दलहन आत्मनिर्भरता के लिए पोर्टल लौंच

नई दिल्ली: 4 जनवरी, 2024. केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने विज्ञान भवन, नई दिल्ली में एक समारोह में तूर के किसानों के पंजीकरण, खरीद, भुगतान के लिए ई-समृद्धि व एक अन्य पोर्टल लौंच किया. भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (नेफेड) और भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारिता संघ (एनसीसीएफ) द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के अवसर पर दलहन में आत्मनिर्भरता पर राष्ट्रीय संगोष्ठी भी आयोजित हुई.

यहां केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा, केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चैबे, सहकारिता राज्यमंत्री बीएल वर्मा विशेष अतिथि थे. इस कार्यक्रम में किसान एवं पैक्स, एफपीओ, सहकारी समितियों के प्रतिनिधि बड़ी संख्या में मौजूद थे.

मुख्य अतिथि केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा कि पोर्टल के जरीए ऐसी शुरुआत की है, जिस से नेफेड व एनसीसीएफ के माध्यम से किसानों को एडवांस में रजिस्ट्रेशन कर तूर दाल की बिक्री में सुविधा होगी, उन्हें एमएसपी या फिर इस से अधिक बाजार मूल्य का डीबीटी से भुगतान हो सकेगा. इस शुरुआत से आने वाले दिनों में किसानों की समृद्धि, दलहन उत्पादन में देश की आत्मनिर्भरता और पोषण अभियान को भी मजबूती मिलती दिखेगी. साथ ही, क्राप पैटर्न चेंजिंग के अभियान में गति आएगी और भूमि सुधार एवं जल संरक्षण के क्षेत्रों में भी बदलाव आएगा. आज की शुरुआत आने वाले दिनों में कृषि क्षेत्र में परिवर्तन लाने वाली है.

उन्होंने आगे कहा कि दलहन के क्षेत्र में देश आज आत्मनिर्भर नहीं है, लेकिन हम ने मूंग व चने में आत्मनिर्भरता प्राप्त की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दलहन उत्पादक किसानों पर बड़ी जिम्मेदारी डाली है कि वर्ष 2027 तक दलहन के क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर हो.

उन्होंने विश्वास जताया कि किसानों के सहयोग से दिसंबर, 2027 से पहले दलहन उत्पादन के क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर बन जाएगा और देश को एक किलोग्राम दाल भी आयात नहीं करनी पड़ेगी. दलहन में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सहकारिता मंत्रालय और कृषि मंत्रालय सहित अन्य पक्षों की कई बैठकें हुई हैं, जिन में लक्ष्य हासिल करने की राह में आने वाली बाधाओं पर चर्चा की गई है.

उन्होंने यह भी कहा कि कई बार दलहन उत्पादक किसानों को सटोरियों या किसी अन्य स्थिति के कारण उचित दाम नहीं मिलते थे, जिस से उन्हें बड़ा नुकसान होता था. इस वजह से वे किसान दलहन की खेती करना पसंद नहीं करते थे. हम ने तय कर लिया है कि जो किसान उत्पादन करने से पूर्व ही पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराएगा, उस की दलहन को एमएसपी पर खरीद लिया जाएगा. इस पोर्टल पर रजिस्टर करने के बाद किसानों के दोनों हाथों में लड्डू होंगे. फसल आने पर अगर दाम एमएसपी से ज्यादा होगा, तो उस की एवरेज निकाल कर भी किसान से ज्यादा मूल्य पर दलहन खरीदने का एक वैज्ञानिक फार्मूला बनाया गया है और इस से किसानों के साथ कभी नाइंसाफी नहीं होगी.

मंत्री अमित शाह ने किसानों से अपील की कि वे पंजीयन करें, प्रधानमंत्री मोदी की गारंटी है कि सरकार उन की दलहन खरीदेगी, उन्हें बेचने के लिए भटकना नहीं पड़ेगा. साथ ही, उन्होंने विश्वास जताया कि देश को आत्मनिर्भर बनाने में किसान कोई कसर नहीं छोड़ेगा. देश का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी शाकाहारी है, जिन के लिए प्रोटीन का बहुत महत्व है, जिस का दलहन प्रमुख स्रोत है. कुपोषण के खिलाफ देश की लड़ाई में भी दलहन उत्पादन का बहुत महत्व है. भूमि सुधार के लिए भी दलहन महत्वपूर्ण फसल है, क्योंकि इस की खेती से भूमि की गुणवत्ता बढ़ती है. भूजल स्तर को बनाए रखना और बढ़ाना है, तो ऐसी फसलों का चयन करना होगा, जिन के उत्पादन में पानी कम इस्तेमाल हो. दलहन एक प्रकार से फर्टिलाइजर का एक लघु कारखाना आप के खेत में ही लगा देती है.

उन्होंने आगे कहा कि वेयरहाउसिंग एजेंसियों के साथ इस एप का रियल टाइम बेसिस पर एकीकरण करने का प्रयास किया जा रहा है. आने वाले दिनों में वेयरहाउसिंग का बहुत बड़ा हिस्सा प्रधानमंत्री मोदी की सरकार के कारण कोआपरेटिव सैक्टर में आने वाला है. हर पैक्स एक बड़ा वेयरहाउस बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, इस से फसलों को दूर भेजने की समस्या का समाधान हो जाएगा.

उन्होंने किसानों से दलहन अपनाने व देश को 1 जनवरी, 2028 से पहले दलहन में आत्मनिर्भर बनाने की अपील की, ताकि देश को 1 किलोग्राम दलहन भी इंपोर्ट न करना पड़े. उन्होंने यह भी कहा कि बीते 9 साल में प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में खाद्यान्न उत्पादन में बहुत बड़ा बदलाव आया है. वर्ष 2013-14 में खाद्यान्न उत्पादन कुल 265 मिलियन टन था और 2022-23 में यह बढ़ कर 330 मिलियन टन तक पहुंच चुका है. आजादी के बाद के 75 साल में किसी एक दशक का विश्लेषण करें, तो सब से बड़ी बढ़ोतरी प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश के किसानों ने की है.

उन्होंने इस दौरान दलहन के उत्पादन में बहुत बड़ी बढ़ोतरी की बात कही, मगर 3 दलहनों में हम आत्मनिर्भर नहीं है और उस में हमें आत्मनिर्भर होना है.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रोडक्विटी बढ़ाने के लिए अच्छे बीज उत्पादन के लिए एक कोआपरेटिव संस्था बनाई गई है, कुछ ही दिनों में हम दलहन और तिलहन के बीजों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए अपना प्रोजैक्ट सामने रखेंगे. हम परंपरागत बीजों का संरक्षण और सवंर्धन भी करेंगे. उत्पादकता बढ़ाने हम ने कोआपरेटिव आधार पर बहुराज्यीय बीज संशोधन समिति बनाई है. उन्होंने अपील की कि सभी पैक्स समिति में रजिस्टर करें.

उन्होंने यह भी कहा कि हमें इथेनाल का उत्पादन भी बढ़ाना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पैट्रोल के साथ 20 फीसदी इथेनाल मिलाने का लक्ष्य रखा है. अगर 20 फीसदी इथेनाल मिलाना है, तो हमें इस के लिए लाखों टन इथेनाल का उत्पादन करना है. नेफेड व एनसीसीएफ इसी पैटर्न पर आने वाले दिनों में मक्का का रजिस्ट्रेशन चालू करने वाले हैं. जो किसान मक्का बोएगा, उस के लिए सीधा इथेनाल बनाने वाली फैक्टरी के साथ एमएसपी पर मक्का बेचने की व्यवस्था कर देंगे, जिस से उन का शोषण नहीं होगा और पैसा सीधा बैंक खाते में जाएगा.

उन्होंने आगे कहा कि इस से आप का खेत मक्का उगाने वाला नहीं, बल्कि पैट्रोल बनाने वाला कुआं बन जाएगा. देश के पैट्रोल के लिए इंपोर्ट की फौरेन करैंसी को बचाने का काम किसानों को करना चाहिए. उन्होंने देशभर के किसानों से अपील की है कि हम दलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनें और पोषण अभियान को भी आगे बढ़ाएं.

Farmingकेंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, किसान हित में अनेक ठोस कदम उठाते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं. केंद्र सरकार विभिन्न योजनाओं व कार्यक्रमों द्वारा कृषि क्षेत्र को सतत बढ़ावा दे रही है, जिन में दलहन में देश के आत्मनिर्भर होने का लक्ष्य अहम है, जिस पर कृषि मंत्रालय भी तेजी से काम कर रहा है.

उन्होंने कहा कि दलहन की क्षमता खाद्य एवं पोषण सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता का समाधान करने में मदद करती है, जिसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा साल 2016 को अंतर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष की घोषणा के माध्यम से भी स्वीकार किया गया है. दलहन स्मार्ट खाद्य हैं, क्योंकि ये भारत में फूड बास्केट व प्रोटीन का महत्वपूर्ण स्रोत हैं. दालें पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करती हैं. दलहन कम पानी वाली फसलें होती हैं और सूखे या वर्षा सिंचित वाले क्षेत्रों में उगाई जा सकती हैं, मृदा नाइट्रोजन को ठीक कर के उर्वरता सुधारने में मदद करती हैं. मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, तमिलनाडु व ओडिशा दलहन उत्पादक राज्य हैं, जो देश में 96 फीसदी क्षेत्रफल में दलहन का उत्पादन करते हैं.

उन्होंने आगे कहा कि यह गर्व की बात है कि भारत पूरे विश्व में दलहन का सब से बड़ा उत्पादक है, प्रधानमंत्री इसे प्रोत्साहित करते हैं. वर्ष 2014 के बाद से दलहन उत्पादन में वृद्धि हो रही है, वहीं इस का आयात पहले की तुलना में घटा है.

मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए कई पहल की हैं. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम)-दलहन को 28 राज्यों एवं जम्मू व कश्मीर और लद्दाख में कार्यान्विरत किया जा रहा है.

उन्होंने प्रसन्नता जताई कि 2 शीर्ष सहकारी संस्थाओं द्वारा ऐसा पोर्टल बनाया गया है, जहां किसान पंजीयन के पश्चात स्टाक ऐंट्री कर पाएंगे, स्टाक के वेयरहाउस पहुंचते ई-रसीद जारी होने पर किसानों को सीधा पेमेंट पोर्टल से बैंक खाते में होगा. पोर्टल को वेयरहाउसिंग एजेंसियों के साथ एकीकृत किया है, जो वास्तविक समय आधार पर स्टाक जमा निगरानी करने में सहायक होगा, जिस से समय पर पेमेंट होगा. इस प्रकार खरीदे स्टाक का उपयोग उपभोक्ताओं को भविष्य में अचानक मूल्य वृद्धि से राहत प्रदान करने के लिए किया जाएगा. स्टाक राज्य सरकारों को उन की पोषण व कल्याणकारी योजनाओं के तहत उपयोग के लिए भी उपलब्ध होगा.

कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि हम सब के सामूहिक प्रयास हमें ऐसे भविष्य की ओर ले जा रहे हैं, जहां भारत दाल उत्पादन में आत्मनिर्भर होगा. हम किसानों का समर्थन जारी रखें व कृषि आधार को मजबूत करते हुए अधिक समृद्ध और आत्मनिर्भर राष्ट्र की दिशा में काम करें. प्रधानमंत्री मोदी ने खूंटी, झारखंड से जो विकसित भारत संकल्प यात्रा प्रारंभ की है, उस के मूल में किसान ही हैं.

नेफेड के अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह, एनसीसीएफ अध्यक्ष विशाल सिंह, केंद्रीय सहकारिता सचिव ज्ञानेश कुमार, उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह व कृषि सचिव मनोज आहूजा भी मौजूद थे. नेफेड के एमडी रितेश चैहान ने स्वागत भाषण दिया. एनसीसीएफ की एमडी ए. चंद्रा ने आभार माना.

मेले में किसानों को प्रशिक्षण, मिली अनेक जानकारियां

खरसावां : राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन की अध्यक्षता और केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा के मुख्य आतिथ्य में ‘विकसित गांव-विकसित भारत’ थीम पर खरसावां, झारखंड में किसान समागम (कृषि मेला सह प्रशिक्षण कार्यक्रम) का आरंभ हुआ.

‘विकसित गांव-विकसित भारत’ थीम पर गोंडपुर मैदान, खरसावां, झारखंड में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा किसान समागम (कृषि मेला सह प्रशिक्षण कार्यक्रम) आयोजित किया. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की विभिन्न संस्थाओं, राष्ट्रीय बीज निगम, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, इफको, राष्ट्रीय बागबानी बोर्ड, अटारी (पटना), कृषि विज्ञान केंद्रों, नेफेड, नाबार्ड व राज्य की विभिन्न संस्थाओं के साथ मिल कर यह वृहद आयोजन किया गया, जिस में हजारों किसान शामिल हुए.

इस मौके पर राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा दिया था, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से सार्थक सिद्ध हो रहा है. स्टालों का अवलोकन करते हुए देश में कृषि क्षेत्र में हम ने अहम बदलाव को महसूस किया है, केंद्रीय योजनाओं के जरीए क्रांतिकारी बदलाव करते हुए कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है. किसान देश के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, वे हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं. इस परिप्रेक्ष्य में किसान हित में इस प्रकार के समागम अत्यंत सराहनीय है.

मुख्य अतिथि केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने गांवों, कसबों और शहरों के किसानों से आग्रह किया कि सिर्फ एक फसल ले कर अपने खेतों को खाली नहीं रखें, बल्कि बहुफसली प्रणाली अपना कर आय बढ़ाते हुए देश के विकास में योगदान दें. केंद्र ने खेतों की मिट्टी की जांच करने की सुविधा मुहैया कराई है, जिस का किसान लाभ उठाएं, इस में विभाग पूरी तरह से सहयोग करेगा.

उन्होंने आगे  कहा कि हम अपने खेतों को हराभरा बनाएं. इस के लिए अनेक योजनाएं शुरू की गई हैं, जिन का सुचारु रूप से संचालन किया जा रहा है. खेती के लिए ड्रोन एवं नैनो यूरिया का उपयोग भी इस में अहम है. स्वयंसहायता समूहों के माध्यम से मातृ शक्ति गांवों को विकसित बनाने के लिए लगातार काम कर रही है, जिन में हजारों पीएम ड्रोन दीदी शामिल हैं.

मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि किसान हितैषी सरकार ने कृषि क्षेत्र को हमेशा प्राथमिकता पर रखा है. इसी क्रम में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के बजट को वर्ष 2013-14 के तकरीबन 22,000 करोड़ रुपए के मुकाबले चालू वर्ष में लगभग सवा पांच गुना तक बढ़ाया गया है. आपदा प्रभावित किसानों को राहत के लिए भी केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को राशि उपलब्ध कराई है, जिसे किसानों तक शीघ्रता से पहुंचाने के लिए राज्य सरकार से कहा गया है. साथ ही, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ झारखंड के किसानों को भी दिलाने के लिए अधिकारियों से कहा है कि वे राज्य सरकार से चर्चा कर राज्य को योजना में शामिल करवाएं.

मंत्री अर्जुन मुंडा ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार द्वारा 6,865 करोड़ रुपए बजट के साथ 10,000 नए एफपीओ के गठन व संवर्धन के लिए नई केंद्रीय क्षेत्र की योजना प्रारंभ की गई थी, जिस के तहत लगभग सवा सात हजार एफपीओ पंजीकृत किए जा चुके हैं. प्रधानमंत्री ने विकसित भारत संकल्प यात्रा प्रारंभ की है, जिस के माध्यम सेकिसानों को लाभान्वित किया जा रहा है. मोदी की गारंटी की गाड़ियां गांवगांव घूम रही है. हमें गरीबों को साथ ले कर आगे बढ़ना है.

उन्होंने कहा कि किसान हित में श्रीअन्न को बढ़ावा देने के लिए केंद्र के प्रयास जोरों पर है. सुदूरवर्ती क्षेत्रों के आदिवासियों के कल्याण के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा कई कार्यक्रमों के साथ 24 हजार करोड़ रुपए की पीएम-जनमन योजना भी प्रारंभ की गई है.

उन्होंने आगे कहा कि ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की भावना के साथ ‘सब का साथ-सब का विकास-सब का विश्वास-सब का प्रयास’ के मूलमंत्र से देश में काम हो रहा है.

इस मौके पर राज्यपाल व केंद्रीय मंत्री ने प्रगतिशील किसानों को सम्मानित किया. 150 से अधिक स्टाल लगाए गए थे, जहां बड़ी संख्या में किसानों ने जानकारी ले कर लाभ प्राप्त किया. किसानों के लिए केंद्र की योजनाओं का लघु फिल्म द्वारा प्रचारप्रसार किया गया.

किसानों को इफको द्वारा नैनो यूरिया किट, एचआईएल द्वारा सुरक्षा किट व पौधों का वितरण किया गया. चारा बीज उत्पादन पर प्रशिक्षण के साथ कृषि अवसंरचना कोष, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्राकृतिक खेती, ड्रोन का उपयोग, कृषि को उद्यम के रूप में विकसित करने, नैनो यूरिया सहित पीपीवीएफआरए गतिविधियों व अन्य योजनाओं के बारे में जागरूकता का प्रसार किया गया. माध्यमिक कृषि, मुरगीपालन, एकीकृत कृषि प्रणाली आदि से अवगत कराया गया.

मैदानी घास के लिए  हाथियों में प्रतिस्पर्धा

नई दिल्ली : एक नए अध्ययन के अनुसार, हाथियों के झुंड जंगलों की तुलना में मानवजनित रूप से निर्मित घास के मैदानों में भोजन के लिए अधिक प्रतिस्पर्धा करते हैं, जो इस बात पर प्रकाश डालता है कि मानवीय गतिविधियां पर्यावरणीय प्रभावों और जानवरों के सामाजिक जीवन को कैसे प्रभावित कर सकती हैं. भले ही उन के पास प्रचुर मात्रा में भोजन हो.

एशियाई हाथी मादा बंधित समूहों को दिखते हैं, जबकि नर बड़े पैमाने पर अकेले होते हैं. जिन में सब से समावेशी सामाजिक इकाई कबीला होती है – जो एक सामाजिक समूह, बैंड, टुकड़ी, कबीले या समुदाय के बराबर होती है. कुलों के भीतर महिला हाथी विखंडनसंलयन गतिशीलता दिखाती हैं, जिस में कबीले के सदस्यों को आमतौर पर कई समूहों या पार्टियों में वितरित किया जाता है, जिन के समूह का आकार और संरचना घंटों में बदल सकती है.

एशियाई हाथी के कई लक्षण हैं, जिन के बारे में माना जाता है कि वे कम आक्रामक प्रतिस्पर्धा से जुड़े हैं. सब से पहले उन का प्राथमिक भोजन निम्न गुणवत्ता वाला, बिखरा हुआ संसाधन (घास और वनस्पति पौधे) हैं और इस प्रकार प्रतिस्पर्धा होने की उम्मीद नहीं है. उन की विखंडन व संलयन गतिशीलता उन्हें लचीले ढंग से छोटे समूहों में विभाजित होने और प्रतिस्पर्धा को कम करने का अवसर देती है. वे प्रादेशिक नहीं होते, और उन की घरेलू सीमाएं बड़े पैमाने पर ओवरलैप कर सकती हैं, यह लक्षण समूह के बीच मुठभेड़ों के दौरान कम आक्रामकता से संबंधित होती है.

जवाहरलाल नेहरू सैंटर फौर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर) विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के के तहत एक स्वायत्त संस्थान के वैज्ञानिकों ने हाथियों जैसे मादा बंधित पशुओं में समूह के भीतर और उन के बीच भोजन वितरण के प्रभाव की जांच की.

डा. हंसराज गौतम और प्रो. टीएनसी विद्या ने व्यक्तिगत हाथियों की पहचान और अध्ययन करने के लिए वर्ष 2009 में स्थापित दीर्घकालिक काबिनी हाथी परियोजना से हाथियों के व्यवहार के डेटा को ट्रैक किया और पता लगाया कि क्या कबीले के भीतर शत्रुतापूर्ण विवाद (एगोनिज्म) और कबीले के बीच एगोनिस्टिक मुठभेड़ हैं? हाथियों में इस की दर और फैलाव, घास की प्रचुरता, घास के फैलाव और हाथियों के समूह के आकार पर निर्भर है.

उन्होंने काबिनी घास के मैदान और उस के पड़ोस में जंगल से हाथियों के व्यवहार के आंकड़ों का अध्ययन कर पाया कि जंगलों की तुलना में घास के मैदानों में, जहां भोजन की प्रचुरता होती है, हाथियों के झुंड के बीच प्रतिस्पर्धा अधिक होती है, उन के अध्ययन के निष्कर्ष आंशिक रूप से सामाजिक व पारिस्थितिक मौडल, महिला सामाजिक संबंधों के पारिस्थितिक मौडल (ईएमएफएसआर) की भविष्यवाणियों का समर्थन करते हैं, जो बताता है कि खाद्य वितरण मुख्य रूप से समूहों के बीच और भीतर प्रतिस्पर्धा यानी शारीरिक संघर्ष को निर्धारित करता है. प्रचुर मात्रा में और एकत्रित खाद्य संसाधनों पर संघर्ष बढ़ने की उम्मीद होती है और उन पर समूहों या वैयक्तिक एकाधिकार हो सकता है.

रौयल सोसाइटी ओपन साइंस जर्नल में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि संसाधनों की उपलब्धता बढ़ने से अपेक्षा से विपरीत प्रभाव पड़ सकता है, प्राकृतिक आवासों में तेजी से होने वाले मानवजनित परिवर्तनों, जैसे कि जंगली आबादी की सामाजिक व्यवस्था में इनसानी दखल, के संदर्भ में इस की बहुत प्रासंगिकता है.

सेब की प्रोसैसिंग के लिए 101 करोड़ रुपए का प्लांट लगेगा

शिमला : सेब की पैदावार के मामले में हिमाचल की अपनी एक अलग ही पहचान है. प्रदेश की सेब अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण के लिए सरकार ने जिला शिमला के ठियोग विधानसभा क्षेत्र के पराला में हिमाचल प्रदेश बागबानी उत्पाद विपणन एवं प्रसंस्करण निगम यानी एचपीएमसी फल विधायन संयंत्र की इकाई प्रदेश की जनता को समर्पित की.

यह अत्याधुनिक संयंत्र 101 करोड़ रुपए की लागत से बना है और अत्याधुनिक तकनीक और मशीनों से लैस है. यह संयंत्र एक घंटे में तकरीबन 10 मीट्रिक टन सेब को प्रोसैस कर सकता है.

सेब की बेहतर पैदावार होने पर यह संयंत्र 18,000 मीट्रिक टन सेब को प्रोसैस कर सकता है, जिस से उच्च गुणवत्ता वाले सेब का जूस कंसंट्रेट तैयार होगा.

सेब से अनेक उत्पाद होंगे तैयार

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इस अत्याधुनिक संयंत्र में एप्पल जूस कंसंट्रेट (एजेसी), पैेक्टिन, वाइन, विनेगर और रेडी टू सर्व जूस इकाइयां शामिल हैं. यह संयंत्र प्रति घंटे 2000 लिटर जूस बोतलों में पैक कर सकता है और  पैेक्टिन लाइन प्रतिदिन 800 किलोग्राम सेब की क्रशिंग कर सकता है. वाइन इकाई की वार्षिक क्षमता 1,00,000 लिटर है और 50,000 लिटर विनेगर का वार्षिक उत्पादन किया जाएगा. अल्ट्रा फिल्ट्रेशन तकनीक का उपयोग कर एप्पल जूस कंसंट्रेट को तैयार किया जाता है, जिस से इस की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है.

मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि यह प्लांट सेब उत्पादकों की आर्थिकी सुदृढ़ करने में मील का पत्थर साबित होगी. सेब बहुल क्षेत्र में इस प्लांट को स्थापित करने का उद्देश्य सेब का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित कर बागबानों की आय में बढ़ोतरी करना है. यह संयंत्र मंडी मध्यस्थता योजना के तहत खरीदे गए सेब का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करेगा. इस से उन के उत्पादों की परिवहन लागत पर होने वाला खर्चा कम होगा, जिस से बागबानों की आर्थिकी में वृद्धि होगी.

हाल के सेब सीजन के दौरान संयंत्र के परीक्षणों को सफल माना गया. इस दौरान 5706 मीट्रिक टन सेब की प्रोसैसिंग की गई और तकरीबन 15 करोड़  रुपए के 591 मीट्रिक टन एप्पल जूस कंसंट्रेट का उत्पादन किया गया. राज्य की अर्थव्यवस्था में बागबानी क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वर्ष 2022-23 में 2,36,466 हेक्टेयर में विविध फलों का उत्पादन किया गया. इसी वर्ष कुल फल उत्पादन 8,14,611 मीट्रिक टन तक पहुंच गया, जिस में सेब का उत्पादन 84.54 फीसदी था, जो कुल 6,72,343 मीट्रिक टन था.

मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि पराला मंडी को जून, 2024 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. इस के अलावा सेब बहुल क्षेत्रों में सड़क सुविधा को सुदृढ़ किया जा रहा है.

प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि छैलाकुमारहट्टी सड़क को सेंट्रल रोड एवं इंफ्रास्ट्रक्चर फंड में शामिल किया जाए.

उन्होंने कहा कि सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए सेब के समर्थन मूल्य में 1.50 रुपए की बढ़ोतरी की है, जिस से सेब का समर्थन मूल्य 10.50 रुपए से बढ़ कर 12 रुपए प्रति किलोग्राम हो गया है.

“अंगोरा खरगोशपालन” पर प्रशिक्षण कार्यक्रम

कुल्लू: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संस्थान केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर के उत्तरी शीतोष्ण क्षेत्रीय केंद्र, गड़सा, जिला कुल्लू (हिमाचल प्रदेश में नाबार्ड की कैट परियोजना के अंतर्गत तीनदिवसीय” के दौरान वैज्ञानिक तरीके से अंगोरा खरगोशपालन” पर प्रशिक्षण हुआ.

इस कार्यक्रम में केंद्र के प्रभारी डा. आर. पुरुषोत्तम, नोडल अधिकारी डा. अब्दुल रहीम , प्रशिक्षण समन्वयक डा. रजनी चौधरी, निधि संस्था के निदेशक डा. सुनील पांडे एवं निधि संस्था के सदस्य डा. विकास पंत के अलावा अनेक लोगों ने भाग लिया.

हर खरगोश जुड़ा है इस संस्थान से

Rabbitकार्यक्रम के अध्यक्ष डा. अरुण कुमार तोमर ने सभी किसानों को वैज्ञानिक तरीके से अंगोरा खरगोशपालन के साथसाथ भेड़बकरी एवं मुरगीपालन करने की सलाह दी और बताया कि वर्तमान में पूरे भारत में जितने भी ख़रगोश हैं, कहीं न कहीं उन।का इतिहास इसी संस्थान से जुड़ा हुआ है. यहां की जलवायु परिस्थितियां उत्तराखंड के जैसी ही हैं और छोटे पशु पालने के लिए बेहद अनुकूल हैं.

कार्यक्रम में प्रभारी द्वारा सालभर की जाने वाली छोटे पशुओं की विभिन्न गतिविधियों पर प्रकाश डाला.

प्रशिक्षण के बाद हो रही कमाई

निधि संस्था के निदेशक डा .सुनील पांडे ने बताया कि प्रशिक्षण में भाग लेने वाले सभी किसानों को 2 साल पहले उत्तरी शीतोष्ण क्षेत्रीय केंद्र द्वारा लगभग 100 अंगोरा खरगोश दिए गए थे और ये सभी किसान उन्हीं खरगोशों को या उन से लिए गए बच्चों को पाल रहे हैं. सभी किसान अंगोरा खरगोशपालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. इन खरगोशों से प्राप्त होने वाली ऊन से ये स्वयं ही मफलर, मोजे, दस्ताने, शाल, जैकेट व टोपी आदि बना कर व बेचकर अच्छी आमदनी कमा रहे हैं.

कार्यक्रम मे अंगोरा खरगोशपालन से जुड़ी सभी तकनीकों जैसे अच्छी नस्ल के पशुओं का चयन, चारा, प्रजनन, ऊन कतरन आदि पर 31 किसानों को लेक्चरर्स व प्रैक्टिकल कक्षा डा. अब्दुल रहीम व डा. रजनी चौधरी द्वारा किया गया.

केंद्र पर चल रही जनजातीय उपयोजना के अंतर्गत उत्तराखंड के मुनस्यारी ब्लौक के नानासेम, मल्ला घोरपट्टा, तल्ला बूंगा, सरमोली क्षेत्रों से 31 किसानों (26 महिला व 5 पुरुष) को निशुल्क ऊन काटने की कैंची, छाता, थरमस के साथ प्रमाणपत्र का भी वितरण किया गया.

उक्त प्रशिक्षण के प्रशिक्षण निदेशक डा. अब्दुल रहीम चौधरी व प्रशिक्षण समन्वयक डा. रजनी चौधरी व डा. आर. पुरुषोत्तम थे.

Farmingकार्यक्रम के सफल संचालन में क्षेत्रीय केंद्र के तकनीकी कर्मचारियों एवं प्रशासन द्वारा पूरा सहयोग किया गया. केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर, तहसील मालपुरा के निदेशक डा. अरुण तोमर ने हुरला जिला कुल्लू में स्थित महंत वूलन मिल का दौरा किया गया. इस दौरे में निदेशक के साथ उत्तरी शीतोष्ण क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी डा. आर. पुरुषोत्तमन, डा. अब्दुल रहीम, डा. रजनी चौधरी व मनोज शर्मा भी मौजूद रहे. वर्तमान एवं भविष्य के हिसाब से ऊन इंडस्ट्री की समस्या और अवसर के बारे में विस्तार से संवाद निदेशक द्वारा किया गया. निदेशक ने बताया कि आप के साथ गडसा व अविकानगर संस्थान मिल कर किसान हित में काम करेंगे.

खोपरा के लिए एमएसपी तय : किसानों को प्रोत्साहन

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने वर्ष 2024 मौसम के लिए खोपरा यानी नारियल के सूखे गरी के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को मंजूरी दे दी है. किसानों को लाभकारी मूल्य प्रदान करने के लिए सरकार ने वर्ष 2018-19 के केंद्रीय बजट में घोषणा की थी कि सभी अनिवार्य फसलों का एमएसपी अखिल भारतीय भारित उत्पादन लागत के कम से कम डेढ़ गुना स्तर पर तय किया जाएगा.

वर्ष 2024 सीजन के लिए मिलिंग खोपरा की उचित औसत गुणवत्ता के लिए एमएसपी 11,160 रुपए प्रति क्विंटल और बाल खोपरा के लिए 12,000 रुपए प्रति क्विंटल तय किया गया है. इस से मिलिंग खोपरा के लिए 51.84 फीसदी और बाल खोपरा के लिए 63.26 फीसदी का मार्जिन सुनिश्चित होगा, जो उत्पादन की अखिल भारतीय भारित औसत लागत से डेढ़ गुना से भी अधिक है. मिलिंग खोपरा का उपयोग तेल निकालने के लिए किया जाता है, जबकि बाल/खाद्य खोपरा को सूखे फल के रूप में खाया जाता है.

केरल और तमिलनाडु मिलियन खोपरा के प्रमुख उत्पादक हैं, जबकि बाल खोपरा का उत्पादन मुख्य रूप से कर्नाटक में होता है.

वर्ष 2024 मौसम में मिलिंग खोपरा के लिए एमएसपी में पिछले मौसम की तुलना में 300 रुपए प्रति क्विंटल और बाल खोपरा के मूल्‍य में 250 रुपए प्रति क्विंटल की वृद्धि हुई है.

पिछले 10 वर्षों में सरकार ने मिलिंग खोपरा और बाल खोपरा के लिए एमएसपी को 2014-15 में 5,250 रुपए प्रति क्विंटल और 5,500 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ा कर 2024-25 में 11,160 रुपए प्रति क्विंटल और 12,000 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया, जिस में क्रमशः 113 फीसदी और 118 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई.

उच्च एमएसपी न केवल नारियल उत्पादकों के लिए बेहतर लाभकारी मूल्‍य सुनिश्चित करेगा, बल्कि घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नारियल उत्पादों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए खोपरा उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित भी करेगा.

चालू मौसम 2023 में सरकार ने 1,493 करोड़ रुपए की लागत से 1.33 लाख मीट्रिक टन से अधिक खोपरा की रिकार्ड मात्रा में खरीद की है, जिस से लगभग 90,000 किसानों को लाभ हुआ है. मौजूदा मौसम 2023 में खरीद पिछले सीजन (2022) की तुलना में 227 फीसदी की वृद्धि का संकेत देती है.

भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ लिमिटेड (नैफेड) और राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ (एनसीसीएफ) मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत खोपरा और छिलकेरहित नारियल की खरीद के लिए केंद्रीय नोडल एजेंसियों (सीएनए) के रूप में काम करना जारी रखेंगे.

बीते 8 वर्षों में 51 फीसदी बढ़ा दूध उत्पादन

गांधीनगर: केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने गुजरात के गांधीनगर में नेशनल कोआपरेटिव डेयरी फेडरेशन औफ इंडिया (NCDFI) लिमिटेड के मुख्यालय का शिलान्यास किया एवं ईमार्केट अवार्ड 2023 समारोह को संबोधित किया.

इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल, गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष शंकर चौधरी, इफको के अध्यक्ष दिलीप संघाणी, एनडीडीबी के अध्यक्ष डा. मीनेश शाह और एनसीडीएफआई के अध्यक्ष डा. मंगल राय समेत अनेक लोग मौजूद थे.

अपने संबोधन में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि हमारे देश में डेयरी और खासकर कोआपरेटिव डेयरी सैक्टर ने बहुआयामी लक्ष्यों को हासिल किया है. अगर दूध का व्यापार कोआपरेटिव सैक्टर नहीं करता है, तो दूध उत्पादन, एक बिचौलिए और दूध का उपयोग करने वाले तक सीमित रहता है.

लेकिन अगर कोऑपरेटिव सेक्टर कोऑपरेटिव तरीके से दूध का व्यापार करता है तो इसमें कई आयाम एक साथ जुड़ जाते हैं, क्योंकि इसमें उद्देश्य मुनाफे का नहीं है और इसका बहुआयामी फायदा समाज, कृषि, गांव, दूध उत्पादक और आखिरकार देश को होता है.

उन्होंने कहा कि भारत ने पिछले 50 साल में इस सफलता की गाथा की अनुभूति की है.

Amit Shahसहकारिता मंत्री ने कहा कि आज विश्व के दुग्ध उत्पादन में भारत 24% हिस्से के साथ पहले स्थान पर पहुंच चुका है और प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में भारत में पिछले 8 वर्षों में दूध उत्पादन में लगभग 51% वृद्धि हुई है जो विश्व में सबसे तेजी के साथ हुई बढ़ोत्तरी है. यह सिर्फ इसलिए संभव हुआ है क्योंकि इनमें ज्यादातर उत्पादन कोऑपरेटिव डेयरी के माध्यम से हुआ है.

उन्होंने कहा कि अगर कोऑपरेटिव डेयरी चलानी है तो उसे पोषित करने वाली अनेक संस्थाएं बनानी पड़ेगी और एनसीडीएफआई यह काम करेगी.

उन्होने कहा कि NCDFI एक प्रकार से सभी डेयरी को गाइडेंस देने का काम कर रही है. शाह ने कहा कि जिस वासी गांव से श्वेत क्रांति की शुरुआत हुई, वहीं आणंद जिले में लगभग 7000 वर्ग मीटर क्षेत्र में एनसीडीएफआई का मुख्यालय बनने जा रहा है. यह करीब 32 करोड़ रुपए के खर्च से बनेगा और सौर ऊर्जा संयंत्र से संचालित होगा. उन्होंने कहा कि नया मुख्यालय भवन 100 प्रतिशत ग्रीन बिल्डिंग होगा.

कोऑपरेटिव सेक्टर के जरिए पोषण आंदोलन

गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि जब कोऑपरेटिव सेक्टर डेयरी का बिजनेस करता है तब सबसे पहला फायदा दूध उत्पादकों को होता है, क्योंकि उनका शोषण नहीं होता है. उन्होंने कहा कि अगर कोई अकेला दूध का उत्पादन करता है तो उसके पास दूध के स्टोरेज की क्षमता नहीं होती और वह मार्केट को एक्सप्लोर नहीं कर सकता. लेकिन अगर कोऑपरेटिव सेक्टर दूध का बिजनेस करता है तो गांव और जिला स्तर पर दूध संघ बनते हैं और उनके पास कोल्ड स्टोरेज, प्रोसेसिंग, मार्केट की डिमांड के मुताबिक दूध को उस उत्पाद में कन्वर्ट करने की क्षमता होती है. इससे मुनाफे को कोऑपरेटिव आधार पर दूध उत्पादन करने वाली बहनों के पास पहुंचाने की व्यवस्था भी होती है और इस तरह दूध उत्पादन करने वाली बहनों का शोषण समाप्त हो जाता है. उन्होंने कहा कि अकेला दूध का उत्पादन करने वाला व्यक्ति अपने पशुओं के स्वास्थ्य की चिंता नहीं कर सकता है, लेकिन अगर कोऑपरेटिव तरीके से दूध उत्पादन किया जाए तो जिला दूध उत्पादक संघ पशु की नस्ल सुधार, स्वास्थ्य सुधार और पशुओं के अच्छे आहार की भी व्यवस्था करता है.

अन्य लाभ यह है कि अगर कोऑपरेटिव सेक्टर के जरिए दूध का बिजनेस होता है तो यह पोषण आंदोलन से स्वत: जुड़ जाता है.

अमित शाह ने कहा कि वह बनासकांठा की डेयरी सहित कई ऐसी डेरियों के बारे में जानते हैं जो कुपोषित बच्चों को पोषण युक्त दूध देकर उनके स्वास्थ्य की चिंता करती हैं. अहमदाबाद डेयरी जैसी कई डेयरियां गर्भवती महिलाओं को लड्डू देकर उनके और उनके बच्चे के पोषण की चिंता करती हैं और पूरा कोऑपरेटिव सेक्टर कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में जुड़ गया है.

सहकारिता मंत्री ने कहा कि डेयरी और डेयरी टेक्नोलॉजी के बारे में एक जमाने में भारत के लिए कल्पना करना भी मुश्किल था, लेकिन हमने ऐसे प्रयास किए कि पूरे भारत में सिमेट्रिक दूध उत्पादन शुरू हुआ. कई क्षेत्र ऐसे हैं जो कोऑपरेटिव डेयरी से नहीं जुड़े थे, वहां भी एनडीडीबी के माध्यम से गुजरात की सक्षम डेयरियां उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में अपने काम का विस्तार कर रही हैं और कोऑपरेटिव तरीके से अपने काम को बढ़ा रही हैं.

उन्होंने कहा कि अगर देश के हर गांव में सिमेट्रिक तरीके से दूध उत्पादन करना है और हर घर को आत्मनिर्भर बनाना है तो यह काम केवल कोऑपरेटिव डेयरी के जरिए ही संभव है.

डेयरियों ने दूध उत्पादन देश का नाम किया रोशन

Milkअमित शाह ने कहा कि भारत की डेयरियों ने दूध उत्पादन में विश्व में देश का नाम रोशन किया है. उन्होंने कहा कि 1946 में जब गुजरात में एक डेयरी ने शोषण शुरू किया तो इसके खिलाफ सरदार वल्लभभाई पटेल ने त्रिभुवन भाई को प्रेरित किया और 1946 में 15 गांवों में छोटी-छोटी डेयरी की शुरुआत हुई. उन्होंने कहा कि 1946 में शोषण के खिलाफ हुई एक छोटी सी शुरुआत विराट आंदोलन में परिवर्तित हुई और इसी से देश में श्वेत क्रांति का विचार आया और एनडीबीबी का उद्भव हुआ.

देश भर में अनेक कोऑपरेटिव डेरियाँ बनी

उन्होंने कहा कि आज देश भर में विकसित होकर अनेक कोऑपरेटिव डेरियाँ बनी है. अमूल प्रतिदिन लगभग 40 मिलियन लीटर दूध की प्रोसेसिंग करता है और 36 लाख बहनें दूध का भंडारण करती हैं और हर सप्ताह उन्हें उत्पादित दूध की कीमत मिल जाती है. श्री शाह ने कहा कि 2021-22 में अमूल फेडरेशन का टर्नओवर 72000 करोड़ रुपए का है.

नवाचारों व कौशल विकास से देश की उन्नति

हिसार : अगले दशक में भारत में युवाओं की आबादी दुनिया में सब से अधिक होगी. यदि देश का उत्थान करना है, तो युवाओं को परिवार, समाज व संसाधनों के बीच सामंजस्य स्थापित करना होगा. इस के लिए उन्हें समय के साथसाथ अपने ज्ञान, नवाचारों व कौशल में विकास करना चाहिए, तभी हमारा देश उन्नति के पथ पर अग्रसर हो पाएगा.

ये विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने विश्वविद्यालय के इंदिरा चक्रवर्ती सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय की स्वर्ण जयंति के उपलक्ष्य पर “सामुदायिक विज्ञान शिक्षा : चुनौतियां एवं अवसर” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्यातिथि कही. इस दौरान मुख्य वक्ता के रूप में पंतनगर के गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी की पूर्व अधिष्ठाता डा. रीटा रघुवंशी उपस्थित रहीं, जबकि लुधियाना के पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में कालेज औफ होम साइंस की पूर्व अधिष्ठाता डा. जतिंदर कौर गुलाटी उपस्थित रहीं.

मुख्यातिथि प्रो. बीआर कंबोज ने विश्वविद्यालय के इंदिरा चक्रवर्ती सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय के 50 साल पूरे करने पर सभी को बधाई दी.

उन्होंने कहा कि सामुदायिक विज्ञान एक अंतर विषयक क्षेत्र है, जिस में परिधान और वस्त्र विज्ञान, खाद्य एवं पोषण, संसाधन प्रबंधन, उपभोक्ता प्रबंधन के साथसाथ भौतिकी, जैविक, कृषि, सामाजिक और पर्यावरण विज्ञान, कला, मानविकी और प्रबंधन विषयों का संयुक्त रूप से ज्ञान है.

उन्होंने कहा कि बदलते समय के साथ जैसेजैसे परिवार व समाज का दायरा बढ़ा है, वैसेवैसे चुनौतियां भी बढ़ रही हैं. इन का निवारण सामुदायिक विज्ञान विषय में है, जो कि व्यक्ति अपने परिवार, समुदाय एवं संसाधनों के साथ गतिशील संबंधों के महत्व पर आधारित है.

Farmingमुख्यातिथि ने छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि यदि समय रहते उन्होंने अपने अंदर ज्ञान, कौशल, अनुशासन गुणों का विकास व समाज के हित के लिए कदम नहीं उठाए, तो भविष्य में काफी चुनौतियों से लड़ना पड़ सकता है. इसलिए बदलते समय के साथ अपने अंदर परिवर्तन लाना आवश्यक है.

उन्होंने इंदिरा चक्रवर्ती सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय में पढ़ाए जा रहे सभी कोर्सों को अहम बताते हुए कहा कि इस से हमारे ज्ञानवर्धन के साथ सामाजिक कार्यों को बढ़ावा मिलने में भी मदद मिलेगी.

उन्होंने शिक्षकों से यह भी कहा कि वे कक्षा में हर विद्यार्थी की प्रतिभा की पहचान कर उस को संवारने का प्रयास करें.

कुलपति ने विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वे अपने कैरियर को संवारने के लिए पहले कुछ सीखने की ललक जगाएं और फिर उस काम को पूरा करने की निरंतरता जारी रखें. साथ ही, पाठ्यक्रमों से संबंधित शिक्षकों से संवाद जरूर करें.

मुख्य वक्ता डा. रीटा रघुवंशी ने उपस्थित छात्राओं को सामुदायिक विज्ञान एवं सतत विकास विषय पर विस्तारपूर्वक जानकारी दी. उन्होंने कहा कि आधुनिक युग में सामुदायिक विज्ञान का भविष्य उज्ज्वल है. छात्राओं को गणित, कंप्यूटर विज्ञान, सांख्यिकी विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और मानविकी विषयों में अपनी क्षमताओं को बढ़ाने की आवश्यकता है, जोकि आने वाले समय की मांग है.

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन, बढ़ता प्रदूषण, घटते प्राकृतिक संसाधनों, खाद्य एवं पोषण सुरक्षा जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही है, जिन के लिए छात्राओं को अपने अंदर कौशल विकास व ज्ञानवर्धन करने की जरूरत है.

वक्ता डा. जतिंदर कौर गुलाटी ने सकारात्मक युवा विकास विषय के पहलुओं पर छात्राओं से चर्चा की. उन्होंने पर्यावरण, आर्थिक व समाज को सामुदायिक विज्ञान विषय की अहम कड़ी बताते हुए कहा कि यदि किसी समाज का उत्थान करना है, तो बदलते समय के साथ नवाचारों, ज्ञान और कौशल में विकास करना चाहिए.

इस के अलावा मोदीपुरम के इंडियन इस्टीट्यूट औफ फार्मिंग सिस्टमस रिसर्च से वैज्ञानिक डा. निशा वर्मा ने समुदाय आधारित हस्तक्षेपों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उभरते उपकरण और तकनीकें विषय और नई दिल्ली के इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट की प्रमुख वैज्ञानिक डा. प्रेमलता ने महिलाओं के नेतृत्व में विकास विषय पर अपने व्याख्यान दिए.

उपरोक्त महाविद्यालय की अधिष्ठाता डा. मंजू महता ने सभी का स्वागत किया.
शिक्षा एवं संचार प्रबंधन विभाग की प्रभारी एवं कार्यक्रम की समन्यवक डा. बीना यादव ने एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के तहत विभिन्न विषयों पर होने वाले तकनीकी सत्रों, गतिविधियों, कार्यों व रूपरेखा के बारे में विस्तृत जानकारी दी.

खाद्य एवं पोषण विभाग की अध्यक्ष डा. संगीता चहल सिंधु ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया. साथ ही, मंच संचालन डा. मंजू दहिया ने किया.

देशभर में वन्य उपज की आवाजाही हुई आसान

नई दिल्ली: केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन व श्रम और रोजगार मंत्री भूपेंद्र यादव ने देशभर में लकड़ी, बांस और अन्य वन्य उपज की निर्बाध आवाजाही के लिए पूरे भारत में नेशनल ट्रांजिट पास सिस्टम (एनटीपीएस) का आरंभ किया.

वर्तमान में, राज्य विशिष्ट पारगमन नियमों के आधार पर लकड़ी और वन उपज के परिवहन के लिए पारगमन परमिट जारी किए जाते हैं. एनटीपीएस की कल्पना “वन नेशन-वन पास” व्यवस्था के रूप में की गई है, जो पूरे देश में निर्बाध पारगमन को सक्षम बनाएगी.

यह पहल देशभर में कृषि वानिकी में शामिल वृक्ष उत्पादकों और किसानों के लिए एक एकीकृत, औनलाइन मोड प्रदान कर के लकड़ी पारगमन परमिट जारी करने को सुव्यवस्थित करेगी, जिस से व्यापार करने में आसानी होगी.

जागरूकता पैदा करने और एनटीपीएस के उपयोग और उस की सुगमता को प्रदर्शित करने के लिए वन्य उपज ले जाने वाले विशेष वाहनों को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने हरी झंडी दिखा कर रवाना किया. गुजरात और जम्मूकश्मीर से लकड़ी और अन्य वन्य उपज ले जाने वाले 2 वाहनों को हरी झंडी दिखाई गई, जो पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के लिए जाने वाले हैं. एनटीपीएस के जरीए उत्पन्न क्यूआर कोड वाले पारगमन परमिट की वैधता को सत्यापित करने और निर्बाध पारगमन की अनुमति देने के लिए विभिन्न राज्यों में चेक गेट की सुविधा मिलेगी.

फ्लैग औफ कार्यक्रम के अवसर पर भूपेंद्र यादव ने कहा कि एनटीपीएस के राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन के साथ यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि एनटीपीएस अधिक पारदर्शिता की दिशा में आवाजाही को मजबूत करने में मदद करेगा, जो भारत के विकास की गारंटी है.

उन्होंने कहा कि यह पहल देशभर में लकड़ी और विभिन्न वन्य उत्पादों के निर्बाध परिवहन की सुविधा प्रदान करने के लिए तैयार है. इस का प्रभाव केवल कृषि वानिकी और वृक्ष उत्पादन को प्रोत्साहित करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण मूल्य श्रंखला को प्रोत्साहित करने की भी गारंटी देता है.

इस के अतिरिक्त केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने मंत्रालय द्वारा कई अन्य हालिया पहलों पर प्रकाश डाला, जैसे भारतीय वन और लकड़ी प्रमाणन योजना और वन के बाहर पेड़ पहल. इन प्रयासों का सामूहिक उद्देश्य देश में कृषि वानिकी व्यवहारों को बढ़ावा देना है.

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने इस बात पर जोर दिया कि एनटीपीएस कृषि वानिकी और जंगल के बाहर के पेड़ों के लिए एक गेमचेंजर है. लकड़ी और अन्य वन्य उत्पादों के पारगमन को सुव्यवस्थित करने के लिए शुरू किया गया है. इस से इस क्षेत्र में व्यापार करने में आसानी बढ़ने की उम्मीद है.

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सचिव लीना नंदन और वन महानिदेशक एवं विशेष सचिव चंद्र प्रकाश गोयल ध्वजारोहण कार्यक्रम के दौरान उपस्थित थे.

एनटीपीएस की शुरुआत से पहले, मार्ग के साथ विभिन्न राज्यों से पारगमन परमिट प्राप्त करना एक लंबी प्रक्रिया थी, जिस से राज्यों में लकड़ी और वन्य उत्पादों के परिवहन में अड़चनें पैदा होती थीं. प्रत्येक राज्य के अपने स्वयं के पारगमन नियम हैं, जिस का अर्थ है कि राज्यों में लकड़ी या वन्य उपज का परिवहन करने के लिए, प्रत्येक राज्य में एक अलग पारगमन पास जारी करना आवश्यक होता था.

Forestएनटीपीएस निर्बाध पारगमन परमिट प्रदान करता है, निजी भूमि, सरकारी स्वामित्व वाले वन और निजी डिपो जैसे विभिन्न स्रोतों से प्राप्त लकड़ी, बांस और अन्य वन्य उपज के राज्य के भीतर और एक राज्य से दूसरे राज्य तक, दोनों परिवहनों के लिए रिकौर्ड का प्रबंधन करता है.

एनटीपीएस को उपयोगकर्ता की सुविधा के लिए डिजाइन किया गया है, जिस में आसान पंजीकरण और परमिट अनुप्रयोगों के लिए डेस्कटौप और मोबाइल एप्लिकेशन शामिल हैं. पारगमन परमिट उन वृक्ष प्रजातियों के लिए जारी किए जाएंगे, जो विनियमित हैं, जबकि उपयोगकर्ता छूट प्राप्त प्रजातियों के लिए स्वयं अनापत्ति प्रमाणपत्र तैयार कर सकते हैं. वर्तमान में, 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने एकीकृत परमिट प्रणाली को अपनाया है, जिस से उत्पादकों, किसानों और ट्रांसपोर्टरों के लिए अंतर्राज्यीय व्यापार संचालन सुव्यवस्थित हो गया है. इस कदम से कृषि वानिकी क्षेत्र को महत्वपूर्ण प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है. एनटीपीएस को https://ntps.nic.in पर देखा जा सकता है.

हर किसान को रूपे डेबिट कार्ड

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने गुजरात के गांधीनगर में नेशनल कोआपरेटिव डेयरी फेडरेशन औफ इंडिया (एनसीडीएफआई) लिमिटेड के मुख्यालय का शिलान्यास करते समय कहा कि हमारे देश में डेयरी सैक्टर ने बहुआयामी लक्ष्यों को हासिल किया है. हम दुनियाभर में सालों से दूध उत्पादन के मामले में पहले नंबर पर हैं.

अमित शाह ने कहा कि डेयरी उद्योग में ईमार्केट को बढ़ावा देने के लिए पुरस्कार दिए गए हैं. एनसीडीएफआई के सदस्यों से उन्होंने आग्रह किया कि उन्हें उन्हे सौ फीसदी बिजनेस की ओर जाना चाहिए.

सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि अभी गुजरात में हम ने एक छोटा सा प्रयोग शुरू किया है, पंचमहल जिला डेयरी, बनासकांठा जिला डेयरी और गुजरात स्टेट कोआपरेटिव बैंक के सहयोग से हम हर किसान को रूपे कार्ड दे रहे हैं. हर गांव की डेयरी को बैंक मित्र बना कर एटीएम दे रहे हैं. साथ ही, डेयरी और हर किसान का अकाउंट जिला कोआपरेटिव बैंक में ट्रांसफर कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि अकेले बनांसकाठा जिले में 800 करोड़ रुपए की डिपोजिट बढ़ी है और 193 एटीएम कार्यरत हैं. 96 फीसदी किसान के पास रूपे डेबिट कार्ड पहुंच चुका है. अब किसान को किसी के पास जाने की जरूरत नहीं है. उन के दूध का पेमेंट सीधा जिला कोआपरेटिव बैंक बनासकांठा के अकाउंट में जमा होता है. इस से जुड़ा रूपे कार्ड उस के पास है, उन्हें अगर कहीं से कुछ भी खरीद करनी है या कैश चाहिए, तो वे अपने गांव की डेयरी के एटीएम से कैश ले सकते हैं.

अमित शाह ने कहा कि अगर यही मौडल पूरे गुजरात की हर डेयरी को केंद्र बना कर हर जिले में लागू किया जाए, तो किसान को किसी भी खरीद के लिए जेब से कैश नहीं निकालना पड़ेगा.

कोआपरेटिव का अहम रोल

गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि इनफार्मल इकोनोमी की जगह फार्मल इकोनोमी और देश के अर्थतंत्र को बढ़ावा देने में कोआपरेटिव का अहम रोल होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि हम ने कोआपरेटिव को बढ़ावा देने में कोआपरेटिव की ही भूमिका हो, इस प्रकार के अर्थतंत्र की कल्पना की है. सारे दुग्ध संघ के पदाधिकारियों को इस मौडल का अध्ययन करना चाहिए और हर जिला दुग्ध उत्पादक संघ को भेजना चाहिए, ताकि पता चल सके कि कोआपरेटिव सैक्टर की स्ट्रेंथ में कितनी बढ़ोतरी हुई है.