कृषि अनुसंधानों का लाभ छोटेमझोले किसानों तक पहुंचे – अर्जुन मुंडा

नई दिल्ली: 17 जनवरी 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीएआर के राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर की विभिन्न सुविधाओं और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के कृषि प्रक्षेत्र का अवलोकन किया.

इस दौरान मंत्री अर्जुन मुंडा ने कृषि एवं बागबानी की आधुनिक पद्धतियों की बारीकी से जानकारी लेते हुए अधिकारियों से कहा कि यहां हो रहे अनुसंधान के कामों का लाभ देश के छोटे व मझोले किसानों तक पहुंचना सुनिश्चित किया जाना चाहिए, ताकि इन के माध्यम से वे लाभान्वित हो कर आमदनी बढ़ा सकें एवं उन का जीवनस्तर ऊंचा उठ सके.

केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा के पूसा पहुंचने पर आईसीएआर के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक सहित अन्य अधिकारियों एवं वैज्ञानिकों ने अगुआई की. सब से पहले मंत्री अर्जुन मुंडा ने राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर की विभिन्न सुविधाओं जैसे कि औडिटोरियम, प्रदर्शनी हाल और विभिन्न सभा कक्षों का दौरा किया और उन के उपयोग के बारे में जानकारी ली.

मंत्री अर्जुन मुंडा ने राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर स्थित अंतर्राष्ट्रीय गेस्टहाउस का दौरा किया. इस के बाद उन्होंने पूसा के वृहद कृषि प्रक्षेत्र के विभिन्न प्रभागों का भी दौरा किया. उन्होंने संरक्षित कृषि प्रौद्योगिकी केंद्र का निरीक्षण किया, जिस की स्थापना प्रदर्शन फार्म के रूप में वर्ष 1998-99 में की गई थी.

इसे बाद में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग केंद्र (माशव) और सिनाडको के माध्यम से कृषि अनुसंधान व शिक्षा विभाग (डेयर) और आईसीएआर एवं इजराइल सरकार द्वारा संयुक्त रूप से इंडोइजराइल परियोजना का रूप दिया गया. इस परियोजना का उद्देश्य उन्नत गुणवत्ता व उत्पादकता के लिए बागबानी फसलों की परिनगरीय खेती की सघन व व्यावसायिक उन्मुख प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करना था. इजराइल सरकार के साथ सहयोग अवधि पूरी होने पर इस सुविधा को संरक्षित कृषि प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप स्थापित किया गया.

Arjun Mundaउन्होंने यहां सब्जियों और पुष्पीय फसलों के लिए जलवायु नियंत्रित व प्राकृतिक हवादार ग्रीनहाउस, नैटहाउस, नर्सरी सुविधाओं, खुले खेत, ड्रिप सिंचाई प्रणाली और ड्रोन द्वारा छिड़काव आदि गतिविधियों का अवलोकन किया.

केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने पूसा संस्थान में स्थापित समन्वित कृषि प्रणाली की एक एवं ढाई एकड़ की 2 यूनिट का भी अवलोकन किया, जहां पर मशरूम, संरक्षित खेती, मुरगीपालन एवं बतखपालन आदि के साथ ही बागबानी एवं फसलों के उत्पादन की जानकारी भी ली, जिन के द्वारा किस तरह से छोटे किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सकती है, इस विषय पर मार्गदर्शन दिया.

उन्होंने सरसों व सब्जी अनुसंधान कार्यक्रम को भी देखा और विभिन्न उन्नत किस्मों के बारे में वैज्ञानिकों से जानकारी ली, वहीं तिलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर भी चर्चा की. साथ ही, जलवायु परिवर्तन के, भविष्य में भारतीय कृषि पर पड़ने वाले प्रभावों एवं उन से किस तरह से फसलों को बचाया जाए, इस संबंध में भी मंत्री अर्जुन मुंडा ने वैज्ञानिकों से चर्चा करते हुए इस दिशा में पूसा परिसर में किए जा रहे प्रयासों की सराहना की. वहीं इस योजना का लाभ देश में छोटेमझोले किसानों तक भी पहुंचे.

पीएम कुसुम योजना के तहत मिलेगा सोलर पंप

बस्ती: प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम कुसुम) योजना वित्तीय साल 2023-24 से 2024-25 तक प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम कुसुम) के अंतर्गत अनुदान पर सोलर पंप पाने के लिए 17 जनवरी, 2024 से विभागीय वैबसाइट https://pm kusum.upagriculture.com पर लक्ष्य पूरा होने तक औनलाइन बुकिंग की जाएगी.

बस्ती जिले के लिए सोलर पंप लगाने के लिए कुल 393 आवेदन प्राप्त हुए हैं. इस के तहत राज्यांश और केंद्रांश के रूप में सोलर पंप किसान अंश के रूप में 1800 वाट 2 एचपी डीसी सरफेस पंप पर कुल लागत 1,71,716 रुपए के सापेक्ष 63,686 रुपए का भुगतान करना होगा, जबकि एसी सरफेस पंप लागत 1,71,716 रुपए के सापेक्ष महज 63,686 रुपए देना होगा.

इसी तरह डीसी सबमर्सिबल पंप के लिए कुल लागत 1,74,541 रुपए के सापेक्ष 64,816 रुपए किसान को भुगतान करना होगा, वहीं एसी सबमर्सिबल पंप के लिए कुल लागत 1,74,073 रुपए के सापेक्ष महज 64,629 रुपए किसान को देना होगा.

जो किसान 3,000 वाट 3 एचपी डीसी सबमर्सिबल पंप लगाना चाहते हैं, उन्हें कुल मूल्य 2,32,721 रुपए के सापेक्ष किसान को 88,088 रुपए का भुगतान करना होगा. इसी तरह एसी सबमर्सिबल पंप के कुल लागत 2,30,445 रुपए के सापेक्ष किसान को 87176 रुपए देना होगा. इस के अलावा 4800 वाट 5 एचपी एसी सबमर्सिबल पंप के कुल लागत 2,27,498 रुपए में से किसान को अंश के रूप में 1,25,999 रुपए का भुगतान करना होगा.

जो किसान 6750 वाट 7.5 एचपी एसी सबमर्सिबल पंप लगाना चाहते हैं, उन्हें कुल लागत का 2,44,094 रुपए के सापेक्ष किसान अंश के रूप में 1,72,638 रुपए देना होगा. इसी तरह 9000 वाट 10 एचपी एसी सबमर्सिबल पंप के कुल मूल्य 5,57,620 रुपए के सापेक्ष किसान को अंश के रूप में 2,86,164 रुपए का भुगतान करना होगा.

उपनिदेशक, कृषि, अशोक कुमार गौतम ने बताया कि जो किसान इस योजना का लाभ लेना चाहते हैं, उन्हें कृषि विभाग की विभागीय वैबसाइट https://agriculture.up.gov.in पर रजिस्टर होना अनिवार्य है.

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि किसानों की बुकिंग जिले के लक्ष्य की सीमा से 110 फीसदी तक ‘पहले आओ पहले पाओ’ के आधार पर किया जाएगा. किसानों को औनलाइन बुकिंग के साथ 5,000 रुपए टोकन मनी के रूप में औनलाइन जमा करना होगा.

जो किसान अनुदान पर सोलर पंप लेना चाहते हैं, वह औनलाइन बुकिंग के लिए विभागीय वैबसाइट https://agriculture.up.gov.in पर बुकिंग करें. लिंक पर क्लिक कर औनलाइन बुकिंग कर सकते हैं.
उपनिदेशक कृषि, अशोक कुमार ने बताया कि औनलाइन टोकन कन्फर्म करने के बाद किसान को चालान के माध्यम से अथवा औनलाइन किसान अंश की धनराशि एक सप्ताह के भीतर किसी भी भारतीय बैंक की शाखा में जमा करनी होगी, अन्यथा किसान का चयन स्वतः निरस्त हो जाएगा.

उन्होंने यह भी जानकारी दी कि इस से सिंचाई के लिए बिना बिजली वाले इलाकों में प्रयोग किए जा रहे डीजल पंप अथवा दूसरे सिंचाई के साधनों को सोलर पंप में बदला जा सकेगा. इस के अलावा उन किसानों, जिन के ट्यूबवैल पर सोलर पंप लगाए जाएंगे, उन लाभार्थियों के ट्यूबवैल पूर्व से लगे बिजली के कनैक्शन काट दिए जाएंगे और जिन किसानों के ट्यूबवैल पर सोलर पंप की सुविधा दी जाएगी, ऐसे लाभार्थियों को भविष्य में भी उस बोरिंग पर बिजली का कनैक्शन नहीं दिया जाएगा.

उन्होंने बताया कि 2 एचपी के लिए 4 इंच, 3 एवं 5 एचपी के लिए 6 इंच और 7.5 एवं 10 एचपी के लिए 8 इंच की बोरिंग होना अनिवार्य है. किसान को बोरिंग खुद ही करानी होगी. सत्यापन के समय उपयुक्त बोरिंग न पाए जाने पर टोकन मनी की धनराशि के लिए 2 एचपी सरफेस, 50 फुट तक की गहराई के लिए 2 एचपी सबमर्सिबल, 150 फुट तक की गहराई के लिए 3 एचपी सबमर्सिबल, 200 फुट तक की गहराई के लिए 5 एचपी सबमर्सिबल, 300 फुट की गहराई के लिए 7.5 एचपी और 10 एचपी सबमर्सिबल के सोलर पंप उपयुक्त होंगे

किसानों व पशुपालकों के लिए नई योजनाएं

चंडीगढ़: हरियाणा के कृषि एवं पशुपालन मंत्री जेपी दलाल ने कहा कि प्रदेश में किसानों व पशुपालकों की आय बढ़ाने व उन की जिंदगी में खुशहाली लाने के लिए नईनई योजनाएं लागू की जा रही हैं. किसानों व पशुपालकों को इन योजनाओं का लाभ उठाना चाहिए. साथ ही, उन्होंने किसानों से इफको द्वारा तैयार नैनो यूरिया व डीएपी का ड्रोन के माध्यम से प्रयोग करने व जहर मुक्त खेती करने का आह्वान किया.

उन्होंने आगे कहा कि ड्रोन से छिड़काव के लिए किसान को महज सौ रुपए प्रति एकड़ देना होगा, बाकी का खर्चा सरकार उठाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि गौवंश की रक्षा को ले कर प्रदेश सरकार प्रतिबद्ध है,

इसी के चलते गौ सेवा आयोग का बजट 40 करोड़ रुपए से बढ़ा कर 400 करोड़ रुपए किया गया है.

कृषि एवं पशुपालन जेपी दलाल भिवानी के गांव मिताथल, तिगड़ाना, बिधवान और सोहासंड़ा गौशालाओं में आयोजित कार्यक्रमों को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे. गांव तिगड़ाना व सोहासंड़ा गौशाला में उन्होंने 11 लाख रुपए और मिताथल गौशाला में एक ट्रैक्टर देने की घोषणा की.

कृषि मंत्री जेपी दलाल ने गांव बिधवान गौशाला में 11 लाख रुपए और एक पानी का टैंकर देने की घोषणा की और कहा कि सरकार का हर संभव प्रयास है कि किसान और पशुपालकों की जिंदगी खुशहाल हो और उन के परिवार में समृद्धि आए. इस के लिए सरकार द्वारा पशुपालन, बागबानी और मछलीपालन में सब्सिडी पर आधारित अनेक योजनाएं हैं, जिन का किसानों व पशुपालकों को फायदा उठाना चाहिए.

पशुपालन मंत्री जेपी दलाल ने कहा कि जल्दी ही पशुओं के लिए भी एंबुलैंस सेवा शुरू होगी. इस के लिए सरकार ने 70 गाड़ियों की खरीद कर ली है और 130 की जल्दी ही खरीद की जाएगी. यह सेवा शुरू होने के बाद पशुओं के जख्मी होने या अत्यधिक बीमार होने की स्थिति में महज एक फोन से पशु चिकित्सक मौके पर जा कर बीमार या जख्मी पशु का उपचार करेंगे.

कृषि मंत्री जेपी दलाल ने अपने संबोधन में कहा कि भारत निरंतर तरक्की पर है. भारत ने अपनी खोई साख व प्रतिष्ठा को फिर से हासिल किया है. आज हम आत्मनिर्भर बन रहे हैं.

नवाचारी किसानों के लिए आवेदन आमंत्रित

नई दिल्ली: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली किसानों के नवाचारों को महत्व देता है और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए हर साल पूसा कृषि विज्ञान मेले में तकरीबन 25-30 उन्नतशील किसानों को उन के नवाचार सृजन और प्रसार में उत्कृष्ट योगदान के लिए भाकृअनुसं-नवोन्मेषी किसान और भाकृअनुसं-अध्येता किसान पुरस्कारों से सम्मानित करता है.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने साल 2024 के भाकृअनुसं-नवोन्मेषी किसान और भाकृअनुसं-अध्येता किसान पुरस्कारों के लिए योग्य नवोन्मेषी किसानों से आवेदन आमंत्रित किया है, जिन्हें फरवरी, 2024 के अंतिम सप्ताह के दौरान आयोजित होने वाले पूसा कृषि विज्ञान मेले में प्रदान किया जाएगा.

ऐसे करें आवेदन

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने अपनी औफिसियल वैबसाइट पर पुरस्कारों के लिए विस्तृत रूप से दिशानिर्देश जारी करते हुए हिंदी और अंगरेजी में आवेदन फार्म वैबसाइट पर अपलोड किया है. यहां से कोई भी किसान आवेदनपत्र के प्रारूप को पूरी तरह भर कर संबंधित साक्ष्यों और दस्तावेजों के साथ पासपोर्ट साइज फोटो संलग्न कर सक्षम अधिकारियों द्वारा अनुशंसित आवेदनपत्र 7 फरवरी, 2024 तक डा. रबींद्र नाथ पड़ारिया, संयुक्त निदेशक (प्रसार), भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली-110012 ईमेल: jd_extn@iari.res.in पर दे सकते हैं या कार्यालय के फोन नंबर 011-25842387 पर जानकारी ले सकते हैं.

इन निर्देशों को ध्यान में रख कर करें आवेदन:

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने आवेदनपत्र भेजने के लिए जो गाइडलाइन जारी की है, उस के अनुसार वे किसान, जिन्हें पहले भाकृअनुसं-नवोन्मेषी किसान पुरस्कार मिल चुका है, उन्हें इस पुरस्कार के लिए दोबारा नहीं चुना जाएगा. लेकिन वे किसान भाकृअनुसं-अध्येता किसान पुरस्कार के लिए आवेदन कर सकते हैं. ऐसे किसानों के लिए आवेदन के लिए इस में कम से कम 1 साल का अंतराल अवश्य होना चाहिए.

अगर कोई किसान दोनों पुरस्कारों के लिए आवेदन करना चाहता है, उसे दोनों पुरस्कारों के लिए अलगअलग उपयुक्त आवेदन भर कर भेजना होगा. जिन किसानों का चयन पुरस्कार के लिए किया जाएगा, उन्हें पुरस्कार वितरण समारोह में भाग लेने के लिए सूचना यथासमय दी जाएगी.

जो किसान भाकृअनुसं-नवोन्मेषी किसान या भाकृअनुसं-अध्येता किसान पुरस्कार के लिए कर रहे हैं, उन्हें पूरी तरह से भरे हुए आवेदनपत्र सक्षम अनुशंसा प्राधिकारी द्वारा अग्रेषित और अनुशंसित कराना होगा. ऐसा न होने पर आवेदनपत्र निरस्त माना जाएगा.

किसान अपना आवेदन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों के निदेशक, राज्य कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति या निदेशक प्रसार, निदेशक, अटारी, भाकृअनुप, राज्य सरकार के कृषि, बागबानी, पशुपालन, मात्स्यिकी, रेशम विभागों के निदेशक या अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केंद्र से अग्रेषित और अनुशंसित करा कर ही भेजें.

उपरोक्त प्राधिकारी अपने कार्यक्षेत्र से योग्य किसानों के लिए प्रपत्र के अनुसार भरा हुआ, साक्ष्यांकित दस्तावेजों सहित नामांकन (ईमेल अथवा हार्ड कौपी) भेज सकते हैं.

ईमेल से भेजी जाने वाली स्थिति में मूल हस्ताक्षरित दस्तावेजों की स्कैन कौपी साथ में संलग्न करें.

कड़ाके की ठंड में फसल में कीट व बीमारियां

बस्ती: कड़ाके के ठंड में मौसम परिवर्तन हो रहा है, ऐसी स्थिति में फसलों में कीट व बीमारियों के प्रकोप की संभावना बढ़ गई है. इस समय किसान अपने फसल की नियमित निगरानी करते रहें. उक्त जानकारी उपकृषि निदेशक (कृषि रक्षा) ने दी. उन्होंने बताया कि राई, सरसों में माहू कीट का प्रकोप अगर माली नुकसान स्तर (05 फीसदी प्रभावी पौधे) से अधिक हो, तो अजादिरैक्टिन 0.15 फीसदी ईसी की मात्रा 2.5 लिटर या डाईमेथोएट 30 फीसदी ईसी 01 लिटर अथवा औक्सीडिमेटान मिथाइल ओडिमेटान 25 फीसदी ईसी की मात्रा 01 लिटर को प्रति हेक्टेयर की दर से 500 से 600 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

उन्होंने आगे बताया कि आलू की फसल में अगेती, पछेती झुलसा, सरसों में आल्टरनेरिया झुलसा, मटर में पाउड्री मिल्ड्यू आदि फफूंदीजनित रोगों के नियंत्रण के लिए ट्राईकोडर्मा हारजेनियम 2 फीसदी डब्ल्यूपी 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 400 से 500 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें अथवा कौपर औक्सीक्लोराइड 50 फीसदी डब्ल्यूपी 3 किलोग्राम या मैंकोजेब 75 फीसदी डब्ल्यूपी 2 किलोग्राम या जिनेब 75 फीसदी डब्ल्यूपी 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

उन्होंने यह भी जानकारी दी कि किसान फसल की सुरक्षा के लिए औनलाइन व्यवस्था सहभागी फसल निगरानी एवं निदान प्रणाली (पीसीएसआरएस) के तहत मोबाइल नंबर 9452247111 व 9452257111 पर व्हाट्सएप अथवा संदेश के माध्यम से अपनी समस्या भेज कर तत्काल समाधान प्राप्त कर सकते हैं.

बच्चों ने बनाए मिलेट्स के पकवान

बस्ती: मिलेट्स रेसिपी प्रतियोगिता एवं जागरूकता कार्यक्रम का उद्घाटन जिलाधिकारी अंद्रा वामसी ने अटल बिहारी बाजपेयी प्रेक्षागृह में किया. इस दौरान श्रीअन्न के महत्व के बारे में एलईडी के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उद्बोधन को दिखाया गया. इस अवसर पर उत्तर प्रदेश मिलेट्स पुनरुद्धार योजना के तहत जिला स्तरीय मिलेट्स रेसिपी एवं उपभोक्ता जागरूकता कार्यक्रम किया गया.

इस मौके पर परिसर में मोटे अनाज से बने हुए व्यंजनों का स्टाल भी लगाया गया. इस कार्यक्रम में जिलाधिकारी अंद्रा वामसी द्वारा स्वयंसहायता समूह की महिलाओं, स्कूली छात्रछात्राओं, एफपीओ और मोटे अनाज से बने व्यंजनों में प्रतिभाग करने वाले लोगों को स्मृतिचिन्ह, प्रशस्तिपत्र व अंग वस्त्र दे कर सम्मानित किया गया.

Milletsजिलाधिकारी अंद्रा वामसी ने कहा कि मोटे अनाज से बने उत्पाद को खाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और कई बीमारियों से भी बचाव होता है. किसान मोटे अनाज की खेती करें, इस से उन की आय में इजाफा होगा और लोगों को पौष्टिक आहार भी मिलेगा.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि मोटे अनाज खाने से शरीर स्वस्थ होता है. किसानों को काकून, मडुआ, कोदो जैसे अनाजों का उत्पादन करना चाहिए. आज कल हाईब्रिड बीज से उपज तो अच्छी हो जाती है, लेकिन शरीर के लिए जरूरी पौष्टिक आहार उन में नही मिल पाता. इस अवसर पर श्रीअन्न व मोटे अनाज के बारे में लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुति भी दी गई.

कार्यक्रम का संचालन कृषि अधिकारी डा. राजमंगल चैधरी ने किया. कार्यक्रम में सांसद प्रतिनिधि जगदीश शुक्ला, विधायक प्रतिनिधि हर्रैया सरोज कुमार मिश्र, मुख्य विकास अधिकारी जयदेव सीएस, संयुक्त निदेशक, कृषि, उपनिदेशक, कृषि, अशोक कुमार गौतम उपस्थित रहे.

फसलों को पाले से बचाना जरूरी

इनसानों के साथसाथ पशुपक्षी तो पाले से बचने के उपाय कर लेते हैं, लेकिन फसलों को बचाने के लिए किसानों को सावधानी बरतनी होगी. पाले से टमाटर, मिर्च, बैंगन आदि सब्जियों, पपीता एवं केले के पौधों एवं मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ आदि में 50 फीसदी से ज्यादा का नुकसान हो सकता है. अरहर में 70 फीसदी, गन्ने में 50 फीसदी, गेहूं व जौ में 10 से 20 फीसदी तक नुकसान हो सकता है.
पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां एवं फूल झुलसे हुए दिखाई देते  हैं. यहां तक कि अधपके फल सिकुड़ जाते हैं, उन में झुर्रियां पड़ जाती हैं एवं कई फल गिर जाते हैं. फलियों एवं बालियों में दाने नहीं बनते हैं एवं बन रहे दाने सिकुड़ जाते हैं.

रबी फसलों में फूल आने एवं बालियां, फलियां आने व बनते समय पाला पड़ने की सर्वाधिक संभावनाएं रहती हैं. इसलिए ऐसे समय में किसानों को चैकस रह कर फसलों की पाले से सुरक्षा के उपाय अपनाने चाहिए. जब तापमान 0 डिगरी सैल्सियस से नीचे गिर जाता है और हवा रुक जाती है, तो रात को पाला पड़ने की संभावना रहती है.

वैसे तो आमतौर पर पाले का अनुमान दिन के बाद के वातावरण से लगाया जा सकता है. सर्दी के दिनों में जिस दिन दोपहर से पहले ठंडी हवा चलती रहे एवं हवा का तापमान जमाव बिंदु से नीचे गिर जाए. दोपहर के बाद अचानक हवा चलना बंद हो जाए और आसमान साफ रहे या उस दिन आधी रात के बाद से ही हवा रुक जाए, तो पाला पड़ने की संभावना अधिक रहती है. रात को विशेषकर तीसरे एवं चैथे पहर में पाला पड़ने की संभावनाएं अधिक रहती हैं.

आमतौर पर तापमान चाहे कितना ही नीचे चला जाए, अगर शीत लहर हवा के रूप में चलती रहे तो नुकसान नहीं होता है, परंतु यदि इसी बीच हवा चलना रुक जाए और आसमान साफ हो तो पाला पड़ता है, जो फसलों के लिए नुकसानदायक है.

जिस रात पाला पड़ने की संभावना हो, उस रात 12 बजे से 2 बजे के आसपास खेत की उत्तरपश्चिम दिशा से आने वाली ठंडी हवा की दिशा में खेतों के किनारे पर बोई हुई फसल के आसपास, मेंड़ों पर रात में कूड़ाकचरा या घासफूस जला कर धुआं करना चाहिए, ताकि खेत में धुआं हो जाए एवं वातावरण में गरमी आ जाए. सुविधा के लिए मेंड़ पर 10 से 20 फुट के अंतराल पर कूड़ेकरकट के ढेर लगा कर धुआं करें.  इस विधि से 4 डिगरी सैल्सियस तापमान आसानी से बढ़ाया जा सकता है.

पौधशाला के पौधों एवं छोटे पौधे वाले उद्यानों, नकदी सब्जी वाली फसलों को टाट, पौलीथिन अथवा भूसे से ढक देना चाहिए. वायुरोधी टाटियां, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानी उत्तरपश्चिम की तरफ टाटियां  बांध कर क्यारियों को किनारों पर लगाएं और दिन में पुनः हटाएं.

पाला पड़ने की संभावना हो तब खेत में सिंचाई करनी चाहिए. नमी वाली जमीन में काफी देर तक गरमी रहती है और भूमि का तापमान कम नहीं होता है. दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिए खेत की उत्तरीपश्चिमी मेंड़ों पर और बीचबीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल एवं अरंडी आदि लगा दिए जाएं, तो पाले और ठंडी हवा के झोंकों से फसल का बचाव हो सकता है.
मौसम के बारे में अधिक जानकारी के लिए डीडी किसान पर मौसम समाचार साढे़ 7 बजे सुबह ए्वं शाम को सुनें. आकाशवाणी समाचार भी 7 बज कर 20 मिनट पर सुबह और शाम को सुनें, वहीं आप अपने मोबाइल फोन पर भी मौसम एप डाउनलोड कर के जानकारी ले सकते हैं.

– प्रो. रवि प्रकाश मौर्य, सेवानिवृत्त वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, निदेशक, प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी, भाटपार रानी देवरिया.

बागबानी क्षेत्र में काफी संभावनाएं

बेंगलुरू/नई दिल्ली : 7 जनवरी, 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने बेंगलुरू में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान (आईआईएचआर) का दौरा किया और यहां के किसानों, विद्यार्थियों व वैज्ञानिकों के साथ संवाद किया. उन्होंने किसान सुविधा काउंटर का शुभारंभ किया. इस अवसर पर एमओयू भी किए गए.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने इस बात पर प्रसन्नता जताई कि आईआईएचआर 54 बागबानी फसलों पर काम कर रहा है और उत्तरपूर्वी राज्यों सहित देशभर के किसानों के लाभ के लिए उष्णकटिबंधीय फलों, सब्जियों व फूलों की फसलों सहित बागबानी फसलों की 300 से अधिक किस्में विकसित की गई हैं और संस्थान ने आदिवासी बहुल क्षेत्रों में भी अच्छा काम किया है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि कृषि अर्थव्यवस्था में बागबानी का योगदान 33 फीसदी है, जिसे और आगे बढ़ाया जा सकता है, जिस की काफी संभावनाएं हैं.

उन्होंने आगे कहा कि हम न केवल घरेलू बाजार में, बल्कि दुनिया के बाजारों में और बेहतर ढंग से अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं. बागबानी क्षेत्र देश के आर्थिक विकास का महत्वपूर्ण घटक माना जा रहा है. यह क्षेत्र नए तरीके से अपनी आय बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है. भारत में बागबानी उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2022-23 में 350 मिलियन टन हो गया है.

Farming Newsउन्होंने बागबानी उत्पादों के भंडारण, फूड प्रोसैसिंग, विपणन के महत्व को समझाया व किसानों को सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप उत्पादन का लक्ष्य रखने का अनुरोध किया, ताकि उन के उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा कर सकें.

कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने कृषि वैज्ञानिकों को अधिक से अधिक किसानों को अपनी प्रयोगशालाओं में लाने और नवीनतम अनुसंधान तकनीकों को उन के साथ साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया. इस से किसानों को उत्पादकता, पैदावार व आय को टिकाऊ तरीके से बढ़ाने में मदद मिलेगी.

उन्होंने कहा कि दलहन उत्पादन बढ़ाने के प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर हाल ही में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने पोर्टल का शुभारंभ किया है, जिस से किसान बहुत लाभान्वित होंगे. इसी तरह से विभिन्न क्षेत्रों में तेजी से काम करने व प्रौद्योगिकी के समर्थन की आवश्यकता है. सभी खाद्यान्न में हमारी आत्मनिर्भरता होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि झारखंड से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रारंभ किए गए प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महाभियान के माध्यम से आदिवासी समुदाय को मौलिक सुविधाएं उपलब्ध कराते हुए उन्हें सुविधाएं प्रदान करने का काम किया जा रहा है.

शुरुआत में आईआईएचआर के निदेशक प्रो. संजय कुमार सिंह ने केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा व अन्य अतिथियों का स्वागत किया और संस्थान की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला.

कृषि इकाइयों का निरीक्षण

संत कबीर नगर : कृषि विज्ञान केंद्र, संत कबीर नगर पर डा. यूएस गौतम, उपमहानिदेशक, कृषि प्रसार, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के द्वारा निरीक्षण किया गया.

उपमहानिदेशक डा. यूएस गौतम द्वारा केंद्र पर चल रहे विभिन्न इकाई का निरीक्षण किया जैसे बकरीपालन इकाई, मधुमक्खीपालन इकाई, अजोला इकाई, वर्मी कंपोस्ट इकाई, मशरूम उत्पादन, नाडेप और प्राकृतिक खेती के साथ ही केंद्र पर लग रहे वेजिटेबल हाईटैक नर्सरी का भी अवलोकन किया. उस के बाद केंद्र के परिसर में आम के पौध का वृक्षारोपण किया व प्रगतिशील किसान सुरेंद्र पाठक से ड्रैगन फ्रूट, स्ट्राबेरी, लीची, पशुपालन और सब्जी के उत्पादन की जानकारी ली.

प्रगतिशील किसान अनुराग राय और राज नारायण राय से शिमला मिर्च, भरवां मिर्च, सरसों के तेल की ब्रांडिंग और मार्केट मूल्य के मिलने की जानकारी और खेती करने की तकनीक के कुछ वीडियो और चैनल बना कर यूट्यूब पर अपलोड करने की सलाह दी. साथ ही, महिला किसान सुमन और कौशिल्ल्या देवी से खेती से संबंधित जानकारी ली.

साथ ही, केंद्र से सुदारीकरण के लिए बजट देने का आश्वासन दिया.

अंत में उपमहानिदेशक डा. यूएस गौतम ने केंद्र द्वारा किए जा रहे कामों की सराहना की एवं प्रसन्नता व्यक्ति की.

मौके पर मौजूद कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा. अरविंद कुमार सिंह ने उन का स्वागत किया. वैज्ञानिक डा. संदीप सिंह कश्यप, डा. आरबी सिंह, डा. रत्नाकर पांडेय, डा. देवेश कुमार, डा. तरुण कुमार, प्रदीप नायक, राम कुमार, दीपक और अवधेश प्रताप सिंह, कंप्यूटर प्रोग्रामर शिवेश त्रिपाठी, केंद्र के फार्म मैनेजर डा. सतीश कुमार चक्रवर्ती और केंद्र के प्रगतिशील किसान सुरेंद्र पाठक, राज नारायण राय, अनुराग राय, सुमन चौहान आदि मौजूद थे.

गरमी में भिंडी की खेती ज्यादा लाभकारी

भिंडी के हरे, मुलायम फलों का प्रयोग सब्जी, सूप फ्राई और दूसरे रूप में किया जाता है. पौधे का तना व जड़, गुड़ एवं खांड़ बनाते समय रस को साफ करने में प्रयोग किया जाता है. भिंडी गर्मी और वर्षा दोनों मौसम में उगाई जाती है. इस के लिए पर्याप्त जीवांश एवं उचित जल निकास वाली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है.

खेत की तैयारी

3 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद प्रति कट्ठा एक हेक्टेयर का 80वां भाग) अर्थात 125 वर्गमीटर के हिसाब से बोआई के 15-20 दिन पहले खेत में मिला देना चाहिए. मिट्टी की जांच के उपरांत ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए.

अधिक उपज प्राप्त करने के लिए यूरिया 1.10 किलोग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 3.00 किलोग्राम और म्यूरेट औफ पोटाश 800 ग्राम मात्रा बोआई के पूर्व खेत में मिला देना चाहिए. आधाआधा किलोग्राम यूरिया 2 बार बोआई के 30-40 दिन के अंतराल पर सिंचाई के बाद देना लाभदायक है.

बोआई

जायद (ग्रीष्म/गरमी) में फरवरी से मार्च माह तक और खरीफ (बरसात) के लिए जून से 15 जुलाई माह तक बोआई की जाती है.

बोआई से पहले बीजों को पानी मे 12 घंटे भिगो कर बोना ज्यादा लाभप्रद है. गरमी में 250 ग्राम और वर्षा में 150 ग्राम बीज प्रति विश्वा/कट्ठा में जरूरत पड़ती है. समतल क्यारियों में गरमी में कतारों से कतारों की आपसी दूरी 30 सैंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 15-20 सैंटीमीटर और वर्षा में 45-50 सैंटीमीटर कतार से कतार और पौधे से पौधे की दूरी 30 सैंटीमीटर पर रखनी चाहिए. 2 सैंटीमीटर की गहराई पर बोआई करनी चाहिए.

खास किस्में

भिंडी की किस्मों में काशी सातधारी,काशी क्रांति, काशी विभूति, काशी प्रगति, अरका अनामिका , काशी लालिमा आदि प्रमुख हैं. सभी किस्में 40-45 दिन में फल देने लगती हैं.

सिंचाई

खरीफ की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन बारिश न होने पर जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. गरमी में सप्ताह में एक बार सिंचाई करने की जरूरत होती है. खेत में सदैव नमी रहना चाहिए. देर से सिंचाई करने पर फल जल्दी सख्त हो जाते हैं और पौधै व फल की बढ़वार कम होती है.

खरपतवार और कीट व बीमारी की रोकथाम

खरपतवार को नष्ट करने के लिए गुड़ाई करें. कीट व बीमारियों का भी ध्यान रखें. भिंडी में मुख्य रूप से बहुत छोटेछोटे महीन कीटों में से माहू, जैसिड, सफेद मक्खी एवं थ्रिप्स का प्रकोप होता है. इन सभी कीटों के प्रबंधन के लिए पीला स्टीकर का प्रयोग करें या 40 ग्राम नीम गिरी एवं 1 मिली इंडोट्रान (चिपकने वाला पदार्थ) प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. उन्नत तकनीक का खेती में समावेश करने पर प्रति कट्ठा (एक हेक्टेयर का 80वां भाग ) 120-150 किलोग्राम तक उपज प्राप्त कर सकते हैं.