Fertilizers : नकली और घटिया गुणवत्ता वाले उर्वरकों को जड़ से खत्म करना है

Fertilizers : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास शिवराज सिंह चौहान ने सभी राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख कर नकली व निम्न गुणवत्ता वाले उर्वरकों की समस्या को गंभीरता से लेते हुए इस पर तुरंत और सख्त कार्रवाई किए जाने के निर्देश दिए हैं. यह पत्र देश भर में नकली उर्वरकों की बिक्री और सब्सिडी वाले उर्वरकों की कालाबाजारी व जबरन टैगिंग जैसी अवैध गतिविधियों पर रोक लगाने के उद्देश्य से जारी किया गया है.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पत्र में कहा है कि कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और किसानों की आय में स्थिरता बनाए रखने के लिए उन्हें गुणवत्तापूर्ण उर्वरक सही समय पर, सुलभ दरों पर और मानक गुणवत्ता के साथ उपलब्ध कराना बेहद जरूरी है.

उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि उर्वरक नियंत्रण आदेश, 1985 (जो कि आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के अंतर्गत आते हैं) के तहत नकली व निम्न गुणवत्ता वाले उर्वरक की बिक्री प्रतिबंधित है.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पत्र लिख कर निम्नलिखित निर्देश राज्यों को जारी किए हैं :

– किसानों को सही स्थान और उन जगहों पर जहां इन की जरुरत है, पर्याप्त मात्रा में उर्वरक उपलब्ध कराना राज्यों की जिम्मेदारी है. इसलिए राज्य कालाबाजारी, अधिक मूल्य पर बिक्री और सब्सिडी वाले उर्वरकों के डायवर्जन जैसी गतिविधियों पर कड़ी निगरानी व  तुरंत कार्रवाई करें.

– उर्वरक के निर्माण व बिक्री की नियमित निगरानी और सैंपलिंग व परीक्षण के माध्यम से नकली एवं निम्न गुणवत्ता वाले उत्पादों पर सख्त नियंत्रण किया जाए.

– पारंपरिक उर्वरकों के साथ नैनोउर्वरक अथवा जैवउत्तेजक उत्पादों की जबरन टैगिंग को तुरंत रोका जाए.

– दोषियों के विरुद्ध लाइसैंस रद्द, प्राथमिकी पंजीकरण सहित सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए और मामलों का प्रभावी अनुसरण कर दंड सुनिश्चित किया जाए.

– राज्यों को फीडबैक व सूचना तंत्र विकसित कर किसानों/किसान समूहों को निगरानी प्रक्रिया में शामिल करने, और किसानों को असली और नकली उत्पादों की पहचान हेतु जागरूक करने के लिए विशेष प्रयास करने के निर्देश भी दिए गए हैं.

केंद्रीय मंत्री ने सभी राज्यों से अनुरोध किया है कि उपर्युक्त दिशानिर्देशों के अनुसार एक राज्यव्यापी अभियान शुरू  कर नकली और घटिया गुणवत्ता वाले कृषि इनपुट्स की समस्या को जड़ से समाप्त किया जाए. उन्होंने यह भी कहा कि यदि राज्य स्तर पर इस कार्य की नियमित निगरानी की जाएगी तो यह किसानों के हित में एक प्रभावी और स्थायी समाधान सिद्ध होगा.

Fisheries : 17 नए मत्स्यपालन समूहों का शुभारंभ

Fisheries : मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के मत्स्यपालन विभाग ने देश में मत्स्यपालन क्षेत्र के विकास में मछुआरों,  मछली किसानों और उन के समुदायों की उपलब्धियों व योगदान को मान्यता देने के लिए 10 जुलाई, 2025 को आईसीएआर केंद्रीय मीठा जल कृषि संस्थान (सीआईएफए), भुवनेश्वर, ओडिशा में राष्ट्रीय मत्स्य कृषक दिवस 2025 मनाया गया.

इस मौके पर  केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण और पंचायती राज मंत्री राजीव रंजन सिंह ने मत्स्यपालन क्षेत्र को बढ़ावा देने और उन्नत बनाने के लिए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत 17 नए मत्स्यपालन समूहों का शुभारंभ किया. शुभारंभ किए गए ये नवीन समूह, वर्तमान 17 समूहों के अतिरिक्त हैं, जिस से देश भर में मत्स्यपालन समूहों की कुल संख्या बढ़कर 34 हो गई है. इस के अलावा, केंद्रीय मंत्री ने 11 राज्यों में 105 करोड़ रुपए की लागत वाली 70 परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास भी किया.

इस कार्यक्रम के दौरान, केंद्रीय मंत्री ने मत्स्यपालन क्षेत्र में गुणवत्ता, मानकीकरण और क्षमता निर्माण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से आईसीएआर प्रशिक्षण कैलेंडर जारी करने और बीज प्रमाणीकरण व हैचरी संचालन संबंधी दिशानिर्देशों का उद्घाटन करने सहित कई प्रमुख मत्स्यपालन पहलों की शुरुआत की.

केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह और पंचायती राज मंत्रालय ने भारत के मछुआरों और मत्स्य किसानों की सराहना करते हुए उन्हें भारत को विश्‍व का दूसरा सब से बड़ा मछली उत्पादक देश बनाने की उल्लेखनीय उपलब्धि का श्रेय दिया, जिस में अंतर्देशीय मत्स्यपालन कुल उत्पादन का लगभग 75 फीसदी योगदान देता है. मत्स्यपालन क्षेत्र आज 3 करोड़ से अधिक मछुआरों और मत्स्य किसानों के लिए पोषण और आजीविका सुनिश्चित करता है. उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने विभिन्न योजनाओं और पहलों के माध्यम से 38,572 करोड़ रुपए का ऐतिहासिक निवेश किया है, जिस से पूरे क्षेत्र में आय और आजीविका सुरक्षा में काफी बढ़ोत्तरी हुई है.

मत्स्यपालन, पशुपालन, डेयरी और पंचायती राज राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने नीली क्रांति के दृष्टिकोण के अंतर्गत किसानों की आय दोगुनी करने में मत्स्यपालन क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका का जिक्र किया और आईसीएआर मत्स्य अनुसंधान संस्थानों द्वारा विकसित नवाचारों और उन्नत तकनीकों पर जोर दिया, जिन्होंने देश भर में मछली उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. साथ ही, उन्होंने मछुआरों और मत्स्यपालकों को अपनी आय बढ़ाने और अपनी आजीविका को मजबूत करने के लिए बीमा योजनाओं, गुणवत्तापूर्ण बीजों तक पहुंच, आधुनिक तकनीकों और नवीन प्रथाओं सहित विभिन्न सरकारी सहायता प्रणालियों का लाभ उठाने के लिए भी प्रोत्साहित किया.

मत्स्यपालन, पशुपालन व डेयरी और अल्पसंख्यक कार्य राज्य मंत्री जौर्ज कुरियन ने 195 लाख टन के रिकौर्ड मत्स्य उत्पादन तक पहुंचने पर सभी हितधारकों को बधाई दी, जो पिछले एक दशक में 105 फीसदी की वृद्धि दर्शाता है और यह भारत के मछुआरों और मत्स्यपालकों की कड़ी मेहनत का परिणाम है. साथ ही, उन्होंने मत्स्यपालन समुदाय के अमूल्य योगदान की सराहना करते हुए उन्हें और भी अधिक सफलता के लिए प्रयास करते रहने के लिए प्रोत्साहित किया.

हर राज्य में मत्स्यपालन

भारत सरकार के मत्स्यपालन विभाग ने प्रमुख क्षेत्रों में समूह विकास पर रणनीतिक ध्यान केंद्रित करने की परिकल्पना की है, जिस में हजारीबाग में पर्ल समूह, लक्षद्वीप में समुद्री शैवाल, मदुरै में सजावटी मत्स्यपालन, मध्य प्रदेश में जलाशय मत्स्यपालन, गुजरात में मछली पकड़ने के बंदरगाह, सिरसा में खारे पानी में मत्स्यपालन, जम्मू और कश्मीर में ठंडे पानी में मत्स्यपालन, कर्नाटक में समुद्री पिंजरा पालन, आंध्र प्रदेश में खारे पानी में मत्स्यपालन, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में टूना, छत्तीसगढ़ में तिलापिया, सिक्किम में जैविक मत्स्यपालन, बिहार में आर्द्रभूमि मत्स्यपालन, तेलंगाना में मुर्रेल, केरल में पर्ल स्पौट, ओडिशा में स्कैम्पी, उत्तर प्रदेश में पंगेशियस शामिल हैं.

इस के अलावा, पंजाब और राजस्थान में खारे पानी में जलीय कृषि, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख में ठंडे पानी में मत्स्यपालन, पश्चिम बंगाल में शुष्क मछली समूह, पुडुचेरी में मछली पकड़ने का बंदरगाह, नागालैंड में एकीकृत मछलीपालन समूह, मणिपुर में पेंगबा मछली क्लस्टर, असम में नदी मछली समूह, मिजोरम में धान सह मछली समूह, अरुणाचल प्रदेश में एक्वा पर्यटन समूह, गोवा में मुहाना पिंजरा समूह, त्रिपुरा में पाबड़ा मत्स्य समूह, महाराष्ट्र में मत्स्य सहकारी समूह और मेघालय में जैविक मत्स्य समूह पर ध्यान केंद्रित करते हुए 17 नए समूह की पहचान की गई है.

इस समूह आधारित दृष्टिकोण, उत्पादन से ले कर निर्यात तक, संपूर्ण मूल्य श्रृंखला में, सभी आकारों सूक्ष्म, लघु, मध्यम और बड़े भौगोलिक रूप से जुड़े उद्यमों को एकजुट कर के प्रतिस्पर्धा और दक्षता को बढ़ाता है. यह सहयोगात्मक मौडल मजबूत संबंधों के माध्यम से योजना में आर्थिक रूप से सुधार करता है, मूल्य श्रृंखला की कमियों को दूर करता है और नए व्यावसायिक अवसरों और आजीविकाओं का निर्माण करता है. साथ ही, साझेदारी और संसाधन को बढ़ावा दे कर, इस का उद्देश्य लागत कम करना, नवाचार को बढ़ावा देना और स्थायी प्रथाओं का समर्थन करना है.

ये समूह मछुआरों, उद्यमों, व्यक्तियों, स्वयं सहायता समूहों, संयुक्त देयता समूहों, एफएफपीओ,                मत्स्य किसानों,    प्रसंस्करणकर्ताओं,  ट्रांसपोर्टरों,  विक्रेताओं, सहकारी समितियों, मत्स्यपालन स्टार्टअप्स और अन्य संस्थाओं सहित अन्य हितधारकों को शामिल करेंगे, जिस से मत्स्यपालन और जलीय कृषि मूल्य श्रृंखला का समग्र विकास और सही तरीके से प्रबंधन सुनिश्चित होगा. इन चिन्हित समूहों को मजबूत करने के लिए, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय, नाबार्ड, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय, मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार के साथ सहयोग किया जाएगा. यह साझेदारी मत्स्यपालन क्षेत्र में उद्यमशीलता और मूल्यवर्धन को बढ़ावा देते हुए बुनियादी ढांचे, वित्तीय सहायता और बाजार संबंधों को बढ़ाने पर जोर देगी.

Maize : मक्का उत्पादन में अमरीका और चीन से पीछे नहीं है भारत

Maize: महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने वल्लभनगर कृषि विज्ञान केंद्र प्रांगण में पिछले दिनों 9 जिलों के प्रगतिशील किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि खाद्यान्न के साथसाथ फल, दूध व चीनी के क्षेत्र में भी हम आत्मनिर्भर हो चुके हैं. अब समय कृषि में विविधीकरण और नवाचारों का है. तिलहनदलहन में अभी हम पीछे हैं और तेल का आयात करना पड़ रहा है. ऐसे में बड़ी मात्रा में राजस्व विदेशों में भेजना हमारी मजबूरी है.

“वैज्ञानिक तरीके से मक्का उत्पादन एवं मूल्य संवर्धन’’ विषय पर आधारित इस किसान समागम में प्रतापगढ़, राजसमंद, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा आदि जिलों के 300 से ज्यादा किसानों ने भाग लिया.

उन्होंने कहा कि मक्का हमारी फसल नहीं रही है, बल्कि कोलंबस इसे भारत ले कर आया था.    चौड़ी पत्तीदार फसल होने से सब से पहले मक्का का चारे के रूप में इस्तेमाल होता था. फिर वैज्ञानिकों ने गहन शोध अध्ययन कर मक्का को पौपककौर्न के रूप में सिनेमाघरों तक पहुंचा दिया. वैज्ञानिकों की बदौलत आज मक्का बेबी कौर्न व स्वीट कौर्न के रूप में पांच सितारा होटलों की शान है. वर्तमान में मक्का के जर्मप्लाज्म से तेल, अवशेष से स्टार्च और इथेनौल तक बनाया जा रहा जो पेट्रोल में ग्रीन फ्युल के रूप में शामिल किया जा सकेगा.

मक्का उत्पादन बढ़ाने के बताए गुन 

मेज मैन औफ इंडिया के नाम से मशहूर मक्का बीज प्रजनक डा. सांई दास ने कहा कि भारत मक्का उत्पादन में किसी भी सूरत में अमरीका और चीन से पीछे नहीं है. जलवायु परिवर्तन के कारण हमें दिक्कतें आती हैं. लेकिन समय पर बीज पानी दिया जाए तो उत्पादकता बढ़ सकती है.

उन्होंने आगे कहा कि आज कई बड़े उद्योगों जैसे कपड़ा, बायोफ्यूल, जूते, दवा इंडस्ट्री में मक्का का उपयोग हो रहा है. अच्छी मक्का पैदावर के लिए उन्होंने किसानों को बताया कि पहले पानी फिर उर्वरक दें. मक्का में 6-8 पत्ती की फसल, इस के बाद कंधे तक, फिर माजर निकलते समय उर्वरक बेहद जरूरी है. अच्छे उत्पादन के लिए खरपतवार नियंत्रण भी जरूरी है.

कीट विज्ञानी डा. मनोज महला ने कहा कि भारत में पिछले 7 दशक में मक्का का उत्पादन 10 गुना बढ़ा है. 143 करोड़ की आबादी वाले देश में करोड़ों रूपए की मक्का पैदा हो रही है. पिछले 5- 6 साल पहले फौल आर्मी वर्म (फौ) ने मक्का के किसानों को सकते में डाल दिया था. यह कीट मक्का की कोमल पत्तियों को चट करता हुआ भारी नुकसान पहुंचाता है. उन्होंने फेरोमोन ट्रैप व बीजोपचार से इस कीट के नियंत्रण की तरकीब सुझाई.

इस कार्यक्रम में कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने केवीके बांसवाड़ा के डा. बीएस भाटी, डा. आरएल सोलंकी (चित्तौड़गढ़), डा. सीएम बलाई (डूंगरपुर), डा. योगेश कनोजिया (प्रतापगढ़), डा. पीसी रेगर (राजसमंद), डा. मनीराम (वल्लभनगर), प्रो. लतिका व्यास (प्रसार शिक्षा निदेशालय) को आईएसओ प्रमाणपत्र दे कर व मेवाड़ी पग पहना कर सम्मानित किया.

इस कार्यक्रम में पूर्व प्रसार निदेशक डा. आईजी माथुर, डा. अमित दाधीच, डा. योगेश कनोजिया, धानुका के मयूर आमेटा, गौरव शर्मा, सुशील वर्मा, देवेश पाठक, डा. मनीराम आदि ने मक्का बीज की उन्नत किस्में, प्रमुख कीट व्याधियां व नियंत्रित करने के तरीके, भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने आदि की जानकारी दी.

इस कार्यक्रम की शुरुआत में प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरएल सोनी ने कहा कि धरतीपुत्र किसानों के दम पर ही प्रदेश में 11 लाख हेक्टेयर में मक्का की खेती होती है. दक्षिणी राजस्थान के चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, प्रतापगढ़, राजसमंद में मक्का की खेती बहुतायत में की जाती है जबकि बांसवाड़ा में तो सालभर मक्का बोई जाती है. अगर किसान जागरूक रहेगा तो उत्पादकता खुद बढ़ जाएगी.

इस मौके पर केवीके परिसर में अतिथियों ने बोटल पाम का पौधारोपण भी किया. संचालन प्रो. लतिका व्यास ने किया. समारोह स्थल पर अखिल भारतीय मक्का अनुसंधान परियोजना की ओर से डा. अमित दाधीच के नेतृत्व में प्रदर्शनी भी लगाई गई.

Technology : दुनियाभर में उपलब्ध हर तकनीक अब भारत में उपलब्ध

Technology : केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री और पीएमओ, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत व पेंशन राज्य मंत्री डा. जितेंद्र सिंह ने राजधानी स्थित एनएएससी परिसर में पिछले दिनों आईसीएआर सोसाइटी की 96वीं सालाना आम बैठक को संबोधित किया.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में आयोजित उच्चस्तरीय कार्यक्रम में बोलते हुए डा. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि दुनियाभर में उपलब्ध हर तकनीक अब भारत में भी उपलब्ध है. उन्होंने कहा “अब यह बात माने नहीं रखती कि तकनीक उपलब्ध है या नहीं. अब यह महत्वपूर्ण है कि हम इसे कितनी तेजी से अपनाते हैं और इसे अपनी अर्थव्यवस्था में जोड़ने के लिए कैसे इस का इस्तेमाल करते हैं.”

डा. जितेंद्र सिंह ने कहा कि मानसिक और संस्थागत बाधाओं को दूर करने के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि कृषि मूल्य श्रृंखला में कई लोग न केवल नई तकनीकों से अनजान हैं, बल्कि उन्हें इस बात की भी जानकारी नहीं है कि वे इस के बारे में कुछ नहीं जानते.

इस अवसर पर डा. जितेंद्र सिंह ने जम्मूकश्मीर में लैवेंडर क्रांति जैसी सफलता की कहानियों का जिक्र किया, जहां लैवेंडर की खेती के इर्दगिर्द 3,500 से ज्यादा स्टार्टअप उभरे हैं. डा. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे नए जमाने की खेती सैटेलाइट इमेजिंग, रिमोटकंट्रोल ट्रैक्टर और और्डर आधारित फसल उत्पादन का इस्तेमाल कर के कृषि कहानी को नया आकार दे रही हैं. उन्होंने कहा, “भद्रवाह में लैवेंडर से ले कर मंदिर में चढ़ावे के लिए उगाए जाने वाले औफ सीजन ट्यूलिप (फूल) जैसे अनेक उदाहरण हमारे पास हैं, जहां विज्ञान और रणनीति ने मिल कर आय और नवाचार दोनों पैदा किए हैं.”

उन्होंने आगे इस बात पर भी प्रकाश डाला कि जैव प्रौद्योगिकी विभाग की पहलों के माध्यम से विकसित कीट प्रतिरोधी कपास और परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा विकिरण आधारित खाद्य संरक्षण तकनीक जैसे जैव प्रौद्योगिकी संचालित प्रगति, उत्पादन को बढ़ाने, भंडारण और निर्यात के तरीके को फिर से और बेहतर कर रही हैं. उन्होंने कहा, “इन तकनीकों की बदौलत अब हमारे आम आज अमेरिका तक पहुंच रहें हैं लेकिन अभी भी कई राज्यों को इन उपकरणों का उपयोग करने के लिए आगे आना बाकी है.”

डा. जितेंद्र सिंह ने राज्य कृषि मंत्रियों और संस्थागत हितधारकों से एक गंभीर अपील में नवाचारों के आदानप्रदान को सुनिश्चित करने के लिए और अधिक अनौपचारिक अंतर मंत्रालयी बातचीत का प्रस्ताव रखा. उन्होंने आग्रह किया, “हमें केवल सालाना बैठकों का इंतजार नहीं करना चाहिए. आइए, एक कार्य समूह बनाएं और जिस का समाधान साझा करें.”

केंद्रीय मंत्री डा. जितेंद्र सिंह ने तटीय राज्यों में समुद्री कृषि पहल और मणिपुर में आम या आंध्र प्रदेश में सेब की खेती का उल्लेख करते हुए इसे गैरपारंपरिक लेकिन अत्यधिक व्यवहार्य उद्यम बताया, जो दर्शाते हैं कि कैसे भारत के कृषि मानचित्र को विज्ञान के माध्यम से फिर से तैयार किया जा रहा है.

इस बैठक में केंद्रीय और राज्य मंत्रियों, वैज्ञानिकों, आईसीएआर और संबद्ध मंत्रालयों के अधिकारियों ने भाग लिया और वहां आईसीएआर के प्रमुख प्रकाशनों का विमोचन और सालाना  रिपोर्ट और वित्तीय विवरण पर प्रस्तुतियां भी दी गईं.

इस बैठक के अंत में डा. जितेंद्र सिंह ने निष्कर्ष देते हुए कहा कि हमारी सब से बड़ी चुनौती तकनीक की कमी नहीं है. हमारी सब से बड़ी कमी संपर्क की है, उन के बीच जो इसे विकसित करते हैं और जिन्हें इस की जरूरत है. यही वह पुल है, जिसे हमें अब बनाने की जरूरत है.

पशुपालन और जूनोटिक रोग : जोखिम और जिम्मेदारी

भोपाल : जूनोटिक बीमारियां वे बीमारियां होती हैं जो पशुओं और इनसानों के बीच फैल सकती हैं. ये बीमारियां पशुओं और इंसानों दोनों को प्रभावित कर सकती हैं और कभीकभी गंभीर रूप से ये जानलेवा भी हो सकती हैं. इन से पशुपालकों को अधिक खतरा होता है. पशुओं के साथ ज्यादा समय बिताने से संपर्क बढ़ता है, जिस से जोखिम भी बढ़ता है.

जूनोटिक बीमारियां वास्तव में तब फैलती हैं जब इंसान किसी संक्रमित पशु या उस से जुड़ी वस्तुओं के संपर्क में आता है. कुछ आम जूनोटिक बीमारियों में रेबीज शामिल है, जो पशु के काटने से फैलती है और समय पर टीका न लगवाने पर जानलेवा हो सकती है. ब्रुसेलोसिस संक्रमित पशुओं के दूध या सीधे संपर्क में रहने से फैलती है, जिस से बुखार, जोड़ों में दर्द और गर्भपात हो सकता है.

टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) संक्रमित पशुओं के संपर्क, दूध या मांस के सेवन से फैल सकती है. एंथ्रेक्स संक्रमित जीवित या मृत पशुओं और उन के उत्पादों से फैलता है. बर्ड फ्लू बीमार पक्षियों या उन की बीट के संपर्क से फैलता है, जब कि साल्मोनेला कच्चे मांस, दूध या अंडों के जरीए इंसानों में संक्रमण फैला सकता है. इन जूनोटिक बीमारियों से बचाव के लिए सावधानी बरतना बेहद जरूरी है. बीमार या मरे हुए पशुओं से दूरी बनाए रखें और उन्हें बिना सुरक्षा उपकरणों के न छुएं.

पशुओं के शवों का निबटान निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार करें. बच्चों को बीमार पशुओं से दूर रखें. हमेशा दूध को उबाल कर और मांस व अंडों को अच्छी तरह पकाकर ही सेवन करें. पशुओं का नियमित टीकाकरण कराएं, विशेषकर रेबीज और ब्रुसेलोसिस जैसी बीमारियों के टीके जरूर  लगवाएं. पशुओं की देखभाल करते समय दस्ताने, मास्क और अन्य सुरक्षात्मक उपकरणों का उपयोग करें. साफसफाई का ध्यान रखें, पशु बाड़ों और उपकरणों को नियमित रूप से कीटाणुनाशक से साफ करें, और संदिग्ध मामलों में तुरंत पशु चिकित्सक या स्वास्थ्य अधिकारी से संपर्क करें.

जुलाई महीने की 6 तारीख को विश्व जूनोटिक दिवस मनाने का उद्देश्य है लोगों को इन बीमारियों के बारे में जागरूक करना और एक स्वस्थ, सुरक्षित समाज की दिशा में कदम बढ़ाना. पशुपालन से जुड़े सभी लोगों की जिम्मेदारी है कि वे स्वयं सुरक्षित रहें और दूसरों को भी सुरक्षित रखने में योगदान दें.

दुग्ध संग्रहण और मत्स्य उत्पादन दो गुना करें

ग्वालियर : कृषि उत्पादन आयुक्त अशोक वर्णवाल ने पशुपालन ,डेयरी व मत्स्य उत्पादन को आय की प्रमुख आर्थिक गतिविधि बनाने पर जोर देते हुए निर्देश दिए कि दुग्ध संग्रहण व मत्स्य उत्पादन को दो गुना करें. उन्होंने बताया कि वर्तमान में 10 लाख लिटर दूध का प्रति दिन संग्रहण हो रहा है. इसे 20 लाख लिटर प्रति दिन किया जाए. उन्होंने दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए पशु नस्ल में सुधार व दुग्ध संग्रहण के लिए प्रभावी कार्य योजना बना कर उस पर अमल करने के निर्देश दिए.

इसी तरह उन्होंने केज कल्चर जैसी विधियां अपना कर मत्स्य उत्पादन बढ़ाने के लिए भी कहा. उन्होंने यह भी निर्देश दिए कि मत्स्य व्यवसाइयों के लिए ‘मछुआ समृद्धि योजना’ के तहत स्मार्ट फिश पार्लर बनाने के काम को अधिक महत्त्व दिया जाए. अशोक वर्णवाल ने यह भी कहा कि सांची पार्लर में सांची दूध की बिक्री अवश्य हो, ऐसा न करने वाले पार्लर निरस्त किए जाएं.

दुग्ध संग्रहण बढ़ाने के लिए पशुपालकों को बनाएं कलेक्शन एजेंट

अतिरिक्त मुख्य सचिव पशुपालन उमाकांत उमराव ने सभी जिला कलेक्टरों से कहा कि दुग्ध संग्रहण बढ़ाने के लिए पशुपालकों को कलेक्शन एजेंट बनाएं. इस के लिए उन्हें कमीशन भी दिया जाए. 5 साल तक हर साल 1,000 कलेक्शन एजेंट बनाएं. उन्होंने आगे कहा कि दूध की इकौनोमिक वैल्यू गेहूं व धान से ज्यादा है. दूध उत्पादन को बढ़ावा दे कर हम किसानों की आय में बड़ा इजाफा कर सकते हैं.

सचिव पशुपालन एवं डेयरी सत्येंद्र सिंह ने कहा कि डा. भीमराव अंबेडकर कामधेनु योजना और  आचार्य विद्यासागर गौ संवर्धन योजना सहित अन्य योजनाओं की लक्ष्य पूर्ति कर गौ वंश का प्रबंधन और किसानों की आय बढ़ाने के लिए किया जा रहा है.

अधिक आय वाली फसलें उगाएं और डेयरी व मत्स्य को बनाए कमाई का जरीया

ग्वालियर : मध्य प्रदेश के कृषि उत्पादन आयुक्त अशोक वर्णवाल ने कहा है कि किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए परंपरागत कृषि को हाई वेल्यू क्रौप (अधिक आय वाली फसल) में शिफ्ट किया जाए. उन्होंने कहा कि किसानों को इस प्रकार की फसलें अपनाने के लिए प्रेरित करें. उन्होंने कहा कि पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्यपालन को आय का अतिरिक्त जरीया न समझे, बल्कि उसे पूर्ण आर्थिक गतिविधि के रूप में लें, जिस से किसानों की आय में अधिक इजाफा हो.

कृषि उत्पादन आयुक्त अशोक वर्णवाल ने सभी जिला कलेक्टरों से कहा कि वे अपनेअपने जिले में किसानों को परंपरागत खेती के स्थान पर ऐसी फसलें लेने के लिए प्रेरित करें जिस का बाजार में अधिक मूल्य मिल रहा है. इस से किसानों कि आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और किसानों को बेहतर बाजार भी उपलब्ध होगा. उन्होंने यह भी कहा कि किसानों को आधुनिक तकनीक के साथसाथ कृषि के क्षेत्र में उपयोग में लाई जा रही मशीनरी के लाभों से भी अवगत कराया जाए.

कृषि उत्पादन आयुक्त अशोक वर्णवाल ने कहा कि वर्तमान समय सूचना का समय है. सोशल मीडिया के माध्यम से भी किसानों के हित में केंद्र सरकार व प्रदेश सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों की जानकारी किसानों तक पहुंचाई जाए. आधुनिक तरीके से कृषि कर रहे सफल किसानों की जानकारी अन्य किसानों को मिले इस के लिए भी सोशल मीडिया का अधिक से अधिक उपयोग किया जाए.

अपर मुख्य सचिव हौर्टिकल्चर अनुपम राजन ने कहा कि उद्यानिकी के क्षेत्र में किसानों को प्रेरित किया जाना चाहिए. इस क्षेत्र के विकास की अपार संभावनाएं हैं. हमारा प्रयास होना चाहिए कि उद्यानिकी का क्षेत्र और बढ़े. किसान उद्यानिकी के क्षेत्र में भी ऐसी फसलों को चुने जिस के बाजार में अच्छे दाम मिल रहे हों. उन्होंने आगे कहा कि उद्यानिकी के क्षेत्र में कार्य कर रहे किसानों का भी शतप्रतिशत पंजीकरण हो यह पक्का किया जाए. सैंटर फौर एक्सीलैंस के प्रस्ताव जिला कलेक्टर शासन को भेजे, ताकि शासन स्तर पर स्वीकृति प्रदान की जा सके.

कृषि संचालक अजय गुप्ता ने बैठक में उर्वरक के उपयोग व उस की उपलब्धता के संबंध में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने कहा कि प्रदेश में डीएपी के वैकल्पिक उर्वरकों के बारे में किसानों को विस्तार से बताया जाए. सोशल मीडिया के माध्यम से भी किसानों को यह जानकारी दी जाए. उन्होंने कहा कि डबल लौक सैंटर पर जहां किसान खादबीज लेने आते हैं वहां पर एक बेहतर सैंटर स्थापित किया जाए. केंद्र पर किसानों के बैठने, छाया, प्रकाश व पेयजल की व्यवस्था हो, ताकि किसानों को किसी प्रकार की परेशानी न हो.

आयुक्त सहकारिता मनोज पुष्प ने भी सहकारिता के क्षेत्र में प्रदेश सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों की जानकारी दी. उन्होंने जिला कलेक्टरों से अपेक्षा की वे सहकारिता के क्षेत्र में भी निरंतर मोनिटरिंग कर विभागीय कार्यों का बेहतर क्रियान्वयन सुनिश्चित कराएं.

संभागीय आयुक्त मनोज खत्री ने शुरुआत में ग्वालियर चंबल संभाग के संबंध में विस्तार से जानकारी दी. सभी जिला कलेक्टरों व मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत द्वारा अपने अपने जिले के संबंध में इन सभी विभागों से संबंधित लक्ष्य की पूर्ति और गौशालाओं की स्थापना के बारे में जानकारी दी गई.

Capsicum : शिमला मिर्च की खेती से मालामाल हुए शशांक पटेल

Capsicum : राज्‍य शासन की किसान सहायक नीतियों और योजनाओं का लाभ ले कर अब किसान पारं‍परिक खेती को छोड़ कर आधुनिक खेती की ओर बढ़ रहे हैं, ताकि कम लागत में अच्‍छा मुनाफा हो सके. अधिक मुनाफा के लिए किसान उद्यानिकी फसलों जैसे सब्‍जी, फूल और फल की उन्‍नत खेती कर रहे हैं. ऐसे ही कटनी जिले के विकास खंड बहोरीबंद के गांव खड़रा निवासी प्रगतिशील किसान शशांक पटेल हैं. जिन्‍होंने उद्यानिकी विभाग की राष्‍ट्रीय कृषि विकास योजना का लाभ ले कर करीब एक एकड़ जमीन में शेडनेट हाउस के अंदर उच्‍च कोटि की सब्‍जी शिमला मिर्च की खेती कर हर साल करीब 5 लाख रूपए की आमदनी कर रहे हैं. किसान शशांक पटेल पहले इसी जमीन पर गेहूं की खेती करते थे. जिस की लागत आदि काट कर उन्‍हें बमुश्किल सालाना मात्र 30 हजार रूपए की आमदनी हो पाती थी.

किसान शशांक पटेल ने शिमला मिर्च की खेती

किसान शशांक पटेल ने करीब एक एकड़ में शेडनेट हाउस का इस्तेमाल कर शिमला मिर्च की खेती कर अपने आसपास के क्षेत्र के दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा बन गए हैं. उद्यानिकी विभाग के परियोजना अधिकारी एसके त्रिपाठी ने बताया कि किसान शशांक पटेल को योजनांतर्गत शेडनेट हाउस के निर्माण के लिए 14 लाख 20 हजार रूपए का अनुदान प्रदान किया गया था. इस के बाद शिमला मिर्च की खेती कर शशांक पटेल ने एक एकड़ में औसतन 350 क्विंटल शिमला मिर्च पैदा करते हैं और मंडी के उतारचढ़ाव भरे बाजार भाव के अनुसार थोक व्‍यापारी 15 से 20 रूपए प्रति किलो की दर से शिमला मिर्च खरीद कर ले जाते हैं.

किसान शशांक पटेल ने बताया कि करीब एक एकड़ में शिमला मिर्च की खेती में करीब 6 लाख रूपए की लागत आती है और इसे बेचने के बाद लागत राशि काटकर एक एकड़ में मुझे 5 लाख रूपए साल का शुद्ध मुनाफा हो जाता है. परियोजना अधिकारी एसके त्रिपाठी ने बताया कि शशांक पटेल को शिमला मिर्च की उच्‍च कोटि की खेती के लिए पहले दिए गए 14 लाख 20 हजार रूपए की अनुदान राशि के अलावा 2 लाख 80 हजार रूपए का और भी अनुदान शासन की योजना के अनुसार दिया गया है.

एकीकृत बागबानी विकास मिशन योजना में करें आवेदन

बड़वानी : बड़वानी जिले में एकीकृत बागबानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए विभिन्न घटकों जैसे संकर सब्जी व मसाला क्षेत्र विस्तार, पुष्प व प्याज क्षेत्र विस्तार, संरक्षित खेती पौली हाउस, शेडनेट हाउस, शेडनेट हाउस में सब्जी की खेती, जैविक खेती वर्मी बेड इकाई और कृषि यंत्र पावर नैपसैक स्प्रेयर, फल बंच कंवर, वीड मेट, इको फ्रेंडली लाइट ट्रैप, सोलर क्रौप ड्रायर, जीर्णोद्धार के लिए औनलाइन आवेदन आमंत्रित किए जा रहे हैं.

उपसंचालक उद्यान विभाग से प्राप्त जानकारी के मुताबिक इच्छुक किसान एमपी एफएसटीएस पोर्टल पर पंजीकरण के बाद किसान आईडी से योजना से संबंधित आवेदन कर सकते हैं. हितग्राहियों का चयन लाटरी के माध्यम से किया जाएगा. पंजीकरण के लिए आधार कार्ड, बैंक पासबुक की फोटोकापी, खसरा बी-1, मोबाइल नंबर, पासपोर्ट साइज फोटो एवं जाति प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज आवश्यक हैं.

किसान अधिक जानकारी के लिए अपनेअपने विकास खंड के वरिष्ठ उद्यान विकास अधिकारी कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं. उपसंचालक उद्यान ने जिले के सभी पात्र किसानों से समय पर आवेदन करने की अपील की है, ताकि वे इस योजना का लाभ उठा सकें.

मध्य प्रदेश के 50 फीसदी गांवों को दुग्ध नेटवर्क से जोड़ने की तैयारी

Milk Network : बड़वानी 08 जुलाई 2025 मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने कहा है कि राज्य सरकार प्रदेश में दूध उत्पादन बढ़ा कर किसानों और पशुपालकों की आर्थिक उन्नति के लिए प्रतिबद्ध है. इस के लिए प्रदेश के 50 फीसदी गांवों को दूध नेटवर्क में लाने की रणनीति पर कार्य किया जा रहा है. नई 381 दुग्ध सहकारी समितियों का गठन कर 9,500 दूध उत्पादकों को सहकारी डेयरी प्रणाली से जोड़ा गया है.

मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव रविवार को मुख्यमंत्री निवास में पशुपालन एवं डेयरी विकास विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से चर्चा कर रहे थे. इस से पहले केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने मध्यप्रदेश के लिए डेयरी विकास योजना को क्रियान्वित करने के लिए आवश्यक संशोधन कर अधिक लाभकारी बनाने के निर्देश दिए थे. अब राज्य में दूध उत्पादन की 72 फीसदी संभावित क्षमता को कवर करने और बाजार पहुंच को 15 फीसदी बढ़ाने की दिशा में कार्य किया जा रहा है.

मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने दूध संग्रहण बढ़ाने, दुधारू पशुओं की नस्ल सुधार, राष्ट्रीय डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड के सहयोग से देशी नस्ल के पशुओं के लिए मौडल फार्म विकसित करने, सांची ब्रांड की लोकप्रियता बढ़ाने, भोपाल दुग्ध संघ के अंतर्गत हीफर रियरिंग सैंटर की स्थापना, दूध उत्पादक किसानों को खरीदे गए दूध की कीमत का समय पर भुगतान, डिजीटाइजेशन वर्क की प्रगति की जानकारी प्राप्त कर अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिए.

दुग्ध संघों ने जब ढाई से छह रुपए प्रति लिटर राशि बढ़ाई तब इस मौके पर बताया गया कि प्रदेश के दुग्ध संघों में न सिर्फ दूध का संग्रहण बढ़ रहा है, बल्कि किसानों और दूध उत्पादकों का हित भी सुनिश्चित हो रहा है. दुग्ध संघों में दूध के मूल्यों में ढाई रुपए से ले कर छह रुपए तक प्रति लिटर वृद्धि का कार्य किया है. प्रदेश में दो दुग्ध संघों जबलपुर और ग्वालियर में दूध के संग्रहण में महत्त्वपूर्ण बढ़ोतरी हुई है. जबलपुर और ग्वालियर दुग्ध संघ को दूध उत्पादकों के लंबित भुगतान के लिए 2-2 करोड़ रुपए की कार्यशील पूंजी भी दी गई है.