Cold Room : शीतलन कक्ष – ग्रामीण क्षेत्रों में फलसब्जी भंडारण

Cold Room | फलों और सब्जियों में पानी की मात्रा अधिक यानी 70-90 फीसदी होने के कारण तोड़ाई के बाद वे जल्दी खराब होने लगते हैं, जिस से तकरीबन कुल उत्पादन का 20-25 फीसदी भाग इस्तेमाल से पहले बेकार हो जाता है. यदि इन फलसब्जियों को खेत से तोड़ाई के बाद ठंडी जगहों पर स्टोर किया जाए, तो इन में होने वाली जैविक क्रियाएं मंद पड़ जाएंगी और ये काफी समय तक खाने लायक बने रहेंगे.

फलों व सब्जियों को खेत पर सुरक्षित रखने के लिए किसानों के पास मौजूद ईंटों, रेती, बांस, खसखस की टाटी और प्लास्टिक की चादरों से भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित शून्य ऊर्जा शीतलन कक्ष का निर्माण कर के यह काम आसानी से किया जा सकता है.

फलों और सब्जियों पर ज्यादा तापमान का प्रभाव :

* अधिक तापमान के कारण फलों व सब्जियों की सतह से पानी भाप के रूप में निकल जाता है, जिस से उन की ताजगी खत्म हो जाती है और वजन में कमी आ जाती है.

* फलों व सब्जियों में पानी की मात्रा अधिक होने के कारण सूक्ष्म जीवों के प्रभाव से उन में सड़न पैदा हो जाती है.

* बाहरी वातावरण के प्रभाव से फलों व सब्जियों की गुणवत्ता में कमी, ताजगी व ग्राहक आकर्षण में गिरावट आ जाती है और कच्चे तोडे़ गए फलों में स्वाद व रंग का विकास नहीं हो पाता है.

शून्य ऊर्जा शीतलन कक्ष की उपयोगिता : शून्य ऊर्जा शीतलन कक्ष को ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के घरेलू उपयोग से ले कर फार्म उत्पादों को स्टोर करने और सब्जी व फल बेचने वालों के यहां बची सब्जियों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के काम में लिया जा सकता है.

घरेलू इस्तेमाल के लिए : अमूमन ऊर्जा शीतलन कक्ष का तापमान गरमी में बाहरी वातावरण से 6-8 डिगरी सेल्सियस तक कम रहता है, इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां घरेलू खाद्य सामग्री को रखने के लिए रेफ्रिजरेटर की सुविधा नहीं है, वहां परिवार की खाद्य सामग्री जैसे दही, दूध, छाछ, सब्जियां व फल शीतलन कक्ष में रखे जा सकते हैं, जिस से इन उत्पादों को अधिक समय तक खाने योग्य रखा जा सकता है.

फार्म के इस्तेमाल के लिए : ऐसे छोटे किसान जिन का दैनिक सब्जी व फल उत्पादन काफी कम होता है, वे अपने उत्पादों को मंडी तक ले जाने के खर्च से बचने के लिए ग्रामीण बाजार में औनेपौने दामों पर बेच देते हैं. इस प्रकार के किसान रोजाना फलों और सब्जियों को तोड़ कर शीतलन कक्ष में भंडारित कर के 3-4 दिनों में 1 बार बाजार जा कर उन सब्जियों व फलों को बेच कर अधिक लाभ कमा सकते हैं.

फुटकर व्यापारियों के लिए : फुटकर दुकानदार दिनभर अपनी सब्जियों व फलों को बेचते हैं. अधिक तापमान के कारण सब्जियां व फल शाम तक काफी खराब हाने लगते हैं. अगर शाम को बचे हुए फलों व सब्जियों को ऊर्जा शीतलन कक्ष में भंडारित कर के रखा जाए तो अगले दिन वे बाहर रखे उत्पादों से काफी अच्छी अवस्था में बने रहते हैं, जिस से दुकानदार को अच्छा बाजार भाव मिलता है.

एक ही जगह दुकान व टोकरा लगा कर बेचने वाले फल व सब्जी विक्रेता को तो केवल नमूने के तौर पर फलों व सब्जियों को बाहर रखना चाहिए. अतिरिक्त उत्पाद को शीतलन कक्ष में रखने से काफी लाभ होता है, इस से फल व सब्जियां लंबे समय तक बिलकुल खराब नही होते हैं.

ऊर्जा शीतलन कक्ष का निर्माण : फल व सब्जी को सुरक्षित रखने के लिए शून्य ऊर्जा सेंटीमीटर शीतलन कक्ष का निर्माण हवादार और छायादार खुले स्थान पर करना चाहिए. ईंटों को जमा कर 165 सेंटीमीटर×115 सेंटीमीटर आकार के एक आयाताकार चबूतरे का निर्माण करना चाहिए, ईंटों के मध्य स्थान में बालूरेत भर देनी चाहिए और दोनों दीवारों के मध्य 7-8 सेंटीमीटर तक का स्थान जरूर रखना चाहिए, जिस में बाद में नदी की रेत भरी जाती है.

दोहरी दीवार की ऊंचाई 60 से 65 सेंटीमीटर तक रखनी चाहिए, ताकि किसी भी सामग्री को आसानी से रखा व निकाला जा सके. आवश्यकतानुसार इस की लंबाई में कुछ बदलाव तो किया जा सकता है, पर चौड़ाई उतनी ही रखनी चाहिए, जिस से ठंडक भी ठीक बनी रहे और फलों व सब्जियों की टोकरियों को निकालने व रखने में आसानी रहे.

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ईंटों की दीवार बनाने के लिए चिकने गारे या हलकी सीमेंटबजरी के मिश्रण का इस्तेमाल करना चाहिए. मध्य के खाली स्थान में नदी की रेत कंकरीट के साथ भरनी चाहिए. ऊपर का ढक्कन बांस, बोरी, घास जवसा व खसखस से बनी टाटी का होना चाहिए. इस ढक्कन की लंबाई और चौड़ाई पूरे भंडारण कक्ष से थोड़ी ज्यादा होनी चाहिए.

लगातार पानी की पूर्ति के लिए 15-20 लीटर की कूवत के मटके, जिस पर नल लगा हो, को 3 लकडि़यों के सहारे से जमीन से 6-7 फुट की ऊंचाई पर लगाना चाहिए. नल को एक पाइप द्वारा ईंटों के मध्य भाग से जोड़ना चाहिए और पाइप पर 15-15 सेंटीमीटर की दूरी पर बारीक छेद कर देने चाहिए, जिस से जल का रिसाव बूंदबूंद कर होता रहे. अधिक गरमी के दिनों में दिन में 2-3 बार रेत व ढक्कन को तर करना होता है.

फल व सब्जी का भंडारण : फलों और सब्जियों को 10-15 किलोग्राम कूवत की अलगअलग बांस की टोकरियों में भर कर रखना चाहिए. हर टोकरी को गीली टाट से ढकना चाहिए. टोकरियों की संख्या अधिक हो तो लकड़ी की तिपाइयों का इस्तेमाल करना चाहिए. उस के बाद कक्ष के ढक्कन को अच्छी तरह से तर कर के ढक देना चाहिए. ढक्कन को दिन में 3 से 4 बार अच्छी तरह से गीला करना चाहिए. जहां तक संभव हो ढक्कन को बारबार नहीं खोलना चाहिए.

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शीतलन का सिद्धांत : शीतलन कक्ष वाष्पीकरण के लिए आवश्यक गुप्त ऊष्मा के सिद्धांत पर आधारित है.

इस में जब गरम हवाएं शीतलन कक्ष की बाहरी सतह से टकराती हैं, तो सतह पर जमा नमी का वाष्पीकरण होता रहता है और वाष्पीकरण के लिए आवश्यक गुप्त ऊष्मा कक्ष के भीतरी भाग से पहुंचती है, जिस से अंदर का तापमान गरमी में बाहरी तापमान से 6-8 डिगरी सेल्सियस कम रहता है और आर्द्रता अंश तकरीबन 85-90 फीसदी तक रहता है, जो उष्ण व उपोष्ण फलों व सब्जियों के सुरक्षित भंडारण के लिए सहायक है.

सर्दी में जब तापमान कम हो जाता है, तो कक्ष का तापमान बाहरी तापमान से लगभग 4-6 डिगरी सेल्सियस तक ज्यादा रहता है. ऐसे में फलों और सब्जियों को भीषण सर्दी के प्रकोप से भी बचाया जा सकता है.

शून्य ऊर्जा शीतलन कक्ष में आमतौर पर गरमी में तापमान 26 डिगरी सेल्सियस से 38 डिगरी सेल्सियस के मध्य रहता है और आपेक्षिक आर्द्रता 70-90 फीसदी तक पाई जाती है. इन हालात में भी पत्तेदार सब्जियों जैसे पालक, धनिया, चौलाई व सलाद को 2-3 और दूसरे फलों व सब्जियों को 7-15 दिनों तक बिना गुणवत्ता हानि के सुरक्षित भंडारित रखा जा सकता है.

* अधिक नमी होने के कारण सब्जियों व फलों की बाहरी सतह से पानी का नुकसान नहीं होने से फलों व सब्जियों का भार व ताजगी बनी रहती है.

* कम तापमान व ज्यादा नमी के कारण सूक्ष्म जीवों की क्रियाविधि में कमी होने से फलों व सब्जियों में सड़न नहीं होती है.

* कम पके फलों को शीतलन कक्ष में रखने से उन के स्वाद और रंग का विकास भी अच्छा होता है.

Masala Peanut : मूंगफली और बेसन का चटकारेदार स्वाद

Masala Peanut |मूंगफली खाने में सब से अच्छी होती है. लोगों को इस को हर रूप में खाना पसंद आता है. ज्यादातर नमकीनों में मूंगफली का प्रयोग किया जाता है. मूंगफली के प्रयोग से नमकीन का स्वाद बढ़ जाता है. यह सेहत के लिए भी अच्छी होती है.

मूंगफली के बढ़ते हुए प्रयोग को देखते हुए अब केवल मूंगफली को ले कर प्रयोग होने लगे हैं. इस को मूंगफली नमकीन, मसाला पीनट जैसे कई नामों से जाना जाता है. यह छोटे और बड़े हर तरह के पैकेट में मिलता है. अच्छी क्वालिटी की मूंगफली, बेसन और मसालों के प्रयोग से यह बहुत टेस्टी बन जाता है. इस को रोजगार का जरीया भी बनाया जा सकता है.

देश में मूंगफली की खेती बडे़ पैमाने पर होती है. मूंगफली के बढ़ते प्रयोग से इस के किसानों का मुनाफा बढ़ता है. मूंगफली को ‘गरीबों का मेवा’ कहा जाता है. खासकर जाड़ों में इस को खाना बहुत गुणकारी होता है.

मूंगफली के इन गुणों के कारण ही मिठाई से ले कर नमकीन तक में इस का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है. मसाला पीनट मूंगफली नमकीन का बदला हुआ रूप है. करीबकरीब पूरे देश में यह मिलता है. ऐसे में यह किसान और उपभोक्ता दोनों के लिए हितकारी है.

इसे बडे़ पैमाने पर बना कर रोजगार का जरीया भी बनाया जा सकता है. अगर माइक्रोवेव का प्रयोग नहीं करना चाहते हैं, तो मसाला लगे मूंगफली के दानों को तेल में हलका सा फ्राई कर लीजिए. ध्यान रहे कि मसाला जलने न पाए.

अगर मसाला जल गया तो इस का स्वाद अच्छा नहीं होगा. इस के साथ यह देखना भी बहुत जरूरी है कि जिस मूंगफली का प्रयोग किया जा रहा हो, उस की क्वालिटी बहुत अच्छी हो, खराब किस्म की मूंगफली के दाने स्वाद को खराब करते हैं.

बनाने की विधि : सब से पहले बेसन को किसी बड़े प्याले में डाल कर उस में नमक, लाल मिर्च पाउडर, गरम मसाला, धनिया पाउडर, अमचूर पाउडर, बेकिंग सोडा और हींग डाल कर अच्छी तरह मिला दीजिए. थोड़ा अमचूर पाउडर बचा कर रख लीजिए. इस का प्रयोग बाद में करेंगे.

मूंगफली के दाने जिस बरतन में भरे हैं, उस में इतना पानी भर दीजिए कि मूंगफली के दाने पानी में डूब जाएं और तुरंत छलनी से छान कर पानी हटा दीजिए. ध्यान रखें कि मूंगफली के दाने सिर्फ गीले होने चाहिए. मूंगफली के गीले दाने बेसन मसाला मिक्स में डाल कर मिक्स कीजिए. देख लीजिए कि बेसन मसाला मूंगफली के दाने के ऊपर अच्छी तरह कोट हो जाए. अगर बेसन सूखा बचा हुआ है, तो 1-2 छोटे चम्मच पानी छिड़कते हुए डाल कर मिला दीजिए, ताकि सारा बेसन और मसाले मूंगफली के दानों पर कोट हो जाएं. अब तेल डाल कर मूंगफली के दानों में मिला दीजिए.

माइक्रोवेव सेफ  ट्रे ले लीजिए और मसाला मिले मूंगफली के दाने ट्रे में अलगअलग करते हुए फैला दीजिए. ट्रे को माइक्रोवेव में रखिए और अधिकतम तापमान पर 4 मिनट माइक्रोवेव में गरम कीजिए. ट्रे को बाहर निकालिए और दानों को पलट दीजिए, अलगअलग कर दीजिए. ट्रे को फिर से माइक्रोवेव में रख दीजिए और 1 मिनट और माइक्रोवेव में गरम कर लीजिए. ट्रे को बाहर निकालिए. मसाला पीनट बन चुके हैं.

मसाला पीनट में चाट मसाला डाल कर मिला दीजिए. अगर आप महसूस करें कि अभी मसाला पीनट पूरी तरह से कुरकुरे नहीं हुए हैं, तो उन्हें 1 मिनट और माइक्रोवेव में गरम कर लीजिए.

मसाला पीनट को पूरी तरह ठंडा होने के बाद एयर टाइट कंटेनर में भर कर रख दीजिए. अगर आप मसाला पीनट में तेल नहीं डालना चाहें, तो न डालें. बिना तेल के भी मसाला पीनट अच्छे बनते हैं, लेकिन तेल डालने से मसाला पीनट का रंग और स्वाद दोनों ही बढ़ जाते हैं.

मसाला पीनट बनाने के लिए सामग्री : मूंगफली के दाने 1 कप, बेसन आधा कप, नमक स्वादानुसार, लाल मिर्च पाउडर  स्वादानुसार, आधा चम्मच गरम मसाला, आधा चम्मच चाट मसाला, आधा चम्मच धनिया पाउडर, आधा छोटा चम्मच अमचूर पाउडर, बेकिंग सोडा 2 चुटकी, हींग 1 चुटकी

Home Garden : बागबानी से महकाएं घरद्वार

Home Garden | बागबानी का शौक हर किसी को होता है. यह शौक पूरा करने के लिए कुछ समय तो देना ही पड़ता है. हम अगर पूरे बाग को रंगबिरंगे फूलों से सजाएं, तो हमें पेड़पौधों और गमलों का ध्यान तो रखना ही पड़ेगा. ऐसा नहीं है कि सिर्फ 4-5 पौधे लगाए और पूरा बाग सज गया या सिर्फ गमले के बीच में पानी भर दिया तो हो गई बागबानी.

बाग लगाने के लिए उस की देखरेख भी जरूरी है. जरूरत पड़ने पर उस में खादों और कीटनाशकों का भी प्रयोग किया जाता है. किस तरह के बीज बोएं  कितनी धूप दिखाएं  कितना पानी और उर्वरक दें. बागबानी में इन सब बातों का ध्यान रखना पड़ता है.

बरसात के मौसम में जहां बालसम, गमफरीना, नवरंग व मुर्गकेश वगैरह के पौधे लगाए जा सकते हैं, तो वहीं सर्दी के मौसम में पैंजी, पिटुनिया, डहेलिया, गेंदा व गुलदाऊदी वगैरह के पौधे लगाए जा सकते हैं. इन के अलावा बारहमासी फूलों के पौधे जैसे गुड़हल, रात की रानी व बोगनवेलिया वगैरह भी लगाए जा सकते हैं. यह जरूरी नहीं है कि आप ढेरों पौधे लगाएं. आप उतने ही पौधे लगाएं, जिन की देखरेख आसानी से कर सकते हैं.

रंगबिरंगे फूल जो सितंबर से नवंबर तक खिलते हैं, वे कई तरह के होते हैं. उन में सेवंती और गेंदे के ढेर सारे विकल्प होते हैं. सितंबर से ले कर नवंबर के शुरुआती दिनों तक कभी भी इन्हें लगा सकते हैं.

यदि सिर्फ फूल वाले पौधे लगाना चाहते हैं, तो पिटूनिया, सालविया, स्वीट विलियम, स्वीट एलाइसम, चायना मोट, जीनिया, गुलमेहरी, गमफरीना, सूरजमुखी और डहेलिया जैसे पौधे चुन सकते हैं और यदि सजीले पौधों से बगीचे को सजाना है, तो कोलियस और इंबेशन लगाना बेहतर होगा.

कुछ पौधे जैसे मनीप्लांट, कैक्टस और ड्राइसीना इनडोर प्लांट हैं यानी हम ये पौधे छांव में, कमरे में या कहीं भी लगा सकते हैं. इन सब में मनीप्लांट आसानी से मिलने वाला, हमेशा हराभरा रहने वाला पौधा है. इस के हरे पत्तों पर हलके हरेसफेद धब्बे सुंदर लगते हैं.

ऐसा ही एक और इनडोर पौधा है कैक्ट्स. इस कांटेदार पौधे की भी देखभाल करनी पड़ती है. इसे लगाते समय मिट्टी में नीम की खली, गोबर की खाद और रेत बराबर मात्रा में मिलानी चाहिए. इसे काफी कम पानी देना पड़ता है. हर साल पौधे को निकाल कर उस की सड़ी जड़ें काट देनी चाहिए और फिर से गमले में लगा देना चाहिए. बहुत तेज धूप होने पर या तेज बरसात में पौधों को छाया में ही रखना बेहतर होता है. अपने समय में इन में फूल आते हैं, जिन की खूबसूरती देखते ही बनती है.

गेंदे के पौधे साल में 3 बार नवंबर, जनवरी और मईजून में लगा सकते हैं. इस तरह पूरे साल गेंदे के फूल मिल सकते हैं. यह कीड़ों से सुरक्षित रहता है. गेंदे की कई किस्में होती हैं, जैसे हजारा गेंदा, मेरी गोल्ड, बनारसी या जाफरानी.

यदि इस के फूलों को सुखा कर रख लें तो हम इस से अगली बार पौधे तैयार कर सकते हैं. असल में सूखा हुआ फूल बीज के लिए तैयार हो जाता है.

दूसरा फूल है गुड़हल का. इसे सितंबर से अक्तूबर में लगाना चाहिए. गुड़हल कई रंगों का होता है जैसे लाल, गहरा लाल, गुलाबी, बैगनी, नीला वगैरह. समयसमय पर इस में खाद डालते रहना चाहिए. इस की नियमित सिंचाई भी जरूरी है.

एक खूबसूरत सा पौधा है सूरजमुखी. इस के कई साइज होते हैं. बड़ा सूरजमुखी गोभी के फूल से भी बड़ा होता है. इस के बीजों से तेल भी निकाला जाता है. छोटा सूरजमुखी ढेर सारे पीले फूल देता है. इसे अप्रैल में लगाना चाहिए. यह घरों में बगीचे की शान बढ़ाता है.

एक और सुंदर दिखने वाला पौधा है जीनिया. यह 3 किस्मों में मिलता है. इस की छोटी किस्म पर्सियन कारपेट कहलाती है. इसे अगस्त या सितंबर में लगाना चाहिए ताकि इसे बरसाती कीड़ों से बचाया जा सके. इस के कागज जैसे रंगीन फूल पौधे पर कभी नहीं सूखते हैं.

एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण पौधा है तुलसी. यह तकरीबन हर घर में मिलता है. इस की 3 किस्में होती हैं रामा तुलसी, श्यामा तुलसी और बन तुलसी. इसे साल में कभी भी लगा सकते हैं. यह औषधीय गुणों का वाला पौधा है. यह वातावरण को शुद्ध रखता है. इस की पत्तियों को चबाने से अनगिनत बीमारियों से बचा जा सकता है.

एक और पौधा है डहेलिया. डहेलिया को क्यारियों और गमलों दोनों में उगाया जा सकता है. इसे उगाने के लिए पूरी तरह खुला स्थान चाहिए, जहां कम से कम 4 से 6 घंटे तक धूप आती हो.

पौधा लगाने की विधि

पौधा लगाने की सब से अच्छी विधि कटिंग द्वारा पौधा तैयार करना है. पुराने पौधों की शाखाओं के ऊपरी भाग से 8 सेंटीमीटर लंबी कटिंगें काट लें. उन को मोटी रेत या बदरपुर में 2 इंच की दूरी पर, डेढ़ इंच गहराई में लगाएं. लगाने के बाद 3 दिनों तक कटिंग लगाए गए गमलों को छायादार जगह पर रखें. उन से 15 दिनों के बाद जड़ें निकल आती हैं. इस के बाद ही इन्हें 10 से 12 इंच के गमलों में लगाते हैं. ये पौधे ज्यादा धूप या पानी से मुरझा जाएंगे, लिहाजा इस बात का खास ध्यान रखें.

यदि पौधों को गमलों में उगाना है, तो गमलों में 3 हिस्से मिट्टी व 1 भाग गोबर की खाद मिला कर भर दें. गमले का ऊपरी हिस्सा कम से कम 1 से डेढ़ इंच खाली रखें, जिस से पानी के लिए जगह मिल सके. 1 गमले में 1 ही पौधा रोपें. पौधे रोपने के तुरंत बाद पानी देना चाहिए. यदि पौधे क्यारी में लगाने हों, तो उन्हें 40-50 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपें. क्यारी को 10-12 इंच गहरा खोद लें. इस के बाद 100 ग्राम सुपर फास्फेट, 100 ग्राम सल्फेट पोटेशियम, 25 ग्राम मैग्नेशियम सल्फेट प्रति वर्गमीटर क्षेत्र के हिसाब से दें. साथ ही फूलों में चमक लाने के लिए खड़ी फसल में 1 चम्मच मैग्नेशियम सल्फेट को 10 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

क्यारियां कंकड़पत्थर रहित होनी चाहिए. क्यारियों की मिट्टी में 5 किलोग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से गोबर की खाद जरूर मिलानी चाहिए.

अगर आप डहेलिया को गमलों में उगाना चाहते हैं, तो गमले कम से कम 12 से 14 इंच के लें. मिट्टी व गोबर की खाद की बराबर मात्रा को गमलों में भर दें. गमले पूरी तरह मिट्टी से न भरें. उन का ऊपरी हिस्सा कम से कम 2 से ढाई इंच खाली होना चाहिए, जिस से गमलों में पानी के लिए जगह रहे.

गरमी पड़ने पर हफ्ते में 2 बार पानी देने की जरूरत होती है. सर्दी के मौसम में 8 से 10 दिनों के अंतर पर पौधों को पानी देना चाहिए.

नरवाई जलाने (Burning Stubble) से नुकसान

Burning Stubble |फसल काटने के बाद तने के जो अवशेष बचे रहते हैं, उन्हें नरवाई कहते हैं. पिछले सालों का तजरबा रहा है कि किसान फसल कटाई के बाद फसल अवशेष नरवाई को जला देते हैं. इस से आग लगने के हादसों के डर के साथसाथ भूमि में मौजूद सूक्ष्म जीव जल कर खत्म हो जाते हैं और जैविक खाद का निर्माण बंद हो जाता है.

हम खेतों की मिट्टी को सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखें, तो हमें मिट्टी में बहुत से सूक्ष्म जीव नजर आते हैं, जो नरवाई को जलाने से मर जाते हैं. फसलों के गिरते उत्पादन और किसानों को हो रहे घाटे के पीछे नरवाई जलना खास वजह है.

नरवाई को खेत में मिलाने के लाभ

* खेत में जैव विविधता बनी रहती है. जमीन में मौजूद मित्र कीट शत्रु कीटों को खा कर नष्ट कर देते हैं.

* जमीन में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है, जिस से फसल उत्पादन ज्यादा होता है.

* दलहनी फसलों के अवशेषों को जमीन में मिलाने से नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है, जिस से फसल उत्पादन भी बढ़ता है.

* किसानों द्वारा नरवाई जलाने के बजाय भूसा बना कर रखने पर जहां एक ओर उन के पशुओं के लिए चारा मौजूद होगा, वहीं अतिरिक्त भूसे को बेच कर वे आमदनी भी बढ़ा सकते हैं.

* किसान नरवाई को रोटावेटर की सहायता से खेत में मिला कर जैविक खेती का लाभ ले सकते हैं.

नरवाई जलने से नुकसान

* जमीन में जैव विविधता खत्म हो जाती है और सूक्ष्म जीव जल कर खत्म हो जाते हैं.

* जैविक खाद का निर्माण बंद हो जाता है.

* जमीन कठोर हो जाती है, जिस के कारण जमीन की जलधारण कूवत कम हो जाती है.

* पर्यावरण खराब हो जाता है और तापमान में बढ़ोतरी होती है.

* कार्बन से नाइट्रोजन व फास्फोरस का अनुपात कम हो जाता है.

* जीवांश की कमी से जमीन की उर्वरक कूवत कम हो जाती है.

* नरवाई जलाने से जनधन की हानि होने का खतरा रहता है.

* खेत की सीमा पर लगे पेड़पौधे जल कर खत्म हो जाते हैं.

आखिर क्या करें किसान

* नरवाई खत्म करने के लिए रोटावेटर चला कर नरवाई को बारीक कर के मिट्टी में मिलाएं.

* नरवाई को मिट्टी में मिला कर जैविक खाद तैयार करें, साथ ही स्ट्रारीपर का इस्तेमाल करें और डंठलों को काट कर भूसा बनाएं.

* भूसे का इस्तेमाल किसान अपने पशुओं को खिलाने के लिए करें और भूसा बेच कर अलग से आमदनी भी हासिल करें.

Deep Plowing : गरमी में करें खेत की गहरी जुताई

Deep Plowing | रबी और जायद की कटाई के बाद कुछ दिनों तक अधिकतर खेत खाली पड़े रहते हैं. इन खाली दिनों में खेतों की गहरी जुताई का बेहद महत्त्व है. गरमी की जुताई से अगली फसल को कई तरह के लाभ मिलते हैं. इस से फसल पर कीटों और रोगों का हमला कम होता है और उपज में इजाफा होता है.

गरमी की गहरी जुताई के फायदे

जीवांश खाद की प्राप्ति : गरमी के समय में रबी व जायद की फसल कट जाने के बाद खेत की जुताई करने से फसल के अवशेष डंठल व पत्तियां आदि भूमि में दब जाते हैं, जो बारिश के मौसम में सड़ कर जमीन को जीवांश पदार्थ मुहैया कराते हैं.

हानिकारक कीटों से बचाव: गरमी की जुताई से रबी या जायद की फसलों पर लगे हुए हानिकारक कीटों के अंडे व लार्वा, जो जमीन की दरारों में छिपे होते हैं, मईजून की तेज धूप से नष्ट हो जाते हैं. इस से खेत कीटपतंगों से सुरक्षित हो जाता है और अगली फसल में कीटों के हमले की संभावना कम हो जाती है.

मिट्टी रोगों से बचाव : गरमी की जुताई से खरपतवारों के बीज तेज गरमी से नष्ट हो जाते हैं. बाकी बचे बीज ज्यादा गहराई में पहुंच जाने से उन का अंकुरण नहीं हो पाता. नतीजतन खेत को खरपतवार से नजात मिल जाती है.

कीटनाशकों के प्रभाव से मुक्ति : रबी या खरीफ फसलों में इस्तेमाल किए गए कीटनाशकों व खरपतवारनाशकों का असर जमीन में गहराई तक हो जाता है. गरमी में जुताई कर देने से खेत में उन का प्रभाव खत्म हो जाता है. तेज धूप से ये जहरीले रसायन विघटित हो जाते हैं और उन का खेत में असर नहीं रह जाता है.

रासायनिक उर्वरकों का विघटन : खेत में इस्तेमाल किए गए रासायनिक उर्वरकों का 65 फीसदी हिस्सा अघुलनशील हालत में खेत में पड़ा रह जाता है, जो धीरेधीरे खेत को बंजर बनाता है. गरमी की जुताई से सूर्य की तेज धूप से ये रसायन विघटित हो कर घुलनशील उर्वरकों में बदल जाते हैं और अगली फसल को पोषण देते हैं.

मिट्टी में वायु संचार : बारबार ट्रैक्टर जैसे भारी वाहनों से जुताई व सिंचाई करने से मिट्टी के कणों के बीच का खाली स्थान कम हो जाता है, यानी खेत की मिट्टी सख्त व कठोर हो जाती है. इस से मिट्टी में हवा का आनाजाना रुक जाता है, जिस से उस की उर्वरता कम हो जाती है. गरमी की जुताई से मिट्टी की नमी खत्म होने लगती है और कणों के बीच का खाली स्थान बढ़ जाता है यानी पोली हो जाती है. इस से उस में हवा का आनाजाना होने लगता है, जो फसल की सेहत के लिए अच्छा होता है.

जलधारण कूवत का विकास : गरमी की जुताई से खेत की नमी काफी गहराई तक सूख जाती है. मिट्टी के सूराख खुल जाने से बारिश का पानी जमीन द्वारा सोख लिया जाता है, जिस से मिट्टी की जलधारण कूवत बढ़ जाती है व नमी काफी मात्रा में खेत में मौजूद रहती है. यह नमी खरीफ की फसल के उत्पादन में काम आती है.

कैसे करें गरमी की जुताई : गरमी के समय में खेत की जुताई खेत के ढाल के विपरीत करें. इस से बारिश का पानी ज्यादा से ज्यादा खेत द्वारा सोखा जाएगा. इस से जमीन का कटाव रोकने में भी मदद मिलेगी. हलकी व रेतीली जमीन में ज्यादा जुताई न करें, क्योंकि इस से मिट्टी भुरभुरी हो जाती है और हवा व बरसात से मिट्टी का कटाव बढ़ जाता है.

Convocation : पूसा में हुआ 63वां दीक्षांत समारोह

Convocation: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली का 63वां दीक्षांत समारोह पिछले दिनों 17 मार्च से 22 मार्च, 2025 को राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर (NASC) के भारत रत्न सी. सुब्रमण्यम हौल में आयोजित किया गया. इस दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री, शिवराज सिंह चौहान रहे.

इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि केंद्रीय राज्य मंत्री (कृषि एवं किसान कल्याण) भगीरथ चौधरी और राम नाथ ठाकुर थे. इस अवसर पर कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक देवेश चतुर्वेदी, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के कुलपति एवं निदेशक डा. सीएच श्रीनिवास राव, डीन एवं संयुक्त निदेशक (शिक्षा) डा. अनुपमा सिंह, संयुक्त निदेशक (अनुसंधान), संयुक्त निदेशक (प्रसार), परियोजना निदेशक डब्ल्यूटीसी, संयुक्त निदेशक (प्रशासन), आईसीएआर के पूर्व महानिदेशक और पूसा संस्थान के पूर्व निदेशक एवं डीन भी उपस्थित थे.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) कृषि अनुसंधान, शिक्षा और प्रसार में नवाचार और उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करने के लिए प्रसिद्ध है. हमारी पहल, रणनीतियां और नीतियां न केवल राष्ट्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सावधानीपूर्वक तैयार की गई हैं, बल्कि वैश्विक अवसरों का लाभ उठाने के लिए भी केंद्रित हैं.

हम उन्नत तकनीकों और उच्च स्तरीय मानव संसाधन के माध्यम से विज्ञान और समाज में प्रगति को प्राथमिकता देते हैं. आईएआरआई ने 12 से अधिक दशकों में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में अनुसंधान और शिक्षा के लिए उत्कृष्टता के एक प्रतिष्ठित केंद्र के रूप में अपनी पहचान बनाई है. पूसा संस्थान के शैक्षणिक कार्यक्रम की यात्रा साल 1923 में शुरू हुई थी और पिछले एक सदी से इस ने अपनी गौरवशाली परंपरा को बनाए रखा है.

पिछले साल स्नातकोत्तर विद्यालय का नाम बदल कर स्नातक विद्यालय किया गया था. अब तक, इस संस्थान ने कुल 11,731 छात्रों को डिग्रियां प्रदान की हैं, जिन में एसोसिएटशिप, एम.एससी., एम.टेक., और पीएच.डी. डिग्रियां शामिल हैं, साथ ही विभिन्न देशों के 512 अंतरराष्ट्रीय छात्रों को भी उपाधियां प्रदान की गई हैं. इस 63वें दीक्षांत समारोह के दौरान, कुल 399 छात्रों को उन की कड़ी मेहनत और सफलता के उपलक्ष्य में डिग्रियां प्रदान की गईं, जिन में 233 एम.एससी, 166 पीएच.डी, और 5 विदेशी छात्र शामिल हैं.

अनुसंधान की उपलब्धियां:

साल 2024 के दौरान, 10 विभिन्न फसलों में कुल 27 फसल किस्मों को विकसित और जारी किया गया. इन में 16 प्रजातियां और 11 संकर किस्में शामिल हैं.

आईसीएआर – आईएआरआई के द्वारा विकसित 10 जलवायु सहिष्णु और बायोफोर्टिफाइड फसल किस्मों को राष्ट्र को समर्पित किया गया. इन में 7 अनाज एवं मोटे अनाज, 2 दलहनी फसलें और 1 चारे की किस्म शामिल हैं.

Convocationआईएआरआई ने बासमती धान के उत्पादन और व्यापार में उत्कृष्ट योगदान दिया है, जिस में उन्नत किस्मों के विकास की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. पूसा बासमती किस्में, जैसे पूसा बासमती 1718, पूसा बासमती 1692, पूसा बासमती 1509 और जीवाणु झुलसा  व ब्लास्ट रोग प्रतिरोधी उन्नत बासमती किस्में पीबी 1847, पीबी 1885 और पीबी 1886, भारत से 5.2 मिलियन टन बासमती धान निर्यात में लगभग 90 फीसदी योगदान देती हैं. वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत को बासमती धान निर्यात से 48,389 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई है. वहीं, अप्रैल, 2024 से नवंबर, 2024 के दौरान बासमती धान निर्यात से 31,488 करोड़ रुपए की आय हुई है.

बासमती धान की खेती के कारण भूजल स्तर पर पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखते हुए, आईएआरआई ने दो शाकनाशी सहिष्णु बासमती धान किस्में, पीबी 1979 और पीबी 1985, विकसित और जारी की हैं. ये किस्में प्रत्यक्ष बीजाई के लिए उपयुक्त हैं, जिस से गिरते भूजल स्तर की समस्या और रोपाई में किए गए धान से उत्पन्न ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी.

इस के अलावा दो अल्पावधि गैरबासमती धान किस्में, पूसा 1824 और पूसा 2090 विकसित और जारी की गई हैं. ये किस्में फसल कटाई के बाद की कृषि गतिविधियों के लिए पर्याप्त समय प्रदान करेगी. इस से खेतों की समय पर सफाई में सहायता मिलेगी, जिस से पर्यावरण प्रदूषण कम होगा और सिंधु गंगा के मैदान में गेहूं की अगली फसल की समय पर बोआई सुनिश्चित हो सकेगी. वर्तमान में आईएआरआई के अनुसार गेहूं किस्मों की खेती लगभग 9 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में की जा रही है, जिस से देश के अन्न भंडार में लगभग 40 मिलियन टन गेहूं का योगदान हो रहा है.

हमारे अनुसंधान कार्यक्रम ने पोषण सुरक्षा पर भी ध्यान केंद्रित किया है और 8 बायोफोर्टिफाइड फसल किस्में विकसित की हैं. एक ब्रेड गेहूं (एच आई 1665) और एक ड्यूरम गेहूं एच आई-8840  अधिक आयरन और जिंक युक्त जो केंद्रीय क्षेत्र के लिए, दो ब्रेड गेहूं किस्में उच्च प्रोटीन (एच डी 3390 उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र के लिए और एच डी 3410 दिल्लीएनसीआर क्षेत्रों के लिए ), 2 बायोफोर्टिफाइड मक्का संकर, जिन में एक बहुपोषक संकर, पूसा बायोफोर्टिफाइड मक्का संकर 5 शामिल है, जिस में α-टोकोफेरौल (21.60 पीपीएम), विटामिन ए (6.22 पीपीएम), हाई लाइसिन ( 4.93 फीसदी )  और ट्रिप्टोफैन ( 1.01फीसदी ) की उच्च मात्रा है, 2 डबल जीरो (शून्य इरूसिक एसिड और ग्लूकोसिनोलेट) सरसों किस्में – पूसा सरसों 35 और पूसा सरसों 36, 1 सोयाबीन किस्म (पूसा 21), जो कि कुनीट्ज कुन्तिज ट्रिप्सिन इन्हिबीटर (KTI) की कम मात्रा वाली किस्म है.

येलो वेन मोजेक वायरस प्रतिरोधी और एनेशन लीफ कर्ल वायरस प्रतिरोधक भिंडी की दो किस्में पूसा भिंडी-5 और डीओएच-1 विकसित किस्में और जारी की गई हैं. ये किस्में कीटनाशकों के उपयोग को कम करने और खेती की लागत को घटाने में मदद करेगी.

संरक्षित खेती को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न सब्जी फसलों की उन्नत किस्में खीरा सीवी, पूसा पार्थेनोकार्पिक खीरा-6, पूसा पार्थेनोकार्पिक खीरा संकर-1, खरबूजा सीवी, पूसा सुनहरी और पूसा शारदा, टमाटर संकर पूसा रक्षित, पूसा चेरी टमाटर-1, करेला सीवी, पूसा संरक्षित करेला-2 और समर स्क्वैश सीवी, पूसा श्रेयस विकसित किस्में और जारी की गई हैं.

सब्जी फसलों की उन्नत गुणवत्ता वाली बीज उपलब्ध कराने के लिए, ब्रीडर बीज नियमित रूप से राष्ट्रीय बीज निगम और राष्ट्रीय बागबानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान को सप्लाई किए जा रहे हैं. वर्ष 2024-25 के दौरान, विभिन्न सब्जी किस्मों और संकरों के लिए 17 समझौता ज्ञापन निजी बीज कंपनियों के साथ हस्ताक्षरित किए गए हैं.

गेंदा की एक नई किस्म पूसा बहार और ग्लेडियोलस की मध्यम मौसम वाली किस्म पूसा सिंदूरी को केंद्रीय किस्म विमोचन समिति द्वारा जारी करने की सिफारिश की गई है. इस के साथ ही, देश में पहली बार, आम के दो बौने जड़वृक्ष पूसा मूलव्रंत-1 और पूसा मूलव्रंत-2 जारी किए गए हैं. ये जड़वृक्ष कलमी आम के पौधों की ऊंचाई को कम करने में सहायक होंगे और बागों के बेहतर प्रबंधन में मदद करेंगे.

आईसीएआर – आईएआरआई द्वारा छोटे किसानों के लिए 1.0  हेक्टेयर क्षेत्र का एकीकृत कृषि प्रणाली मौडल विकसित किया गया है, जिस में फसल उत्पादन, डेयरी, मछली पालन, बतख पालन, बायोगैस संयंत्र, फलदार वृक्ष और कृषि वानिकी को शामिल किया गया है. यह मौडल प्रति हेक्टेयर हर साल लगभग 3.8 लाख रुपए तक का शुद्ध लाभ उत्पन्न करने और 628 मानव दिवस का रोजगार सृजित करने की क्षमता रखता है.

यह प्रणाली अपशिष्ट पुनर्चक्रण और उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि इस में एक इकाई के उपउत्पादों को दूसरी इकाई के इनपुट के रूप में उपयोग किया जाता है, जिस से संसाधनों की दक्षता बढ़ती है.

इसी प्रकार से, आईसीएआर – आईएआरआई द्वारा सीमांत किसानों के लिए 0.4 हेक्टेयर क्षेत्र का एकीकृत कृषि प्रणाली मौडल विकसित किया गया है. इस मौडल में पौलीहाउस खेती, मशरूम उत्पादन, फसल उत्पादन और बागबानी एंटरप्राइज को शामिल किया गया है. यह मौडल 1.76 लाख रुपए प्रति एकड़ प्रति वर्ष तक का शुद्ध लाभ उत्पन्न करने की क्षमता रखता है.

आईसीएआर – आईएआरआई द्वारा विकसित पूसा एसटीएफआर मीटर एक कम लागत वाला, उपयोगकर्ता के अनुकूल, डिजिटल एंबेडेड सिस्टम और प्रोग्रामेबल उपकरण है. इस एक ही उपकरण के माध्यम से द्वितीयक और सूक्ष्म पोषक तत्वों सहित कुल 14 महत्वपूर्ण मृदा पैरामीटर का परीक्षण किया जा सकता है.

संस्थान द्वारा विकसित पूसा डिकंपोजर एक पर्यावरण अनुकूल और किफायती माइक्रोबियल समाधान है, जो फसल अवशेषों के इनसीटू और एक्ससीटू प्रबंधन के लिए प्रभावी है. यह खेत में ही फसल अवशेषों, विशेष रूप से पराली के तेजी से अपघटन को बढ़ावा देने के लिए विकसित किया गया है. कृषि अपशिष्ट को पौधों के पोषक तत्वों और ह्यूमस से भरपूर जैविक खाद में बदला जा सकता है. पूसा डिकंपोजर अब एक रेडी-टू-यूज पाउडर फार्मूलेशन में भी विकसित किया गया है, जो पूरी तरह से पानी में घुलनशील है और मशीन स्प्रेयर की मदद से आसानी से उपयोग किया जा सकता है.

आईसीएआर – आईएआरआई कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन वाली तकनीकों और इनपुट उपयोग दक्षता बढ़ाने वाली तकनीकों के विकास व पहचान पर कार्य कर रहा है, जिस से नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त किया जा सके. नीम तेल लेपित यूरिया के उपयोग से नाइट्रस औक्साइड (N₂O) उत्सर्जन में लगभग 9 फीसदी की कमी लाई जा सकती है.

इसी तरह, ओलियोरेसिन लेपित यूरिया के उपयोग से धान में मीथेन उत्सर्जन 8.4 फीसदी और नाइट्रस औक्साइड (N₂O) उत्सर्जन 11.3 फीसदी तक कम हुआ है. गेहूं में नाइट्रस औक्साइड (N₂O) उत्सर्जन में 10.6 फीसदी की कमी देखी गई है. डायरेक्ट सीडेड राइस न केवल कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन वाली तकनीक है, बल्कि इस में पानी उपयोग दक्षता भी अधिक होती है.

आईएआरआई उत्तर-पश्चिम भारत में धान और गेहूं की पराली जलाने की निगरानी और भारत में फसल अवशेष जलाने की स्थिति का रोजाना थर्मल सैटेलाइट रिमोट सैंसिंग के माध्यम से विश्लेषण करता है. धान और गेहूं जलाने की घटनाओं पर दैनिक बुलेटिन तैयार कर केंद्र एवं राज्य सरकार के हितधारकों को भेजे जाते हैं, ताकि वे आवश्यक नीतिगत और प्रशासनिक कदम उठा सकें.

पूसा फार्म सन फ्रिज, जिसे आईएआरआई द्वारा विकसित किया गया है, एक औफ ग्रिड, बिना बैटरी वाला सौर ऊर्जा चालित प्रशीतित एवं वाष्पीकरणीय शीतलन संरचना है. इस तकनीक का उद्देश्य कृषि क्षेत्रों में सौर ऊर्जा आधारित कोल्ड स्टोरेज प्रदान करना है, जिस से नाशवंत कृषि उत्पादों का भंडारण किया जा सके.

“पूसा मीफ्लाई किट” और “पूसा क्यूफ्लाई किट” तैयार उपयोग किट है, जो क्रमशः फलों और कुकुरबिट सब्जियों में फल मक्खी के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए विकसित की गई है. यह किट पराफेरोमोन इम्प्रेग्नेशन तकनीक का उपयोग कर के बैक्ट्रोसेरा प्रजाति की नर फल मक्खियों को आकर्षित और समाप्त करने में सक्षम है. एक बार लगाने पर, यह किट पूरे मौसम तक प्रभावी रहती है, जिस से फसल की गुणवत्ता एवं उत्पादन में वृद्धि होती है और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग को रोका जा सकता है.

“पूसा व्हाइटफ्लाई अट्रैक्टेंट” एक नवीन प्रलोभक (ल्यूर) है, जिसे खेतों और बागवानी फसलों में सफेद मक्खियों को आकर्षित करने के लिए विकसित और व्यावसायिक रूप से उपलब्ध कराया गया है. इसे पीले स्टिकी ट्रैप्स के साथ उपयोग किया जा सकता है और यह समेकित कीट प्रबंधन और जैविक कृषि का एक महत्वपूर्ण घटक है.

Convocation

संस्थान का पूसा समाचार है खास, 6 भाषाओं में मिलती है जानकारी:

संस्थान ने वीडियो आधारित विस्तार मौडल “पूसा समाचार” विकसित किया है, जिस का उद्देश्य दूरदराज के किसानों तक कृषि सलाह पहुंचाना है. यह एक साप्ताहिक कार्यक्रम है, जो हिंदी, तेलुगु, कन्नड़, तमिल, बांग्ला और उड़िया सहित छह भाषाओं में उपलब्ध है और हर शनिवार शाम 7 बजे यूट्यूब चैनल पर प्रसारित किया जाता है. इस की कुल दर्शक संख्या लगभग 1.3 मिलियन है.

पूसा व्हाट्सएप पर घर बैठे मिलती है सलाह:

‘पूसा व्हाट्सएप सलाह (9560297502) सेवा भी शुरू की गई है, जिस से किसान अपने प्रश्न पूछ सकते हैं और विशेषज्ञों से समाधान प्राप्त कर सकते हैं.

कृषि मेले में मिली ढेरों जानकारी :

संस्थान ने नवीनतम तकनीकों के प्रदर्शन और हितधारकों के बीच परस्पर सीखने को बढ़ावा देने के लिए वार्षिक पूसा कृषि विज्ञान मेला आयोजित किया. इस वर्ष, यह मेला दिनांक 22 फरवरी से 24 फरवरी, 2025 के दौरान आयोजित किया गया था. इस का मुख्य विषय “उन्नत कृषि – विकसित भारत” था. इस मेले में एक लाख से अधिक किसानों और अन्य हितधारकों ने भाग लिया था.

किसानों को मिला सम्मान:
संस्थान ने 41 किसानों को उन के नवाचारों के लिए “आईएआरआई फैलो” और “आईएआरआई इनोवेटिव फार्मर्स” के रूप में सम्मानित किया.

Water Management : विकसित भारत के लिए सतत जल प्रबंधन

Water Management: भारत की प्राथमिक क्षेत्र ‘कृषि’ को रीढ़’ कहा जाता है, क्योंकि यह खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करता है और किसानों व कृषि मजदूरों के रूप में लगभग 54 फीसदी कार्यबल प्रदान करता है. यह जान कर खुशी होती है कि भारतीय कृषि ने अपनी स्वतंत्रता के बाद से पिछले 78 सालों के दौरान पोषक तत्वों, जल उपयोग दक्षता व फसल उत्पादकता के बारे में महत्वपूर्ण परिवर्तन किया है, जिस का श्रेय भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित वैज्ञानिक उन्नत प्रबंधन प्रौद्योगिकियों को दिया जा सकता है.

यद्यपि, इस क्षेत्र को जलवायु संबंधित प्राकृतिक आपदाओं, मृदा और जल संसाधनों के घटते आधार, छोटी भूमि क्षेत्रों, मृदा और जल प्रदूषण आदि के रूप में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए हमें अमृत काल 1947 तक विकसित भारत के लिए प्रस्तावित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए जलवायु अनुकूल और सतत जल प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है.

इस अवधि के दौरान भारत 550 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन हासिल करने का लक्ष्य ले कर चल रहा है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें कुशल जल संसाधन प्रबंधन और जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के दोहरे उद्देश्यों के साथ बहुआयामी प्रबंधन योजना पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है.

‘ग्लेशियर संरक्षण : विश्व जल दिवस-2025 का विषय जैसा कि हम 22 मार्च, 2025 को ‘विश्व जल दिवस’ मना रहे हैं, हम अपना ध्यान इस के केंद्रीय विषय यानी ग्लेशियर संरक्षण पर केंद्रित करेंगे.

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय हिमालय में लगभग 9,575 ग्लेशियर मौजूद हैं. ग्लेशियर काफी मात्रा में मीठे पानी का भंडारण करते हैं और उन्हें धीरेधीरे छोड़ते हैं, जो मानव जाति के लिए बहुपयोगी है. वे पृथ्वी की जलवायु को संतुलित और विनियमित करने, जैव विविधता को बनाए रखने, कृषि, पीने के लिए साफ पानी और बिजली उत्पादन के लिए जल संसाधन प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

यद्यपि, इन ग्लेशियरों को जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के रूप में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. परिणामस्वरूप, भारत के हिमालयी क्षेत्र सहित पूरे विश्व में इन के गलने की उच्च दर देखी जा रही है. इस से हिमनद झीलों का विस्तार होगा, जिस से नीचे की ओर विनाशकारी बाढ़ आ सकती है.

इस के अलावा ग्लेशियर की मात्रा में कमी के चलते कृषि क्षेत्र को जल संसाधनों में गिरावट का सामना करना पड़ेगा. इसलिए, हमें इस मूल्यवान प्राकृतिक संसाधन को संरक्षित करने की जरूरत है.

सतत जल प्रबंधन एक उपाय

फसल उत्पादन के लिए जल जरूरी है. सिंचाई के लिए बढ़ते जल संसाधनों ने खाद्यान्न उत्पादन में तेजी लाने में काफी योगदान दिया है. देश में शुद्ध बोआई क्षेत्र के 141 मिलियन हेक्टेयर में से शुद्ध सिंचित क्षेत्र लगभग 78 मिलियन हेक्टेयर (55 फीसदी) है और शेष 63 मिलियन हेक्टेयर (45 फीसदी ) वर्षा सिंचित क्षेत्र के अंतर्गत है.

वर्तमान में भारत में 112.2 मिलियन हेक्टेयर सकल सिंचित क्षेत्र है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (साल 2015) के विजन 2050 दस्तावेज के अनुसार, 1498 (बीसीएम) की अनुमानित कुल जल मांग की तुलना में उपलब्ध आपूर्ति केवल 1121 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) है.

ग्लेशियर पिघलने के कारण कृषि के लिए पानी की उपलब्धता में कमी की पृष्ठभूमि में एकीकृत जल प्रबंधन कार्य योजना पर ध्यान देने की जरूरत है. घरेलू, औद्योगिक और ऊर्जा क्षेत्रों में अतिरिक्त जल की मांग के लिए साल 2050 तक अतिरिक्त 222 बीसीएम पानी की जरूरत होगी. नतीजतन, भारत में कृषि में सिंचाई क्षेत्र में उपयोग किए जाने वाला पानी वर्तमान में 80 फीसदी से घट कर साल 2050 तक 74 फीसदी होने की उम्मीद है.

उभरते परिदृश्यों को देखते हुए अब चुनौती जल की प्रति इकाई मात्रा में अधिक फसल का उत्पादन करना है. भाकृअनुप-राष्ट्रीय कृषि अर्थशास्त्र और नीति अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2050 तक कृषि के लिए संसाधनों की उपलब्धता, खाद्य मांग में वृद्धि की तुलना में धीमी दर से बढ़ेगी और इसलिए कृषि उत्पादों की भविष्य की मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाने के लिए हमें साल 2050 तक जल उत्पादकता में दोगुना वृद्धि करने की जरूरत है.

साल 2047 तक विकसित भारत के उद्देश्य को पूरा करने की दिशा में कम होते जल संसाधनों से 550 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन के परिदृश्य के तहत हमें अमृत काल (2047) तक कृषि में अपनी सिंचाई दक्षता को 38 फीसदी से 65 फीसदी तक सुधारने के लिए सतत और जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन कार्ययोजना निष्पादित करनी होगी.

जल निकायों के पुनरुद्धार के माध्यम से प्रति व्यक्ति जल भंडारण में वृद्धि 2050 तक भारत की आबादी 1.67 बिलियन होने की संभावना है, जिस के परिणामस्वरूप जल, भोजन और ऊर्जा की मांग में वृद्धि होगी. व्यापक बांध निर्माण गतिविधियों के रूप में भारत सरकार द्वारा की गई पहलों के कारण, भारत में बड़े बांधों (जलाशयों) की कुल संख्या 5264 के आंकड़े को पार कर चुकी है. इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता 171.1 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का लगभग 66.36 फीसदी यानी 257.8 बीसीएम है. यद्यपि, भारत के प्रति व्यक्ति भंडारण को 190 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति के वर्तमान स्तर से सुधारने की आवश्यकता है.

एक प्रमुख चिंता जलाशयों में अवसादन है, जो भंडारण क्षमता को काफी कम कर देता है. भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए, अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम दोनों क्षेत्रों की आवश्यकताओं पर विचार करते हुए जलाशय नियंत्रण प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिए. वर्षा जल संचयन संरचनाओं के माध्यम से जल भंडारण बुनियादी ढांचे का निर्माण महत्वपूर्ण है और भारत सरकार का अमृत सरोवर मिशन जिसे वर्ष 2022 में शुरू किया गया था, उस के द्वारा 68,000 से अधिक जल निकायों का निर्माण या नवीनीकरण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

हमें उच्च जल उपयोग दक्षता प्राप्त करने के लिए उपलब्ध जल संसाधनों से मेल खाते हुए उपयुक्त फसल पैटर्न तैयार करने की आवश्यकता है. चावल और गन्ने जैसी जल गहन फसलों से दलहन और तिलहन जैसी कम जल मांग वाली फसलों को चरणबद्ध तरीके से फसल विविधीकरण कर बड़े क्षेत्र में फसलों की खेती करने की आवश्यकता है, जिस से कि अधिक से अधिक संख्या में छोटे और सीमांत किसान लाभान्वित होंगे.

हालांकि, फसल विविधीकरण योजना वर्षा, मिट्टी के प्रकार, जल के अंतर, मौजूदा फसल उत्पादकता और किसानों की शुद्ध आय पर विचार करते हुए एक सूचकांक पर आधारित होनी चाहिए.

सूक्ष्म सिंचाई और सुनियोजित जल प्रबंधन की जरूरत

भारत में सूक्ष्म सिंचाई के तहत 3.1 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र (साल 1992) से बढ़ कर 16.7 मिलियन हेक्टेयर (साल 2023) हो गया है. यद्यपि, सूक्ष्म सिंचाई की सांद्रता कुछ ही राज्यों में है और हमें इसे अन्य राज्यों में भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जहां संभावनाएं मौजूद हैं. भारत के 5 राज्य कर्नाटक (2.42 मिलियन हेक्टेयर), राजस्थान (2.09 मिलियन हेक्टेयर), महाराष्ट्र (2.03 मिलियन हेक्टेयर), आंध्र प्रदेश (1.92 मिलियन हेक्टेयर) और गुजरात (1.70 मिलियन हेक्टेयर) मिल कर सूक्ष्म सिंचाई में लगभग 70 फीसदी  (10.16 मिलियन हेक्टेयर) का योगदान करते हैं. अमृत काल 2047 तक सूक्ष्म सिंचाई के तहत इष्टतम क्षेत्र प्राप्त करने के लिए, विभिन्न समितियों द्वारा सुझाए गए सभी संभावित राज्यों में सिंचाई के बुनियादी ढांचे का विस्तार करने के प्रयास किए जाने चाहिए.

हमें सुनियोजित/सटीक सिंचाई प्रणाली पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जो सही समय पर और सही तरीके से पौधे को इष्टतम मात्रा में जल आपूर्ति को सुनिश्चित करता है. यह परिवर्तनीय दर सिंचाई के माध्यम से जल तनाव के संदर्भ में भूमि के विषमता कारक को भी संबोधित करता है. सूचना प्रौद्योगिकी, मशीन लर्निंग, भौगोलिक स्थिति प्रणाली (जीपीएस), भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस), ड्रोन आधारित निगरानी और स्वचालन में आधुनिक विकास के आगमन के साथ, आईओटी सक्षम सटीक सिंचाई प्रणाली अब और अधिक मजबूत हो गई है.

हाल की प्रगति ने सतह और भूजल सिंचाई दोनों में स्वचालन के अनुप्रयोग की सुविधा प्रदान की है, जो अधिकतम जल उपयोग दक्षता के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता करता है. जल प्रौद्योगिकी केंद्र, भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित मृदा नमी सैंसर आधारित स्वचालित बेसिन सिंचाई प्रणाली में 3 मुख्य इकाइयां शामिल हैं : एक संवेदन इकाई, एक संचार इकाई और एक नियंत्रण इकाई है और यह गेहूं में पारंपरिक मैन्युअल रूप से नियंत्रित प्रणाली की तुलना में 25 फीसदी पानी की बचत में मदद करता है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा प्रदान की गई तकनीकी सहायता से राष्ट्रीय जल मिशन द्वारा विकसित राज्य विशिष्ट जल प्रबंधन कार्ययोजनाओं को भारतीय कृषि की जीत सुनिश्चित करने के लिए कार्यान्वित किए जाने की आवश्यकता है. ये योजनाएं संबंधित राज्यों में कृषि पारिस्थितिक स्थितियों और जल संसाधन उपलब्धता और फसल जल की मांग को देखते हुए तैयार की गई हैं.

कुलमिला कर, सभी हितधारकों की सक्रिय भागीदारी के साथ सतत और जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है. समय की मांग है कि संस्थागत और तकनीकी दोनों हस्तक्षेपों को एकीकृत किया जाए और जल और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए किसानों के खेतों में अच्छी तरह से सिद्ध औन फार्म जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों को बढ़ाया जाए, जिस से अमृत काल 2047 तक विकसित भारत के उद्देश्य को पूरा किया जा सके.

Trench Method :ट्रैंच विधि से किया गन्ना उत्पादन

Trench Method | उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के रहने वाले शरद त्यागी एक ऐसे इनसान हैं, जिन में हमेशा आम लोगों से हट कर कुछ नया करने की ललक रहती है.

उन्होंने शिक्षा पूरी करने के बाद भारतीय सीमा सुरक्षा बल में नौकरी कर ली, लेकिन उन का मन नौकरी में नहीं लगा, लिहाजा उन्होंने नौकरी छोड़ दी और घर वापस आ कर अपने पिताजी के पैतृक व्यवसाय खेती में लग गए. उन के मन में जो आम लोगों से हट कर करने का जज्बा था, वह शांत नहीं हुआ, तो वे एक दिन कृषि विज्ञान केंद्र गए.

कृषि विज्ञान केंद्र ने दी नई दिशा : आधुनिक कृषि तकनीकों को जानने की इच्छा और कुछ करने के बुलंद हौसलों के साथ उन्होंने केंद्र के वैज्ञानिकों से गन्ना उत्पादन तकनीकों की विस्तार से जानकारी ली. केंद्र के वैज्ञानिकों ने समयसमय पर उन के खेत पर जा कर उन्हें नवीनतम तकनीकों से अवगत कराया.

आधुनिक तकनीकों से खेती की शुरुआत : खेती की नवीनतम जानकारी से प्रभावित हो कर शरद त्यागी ने ट्रैंच विधि से गन्ना उत्पादन करने की शुरुआत की. आज वे ट्रैंच विधि से गन्ना उत्पादन के लिए अपने जिले ही नहीं, बल्कि प्रदेश व देश के किसानों के लिए रोल माडल बन गए हैं. तकरीबन 5000 किसान उन से उन की तकनीकों के बारे में जानकारी ले चुके हैं. आज भी शरद कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों के संपर्क में रहते हैं और जो कृषि संबंधी समस्याएं आती हैं, उन का हल पूछते हैं.

trench method

ट्रैंच विधि से गन्ना उत्पादन के लाभ

* बीज की मात्रा आम विधि के मुकाबले कम लगती है.

* आम विधि के मुकाबले जमाव ज्यादा होता है.

* सिंचाई करने में कम समय लगता है, नतीजतन पानी की बचत होती है.

* उत्पादन खर्च में कमी आती है.

* उपज ज्यादा मिलती है.

Food processing : खाद्य प्रसंस्करण शौक को बनाया रोजगार

Food processing| तरक्की के नजरिए से खाद्य प्रसंस्करण काफी बड़ा क्षेत्र है. इस से तरक्की की अनेक संभावनाएं हैं. इस के तहत अनेक तरह की फलसब्जियों की प्रोसेसिंग कर अनेक उत्पाद तैयार किए जाते हैं, जिन की बाजार में अच्छी कीमत भी मिलती है. इस में खासकर अचार, मुरब्बे, जैम, चटनी, जूस, पापड़, बड़ी, चिप्स, बिसकुट जैसे अनेक उत्पाद हैं, जिन्हें गांवदेहात से ले कर बड़े शहरों तक बहुत पसंद किया जाता है. सरकार की भी प्रोसेसिंग के क्षेत्र में लोगों को बढ़ावा देने के लिए अनेक योजनाएं हैं.

फूड प्रोसेसिंग के तहत अनेक संस्थाओं व अनेक कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा इस तरह के कोर्स कराए जाते हैं, जहां से ट्रेनिंग ले कर कोई भी महिला या पुरुष इसे रोजगार का साधन बना सकता है और आमदनी ले सकता है. फूड प्रोसेसिंग के क्षेत्र में पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ज्यादा हाथ आजमा रही हैं और सफल भी हो रही हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में महिलाएं घरेलू तौर पर पहले ही दक्ष होती हैं.

ऐसी ही एक महिला हैं राजवंती, जो हरियाणा के जींद जिले की रहने वाली हैं. उन्होंने ‘सुप्रीम अचार उद्योग’ के नाम से अपनी इकाई लगा रखी है. पटियाला चौक रेलवे रोड पर स्थित इन की इकाई में तकरीबन 45 तरह के उत्पाद तैयार किए जाते हैं, जिन में 30 तरह के अचार, 6 तरह के मुरब्बे शामिल हैं. इन के अलावा वे अनेक तरह की चटनी, जैम, शर्बत, कैंडी वगैरह भी बनाती हैं. उन की इकाई में 15 से 20 लोगों को रोजगार भी मिल रहा है.

Food processing

हरियाणा के रोहतक व दादरी, पंजाब के चंडीगढ़ और दिल्ली के रोहिणी में इन के शोरूम हैं.

अभी हाल ही में चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में लगे कृषि मेले में राजवंती से मुलाकात हुई. उन्होंने बताया, ‘मुझे बचपन से ही तरहतरह के व्यंजन बनाने का शौक था.

‘यही शौक आज मेरा रोजगार बन गया और मैं इस लायक हो गई कि 15-20 लोगों को भी अपने साथ रोजगार दिया.’

हालांकि राजवंती ने सिलाईकढ़ाई में आईटीआई की है, लेकिन तरहतरह के पकवान बनाने के शौक ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है.

राजवंती ने बताया कि वे घरेलू तौरतरीकों से आयुर्वेद की पद्धति के मुताबिक अपने उत्पाद तैयार करती हैं, जिन्हें पूरी शुद्धता के साथ तैयार किया जाता है. लोगों का उन पर विश्वास ही उन की सफलता की सीढ़ी है.

उन्होंने आगे बताया कि खुद का रोजगार शुरू करने के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम योजना की जानकारी अपने क्षेत्र के जिला उद्योग केंद्र, जींद से ली, जहां से उन्हें पूरा सहयोग मिला और प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत साल 2012-13 में उन्हें 25 लाख रुपए लोन बैंक द्वारा मुहैया कराया गया. उस के बाद उन्होंने ‘सुप्रीम अचार उद्योग’ के नाम से अपनी इकाई स्थापित की. इस के बाद वे दिल्ली व हरियाणा में लगने वाले कृषि मेलों में भी पहुंचने लगीं, जहां उन्होंने स्टाल लगा कर अपने उत्पादों को आम लोगों तक पहुंचाया.

आज के समय में फूड प्रोसेसिंग खासा मुनाफे का सौदा है. कम पढ़ेलिखे लोग भी इस की ट्रेनिंग ले कर इसे अपने रोजगार का जरीया बना सकते हैं. अनेक संस्थाओं और कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा बहुत कम समय की ट्रेनिंग दी जाती है, जहां से टे्रनिंग ले कर कोई भी व्यक्ति अपना रोजगार शुरू कर सकता है.

गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड्स 2025 में प्रेरणादायक महिलाओं को सम्मानित किया

नई दिल्ली, 21 मार्च 2025गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड्स 2025 का आयोजन 20 मार्च 2025 को त्रावणकोर पैलेस, नई दिल्ली में किया गया।  इस कार्यक्रम में उन असाधारण महिलाओं को सम्मानित किया गया जिन्होंने अपने क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस कार्यक्रम में लोक कला, शासन, सार्वजनिक नीति, सामाजिक कार्य, व्यवसाय, विज्ञान, ऑटोमोटिव और मनोरंजन जैसे क्षेत्रों की प्रभावशाली और उपलब्धि हासिल करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन लोगों को दिया गया जिन्होंने जिन्होनें अपने सामने आने वाली सभी मुश्किलों को पार कर एक नई राह बनाई।

इस समारोह में, सार्वजनिक स्वास्थ्य और शासन में  परिवर्तनकारी नेतृत्व के लिए केरल की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सुश्री के.के. शैलजा को पुरूस्कृत किया गया। साथ ही प्रसिद्ध अदाकारा  सुश्री शबाना आज़मी को सिनेमा में उनके योगदान और मजबूत एवं मुश्किल किरदारों के प्रदर्शन के लिए मनोरंजन के माध्यम से सशक्तिकरण – आइकन के रूप में सम्मानित किया गया। डॉ. सौम्या स्वामीनाथन को सार्वजनिक स्वास्थ्य और वैज्ञानिक अनुसंधान में उनके अग्रणी नेतृत्व के लिए नेशन बिल्डर – आइकन पुरस्कार मिला। टाइटन वॉचेस की सीईओ सुश्री सुपर्णा मित्रा को कॉर्पोरेट नेतृत्व में नए स्टैंडर्ड स्थापित करने के लिए बिजनेस लीडरशिप – आइकन पुरूस्कार दिया गया।

गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड्स 2025 की विडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार विजेताओं में सुश्री मंजरी जरूहर शामिल रहीं, जिन्हें पुलिसिंग में उनके अग्रणी करियर के लिए फियरलेस वारियर – आइकन के रूप में सम्मानित किया गया। ग्रामीण कारीगरों को सशक्त बनाने वाली जमीनी स्तर की नेता सुश्री रूमा देवी को ग्रासरूट्स चेंजमेकर – आइकन पुरस्कार मिला, जबकि सुश्री अमला रुइया को जल संरक्षण में उनके अग्रणी कार्य के लिए ग्रासरूट्स चेंजमेकरअचीवर के रूप में सम्मानित किया गया। सुश्री विजी वेंकटेश को कैंसर देखभाल में उनके सरहानीय योगदान के लिए न्यू बिगिनिंगआइकन से सम्मानित किया गया।

बिजनेस इंडस्ट्री में, भारत की पहली कीवी वाइन मैकर सुश्री तागे रीता ताखे को बिजनेस लीडरशिपअचीवर से सम्मानित किया गया, जबकि मेंस्ट्रुपीडिया की फाउंडर सुश्री अदिति गुप्ता को होमप्रेन्योरअचीवर से सम्मानित किया गया। सुश्री कृपा अनंथन को ऑटोमोटिव इंडस्ट्री में चेंजमेकर के रूप में सम्मानित किया गया, और सुश्री किरुबा मुनुसामी को उनकी कानूनी सक्रियता के लिए सोशल इम्पैक्टअचीवर से पुरूस्कृत किया गया। डॉ. मेनका गुरुस्वामी और सुश्री अरुंधति काटजू को लैंगिक समानता और LGBTQ समुदाय के अधिकारों के लिए उनकी ऐतिहासिक कानूनी लड़ाई के लिए संयुक्त रूप से सोशल इम्पैक्टचेंजमेकर से सम्मानित किया गया।

लोक कलाओं के संरक्षण में उनके योगदान के लिए, डॉ. रानी झा को फोल्क हेरिटेज-आइकन से सम्मानित किया गया। डॉ. बुशरा अतीक को STEM में उत्कृष्टता के लिए सम्मानित किया गया।

एंटरनमेंट और डिजिटल इन्फ्लुएंस में, सुश्री तिलोत्तमा शोम और और सुश्री कोंकणा सेन को मनोरंजन के माध्यम से सशक्तिकरण के लिए ऑनस्क्रीन और ऑफस्क्रीन सम्मानित किया गया। सुश्री लीजा मंगलदास को कंटेंट क्रिएटरएम्पावरमेंट, सुश्री श्रुति सेठ को कंटेंट क्रिएटरपेरेंटिंग और डॉ. तनया नरेंद्र को कंटेंट क्रिएटरहेल्थ में उनकी उत्कृष्टता के लिए सम्मानित किया गया।

माननीय अतिथि

सभी पुरस्कार आरटीआई कार्यकर्ता सुश्री अरुणा रॉय, वरिष्ठ अधिवक्ता सुश्री इंदिरा जयसिंह, प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना सुश्री शोवना नारायण और महिला अधिकार कार्यकर्ता एवं राजनीतिज्ञ सुश्री सुभाषिनी अली द्वारा प्रदान किए गए। इन विशिष्ट अतिथियों ने अपने प्रेरणादायक शब्दों के साथ विजेताओं की उपलब्धियों के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया।

जूरी पैनल

पुरस्कारों का निर्णय प्रतिष्ठित और सम्मानित महिलाओं के एक प्रतिष्ठित जूरी पैनल द्वारा किया गया, जिसमें लेखिका और फेमिना की पूर्व संपादक सुश्री सत्या सरन, लोकप्रिय अभिनेत्री सुश्री पद्मप्रिया जानकीरमन, चंपक की संपादक सुश्री ऋचा शाह, लर्निंग लिंक्स फाउंडेशन की अध्यक्ष सुश्री नूरिया अंसारी, आउटवर्ड बाउंड हिमालय की डायरेक्टर सुश्री दिलशाद मास्टर और कारवां की वेब संपादक सुश्री सुरभि कांगा शामिल थीं।

कार्यक्रम में बोलते हुए, दिल्ली प्रेस के प्रधान संपादक और प्रकाशक श्री परेश नाथ ने कहा: “गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड उन लोगों को श्रद्धांजलि है जो आम धारणाओं को चुनौती देते हैं, और बदलाव लाने के लिए और भविष्य को आकार देने के लिए रचनात्मकता और साहस का उपयोग करते हैं। शोर से अभिभूत दुनिया में, ये पुरस्कार विजेता हमें याद दिलाते हैं कि सच्चा नेतृत्व उन लोगों के शांत लेकिन परिवर्तनकारी प्रभाव में निहित है जो सत्ता के सामने सच बोलने और ईमानदारी के साथ नेतृत्व करने का साहस करते हैं।”

गृहशोभा के बारे में:

गृहशोभा, जिसे दिल्ली प्रेस द्वारा प्रकाशित किया जाता है, भारत की सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली हिंदी महिला मैगजीन है, जिस के 10 लाख से अधिक रीडर्स हैं| यह मैगजीन 8 भाषाओं (हिंदी, मराठी, गुजराती, कन्नड़, तमिल, मलयालम, तेलुगु और बंगाली) में प्रकाशित होती है और इस में घरगृहस्थी, फैशन, सौंदर्य, कुकिंग, स्वास्थ्य और रिश्तों पर रोचक लेख शामिल होते हैं| पिछले 45 सालों से गृहशोभा महिलाओं के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत बनी हुई है|

दिल्ली प्रेस के बारे में:

दिल्ली प्रेस भारत के सबसे बड़े और विविध पत्रिका प्रकाशनों में से एक है| यह परिवार, राजनीति, सामान्य रुचियों, महिलाओं, बच्चों और ग्रामीण जीवन से जुड़ी 36 पत्रिकाएं 10 भाषाओं में प्रकाशित करता है| इस की पहुंच पूरे देश में फैली हुई है|

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