बच्चों ने बनाए मिलेट्स के पकवान

बस्ती: मिलेट्स रेसिपी प्रतियोगिता एवं जागरूकता कार्यक्रम का उद्घाटन जिलाधिकारी अंद्रा वामसी ने अटल बिहारी बाजपेयी प्रेक्षागृह में किया. इस दौरान श्रीअन्न के महत्व के बारे में एलईडी के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उद्बोधन को दिखाया गया. इस अवसर पर उत्तर प्रदेश मिलेट्स पुनरुद्धार योजना के तहत जिला स्तरीय मिलेट्स रेसिपी एवं उपभोक्ता जागरूकता कार्यक्रम किया गया.

इस मौके पर परिसर में मोटे अनाज से बने हुए व्यंजनों का स्टाल भी लगाया गया. इस कार्यक्रम में जिलाधिकारी अंद्रा वामसी द्वारा स्वयंसहायता समूह की महिलाओं, स्कूली छात्रछात्राओं, एफपीओ और मोटे अनाज से बने व्यंजनों में प्रतिभाग करने वाले लोगों को स्मृतिचिन्ह, प्रशस्तिपत्र व अंग वस्त्र दे कर सम्मानित किया गया.

Milletsजिलाधिकारी अंद्रा वामसी ने कहा कि मोटे अनाज से बने उत्पाद को खाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और कई बीमारियों से भी बचाव होता है. किसान मोटे अनाज की खेती करें, इस से उन की आय में इजाफा होगा और लोगों को पौष्टिक आहार भी मिलेगा.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि मोटे अनाज खाने से शरीर स्वस्थ होता है. किसानों को काकून, मडुआ, कोदो जैसे अनाजों का उत्पादन करना चाहिए. आज कल हाईब्रिड बीज से उपज तो अच्छी हो जाती है, लेकिन शरीर के लिए जरूरी पौष्टिक आहार उन में नही मिल पाता. इस अवसर पर श्रीअन्न व मोटे अनाज के बारे में लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुति भी दी गई.

कार्यक्रम का संचालन कृषि अधिकारी डा. राजमंगल चैधरी ने किया. कार्यक्रम में सांसद प्रतिनिधि जगदीश शुक्ला, विधायक प्रतिनिधि हर्रैया सरोज कुमार मिश्र, मुख्य विकास अधिकारी जयदेव सीएस, संयुक्त निदेशक, कृषि, उपनिदेशक, कृषि, अशोक कुमार गौतम उपस्थित रहे.

फसलों को पाले से बचाना जरूरी

इनसानों के साथसाथ पशुपक्षी तो पाले से बचने के उपाय कर लेते हैं, लेकिन फसलों को बचाने के लिए किसानों को सावधानी बरतनी होगी. पाले से टमाटर, मिर्च, बैंगन आदि सब्जियों, पपीता एवं केले के पौधों एवं मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ आदि में 50 फीसदी से ज्यादा का नुकसान हो सकता है. अरहर में 70 फीसदी, गन्ने में 50 फीसदी, गेहूं व जौ में 10 से 20 फीसदी तक नुकसान हो सकता है.
पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां एवं फूल झुलसे हुए दिखाई देते  हैं. यहां तक कि अधपके फल सिकुड़ जाते हैं, उन में झुर्रियां पड़ जाती हैं एवं कई फल गिर जाते हैं. फलियों एवं बालियों में दाने नहीं बनते हैं एवं बन रहे दाने सिकुड़ जाते हैं.

रबी फसलों में फूल आने एवं बालियां, फलियां आने व बनते समय पाला पड़ने की सर्वाधिक संभावनाएं रहती हैं. इसलिए ऐसे समय में किसानों को चैकस रह कर फसलों की पाले से सुरक्षा के उपाय अपनाने चाहिए. जब तापमान 0 डिगरी सैल्सियस से नीचे गिर जाता है और हवा रुक जाती है, तो रात को पाला पड़ने की संभावना रहती है.

वैसे तो आमतौर पर पाले का अनुमान दिन के बाद के वातावरण से लगाया जा सकता है. सर्दी के दिनों में जिस दिन दोपहर से पहले ठंडी हवा चलती रहे एवं हवा का तापमान जमाव बिंदु से नीचे गिर जाए. दोपहर के बाद अचानक हवा चलना बंद हो जाए और आसमान साफ रहे या उस दिन आधी रात के बाद से ही हवा रुक जाए, तो पाला पड़ने की संभावना अधिक रहती है. रात को विशेषकर तीसरे एवं चैथे पहर में पाला पड़ने की संभावनाएं अधिक रहती हैं.

आमतौर पर तापमान चाहे कितना ही नीचे चला जाए, अगर शीत लहर हवा के रूप में चलती रहे तो नुकसान नहीं होता है, परंतु यदि इसी बीच हवा चलना रुक जाए और आसमान साफ हो तो पाला पड़ता है, जो फसलों के लिए नुकसानदायक है.

जिस रात पाला पड़ने की संभावना हो, उस रात 12 बजे से 2 बजे के आसपास खेत की उत्तरपश्चिम दिशा से आने वाली ठंडी हवा की दिशा में खेतों के किनारे पर बोई हुई फसल के आसपास, मेंड़ों पर रात में कूड़ाकचरा या घासफूस जला कर धुआं करना चाहिए, ताकि खेत में धुआं हो जाए एवं वातावरण में गरमी आ जाए. सुविधा के लिए मेंड़ पर 10 से 20 फुट के अंतराल पर कूड़ेकरकट के ढेर लगा कर धुआं करें.  इस विधि से 4 डिगरी सैल्सियस तापमान आसानी से बढ़ाया जा सकता है.

पौधशाला के पौधों एवं छोटे पौधे वाले उद्यानों, नकदी सब्जी वाली फसलों को टाट, पौलीथिन अथवा भूसे से ढक देना चाहिए. वायुरोधी टाटियां, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानी उत्तरपश्चिम की तरफ टाटियां  बांध कर क्यारियों को किनारों पर लगाएं और दिन में पुनः हटाएं.

पाला पड़ने की संभावना हो तब खेत में सिंचाई करनी चाहिए. नमी वाली जमीन में काफी देर तक गरमी रहती है और भूमि का तापमान कम नहीं होता है. दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिए खेत की उत्तरीपश्चिमी मेंड़ों पर और बीचबीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल एवं अरंडी आदि लगा दिए जाएं, तो पाले और ठंडी हवा के झोंकों से फसल का बचाव हो सकता है.
मौसम के बारे में अधिक जानकारी के लिए डीडी किसान पर मौसम समाचार साढे़ 7 बजे सुबह ए्वं शाम को सुनें. आकाशवाणी समाचार भी 7 बज कर 20 मिनट पर सुबह और शाम को सुनें, वहीं आप अपने मोबाइल फोन पर भी मौसम एप डाउनलोड कर के जानकारी ले सकते हैं.

– प्रो. रवि प्रकाश मौर्य, सेवानिवृत्त वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, निदेशक, प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी, भाटपार रानी देवरिया.

बागबानी क्षेत्र में काफी संभावनाएं

बेंगलुरू/नई दिल्ली : 7 जनवरी, 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने बेंगलुरू में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान (आईआईएचआर) का दौरा किया और यहां के किसानों, विद्यार्थियों व वैज्ञानिकों के साथ संवाद किया. उन्होंने किसान सुविधा काउंटर का शुभारंभ किया. इस अवसर पर एमओयू भी किए गए.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने इस बात पर प्रसन्नता जताई कि आईआईएचआर 54 बागबानी फसलों पर काम कर रहा है और उत्तरपूर्वी राज्यों सहित देशभर के किसानों के लाभ के लिए उष्णकटिबंधीय फलों, सब्जियों व फूलों की फसलों सहित बागबानी फसलों की 300 से अधिक किस्में विकसित की गई हैं और संस्थान ने आदिवासी बहुल क्षेत्रों में भी अच्छा काम किया है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि कृषि अर्थव्यवस्था में बागबानी का योगदान 33 फीसदी है, जिसे और आगे बढ़ाया जा सकता है, जिस की काफी संभावनाएं हैं.

उन्होंने आगे कहा कि हम न केवल घरेलू बाजार में, बल्कि दुनिया के बाजारों में और बेहतर ढंग से अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं. बागबानी क्षेत्र देश के आर्थिक विकास का महत्वपूर्ण घटक माना जा रहा है. यह क्षेत्र नए तरीके से अपनी आय बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है. भारत में बागबानी उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2022-23 में 350 मिलियन टन हो गया है.

Farming Newsउन्होंने बागबानी उत्पादों के भंडारण, फूड प्रोसैसिंग, विपणन के महत्व को समझाया व किसानों को सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप उत्पादन का लक्ष्य रखने का अनुरोध किया, ताकि उन के उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा कर सकें.

कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने कृषि वैज्ञानिकों को अधिक से अधिक किसानों को अपनी प्रयोगशालाओं में लाने और नवीनतम अनुसंधान तकनीकों को उन के साथ साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया. इस से किसानों को उत्पादकता, पैदावार व आय को टिकाऊ तरीके से बढ़ाने में मदद मिलेगी.

उन्होंने कहा कि दलहन उत्पादन बढ़ाने के प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर हाल ही में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने पोर्टल का शुभारंभ किया है, जिस से किसान बहुत लाभान्वित होंगे. इसी तरह से विभिन्न क्षेत्रों में तेजी से काम करने व प्रौद्योगिकी के समर्थन की आवश्यकता है. सभी खाद्यान्न में हमारी आत्मनिर्भरता होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि झारखंड से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रारंभ किए गए प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महाभियान के माध्यम से आदिवासी समुदाय को मौलिक सुविधाएं उपलब्ध कराते हुए उन्हें सुविधाएं प्रदान करने का काम किया जा रहा है.

शुरुआत में आईआईएचआर के निदेशक प्रो. संजय कुमार सिंह ने केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा व अन्य अतिथियों का स्वागत किया और संस्थान की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला.

कृषि इकाइयों का निरीक्षण

संत कबीर नगर : कृषि विज्ञान केंद्र, संत कबीर नगर पर डा. यूएस गौतम, उपमहानिदेशक, कृषि प्रसार, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के द्वारा निरीक्षण किया गया.

उपमहानिदेशक डा. यूएस गौतम द्वारा केंद्र पर चल रहे विभिन्न इकाई का निरीक्षण किया जैसे बकरीपालन इकाई, मधुमक्खीपालन इकाई, अजोला इकाई, वर्मी कंपोस्ट इकाई, मशरूम उत्पादन, नाडेप और प्राकृतिक खेती के साथ ही केंद्र पर लग रहे वेजिटेबल हाईटैक नर्सरी का भी अवलोकन किया. उस के बाद केंद्र के परिसर में आम के पौध का वृक्षारोपण किया व प्रगतिशील किसान सुरेंद्र पाठक से ड्रैगन फ्रूट, स्ट्राबेरी, लीची, पशुपालन और सब्जी के उत्पादन की जानकारी ली.

प्रगतिशील किसान अनुराग राय और राज नारायण राय से शिमला मिर्च, भरवां मिर्च, सरसों के तेल की ब्रांडिंग और मार्केट मूल्य के मिलने की जानकारी और खेती करने की तकनीक के कुछ वीडियो और चैनल बना कर यूट्यूब पर अपलोड करने की सलाह दी. साथ ही, महिला किसान सुमन और कौशिल्ल्या देवी से खेती से संबंधित जानकारी ली.

साथ ही, केंद्र से सुदारीकरण के लिए बजट देने का आश्वासन दिया.

अंत में उपमहानिदेशक डा. यूएस गौतम ने केंद्र द्वारा किए जा रहे कामों की सराहना की एवं प्रसन्नता व्यक्ति की.

मौके पर मौजूद कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा. अरविंद कुमार सिंह ने उन का स्वागत किया. वैज्ञानिक डा. संदीप सिंह कश्यप, डा. आरबी सिंह, डा. रत्नाकर पांडेय, डा. देवेश कुमार, डा. तरुण कुमार, प्रदीप नायक, राम कुमार, दीपक और अवधेश प्रताप सिंह, कंप्यूटर प्रोग्रामर शिवेश त्रिपाठी, केंद्र के फार्म मैनेजर डा. सतीश कुमार चक्रवर्ती और केंद्र के प्रगतिशील किसान सुरेंद्र पाठक, राज नारायण राय, अनुराग राय, सुमन चौहान आदि मौजूद थे.

गरमी में भिंडी की खेती ज्यादा लाभकारी

भिंडी के हरे, मुलायम फलों का प्रयोग सब्जी, सूप फ्राई और दूसरे रूप में किया जाता है. पौधे का तना व जड़, गुड़ एवं खांड़ बनाते समय रस को साफ करने में प्रयोग किया जाता है. भिंडी गर्मी और वर्षा दोनों मौसम में उगाई जाती है. इस के लिए पर्याप्त जीवांश एवं उचित जल निकास वाली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है.

खेत की तैयारी

3 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद प्रति कट्ठा एक हेक्टेयर का 80वां भाग) अर्थात 125 वर्गमीटर के हिसाब से बोआई के 15-20 दिन पहले खेत में मिला देना चाहिए. मिट्टी की जांच के उपरांत ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए.

अधिक उपज प्राप्त करने के लिए यूरिया 1.10 किलोग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 3.00 किलोग्राम और म्यूरेट औफ पोटाश 800 ग्राम मात्रा बोआई के पूर्व खेत में मिला देना चाहिए. आधाआधा किलोग्राम यूरिया 2 बार बोआई के 30-40 दिन के अंतराल पर सिंचाई के बाद देना लाभदायक है.

बोआई

जायद (ग्रीष्म/गरमी) में फरवरी से मार्च माह तक और खरीफ (बरसात) के लिए जून से 15 जुलाई माह तक बोआई की जाती है.

बोआई से पहले बीजों को पानी मे 12 घंटे भिगो कर बोना ज्यादा लाभप्रद है. गरमी में 250 ग्राम और वर्षा में 150 ग्राम बीज प्रति विश्वा/कट्ठा में जरूरत पड़ती है. समतल क्यारियों में गरमी में कतारों से कतारों की आपसी दूरी 30 सैंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 15-20 सैंटीमीटर और वर्षा में 45-50 सैंटीमीटर कतार से कतार और पौधे से पौधे की दूरी 30 सैंटीमीटर पर रखनी चाहिए. 2 सैंटीमीटर की गहराई पर बोआई करनी चाहिए.

खास किस्में

भिंडी की किस्मों में काशी सातधारी,काशी क्रांति, काशी विभूति, काशी प्रगति, अरका अनामिका , काशी लालिमा आदि प्रमुख हैं. सभी किस्में 40-45 दिन में फल देने लगती हैं.

सिंचाई

खरीफ की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन बारिश न होने पर जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. गरमी में सप्ताह में एक बार सिंचाई करने की जरूरत होती है. खेत में सदैव नमी रहना चाहिए. देर से सिंचाई करने पर फल जल्दी सख्त हो जाते हैं और पौधै व फल की बढ़वार कम होती है.

खरपतवार और कीट व बीमारी की रोकथाम

खरपतवार को नष्ट करने के लिए गुड़ाई करें. कीट व बीमारियों का भी ध्यान रखें. भिंडी में मुख्य रूप से बहुत छोटेछोटे महीन कीटों में से माहू, जैसिड, सफेद मक्खी एवं थ्रिप्स का प्रकोप होता है. इन सभी कीटों के प्रबंधन के लिए पीला स्टीकर का प्रयोग करें या 40 ग्राम नीम गिरी एवं 1 मिली इंडोट्रान (चिपकने वाला पदार्थ) प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. उन्नत तकनीक का खेती में समावेश करने पर प्रति कट्ठा (एक हेक्टेयर का 80वां भाग ) 120-150 किलोग्राम तक उपज प्राप्त कर सकते हैं.

दलहन आत्मनिर्भरता के लिए पोर्टल लौंच

नई दिल्ली: 4 जनवरी, 2024. केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने विज्ञान भवन, नई दिल्ली में एक समारोह में तूर के किसानों के पंजीकरण, खरीद, भुगतान के लिए ई-समृद्धि व एक अन्य पोर्टल लौंच किया. भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (नेफेड) और भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारिता संघ (एनसीसीएफ) द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के अवसर पर दलहन में आत्मनिर्भरता पर राष्ट्रीय संगोष्ठी भी आयोजित हुई.

यहां केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा, केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चैबे, सहकारिता राज्यमंत्री बीएल वर्मा विशेष अतिथि थे. इस कार्यक्रम में किसान एवं पैक्स, एफपीओ, सहकारी समितियों के प्रतिनिधि बड़ी संख्या में मौजूद थे.

मुख्य अतिथि केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा कि पोर्टल के जरीए ऐसी शुरुआत की है, जिस से नेफेड व एनसीसीएफ के माध्यम से किसानों को एडवांस में रजिस्ट्रेशन कर तूर दाल की बिक्री में सुविधा होगी, उन्हें एमएसपी या फिर इस से अधिक बाजार मूल्य का डीबीटी से भुगतान हो सकेगा. इस शुरुआत से आने वाले दिनों में किसानों की समृद्धि, दलहन उत्पादन में देश की आत्मनिर्भरता और पोषण अभियान को भी मजबूती मिलती दिखेगी. साथ ही, क्राप पैटर्न चेंजिंग के अभियान में गति आएगी और भूमि सुधार एवं जल संरक्षण के क्षेत्रों में भी बदलाव आएगा. आज की शुरुआत आने वाले दिनों में कृषि क्षेत्र में परिवर्तन लाने वाली है.

उन्होंने आगे कहा कि दलहन के क्षेत्र में देश आज आत्मनिर्भर नहीं है, लेकिन हम ने मूंग व चने में आत्मनिर्भरता प्राप्त की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दलहन उत्पादक किसानों पर बड़ी जिम्मेदारी डाली है कि वर्ष 2027 तक दलहन के क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर हो.

उन्होंने विश्वास जताया कि किसानों के सहयोग से दिसंबर, 2027 से पहले दलहन उत्पादन के क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर बन जाएगा और देश को एक किलोग्राम दाल भी आयात नहीं करनी पड़ेगी. दलहन में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सहकारिता मंत्रालय और कृषि मंत्रालय सहित अन्य पक्षों की कई बैठकें हुई हैं, जिन में लक्ष्य हासिल करने की राह में आने वाली बाधाओं पर चर्चा की गई है.

उन्होंने यह भी कहा कि कई बार दलहन उत्पादक किसानों को सटोरियों या किसी अन्य स्थिति के कारण उचित दाम नहीं मिलते थे, जिस से उन्हें बड़ा नुकसान होता था. इस वजह से वे किसान दलहन की खेती करना पसंद नहीं करते थे. हम ने तय कर लिया है कि जो किसान उत्पादन करने से पूर्व ही पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराएगा, उस की दलहन को एमएसपी पर खरीद लिया जाएगा. इस पोर्टल पर रजिस्टर करने के बाद किसानों के दोनों हाथों में लड्डू होंगे. फसल आने पर अगर दाम एमएसपी से ज्यादा होगा, तो उस की एवरेज निकाल कर भी किसान से ज्यादा मूल्य पर दलहन खरीदने का एक वैज्ञानिक फार्मूला बनाया गया है और इस से किसानों के साथ कभी नाइंसाफी नहीं होगी.

मंत्री अमित शाह ने किसानों से अपील की कि वे पंजीयन करें, प्रधानमंत्री मोदी की गारंटी है कि सरकार उन की दलहन खरीदेगी, उन्हें बेचने के लिए भटकना नहीं पड़ेगा. साथ ही, उन्होंने विश्वास जताया कि देश को आत्मनिर्भर बनाने में किसान कोई कसर नहीं छोड़ेगा. देश का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी शाकाहारी है, जिन के लिए प्रोटीन का बहुत महत्व है, जिस का दलहन प्रमुख स्रोत है. कुपोषण के खिलाफ देश की लड़ाई में भी दलहन उत्पादन का बहुत महत्व है. भूमि सुधार के लिए भी दलहन महत्वपूर्ण फसल है, क्योंकि इस की खेती से भूमि की गुणवत्ता बढ़ती है. भूजल स्तर को बनाए रखना और बढ़ाना है, तो ऐसी फसलों का चयन करना होगा, जिन के उत्पादन में पानी कम इस्तेमाल हो. दलहन एक प्रकार से फर्टिलाइजर का एक लघु कारखाना आप के खेत में ही लगा देती है.

उन्होंने आगे कहा कि वेयरहाउसिंग एजेंसियों के साथ इस एप का रियल टाइम बेसिस पर एकीकरण करने का प्रयास किया जा रहा है. आने वाले दिनों में वेयरहाउसिंग का बहुत बड़ा हिस्सा प्रधानमंत्री मोदी की सरकार के कारण कोआपरेटिव सैक्टर में आने वाला है. हर पैक्स एक बड़ा वेयरहाउस बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, इस से फसलों को दूर भेजने की समस्या का समाधान हो जाएगा.

उन्होंने किसानों से दलहन अपनाने व देश को 1 जनवरी, 2028 से पहले दलहन में आत्मनिर्भर बनाने की अपील की, ताकि देश को 1 किलोग्राम दलहन भी इंपोर्ट न करना पड़े. उन्होंने यह भी कहा कि बीते 9 साल में प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में खाद्यान्न उत्पादन में बहुत बड़ा बदलाव आया है. वर्ष 2013-14 में खाद्यान्न उत्पादन कुल 265 मिलियन टन था और 2022-23 में यह बढ़ कर 330 मिलियन टन तक पहुंच चुका है. आजादी के बाद के 75 साल में किसी एक दशक का विश्लेषण करें, तो सब से बड़ी बढ़ोतरी प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश के किसानों ने की है.

उन्होंने इस दौरान दलहन के उत्पादन में बहुत बड़ी बढ़ोतरी की बात कही, मगर 3 दलहनों में हम आत्मनिर्भर नहीं है और उस में हमें आत्मनिर्भर होना है.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रोडक्विटी बढ़ाने के लिए अच्छे बीज उत्पादन के लिए एक कोआपरेटिव संस्था बनाई गई है, कुछ ही दिनों में हम दलहन और तिलहन के बीजों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए अपना प्रोजैक्ट सामने रखेंगे. हम परंपरागत बीजों का संरक्षण और सवंर्धन भी करेंगे. उत्पादकता बढ़ाने हम ने कोआपरेटिव आधार पर बहुराज्यीय बीज संशोधन समिति बनाई है. उन्होंने अपील की कि सभी पैक्स समिति में रजिस्टर करें.

उन्होंने यह भी कहा कि हमें इथेनाल का उत्पादन भी बढ़ाना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पैट्रोल के साथ 20 फीसदी इथेनाल मिलाने का लक्ष्य रखा है. अगर 20 फीसदी इथेनाल मिलाना है, तो हमें इस के लिए लाखों टन इथेनाल का उत्पादन करना है. नेफेड व एनसीसीएफ इसी पैटर्न पर आने वाले दिनों में मक्का का रजिस्ट्रेशन चालू करने वाले हैं. जो किसान मक्का बोएगा, उस के लिए सीधा इथेनाल बनाने वाली फैक्टरी के साथ एमएसपी पर मक्का बेचने की व्यवस्था कर देंगे, जिस से उन का शोषण नहीं होगा और पैसा सीधा बैंक खाते में जाएगा.

उन्होंने आगे कहा कि इस से आप का खेत मक्का उगाने वाला नहीं, बल्कि पैट्रोल बनाने वाला कुआं बन जाएगा. देश के पैट्रोल के लिए इंपोर्ट की फौरेन करैंसी को बचाने का काम किसानों को करना चाहिए. उन्होंने देशभर के किसानों से अपील की है कि हम दलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनें और पोषण अभियान को भी आगे बढ़ाएं.

Farmingकेंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, किसान हित में अनेक ठोस कदम उठाते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं. केंद्र सरकार विभिन्न योजनाओं व कार्यक्रमों द्वारा कृषि क्षेत्र को सतत बढ़ावा दे रही है, जिन में दलहन में देश के आत्मनिर्भर होने का लक्ष्य अहम है, जिस पर कृषि मंत्रालय भी तेजी से काम कर रहा है.

उन्होंने कहा कि दलहन की क्षमता खाद्य एवं पोषण सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता का समाधान करने में मदद करती है, जिसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा साल 2016 को अंतर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष की घोषणा के माध्यम से भी स्वीकार किया गया है. दलहन स्मार्ट खाद्य हैं, क्योंकि ये भारत में फूड बास्केट व प्रोटीन का महत्वपूर्ण स्रोत हैं. दालें पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करती हैं. दलहन कम पानी वाली फसलें होती हैं और सूखे या वर्षा सिंचित वाले क्षेत्रों में उगाई जा सकती हैं, मृदा नाइट्रोजन को ठीक कर के उर्वरता सुधारने में मदद करती हैं. मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, तमिलनाडु व ओडिशा दलहन उत्पादक राज्य हैं, जो देश में 96 फीसदी क्षेत्रफल में दलहन का उत्पादन करते हैं.

उन्होंने आगे कहा कि यह गर्व की बात है कि भारत पूरे विश्व में दलहन का सब से बड़ा उत्पादक है, प्रधानमंत्री इसे प्रोत्साहित करते हैं. वर्ष 2014 के बाद से दलहन उत्पादन में वृद्धि हो रही है, वहीं इस का आयात पहले की तुलना में घटा है.

मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए कई पहल की हैं. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम)-दलहन को 28 राज्यों एवं जम्मू व कश्मीर और लद्दाख में कार्यान्विरत किया जा रहा है.

उन्होंने प्रसन्नता जताई कि 2 शीर्ष सहकारी संस्थाओं द्वारा ऐसा पोर्टल बनाया गया है, जहां किसान पंजीयन के पश्चात स्टाक ऐंट्री कर पाएंगे, स्टाक के वेयरहाउस पहुंचते ई-रसीद जारी होने पर किसानों को सीधा पेमेंट पोर्टल से बैंक खाते में होगा. पोर्टल को वेयरहाउसिंग एजेंसियों के साथ एकीकृत किया है, जो वास्तविक समय आधार पर स्टाक जमा निगरानी करने में सहायक होगा, जिस से समय पर पेमेंट होगा. इस प्रकार खरीदे स्टाक का उपयोग उपभोक्ताओं को भविष्य में अचानक मूल्य वृद्धि से राहत प्रदान करने के लिए किया जाएगा. स्टाक राज्य सरकारों को उन की पोषण व कल्याणकारी योजनाओं के तहत उपयोग के लिए भी उपलब्ध होगा.

कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि हम सब के सामूहिक प्रयास हमें ऐसे भविष्य की ओर ले जा रहे हैं, जहां भारत दाल उत्पादन में आत्मनिर्भर होगा. हम किसानों का समर्थन जारी रखें व कृषि आधार को मजबूत करते हुए अधिक समृद्ध और आत्मनिर्भर राष्ट्र की दिशा में काम करें. प्रधानमंत्री मोदी ने खूंटी, झारखंड से जो विकसित भारत संकल्प यात्रा प्रारंभ की है, उस के मूल में किसान ही हैं.

नेफेड के अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह, एनसीसीएफ अध्यक्ष विशाल सिंह, केंद्रीय सहकारिता सचिव ज्ञानेश कुमार, उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह व कृषि सचिव मनोज आहूजा भी मौजूद थे. नेफेड के एमडी रितेश चैहान ने स्वागत भाषण दिया. एनसीसीएफ की एमडी ए. चंद्रा ने आभार माना.

मेले में किसानों को प्रशिक्षण, मिली अनेक जानकारियां

खरसावां : राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन की अध्यक्षता और केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा के मुख्य आतिथ्य में ‘विकसित गांव-विकसित भारत’ थीम पर खरसावां, झारखंड में किसान समागम (कृषि मेला सह प्रशिक्षण कार्यक्रम) का आरंभ हुआ.

‘विकसित गांव-विकसित भारत’ थीम पर गोंडपुर मैदान, खरसावां, झारखंड में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा किसान समागम (कृषि मेला सह प्रशिक्षण कार्यक्रम) आयोजित किया. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की विभिन्न संस्थाओं, राष्ट्रीय बीज निगम, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, इफको, राष्ट्रीय बागबानी बोर्ड, अटारी (पटना), कृषि विज्ञान केंद्रों, नेफेड, नाबार्ड व राज्य की विभिन्न संस्थाओं के साथ मिल कर यह वृहद आयोजन किया गया, जिस में हजारों किसान शामिल हुए.

इस मौके पर राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा दिया था, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से सार्थक सिद्ध हो रहा है. स्टालों का अवलोकन करते हुए देश में कृषि क्षेत्र में हम ने अहम बदलाव को महसूस किया है, केंद्रीय योजनाओं के जरीए क्रांतिकारी बदलाव करते हुए कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है. किसान देश के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, वे हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं. इस परिप्रेक्ष्य में किसान हित में इस प्रकार के समागम अत्यंत सराहनीय है.

मुख्य अतिथि केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने गांवों, कसबों और शहरों के किसानों से आग्रह किया कि सिर्फ एक फसल ले कर अपने खेतों को खाली नहीं रखें, बल्कि बहुफसली प्रणाली अपना कर आय बढ़ाते हुए देश के विकास में योगदान दें. केंद्र ने खेतों की मिट्टी की जांच करने की सुविधा मुहैया कराई है, जिस का किसान लाभ उठाएं, इस में विभाग पूरी तरह से सहयोग करेगा.

उन्होंने आगे  कहा कि हम अपने खेतों को हराभरा बनाएं. इस के लिए अनेक योजनाएं शुरू की गई हैं, जिन का सुचारु रूप से संचालन किया जा रहा है. खेती के लिए ड्रोन एवं नैनो यूरिया का उपयोग भी इस में अहम है. स्वयंसहायता समूहों के माध्यम से मातृ शक्ति गांवों को विकसित बनाने के लिए लगातार काम कर रही है, जिन में हजारों पीएम ड्रोन दीदी शामिल हैं.

मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि किसान हितैषी सरकार ने कृषि क्षेत्र को हमेशा प्राथमिकता पर रखा है. इसी क्रम में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के बजट को वर्ष 2013-14 के तकरीबन 22,000 करोड़ रुपए के मुकाबले चालू वर्ष में लगभग सवा पांच गुना तक बढ़ाया गया है. आपदा प्रभावित किसानों को राहत के लिए भी केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को राशि उपलब्ध कराई है, जिसे किसानों तक शीघ्रता से पहुंचाने के लिए राज्य सरकार से कहा गया है. साथ ही, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ झारखंड के किसानों को भी दिलाने के लिए अधिकारियों से कहा है कि वे राज्य सरकार से चर्चा कर राज्य को योजना में शामिल करवाएं.

मंत्री अर्जुन मुंडा ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार द्वारा 6,865 करोड़ रुपए बजट के साथ 10,000 नए एफपीओ के गठन व संवर्धन के लिए नई केंद्रीय क्षेत्र की योजना प्रारंभ की गई थी, जिस के तहत लगभग सवा सात हजार एफपीओ पंजीकृत किए जा चुके हैं. प्रधानमंत्री ने विकसित भारत संकल्प यात्रा प्रारंभ की है, जिस के माध्यम सेकिसानों को लाभान्वित किया जा रहा है. मोदी की गारंटी की गाड़ियां गांवगांव घूम रही है. हमें गरीबों को साथ ले कर आगे बढ़ना है.

उन्होंने कहा कि किसान हित में श्रीअन्न को बढ़ावा देने के लिए केंद्र के प्रयास जोरों पर है. सुदूरवर्ती क्षेत्रों के आदिवासियों के कल्याण के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा कई कार्यक्रमों के साथ 24 हजार करोड़ रुपए की पीएम-जनमन योजना भी प्रारंभ की गई है.

उन्होंने आगे कहा कि ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की भावना के साथ ‘सब का साथ-सब का विकास-सब का विश्वास-सब का प्रयास’ के मूलमंत्र से देश में काम हो रहा है.

इस मौके पर राज्यपाल व केंद्रीय मंत्री ने प्रगतिशील किसानों को सम्मानित किया. 150 से अधिक स्टाल लगाए गए थे, जहां बड़ी संख्या में किसानों ने जानकारी ले कर लाभ प्राप्त किया. किसानों के लिए केंद्र की योजनाओं का लघु फिल्म द्वारा प्रचारप्रसार किया गया.

किसानों को इफको द्वारा नैनो यूरिया किट, एचआईएल द्वारा सुरक्षा किट व पौधों का वितरण किया गया. चारा बीज उत्पादन पर प्रशिक्षण के साथ कृषि अवसंरचना कोष, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्राकृतिक खेती, ड्रोन का उपयोग, कृषि को उद्यम के रूप में विकसित करने, नैनो यूरिया सहित पीपीवीएफआरए गतिविधियों व अन्य योजनाओं के बारे में जागरूकता का प्रसार किया गया. माध्यमिक कृषि, मुरगीपालन, एकीकृत कृषि प्रणाली आदि से अवगत कराया गया.

मैदानी घास के लिए  हाथियों में प्रतिस्पर्धा

नई दिल्ली : एक नए अध्ययन के अनुसार, हाथियों के झुंड जंगलों की तुलना में मानवजनित रूप से निर्मित घास के मैदानों में भोजन के लिए अधिक प्रतिस्पर्धा करते हैं, जो इस बात पर प्रकाश डालता है कि मानवीय गतिविधियां पर्यावरणीय प्रभावों और जानवरों के सामाजिक जीवन को कैसे प्रभावित कर सकती हैं. भले ही उन के पास प्रचुर मात्रा में भोजन हो.

एशियाई हाथी मादा बंधित समूहों को दिखते हैं, जबकि नर बड़े पैमाने पर अकेले होते हैं. जिन में सब से समावेशी सामाजिक इकाई कबीला होती है – जो एक सामाजिक समूह, बैंड, टुकड़ी, कबीले या समुदाय के बराबर होती है. कुलों के भीतर महिला हाथी विखंडनसंलयन गतिशीलता दिखाती हैं, जिस में कबीले के सदस्यों को आमतौर पर कई समूहों या पार्टियों में वितरित किया जाता है, जिन के समूह का आकार और संरचना घंटों में बदल सकती है.

एशियाई हाथी के कई लक्षण हैं, जिन के बारे में माना जाता है कि वे कम आक्रामक प्रतिस्पर्धा से जुड़े हैं. सब से पहले उन का प्राथमिक भोजन निम्न गुणवत्ता वाला, बिखरा हुआ संसाधन (घास और वनस्पति पौधे) हैं और इस प्रकार प्रतिस्पर्धा होने की उम्मीद नहीं है. उन की विखंडन व संलयन गतिशीलता उन्हें लचीले ढंग से छोटे समूहों में विभाजित होने और प्रतिस्पर्धा को कम करने का अवसर देती है. वे प्रादेशिक नहीं होते, और उन की घरेलू सीमाएं बड़े पैमाने पर ओवरलैप कर सकती हैं, यह लक्षण समूह के बीच मुठभेड़ों के दौरान कम आक्रामकता से संबंधित होती है.

जवाहरलाल नेहरू सैंटर फौर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर) विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के के तहत एक स्वायत्त संस्थान के वैज्ञानिकों ने हाथियों जैसे मादा बंधित पशुओं में समूह के भीतर और उन के बीच भोजन वितरण के प्रभाव की जांच की.

डा. हंसराज गौतम और प्रो. टीएनसी विद्या ने व्यक्तिगत हाथियों की पहचान और अध्ययन करने के लिए वर्ष 2009 में स्थापित दीर्घकालिक काबिनी हाथी परियोजना से हाथियों के व्यवहार के डेटा को ट्रैक किया और पता लगाया कि क्या कबीले के भीतर शत्रुतापूर्ण विवाद (एगोनिज्म) और कबीले के बीच एगोनिस्टिक मुठभेड़ हैं? हाथियों में इस की दर और फैलाव, घास की प्रचुरता, घास के फैलाव और हाथियों के समूह के आकार पर निर्भर है.

उन्होंने काबिनी घास के मैदान और उस के पड़ोस में जंगल से हाथियों के व्यवहार के आंकड़ों का अध्ययन कर पाया कि जंगलों की तुलना में घास के मैदानों में, जहां भोजन की प्रचुरता होती है, हाथियों के झुंड के बीच प्रतिस्पर्धा अधिक होती है, उन के अध्ययन के निष्कर्ष आंशिक रूप से सामाजिक व पारिस्थितिक मौडल, महिला सामाजिक संबंधों के पारिस्थितिक मौडल (ईएमएफएसआर) की भविष्यवाणियों का समर्थन करते हैं, जो बताता है कि खाद्य वितरण मुख्य रूप से समूहों के बीच और भीतर प्रतिस्पर्धा यानी शारीरिक संघर्ष को निर्धारित करता है. प्रचुर मात्रा में और एकत्रित खाद्य संसाधनों पर संघर्ष बढ़ने की उम्मीद होती है और उन पर समूहों या वैयक्तिक एकाधिकार हो सकता है.

रौयल सोसाइटी ओपन साइंस जर्नल में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि संसाधनों की उपलब्धता बढ़ने से अपेक्षा से विपरीत प्रभाव पड़ सकता है, प्राकृतिक आवासों में तेजी से होने वाले मानवजनित परिवर्तनों, जैसे कि जंगली आबादी की सामाजिक व्यवस्था में इनसानी दखल, के संदर्भ में इस की बहुत प्रासंगिकता है.

सेब की प्रोसैसिंग के लिए 101 करोड़ रुपए का प्लांट लगेगा

शिमला : सेब की पैदावार के मामले में हिमाचल की अपनी एक अलग ही पहचान है. प्रदेश की सेब अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण के लिए सरकार ने जिला शिमला के ठियोग विधानसभा क्षेत्र के पराला में हिमाचल प्रदेश बागबानी उत्पाद विपणन एवं प्रसंस्करण निगम यानी एचपीएमसी फल विधायन संयंत्र की इकाई प्रदेश की जनता को समर्पित की.

यह अत्याधुनिक संयंत्र 101 करोड़ रुपए की लागत से बना है और अत्याधुनिक तकनीक और मशीनों से लैस है. यह संयंत्र एक घंटे में तकरीबन 10 मीट्रिक टन सेब को प्रोसैस कर सकता है.

सेब की बेहतर पैदावार होने पर यह संयंत्र 18,000 मीट्रिक टन सेब को प्रोसैस कर सकता है, जिस से उच्च गुणवत्ता वाले सेब का जूस कंसंट्रेट तैयार होगा.

सेब से अनेक उत्पाद होंगे तैयार

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इस अत्याधुनिक संयंत्र में एप्पल जूस कंसंट्रेट (एजेसी), पैेक्टिन, वाइन, विनेगर और रेडी टू सर्व जूस इकाइयां शामिल हैं. यह संयंत्र प्रति घंटे 2000 लिटर जूस बोतलों में पैक कर सकता है और  पैेक्टिन लाइन प्रतिदिन 800 किलोग्राम सेब की क्रशिंग कर सकता है. वाइन इकाई की वार्षिक क्षमता 1,00,000 लिटर है और 50,000 लिटर विनेगर का वार्षिक उत्पादन किया जाएगा. अल्ट्रा फिल्ट्रेशन तकनीक का उपयोग कर एप्पल जूस कंसंट्रेट को तैयार किया जाता है, जिस से इस की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है.

मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि यह प्लांट सेब उत्पादकों की आर्थिकी सुदृढ़ करने में मील का पत्थर साबित होगी. सेब बहुल क्षेत्र में इस प्लांट को स्थापित करने का उद्देश्य सेब का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित कर बागबानों की आय में बढ़ोतरी करना है. यह संयंत्र मंडी मध्यस्थता योजना के तहत खरीदे गए सेब का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करेगा. इस से उन के उत्पादों की परिवहन लागत पर होने वाला खर्चा कम होगा, जिस से बागबानों की आर्थिकी में वृद्धि होगी.

हाल के सेब सीजन के दौरान संयंत्र के परीक्षणों को सफल माना गया. इस दौरान 5706 मीट्रिक टन सेब की प्रोसैसिंग की गई और तकरीबन 15 करोड़  रुपए के 591 मीट्रिक टन एप्पल जूस कंसंट्रेट का उत्पादन किया गया. राज्य की अर्थव्यवस्था में बागबानी क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वर्ष 2022-23 में 2,36,466 हेक्टेयर में विविध फलों का उत्पादन किया गया. इसी वर्ष कुल फल उत्पादन 8,14,611 मीट्रिक टन तक पहुंच गया, जिस में सेब का उत्पादन 84.54 फीसदी था, जो कुल 6,72,343 मीट्रिक टन था.

मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि पराला मंडी को जून, 2024 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. इस के अलावा सेब बहुल क्षेत्रों में सड़क सुविधा को सुदृढ़ किया जा रहा है.

प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि छैलाकुमारहट्टी सड़क को सेंट्रल रोड एवं इंफ्रास्ट्रक्चर फंड में शामिल किया जाए.

उन्होंने कहा कि सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए सेब के समर्थन मूल्य में 1.50 रुपए की बढ़ोतरी की है, जिस से सेब का समर्थन मूल्य 10.50 रुपए से बढ़ कर 12 रुपए प्रति किलोग्राम हो गया है.

“अंगोरा खरगोशपालन” पर प्रशिक्षण कार्यक्रम

कुल्लू: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संस्थान केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर के उत्तरी शीतोष्ण क्षेत्रीय केंद्र, गड़सा, जिला कुल्लू (हिमाचल प्रदेश में नाबार्ड की कैट परियोजना के अंतर्गत तीनदिवसीय” के दौरान वैज्ञानिक तरीके से अंगोरा खरगोशपालन” पर प्रशिक्षण हुआ.

इस कार्यक्रम में केंद्र के प्रभारी डा. आर. पुरुषोत्तम, नोडल अधिकारी डा. अब्दुल रहीम , प्रशिक्षण समन्वयक डा. रजनी चौधरी, निधि संस्था के निदेशक डा. सुनील पांडे एवं निधि संस्था के सदस्य डा. विकास पंत के अलावा अनेक लोगों ने भाग लिया.

हर खरगोश जुड़ा है इस संस्थान से

Rabbitकार्यक्रम के अध्यक्ष डा. अरुण कुमार तोमर ने सभी किसानों को वैज्ञानिक तरीके से अंगोरा खरगोशपालन के साथसाथ भेड़बकरी एवं मुरगीपालन करने की सलाह दी और बताया कि वर्तमान में पूरे भारत में जितने भी ख़रगोश हैं, कहीं न कहीं उन।का इतिहास इसी संस्थान से जुड़ा हुआ है. यहां की जलवायु परिस्थितियां उत्तराखंड के जैसी ही हैं और छोटे पशु पालने के लिए बेहद अनुकूल हैं.

कार्यक्रम में प्रभारी द्वारा सालभर की जाने वाली छोटे पशुओं की विभिन्न गतिविधियों पर प्रकाश डाला.

प्रशिक्षण के बाद हो रही कमाई

निधि संस्था के निदेशक डा .सुनील पांडे ने बताया कि प्रशिक्षण में भाग लेने वाले सभी किसानों को 2 साल पहले उत्तरी शीतोष्ण क्षेत्रीय केंद्र द्वारा लगभग 100 अंगोरा खरगोश दिए गए थे और ये सभी किसान उन्हीं खरगोशों को या उन से लिए गए बच्चों को पाल रहे हैं. सभी किसान अंगोरा खरगोशपालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. इन खरगोशों से प्राप्त होने वाली ऊन से ये स्वयं ही मफलर, मोजे, दस्ताने, शाल, जैकेट व टोपी आदि बना कर व बेचकर अच्छी आमदनी कमा रहे हैं.

कार्यक्रम मे अंगोरा खरगोशपालन से जुड़ी सभी तकनीकों जैसे अच्छी नस्ल के पशुओं का चयन, चारा, प्रजनन, ऊन कतरन आदि पर 31 किसानों को लेक्चरर्स व प्रैक्टिकल कक्षा डा. अब्दुल रहीम व डा. रजनी चौधरी द्वारा किया गया.

केंद्र पर चल रही जनजातीय उपयोजना के अंतर्गत उत्तराखंड के मुनस्यारी ब्लौक के नानासेम, मल्ला घोरपट्टा, तल्ला बूंगा, सरमोली क्षेत्रों से 31 किसानों (26 महिला व 5 पुरुष) को निशुल्क ऊन काटने की कैंची, छाता, थरमस के साथ प्रमाणपत्र का भी वितरण किया गया.

उक्त प्रशिक्षण के प्रशिक्षण निदेशक डा. अब्दुल रहीम चौधरी व प्रशिक्षण समन्वयक डा. रजनी चौधरी व डा. आर. पुरुषोत्तम थे.

Farmingकार्यक्रम के सफल संचालन में क्षेत्रीय केंद्र के तकनीकी कर्मचारियों एवं प्रशासन द्वारा पूरा सहयोग किया गया. केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर, तहसील मालपुरा के निदेशक डा. अरुण तोमर ने हुरला जिला कुल्लू में स्थित महंत वूलन मिल का दौरा किया गया. इस दौरे में निदेशक के साथ उत्तरी शीतोष्ण क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी डा. आर. पुरुषोत्तमन, डा. अब्दुल रहीम, डा. रजनी चौधरी व मनोज शर्मा भी मौजूद रहे. वर्तमान एवं भविष्य के हिसाब से ऊन इंडस्ट्री की समस्या और अवसर के बारे में विस्तार से संवाद निदेशक द्वारा किया गया. निदेशक ने बताया कि आप के साथ गडसा व अविकानगर संस्थान मिल कर किसान हित में काम करेंगे.