पंद्रह किसान सेवा केंद्र मिले असंचालित, मिला नोटिस

जयपुर: कृषि विभाग द्वारा पिछले दिनों राज्यभर के किसान सेवा केंद्रों का औचक निरीक्षण किया गया. प्रमुख शासन सचिव कृषि एवं उद्यानिकी वैभव गालरिया ने बताया कि राजकीय सेवा में सुशासन के उच्च मानक विकसित करने और प्रशासनिक सुधार की दृष्टि से राज्य सरकार के निर्देशानुसार समय की पांबदी, राजकार्य में संवेदनशीलता, पारदर्शिता, प्रदेश के किसानों को विभागीय योजनाओं से लाभान्वित करने, विभागीय कामों की प्रगति की समीक्षा और प्रभावी मौनिटरिंग के लिए जिलेवार प्रभारी नियुक्त कर विभागीय अधिकारियों द्वारा पूरे प्रदेश के कृषि कार्यालयों और कृषि सेवा कंेद्रों में आकस्मिक निरीक्षण किए गए.

प्रमुख शासन सचिव वैभव गालरिया ने बताया कि राज्यभर में प्रभारी अधिकारियों द्वारा 95 किसान सेवा केंद्रों का औचक निरीक्षण किया गया, जिस में 80 किसान सेवा केंद्र संचालित व 15 असंचालित पाए गए और 12 कार्मिक अनुपस्थित मिले. अनुपस्थित व अन्य कामों में लापरवाही बरतने वाले 17 कार्मिकों को नोटिस जारी किए गए.

प्रभारी अधिकारियों ने निरीक्षण के दौरान कार्मिकों को निर्देश दिए कि किसान सेवा केंद्र में आने वाले किसानों को विभागीय योजनाओं एवं दी जा रही सुविधाओं के बारे में बताया जाए और डीबीटी स्कीम योजना के तहत लंबित पत्रावलियों की समयबद्ध फिजिकल वेरिफिकेशन करवा कर अनुदान संबंधी कार्यवाही करें. किसान सेवा केंद्रों को स्वच्छ व किसान सेवा केंद्र रजिस्टरों को सुचारु रूप से अपडेट रखने के लिए भी कहा.

किसान निःशुल्क लें ड्रोन (Drone) प्रशिक्षण, करें तुरंत आवेदन

चंडीगढ़: हरियाणा कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा हरियाणा में ड्रोन (Drone) के उपयोग से खेती के काम में नई तकनीक के प्रयोग को प्रोत्साहन देने के लिए अनेक काम किए जा रहे हैं, जिन में से ड्रोन के उपयोग से खेती में नई क्रांति लाई जा रही है. इसी दिशा में विभाग द्वारा निःशुल्क ड्रोन प्रशिक्षण के लिए दूसरे चरण में औनलाइन आवेदन आमंत्रित किए हैं.

विभाग के एक प्रवक्ता ने इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि किसानों और नौजवानों को ड्रोन चलाने का निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि 10वीं पास युवक, जिस की उम्र 18 से 45 साल होगी, सीएचसी या एफपीओ के सदस्य हैं, आवेदन के पात्र हैं.

प्रवक्ता ने आगे बताया कि इस से खेती के काम में नए सुधारों से कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा. किसानों को आधुनिक तकनीक मिलेगी. साथ ही, उन के उत्पाद और आसानी से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पहुंचेंगे.

प्रवक्ता ने यह भी बताया कि लाभार्थियों का चयन संबंधित जिला उपायुक्त की अध्यक्षता में गठित जिला स्तरीय कार्यकारी समिति के माध्यम से निर्धारित चयन प्रक्रिया द्वारा किया जाएगा. औनलाइन आवेदन की अंतिम तिथि 19 फरवरी, 2024 है.

इच्छुक किसान, युवा और महिलाएं आवेदन व पंजीकरण के लिए www.agriharyana.gov.in  पर जा कर आवेदन व पंजीकरण कर सकते हैं.

कांग्रेस ने ‘भारत बंद’ (Bharat Bandh) के लिए आईफा को दिया समर्थन

देश के बहुसंख्यक किसानों और विभिन्न तबकों ने शांतिपूर्ण ‘भारत बंद‘ (Bharat Bandh) का आवाह्न किया. सर्वविदित है कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उन की केंद्र सरकार ने किसानों को ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य‘ दिलाने की गारंटी देने के बावजूद और सत्ता में 10 साल रहने के उपरांत भी इस पर कोई फैसला नहीं लिया है.

यह सरासर वादाखिलाफी है. इस से देश के किसानों की दशा बद से बदतर हो गई है.

आज किसान अपनी सभी फसलों के लिए ‘एमएसपी गारंटी कानून‘ के अलावा स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने, किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए पेंशन, कृषि ऋण माफी, पुलिस मामलों को वापस लेने और लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों के लिए ‘न्याय‘, दिल्ली आंदोलन के दौरान मारे गए किसान परिवारों को मुआवजा और प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को नौकरी की भी मांग आदि को ले कर किसान संघर्षरत हैं.

किसानों की तरफ से जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने की मांग की जा रही है.

इस अवसर पर देशभर के 45 किसान संगठनों का सब से बड़ा महासंघ ’अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा)’ इन जरूरी मुद्दों पर अपने सभी साथी संगठनों और किसानों के साथ पूरी मजबूती के साथ खड़ा है.

समर्थन के लिए किसान संगठनों की ओर से डा. राजाराम त्रिपाठी ने कांग्रेस कमेटी कोंडागांव को धन्यवाद दिया और सभी किसानों से अपील की कि ‘भारत बंद’ के दौरान किसी भी तरह की हिंसा, अनुशासनहीनता, असंयम, दुव्र्यवहार की स्थिति कदापि नहीं आनी चाहिए.

आंदोलन पूरी तरह से अहिंसक हो और कानून को हाथ में लेने से हर हाल में बचें. स्कूली बच्चों, चिकित्सा संबंधी और अन्य अनिवार्य सेवाएं बाधित न होने पाएं.

रबी फसल के मिलेंगे सही दाम, करें फसल पंजीयन (Crop Registration)

विदिशा: भारत सरकार की प्राइज सपोर्ट स्कीम के अंतर्गत रबी वर्ष 2023-24 (विपणन वर्ष 2024-25) के लिए ई-उपार्जन पोर्टल पर चना, मसूर, सरसों के लिए पंजीयन कार्यवाही 20 फरवरी से शुरू होगी और 10 मार्च तक जारी रहेगी. कलक्टर उमा शंकर भार्गव ने बताया कि विदिशा जिले में गेहूं का पंजीयन कार्य जिन केंद्रों पर किया जा रहा है, उन केंद्रों पर चना, मसूर, सरसों का भी पंजीयन कार्य किया जाएगा. इस प्रकार जिले में 123 पंजीयन केंद्रों पर गेहूं, चना, सरसांे, मसूर का पंजीयन कार्य निर्धारित तिथियों तक किया जाएगा.

किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग के उपसंचालक केएस खपडिया ने बताया कि पंजीयन की निःशुल्क व्यवस्था के तहत स्वयं के मोबाइल एमपीकिसान एप के माध्यम से ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, तहसील कार्यालयों में स्थापित सुविधा केंद्रों एवं पूर्व वर्ष की भांति सहकारी समितियों द्वारा (सिकमी, बंटाईदार, कोटवार एवं वन पट्टाधारी किसान के पंजीयन की सुविधा केवल सहकारी समिति एवं विपणन सहकारी संस्था स्तर पर स्थापित पंजीयन केंद्रों पर उपलब्ध होगी) पंजीयन सशुल्क 50 रुपए दे कर एमपी औनलाइन कियोस्क, लोक सेवा केंद्रों, कौमन सर्विस सैंटर कियोस्क पर, निजी व्यक्तियों द्वारा संचालित साइबर कैफे पर भी सशुल्क पंजीयन करा सकेंगे.

कृषि विभाग द्वारा जिले के किसानों से अपील की गई है कि अपनी उपज का पंजीयन कराने से पहले आधारकार्ड नंबर से बैंक खाता एवं मोबाइल नंबर को लिंक अवश्य करा लें. विस्तृत जानकारी के लिए कंट्रोल रूम संचालित किया जा रहा है, जिस का टैलीफोन नंबर 07592-233153 पर संपर्क कर समाधान प्राप्त कर सकते हैं.

प्रो. स्वामीनाथन (Prof Swaminathan) को भारत रत्न: भाकृअनुसं में आयोजन

नई दिल्ली: 13 फरवरी, 2024 को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने विशेष समारोह का आयोजन किया, जिस में प्रतिष्ठित भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित प्रोफैसर एमएस स्वामीनाथन (Prof Swaminathan), एक प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक और भारतीय हरित क्रांति के जनक को समर्पित किया गया.

स्वागत भाषण डा. अशोक कुमार सिंह, निदेशक, भाकृअनुप-भाकृअनुसं और सचिव, एनएएएस द्वारा दिया गया. उन्होंने कहा कि यह राष्ट्र के लिए बहुत सम्मान व गर्व की बात है कि प्रोफैसर एमएस स्वामीनाथन को 9 फरवरी, 2024 को भारत सरकार द्वारा प्रतिष्ठित भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित करने का निर्णय लिया गया है.

उन्होंने प्रोफैसर एमएस स्वामीनाथन के आजीवन समर्पण एवं कृषि अनुसंधान, सतत विकास और खाद्य सुरक्षा में उल्लेखनीय योगदान पर प्रकाश डाला. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कैसे प्रो. स्वामीनाथन के दूरदर्शी नेतृत्व और नवीन दृष्टिकोण ने भारत और उस के बाहर के कृषि परिदृश्य को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है.

इस के उपरांत डा. हिमांशु पाठक, सचिव, डेयर और महानिदेशक, भाकृअनुप एवं अध्यक्ष, एनएएएस ने प्रोफैसर एमएस स्वामीनाथन की महत्वपूर्ण उपलब्धियों और उन के जीवन के प्रतिबिंबों पर प्रकाश डाला. उन्होंने सीआरआरआई, कटक में प्रोफैसर एमएस स्वामीनाथन के साथ काम करने की अपनी यादें ताजा कीं.

Prof Swaminathan

मंच पर उपस्थित अन्य गणमान्य व्यक्तियों में पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण के अध्यक्ष डा. टी. महापात्र, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, इंफाल के कुलाधिपति डा. आरबी सिंह और टीएएएस के संस्थापक अध्यक्ष डा. आरएस परोदा शामिल थे. डा. एचएस गुप्ता, डा. पंजाब सिंह, डा. केवी प्रभु और कई अन्य गणमान्य व्यक्ति कार्यक्रम में औनलाइन माध्यम से शामिल हुए.

प्रोफैसर एमएस स्वामीनाथन, जिन्हें भारत के हरित क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है, को 1960-70 के दशक के दौरान गेहूं और धान की फसलों की उत्पादकता और उत्पादन बढ़ाने के अपने ऐतिहासिक काम के जरीए लाखों लोगों को भुखमरी से बचाने का श्रेय दिया जाता है. उन्होंने ‘‘हरित क्रांति‘‘ को ‘‘सदाबहार क्रांति‘‘ में बदलने की अद्वितीय अवधारणा भी प्रदान की. उन्होंने गरीबों को लाभान्वित करने के लिए विज्ञान की शक्ति में दृढ़ता से विश्वास रखा और वह किसानों को जानकारी और संसाधनों से सशक्त करने के मुखर समर्थक भी रहे. उन्होंने साल 1988 में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की.

 

साथ ही, उन्होंने आर्थिक विकास के लिए रणनीतियों को विकसित करने और बढ़ावा देने के लिए अपनी आखिरी सांस तक वहां काम किया, जिस का लक्ष्य सीधेतौर पर गरीब किसानों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के रोजगार में वृद्धि करना था. उन की विरासत दुनियाभर के शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और अधिवक्ताओं को जलवायु परिवर्तन से ले कर सतत कृषि तक हमारे समय की गंभीर चुनौतियों का समाधान करने के लिए प्रेरित करती रहती है.

समारोह में प्रोफैसर एमएस स्वामीनाथन के शानदार जीवनवृत्त और स्थाई विरासत पर भाषण, प्रस्तुतियां और विचार प्रस्तुत किए गए. मंच पर उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों को कृषि, अनुसंधान और ग्रामीण विकास में उन के अमूल्य योगदान के लिए अपनी कृतज्ञता और सराहना व्यक्त करने का अवसर मिला.

जब उन्होंने 1960 के दशक में नोबल पुरस्कार विजेता डा. नार्मन बोरलाग के साथ हरित क्रांति की प्रमुख पहल की, तो बाद में उन्होंने सशक्त विकास के लिए कृषि सभी क्षेत्रों को समाहित करने के लिए एक सदैव हरित क्रांति की प्रेरणा की. प्रोफैसर स्वामीनाथन ने भारत में कई प्रमुख पदों को सुंदरता, नवीनता और रचनात्मकता के साथ संभाला जैसे कि निदेशक, भाकृअनुसं (1961-72), महानिदेशक, भाकृअनुप और नवगठित डेयर के सचिव (1972-79), कृषि सचिव, भारत सरकार।(1979), कार्यवाहक उपाध्यक्ष और सदस्य, योजना आयोग (1980-82).

इस के अलावा वे अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, फिलीपींस (1982-88) के महानिदेशक बनने वाले पहले भारतीय थे. उन के नेतृत्व को 1987 में पहले विश्व खाद्य पुरस्कार से मान्यता मिली थी. उन की सब से महत्वपूर्ण भूमिकाओं में से एक 2004 में आई, जब उन्हें राष्ट्रीय किसान आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. प्रोफैसर स्वामीनाथन ने अखिल भारतीय कृषि अनुसंधान सेवा (एआरएस) के निर्माण में भी महती भूमिका निभाई थी. कृषि के बारे में अपनी गहरी समझ और नीति निर्माताओं के साथ व्यापक जुड़ाव का लाभ उठाते हुए प्रो. स्वामीनाथन ने कृषि नीति पर निष्पक्ष, ज्ञान आधारित और समग्र मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए समर्पित एक स्वतंत्र ‘‘थिंक टैंक‘‘ के निर्माण का समर्थन किया, जिस के कारण साल 1990 में एनएएस की स्थापना हुई.

प्रो. एमएस स्वामीनाथन की उच्च आयु के बावजूद स्वामीनाथन अनुसंधान और समर्थन में सक्रिय रहे. उन्होंने अपने लेखन, सार्वजनिक भाषण और कई मंच और सम्मेलनों में भाग ले कर ग्रामीण विकास, खाद्य सुरक्षा और सतत कृषि के बारे में चर्चा में योगदान करना जारी रखा. प्रोफैसर स्वामीनाथन ने कृषि विकास, अनुसंधान और नीति समर्थन के प्रति समर्पित संस्थाओं और संघों की स्थापना और संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

इन संस्थानों ने उन के दृष्टिकोण और मूल्यों को आज भी निरंतर बनाए रखा है. प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन की बेटियां डा. निथ्या, डा. माधुरा और डा. सौम्या ने कार्यक्रम में अपनी आभासी उपस्थिति दर्ज की और उन के जीवन के प्रतिबिंबों पर विचारविमर्श किया.

कार्यक्रम का समापन एनएएएस के सचिव डा. वजीर सिंह लाकड़ा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ संपन्न हुआ.

‘सरस’ दूध (‘Saras’ Milk) : गुणवत्ता से समझौता नहीं

जयपुर: पशुपालन एवं डेयरी मंत्री जोराराम कुमावत ने कहा है कि राजस्थान राज्य की सहकारी डेयरियों में उत्पादित ‘सरस’ दूध (‘Saras’ Milk)  की गुणवत्ता ही इस की पहचान है और इस से कोई समझौता नहीं किया जाएगा.

उन्होंने कहा कि प्रदेश में नवगठित सरकार की पहली प्राथमिकता राज्यभर की सहकारी डेयरियों से जुड़े दुग्ध उत्पादकों का सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान है और इस के लिए नई कल्याणकारी योजनाएं अमल में लाई जाएंगी. ग्रास रूट लेवल तक दुग्ध उत्पादकों को सहकारी डेयरियों से जोड़ने के प्रयास किए जाएंगे और अधिक से अधिक संख्या में नई प्राथमिक दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों का गठन किया जाएगा.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि ‘सरस’ ब्रांड को न केवल राजस्थान, बल्कि पड़ोसी राज्यों में भी लोकप्रिय बनाने के लिए संयुक्त प्रयास किए जाने चाहिए.

मंत्री जोराराम कुमावत सरस संकुल मुख्यालय में राज्यभर की सहकारी डेयरियों के निर्वाचित अध्यक्षों के साथ आयोजित परिचर्चा में डेयरी अधिकारियों और निर्वाचित अध्यक्षों को संबोधित कर रहे थे. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि दूध और ‘सरस’ ब्रांड के पशु आहार में किसी तरह की कोई मिलावट बरदाश्त नहीं की जाएगी.

इस के लिए एक राज्यस्तरीय टास्क फोर्स का गठन कर मिलावटखोरी को रोकने के लिए एक अभियान चलाया जाना चाहिए. प्रदेश में दुग्ध उत्पादकों की सामाजिक सुरक्षा और उन के हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी. वर्तमान में चल रही सुरक्षा योजनाओं को भी प्रभावी ढंग से लागू किया जाएगा.

पशुपालन एवं डेयरी मंत्री जोराराम कुमावत ने कहा कि जिला दुग्ध संघों के निर्वाचित पदाधिकारी और डेयरी अधिकारियों में बेहतर समन्वय स्थापित किए जाने के प्रयास होने चाहिए, ताकि इस का लाभ आम दुग्ध उत्पादकों को मिल सके.

उन्होंने आसीडीएफ सहित सभी जिला दुग्ध संघों में मानव संसाधनों की कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत 656 पदों पर तुरंत भरती किए जाने पर जोर दिया और शेष पदों के लिए एनडीडीबी की विशेषज्ञ सेवाएं लेने के निर्देश प्रदान किए.

Saras Milk

परिचर्चा के दौरान प्रदेशभर से आए जिला दुग्ध संघों से आए जिला दुग्ध संघों के निर्वाचित अध्यक्षों ने राज्य में डेयरी विकास के लिए अपने सुझाव प्रस्तुत किए और व्यावहारिक समस्याओं की ओर मंत्री का ध्यान आकर्षित किया.

पशुपालन मंत्री जोराराम कुमावत ने दुग्ध उत्पादकों को बकाया भुगतान करने के लिए राज्य सरकार की ओर से देय राशि के तुरंत भुगतान सहित अन्य समस्याओं के अतिशीघ्र निराकरण का आश्वासन दिया.

परिचर्चा में भाग लेते हुए पशुपालन एवं गोपालन के प्रमुख शासन सचिव विकास सीताराम भाले ने कहा कि राज्य में डेयरी की अपार संभावनाएं हैं. इन संभावनाओं को तलाशने में सहाकरी डेयरियों के निर्वाचित अध्यक्षों की महती भूमिका है.

उन्होंने खुशी जाहिर की कि राजस्थान ने दुग्ध उत्पादन में देशभर में पहला स्थान प्राप्त कर लिया है. उन्होंन आश्वस्त किया कि राज्य सरकार दुग्ध उत्पादकों की समस्याओं का समाधान करने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहेगी.

डेयरी फेडरेशन की प्रबंध संचालक सुषमा अरोड़ा ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान आरसीडीएफ एवं जिला दुग्ध संघों द्वारा अर्जित उपलब्धियों को रेखांकित किया और भविष्य की योजनाओं पर विस्तृत प्रकाश डाला. परिचर्चा में निर्वाचित अध्यक्ष के अलावा डेयरी फेडरेशन के वित्तीय सलाहकार ललित मोरोड़िया सहित वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे.

अधिक मुनाफा वाली सरसों कि उन्नत किस्में (Mustard Varieties)

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित सरसों की उन्नत किस्में न केवल हरियाणा, बल्कि देश के अन्य प्रदेशों के किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होंगी. इस के लिए विश्वविद्यालय ने नैशनल क्राप साइंस, बीकानेर (राजस्थान), माई किसान एग्रो नीमच (मध्य प्रदेश), फेम सीड्स (इंडिया) व उत्तम सीड्स हिसार के साथ तकनीकी व्यवसायीकरण को बढ़ावा देने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि जब तक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध किसानों तक नहीं पहुंचेंगे, तब तक उस का कोई फायदा नहीं है. इसलिए इस तरह के समझौतों से विश्वविद्यालय का प्रयास है कि यहां विकसित फसल की उन्नत किस्मों व तकनीकों को अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाया जा सके.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने यह भी बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित सरसों की किस्म आरएच 1424 समय पर बोआई और बारानी परिस्थितियों में खेती के लिए उपयुक्त है, जबकि आरएच 1706 एक मूल्यवर्धित किस्म है.

उन्होंने आगे जानकारी देते हुए यह भी कहा कि उपरोक्त किस्में सरसों उगाने वाले राज्यों की उत्पादकता को बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होगी . हरियाणा पिछले कई सालों से सरसों फसल की उत्पादकता के मामले में देश में शीर्ष स्थान पर है. यह मुकाम विश्वविद्यालय में सरसों की अधिक उपज देने वाली किस्मों के विकास एवं किसानों द्वारा उन्नत तकनीकों को अपनाने के कारण ही संभव हुआ है. अब तक यहां अच्छी उपज क्षमता वाली सरसों की कुल 21 किस्मों को विकसित किया गया है.

एकसाथ 4 कंपनियों के साथ हुआ समझौता

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कुलपति प्रो. बीआर कंबोज की उपस्थिति में विश्वविद्यालय की ओर से समझौता ज्ञापन पर कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने हस्ताक्षर किए. राजस्थान स्थित बीकानेर की नैशनल क्राप साइंस सरसों की किस्म आरएच 1424 के लिए समझौता ज्ञापन पर कंपनी की तरफ से राजेश पूनियां ने हस्ताक्षर किए हैं.

मध्य प्रदेश स्थित नीमच की माई किसान एग्रो के साथ सरसों की किस्म आरएच 1706 के लिए समझौता ज्ञापन पर कंपनी की ओर से सीईओ जसवंत सिंह ने हस्ताक्षर किए हैं. हिसार की 2 कपंनियां, जिन में फेम सीड्स (इंडिया) के साथ सरसों की किस्मों आरएच 1706 व आरएच 1424 के लिए समझौता ज्ञापन पर कंपनी की तरफ से हिमांशु बंसल ने हस्ताक्षर किए हैं.

दूसरी कंपनी उत्तम सीड्स के साथ सरसों की किस्मों आरएच 1706 व आरएच 1424 के लिए समझौता ज्ञापन पर कंपनी की तरफ से शुभम ने हस्ताक्षर किए है.

सरसों की किस्मों की विशेषताएं

बारानी परीक्षणों में नव विकसित किस्म आरएच 1424 में लोकप्रिय किस्म आरएच 725 की तुलना में 14 फीसदी की वृद्धि के साथ 26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की औसत बीज उपज दर्ज की गई है. यह किस्म 139 दिनों में पक जाती है और इस के बीजों में तेल की मात्रा 40.5 फीसदी होती है. सरसों की दूसरी किस्म आरएच 1706 में 2.0 फीसदी से कम इरूसिक एसिड होने के साथ इस के तेल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है, जिस का उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य को लाभ होगा. यह किस्म पकने में 140 दिन का समय लेती है और इस की औसत बीज उपज 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इस के बीजों में 38 फीसदी तेल की मात्रा होती है.
विश्वविद्यालय के साथ किसानों को भी होगा फायदा

मानव संसाधन प्रबंधन निदेशालय की निदेशक डा. मंजू मेहता ने बताया कि समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर होने के बाद अब कंपनियां विश्वविद्यालय को लाइसेंस फीस अदा करेंगी, जिस के तहत उन्हें बीज का उत्पादन व विपणन करने का अधिकार प्राप्त होगा. इस के बाद किसानों को भी इस उन्नत किस्मों का बीज मिल सकेगा. सरसों की किस्में तैयार कर कंपनियां किसानों तक पहुंचाएंगी, ताकि किसानों को इन किस्मों का विश्वसनीय बीज मिल सके और उन की पैदावार में इजाफा हो सके.

ये रहे मौजूद

इस अवसर पर ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य, एसवीसी कपिल अरोड़ा, तिलहन अनुभाग के अध्यक्ष डा. करमल सिंह, डा. राम अवतार, आईपीआर सेल के प्रभारी डा. विनोद सांगवान भी उपस्थित रहे.

तिलहन फसलों को बढ़ावा,मनाया गया सरसों प्रक्षेत्र दिवस (Mustard Field Day)

छिंदवाड़ा: जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, छिंदवाड़ा द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत तिलहन फसल (Oilseed Crops) का रकबा बढ़ाने के लिए मिशन के अंतर्गत संचालित समूह पंक्ति प्रदर्शन में ग्राम खैरवाड़ा में सरसों का प्रक्षेत्र दिवस (Mustard Field Day) मनाया गया.

इस कार्यक्रम में किसान राजेश बट्टी व सोमलाल बट्टी के प्रक्षेत्र पर सरसों की किस्म आरएच 749 प्रदर्शन का अवलोकन किया गया, जिस में गांव के प्रगतिशील किसानों ने बढ़चढ़ कर सहभागिता की.

कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डा. डीसी श्रीवास्तव ने कार्यक्रम में बताया कि किसानों को जिले में तिलहनी फसल द्वारा सरसों का रकबा बढ़ाने के लिए सल्फर व एनपीके उर्वरक के उचित प्रबंधन पर विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई.

केंद्र के उद्यानिकी विषय से संबंधित वैज्ञानिक डा. आरके झाडे ने लहसुन व प्याज का उत्पादन बढ़ाने और उन का रखरखाव करने के संबंध में किसानों के बीच जानकारी साझा की. केंद्र की महिला वैज्ञानिक डा.सरिता सिंह ने सरसों फसल में लगने वाले रोग, कीट आदि को नियंत्रित करने और अधिक उत्पादन के लिए सरसों की विभिन्न किस्मों से अवगत कराया.

केंद्र के तकनीकी अधिकारी सुंदरलाल अलावा ने किसानों को सरसों की फसल में प्राकृतिक खेती के घटक जैसे बीजामृत, जीवामृत, घन जीवामृत और आच्छादन आदि पर जानकारी दी.

प्रसार्ड ट्रस्ट, मल्हनी के दूसरे स्थापना दिवस पर गोष्ठी

प्रो. रवि सुमन, कृषि एवं ग्रामीण विकास ट्रस्ट , मल्हनी भाटपार रानी के तत्वावधान में 11 फरवरी, 2024 को कृषि एवं ग्रामीण विकास पर एक गोष्ठी का आयोजन ट्रस्ट प्रक्षेत्र कार्यालय, लक्ष्मणपुर रोड महुआवारी मेला (मल्हना) में आयोजित किया गया.

ट्रस्ट के निदेशक प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि ट्रस्ट की स्थापना के 2 साल पूरे होने के उपलक्ष में दूसरा वर्षगाठ मनाया जा रहा है. ट्रस्ट 11 फरवरी, 2022 में घोषित किया था.

इस का मुख्य उद्देश्य कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए सकारात्मक पहल करना, शिक्षा, कृषि शिक्षा, शोध, प्रसार एवं सामुदायिक विकास के उत्थान के लिए काम करना, प्राकृतिक, जैविक एवं टिकाऊ खेती को बढ़ावा देना, कृषि एवं ग्रामीण विकास के क्षेत्र में विशेष परामर्श सेवा प्रदान करना, आवश्यकता आधारित प्रशिक्षण, कार्यशाला, संगोष्ठी, प्रक्षेत्र दिवस, किसान मेला एवं प्रदर्शनी का आयोजन करना और कृषक उत्पादक संगठन यानी एफपीओ को बढावा देना है.

संस्थान द्वारा अपने उद्देश्यों को ध्यान में रख कर कृषि एवं ग्रामीण विकास गोष्ठी का आयोजन किया गया. डा. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि फरवरी माह में कद्दूवर्गीय सब्जियों जैसे – लौकी, नेनुआ, करेला, कोहड़ा, खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा आदि के साथसाथ भिंडी, लोबिया, अरूई, बंडा आदि की बोआई कर सकते हैं. अपने आसपास की खाली पड़ी जगह पर पोषण वाटिका बना सकते हैं. 250 वर्गमीटर क्षेत्रफल से एक समान्य परिवार के लिए सालभर हरी सब्जियां प्राप्त कर सकते हैं. उड़द व मूंग की बोआई का उचित समय है.

डा. विकास मौर्य, फिजियोथेरैपिस्ट ने बताया कि इस समय मौसम बदल रहा है, सेहत पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. सुबह टहलना, नियमित व्यायाम करना, समय से नाश्ता एवं भोजन करना चाहिए. किसान कामों के चक्कर में समय से खानपान पर ध्यान नहीं देते, जिस से कई समस्या पैदा हो जाती है.

डा. रामजी कुशवाहा ने जैविक उत्पाद पर प्रकाश डाला, वहीं चंद्र प्रकाश मौर्य ने पशुपालन पर जानकारी दी. बशिष्ठ मिश्रा ने समाज में फैली कुरीतियों के उन्मूलन पर जानकारी दी. मंगलम (लाल बाबू) नर्सरी के प्रबंधक ओम प्रकाश ने बताया कि इस समय आम में मंजर आ रहा है, उस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है.

कार्यक्रम में सेवानिवृत्त मेजर मोहन यादव, सुरेशचंद्र, भोला, गोलू, आकाश, बृजेश सहित अन्य सेवानिवृत्त कर्मचारी और किसानों ने हिस्सा लिया.

मिर्ची की खेती (Chilli Cultivation) ने बदली गांव की तसवीर

राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के खंडार उपखंड के छान गांव का नजारा इन दिनों लालिमा लिए हुए है. यदि पहाड़ की ऊंचाई पर चढ़ कर देखें, तो दूरदूर तक सिर्फ मिर्ची ही मिर्ची सूखती हुई दिखाई देती हैं. यहां की मिर्ची न केवल देश में, बल्कि विदेशों में भी धूम मचा रही है. देशभर के व्यापारी गांव में आ कर मंडी लगाते हैं और यहां से विदेशों तक सप्लाई करते हैं.

किसान फारुख खान, गुलफाम एवं जुनैद खान ने बताया कि गांव में सभी किसान मिर्ची का उत्पादन करते हैं. हमारे गांव की जलवायु मिर्ची के लिए बहुत उपयोगी है. पहले हम भी सामान्य तरीके से गेहूं, सरसों, चना, ज्वार, बाजरा, तिल की फसल लेते थे, पहले गांव के किसानों की स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन जब से मिर्ची एवं अन्य सब्जियों का उत्पादन वैज्ञानिक विधियों से करने लगे हैं, किसानों के दिन बदलने लगे हैं.

गांव में मिल रहा है लोगो को रोजगारः-

आज हमारे गांव में राजस्थान व मध्य प्रदेश के लगभग 2,000 लोगों को 9-10 माह तक लगातार मिर्ची की फसल से रोजगार मिल रहा है. लोग अस्थाई तौर पर यहां आ कर रहने लगे हैं.

जब मजदूरों से बात की, तो बोले कि हमें रोज 500-600 रुपए मजदूरी के रूप में मिल जाते हैं. हम परिवार सहित यहां रहते हैं.

Mirch

किसानों से जब छान की मिर्ची के प्रसिद्ध होने का राज पूछा, तो उन्होंने बताया कि हम उन्नत किस्म के बीजों का चयन करते हैं, वैज्ञानिक सलाह के अनुसार संतुलित मात्रा में खाद, उर्वरक एवं दवाओं का उपयोग करते हैं, समयसमय पर निराईगुड़ाई एवं रोग से ग्रसित पौधों का उपचार करते हैं.

हमारा गांव चारों तरफ से पहाड़ से घिरा हुआ है, इसलिए यहां सर्दी के मौसम में पाले एवं सर्दी का प्रकोप कम होता है, जिस वजह से सर्दी के मौसम में यहां फसल में नुकसान कम होता है.

उन्होंने बताया कि पहाड़ की वजह से जमीन की तुलना में पत्थर गरम रहता है और जब हम पहाड़ पर मिर्ची सुखाते हैं, तो नीचे एवं ऊपर का तापमान अच्छा होने की वजह से मिर्ची का रंग गहरा लाल हो जाता है. इसलिए उत्तर प्रदेश के किसानों से भी व्यापारी मिर्ची खरीद कर यहां सुखाने लाते हैं.

जब किसानों से फसल से मिलने वाले मुनाफे की बात की, तो किसान जुनैद एवं फारुख खान ने कुछ यों समझाया मुनाफे का गणित:

एक बीघा यानी 0.25 हेक्टेयर में यदि मौसम खराब हो या अन्य परिस्थिति अनुकूल न हो तो 150 मण उत्पादन हो जाता है. यदि सारी परिस्थिति अनुकूल हो, तो ये उत्पादन 500 मण तक हो जाता है, लेकिन हम 300 मण औषत उत्पादन मान लेते हैं.

औसत भाव 25 रुपए किलोग्राम मिल जाता है. इस प्रकार एक बीघा में औसत उत्पादन 3,00,000 रुपए तक हो जाता है, जिस में अधिकतम 1,00,000 रुपए तक खर्चा हो जाता है. इस प्रकार हमें लगभग 2,00,000 रुपए तक प्रति बीघा मुनाफा मिल जाता है.