नई दिल्ली: केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन व श्रम और रोजगार मंत्री भूपेंद्र यादव ने देशभर में लकड़ी, बांस और अन्य वन्य उपज की निर्बाध आवाजाही के लिए पूरे भारत में नेशनल ट्रांजिट पास सिस्टम (एनटीपीएस) का आरंभ किया.
वर्तमान में, राज्य विशिष्ट पारगमन नियमों के आधार पर लकड़ी और वन उपज के परिवहन के लिए पारगमन परमिट जारी किए जाते हैं. एनटीपीएस की कल्पना “वन नेशन-वन पास” व्यवस्था के रूप में की गई है, जो पूरे देश में निर्बाध पारगमन को सक्षम बनाएगी.
यह पहल देशभर में कृषि वानिकी में शामिल वृक्ष उत्पादकों और किसानों के लिए एक एकीकृत, औनलाइन मोड प्रदान कर के लकड़ी पारगमन परमिट जारी करने को सुव्यवस्थित करेगी, जिस से व्यापार करने में आसानी होगी.
जागरूकता पैदा करने और एनटीपीएस के उपयोग और उस की सुगमता को प्रदर्शित करने के लिए वन्य उपज ले जाने वाले विशेष वाहनों को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने हरी झंडी दिखा कर रवाना किया. गुजरात और जम्मूकश्मीर से लकड़ी और अन्य वन्य उपज ले जाने वाले 2 वाहनों को हरी झंडी दिखाई गई, जो पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के लिए जाने वाले हैं. एनटीपीएस के जरीए उत्पन्न क्यूआर कोड वाले पारगमन परमिट की वैधता को सत्यापित करने और निर्बाध पारगमन की अनुमति देने के लिए विभिन्न राज्यों में चेक गेट की सुविधा मिलेगी.
फ्लैग औफ कार्यक्रम के अवसर पर भूपेंद्र यादव ने कहा कि एनटीपीएस के राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन के साथ यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है.
उन्होंने आगे यह भी कहा कि एनटीपीएस अधिक पारदर्शिता की दिशा में आवाजाही को मजबूत करने में मदद करेगा, जो भारत के विकास की गारंटी है.
उन्होंने कहा कि यह पहल देशभर में लकड़ी और विभिन्न वन्य उत्पादों के निर्बाध परिवहन की सुविधा प्रदान करने के लिए तैयार है. इस का प्रभाव केवल कृषि वानिकी और वृक्ष उत्पादन को प्रोत्साहित करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण मूल्य श्रंखला को प्रोत्साहित करने की भी गारंटी देता है.

इस के अतिरिक्त केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने मंत्रालय द्वारा कई अन्य हालिया पहलों पर प्रकाश डाला, जैसे भारतीय वन और लकड़ी प्रमाणन योजना और वन के बाहर पेड़ पहल. इन प्रयासों का सामूहिक उद्देश्य देश में कृषि वानिकी व्यवहारों को बढ़ावा देना है.
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने इस बात पर जोर दिया कि एनटीपीएस कृषि वानिकी और जंगल के बाहर के पेड़ों के लिए एक गेमचेंजर है. लकड़ी और अन्य वन्य उत्पादों के पारगमन को सुव्यवस्थित करने के लिए शुरू किया गया है. इस से इस क्षेत्र में व्यापार करने में आसानी बढ़ने की उम्मीद है.
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सचिव लीना नंदन और वन महानिदेशक एवं विशेष सचिव चंद्र प्रकाश गोयल ध्वजारोहण कार्यक्रम के दौरान उपस्थित थे.
एनटीपीएस की शुरुआत से पहले, मार्ग के साथ विभिन्न राज्यों से पारगमन परमिट प्राप्त करना एक लंबी प्रक्रिया थी, जिस से राज्यों में लकड़ी और वन्य उत्पादों के परिवहन में अड़चनें पैदा होती थीं. प्रत्येक राज्य के अपने स्वयं के पारगमन नियम हैं, जिस का अर्थ है कि राज्यों में लकड़ी या वन्य उपज का परिवहन करने के लिए, प्रत्येक राज्य में एक अलग पारगमन पास जारी करना आवश्यक होता था.
एनटीपीएस निर्बाध पारगमन परमिट प्रदान करता है, निजी भूमि, सरकारी स्वामित्व वाले वन और निजी डिपो जैसे विभिन्न स्रोतों से प्राप्त लकड़ी, बांस और अन्य वन्य उपज के राज्य के भीतर और एक राज्य से दूसरे राज्य तक, दोनों परिवहनों के लिए रिकौर्ड का प्रबंधन करता है.
एनटीपीएस को उपयोगकर्ता की सुविधा के लिए डिजाइन किया गया है, जिस में आसान पंजीकरण और परमिट अनुप्रयोगों के लिए डेस्कटौप और मोबाइल एप्लिकेशन शामिल हैं. पारगमन परमिट उन वृक्ष प्रजातियों के लिए जारी किए जाएंगे, जो विनियमित हैं, जबकि उपयोगकर्ता छूट प्राप्त प्रजातियों के लिए स्वयं अनापत्ति प्रमाणपत्र तैयार कर सकते हैं. वर्तमान में, 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने एकीकृत परमिट प्रणाली को अपनाया है, जिस से उत्पादकों, किसानों और ट्रांसपोर्टरों के लिए अंतर्राज्यीय व्यापार संचालन सुव्यवस्थित हो गया है. इस कदम से कृषि वानिकी क्षेत्र को महत्वपूर्ण प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है. एनटीपीएस को https://ntps.nic.in पर देखा जा सकता है.





उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि मंत्रालय हमेशा इस तरह की पहल का समर्थन करता रहेगा. इसी तरह प्रधानमंत्री विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (पीएम-एसटीआईएसी) के तहत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पहल का सक्रिय रूप से समर्थन कर के वन हेल्थ मिशन के लिए समर्थन भी जारी रहेगा. साथ ही, उन्होंने मनुष्यों, पशुधन और वन्यजीवों को शामिल करते हुए एकीकृत निगरानी की आवश्यकता को रेखांकित किया.
कार्यशाला में वन्यजीवों के लिए प्रस्तावित राष्ट्रीय रेफरल केंद्र के लिए विचारविमर्श किए गए फोकस क्षेत्रों पर जानकारी प्रदान की गई, जिस में शामिल हैं –
कुलपति बीआर कंबोज ने कहा कि प्राकृतिक संसाधन नई पीढ़ी की धरोहर है. प्राकृतिक खेती के मौडल को अपनाते हुए पोषणयुक्त खाद्यान्न पैदा करते हुए अपने परिवार से ही शुद्ध भोजन की शुरुआत करें.
कार्यक्रम में उपस्थित सभी किसानों, युवाओं से विधायक कन्हैयालाल चैधरी ने निवेदन किया कि कोई भी सरकार कितनी भी योजनाएं लाए, नतीजा आप को धरातल पर नहीं मिलेगा. संस्थान के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संस्थान द्वारा राजस्थान एवं देश के विभिन्न हिस्सों में अपने संस्थान के द्वारा किए जा रहे किसानों के प्रयासों को विस्तार से उपस्थित अतिथियों एवं किसानो को बताया.
कार्यक्रम में उपस्थित अन्य विशिष्ट अतिथियों एवं प्रगतिशील किसानों द्वारा भी अपने अनुभवों से उपस्थित किसानों को लाभान्वित किया गया. कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों द्वारा साधना गुलेरिया को समेकित खेती में अच्छे काम के लिए डा. आरएस परोदा किसान रत्न अवार्ड से सम्मानित किया गया, जिस में साधना गुलेरिया को 21,000 रुपया नकद पुरस्कार के साथ प्रशस्तिपत्र दिया गया, साथ में मालपुरा क्षेत्र के साथ अन्य क्षेत्र के 10 प्रगतिशील किसानों को भी प्रशस्तिपत्र के साथ 2,100 रुपए दे कर सम्मानित किया गया.
संगोष्ठी कार्यक्रम के समन्वयक डा. लीलाराम गुर्जर द्वारा बताया गया कि कार्यक्रम में पधारे अतिथियों द्वारा संस्थान में आयोजित अनुसूचित जाति उपयोजना (एससीएसपी) के 25 किसान को पांचदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन के अवसर पर प्रमाणपत्र दिया गया.
इस अवसर पर, भूमि संसाधन विभाग (डीओएलआर) ने डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई 2.0 के अंतर्गत स्पाइनलेस कैक्टस की खेती और इस के आर्थिक उपयोग को प्रोत्साहन देने में सहयोग पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), शुष्क क्षेत्रों में कृषि अनुसंधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (आईसीएआरडीए) और राजस्थान राज्य सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए.
15 राज्य सरकारों व केंद्र शासित प्रदेशों के लगभग 200 प्रतिनिधि, पैट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (एमओपीएनजी), एमओए-एफडबल्यू, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई), पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ-सीसी), डीओआरडी, खाद्य प्रसंस्करण जैसे केंद्रीय मंत्रालयों व विभागों के वरिष्ठ अधिकारी, संबंधित उद्योग प्रतिनिधि और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), आईजीएफआरए, आईसीएआरडीए जैसे अन्य प्रतिष्ठित अनुसंधान संगठन व संस्थान, सीएजेडआरआई, एनआरएए ने कार्यशाला में भाग लिया. कार्यशाला में भूमि संसाधन विभाग के सचिव, संयुक्त सचिव (वाटरशेड प्रबंधन) और वाटरशेड प्रभाग के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया.