पशुपालन (Animal Husbandry) को प्रोत्साहन

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नई दिल्लीः केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अवसंरचना विकास कोष (आईडीएफ) के तहत लागू किए जाने वाले पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (एएचआईडीएफ) को 29,610.25 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ वर्ष 2025-26 तक अगले 3 सालों के लिए जारी रखने की मंजूरी दे दी.

यह योजना डेयरी प्रसंस्करण और उत्पाद विविधीकरण, मांस प्रसंस्करण यानी मीट प्रोसैसिंग और उत्पाद विविधीकरण, पशु चारा संयंत्र, नस्ल गुणन फार्म, पशु अपशिष्ट से धन प्रबंधन (कृषि-अपशिष्ट प्रबंधन) और पशु चिकित्सा वैक्सीन और दवा उत्पादन सुविधाओं के लिए निवेश को प्रोत्साहित करेगी.

भारत सरकार अनुसूचित बैंक और राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी), नाबार्ड और एनडीडीबी से 90 फीसदी तक ऋण के लिए 2 साल की मुहलत सहित 8 सालों के लिए 3 फीसदी ब्याज अनुदान प्रदान करेगी. पात्र संस्थान अलगअलग होंगे, निजी कंपनियां, एफपीओ, एमएसएमई, धारा 8 कंपनियां हैं. अब डेयरी सहकारी समितियां डेयरी संयंत्रों के आधुनिकीकरण, सुदृढ़ीकरण का भी लाभ उठाएंगी.

भारत सरकार एमएसएमई और डेयरी सहकारी समितियों को 750 करोड़ रुपए के ऋण गारंटी कोष से उधार लिए गए ऋण की 25 फीसदी तक ऋण गारंटी भी प्रदान करेगी.

एएचआईडीएफ ने योजना के अस्तित्व में आने के बाद से अब तक 141.04 एलएलपीडी (लाख लिटर प्रतिदिन) दूध प्रसंस्करण क्षमता, 79.24 लाख मीट्रिक टन फीड प्रसंस्करण क्षमता और 9.06 लाख मीट्रिक टन मांस प्रसंस्करण क्षमता को आपूर्ति श्रंखला में जोड़ कर गहरा असर डाला है. यह योजना डेयरी, मांस और पशु चारा क्षेत्र में प्रसंस्करण क्षमता को 2-4 फीसदी तक बढ़ाने में सक्षम है.

पशुपालन क्षेत्र के निवेशकों के लिए पशुधन क्षेत्र में निवेश करने का अवसर प्रस्तुत करता है, जिस से यह क्षेत्र मूल्यवर्धन, कोल्ड चेन और डेयरी, मांस, पशु चारा इकाइयों की एकीकृत इकाइयों से ले कर तकनीकी रूप से सहायता प्राप्त पशुधन और पोल्ट्री फार्म, पशु अपशिष्ट से ले कर धन प्रबंधन और पशु चिकित्सा औषधि व वैक्सीन इकाइयों की स्थापना तक एक आकर्षक क्षेत्र बन जाता है.

तकनीकी रूप से सहायता प्राप्त नस्ल गुणन फार्म, पशु चिकित्सा दवाओं और वैक्सीन इकाइयों को मजबूत करना, पशु अपशिष्ट से धन प्रबंधन जैसे नए कामों को शामिल करने के बाद, यह योजना पशुधन क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के उन्नयन के लिए एक बड़ी क्षमता प्रदर्शित करेगी.

यह योजना उद्यमिता विकास के माध्यम से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 35 लाख लोगों के लिए रोजगार सृजन का एक माध्यम होगी. इस का उद्देश्य पशुधन क्षेत्र में धन सृजन करना है. अब तक एएचआईडीएफ ने तकरीबन 15 लाख किसानों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित किया है.

एएचआईडीएफ किसानों की आय को दोगुना करने, निजी क्षेत्र के निवेश के माध्यम से पशुधन क्षेत्र का दोहन करने, प्रोसैसिंग और मूल्य संवर्धन के लिए नवीनतम तकनीकों को लाने और पशुधन उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा दे कर देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने के प्रधानमंत्री के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक मार्ग के रूप में उभर रहा है. पात्र लाभार्थियों द्वारा प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन बुनियादी ढांचे में इस तरह के निवेश से इन संसाधित और मूल्यवर्धित वस्तुओं के निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा.

इस प्रकार एएचआईडीएफ में प्रोत्साहन द्वारा निवेश न केवल निजी निवेश को 7 गुना बढ़ा देगा, बल्कि किसानों को जानकारी पर अधिक निवेश करने के लिए भी प्रेरित करेगा, जिस से उत्पादकता और किसानों की आय में वृद्धि होगी.

संसाधनों का समुचित उपयोग प्राकृतिक खेती (Natural Farming) में संभव

उदयपुर: 6 फरवरी, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के तत्वावधान में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित जैविक खेती पर अग्रिम संकाय प्रशिक्षण केंद्र के तहत 21 दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम ‘‘प्राकृतिक कृषि – संसाधन संरक्षण एवं पारिस्थितिक संतुलन के लिए दिशा एवं दशा’’ का आयोजन अनुसंधान निदेशालय, उदयपुर द्वारा 6 फरवरी से 26 फरवरी, 2024 तक किया जा रहा है.

इस अवसर पर डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी  विश्वविद्यालय, उदयपुर ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्बोधन में बताया कि पूरेे विश्व में ‘‘संसाधन खतरे’’ (resource threats) खासतौर पर मिट्टी की गुणवत्ता में कमी, पानी का घटता स्तर, जैव विविधता का घटता स्तर, हवा की बिगड़ती गुणवत्ता और पर्यावरण के पंच तत्वों में बिगड़ता गुणवत्ता संतुलन के कारण हरित कृषि तकनीकों के प्रभाव टिकाऊ नहीं रहे हैं.

उन्होंने आगे बताया कि बदलते जलवायु परिवर्तन के परिवेश एवं पारिस्थितिकी संतुलन के बिगड़ने से इनसानी सेहत, पशुओं की सेहत और बढ़ती लागत को प्रभावित कर रहे हैं और अब वैज्ञानिक तथ्यों से यह स्पष्ट है कि भूमि की जैव क्षमता से अधिक शोषण करने से एवं आधुनिक तकनीकों से खाद्य सुरक्षा एवं पोषण सुरक्षा नहीं प्राप्त की जा सकती है.

उन्होंने यह भी जानकारी दी कि किसानों का मार्केट आधारित आदानों पर निर्भरता कम करने के साथसाथ स्थानीय संसाधनों का सामूहिक संसाधनों के प्रबंधन के साथ प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना चाहिए.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि 21वीं सदीं में सभी को सुरक्षित एवं पोषण मुक्त खाद्य की आवश्यकता है. इसलिए प्रकृति व पारिस्थितिक कारकों के कृषि में समावेश कर के ही पूरे कृषि तंत्र को ‘‘शुद्ध कृषि’’ की तरफ बढ़ाया जा सकता है.

भारतीय परंपरागत कृषि पद्धति योजना के तहत देश के 10 राज्यों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. इस से कम लागत के साथसाथ खाद्य पोषण सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा. जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों के तहत खेती को सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्राकृतिक खेती के घटकों को आधुनिक खेती में समावेश करना जरूरी है.

 

Natural Farming

डा. एसके शर्मा, सहायक महानिदेशक, मानव संसाधन प्रबंधन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने कार्यक्रम की आवश्यकता एवं उद्देश्य के बारे में बताया कि उर्वरकों के प्रयोग को 25 फीसदी और पानी के उपयोग को 20 फीसदी तक कम करना, नवीनीकरण ऊर्जा के उपयोग में 50 फीसदी की वृद्धि और ग्रीनहाऊस उत्सर्जन को 45 फीसदी कम करना एवं तकरीबन 26 मिलियन हेक्टेयर भूमि सुधार करना हमारे देश की आवश्यकता है.

इस के लिए प्राकृतिक खेती को देश को कृषि के पाठ्यक्रम में चलाने के साथसाथ नई तकनीकों को आम लोगों तक पहुंचाना समय की जरूरत है, जो कि वर्तमान समय में देश के कृषि वैज्ञानिकों के सामने एक मुख्य चुनौती है. प्राकृतिक खेती में देशज तकनीकी जानकारी और किसानों के अनुभवों को भी साझा किया जाएगा. इस प्रशिक्षण में देश के 13 राज्यों के 17 संस्थानों से 23 वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं.

डा. एसके शर्मा ने आगे बताया कि प्राकृतिक खेती आज की अंतर्राष्ट्रीय व विश्वस्तरीय  जरूरत है. प्राकृतिक खेती पर अनुसंधान पिछले 3 सालों से किया जा रहा है. जापान में प्राकृतिक खेती पुराने समय से चल रही है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली पूरे भारत में स्नातक स्तर पर पाठ्यक्रम शुरू कर चुकी है.
डा. अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान ने सभी अतिथियों के स्वागत के बाद कहा कि प्राकृतिक खेती से मिट्टी की सेहत को सुधारा जा सकता है. प्राकृतिक खेती के द्वारा लाभदायक कीटों को बढ़ावा मिलता है.

जलवायु परिवर्तन के दौर में प्राकृतिक खेती द्वारा प्राकृतिक संसाधन का संरक्षण एवं पारिस्थितिक संतुलन को बढ़ावा मिलता है.

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि आज देश का खाद्यान्न उत्पान तकरीबन 314 मिलियन टन हो गया है और बागबानी उत्पादन करीब 341 मिलियन टन हो गया है. क्या देश में 2 से 5 फीसदी कृषि क्षेत्र पर प्राकृतिक कृषि को चिन्हित किया जा सकता है?

यह संभव है, लेकिन इस के लिए पर्याप्त प्रशिक्षित मानव संसाधन की आवश्यकता है, जो किसानों तक सही पैकेज औफ प्रैक्टिसेज व तकनीकी जानकारी पहुंचा सके, किसानों को मार्केट से जोड़ सके.

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के निदेशक, अधिष्ठाता, विभागाध्यक्ष एवं संकाय सदस्य उपस्थित रहे. कार्यक्रम का संचालन प्रशिक्षण डा. लतिका शर्मा ने किया गया एवं डा. रविकांत शर्मा, सहनिदेशक अनुसंधान ने धन्यवाद प्रेषित किया.

मसाले और पाककला से संबंधित जड़ीबूटियों (Herbs) पर 31 देशों की बैठक

नई दिल्ली: मसाले और पाककला से संबंधित जड़ीबूटियों (Herbs) पर कोडैक्स समिति (CCSCH) का 7वां सत्र 29 जनवरी, 2024 से 2 फरवरी, 2024 तक कोच्चि में आयोजित किया गया. कोविड महामारी के बाद पहली बार यह सम्मेलन प्रतिभागियों की मौजूदगी में संपन्न हुआ. कोविड महामारी के दौरान सम्मेलन का आयोजन वर्चुअल रूप से किया गया था. सत्र में 31 देशों के 109 प्रतिनिधियों ने भाग लिया.

सम्मेलन का आयोजन सफल रहा. इस सत्र में 5 मसालों, छोटी इलायची, हलदी, जुनिपर बेरी, जमैका काली मिर्च (आलस्पाइस) और चक्रफूल (स्टार एनीस) के लिए गुणवत्ता मानकों को अंतिम रूप दिया गया.
कोडैक्स समिति ने 5 मानकों को अंतिम चरण 8 में पूर्ण कोडैक्स मानकों के रूप में अपनाने की सिफारिश करते हुए कोडैक्स एलिमैंटेरियस कमीशन (CAC) को भेज दिया है.

इस समिति में पहली बार मसालों के समूहीकरण की रणनीति को सफलतापूर्वक लागू किया गया. समिति ने वर्तमान सत्र में ‘फलों और जामुनों से प्राप्त मसालों‘ (3 मसालों जैसे जुनिपर बेरी, जमैका काली मिर्च (आलस्पाइस) और चक्रफूल (स्टार एनीस) को शामिल करते हुए) पहले समूह मानक को अंतिम रूप दिया.

वेनिला के लिए मसौदा मानक चरण 5 में रखा गया है. इस पर समिति के अगले सत्र में चर्चा होगी. चर्चा से पहले सदस्य देश इस पर एक और दौर की जांच करेंगे.

सूखे धनिए के बीज, बड़ी इलायची, मरुआ और दालचीनी के लिए कोडैक्स मानकों के विकास के प्रस्ताव समिति के समक्ष रखे गए और स्वीकार कर लिए गए. समिति अपने आगामी संस्करणों में इन 4 मसालों के लिए मसौदा मानकों पर काम करेगी. 7वें सत्र में पहली बार बड़ी संख्या में लैटिन अमेरिकी देशों की भागीदारी देखी गई. समिति की अगली बैठक 18 महीने बाद आयोजित की जाएगी.

विभिन्न देशों की अध्यक्षता वाले इलैक्ट्रौनिक कार्य समूह (EWG) बहुराष्ट्रीय परामर्श की प्रक्रिया जारी रखेंगे. इस का उद्देश्य विज्ञान आधारित साक्ष्यों के आधार पर मानकों को विकसित करना है.

खाद्य एवं कृषि संगठन (FPO) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा संयुक्त रूप से रोम में स्थापित कोडैक्स एलिमैंटेरियस कमीशन (CAC) 194 से अधिक देशों की सदस्यता वाला एक अंतर्राष्ट्रीय, अंतर्सरकारी निकाय है. इसे मानव भोजन से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानकों को तैयार करने का काम सौंपा गया है.

सीएसी (CAC) विभिन्न सदस्य देशों द्वारा आयोजित सीसीएससीएच (CCASH) सहित विभिन्न कोडैक्स समितियों के माध्यम से अपना काम करती है.

मसालों और पाककला से संबद्ध जड़ीबूटियों पर कोडैक्स समिति (CCSCH)  की स्थापना साल 2013 में कोडैक्स एलिमैंटेरियस कमीशन (CAC) के तहत कमोडिटी समितियों में से एक के रूप में की गई थी. भारत इस सत्र का मेजबान है और स्पाइसेस बोर्ड इंडिया इस समिति के सचिवालय के रूप में काम कर रहा है.

सीएसी के मानकों को WTO द्वारा खाद्य सुरक्षा और उपभोक्ता संरक्षण से संबंधित व्यापार विवादों के समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ बिंदु के रूप में मान्यताप्राप्त है.

सीसीएससीएच (CCACH) सहित सीएसी (CAC) के तहत समितियों द्वारा विकसित मानक स्वैच्छिक प्रकृति के हैं, जिन्हें सीएसी के सदस्य देश अपने राष्ट्रीय मानकों को संरेखित करने के लिए संदर्भ मानकों के रूप में अपनाते हैं और उपयोग करते हैं.

सीएसी (CAC) दुनियाभर में खाद्य मानकों के सामंजस्य में योगदान करते हैं, भोजन में निष्पक्ष वैश्विक व्यापार की सुविधा प्रदान करते हैं और वैश्विक उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए खाद्य सुरक्षा को बढ़ाते हैं.

बस्ती के किसानों को नवाचार (Innovations) के लिए मिला सम्मान

बस्ती: खेती में नवाचार ( Innovations) अपना कर आय में इजाफा करने वाले जिले के किसानों को 5 फरवरी, 2024 को भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, शाहंशाहपुर, वाराणसी में तीनदिवसीय क्षेत्रीय किसान मेले के अंतिम दिन नवाचारी किसान सम्मान से नवाजा गया.

सम्मानित होने वाले किसानों में बस्ती सदर ब्लौक के नैशनल अवार्डी किसान राममूर्ति मिश्र, पंकज मिश्र और सुरेश पांडेय और दुबौलिया के अहमद अली को खेती में नवाचार के लिए सम्मानित किया गया. यह सम्मान सिद्धार्थ एफपीसी द्वारा प्रदान किया गया.

पुरस्कार पाने वालों में 2 नैशनल अवार्डी किसान

किसान मेला, वाराणसी में जिन किसानों को सम्मानित किया गया, उस में से राममूर्ति मिश्र और अहमद अली को नैशनल लैवल पर आईएआरआई, भारत सरकार द्वारा इनोवेटिव फार्मर अवार्ड प्रदान किया जा चुका है.

राममूर्ति मिश्र को जहां जैविक खेती, सुगंधित धान की खेती, मोटे अनाज की खेती सहित परिशुद्ध खेती, गेहूं, फल, सब्जी, फूल, विभिन्न कृषि प्रौद्योगिकियों के मौडल एवं कृषि परामर्श में विशिष्ट योगदान के लिए जाना जाता है, वहीं अहमद अली सब्जी, बागबानी, मधुमक्खीपालन, मछलीपालन सहित एकीकृत खेती में विशेष पहचान है.

राम मूर्ति मिश्र ने स्मार्ट कृषि एवं किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ के जरीए आमदनी बढ़ाने में कामयाबी पाई है.

इस के अलावा जिन अन्य 2 किसानों को सम्मान प्रदान किया गया है, उस में मोटे अनाज की खेती में आधुनिक तरीके से अपनाने के लिए पंकज मिश्र को और तकनीकों का लाभ उठा कर खेती में सफलता पाने वाले किसान सुरेश पांडेय का नाम शामिल है.

देश का शीर्ष उद्यानिकी सम्मान (Horticulture Honor) छत्तीसगढ़ के  डा. राजाराम  त्रिपाठी को

बस्तर: वर्ष 2023 का कृषि उद्यानिकी का देश का शीर्ष सम्मान ‘चैधरी गंगाशरण त्यागी मैमोरियल ‘बैस्ट फार्मर अवार्ड इन हार्टिकल्चर’, बस्तर, छत्तीसगढ़ के डा. राजाराम त्रिपाठी को प्रदान किया गया.

यह पुरस्कार गुलाबी नगरी जयपुर में आयोजित ‘इंडियन हार्टिकल्चर सम्मिट ऐंड इंटरनैशनल कौंफ्रैंस’ कार्यक्रम में सोसायटी फौर हार्टिकल्चर रिसर्च ऐंड डवलपमैंट, इंडियन कौंसिल औफ एग्रीकल्चर रिसर्च आईसीएआर, राजस्थान एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट के संयुक्त तत्वावधान में राजस्थान एग्रीकल्चर विश्वविद्यालय के राणा प्रताप सभागार में संपन्न भव्य समारोह में 3 फरवरी, 2024 को एसकेएन कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बलराज सिंह, डा. बीएस तोमर, हेड, सागसब्जी, आईसीएआर-आईएआरआई व भारतीय हार्टिकल्चर रिसर्च एंड डवलपमैंट सोसायटी के सचिव डा. सोमदत्त त्यागी के हाथों प्रदान किया गया.

डा. राजाराम त्रिपाठी को यह पुरस्कार काली मिर्च की नई किस्म मां दंतेश्वरी काली मिर्च के विकास के लिए और आस्ट्रेलिया टीक एवं काली मिर्च के साथ जड़ीबूटियों की जैविक खेती की सफल जुगलबंदी के साथ ही नैचुरल ग्रीनहाउस की सफल अवधारणा के विकास आदि कई नवाचारों के जरीए उद्यानिकी विज्ञान के शोध एवं विकास में विशेष योगदान के लिए प्रदान किया गया.

उल्लेखनीय है कि डा. राजाराम त्रिपाठी द्वारा मात्र 7-8 सालों में तैयार होने वाले बहुपयोगी और बहुमूल्य आस्ट्रेलियन टीक के पेड़ों के रोपण के जरीए विकसित किए गए एक एकड़ के नैचुरल ग्रीनहाउस की लागत महज डेढ़ से 2 लाख रुपए आती है, जबकि एक एकड़ के प्लास्टिक व लोहे से तैयार होने वाले वर्तमान पौलीहाउस की लागत तकरीबन 40 लाख रुपए होती है.

वैसे, सामान्य पौलीहाउस की उपयोगी उम्र महज 7 साल होती है, उस के बाद वह प्लास्टिक और लोहे का कबाड़ हो जाता है, जबकि डा. राजाराम त्रिपाठी द्वारा विकसित 2 लाख रुपए की लागत वाला एक एकड़ के ‘नैचुरल ग्रीनहाउस‘ का मूल्य आस्ट्रेलियन टीक की बहुमूल्य लकड़ी और काली मिर्च से 10 सालों में कई करोड़ों का हो जाता है, इस के साथ ही इस में कई दशक तक खेती भी की जा सकती है.

इस अवसर पर डा. राजाराम त्रिपाठी ने मुख्य वक्ता की हैसियत से देशविदेश के कृषि एवं उद्यानिक वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों के सामने अपने ‘नैचुरल ग्रीनहाउस’ मौडल की अवधारणा के समस्त वैज्ञानिक पहलुओं और तकनीकी बिंदुओं को विस्तार से रखते हुए अपना लीड लैक्चर प्रस्तुत किया.

डा. राजाराम त्रिपाठी का यह शोध आलेख अंतर्राष्ट्रीय कौंफ्रैंस के सोवेनिअर जर्नल में भी छपा है. 1 से 3 फरवरी तक चलने वाले उद्यानिकी के इस महाकुंभ में कई देशों से आए कृषि वैज्ञानिक, देश के कई प्रमुख कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति, कृषि एवं उद्यानकी के विशेषज्ञों व वैज्ञानिकों सहित बड़ी तादाद में कृषि शोध छात्रों की सहभागिता रही.

अक्षय धागा प्रोजैक्ट (Akshaya Dhaaga) के जरीए निःशुल्क सिलाई सीखेंगी युवतियां

बस्ती: ग्रामीण क्षेत्र की युवतियों को हुनरमंद बनाने के लिए 5 फरवरी को विकास खंड, बनकटी के थरौली ग्राम पंचायत के बोकनार में अक्षय धागा (Akshaya Dhaaga) निःशुल्क सिलाई प्रशिक्षण केंद्र का शुभारंभ युवा विकास समिति के स्थानीय संयोजन में अक्षय शक्ति वेलफेयर एसोसिएशन, मुंबई के सहयोग से किया गया. केंद्र का उद्घाटन ग्राम प्रधान प्रतिनिधि सुनील पांडेय ने किया. इस दौरान मुख्य अतिथि ने युवतियों से कहा कि वे मन लगा कर प्रशिक्षण प्राप्त करें.

उन्होंने आगे कहा कि ग्रामीण युवतियां और महिलाएं अगर अक्षय धागा के तहत रेडीमेड गारमेंट और सिलाईकटाई का प्रशिक्षण लें, तो इस से व्यक्तिव्यक्ति, परिवारपरिवार होते हुए पूरा देश सशक्त हो सकेगा.
समाजसेवी सुरेश पांडेय ने कहा कि गंवई युवतियां सिलाई का कौशल सीख गांव वालों के कपड़े सिल कर तो आय अर्जित कर ही सकती हैं, बल्कि उन के लिए रेडीमेड सैक्टर में नौकरी के अवसर भी मुहैया होंगे और वे आत्मनिर्भर बनेंगी.

युवा विकास समिति के सचिव बृहस्पति कुमार पांडेय ने बताया कि अक्षय धागा केंद्र पर 2 बैच में 60 युवतियों को निःशुल्क सिलाई का प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिस से सिलाई का प्रशिक्षण प्राप्त कर युवतियां माली तौर पर सबल हो सकेंगी और उन्हें रोजगार मिलेगा. केंद्र में स्कूल की ड्रैस, कारपोरेट सैक्टर की यूनिफार्म के अलावा कपड़ों की सिलाई का काम सिखाया जाएगा. उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण के बाद इन युवतियों को कपड़ा फैक्टरी में नौकरी दिलाई जाएगी.

प्रशिक्षिका सुनीता यादव ने बताया कि जिन युवतियों को घर की माली तंगी के कारण उन्हें आगे पढ़ने का मौका नहीं मिला, वे युवतियां भी सिलाई के काम को अपना व्यवसाय बना कर परिवार की आय बढ़ाने में सहयोग कर पाएंगी.

उन्होंने कहा कि अक्षय शक्ति वेलफेयर एसोशिएशन के अक्षय धागा प्रोजैक्ट के माध्यम से इन युवतियों के सपने साकार होने जा रहे हैं. इस मौके पर प्रेम नारायण उपाध्याय, माधुरी, हर्ष देव, तुलिका, सहित अनेकों लोग मौजूद रहे.

चावल-धान के स्टाक की जानकारी देना जरूरी

नई दिल्ली: समग्र खाद्य मुद्रा स्फीति को प्रबंधित करने और अनुचित अटकलों को रोकने के लिए सरकार ने निर्णय लिया है कि सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में व्यापारी व थोक, खुदरा विक्रेता, बड़ी श्रंखला के खुदरा विक्रेता और प्रोसैसर व मिलर्स चावल व धान की स्टाक स्थिति अगले आदेश तक घोषित करें.

संबंधित कानूनी संस्थाओं यानी व्यापारियों व थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, बड़ी श्रंखला के खुदरा विक्रेताओं, प्रोसैसरों व मिलर्स को (i) टूटे चावल, (ii) गैरबासमती सफेद चावल, (iii) उबला चावल, (iv) बासमती चावल, (v) धान जैसी श्रेणियों में धान और चावल की स्टाक स्थिति घोषित करनी होगी.
संस्थाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे इसे हर शुक्रवार को खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के पोर्टल (https://evegoils.nic.in/rice/login.html) पर अपडेट करें. आदेश जारी होने के 7 दिनों के भीतर इन संस्थाओं द्वारा चावल की स्टॉक स्थिति घोषित की जाएगी.

इसके अलावा, खाद्य अर्थव्यवस्था में मुद्रा स्फीति के रुझान को रोकने के लिए आम उपभोक्ताओं के लिए ‘भारत चावल‘ की खुदरा बिक्री शुरू करने का निर्णय लिया गया है. पहले चरण में, 3 एजेंसियों अर्थात नैफेड, एनसीसीएफ और केंद्रीय भंडार के माध्यम से ‘भारत चावल‘ ब्रांड के अंतर्गत खुदरा बिक्री के लिए 5 लाख मीट्रिक टन चावल आवंटित किया गया है. आम उपभोक्ताओं के लिए ‘भारत चावल’ की बिक्री का खुदरा मूल्य 29 रुपए प्रति किलोग्राम होगा, जिसे 5 किलोग्राम और 10 किलोग्राम के बैग में बेचा जाएगा.

‘भारत चावल’ शुरुआत में खरीद के लिए मोबाइल वैनों और 3 केंद्रीय सहकारी एजेंसियों की दुकानों से खरीदने के लिए उपलब्ध होगा. यह बहुत जल्द ईकौमर्स प्लेटफार्म सहित अन्य खुदरा श्रंखलाओं के माध्यम से भी उपलब्ध होगा.

इस खरीफ में अच्छी फसल, एफसीआई के पास और पाइपलाइन में चावल का पर्याप्त स्टाक और निर्यात पर विभिन्न नियमों के बावजूद चावल की घरेलू कीमतें बढ़ रही हैं. पिछले वर्ष खुदरा कीमतों में 14.51 फीसदी की वृद्धि हुई है. चावल की कीमतों पर अंकुश लगाने के प्रयास में सरकार की ओर से पहले ही कई कदम उठाए जा चुके हैं.

एफसीआई के पास अच्छी क्वालिटी वाले चावल का पर्याप्त स्टाक है, जिसे व्यापारियों व थोक विक्रेताओं को ओएमएसएस के तहत 29 रुपए प्रति किलोग्राम के आरक्षित मूल्य पर दिया जा रहा है. खुले बाजार में चावल की बिक्री बढ़ाने के लिए सरकार ने चावल का आरक्षित मूल्य 3,100 रुपए प्रति क्विंटल से कम कर के 2,900 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया. वहीं चावल की न्यूनतम और अधिकतम मात्रा को क्रमशः 1 मीट्रिक टन और 2,000 मीट्रिक टन तक संशोधित किया गया.

इस के अलावा, व्यापक पहुंच के लिए एफसीआई क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा नियमित प्रचार किया गया है. परिणामस्वरूप, चावल की बिक्री धीरेधीरे बढ़ गई है. 31 जनवरी, 24 तक 1.66 एलएमटी चावल खुले बाजार में बेचा जा चुका है, जो ओएमएसएस (डी) के तहत किसी भी वर्ष में चावल की सब से अधिक बिक्री है.

टूटे हुए चावल की निर्यात नीति को 1 दिसंबर, 2017 से ‘‘मुक्त‘‘ से ‘‘निषिद्ध‘‘ में संशोधित किया गया है. 9 सितंबर, 2022 को गैरबासमती चावल के संबंध में, जो कुल चावल निर्यात का लगभग 25 फीसदी है, 20 फीसदी का निर्यात शुल्क लगाया गया है. 8 सितंबर, 2022 चावल की कीमतें कम करने के लिए. इस के बाद गैरबासमती सफेद चावल की निर्यात नीति को 20 जुलाई 2023 से संशोधित कर ‘निषिद्ध‘ कर दिया गया.

बासमती चावल में केवल 950 अमेरिकी डालर प्रति मीट्रिक टन और उस से अधिक मूल्य के बासमती निर्यात के अनुबंध जारी करने के लिए पंजीकृत किए जा रहे हैं. पंजीकरणसहआवंटन प्रमाणपत्र (आरसीएसी). उबले चावल पर 20 फीसदी निर्यात शुल्क लगाया गया है, जो 31 मार्च, 2024 तक लागू रहेगा. इन सभी उपायों ने घरेलू बाजार में चावल की कीमतों में वृद्धि की गति पर अंकुश लगाया है.

खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग भी कीमतों को नियंत्रित करने और देश में आसान उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गेहूं के स्टाक की स्थिति पर कड़ी नजर रख रहा है. गेहूं की अखिल भारतीय औसत घरेलू थोक और खुदरा कीमत में एक महीने और साल के दौरान गिरावट का रुझान दिख रहा है. अखिल भारतीय औसत घरेलू थोक और खुदरा खंड में आटे (गेहूं) की कीमतों में भी सप्ताह, महीने और साल के दौरान गिरावट का रुझान दिख रहा है.

खुले बाजार में गेहूं की उपलब्धता बढ़ाने और गेहूं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार 28जून, 2023 से साप्ताहिक ईनीलामी के माध्यम से गेहूं को बाजार में उतार रही है. सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना (घरेलू) ओएमएसएस (डी), के तहत एफएक्यू के लिए 2,150 रुपए क्विंटल और यूआरएस के लिए 2,125 रुपए क्विंटल के आरक्षित मूल्य पर उतारने के लिए कुल 101.5 एलएमटी गेहूं आवंटित किया गया है.

गेहूं की उपलब्धता बढ़ाने और खुले बाजार में गेहूं की मांग को पूरा करने के लिए, ईनीलामी में गेहूं की साप्ताहिक पेशकश को धीरेधीरे शुरुआती 2 एलएमटी से बढ़ा कर वर्तमान साप्ताहिक पेशकश 4.5 एलएमटी तक किया जा रहा है. 31 जनवरी, 2024 तक ओएमएसएस (डी) के तहत 75.26 एलएमटी गेहूं बेचा जा चुका है. अब साप्ताहिक नीलामियों में ओएमएसएस के तहत पेश किए जाने वाले गेहूं की मात्रा को 5 एलएमटी तक बढ़ाने और उत्पादन की कुल मात्रा को 400 मीट्रिक टन तक बढ़ाने का निर्णय लिया गया है.

पेराई सत्र शुरू होने के बाद चीनी की एक्स मिल कीमतों में 3.5-4 फीसदी की कमी आई है और चीनी की अखिल भारतीय खुदरा और थोक कीमतें स्थिर हैं. चीनी मौसम 2022-23 में 99.9 फीसदी से अधिक गन्ना बकाए का भुगतान किया जा चुका है और चालू मौसम के लिए अब तक 80 फीसदी गन्ना बकाए का भुगतान किया जा चुका है.

भारत सरकार खाद्य तेलों की घरेलू खुदरा कीमतों पर भी बारीकी से नजर रख रही है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में कमी का पूरा लाभ अंतिम उपभोक्ताओं को मिले. सरकार ने घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों को नियंत्रित और कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए हैं –

  • कच्चे पाम तेल, कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर मूल शुल्क 2.5 फीसदी से घटा कर शून्य कर दिया गया. इस के अलावा इन तेलों पर कृषि उपकर 20 फीसदी घटा कर 5 फीसदी कर दिया गया. इस शुल्क संरचना को 31 मार्च, 2025 तक बढ़ा दिया गया है.
  •  रिफाइंड सोयाबीन तेल, रिफाइंड सूरजमुखी तेल और रिफाइंड पाम तेल पर मूल शुल्क घटा कर 12.5 फीसदी कर दिया गया है. इस ड्यूटी को 31 मार्च, 2025 तक बढ़ा दिया गया है.

कच्चे सोयाबीन तेल, कच्चे सूरजमुखी तेल, कच्चे पाम तेल और रिफाइंड पाम तेल जैसे प्रमुख खाद्य तेलों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में पिछले साल से गिरावट देखी जा रही है. यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए निरंतर प्रयासों के कारण खाद्य तेलों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में कमी का पूरा लाभ घरेलू बाजार में मिले, सरसों तेल, सोयाबीन तेल, सूरजमुखी तेल और आरबीडी पामोलीन की खुदरा कीमतों में एक वर्ष में 1 फरवरी, 2024 को क्रमशः 18.32 फीसदी, 17.07 फीसदी, 23.81 फीसदी और 12.01 फीसदी की कमी आई है. सरकार के सक्रिय कदमों के कारण देश में खाद्य तेलों की कीमतें 2 साल के निचले स्तर पर हैं.

उपरोक्त उपायों से देश में जरूरी चीजों की कीमतों में वृद्धि की गति को धीमा करने में मदद मिली है. खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग देश में जरूरी चीजों की कीमतों पर बारीकी से निगरानी और समीक्षा करता है. जब भी आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने वाली इन चीजों की सामथ्र्य सुनिश्चित करने के लिए किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है, तो कदम उठाता है.

मत्स्यपालन (Fisheries) के लिए सब से अधिक आवंटन

नई दिल्लीः मत्स्यपालन (Fisheries) विभाग को वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए 2,584.50 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की गई है, जो मत्स्यपालन विभाग के लिए अब तक का सब से अधिक वार्षिक आवंटन है. बजटीय आवंटन चालू वित्तीय वर्ष की तुलना में 15 फीसदी ज्यादा है. आवंटित बजट विभाग के लिए अब तक की सब से अधिक वार्षिक बजटीय सहायता में से एक है.

पहली पंचवर्षीय योजना से 2013-14 तक मत्स्यपालन क्षेत्र पर केवल 3,680.93 करोड़ रुपए खर्च किए गए. हालांकि वर्ष 2014-15 से ले कर 2023-24 तक देश में विभिन्न मत्स्य विकास गतिविधियों के लिए 6,378 करोड़ रुपए पहले ही जारी किए जा चुके हैं. इस क्षेत्र में पिछले 9 वर्षों में लक्षित निवेश 38,572 करोड़ रुपए से अधिक है, जो इस उभरते क्षेत्र में अब तक का सब से अधिक निवेश है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने क्षेत्र के विकास पर प्रकाश डाला. अंतरिम बजट में अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने के लिए डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की स्थापना पर भी जोर दिया गया है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि मछुआरों की सहायता के महत्व को समझने के लिए एक अलग मत्स्यपालन विभाग की स्थापना की गई, जिस के परिणामस्वरूप वर्ष 2013-14 के बाद से अंतर्देशीय और जलीय कृषि उत्पादन और समुद्री खाद्य निर्यात दोगुना हो गया है.

प्रधानमंत्री मस्त्य संपदा योजना यानी पीएमएमएसवाई जैसी प्रमुख योजना को मौजूदा 3 से 5 टन प्रति हेक्टेयर तक जलीय कृषि उत्पादकता बढ़ाने, निर्यात को दोगुना कर के एक लाख करोड़ रुपए करने और 55 लाख रोजगार के अवसर पैदा करने के साथसाथ 5 एकीकृत एक्वापार्क स्थापित करने के बड़े बुनियादी ढांचे में बदलाव के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है. इस के अलावा जलवायु लचीली गतिविधियों, बहाली और अनुकूलन उपायों को बढ़ावा देने और एकीकृत और बहुक्षेत्रीय दृष्टिकोण के साथ तटीय जलीय कृषि और समुद्री कृषि के विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए ब्लू इकोनौमी 2.0 लौंच किया जाएगा.

भारतीय अर्थव्यवस्था में मत्स्यपालन क्षेत्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह राष्ट्रीय आय, निर्यात, खाद्य और पोषण सुरक्षा के साथसाथ रोजगार सृजन में योगदान देता है. मत्स्यपालन क्षेत्र को ‘सनराइज सैक्टर‘ के रूप में मान्यता प्राप्त है. यह भारत में तकरीबन 30 मिलियन विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले और कमजोर समुदायों के लोगों की आजीविका को बनाए रखने में सहायक है.

वित्त वर्ष 2022-23 में 175.45 लाख टन के रिकौर्ड मछली उत्पादन के साथ भारत दुनिया का तीसरा सब से बड़ा मछली उत्पादक देश है, जो वैश्विक उत्पादन का 8 फीसदी हिस्सा है. देश के सकल मूल्यवर्धित (जीवीए) में तकरीबन 1.09 फीसदी और 6.724 फीसदी से अधिक का योगदान कृषि जीवीए के लिए देता है. इस क्षेत्र में विकास की अपार संभावनाएं हैं, इसलिए टिकाऊ, जिम्मेदार, समावेशी और न्यायसंगत विकास के लिए नीति और वित्तीय सहायता के माध्यम से ध्यान देने की आवश्यकता है.

5 फरवरी, 2019 को पूर्ववर्ती पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग से मत्स्यपालन विभाग को अलग कर के मत्स्य पालन क्षेत्र को आवश्यक बढ़ावा दिया गया था और इसे प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई), मत्स्यपालन बुनियादी ढांचा विकास निधि (एफआईडीएफ) और किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी), जैसे गहन योजनाओं और कार्यक्रमों से सुसज्जित किया गया है. विभाग अब अमृतकाल में नई ऊंचाइयां हासिल करने के लिए तैयार है.

अंतरिम बजट (Interim Budget) : और अधिक सहारा चाहता है कृषि क्षेत्र

केंद्रीय वित्त एवं कारपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट (Interim Budget) 2024-25 में किसानों को ‘अन्नदाता’ बताते हुए उन के लिए शाब्दिक सम्मान में कोई कोताही नहीं की. लेकिन खेतीबारी के लिए जिन घोषणाओं का इंतजार था, उस पर बजट खरा नहीं उतरा. इस क्षेत्र को सीमित संसाधन मिलने के कारण कृषि क्षेत्र की चुनौतियां भविष्य में अधिक बनी रहेंगी.

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का बजट पिछले साल के 1.25 लाख करोड़ रुपए से बढा कर महज 1.27 लाख करोड़ रुपए किया गया. इस लिहाज से बजट में पहले जैसी स्थिति बरकरार है. कई क्षेत्रों में कृषि संकट पर अपेक्षित ध्यान न देने से कृषि विकास दर महज 1.8 फीसदी पर आ गई है.

वैसे तो अंतरिम बजट में किसी बड़ी घोषणाओं की परंपरा नहीं थी. पर साल 2019 में अंतरिम बजट में जिस तरह मोदी सरकार ने पीएम किसान योजना का तोहफा दिया था, उसे देखते हुए किसानों को भरोसा था कि योजना में धनराशि 6,000 रुपए से बढ़ा कर 10,000 से 12,000 रुपए तक हो जाएगी. साथ ही, एमएसपी गारंटी पर सरकार के फैसले का इंतजार किसानों को था और उम्मीद थी कि कृषि आदानो से जीएसटी कम होगी. लिहाजा, खेती की लागत घटेगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बजट को विकसित भारत के चार स्तंभों को ताकत देने वाला बताया, जिस में किसान भी शामिल हैं. आधुनिक भंडारण, पर्याप्त आपूर्ति श्रंखला, प्रोसैसिंग एवं मार्केटिंग और ब्रांडिंग सहित फसल कटाई के बाद की गतिविधियों में निजी और सार्वजनिक निवेश का को बढ़ावा देने का वादा भी बजट में किया गया है. 3 करोड़ ग्रामीण आवास के बाद अगले 5 साल में 2 करोड़ और घरों को बनाने की बात है.

लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने भाषण में वे बातें ही दोहराई हैं, जो राष्ट्रपति के अभिभाषण में आ चुकी थीं. पर केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने अंतरिम बजट की तारीफ करते हुए कहा कि यह हमारे अन्नदाताओं का जीवनस्तर और ऊंचा उठाएगा. उन्होंने भी पीएम किसान का खास जिक्र करते हुए कहा कि इस से 11.80 करोड़ किसानों को अब तक तकरीबन 2.81 लाख करोड़ रुपए मिले हैं, जबकि किसानों के लाभ के लिए 1361 ईनाम मंडियां हुईं, जिस से 3 लाख करोड़ रुपए का व्यापार दर्ज हो चुका है.

आत्मनिर्भर तिलहन अभियान पर सरकार आगे बढ़ रही है. सभी कृषि जलवायु क्षेत्रों में विभिन्न फसलों पर नैनो डीएपी (उर्वरक) का विस्तार करने के साथ कई दूसरे कदम उठ रहे हैं.

लेकिन भारतीय किसान यूनियन के नेता चैधरी राकेश टिकैत ने इस बजट को चुनावी ढकोसला बताया है, जिस में किसानों को केवल धोखा मिला है. उन्होंने कहा कि कि देश की मंडियों को राष्ट्रीय कृषि बाजार से जोड़ा जा रहा है. किसानों की आय दोगुनी करने के नाम पर पूर्व में नागार्जुन फर्टिलाइजर्स ऐंड कैमिकल्स लिमिटेड जैसी डिफाल्टर कंपनियां और कारपोरेट कंपनियां फसल खरीद के नाम पर जोड़ दी गईं, जिस का नुकसान देश के किसानों को होगा.

उन के मुताबिक, फसल बीमा और पीएम किसान दोनों योजनाएं सहायक नहीं हैं. 500 रुपए प्रतिमाह की धनराशि से देश के आमदनी के स्रोत से किसानों का भला नहीं कर सकती है. भला इस से होगा, अगर बजट में पैट्रोलडीजल के दामों में कटौती होती.

फिर भी बजट में सरकार ने सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन और सूरजमुखी जैसे तिलहनों के संबंध में ‘आत्मनिर्भरता’ प्राप्त करने के लिए कार्यनीति तैयार की बात कही है. इस पर क्या रणनीति बनती है, यह अभी देखना है. नैनो यूरिया को सफलतापूर्वक अपनाए जाने के बाद सभी कृषि जलवायु क्षेत्रों में विभिन्न फसलों पर नैनो डीएपी को अपनाने की बात भी है, पर इस का असर अभी जांचा जाना है.

सरकार प्राकृतिक खेती पर जोर दे रही है, पर इस के लिए महज 366 करोड़ रुपए का प्रावधान है, जबकि रासायनिक उर्वरकों के लिए 1.64 लाख करोड़ रुपए का. फसल बीमा योजना के दायरे में अब तक महज 4 करोड़ किसान आ सके हैं. देश में तकरीबन 20 करोड़ किसान परिवारों में इतनी कम संख्या फसल बीमा से जुड़ी है, जो योजना की जमीनी हकीकत बताती है. योजना के लिए बजट पिछले बजट से भी कम और 14,600 करोड़ रुपए कर दिया गया है.

राजस्थान के किसान नेता और किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी देशव्यापी ज्वलंत मुद्दा था, पर किसान उसे ले कर सरकार से निराश हैं. स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय किसान आयोग ही नहीं खुद नरेंद्र मोदी गुजरात का मुख्यमंत्री रहने के दौरान इस की वकालत तब करते थे, लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल के आखिरी बजट में भी इस पर कोई चर्चा भी नहीं की.

जमीनी हकीकत यह है कि अभी एमएसपी के संबंध में दलहन और तिलहन जैसी 75 फीसदी फसलें खरीद की परिधि से बाहर हैं. ज्वार, बाजरा, मक्का और रागी जैसे श्रीअन्न या मोटे अनाजों की खरीद नहीं होती. सरकार ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया, पर खरीद नहीं बढ़ी.

बेशक बीते एक दशक में खेतीबारी और किसानों के हक में मोदी सरकार ने कई योजनाओं का आवंटन बढ़ाया, लेकिन कई क्षेत्रों में बढ़ते कृषि संकट और किसानों के असंतोष को देखते हुए जो कदम अपेक्षित थे, वे उठाए नहीं गए.

अहम बात है, जिस पर भारी बढ़ोतरी हुई, वह है कृषि ऋण. सरकार को लगता है कि कर्ज के सहारे किसान अपनी गाड़ी चला लेंगे. 2017-18 के आम बजट में कृषि ऋण का लक्ष्य 10 लाख करोड़ रुपए था, जो अब 20 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचा दिया गया है. पर किसान पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबे हैं.

आज हर किसान पर औसतन 74,000 रुपए से ज्यादा का कर्ज है और यही किसानों की आत्महत्याओं के प्रमुख कारणों में है. देश में बैकों के व्यापक विस्तार के बावजूद एकतिहाई से ज्यादा किसान साहूकारों से कर्ज लेते हैं. ऐसे में कर्ज के सहारे खेती बहुत कारगर नहीं हो सकती है.

पीएम किसान योजना जरूर किसानों के लिए अहमियत रखती है. इस का शुभारंभ 2019 के चुनाव के ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोरखपुर से किया था. इस का ऐलान हुआ तो इस के दायरे में 14.50 करोड़ किसानों के आने का अनुमान था. इस पर सालाना 87,217 करोड़ रुपए का आकलन था, पर 5 साल बाद भी इस का बजट 60,000 करोड़ से पार नहीं जा सका है.

साल 2019 में सरकार बनते ही संकल्पपत्र में किए गए वादों के तहत 3 साल में 5 करोड़ किसानों को पेंशन के दायरे में लाने की योजना बनाई, जो साकार नहीं हो सकी. इस योजना के तहत महज 100 करोड़ रुपए प्रतीकात्मक प्रावधान किया गया है.

इसी तरह देश के 22,000 ग्रामीण हाटों को जरूरी सुविधाओं से लैस करने की योजना साकार हो सकी. वर्ष 2022 तक प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के तहत सब को घर उपलब्ध कराने का वादा भी अधूरा ही है.

वर्ष 2014-15 में कृषि मंत्रालय का बजट 23,000 करोड़ रुपए होता था, जो अब तकरीबन 5 गुना अधिक 1.27 लाख करोड़ रुपए हो गया है. पर इस के तहत सब से अधिक आवंटन तो पीएम किसान में हुआ है. किसान मानधन योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई परियोजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, जैविक खेती, मृदा स्वास्थ्य कार्ड से ले कर प्राकृतिक खेती जैसी कई नई पहलें सामाजिक व आर्थिक बदलाव में सहायक नहीं बन सकीं.

देश में कृषि भूमि 14.4 करोड़ हेक्टेयर से घटती जा रही है. तकरीबन 86 फीसदी छोटे और सीमांत किसानों की संख्या में बढ़ोतरी होती जा रही है. सीमांत किसानों की औसत जोत आकार 0.24 हेक्टेयर है, जिस पर जिंदा रहना भी आसान नहीं है. हमारे खेतिहर परिवारों में 14.2 फीसदी आदिवासी और 15.9 फीसदी दलित हैं, जो नाममात्र की जमीनों के सहारे अपने परिवारों का बस भरणपोषण कर रहे हैं.

यह उल्लेखनीय तथ्य है कि उपेक्षा के बाद भी खेतीबारी हमारी अर्थव्यवस्था का मेरुदंड बनी हुई है, जिस पर 58 फीसदी आबादी निर्भर है. वहीं 140 करोड़ आबादी को खाद्य सुरक्षा दे रही है. कृषि उत्पादन तकरीबन वर्ष 2022-23 में 351.91 मिलियन टन तक पहुंच गया है, पर खेतीबारी बेहद गहरी चुनौतियों से जूझ रही है.

हाल के सालों में देश के कई हिस्सों में बड़े किसान आंदोलन चले. पंजाब में उन की सब से अधिक संख्या है. कोरोना के दौरान दिल्ली में 378 दिनों तक किसान आंदोलन चला. उस में 3 कानून वापस हुए, पर एमएसपी के कानूनी अधिकार का मामला लंबित है.

एमएसपी पर सरकारी खरीद का काफी दावा है, पर 14.50 करोड़ किसानों की भूजोतों के लिहाज से एमएसपी पर मौजूदा खरीद केवल धानगेहूं और चंद राज्यों तक सीमित है.

बीते एक दशक में मोदी सरकार ने कृषि मंत्रालय का नाम बदल कर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय बनाया, सहकारिता, मात्सिकी और पशुपालन का अलग मंत्रालय बनाया. पर तसवीर बहुत अच्छी नहीं दिखती. इसलिए कृषि क्षेत्र के लिए अभी बहुतकुछ ठोस रणनीति बना कर आगे बढ़ने की दरकार है.

औषधीय पौधों की खेती से लाखों की कमाई

लखनऊ:  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि आज अन्नदाता किसानों को परंपरागत खेती से दोगुना दाम तो मिल ही रहा है, लेकिन जिन किसानों ने सहफसली खेती के साथसाथ औषधि व सगंध औषधीय खेती, बागबानी को बढ़ावा दिया और हर्बल उत्पादों को प्रोत्साहित किया, ऐसे किसानों को लागत का कई गुना अधिक दाम प्राप्त हो रहा है. यह अन्नदाता किसानों के जीवन में परिवर्तन का एक बड़ा माध्यम बना है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लखनऊ में सीएसआईआर-सीमैप द्वारा आयोजित किसान मेले का उद्घाटन करने के पश्चात इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में देश की बागडोर संभालते समय किसानों की आमदनी को दोगुना करने के लक्ष्य साथ काम करने का निर्देश दिया था. उन के नेतृत्व में इस के दृष्टिगत जो कार्यक्रम चलाए गए हैं, वे हम सब के सामने हैं.

इन कार्यक्रमों में सौयल हेल्थ कार्ड, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, पीएम किसान सम्मान निधि योजना आदि सम्मिलित हैं. इन सभी योजनाओं के साथ जब हम वैज्ञानिक सोच और इनोवेशन को जोड़ते हैं, तो इस के अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं. देश में पहली बार वर्ष 2018 से अन्नदाता किसानों को लागत का डेढ़ गुना दाम मिलना प्रारंभ हुआ. अब इस में काफी वृद्धि हुई है.

संसद के प्रत्येक सत्र में किसानों की खुदकुशी का मुद्दा उठता था. किसानों की खुदकुशी की वजह उपज का उचित दाम, उत्तम बीज, उचित सलाह, सिंचाई की सुविधा, बाजार तक पहुंच न होना आदि थी.

यह अच्छा अवसर है, जब हम अपने अन्नदाता किसानों को सहफसली लेने, इन के द्वारा विकसित की गई प्रजाति को और अधिक प्रमोट करने के लिए उन का सहयोग ले सकते हैं. साथ ही, औषधीय पौधों और फसल विविधीकरण जैसे अन्य क्षेत्रों में भी इन का सहयोग ले कर किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ाने का काम किया जा सकता है. यदि किसानों को समय पर उन्नत किस्म के बीज, तकनीक और वैज्ञानिक सलाह मिल जाए, तो वे प्रधानमंत्री के विजन के अनुरूप काम करने में कामयाब हो सकेंगे.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आगे कहा कि बाजार से लिंक कर ईको सिस्टम कैसे तैयार होता है, यह यहां की प्रदर्शनी में देखने को मिला. यहां 15 राज्यों के तकरीबन 4,000 किसानों के अतिरिक्त, प्रदेश के बाराबंकी, संभल, अमरोहा आदि जिलों के किसानों के साथसाथ लखीमपुर खीरी के जनजाति समुदाय से जुड़े लोग भी आए हैं. ये लोग खेती की उन्नत किस्मों को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे रहे हैं.

प्रदेश में स्थित 89 कृषि विज्ञान केंद्रों, 4 राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (5वां भी स्थापित होने जा रहा है) कृषि, बागबानी, आयुष आदि क्षेत्रों से जुड़े वैज्ञानिकों और लोगों को समयसमय पर सीमैप, सीडीआरआई, एनबीआरआई और आईआईटीआर लैबोरेट्रीज की विजिट कराई जानी चाहिए, ताकि इन की क्षमताओं का बेहतर उपयोग कर, किसानों की आमदनी को कई गुना बढ़ाने का काम किया जा सके. इस दिशा में तेजी के साथ प्रयास किए जाने की आवश्यकता है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह भी कहा कि यदि किसान खुशहाल होगा, तो प्रदेश खुशहाल होगा. राज्य में पर्याप्त उर्वर भूमि, प्रचुर जल संसाधन हैं. प्रदेश में देश की कुल कृषि योग्य भूमि की महज 11 फीसदी कृषि भूमि है, इस के बावजूद देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन का 22 फीसदी खाद्यान्न केवल उत्तर प्रदेश में उत्पादित होता है. यह यहां की भूमि की उर्वरता को प्रदर्शित करता है. इस क्षेत्र में हमें अभी बहुतकुछ करना है.

उन्होंने कहा कि सीमैप द्वारा उन्हें बताया गया कि संस्थान ने अलगअलग क्लस्टर विकसित किए हैं. हम प्रदेश के सभी 89 कृषि विज्ञान केंद्रों में क्लस्टर विकसित कर, नए तरीके से किसानों के समूह को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे सकते हैं. यदि हम औषधीय पौधों की खेती, प्रोसैसिंग और मार्केटिंग को इस के साथ जोड़ लें, तो कई गुना अधिक लाभ किसानों को प्राप्त होगा.

यदि किसान परंपरागत खेती के अंतर्गत प्रति एकड़ प्रति वर्ष 20 से 25 हजार रुपए कमा रहा है, तो औषधीय पौधों की खेती में वही किसान सवा लाख से डेढ़ लाख रुपए प्रति एकड़ प्रतिवर्ष कमा सकता है. इस दिशा में सीमैप और अन्य केंद्रीय लैबोरेट्रीज द्वारा प्रयास प्रारंभ किया गया है. यदि सभी मिल कर इस काम को आगे बढ़ाएंगे, तो इस के बेहतर नतीजे आएंगे.

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसानों को उन्नतशील प्रजातियों की पौध रोपण सामग्री का वितरण किया. उन्होंने किसान मेले की स्मारिका और कृषि की उन्नतशील प्रजातियों पर केंद्रित एक पुस्तिका का विमोचन भी किया. उन्होंने हर्बल उत्पाद, एलोवेरा जेल और वैज्ञानिकों द्वारा विकसित एरोमा एप का शुभारंभ किया.

इस के पूर्व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसान मेले में लगी प्रदर्शनी का अवलोकन किया और पौधरोपण भी किया. कार्यक्रम को कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने भी संबोधित किया.

इस अवसर पर अपर मुख्य सचिव कृषि देवेश चतुर्वेदी, मुख्यमंत्री के सलाहकार अवनीश कुमार अवस्थी, महानिदेशक सीएसआईआर एन. कलैसेल्वी, निदेशक सीमैप डा. प्रबोध कुमार त्रिवेदी, निदेशक एनबीआरआई डा. अजीत कुमार शासनी, निदेशक आईआईटीआर डा. भास्कर नारायण, निदेशक सीडीआरआई डा. राधा रंगराजन सहित अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित थे.