मछुआरों के लिए कल्याणकारी योजनओं (Welfare Schemes) का शुभारंभ

मत्स्यपालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय द्वारा भारत में मात्स्यिकी क्षेत्र के स्थायी और जिम्मेदार विकास और मछुआरों के कल्याण के माध्यम से नीली क्रांति (ब्लू रेवोल्यूशन) लाने के लिए सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 20,050 करोड़ रुपए के निवेश से एक प्रमुख योजना ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’ (पीएमएमएसवाई) का कार्यान्वयन  किया जा रहा है.

इस योजना में मछुआरों और मत्स्य किसानों के लिए कई कल्याणकारी गतिविधियों की परिकल्पना की गई है, जिस में विभाग ने पीएमएमएसवाई योजना के तहत वेस्सल कम्युनिकेशन एंड सपोर्ट सिस्टम के नैशनल रोलआउट प्लान को मंजूरी दी है, जिस में 364 करोड़ रुपए के कुल खर्च के साथ सभी तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों  में 1,00,000 फिशिंग वेसल्स पर ट्रांसपोंडर की स्थापना शामिल है.

नाव मालिकों को ट्रांसपोंडर के लिए मुफ्त में सहायता प्रदान की जाती है, जिस में टू वे कम्यूनिकेशन की सुविधा उपलब्ध है और संपूर्ण एक्सक्लूसिव इकोनोमिक जोन को कवर करते हुए किसी भी आपात स्थिति के दौरान छोटे टेक्स्ट मैसेज भेजे जा सकते हैं. यह मछुआरों को समुद्री सीमा के पास आने या उसे पार करने पर अलर्ट भी करता है.

इस के अलावा अन्य गतिविधियों जैसे समुद्री राज्यों/संघ  राज्य क्षेत्रों में इंटीग्रेटेड कोस्टल फिशिंग, गांवों का विकास, जिस का उद्देश्य स्थायी मत्स्य प्रथाओं के माध्यम से पर्यावरणीय नुकसान को कम करते हुए तटीय मछुआरों को आर्थिक और सामाजिक लाभ प्रदान  करना है.

18 से 70 साल की आयु समूह में आकस्मिक मृत्यु या स्थायी पूर्ण शारीरिक अक्षमता  पर 5 लाख रुपए, आकस्मिक स्थायी आंशिक शारीरिक अक्षमता पर 2.50 लाख रुपए और दुर्घटनावश अस्पताल में भरती होने पर 25,000 रुपए का बीमा लाभ प्रदान करना, 18 से 60 साल की आयु समूह के लिए मछली पकड़ने पर प्रतिबंध/मंद अवधि के दौरान मत्स्य संसाधनों के संरक्षण के लिए सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े सक्रिय पारंपरिक मछुआरों के परिवारों के लिए आजीविका और पोषण संबंधी सहायता देना, जिस में  मछली पकड़ने पर प्रतिबंध/मंद अवधि के  दौरान  3 महीनों के लिए प्रति मछुआरे  को 3,000 रुपए की सहायता प्रदान की जाती है, जिस में लाभार्थी का योगदान 1,500 रुपए  होता है और इस के लिए सामान्य राज्य के लिए अनुपात 50:50, उत्तरपूर्वी राज्यों और हिमालयी राज्यों  के  लिए  80:20, जबकि केंद्र शासित प्रदेशों के लिए सौ फीसदी है.

वर्तमान में चल रही पीएमएमएसवाई के तहत मछुआरों और मत्स्य किसानों को माली रूप से सशक्त बनाने और उन की बारगैनिंग पावर बढ़ाने के लिए मत्स्य किसान उत्पादक संगठनों/फिश फार्मर प्रोड्यूसर और्गेनाइजेशन (एफएफपीओ) की स्थापना के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करने का प्रावधान है, जो मछुआरों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में मदद करता है.

मत्स्यपालन विभाग ने अब तक 544.85 करोड़ रुपए की कुल परियोजना लागतपर कुल 2,195 एफएफपीओ की स्थापना के लिए मंजूरी दी है, जिस में 2,000 मत्स्य सहकारिताओं को एफएफपीओ का रूप देने और 195 नए एफएफपीओ गठित करना शामिल है.

इस के अलावा, मछुआरों और मत्स्यपालकों द्वारा संस्थागत ऋण तक पहुंच को सुविधाजनक बनाने के लिए साल 2018-19 से किसान क्रेडिट कार्ड की  सुविधा को मात्स्यिकी क्षेत्र तक विस्तारित किया गया है और आज तक मछुआरों और मत्स्यपालकों को 4,50,799 केसीसी कार्ड दिए गए हैं.

राष्ट्रीय गोकुल मिशन (Rashtriya Gokul Mission)

‘राष्ट्रीय गोकुल मिशन’ योजना दूध उत्पादन और बोवाइन पशुओं की उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. इस योजना के कार्यान्वयन और पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा किए गए अन्य उपायों से देश में दूध उत्पादन साल 2014-15 में 146.31 मिलियन टन से बढ़ कर साल 2023-24 में 239.30 मिलियन टन हो गया है.

पिछले 10 सालों के दौरान 63.55 फीसदी की वृद्धि हुई है. देश में बोवाइन पशुओं की कुल उत्पादकता साल 2014-15 में प्रति पशु प्रति वर्ष 1,640 किलोग्राम से बढ़ कर साल 2023-24 में प्रति पशु प्रति वर्ष 2,072 किलोग्राम हो गई है. यह 26.34 फीसदी की वृद्धि है, जो विश्व में किसी भी देश द्वारा बोवाइन पशुओं की उत्पादकता में हुई सब से अधिक बढ़ोतरी है.

देशी और नौनडिस्क्रिप्ट गोपशुओं की उत्पादकता वर्ष 2014-15 में प्रति पशु प्रति वर्ष 927 किलोग्राम से बढ़ कर साल 2023-24 में प्रति पशु प्रति वर्ष 1,292 किलोग्राम हो गई है, जो 39.37 फीसदी  की वृद्धि है.

भैंसों की उत्पादकता साल 2014-15 में प्रति पशु प्रति वर्ष 1,880 किलोग्राम से बढ़ कर साल 2023-24 में प्रति पशु प्रति वर्ष 2,161 किलोग्राम हो गई है, जो 14.94 फीसदी  की वृद्धि है.

राष्ट्रीय गोकुल मिशन के अंतर्गत दूध उत्पादन और बोवाइन पशुओं की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए कई सफलतापूर्वक योजनाओं का कार्यान्वयन किया जा रहा है.

राष्ट्रव्यापी कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम: राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग दूध उत्पादन और देशी नस्लों सहित बोवाइन पशुओं की उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए कृत्रिम गर्भाधान कवरेज का विस्तार कर रहा है. अब तक 8.32 करोड़ पशुओं को कवर किया गया है, 12.20 करोड़ कृत्रिम गर्भाधान किए गए हैं, जिस से 5.19 करोड़ किसान लाभान्वित हुए हैं.

संतति परीक्षण और नस्ल चयन: इस कार्यक्रम का उद्देश्य देशी नस्लों के सांडों सहित उच्च आनुवंशिक गुणवत्ता वाले सांडों का उत्पादन करना है. संतति परीक्षण को गोपशु की गिर, साहीवाल नस्लों और भैंसों की मुर्राह, मेहसाणा की नस्लों के लिए चलाया जा रहा है.

नस्ल चयन कार्यक्रम के अंतर्गत गोपशु की राठी, थारपारकर, हरियाणा, कांकरेज की नस्ल और भैंस की जाफराबादी, नीली रवि, पंढारपुरी और बन्नी नस्लों को शामिल किया गया है. अब तक 3,988 उच्च आनुवंशिक गुणवत्ता वाले सांडों का उत्पादन किया गया है और उन्हें वीर्य उत्पादन के लिए शामिल किया गया है.

इनविट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक का कार्यान्वयन : देशी नस्लों के उत्कृष्ट पशुओं का प्रसार करने के लिए विभाग ने 22 आईवीएफ प्रयोगशालाएं स्थापित की हैं. आईवीएफ तकनीक की आनुवंशिक उन्‍नयन में महत्‍वपूर्ण भूमिका है और यह कार्य एक ही पीढ़ी में संभव है. इस के अतिरिक्‍त किसानों को उचित दरों पर तकनीक उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने आईवीएफ मीडिया शुरू किया है.

सेक्ससौर्टेड वीर्य उत्पादन : विभाग ने गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में स्थित 5 सरकारी वीर्य स्टेशनों पर सैक्स सौर्टेड वीर्य उत्पादन सुविधाएं स्थापित की हैं. 3 निजी वीर्य स्टेशन भी सैक्ससौर्टेड वीर्य खुराक का उत्पादन कर रहे हैं. अब तक उच्च आनुवंशिक गुणवत्ता वाले सांडों से 1.15 करोड़ सैक्ससौर्टेड वीर्य खुराकों का उत्पादन किया गया है और उसे कृत्रिम गर्भाधान के लिए उपलब्ध कराया गया है.

जीनोमिक चयन : गोपशु और भैंसों के आनुवंशिक सुधार में तेजी लाने के लिए विभाग ने देश में जीनोमिक चयन शुरू करने के लिए विशेष रूप से तैयार की गई एकीकृत जीनोमिक चिप विकसित की है – देशी गोपशुओं के लिए गौ चिप और भैंसों के लिए महिष चिप.

ग्रामीण भारत में बहुद्देश्यीय कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन (मैत्री): इस योजना के तहत मैत्री को किसानों के द्वार पर गुणवत्तापूर्ण कृत्रिम गर्भाधान सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रशिक्षित और सुसज्जित किया जाता है. पिछले 3 सालों के दौरान राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत 38,736 मैत्री को प्रशिक्षित और सुसज्जित किया गया है.

सैक्ससौर्टेड वीर्य का उपयोग कर के त्वरित नस्ल सुधार कार्यक्रम : इस कार्यक्रम का उद्देश्य 90 फीसदी सटीकता के साथ बछियों का उत्पादन करना है, जिस से नस्ल सुधार और किसानों की आय में वृद्धि हो. किसानों को सुनिश्चित गर्भधारण के लिए सैक्ससौर्टेड वीर्य की लागत के 50 फीसदी तक सहायता मिलती है.

इस कार्यक्रम से अब तक 341,998 किसान लाभान्वित हो चुके हैं. सरकार ने किसानों को उचित दरों पर सैक्ससौर्टेड वीर्य उपलब्ध कराने के लिए देशी रूप से विकसित सैक्ससौर्टेड वीर्य तकनीक शुरू की है.

इनविट्रो फर्टिलाइजेश तकनीक का उपयोग कर त्वरित नस्ल सुधार कार्यक्रम : इस तकनीक का उपयोग बोवाइन पशुओं के तीव्र आनुवंशिक उन्नयन के लिए किया जाता है और आईवीएफ तकनीक अपनाने में रुचि रखने वाले किसानों को प्रत्येक सुनिश्चित गर्भावस्था पर 5,000 रुपए की प्रोत्साहन राशि उपलब्ध कराई जाती है.

देशी बोवाइन नस्लों के विकास और संरक्षण के लिए साल 2014-15 और साल 2024-25 (दिसंबर, 2024 तक) के बीच कार्यान्वयन एजेंसियों को 4,442.87 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता जारी की गई और इस के मुकाबले साल 2004-05 और साल 2013-14 के बीच गोपशु और भैंस विकास के लिए 983.43 करोड़ रुपए की राशि जारी की गई. इस योजना का लाभ दूध उत्पादन और बोवाइन पशुओं की उत्पादकता में वृद्धि के रूप में डेयरी से जुड़े किसानों को मिल रहा है.

बजट में मत्स्यपालन के लिए बड़ा ऐलान,50 लाख लोगों को होगा फायदा

साल 2025-2026 के लिए लोकसभा में पेश किए गए केंद्रीय बजट में इस बार मत्स्यपालन क्षेत्र के लिए अब तक की सब से अधिक कुल 2,703.67 करोड़ रुपए की सालाना राशि आवंटित की गई. वित्तीय वर्ष 2025-2026 के लिए यह आवंटित राशि पिछले साल 2024-25 के दौरान 2,616.44 करोड़ की तुलना में 3.3 फीसदी अधिक है. इस में साल 2025-26 के दौरान प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के लिए 2,465 करोड़ रुपए का आवंटन  शामिल है, जो पिछले वर्ष 2024-25 के दौरान योजना के लिए किए गए आवंटन (2,352 करोड़ रुपए) की तुलना में 4.8 फीसदी अधिक है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण में जलीय कृषि और समुद्री भोजन निर्यात में अग्रणी के रूप में भारत की उपलब्धि पर जोर दिया. यह बजट रणनीतिक रूप से वित्तीय समावेशन को बढ़ाने, सीमा शुल्क को कम कर के किसानों पर वित्तीय बोझ कम करने और समुद्री मत्स्यपालन के विकास को आगे बढ़ाने पर केंद्रित है.

बजट 2025-26 में लक्षद्वीप और अंडमाननिकोबार द्वीप समूहों पर विशेष ध्यान देने के साथ विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र और खुले समुद्र से मत्स्यपालन के स्थायी उपयोग के लिए रूपरेखा को सक्षम करने पर जोर दिया गया है. चूंकि भारत में 20 लाख वर्ग किलोमीटर का विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र और 8,118 किलोमीटर की लंबी तटरेखा है, जिस की अनुमानित समुद्री क्षमता 53 लाख टन है और 50 लाख लोगों की आजीविका समुद्री मत्स्यपालन क्षेत्र पर निर्भर है.

यह भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र, विशेष रूप से अंडमाननिकोबार और लक्षद्वीप द्वीप समूह के आसपास उच्च मूल्यवान ट्यूना और ट्यूना मछली जैसी प्रजातियों के उपयोग के लिए विशाल गुंजाइश और क्षमता प्रदान करता है. सरकार क्षमता विकास के साथ गहरे समुद्र में मछली पकड़ने को बढ़ावा देगी और संसाधन विशिष्ट मछली पकड़ने वाले जहाजों के अधिग्रहण का समर्थन करेगी.

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में मत्स्यपालन के विकास का लक्ष्य 6.60 लाख वर्ग किलोमीटर आर्थिक क्षेत्र का उपयोग करना होगा, जिस में 1.48 लाख टन की समुद्री मत्स्यपालन क्षमता होगी, जिस में ट्यूना मत्स्यपालन के लिए 60,000 टन की क्षमता भी शामिल है.

इस उद्देश्य के लिए ट्यूना क्लस्टर के विकास को अधिसूचित किया गया है. ट्यूना मछली पकड़ने वाले जहाजों में औनबोर्ड प्रसंस्करण और फ्रीजिंग सुविधाओं की स्थापना, गहरे समुद्र में ट्यूना मछली पकड़ने वाले जहाजों के लिए लाइसैंस व अंडमाननिकोबार प्रशासन द्वारा एकल खिड़की मंजूरी जैसी गतिविधियों के अवसरों का उपयोग करने पर जोर दिया गया है.

समुद्री पिंजरा संस्कृति में समुद्री शैवाल, सजावटी और मोती की खेती पर भी जोर दिया गया है. लक्षद्वीप द्वीप समूह में मत्स्यपालन के विकास का लक्ष्य इस के 4 लाख वर्ग किलोमीटर के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र  और 4200 वर्ग किलोमीटर के लैगून क्षेत्र का उपयोग होगा, जिस में 1 लाख टन की क्षमता होगी, जिस में ट्यूना मछलीपालन के लिए 4,200 टन की क्षमता भी शामिल है.

इस उद्देश्य के लिए समुद्री शैवाल क्लस्टर के विकास को अधिसूचित किया गया है और लक्षद्वीप प्रशासन द्वारा शुरू से अंत तक मूल्य श्रृंखला के साथ द्वीपवार क्षेत्र आवंटन और पट्टे की नीति, महिला स्वयं सहायता समूह का गठन और आईसीएआर संस्थान के माध्यम से क्षमता निर्माण जैसी गतिविधियां की गई हैं. निजी उद्यमियों और लक्षद्वीप प्रशासन के सहयोग से ट्यूना मछली पकड़ने और सजावटी मछलीपालन में अवसरों का उपयोग करने पर जोर दिया गया है.

इस बार केंद्रीय बजट 2025 में भारत सरकार ने मछुआरों, किसानों, प्रसंस्करणकर्ताओं और अन्य मत्स्यपालन हितधारकों के लिए ऋण पहुंच बढ़ाने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) की ऋण सीमा को 3 लाख से बढ़ा कर 5 लाख रुपए कर दिया है.

इस कदम का उद्देश्य वित्तीय संसाधनों के प्रवाह को सुव्यवस्थित करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि क्षेत्र की कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक धन आसानी से उपलब्ध हो. बढ़ी हुई ऋण उपलब्धता आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाने में सहायता करेगी और ग्रामीण विकास और आर्थिक स्थिरता को मजबूत करेगी.

वैश्विक समुद्री भोजन बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने और हमारी निर्यात टोकरी में मूल्यवर्धित उत्पादों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विनिर्माण के लिए जमे हुए मछली पेस्ट (सुरीमी) और नकली केंकड़ा मांस की छड़ें, सुरीमी केंकड़ा पंजा उत्पाद, झींगा एनालौग, लौबस्टर एनालौग और अन्य सुरीमी एनालौग या नकली उत्पाद आदि जैसे मूल्यवर्धित समुद्री खाद्य उत्पादों का निर्यात पर मूल सीमा शुल्क को 30 फीसदी से घटा कर 5 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा है.

इस के अलावा भारतीय झींगापालन उद्योग को विश्व स्तर पर मजबूत करने के लिए एक्वाफीड के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण इनपुट मछली हाइड्रोलाइजेट पर आयात शुल्क 15 फीसदी से घटा कर 5 फीसदी  करने की घोषणा की गई है. इस से उत्पादन लागत कम होने और किसानों के लिए राजस्व और लाभ मार्जिन बढ़ने की उम्मीद है, जिस से निर्यात में सुधार और वृद्धि होगी.

भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख ‘सूर्योदय क्षेत्रों’ में से एक कहे जाने वाले भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र ने अपनी छाप छोड़ी है. कृषि के अंतर्गत संबद्ध क्षेत्रों में उत्पादन के मूल्य वित्त वर्ष 2014-15 से 2022-23 तक में 9.0 फीसदी की उच्चतम औसत वार्षिक दशकीय वृद्धि दर्ज करते हुए बहुत स्वस्थ गति से बढ़ रहा है. इस विकास की कहानी को वैश्विक मछली उत्पादन में 8 फीसदी  हिस्सेदारी और 184.02 लाख टन (2023-24) के रिकौर्ड उच्च मछली उत्पादन के साथ दूसरे सब से बड़े मछली उत्पादक देश के रूप में भारत की वैश्विक रैंकिंग द्वारा चिन्हित किया गया है.

भारत साल 2023-24 में 139.07 लाख टन के साथ जलीय कृषि उत्पादन में दूसरे स्थान पर है और 60,524 करोड़ रुपए के कुल निर्यात मूल्य के साथ दुनिया में शीर्ष झींगा उत्पादक और समुद्री खाद्य निर्यातक देशों में से एक है. यह क्षेत्र हाशिए पर मौजूद और कमजोर समुदायों के 30 मिलियन से अधिक लोगों को स्थायी आजीविका प्रदान करता है. ‘सब का साथ, सब का विकास, सब का विश्वास, सब का प्रयास’ के आदर्श वाक्य के साथ भारत सरकार साल 2047 तक विकसित भारत की दिशा में प्रमुख चालक के रूप में मत्स्यपालन क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता दे रही है.

बजट 2025-26: किसानों के लिए कड़वी घुट्टी या लालीपौप

“अन्नदाता सुखी भव:!” यह वाक्य भारत में सरकारों का शाश्वत जुमला बन चुका है. लेकिन सच यह है कि किसान सुखी तभी तक है, जब तक वह चुनावी मंचों और घोषणापत्रों में ‘संपन्न’ दिखता है. जैसे ही बजट आता है, वह एक बार फिर कर्ज, सूखा, बेमौसम बारिश और फसलों के गिरते दामों की भूलभुलैया में धकेल दिया जाता है. वित्त वर्ष 2025-26 का बजट भी किसानों के लिए वही पुरानी कहानी दोहराता है— वादों का महल और हकीकत की झोंपड़ी.

सरकार ने कुल 47.66 लाख करोड़ रुपए का बजट पेश किया. इस में रेलवे के लिए 3 लाख करोड़ और सड़क परिवहन के लिए 2.9 लाख करोड़ की सौगात दी गई. लेकिन देश के 61 फीसदी लोगों की रोजीरोटी चलाने वाले और 1.5 अरब आबादी को दोनों वक्त भोजन देने वाले कृषि क्षेत्र को मात्र 1.75 लाख करोड़ रुपए?

कहने को यह पिछले साल से 23 हजार करोड़ रुपए ज्यादा है, लेकिन महंगाई और मुद्रास्फीति को देखते हुए यह वास्तव में बजट में कटौती ही है. किसानों को यह बजट वैसा ही महसूस होगा, जैसे किसी भूखे को अधजली रोटी का टुकड़ा पकड़ा कर कहा जाए, “लो, खूब जी भर के खाओ.”

किसानों के लिए लालीपौप ब्रांड स्कीमें

अब आते हैं उन “अद्भुत” घोषणाओं पर, जिन का ढोल पीट कर सरकार ने यह जताने की कोशिश की है कि किसानों की बल्लेबल्ले हो गई.

किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा 3 लाख से बढ़ा कर 5 लाख रुपए कर दी गई. वाह, अब किसानों के सिर पर कर्ज का बोझ और भी तेजी से बढ़ेगा यानी नया कर्ज लो, पुराना चुकाओ, ब्याज बढ़ाओ और फिर आत्मनिर्भरता का सपना देखो.

धनधान्य योजना में 100 जिलों के 1.7 करोड़ किसानों को जोड़ने की बात कही गई है. सोचने वाली बात यह है कि भारत में 797 जिले हैं (लगभग 800), लेकिन इस में सिर्फ 100 जिलों को ही शामिल किया गया है यानी अगर सबकुछ ठीकठाक भी चला, तब भी यह योजना पूरे देश में लागू होने में 8 साल लगा देगी. यह वैसा ही है, जैसे किसी बीमार व्यक्ति को कहा जाए, “अभी 100 लोगों का इलाज करेंगे, बाकी को इंतजार करना होगा.”

दालों में आत्मनिर्भरता के लिए 6 साल की योजना घोषित की गई है. अरहर, उड़द, मसूर पर विशेष ध्यान दिया जाएगा. लेकिन इस योजना के लिए कितना बजट तय किया गया है, इस का कहीं कोई जिक्र नहीं किया गया. ऐसे में यह एक पोस्टडेटेड चेक की तरह है, जो किसानों के लिए कागज पर तो अच्छा दिखता है, लेकिन असल में काम आएगा या नहीं, इस की कोई गारंटी नहीं है.

नेफेड और एनसीसीएफ किसानों से दालें खरीदेंगे, ऐसा कहा गया है. पर इन संस्थाओं का इतिहास बताता है कि खरीदारी का खेल महज फाइलों में ही ज्यादा चलता है.

डेयरी और फिशरी सैक्टर के लिए 5 लाख रुपए तक का लोन यानी और कर्ज, और ब्याज, और सरकार का बढ़िया विज्ञापन. वैसे, यहां यह बताना भी जरूरी है कि देरी और फिशरी सैक्टर के लिए और भी कई ऋण योजनाएं पहले से ही चल रही हैं.

कपास के लिए 5 साल का मिशन चलाया जाएगा, जिस में उत्पादन और विपणन पर ध्यान रहेगा. लेकिन इस के लिए भी सरकार ने कितना बजट तय किया है, इस की कोई जानकारी नहीं दी गई यानी यह भी एक पोस्टडेटेड चेक ही है. पिछले अनुभवों को देखते हुए किसानों को यह मान कर चलना चाहिए कि इन चेक के बाउंस होने की पूरी संभावना है, जैसे कि ‘साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी’ करने का वादा भी एक जुमला ही साबित हुआ.

पीएम किसान सम्मान निधि : ‘नाम बड़े और दर्शन छोटे’

अब आते हैं उस योजना पर, जिस से हर किसान को बहुत उम्मीदें थीं. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि. संसद की स्थायी समिति ने इस योजना के तहत किसानों को सालाना 6,000 रुपए की जगह 12,000 रुपए देने की सिफारिश की थी. सरकार ने इस पर क्या किया, कुछ नहीं.

भला सोचिए, आज के जमाने में 6,000 रुपए सालभर में किसी किसान के लिए क्या कर सकते हैं? इतनी रकम में तो 12 लाख सालाना आय पर टैक्स छूट पाने वाला एक परिवार का शहर के किसी महंगे रेस्तरां में एक डिनर भर कर सकता है. लेकिन सरकार को लगता है कि किसान इतने में खुश हो जाएं, ताली बजाएं और सरकार की जयजयकार करें.

एक बात और, यह योजना पिछले चुनावों के ठीक पहले जब शुरू हुई थी, तो लगभग 13:50 करोड़ किसानों को इस से जोड़ा गया था, पर धीरेधीरे इस के लाभ लेने वाले किसानों की संख्या को काटछांट कर लगभग आधा कर दिया गया है.

कर्ज दो, कर्ज लो, पर किसानों की आय मत बढ़ाओ

इस बजट की सब से बड़ी विडंबना यह है कि यह किसानों को कर्ज लेने के लिए और ज्यादा प्रोत्साहित करता है, लेकिन उन की आय बढ़ाने का कोई ठोस उपाय नहीं करता. कर्ज के सहारे आत्मनिर्भरता का सपना दिखाना वैसा ही है, जैसे पानी में तैरना सिखाने के लिए किसी को बीच समुद्र में फेंक देना.

कर्ज बढ़ता जा रहा है, उत्पादन लागत बढ़ रही है, लेकिन किसानों की आय जस की तस है. सरकार ने साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था. साल 2025 चल रहा है, किसान की आय दोगुनी तो नहीं हुई, हां, उस के कर्ज, समस्याएं और आत्महत्याएं जरूर दोगुनी हो गई हैं.

बजट या छलावा?

यह बजट किसानों के लिए “ऊंट के मुंह में जीरा” जैसा है. सरकार जितने भी बड़ेबड़े वादे करे, जब तक किसान को उस की उपज का सही दाम नहीं मिलेगा, उसे सरकारी योजनाओं की जटिलता से बाहर निकाल कर सीधे लाभ नहीं मिलेगा, तब तक इस तरह के बजट सिर्फ “आश्वासन की खेती” करते रहेंगे, जिस से केवल अफसरों और बिचौलियों की जेब भरेगी.

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन के अनुसार, “सच्चा आर्थिक विकास वही है, जो उन लोगों को सशक्त करे, जो सब से ज्यादा वंचित हैं.”

लेकिन, यह बजट किसान को मजबूत नहीं, बल्कि कर्ज, सरकारी दांवपेंच और वादों के जाल में और फंसाने का ही काम करेगा. यह किसानों के लिए सुखद भविष्य का सपना दिखाने वाला, मगर हाथ में खाली कटोरा पकड़ा देने वाला बजट है.

किसान की थाली खाली, सरकार की माला जारी

तो कुलमिला कर यह बजट किसानों के लिए एक मृगतृष्णा है. घोषणाओं का मीठा पानी है, लेकिन जब किसान इसे पीने जाता है, तो हाथ कुछ नहीं लगता. सरकार को सच में किसानों की चिंता है या सिर्फ घोषणाओं की? यह सवाल अब हर किसान के मन में है.

बहरहाल, सरकार को चाहिए कि वह “कर्ज बांटो और वाहवाही लो” वाली नीति छोड़ कर ‘किसान को मजबूत बनाने के लिए उत्पादन की लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने हेतु ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ गारंटी कानून ले कर आए, वरना वह दिन दूर नहीं जब किसान, जिसे कभी देश की रीढ़ कहा जाता था, खुद को इस देश में बेगाना महसूस करने लगेगा.

थौमस पिकेटी का कहना है, “यदि संपत्ति और संसाधन कुछ हाथों में केंद्रित हो जाएं और आम जनता सशक्त न हो, तो अर्थव्यवस्था का विकास मात्र भ्रम होता है.”

कृषि विज्ञान केंद्र भीलवाड़ा को बेस्ट केवीके अवार्ड (Award)

उदयपुर : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर एवं आईसीएआर-कृषि तकनीकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, जोधपुर क्षेत्र 2 के अधीन कृषि विज्ञान केंद्र भीलवाड़ा को कृषि में नवाचार के क्षेत्र में तकनीकी हस्तांतरण के माध्यम से कृषक समुदाय के बीच में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए बेस्ट केवीके अवार्ड हेतु नामित किया गया है.

यह पुरस्कार कृषि अनुसंधान, नवाचार, अभियांत्रिकी, पोषण और प्रौद्योगिकी में अद्वितीय रुझानों पर ध्यान केंद्रित करने वाला पांचवां अंतर्राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन- न्यूट्रिएंट-2025 (NUTRIENT-2025), जो कि एग्री मीट फाउंडेशन भारत द्वारा 20-21 फरवरी, 2025 के दौरान आइके गुजराल पंजाब तकनीक विश्वविद्यालय से संबद्ध संस्थान भाई गुरूदास ग्रुप औफ इंस्टिट्यूट, संगरूर, पंजाब में दिया जाना प्रस्तावित है.

कृषि विज्ञान केंद्र भीलवाड़ा देश का अग्रणीय ISO 9001:2015 प्रमाणित संस्थान है. साथ ही, केंद्र पर विभिन्न प्रदर्शन इकाइयां जैसे सिरोही बकरी, प्रतापधन मुरगी, डेयरी, चूजा पालन, वर्मी कंपोस्ट, वर्मी वाश, प्राकृतिक खेती इकाई, नर्सरी, नेपियर घास, वर्षा जल संरक्षण इकाई, बायोगैस, मछलीपालन, कम लागत से तैयार हाइड्रोपौनिक हरा चारा उत्पादन इकाई, आंवला, अमरूद एवं नींबू का मातृवृक्ष बगीचा, बीजोत्पादन एवं क्राप केफेटेरिया आदि के माध्यम से कृषक समुदाय के लिए समन्वित कृषि प्रणाली के उद्यम स्थापित कर, स्वरोजगार का सृजन एवं आजीविका को सुदृढ कर आत्मनिर्भर किया जा रहा है, जिस से किसानों का गांव से शहरों की ओर पलायन कम हुआ है.

कृषि विज्ञान केंद्र भीलवाड़ा के तकनीकी सहयोग एवं मार्गदर्शन से जिले में 2 कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) क्रमशः भीलवाड़ा गोटरी प्राइड फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड़ एवं मीव किसान बाजार कृषक उत्पादक संगठन का सफल संचालन किया जा रहा है, जिस से कृषक समुदाय के फसल उत्पादन और अन्य कृषि उत्पादों का समय पर विपणन होने से आमदनी में इजाफा हुआ है.

कृषि विज्ञान केंद्र भीलवाड़ा पर राष्ट्रीय जलवायु समुत्थान कृषि में नवप्रवर्तन (निक्रा), प्राकृतिक खेती, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन दलहन एवं तिलहन, अनुसूचित जनजाति परियोजना, पोषण संवेदी कृषि संसाधन और नवाचार (नारी) जनजातीय क्षेत्रों में ज्ञान प्रणाली और होम स्टेड कृषि प्रबंधन (क्षमता), मूल्य संवर्धन और प्रौद्योगिकी ऊष्मायन केंद्र (वाटिका) आदि परियोजनाओं के माध्यम से महिला किसानों, किसानों एवं ग्रामीण युवाओं का आर्थिक उत्थान किया जा रहा है.

कृषि विज्ञान केंद्र भीलवाड़ा द्वारा समयसमय पर किसान मेलों, कृषकवैज्ञानिक संवाद, किसान गोष्ठी, जागरूकता कार्यक्रम, महत्वपूर्ण दिवस, प्रदर्शन, प्रक्षेत्र दिवस, प्रक्षेत्र परीक्षण आदि प्रसार गतिविधियों का आयोजन कर कृषि नवाचार की सफल तकनीकीयों का हस्तांतरण किया जा रहा है.

उपरोक्त उल्लेखनीय कार्यों को दृष्टिगत रखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र भीलवाड़ा को बेस्ट केवीके अवार्ड से नवाजा गया.

तिलहन फसलों की उन्नत तकनीकी पर एकदिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम

उदयपुर : 29 जनवरी, 2025. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय के अंतर्गत अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तिलहन पर फ्रंटलाइन डेमोंस्ट्रेशन के तहत एकदिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन हुआ. इस कार्यक्रम का उद्देश्य फसल विविधीकरण में तिलहन फसलों को शामिल करने को प्रोत्साहित करते हुए किसानों की आय और कृषि स्थिरता को बढ़ाना था.

कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में परियोजना प्रभारी डा. हरि सिंह ने तिलहन फसलों के महत्व, कृषि प्रणाली में विविधता लाने और किसानों की आय बढ़ाने के तरीकों पर जोर दिया.

डा. जगदीश चौधरी, आर्चाय (कृषि विज्ञान) ने तिलहन आधारित खेती प्रणालियों के माध्यम से स्थायी कृषि विषय पर व्याख्यान दिया. उन्होंने तिलहन आधारित फसल प्रणाली अपनाने के लाभों पर चर्चा की, जिस में मृदा स्वास्थ्य सुधार, संसाधनों का कुशल उपयोग और आर्थिक संवर्धन शामिल हैं.

डा. एचएल बैरवा, आर्चाय (उद्यानिकी) ने पर्यावरण अनुकूल और लाभकारी विविधीकृत उद्यानिकी में तिलहन विषय पर चर्चा की. उन्होंने किसानों को तिलहन फसलों को उद्यानिकी फसलों के साथ एकीकृत करने के आर्थिक और पारिस्थितिक लाभों के बारे में बताया. वहीं डा. बीजी छिप्पा, सहआर्चाय (उद्यानिकी) ने तिलहन और उद्यानिकी फसलों के संयोजन से होने वाले लाभों और तकनीकी पहलुओं पर गहराई से चर्चा की.

सहायक आर्चाय डा. दीपक ने तिलहन फसलों में सूत्रकृमि (नेमाटोड) प्रबंधन पर व्याख्यान दिया. उन्होंने किसानों को तिलहन फसलों में होने वाले सूत्रकृमियों की पहचान, उन के प्रभाव और प्रभावी प्रबंधन तकनीकों पर विस्तृत जानकारी दी.

अंत में डा. हरि सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया और सभी वक्ताओं, प्रतिभागियों और आयोजन टीम को कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए धन्यवाद दिया. उन्होने कहा कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम किसानों को तिलहन आधारित खेती प्रणालियों को अपनाने की दिशा में प्रेरित करने और उन की आय बढ़ाने के लिए तकनीकी जानकारी प्रदान करने में सफल रहा.

इस कार्यक्रम में झाड़ोल और फलासिया से कुल 30 किसानों ने भाग लिया और प्रशिक्षण को अत्यंत लाभप्रद बताया. प्रतिभागियों ने इस ज्ञान को अपने खेतों में लागू करने का संकल्प लिया, ताकि फसल विविधीकरण के माध्यम से उन की कृषि आय और स्थिरता में सुधार हो सके.

कार्यक्रम में परियोजना से जुड़े प्रमुख अधिकारियों में रामजी लाल,  एकलिंग सिह, मदन लाल, एनएस झाला, गोपाल नाई और नरेंद्र यादव उपस्थित थे.

एनएबीएल मान्यता पर एकदिवसीय जागरूकता कार्यशाला संपन्न

उदयपुर : 29 जनवरी, 2025. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संघटक राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर के आईपीएम थिएटर में प्रयोगशालाओं की एनएबीएल मान्यता पर एकदिवसीय जागरूकता कार्यशाला हुई.

इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डा. भूमि राजगुरू द्वारा एनएबीएल संस्थान द्वारा आयोजित विभिन्न कार्ययोजनाओं की रूपरेखा एवं एनएबीएल द्वारा प्रदत्त प्रयोगशालाओं की मान्यता प्राप्त करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया और संस्थान द्वारा दी जाने वाली मान्यता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए खाद्य एवं कृषि रसायनों के मान्यताप्राप्त प्रयोगशालाओं के परीक्षण, प्रमाणपत्र का राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर उपयोगिता पर विस्तृत चर्चा की. डा. राजगुरू ने विकसित भारत 2047 हेतु गुणवत्तायुक्त उत्पादन उपलब्ध कराए जाने पर जोर दिया.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अभियंता कुलदीप सिंह राजपूत ने प्रयोगशालाओं की गुणवत्ता के मापदंडों की जानकारी देते हुए वर्तमान युग में एनएबीएल संस्थान द्वारा किए जा रहे कामों की सराहना की.

कार्यक्रम संयोजक डा. एसएस लखावत, प्राध्यापक, उद्यान विज्ञान एवं सहायक अधिष्ठाता छात्र कल्याण ने बताया कि विश्वविद्यालय के विभिन्न महाविद्यालयों के प्रतिभागियों, विभागाध्यक्षों, संकाय सदस्यों एवं स्नातक, स्नातकोत्तर एवं विद्या वाचस्पति विद्याथियों को इस कार्यशाला के माध्यम से एनएबीएल द्वारा प्रयोगशालाओं की मान्यता हेतु आयोजित जागरूकता कार्यक्रम के तहत 200 प्रतिभागियों ने अपना पंजीयन करवाते हुए कार्यक्रम में भाग लिया.

कार्यक्रम के अंत में कृषि रसायन एवं मृदा विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डा. केके यादव द्वारा मिट्टी की गुणवत्ता एवं स्वास्थ्य सुधार पर प्रकाश डालते हुए विश्वविद्यालय के निर्देशन में आयोजित एनएबीएल कार्यशाला हेतु कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक व महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. आरबी दुबे का आभार व्यक्त किया.

कार्यक्रम का संचालन डा. अमित दाधिच, सहप्राध्यापक एवं प्लेसमेंट अधिकारी, पादप प्रजनन एवं अनुवांशिकी विभाग द्वारा समस्त सहभागियों का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया.

पशुपालन में मशीनीकरण (Mechanization) को बढ़ावा

उदयपुर : 28 जनवरी, 2025. अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत ‘पशुपालन के लिए मशीनीकरण’ (Mechanization) विषय पर 2 दिवसीय 24वीं वार्षिक राष्ट्रीय कार्यशाला अनुसंधान निदेशालय सभागार में हुई.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की मेजबानी में आयोजित इस कार्यशाला में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली सहित देशभर के 100 से ज्यादा कृषि वैज्ञानिक, अभियंता और अनुसंधानकर्ताओं ने हिस्सा लिया.

उद्घाटन सत्र में आयुक्त पशुपालन, भारत सरकार, नई दिल्ली डा. अभिजीत मित्रा ने कहा कि कृषि पशुपालन के 3 प्रमुख घटक उत्पादन, रखरखाव एवं फूड सेफ्टी में मैकेनाइजेशन की अपार संभावनाएं  हैं. डेयरी पोल्ट्री के क्षेत्र में भी मशीनीकरण (Mechanization) को तरजीह दी जानी चाहिए, तभी हम दुनिया के साथ कदम से कदम मिला कर चल पाएंगे.

उन्होंने आगे कहा कि पशुपालकों में आज 70 फीसदी महिलाएं काम कर रही हैं. पशुपालन के क्षेत्र में केवल एक छोटे से घटक गोबर उठाना, पोल्ट्री मल व अन्य अपशिष्ट की साफसफाई के लिए भी मशीन तैयार कर ली जाए, तो मानव श्रम की काफी बचत होगी और यह श्रम अन्य कार्यों के उपयोग में आ जाएगा.

डा. अभिजीत मित्रा ने आगे कहा कि पशुपालन विभाग, नई दिल्ली भविष्य में पंचायत राज, उद्यान, कृषि विपणन और अन्य संबद्ध विभागों को साथ ले कर पशुपालन में मशीनीकरण (Mechanization) पर कुछ इस तरह का रोल मौडल तैयार करेगा, जो देशभर में ब्लौक व पंचायत लैवल पर उपयोगी साबित हो. भारत में वर्तमान में 192 मिलियन गौवंश है. इन में से 27 फीसदी क्रौस ब्रीड हैं, जबकि 10 फीसदी ही दूध उत्पादन में शामिल है.

इस बीच उन्होंने राजस्थान की गाय की नस्ल ‘थारपारकर’ का भी जिक्र किया और कहा कि ‘थारपारकर’ वह नस्लीय गाय है, जो विपरीत परिस्थितियों में थार रेगिस्तान को पार करने की क्षमता रखती है और भरपूर दूध भी देती है.

उपमहानिदेशक, आईसीएआर, नई दिल्ली डा. एसएन झा ने कहा कि मौजूदा परिवेश में पशुपालन ही नहीं, बल्कि ‘संपूर्ण मशीनीकरण’ (Mechanization) की दिशा में भी काम करना होगा. विकास के मामले में दुनिया की गति काफी तेज है और ज्ञान के बल पर ही हम इस गति का मुकाबला कर पाएंगे. उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों को हर समय अपडेट रहने को कहा.

पशुपालन के साथसाथ फार्म मैकेनाइजेशन पर जोर देते हुए डा. एसएन झा ने कहा कि केवल जलवायु, साफसफाई व आर्द्रता को नियंत्रण करने मात्र से हम दूध उत्पादन में 10 फीसदी की और भी अधिक वृद्धि कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि हमें स्वीकार करना होगा कि ‘जब तक सूरज चांद रहेगा, इस धरा पर पशुधन रहेगा’ पुरानी परंपराओं का त्याग करते हुए पशुधन के रखरखाव, दूध व मांस उत्पादन में वृद्धि के लिए नए तौरतरीकों को अमल में लाना होगा.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बेबाकी से तर्क रखा कि जल, जंगल, जलवायु और जमीन अकेले मनुष्य की बपौती नहीं हैं, वरन इस चराचर जगत में विचरण करने वाले हर जीव का इस पर अधिकार है. गलती यहां हुई कि प्रकृति की इस देन को आदमी ने अपनी बपौती मान लिया. ऐसे में जलचर, नभचर और थलचर प्राणी कहां जाएंगे भलाई इसी में है कि पशुपक्षियों को भी पर्याप्त दानापानी मिलना चाहिए, ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे.

उन्होंने पशु आहार बनाने, दूध निकालने, अपशिष्ट प्रबंधन और पानी देने की व्यवस्था के लिए भी उपकरण व मशीनरी विकसित करने पर जोर दिया. साथ ही, पशुधन के लिए बेहतर आवास, स्वच्छता व स्वास्थ्य नियंत्रण की भी आवश्यकता है.

आईसीएआर, नई दिल्ली के सहायक महानिदेशक डा. अमरीश त्यागी ने कहा कि आने वाला समय क्षमता निर्माण व कौशल विकास का है. पशुपालन के लिए मशीनीकरण (Mechanization) इसी सोच का हिस्सा है. हर क्षेत्र में गहन अध्ययन, सर्वे तकनीक व प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से ही हम उपकरण और मशीन की कल्पना कर उसे साकार रूप में धरातल पर उतर पाएंगे.

परियोजना समन्वयक डा. एसपी सिंह, निदेशक, सीआईएई, भोपाल, डा. सीआर मेहता ने पशु प्रबंधन की आधुनिक तकनीकियों का जिक्र किया. आरंभ में सीटीएई डीन डा. अनुपम भटनागर ने अभियांत्रिकी महावि़द्यालय में होने वाली गतिविधियों पर प्रकाश डाला.

पुस्तक एवं पैम्फलेट का विमोचन

आरंभ में अतिथियों ने अधिष्ठाता सीडीएफडी डा. लोकेश गुप्ता द्वारा लिखित पुस्तक ‘आधुनिक पशुपालन एवं प्रबंधन’ एवं पैम्फलेट समुचित पशु आहार प्रबंधन, पशुचलित उन्नत कृषि यंत्र का विमोचन किया.

कार्यशाला में इन का रहा प्रतिनिधित्व

आईसीएआर-सीआईएई, भोपाल (मध्य प्रदेश), एमपीयूएटी, उदयपुर (राजस्थान), जीबीपीयूएटी, पंतनगर (उत्तराखंड), यूएएस, रायचूर (कर्नाटक), वीएनएमयू, परभणी (महाराष्ट्र), आईजीकेवी, रायपुर (छत्तीसगढ़), ओयूएटी, भुवनेश्वर (ओडिशा), आईसीएआर-एनडीआरआई, करनाल (हरियाणा) और सीएयू-सीएईपीएचटी, गंगटोक (सिक्किम).

बढ़ेगा दलहन एवं तिलहन (Pulses and Oilseeds) का उत्पादन

मऊ : भाकृअनुप-राष्ट्रीय बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कुश्मौर, मऊ में 27 से 31 जनवरी, 2025 तक चलने वाले पांचदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में भोजपुर, बिहार से 30 किसान भाग लेने आए. ‘दलहन एवं तिलहन फसलों में बीज की गुणवत्ता का महत्व’ विषय पर आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन समारोह 27 जनवरी, 2025 को हुआ.

निदेशक, डा. संजय कुमार ने कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण, भोजपुर, बिहार से आए किसानों का स्वागत किया. उन्होंने किसानों से उन की कृषि से जुड़ी समस्याएं एवं चिंताएं जानने का प्रयास किया.

उन्होंने किसानों को आश्वासन दिया कि प्रशिक्षण कार्यक्रम में संस्थान के वैज्ञानिक किसानों की हर प्रकार की समस्याओं का समाधान करेंगे और व्यक्तिगत रूप से किसानों को उन के खेत, उस में लगने वाले बीज, बीज की प्रजाति समेत सभी प्रकार की जानकारी देंगे, ताकि वे अपने खेती के विषय में सक्षम और सही निर्णय ले सकें. कार्यक्रम का संचालन संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डा. अंजनी कुमार सिंह की अध्यक्षता में हो रहा है.

कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में प्रतिभागी किसानों ने अपना संक्षिप्त परिचय देते हुए बताया कि भोजपुर, बिहार में दलहन एवं तिलहन के साथ धान, गेहूं, खेसारी और सब्जी की खेती की जाती है.

प्रधान वैज्ञानिक डा. अंजनी कुमार सिंह ने किसानों को फसलों की नई प्रजाति लगाने के लिए और गुणवत्ता बीज उत्पादन में अपना योगदान देने के लिए प्रेरित किया. प्रशिक्षण कार्यक्रम का समन्वयन डा. अंजनी कुमार सिंह, डा. आलोक कुमार, डा. पवित्रा वी. एवं डा. विनेश बनोथ कर रहे हैं.

भारत के एप्पल मैन (Apple Man) हरिमन शर्मा को पद्मश्री पुरस्कार (Padmashree Award)

हिमाचल प्रदेश : हिमाचल प्रदेश के दूरदर्शी किसान हरिमन शर्मा को भारतीय कृषि में उन के परिवर्तनकारी योगदान के लिए सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री (Padmashree Award) से सम्मानित किया गया है. उन्होंने एचआरएमएन-99 नामक एक अभिनव, स्वपरागण (पौधे के परागकण उसी पौधे के किसी फूल के वर्तिकाग्र पर या उसी पौधे के किसी दूसरे फूल के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हैं) और कम ठंड में उपजने वाली सेब की किस्म विकसित की है, जिस ने देश में सेब की बागबानी में क्रांति ला दी है. इस से भौगोलिक दृष्टि से बागबानी व्यापक हो गई है और रसदार पौष्टिक सेब की यह किस्म लोगों तक पहुंच गई है.

व्यावसायिक सेब की अन्य किस्मों को समशीतोष्ण जलवायु और लंबे समय तक शीतकालीन मौसम की आवश्यकता होती है, पर इस के विपरीत एचआरएमएन-99 की बागबानी उष्ण कटिबंधीय, उपोष्ण कटिबंधीय और मैदानी क्षेत्रों में हो सकती है, जहां गरमियों में तापमान 40-45 डिगरी सैल्सियस तक पहुंच जाता है. इस से अब उन क्षेत्रों में भी सेब की खेती संभव हो सकती है, जहां पहले इसे अव्यवहारिक माना जाता था.

मुश्किलों ने दिखाया रास्ता

बचपन में ही अनाथ हो चुके हरिमन शर्मा का बिलासपुर (हिमाचल प्रदेश) स्थित छोटे से गांव पनियाला की पहाड़ी गलियों से राष्ट्रपति भवन के भव्य कक्ष तक का सफर किसान समुदाय के साथ ही देश के छात्रों, शोधकर्ताओं और बागबानी करने वालों के लिए काफी प्रेरणादायक है.

तमाम मुश्किलों के बावजूद हरिमन शर्मा ने मैट्रिक तक की शिक्षा पूरी की और खेतीकिसानी और फल उपजाने के प्रति अपना जुनून बनाए रखा.

एचआरएमएन-99 सेब किस्म की उपज की कहानी साल 1998 में तब शुरू हुई, जब हरिमन शर्मा ने अपने घर के पिछले हिस्से में घर में इस्तेमाल किए गए सेब के कुछ बीज लगा दिए. इन में से एक बीज उल्लेखनीय रूप से अगले साल अंकुरित हो गया और 1,800 फुट की ऊंचाई पर स्थित पनियाला की गरम जलवायु के बावजूद साल 2001 में पौधे ने फल दिए.

हरिमन शर्मा ने यह देखते हुए सावधानीपूर्वक मातृ पौध की देखभाल की और ग्राफ्टिंग द्वारा कई पौधे लगाए और अंततः सेब का एक समृद्ध बाग बना लिया.

अगले दशक में उन्होंने विभिन्न कलमों में ग्राफ्टिंग तकनीकों का प्रयोग कर के सेब की अभिनव किस्म को परिष्कृत करने पर ध्यान केंद्रित किया. समान जलवायु परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में इस सफलता को दोहराने के प्रयासों के बावजूद शुरुआत में उन के काम पर कृषि और वैज्ञानिक समुदायों का अधिक ध्यान नहीं गया.

सेब की नई प्रजाति को देश की सभी जलवायु में उगाना आसान

साल 2012 में भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन (एनआईएफ) भारत ने इस का पता लगाया. एनआईएफ ने सेब की किस्म की विशिष्टता सत्यापित करते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद संस्थानों, कृषि विज्ञान केंद्रों, कृषि विश्वविद्यालयों, राज्य कृषि विभागों, किसानों और देशभर के स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ मिल कर आणविक अध्ययन, फल गुणवत्ता परीक्षण और बहुस्थान परीक्षणों की सुविधा प्रदान कर इस की विशिष्टता प्रमाणन में सहयोग दिया.

इन सहयोगी प्रयासों से सेब की यह किस्म 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पहुंच गई. इन में बिहार, झारखंड, मणिपुर, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, दादरा और नगर हवेली, कर्नाटक, हरियाणा, राजस्थान, जम्मूकश्मीर, पंजाब, केरल, उत्तराखंड, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, पांडिचेरी, हिमाचल प्रदेश शामिल हैं. साथ ही, इसे नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में भी लगाया गया है. एनआईएफ ने इस का पंजीकरण नई दिल्ली के पौधा किस्म और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण में करने में सहायता प्रदान की.

राष्ट्रपति से मिली सराहना

अपने अभिनव प्रयास के लिए हरिमन शर्मा को साल 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 9वें राष्ट्रीय द्विवार्षिक ग्रासरूट इनोवेशन और उत्कृष्ट पारंपरिक ज्ञान पुरस्कारों के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया था.

इस के अलावा भी हरिमन शर्मा कई पुरस्कारों से सम्मानित किए गए हैं. इन में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय नवोन्मेषी किसान पुरस्कार (2016), आईएआरआई फैलो पुरस्कार (2017), डीडीजी, आईसीएआर द्वारा किसान वैज्ञानिक उपाधि (2017), राष्ट्रीय सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार (2018), राष्ट्रीय कृषक सम्राट सम्मान (2018) जगजीवन राम कृषि अभिनव पुरस्कार (2019) के अलावा कई राज्य और केंद्र सरकार के पुरस्कार शामिल हैं. हरिमन शर्मा ने नवंबर, 2023 में मलेशिया में आयोजित चौथे आसियान इंडिया ग्रासरूट इनोवेशन फोरम में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया था.

गुणों से भरपूर

एचआरएमएन-99 सेब की किस्म की विशेषता इस की धारीदार लालपीली त्वचा, मुलायम और रसदार गूदा और प्रति पौधा सालाना 75 किलोग्राम तक फल देने की क्षमता है. सेब की इस प्रजाति की बागबानी से देश में हजारों किसान लाभान्वित हुए हैं.

राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन ने इस की व्यावसायिक बागबानी को सहयोग देने, बाग लगाने और राज्य कृषि विभागों एवं भारत सरकार के पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के उत्तरपूर्वी परिषद के अंतर्गत उत्तरपूर्वी क्षेत्र सामुदायिक संसाधन प्रबंधन परियोजना के साथ मिल कर बड़े पैमाने पर उत्तरपूर्वी राज्यों में इस किस्म को रोपने के प्रशिक्षण प्रदान करने में भी सहायता दी है. इस के परिणामस्वरूप सभी पूर्वोत्तर राज्यों में इस किस्म के एक लाख से अधिक पौधे रोपे गए हैं, जिस से किसानों को आय का एक अतिरिक्त स्रोत मिला है.

हरिमन शर्मा के विशिष्ट नवाचार से भारत में सेब की बागबानी में उल्लेखनीय बदलाव आया है, साथ ही इस ने बड़े पैमाने पर किसानों को अतिरिक्त आय और पोषण के बेहतर स्रोत अपनाने के लिए प्रेरित किया है. उन के प्रयासों से कभी अमीरों का आहार माना जाने वाला सेब अब आम आदमी की पहुंच में आ गया है.

पद्मश्री पुरस्कार द्वारा सम्मानित हरिमन शर्मा के प्रयासों को मान्यता मिलना, राष्ट्रीय चुनौतियों के समाधान और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के साथ संरेखित स्थायी आजीविका सृजन में जमीनी स्तर के नवाचारों की परिवर्तनकारी शक्ति का प्रमाण है.