खोपरा के लिए एमएसपी तय : किसानों को प्रोत्साहन

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने वर्ष 2024 मौसम के लिए खोपरा यानी नारियल के सूखे गरी के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को मंजूरी दे दी है. किसानों को लाभकारी मूल्य प्रदान करने के लिए सरकार ने वर्ष 2018-19 के केंद्रीय बजट में घोषणा की थी कि सभी अनिवार्य फसलों का एमएसपी अखिल भारतीय भारित उत्पादन लागत के कम से कम डेढ़ गुना स्तर पर तय किया जाएगा.

वर्ष 2024 सीजन के लिए मिलिंग खोपरा की उचित औसत गुणवत्ता के लिए एमएसपी 11,160 रुपए प्रति क्विंटल और बाल खोपरा के लिए 12,000 रुपए प्रति क्विंटल तय किया गया है. इस से मिलिंग खोपरा के लिए 51.84 फीसदी और बाल खोपरा के लिए 63.26 फीसदी का मार्जिन सुनिश्चित होगा, जो उत्पादन की अखिल भारतीय भारित औसत लागत से डेढ़ गुना से भी अधिक है. मिलिंग खोपरा का उपयोग तेल निकालने के लिए किया जाता है, जबकि बाल/खाद्य खोपरा को सूखे फल के रूप में खाया जाता है.

केरल और तमिलनाडु मिलियन खोपरा के प्रमुख उत्पादक हैं, जबकि बाल खोपरा का उत्पादन मुख्य रूप से कर्नाटक में होता है.

वर्ष 2024 मौसम में मिलिंग खोपरा के लिए एमएसपी में पिछले मौसम की तुलना में 300 रुपए प्रति क्विंटल और बाल खोपरा के मूल्‍य में 250 रुपए प्रति क्विंटल की वृद्धि हुई है.

पिछले 10 वर्षों में सरकार ने मिलिंग खोपरा और बाल खोपरा के लिए एमएसपी को 2014-15 में 5,250 रुपए प्रति क्विंटल और 5,500 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ा कर 2024-25 में 11,160 रुपए प्रति क्विंटल और 12,000 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया, जिस में क्रमशः 113 फीसदी और 118 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई.

उच्च एमएसपी न केवल नारियल उत्पादकों के लिए बेहतर लाभकारी मूल्‍य सुनिश्चित करेगा, बल्कि घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नारियल उत्पादों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए खोपरा उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित भी करेगा.

चालू मौसम 2023 में सरकार ने 1,493 करोड़ रुपए की लागत से 1.33 लाख मीट्रिक टन से अधिक खोपरा की रिकार्ड मात्रा में खरीद की है, जिस से लगभग 90,000 किसानों को लाभ हुआ है. मौजूदा मौसम 2023 में खरीद पिछले सीजन (2022) की तुलना में 227 फीसदी की वृद्धि का संकेत देती है.

भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ लिमिटेड (नैफेड) और राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ (एनसीसीएफ) मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत खोपरा और छिलकेरहित नारियल की खरीद के लिए केंद्रीय नोडल एजेंसियों (सीएनए) के रूप में काम करना जारी रखेंगे.

जैविक खेती में नजीर बना किसान

देश में घटता रकबा आने वाले दिनों में किसानों के पेट भरने लायक आमदनी देने में सक्षम नहीं दिखाई देता. ऐसे में किसानों को चाहिए कि वह समय की मांग के अनुसार खेती में कुछ ऐसा करें, जिस से न केवल उन का पेट भर सके, बल्कि परिवार के खर्च को भी निकाल सके.

ऐसे में उत्तर प्रदेश के जिला महाराजगंज मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर गांव अंजना के एक किसान ने बहुत ही कम जमीन पर खेती में कुछ ऐसा किया कि उन के हालात में सुधार आया, बल्कि उन्होंने आसपास के सैकड़ों परिवार को रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराए.

कृषि विषय में स्नातक नागेंद्र पांडेय ने जब पढ़ाई पूरी कर नौकरी की तलाश शुरू की, तो उन्हें यह नहीं पता था कि वह पूर्वांचल के जिलों में खेती की नजीर बन जाएंगे.

नागेंद्र पांडेय ने 20 वर्ष पूर्व नौकरी की तलाश करतेकरते यह मान लिया था कि उन्हें अब नौकरी नहीं मिलेगी. ऐसे में उन के पास एक ही चारा बचा था कि अपने पुरखों की थोड़ी जमीन पर गांव में ही रह कर खेती करें, लेकिन उन्हें यह नहीं सूझ रहा था कि वे खेती में ऐसा क्या करें, जिस से उन के परिवार का भरणपोषण अच्छे से हो पाए. उन्होंने अपनी कृषि की शिक्षा का प्रयोग अपने खेत में करने की ठानी. उन्होंने देखा कि अकसर छोटी जोत के किसान खाद व रसायनों की किल्लत से दोचार हो रहे हैं. इस के बावजूद महंगी खाद का प्रयोग करने से भी किसानों को अपेक्षित उत्पादन व लाभ नहीं मिल पा रहा है.

फिर क्या था, किसान नागेंद्र पांडेय ने यह निश्चय कर लिया कि वह अपनी थोड़ी जमीन में जैविक खादों को तैयार करेगें और बाकी बची जमीन में जैविक खेती करेंगे. उन्होंने इस के लिए सब से पहले वर्मी कंपोस्ट तैयार करने की सोची, इस के लिए उन्होंने वर्मी खाद तैयार करने के लिए प्रयोग आने वाले केंचुओं की प्रजातियों के लिए कृषि व उद्यान महकमे से संपर्क किया, लेकिन उन्हें विभाग से केंचुए नहीं मिल पाए.

इस के बाद वे गोरखपुर जिले के कैम्पियरगंज से मात्र 20 की संख्या में केंचुओं की व्यवस्था कर पाए. वे उन 20 केंचुओं की आइसीनिया फोरिडा प्रजाति को घर ले कर आए और उन्होंने 20 केंचुओं को पशुओं के चारा खिलाने वाली नाद में वर्मी कंपोस्ट में प्रयोग होने वाले गोबर व पत्तियों के बीच डाला. केंचुओं की नियमित देखभाल का ही परिणाम रहा कि 20 केंचुओं से उन के पास 45 दिनों बाद 2 किलोग्राम केंचुए तैयार हो चुके थे.

नागेंद्र पांडेय ने वर्ष 2001 में बिना किसी सहयोग के ही एक वर्मी पिट बनवाया और फिर शुरू हुआ इन के जीवन में बदलाव का एक नया अध्याय.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के सब से बड़े वर्मी खाद के उत्पादक

Organic Farmingनागेंद्र पांडेय द्वारा 20 केंचुओं से शुरू किया गया वर्मी खाद उत्पादन का प्रयास इस समय पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों के किसानों के लिए मौडल स्थापित कर चुका है. बिना किसी सरकारी सहायता के महाराजगंज व गोरखपुर जिले में 3 बड़ीबड़ी यूनिट स्थापित कर चुके उन्होंने वर्मी खाद व वर्मी के केंचुओं को किसानो को बेच कर जहां एक तरफ जैविक खेती को बढ़ावा देने का काम किया है, वहीं इसी वर्मी कंपोस्ट के यूनिट के सहारे उन्होंने प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सैकड़ों परिवारों को रोजगार दे रखा है.

नागेंद्र पांडेय ने अपने गांव में पहले उधार के पैसे से 120 वर्मी के गड्ढे तैयार कर उस पर टीनशेड डलवा कर व्यावसायिक स्तर पर काम शुरू किया, जिस में प्रति माह 750 क्विंटल खाद तैयार होती थी, जिस की पैकेजिंग व मार्केटिंग का काम भी यहीं से होता था. वर्तमान में वह 450 वर्मी बेड के जरीए हर साल लगभग 1,000 मीट्रिक टन वर्मी कंपोस्ट की खाद तैयार कर बाहर के राज्यों को भेजते हैं. इस के लिए उन के वर्मी कंपोस्ट यूनिट पर यहां प्रतिदिन बाहर से गाड़ियां भी आती हैं. उन के द्वारा बोरी 200 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से किसानों के बीच बेची जाती है. इस के अलावा वे किसानों को निःशुल्क केंचुआ भी उपलब्ध कराते हैं. बाहर के लोग इन के यहां से 800 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से केंचुआ ले जाते हैं.

वे अपने यहां तैयार होने वाली वर्मी खाद की गुणवत्ता का विशेष खयाल रखते हैं. वे वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए किसानों से गोबर खरीद कर उसे वर्मी कंपोस्ट बनाने में प्रयोग करते हैं. इन के यहां तैयार होने वाली वर्मी खाद में किसी तरह की मिलावट नहीं की जाती है. वे समयसमय पर खाद की गुणवत्ता की जांच के लिए लैब टेस्ट कराते रहते हैं. इन के यहां तैयार होने वाले वर्मी खाद में सामान्य से अधिक नाइट्रोजन 1.8 फीसदी, फास्फोरस 2.5 फीसदी व पोटाश 3.23 फीसदी पाया गया है. इसलिए इस खाद से पौधों की बढ़वार व उपज दोनों अच्छी होती है. वे सामान्य तौर पर बेची जाने वाली वर्मी खाद की अपेक्षा अपने यहां की वर्मी खाद को बहुत ही कम रेट पर किसानों को उपलब्ध कराते हैं. जहां सामान्य रूप से बाजार में वर्मी कंपोस्ट 15 से 20 रुपया किलोग्राम बिक रहा है, वहीं इन के द्वारा तैयार खाद मात्र 7 रुपए प्रति किलोग्राम ही किसानों को उपलब्ध है.

परिवारों को मिला रोजगार

किसान नागेंद्र पांडेय के वर्मी पिट यूनिट में दर्जनों महिलायें काम करती हैं, जो वर्मी कंपोस्ट की पलटाई, पैकेजिंग इत्यादि का काम करती हैं. यहां इन्हें प्रतिदिन तय मजदूरी दी जाती है.

यहां काम करने वाली दुर्गावती का कहना है कि मनरेगा में नियमित रूप से काम नहीं मिल पाता है, लेकिन यहां हमें प्रतिदिन काम मिलना निश्चित है, वहीं यहा 5 सालों से काम करने वाली ज्ञानमती का कहना है कि अकसर मेरे पति की कमाई परिवार का खर्चा नहीं चला पाती थी, लेकिन अब मैं अपने गांव में ही रोजगार पाने में सफल रही हूं. वहीं बसंती के बच्चों की पढ़ाई का खर्चा यहां काम कर के निकलता है.

कुछ इसी तरह सिंघारी, सावित्री व कलावती जैसी तमाम औरतें भी यहां नियमित रूप से काम कर के अपने घर के खर्चे में पतियों को सहयोग कर रही हैं. इस के अलावा यहां तैयार खादों को बेचने वाले किसानों व गोबर की सप्लाई देने वाले किसानों की कमाई भी नागेंद्र पांडेय की बदौलत ही बढ़ी है.

जैविक खेती को मिला बढ़ावा

महाराजगंज जिले में नागेंद्र पांडेय के प्रयासों से जैविक खेती को बढ़ावा भी मिल रहा है, क्योंकि यहां की खादों को खेतों में डालने के बाद किसानों के खेतों में फसल की उपज में लगातार इजाफा देखने को मिला है. ऐसे में जहां किसान को नुकसान कम हो रहा है, वहीं लागत में कमी आने से मुनाफे में भी बढ़ोतरी हो गई है.

प्रयासों को मिली पहचान

नागेंद्र पांडेय द्वारा किए जा रहे प्रयासों को अब उन्हें उचित मुकाम मिलना शुरू हो गया है. गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ ने अपने गौशाला के गोबर निस्तारण के लिए गोरखनाथ मंदिर व चिकित्सालय के पास खाली पड़ी जमीन पर वर्मी कंपोस्ट यूनिट लगाने का काम किया. इस के अलावा नेपाल बार्डर के नजदीक भी इन्होंने 25,000 टन खाद तैयार करने का एक यूनिट लगाया है. अब आसपास के जिले के किसान भी इन के यहां जानकारी के लिए आने लगे हैं.

वाटर हार्वेस्टिंग का नायाब तरीका

Water Harvestingकिसान नागेंद्र पांडेय ने खेतों की सिंचाई में प्रयोग आने वाले पानी व वर्षा के पानी के लिए एक तालाब खुदवा रखा है, जिस में खेत से सीधा पाइप लगा कर जोडा गया है. वहां से अतिरिक्त पानी पाइप के रास्ते गड्ढे में इकट्ठा हो जाता है. जिस का प्रयोग वे दोबारा वर्मी पिट की नमी बनाने व खेतों की सिंचाई के लिए करते हैं.

करते हैं आधुनिक खेती

नागेंद्र पांडेय धान को श्रीविधि रोपाई कर के अधिक आमदनी प्राप्त करते हैं, वहीं गेहूं की बोआई सीड ड्रिल से कर के लागत में कमी भी लाने में सफल रहे हैं. वे अपने खेतों में वर्मी खाद व वर्मी वास का ही इस्तेमाल करते हैं.

वर्मी वास की रहती है मांग

नागेंद्र पांडेय ने ‘साश्वत’ नाम से जैविक खेती को बढ़ावा देने वाला एक ग्रुप यानी समूह बनाया है. इस के जरीए वे अपनी कृषि शिक्षा का प्रचारप्रसार भी कर रहे हैं. वे केंचुओं से वर्मी वास बनाते हैं, जिस में मटके में गोबर मिला कर उसे ऊपर टांग कर पानी डाल दिया जाता है, जिस में इन केंचुओं के हार्मोंस मिल कर बूंदबूंद बाहर आता है, जो फसलों में छिड़काव के काम आता है.

नागेंद्र पांडेय द्वारा स्थायी कृषि के किए जा रहे प्रयासों के बारे में जान कर गोरखपुर जिले के कमिश्नर, उपनिदेशक, कृषि, सीडीओ सहित तमाम लोग इन की यूनिट का भ्रमण कर चुके हैं और इन के प्रयासों की सराहना भी की.

नागेंद्र पांडेय की सफलता को ले कर सिद्धार्थनगर जिले के रहने वाले श्रीधर पांडेय का कहना है कि किसान नागेंद्र पांडेय ने जैविक खेती की दिशा में जो प्रयास किया है, वह दूसरे किसानों के लिए मिसाल बन गए हैं. उन्होंने न केवल जैविक खेती को बढ़ावा दिया है, बल्कि कई परिवारों को रोजगार का साधन भी मुहैया कराने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. किसान नागेंद्र पांडेय के बारे में अधिक जानकारी या वर्मी कंपोस्ट तैयार करने की विधि की जानकारी के लिए आप उन के मोबाइल नंबर 9839198163 से संपर्क कर जानकारी ले सकते हैं.

बीते 8 वर्षों में 51 फीसदी बढ़ा दूध उत्पादन

गांधीनगर: केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने गुजरात के गांधीनगर में नेशनल कोआपरेटिव डेयरी फेडरेशन औफ इंडिया (NCDFI) लिमिटेड के मुख्यालय का शिलान्यास किया एवं ईमार्केट अवार्ड 2023 समारोह को संबोधित किया.

इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल, गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष शंकर चौधरी, इफको के अध्यक्ष दिलीप संघाणी, एनडीडीबी के अध्यक्ष डा. मीनेश शाह और एनसीडीएफआई के अध्यक्ष डा. मंगल राय समेत अनेक लोग मौजूद थे.

अपने संबोधन में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि हमारे देश में डेयरी और खासकर कोआपरेटिव डेयरी सैक्टर ने बहुआयामी लक्ष्यों को हासिल किया है. अगर दूध का व्यापार कोआपरेटिव सैक्टर नहीं करता है, तो दूध उत्पादन, एक बिचौलिए और दूध का उपयोग करने वाले तक सीमित रहता है.

लेकिन अगर कोऑपरेटिव सेक्टर कोऑपरेटिव तरीके से दूध का व्यापार करता है तो इसमें कई आयाम एक साथ जुड़ जाते हैं, क्योंकि इसमें उद्देश्य मुनाफे का नहीं है और इसका बहुआयामी फायदा समाज, कृषि, गांव, दूध उत्पादक और आखिरकार देश को होता है.

उन्होंने कहा कि भारत ने पिछले 50 साल में इस सफलता की गाथा की अनुभूति की है.

Amit Shahसहकारिता मंत्री ने कहा कि आज विश्व के दुग्ध उत्पादन में भारत 24% हिस्से के साथ पहले स्थान पर पहुंच चुका है और प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में भारत में पिछले 8 वर्षों में दूध उत्पादन में लगभग 51% वृद्धि हुई है जो विश्व में सबसे तेजी के साथ हुई बढ़ोत्तरी है. यह सिर्फ इसलिए संभव हुआ है क्योंकि इनमें ज्यादातर उत्पादन कोऑपरेटिव डेयरी के माध्यम से हुआ है.

उन्होंने कहा कि अगर कोऑपरेटिव डेयरी चलानी है तो उसे पोषित करने वाली अनेक संस्थाएं बनानी पड़ेगी और एनसीडीएफआई यह काम करेगी.

उन्होने कहा कि NCDFI एक प्रकार से सभी डेयरी को गाइडेंस देने का काम कर रही है. शाह ने कहा कि जिस वासी गांव से श्वेत क्रांति की शुरुआत हुई, वहीं आणंद जिले में लगभग 7000 वर्ग मीटर क्षेत्र में एनसीडीएफआई का मुख्यालय बनने जा रहा है. यह करीब 32 करोड़ रुपए के खर्च से बनेगा और सौर ऊर्जा संयंत्र से संचालित होगा. उन्होंने कहा कि नया मुख्यालय भवन 100 प्रतिशत ग्रीन बिल्डिंग होगा.

कोऑपरेटिव सेक्टर के जरिए पोषण आंदोलन

गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि जब कोऑपरेटिव सेक्टर डेयरी का बिजनेस करता है तब सबसे पहला फायदा दूध उत्पादकों को होता है, क्योंकि उनका शोषण नहीं होता है. उन्होंने कहा कि अगर कोई अकेला दूध का उत्पादन करता है तो उसके पास दूध के स्टोरेज की क्षमता नहीं होती और वह मार्केट को एक्सप्लोर नहीं कर सकता. लेकिन अगर कोऑपरेटिव सेक्टर दूध का बिजनेस करता है तो गांव और जिला स्तर पर दूध संघ बनते हैं और उनके पास कोल्ड स्टोरेज, प्रोसेसिंग, मार्केट की डिमांड के मुताबिक दूध को उस उत्पाद में कन्वर्ट करने की क्षमता होती है. इससे मुनाफे को कोऑपरेटिव आधार पर दूध उत्पादन करने वाली बहनों के पास पहुंचाने की व्यवस्था भी होती है और इस तरह दूध उत्पादन करने वाली बहनों का शोषण समाप्त हो जाता है. उन्होंने कहा कि अकेला दूध का उत्पादन करने वाला व्यक्ति अपने पशुओं के स्वास्थ्य की चिंता नहीं कर सकता है, लेकिन अगर कोऑपरेटिव तरीके से दूध उत्पादन किया जाए तो जिला दूध उत्पादक संघ पशु की नस्ल सुधार, स्वास्थ्य सुधार और पशुओं के अच्छे आहार की भी व्यवस्था करता है.

अन्य लाभ यह है कि अगर कोऑपरेटिव सेक्टर के जरिए दूध का बिजनेस होता है तो यह पोषण आंदोलन से स्वत: जुड़ जाता है.

अमित शाह ने कहा कि वह बनासकांठा की डेयरी सहित कई ऐसी डेरियों के बारे में जानते हैं जो कुपोषित बच्चों को पोषण युक्त दूध देकर उनके स्वास्थ्य की चिंता करती हैं. अहमदाबाद डेयरी जैसी कई डेयरियां गर्भवती महिलाओं को लड्डू देकर उनके और उनके बच्चे के पोषण की चिंता करती हैं और पूरा कोऑपरेटिव सेक्टर कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में जुड़ गया है.

सहकारिता मंत्री ने कहा कि डेयरी और डेयरी टेक्नोलॉजी के बारे में एक जमाने में भारत के लिए कल्पना करना भी मुश्किल था, लेकिन हमने ऐसे प्रयास किए कि पूरे भारत में सिमेट्रिक दूध उत्पादन शुरू हुआ. कई क्षेत्र ऐसे हैं जो कोऑपरेटिव डेयरी से नहीं जुड़े थे, वहां भी एनडीडीबी के माध्यम से गुजरात की सक्षम डेयरियां उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में अपने काम का विस्तार कर रही हैं और कोऑपरेटिव तरीके से अपने काम को बढ़ा रही हैं.

उन्होंने कहा कि अगर देश के हर गांव में सिमेट्रिक तरीके से दूध उत्पादन करना है और हर घर को आत्मनिर्भर बनाना है तो यह काम केवल कोऑपरेटिव डेयरी के जरिए ही संभव है.

डेयरियों ने दूध उत्पादन देश का नाम किया रोशन

Milkअमित शाह ने कहा कि भारत की डेयरियों ने दूध उत्पादन में विश्व में देश का नाम रोशन किया है. उन्होंने कहा कि 1946 में जब गुजरात में एक डेयरी ने शोषण शुरू किया तो इसके खिलाफ सरदार वल्लभभाई पटेल ने त्रिभुवन भाई को प्रेरित किया और 1946 में 15 गांवों में छोटी-छोटी डेयरी की शुरुआत हुई. उन्होंने कहा कि 1946 में शोषण के खिलाफ हुई एक छोटी सी शुरुआत विराट आंदोलन में परिवर्तित हुई और इसी से देश में श्वेत क्रांति का विचार आया और एनडीबीबी का उद्भव हुआ.

देश भर में अनेक कोऑपरेटिव डेरियाँ बनी

उन्होंने कहा कि आज देश भर में विकसित होकर अनेक कोऑपरेटिव डेरियाँ बनी है. अमूल प्रतिदिन लगभग 40 मिलियन लीटर दूध की प्रोसेसिंग करता है और 36 लाख बहनें दूध का भंडारण करती हैं और हर सप्ताह उन्हें उत्पादित दूध की कीमत मिल जाती है. श्री शाह ने कहा कि 2021-22 में अमूल फेडरेशन का टर्नओवर 72000 करोड़ रुपए का है.

नवाचारों व कौशल विकास से देश की उन्नति

हिसार : अगले दशक में भारत में युवाओं की आबादी दुनिया में सब से अधिक होगी. यदि देश का उत्थान करना है, तो युवाओं को परिवार, समाज व संसाधनों के बीच सामंजस्य स्थापित करना होगा. इस के लिए उन्हें समय के साथसाथ अपने ज्ञान, नवाचारों व कौशल में विकास करना चाहिए, तभी हमारा देश उन्नति के पथ पर अग्रसर हो पाएगा.

ये विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने विश्वविद्यालय के इंदिरा चक्रवर्ती सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय की स्वर्ण जयंति के उपलक्ष्य पर “सामुदायिक विज्ञान शिक्षा : चुनौतियां एवं अवसर” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्यातिथि कही. इस दौरान मुख्य वक्ता के रूप में पंतनगर के गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी की पूर्व अधिष्ठाता डा. रीटा रघुवंशी उपस्थित रहीं, जबकि लुधियाना के पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में कालेज औफ होम साइंस की पूर्व अधिष्ठाता डा. जतिंदर कौर गुलाटी उपस्थित रहीं.

मुख्यातिथि प्रो. बीआर कंबोज ने विश्वविद्यालय के इंदिरा चक्रवर्ती सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय के 50 साल पूरे करने पर सभी को बधाई दी.

उन्होंने कहा कि सामुदायिक विज्ञान एक अंतर विषयक क्षेत्र है, जिस में परिधान और वस्त्र विज्ञान, खाद्य एवं पोषण, संसाधन प्रबंधन, उपभोक्ता प्रबंधन के साथसाथ भौतिकी, जैविक, कृषि, सामाजिक और पर्यावरण विज्ञान, कला, मानविकी और प्रबंधन विषयों का संयुक्त रूप से ज्ञान है.

उन्होंने कहा कि बदलते समय के साथ जैसेजैसे परिवार व समाज का दायरा बढ़ा है, वैसेवैसे चुनौतियां भी बढ़ रही हैं. इन का निवारण सामुदायिक विज्ञान विषय में है, जो कि व्यक्ति अपने परिवार, समुदाय एवं संसाधनों के साथ गतिशील संबंधों के महत्व पर आधारित है.

Farmingमुख्यातिथि ने छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि यदि समय रहते उन्होंने अपने अंदर ज्ञान, कौशल, अनुशासन गुणों का विकास व समाज के हित के लिए कदम नहीं उठाए, तो भविष्य में काफी चुनौतियों से लड़ना पड़ सकता है. इसलिए बदलते समय के साथ अपने अंदर परिवर्तन लाना आवश्यक है.

उन्होंने इंदिरा चक्रवर्ती सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय में पढ़ाए जा रहे सभी कोर्सों को अहम बताते हुए कहा कि इस से हमारे ज्ञानवर्धन के साथ सामाजिक कार्यों को बढ़ावा मिलने में भी मदद मिलेगी.

उन्होंने शिक्षकों से यह भी कहा कि वे कक्षा में हर विद्यार्थी की प्रतिभा की पहचान कर उस को संवारने का प्रयास करें.

कुलपति ने विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वे अपने कैरियर को संवारने के लिए पहले कुछ सीखने की ललक जगाएं और फिर उस काम को पूरा करने की निरंतरता जारी रखें. साथ ही, पाठ्यक्रमों से संबंधित शिक्षकों से संवाद जरूर करें.

मुख्य वक्ता डा. रीटा रघुवंशी ने उपस्थित छात्राओं को सामुदायिक विज्ञान एवं सतत विकास विषय पर विस्तारपूर्वक जानकारी दी. उन्होंने कहा कि आधुनिक युग में सामुदायिक विज्ञान का भविष्य उज्ज्वल है. छात्राओं को गणित, कंप्यूटर विज्ञान, सांख्यिकी विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और मानविकी विषयों में अपनी क्षमताओं को बढ़ाने की आवश्यकता है, जोकि आने वाले समय की मांग है.

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन, बढ़ता प्रदूषण, घटते प्राकृतिक संसाधनों, खाद्य एवं पोषण सुरक्षा जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही है, जिन के लिए छात्राओं को अपने अंदर कौशल विकास व ज्ञानवर्धन करने की जरूरत है.

वक्ता डा. जतिंदर कौर गुलाटी ने सकारात्मक युवा विकास विषय के पहलुओं पर छात्राओं से चर्चा की. उन्होंने पर्यावरण, आर्थिक व समाज को सामुदायिक विज्ञान विषय की अहम कड़ी बताते हुए कहा कि यदि किसी समाज का उत्थान करना है, तो बदलते समय के साथ नवाचारों, ज्ञान और कौशल में विकास करना चाहिए.

इस के अलावा मोदीपुरम के इंडियन इस्टीट्यूट औफ फार्मिंग सिस्टमस रिसर्च से वैज्ञानिक डा. निशा वर्मा ने समुदाय आधारित हस्तक्षेपों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उभरते उपकरण और तकनीकें विषय और नई दिल्ली के इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट की प्रमुख वैज्ञानिक डा. प्रेमलता ने महिलाओं के नेतृत्व में विकास विषय पर अपने व्याख्यान दिए.

उपरोक्त महाविद्यालय की अधिष्ठाता डा. मंजू महता ने सभी का स्वागत किया.
शिक्षा एवं संचार प्रबंधन विभाग की प्रभारी एवं कार्यक्रम की समन्यवक डा. बीना यादव ने एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के तहत विभिन्न विषयों पर होने वाले तकनीकी सत्रों, गतिविधियों, कार्यों व रूपरेखा के बारे में विस्तृत जानकारी दी.

खाद्य एवं पोषण विभाग की अध्यक्ष डा. संगीता चहल सिंधु ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया. साथ ही, मंच संचालन डा. मंजू दहिया ने किया.

देशभर में वन्य उपज की आवाजाही हुई आसान

नई दिल्ली: केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन व श्रम और रोजगार मंत्री भूपेंद्र यादव ने देशभर में लकड़ी, बांस और अन्य वन्य उपज की निर्बाध आवाजाही के लिए पूरे भारत में नेशनल ट्रांजिट पास सिस्टम (एनटीपीएस) का आरंभ किया.

वर्तमान में, राज्य विशिष्ट पारगमन नियमों के आधार पर लकड़ी और वन उपज के परिवहन के लिए पारगमन परमिट जारी किए जाते हैं. एनटीपीएस की कल्पना “वन नेशन-वन पास” व्यवस्था के रूप में की गई है, जो पूरे देश में निर्बाध पारगमन को सक्षम बनाएगी.

यह पहल देशभर में कृषि वानिकी में शामिल वृक्ष उत्पादकों और किसानों के लिए एक एकीकृत, औनलाइन मोड प्रदान कर के लकड़ी पारगमन परमिट जारी करने को सुव्यवस्थित करेगी, जिस से व्यापार करने में आसानी होगी.

जागरूकता पैदा करने और एनटीपीएस के उपयोग और उस की सुगमता को प्रदर्शित करने के लिए वन्य उपज ले जाने वाले विशेष वाहनों को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने हरी झंडी दिखा कर रवाना किया. गुजरात और जम्मूकश्मीर से लकड़ी और अन्य वन्य उपज ले जाने वाले 2 वाहनों को हरी झंडी दिखाई गई, जो पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के लिए जाने वाले हैं. एनटीपीएस के जरीए उत्पन्न क्यूआर कोड वाले पारगमन परमिट की वैधता को सत्यापित करने और निर्बाध पारगमन की अनुमति देने के लिए विभिन्न राज्यों में चेक गेट की सुविधा मिलेगी.

फ्लैग औफ कार्यक्रम के अवसर पर भूपेंद्र यादव ने कहा कि एनटीपीएस के राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन के साथ यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि एनटीपीएस अधिक पारदर्शिता की दिशा में आवाजाही को मजबूत करने में मदद करेगा, जो भारत के विकास की गारंटी है.

उन्होंने कहा कि यह पहल देशभर में लकड़ी और विभिन्न वन्य उत्पादों के निर्बाध परिवहन की सुविधा प्रदान करने के लिए तैयार है. इस का प्रभाव केवल कृषि वानिकी और वृक्ष उत्पादन को प्रोत्साहित करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण मूल्य श्रंखला को प्रोत्साहित करने की भी गारंटी देता है.

इस के अतिरिक्त केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने मंत्रालय द्वारा कई अन्य हालिया पहलों पर प्रकाश डाला, जैसे भारतीय वन और लकड़ी प्रमाणन योजना और वन के बाहर पेड़ पहल. इन प्रयासों का सामूहिक उद्देश्य देश में कृषि वानिकी व्यवहारों को बढ़ावा देना है.

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने इस बात पर जोर दिया कि एनटीपीएस कृषि वानिकी और जंगल के बाहर के पेड़ों के लिए एक गेमचेंजर है. लकड़ी और अन्य वन्य उत्पादों के पारगमन को सुव्यवस्थित करने के लिए शुरू किया गया है. इस से इस क्षेत्र में व्यापार करने में आसानी बढ़ने की उम्मीद है.

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सचिव लीना नंदन और वन महानिदेशक एवं विशेष सचिव चंद्र प्रकाश गोयल ध्वजारोहण कार्यक्रम के दौरान उपस्थित थे.

एनटीपीएस की शुरुआत से पहले, मार्ग के साथ विभिन्न राज्यों से पारगमन परमिट प्राप्त करना एक लंबी प्रक्रिया थी, जिस से राज्यों में लकड़ी और वन्य उत्पादों के परिवहन में अड़चनें पैदा होती थीं. प्रत्येक राज्य के अपने स्वयं के पारगमन नियम हैं, जिस का अर्थ है कि राज्यों में लकड़ी या वन्य उपज का परिवहन करने के लिए, प्रत्येक राज्य में एक अलग पारगमन पास जारी करना आवश्यक होता था.

Forestएनटीपीएस निर्बाध पारगमन परमिट प्रदान करता है, निजी भूमि, सरकारी स्वामित्व वाले वन और निजी डिपो जैसे विभिन्न स्रोतों से प्राप्त लकड़ी, बांस और अन्य वन्य उपज के राज्य के भीतर और एक राज्य से दूसरे राज्य तक, दोनों परिवहनों के लिए रिकौर्ड का प्रबंधन करता है.

एनटीपीएस को उपयोगकर्ता की सुविधा के लिए डिजाइन किया गया है, जिस में आसान पंजीकरण और परमिट अनुप्रयोगों के लिए डेस्कटौप और मोबाइल एप्लिकेशन शामिल हैं. पारगमन परमिट उन वृक्ष प्रजातियों के लिए जारी किए जाएंगे, जो विनियमित हैं, जबकि उपयोगकर्ता छूट प्राप्त प्रजातियों के लिए स्वयं अनापत्ति प्रमाणपत्र तैयार कर सकते हैं. वर्तमान में, 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने एकीकृत परमिट प्रणाली को अपनाया है, जिस से उत्पादकों, किसानों और ट्रांसपोर्टरों के लिए अंतर्राज्यीय व्यापार संचालन सुव्यवस्थित हो गया है. इस कदम से कृषि वानिकी क्षेत्र को महत्वपूर्ण प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है. एनटीपीएस को https://ntps.nic.in पर देखा जा सकता है.

हर किसान को रूपे डेबिट कार्ड

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने गुजरात के गांधीनगर में नेशनल कोआपरेटिव डेयरी फेडरेशन औफ इंडिया (एनसीडीएफआई) लिमिटेड के मुख्यालय का शिलान्यास करते समय कहा कि हमारे देश में डेयरी सैक्टर ने बहुआयामी लक्ष्यों को हासिल किया है. हम दुनियाभर में सालों से दूध उत्पादन के मामले में पहले नंबर पर हैं.

अमित शाह ने कहा कि डेयरी उद्योग में ईमार्केट को बढ़ावा देने के लिए पुरस्कार दिए गए हैं. एनसीडीएफआई के सदस्यों से उन्होंने आग्रह किया कि उन्हें उन्हे सौ फीसदी बिजनेस की ओर जाना चाहिए.

सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि अभी गुजरात में हम ने एक छोटा सा प्रयोग शुरू किया है, पंचमहल जिला डेयरी, बनासकांठा जिला डेयरी और गुजरात स्टेट कोआपरेटिव बैंक के सहयोग से हम हर किसान को रूपे कार्ड दे रहे हैं. हर गांव की डेयरी को बैंक मित्र बना कर एटीएम दे रहे हैं. साथ ही, डेयरी और हर किसान का अकाउंट जिला कोआपरेटिव बैंक में ट्रांसफर कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि अकेले बनांसकाठा जिले में 800 करोड़ रुपए की डिपोजिट बढ़ी है और 193 एटीएम कार्यरत हैं. 96 फीसदी किसान के पास रूपे डेबिट कार्ड पहुंच चुका है. अब किसान को किसी के पास जाने की जरूरत नहीं है. उन के दूध का पेमेंट सीधा जिला कोआपरेटिव बैंक बनासकांठा के अकाउंट में जमा होता है. इस से जुड़ा रूपे कार्ड उस के पास है, उन्हें अगर कहीं से कुछ भी खरीद करनी है या कैश चाहिए, तो वे अपने गांव की डेयरी के एटीएम से कैश ले सकते हैं.

अमित शाह ने कहा कि अगर यही मौडल पूरे गुजरात की हर डेयरी को केंद्र बना कर हर जिले में लागू किया जाए, तो किसान को किसी भी खरीद के लिए जेब से कैश नहीं निकालना पड़ेगा.

कोआपरेटिव का अहम रोल

गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि इनफार्मल इकोनोमी की जगह फार्मल इकोनोमी और देश के अर्थतंत्र को बढ़ावा देने में कोआपरेटिव का अहम रोल होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि हम ने कोआपरेटिव को बढ़ावा देने में कोआपरेटिव की ही भूमिका हो, इस प्रकार के अर्थतंत्र की कल्पना की है. सारे दुग्ध संघ के पदाधिकारियों को इस मौडल का अध्ययन करना चाहिए और हर जिला दुग्ध उत्पादक संघ को भेजना चाहिए, ताकि पता चल सके कि कोआपरेटिव सैक्टर की स्ट्रेंथ में कितनी बढ़ोतरी हुई है.

अपूर्वा त्रिपाठी को दिया गया ‘‘एग्रीकल्चर लीडरशिप अवार्ड 2023″

छत्तीसगढ़ और बस्तर के लिए यह बेहद गौरव के पल थे, जब 21 दिसंबर, 2023 को देश की राजधानी नई दिल्ली के ‘होलीडे इन’ के सभागार में आयोजित एक भव्य समारोह में, छत्तीसगढ़ बस्तर की बेटी अपूर्वा त्रिपाठी को भारत सरकार के कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा द्वारा कृषि क्षेत्र के देश के सर्वोच्च सम्मान ‘‘एग्रीकल्चर लीडरशिप अवार्ड-2023‘‘ से सम्मानित किया गया.

इस कार्यक्रम में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और केरल के पूर्व राज्यपाल न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम, ओपी धनकड़, इंडियन चैंबर औफ फूड एंड एग्रीकल्चर के चेयरमैन एमजे खान, ममता जैन और विभिन्न केंद्रीय और राज्य मंत्रियों सहित प्रतिष्ठित नामचीन व्यक्तियों, कृषि विशेषज्ञों और बड़ी तादाद में प्रगतिशील किसानों की सहभागिता रही.

’एग्रीकल्चर लीडरशिप अवार्ड 2023’

देश के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व चीफ जस्टिस के नेतृत्व में 21 विशेषज्ञ सदस्यों की जूरी द्वारा ‘एग्रीकल्चर लीडरशिप अवार्ड‘ के लिए उन व्यक्तियों चयन किया जाता है, जिन्होंने देश में कृषि के क्षेत्र में असाधारण नेतृत्व और सफल नवाचार का प्रदर्शन किया है, और क्षेत्र की वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

Apurva Tripathiकौन हैं अपूर्वा त्रिपाठी

देश के सब से पिछड़े आदिवासी क्षेत्र कहे जाने वाले कोंडागांव, बस्तर की अपूर्वा त्रिपाठी देश में एक युवा रोल मौडल और कृषि में नई प्रेरणा की किरण बन कर उभरी हैं. शैक्षणिक उत्कृष्टता के साथ देश के शीर्ष संस्थानों से बौद्धिक संपदा कानून और बिजनैस कानून में बीए, एलएलबी और ‘डबल एलएलएम‘ की डिगरी हासिल करने वाली अपूर्वा त्रिपाठी वर्तमान में बस्तर, छत्तीसगढ़ में जनजातीय महिलाओं के पारंपरिक स्वास्थ्य प्रथाओं और कृषि प्रथाओं पर पीएचडी कर रही हैं.

अपूर्वा त्रिपाठी ने 25 लाख रुपए सालाना की आकर्षक नौकरी की पेशकश को ठुकरा दिया और बस्तर के ‘मां दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप‘ में शामिल हो कर इस समूह की हजारों आदिवासी महिलाओं द्वारा जैविक रूप से उगाए गए मसालों, बाजरा और जड़ीबूटियों की खेती, खेती का अंतर्राष्ट्रीय जैविक प्रमाणीकरण, प्राथमिक प्रसंस्करण, पैकेजिंग, ब्रांडिंग कर के और तैयार माल के देश और विदेशी बाजारों में बेचने में जुटी हैं.

इन की लगन और मेहनत के दम पर आज बस्तर के अंतर्राष्ट्रीय प्रमाणित जैविक और अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता प्रमाणित उत्पाद अब अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे प्रमुख औनलाइन प्लेटफार्मों पर उपलब्ध हैं, जिस का फायदा सीधे परिवारों को मिल रहा है.

आज से 13 साल पहले देश का पहला ‘एग्रीकल्चर लीडरशिप अवार्ड‘ हासिल करने वाले ‘किसान और वैज्ञानिकः डा. राजाराम त्रिपाठी की बेटी हैं, जो कि कोंडागांव, बस्तर स्थित ‘‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सैंटर‘‘ में कृषि में नित नूतन नवाचारों और टिकाऊ व उच्च लाभदायक कृषि पद्धतियों के विकास के लिए देशदुनिया में जाने जाते हैं.

बढ़ रहा अंडे और ब्रायलर का उत्पादन

नई दिल्लीः पशुपालन एवं डेयरी विभाग की सचिव अलका उपाध्याय की अध्यक्षता में दिल्ली में एक गोलमेज बैठक आयोजित की गई. यह बैठक भारतीय पोल्ट्री तंत्र को मजबूती देने के लिए की गई. इस बैठक में देश की प्रमुख पोल्ट्री कंपनियां, राज्य सरकारें और उद्योग संघ एक मंच पर साथ नजर आए.

बैठक में सचिव अलका उपाध्याय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारतीय पोल्ट्री क्षेत्र, जो अब कृषि का एक अभिन्न अंग है, ने प्रोटीन और पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. जहां फसलों का उत्पादन हर साल 1.5 से 2 फीसदी दर से बढ़ रहा है, वहीं अंडे और ब्रायलर का उत्पादन 8 से 10 फीसदी की दर से हर साल बढ़ रहा है.

पिछले 2 दशकों में भारतीय पोल्ट्री क्षेत्र एक विशाल उद्योग के रूप में विकसित हुआ है, जिस ने भारत को अंडे और ब्रायलर मांस के प्रमुख वैश्विक उत्पादक के रूप में स्थापित किया है.

सचिव अलका उपाध्याय ने बताया कि पशुपालन एवं डेयरी विभाग निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहलें कर रहा है. विभाग ने हाल ही में उच्च रोगजनकता वाले एवियन इन्फ्लुएंजा से मुक्ति की स्वघोषणा प्रस्तुत की.

निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विभाग ने 33 पोल्ट्री कंपार्टमेंटों को एवियन इन्फ्लुएंजा से नजात माना है. विभाग ने वैधता के आधार पर विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन को 26 विभाग अधिसूचित किए हैं. 13 अक्तूबर, 2023 को स्वघोषणा को विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुमोदित किया गया था. इस के अलावा विभाग ने पिछले वर्षों में चारे की कमी की समस्या को हल करने के लिए कदम उठाए हैं. साथ ही, विभाग ने पोल्ट्री उत्पादों की खपत के खिलाफ कोविड काल के दौरान देशभर में फैली भ्रामक सूचनाओं का मुकाबला करने के लिए भी कदम उठाए.

अलका उपाध्याय ने पोल्ट्री निर्यात को बढ़ावा देने, भारतीय पोल्ट्री क्षेत्र को मजबूत करने, व्यापार करने में सुधार करने, पोल्ट्री उत्पाद निर्यात में चुनौतियों का समाधान करने और अनौपचारिक क्षेत्र में इकाइयों के एकीकरण की रणनीति बनाने और विश्व मंच पर पोल्ट्री क्षेत्रों की स्थिति को और मजबूत करने पर बल दिया.

उन्होंने पोल्ट्री और उस से संबंधित उत्पादों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए पोल्ट्री कंपार्टमेंटलाइजेशन की अवधारणा को अपना कर एचपीएआई से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिए विभाग के सक्रिय दृष्टिकोण पर अंतर्दृष्टि भी साझा की.

वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत ने वैश्विक बाजार में महत्वपूर्ण प्रगति की. उल्लेखनीय 664,753.46 मीट्रिक टन पोल्ट्री उत्पादों का 57 से अधिक देशों को निर्यात किया, जिस का कुल मूल्य 1,081.62 करोड़ रुपए (134.04 मिलियन अमरीकी डालर).

एक हालिया बाजार अध्ययन के अनुसार, भारतीय पोल्ट्री बाजार ने वर्ष 2024-2032 तक 8.1 फीसदी की सीएजीआर के साथ वर्ष 2023 में 30.46 बिलियन अमेरिकी डालर का उल्लेखनीय मूल्यांकन हासिल किया.

इस गोलमेज बैठक ने गतिशील विचारविमर्श के लिए एक मंच के रूप में काम किया, जिस ने वर्तमान चुनौतियों का समाधान करने और भारतीय पोल्ट्री क्षेत्र के सतत विकास के लिए मजबूत रणनीति तैयार करने के लिए सहयोगात्मक प्रयासों को प्रोत्साहित किया. बैठक में पोल्ट्री क्षेत्र के प्रतिनिधियों, निर्यातकों ने पोल्ट्री निर्यात से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की.

वन्यजीव स्वास्थ्य प्रबंधन पर कार्यशाला

नई दिल्लीः केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने नई दिल्ली में दूसरी राष्ट्रस्तरीय हितधारक कार्यशाला का सफलतापूर्वक आयोजन किया. कार्यशाला की अध्यक्षता केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (एमओईएफ और सीसी) अश्विनी चैबे ने की और एमओईएफ और सीसी सचिव लीना नंदन, एमओएफएएचडी सचिव अलका उपाध्याय, डीजीएफ और एसएसएमओईएफ और सीसी सीपी गोयल, वन्यजीव एडीजी बिवास रंजन ने सहायता प्रदान की, जिन का उद्देश्य नेशनल रेफरल सैंटर फौर वाइल्डलाइफ (एनआरसी-डब्ल्यू) के विकास को आगे बढ़ाना और वन हेल्थ पहल के लिए सहयोग को बढ़ावा देना है.

इस कार्यक्रम में मानव स्वास्थ्य, पशुधन स्वास्थ्य, वन्यजीव अनुसंधान संस्थानों, राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधकों, चिड़ियाघर निदेशकों आदि के विभिन्न संगठनों के विशेषज्ञों का जमावड़ा देखा गया. सीसीएमबी, आईसीएआर-निवेदी, डब्ल्यूआईआई, एनटीसीए, आईवीआरआई जैसे संस्थानों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.

मंत्री अश्विनी कुमार चैबे ने समृद्ध वन्यजीव और जैव विविधता के संबंध में भारत की अद्वितीय स्थिति और हाथियों की श्रेणी में नंबर वन और एशियाई शेर के विशेष घर के रूप में हमारे देश की अद्वितीय स्थिति पर प्रकाश डाला और वन्यजीव स्वास्थ्य और रोग प्रबंधन के लिए समग्र दृष्टिकोण के महत्व पर जोर दिया.

Forestउन्होंने यह भी उल्लेख किया कि मंत्रालय हमेशा इस तरह की पहल का समर्थन करता रहेगा. इसी तरह प्रधानमंत्री विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (पीएम-एसटीआईएसी) के तहत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पहल का सक्रिय रूप से समर्थन कर के वन हेल्थ मिशन के लिए समर्थन भी जारी रहेगा. साथ ही, उन्होंने मनुष्यों, पशुधन और वन्यजीवों को शामिल करते हुए एकीकृत निगरानी की आवश्यकता को रेखांकित किया.

इस के अलावा आकर्षक सत्रों में एनआरसी-डब्ल्यू का विकास, वन्यजीव क्षेत्र में रोग एवं निगरानी की आवश्यकताएं, मानव और पशुधन कार्यक्रमों के साथ जुड़ाव, वन्यजीव क्षेत्र के लिए अनुसंधान एवं विकास की आवश्यकताएं और एक प्रभावी क्षमता निर्माण ढांचे की आवश्यकता जैसे विषयों को शामिल किया गया.

कार्यशाला एनआरसी-डब्ल्यू के विकास को मजबूत करने के उद्देश्य से हितधारकों के बीच समृद्ध चर्चाओं और सहयोगात्मक रणनीतियों के साथ संपन्न हुई. हितधारकों ने एनआरसी-डब्ल्यू की प्रभावी स्थापना के लिए महत्वपूर्ण नवीन रूपरेखाओं, तकनीकी हस्तक्षेपों और संसाधन जुटाने पर विचारविमर्श किया.

कार्यशाला के मुख्य आकर्षण में प्रभावी वन्यजीव स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए मनुष्यों, पशुधन और वन्यजीवों को एकीकृत करने वाले समग्र दृष्टिकोण पर जोर देना शामिल है. हितधारक संगठनों के विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा एनआरसी-डब्ल्यू के विकास, वन्यजीव क्षेत्र में रोग व निगरानी आवश्यकताओं और मानव और पशुधन कार्यक्रमों के साथ जुड़ाव, वन्यजीव क्षेत्र के लिए अनुसंधान एवं विकास आवश्यकताओं और एक प्रभावी क्षमता निर्माण ढांचे की आवश्यकता जैसे विभिन्न विषयों को शामिल करते हुए आकर्षक सत्र आयोजित किए गए.

हितधारकों ने अपनी प्रतिबद्धता में एकजुट हो कर एनआरसी-डब्ल्यू की प्रभावी स्थापना के लिए महत्वपूर्ण नवीन रूपरेखाओं, तकनीकी हस्तक्षेपों और संसाधन जुटाने पर विचारविमर्श किया.

कार्यशाला का समापन एक साझा दृष्टिकोण के साथ प्रतिध्वनित हुआ, जिस ने हितधारकों को जैव विविधता और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लाभ के लिए इस महत्वपूर्ण पहल को आगे बढ़ाने में अपने ठोस प्रयासों को जारी रखने के लिए प्रेरित किया.

Forestकार्यशाला में वन्यजीवों के लिए प्रस्तावित राष्ट्रीय रेफरल केंद्र के लिए विचारविमर्श किए गए फोकस क्षेत्रों पर जानकारी प्रदान की गई, जिस में शामिल हैं –

– उभरते संक्रामक रोगों के परिप्रेक्ष्य से रोग व प्रजाति आधारित अनुसंधान
– राष्ट्रीय वन्यजीव रोग निगरानी कार्यक्रम
– आपातकालीन स्थितियों में वन्यजीव रोगों की रोकथाम और प्रबंधन
– कौशल आधारित प्रशिक्षण और वन्यजीव पेशेवरों का निरंतर क्षमता निर्माण
– कमांड कंट्रोल डेटा एवं सूचना प्रबंधन (एनालिटिक्स)
– वन्यजीव स्वास्थ्य नीति को आकार देना

इस के अलावा कार्यशाला ने पशुधन रोग निगरानी प्रणाली का एक सिंहावलोकन भी प्रदान किया, जिससे क्षेत्रों के बीच मजबूत सहयोग और सूचना के आदान-प्रदान का मार्ग प्रशस्त हुआ.

किसानों के काम की ‘पीएम कुसुम योजना’

प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम) के तहत कृषि क्षेत्र का डीजल की खपत को कम करने, किसानों को जल एवं ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करने, किसानों की आय बढ़ाने और पर्यावरण प्रदूषण पर रोक लगाना शामिल है. इस योजना के 3 घटक हैं, जिन में 34,422 करोड़ रुपए की कुल केंद्रीय वित्तीय सहायता के साथ 31 मार्च, 2026 तक 34.8 गीगावाट की सौर ऊर्जा क्षमता वृद्धि प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित है.

इस योजना की मुख्य विशेषताएं:

‘पीएम कुसुम योजना’ मांग पर आधारित है और योजना के लिए जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, कार्यान्वयन के लिए देश के सभी किसानों के लिए खुली हुई है. इस के तहत किसानों की बंजर, परती, चारागाह, दलदली व कृषि योग्य भूमि पर 10,000 मेगावाट के विकेंद्रीकृत ग्रांउड व स्टिल्ट माउंटेड सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना करने का प्रावधान किया गया है. ऐसे संयंत्र व्यक्तिगत किसान, सौर ऊर्जा डेवलपर, सहकारी समितियों, पंचायतों और किसान उत्पादक संगठनों द्वारा स्थापित किए जा सकते हैं.

इस के अलावा औफ ग्रिड क्षेत्रों में 14 लाख स्वचालित सौर पंपों की स्थापना भी की जा रही है, जिस के तहत व्यक्तिगत पंप सौरकरण और फीडर स्तर सौरकरण के माध्यम से 35 लाख ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों का सौरकरण किया जाएगा. वहीं इस योजना के तहत लाभार्थी व्यक्तिगत किसान, जल उपयोगकर्ता संघ, प्राथमिक कृषि ऋण समितियां और समुदाय, क्लस्टर आधारित सिंचाई प्रणाली शामिल हो सकते हैं.

इस योजना के अंतर्गत सौर व अन्य नवीकरणीय ऊर्जा खरीदने के लिए डिस्कौम को खरीद आधारित प्रोत्साहन (पीबीआई) 40 पैसे प्रति किलोवाट या 6.60 लाख प्रति मेगावाट प्रति वर्ष, जो भी कम हो, विद्युत वितरण कंपनियों को संयंत्र की वाणिज्यिक परिचालन तिथि से 5 सालों के लिए पीबीआई दिया जाता है. इसलिए डिस्कौम को देय कुल पीबीआई 33 लाख रुपए प्रति मेगावाट है.

व्यक्तिगत पंप सौरकरण

नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा जारी बेंचमार्क लागत का 30 फीसदी सीएफए या निविदा में खोजी गई प्रणालियों की कीमतें, जो भी कम हो, का प्रदान की जाती है. हालांकि, सिक्किम, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, लक्षद्वीप, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह सहित पूर्वोत्तर राज्यों में एमएनआरई द्वारा जारी की गई बेंचमार्क लागत का 50 फीसदी सीएफए अथवा निविदा में खोजी गई प्रणालियों के मूल्य, जो भी कम हो, प्रदान किए जाते हैं.

इस के अलावा संबंधित राज्य व केंद्र शासित प्रदेश को कम से कम 30 फीसदी वित्तीय सहायता प्रदान करनी होगी. शेष लागत का योगदान लाभार्थी द्वारा किया जाएगा. पीएम कुसुम योजना के राज्य की 30 फीसदी हिस्सेदारी के बिना भी लागू किया जा सकता है. केंद्रीय वित्तीय सहायता 30 फीसदी बनी रहेगी और शेष 70 फीसदी किसानों द्वारा वहन किया जाएगा.

कृषि फीडर सौरकरण के लिए 1.05 करोड़ रुपए प्रति मेगावाट का सीएफए प्रदान किया जाता है. प्रतिभागी राज्य व केंद्र शासित प्रदेश से वित्तीय सहायता की कोई अनिवार्य आवश्यकता नहीं है. फीडर सौरकरण को कैपेक्स या रेस्को मोड में लागू किया जा सकता है.

पीएम कुसुम योजना के अंतर्गत राज्यवार लक्ष्य या निधि आवंटन नहीं किया जाता है, क्योंकि यह एक मांग आधारित योजना है. इस के अतिरिक्त कतिपय लक्ष्यों की प्राप्ति करने पर राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को निधियां जारी की जाती हैं. राजस्थान से प्राप्त मांग और पीएम कुसुम योजना के अंतर्गत हुई प्रगति के आधार पर आज की तारीख में, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने राजस्थान की राज्य कार्यान्वयन एजेंसियों को 534.55 करोड़ रुपए जारी किए हैं

राज्य व केंद्र शासित प्रदेशवार आवंटित सौर पंप और अब तक प्राप्त प्रतिष्ठापन निम्नलिखित हैं:

पीएम कुसुम के अंतर्गत प्रगति (30 नवंबर, 2023 तक)

पीएम कुसुम योजना को 31 मार्च, 2026 तक बढ़ा दिया गया है. उत्तरपूर्वी राज्यों, पहाड़ी राज्यों व संघ राज्य क्षेत्रों और द्वीप संघ राज्य क्षेत्रों में व्यक्तिगत किसान और सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में उच्च जल स्तर वाले क्षेत्रों में क्लस्टर व सामुदायिक सिंचाई परियोजनाओं में प्रत्येक किसान के लिए केंद्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) 15 एचपी (7.5 एचपी से बढ़ा कर) तक की पंप क्षमता के साथ उपलब्ध है.

किसानों को कम लागत पर वित्तपोषण उपलब्ध कराने के लिए बैंकों या वित्तीय संस्थानों के साथ बैठकों का आयोजन. स्वचालित सौर पंपों की खरीद के लिए राज्य स्तरीय निविदा की अनुमति प्रदान की जा रही है.

इस के कार्यान्वयन के लिए समय सीमा प्रारंभिक मंजूरी के दिन से 24 महीने तक बढ़ाई गई है और फीडर स्तर पर सौरकरण के अंतर्गत निष्पादन बैंक गारंटी की आवश्यकता में छूट प्रदान की गई.

योजना के अंतर्गत लाभ प्रदान करने में तेजी लाने के लिए इंस्टालर आधार को बढ़ाने के लिए निविदा शर्तों में संशोधन किया गया है. किसानों को सब्सिडी वाला ऋण प्रदान करने के लिए कृषि अवसंरचना निधि (एआईएफ) के अंतर्गत शामिल योजना के अंतर्गत पंपों का सौरकरण किया जा रहा है.

यह योजना भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (पीएसएल) दिशानिर्देशों के अंतर्गत शामिल की गई, जिस से वित्त प्राप्त करने में आसानी हो सके. प्रतिष्ठापनों की गुणवत्ता को बढ़ावा देने के लिए सौर पंपों की विशिष्टताओं और परीक्षण प्रक्रिया को समयसमय पर संशोधित किया जाता है. इस योजना की निगरानी करने के लिए केंद्र और राज्य स्तरों पर वैब पोर्टल विकसित किए गए हैं. साथ ही, सीपीएसयू सहित प्रचार और जागरूकता को भी बढ़ाया जा रहा है. योजना के बारे में जानकारी प्राप्त करना सुविधाजनक बनाने के लिए टोल फ्री नंबर प्रदान किया गया है.

इस योजना के अंतर्गत स्वीकृत परियोजनाओं को प्रगति और प्राप्त लक्ष्यों के आधार पर विस्तार दिया गया है.