कृषि विश्वविद्यालय में प्लेसमेंट के लिए आयोजन

मेरठ : सरदार वल्लभभाई भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में जैन इरिगेशन प्राइवेट लिमिटेड, जलगांव, महाराष्ट्र की कंपनी द्वारा छात्रों के प्लेसमेंट हेतु एकदिवसीय इंटरव्यू कार्यक्रम का आयोजन पिछले दिनों किया गया.

इस कंपनी द्वारा प्लेसमेंट में भाग लेने वाले विभिन्न छात्रों की लिखित परीक्षा कराई गई. उस के पश्चात इंटरव्यू और साक्षात्कार के आधार पर छात्रछात्राओं का चयन किया गया.

जैन इरिगेशन प्राइवेट लिमिटेड, जलगांव, महाराष्ट्र से बिजनेस हेड डा. वीके सिंह और कंपनी के कंसलटेंट एक्स डायरेक्टर सीपीआरआई डा. वीर पाल सिंह मौजूद रहे.

कंपनी के प्रतिनिधिमंडल ने कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. केके सिंह से मुलाकात कर कंपनी की उपलब्धियों और छात्रों को दिए जाने वाले रोजगार के संबंध में विस्तार से चर्चा की.

डा. वीके सिंह ने कहा कि एक कंपनी विश्व में सब से ज्यादा टिशु कल्चर से पौधे उगाने का काम कर रही है. देश के विभिन्न प्रदेशों के साथसाथ विभिन्न जिलों में तेजी से कंपनी का विस्तार हो रहा है, जिस के कारण कृषि क्षेत्र में स्नातक डिगरीधारकों को कंपनी अपने यहां प्लेसमेंट देने में विशेष रुचि रख रही है.

उन्होंने आगे कहा कि एक कंपनी द्वारा जल्दी से जल्दी कृषि विश्वविद्यालय के साथ एक एमओयू पर सिग्नेचर किए जाएंगे, जिस से कृषि विश्वविद्यालय के छात्र जैन इरिगेशन कंपनी की प्रयोगशालाओं को देख सकें और वहां पर रह कर प्रशिक्षण ले सकें, इस की व्यवस्था की जाएगी.

आलू अनुसंधान संस्थान के पूर्व निदेशक डा. वीरपाल सिंह ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि देश में सब्जियों में आलू का एक विशेष स्थान है और आलू उत्पादन व आलू के बीज उत्पादन के क्षेत्र में जैन इरिगेशन कंपनी द्वारा विशेष योगदान दिया जा रहा है.

उन्होंने आलू उत्पादन के बारे में विस्तार से चर्चा की और छात्रछात्राओं के इंटरव्यू लिए.

कुलपति डा. केके सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा छात्रों की दक्षता विकास के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, जिस से भविष्य में छात्रों को अधिक से अधिक प्रशिक्षित कर के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों में प्लेसमेंट के द्वारा रोजगार उपलब्ध कराया जा सके.

निदेशक ट्रेनिंग व प्लेसमेंट प्रो. आरएस सेंगर ने वीरपाल सिंह एवं डा. वीके सिंह का स्वागत किया. संचालन संयुक्त निदेशक ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट प्रो. सत्य प्रकाश द्वारा किया गया. कार्यक्रम का संचालन सहनिदेशक ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट डा. डीवी सिंह द्वारा किया गया. इस अवसर पर सहनिदेशक ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट डा. शालिनी गुप्ता, डा. वैशाली और डा. शैलजा कटोच उपस्थित रहे.

खस की खेती : कम लागत में बनाए मालामाल

आजकल सौंदर्य प्रसाधनों से ले कर चिकित्सा व खानपान की वस्तुओं में सुगंधित पदार्थों का प्रयोग बढ़ने लगा है. परफ्यूम, अगरबत्ती, मिठाइयां, गुटखा, सेविंग क्रीम, मसाज क्रीम व ऐरोमा चिकित्सा में सुगंधित बनाने के लिए प्रयोग किया जाने वाला पदार्थ खस, पामारोजा, लेमनग्रास, सेट्रेनिला, मेंथा, गुलाब, केवड़ा इत्यादि से निकलने वाला तेल होता है, जिस की मांग को देखते हुए इस की खेती के क्षेत्रफल में हाल के सालों में बडी तेजी से इजाफा हुआ. इन सुगंधित फसलों की खेती कम लागत, कम श्रम व पशुओं से सुरक्षा की दृष्टि से महफूज मानी जाती है. साथ ही, इस का मार्केट में वाजिब मूल्य भी आसानी से मिल जाता है. इस वजह से सुगंधित फसलों की खेती फायदे का सौदा साबित हो रही है. इन्हीं सुगंधित फसलों में खस का तेल एक ऐसा कृषि उत्पाद है, जिस का बाजार मूल्य किसानों को अधिक लाभ देने के साथ ही लागत में कमी वाला भी है. इसलिए हमारे किसान खस की खेती को अपना कर अत्यधिक लाभ कमा सकते हैं.

खस की खेती में किसानों को जोखिम भी कम है.

खस की खेती के लिए किसी भी तरह की मिट्टी अनुकूल होती है. यहां तक कि इस को बंजर मिट्टी में भी आसानी से उगाया जा सकता है. इस की खेती के लिए सब से पहले उन्नत किस्म की अधिक तेल देने वाली किस्म की नर्सरी की आवश्यकता पड़ती है. इस के पहले से ही एक वर्ष पुरानी पौधों को तैयार कर के रखना चाहिए.

नर्सरी तैयार करने के लिए सीमैप द्वारा विकसित खस यानी वेटिवर की उन्नत किस्मों जैसे केएस-1, केएस -2, धारिणी, केशरी, गुलाबी, सिम-वृद्धि, सीमैप खस-15, सीमैप खस-22, सीमैप खुसनालिका और सीमैप समृद्धि प्रजाति का चयन किया जाना ज्यादा अच्छा होता है. इन प्रजातियों को सीमैप लखनऊ से खरीदा जा सकता है.

एक एकड़ खेत के लिए खस के तकरीबन 20,000 पौधों की आवश्यकता पडती है, जिन को नर्सरी के लिए रोपित कर अगले वर्ष अधिक क्षेत्रफल में खेती के लिए उपयोग में लाया जा सकता है.

खस को रोपित करने के पहले खेत की तैयारी पर विशेष ध्यान देना जरूरी है. इस के लिये सर्वप्रथम किसी भी प्रकार की मिट्टी, जिस में पौध रोपण करना हो, रोटावेटर या हैरो से एक जुताई कर के पाटा लगा दें. इस के बाद कल्टीवेटर से 2 जुताई कर के पाटा लगा कर मिट्टी में प्रति एकड 500 किलोग्राम जिप्सम मिलाना जरूरी है. इस के अलावा पौधों को रोपित करने के पहले फसल को दीमक से बचाने के लिए रिजेंट क्लोरोपायरीफास को 60 किलोग्राम डीएपी के साथ प्रति एकड़ खाद में मिला कर मिट्टी में मिला दे. इस से खस की जड़ों को दीमक से नुकसान पहुंचने का खतरा नहीं होता है.

खेत की तैयारी के बाद खस के पौधो को नर्सरी से एकएक पौधा अलग कर पौधे से पौधे की दूरी 1 फुट व लाइन से लाइन की दूरी डेढ़ फुट पर रखते हुए रोपित कर दें.

खस के पौधों को खेत में रोपित करने का सब से अच्छा समय फरवरी के प्रथम सप्ताह से मार्च के अंतिम सप्ताह का होता है.

खस के पौधों को खेत में रोपित करने के 2 दिन के भीतर खेत की हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए. फसल रोपण के 15 दिन बाद पुनः खेत की सिंचाई कर दें. गरमियों में हर 15 दिन पर खस के फसल की सिंचाई करते रहना जरूरी है. वर्षा ऋतु में खस की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. सितंबर माह से पुनः एक माह के अंतराल पर सिंचाई करें. इस दौरान रोपाई के समय 6 किलोग्राम डीएपी, 24 किलोग्राम पोटाश व 30 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ की दर से खेत में बो दिया जाता है. इस के बाद पुनः 4 माह बाद इसी अनुपात में खाद की बोआई करना जरूरी होता है. खस की खेती में किसी तरह की बीमारी व कीट नहीं लगता है और न ही इसे पशुओं से नुकसान पहुंचने का डर होता है.

फसल की कटाई एवं खुदाई

खस की फसल हर तरह की जमीनों में बड़ी आसानी से उगाई जाती है. यहां तक कि यह जलभराव वाले स्थानों में भी अच्छी उपज देती है. खस की जडों से सब से अधिक तेल लेने का समय जनवरीफरवरी माह का होता है, क्योंकि ठंडियों में खस की जड़ों में तेल अधिक पड़ता है.

खस की खुदाई के पहले जड़ से एक फुट ऊंचाई पर छोड़ कर उसबीके ऊपर के हिस्सों की कटाई कर दें. खस की फसल के ऊपरी हिस्सों के कटाई के बाद तुरंत ही इस की जड़ों की खुदाई करना जरूरी है, क्योंकि कटाई के बाद तुरंत खुदाई न करने से जड़ों में तेल का फीसदी घट जाता है.

जड़ों की खुदाई में अत्यधिक मेहनत की आवश्यकता होती है, इसलिए इसे जेसीबी से खुदाई करना ज्यादा अच्छा होता है. आमतौर पर एक घंटे में एक एकड़ खेत से खस की खुदाई बड़ी आसानी से हो जाती है.

खुदाई के दौरान खस की जड़ों से खेत से निकालने के लिए 20 मजदूरों की जरूरत पड़ती है, जो जड़ों को साफ कर ट्राली में लादने का काम करते हैं.

प्रोसैसिंग

खस की जड़ों से तेल निकालने के लिए सब से पहले खेत से जड़ों को लाने के बाद पहले से तैयार किए 3 फुट गहरे, 15 फुट लंबे व 8 फुट चौड़े गड्ढे में पानी भर कर उस में डाल कर 24 घंटे के लिए भीगने के लिए छोड देते हैं. इस से खस की जड़ों में स्थित तेल फूल जाता है और यह आसवन टंकी में कम समय में निकलता है. पानी में जड़ों को डालने से उस में लगी मिट्टी भी अलग हो जाती है.

 

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प्रोसैसिंग प्लांट

खस की जड़ों से तेल निकालने के लिए प्रोसैसिंग प्लांट की आवश्यकता होती है, जिस की लागत अमूमन 1.5 लाख रुपए आती है. प्रोसैसिंग प्लांट तैयार करने के लिए सब से पहले आसवन टंकी की आवश्यकता पड़ती है, जो सीमैप लखनऊ या स्थानीय कृषि यंत्र तैयार करने वालों व बेचने वालों के यहां से खरीदा जा सकती है. इस आसवन टंकी को टंकी की पेदी के अनुसार वर्गाकार या आयताकार भट्टी तैयार कर के रखा जाता है. इस के बाद एक पानी का गड्ढा तैयार कर के टंकी से पाइप निकाल कर गड्ढे में क्वायल लगा कर जोड़ा जाता है, जो तेल को ठंडा करने का काम करती है. इस के अलावा क्वायल से एक सेपोटर लगा कर गड्ढे से बाहर निकाला जाता है, जहां खस का तेल व पानी अलगअलग हो कर विशेष डिजाइन के डब्बे में इकट्ठा होता है.

इस प्रोसैसिंग यूनिट में पानी में भिगोई गई जड़ों को बाहर निकाल कर आसवन टंकी में डालते हैं. इस टंकी से एक बार में 5 क्विंटल (1बीघा) जड़ों से तेल निकाला जा सकता है. इन जड़ों को टंकी में डालने के बाद टंकी के ऊपर के ढक्कन को कस कर बंद कर दिया जाता है. इस के बाद टंकी की भट्ठी को नीचे से गरम करते हैं. लगभग 30 घंटों के बाद इस 5 क्विंटल जड़ों से तेल निकल कर सेपरेटर में इकट्ठा हो जाता है, जो लगभग 4 से 5 लिटर होता है.

इस प्रकार एक एकड़ की फसल को जड़ों से एक आसवन टंकी से तेल निकालने पर लगभग 90 घंटों का समय लगता है और एक एकड़ की फसल से 12 से 15 लिटर तेल प्राप्त होता है.

मार्केटिंग

खस के तेलों की सुगंध लंबे समय तक बनी रहने व अपने औषधीय गुण की वजह से बाजार में मांग अत्यधिक बनी हुई है. खस का तेल चामारोजा, लेमनग्रास, सेट्रेनेला, गेंधा की अपेक्षा काफी महंगा बिकता है. इस का वर्तमान बाजार रेट 12,000 रुपए से 15,000 रुपए प्रति लिटर है, जबकि इस की मांग इतनी अधिक है कि कन्नौज इत्र कारोबारियों के अलावा लखनऊ व दिल्ली के खारी बावली मार्केट के कारोबारी खुद किसानों से संपर्क कर तेल की खरीदारी करते हैं. इसलिए इस की मांग को देखते हुए किसानों को इस की खेती की तरफ जरूर ध्यान देना चाहिए.

लाभ

खस की खेती में लाभ की अपेक्षा लागत और श्रम बहुत कम है. एक एकड़ खेत के लिए इस की खेती से ले कर प्रोसैसिंग तक मात्र 45,000 रुपए की लागत आती है, जिस में सिंचाई में 10,000 रुपया, खाद में 1,000 रुपया, जबकि तेल को बेच कर एक लाख, 80 हजार रूपया प्राप्त होता है. अगर लागत को निकाल दिया जाए, तो एक लाख, 35 हजार रुपए की शुद्ध आमदनी होती है.

खस की खेती लागत और श्रम की दृष्टि से तो फायदेमंद है ही, इसे किसी प्रकार बाढ़, कीट, बीमारी या पशुओं से नुकसान पहुंचने का डर भी नहीं होता है. इसलिए खस की खेती को अपना कर हमारे किसान अपने जीवन को भी सुगंधित बना सकते हैं.

आस्ट्रेलिया और भारत कृषि क्षेत्र में मिल कर काम करेंगे

नई दिल्ली : 3 जुलाई 2023. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और आस्ट्रेलिया के कृषि, मत्स्यपालन और वानिकी मंत्री, सीनेटर मरे वाट के बीच कृषि भवन, नई दिल्ली में बैठक हुई. इस बैठक में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कृषि संबंधों को गहरा करने के अवसरों पर चर्चा की गई.

दोनों देशों के मंत्रियों ने दोनों पक्षों के बाजार पहुंच संबंधी मुद्दों के समाधान में तकनीकी टीमों के विचारविमर्श पर संतोष व्यक्त किया. साथ ही, दोनों मंत्री कृषि सहयोग के लिए प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को तय करने और आगे बढ़ने के लिए वर्ष 2023 में भारतआस्ट्रेलिया संयुक्त कृषि कार्य समूह की अगली बैठक बुलाने पर भी सहमत हुए. दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के दृष्टिकोण व नेतृत्व का उल्लेख करते हुए, मंत्रियों ने दोनों देशों के किसानों के लाभ के लिए एकदूसरे से सीख कर कृषि क्षेत्र में मिल कर काम करने की प्रतिबद्धता दोहराई.

आस्ट्रेलियाई मंत्री 2 जुलाई से 5 जुलाई, 2023 तक भारत की आधिकारिक यात्रा पर हैं. प्रारंभ में, आस्ट्रेलियाई प्रतिनिधिमंडल का स्वागत करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आस्ट्रेलिया के साथ मजबूत संबंधों और विशेष रूप से कृषि क्षेत्रों में बढ़ते व्यापार संबंधों का उल्लेख किया.

उन्होंने भारत दौरे के लिए समय निकालने के लिए आ एलस्ट्रेलियाई मंत्री को धन्यवाद दिया, क्योंकि आस्ट्रेलियाई मंत्री अपनी संसदीय प्रतिबद्धताओं के कारण हैदराबाद में जी-20 कृषि मंत्रियों की बैठक में शामिल नहीं हो पाए थे.

उन्होंने जी-20 विचारविमर्श के दौरान और विशेष रूप से “अंतर्राष्ट्रीय मिलेट एवं अन्य प्राचीन अनाज अनुसंधान पहल (महर्षि)” के समर्थन के लिए आस्ट्रेलिया को धन्यवाद दिया.

आस्ट्रेलियाई मंत्री वाट ने जी-20 कृषि मंत्रियों की बैठक की सफलतापूर्वक मेजबानी करने के लिए कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को बधाई दी और जी-20 कृषि मंत्रियों की बैठक में शामिल न हो पाने के लिए खेद व्यक्त किया. उन्होंने दोनों देशों के बीच बढ़ते कृषि व्यापार संबंधों की सराहना की और अन्य क्षेत्रों में भी सहयोग का विस्तार करने की इच्छा व्यक्त की.

पूसा संस्थान के 504 बिस्तरों वाले अंतर्राष्ट्रीय छात्रावास ‘मधुमास’ का शुभारंभ

नई दिल्ली : 3 जुलाई 2023. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय छात्रावास ‘मधुमास’ का शुभारंभ कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किया.

इस मौके पर उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र की चुनौतियों पर विजय प्राप्त करने व इन के समाधान के साथ देशदुनिया की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में किसानों के साथ ही हमारे कृषि वैज्ञानिकों की भूमिका महत्वपूर्ण है.

समारोह में मुख्य अतिथि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 504 बिस्तरों वाले छात्रावास के शुभारंभ पर प्रसन्नता जताई और कहा कि देश में शिक्षा के बहुत से आयामों के बीच कृषि शिक्षा को चुनना एवं पूसा संस्थान में प्रवेश लेना यहां के विद्यार्थियों के जीवन की दिशा को सुखद बना देगा. उन्होंने कहा कि आज देश के करोड़ों किसानों की जबां पर भी पूसा संस्थान का नाम है और इस की अपनी ख्याति है. हम सब का प्रयास है कि देश की आजादी के अमृत काल में यह संस्थान, अंतर्राष्ट्रीय संस्थान के रूप में स्थापित हो, जिस की शुरुआत इस आधुनिक छात्रावास के शुभारंभ के साथ हो गई है.

 

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उन्होंने कहा कि कृषि का क्षेत्र हम सब के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. कृषि क्षेत्र में आज हम जिस सौपान पर खड़े हुए हैं, वहां तक पहुंचने में किसानों के साथ ही वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, लेकिन बदलते परिवेश और जलवायु परिवर्तन के दौर में और आने वाले कल में बढ़ने वाली मांग के दृष्टिगत व दुनिया की अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए निश्चित रूप से हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है.

उन्होंने यह भी कहा कि एक समय था, जब हम दुनिया से सीखना चाहते थे, लेकिन आज बड़ी संख्या में अन्य देश कृषि के मामले में भारत से सीखना चाहते हैं, भारत के रास्ते पर चलना चाहते हैं, तो ऐसी स्थिति में हम सब लोगों की जिम्मेदारियां और भी बढ़ जाती हैं. दूसरे देशों को जब भी जरूरत होगी तो भारत उन की सहायता के लिए खड़ा होगा.

मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश में आई, जिस का समावेश कृषि शिक्षा में हो, इस के लिए काफी काम किया गया है, जो विद्यार्थियों के भविष्य को निखारने में बहुत मददगार सिद्ध होगा.

उन्होंने आगे बताया कि प्राकृतिक खेती के लिए अलग से सिलेबस तैयार कर कृषि शिक्षा में जोड़ा जा रहा है, जो निश्चित रूप से वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप होगा.

कैमिकल फर्टिलाइजर से बचते हुए, वैकल्पिक रूप से प्राकृतिक खेती व जैविक खेती को बढ़ावा देने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि इस से किसानी के साथ ही देश को भी हर तरह से फायदा ही होगा.

कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक व डेयर के सचिव डा. हिमांशु पाठक और आईएआरआई के निदेशक डा. अशोक कुमार सिंह ने भी विचार रखे. कार्यक्रम में अन्य अधिकारी, कर्मचारी व कृषि के विद्यार्थी भी मौजूद थे. मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर व कैलाश चौधरी ने छात्रावास प्रांगण में पौधारोपण किया एवं फूड कोर्ट का शुभारंभ भी किया. इस छात्रावास में एकल शैया वाले 400 कमरे, स्नानागार, रसोई सहित एकल शैया वाले 56 कमरे व 48 फैमिली अपार्टमेंट हैं, जिन में 504 छात्रों के रहने की व्यवस्था है. छात्रावास परिसर में व्यायामशाला, रेस्टोरेंट, सौर ऊर्जा प्रणाली, वर्षा जल संचयन प्रणाली, जनरेटर आधारित पावर बैकअप, आरओ प्रणाली आधारित पेयजल, अग्निशामक व्यवस्था, पार्किंग क्षेत्र, लिफ्ट प्रणाली जैसी सभी आधुनिक सुविधाएं हैं.

औषधीय एवं सगंध पौधों की उन्नत प्रौद्योगिकी पर ट्रेनिंग के लिए करें आवेदन

लखनऊ : सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ द्वारा “आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण औषधीय एवं सगंध पौधों की उन्नत प्रौद्योगिकी” विषय पर भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक के सहयोग से 23-25 अगस्त, 2023 के मध्य एक प्रशिक्षण-सह-प्रदर्शन कार्यक्रम आयोजित कर रहा है.

इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से सगंध घास, खस, नीबूघास, रोशाघास, मिंट, तुलसी, जिरेनियम, अश्वगंधा, कालमेघ, पचौली एवं कैमोमिल इत्यादि फसलों की कृषि प्रौद्योगिकियों एवं आसवन विधियों की विस्तृत जानकारी दी जाएगी.

इस कार्यक्रम में व्याख्यान के साथ ही साथ उन के रोपण विधियों पर प्रदर्शन भी किया जाएगा.

प्रशिक्षण कार्यक्रम में औषधीय एवं सगंध पौधों की गुणवत्ता की जांच और उन के बाजार की भी जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी.

इस कार्यक्रम में कोई भी किसान, प्रसार कार्यकर्ता, उद्यमी एवं अन्य, जो भी इन विषयों की जानकारी प्राप्त करने का इच्छुक हो, भाग ले सकते हैं. इस ट्रेनिंl में भाग लेने के लिए 3,000 रुपए का शुल्क Director, CIMAP, Lucknow को भारतीय स्टेट बैंक, लखनऊ की मुख्य शाखा में खाता संख्या 30267691783, IFSC कोड SBIN0000125, MICR Code 226002002 में 19 जुलाई, 2023 तक भेज कर अपना पंजीकरण सुनिश्चित करा सकते हैं और इस का विस्तृत प्रमाण, आवेदनपत्र एवं एक पहचानपत्र के साथ training@cimap.res.in पर भेजा जा सकता है. इस शुल्क में पंजीकरण सामग्री एवं दोपहर का शाकाहारी भोजन शामिल है. प्रतिभागी को अपने रहने की व्यवस्था स्वयं करनी होगी. पंजीकरण प्रथम आगत- प्रथम स्वागत के आधार पर किया जाएगा.

अधिक जानकारी के लिए 0822-2718694,606, 598, 637, 699, 596 पर संपर्क कर सकते हैं. इस ट्रेनिंग के लिए सीटों की कुल संख्या 60 प्रतिभागी तक सीमित है. प्रतिभागियों की संख्या के आधार पर पंजीकरण अंतिम तिथि से पहले भी बंद किए जा सकते हैं.

वर्षा जल संरक्षण इकाइयों का उद्घाटन , होगा 1 करोड़ लीटर पानी रिचार्ज

जयपुर: महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अखिल भारतीय समन्वित कृषिरत महिला अनुसंधान परियोजना द्वारा गोदित गांव गुडली में 10 वर्षा जल संरक्षण इकाई का उद्घाटन डॉ मृदुला देवी, निदेशक, केंद्रीय कृषिरत  महिला संस्थान द्वारा किया गया. यह वर्षा जल संरक्षण इकाइयाँ स्थानीय गांव में प्रदूषित हुए जल को शुद्ध करने के उद्देश्य से परियोजना द्वारा स्थापित की  गई है. इसके साथ ही गांव में बेरोजगार महिलाओं को रोजगार हेतु मुर्गी पालन को बढ़ावा देने के लिए 50 महिलाओं को चूजे वितरित किए गए, जिससे महिलाएं आत्मनिर्भर बने.

प्रत्येक वर्षा जल संरक्षण इकाई से 100000 लीटर वर्षा जल भू जल में रिचार्ज होगा जिसका बाजार मूल्य 20 लाख रूपये होता है . इस तरह इन सभी इकाइयों से होने वाले वर्षा जल जो रिचार्ज होगा उसका बाजार मूल्य एक करोड़ होता है. इससे सभी इकाइयों का भू जल शुद्ध भी होगा जिसकी यह नितांत आवश्यकता है.

यह जानकारी तकनीकी सहायक, नगर के वाटर हीरो डॉ पी सी जैन ने दी है. निदेशक ने महिलाओं को घर पर उद्यम शुरू कर आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया व उपलब्ध संसाधनों को देखते हुए संभावित उद्यम के य द्वारा गत पांच वर्षों में स्थानीय गांव में हुए कार्यों का ब्यौरा प्रस्तुत किया एवं वर्षा जल संरक्षण इकाई स्थापित करने के उद्देश्य को बताया. साथ ही महिलाओं को मुर्गी पालन के लिए प्रेरित किया. डॉ गायत्री तिवारी ने अंत में धन्यवाद ज्ञापित किया. कार्यक्रम में डॉ सुधा बाबेल, डॉ हेमू राठौड़, डॉ विशाखा सिंह, डॉ स्नेहा जैन, डॉ सीमा डांगी चारु नागर व प्रियंका भाटी का सफल योगदान रहा.  कार्यक्रम में कुल 50 महिलाओं व 20 बच्चों ने भाग लिया.

संभागीय किसान महोत्सव में एमपीयूएटी :  किसानों के महाकुंभ में बही एमपीयूएटी की ज्ञानगंगा

उदयपुर : 26 जून 2023. उदयपुर के बलीचा स्थित कृषि उपज मंडी सबयार्ड में आयोजित 2 दिवसीय संभाग स्तरीय किसान महोत्सव का आगाज धूमधाम से हुआ. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस किसान महोत्सव का उद्घाटन किया. संभाग स्तरीय किसानों के महाकुंभ में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की 20 से अधिक स्टाल लगाई गई, जिन पर विश्वविद्यालय में विकसित नवीनतम कृषि तकनीकों से संभाग भर से आए किसानों को रूबरू करवाया गया.

मेला स्थल पर उपस्थित कृषि विश्वविद्यालय एमपीयूएटी के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि विश्वविद्यालय की विभिन्न इकाइयों में संचालित कृषि अनुसंधान परियोजनाओं मुख्यतः भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा प्रायोजित अखिल भारतीय समन्वित कृषि अनुसंधान परियोजनाओं, जिन में मुख्यतः मशरूम उत्पादन एवं अनुसंघान, खरपतवार नियंत्रण, जैविक खाद, जैविक खेती, जैविक कीटनाशक, मोटे अनाजों पर संचालित परियोजना, विभिन्न प्रकार की कंदीय फसलों, गेहूं, जो, मूंगफली, ज्वार, मक्का, बीजीय फसलों, उद्यानिकी फसलों, फूलों की खेती, कृषि अभियांत्रिकी, मृदा एवं जल संरक्षण अभियांत्रिक, रोबोटिक्स, आभासी तकनीकी, इंटरनेट औफ थिंग्स, सेंसर आधारित खेती, समन्वित खेती पद्धति, कृषि यांत्रिकी विभाग एवं परियोजना में विकसित अनेक कृषि यंत्रों का प्रर्दशन, सामुदायिक विज्ञान और कृषक महिला विकास से संबंधित परियोजनाओं, कटाई के उपरांत खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा, सोलर ऊर्जा चालित विभिन्न यंत्रों, सोलर चालित पंप, साइकिल, सोलर ड्रायर इत्यादि तकनीकों का विस्तृत प्रर्दशन किया गया.

इस अवसर पर एमपीयूएटी में विकसित विभिन्न पशु नस्लों प्रतापधन मुरगी, बकरी की नस्लें, खरगोश, बटेर व मछलीपालन स्टाल में मछली की विभिन्न खाने योग्य और रंगीन मछलियां की पालन योग्य प्रजातियों का प्रदर्शन किया गया, जिस में विभिन्न उम्र के किसानों ने विशेष रुचि दिखाई.

प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरए कौशिक ने बताया कि किसानों ने विश्वविद्यालय द्वारा विकसित विभिन्न फसलों के बीज की किस्में लगाने के लिए अपनी रुचि दिखाई है. अनुसंधान निदेशक अरविंद वर्मा ने बताया कि एमपीयूएटी की विभिन्न अनुसंधान तकनीकों को जानने एवं अपनाने में किसानों की रुचि देखी गई. दिनभर इन स्टालों पर किसानों का रेला लगा रहा. किसानों के विभिन्न सवालों के जवाब कृषि वैज्ञानिकों ने मौके पर ही दिए और इस अवसर पर सवालजवाब के लिए विशेष रुप से आयोजित जाजम चौपाल में विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने कृषि, पशुपालन, मछलीपालन, बीज उत्पादन, फसल संरक्षण, जैविक खेती, फसल संरक्षण कीट व्याधि नियंत्रण और उद्यानिकी फसलों से संबंधित विभिन्न सवालों के जवाब दे कर किसानों को संतुष्ट किया.

नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन-इंडिया के साथ मिल कर नवाचारों पर काम करेगी एमपीयूएटी

उदयपुर : महाराणा प्रताप यूनिवर्सिटी औफ एग्रीकल्चर एंड टैक्नोलौजी और नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन-इंडिया (एनआईएफ) ने एक समझौता ज्ञापन में प्रवेश किया है. एनआईएफ विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त निकाय है, जिस का कार्यालय गांधीनगर, गुजरात में है.

यह जमीनी तकनीकी नवाचारों और उत्कृष्ट पारंपरिक ज्ञान को मजबूत करने के लिए भारत की राष्ट्रीय पहल है. इस का मिशन जमीनी तकनीकी नवप्रवर्तकों के लिए नीति और संस्थागत स्थान का विस्तार कर के भारत को एक रचनात्मक और ज्ञान आधारित समाज बनने में मदद करना है.

एमपीयूएटी कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि इस समझौता ज्ञापन के माध्यम से दोनों संस्थान शैक्षणिक और अनुसंधान सहयोग के माध्यम से एक समावेशी नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के लिए सहयोग करने पर सहमत हुए हैं. इस समझोते से छात्रों और विश्वविद्यालय की फैकल्टी को समाज के लिए उपयोगी नवीन परियोजनाओं पर काम करने (मूल्यवर्धन और सत्यापन) का अवसर मिलेगा.

एमपीयूएटी की फैकल्टी और छात्र अपने नवाचारों को विपणन योग्य समाधानों में बदलने के लिए जमीनी स्तर और छात्र नवप्रवर्तकों को अपना परामर्श व समर्थन प्रदान करेंगे. एनआईएफ में अनुसंधान कार्य करने के लिए छात्रों/शोधकर्ताओं का आदानप्रदान जमीनी स्तर के उत्पादों के सत्यापन और मूल्यवर्धन से संबंधित अनुसंधान और/या समाज की अपूर्ण जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए किया जा सकता है.

डा. अरविंद सी. रानाडे, निदेशक, एनआईएफ और सुधांशु सिंह, रजिस्ट्रार, एमपीयूएटी, उदयपुर ने कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक, प्रो. महेश कोठारी, निदेशक योजना और विस्तार, प्रो. पीके सिंह, अधिष्ठाता सीटीएई, डा. सांवल सिंह मीना, विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ संकाय सदस्य की उपस्थिति में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक, डा. अरविंद सी. रानाडे और सुधांशु सिंह ने उल्लेख किया कि समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए सहयोग को सर्वोत्तम स्तर तक पहुंचाने के लिए प्रत्येक संस्थान का पूर्ण सहयोग दिया जाएगा.

किसानों की मेहनत, वैज्ञानिकों की कुशलता व सरकार की नीतियों से रिकौर्ड उत्पादन

नई दिल्ली : 26 जून 2023. कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय/विभाग, राज्यों/संघ राज्‍य क्षेत्रों एवं अन्य सरकारी स्रोत एजेंसियों से प्राप्त जानकारी के आधार पर संकलित, बागबानी फसलों के क्षेत्र व उत्पादन के संबंध में वर्ष 2021-22 के अंतिम आंकड़े और वर्ष 2022-23 के प्रथम अग्रिम अनुमान जारी किए गए हैं. वर्ष 2021-22 में कुल बागबानी उत्पादन रिकौर्ड 347.18 मिलियन टन हुआ है, जो वर्ष 2020-21 के उत्पादन से 12.58 मिलियन टन (3.76 फीसदी) अधिक है. वर्ष 2022-23 में कुल बागबानी उत्पादन रिकौर्ड 350.87 मिलियन टन होने का (प्रथम अग्रिम) अनुमान है, जो वर्ष 2021-22 (अंतिम) की तुलना में 3.69 मिलियन टन की वृद्धि (1.06 फीसदी से अधिक) है.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के कुशल नेतृत्व और मार्गदर्शन में हमारे किसान भाईबहनों की अथक मेहनत, वैज्ञानिकों की कुशलता और केंद्र सरकार की किसान हितैषी नीतियों व राज्य सरकारों के सहयोग से देश में रिकौर्ड उत्पादन संभव हो रहा है.

बागबानी फसलों के क्षेत्र व उत्पादन के संबंध में वर्ष 2021-22 (अंतिम आंकड़े) की मुख्य बातें:

वर्ष 2021-22 में कुल बागबानी उत्पादन रिकौर्ड 347.18 मिलियन टन हुआ, जो वर्ष 2020-21 के उत्पादन से लगभग 12.58 मिलियन टन (3.76 फीसदी) अधिक है. वहीं वर्ष 2021-22 में फलों का उत्पादन 107.51 मिलियन टन हुआ, जबकि वर्ष 2020-21 में 102.48 मिलियन टन का उत्पादन हुआ था.

सब्जियों का उत्पादन पिछले वर्ष के 200.45 मिलियन टन की तुलना में 4.34 फीसदी की वृद्धि के साथ वर्ष 2021-22 में 209.14 मिलियन टन हुआ.

वर्ष 2021-22 में प्याज का उत्पादन 31.69 मिलियन टन हुआ, जबकि वर्ष 2020-21 में 26.64 मिलियन टन का उत्पादन हुआ था.

वर्ष 2021-22 में आलू का उत्पादन 56.18 मिलियन टन हुआ, जो इस के गत वर्ष करीब इतना ही था.

वर्ष 2022-23 (प्रथम अग्रिम अनुमान) की मुख्य बातें :

वर्ष 2022-23 में कुल बागबानी उत्पादन 350.87 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो वर्ष 2021-22 (अंतिम) की तुलना में लगभग 3.69 मिलियन टन (1.06 फीसदी अधिक) की वृद्धि है.

फलों, सब्जियों, मसालों, फूलों, सुगंधित और औषधीय पौधों और वृक्षारोपण फसलों के उत्पादन में पिछले वर्ष की तुलना में वृद्धि का अनुमान है.

फलों का उत्पादन वर्ष 2021-22 में 107.51 मिलियन टन की तुलना में 107.75 मिलियन टन होने का अनुमान है.

सब्जियों का उत्पादन 212.53 मिलियन टन होने का अनुमान है, जबकि वर्ष 2021-22 में 209.14 मिलियन टन था.

प्याज का उत्पादन पिछले वर्ष के 31.69 मिलियन टन की तुलना में 31.01 मिलियन टन होने का अनुमान है.

आलू का उत्पादन 59.74 मिलियन टन होने का अनुमान है, जबकि वर्ष 2021-22 में यह 56.18 मिलियन टन था.

टमाटर का उत्पादन वर्ष 2021-22 में 20.69 मिलियन टन की तुलना में 20.62 मिलियन टन होने का अनुमान है.

सुगंधित व औषधीय पौधों का उत्पादन वर्ष 2021-22 में 664 हजार टन की तुलना में 680 हजार टन होने का अनुमान है.

कुल बागबानी
2020-21 (अंतिम)
2021-22(अंतिम)
2022-2023 (प्रथम अग्रिम अनुमान)

क्षेत्रफल (मिलियन हेक्टेयर में)
27.48
28.04
28.28

उत्पादन (मिलियन टन में)
334.60
347.18
350.87

तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार-2022 के लिए नामांकन आमंत्रित, 14 जुलाई, 2023 तक कर सकते हैं आवेदन

नई दिल्ली : भारत सरकार युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय ने तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार 2022 (नेशनल एडवेंचर अवॉर्ड्स) के लिए नामांकन आमंत्रित किया है. भारत सरकार का युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय साहसिक क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों की उपलब्धियों को पहचानने और युवाओं में सहनशक्ति, जोखिम लेने, सहयोगात्मक टीम वर्क की भावना विकसित करने और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में त्वरित, तैयार और प्रभावी प्रतिक्रिया के लिए प्रोत्साहित करने के लिए “तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार” (टीएनएनएए) नामक राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार प्रदान करती है.

मंत्रालय ने टीएनएनएए 2022 के लिए नामांकन 15 जून, 2023 से 14 जुलाई, 2023 तक पोर्टल https://awards.gov.in के माध्यम से आमंत्रित किया है. पुरस्कार के लिए दिशानिर्देश युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय की वैबसाइट पर निम्नलिखित URL https://yas.nic.in/youth-affairs/inviting-nonations-tenzing-norgay-national-adventure-award-2022-15th-june-2023-14th पर उपलब्ध है.

कोई भी व्यक्ति जिस ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है और जिस में नेतृत्व के उत्कृष्ट गुण हैं, साहसिक अनुशासन की भावना है और साहसिक कार्य के एक विशेष क्षेत्र जैसे भूमि, वायु या जल (समुद्र) में निरंतर उपलब्धि हासिल की हो, उपरोक्त पोर्टल के माध्यम से अंतिम तिथि यानी 14 जुलाई, 2023 से पहले पुरस्कार के लिए आवेदन कर सकते हैं.

पुरस्कार में एक कांस्य प्रतिमा, एक प्रमाणपत्र, एक रेशमी टाई/एक साड़ी के साथ एक ब्लेजर और 15 लाख रुपए की पुरस्कार राशि शामिल है. भारत सरकार द्वारा अर्जुन पुरस्कारों के साथ विजेताओं को पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं. आमतौर पर यह पुरस्कार लैंड एडवेंचर, वाटर (समुद्र) एडवेंचर, एयर एडवेंचर और लाइफ टाइम अचीवमेंट नामक चार श्रेणियों में दिया जाता है.

पिछले 3 वर्षों की उपलब्धियों को 3 श्रेणियों में अर्थात लैंड एडवेंचर, वाटर (समुद्र) एडवेंचर, एयर एडवेंचर के लिए माना जाता है और लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार के लिए पूरे कैरियर की उपलब्धि पर विचार किया जाता है.