किसानों की समृद्धि के लिए चैधरी चरण सिंह की नीतियां बहुत कारगर

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में आज भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चैधरी चरण सिंह की 121वीं जयंती मनाई गई. इस अवसर पर विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में कुलपति प्रो. बीआर कंबोज मुख्य अतिथि थे. उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित चैधरी चरण सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि चैधरी चरण सिंह किसान व कमेरा तबके के सच्चे हितैषी थे. स्वयं एक किसान व ग्रामीण परिवेश से होने के चलते वे किसानों की समस्याओं को अच्छी तरह से समझते थे. वे मानते थे कि देश के विकास का रास्ता खेतखलिहानों से हो कर गुजरता है, इसलिए उन्होंने ताउम्र किसानों और गरीबों के उत्थान के लिए संघर्ष किया.

प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री चैधरी चरण सिंह ने देश में किसानों के जीवन और स्थितियों को बेहतर बनाने के लिए कई नीतियां बनाईं. उन्होंने विभिन्न राजनीतिक पदों पर रहते हुए देश में जमींदारी प्रथा समाप्त कराना, भूमि सुधार अधिनियम लागू कराना, ऋण निमोचन विधेयक पारित कराना और केंद्र में ग्रामीण पुनरुत्थान मंत्रालय स्थापित करना जैसे अनेक महत्वपूर्ण काम किए. किसानों के लिए उन के अतुलनीय योगदान के दृष्टिगत वर्ष 2001 से 2023 दिसंबर को उन की जयंती को राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है.

उन्होंने कहा कि हमें गर्व है कि इस विश्वविद्यालय का नाम इस महान नेता के साथ जुड़ा हुआ है. हम आज उन की जयंती को किसान दिवस के रूप में मना रहे है. हमारा प्रयास है कि प्रदेश व देश के प्रत्येक किसान को इस विश्वविद्यालय में विकसित कृषि तकनीकों का लाभ पहुंचे. उन्होंने विश्वविद्यालय के शिक्षकों, वैज्ञानिकों व विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वे किसानों की समृद्धि व कल्याण के लिए सदैव प्रयत्नशील रहें.
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के विभिन्न कालेजों के अधिष्ठाताओं, निदेशकों व अन्य अधिकारियों सहित वैज्ञानिकों, कर्मचारियों व विद्यार्थियों और हौटा एवं हौंटिया के पदाधिकारियों ने भी पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह की प्रतिमा पर श्रद्धासुमन अर्पित किए.

राष्ट्रीय किसान संगोष्ठी पर किसान हुए सम्मानित

अविकानगर: 23 दिसंबर. ‘किसान दिवस’ के मौके पर केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर के सभागार में ‘राष्ट्रीय किसान संगोष्ठी‘ का आयोजन किया गया. संगोष्ठी कार्यक्रम के मुख्य अथिति स्थानीय मालपुरा टोड़ाराय सिंह नगर के विधायक कन्हैयालाल चैधरी, विशिष्ट अतिथि के रूप में सुधीर मान स्टेट मार्केटिंग मैनेजर ईफको, डा. नंदलाल, अध्यक्ष फार्मर फोरम व रिटायर्ड प्रोफैसर एग्रोनोमी, खेमाराम महरिया, बीएल मंडीवाल आदि जनप्रतिनिधि और प्रगतिशील किसान उपस्थित रहे.

संस्थान के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर द्वारा कार्यक्रम की अध्यक्षता की गई. कार्यक्रम में पधारे अतिथियों का निदेशक द्वारा स्वागतसम्मान किया गया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कन्हैयालाल चैधरी ने कार्यक्रम के आयोजक डा. अरुण कुमार तोमर को धन्यवाद देते हुए किसानों को वैज्ञानिक पद्धति से खेती एवं पशुपालन को करते हुए उस की उद्यमिता विकास की ओर ले जाने के लिए प्रेरित किया.

उन्होंने आश्वासन दिया कि हमारी सरकार राजस्थान में ईस्टर्न कैनल नहर परियोजना को जल्दी ही 2 महीने में राष्ट्रीय परियोजना घोषित करेगी, जिस से पूर्व राजस्थान में खेती एवं पशुपालन के लिए पानी की उपलब्धता बढ़ने से खेती और पशुपालन से रोजगार बढ़ेगा.

Seminarकार्यक्रम में  उपस्थित सभी किसानों, युवाओं से विधायक कन्हैयालाल चैधरी ने निवेदन किया कि कोई भी सरकार कितनी भी योजनाएं लाए, नतीजा आप को धरातल पर नहीं मिलेगा. संस्थान के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संस्थान द्वारा राजस्थान एवं देश के विभिन्न हिस्सों में अपने संस्थान के द्वारा किए जा रहे किसानों के प्रयासों को विस्तार से उपस्थित अतिथियों एवं किसानो को बताया.

उन्होंने आगे बताया कि संस्थान खेती व पशुपालन में किसानों को वैज्ञानिक दृष्टि से करने के लिए नित्य प्रशिक्षण कार्यक्रम, उन्नत नस्ल के पशुओं का वितरण, स्वास्थ्य शिविर, गिर गाय मे कृत्रिम गर्भाधान एवं जागरूकता कैंपों का आयोजन मालपुरा सहित डूंगरपुर, दौसा, बीकानेर, हनुमानगढ़, बाड़मेर, उदयपुर आदि क्षेत्रों में कर रहा है.

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि सुधीर मान द्वारा खेती में वैज्ञानिक पद्धति से खाद के उपयोग के बारे में विस्तार से जानकारी किसानों को दी गई. उन्होंने ज्यादा से ज्यादा किसानों को नैनो यूरिया के इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया.

किसानों का हुआ सम्मान

Seminarकार्यक्रम में उपस्थित अन्य विशिष्ट अतिथियों एवं प्रगतिशील किसानों द्वारा भी अपने अनुभवों से उपस्थित किसानों को लाभान्वित किया गया. कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों द्वारा साधना गुलेरिया को समेकित खेती में अच्छे काम के लिए डा. आरएस परोदा किसान रत्न अवार्ड से सम्मानित किया गया, जिस में साधना गुलेरिया को 21,000 रुपया नकद पुरस्कार के साथ प्रशस्तिपत्र दिया गया, साथ में मालपुरा क्षेत्र के साथ अन्य क्षेत्र के 10 प्रगतिशील किसानों को भी प्रशस्तिपत्र के साथ 2,100 रुपए दे कर सम्मानित किया गया.

प्रतियोगिताओं का आयोजन

राष्ट्रीय किसान संगोष्ठी कार्यक्रम के समन्वयक डा. लीलाराम गुर्जर, प्रभारी तकनीकी स्थानांतरण विभाग द्वारा भी स्वर्गीय चैधरी चरण सिंह के जीवन पर आधारित विभिन्न प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन करवा कर विजेता को पुरस्कार अथितियों द्वारा दिलवाया गया. संगोष्ठी कार्यक्रम में  मुख्य अतिथि एवं अन्य अतिथियों द्वारा फार्मर फस्र्ट प्रोजैक्ट के अंगीकृत गांव के भेड़पालक किसानों के लिए नस्ल सुधार हेतु 5 पाटनवाड़ी और मालपुरा नस्ल की भेंड़ांे का वितरण किया गया.

Seminarसंगोष्ठी कार्यक्रम के समन्वयक डा. लीलाराम गुर्जर द्वारा बताया गया कि कार्यक्रम में पधारे अतिथियों द्वारा संस्थान में आयोजित अनुसूचित जाति उपयोजना (एससीएसपी) के 25 किसान को पांचदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन के अवसर पर प्रमाणपत्र दिया गया.

अनुसूचित जाति उपयोजना के नोडल अधिकारी डा. अजय कुमार ने बताया कि मालपुरा तहसील के अनुसूचित जाति की 18 किसानों को आजीविका के लिए 2 सिरोही नस्ल की बकरियों का वितरण भी पधारे अतिथियों द्वारा किया गया. राष्ट्रीय किसान संगोष्ठी कार्यक्रम में सभागार में 500 से ज्यादा किसानों ने बढ़चढ़ कर भाग लिया, जिस में 50 किसान दौसा जिले के अनुसूचित जनजाति उपयोजना के लाभार्थी भी शामिल रहे.

राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठी कार्यक्रम के अवसर पर संस्थान के विभाग अध्यक्ष डा. रणधीर सिंह भट्ट, डा. सुरेश चंद शर्मा, डा. सत्यवीर सिंह डांगी, डा. अजीत महला, डा. अरविंद, डा. रंगलाल, डा. दुष्यंत, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी इंद्र भूषण कुमार, प्रशासनिक अधिकारी भीमसिंह, मुख्य वित्त एवं लेखा अधिकारी राजकुमार, पिल्लू मीना, लोकेश मीना, डा. अमर सिंह आदि कर्मचारी उपस्थित रहे.

बहुपयोगी कैक्टस पर कार्यशाला

नई दिल्ली: ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह ने वीडियो कौंफ्रेंस के माध्यम से नई दिल्ली में ‘‘वाटरशेड परियोजनाओं में हरित अर्थव्यवस्था के लिए कैक्टस‘‘ विषय पर एकदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला को संबोधित किया.

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने सभी प्रतिनिधियों से कैक्टस पौधा रोपने और इस के आर्थिक उपयोग पर आधारित इकोसिस्टम को वजूद में लाने के लिए इस अवसर का उपयोग करने की अपील की.

भूमि संसाधन विभाग (डीओएलआर) के सचिव, अजय तिर्की ने किसानों की आय बढ़ाने और इकोलोजिकल मुद्दों के समाधान के लिए इस तरह के एक अभिनव विचार की अवधारणा के लिए केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का आभार माना. उन्होंने राष्ट्रीय कार्यशाला के सफल आयोजन के लिए वाटरशेड डिवीजन के प्रयासों की भी सराहना की. उन्होंने राज्यों को समयबद्ध तरीके से सभी हितधारकों को शामिल करते हुए राज्य स्तर पर एकसमान कार्यशाला आयोजित करने का सुझाव दिया.

कार्यशाला ने कैक्टस की खेती और इस के आर्थिक उपयोग को प्रोत्साहन देने के लिए बैकवर्ड और फौरवर्ड लिंकेज की सुविधा प्रदान करने के लिए विशेषज्ञों, उद्यमियों, नवप्रवर्तकों, थिंकटैंक के प्रतिनिधियों और सरकार के विभिन्न विचारों को एकसाथ लाने में सहायता की.

भूमि संसाधन विभाग (डीओएलआर) एक केंद्र प्रायोजित योजना है अर्थात प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई) के वाटरशेड विकास घटक को कार्यान्वित कर रहा है. योजना का मुख्य उद्देश्य देश में वर्षा आधारित व ऊबड़खाबड़ भूमि का सतत विकास करना है. डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई का दायरा विभिन्न प्रकार के उपयुक्त पौधा रोपण की अनुमति देता है, जो वर्षा आधारित व ऊबड़खाबड़ भूमि की बहाली में सहायता करता है. कैक्टस सब से कठोर पौधों की प्रजाति है, जिस के विकास और अस्तित्व के लिए बहुत ही कम वर्षा की आवश्यकता होती है. इस के अनुसार, भूमि संसाधन विभाग (डीओएलआर) देश के व्यापक लाभ और किसानों की आय बढ़ाने के लिए ईंधन, उर्वरक, चारा, चमड़ा, भोजन आदि उद्देश्यों के लिए लाभ प्राप्त करने के लिए वर्षा आधारित व निम्नीकृत भूमि पर कैक्टस की खेती करने के लिए विभिन्न विकल्पों की खोज कर रहा है.

इस अवसर पर, भूमि संसाधन विभाग (डीओएलआर) ने डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई 2.0 के अंतर्गत स्पाइनलेस कैक्टस की खेती और इस के आर्थिक उपयोग को प्रोत्साहन देने में सहयोग पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), शुष्क क्षेत्रों में कृषि अनुसंधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (आईसीएआरडीए) और राजस्थान राज्य सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए.

वर्तमान में, देश में कैक्टस की खेती चारे के उद्देश्य तक ही सीमित है. कैक्टस के विभिन्न अन्य आर्थिक और इकोलौजिकल उपयोगों के लिए जागरूकता, प्रचार और गुणवत्तापूर्ण पौध रोपण सामग्री की उपलब्धता, आदर्श इकोसिस्टम और विपणन मार्गों पर प्रथाओं के पैकेज की सुविधा के माध्यम से इस के प्रचार की आवश्यकता है. कार्यशाला ने विभिन्न हितधारकों के बीच जागरूकता लाने और उन्हें एकदूसरे से जोड़ने में काफी सहायता की है.

भूमि संसाधन विभाग (डीओएलआर) ने पहले ही ‘डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई के अंतर्गत वाटरशेड परियोजनाओं में स्पाइनलेस कैक्टस की खेती व पौध रोपण को बढ़ावा देने‘ के लिए दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं और बायोगैस के उत्पादन और अन्य उपयोग के लिए कैक्टस की खेती के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेश जम्मूकश्मीर और लद्दाख को प्रसारित कर दिया है.

कार्यशाला में भाग लेने वाले सभी प्रतिनिधियों को दिशानिर्देशों की एक प्रति भी प्रदान की गई.

राष्ट्रीय अंतःविषय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईआईएसटी), तिरुवनंतपुरम, केरल ने कार्यशाला स्थल पर प्रतिनिधियों के लाभ के लिए कैक्टस चमड़े से तैयार विभिन्न वस्तुओं जैसे जूते, बैग, जैकेट, चप्पल आदि का प्रदर्शन किया. सभी प्रतिनिधियों के लिए कैक्टस फल से तैयार जूस और कैक्टस सलाद भी परोसा गया.

कार्यशाला का उद्देश्य केंद्र सरकार, राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों, उद्योगों, विशेषज्ञों जैसे सभी हितधारकों को एकसाथ लाना और इस के विभिन्न आर्थिक उपयोगों का लाभ लेने के लिए शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों और कैक्टस आधारित उद्योगों में कैक्टस की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए सहयोग करना और एक रूपरेखा तैयार करना है.

कैक्टस आधारित सीबीजी पौधों को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बनाने के लिए एमओपीएनजी की एसएटीएटी, सीबीओ योजनाओं का उपयोग करने के लिए एकसाथ लाने के दृष्टिकोण पर भी बल दिया गया. प्राकृतिक गैस में सीबीजी के अनिवार्य मिश्रण के बारे में 25 नवंबर, 2023 को घोषित भारत सरकार की नीति से देश में सीबीजी के उत्पादन और खपत को भी प्रोत्साहन मिलेगा.

राज्य सरकारों ने इस बात पर भी बल दिया कि बड़े पैमाने पर कैक्टस के वृक्षारोपण के लिए एमजीएनआरईजीएस योजना निधि को प्रभावी ढंग से एकत्रित किया जा सकता है.

15 राज्य सरकारों व केंद्र शासित प्रदेशों के लगभग 200 प्रतिनिधि, पैट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (एमओपीएनजी), एमओए-एफडबल्यू, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई), पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ-सीसी), डीओआरडी, खाद्य प्रसंस्करण जैसे केंद्रीय मंत्रालयों व विभागों के वरिष्ठ अधिकारी, संबंधित उद्योग प्रतिनिधि और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), आईजीएफआरए, आईसीएआरडीए जैसे अन्य प्रतिष्ठित अनुसंधान संगठन व संस्थान, सीएजेडआरआई, एनआरएए ने कार्यशाला में भाग लिया. कार्यशाला में भूमि संसाधन विभाग के सचिव, संयुक्त सचिव (वाटरशेड प्रबंधन) और वाटरशेड प्रभाग के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया.

प्रतिनिधियों ने प्रस्तुतियां दीं और कैक्टस की खेती और इस के आर्थिक और पारिस्थितिक उपयोग जैसे संपीड़ित बायोगैस, जैव उर्वरक, जैव चमड़ा, चारा, भोजन, फार्मास्युटिकल लाभ, कार्बन क्रेडिट आदि के उत्पादन के विभिन्न मुद्दों पर विचारविमर्श किया.

प्रतिभागी राज्यों ने भी अपनेअपने राज्यों में कैक्टस की खेती के बारे में अपनी प्रारंभिक तैयारी प्रस्तुत की. कार्यशाला के दौरान उपस्थित उद्योग प्रतिनिधियों ने भूमि संसाधन विभाग (डीओएलआर) के प्रयासों की सराहना की और कैक्टस की खेती और कैक्टस आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने में गहरी रुचि दिखाई.

भेड़ बकरी पालन में जागरूक बन करें विकास

अविकानगर: केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर में जगन्नाथ यूनिवर्सिटी चाकसू जयपुर के 70 एग्रीकल्चर स्नातक के स्टूडैंट्स का एक दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण कार्यक्रम अपनी फैकल्टी डा. जितेंद्र कुमार शर्मा, डा. रामावोतर शर्मा, इंजीनियर एंजेलो डेनिश के साथ आयोजित किया गया.

निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर के अनुसार कृषि व पशुपालन में भविष्य में स्टूडैंट्स को ज्यादा से ज्यादा जागरूक कर ही इस में उद्यमिता का विकास किया जा सकता है, इसलिए स्टूडैंट्स ने भ्रमण के दौरान संस्थान के दुंबा भेड़, अविशान भेड़, बकरी एवं खरगोशपालन इकाई के विजिट के साथ टैक्नोलौजी पार्क, मैडिसिनल गार्डन, हौर्टिकल्चर, चारा एवं पशुओं के लिए आवश्यक चारा वृक्ष व अन्य पोषण प्रबंधन के बारे में जान कर वहां पर उपस्थित संस्थान के कर्मचारियों के साथ संस्थान मे चल रहे शोध कार्य को जाना.

एटिक सैंटर के तकनीकी कर्मचारी मोहन सिंह द्वारा स्टूडैंट्स को संस्थान का एक दिवसीय भ्रमण के तहत विभिन्न जगह जैसे वूल प्लांट, सैक्टर्स, प्रदर्शनी हाल, फिजिलौजी आदि का भी भ्रमण कराया गया

17वा दीक्षांत समारोह : शिक्षा और कृषि पर विशेष ध्यान देना होगा

उदयपुर : 20 दिसंबर, 2023. प्रदेश के राज्यपाल कलराज मिश्र ने विवेकानंद सभागार में आयोजित महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के 17वें दीक्षांत समारोह को संबोधित किया. उन्होंने दीक्षांत समारोह में 864 स्नातक (बीएससी), 201 स्नातकोत्तर (एमएससी) व 74 विद्या वाचस्पति छात्रछात्राओं को दीक्षा प्रदान करने के साथ ही उपाधियां 42 स्वर्ण पदक से नवाजा.

राज्यपाल ने इस वर्ष का कुलाधिपति स्वर्ण पदक दीक्षा शर्मा, एमएससी, कृषि (सस्य विज्ञान) को प्रदान किया.

इस कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि शिक्षा और कृषि पर विशेष ध्यान दे कर ही हम सही माने में राष्ट्र को समृद्ध बना सकते हैं. राष्ट्र की प्रगति का मूल आधार खाद्य और पोषण सुरक्षा ही है. हरित क्रांति और दुग्ध क्रांति के बाद देश खाद्य व पोषण सुरक्षा में आज आत्मनिर्भर जरूर बन गया है, लेकिन यह अंत नहीं है. हमें अभी विकसित भारत के स्वप्न को साकार करना है. इस के लिए हमें कृषि निर्यात को बढ़ाना होगा. यह भी ध्यान रखना होगा कि भूमि की उर्वर शक्ति और जैव विविधता पर खतरा न मंडराए.

उन्होंने आगे कहा कि प्रति व्यक्ति खाद्य उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि के उपरांत भी आबादी का एक बड़ा तबका अभी भी अल्पपोषण व कुपोषण की विपदा झेल रहा है.

कृषि में महिलाओं की खास भूमिका

राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि कृषि में महिलाओं की भूमिका आज भी महत्वपूर्ण है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के शोध से पता चलता है कि प्रमुख फसलों के उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी 75 फीसदी, बागबानी में 79 फीसदी, फसल कटाई के उपरांत के कामों में 51 फीसदी और पशुपालन व मत्स्यपालन में 95 फीसदी है. इसी के मद्देनजर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 15 अक्तूबर को महिला कृषक दिवस मनाने की पहल की है.

दुग्ध उत्पादन में अव्वल

कार्यक्रम में डा. आरसी अग्रवाल, उपमहानिदेशक, कृषि शिक्षा, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने कहा कि भारतीय कृषि विविधतापूर्ण है. इस में जलवायु, मृदा, भूगर्भीय पारिस्थितिकी व वनस्पति तंत्र सम्मिलित हैं, जो सहस्त्राब्दियों से विकसित प्राकृतिक आवास, फसलों व पशुधन की विविधता तय करता है. भारत फसली पौधों की उत्पत्ति के विश्व के 8 केंद्रों में से एक है. तकरीबन 166 फसल प्रजातियां व फसलों की 320 जंगली प्रजातियों की उत्पत्ति यहां हुई.

उन्होंने आगे कहा कि देश में इस समय कुल 76 विश्वविद्यालय और 732 केवीके हैं. 8 वर्ष पूर्व तक 23 फीसदी छात्राएं कृषि शिक्षा ग्रहण कर रही थीं, जो आज बढ़ कर 50 फीसदी हो चुकी है. कृषि में महिलाओं की भागीदारी के अच्छे संकेत हैं. वर्ष 2040 तक 9.50 लाख कृषि स्नातकों की आवश्यकता होगी, जो आज 50 फीसदी ही है.

Doctorateडा. आरसी अग्रवाल ने बताया कि पशुपालन भारतीय अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग है. पशु आनुवांशिक संसाधन राष्ट्र की पारंपरिक शक्ति है. आज 221 मिलियन टन दुग्ध उत्पादन के साथ हम विश्व पटल पर प्रथम पायदान पर है. दुग्ध उत्पादन में राजस्थान ने उत्तर प्रदेश को पीछे छोड़ते हुए सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन वाले राज्य का गौरव पाया है.

उन्होंने खुशी जाहिर की कि एमपीयूएटी ने भी बकरी की 3 प्रजातियों के पंजीकरण में महती भूमिका निभाई है.

डा. आरसी अग्रवाल ने कहा कि वर्ष 1960 से आरंभ हुए कृषि विश्वविद्यालयों ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के साथ मिल कर कृषि को नई दिशा दी है. हम ने फसलों के क्षेत्र में हरित, दुग्ध में श्वेत, मत्स्य में नीली, तिलहन में पीली, उद्यानिकी व मधुमक्खीपालन में स्वर्णिम, अंडा उत्पादन में रजत, कौफी में भूरी व ऊन उत्पादन में स्लेटी क्रांतियों से एक इंद्रधनुषी परिक्रमण का निर्माण किया है. भारत की 1950-51 से अब तक की यात्रा उत्कृष्ट रही है. इस काल में हम ने उत्पादन की दृष्टि से खाद्यान्न में 6.46, उद्यानिकी में 14.36, दुग्ध में 13.06, अंडे में 76.87 व मत्स्य उत्पादन में 22 फीसदी की वृद्धि दर्ज की है. यही नहीं, वर्ष 2010 तक हम खाद्यान्न सुरक्षित राष्ट्र की श्रेणी में आ गए.

उन्होंने आगे कहा कि आज हमारी आबादी 142 करोड़ है. अनुमान के अनुसार, वर्ष 2023 तक भारत की आबादी 150 करोड़ और वर्ष 2040 तक 159 करोड़ पहुंचने की संभावना है. चिंता इस बात की है कि शहरीकरण औद्योगिकीकरण के कारण ग्रामीण श्रेत्रों में फसली क्षेत्रफल में कमी आ रही है. हम जल की दृष्टि से भी असमृद्ध देखा हैं. विश्व के ताजा पानी का मात्र 4 फीसदी हिस्सा ही हमारे पास है. ऐसे में चुनौतियों को ध्यान में रख कर योजनाएं बनानी होंगी.

उपलब्धियों में शीर्ष पर विश्वविद्यालय

Doctorateकुलपति अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि विगत एक वर्ष में विश्वविद्यालय ने अनुसंधान के अलावा विभिन्न क्षेत्रों में अनेक उपलब्धियां हासिल की हैं. विराट परिसर, श्रेष्ठ अकादमिक स्तर व शैक्षणिक गुणवत्ता के कारण आज विश्वविद्यालय की भूमिका अद्वितीय है.

प्राकृतिक खेती पर डिगरी कोर्स होगा शुरू

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि प्राकृतिक खेती पर आगामी वर्ष से विश्ववि़द्यालय कृषि स्नातक कार्यक्रम का एक कोर्स चलाएगा. साथ ही, एक प्रथम डिगरी कार्यक्रम आरंभ करने का भी विचार चल रहा है.

12 भारतीय व विदेशी पेटेंट हासिल

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने प्रमुख उपलब्धियां गिनाते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पहली बार अभिन्न तकनीक विकसित कर विगत एक वर्ष में 12 भारतीय व विदेशी पेटेंट हासिल किए. इन में प्रमुख है, बायोचार निर्माण, सौर ऊर्जा चलित आइसक्रीम गाड़ी का निर्माण, कृषि अवशेषों से हाइड्रोजनयुक्त सिनगैस का निर्माण व स्वचालित सब्जी पौध रोपण तकनीक आदि.

ड्रोन के उपयोग में प्रथम विश्वविद्यालय

उन्होंने बताया कि भारतीय विश्वविद्यालय कृषि में ड्रोन के उपयोग में राज्य का प्रथम विश्वविद्यालय है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा उपलब्ध 2 ड्रोन खरीद कर किसानों के खेतों पर छिड़काव के लिए सब से पहले उपयोग में लाना शुरू किया.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद राष्ट्रीय पशु आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो करनाल में बकरी की 3 प्रजातियां सोजत, गूजरी व करौली का पंजीकरण कराया गया, जबकि चैथी प्रजाति नैनणा के पंजीकरण की कार्यवाही अंतिम चरण में है.

Milletsमिलेट्स वर्ष में भी पहचान बनाई

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष में भी विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है. मिलेट्स पर सचित्र मार्गदर्शन, जागरूकता, रैलियां व कार्यशालाएं आयोजित की गईं. छात्रों द्वारा मिलेट्स केक ने तो राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की. मिलेट्स को भोजन में शामिल करने व मिलेट्स पर किए गए कामों के संबंध में एक कौफी टेबल बुक भी तैयार की गई.

अनेक उन्नत बीज किस्में भी रिलीज

अनुसंधान के क्षेत्र में विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मक्का की किस्म प्रताप संकर मक्का-6 को राष्ट्रीय स्तर पर चिन्हित व अनुमोदित किया गया. वर्ष 2022-23 में ज्वार, मूंगफली, चना, अश्वगंधा, असालिया, इसबगोल, एवं अफीम फसलों की 8 किस्में यथा प्रताप ज्वार-2510, प्रताप मूंगफली-4, प्रताप चना-2, प्रताप चना-3, प्रताप अश्वगंधा-1, प्रताप असालिया, प्रताप इसबगोल-1 एवं चेतक अफीम राज्य स्तरीय किस्म रिलीज समिति को अनुमोदन हेतु भेजी गई है. विभिन्न अनुसंधान परियोजनाओं द्वारा वर्ष 2023 में 76 तकनीकों का विकास कर किसानों के उपयोग के लिए सिफारिश की गई. वर्ष 2022-23 में हमारे प्रक्षेत्रों पर 4105.71 क्विंटल गुणवत्ता बीज का उत्पादन किया गया और 7.35 लाख पादप रोपण सामग्री तैयार की. साथ ही, मछली के 125 लाख स्पान, 3.20 लाख फ्राई और 1.95 लाख फिंगरलिंग का उत्पादन कर किसानों को वितरित किए गए.

‘स्प्रे एप्लीकेशन एवं प्रिसीजन एग्रीकल्चर’ विषय पर प्रशिक्षण

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सस्य विज्ञान विभाग में राष्ट्रीय कृषि उच्चतर शिक्षा परियोजना एनएएचईपी-आईडीपी के तहत ‘स्प्रे एप्लीकेशन एवं प्रिसीजन एग्रीकल्चर’ विषय पर ब्राजील के वैज्ञानिक डा. फ्रांसिस्को फग्गिओ के सहयोग से 7 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

युवा पीढ़ी को कृषि से जोड़े रखने के लिए उपयुक्त मशीनें उपलब्ध करवाना जरूरी

मुख्य वक्ता डा. फ्रांसिस्को फग्गिओ ने बताया कि ब्राजील में बड़ी जोत होने के कारण कृषि कार्य पूरी तरह मशीनों पर आधारित है व बिजाई से ले कर कटाई और प्रसंस्करण के हर आपरेशन के लिए मशीनें उपलब्ध हैं. साथ ही, उन्होंने कहा कि यदि कृषि से जुड़े कामों को सरल व सुगमता से करने के लिए उपयुक्त मशीनें उपलब्ध होंगी, तो युवा पीढ़ी को भी कृषि व्यवसाय से जोड़े रखना व कृषि को मुनाफे का व्यवसाय बनाना संभव है.

कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने उपस्थित प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि छोटी जोत वाले किसानों को भी सस्ती व उपयोगी मशीनें कृषि कार्यों के लिए उपलब्ध हों, तो कृषि के उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है और किसानों के अधिक मानवीय श्रम के तनाव को भी कम किया जा सकता है.

सस्य विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डा. एसके ठकराल ने बताया कि इस प्रशिक्षण में प्रतिभागी विद्यार्थियों को स्प्रे तकनीक के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारियां दी गईं व मशीनों के रखरखाव व बरतने के बारे में प्रैक्टिकल करवाए गए. सस्य विज्ञान विभाग में आयोजित इस ट्रेनिंग से विद्यार्थियों को लाभ होगा. इस अवसर पर प्रशिक्षण के संयोजक डा. सतपाल के अलावा विभाग के अन्य वैज्ञानिक मौजूद रहे.

कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने जीता प्रथम पुरस्कार

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहाट, असम में ‘अगली पीढ़ी की खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए तैयारी’ विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया है.

इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डा. करिश्मा नंदा एवं डा. संदीप आर्य द्वारा ‘मिलिया दुबिया-जौ आधारित कृषि वानिकी प्रणाली के माध्यम से खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता’ विषय पर लिखे गए शोधपत्र को ‘जैव विविधता, वानिकी, जैविक और प्राकृतिक खेती’ थीम के अंतर्गत पुरस्कृत किया गया है.

उन्हें इस शोधपत्र की उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए दृष्टिगत प्रथम पुरस्कार प्रदान किया गया.

इस सम्मेलन में विभिन्न प्रदेशों से आए 500 से अधिक वैज्ञानिकों ने भाग लिया, जिस का उद्घाटन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक डा. त्रिलोचन मोहपात्रा ने किया था.

ज्ञात रहे कि गत वर्ष भी इन शोधकर्ताओं ने केरल कृषि विश्वविद्यालय, त्रिशूर व शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, श्रीनगर में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में भी पुरस्कार जीते थे.

उपरोक्त वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने उन्हें बधाई व शुभकामनाएं दी. इस मौके पर ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा और कुलसचिव एवं विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल भी उपस्थित रहे.

कृषि वैज्ञानिक बनें, मनचाहे विषय में पीएचडी करें

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय विभिन्न पीएचडी कोर्सेज के लिए आयोजित प्रवेश परीक्षा शांतिपूर्वक व व्यवस्थित ढंग से संपन्न हुई. इस के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने मुख्य परिसर में बने परीक्षा केंद्र पर पुख्ता प्रबंध किए थे. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने परीक्षा केंद्र का दौरा किया और परीक्षार्थियों की सुविधा व परीक्षा के सुचारु संचालन के लिए की गई व्यवस्थाओं का भी जायजा लिया. उन के साथ दौरे में विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. बलवान सिंह मंडल, ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा व परीक्षा नियंत्रक डा. पवन कुमार भी उपस्थित रहे.

जिन पीएचडी कोर्सेज के लिए प्रवेश परीक्षा हुई, उन में विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय में एग्रीकल्चरल इकोनोमिक्स, एग्रोनोमी, एंटोमोलौजी, एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन एजुकेशन, हार्टिकल्चर, नेमाटोलौजी, जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग, प्लांट पेथोलौजी, सीड साइंस एवं टैक्नोलौजी, सायल साइंस, वेजीटेबल साइंस, एग्री. मेटीयोरोलौजी, फोरेस्ट्री, एग्री बिजनेस मैनेजमेंट व बिजनेस मैनेजमेंट; मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय में कैमिस्ट्री, बायोकैमिस्ट्री, प्लांट फिजियोलौजी, इनवायरमेंटल साइंस, माइक्रोबायोलौजी, जूलोजी, सोशियोलौजी, स्टैटिस्टिक्स, फिजिक्स, मैथमेटिक्स व फूड साइंस एंड टैक्नोलौजी, बायोटैक्नोलौजी महाविद्यालय में मोलिक्युलर बायोलौजी एंड बायोटैक्नोलौजी व बायोइन्फर्मेंटिक्स; सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय में फूड्स एंड न्यूट्रीशन, एपिरेल एंड टेक्सटाइल साइंस, एक्सटेंशन एजुकेशन एंड कम्युनिकेशन मैनेजमेंट, ह्यूमन डवलपमेंट एंड फैमिली स्टडीज व रिसोर्स मैनेजमेंट एंड कंज्यूमर साइंस; कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय में सायल एंड वाटर कंजर्वेशन इंजीनियरिंग और मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय में एक्वाकल्चर, फिशरीज रिसोर्स मैनेजमेंट, फिश प्रोसैसिंग टैक्नोलौजी व एक्वाटिक एनीमल हैल्थ मैनेजमेंट शामिल हैं.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि प्रवेश परीक्षा के लिए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में परिसर में परीक्षा केंद्र बनाया था. इस प्रवेश परीक्षा के सफल आयोजन के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से विशेष निरीक्षण दलों का गठन किया गया था. परीक्षा के दौरान प्रत्येक परीक्षार्थी की फोटोग्राफी भी की गई.

कुल 76 फीसदी परीक्षार्थियों ने परीक्षा दी, जिन में 65 फीसदी छात्राएं व 35 फीसदी छात्र शामिल रहे.

परीक्षा नियंत्रक डा. पवन कुमार ने बताया कि उपरोक्त पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए कुल 76 फीसदी परीक्षार्थियों ने परीक्षा दी, जिन में 65 फीसदी छात्राएं और 35 फीसदी छात्र शामिल रहे.

उन्होंने उम्मीदवारों व उन के अभिभावकों से अपील की कि वे उपरोक्त पीएचडी कार्यक्रमों में दाखिला संबंधित नवीनतम जानकारियों के लिए विश्वविद्यालय की वैबसाइट hau.ac.in and admissions.hau.ac.in पर नियमित रूप से चेक करते रहे.

ई-नीलामी से गेहूं और चावल को बाजार में उतारा

नई दिल्ली: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की मांगों को पूरा करने के साथसाथ बाजार में हस्तक्षेप करने के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न (गेहूं और चावल) उपलब्ध है, जिस में वर्तमान खरीफ विपणन सीजन 2023-24 में अब तक 237.43 एलएमटी चावल के बराबर 354.22 एलएमटी धान की खरीद की जा चुकी है.

गेहूं और चावल की कीमतों में मुद्रास्फीति के रुझान को कम करने के उद्देश्य से खुले बाजार में गेहूं और चावल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार भारतीय खाद्य निगम साप्ताहिक ई-नीलामी के माध्यम से गेहूं और चावल को बाजार में उतार रहा है. खुले बाजार में गेहूं उतारने का वर्तमान चरण 28.06.2023 से शुरू हुआ.

सरकार ने ओएमएसएस (डी) के तहत उतारने के लिए 101.5 एलएमटी गेहूं आवंटित किया है. एफएक्यू गेहूं और यूआरएस गेहूं के लिए आरक्षित मूल्य क्रमशः 2150 रुपए प्रति क्विंटल और 2125 रुपए प्रति क्विंटल रखा गया है. 14 दिसंबर, 2023 तक कुल 25 ई-नीलामी आयोजित की गई हैं, जिस में 48.12 एलएमटी गेहूं खुले बाजार में बेचा गया है.

इस के अतिरिक्त सरकार गेहूं को आटा में परिवर्तित करने और उस आटे को आम जनता को 27.50 रुपए प्रति किलोग्राम से अधिक नहीं के एमआरपी पर बेचने के लिए नेफेड/एनसीसीएफ/केंद्रीय भंडार/एमएससीएमएफएल जैसी अर्धसरकारी/सहकारी एजेंसियों को भी 21.50 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से गेहूं उपलब्ध करा रही है. इन एजेंसियों द्वारा 14 दिसंबर, 23 तक 86,084 एमटी गेहूं का उठाव किया जा चुका है.

एफसीआई के पास उपलब्ध चावल की अच्छी खरीद और स्टाक का उपयोग पीडीएस की आवश्यकता को पूरा करने के साथसाथ बाजार में हस्तक्षेप के लिए भी किया जाएगा.

चावल के लिए सरकार ने ओएमएसएस (डी) के तहत 3,100 रुपए प्रति क्विंटल के आरक्षित मूल्य के साथ 25 एलएमटी आवंटित किया. ई-नीलामी के माध्यम से, मूल्य स्थिरीकरण निधि द्वारा कवर की गई लागत में 200 रुपए प्रति क्विंटल के अंतर के साथ 2,900 रुपए प्रति क्विंटल की दर पर चावल की पेशकश की जाती है.

उल्लेखनीय रूप से 14 दिसंबर, 23 तक 1.19 एलएमटी चावल खुले बाजार में निजी व्यापारियों और थोक खरीदारों को बेचा गया है, जो पिछले वर्षों की तुलना में पर्याप्त वृद्धि है. एफसीआई के क्षेत्रीय कार्यालयों ने व्यापक विज्ञापन के माध्यम से इस पहल को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया. यह सुनिश्चित करने के लिए नियमित विज्ञापन किया जा रहा है कि ओएमएसएस (डी) नीति का लाभ आम जनता को मिल सके. चावल के व्यापार एवं प्रसंस्करण में शामिल सभी व्यापारी और कोई भी व्यवसायी एफसीआई/एम-जंक्शन पोर्टल पर पंजीकरण के बाद ऐसी ई-नीलामी में भाग ले सकते हैं.

हालांकि अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए बोलीदाताओं को अब 1 से 2,000 एमटी तक चावल की किसी भी मात्रा के लिए बोली लगाने की अनुमति है. केंद्रीय पूल के तहत पेश किया जाने वाला चावल उत्कृष्ट गुणवत्ता का है और बाजार में उपभोक्ताओं के लिए आसान एवं किफायती उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए व्यापारियों को ई-नीलामी में सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जाता है.

खेती और पशुपालन को बनाएं उद्योग

अविकानगर: केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविका नगर में अनुसूचित जाति उपयोजना के अंतर्गत पांचदिवसीय “उन्नत भेड़बकरी एवं खरगोशपालन” पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस मौके पर डा. अजय कुमार नोडल अफसर एससीएसपी उपयोजना ने संस्थान द्वारा मालपुरा के विभिन्न गांव में किए जा रहे काम के बारे में विस्तार से निदेशक व किसानो को जानकारी दी.

पांचदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत मालपुरा तहसील के बरोल गांव के 25 अनुसूचित जाति समाज के महिला व पुरुषों ने विभिन्न विषय नस्ल चयन, पोषण, स्वास्थ्य, प्रजनन, चारा एवं उत्पादों का बाजार के अनुसार वैल्यू एडिशन पर विस्तार से संबोधन लेक्चर्स के माध्यम से जानकारी प्राप्त की.
निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने प्रशिक्षण के समापन अवसर पर सभी से कहा कि आप बाजार की आवश्यकता के अनुसार खेती व पशुपालन करें, जिस से उन से अच्छा मुनाफा मिल सके.

Farmingउन्होंने आगे कहा कि संस्थान में जो यहां सीखा, उस को अपने फार्म पर जा कर धीरेधीरे अपनाना है और भारत सरकार की योजनाओं का लाभ लेते हुए अपनी खेती और पशुपालन को उद्यमिता की ओर ले जाए.
अंत में निदेशक द्वारा सभी किसानों को सफलतापूर्वक प्रशिक्षण समापन पर प्रमाणपत्र का वितरण किया गया. प्रशिक्षण कार्यक्रम समन्वयक डा. लीलाराम गुर्जर प्रभारी तकनीकी स्थानांतरण विभाग एवं समन्वयक डा. रंगलाल मीना द्वारा किया गया.