2 और सीर मछलियों की पहचान

समुद्री मत्स्यपालन क्षेत्र में एक सफलता के साथ भाकृअनुप-केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) के शोधकर्ताओं ने सीर मछली की 2 और प्रजातियों की पहचान की है, जो सब से अधिक मांग और उच्च मूल्य वाली समुद्री मछली है. उन्होंने अरेबियन स्पैरो सीर मछली (स्कोम्बरोमोरस एविरोस्ट्रस) नाम की एक प्रजाति की खोज की, जो विज्ञान के लिए पूरी तरह से नई थी और दूसरी, रसेल स्पौटेड सीर मछली (स्कोम्बरोमोरस लेपड्र्स) को पुनर्जीवित किया, जो पहले स्पौटेड सीर मछली का पर्याय थी.

भाकृअनुप-सीएमएफआरआई के प्रधान वैज्ञानिक डा. ईएम अब्दुस्समद के नेतृत्व में वर्गीकरण से जुड़े वैज्ञानिकों की एक टीम के निष्कर्षों के अनुसार, चित्तीदार दिखने वाली मछली (स्कोम्बेरोमोरस गुट्टाटस), जिसे कभी एक ही प्रजाति का माना जाता था, 3 अलगअलग प्रजातियों का एक जटिल समूह है. इन में नई खोजी गई द्रष्टा मछली, पुनर्जीवित द्रष्टा मछली और मौजूदा चित्तीदार द्रष्टा मछली शामिल हैं. इस खोज के साथ भारतीय जल में सब से अधिक मांग वाली सीर मछली प्रजातियों की कुल संख्या मौजूदा 4 प्रजातियों से बढ़ कर 6 हो गई है.

अरेबियन स्पैरो सीयर मछली (नई प्रजाति) है और रसेल की चित्तीदार द्रष्टा मछली (पुनर्जीवित प्रजाति) हैं. यह खोज भारतीय तट के किनारे पाई जाने वाली चित्तीदार मछली पर एक व्यापक वर्गीकरण अध्ययन से सामने आई है. अध्ययन में तट के विभिन्न क्षेत्रों से एकत्र की गई इन मछलियों की आकृति विज्ञान और आनुवंशिक संरचना में काफी भिन्नता पर जानकारी दी गई.

नई प्रजाति को इस की विशिष्ट पक्षी चोंच जैसी थूथन के कारण भाकृअनुप-सीएमएफआरआई टीम द्वारा अरेबियन स्पैरो सीर मछली का सामान्य नाम दिया गया था. यह मैंगलोर के उत्तर में अरब सागर तट पर निवास करता है और उपलब्ध वैज्ञानिक जानकारी के आधार पर इस का वितरण अरब की खाड़ी तक फैला हुआ है. अन्य 2 का वितरण नागपट्टिनम के उत्तर में बंगाल की खाड़ी के तट पर था, जिस में अंडमान सागर और चीन सागर शामिल थे.

ये 3 सीर मछली प्रजातियां आकार में छोटी हैं और ज्यादातर निकटवर्ती पानी में पाई जाती हैं. उन का स्वादिष्ठ स्वाद और उच्च बाजार मूल्य उन्हें एक बेशकीमती मछली बनाते हैं.

इस खोज से समुद्री मत्स्यपालन की संभावना बढ़ेगी. साथ ही, मछलीपालकों की आमदनी में भी इजाफा होगा.

डा. अब्दुस्समद ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जो समुद्री जैव विविधता के बारे में हमारी समझ को बढ़ाती है और देश के समुद्री मत्स्यपालन क्षेत्र में कई तरीकों से योगदान करने की क्षमता रखती है. उन्होंने आगे कहा कि यह उपलब्धि समुद्री वर्गीकरण और मत्स्यपालन अनुसंधान में एक महत्वपूर्ण मील के पत्थर को दर्शाती है, जो भारतीय तट के साथ समृद्ध एवं विविध समुद्री जीवन पर भी जानकारी देती है.

विदेशी बागबानी पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी

बेंगलुरु: भाकृअनुप-भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान (आईआईएचआर), बेंगलुरु में ‘‘विदेशी और कम उपयोग की गई बागबानी फसलें: प्राथमिकताएं एवं उभरते रुझान‘‘ पर 17 अक्तूबर से 19 अक्तूबर, 2023 तक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया.

कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने प्रोफैसर डा. संजय कुमार सिंह, निदेशक, भाकृअनुप-आईआईएचआर, बेंगलुरु, डा. एनके कृष्ण कुमार, पूर्व उपमहानिदेशक (बागबानी विज्ञान), भाकृअनुप, डा. जेसी राणा, देश के प्रतिनिधि, एलायंस औफ बायोवर्सिटी इंटरनैशनल और डा. वीबी पटेल, सहायक महानिदेशक (फल एवं रोपण फसलें), भाकृअनुप की उपस्थिति में सम्मेलन का उद्घाटन किया.

कर्नाटक के राज्यपालज थावरचंद गहलोत ने विदेशी और कम उपयोग वाली फसलों के टिकाऊ उत्पादन के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकियों के बारे में किसानों और अन्य हितधारकों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए भाकृअनुप-आईआईएचआर, बेंगलुरु की सराहना की.

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि बागबानी फसलों का उत्पादन साल 1950- 51 में 25 मिलियन टन से 14 गुना बढ़ कर तकरीबन 350 मिलियन टन हो गया है और खाद्यान्न उत्पादन से भी आगे निकल गया है.

राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने कहा कि आने वाले दिनों में देश कृषि, बागबानी, दुग्ध उत्पादन सहित सभी क्षेत्रों में चमकेगा और विश्व गुरु बनेगा.

इस अवसर पर पांच प्रकाशन जारी किए गए और राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने लाइसेंसधारक अर्का कमलम आरटीएस बेवरेज के प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) प्रस्तुत किया.

सैमिनार में शामिल प्रमुख सिफारिशें हैं:

मुख्यधारा के अनुसंधान एवं विकास संस्थानों में कम उपयोग वाली फसलों पर अनुसंधान कार्यक्रमों को समायोजित करने के लिए टास्क फोर्स समितियों का गठन किया जा सकता है. एफएओ के सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए पोषण सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए जैव पूर्वेक्षण और कम उपयोग वाली फसलों के मूल्यवर्धन के क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास को मजबूत किया जा सकता है. इंटरनैशनल सैंटर फौर अंडर यूटिलाइज्ड क्रौप्स, यूके के अनुरूप महत्वपूर्ण अपितु कम उपयोग वाली बागबानी फसलों के लिए भाकृअनुप-आईआईएचआर में एक उत्कृष्टता केंद्र (सीओई) स्थापित किया जा सकता है.

फसल संग्रहालयों की स्थापना के माध्यम से कम उपयोग वाली फल फसलों के संरक्षण को मुख्यधारा में लाने के लिए राष्ट्रीय और साथ ही वैश्विक नैटवर्क की स्थापना और जैव विविधता को आजीविका के अवसरों से जोड़ने के लिए कम उपयोग वाली फल फसलों के संरक्षक किसानों की पहचान एवं उन्हें मान्यता देना. पीपीवी और एफआरए संबद्ध आईटीके के साथ कम उपयोग वाली बागबानी फसलों का पंजीकरण शुरू करना शामिल था.

निर्यात के लिए गुंजाइश प्रदान करने वाले सीएसआईआर संस्थानों के सहयोग से फार्मास्युटिकल और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए कम उपयोग की गई सब्जियों का उपयोग कर के पोषक तत्वों से भरपूर भोजन व उत्पादों के विकास के माध्यम से छिपी हुई भूख को हल करने के लिए कम उपयोग की गई सब्जियों सहित खाद्य स्रोतों के विविधीकरण पर जोर दिया जाना चाहिए.

नई संभावित देशी और कम उपयोग वाली सजावटी, औषधीय, सुगंधित और मसाला फसलों की पहचान करने और उन के उत्पादन, संरक्षण व कटाई के बाद प्रबंधन प्रथाओं को विकसित करने और सौंदर्य प्रसाधन, न्यूट्रास्यूटिकल्स एवं फार्माकोलौजी के लिए उन के मूल्य की आवश्यकता पर जोर दिया गया.

एफपीओ को प्रोत्साहित कर के पहचानी गई विदेशी और कम उपयोग वाली बागबानी फसलों के लिए समर्पित समूहों का विकास और घाटे को कम करने एवं रिटर्न को अधिकतम करने के लिए मूल्यवर्धन के लिए पायलट पौधों के साथ प्रभावी डेटाबेस व एकीकृत बाजार विकसित करना.

डा. टी. जानकीराम, कुलपति, डा. वाईएसआर बागबानी विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश समापन सत्र के मुख्य अतिथि थे. इस के अलावा डा. बीएनएस मूर्ति, पूर्व बागबानी आयुक्त, भारत सरकार, सम्मानित अतिथि थे.

सेमिनार में अमेरिका, आस्ट्रेलिया, यूके, इजराइल, मलयेशिया, मैक्सिको, कोरिया और जांबिया जैसे देशों के प्रतिनिधियों सहित कुल 400 प्रतिनिधियों ने भाग लिया. प्रतिभागियों में 71 विश्वविद्यालयों का प्रतिनिधित्व करने वाले 24 राज्यों के लगभग 220 वैज्ञानिक, 160 छात्र और 40 आरए और एसआरएफ शामिल थे. सैमिनार में 150 किसानों और उद्यमियों ने भी हिस्सा लिया.

झींगा लार्वा फीड के उत्पादन के लिए साझेदारी

चेन्नई : भाकृअनुप- केंद्रीय खारा जल जीवपालन संस्थान (CIBA ), चेन्नई ने मेसर्स एमिटी एम्पिरिक टैक्नोलौजीज एलएलपी, कर्नाटक के साथ स्वदेशी झींगा लार्वा फीड के उत्पादन के लिए एक रणनीतिक गठबंधन बनाया. कार्यक्रम का आयोजन भाकृअनुप-सीबा की संस्थान प्रौद्योगिकी प्रबंधन इकाई द्वारा किया गया था.

सफल हैचरी संचालन के लिए गुणवत्तापूर्ण लार्वा फीड उत्पादन केंद्रीय तत्व हैं. भारत में उपयोग किया जाने वाला लार्वा फीड पूरी तरह से आयातित और महंगा है. इसलिए टिकाऊ जलीय कृषि के लिए झींगा उत्पादन अब लागत प्रभावी एवं स्वदेशी लार्वा फीड समय की मांग है.

पिछले 5 सालों में सीबा में केंद्रित अनुसंधान प्रयासों के परिणामस्वरूप सीबा श्रिम्प लारविप्लस का विकास हुआ. भारत सरकार के मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अनुरूप झींगा लार्वा फीड उत्पादन को बढ़ावा देना एक प्राथमिकता है.

भाकृअनुप-सीबा ने 6 नवंबर, 2023 को सीबा के निदेशक डा. कुलदीप के. लाल की उपस्थिति में स्वदेशी झींगा लार्वा फीड के निर्माण के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं.

उन्होंने एक्वा फीड क्षेत्र में आर्थिक लाभ, नवाचार, विकास, स्थिरता और प्रतिस्पर्धात्मकता के महत्व पर जोर दिया, जिस का लक्ष्य अनुभव और अनुभवों को साझा कर के दीर्घकालिक और लाभकारी यात्रा के लक्ष्य को हासिल किया जाए.

एमिटी एम्पिरिक टैक्नोलौजीज के सीईओ मोहन रेड्डी ने अपने हैचरी और खेती के अनुभव को गिनाया और सीबा के झींगा लार्वा प्लस के साथ प्राप्त उत्साहजनक परीक्षण परिणामों को साझा किया. इस तकनीकों से हितधारकों को लाभ पहुंचाने और मौजूदा झींगा लार्वा फ़ीड के लिए एक आयात विकल्प बनाने के अपने इरादे को साझा किया.

कृषि 24/7 – कृषि का अजब उपकरण

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (डीएएंडएफडब्ल्यू) ने वाधवानी इंस्टीट्यूट फौर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (वाधवानी एआई) के सहयोग से कृषि 24/7 प्लेटफार्म को विकसित किया है, जो कृषि सूचना निगरानी एवं विश्लेषण के लिए Google.org की सहायता से चलने वाला स्वचालित पहला कृत्रिम बुद्धिमता-संचालित समाधान है. कृषि 24/7 प्लेटफार्म, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग को प्रासंगिक सूचनाओं की पहचान करने, समय पर सावधान करने और किसानों के हितों की रक्षा के उद्देश्य से त्वरित कार्रवाई करने और बेहतर निर्णय लेने के माध्यम से स्थायी कृषि विकास को बढ़ावा देने में सहायता पहुंचाएगा.

कृषि 24/7 का कार्यान्वयन सही समय पर उचित निर्णय लेने में सहायता के उद्देश्य से कृषि संबंधित रुचि के कृषि समाचार, लेखों की पहचान और प्रबंधन करने के लिए एक कुशल तंत्र की आवश्यकता को पूरा करता है.

यह प्लेटफार्म कई भाषाओं में समाचार, लेखों को स्कैन करता है और उन का इंगलिश में अनुवाद करता है. कृषि 24/7 समाचार व लेखों से आवश्यक जानकारी को ढूंढ़ कर निकालता है. इन में शीर्षक, फसल का नाम, कार्यक्रम का प्रकार, तिथि, स्थान, गंभीरता, सारांश और स्रोत का आधार शामिल होता है.

कृषि 24/7 यह सुनिश्चित करता है कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को वैब पर प्रकाशित होने वाली प्रासंगिक घटनाओं की समय पर जानकारी प्राप्त हो जाए.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सचिव मनोज आहूजा ने इस पहल की शुरुआत करते हुए कहा कि सूचना निगरानी की यह प्रणाली न केवल हमें जानकारी प्रदान करती रहेगी, बल्कि हमें अपना विचार तय करने के लिए सशक्त माध्यम देगी.

उन्होंने निरंतर सुधार की बात भी की और अपना सुझाव देते हुए कहा कि जैसेजैसे हम आगे बढ़ेंगे, वैसेवैसे इस प्रणाली को विस्तार देने के लिए तैयार रहेंगे.

मनोज आहूजा ने कहा कि जिस तरह से दुनिया विकसित होती जा रही है, उसी तरह से हमारे उपकरण एवं माध्यम भी विकसित होने चाहिए.

सचिव मनोज आहूजा ने कहा कि आइए, हम यह सुनिश्चित करने के लिए मिल कर काम करें कि यह निगरानी प्रणाली एक गतिशील उपकरण बन जाए, जो सूचना के बदलते परिदृश्य के अनुकूल हो और हमारे किसानों को बेहतर सेवाएं देने के हमारे मिशन में एक मूल्यवान संपदा के तौर पर उपलब्ध हो.

संयुक्त सचिव (प्रसारण) सैमुअल प्रवीण कुमार ने सूचनाओं के इस घटक के कार्यों के बारे में संक्षेप में बताया, जिस का उद्देश्य कृषि इकोसिस्टम पर औनलाइन प्रकाशित समाचार, लेखों की लगभग वास्तविक समय की निगरानी प्रदान करना है, जो कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के हित की खबरों की पहचान करने और सूचनाओं का चुनाव करने, चेतावनी जारी करने और समय पर कार्रवाई करने के लिए एक विस्तृत तंत्र तैयार करने में सहायता करेगा.

वाधवानी इंस्टीट्यूट फौर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के संयुक्त निदेशक (एजी) जेपी त्रिपाठी ने कहा कि हम मौजूदा चुनौतियों के लिए कृत्रिम बुद्धिमता से संचालित होने वाला तंत्र बनाना चाहते हैं, जहां सूचनाओं की निगरानी और सत्यापन हस्तचालित व समय लेने वाला रहा है.

उन्होंने बताया कि उन के संस्थान द्वारा बीमारी के प्रकोप के लिए एकसमान घटनाओं को परखने वाले और विश्लेषण संबंधी प्लेटफार्म को राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के साथ सफलतापूर्वक संचालित किया गया है.

जेपी त्रिपाठी ने यह भी कहा कि हम कृषि एवं किसान कल्याण विभाग और केंद्र सरकार के नियंत्रण वाले अन्य निकायों के साथ सहयोग कर के, उन्हें प्रभावी उपकरणों से लैस करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो उन्नत डेटा संचालित निर्णयों के माध्यम से सूचना प्रवाह को बेहतर बना देते हैं.

एपीडा का लुलु हाइपरमार्केट के साथ तालमेल

नई दिल्ली: खाड़ी के सहयोगी देशों (जीसीसी) में कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने वैश्विक खुदरा बाजार की प्रमुख कंपनी लुलु हाइपरमार्केट एलएलसी के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं.

नई दिल्ली में आयोजित वर्ल्ड इंडिया फूड (डब्ल्यूआईएफ), 2023 में 3 नवंबर, 2023 को एपीडा के अध्यक्ष अभिषेक देव और लुलु समूह के अध्यक्ष सहप्रबंध निदेशक यूसुफ अली एमए के बीच इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए. इस समझौता ज्ञापन का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर ब्रांड इंडिया को बढ़ावा देना है.

इस समझौता ज्ञापन के साथ एपीडा पूरे जीसीसी में मोटे अनाजों (मिलेट्स) सहित भारतीय कृषि उत्पादों को बढ़ावा देगा, क्योंकि लुलु ग्रुप इंटरनेशनल (एलएलसी) की जीसीसी, मिस्र, भारत और सुदूर पूर्व में 247 लुलु स्टोर और 24 शापिंग मौल के साथ मौजूदगी है.

लुलु समूह मध्य पूर्व और एशिया में सब से तेजी से बढ़ती खुदरा श्रृंखला है.

Luluयह समझौता ज्ञापन लुलु हाइपरमार्केट रिटेल श्रृंखला के साथ एपीडा के निर्धारित उत्पादों के लिए प्रचारात्मक गतिविधियों की भी सुविधा प्रदान करेगा.

समझौता ज्ञापन के दस्तावेज के अनुसार, लुलु समूह अपने खुदरा दुकानों में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों की एपीडा की टोकरी में उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला को सक्रिय रूप से बढ़ावा देगा और प्रदर्शित करेगा.

एपीडा के उत्पादों को प्रमुखता से प्रदर्शित करने और उन की दृश्यता बढ़ाने के लिए लुलु समूह के स्टोर के भीतर एक समर्पित शेल्फ स्थान (विशेष खंड या गलियारे) आवंटित किए जाएंगे.

एपीडा और लुलु समूह संवादात्मक कार्यक्रमों, नमूनाकरण/चखने के अभियानों, मौसम के अनुसार फलसब्जियों के लिए विशिष्ट अभियानों, नए उत्पाद लौंगच और हिमालयी/उत्तरपूर्वी राज्यों से आने वाले उत्पादों, जैविक उत्पादों आदि के प्रचार के जरीए उपभोक्ताओं के साथ जुड़ेंगे.

एपीडा ने हिमालयी और उत्तरपूर्वी राज्यों की निर्यात संबंधी संभावनाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लुलु समूह के साथ अरुणाचल प्रदेश विपणन बोर्ड, जम्मू स्थित शेर ए कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय और मेघालय कृषि विपणन बोर्ड के समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने में भी मदद की.

प्रचार संबंधी गतिविधियां गंतव्य देश में उपभोक्ताओं के लिए प्रजातीय, अनूठे और जीआई-टैग वाले कृषि उत्पादों के लाभों के बारे में जानकारी एवं जागरूकता का अधिकतम प्रसार करने में सक्षम होगी.

उत्पाद संबंधी पेशकशों को बेहतर बनाने के लिए उपभोक्ताओं से सक्रिय रूप से प्रतिक्रियाएं मांगी जाएंगी.

इस समझौता ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि एपीडा और लुलु समूह संयुक्त रूप से अपने स्टोरों के अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क के जरीए कृषि उत्पादों के निर्यात को सुविधाजनक बनाने के अवसरों का पता लगाने के लिए काम करेंगे, जिस से भारतीय कृषि उत्पादों की वैश्विक पहुंच और उपभोक्ताओं तक इस की सुलभता में विस्तार होगा.

एपीडा और लुलु समूह, दोनों संयुक्त रूप से विदेश में स्थित भारतीय मिशनों और संबंधित हितधारकों के सहयोग से क्रेताविक्रेता बैठक (बीएसएम), आर-बीएसएम/बी2बी बैठकें, व्यापार मेले/रोड शो जैसे निर्यातोन्मुखी प्रचार कार्यक्रमों की सुविधा प्रदान करेंगे.

इस समझौता ज्ञापन के दस्तावेज में यह कहा गया है कि लुलु समूह विभिन्न आयातक देशों की आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पादों की लेबलिंग में अपनी सहायता प्रदान करेगा. साथ ही, इस में यह भी कहा गया है कि दोनों पक्ष वाणिज्यिक मामलों और लागू शर्तों को पारस्परिक रूप से तय करेंगे.

विश्व के सब से विश्वविद्यालय में है गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय

पंतनगर (उत्तराखंड) : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने उत्तराखंड के पंतनगर में स्थित गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के 35वें दीक्षांत समारोह में भाग लिया और उसे संबोधित किया.

इस अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि देश में कृषि शिक्षा को बढ़ावा देने और कृषि क्षेत्र के विकास के लिए गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी. स्थापना के बाद से यह कृषि शिक्षा, अनुसंधान और विकास के लिए एक उत्कृष्ट केंद्र बन गया है.

उन्होंने आगे कहा कि 11000 एकड़ क्षेत्र में फैला यह विश्‍व के सब से बड़े विश्वविद्यालयों में से एक है.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि नोबल पुरस्कार विजेता डा. नौर्मन बोरलौग ने पंतनगर विश्वविद्यालय को ‘हरित क्रांति का अग्रदूत’ नाम दिया था.

Pant Universityइस विश्वविद्यालय में नौर्मन बोरलौग द्वारा विकसित मैक्सिकन गेहूं की किस्मों का परीक्षण किया गया था. इस ने हरित क्रांति की सफलता में प्रभावी भूमिका निभाई है. कृषि क्षेत्र से जुड़ा हर व्यक्ति ‘पंतनगर बीज’ के बारे में जानता है. पंतनगर विश्वविद्यालय में विकसित बीजों का उपयोग देशभर के किसानों द्वारा फसल की गुणवत्ता और उपज बढ़ाने के लिए किया जाता है.

उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि पंतनगर विश्वविद्यालय देश के कृषि क्षेत्र के विकास में अग्रणी भूमिका निभाता रहेगा.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने यह भी कहा कि कृषि के क्षेत्र में हो रहे अनुसंधानों को किसानों तक पहुंचाना कृषि विकास के लिए आवश्‍यक है. उन्हें यह जान कर प्रसन्‍नता हुई कि यह विश्वविद्यालय विभिन्न जलवायु अनुकूल प्रौद्योगिकियों के माध्यम से ग्रामीण समुदाय की सहायता कर रहा है.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जोर दे कर कहा कि शिक्षा प्रणाली को वैश्विक स्तर पर हो रहे प्रौद्योगिकीय, आर्थिक और सामाजिक विकास के साथ तालमेल बिठाने की आवश्‍यकता है.

उन्होंने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों को ऐसे स्नातक तैयार करने चाहिए, जो उद्योग के लिए तैयार हों और जो रोजगार सृजित कर सकें एवं प्रौद्योगिकी केंद्रित विश्‍व में प्रतिस्पर्धा कर सकें.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने साफ शब्दों में कहा कि आज दुनिया जलवायु परिवर्तन और मृदा क्षरण जैसी समस्याओं से निबटने के लिए प्राकृतिक और जैविक खेती की ओर बढ़ रही है. पर्यावरणअनुकूल भोजन की आदतों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है.

Pant Universityउन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय के शोधकर्ता, वैज्ञानिक और संकाय सदस्य हमारे भोजन की आदतों में मोटे अनाज को प्राथमिकता देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी का उपयोग आवश्यक है.

उन्होंने फसल प्रबंधन, नैनो-प्रौद्योगिकी, जैविक खेती आदि के माध्यम से कृषि में डिजिटल समाधान शुरू करने के लिए पंतनगर विश्वविद्यालय की सराहना की. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय कृत्रिम आसूचना के उपयोग के लिए भी कदम उठा रहा है. उन्हें यह जान कर प्रसन्‍नता हुई कि इस विश्वविद्यालय ने अपना स्वयं का कृषि ड्रोन विकसित किया है, जो कुछ ही मिनटों में कई हेक्टेयर भूमि पर छिड़काव कर सकता है. उन्होंने विश्वास जताया कि ड्रोन प्रौद्योगिकी का लाभ शीघ्र ही किसानों को मिल सकेगा.

27.50 रुपए प्रति किलोग्राम पर ‘भारत’ आटा

नई दिल्ली : केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण, वस्त्र और वाणिज्य तथा उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कर्तव्य पथ, नई दिल्ली से पिछले दिनों ‘भारत’ ब्रांड के अंतर्गत गेहूं के आटे की बिक्री के लिए 100 मोबाइल वैन को हरी झंडी दिखाई. यह आटा 27.50 रुपए प्रति किलोग्राम की एमआरपी पर उपलब्ध होगा.

यह भारत सरकार द्वारा आम उपभोक्ताओं के कल्याण के लिए उठाए गए कदमों की श्रृंखला में नवीनतम है. ‘भारत’ ब्रांड आटा की खुदरा बिक्री से बाजार में किफायती दरों पर आपूर्ति बढ़ेगी और इस महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ की कीमतों में निरंतर कमी लाने में सहायता मिलेगी.

‘भारत’ आटा केंद्रीय भंडार, नेफेड और एनसीसीएफ के सभी फिजिकल और मोबाइल आउटलेट पर उपलब्ध होगा और इस का विस्तार अन्य सहकारी/खुदरा दुकानों तक किया जाएगा.

ओपन मार्केट सेल स्कीम (ओएमएसएस (डी)) के अंतर्गत 2.5 लाख मीट्रिक टन गेहूं 21.50 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से अर्धसरकारी और सहकारी संगठनों यानी केंद्रीय भंडार, एनसीसीएफ और नेफेड को आटा में परिवर्तित करने और इसे जनता को बेचने के लिए आवंटित किया गया है. ‘भारत आटा’ ब्रांड के अंतर्गत एमआरपी 27.50 रुपए प्रति किलोग्राम से अधिक नहीं होगी.

मंत्री पीयूष गोयल ने इस अवसर पर कहा कि केंद्र के हस्तक्षेप से आवश्यक वस्तुओं की कीमतें स्थिर हो गई हैं. पिछले दिनों टमाटर और प्याज की कीमतें कम करने के लिए अनेक कदम उठाए गए थे. इस के अतिरिक्त उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए केंद्र द्वारा केंद्रीय भंडार, नेफेड और एनसीसीएफ के माध्यम से 60 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर ‘भारत दाल’ को भी उपलब्ध कराया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि इन सभी प्रयासों से किसानों को भी काफी फायदा हुआ है. किसानों की उपज केंद्र द्वारा खरीदी जा रही है और उस के बाद उपभोक्ताओं को रियायती दर पर उपलब्ध कराई जा रही है.

उन्होंने जोर दे कर कहा कि केंद्र के हस्तक्षेप से विभिन्न वस्तुओं की कीमतें स्थिर हो गई हैं. प्रधानमंत्रीमोदी का विजन उपभोक्ताओं के साथसाथ किसानों की भी मदद करने का है.

भारत सरकार ने आवश्यक खाद्यान्नों की कीमतों को स्थिर करने के साथसाथ किसानों को उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं.

भारत दाल (चना दाल) पहले से ही इन 3 एजेंसियों द्वारा अपने फिजीकल और/या खुदरा दुकानों से एक किलोग्राम पैक के लिए 60 रुपए प्रति किलोग्राम और 30 किलोग्राम पैक के लिए 55 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेची जा रही है. प्याज भी 25 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर बेचा जा रहा है.

अब, ‘भारत’ आटे की बिक्री प्रारंभ होने से उपभोक्ता इन दुकानों से आटा, दाल के साथसाथ प्याज भी उचित और किफायती मूल्यों पर प्राप्त कर सकते हैं.

भारत सरकार के नीतिगत हस्तक्षेपों का उद्देश्य किसानों के साथसाथ उपभोक्ताओं को भी लाभ पहुंचाना है. भारत सरकार किसानों के लिए खाद्यान्न, दालों के साथसाथ मोटे अनाज और बाजरा का एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) तय करती है. पीएसएस (मूल्य समर्थन योजना) को लागू करने के लिए राष्ट्रव्यापी खरीद अभियान चलाया जाता है. यह किसानों को एमएसपी का लाभ सुनिश्चित करता है. आरएमएस 23-24 में 21.29 लाख किसानों से 262 लाख मीट्रिक टन गेहूं घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 2125 रुपए प्रति क्विंटल पर खरीदा गया. खरीदे गए गेहूं का कुल मूल्य 55679.73 करोड़ रुपए था. केएमएस 22-23 में 124.95 लाख किसानों से ग्रेड ‘ए’ धान के लिए घोषित एमएसपी 2060 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर 569 लाख मीट्रिक टन चावल खरीदा गया. खरीदे गए चावल का कुल मूल्य 1,74,376.66 करोड़ रुपये था.

खरीदा गया गेहूं और चावल प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत देश में लगभग 5 लाख एफपीएस के नेटवर्क के माध्यम से लगभग 80 करोड़ पीडीएस लाभार्थियों को पूरी तरह से निशुल्क प्रदान किया जाता है. इस के अलावा तकरीबन 7 लाख मीट्रिक टन मोटे अनाज/बाजरा भी एमएसपी पर खरीदा गया और 22-23 में टीपीडीएस/अन्य कल्याण योजनाओं के अंतर्गत वितरित किया गया.

टीपीडीएस के दायरे में नहीं आने वाले आम उपभोक्ताओं के लाभ के लिए अनेक उपाय किए गए हैं. किफायती और उचित मूल्य पर ‘भारत आटा’, ‘भारत दाल’ और टमाटर, प्याज की बिक्री एक ऐसा उपाय है. अब तक 59,183 मीट्रिक टन दाल की बिक्री हो चुकी है, जिस से आम उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है.

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ओएमएसएस (डी) के अंतर्गत गेहूं की बिक्री के लिए राष्ट्रव्यापी साप्ताहिक ई-नीलामी चला रहा है. इन साप्ताहिक ई-नीलामी में केवल गेहूं प्रोसैसर (आटा चक्की/रोलर आटा मिल) ही भाग ले सकते हैं.

एफसीआई सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य के अनुसार, एफएक्यू और यूआरएस गेहूं क्रमशः 2,150 रुपए और 2125 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बिक्री के लिए पेशकश कर रहा है. व्यापारियों को ई-नीलामी में भाग लेने की अनुमति नहीं है, क्योंकि सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि खरीदे गए गेहूं को सीधे संसाधित किया जाए और आम उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर जारी किया जाए. साप्ताहिक ई-नीलामी में प्रत्येक बोलीदाता 200 मीट्रिक टन तक ले सकता है.

एफसीआई ओएमएसएस (डी) के अंतर्गत साप्ताहिक ई-नीलामी में बिक्री के लिए 3 लाख मीट्रिक टन गेहूं दे रहा है. सरकारी निर्देशों के अनुसार, एफसीआई अब तक 65.22 लाख मीट्रिक टन गेहूं खुले बाजार में जारी कर चुका है.

भारत सरकार ने गेहूं की कीमतों को कम करने के लिए उठाए गए उपायों की श्रृंखला के हिस्से के रूप में ओएमएसएस (डी) के अंतर्गत बिक्री के लिए पेश किए जाने वाले गेहूं की कुल मात्रा को दिसंबर, 2023 तक 57 लाख मीट्रिक टन के बजाय मार्च 2024 तक 101.5 लाख मीट्रिक टन तक बढ़ा दिया है.

यदि आवश्यक हुआ, तो 31 मार्च, 2024 तक बफर स्टाक से 25 लाख मीट्रिक टन (101.5 लाख मीट्रिक टन से अधिक) तक गेहूं की अतिरिक्त मात्रा उतारने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है.

जमाखोरी पर लगाम

पर्याप्त घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गेहूं के निर्यात पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया गया है. सरकार ने जमाखोरी को रोकने के लिए थोक विक्रेताओं/व्यापारियों, प्रोसैसरों, खुदरा विक्रेताओं और बड़ी श्रृंखला के खुदरा विक्रेताओं जैसी विभिन्न श्रेणियों की संस्थाओं द्वारा गेहूं के स्टाक रखने पर भी सीमाएं लगा दी हैं. गेहूं के स्टाक होल्डिंग की नियमित आधार पर निगरानी की जा रही है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि व्यापारियों, प्रोसैसरों और खुदरा विक्रेताओं द्वारा नियमित तौर पर गेहूं/आटा बाजार में जारी किया जाता है और कोई भंडारण/जमाखोरी नहीं होती है. यह कदम गेहूं की आपूर्ति बढ़ा कर उस की बाजार कीमतों में बढ़ोतरी रोकने के लिए उठाए गए हैं.

गैरबासमती चावल के निर्यात पर रोक

सरकार ने गैरबासमती चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया है और बासमती चावल के निर्यात के लिए 950 डालर का न्यूनतम मूल्य लगाया है. एफसीआई ओएमएसएस (डी) के तहत घरेलू बाजार में चावल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए साप्ताहिक ई-नीलामी में बिक्री के लिए 4 लाख मीट्रिक टन चावल की पेशकश कर रहा है. सरकार द्वारा निर्धारित कीमतों के अनुसार एफसीआई 29.00-29.73 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल बिक्री के लिए प्रस्तुत कर रहा है.

गन्ना किसानों पर फोकस

सरकार ने गन्ना किसानों के साथसाथ घरेलू उपभोक्ताओं के कल्याण के प्रति अटूट प्रतिबद्धता दिखाई है. एक ओर किसानों को 1.09 लाख करोड़ रुपए से अधिक के भुगतान के साथ पिछले चीनी सीजन का 96 फीसदी से अधिक गन्ने के बकाए का पहले ही भुगतान किया जा चुका है, जिस से चीनी क्षेत्र के इतिहास में सब से कम गन्ना बकाया लंबित है. वहीं दूसरी ओर विश्व में सब से सस्ती चीनी भारतीय उपभोक्ताओं को मिल रही है. जहां वैश्विक चीनी मूल्य एक वर्ष में लगभग 40 फीसदी बढ़कर 13 साल के उच्चतम स्तर को छू रहा है, वहीं भारत में पिछले 10 वर्षों में चीनी के खुदरा मूल्यों में सिर्फ 2 फीसदी की वृद्धि हुई है और पिछले एक वर्ष में 5 फीसदी से कम वृद्धि हुई है.

खाद्य तेलों पर भी नजर

भारत सरकार खाद्य तेलों की घरेलू खुदरा कीमतों पर बारीकी से नजर रख रही है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में कमी का पूरा लाभ अंतिम उपभोक्ताओं को मिले. सरकार ने घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों को नियंत्रित और कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए हैं:

– कच्चे पाम तेल, कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर बेसिक शुल्क 2.5 फीसदी से घटा कर शून्य कर दिया गया. इस के अलावा इन तेलों पर कृषि उपकर 20 फीसदी से घटा कर 5 फीसदी कर दिया गया. यह शुल्क संरचना 31 मार्च, 2024 तक बढ़ा दी गई है.

– 21 दिसंबर, 2021 को रिफाइंड सोयाबीन तेल और रिफाइंड सूरजमुखी तेल पर बेसिक शुल्क 32.5 फीसदी से घटा कर 17.5 फीसदी कर दिया गया और रिफाइंड पाम तेल पर बेसिक शुल्क 17.5 फीसदी से घटा कर 12.5 फीसदी कर दिया गया. इस शुल्क संरचना को 31 मार्च, 2024 तक बढ़ा दिया गया है.

– सरकार ने उपलब्धता बनाए रखने के लिए रिफाइंड पाम तेल के खुले आयात को अगले आदेश तक बढ़ा दिया है.

– सरकार द्वारा की गई नवीनतम पहल में रिफाइंड सूरजमुखी तेल और रिफाइंड सोयाबीन तेल पर आयात शुल्क 15 जून, 2023 से 17.5 फीसदी से घटा कर 12.5 फीसदी कर दिया गया है.

– कच्चे सोयाबीन तेल, कच्चे सूरजमुखी तेल, कच्चे पाम तेल और रिफाइंड पाम तेल जैसे प्रमुख खाद्य तेलों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में पिछले वर्ष से गिरावट की प्रवृत्ति देखी जा रही है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि सरकार द्वारा किए गए निरंतर प्रयासों के कारण खाद्य तेलों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में कमी का असर घरेलू बाजार में पूरी तरह से हो. रिफाइंड सूरजमुखी तेल, रिफाइंड सोयाबीन तेल और आरबीडी पामोलीन की खुदरा कीमतों में 2 नवंबर, 2023 तक एक वर्ष में क्रमशः 26.24 फीसदी, 18.28 फीसदी और 15.14 फीसदी की कमी आई है.

Bharat Attaउपभोक्ता मामले विभाग 34 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में स्थापित 545 मूल्य निगरानी केंद्रों के जरीए 22 आवश्यक खाद्य वस्तुओं के दैनिक खुदरा और थोक मूल्यों की निगरानी करता है. मूल्यों को कम करने के लिए बफर स्टाक जारी करने, जमाखोरी रोकने के लिए स्टाक सीमा लागू करने, आयात शुल्क को युक्तिसंगत बनाने, आयात कोटे में परिवर्तन, वस्तु के निर्यात पर प्रतिबंध आदि जैसे व्यापार नीति उपायों में परिवर्तन करने के लिए उचित निर्णय लेने के लिए मूल्यों की दैनिक रिपोर्ट और सांकेतिक मूल्य प्रवृत्तियों का विधिवत विश्लेषण किया जाता है.

उपभोक्ताओं को होने वाली कठिनाइयों को कम करने के लिए कृषिबागबानी वस्तुओं की कीमतों में अस्थिरता की जांच करने के लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) की स्थापना की गई है. पीएसएफ के उद्देश्य हैं (i) फार्म गेट/मंडी पर किसानों/किसान संघों से सीधी खरीद को बढ़ावा देना; (ii) जमाखोरी और अनैतिक सट्टेबाजी को हतोत्साहित करने के लिए एक रणनीतिक बफर स्टाक बनाए रखना और (iii) स्टाक की कैलिब्रेटेड रिलीज के माध्यम से उचित कीमतों पर ऐसी वस्तुओं की आपूर्ति कर के उपभोक्ताओं की रक्षा करना. उपभोक्ता और किसान पीएसएफ के लाभार्थी हैं.

वर्ष 2014-15 में मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) की स्थापना के बाद से आज तक सरकार ने कृषिबागबानी वस्तुओं की खरीद और वितरण के लिए कार्यशील पूंजी और अन्य आकस्मिक खर्च प्रदान करने के लिए 27,489.15 करोड़ रुपए की बजटीय सहायता प्रदान की है.

दालों का बफर स्टाक

वर्तमान में पीएसएफ के तहत दालों (तूर, उड़द, मूंग, मसूर और चना) और प्याज का गतिशील बफर स्टाक बनाए रखा जा रहा है. दालों और प्याज के बफर से स्टाक की कैलिब्रेटेड रिलीज ने उपभोक्ताओं के लिए दालों और प्याज की उपलब्धता सुनिश्चित की है और ऐसे बफर के लिए खरीद ने इन वस्तुओं के किसानों को लाभकारी मूल्य प्रदान करने में भी योगदान दिया है.

कम कीमत पर टमाटर

टमाटर की कीमतों में उतारचढ़ाव रोकने और इसे उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने मूल्य स्थिरीकरण निधि के तहत टमाटर की खरीद की थी और इसे उपभोक्ताओं को अत्यधिक रियायती दर पर उपलब्ध कराया गया था.

राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ (एनसीसीएफ) और राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (नेफेड) ने आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र की मंडियों से टमाटर की खरीद की है और दिल्ली व एनसीआर, बिहार, राजस्थान आदि के प्रमुख उपभोक्ता केंद्रों में सब्सिडी देने के बाद उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर उपलब्ध करा रहे हैं. टमाटरों को शुरुआत में खुदरा मूल्य 90 रुपए प्रति किलोग्राम पर बेचा गया था, जिसे उपभोक्ताओं के लाभ के लिए क्रमिक रूप से घटा कर 40 रुपए प्रति किलोग्राम कर दिया गया है.

प्याज की कीमतों पर लगाम

प्याज की कीमतों में भी उतारचढ़ाव रोकने के लिए सरकार पीएसएफ के तहत प्याज बफर बनाए रखती है. बफर आकार को वर्ष दर वर्ष 2020-21 में 1.00 लाख मीट्रिक टन से बढ़ा कर वर्ष 2022-23 में 2.50 लाख मीट्रिक टन कर दिया गया है. कीमतों को कम करने के लिए बफर से प्याज सितंबर से दिसंबर तक कम खपत वाले सीजन के दौरान प्रमुख खपत केंद्रों में एक कैलिब्रेटेड और लक्षित तरीके से जारी किया जाता है. वर्ष 2023-24 के लिए प्याज बफर लक्ष्य को और बढ़ा कर 5 लाख मीट्रिक टन कर दिया गया है.

जिन प्रमुख बाजारों में कीमतें बढ़ी हैं, वहां बफर से प्याज का निबटान शुरू हो गया है. 28 अक्तूबर, 2023 तक लगभग 1.88 लाख मीट्रिक टन निबटान के लिए गंतव्य बाजारों में भेजा गया है. इस के अलावा सरकार ने वर्ष 2023-24 के दौरान पीएसएफ बफर के लिए पहले से खरीदे गए 5 लाख मीट्रिक टन से अधिक 2 लाख मीट्रिक टन अतिरिक्त प्याज खरीदने का निर्णय लिया है. सरकार ने मूल्य वृद्धि पर अंकुश लगाने और घरेलू बाजार में आपूर्ति में सुधार के लिए 28 अक्तूबर, 2023 को प्याज पर 800 डालर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लगाया है.

दालों को रखा मुक्त श्रेणी में

दालों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए तुअर और उड़द के आयात को 31 मार्च, 2024 तक ‘मुक्त श्रेणी’ के तहत रखा गया है और मसूर पर आयात शुल्क शून्य कर दिया गया है. सुचारु और निर्बाध आयात की सुविधा के लिए तुअर पर 10 फीसदी का आयात शुल्क हटा दिया गया है. वहीं जमाखोरी को रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत 31 दिसंबर, 2023 तक तुअर और उड़द पर स्टाक सीमा लगाई गई है.

कीमतों को नियंत्रित करने के लिए मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) और मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) बफर से चना और मूंग के स्टाक लगातार बाजार में जारी किए जाते हैं. कल्याणकारी योजनाओं के लिए राज्यों को चने की आपूर्ति 15 रुपए प्रति किलोग्राम की छूट पर भी की जाती है. इस के अलावा सरकार ने चना स्टाक को चना दाल में परिवर्तित कर के उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराने के लिए 1 किलोग्राम के पैक के लिए 60 रुपए प्रति किलोग्राम और 30 किलोग्राम पैक के लिए 55 रुपए प्रति किलोग्राम की अत्यधिक रियायती दर पर “भारत दाल” ब्रांड नाम के तहत खुदरा निबटान के लिए चना दाल में बदलने की व्यवस्था शुरू की.

‘भारत’ दाल का वितरण नेफेड, एनसीसीएफ, एचएसीए, केंद्रीय भंडार और सफल के खुदरा बिक्री केंद्रों के माध्यम से किया जा रहा है. इस व्यवस्था के तहत चना दाल राज्य सरकारों को उन की कल्याणकारी योजनाओं के तहत पुलिस, जेलों में आपूर्ति के लिए और राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित सहकारी समितियों और निगमों की खुदरा दुकानों के माध्यम से वितरण के लिए भी उपलब्ध कराई जाती है.
भारत सरकार किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य, अंत्योदय और प्राथमिकता वाले परिवारों के लिए पीएमजीकेएवाई के तहत निशुल्क राशन (गेहूं, चावल और मोटे अनाज/बाजरा) और गेहूं, आटा, दाल और प्याज/टमाटर के साथसाथ चीनी और तेल की उचित और सस्ती दरों को सुनिश्चित कर के अपने किसानों, पीडीएस लाभार्थियों के साथसाथ सामान्य उपभोक्ताओं के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है.

स्मार्ट गांव में उत्कृष्ट कामों के लिए मिली प्रशंसा

उदयपुर : 4 नवंबर, 2023. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा तृतीय चरण में चयनित गांव मदार एवं ब्राम्हणों की हुंदर, पंचायत समिति, बड़गाव को वर्ष 2023-24 में माह जुलाई से सितंबर, 2023 त्रैमास अवधि में किए गए सराहनीय कामों के लिए राज्यपाल, राजस्थान सरकार द्वारा प्रशंसापत्र प्रदान किया गया.

यूनिवर्सिटी सोशल रिस्पोंसिबिलिटी (यूएसआर) के तहत प्रदेश की प्रत्येक राजपोषित विश्वविद्यालय द्वारा गांव को गोद ले कर उसे स्मार्ट विलेज में रूपांतरित किए जाने की राज्यपाल द्वारा पहल की गई. साथ ही, वर्ष 2021-22 एमपीयूएटी के स्मार्ट गांव को प्रदेश के सभी राजकीय विश्वविद्यालयों में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ. इन प्रयासों के परिणामस्वरूप स्मार्ट गांव में कृषि, सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक क्षेत्रों में आमूलचूल परिवर्तन हुआ.

इस कार्यक्रम का महत्वपूर्ण घटक सभी राजकीय एवं गैरराजकीय संस्थानों को साथ ले कर कृषि, पशुपालन, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं ग्रामीण विकास के विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं.

इस के अलावा जुलाई से सितंबर, 2023 के अंतर्गत इस विश्वविद्यालय द्वारा गोद लिया गांव मदार एवं ब्राह्मणों की हुंदर में अखिल भारतीय मक्का अनुसंधान परियोजना, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर द्वारा 22 किसानों के खेतों पर 4.4 हेक्टेयर प्रत्येक क्षेत्र में मक्का की प्रथम पंक्ति प्रदर्शन लगाए गए और मक्का एवं सब्जियों के 25 प्रदर्शनों में लगने वाले कीट एवं रोगों की रोकथाम के उपाय बताए एवं कीटनाशी दवाओं का फसलों पर छिड़काव करवाया.

इस के अंतर्गत उन्नत किस्म, सीपी 555 का बीज एवं खरपतवार नियंत्रण के लिए एट्राजीन दवा किसानों को वितरित की गई. साथ ही, स्मार्ट गांव मदार एवं ब्राह्मणों की हुंदर में अखिल भारतीय मक्का अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत 34 किसानों के खेतों पर फसल के अकुरंण के 20 से 25 दिन के उपरांत 0.4 हेक्टेयर की दर से प्रत्येक किसान को खरपतवारनाशी एंबोट्रियोन के छिड़काव के लिए उपलब्ध करवाई गई.

इंडिया इंफो-लाइन फाउंडेशन, मुंबई की सहायता से राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, मदार में सभागार का 21 जुलाई, 2023 को शुभारंभ किया गया. इस के अतिरिक्त एमपीयूएटी के तत्वावधान में द्वारा स्मार्ट गांव ब्राह्मणों की हुंदर में 31 जुलाई, 2023 को वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिस में नीम, बांस, अशोक, करंज, सहजन, जामुन, बिलपत्र आदि के 150 वृक्ष लगाए गए और आजादी के अमृत महोत्सव के तहत वृहत वृक्षारोपण कार्यक्रम का 12 अगस्त, 2023 को आयोजन किया गया.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने पौधा लगा कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया. इसी कड़ी में ग्राम पंचायत मदार के ब्राह्मणों की हुंदर में चारागाह भूमि पर वृक्षारोपण किया गया.

इसी क्रम में कुलपति सरदार पटेल पुलिस विश्वविद्यालय, जोधपुर द्वारा स्मार्ट गांव के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, मदार विद्यालय में स्थित सोलर ट्री का अवलोकन एवं गांव का भ्रमण किया और इस से संबंधित जानकारी प्राप्त की. साथ ही, सीएसआर स्कीम के अंतर्गत आईआईएफसी द्वारा नवनिर्मित सभागार में संगोष्ठी आयोजित की गई. इस के अतिरिक्त 4 सितंबर, 2023 को कौशल विकास जागरूकता दिवस का आयोजन कर गांव वालों को लाभान्वित किया गया.

स्मार्ट विलेज के किसान परिवारों के साथ श्रीअन्न द्वारा पोषण सुरक्षा जागरूकता अभियान के तहत जागरूकता दिवस मनाया गया, जिस में कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने अपने मुख्य आतिथ्य उद्बोधन में बताया कि गेहूं में ग्लूटिन एवं चावल में फाइबर व शर्करा का ज्यादा होने से कई तरह की बीमारियों को आमंत्रित करती है, वहीं दूसरी तरफ मोटे अनाजों में रेशे व शर्करा के उचित अनुपात में होने से कई प्रकार की बीमारियों को रोका जा सकता है.

इसी क्रम में घरघर पोषण अभियान के अंतर्गत 26 सितंबर, 2023 अखिल भारतीय कृषिरत महिला अनुसंधान परियोजनाकर्मियों द्वारा गांव ब्राह्मणों की हुंदर में गृहवाटिका लगाने के लिए 15 महिला किसानों को सब्जियों के बीज वितरित किए गए.

वर्ष 2023-24 के जुलाई से सितंबर, 2023 में विश्वविद्यालय के 130 वैज्ञानिकों एवं अन्य अधिकारियों द्वारा 11 बार भ्रमण और कुलपति ने भी इन गांवों में 3 बार भ्रमण कर कार्ययोजना के क्रियान्वयन का निरीक्षण किया.

विश्वविद्यालय में संचालित विभिन्न परियोजनाओं द्वारा विकसित तकनीकी एवं यंत्रों आदि का भी इन गांवों में प्रदर्शन किया गया.

विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा 8 एकदिवसीय प्रशिक्षणों के माध्यम से 629 किसान एवं किसान महिलाएं लाभान्वित हुए.

प्राकृतिक खेती पर प्रशिक्षण

उदयपुर : 4 नवंबर, 2023. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय में संस्थागत विकास कार्यक्रम के अंतर्गत ‘‘प्राकृतिक खेती से स्थायित्व कृषि एवं पारिस्थितिकी संतुलन” पर 2 दिवसीय प्रशिक्षण का समापन हुआ. इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में डा. एसके शर्मा, सहायक महानिदेशक, मानव संसाधन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्राकृतिक कृषि की महत्ता को देखते हुए प्राकृतिक खेती पर स्नातक छात्रों के लिए विशेष पाठ्यक्रम पूरे राष्ट्र में आरंभ किया जा रहा है.

उन्होंने आगे कहा कि प्राकृतिक खेती से मृदा स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी संतुलन अच्छा रहेगा, जिस से कृषि में स्थायित्व आएगा. इस के लिए सभी विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों, शिक्षकों, विषय विशेषज्ञों एवं विद्यार्थियों के लिए प्रशिक्षण आयोजित किए जा रहे हैं.

उन्होंने यह भी बताया कि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का प्राकृतिक खेती में वृहद अनुसंधान कार्य एवं अनुभव होने के कारण यह विशेष दायित्व विश्वविद्यालय को दिया गया है.

विदित है कि राजस्थान कृषि महाविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सस्य विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष एवं आचार्य डा. महेंद्र सिंह पाल ने विद्यार्थियों को प्राकृतिक कृषि में सस्य क्रियाएं एवं प्राकृतिक खेती के उद्देश्य दृष्टि एवं सिद्धांत पर अपना उद्बोधन दिया.

प्राकृतिक खेती के विषय में पूरे विश्व की दृष्टि भारत की ओर है. ऐसे में पूरे विश्व से वैज्ञानिक एवं शिक्षक प्रशिक्षण के लिए भारत आ रहे हैं. ऐसे में हमारा नैतिक दायित्व बनता है कि हम उत्कृष्ट श्रेणी के प्रशिक्षण आयोजित करें.

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डा. पीके सिंह, परियोजना प्रभारी आईडीपी, नाहेप ने रसायनों के अविवेकपूर्ण उपयोग से होने वाली आर्थिक, पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य को होने वाली हानियों के बारें में बताया.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि सभी को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना एवं प्रकृति व पारिस्थितिक कारकों को कृषि में समावेश कर के ही पूरे कृषि तंत्र को ‘‘शुद्ध कृषि’’ में रूपांतरित किया जा सकता है.

डा. पीके सिंह ने कहा कि प्राकृतिक खेती को अपनाने के साथसाथ हमें बढ़ती आबादी के लिए पर्याप्त खाद्य उत्पादन को दृष्टि में रखना चाहिए.

Organic Farmingडा. एसएस शर्मा, अधिष्ठाता, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने प्राकृतिक खेती के महत्व को देखते हुए एवं इसे कृषि में स्थापित करने के लिए पाठ्यक्रम का निर्माण किया गया है, जिसे पूरे राष्ट्र में प्राकृतिक कृषि का 180 क्रेडिट का पाठ्यक्रम स्नातक विद्यार्थियों को पढ़ाया जाएगा.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि प्राकृतिक खेती को सफल रूप में प्रचारित व प्रसारित करने के लिए सब से पहले जरूरत है कि इस की गूढ़ जानकारी को स्पष्ट रूप से अर्जित किया जा सके, अन्यथा जानकारी के अभाव में प्राकृतिक खेती को सफल रूप से लागू करना असंभव होगा.

डा. एसएस शर्मा ने बताया कि इस प्राकृतिक खेती के पाठ्यक्रम के द्वारा स्नातक छात्र तैयार होंगे, जो किसानों तक इसे सही रूप में प्रचारित करेंगे.

उन्होंने प्राकृतिक खेती पर विभिन्न अनुसंधान परियोजनाएं चालू करने की आवश्यकता पर जोर दिया, वहीं डा. अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान एवं कोर्स डायरेक्टर ने अतिथियों का स्वागत किया. साथ ही, प्राकृतिक खेती एवं जैविक खेती के बारे में विद्यार्थियों को विस्तृत रूप से बताया.

डा. अरविंद वर्मा ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती में प्रक्षेत्र पर उपलब्ध संसाधनों का पूर्ण उपयोग किया जाता है, जबकि जैविक खेती में रसायनमुक्त जैविक पदार्थों का बाहर से समावेश किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती में जीवामृत एवं बीजामृत के साथ नीमास्त्र एवं ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया जाता है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की मीटिंग में किसानों का हित

अविकानगर : भाकृअनुप-केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली की क्षेत्रीय समिति-6 की 27वीं बैठक 3 नवंबर, 2023 को संस्थान के सभागार में सचिव डेयर (डिपार्टमेंट औफ एग्रीकल्चर एजुकेशन एंड रिसर्च) एवं महानिदेशक (डायरेक्टर जनरल) डा. हिमांशु पाठक की अध्यक्षता में आयोजित किया गया.

क्षेत्रीय समिति-6 की बैठक में विशिष्ट अथिति डा. उमेशचंद गौतम, उपमहानिदेशक प्रसार, डा. धीर सिंह, निदेशक, एनडीआरआई, करनाल, जीपी शर्मा, सयुक्त सचिव, (वित्त) आईसीएआर, डा. अनिल कुमार, एडीजी, डा. पीएस बिरथाल, निदेशक, एनआईएपी नई दिल्ली व परिषद के विभिन्न विषय के एडीजी, राजस्थान, गुजरात राज्यों व केंद्र शासित प्रदेश दमन व दीव, दादर एवं नागर हवेली के सेक्रेटरी व कमिश्नर और कृषि वेटरनरी विश्वविद्यालय के कुलपति, गवर्निंग बौडी के सदस्यों, अधिकारी और वैज्ञानिक उपस्थिति रहे.

Rabbitकार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डा. हिमांशु पाठक अविकानगर में विभिन्न सुविधा जैसे देश के किसानों के लिए फार्मर होस्टल में नवीनीकृत प्रशिक्षण लेक्चर्स हाल, सेक्टर-9 पर नवीनीकृत भेड़ों के शेड, टैक्नोलौजी पार्क में राष्ट्रीय ध्वज उच्च स्तंभ, टेक्सटाइल मैन्युफैक्चरिंग व टेक्सटाइल कैमिस्ट्री विभाग में मोटी या अनुपयोगी भेड़ की ऊन से केरटिन प्रोटीन का विगलन, फार्म सेक्शन के लिए नया ट्रैक्टर और देश के भेड़बकरीपालकों, किसानों के लिए कृत्रिम गर्भाधान हेतु चलतीफिरती वैन/लैब आदि का उद्घाटन करते हुए मोटे पूंछ की डुंबा भेड़, खरगोश की विभिन्न नस्लें, सिरोही बकरी और संस्थान के पशु आनुवांशिकी व प्रजनन विभाग में स्थित विभिन्न भेड़ की नस्लों (अविशान, अविकालीन, मालपुरा, मगरा, चोकला, मारवाड़ी, गरोल और पाटनवाड़ी) के उन्नत पशुओं की प्रदर्शनी का अवलोकन किया.

डा. हिमांशु पाठक ने अविकानगर संस्थान की गतिविधियों की प्रशंसा की व ज्यादा से ज्यादा किसानों तक संस्थान की सेवा को बढ़ाने के लिए संस्थान निदेशक डा. तोमर से आग्रह किया.

डा. हिमांशु पाठक द्वारा क्षेत्रीय समिति के सभागार से पहले जोन के संस्थानों की प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए कृषि कार्य में ड्रोन की भूमिका प्रदर्शन का भी अवलोकन किया. डा. हिमांशु पाठक को गार्ड औफ ओनर के साथ केंद्रीय विद्यालय, अविकानगर के नन्हेमुन्ने बच्चों द्वारा उन का जोरदार स्वागतसत्कार किया गया.

सभागार में निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर द्वारा महानिदेशक, उपमहानिदेशक, निदेशक और सभी डेलेगेट्स का स्वागतसत्कार राजस्थान परंपरा से किया गया.

Tractorकार्यक्रम में डा. पीएस बिरथाल द्वारा क्षेत्र की उत्पादन, समस्या और आने वाली चुनौती के बारे में विस्तार से लेक्चर्स दिया गया, जिस का पिछली मीटिंग की सिफारिश को पूरा करने की विस्तृत रिपोर्ट डा. अरुण कुमार तोमर द्वारा प्रस्तुत किया गया. इस के बाद गुजरात, राजस्थान, दमन, दीव, दादर एवं नागर हवेली की कृषि, पशुपालन, पोल्ट्री, फिशरीज, बागबानी, फोरस्ट्री, एजुकेशन, प्रसार गतिविधियों की समस्या, चुनौतियों आदि पर महानिदेशक की अध्यक्षता में एकएक कर के विस्तार से चर्चा की गई.

कार्यक्रम में भौतिक रूप से उपस्थित और औनलाइन माध्यम से जुड़े विषय विशेषज्ञों द्वारा उपलब्ध विकल्प को बताया गया. कुछ मुद्दे पर भविष्य के हिसाब से शोध चुनौती, एग्रीकल्चर उत्पादों के निर्यात की समस्या एवं भविष्य की अपार संभावना के ऊपर चर्चा की गई. पशुपालन, हार्टिकल्चर, राष्ट्रीय पशुधन मिशन, मार्केटिंग, और्गेनिक खेती, जैविक खाद, पोस्ट हार्वेस्टिंग प्रोसैसिंग, समस्या पर उपलब्ध हल के द्वारा जागरूकता कैंप आदि पर क्षेत्रीय मीटिंग में विस्तार से चर्चा की गई.

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मीटिंग के दौरान महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक एवं अन्य मंच पर विराजमान अतिथि ने अविकानगर संस्थान द्वारा भेड़ की महीन ऊन और ऊंट के फाइबर से निर्मित हलकी ऊनी जैकेट और विभिन्न प्रकाशन का विमोचन भी किया.

 

अंत में महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक द्वारा संबोधन के क्रम में बताया गया कि जिन समस्या का समाधान यहां उपस्थिति किसी भी संस्थान पर उपलब्ध है, उस को 15 दिन के भीतर संबंधित को उपलब्ध करावा दिया जाए और जिस किसी समस्या का समाधान यदि देश की किसी संस्थान के पास हो, उस को भी एक महीने में संबंधित समस्याग्रस्त संस्थान को उपलब्ध करा दिया जाए. जिन समस्याओं का अभी समाधान नहीं है एवं वर्तमान में उबर रही भविष्य की चुनौती के हिसाब से हल करना है. उन का दोबारा परिषद के माध्यम से अलग से मीटिंग कर के संबंधित संस्थान को जिम्मेदारी देते हुए शोध प्रोजैक्ट तैयार करवा कर हल किया जाए.

इस मीटिंग को पूरा करने में डा. सीपी स्वर्णकार, डा. आरसी शर्मा, डा. अजय कुमार, डा. गणेश सोनावने, डा. रणधीर सिंह भट्ट, डा. एसके संख्यान, डा. अजित महला, डा. अरविंद सोनी, डा. लीलाराम गुर्जर, डा. सत्यवीर सिंह डांगी, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी इंद्रभूषण कुमार, राजकुमार मुख्य वित्त अधिकारी, भीम सिंह, तरुण कुमार जैन, सुनील सैनी, मीडिया प्रभारी डा. अमर सिंह मीना आदि संस्थान के सभी कर्मचारियों द्वारा पूरा सहयोग कार्यक्रम को समापन तक करने में दिया. साथ ही, महानिदेशक ने संस्थान के कर्मचारियों को अच्छा कार्य करने के लिए धन्यवाद देते हुए अपने संबोधन से लाभान्वित किया.