का निर्यात किया गया है, जो वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए क्षेत्र की क्षमता को रेखांकित करता है.

पिछले दस वर्षों में दालों का उत्पादन (Pulses Production) 60 फीसदी बढ़ा

नई दिल्ली: केंद्रीय उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण व वस्त्र और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने और 50 अरब डालर से अधिक के कृषि संबंधी उत्पादों के निर्यात को सक्षम बनाने के लिए कृषि उत्पादों के उत्पादन एवं गुणवत्ता में बढ़ोतरी होने पर प्रसन्नता व्यक्त की.

मंत्री पीयूष गोयल ने सहकारी प्रमुख भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) के सहयोग से वैश्विक दलहन परिसंघ द्वारा आयोजित ‘नेफेड: पल्स 2024 सम्मेलन’ में अपने संबोधन के दौरान यह बात कही. इस कार्यक्रम का आयोजन सहकारी क्षेत्र के प्रमुख राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (नेफेड) के सहयोग से किया गया.

मंत्री पीयूष गोयल ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने और देश को खाद्यान्न, दलहन, मसूर, सब्जियों व फलों के एक बड़े उत्पादक राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में उन के योगदान के लिए भारत के किसानों को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा कि इस से विभिन्न खाद्य उत्पादों के उत्पादन एवं गुणवत्ता दोनों में विस्तार हुआ है, जिस से भारत 50 अरब डालर से अधिक के कृषि और संबंधित उत्पादों का निर्यातक बन गया है.

उन्होंने कहा कि पिछले दशक में किसानों की प्रतिबद्धता व क्षमताओं के कारण दालों का उत्पादन साल 2014 में 171 लाख टन से 60 फीसदी बढ़ कर साल 2024 में 270 लाख टन हो गया है. दालों को न केवल भारत का, बल्कि दुनिया का एक प्रमुख आहार बनाने के लिए राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) और वैश्विक दलहन परिसंघ के बीच साझेदारी बढ़ती रहेगी.

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने आगे कहा कि सरकार ने देश के किसानों का सहयोग करने और भारतीय नागरिकों के लिए उचित मूल्य वाली दालों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के मकसद से भारत दाल की शुरुआत की है. ‘भारत‘ ब्रांड के तहत खुदरा बिक्री के लिए सरकार द्वारा खरीदी गई चना दाल ने बाजार में उतरने के 4 महीनों में ही दलहन के क्षेत्र में 25 फीसदी हिस्सेदारी हासिल कर ली है.

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने बताया कि विभिन्न ई-कौमर्स साइटों पर ग्राहक समीक्षाओं से ‘भारत दाल’ को मिली उच्च रेटिंग किसानों की उच्च गुणवत्ता वाली दालों का उत्पादन करने की क्षमता को दर्शाती है और सरकार के सहयोग से यह आम आदमी के लिए सहजता से उपलब्ध भोजन बन सकता है. पिछले एक दशक में दालों की सरकारी खरीद 18 गुना बढ़ चुकी है.

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने यह भी कहा कि साल 2015 में सरकार ने मध्यम कीमतों और मूल्य स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए बफर स्टाक की शुरुआत की थी, जिस से उपभोक्ताओं को खाद्य मुद्रास्फीति से बचाया जा सके. इस के असर से विकसित दुनिया सहित कई देश 40 साल की उच्च मुद्रास्फीति से जूझ रहे हैं.

उन्होंने कहा कि भारत सब से कम मुद्रास्फीति दर के साथ एक प्रमुख देश था और पिछले दशक में मुद्रास्फीति को दोहरे अंक में 5-5.5 फीसदी तक लाने में सक्षम रहा है.

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के बारे में उन्होंने कहा कि एमएसपी आज हमारे किसानों को उत्पादन की वास्तविक लागत से 50 फीसदी अधिक कीमत का आश्वासन देती है, जिस से निवेश पर आकर्षक रिटर्न मिलता है.

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने यह भी कहा कि एक दशक पहले प्रदान की गई राशि की तुलना में मसूर में 117 फीसदी, मूंग में 90 फीसदी, चना दाल में 75 फीसदी अधिक, तुअर और उड़द में 60 फीसदी अधिक वृद्धि के साथ एमएसपी आज सब से अधिक है.

मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि नेफेड व एनसीसीएफ किसानों को दलहन व मसूर में विविधता लाने के मकसद से प्रोत्साहित कर रहे हैं और सरकारी खरीद के लिए 5 साल के अनुबंध के लक्ष्य के साथ सुनिश्चित मूल्य प्रदान करने के इच्छुक हैं, जो भारत सरकार का एक बड़ा महत्वपूर्ण कदम है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि भारत दुनिया में मोटे अनाज का सब से बड़ा उत्पादक और 5वां सब से बड़ा निर्यातक है. सरकार श्रीअन्न की तरह ही दलहन और मसूर पर भी समान रूप से ध्यान केंद्रित कर रही है.
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कार्यक्रम में उपस्थित उद्योग जगत के प्रमुखों से उत्पादकता में सुधार लाने और दलहन उद्योग को बढ़ाने के लिए सुझाव देने एवं मार्गदर्शन प्रदान करने का आग्रह किया.

कीट प्रबंधन (Pest Management) : पर्यावरण हितैषी तकनीकें अपनाएं

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग में 21 दिवसीय रिफ्रैशर कोर्स संपन्न हुआ. यह कोर्स नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तत्वावधान में विश्वविद्यालय एवं सैंटर फौर एडवांस फैकल्टी ट्रेनिंग (सीएएफटी) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया, जिस का मुख्य विषय ‘रिसेंट एडवांसेज इन इकोफ्रैंडली मैनेजमेंट औफ क्राप पैस्ट’ था. इस कोर्स के समापन के अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज मुख्य अतिथि रहे.

प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि वर्तमान में बदलते जलवायु परिप्रेक्ष्य में फसलों पर कीटों की नई प्रजातियों का आक्रमण वैज्ञानिकों के लिए चुनौती है. इसलिए वैज्ञानिकों को इन सब पहलुओं को ध्यान में रख कर अपने शोध के काम को आगे बढ़ाना चाहिए.

उन्होंने यह भी कहा कि किसान जानकारी व जागरूकता के अभाव में बिना वैज्ञानिक सलाह के फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों व रसायनों का मिश्रित छिड़काव कर रहे हैं, जिस के कारण मित्र कीट खत्म हो रहे हैं और पर्यावरण संबंधी समस्याएं भी हो रही हैं. इन समस्याओं के निवारण के लिए वैज्ञानिकों को ऐसे प्रबंधन उपायों की खोज करनी चाहिए, जिस से कि कीटों पर नियंत्रण भी हो. साथ ही, इनसान की सेहत व पर्यावरण के लिए सुरक्षित हो. उन्होंने वैज्ञानिकों से वर्तमान समय की कीट समस्याओं को ध्यान में रख कर ही अनुसंधान कार्य करने के लिए प्रेरित किया.

उन्होंने वैज्ञानिकों से यह भी कहा कि वे एकीकृत नाशजीवी प्रबंधन के लिए पर्यावरण हितैषी उन्नत तकनीकों के विकास के साथसाथ उन का प्रचारप्रसार करें. अंत में मुख्य अतिथि प्रो. बीआर कंबोज ने सभी प्रशिक्षुओं को प्रमाणपत्र भी वितरित किए.

Pest Management

कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने प्रशिक्षुओं को अपनेअपने कार्यक्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने जैविक खेती व रसायनों के आवश्यकता आधारित एवं विवेकपूर्ण उपयोग के बारे में शोध के काम करने पर बल दिया.

इस से पूर्व प्रशिक्षण संयोजक डा. दीपिका कलकल ने रिफ्रेशर कोर्स के अंतर्गत हुई विभिन्न गतिविधियों, रूपरेखा सहित अन्य संबंधित जानकारियां साझा कीं. उपरोक्त प्रशिक्षण में देश के 6 राज्यों के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों से 17 वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया. अंत में प्रशिक्षण संयोजक डा. हरीश कुमार ने सभी का धन्यवाद किया.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अधिकारी समेत इस से जुड़े समस्त महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, विभागाध्यक्ष, विभिन्न कीट वैज्ञानिक सहित कोर्स कोआर्डिनेटर वरुण सैनी भी उपस्थित रहे.

तिलहन (Oilseeds) का बढ़ेगा उत्पादन

नई दिल्ली: देश में पाम औयल और पेड़ों पर उगने वाले औयल सीड्स के तहत 9 तिलहन (Oilseeds) फसलों के उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि और क्षेत्र विस्तार द्वारा खाद्य तेलों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए वर्ष 2018-19 से एक केंद्र प्रायोजित योजना -राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन- तिलहन और पाम औयल (एनएफएसएम-ओएस और ओपी) लागू की गई है.

एनएफएसएम- औयल सीड्स योजना के तहत 3 व्यापक हस्तक्षेपों के लिए राज्य सरकार के माध्यम से किसानों को प्रोत्साहन व सब्सिडी प्रदान की जा रही है, जिस में पहला सीड कंपोनेंट, जिस में ब्रीडर बीजों की खरीद, आधार बीज और प्रमाणित बीजों का उत्पादन, प्रमाणित बीजों का वितरण, बीज मिनीकिट और बीज हब का वितरण शामिल है.

दूसरा उत्पादन इनपुट कंपोनेंट में घंडारण डब्बे, पौध संरक्षण (पीपी) उपकरण और बीज शामिल हैं. ड्रम, पीपी रसायनों का उपचार, जिप्सम, पाइराइट्स, चूना आदि का वितरण, न्यूक्लियर पौलीहेड्रोसिस वायरस, जैव एजेंट, जैव उर्वरक की आपूर्ति, उन्नत कृषि उपकरण, स्प्रिंकलर सैट, पानी ले जाने वाले पाइप, और तीसरा क्लस्टर को कवर करने वाले टैक्नोलौजी कंपोनेंट का ट्रांसफर या ब्लौक प्रदर्शन, फ्रंटलाइन प्रदर्शन, क्लस्टर फ्रंटलाइन प्रदर्शन और राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली और कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से प्रशिक्षण, किसान फील्ड स्कूल (एफएफएस) मोड के माध्यम से एकीकृत कीट प्रबंधन, किसानों का प्रशिक्षण, अधिकारियों, विस्तार कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण, आवश्यकता आधारित अनुसंधान एवं विकास परियोजना सहित फ्लैक्सी फंड के तहत सैमिनार व किसान मेला और तेल निकालने वाली इकाई है.

सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों और अंडमान व निकोबार पर विशेष ध्यान देने के साथ देश को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए औयल पाम की खेती को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2021-22 में एक अलग मिशन यानी राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (औयल पाम) – एनएमईओ (ओपी) शुरू किया है. अंडमान व निकोबार में औयल पाम का क्षेत्रफल वर्ष 2025-26 में 3.70 लाख हेक्टेयर से बढ़ा कर 10.00 लाख हेक्टेयर किया जाएगा.

एनएफएसएम-तिलहन और एनएमईओ (ओपी) दोनों को तिलहन और तेल पाम के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ा कर और आयात बोझ को कम कर के खाद्य तेलों की उपलब्धता बढ़ाने के उद्देश्य से देश में लागू किया जा रहा है.

इस के अलावा राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-रफ्तार (आरकेवीवाई-रफ्तार) तिलहन पर फसल उत्पादन संबंधी गतिविधियों के लिए प्रावधान प्रदान करती है. आरकेवीवाई-रफ्तार के तहत, राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित राज्य स्तरीय मंजूरी समिति (एसएलएससी) की मंजूरी के साथ तिलहन पर कार्यक्रम भी लागू कर सकते हैं.

वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण 2024 के दौरान की घोषणा’

वर्ष 2022 में घोषित योजना पर आगे बढ़ते हुए सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन और सूरजमुखी जैसे तिलहनों में ‘आत्मनिर्भरता’ हासिल करने के लिए एक रणनीति तैयार की जाएगी. इस में उच्च उपज देने वाली किस्मों के लिए अनुसंधान, आधुनिक कृषि तकनीकों को व्यापक रूप से अपनाना, बाजार से जुड़ाव, खरीद, मूल्यवर्धन और फसल बीमा शामिल होगा.

सरकार के प्रयासों से खाद्य तेलों की आयात निर्भरता वर्ष 2015-16 में 63.25 फीसदी से कम हो कर वर्ष 2022-23 में 57.30 फीसदी हो गई है और खाद्य तेल की कुल मांग में वृद्धि के बावजूद घरेलू उत्पादन वर्ष 2015-16 में देश की कुल मांग का 36.75 फीसदी से बढ़ कर वर्ष 2022-23 में 42.71 फीसदी हो गया है.
भारत सरकार का कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय आगामी बोआई सीजन से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए जायद, खरीफ और रबी के बोआई सीजन से पहले कृषि अभियान पर राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करता है. इन सम्मेलन में बीजों से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की जाती है.

इन सम्मेलनों में राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर कृषि से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की जाती है. इन सम्मेलनों के दौरान बीजों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए बीज की आवश्यकता और उपलब्धता की समीक्षा की जाती है. विभिन्न फसलों की नई जारी उच्च उपज वाली किस्मों व बीजों को किसानों को समय पर उपलब्ध कराने के तौरतरीकों पर चर्चा की गई.

जलवायु परिवर्तन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए स्ट्रेस टोलरेंट, जलवायु लचीली किस्मों को बढ़ावा देने की रणनीति पर चर्चा की गई. इस के अलावा कुपोषण वाले क्षेत्रों में पोषण की कमी से निबटने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बायोफोर्टिफाइड किस्मों को शामिल करने पर भी चर्चा की गई है.

राज्य सरकार द्वारा डायनामिक बीज रोलिंग योजना की तैयारी पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है, जिस में विभिन्न फसलों की नई जारी की गई छोटी और मध्यम अवधि की उच्च उपज वाली किस्में शामिल हैं.

किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज उपलब्ध कराने के लिए बीज कानून प्रवर्तन एजेंसियों, बीज प्रमाणीकरण एजेंसियों, बीज परीक्षण प्रयोगशालाओं की क्षमता निर्माण की योजना बनाई गई है. राज्य सरकार द्वारा किसानों के लिए नई जारी किस्मों, कृषि प्रदर्शन और जागरूकता कार्यक्रमों को लोकप्रिय बनाने की रणनीतियों पर चर्चा की गई.

श्रीअन्न (Millets) उत्पादक किसानों के लिए खास योजना

सीहोर: रानी दुर्गावती श्रीअन्न प्रोत्साहन योजना (मिलेट्स) उत्पादक किसानों के लिए खासा मददगार साबित होगी. इस से मिलेट्स (Millets) उत्पादक किसानों को अपने उत्पादों का उचित दाम मिलेगा, जिस से अन्य किसानों को मिलेट्स उत्पादन के लिए प्रोत्साहन भी मिलेगा. मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने मुख्यमंत्री बनने के बाद मिलेट्स उत्पादक किसानों के हित में योजना को लागू करने का ऐतिहासिक फैसला लिया.

रानी दुर्गावती श्रीअन्न प्रोत्साहन योजना में राज्य सरकार, महासंघ द्वारा खरीद की गई कोदो, कुटकी पर किसानों को भुगतान किए गए न्यूनतम खरीद मूल्य के अतिरिक्त सहायता राशि के रूप में किसानों के खातों में 1,000 रुपए प्रति क्विंटल डायरैक्ट बैनीफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के तहत देगी.

इस योजना के लागू होने से श्रीअन्न (मिलेट्स) उत्पादक किसानों को अधिक से अधिक लाभान्वित करने के लिए उन की क्षमता संवर्धन, कोदो, कुटकी की विशिष्ट पैकेजिंग एवं ब्रांडिंग गतिविधियों को प्रोत्साहन मिलेगा. इस से किसानों को बेहतर विपणन व्यवस्था उपलब्ध कराते हुए उत्पादों का उचित मूल्य दिलाने में सहायता मिलेगी.

योजना के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए शासन ने पूर्व से संचालित लघु धान्य प्रसंस्करण, विपणन इत्यादि कामों में संलग्न एफपीओ या समूह को महासंघ के रूप में संगठित करने के लिए मार्गदर्शी निर्देश जारी किए हैं.

योजना से श्रीअन्न उत्पादन में संलग्न किसानों, एफपीओ या समूह को राज्य स्तरीय महासंघ के रूप में संगठित कर नवीन तकनीकी के उपयोग से श्रीअन्न, विशेषकर कोदो, कुटकी एवं उस के प्रसंस्कृत उत्पादों को राष्ट्रीयअंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट पहचान स्थापित कराने में मदद मिलेगी.

इस से एफपीओ द्वारा गठित फेडरेशन के माध्यम से श्रीअन्न के लिए वैल्यू चेन विकसित करने और कोदोकुटकी की खेती में लगे किसानों की आय में वृद्धि करने में मदद मिलेगी.

श्रीअन्न कोदोकुटकी के विपणन एवं प्रसंस्करण में कार्यरत एफपीओ महासंघ गठित किया जा रहा है. यह श्रीअन्न के उपार्जन, भंडारण, प्रसंस्करण, ब्रांड बिल्डिंग एवं उत्पाद विकास आदि काम करेगा. कंपनी अधिनियम 2013 के अंतर्गत कंपनी के रूप में महासंघ का गठन होगा.

योजना के लाभार्थी एफपीओ फेडरेशन के सदस्य होंगे. ये ही सामान्य सभा के सदस्य भी होंगे एवं रोटेशन प्रणाली के आधार पर इन के द्वारा संचालक मंडल के संचालकों एवं अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा. नवीन एफपीओ को महासंघ में शामिल करने में बोर्ड का निर्णय अंतिम रहेगा.

योजना के क्रियान्वयन की नोडल संस्था किसान कल्याण एवं कृषि विकास को बनाया गया है. मौनीटरिंग व्यवस्था को पुख्ता करने के लिए विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई है.

इस से योजना के क्रियान्वयन की उच्चतम स्तर पर बेहतरीन मौनीटरिंग और समीक्षा होगी. इस से योजना के स्टेक होल्डर्स को लाभान्वित करने की प्रक्रिया में आने वाली दिक्कतों का निराकरण किया जाएगा और उन्हें अधिक से अधिक लाभ प्रदान किया जा सकेगा.

कृषि स्टार्टअप (Agricultural Startups) को मिल रहा प्रोत्साहन

नई दिल्ली: भारत सरकार कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में कृषि स्टार्टअप को वित्तीय और प्रौद्योगिकी सहायता प्रदान कर के कृषि स्टार्टअप (Agricultural Startups) को प्रोत्साहन देने के लिए प्रतिबद्ध है. कृषि एवं किसान कल्याण विभाग वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान कर के नवाचार और कृषि उद्यमिता को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से वर्ष 2018-19 से राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत देश में स्टार्टअप इकोसिस्टम का पोषण करने के लिए ‘नवाचार और कृषि उद्यमिता विकास‘ कार्यक्रम लागू कर रहा है.

अब तक कृषि स्टार्टअप के प्रशिक्षण और इन्क्यूबेशन और इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए 5 नालेज पार्टनर्स (केपी) और 24 राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) एग्रीबिजनैस इनक्यूबेटर्स (आर-एबीआई) को नियुक्त किया गया है.

कार्यक्रम के अंतर्गत विभिन्न राज्यों में कार्यरत नालेज पार्टनर्स (केपी) और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) एग्रीबिजनैस इनक्यूबेटर्स (आर-एबीआई) को धनराशि जारी की जाती है. इन नालेज पार्टनर्स (केपी) और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) एग्रीबिजनैस इनक्यूबेटर्स (आर-एबीआई) ने कार्यक्रम के अंतर्गत स्टार्टअप्स को प्रशिक्षण, परामर्श और वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए इनक्यूबेशन केंद्र स्थापित किए हैं.

इस कार्यक्रम के अंतर्गत अब तक कृषि और संबद्ध क्षेत्र के विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाली 387 महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप सहित 1554 कृषि स्टार्टअप को तकनीकी और वित्तीय सहायता के साथ वर्ष 2019-20 से 2023-24 तक विभिन्न नालेज पार्टनर्स (केपी) और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) एग्रीबिजनैस इनक्यूबेटर्स (आर-एबीआई) के माध्यम से किस्तों में 111.57 करोड़ रुपए जारी कर सहायता प्रदान की गई है.

इस कार्यक्रम के अंतर्गत आइडिया या प्रीसीड स्टेज पर 5 लाख रुपए और शुरुआती स्तर पर 25 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है. कृषि और संबद्ध क्षेत्र के उद्यमियों
व स्टार्टअप को अपने उत्पादों, सेवाओं, व्यापार मंचों आदि को बाजार में शुरू करने और उन्हें अपने उत्पादों और संचालन को बढ़ाने की सुविधा प्रदान करने के लिए कार्यक्रम के तहत नियुक्त इन नालेज पार्टनर्स (केपी) और आरकेवीवाई एग्रीबिजनैस इनक्यूबेटर्स (आर-एबीआई) द्वारा स्टार्टअप को प्रशिक्षित और इनक्यूबेट किया जाता है.

इस के अलावा भारत सरकार विभिन्न हितधारकों के साथ जोड़ कर कृषि स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए एक मंच प्रदान करने के लिए कृषि स्टार्टअप कौनक्लेव, कृषि मेला और प्रदर्शनियों, वैबिनार, कार्यशालाओं सहित विभिन्न राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम आयोजित करती है.

यह विभाग वर्ष 2020-21 से ‘कृषि अवसंरचना निधि‘ योजना लागू कर रहा है, जिस का मकसद पात्र लोगों को ब्याज में छूट और क्रेडिट गारंटी सहायता के माध्यम से फसल कटाई के बाद प्रबंधन और सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के लिए व्यवहार्य परियोजनाओं में निवेश के लिए मध्यम व दीर्घकालिक ऋण वित्त सुविधा प्रदान करना है. लाभार्थियों में किसान, कृषि उद्यमी, स्टार्टअप आदि शामिल हैं.

इस योजना के अंतर्गत भूमिहीन किराएदार किसानों के लिए स्टार्टअप स्थापित करने के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं है. हालांकि, 1284 स्टार्टअप को 1248 करोड़ रुपए की मध्यम व दीर्घकालिक ऋण वित्तीय सहायता के साथ समर्थन दिया गया है. इस योजना के तहत किसानों द्वारा शुरू किए गए स्टार्टअप नीचे दिए गए हैं.

यह हैं नालेज पार्टनर्स (केपी) और आरकेवीवाई- एग्रीबिजनैस इनक्यूबेटर्स (आर-एबीआई) की सूची:

– राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान (एमएएनएजीई), हैदराबाद.
– राष्ट्रीय कृषि विपणन संस्थान (एनआईएएम), जयपुर, राजस्थान.
– भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा, नई दिल्ली.
– कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, धारवाड़, कर्नाटक.
– असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहाट, असम.
– आरकेवीवाई रफ्तार एग्रीबिजनैस इन्क्यूबेटर्स (आर-एबीआई).
– चैधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, हिसार, हरियाणा.
– चैधरी सरवन कुमार (सीएसके) हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर, हिमाचल प्रदेश.

– भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)- बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू), वाराणसी, उत्तर प्रदेश
– जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर, मध्य प्रदेश.
– भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, बरेली, उत्तर प्रदेश.
– पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना, पंजाब.
– इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़.
– शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मूकश्मीर.
– भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम), काशीपुर, उत्तराखंड.
– केरल कृषि विश्वविद्यालय, त्रिशूर, केरल.
– भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)-भारतीय मोटा अनाज अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद, तेलंगाना.
– तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (टीएनएयू), कोयंबटूर, तमिलनाडु.
– कृषि नवाचार और उद्यमिता सेल, एएनजीआरएयू, आंध्र प्रदेश.
– राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक, ओडिशा.
– एसकेएन कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर, राजस्थान.
– भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर, पश्चिम बंगाल.
– बिहार कृषि विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार.
– आणंद कृषि विश्वविद्यालय, आणंद, गुजरात.
– भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)-केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान, मुंबई, महाराष्ट्र.
– डा. पंजाबराव देशमुख कृषि विद्यापीठ, अकोला, महाराष्ट्र.
– राष्ट्रीय पशु चिकित्सा महामारी विज्ञान और रोग सूचना विज्ञान संस्थान (एनआईवीईडीआई), बेंगलुरु, कर्नाटक.
– मत्स्यपालन महाविद्यालय, लेम्बुचेर्रा, त्रिपुरा.
– पशु चिकित्सा विभाग, पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय, आइजोल, मिजोरम.
– बागबानी एवं वानिकी महाविद्यालय, पासीघाट, अरुणाचल प्रदेश.

देश में बढ़ रही मोटे अनाज (Coarse Grains) की खेती

देश को पोषक आहार उपलब्ध कराने, घरेलू और वैश्विक मांग पैदा करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष (आईवाईएम) घोषित करने का संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव किया था. भारत के इस प्रस्ताव को 72 देशों का समर्थन मिला और संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने मार्च, 2021 में वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष घोषित कर दिया.

भारतीय मोटे अनाजों को वैश्विक बाजारों में पहुंचाने और अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष के उद्देश्य को हासिल करने के लिए भारत सरकार ने सक्रिय हो कर अनेकानेक हितधारकों (केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, विभागों, राज्यों व संघ शासित प्रदेशों, किसानों, स्टार्टअप, निर्यातकों, खुदरा कारोबारियों, होटलों, भारतीय राजदूतावासों आदि) को इस से जोड़ने के दृष्टिकोण के साथ काम किया.

अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष 2023 के दौरान पूरा फोकस उत्पादन और उत्पादकता, उपभोग, निर्यात, मूल्य श्रंखला को मजबूत बनाने, ब्रांडिंग, स्वास्थ्य लाभ जागरूकता बढ़ाने आदि पर रहा. भारत सरकार ने इसे जनअभियान बनाने के लिए अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया, ताकि भारतीय मोटे अनाजों, उन के व्यंजनों, मूल्यवर्धित उत्पादों को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा दिया जा सके.

भारत में जी20 अध्यक्षता, मिलेट पाककला उत्सव, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेलों, शेफ सम्मेलन, कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ), रोड शो, किसान मेलों, अर्धसैनिक बलों के लिए रसोइया प्रशिक्षण, दिल्ली और इंडोनेशिया में आसियान भारत मिलेट त्योहार आदि में श्रीअन्न (मिलेट) को बढ़ावा दिया गया.

अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष के तहत भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), के पूसा परिसर, नई दिल्ली में 18-19 मार्च, 2023 को एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम वैश्विक मिलेट (श्रीअन्न) सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिस का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था और मोटे अनाज पर आयोजित प्रदर्शन को 3 दिन और बढ़ाया गया.

भारत को ‘श्रीअन्न’ का प्रमुख वैश्विक केंद्र बनाने के लिए मिलेट के बेहतर तौरतरीकों, शोध और प्रौद्योगिकियों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साझा करने के लिए भारतीय मिलेट अनुसंधान संस्थान (आईआईएमआर), हैदराबाद को वैश्विक उत्कृष्टता केंद्र घोषित किया गया.

भारतीय मिलेट अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद मोटे अनाज के मूल्यवर्धित खाद्य उत्पादों, दैनिक व्यंजनों आदि को ले कर किसानों, महिला किसानों, गृहणियों, छात्रों और युवा उद्यमियों को प्रशिक्षण और उन्हें अपने उद्यम स्थापित करने में सहायता भी दे रहा है.

संस्थान ने ’’ईट्राइट’’ टैग, संगठित जागरूकता कार्यक्रमों, कृषि व्यवसाय इन्क्यूबेटर, प्रौद्योगिकी व्यवसाय इन्क्यूबेटर आदि के तहत मोटे अनाज के खाद्य पदार्थ, उन की ब्रांडिंग के लिए ‘‘रेडी टू ईट’’ और ‘‘रेडी टू कुक’’ सहित मूल्यवर्धित प्रौद्योगिकी भी विकसित की है.

राजस्थान में बाड़मेर के निकट गुडामलानी में बाजरा के नए क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र का 27 सितंबर, 2023 को उद्घाटन किया गया. वैश्विक स्तर पर मिलेट को ले कर जागरूकता और अनुसंधान सहयोग मजबूत बनाने के लिए एक नई पहल जैसे कि, ‘मिलेट और अन्य प्राचीन अनाज अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान पहल (महारिषी)’ को भारत की जी20 अध्यक्षता के दौरान अपनाया गया.

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने मिलेट आधारित उत्पादों के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को 800 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ वर्ष 2022-23 से 2026-27 के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना को मंजूरी दी. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के पोषण अभियान के तहत भी मोटे अनाज को शामिल किया गया.

इस के अलावा खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस), एकीकृत बाल विकास सेवाओं (आईसीडीएस) और मध्याह्न भोजन के तहत मोटा अनाज खरीद बढ़ाने के लिए अपने दिशानिर्देशों में संशोधन किया.

भारत से मोटे अनाज का निर्यात संवर्धन, विपणन और विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मोटे अनाज को बढ़ावा देने को समर्पित एक निर्यात संवर्धन फोरम स्थापित की गई. ईट राइट (सही खानपान) अभियान के तहत स्वस्थ और विविध आहार के हिस्से के तौर पर भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) मिलेट उपयोग बढ़ाने को जागरूकता बढ़ा रहा है.

सरकारी कर्मचारियों में मोटा अनाज उपभोग प्रोत्साहित करने के लिए सभी सरकारी कार्यालयों को विभागीय प्रशिक्षणों, बैठकों में श्रीअन्न से तैयार जलपान और विभागीय कैंटीनों में श्रीअन्न आधारित खाने की चीजों को शामिल करने को कहा गया है.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग 28 राज्यों और जम्मूकश्मीर और लद्दाख – दो संघ शासित प्रदेशों के सभी जिलों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) के तहत पोषक अनाजों (मिलेट) पर एक उपमिशन चला रहा है. एनएफएसएम कार्यक्रम के तहत ज्वार, बाजरा, रागी, मंडुआ, गौण मिलेट जैसे कि कंगनी, काकुन, चीना, कोदो, झंगोरा, सांवा, कुटकी और दो छद्म मिलेट कुट्टू और चैलाई जैसे पोषक अनाज शामिल हैं.

एनएफएसएम के तहत पोषक अनाजों के तहत राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के माध्यम से फसल उत्पादन और सुरक्षा प्रौद्योगिकियों, फसल प्रणाली आधारित प्रदर्शनों, नई जारी किस्मों व संकरों के प्रमाणित बीजों का उत्पादन और वितरण, एकीकृत पोषक तत्व और कीटनाशक प्रबंधन तकनीकों, बेहतर कृषि उपकरणों, औजारों, संसाधन संरक्षण मशीनरी, जल संरक्षण उपकरण, फसल मौसम के दौरान प्रशिक्षण से किसानों का क्षमता निर्माण, कार्यक्रमों, कार्यशालाओं का आयोजन, बीज मिनीकिट वितरण, प्रिंट और इलैक्ट्रोनिक मीडिया आदि के माध्यम से प्रचार के जरीए किसानों को प्रोत्साहन दिया जाता है.

इस के अलावा राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के तहत भारत सरकार राज्यों को राज्य विशिष्ट जरूरतों, प्राथमिकताओं के लिए लचीलापन भी प्रदान करती है. राज्य आरकेवीवाई के तहत राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली राज्य स्तरीय मंजूरी समिति से मंजूरी ले कर मिलेट (श्रीअन्न) को बढ़ावा दे सकते हैं. साथ ही, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने मिलेट को बढ़ावा देने के लिए राज्य में मिलेट मिशन की शुरुआत की है.

गेहूं (Wheat) की बिक्री के लिए तुरंत करें पंजीयन

भोपाल: जिला आपूर्ति नियंत्रक मीना मालाकार ने बताया कि जिले में रबी विपणन वर्ष 2024-25 में समर्थन मूल्य पर गेहूं (Wheat) बिक्री के लिए पंजीयन के लिए किसानों द्वारा स्वयं के मोबाइल अथवा कंप्यूटर, ग्राम पंचायत कार्यालयों में स्थापित सुविधा केंद्र, सहकारी समिति पर निःशुल्क पंजीयन और एमपीऔनलाइन कियोस्क, कौमन सर्विस सैंटर, लोक सेवा केंद्रों पर, निजी व्यक्तियों द्वारा संचालित साइबर कैफे पर 50 रुपए का शुल्क जमा करा कर 1 मार्च, 2024 तक सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक गेहूं का पंजीयन करवा सकते हैं.

मीना मालाकार ने बताया सिकमी, बंटाईदार एवं वन पट्टाधारी किसानों के पंजीयन सहकारी समिति सहकारी विपणन सहकारी संस्था के केंद्रों पर किए जाएंगे. किसान का पंजीयन केवल उसी स्थिति में हो सकेगा, जबकि भूअभिलेख में दर्ज खाते एवं खसरे में दर्ज नाम का मिलान आधारकार्ड में दर्ज नाम से होगा.

पंजीयन के लिए आधार नंबर का वेरिफिकेशन उस से लिंक मोबाइल नंबर पर प्राप्त ओटीपी से या बायोमीट्रिक डिवाइस से किया जाएगा.

किसान के परिवार में जिन सदस्यों के नाम भूमि होगी, वे सभी अपना अलगअलग पंजीयन कराएंगे. किसान की भूमि यदि दूसरे जिले में है, तो उस जिले में पंजीयन कराया जाएगा. जिले में अलगअलग स्थानों पर भूमि होने पर एक ही केंद्र पर सभी भूमियों का पंजीयन होगा.

उन्होंने किसानों से अपील की कि 1 मार्च, 2024 तक अनिवार्य रूप से पंजीयन कराएं. निर्धारित समयावधि के पश्चात पंजीयन किया जाना संभव नहीं होगा.

ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, तहसील कार्यालय में स्थापित सुविधा केंद्र एमपी किसान एप पर पंजीयन की निःशुल्क व्यवस्था की गई है एवं एमपी औनलाइन कियोस्क, सर्विस सैंटर, लोक सेवा केंद्र, निजी व्यक्तियों द्वारा संचालित साइबर कैफे पर पंजीयन की सशुल्क 50 रुपए प्रति पंजीयन की व्यवस्था की गई है.

सरसों (Mustard) उत्पादन में राजस्थान पहले नंबर पर

जयपुर: राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान, दुर्गापुरा में कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय द्वारा 5वें ब्रासिका सम्मेलन का सरसों अनुसंधान समिति के सहयोग से आयोजन शुरू हुआ. तीनदिवसीय सम्मेलन का आरंभ कृषि मंत्री डा. किरोड़ी लाल मीणा ने किया.

कृषि मंत्री डा. किरोड़ी लाल मीणा ने कहा कि राजस्थान सरसों उत्पादन में प्रथम स्थान पर है और राजस्थान के पूर्वी जिलों में सर्वाधिक सरसों उत्पादन होता है. उन्होंने बताया कि राजस्थान उच्च गुणवत्ता की सरसों का उत्पादक राज्य है, फिर भी इतनी पैदावार होने के बाद भी सरसों का आयात करना पड़ता है, क्योंकि आईसीएआर के अनुसार, पहले तेल की प्रति व्यक्ति उपभोग दर 8 किलोग्राम थी और वर्तमान में उपभोग दर बढ़ कर 19 किलोग्राम हो गई है, इसलिए प्रति व्यक्ति उपभोग दर बढ़ने से कमी का सामना करना पड़ रहा है.

उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री मोदी देश को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दे रहे हैं, इसलिए हमें भी आत्मनिर्भर होने के लिए काम करने की जरूरत है. उन्होंने वैज्ञानिकों से विचारविमर्श करते हुए कहा कि हमें सरसों में प्राकृतिक आपदा और चेंपा जैसी समस्याओं के समाधान के लिए तकनीकी ईजाद करनी चाहिए.

विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बलराज सिंह ने बताया कि राजस्थान सरसों उत्पादन का मुख्य राज्य है, जिस में पैदावार की अपार संभावनाएं हैं, जिस पर हमें काम करने की जरूरत है, वहीं एफिड की समस्या के अतिरिक्त वातावरण परिवर्तन की अनेक समस्याओं के साथसाथ बीमारियों की समस्याएं भी सरसों की पैदावार घटाने में अहम हैं, जिस पर हमें ध्यान देूने की जरूरत है. राजस्थान के कई जिले अन्य तिलहन फसलों के उत्पादक हैं. सरसों व तारामीरा तेल उत्पादन के साथसाथ शहद उत्पादन में भी मुख्य भूमिका निभाते हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि कृषि अनुसंधान संस्थान, दुर्गापुरा में अखिल भारतीय गेहूं सुधार परियोजना के तहत कई किस्में विकसित की गई हं,ै जिन में राज 3077 सब से पुरानी किस्म है और जौ में माल्टिंग प्रयोग, दोहरे प्रयोग की किस्में और चारे के लिए प्रयोग की किस्में विकसित की गई हैं. साथ ही, खाद्य प्रयोग के लिए प्रयुक्त जौ पर काम किया जा रहा है, जो मधुमेह के मरीजों के लिए लाभदायक होता है.

इस दौरान सारांश पुस्तिका एवं डा. मनोहर राम एवं अन्य वैज्ञानिकों द्वारा लिखी गई सरसों एवं तारामीरा के इतिहास पुस्तिका का विमोचन किया गया. सम्मेलन में देशभर से आए तकरीबन 176 वैज्ञानिकों ने शिरकत की. सम्मेलन के विशिष्ट अतिथि के तौर पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक डा. त्रिलोचन महापात्र भी उपस्थित रहे.