किसान ने मोटे अनाज की खेती से कमाया भारी मुनाफा

बस्ती : देश के अनेक किसान कम लागत, कम उर्वरक और कम पानी से पैदा होने वाले मोटे अनाज की खेती से मोटा मुनाफा कमा रहे हैं. ऐसे ही एक किसान हैं राममूर्ति मिश्र. बस्ती जिले के सदर ब्लाक, गांव गौरा के बाशिंदे नैशनल अवार्डी किसान राममूर्ति मिश्र ने महज 12 हजार रुपए की लागत से मडुआ और सांवा की खेती कर के तकरीबन 78 हजार रुपए की आमदनी प्राप्त की है.

प्रगतिशील किसान राममूर्ति मिश्र द्वारा की जा रही मोटे अनाज की खेती पूरे इलाके में किसानों को आकर्षित करने में कामयाब रही है.

 

Mota Anaj

 

कृषि विभाग ने मुफ्त में मुहैया कराया था बीज

प्रगतिशील किसान राममूर्ति मिश्र ने बताया कि उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार के कृषि महकमे की तरफ से मुफ्त में सांवा और रागी यानी मडुआ का बीज उपलब्ध कराया गया था, जिसे उन्होंने तकरीबन 3 एकड़ खेत में बोआई की थी. इस से उन्हें तकरीबन 20 क्विंटल उपज प्राप्त हुई थी.

उन्होंने आगे बताया कि मोटे अनाज की खेती में उन्हें एक बार भी सिंचाई नहीं करनी पड़ी है और न ही उन्होंने फसल में किसी तरह को खाद व उर्वरक का प्रयोग किया था.

प्रगतिशील किसान राममूर्ति मिश्र ने बताया कि मोटे अनाज की फसल में किसी तरह का कीट व बीमारियों का प्रकोप नहीं होता है. इस से जुताई और मेहनत को छोड़ दिया जाए, तो लागत न के बराबर आती है. ऐसे में किसान को कम पूंजी में अधिक मुनाफा प्राप्त होता है.

कृषि मंत्री ने किया प्रोत्साहित

किसान राममूर्ति मिश्र ने बताया कि सूबे के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही के प्रोत्साहन से प्रेरित हो कर मोटे आनाज की पहली बार खेती की थी. इस के पहले वह खरीफ सीजन में केवल सुगंधित धान काला नमक और बासमती की खेती करते थे, जिस में खाद एवं उर्वरक के साथ ही मेहनत पर अधिक लागत आती है. इस से मुनाफा कम मिलता था.

उन्होंने बताया कि धान की खेती में अधिक पानी की जरूरत होती है, जबकि मोटे अनाजों को सूखे की दशा में भी आसानी से उगाया जा सकता सकता.

राममूर्ति मिश्र ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से कम बारिश हो रही है, जिस के चलते किसानों के लिए मोटे आनाज की खेती काफी फायदेमंद हो सकती है.

सेहत के लिए लाभदायक है मोटा अनाज

किसान राममूर्ति मिश्र ने बताया कि मोटे अनाज का सेवन करना शरीर के लिए फायदेमंद है. यह बुढ़ापे के लक्षण को कम करता है. डायबिटीज सहित कई बीमारियों के खतरे को कम करता है. यह अनाज लौह और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर होता है, इसलिए शरीर में यह खून की कमी व कुपोषण को दूर करने में सहायता करता है. वहीं ज्वार शरीर की हड्‌डियों के लिए अच्छी मात्रा में कैल्शियम, खून के लिए फौलिक एसिड के अलावा कई अन्य पोषक तत्व प्रदान करता है. इसी तरह से रागी एकमात्र ऐसा मोटा अनाज है, जिस में कैल्शियम की मात्रा भरपूर पाई जाती है.

आकर्षक मटके वाली पैकिंग

किसान राममूर्ति मिश्र मोटे सांवा और मडुआ के चावल को पारंपरिक रूप से खूबसूरत मटकों में पैक कर के बेचते हैं, जो देखने में काफी आकर्षक होने के साथ ही उस के मूल गुणों को बनाए रखने में भी काफी कारगर है.

राममूर्ति मिश्र द्वारा मटके में की जा रही मोटे अनाजों की पैकिंग की काफी मांग बनी हुई है. उन्होंने इस साल जितना मोटा अनाज पैदा किया था, उसे बेच कर उन्होंने तकरीबन 78 हजार रुपए की आमदनी प्राप्त की.

समन्वित खेती को दें बढ़ावा – डा. किरोड़ी लाल मीणा

जयपुर : 23 जनवरी,2024. कृषि मंत्री डा. किरोड़ी लाल मीणा ने कहा कि किसान मेला एक महत्वपूर्ण अवसर है, जहां किसान नवीनतम कृषि तकनीकी उपकरणों और योजनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं. वे कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर में आयोजित तीनदिवसीय किसान मेले के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि किसान मेलों से हमें अपनी खेती को बेहतर बनाने और उन्नति के मार्ग पर बढ़ने मे मदद मिलती है.

जैविक खेती की तरफ बढ़े किसान

खेती में कैमिकल छिड़काव के उपयोग को कम करने के लिए किसानों को जैविक एवं प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर होना चाहिए. साथ ही किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन्होंने समन्वित खेती प्रणाली को बढ़ावा देने की आवश्यकता जताई.

कृषि मंत्री डा. किरोड़ी लाल मीणा ने विश्वविद्यालय द्वारा वर्षा जल संरक्षण हेतु किए जा रहे कामों की प्रशंसा करते हुए पूरे देश में अनुकरणीय बताया.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि जोबनेर विश्वविद्यालय ने कृषि क्षेत्र में विभिन्न गतिविधियों एवं नवाचारों के माध्यम से प्रदेश के कृषि विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

डा. किरोडी लाल मीणा ने किसानों को विश्वास दिलाया कि वे कृषि में विकास हेतु हर संभव प्रयास करेंगे. राजस्थान को इजराइल के समकक्ष मरू प्रदेश बताते हुए उन्होंने इजराइल की नव तकनीकी को अपनाने के लिए किसानों, वैज्ञानिकों और कृषि अधिकारियों को इजराइल के किसानों के फार्म पर अवलोकन व प्रशिक्षण के लिए योजना बनाने का आह्वान किया.

कृषि मंत्री डा. किरोड़ी लाल मीणा ने किसान मेले में कृषि प्रदर्शनियों का अवलोकन किया. उन्होंने सभी स्टाल के अवलोकन के दौरान वैज्ञानिकों, अधिकारियों और प्रदर्शनी आयोजकों से किसान के रूप में नवीन तकनीकी जानकारी प्राप्त की.

उन्होंने किसान मेले की प्रशंसा करते हुए कहा कि किसान मेला किसानों एवं कृषि वैज्ञानिकों को एक मंच पर लाने का काम करता है. विश्विद्यालय द्वारा तीनदिवसीय कृषि मेले का आयोजन करना एक अनूठी पहल है. इस मेले से किसानों को कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कृषि से संबंधित महत्पूर्ण जानकारियां प्राप्त करने का मौका मिलता है.

कुलपति डा. बलराज सिंह ने विश्विद्यालय द्वारा कृषि अनुसंधान, प्रसार एवं शिक्षा के लिए किए जा रहे कामों की जानकारी देते हुए कृषि नवाचारों को किसानों तक त्वरित पहुंचाने के उद्देश्य से किसान मेले की उपयोगिता बताई.

कुलपति डा. बलराज सिंह ने कृषि मंत्री डा. किरोड़ी लाल मीणा को राजस्थान में कृषि के साथ उद्यानिकी में उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए दुर्गापुरा में उद्यानिकी महाविद्यालय को शीघ्र विकसित करने का विश्वास दिलाया.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि इस तीनदिवसीय किसान मेले में 15,000 से अधिक किसानों ने भागीदारी निभाई, जिस में बड़ी तादाद में महिला किसान भी शामिल हैं. इस के अलावा विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालय के छात्रछात्राओं ने भी बढ़चढ़ कर भाग लिया और नवाचारों से रूबरू हुए. किसान मेले में तकरीबन सौ से अधिक कृषि प्रदर्शनियां लगाई गईं.

कार्यक्रम के दौरान प्रसार शिक्षा निदेशालय की फार्म टैक एशिया कृषि स्मारिका 2024 का विमोचन भी किया गया.

किसानों के लिए हितकारी योजनाएं

बस्ती: उपकृषि निदेशक, बस्ती की अध्यक्षता में ‘किसान दिवस’ बैठक का आयोजन विकास भवन सभागार में किया गया, जिस में जनपद के विभिन्न विभागों के अधिकारियों एवं उन के प्रतिनिधियों के साथ ही प्रगतिशील किसानों ने प्रतिभाग किया.

सब से पहले उपकृषि निदेशक, बस्ती द्वारा ‘किसान दिवस’ बैठक की कार्यवाही शुरू की गई, जिस में पिछले ‘किसान दिवस’ में आई शिकायतों के निस्तारण की स्थिति संबंधित अधिकारियों द्वारा किसानों को विस्तार से बताई गई.

गेहूंसरसों फसल पर दी जानकारी

कृषि विज्ञान केंद्र, बंजरिया के वैज्ञानिक डा. वीबी सिंह ने बताया कि सरसों के बीज का शोधन डीएपी0से यदि की गई है, तो वह फसल अच्छी होती है.

उन्होंने बताया कि किसान अपने फसलों में पोटाश/नैनो यूरिया/डीएपी यदि संभव हो, तो इफको का ही प्रयोग करें. गेहूं व सरसों में जल विलेय उर्वरक 18:18:18 या 19:19:19 प्रति एकड़ में 2 किलोग्राम छिड़काव पानी में मिला कर करें और जब गेहूं रेड़े या दाने आना शुरू हों, तब 0-0-50-0 डालना चाहिए.

वैज्ञानिक डा. वीबी सिंह ने बताया कि गेहूं सामान्य मिट्टी में कम से कम 3 बार सिंचाई अवश्य करनी चाहिए और सरसों में हर 65 दिन पर सिंचाई करने से पैदावार बढ़ती है.

समय पर गन्ना भुगतान

मुंडेरवा चीनी मिल के मुख्य गन्ना प्रबंधक कुलदीप द्विवेदी ने बताया कि पिछले वर्ष का समस्त गन्ना मूल्य भुगतान मिल द्वारा कर दिया गया है. वर्तमान वित्तीय वर्ष में 31 दिसंबर, 2023 तक का भी भुगतान कर दिया गया है एवं 10 जनवरी, 2024 तक का गन्ना मूल्य भुगतान 22 जनवरी, 2024 तक कर दिया जाएगा.

समय पर करें बिजली बिल का भुगतान

अधिशाषी अभियंता, विद्युत वितरण खंड-3 के महेंद्र कुमार मिश्रा ने बताया कि ऐसे जो एकमुश्त समाधान योजना का लाभ नहीं ले सके हैं और उन का बिल 10000 रुपए से अधिक है, वह बिना देरी किए अपने बकाया बिल का भुगतान कर दें, अन्यथा की स्थिति में प्रर्वतन दल द्वारा अभियान चलाया जा रहा है, जिस में लाइन का विच्छेदन भी किया जा सकता है. वर्तमान में कुल 1,42,000 घरेलू उपभाक्ताओं का बिजली बिल 10000 रुपए से ज्यादा है.

रेशम कीट उत्पादन पर जानकारी

सहायक निदेशक, रेशम नीतेश सिंह ने बताया कि रेशम कीट उत्पादन की साल में 4 फसलें ली जा सकती हैं, जिस से किसान कम से कम 40-45 हजार शून्य लागत में अतिरक्ति आमदनी कर सकते हैं.

उन्होंने आगे बताया कि सहतूत के पौधे फ्री में मिलते हैं और इन्हें खेतों के चारों तरफ मेंड़ों पर लगा कर अच्छी आमदनी की जा सकती है. वर्तमान में ’’सिल्क समग्र’’ योजना संचालित है, जिस में जो किसान अधिक उत्पादन करते हैं, उन्हें विभाग द्वारा प्रोत्साहन के रूप में शेरी कल्चर गृह बनाने पर अनुदान दिया जाता है और बंगाल एवं मैसूर में प्रशिक्षण भी कराया जाता है. रेशम कीटपालन करने से बिना लागत के अतिरिक्त आय अर्जित की जा सकती है.

’’प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’’ पर दी जानकारी

अधिकारी,मत्स्य संदीप कुमार वर्मा ने बताया कि यदि मछलीपालन का कार्य व्यावसायिक रूप से किया जाए, तो इस से अच्छी आमदनी की जा सकती है. वर्तमान समय में ’’प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’’ संचालित है, जिस में तालाब निर्माण के लिए 1/2 हेक्टेयर से ले कर 2 हेक्टेयर तक किया जा सकता है. 11 लाख रुपए की परियोजना लागत पर महिला/ अनुसूचित जाति को 60 फीसदी एवं अन्य को 40 फीसदी अनुदान देय है. इस समय मछलीपालन नई तकनीक से सीमेंटेड टैंक बनवा कर किया जाता है, जिस पर साढ़े 7 लाख से ले कर 50 लाख रुपए तक की परियोजना लागत पर विभाग द्वारा अनुदान दिया जाता है. साथ ही, इस के विपणन के लिए छोटे से ले कर बड़े किसानों को साइकिल/मोटरसाइकिल/3 व्हीलर एवं रेफ्रिजरेटर वैन विभाग द्वारा दिया जाता है.

पाले से करें फसल बचाव

जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने बताया कि इस समय शीतलहर चल रही है एवं फसलों में पाला लगने की संभावना बनी हुई है, इस से बचने के लिए शाम के समय बोरिंग से सिंचाई की जाए, तो जमीन का तापमान 3 से 4 डिगरी बढ़ जाता है, क्योंकि ओस की बूंदें जम कर बर्फ में बदल जाती हैं. इस से बचाव के लिए खेत के उत्तरपश्चिम दिशा में आग जलाने से तापमान में वृद्धि की जा सकती है. खेतों में सल्फ्यूरिक एसिड का छिड़काव प्रति लिटर 1,000 लिटर पानी में मिला कर किया जा सकता है.

माहू की करें रोकथाम

उन्होंने आगे यह भी बताया कि जब धूप निकलना शुरू हो, तो माहू का प्रकोप फसलों पर होना शुरू हो जाएगा और धूप के कारण माहू सीधे बच्चे देना शुरू कर देते हैं, जिस से 2-3 दिन में ही कीड़े फसलों का रस चूस लेते हैं, इस से बचाव के लिए सामान्य कीटनाशक का प्रयोग किया जा सकता है.

यदि कीटनाशक का प्रयोग न करना हो, तो काली मिर्च एवं लाल मिर्च पाउडर पानी में घोल कर या नीम तेल का छिड़काव किया जा सकता है. यदि खेत में पाला लग गया है, तो यूरिया एवं डीएपी का छिड़काव किया जा सकता है.

जिला कृषि रक्षा अधिकारी रतन शंकर ओझा ने किसानों से अपील की कि रसायनों का कम से कम प्रयोग करें. यदि खेती से संबंधित कोई समस्या आती है, तो कृषि विभाग द्वारा संचालित सहभागी फसल निगरानी या निदान प्रणाली भी कहते हैं, पर फोन/व्हाट्सअप/मैसेज द्वारा समस्या का समाधान 24 से 48 घंटे के भीतर कर दिया जाता है, जिस का नंबर 9452257111 या 9452247111 है.

कृषि यंत्र खरीदने वाले किसानों के लिए जानकारी

उपसंभागीय कृषि प्रसार अधिकारी हरेंद्र प्रसाद ने बताया कि जिन किसानों के यंत्रों का टोकन कंफर्म हो गया है, वह अपने बिल/वाउचर पोर्टल पर अपलोड कर दें. 17 जनवरी, 2024 का सोलर पंप के लक्ष्य के अंदर समस्त टोकन कंफर्म कर दिए गए हैं. किसान बाकी की धनराशि टोकन जनरेट कर के औनलाइन/औफलाइन जमा कर सकते हैं.

अन्त में उप एलकृषि निदेशक ने द्वारा उपस्थित सदस्यों/किसानों को ‘किसान दिवस’ में प्रतिभाग करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित कर किसान दिवस का समापन की घोषणा की गई.

स्पिरुलिना की व्यावसायिक खेती

हमारे देश के ज्यादातर किसान पारंपरिक खेती पर निर्भर हैं, जिस से उन्हें अपेक्षा के अनुरूप फायदा नहीं मिल पाता है. पारंपरिक खेती पर निर्भर रहने वाले किसानों के लिए मौसम की अनिश्चितता भी बड़ी समस्या है. खादबीज की समय से उपलब्धता न हो पाना भी किसानों के लिए खेती में नुकसान की एक बड़ी वजह बन जाता है. पारंपरिक फसलों का मूल्य भी व्यावसायिक की अपेक्षा बहुत कम होता है, जिस से किसान निराशा का शिकार हो कर खेती से धीरेधीरे दूर होते जा रहे हैं. ऐसे में किसानों को पारंपरिक फसलों के साथ ही कुछ ऐसी फसलों की खेती की तरफ कदम बढ़ाना होगा, जिस का बाजार मूल्य और मांग दोनों अच्छे हों.

ऐसी ही एक व्यावसायिक फसल की खेती कर किसान अच्छीखासी आमदनी हासिल कर सकते हैं, जिसे स्पिरुलिना के नाम से जाना जाता है. यह एक तरह का जीवाणु है, जिसे साइनोबैक्टीरियम के नाम से भी जाना जाता है.

आमतौर पर इसे हम ‘शैवाल’ भी कह सकते हैं. यह एक प्रकार की जलीय वनस्पति है, जो  झीलों,  झरनों और खारे पानी में आसानी से पैदा होती है. प्राकृतिक रूप से यह समुद्र में पाई जाती है. इस का रंग हरा व नीला होता है.

व्यावसायिक लेवल पर इस की खेती प्लास्टिक या सीमेंट के टैंक बना कर भी की जा सकती है. यह पोषण के सब से महत्त्वपूर्ण तत्त्वों में शामिल किया जा सकता है, क्योंकि इस में ऐसे कई महत्त्वपूर्ण तत्त्व मौजूद होते हैं, जो हमें बीमारियों से बचाते हैं. साथ ही, इस में कई तरह के विटामिंस, खनिज और पोषक तत्त्व के साथसाथ प्रोटीन की भरपूर मात्रा पाई जाती है. यह पोटैशियम, कैल्शियम सेलेनियम और जिंक का भी महत्त्वपूर्ण स्रोत है. कई देशों में इसे ‘सुपर फूड’ के नाम से भी जाना जाता है.

सेहत के लिए फायदेमंद : स्पिरुलिना की खेती किसानों के लिए इसलिए ज्यादा फायदेमंद मानी जा सकती है, क्योंकि यह सेहत और पोषण के लिए सब से मुफीद माना जाता है. इस का खाने में उपयोग करने से रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है, साथ ही, शरीर में कोलेस्ट्रौल की मात्रा को संतुलित रखता है. इस का उपयोग दिल के लिए भी अच्छा होता है.

अगर स्पिरुलिना का सेवन नियमित रूप से किया जाए तो यह सांस संबंधी बीमारी और एलर्जी से भी बचाता है. इस का उपयोग कैंसर की संभावनाओं को भी कम करता है. यह पाचन तंत्र और दिमागको भी मजूबत बनाता है.

स्पिरुलिना का खाने में उपयोग शरीर में खून की कमी को दूर करता है. यह मांसपेशियों को मजबूती देने के साथ शरीर में शुगर की मात्रा को भी नियंत्रित करता है. इसीलिए ढेर सारे गुणों को समेटे स्पिरुलिना की मांग न केवल देश में, बल्कि विदेशों में भी खूब है. इस नजरिए से कोई भी किसान अगर इस की खेती करता है, तो उसे मार्केटिंग के लिए परेशान नहीं होना पड़ता है.

स्पिरुलिना को खाने के लिए पाउडर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इस में आयरन,  ओमेगा 6 , ओमेगा 3 फैटी एसिड, प्रोटीन, विटामिन बी 1, विटामिन बी 2, विटामिन बी 3, कौपर,  मैंगनीज, पोटैशियम और मैगनीशियम जैसे महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों की प्रचुर मात्रा उपलब्ध होती है.

खेती के लिए अनुकूल दशा : स्पिरुलिना की व्यावसायिक खेती के लिए गरम मौसम का होना जरूरी है. भारत में ठंड के मौसम में इस की खेती नहीं की जा सकती.

अगर किसान चाहते हैं कि स्पिरुलिना की फसल में ज्यादा प्रोटीन की मात्रा हासिल करें, तो उस के लिए सामान्य धूप होना जरूरी है यानी तापमान 30 से 35 डिगरी सैल्सियस के बीच हो.

आजकल तापमान का पता लगाने के लिए कई तरह के मोबाइल ऐप उपलब्ध हैं, जिन्हें हम अपने मोबाइल फोन में आसानी से इंस्टौल कर जानकारी ले सकते हैं. कम तापमान की दशा में स्पिरुलिना की क्वालिटी और उत्पादन दोनों प्रभावित हो सकते हैं.

Sprilunaखेती के लिए पानी का टैंक या तालाब तैयार करना : स्पिरुलिना शैवाल की खेती को खुले तालाबों में करना न केवल कठिन होता है, बल्कि इस से क्वालिटी और उत्पादन दोनों ही प्रभावित होते हैं. इस के लिए किसान कंकरीट या प्लास्टिक की पन्नियों से टैंक तैयार कर सकते हैं.

शुरुआती दौर में कम लागत से स्पिरुलिना शैवाल की खेती शुरू करने के लिए पौलीथिन का गड्ढा भी तैयार किया जा सकता है. कंकरीट या पौलीथिन से तैयार किए गए गड्ढे का उत्तम आकार लंबाईचौड़ाई 10×20 फुट का हो सकता है और गहराई 2-3 फुट तक हो सकती है. गड्ढों को प्रदूषण के प्रभाव से बचाने के लिए पौली पैक में भी बनाया जा सकता है.

खेती शुरू करना : कंकरीट या पौलीथिन से तैयार गड्ढे यानी टैंक में 20 से 30 सैंटीमीटर की ऊंचाई तक पानी भर दिया जाता है. गड्ढे में पानी भरते समय यह ध्यान रखें कि उस में भरा जाने वाला पानी गंदा न हो. चूंकि गरम तापमान में इस की खेती की जाती है. ऐसे में गड्ढा खुले होने के चलते पानी का वाष्पीकरण भी होता रहता है, जिस से गड्ढे में पानी की मात्रा कम हो सकती है, इसलिए गड्ढे में 20 से 30 सैंटीमीटर की ऊंचाई तक पानी की भराई करते रहना चाहिए.

पानी के गड्ढे में स्पिरुलिना के बीज व कल्चर डालने के पहले पानी में पीएच मान की संतुलित मात्रा का निर्धारण किया जाता है.

पीएच का मतलब होता है पानी में हाइड्रोजन की क्षमता या पोटैंशियल हाइड्रोजन. इस से पानी की गुणवत्ता का निर्धारण भी किया जाता है. पानी में स्पिरुलिना बीज डालने के पहले पानी में पीएच की आदर्श मात्रा 9 से 11 के बीच होना जरूरी है. इस की जांच के लिए बाजार में मामूली कीमत पर पीएच पेपर मुहैया होता है. इस के जरीए पानी में पीएच की मात्रा का निर्धारण किया जा सकता है.

इस के अलावा गड्ढे में उपलब्ध पानी की मात्रा के अनुसार प्रति लिटर पानी में 8 ग्राम सोडियम बाई कार्बोनेट यानी खाने वाले सोडे़ का घोल मिलाते हैं. पानी में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का घोल या कल्चर भी मिलाया जाता है. इस में एक किलोग्राम स्पिरुलिना के बीज के साथ 8 ग्राम सोडियम बाई कार्बोनेट, 5 ग्राम सोडियम, 0.2 ग्राम यूरिया, 0.5 ग्राम पोटैशियम सल्फेट, 0.16 मैगनीशियम सल्फेट, 0.052 मिलीलिटर फास्फोरिक एसिड और 0.05 मिलीलिटर फेरस सल्फेट पानी से भरे टैंक में मिलाए जाते हैं. इस पानी को डंडे की मदद से रोज हिलाया जाना चाहिए. इसे तैयार करने में एक हफ्ते का समय लगता है.

किसान उक्त रसायनों के घोल की मात्रा के निर्धारण में आने वाली परेशानियों से बचने के लिए औनलाइन भी संतुलित मात्रा का पैकेट खरीद सकते हैं. जब गड्ढे में स्पिरुलिना की खेती योग्य पानी तैयार हो जाए, तो इस में स्पिरुलिना कल्चर और 10 लिटर पानी के हिसाब से 30 ग्राम शुष्क स्पिरुलिना का बीज डाला जाता है.

स्पिरुलिना की  खेती के लिए व्यावसायिक लेवल पर इस के बीज को किसानों को खुद ही अलग गड्ढे में तैयार करते रहना चाहिए. इस से बीज के ऊपर आने वाली लागत को कम किया जा सकता है.

पानी को क्रियाशील बनाना : जिस गड्ढे में स्पिरुलिना की खेती की जाती है, उस का क्रियाशील होना जरूरी है, इसलिए पानी को क्रियाशील बनाए रखने के लिए उस में बिजली या सोलर से चलने वाले आटोमैटिक पैडल या डंडे द्वारा पानी को फेंटते रहना चाहिए. इस से स्पिरुलिना जीवाणु कल्चर के साथ क्रियाशील हो कर अच्छा उत्पादन देता है. पानी के फेंटने के चलते स्पिरुलिना की फसल को पर्याप्त मात्रा में धूप भी मिलती  है.

फसल को सुखाना : स्पिरुलिना के गीले कल्चर को प्रतिदिन साफ कपडे़ से छान लिया जाता है. इस के बाद इस में उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए इसे किसी छायादार बंद कमरे में फैला कर सुखाया जाता है. सूखा होने पर स्पिरुलिना कई महीनों तक चल जाएगी और इस में पोषक तत्त्व भी संरक्षित किया जा सकता है. इस की तैयार फसल को नैचुरल तरीके से सुखाने के लिए मशीनें भी उपलब्ध हैं. इस का उपयोग कर फसल को सुखाया जा सकता है.

जब स्पिरुलिना पर्याप्त मात्रा में सूख जाती है, तो इसे पीस कर चूर्ण या कैप्सूल के लिए तैयार कर लिया जाता है. इस तरह स्पिरुलिना के तैयार उत्पाद को वायुरोधी पैकिंग में पैक कर 3 से 4 साल तक पौष्टिक गुणों के साथ महफूज रखा जा सकता है.

Sprilunaलागत, उत्पादन व लाभ : स्पिरुलिना की खेती के लिए अगर कंकरीट का गड्ढा तैयार किया जाता है, तो 10×20 फुट आकार के गड्ढे पर तकरीबन 20,000 से 30,000 रुपए की लागत आती है. इस के अलावा प्लांट के लिए मशीनरी, कैमिकल वगैरह पर 20 गड्ढों कीलागत समेत एक बार में लगभग 7 से 8 लाख रुपए की लागत आती है.

एक बार पूंजी लगाने के बाद प्रत्येक गड्ढों से औसतन 2 किलोग्राम गीली कल्चर हर दिन पैदा होता है. इस तरह एक किलोग्राम गीले स्पिरुलिना के लगभग 100 ग्राम शुष्क पाउडर मिल जाता है. इस के आधार पर औसतन 20 टैंक स्पिरुलिना फार्मिंग से प्रतिदिन 4-5 किलोग्राम सूखा स्पिरुलिना पाउडर मिलता है.

इस तरह से एक महीने में स्पिरुलिना का उत्पादन 100 से 130 किलोग्राम तक हासिल होता है. इस तरह से अगर सूखे स्पिरुलिना की बिक्री थोक दर पर लगभग 600 रुपए प्रति किलोग्राम होती है, तो आसानी से एक किसान हर माह तकरीबन 40-45 हजार रुपए  की आमदनी हासिल कर सकता है.

हाईब्रिड मोड में मत्स्यपालन और ऐक्वाकल्चर इंश्योरैंस

नई दिल्ली: मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला ने पूसा, नई दिल्ली में हाईब्रिड मोड (Hybrid Mode)  में मत्स्यपालन ( Fisheries ) और ऐक्वाकल्चर इंश्योरैंस (Aquaculture Insurance)  पर राष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता की. केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने कुछ लाभार्थियों को समूह दुर्घटना बीमा योजना (जीएआईएस) ( Group Accident Insurance Scheme) के चैक भी बांटे. इस अवसर पर मत्स्यपालन विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी, संयुक्त सचिव सागर मेहरा और नीतू कुमारी प्रसाद भी उपस्थित थे.

अपने संबोधन में मंत्री परषोत्तम रूपाला ने सभी हितधारकों से वेसल्स इंश्योरैंस योजनाओं के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के लिए अपने सुझाव और इनपुट के साथ आगे आने का आह्वान किया. साथ ही, उन्होंने कहा कि ग्रुप ऐक्सीडेंट इंश्योरैंस स्कीम (जीएआईएस) काफी सफल रही है और इसी तरह की सफलता को मछुआरा समुदाय के बीच फसल बीमा और वेसल्स बीमा के लिए भी इस्तेमाल होना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि नई योजनाएं बनाते समय जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न मुद्दों को ध्यान में रखा जाना चाहिए.

उन्होंने सम्मेलन के आयोजन के लिए विभाग की सराहना की, जो सभी हितधारकों को संवेदनशील बनाने में काफी मददगार साबित होगा. मंत्री परषोत्तम रूपाला ने बीमा लाभार्थियों से भी बात की और उन की प्रतिक्रिया ली.

मत्स्यपालन विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी ने अपनी टिप्पणी में कहा कि विभाग जापान और फिलीपींस जैसे अन्य देशों में मछुआरों के लिए सफल बीमा मौडल का अध्ययन करेगा और उन के अनुभवों को स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार अनुकूलित किया जाएगा.

डा. अभिलक्ष लिखी ने यह भी रेखांकित किया कि सरकार कंपनियों से वेसल्स बीमा योजनाओं को बढ़ावा दे रही है और ऐसी योजनाओं के लिए सामान्य मापदंडों पर काम करने के लिए एक समिति बनाई गई है. उन्होंने आगे यह भी कहा कि मछुआरा समुदाय के साथ विश्वास की कमी को दूर करने के लिए फसल बीमा के तहत योजनाओं की समीक्षा की जा रही है.

सचिव अभिलक्ष लिखी ने उल्लेख किया कि ग्रुप ऐक्सीडैंट इंश्योरैंस स्कीम (जीएआईएस) ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना‘ (पीएमएमएसवाई) के तहत सब से पुरानी और सब से कामयाब योजना है.

ऐक्वाकल्चर और वेसल्स बीमा सम्मेलन में बीमा के साथसाथ मत्स्यपालन क्षेत्र के विभिन्न हितधारकों को शामिल किया गया. कार्यक्रम का उद्देश्य मत्स्यपालन बीमा से संबंधित सभी हितधारकों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देना, सहयोगी पहल, सर्वोत्तम प्रथाओं और इनोवेशंस को प्रोत्साहित करना, अनुसंधान और विकास में लक्ष्य निर्धारित करना, किसानों और मछुआरों को प्रभावशाली अनुभवों एवं सफलता की कहानियों के माध्यम से बीमा कवरेज अपनाने के लिए प्रेरित करना और जागरूकता बढ़ा कर मत्स्य समुदाय के भीतर ऐक्वाकल्चर बीमा अपनाने की दर को बढ़ावा देना है.

मछुआरों और मछलीपालन करने वाले किसानों के हितों की सुरक्षा के बारे में जागरूकता पैदा करने और मत्स्यपालन क्षेत्र, बीमा कंपनियों, बीमा मध्यस्थों और वित्तीय संस्थानों में विभिन्न हितधारकों के साथ उत्पादक विचारविमर्श करने की आवश्यकता को पहचानते हुए मत्स्यपालन विभाग ने इस राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया. कार्यक्रम में विचारविमर्श एक व्यापक कार्यान्वयन ढांचे, सहयोगात्मक प्रयास और अभिनव समाधान (प्रोत्साहन, उत्पाद नवाचार इत्यादि) विकसित करने में सहायता करेगा, जो मछुआरों और जलीय कृषि किसानों के लिए बीमा पैकेज को अधिक किफायती और आकर्षक बना सकता है.
एफएओ के अधिकारियों, सीएमएफआरआई और सीआईबीए के वैज्ञानिकों, आईसीआईसीआई लोम्बार्ड, ओरिएंटल इंश्योरैंस कंपनी लिमिटेड, मत्स्यफेड, केरल और द न्यू इंडिया इंश्योरैंस कंपनी लिमिटेड के प्रतिनिधियों सहित उद्योग विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं के साथ भी विचारविमर्श किया गया. किसानों और मत्स्य संघों ने ऐक्वाकल्चर इंश्योरैंस का लाभ उठाने में आने वाली चुनौतियों से संबंधित अपने अनुभव साझा किए.

 

Fisheries

 

सम्मेलन में इन मुद्दों पर हुई चर्चा

– मत्स्यपालन में बीमा के माध्यम से जोखिम को न्यूनतम करना.
– भारत में जलीय कृषि और वेसल्स बीमा की कमियां, चुनौतियां और संभावनाएं.
– विभिन्न बीमा उत्पाद और उन की विशेषताएं, जिन्हें मत्स्यपालन क्षेत्र में लागू किया जा सकता है.
– मत्स्यपालन के लिए फसल बीमा में क्षतिपूर्ति आधारित और सूचकांक आधारित बीमा अवसर.
– मत्स्यपालन में पुनर्बीमा की भूमिका.
– मत्स्यपालन क्षेत्र में सूक्ष्म बीमा की भूमिका.
– न्यूनतम परेशानी में त्वरित दावा निबटान प्रक्रिया के लिए सर्वोत्तम अभ्यास.

सम्मेलन में भाग लेने वालों में मछली किसान और मछुआरे, मत्स्यपालन सहकारी समितियां और उत्पादक कंपनियां, मत्स्यपालन प्रबंधन में शामिल राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के सरकारी अधिकारी, शोधकर्ता और शिक्षाविद, केवीके, बीमा कंपनियां और वित्तीय संस्थान, ट्रेसेबिलिटी और प्रमाणन सेवा प्रदाता आदि शामिल थे. इस के अलावा संबंधित ग्राम पंचायतों, कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके), मत्स्यपालन विश्वविद्यालयों और कालेजों, राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के डीओएफ अधिकारियों ने भी वीसी (वीडियो कौंफ्रैंसिंग) के माध्यम से इस में भाग लिया. सम्मेलन में कुल 300 (फिजिकल-100 एवं वर्चुअल-200) प्रतिभागी शामिल हुए.

मत्स्यपालन और जलीय कृषि भोजन, पोषण, रोजगार, आय और विदेशी मुद्रा के महत्वपूर्ण स्रोत हैं. यह क्षेत्र प्राथमिक स्तर पर 3 करोड़ से अधिक मछुआरों और मछली किसानों और मूल्य श्रंखला के साथ कई लाख से अधिक मछुआरों और मछली किसानों को आजीविका, रोजगार एवं उद्यमशीलता प्रदान करता है. वैश्विक मछली उत्पादन में तकरीबन 8 फीसदी हिस्सेदारी के साथ भारत तीसरा सब से बड़ा मछली उत्पादक देश है. पिछले 9 वर्षों के दौरान भारत सरकार ने देश में मत्स्यपालन और जलीय कृषि क्षेत्र के समग्र विकास के लिए परिवर्तनकारी पहल की है.

भारत की अर्थव्यवस्था में मत्स्यपालन क्षेत्र एक महत्वपूर्ण योगदान करने वाला है, जो लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करता है. इस क्षेत्र में सतत और जिम्मेदार विकास को बढ़ाने के लिए, भारत सरकार ने मई, 2020 में ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना‘ (पीएमएमएसवाई) की शुरुआत की. इस पहल का उद्देश्य मछली उत्पादन, बाद के बुनियादी ढांचे, ट्रेसेबिलिटी में महत्वपूर्ण अंतराल को संबोधित कर के और मछुआरों का कल्याण सुनिश्चित कर के एक ब्लू रैवोल्यूशन को उत्प्रेरित करना है.

राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (एनएफडीबी) को बीमा योजनाओं सहित पीएमएमएसवाई कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया गया है. इस के महत्व के बावजूद मत्स्यपालन क्षेत्र को प्राकृतिक आपदाओं और बाजार में उतारचढ़ाव जैसी कमजोरियों का सामना करना पड़ता है, जो इस में शामिल लोगों की भलाई पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है.

पारंपरिक मछुआरों को प्राकृतिक आपदाओं के दौरान मछली पकड़ने से जुड़े जोखिमों से बचाने की जरूरत है. इस दिशा में पीएमएमएसवाई के तहत मछली पकड़ने वाले जहाजों और समुद्री मछुआरों के बीमा कवर के लिए सहायता का प्रावधान किया गया है. हालांकि मैरीन संबंधी खतरे, पुराना बेड़ा और रखरखाव के मुद्दे, विनाशकारी घटनाएं आदि चुनौतियां भी सामने हैं.

भारत में जलीय कृषि विभिन्न जोखिमों जैसे बीमारियों, पीक सीजन की घटनाओं और बाजार में उतारचढ़ाव से भी घिरी रहती है. जलीय कृषि उद्योग की गतिशील प्रकृति के कारण इन जोखिमों का आकलन और प्रबंधन चुनौती भरा हो सकता है. किसानों ने पायलट ऐक्वाकल्चर फसल बीमा योजना में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई, क्योंकि यह केवल बुनियादी कवरेज प्रदान करती थी और बीमारियों सहित व्यापक कवरेज प्रदान नहीं करती थी.

बीमा कंपनियों के पास जलीय कृषि फसल के नुकसान पर लिगेसी डेटा नहीं है. हालांकि बीमा कंपनियां ऐक्वा फसलों के व्यापक कवरेज की उम्मीद करती हैं, लेकिन उत्पाद अधिक महंगा होने के कारण इस की स्वीकार्यता फिलहाल कम है. कई जल कृषि संचालकों को बीमा के लाभों के बारे में जानकारी नहीं हो सकती है या उपलब्ध उत्पादों के बारे में समझ की कमी हो सकती है. बीमा कंपनियों को पुनर्बीमा सहायता की बहुत जरूरत है.

कृषि अनुसंधानों का लाभ छोटेमझोले किसानों तक पहुंचे – अर्जुन मुंडा

नई दिल्ली: 17 जनवरी 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीएआर के राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर की विभिन्न सुविधाओं और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के कृषि प्रक्षेत्र का अवलोकन किया.

इस दौरान मंत्री अर्जुन मुंडा ने कृषि एवं बागबानी की आधुनिक पद्धतियों की बारीकी से जानकारी लेते हुए अधिकारियों से कहा कि यहां हो रहे अनुसंधान के कामों का लाभ देश के छोटे व मझोले किसानों तक पहुंचना सुनिश्चित किया जाना चाहिए, ताकि इन के माध्यम से वे लाभान्वित हो कर आमदनी बढ़ा सकें एवं उन का जीवनस्तर ऊंचा उठ सके.

केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा के पूसा पहुंचने पर आईसीएआर के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक सहित अन्य अधिकारियों एवं वैज्ञानिकों ने अगुआई की. सब से पहले मंत्री अर्जुन मुंडा ने राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर की विभिन्न सुविधाओं जैसे कि औडिटोरियम, प्रदर्शनी हाल और विभिन्न सभा कक्षों का दौरा किया और उन के उपयोग के बारे में जानकारी ली.

मंत्री अर्जुन मुंडा ने राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर स्थित अंतर्राष्ट्रीय गेस्टहाउस का दौरा किया. इस के बाद उन्होंने पूसा के वृहद कृषि प्रक्षेत्र के विभिन्न प्रभागों का भी दौरा किया. उन्होंने संरक्षित कृषि प्रौद्योगिकी केंद्र का निरीक्षण किया, जिस की स्थापना प्रदर्शन फार्म के रूप में वर्ष 1998-99 में की गई थी.

इसे बाद में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग केंद्र (माशव) और सिनाडको के माध्यम से कृषि अनुसंधान व शिक्षा विभाग (डेयर) और आईसीएआर एवं इजराइल सरकार द्वारा संयुक्त रूप से इंडोइजराइल परियोजना का रूप दिया गया. इस परियोजना का उद्देश्य उन्नत गुणवत्ता व उत्पादकता के लिए बागबानी फसलों की परिनगरीय खेती की सघन व व्यावसायिक उन्मुख प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करना था. इजराइल सरकार के साथ सहयोग अवधि पूरी होने पर इस सुविधा को संरक्षित कृषि प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप स्थापित किया गया.

Arjun Mundaउन्होंने यहां सब्जियों और पुष्पीय फसलों के लिए जलवायु नियंत्रित व प्राकृतिक हवादार ग्रीनहाउस, नैटहाउस, नर्सरी सुविधाओं, खुले खेत, ड्रिप सिंचाई प्रणाली और ड्रोन द्वारा छिड़काव आदि गतिविधियों का अवलोकन किया.

केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने पूसा संस्थान में स्थापित समन्वित कृषि प्रणाली की एक एवं ढाई एकड़ की 2 यूनिट का भी अवलोकन किया, जहां पर मशरूम, संरक्षित खेती, मुरगीपालन एवं बतखपालन आदि के साथ ही बागबानी एवं फसलों के उत्पादन की जानकारी भी ली, जिन के द्वारा किस तरह से छोटे किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सकती है, इस विषय पर मार्गदर्शन दिया.

उन्होंने सरसों व सब्जी अनुसंधान कार्यक्रम को भी देखा और विभिन्न उन्नत किस्मों के बारे में वैज्ञानिकों से जानकारी ली, वहीं तिलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर भी चर्चा की. साथ ही, जलवायु परिवर्तन के, भविष्य में भारतीय कृषि पर पड़ने वाले प्रभावों एवं उन से किस तरह से फसलों को बचाया जाए, इस संबंध में भी मंत्री अर्जुन मुंडा ने वैज्ञानिकों से चर्चा करते हुए इस दिशा में पूसा परिसर में किए जा रहे प्रयासों की सराहना की. वहीं इस योजना का लाभ देश में छोटेमझोले किसानों तक भी पहुंचे.

पीएम कुसुम योजना के तहत मिलेगा सोलर पंप

बस्ती: प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम कुसुम) योजना वित्तीय साल 2023-24 से 2024-25 तक प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम कुसुम) के अंतर्गत अनुदान पर सोलर पंप पाने के लिए 17 जनवरी, 2024 से विभागीय वैबसाइट https://pm kusum.upagriculture.com पर लक्ष्य पूरा होने तक औनलाइन बुकिंग की जाएगी.

बस्ती जिले के लिए सोलर पंप लगाने के लिए कुल 393 आवेदन प्राप्त हुए हैं. इस के तहत राज्यांश और केंद्रांश के रूप में सोलर पंप किसान अंश के रूप में 1800 वाट 2 एचपी डीसी सरफेस पंप पर कुल लागत 1,71,716 रुपए के सापेक्ष 63,686 रुपए का भुगतान करना होगा, जबकि एसी सरफेस पंप लागत 1,71,716 रुपए के सापेक्ष महज 63,686 रुपए देना होगा.

इसी तरह डीसी सबमर्सिबल पंप के लिए कुल लागत 1,74,541 रुपए के सापेक्ष 64,816 रुपए किसान को भुगतान करना होगा, वहीं एसी सबमर्सिबल पंप के लिए कुल लागत 1,74,073 रुपए के सापेक्ष महज 64,629 रुपए किसान को देना होगा.

जो किसान 3,000 वाट 3 एचपी डीसी सबमर्सिबल पंप लगाना चाहते हैं, उन्हें कुल मूल्य 2,32,721 रुपए के सापेक्ष किसान को 88,088 रुपए का भुगतान करना होगा. इसी तरह एसी सबमर्सिबल पंप के कुल लागत 2,30,445 रुपए के सापेक्ष किसान को 87176 रुपए देना होगा. इस के अलावा 4800 वाट 5 एचपी एसी सबमर्सिबल पंप के कुल लागत 2,27,498 रुपए में से किसान को अंश के रूप में 1,25,999 रुपए का भुगतान करना होगा.

जो किसान 6750 वाट 7.5 एचपी एसी सबमर्सिबल पंप लगाना चाहते हैं, उन्हें कुल लागत का 2,44,094 रुपए के सापेक्ष किसान अंश के रूप में 1,72,638 रुपए देना होगा. इसी तरह 9000 वाट 10 एचपी एसी सबमर्सिबल पंप के कुल मूल्य 5,57,620 रुपए के सापेक्ष किसान को अंश के रूप में 2,86,164 रुपए का भुगतान करना होगा.

उपनिदेशक, कृषि, अशोक कुमार गौतम ने बताया कि जो किसान इस योजना का लाभ लेना चाहते हैं, उन्हें कृषि विभाग की विभागीय वैबसाइट https://agriculture.up.gov.in पर रजिस्टर होना अनिवार्य है.

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि किसानों की बुकिंग जिले के लक्ष्य की सीमा से 110 फीसदी तक ‘पहले आओ पहले पाओ’ के आधार पर किया जाएगा. किसानों को औनलाइन बुकिंग के साथ 5,000 रुपए टोकन मनी के रूप में औनलाइन जमा करना होगा.

जो किसान अनुदान पर सोलर पंप लेना चाहते हैं, वह औनलाइन बुकिंग के लिए विभागीय वैबसाइट https://agriculture.up.gov.in पर बुकिंग करें. लिंक पर क्लिक कर औनलाइन बुकिंग कर सकते हैं.
उपनिदेशक कृषि, अशोक कुमार ने बताया कि औनलाइन टोकन कन्फर्म करने के बाद किसान को चालान के माध्यम से अथवा औनलाइन किसान अंश की धनराशि एक सप्ताह के भीतर किसी भी भारतीय बैंक की शाखा में जमा करनी होगी, अन्यथा किसान का चयन स्वतः निरस्त हो जाएगा.

उन्होंने यह भी जानकारी दी कि इस से सिंचाई के लिए बिना बिजली वाले इलाकों में प्रयोग किए जा रहे डीजल पंप अथवा दूसरे सिंचाई के साधनों को सोलर पंप में बदला जा सकेगा. इस के अलावा उन किसानों, जिन के ट्यूबवैल पर सोलर पंप लगाए जाएंगे, उन लाभार्थियों के ट्यूबवैल पूर्व से लगे बिजली के कनैक्शन काट दिए जाएंगे और जिन किसानों के ट्यूबवैल पर सोलर पंप की सुविधा दी जाएगी, ऐसे लाभार्थियों को भविष्य में भी उस बोरिंग पर बिजली का कनैक्शन नहीं दिया जाएगा.

उन्होंने बताया कि 2 एचपी के लिए 4 इंच, 3 एवं 5 एचपी के लिए 6 इंच और 7.5 एवं 10 एचपी के लिए 8 इंच की बोरिंग होना अनिवार्य है. किसान को बोरिंग खुद ही करानी होगी. सत्यापन के समय उपयुक्त बोरिंग न पाए जाने पर टोकन मनी की धनराशि के लिए 2 एचपी सरफेस, 50 फुट तक की गहराई के लिए 2 एचपी सबमर्सिबल, 150 फुट तक की गहराई के लिए 3 एचपी सबमर्सिबल, 200 फुट तक की गहराई के लिए 5 एचपी सबमर्सिबल, 300 फुट की गहराई के लिए 7.5 एचपी और 10 एचपी सबमर्सिबल के सोलर पंप उपयुक्त होंगे

किसानों व पशुपालकों के लिए नई योजनाएं

चंडीगढ़: हरियाणा के कृषि एवं पशुपालन मंत्री जेपी दलाल ने कहा कि प्रदेश में किसानों व पशुपालकों की आय बढ़ाने व उन की जिंदगी में खुशहाली लाने के लिए नईनई योजनाएं लागू की जा रही हैं. किसानों व पशुपालकों को इन योजनाओं का लाभ उठाना चाहिए. साथ ही, उन्होंने किसानों से इफको द्वारा तैयार नैनो यूरिया व डीएपी का ड्रोन के माध्यम से प्रयोग करने व जहर मुक्त खेती करने का आह्वान किया.

उन्होंने आगे कहा कि ड्रोन से छिड़काव के लिए किसान को महज सौ रुपए प्रति एकड़ देना होगा, बाकी का खर्चा सरकार उठाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि गौवंश की रक्षा को ले कर प्रदेश सरकार प्रतिबद्ध है,

इसी के चलते गौ सेवा आयोग का बजट 40 करोड़ रुपए से बढ़ा कर 400 करोड़ रुपए किया गया है.

कृषि एवं पशुपालन जेपी दलाल भिवानी के गांव मिताथल, तिगड़ाना, बिधवान और सोहासंड़ा गौशालाओं में आयोजित कार्यक्रमों को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे. गांव तिगड़ाना व सोहासंड़ा गौशाला में उन्होंने 11 लाख रुपए और मिताथल गौशाला में एक ट्रैक्टर देने की घोषणा की.

कृषि मंत्री जेपी दलाल ने गांव बिधवान गौशाला में 11 लाख रुपए और एक पानी का टैंकर देने की घोषणा की और कहा कि सरकार का हर संभव प्रयास है कि किसान और पशुपालकों की जिंदगी खुशहाल हो और उन के परिवार में समृद्धि आए. इस के लिए सरकार द्वारा पशुपालन, बागबानी और मछलीपालन में सब्सिडी पर आधारित अनेक योजनाएं हैं, जिन का किसानों व पशुपालकों को फायदा उठाना चाहिए.

पशुपालन मंत्री जेपी दलाल ने कहा कि जल्दी ही पशुओं के लिए भी एंबुलैंस सेवा शुरू होगी. इस के लिए सरकार ने 70 गाड़ियों की खरीद कर ली है और 130 की जल्दी ही खरीद की जाएगी. यह सेवा शुरू होने के बाद पशुओं के जख्मी होने या अत्यधिक बीमार होने की स्थिति में महज एक फोन से पशु चिकित्सक मौके पर जा कर बीमार या जख्मी पशु का उपचार करेंगे.

कृषि मंत्री जेपी दलाल ने अपने संबोधन में कहा कि भारत निरंतर तरक्की पर है. भारत ने अपनी खोई साख व प्रतिष्ठा को फिर से हासिल किया है. आज हम आत्मनिर्भर बन रहे हैं.

नवाचारी किसानों के लिए आवेदन आमंत्रित

नई दिल्ली: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली किसानों के नवाचारों को महत्व देता है और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए हर साल पूसा कृषि विज्ञान मेले में तकरीबन 25-30 उन्नतशील किसानों को उन के नवाचार सृजन और प्रसार में उत्कृष्ट योगदान के लिए भाकृअनुसं-नवोन्मेषी किसान और भाकृअनुसं-अध्येता किसान पुरस्कारों से सम्मानित करता है.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने साल 2024 के भाकृअनुसं-नवोन्मेषी किसान और भाकृअनुसं-अध्येता किसान पुरस्कारों के लिए योग्य नवोन्मेषी किसानों से आवेदन आमंत्रित किया है, जिन्हें फरवरी, 2024 के अंतिम सप्ताह के दौरान आयोजित होने वाले पूसा कृषि विज्ञान मेले में प्रदान किया जाएगा.

ऐसे करें आवेदन

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने अपनी औफिसियल वैबसाइट पर पुरस्कारों के लिए विस्तृत रूप से दिशानिर्देश जारी करते हुए हिंदी और अंगरेजी में आवेदन फार्म वैबसाइट पर अपलोड किया है. यहां से कोई भी किसान आवेदनपत्र के प्रारूप को पूरी तरह भर कर संबंधित साक्ष्यों और दस्तावेजों के साथ पासपोर्ट साइज फोटो संलग्न कर सक्षम अधिकारियों द्वारा अनुशंसित आवेदनपत्र 7 फरवरी, 2024 तक डा. रबींद्र नाथ पड़ारिया, संयुक्त निदेशक (प्रसार), भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली-110012 ईमेल: jd_extn@iari.res.in पर दे सकते हैं या कार्यालय के फोन नंबर 011-25842387 पर जानकारी ले सकते हैं.

इन निर्देशों को ध्यान में रख कर करें आवेदन:

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने आवेदनपत्र भेजने के लिए जो गाइडलाइन जारी की है, उस के अनुसार वे किसान, जिन्हें पहले भाकृअनुसं-नवोन्मेषी किसान पुरस्कार मिल चुका है, उन्हें इस पुरस्कार के लिए दोबारा नहीं चुना जाएगा. लेकिन वे किसान भाकृअनुसं-अध्येता किसान पुरस्कार के लिए आवेदन कर सकते हैं. ऐसे किसानों के लिए आवेदन के लिए इस में कम से कम 1 साल का अंतराल अवश्य होना चाहिए.

अगर कोई किसान दोनों पुरस्कारों के लिए आवेदन करना चाहता है, उसे दोनों पुरस्कारों के लिए अलगअलग उपयुक्त आवेदन भर कर भेजना होगा. जिन किसानों का चयन पुरस्कार के लिए किया जाएगा, उन्हें पुरस्कार वितरण समारोह में भाग लेने के लिए सूचना यथासमय दी जाएगी.

जो किसान भाकृअनुसं-नवोन्मेषी किसान या भाकृअनुसं-अध्येता किसान पुरस्कार के लिए कर रहे हैं, उन्हें पूरी तरह से भरे हुए आवेदनपत्र सक्षम अनुशंसा प्राधिकारी द्वारा अग्रेषित और अनुशंसित कराना होगा. ऐसा न होने पर आवेदनपत्र निरस्त माना जाएगा.

किसान अपना आवेदन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों के निदेशक, राज्य कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति या निदेशक प्रसार, निदेशक, अटारी, भाकृअनुप, राज्य सरकार के कृषि, बागबानी, पशुपालन, मात्स्यिकी, रेशम विभागों के निदेशक या अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केंद्र से अग्रेषित और अनुशंसित करा कर ही भेजें.

उपरोक्त प्राधिकारी अपने कार्यक्षेत्र से योग्य किसानों के लिए प्रपत्र के अनुसार भरा हुआ, साक्ष्यांकित दस्तावेजों सहित नामांकन (ईमेल अथवा हार्ड कौपी) भेज सकते हैं.

ईमेल से भेजी जाने वाली स्थिति में मूल हस्ताक्षरित दस्तावेजों की स्कैन कौपी साथ में संलग्न करें.

कड़ाके की ठंड में फसल में कीट व बीमारियां

बस्ती: कड़ाके के ठंड में मौसम परिवर्तन हो रहा है, ऐसी स्थिति में फसलों में कीट व बीमारियों के प्रकोप की संभावना बढ़ गई है. इस समय किसान अपने फसल की नियमित निगरानी करते रहें. उक्त जानकारी उपकृषि निदेशक (कृषि रक्षा) ने दी. उन्होंने बताया कि राई, सरसों में माहू कीट का प्रकोप अगर माली नुकसान स्तर (05 फीसदी प्रभावी पौधे) से अधिक हो, तो अजादिरैक्टिन 0.15 फीसदी ईसी की मात्रा 2.5 लिटर या डाईमेथोएट 30 फीसदी ईसी 01 लिटर अथवा औक्सीडिमेटान मिथाइल ओडिमेटान 25 फीसदी ईसी की मात्रा 01 लिटर को प्रति हेक्टेयर की दर से 500 से 600 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

उन्होंने आगे बताया कि आलू की फसल में अगेती, पछेती झुलसा, सरसों में आल्टरनेरिया झुलसा, मटर में पाउड्री मिल्ड्यू आदि फफूंदीजनित रोगों के नियंत्रण के लिए ट्राईकोडर्मा हारजेनियम 2 फीसदी डब्ल्यूपी 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 400 से 500 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें अथवा कौपर औक्सीक्लोराइड 50 फीसदी डब्ल्यूपी 3 किलोग्राम या मैंकोजेब 75 फीसदी डब्ल्यूपी 2 किलोग्राम या जिनेब 75 फीसदी डब्ल्यूपी 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

उन्होंने यह भी जानकारी दी कि किसान फसल की सुरक्षा के लिए औनलाइन व्यवस्था सहभागी फसल निगरानी एवं निदान प्रणाली (पीसीएसआरएस) के तहत मोबाइल नंबर 9452247111 व 9452257111 पर व्हाट्सएप अथवा संदेश के माध्यम से अपनी समस्या भेज कर तत्काल समाधान प्राप्त कर सकते हैं.