रबी फसल के मिलेंगे सही दाम, करें फसल पंजीयन (Crop Registration)

विदिशा: भारत सरकार की प्राइज सपोर्ट स्कीम के अंतर्गत रबी वर्ष 2023-24 (विपणन वर्ष 2024-25) के लिए ई-उपार्जन पोर्टल पर चना, मसूर, सरसों के लिए पंजीयन कार्यवाही 20 फरवरी से शुरू होगी और 10 मार्च तक जारी रहेगी. कलक्टर उमा शंकर भार्गव ने बताया कि विदिशा जिले में गेहूं का पंजीयन कार्य जिन केंद्रों पर किया जा रहा है, उन केंद्रों पर चना, मसूर, सरसों का भी पंजीयन कार्य किया जाएगा. इस प्रकार जिले में 123 पंजीयन केंद्रों पर गेहूं, चना, सरसांे, मसूर का पंजीयन कार्य निर्धारित तिथियों तक किया जाएगा.

किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग के उपसंचालक केएस खपडिया ने बताया कि पंजीयन की निःशुल्क व्यवस्था के तहत स्वयं के मोबाइल एमपीकिसान एप के माध्यम से ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, तहसील कार्यालयों में स्थापित सुविधा केंद्रों एवं पूर्व वर्ष की भांति सहकारी समितियों द्वारा (सिकमी, बंटाईदार, कोटवार एवं वन पट्टाधारी किसान के पंजीयन की सुविधा केवल सहकारी समिति एवं विपणन सहकारी संस्था स्तर पर स्थापित पंजीयन केंद्रों पर उपलब्ध होगी) पंजीयन सशुल्क 50 रुपए दे कर एमपी औनलाइन कियोस्क, लोक सेवा केंद्रों, कौमन सर्विस सैंटर कियोस्क पर, निजी व्यक्तियों द्वारा संचालित साइबर कैफे पर भी सशुल्क पंजीयन करा सकेंगे.

कृषि विभाग द्वारा जिले के किसानों से अपील की गई है कि अपनी उपज का पंजीयन कराने से पहले आधारकार्ड नंबर से बैंक खाता एवं मोबाइल नंबर को लिंक अवश्य करा लें. विस्तृत जानकारी के लिए कंट्रोल रूम संचालित किया जा रहा है, जिस का टैलीफोन नंबर 07592-233153 पर संपर्क कर समाधान प्राप्त कर सकते हैं.

प्रो. स्वामीनाथन (Prof Swaminathan) को भारत रत्न: भाकृअनुसं में आयोजन

नई दिल्ली: 13 फरवरी, 2024 को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने विशेष समारोह का आयोजन किया, जिस में प्रतिष्ठित भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित प्रोफैसर एमएस स्वामीनाथन (Prof Swaminathan), एक प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक और भारतीय हरित क्रांति के जनक को समर्पित किया गया.

स्वागत भाषण डा. अशोक कुमार सिंह, निदेशक, भाकृअनुप-भाकृअनुसं और सचिव, एनएएएस द्वारा दिया गया. उन्होंने कहा कि यह राष्ट्र के लिए बहुत सम्मान व गर्व की बात है कि प्रोफैसर एमएस स्वामीनाथन को 9 फरवरी, 2024 को भारत सरकार द्वारा प्रतिष्ठित भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित करने का निर्णय लिया गया है.

उन्होंने प्रोफैसर एमएस स्वामीनाथन के आजीवन समर्पण एवं कृषि अनुसंधान, सतत विकास और खाद्य सुरक्षा में उल्लेखनीय योगदान पर प्रकाश डाला. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कैसे प्रो. स्वामीनाथन के दूरदर्शी नेतृत्व और नवीन दृष्टिकोण ने भारत और उस के बाहर के कृषि परिदृश्य को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है.

इस के उपरांत डा. हिमांशु पाठक, सचिव, डेयर और महानिदेशक, भाकृअनुप एवं अध्यक्ष, एनएएएस ने प्रोफैसर एमएस स्वामीनाथन की महत्वपूर्ण उपलब्धियों और उन के जीवन के प्रतिबिंबों पर प्रकाश डाला. उन्होंने सीआरआरआई, कटक में प्रोफैसर एमएस स्वामीनाथन के साथ काम करने की अपनी यादें ताजा कीं.

Prof Swaminathan

मंच पर उपस्थित अन्य गणमान्य व्यक्तियों में पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण के अध्यक्ष डा. टी. महापात्र, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, इंफाल के कुलाधिपति डा. आरबी सिंह और टीएएएस के संस्थापक अध्यक्ष डा. आरएस परोदा शामिल थे. डा. एचएस गुप्ता, डा. पंजाब सिंह, डा. केवी प्रभु और कई अन्य गणमान्य व्यक्ति कार्यक्रम में औनलाइन माध्यम से शामिल हुए.

प्रोफैसर एमएस स्वामीनाथन, जिन्हें भारत के हरित क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है, को 1960-70 के दशक के दौरान गेहूं और धान की फसलों की उत्पादकता और उत्पादन बढ़ाने के अपने ऐतिहासिक काम के जरीए लाखों लोगों को भुखमरी से बचाने का श्रेय दिया जाता है. उन्होंने ‘‘हरित क्रांति‘‘ को ‘‘सदाबहार क्रांति‘‘ में बदलने की अद्वितीय अवधारणा भी प्रदान की. उन्होंने गरीबों को लाभान्वित करने के लिए विज्ञान की शक्ति में दृढ़ता से विश्वास रखा और वह किसानों को जानकारी और संसाधनों से सशक्त करने के मुखर समर्थक भी रहे. उन्होंने साल 1988 में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की.

 

साथ ही, उन्होंने आर्थिक विकास के लिए रणनीतियों को विकसित करने और बढ़ावा देने के लिए अपनी आखिरी सांस तक वहां काम किया, जिस का लक्ष्य सीधेतौर पर गरीब किसानों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के रोजगार में वृद्धि करना था. उन की विरासत दुनियाभर के शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और अधिवक्ताओं को जलवायु परिवर्तन से ले कर सतत कृषि तक हमारे समय की गंभीर चुनौतियों का समाधान करने के लिए प्रेरित करती रहती है.

समारोह में प्रोफैसर एमएस स्वामीनाथन के शानदार जीवनवृत्त और स्थाई विरासत पर भाषण, प्रस्तुतियां और विचार प्रस्तुत किए गए. मंच पर उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों को कृषि, अनुसंधान और ग्रामीण विकास में उन के अमूल्य योगदान के लिए अपनी कृतज्ञता और सराहना व्यक्त करने का अवसर मिला.

जब उन्होंने 1960 के दशक में नोबल पुरस्कार विजेता डा. नार्मन बोरलाग के साथ हरित क्रांति की प्रमुख पहल की, तो बाद में उन्होंने सशक्त विकास के लिए कृषि सभी क्षेत्रों को समाहित करने के लिए एक सदैव हरित क्रांति की प्रेरणा की. प्रोफैसर स्वामीनाथन ने भारत में कई प्रमुख पदों को सुंदरता, नवीनता और रचनात्मकता के साथ संभाला जैसे कि निदेशक, भाकृअनुसं (1961-72), महानिदेशक, भाकृअनुप और नवगठित डेयर के सचिव (1972-79), कृषि सचिव, भारत सरकार।(1979), कार्यवाहक उपाध्यक्ष और सदस्य, योजना आयोग (1980-82).

इस के अलावा वे अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, फिलीपींस (1982-88) के महानिदेशक बनने वाले पहले भारतीय थे. उन के नेतृत्व को 1987 में पहले विश्व खाद्य पुरस्कार से मान्यता मिली थी. उन की सब से महत्वपूर्ण भूमिकाओं में से एक 2004 में आई, जब उन्हें राष्ट्रीय किसान आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. प्रोफैसर स्वामीनाथन ने अखिल भारतीय कृषि अनुसंधान सेवा (एआरएस) के निर्माण में भी महती भूमिका निभाई थी. कृषि के बारे में अपनी गहरी समझ और नीति निर्माताओं के साथ व्यापक जुड़ाव का लाभ उठाते हुए प्रो. स्वामीनाथन ने कृषि नीति पर निष्पक्ष, ज्ञान आधारित और समग्र मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए समर्पित एक स्वतंत्र ‘‘थिंक टैंक‘‘ के निर्माण का समर्थन किया, जिस के कारण साल 1990 में एनएएस की स्थापना हुई.

प्रो. एमएस स्वामीनाथन की उच्च आयु के बावजूद स्वामीनाथन अनुसंधान और समर्थन में सक्रिय रहे. उन्होंने अपने लेखन, सार्वजनिक भाषण और कई मंच और सम्मेलनों में भाग ले कर ग्रामीण विकास, खाद्य सुरक्षा और सतत कृषि के बारे में चर्चा में योगदान करना जारी रखा. प्रोफैसर स्वामीनाथन ने कृषि विकास, अनुसंधान और नीति समर्थन के प्रति समर्पित संस्थाओं और संघों की स्थापना और संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

इन संस्थानों ने उन के दृष्टिकोण और मूल्यों को आज भी निरंतर बनाए रखा है. प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन की बेटियां डा. निथ्या, डा. माधुरा और डा. सौम्या ने कार्यक्रम में अपनी आभासी उपस्थिति दर्ज की और उन के जीवन के प्रतिबिंबों पर विचारविमर्श किया.

कार्यक्रम का समापन एनएएएस के सचिव डा. वजीर सिंह लाकड़ा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ संपन्न हुआ.

‘सरस’ दूध (‘Saras’ Milk) : गुणवत्ता से समझौता नहीं

जयपुर: पशुपालन एवं डेयरी मंत्री जोराराम कुमावत ने कहा है कि राजस्थान राज्य की सहकारी डेयरियों में उत्पादित ‘सरस’ दूध (‘Saras’ Milk)  की गुणवत्ता ही इस की पहचान है और इस से कोई समझौता नहीं किया जाएगा.

उन्होंने कहा कि प्रदेश में नवगठित सरकार की पहली प्राथमिकता राज्यभर की सहकारी डेयरियों से जुड़े दुग्ध उत्पादकों का सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान है और इस के लिए नई कल्याणकारी योजनाएं अमल में लाई जाएंगी. ग्रास रूट लेवल तक दुग्ध उत्पादकों को सहकारी डेयरियों से जोड़ने के प्रयास किए जाएंगे और अधिक से अधिक संख्या में नई प्राथमिक दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों का गठन किया जाएगा.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि ‘सरस’ ब्रांड को न केवल राजस्थान, बल्कि पड़ोसी राज्यों में भी लोकप्रिय बनाने के लिए संयुक्त प्रयास किए जाने चाहिए.

मंत्री जोराराम कुमावत सरस संकुल मुख्यालय में राज्यभर की सहकारी डेयरियों के निर्वाचित अध्यक्षों के साथ आयोजित परिचर्चा में डेयरी अधिकारियों और निर्वाचित अध्यक्षों को संबोधित कर रहे थे. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि दूध और ‘सरस’ ब्रांड के पशु आहार में किसी तरह की कोई मिलावट बरदाश्त नहीं की जाएगी.

इस के लिए एक राज्यस्तरीय टास्क फोर्स का गठन कर मिलावटखोरी को रोकने के लिए एक अभियान चलाया जाना चाहिए. प्रदेश में दुग्ध उत्पादकों की सामाजिक सुरक्षा और उन के हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी. वर्तमान में चल रही सुरक्षा योजनाओं को भी प्रभावी ढंग से लागू किया जाएगा.

पशुपालन एवं डेयरी मंत्री जोराराम कुमावत ने कहा कि जिला दुग्ध संघों के निर्वाचित पदाधिकारी और डेयरी अधिकारियों में बेहतर समन्वय स्थापित किए जाने के प्रयास होने चाहिए, ताकि इस का लाभ आम दुग्ध उत्पादकों को मिल सके.

उन्होंने आसीडीएफ सहित सभी जिला दुग्ध संघों में मानव संसाधनों की कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत 656 पदों पर तुरंत भरती किए जाने पर जोर दिया और शेष पदों के लिए एनडीडीबी की विशेषज्ञ सेवाएं लेने के निर्देश प्रदान किए.

Saras Milk

परिचर्चा के दौरान प्रदेशभर से आए जिला दुग्ध संघों से आए जिला दुग्ध संघों के निर्वाचित अध्यक्षों ने राज्य में डेयरी विकास के लिए अपने सुझाव प्रस्तुत किए और व्यावहारिक समस्याओं की ओर मंत्री का ध्यान आकर्षित किया.

पशुपालन मंत्री जोराराम कुमावत ने दुग्ध उत्पादकों को बकाया भुगतान करने के लिए राज्य सरकार की ओर से देय राशि के तुरंत भुगतान सहित अन्य समस्याओं के अतिशीघ्र निराकरण का आश्वासन दिया.

परिचर्चा में भाग लेते हुए पशुपालन एवं गोपालन के प्रमुख शासन सचिव विकास सीताराम भाले ने कहा कि राज्य में डेयरी की अपार संभावनाएं हैं. इन संभावनाओं को तलाशने में सहाकरी डेयरियों के निर्वाचित अध्यक्षों की महती भूमिका है.

उन्होंने खुशी जाहिर की कि राजस्थान ने दुग्ध उत्पादन में देशभर में पहला स्थान प्राप्त कर लिया है. उन्होंन आश्वस्त किया कि राज्य सरकार दुग्ध उत्पादकों की समस्याओं का समाधान करने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहेगी.

डेयरी फेडरेशन की प्रबंध संचालक सुषमा अरोड़ा ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान आरसीडीएफ एवं जिला दुग्ध संघों द्वारा अर्जित उपलब्धियों को रेखांकित किया और भविष्य की योजनाओं पर विस्तृत प्रकाश डाला. परिचर्चा में निर्वाचित अध्यक्ष के अलावा डेयरी फेडरेशन के वित्तीय सलाहकार ललित मोरोड़िया सहित वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे.

अधिक मुनाफा वाली सरसों कि उन्नत किस्में (Mustard Varieties)

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित सरसों की उन्नत किस्में न केवल हरियाणा, बल्कि देश के अन्य प्रदेशों के किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होंगी. इस के लिए विश्वविद्यालय ने नैशनल क्राप साइंस, बीकानेर (राजस्थान), माई किसान एग्रो नीमच (मध्य प्रदेश), फेम सीड्स (इंडिया) व उत्तम सीड्स हिसार के साथ तकनीकी व्यवसायीकरण को बढ़ावा देने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि जब तक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध किसानों तक नहीं पहुंचेंगे, तब तक उस का कोई फायदा नहीं है. इसलिए इस तरह के समझौतों से विश्वविद्यालय का प्रयास है कि यहां विकसित फसल की उन्नत किस्मों व तकनीकों को अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाया जा सके.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने यह भी बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित सरसों की किस्म आरएच 1424 समय पर बोआई और बारानी परिस्थितियों में खेती के लिए उपयुक्त है, जबकि आरएच 1706 एक मूल्यवर्धित किस्म है.

उन्होंने आगे जानकारी देते हुए यह भी कहा कि उपरोक्त किस्में सरसों उगाने वाले राज्यों की उत्पादकता को बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होगी . हरियाणा पिछले कई सालों से सरसों फसल की उत्पादकता के मामले में देश में शीर्ष स्थान पर है. यह मुकाम विश्वविद्यालय में सरसों की अधिक उपज देने वाली किस्मों के विकास एवं किसानों द्वारा उन्नत तकनीकों को अपनाने के कारण ही संभव हुआ है. अब तक यहां अच्छी उपज क्षमता वाली सरसों की कुल 21 किस्मों को विकसित किया गया है.

एकसाथ 4 कंपनियों के साथ हुआ समझौता

Musturd

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज की उपस्थिति में विश्वविद्यालय की ओर से समझौता ज्ञापन पर कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने हस्ताक्षर किए. राजस्थान स्थित बीकानेर की नैशनल क्राप साइंस सरसों की किस्म आरएच 1424 के लिए समझौता ज्ञापन पर कंपनी की तरफ से राजेश पूनियां ने हस्ताक्षर किए हैं.

मध्य प्रदेश स्थित नीमच की माई किसान एग्रो के साथ सरसों की किस्म आरएच 1706 के लिए समझौता ज्ञापन पर कंपनी की ओर से सीईओ जसवंत सिंह ने हस्ताक्षर किए हैं. हिसार की 2 कपंनियां, जिन में फेम सीड्स (इंडिया) के साथ सरसों की किस्मों आरएच 1706 व आरएच 1424 के लिए समझौता ज्ञापन पर कंपनी की तरफ से हिमांशु बंसल ने हस्ताक्षर किए हैं.

दूसरी कंपनी उत्तम सीड्स के साथ सरसों की किस्मों आरएच 1706 व आरएच 1424 के लिए समझौता ज्ञापन पर कंपनी की तरफ से शुभम ने हस्ताक्षर किए है.

सरसों की किस्मों की विशेषताएं

बारानी परीक्षणों में नव विकसित किस्म आरएच 1424 में लोकप्रिय किस्म आरएच 725 की तुलना में 14 फीसदी की वृद्धि के साथ 26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की औसत बीज उपज दर्ज की गई है. यह किस्म 139 दिनों में पक जाती है और इस के बीजों में तेल की मात्रा 40.5 फीसदी होती है. सरसों की दूसरी किस्म आरएच 1706 में 2.0 फीसदी से कम इरूसिक एसिड होने के साथ इस के तेल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है, जिस का उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य को लाभ होगा. यह किस्म पकने में 140 दिन का समय लेती है और इस की औसत बीज उपज 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इस के बीजों में 38 फीसदी तेल की मात्रा होती है.
विश्वविद्यालय के साथ किसानों को भी होगा फायदा

मानव संसाधन प्रबंधन निदेशालय की निदेशक डा. मंजू मेहता ने बताया कि समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर होने के बाद अब कंपनियां विश्वविद्यालय को लाइसेंस फीस अदा करेंगी, जिस के तहत उन्हें बीज का उत्पादन व विपणन करने का अधिकार प्राप्त होगा. इस के बाद किसानों को भी इस उन्नत किस्मों का बीज मिल सकेगा. सरसों की किस्में तैयार कर कंपनियां किसानों तक पहुंचाएंगी, ताकि किसानों को इन किस्मों का विश्वसनीय बीज मिल सके और उन की पैदावार में इजाफा हो सके.

ये रहे मौजूद

इस अवसर पर ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य, एसवीसी कपिल अरोड़ा, तिलहन अनुभाग के अध्यक्ष डा. करमल सिंह, डा. राम अवतार, आईपीआर सेल के प्रभारी डा. विनोद सांगवान भी उपस्थित रहे.

तिलहन फसलों को बढ़ावा,मनाया गया सरसों प्रक्षेत्र दिवस (Mustard Field Day)

छिंदवाड़ा: जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, छिंदवाड़ा द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत तिलहन फसल (Oilseed Crops) का रकबा बढ़ाने के लिए मिशन के अंतर्गत संचालित समूह पंक्ति प्रदर्शन में ग्राम खैरवाड़ा में सरसों का प्रक्षेत्र दिवस (Mustard Field Day) मनाया गया.

इस कार्यक्रम में किसान राजेश बट्टी व सोमलाल बट्टी के प्रक्षेत्र पर सरसों की किस्म आरएच 749 प्रदर्शन का अवलोकन किया गया, जिस में गांव के प्रगतिशील किसानों ने बढ़चढ़ कर सहभागिता की.

कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डा. डीसी श्रीवास्तव ने कार्यक्रम में बताया कि किसानों को जिले में तिलहनी फसल द्वारा सरसों का रकबा बढ़ाने के लिए सल्फर व एनपीके उर्वरक के उचित प्रबंधन पर विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई.

केंद्र के उद्यानिकी विषय से संबंधित वैज्ञानिक डा. आरके झाडे ने लहसुन व प्याज का उत्पादन बढ़ाने और उन का रखरखाव करने के संबंध में किसानों के बीच जानकारी साझा की. केंद्र की महिला वैज्ञानिक डा.सरिता सिंह ने सरसों फसल में लगने वाले रोग, कीट आदि को नियंत्रित करने और अधिक उत्पादन के लिए सरसों की विभिन्न किस्मों से अवगत कराया.

केंद्र के तकनीकी अधिकारी सुंदरलाल अलावा ने किसानों को सरसों की फसल में प्राकृतिक खेती के घटक जैसे बीजामृत, जीवामृत, घन जीवामृत और आच्छादन आदि पर जानकारी दी.

मिर्ची की खेती (Chilli Cultivation) ने बदली गांव की तसवीर

राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के खंडार उपखंड के छान गांव का नजारा इन दिनों लालिमा लिए हुए है. यदि पहाड़ की ऊंचाई पर चढ़ कर देखें, तो दूरदूर तक सिर्फ मिर्ची ही मिर्ची सूखती हुई दिखाई देती हैं. यहां की मिर्ची न केवल देश में, बल्कि विदेशों में भी धूम मचा रही है. देशभर के व्यापारी गांव में आ कर मंडी लगाते हैं और यहां से विदेशों तक सप्लाई करते हैं.

किसान फारुख खान, गुलफाम एवं जुनैद खान ने बताया कि गांव में सभी किसान मिर्ची का उत्पादन करते हैं. हमारे गांव की जलवायु मिर्ची के लिए बहुत उपयोगी है. पहले हम भी सामान्य तरीके से गेहूं, सरसों, चना, ज्वार, बाजरा, तिल की फसल लेते थे, पहले गांव के किसानों की स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन जब से मिर्ची एवं अन्य सब्जियों का उत्पादन वैज्ञानिक विधियों से करने लगे हैं, किसानों के दिन बदलने लगे हैं.

गांव में मिल रहा है लोगो को रोजगारः-

आज हमारे गांव में राजस्थान व मध्य प्रदेश के लगभग 2,000 लोगों को 9-10 माह तक लगातार मिर्ची की फसल से रोजगार मिल रहा है. लोग अस्थाई तौर पर यहां आ कर रहने लगे हैं.

जब मजदूरों से बात की, तो बोले कि हमें रोज 500-600 रुपए मजदूरी के रूप में मिल जाते हैं. हम परिवार सहित यहां रहते हैं.

Mirch

किसानों से जब छान की मिर्ची के प्रसिद्ध होने का राज पूछा, तो उन्होंने बताया कि हम उन्नत किस्म के बीजों का चयन करते हैं, वैज्ञानिक सलाह के अनुसार संतुलित मात्रा में खाद, उर्वरक एवं दवाओं का उपयोग करते हैं, समयसमय पर निराईगुड़ाई एवं रोग से ग्रसित पौधों का उपचार करते हैं.

हमारा गांव चारों तरफ से पहाड़ से घिरा हुआ है, इसलिए यहां सर्दी के मौसम में पाले एवं सर्दी का प्रकोप कम होता है, जिस वजह से सर्दी के मौसम में यहां फसल में नुकसान कम होता है.

उन्होंने बताया कि पहाड़ की वजह से जमीन की तुलना में पत्थर गरम रहता है और जब हम पहाड़ पर मिर्ची सुखाते हैं, तो नीचे एवं ऊपर का तापमान अच्छा होने की वजह से मिर्ची का रंग गहरा लाल हो जाता है. इसलिए उत्तर प्रदेश के किसानों से भी व्यापारी मिर्ची खरीद कर यहां सुखाने लाते हैं.

जब किसानों से फसल से मिलने वाले मुनाफे की बात की, तो किसान जुनैद एवं फारुख खान ने कुछ यों समझाया मुनाफे का गणित:

एक बीघा यानी 0.25 हेक्टेयर में यदि मौसम खराब हो या अन्य परिस्थिति अनुकूल न हो तो 150 मण उत्पादन हो जाता है. यदि सारी परिस्थिति अनुकूल हो, तो ये उत्पादन 500 मण तक हो जाता है, लेकिन हम 300 मण औषत उत्पादन मान लेते हैं.

औसत भाव 25 रुपए किलोग्राम मिल जाता है. इस प्रकार एक बीघा में औसत उत्पादन 3,00,000 रुपए तक हो जाता है, जिस में अधिकतम 1,00,000 रुपए तक खर्चा हो जाता है. इस प्रकार हमें लगभग 2,00,000 रुपए तक प्रति बीघा मुनाफा मिल जाता है.

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) में किसानों के लिए 3 नई सौगातें

नई दिल्ली: 8 फरवरी 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के अंतर्गत केंद्रीयकृत ‘‘किसान रक्षक हेल्पलाइन 14447 और पोर्टल”, कृषि बीमा सैंडबौक्स फ्रेमवर्क प्लेटफार्म ‘सारथी’ एवं कृषि समुदाय के लिए लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम (एलएमएस) प्लेटफार्म का दिल्ली में समारोहपूर्वक शुभारंभ किया.

इस अवसर पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे और केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चैधरी, केंद्रीय कृषि सचिव मनोज अहूजा भी उपस्थित थे.

कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि यह देश गांवों का देश है, किसानों का देश है. किसानों को आगे बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन में कृषि मंत्रालय लगातार काम कर रहा है.

किसानों को उन्नत करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि किसानों के सामथ्र्य, ताकत, मजबूती से ही देश का सामथ्र्य व मजबूती है.

इसे ध्यान में रखते हुए व किसान समुदाय की उन्नति को रेखांकित करते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय काम कर रहा है. सरकार की ओर से संचालित योजनाओं के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जा रहा है.

उन्होंने इस दिशा में सरकार द्वारा निरंतर किए जा रहे प्रयासों का उल्लेख करते हुए कहा कि वर्तमान में वसर मिल रहा है कि तकनीकी रूप से भी किसानों को सशक्त बनाने में सहयोगी बनें.

किसानों से डिजिटली जुड़ते हुए उन्हें आगे बढ़ाने के लिए काम करें. इसी नवाचार के तहत प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत कृषि रक्षक पोर्टल व हेल्पलाइन, सैंडबौक्स फ्रेमवर्क एवं एलएमएस प्लेटफार्म का शुभारंभ हुआ है.

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार कृषि क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता देती है व इसे अधिक कुशल, प्रतिस्पर्धी, आय उन्मुख व लचीला बनाने की लिए निरंतर प्रयासरत है. कृषि मंत्रालय की प्रमुख योजनाओं में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शामिल हैं.

साथ ही, 10,000 नए किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) का गठन किया जा रहा है, जिस के सकारात्मक नतीजे भी मिल रहे हैं. प्रधानमंत्री सिंचाई कार्यक्रम, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, बागबानी मिशन, सतत कृषि पर राष्ट्रीय मिशन, किसान क्रेडिट कार्ड आदि के जरीए भी किसानों की जरूरतों व लाभ के लिए मंत्रालय काम कर रहा है.

उन्होंने आगे कहा कि इन योजनाओं का मुख्य उद्देश्य किसानों की आय बढ़ाना व कृषि कार्यों में जोखिम कम करना है. वर्तमान में कृषि क्षेत्र को ज्यादा ग्रोथ के लिए जहां निवेश की जरूरत है, वहीं प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों से होने वाले नुकसान के जोखिम को कम करने की भी जरूरत है.

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना इस के लिए काफी कारगर साबित हुई है. योजना के प्रारंभ से अभी तक इस में 15 करोड़ से ज्यादा किसान जुड़े हैं और अब तक किसानों के 29,237 करोड़ रुपए के प्रीमियम के मुकाबले 1.52 लाख करोड़ रुपए के दावों का पेमेंट किया गया है.

उन्होंने यह भी कहा कि जलवायु परिवर्तन के इस दौर में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना छोटे व सीमांत किसानों के लिए वरदान साबित हुई है. महाराष्ट्र, ओडिशा, त्रिपुरा, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में सरकारें किसान प्रीमियम के रूप में केवल एक रुपए के साथ सार्वभौमिक कवरेज प्रदान कर के किसानों का समर्थन करने के लिए आगे आई हैं.

पिछले कुछ समय में योजना के क्रियान्वयन में सुधार के प्रयास भी लगातार जारी हैं. सरकार प्रतिबद्ध है कि कृषि क्षेत्र में ऐसी योजनाओं को आगे बढ़ाएं, जिस से किसानों के लिए जोखिम कम हों व आय बेहतर हो सके.

उन्होंने अधिकारियों से कहा कि कोशिश होनी चाहिए कि किसानों की समस्या का समाधान डाटा के साथ करने में समर्थ हों.

इस का विशेष ध्यान रखें कि हमारे अन्नदाता निराश न हों, बल्कि उन का सरकार के प्रति विश्वास और बढ़े, उन्हें महसूस होना चाहिए कि उन के पीछे पूरी ताकत से सरकार खड़ी है और वे आगे बढ़ रहे है.

कृषि मंत्रालय प्रधानमंत्री मोदी के वर्ष 2047 तक विकसित भारत निर्माण के संकल्प को पूरा करने के लिए लगन से काम कर रहा है.

किसान युवा, मातृशक्ति, गरीब सभी के लिए काम हो रहा है. कृषि मंत्रालय, संगठित रूप में किसानों के लिए काम कर रहा है, जिस का लाभ देश के अन्नदाताओं को मिल रहा है.

फसल विविधीकरण, मूल्य वृद्धि और विपणन पर कार्यक्रम

उदयपुर: महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संगठक, अनुसंधान निदेशालय के अधीनस्थ फसल विविधीकरण परियोजना के अंतर्गत 2 दिवसीय विस्तार अधिकारियों का प्रशिक्षण कार्यक्रम सहायक निदेशक, कृषि कार्यालय, बेगू, चित्तौड़गढ़ में संपन्न हुआ.

प्रशिक्षण कार्यक्रम में परियोजना अधिकारी डा. हरि सिंह ने परियोजना की जानकारी देते हुए फसल विविधीकारण एवं मूल्य संवर्धन के महत्व की जानकारी देते हुए बताया कि किसान किस प्रकार बाजार को देखते हुए अपनी फसलों का विविधीकरण व विपणन करेगा.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शंकर लाल जाट, उपनिदेशक, उद्यान, चित्तौड़गढ़ ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए फसल विविधीकरण में मूल्य संवर्धन के महत्व को बताते हुए बताया कि मूल्य संवर्धन से किसानों की आय एवं रोजगार सृजन में वृद्धि होगी.

हरिकेश चैधरी, सहायक निदेशक कृषि, बेगू, चित्तौड़गढ़ ने प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए बताया कि फसल विविधीकरण से फसल की उत्पादकता, भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ेगी एवं बाजार भाव भी ज्यादा मिलेगा.

मुकेश वर्मा, संयुक्त निदेशक, उद्यानिकी ने बताया कि बागबानी फसलों का फसल विविधीकरण में बड़ा महत्व है. बागबानी फसलों का मूल्य संवर्धन कर किसान दोगुनी आय एवं रोजगार प्राप्त कर सकता है.

जोगेंद्र सिंह, कृषि अधिकारी, उद्यान, चित्तौड़गढ़ ने बागबानी फसलों में जल प्रबंधन की तकनीकी जानकारी, उस में लगने वाले रोग एवं निदान पर विस्तार से बताया. डा. बुद्धि प्रकाश मीणा, पशु चिकित्साधिकारी, बेगू, चित्तौड़गढ़ ने पशुओं में नस्ल सुधार एवं पशुपालन प्रबंधन पर विस्तार से सरकारी योजनाओं का महत्व बताया.

कार्यक्रम में डा. हंसराज धाकड़, कृषि अधिकारी ने कृषि में सरकार की विभिन्न योजनाओं के बारे में जानकारी दी. कार्यक्रम में परियोजना से हेमंत कुमार लांबा, रामजी लाल बडसरा एवं एकलिंग सिंह उपस्थित थे. प्रशिक्षण कार्यक्रम में 40 कृषि पर्यवेक्षक एवं विस्तार अधिकारियों ने भाग लिया.

महिलाओं को मिलेट्स (Millets) से पोषक उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग

उदयपुर: महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अंतर्गत कार्यस्त अखिल भारतीय समन्वित कृषिरत महिला अनुसंधान परियोजना द्वारा बडगांव पंचायत समिति के गांव धूर में ‘जैसा तन वेसा मन’ विषय पर 3 दिवसीय महिला प्रशिक्षण का आयोजन प्रशिक्षण प्रभारी डा. विशाखा सिंह के निर्देशन में 5 फरवरी से 7 फरवरी 2024 को किया गया.

यह प्रशिक्षण धूर गांव में न्यूट्री स्मार्ट विलेज स्कीम के अंतर्गत आयोजित किया गया, जिस का उद्देश्य महिलाओं में पोषण व स्वास्थ्य और खुशहाल जीवनशैली के प्रति जागरूकता लाना एवं मिलेट्स (पोषक अनाजों) से मूल्य संवर्धित उत्पाद बनाने का कौशल विकसित करना था.

आहार एवं पोषण वैज्ञानिक डा. सुमित्रा मीना ने महिलाओं को स्वस्थ रहने के लिए उचित आहार एवं पोषण का महत्व एवं पोषक अनाजों की स्वास्थ्य उपयोगिता और इन के मूल्य संवर्धित उत्पादों की जानकारी दी.

उन्होंने आगे बताया कि महिलाओं को मिलेट्स के उत्पाद ज्वार मामरा नमकीन, मिलेट्स के शक्करपारे, मिलेट मठरी, लड्डू इत्यादि बनाना सिखाया गया. वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. गायत्री तिवारी ने महिलाओं को खुशहाल जीवन जीने के तौरतरीके सिखाए, प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में जागरूक किया, मनोरंजक खेल खिलाए एवं स्वस्थ रहने के लिए महिलाओं से आग्रह किया कि आप जीवन में व्यस्त रहें, मस्त रहें.

प्रशिक्षण के दौरान प्रश्नोत्तरी एवं खेल प्रतियोगिता भी आयोजित की गई. समापन समारोह में विजेता प्रशिक्षणार्थियों को प्रमाणपत्र एवं उपहार भेट कर सम्मानित किया गया.

मुख्य अतिथि सरपंच जगदीश बंद्र गांछा ने महिलाओं से प्रशिक्षण के दौरान मिली जानकारी का उपयोग अपने पोषण स्तर को सुधारने एवं सुखद जीवन जीने में करने को कहा.

अंत में वंग प्रोफैशनल डा. खेहा ने धन्यवाद व्यक्त किया. इस प्रशिक्षण के आयोजन में डा. प्रियंका जोशी एवं दीपाली का भी विशेष योगदान रहा.

फसल बीमा योजना के लिए हेल्पलाइन और पोर्टल ‘सारथी’ (Sarthi) की शुरुआत

नई दिल्ली: 7 फरवरी 2024. कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय 8 फरवरी, 2024 को देश के कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए 3 महत्वपूर्ण पहल शुरू करने जा रहा है. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के अंतर्गत केंद्रीयकृत ‘किसान रक्षक हेल्पलाइन 14447 और पोर्टल‘, कृषि बीमा सैंडबौक्स फ्रेमवर्क प्लेटफार्म ‘सारथी‘ व कृषि समुदाय के लिए लर्निंग मैनेजमैंट सिस्टम (एलएमएस) प्लेटफार्म एक समारोह में लौंच करेंगे.

कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे और केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चैधरी भी उपस्थित रहेंगे. ये पहलें डिजिटल नवाचार व व्यापक जोखिम सुरक्षा समाधानों के माध्यम से किसान समुदाय के कल्याण और स्थायित्व को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण सिद्ध होगी. राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस डिवीजन के सहयोग से लर्निंग मैनेजमैंट सिस्टम कृषि क्षेत्र में प्रशिक्षण व जानकारी साझा करेगा. यह प्रमुख कृषि योजनाओं को लागू करने की चुनौतियों का समाधान भी करेगा और हितधारकों के बीच निरंतर सीखने और समन्वय को सुविधाजनक बनाएगा.

इसी तरह सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत एक केंद्रीयकृत ‘‘किसान रक्षक हेल्पलाइन और पोर्टल‘‘ विकसित किया है. अब इस योजना के अंतर्गत नामांकित सभी किसान या जो भी किसान अपनी फसल का बीमा कराना चाहते हैं, वे अपनी चिंताओं और शिकायतों को दर्ज करने के लिए हेल्पलाइन नंबर 14447 पर फोन कर सकते हैं, जिस से समय पर समर्थन और पारदर्शी संचार सुनिश्चित होगा.

पारंपरिक फसल बीमा से परे जा कर सरकार ने ‘सारथी’ एक व्यापक बीमा प्लेटफार्म विकसित किया है.

यह एप किसान समुदाय की विविध जरूरतों को पूरा करने के लिए कई बीमा उत्पाद प्रदान करता है, जिस में स्वास्थ्य और जीवन बीमा से ले कर कृषि उपकरणों और अन्य के लिए कवरेज शामिल है. यह पहल सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप है.

सरकार ने सालभर में येस टैक, डिजिक्लेम, विंड्स, क्रोपिक, ऐड एप जैसी नई तकनीकें पेश कर के देश के किसानों के लिए व्यापक जोखिम सुरक्षा और समर्थन सुनिश्चित करने के लिए मजबूत कृषि बीमा पारिस्थितिकी स्थापित करने का लक्ष्य रखा है. कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का मानना है कि ये पहलें देश के कृषि क्षेत्र में एक नया अध्याय लिखेंगी और किसानों के जीवन व आजीविका में सकारात्मक बदलाव लाएंगी.