नई तकनीक से चारा उत्पादन

भारत में किसानों की आमदनी का मुख्य जरीया खेती के अलावा दूध उत्पादन भी है. भारत दूध के उत्पादन में दुनिया में पहले स्थान पर है. किसान दूध पैदा करने के लिए गाय, भैंस और बकरियां पालते हैं. इन से उन्हें भरपूर लाभ होता है.

पशुपालन के लिए सरकार किसानों को प्रोत्साहित कर रही है. इतना सब होने के बावजूद देश में पशुओं के लिए पौष्टिक चारा मुहैया नहीं हो पा रहा है, जिस से उन की दूध देने की कूवत पर असर पड़ रहा है. जनसंख्या के मुकाबले खेतों का दायरा कम होता जा रहा है, जिस की वजह से पशुओं के लिए हरा चारा मिलना काफी कठिन हो गया है.

किसानों के पास इतनी जमीन नहीं है कि वे खेतों में पशुओं के लिए चारा उगा सकें. इस समस्या से किसान परेशान हैं. कुछ ऐसी ही कहानी मध्य प्रदेश के होशंगाबाद रोड स्थित दीपड़ी गांव के आकाश पाटीदार की है, जिन का डेरी का कारोबार  है.

आकाश कहते हैं कि उन्हें पशुओं को हरा चारा खिलाना काफी महंगा पड़ रहा था, इसलिए वे परेशान रहते थे. लेकिन एक दिन उन्होंने यूट्यूब पर एक वीडियो देखा, जिस में कम लागत से हरा चारा उगाने की जानकारी थी. इस तकनीक का नाम हाइड्रोपोनिक्स ग्रास ट्रे है.

क्या है हाइड्रोपोनिक्स तकनीक : पानी, बालू या कंकड़ों के बीच बिना मिट्टी के चारा उगाए जाने की तकनीक को हाइड्रोपोनिक तकनीक कहते हैं.

इस विधि से चारे वाली फसल को 15 से 30 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान पर करीब 80 से 85 फीसदी नमी में उगाया जाता है और 8 से 10 दिनों में चारा तैयार हो जाता है. यह तकनीक काफी सस्ती भी पड़ती है. इस तकनीक से किसान चारे की समस्या पर काबू पा सकते हैं.

घर में कैसे तैयार करें हाइड्रोपोनिक्स चारा : हाइड्रोपोनिक्स ट्रे बनाने के लिए 8×2 फुट की टीन की चादर या प्लास्टिक ट्रे का इस्तेमाल किया जा सकता है. हाइड्रोपोनिक्स चारा 10 दिनों में पशुओं को खिलाने लायक हो जाता है, इसलिए आप को कम से कम 10 ट्रे की जरूरत होगी.

इस से आप को रोजाना हरा चारा हासिल होगा. एक ट्रे में करीब 10 किलोग्राम चारा हो जाता है.

बीज : हाइड्रोपोनिक्स ग्रास ट्रे के लिए करीब 1किलोग्राम मक्के के बीज लें. उन बीजों को 10 से 12 घंटे तक किसी बालटी में भीगने के लिए रख दें. अब इन भीगे हुए बीजों को 24 घंटे के लिए जूट के बोरे में लपेट कर रख दें. अगले दिन बीज अंकुरित हो जाएंगे, फिर इन अंकुरित बीजों को किसी ट्रे में रख दें.

पशुओं को रोजाना ताजा हरा चारा मिले, इस के लिए रोजाना बीजों को 12 घंटे के लिए भिगाएं और फिर उन्हें अगले 24 घंटे तक जूट के बोरे में लपेट कर रखें, जिस से बीजों में अंकुर आ जाएं. इस बात पर खास ध्यान दें कि हर दिन इसी तरह काम करना होगा. आप मक्के के बीजों के अलावा ज्वार, बाजरा और बरसीम के बीजों से भी पशुओं के लिए हरा चारा उगा सकते हैं.

मिट्टीपानी की जरूरत नहीं : हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से चारा उगाने के लिए पानी और मिट्टी की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन गरमियों में 10 दिनों में 1 या 2 बार पानी का हलका सा छिड़काव किया जा सकता है, क्योंकि अंकुरित बीजों में पहले से ही नमी रहती है.

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से लाभ : इस तकनीक का सब से बड़ा लाभ यह है कि इस से काफी कम जगह में पोषणयुक्त हरा चारा आसानी से मुहैया हो जाता है.

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से आम किसान सालभर दुधारू पशुओं के लिए कम जगह में हरा चारा उगा सकते हैं, जिन्हें आमतौर पर कई एकड़ में चारा उगाना पड़ता है. इस विधि से लागत भी काफी कम आती है और मिट्टी के उपजाऊ न होने का फर्क भी नहीं पड़ता.

* रिसर्च में पाया गया कि परंपरागत हरे चारे में क्रूड प्रोटीन 10.7 फीसदी होता है, जबकि मक्के से तैयार हाइड्रोपोनिक्स चारे में कू्रड प्रोटीन 13.6 फीसदी होता है, परंपरागत हरे चारे में कू्रड फाइबर भी कम होता है. हाइड्रोपोनिक्स चारे में अधिक ऊर्जा और विटामिन होते हैं. इस से पशुओं में दूध का उत्पादन अधिक होने लगता है.

* हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में मिट्टी की जरा भी जरूरत नहीं होती और पानी भी बहुत कम देना पड़ता है.

इस वजह से पौधों के साथ न तो अनावश्यक खरपतवार उगते हैं और न ही इन पर कीड़ेमकोड़े लगने का डर रहता है. इसलिए कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं होता और न ही खाद का. इस तकनीक से हरा चारा उगाने में मौसम का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता. इसे किसी भी मौसम में उगाया जा सकता है.

* हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से हरा चारा 8 से 10 दिनों में पशुओं को खिलाने के लायक हो जाता है. परंपरागत तकनीक में चारा तैयार होने में 40 से 45 दिन लगते हैं. 100 पशुओं के लिए परंपरागत विधि से चारा उगाने के लिए करीब 15 एकड़ जमीन की जरूरत पड़ती है, लेकिन हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से 1000 वर्गफुट में 15 एकड़ के बराबर चारा आसानी से कम लागत में उगाया जा सकता है.

इस चारे को मशीन से काट कर खिलाया जाता है और चारे की जड़ को भी पशुओं को खिलाया जाता है, क्योंकि उस में मिट्टी नहीं होती है.

Fodder production

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से दूध उत्पादन में बढ़ोतरी : इस तकनीक से उगाया गया चारा अंकुरित होने के कारण अधिक प्रोटीन और मिनरल से भरपूर होता है. इस से दूध में फैट की मात्रा बढ़ जाती है.

दूध देने वाले पशुओं को अतिरिक्त प्रोटीन व मिनिरल्स की जरूरत होती है, जिसे पूरा करने के लिए बाजार से अधिक कीमत में खरीद कर तरल प्रोटीन दिया जाता है.

बाजार से खरीदा गया प्रोटीन काफी मंहगा पड़ता है. इस की पूर्ति के लिए डेरी वाले ग्राहकों से ज्यादा कीमत वसूलते हैं.

प्रति पशु 40 रुपए की बचत : आकाश पाटीदार बताते हैं कि यूट्यूब पर सीखी गई इस तकनीक ने उन की हरे चारे की दिक्कत दूर कर दी है. आकाश बताते हैं कि उन्होंने पहले एक रैक में चारा उगाया और फिर इस की सफलता के बाद 1000 वर्गफुट में 100 पशुओं के लिए प्रोटीनयुक्त हरा चारा उगा रहे हैं.

पहले 1 पशु को दोनों समय मिला कर 8 किलोग्राम पशुआहार देना होता था, जिस के लिए बाजार से 20 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से पशुआहार खरीदना पड़ता था. वे अब सिर्फ 6 किलोग्राम चारा दे रहे हैं. हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से प्रति पशु 40 रुपए की बचत होने लगी.

डाक्टर एसआर नागर कहते हैं कि मिट्टी जनित चारे के मुकाबले अंकुरित चारा हर लिहाज से बेहतर है.

इस में विटामिन ‘ए’ समेत भरपूर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है. इस से दूध का उत्पादन बढ़ेगा, साथ में उस की गुणवत्ता भी बेहतर होगी.

रोटावेटर (Rotavator) से जुताई

आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.

रोटावेटर का फ्रेम लोहे के एंगल से बना होता है, जिस में इस के अन्य भाग जुड़े रहते हैं. यह एंगल संचालन के समय भागों को पकड़ कर रखता है और इस का दूसरा महत्त्वपूर्ण भाग रोटावेटर गैंग होता है.

रोटावेटर गैंग बहुत अच्छी गुणवत्ता वाले इस्पात के बने होते हैं, जो फ्रेम में जुड़े रहते हैं. इन का संचालन मूविंग मेकैनिज्म द्वारा होता है और यही मिट्टी को काट कर भुरभुरा बनाते हैं, जिन के द्वारा जुताई का काम अच्छी तरह पूरा होता है.

इस का तीसरा महत्त्वपूर्ण भाग होता है यूनिवर्सल ज्वाइंट. यह रोटावेटर के अगले भाग में लगा होता है. इस को ट्रैक्टर के पीटीओ शाफ्ट से जोड़ा जाता है, जो मूविंग मेकैनिज्म को घुमाता है और रोटावेटर जुताई करना शुरू कर देता है.

इस का चौथा भाग मूविंग मेकैनिज्म होता है, जो ट्रैक्टर द्वारा दिए गए चक्कर के द्वारा मूविंग मेकैनिज्म रोटावेटर गैंग को चलाता है. इस से मिट्टी कटती है और जुताई का काम पूरा होता है.

रोटावेटर (Rotavator)

ट्रैक्टर के थ्री प्वाइंट लिंकेज को इस के थ्री प्वाइंट लिंकेज से जोड़ दिया जाता है. इस के बाद रोटावेटर के यूनिवर्सल ज्वाइंट को ट्रैक्टर के पीटीओ शाफ्ट से जोड़ देते हैं. इस के बाद पीटीओ शाफ्ट और ट्रैक्टर को खेत में एकसाथ चलाना शुरू करते हैं, जिस से रोटावेटर गैंग मूविंग मेकैनिज्म के द्वारा घूमने लगता है और मिट्टी कटकट कर भुरभुरी होने लगती है, जिस से जुताई का काम पूरा होता है.

देखभाल

रोटावेटर धातु से बना हुआ यंत्र होता है, इसलिए इस की देखभाल भी अच्छी तरह करना जरूरी होता है. इस के लिए रोटावेटर से जुताई करने से पहले इस मशीन को तैयार कर लेना चाहिए. तैयार करने के लिए इस के मूविंग मेकैनिज्म और रोटावेटर गैंग के ध्रुवों के पास बालबेयरिंग में ग्रीसिंग व औयलिंग कर लेना जरूरी होता है और जुताई का काम पूरा होने के बाद यंत्र को रखने से पहले अच्छी तरह मिट्टी और खरपतवारों को साफ कर लेना चािहए और किसी छायादार जगह पर सुरक्षित रखना चाहिए.

फायदे

रोटावेटर से जुताई करने पर मिट्टी बहुत छोटेछोटे टुकड़ों में बंट जाती है और पूरा खेत बहुत अच्छी तरह भुरभुरा हो जाता है व खेत में उगे खरपतवार और फसल अवशेष छोटेछोटे टुकड़ों में बंट कर जमीन में दब जाते हैं, जो सड़ कर मिट्टी में जीवांश पदार्थ में बदल जाते हैं.

रोटावेटर से जुताई करने पर दूसरे यंत्रों की  5 जुताई इस के केवल एक ही बार की जुताई में पूरी हो जाती है. इसलिए डीजल की खपत कम होती है और समय की भी बचत होती है.

खेती में भरपूर काम फिर भी महिला किसान होने का नहीं सम्मान

सदियों से खेतीकिसानी के काम को पुरुषों का ही काम माना जाता रहा है, जबकि खेतों में काम करते हुए लोगों को अगर देखें, तो उस में सब से ज्यादा तादाद महिलाओं की ही होती है. खरीफ सीजन में खेतों में काम करने वाले किसानों की तादाद में और भी इजाफा हो जाता है, क्योंकि खरीफ सीजन में धान रोपाई से ले कर कटाई, हार्वेस्टिंग और भंडारण तक में महिलाएं ही भूमिका निभाती हैं. फिर भी घर की इन महिलाओं को किसान होने का दर्जा इसलिए नहीं मिल पाता है, क्योंकि जमीन का मालिकाना हक घर के पुरुष सदस्य के पास ही होता है.

हम किसानों के लिए संबोधन किए जाने वाले सरकारी या गैरसरकारी लैवल पर भाषाई स्तर पर नजर डालें, तो किसान के रूप में अन्नदाताओं के लिए सिर्फ ‘किसान भाई’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि खेती में अहम भूमिका निभाने वाली महिलाओं को आज तक ‘किसान बहनों’ के नाम से संबोधित करते नहीं देखा गया. महिला किसानों के लिए यह असमानता मीडिया लैवल पर भी दिखाई देता रहा है.

खेती के करती हैं सभी काम, फिर भी नहीं मिलता दाम

महिलाएं घरपरिवार की देखभाल के साथसाथ पशुपालन, दूध निकालना, रोपाई, निराई, गुड़ाई, हार्वेस्टिंग और भंडारण तक का काम संभालती हैं, लेकिन जब कृषि उपज को बेचने की बात आती है, तो उस का निर्णय किसान कहलाने वाला घर का पुरुष सदस्य लेता है और उपज को बेच कर की हुई कमाई को भी अपने पास ही रखता है.

महिला किसानों के हक पर काम करने वाली माधुरी का कहना है कि जब महिलाएं दिनभर धान के पानी से भरे खेत में खड़ी हो कर पुरुषों की तरह ही निंदाईगुड़ाई कर सकती हैं, तो फिर मंडी में उसी फसल को बेचने के लिए उन्हें जाने क्यों नहीं दिया जाता बीज खरीदने, फसल बेचने, उस फसल से प्राप्त रकम के उपयोग में उस की भूमिका कहां चली जाती है, जबकि वह घर में सब से पहले उठने और सब से बाद में सोने वाली इकाई होती है?

किसान आंदोलन में खेती का पूरा काम महिलाओं के हवाले

देश के किसान जब खेतीबारी के मसलों पर नीति बनाने को ले कर दिल्ली और दिल्ली से सटे बौर्डर पर आंदोलन कर रहे थे, तो खेती से जुड़े 100 फीसदी कामों की जिम्मेदारियों को घर की महिलाओं ने ही संभाला था, लेकिन इस आंदोलन में चर्चा केवल पुरुष किसानों की ही हुई, जबकि अगर घर की महिलाएं खेती से जुड़े काम न संभालतीं तो खेती तो बरबाद ही होती. साथ ही, धरने पर बैठने वाले किसानों को आंदोलन में जीत भी नहीं मिलती.

महिलाओं ने इस दौरान न केवल खेती के काम बखूबी संभाले, बल्कि घर के बड़ेबुजुर्गों की देखभाल से ले कर बच्चों को स्कूल जाने के लिए तैयार करना, खाना पकाने जैसे काम को भी अंजाम दिया. किसान आंदोलन के दौरान हजारों की तादाद में महिला किसान भी धरने पर नजर आईं.

महिला किसानों के हक पर काम करने वाली माधुरी का कहना है कि पुरुषों के नाम खेती की जमीन होने मात्र से हम किसान होने का मानक तय नहीं कर सकते हैं, बल्कि हमें खेती में 80 फीसदी तक योगदान देने वाली घर की महिलाओं को भी ‘महिला किसान’ के रूप में सम्मान देना सीखना होगा.

महिला किसानों ने बढ़ाया महिलाओं का हौसला

बिहार में ‘किसान चाची’ के नाम से जानी जाने वाली एक महिला किसान हम सभी के लिए बड़ा उदाहरण हैं. उन्होंने कई जिलों में मीलों दूर साइकिल चला कर किसानी के प्रति गांव की महिलाओं में अलख जगाई.

उन्होंने देखा कि किसानों के पास खेती के लिए कम जमीनें थीं. घरपरिवार का गुजारा मुश्किल से होता था, परिवार की स्थिति ठीक नहीं थी. ऐसे में किसान चाची ने पुरुषों को शहरों में जा कर नौकरी करने और महिलाओं को खेती करने का रामबाण नुसखा दिया.

महिलाओं ने उन ‘चाची’ की सलाह मानी. नतीजा यह निकला कि उन के घरों में महिलापुरुष दोनों कमाने के लिए सशक्त हुए. बिहार में किसान चाची के प्रयास से आज कई जिलों की महिलाएं खेती के काम करती हैं. महिलाओं में खेती के प्रति जगाए सशक्तीकरण को देखते हुए 2 साल पहले भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म विभूषण’ सम्मान से भी नवाजा.

महिला किसान (Woman Farmer)

ये सारे काम महिला किसानों के हवाले

हाल ही में ‘फार्म एन फूड’ पत्रिका द्वारा ‘फार्म एन फूड किसान सम्मान’ का आयोजन किया था, जिस में भारी तादाद में महिलाओं ने विभिन्न कैटीगिरियों में आवेदन किए थे. इस में खेतीकिसानी से जुड़े ऐसे काम भी रहे, जिस पर यह माना जाता है कि इन कामों को करने की कूवत केवल पुरुष किसानों में ही है. यह काम खेतीकिसानी से जुड़े बड़े कृषि यंत्रों के चलाने से जुड़ा है, जिसे महिला किसान बड़ी ही आसानी से संचालित कर रही हैं.

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के कोठडी बहलोलपुर गांव की रहने वाली बेहद कम उम्र की शुभावरी चौहान न सिर्फ एक सफल किसान हैं, बल्कि वे अपने पिता के साथ मिल कर ट्रैक्टर से खेतों की जुताई भी करती हैं और कालेज जाने के लिए मोटरसाइकिल का इस्तेमाल करती हैं.

वर्तमान में शुभावरी चौहान अपने गांव से तकरीबन 45 किलोमीटर दूर सहारनपुर में ‘मुन्ना लाल गर्ल्स डिगरी कालेज’ में अपने बीए फाइनल ईयर की पढ़ाई कर रही हैं. उन का सालाना टर्नओवर 25 लाख रुपए है और वे 25-30 लोगों को रोजगार प्रदान करती हैं.

इसी तरह गांव कोटी अठूरवाला, जिला देहरादून, उत्तराखंड की रहने वाली पशुपालक पुष्पा नेगी पशुपालन के क्षेत्र में नवीनतम तकनीक अपना कर स्थानीय किसानों को भी जागरूक करती हैं.

पशुपालक पुष्पा नेगी के द्वारा साल 2016 से गोपालन किया जा रहा है. इस समय उन के पास लगभग 30 गाय हैं, जिन में होल्सटीन फ्रीजियन और साहीवाल दोनों नस्ल की गाय शामिल हैं.

पुष्पा नेगी गाय के दूध से घी, छाछ, मक्खन आदि बना कर बाजार में अच्छे दामों पर बेचती हैं और प्रकृति संरक्षण को ध्यान में रखते हुए उन के यहां गाय के गोबर से दीया, दीपक, मूर्ति, समरानी कप, गौ काष्ठ एवं वर्मी कंपोस्ट आदि चीजें तैयार की जाती हैं. इस काम में उन्होंने अनेक लोगों को जोड़ रखा है, जिस से उन्हें भी रोजगार मिल रहा है.

गोंडा जनपद की रहने वाली साधना सिंह साल 2012 से कृषि क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं. इस समय वे कृषि आधारित कई व्यवसाय भी कर रही हैं. उन्होंने 2 भैंसों के साथ पशुपालन का काम शुरू किया था और इस समय उन के पास 35 दुधारू भैंसें हैं. उन के दूध से पारंपरिक बिलोना विधि से भैंस का देशी घी तैयार किया जाता है, जो ‘अवध गोल्ड’ के नाम से बिकता है.

साधना सिंह के पास 2 पोल्ट्री फार्म हैं, जिस से उन्हें सालाना 7 से 8 लाख रुपए का मुनाफा होता है. इस के अलावा वे मछलीपालन व्यवसाय से भी जुड़ी हैं, जिस से उन्हें सालाना 10 लाख का लाभ प्राप्त होता है.

साधना सिंह का कहना है कि हम पंगास मछली का उत्पादन करते हैं. यह हाईडैंसिटी में उत्पादन होने वाली मछली है, जिस से ज्यादा मुनाफा होता है. मछलीपालन में फायदा होते देख कई महिला किसानों ने मछलीपालन शुरू किया है, जिस से गांव में अनेक महिला किसान मछलीपालन से फायदा उठा रही हैं. इस के अलावा वे 40 एकड़ में गन्ने की खेती और 20 एकड़ में धान की खेती करती हैं. 2 एकड़ में वे जैविक खेती से धान और गेहूं उत्पादन करती हैं.

बस्ती जिले के बिहराखास गांव की रहने वाली पुष्पा गौतम कृषि उत्पादों जैसे मल्टीग्रेन आटा, चावल, चना, अचारमुरब्बा आदि की प्रोसैसिंग कर बाजार से कई गुना अधिक मुनाफा कमाने के साथसाथ अनेक लोगों को ट्रेनिंग व रोजगार भी दे रही हैं.

महिला किसानों को मिलेगी सही पहचान

महिला किसान अधिकारों पर काम करने वाली और एक सफल किसान माधुरी का कहना है कि खेतीकिसानी से जुड़ी ट्रेनिंग और अन्य क्षमतावर्धन गतिविधियों में महिला किसानों को कम तवज्जुह दी जाती है. अगर सरकारी और गैरसरकारी लैवल पर आयोजित होने वाले इन कार्यक्रमों में महिला किसानों की भागीदारी बढ़ाई जाए, तो उन्हें असल पहचान मिल पाएगी.

वे कहती हैं कि परंपरागत रूप से महिलाओं को खेती में निराई, बोआई, रोपाई और कटाई जैसे काम सौंपे जाते थे. उत्पाद बेचना घर के पुरुष सदस्य का अधिकार होता था. वे पशुपालन जैसी सहायक गतिविधियों की देखभाल में भी शामिल थे. लेकिन अब यह सब बदल रहा है.

आज सरकार से इतर देश की कई गैरसरकारी संस्थाएं गांव की महिलाओं को कृषि व्यवसाय मौडल पर शिक्षित कर के उन की प्रबंधन क्षमताओं को निखार रही हैं और नई आजीविकाओं में प्रशिक्षित कर रही हैं, जिस में खेती के अलावा ग्रेडिंग, सौर्टिंग, तौल, भंडारण, लोडिंग, अनलोडिंग, चालान और समन्वय रसद को प्रसंस्करण मिलों तक उत्पाद भेजने पर महिलाओं की क्षमता बढ़ाई जा रही है.

माधुरी बताती हैं कि एक अनुमान के मुताबिक भारत में तकरीबन 10 करोड़ महिलाएं खेती से जुड़ी हैं. लेकिन इन्हें महिला किसान न मान कर खेतिहर मजदूर माना जाता है.

वे कहती हैं कि छोटे और मझोले किसान घरों की तकरीबन 75 फीसदी महिलाएं खेती के कामों से तो जुड़ी हैं, किंतु आमतौर पर उन्हें उन के कामों का श्रेय नहीं दिया जाता है, न ही उन के हाथों में सीधी मजदूरी पहुंचती है और कई बार वे खेती से जुड़ी निर्णय प्रक्रिया से बाहर रहती हैं. वे खेती और परिवार से जुड़ी अपनी जिम्मेदारी एकसाथ निभाती हैं. लेकिन इन सब के बावजूद उन के योगदान का मूल्यांकन कहीं नहीं होता है.

बढ़ाया महिला किसानों के नाम खेती का रकबा

खेती की जमीन के मालिकाना हक के मामले में पुरुषों का दबदबा रहा है, लेकिन जब से ‘पीएम किसान सम्मान निधि’ योजना की शुरुआत हुई है, तब से घर के पुरुषों ने साल में मिलने वाले 6,000 रुपए के लालच में अपने घर की महिलाओं के नाम जमीन ट्रांसफर करना शुरू कर दिया.

अगर हम ‘पीएम किसान सम्मान निधि’ योजना के आंकड़ों पर गौर करें, तो 12.13 करोड़ पंजीकृत किसानों में 25 फीसदी हिस्सेदारी महिलाओं की है. पीएम किसान सम्मान निधि पोर्टल पर पंजीकृत महिला किसानों का यह आंकड़ा बहुत कम था, जो इस योजना के आने के बाद बढ़ा है.

इस के अलावा उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने जमीन नामांतरण प्रक्रिया में बड़ी सहूलियत दी है. इस के तहत उत्तर प्रदेश में अब कोई भी व्यक्ति 5,000 रुपए का स्टांप शुल्क दे कर अपने परिजनों के नाम जमीन का बैनामा कर सकता है. इस स्कीम के चलते उत्तर प्रदेश में महिलाओं के नाम खेती योग्य जमीन के रकबे में बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

महिला किसान (Woman Farmer)खेतीबारी से जुड़े आंकड़ों में भी महिलाएं

‘पीएम किसान’ पोर्टल पर महिला किसानों के जो आंकड़े प्रदर्शित हैं, भारत की जनगणना 2011 से बेहद कम है, क्योंकि साल 2011 की जनगणना के हिसाब से देश में तकरीबन 6 करोड़ महिला किसान हैं, वहीं आवधिक श्रमबल सर्वे 2018-19 का डेटा बताता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 71.1 फीसदी महिलाएं कृषि क्षेत्र में काम करती हैं.

माधुरी कहती हैं कि 73.2 फीसदी ग्रामीण महिला श्रमिक किसान हैं, लेकिन उन के पास 12.8 फीसदी जमीन स्वामित्व है. महाराष्ट्र में 88.46 फीसदी ग्रामीण महिलाएं कृषि में लगी हैं, जो देश में सब से ज्यादा है.

साल 2015 की कृषि जनगणना के अनुसार, पश्चिमी महाराष्ट्र के नासिक जिले में महिलाओं के पास केवल 15.6 फीसदी कृषि भूमि का स्वामित्व है यानी कुल खेती वाले क्षेत्र में 14 फीसदी की हिस्सेदारी है.

वे बताती हैं कि संयुक्त राष्ट्र की साल 2013 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जबरन बेदखली या गरीबी के खतरे को कम कर के, प्रत्यक्ष और सुरक्षित भूमि अधिकार महिलाओं की घर में सौदेबाजी की शक्ति को बढ़ाते हैं और उन की सार्वजनिक भागीदारी के स्तर में सुधार करते हैं.

माधुरी के अनुसार, महिलाओं को ‘महिला किसान’ के रूप में बनाई गई नीतियां नाकाफी हैं, इसलिए सरकार को इन नीतियों की समीक्षा कर उस में जरूरी सुधार कर के उस की सख्ती से पालन सुनिश्चित कराने की जरूरत है.

पूसा संस्थान में तैयार हो रही अनेक फसलों की उन्नत किस्में

नई दिल्ली : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), नई दिल्ली में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने संस्थान के कृषि फार्म का अवलोकन किया और वहां चल रहे अनुसंधान एवं नवीनतम कृषि तकनीकों को देखा.

संस्थान के निदेशक डा. सीएच श्रीनिवासराव ने कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही का स्वागत करते हुए संस्थान के प्रमुख अनुसंधान कार्यों और उन की उपलब्धियों पर जानकारी दी.

संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) डा. सी. विश्वनाथन ने चल रही उन्नत अनुसंधान परियोजनाओं और नई किस्मों के विकास के बारे में कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही को विस्तार से बताया.

डा. बीएस तोमर, अध्यक्ष, शाकीय विज्ञान संभाग ने कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही को संस्थान में की जा रही पूसा लाल गोभी संकर-1, पूसा गोभी संकर-81, गोल्डन एकड़, पूसा स्नोबौल एच-1, गांठ गोभी, पूसा साग-1 और पूसा भारती जैसी उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी दी. साथ ही, उन्होंने उन्हें एक जीवंत फसल प्रदर्शनी भी दिखाई.

varieties of crops

कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने फल एवं बागबानी प्रौद्योगिकी का भी निरीक्षण किया. फल एवं बागबानी प्रौद्योगिकी संभाग के प्राध्यापक डा. आरएम शर्मा ने उन्नत नीबूवर्गीय फलों जैसे पूसा शरद और पूसा राउंड की जानकारी दी.

इस के अलावा किन्नू, संतरा, और मौसंबी के बागों का भी कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने अवलोकन किया.
उत्तर प्रदेश में चने की खेती को और अधिक विकसित किया जा सके, इस के लिए उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने चने की उन्नत खेती के लिए पूसा मानव और पूसा पार्वती जैसी नई किस्मों की भी जानकारी ली.

मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने संस्थान के अनुसंधान कार्यों को देखा और उन की सराहना की. साथ ही, वहां उपस्थिति किसानों के लिए खेती को और अधिक लाभदायक बनाने के लिए कुछ सुझाव भी दिए.

गेहूं की खेती (Wheat Cultivation) में कीटों व रोगों से बचाव

दीमक (ओडोंटोटर्मिस आबेसेस) : दीमक बिना सिंचाई वाली और हलकी जमीन का एक खास हानिकारक कीट है. दीमक जमीन में सुरंग बना कर रहती है और पौधों की जड़ें खाती है, जिस वजह से पौधे सूख जाते हैं. यह हलके भूरे रंग की होती है. इस का असर टुकड़ों में होता है, जिसे आसानी से पहचाना जाता है.

रोकथाम : 1 किलोग्राम बिवेरिया और 1 किलोग्राम मेटारिजयम को तकरीबन 25 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद में मिला कर प्रति एकड़ बोआई से पहले इस का इस्तेमाल करें. असर ज्यादा होने पर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी की 3-4 लीटर मात्रा बालू में मिला कर प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें. बीज बोआई से पहले इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस 0.1 फीसदी से उपचारित कर लेना चाहिए.

माहूं : गेहूं में 2 तरह के माहूं लगते हैं. पहला जड़ का माहूं रोग कारक रोपालोसाइफम रूफीअवडामिनौलिस नामक कीट है. दूसरा, पत्ती का माहूं है, यह सीटोबिनयन अनेनी, रोपालोसारफम पाडी और इस की विभिन्न जातियों से होता है. यह फसल की पत्तियों का रस चुस कर नुकसान पहुंचाता है. इन के मल से पत्तियों पर काले रंग की फफूंदी पैदा हो जाती है, जिस से फसल का रंग खराब हो जाता है.

रोकथाम : माहूं का असर होने पर पीले चिपचिपे ट्रेप का इस्तेमाल करें, जिस से माहूं ट्रेप पर चिपक कर मर जाए. परभक्षी काक्सीनेलिड्स या सिरफिड या क्राइसोपरला कार्निया का संरक्षण कर 50000 से 100000 अंडे या सूंडी प्रति हेक्टेयर की दर से छोड़ें. 5 फीसदी नीम का अर्क या 1.25 लीटर तेल 100 लीटर पानी में मिला कर छिड़कें. बीटी का 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. इंडोपथोरा व वरर्टिसिलयम लेकानाई इंटोमोपथोजनिक फंजाई (रोग कारक कवक) का माहूं का असर होने पर छिड़काव करें. जरूरत होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17 एसएल डाइमेथोएट 30 ईसी या मेटासिसटाक्स 25 ईसी 1.25-2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

कर्तन कीट (एग्राटिन एप्सिलाना) : इस की सूंडियां खेत में एकसाथ हमला कर के सारी पत्तियां खा जाती हैं. नर व मादा संभोग कर पत्तियों पर अंडे देते हैं. इन की जीवन चक्र क्रिया वातावरण के हिसाब से एकदो महीने में पूरी होती है. इस की सूंडी जमीन में गेहूं के पौधे के पास मिलती है और जमीन की सतह से पौधे को काट देता है.

रोकथाम : खेतों के बीचोंबीच शाम को घासफूस के छोटेछोटे ढेर लगाने चाहिए. रात को जब सूंडियां खाने को निकलती हैं तो बाद में इन्हीं में छिपती हैं. घास हटाने पर आसानी से इन्हें नष्ट किया जा सकता है. ज्यादा असर होने पर क्लोरपाइरीफास 20 ईसी 1 लीटर प्रति हेक्टेयर या नीम का तेल 3 फीसदी की दर से छिड़काव करें.

 

सैनिक कीट (माइथिमना सपरेटा) : अंडे से निकली सूंडी हवा के झोंकों से एक पौधे से दूसरे पौधे तक पहुंचती है. नवजात सूंडी पौधे के बीच की मुलायम पत्तियों को खाती है. जैसेजैसे यह बढ़ती है, तो पुरानी पत्तियों को खाने लगती है और पूरा पौधा कंकाल हो जाता है. बड़ी सूंडियां बालियों के सींकुर भी खाती हैं, साथ ही बिना पके दानों को भी खाती हैं. इसे काली कर्तन कीट या बाली काटने वाला कीट भी कहा जाता है.

रोकथाम : कीटनाशी रसायन डायक्लोरवास 76 फीसदी 500 मिलीलीटर, क्विनालफास 25 ईसी 1 लीटर या कार्बारिल 50 फीसदी डब्ल्यूपी की 3 किलोग्राम मात्रा को 700 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

तना मक्खी या प्ररोह मक्खी (एथरिगोना सोकटा) : मादा मक्खी तने के निचले भाग में या पत्तियों के नीचे अंडे देती है. अंडे से मैगट निकल कर तने में छेद कर के भीतर दाखिल हो जाती है और अंदर से तने को खाती रहती है. तने के अंदर सुरंग बना कर मृत केंद्र डेडहार्ट बनाती है. फलस्वरूप पौधा पीला पड़ जाता है और अंत में सूख जाता है.

रोकथाम : कीटनाशी रसायन इमिडाक्लोप्रिड 17 एसएल 1 मिलीलीटर या साइपरमेथ्रिन 25 फीसदी की 350 मिलीलीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. कार्बारिल 10 फीसदी डीपी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकें.

कटाई और मंडाई : जब गेहूं का दाना पक जाए या दांत से तोड़ने पर कट की आवाज आए तो समझना चाहिए कि फसल कटाई के लिए तैयार हो गई है. फसल की कटाई मौजूदा साधनों के आधार पर हंसिया ट्रैक्टरचालित रीपर या कंबाइन से की जा सकती है. कटाई के एकदम बाद यानी कटाईमड़ाई के समय मौसम खराब हो जाता है.

उपज : यदि किसान सही समय पर अच्छी नस्ल व नए तरीके अपना कर अच्छी विधियों का इस्तेमाल करता है, तो वह पैदावार को ज्यादा उगा सकता है, जिस में तकरीबन 50 से 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज हासिल होती है.

दिसंबर (December) महीने के जरूरी काम

आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.

* दिसंबर महीने में गेहूं की पछेती किस्मों की बोआई की जाती है. इस बोआई के लिए प्रति हेक्टेयर 125 किलोग्राम बीज का इस्तेमाल करें. बोआई के दौरान कूंड़ों के बीच 15 सैंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए.

* दिसंबर महीने का अहम काम गन्ने की फसल की कटाई का होता है. इस दौरान गन्ने की तमाम किस्में कटाई के लिए पूरी तरह तैयार हो जाती हैं. किसान जरूरत और सुविधा के मुताबिक गन्ने की कटाई का काम निबटा सकते हैं.

* शरदकालीन गन्ने के खेतों में अगर नमी कम महसूस हो, तो जरूरत के मुताबिक सिंचाई करना न भूलें.

* गन्ने के साथ अगर तोरिया या राई वगैरह फसलें भी लगी हों, तो जरूरत के मुताबिक उन की निराईगुड़ाई करें. इस से गन्ने की फसल को भी फायदा होगा.

* इस माह मटर की फसल में फूल आने का वक्त होता है, इसलिए फूल आने से पहले मटर के खेतों की सिंचाई कर दें. ऐसा करने से फूल व फलियां बेहतर तरीके से आती हैं.

* मटर की फसल में तनाछेदक और फलीछेदक कीटों के लगने का खतरा रहता है. लिहाजा, उन के प्रति जागरूक रहना जरूरी है.

December Work

* सरसों के खेत में अगर पौधे ज्यादा घने लगे हों, तो बीचबीच से फालतू पौधे उखाड़ कर अपने मवेशियों को चारे के तौर पर खिला दें. सरसों के फालतू पौधों के साथसाथ खेत से तमाम खरपतवार भी निकाल दें.

* मसूर की दाल की बोआई का काम भी नवंबर माह में पूरा कर लिया जाता है. फिर भी अगर अभी तक मसूर की बोआई न हो पाई हो, तो उसे फौरन करें.

* आलू के खेतों का ध्यान रखें. जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें और पौधों में बाकायदा मिट्टी चढ़ा दें. निराईगुड़ाई कर के खेत से खरपतवारों का सफाया करें.

* प्याज की नर्सरी का खयाल रखें और रोपाई का इंतजाम करें. तैयार पौधों की रोपाई इस महीने के आखिर तक कर दें.

* लहसुन के खेतों में अगर नमी कम नजर आए, तो हलकी सिंचाई कर दें. खेत की निराईगुड़ाई करें, ताकि खरपतवार न पनप सकें.

* दिसंबर महीने में अकसर लीची के छोटे पेड़ पाले की गिरफ्त में आ जाते हैं. बचाव के लिए इन पेड़ों को 3 तरफ से छप्पर से कवर कर दें, सिर्फ पूर्वीदक्षिणी सिरा देखभाल के लिए खुला रखें.

* लीची के फल वाले बड़े पेड़ों में 50 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद प्रति पेड़ की दर से डालें. सभी पेड़ों में 600 ग्राम फास्फोरस भी डालें. बीमार और खराब शाखाओं को पेड़ों से तोड़ कर बाग से दूर ले जा कर जमीन में दबा दें.

* यह आम का मौसम नहीं होता है, मगर आम के बागों की सफाई जरूर करें. आम के 10 साल या उस से पुराने पेड़ों में 1 किलोग्राम पोटाश और 750 ग्राम फास्फोरस प्रति पेड़ की दर से डालें. ये चीजें तनों से 1 मीटर का फासला छोड़ कर थालों में डालें.

* मिली बग कीटों से आम के पेड़ों को महफूज रखने के लिए तने के चारों ओर 2 फुट की ऊंचाई पर 400 गेज वाली 30 सैंटीमीटर पौलीथिन शीट की पट्टी बांधें. पट्टी के निचले किनारे पर अच्छी तरह ग्रीस लगा दें.

* नए बागों में लगे आम के छोटे पौधों को दिसंबर माह में पड़ने वाले पाले से बचाना लाजिमी है. इस के लिए फूस के छप्पर का इस्तेमाल करें. बीचबीच में सिंचाई करते रहें.

* अपने मुरगेमुरगियों को ठंड से बचाने का पूरा इंतजाम करें.

* अगर मुरगीपालन का ज्यादा तजरबा न हो, तो कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से सलाह ले कर मुरगेमुरगियों की हिफाजत का पुख्ता बंदोबस्त करें.

* इस महीने की सर्दी मवेशियों के लिए भी बेहद खतरनाक होती है. लिहाजा, सजग रहें. रात के वक्त गायभैंसों को बंद कमरों में रखें व लाइट लगातार जलने दें. रोशनी के लिए पीली लाइट इस्तेमाल करें, क्योंकि वह दूधिया लाइट के मुकाबले ज्यादा गरम होती है.

* अगर पशुओं को बरामदे में बांधते हैं, तो रात के वक्त मोटेमोटे परदे जरूर लगाएं. सुबहशाम कंडे की आंच जला कर पशुओं को गरमी दें. धुएं से मच्छर भी भाग जाते हैं.

* दिन के वक्त पशुओं को धूप में जरूर बांधें. यह सेहत के लिहाज से जरूरी है.

डेयरी की खास चारा कटर मशीन

खेती के साथ ही किए जाने वाले कामों में पशुपालन भी एक खास काम है. पशुपालन में चारे का अहम रोल है खासकर डेयरी फार्मिंग में.  बहुत से किसान दुधारू पशुओ को  पाल कर डेयरी रोजगार से अच्छाखासा मुनाफा कमाते हैं.

किसानों के पास खेती की जमीन भी होती है, जिस में वह चारा फसल ज्वार, बाजरा, लोबिया, ग्वार, बरसीम, जई आदि फसलें उगा कर पशु के लिए चारे का इंतजाम करते हैं. हालांकि, 1-2 पशु रखने वाले किसान कुट्टी या चारा काटने के लिए हाथ से चलने वाली मशीन लगा कर रखते हैं, जिसे आम बोलचाल में टोका मशीन यानी गंड़ासा कहा जाता है.

इसी मशीन से किसान चारे की कटाई कर पशुओं को चारा खिलाते हैं. कुछ हरे चारे जैसे बरसीम, जई आदि तो इस मशीन से सरलता से कट जाते हैं, लेकिन जब ज्वार बाजरा, गन्ना (अंगोला), मक्का जैसी फसल से चारा बनाना हो, तो उन की कटाई में काफी मेहनत लगती है.

तब हमें जरूरत महसूस होती है किसी शक्ति चालित चारा कटाई मशीन की, जिस से कम मेहनत और कम समय में अधिक चारे की कटाई हो सके.

पशुपालकों और किसानों की इस समस्या का समाधान करती हैं पावर चालित एवं ट्रैक्टर चालित चारा काटने वाली मशीनें.

यहां ट्रैक्टर से चलने वाली कुट्टी मशीन के बारे में जानकारी दी गई है. यह चारा कटाई मशीन किसी भी तरह के चारे को आसानी से काट सकती है. ट्रैक्टर या इंजन चालित और बिजली से चलने वाली इस मशीन को चाफ कटर भी कहा जाता है.

ट्रैक्टर के साथ जोड़ कर चलाई जाने वाली यह मशीन कम समय में अधिक चारे की कटाई आसानी से करती है.

चाफ कटर मशीन

इस यंत्र की मदद से किसी भी तरह के चारे को छोटेछोटे साइज में कुट्टी करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. चारा काटने वाली मशीनों में इलैक्ट्रिक चाफ कटर और पोर्टेबल ट्रैक्टर से चलने वाली चारा काटने वाली मशीनें शामिल हैं, हम जिसे चाफ कटर मशीन कहते हैं.

fodder cutter machine

ट्रैक्टर से चलने वाली चारा कटाई मशीनें

ट्रैक्टर से चलने वाली कुट्टी मशीन को ट्रैक्टर के पीछे पीटीओ शाफ्ट से जोड़ कर चलाया जाता है. यह मशीन हर तरह के चारे को आसानी से काट सकती है. यह चाफ कटर मशीन एक आधुनिक हैवी ड्यूटी मशीन है. इस चाफ कटर मशीन का इस्तेमाल ज्यादातर डेयरी फार्मिंग करने वाले लोग भी करते हैं.

ट्रैक्टर से चलने वाली यह चारा कटर मशीन एक हैवी चेसिस फ्रेम के साथ जुड़ी रहती है, जिसे ट्रैक्टर में पीछे जोड़ कर एक जगह से दूसरी जगह आसानी से लाया और ले जाया जा सकता है. इस चाफ/चैफ कटर में एक बड़े ह्वील पर कई सारे हैवी ड्यूटी ब्लेड लगे होते हैं.

ट्रैक्टर से चलने वाली इस कुट्टी मशीन में 2, 3 और 4 ब्लेड लगे होते हैं. पशुपालक अपनी जरूरत के अनुसार ब्लेड की संख्या को कम या ज्यादा कर सकते हैं.

इस कटर मशीन में पीछे की ओर एक गियर भी होता है, जिस की मदद से आप चारे की मोटाई और बारीकी सैट कर सकते हैं. मशीन में गियर सिस्टम भी है. जरूरत पड़ने पर इसे रिवर्स भी घुमा सकते हैं. इस गियर से कटर की स्पीड भी एडजस्ट की जा सकती है.

चारा कटर मशीन से कटा हुआ चारा सीधे जमीन पर गिरता है. अगर आप चाहते हैं कि चारा जमीन पर न गिर कर एक जगह इकट्ठा हो, तो उस के लिए भी बंदोबस्त है. यह मशीन कटाई के बाद चारे को सीधे ही ट्रौली में भी गिरा सकती है.

यह चारा कटाई मशीन कई घंटों तक लगातार काम कर सकती है. इस के लिए किसी खास देखभाल की भी जरूरत नहीं है.

मिनी चारा कटर एग्रोमैक-1000 एम.

सम्यक एग्रो इंडस्ट्रीज के पास चारा काटने वाली मशीनों की कई सीरीज हैं, जिन की अपनी अलगअलग खूबियां हैं.

इस मिनी चारा कटर से ज्वार, बाजरा, गन्ना, बरसीम, सूखा व हरे अन्य चारे कड़वा आदि की कटाई की जाती है.

इस यंत्र में लगे ब्लेड एमएस स्टील के बने होते हैं. इलैक्ट्रिक मोटर के साथ वी वैल्ट पुली के साथ फिट की गई है.

मिनी चारा कटर एग्रोमैक 1000 एम. की खासीयतें

इस में 2 हौर्सपावर की मोटर लगी है और चारा कटाई के लिए 2 ब्लेड लगे हैं. चारे को आगे बढ़ाने के लिए 2 रोलर लगे हैं. इस मशीन के काम करने की कूवत 1000 किलोग्राम प्रति घंटा तक है. हरे व सूखे चारे में बदलाव हो सकता है.

कड़वा कुट्टी मशीन/रोका- एग्रोमैक-200 एचएम

बिजली व हाथ दोनों तरह से चारा काटने वाली इस मशीन को रोका मशीन भी कहते हैं. यह पुराने समय में इस्तेमाल होने वाली चारा मशीन का ही आधुनिकीकरण है. इस में काफी कम बिजली की खपत होती है. अगर बिजली नहीं है, तो काम चलाने लायक चारा हाथ से भी काटा जा सकता है.

यह पावर कम हैंड औपरेटिड चारा कटाई मशीन है, जो सस्ते दाम में बाजार में मिल जाती है. इस रोका (चारा कटाई) मशीन को खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में भी इस्तेमाल किया जाता है. यह मशीन ग्राहकों की जरूरत के अनुसार अनेक विशेषताओं में भी मिल जाती है.

डेयरी फार्म व वर्मी कंपोस्ट बनाने वाली इकाइयों में भी यह चारा कटाई मशीन काफी उपयोगी साबित हो रही है.

खासीयतें

इस मशीन को अगर हाथ से न चला कर पावर से चलाना है, तो इस के लिए 1.5 हौर्सपावर की मोटर या 2 हौर्सपावर का इंजन चाहिए.

इस में चारा काटने के लिए 2 ब्लेड लगे होते हैं. इस में चारा आधा इंच से ले कर पौना इंच तक के साइज में काटा जाता है और एक घंटे में लगभग 300 किलोग्राम चारा कट जाता है.

प्रकाश चारा कटर मशीन

यह ट्रैक्टर चालित चारा कटर मशीन है, जो 2, 3 और 4 ब्लेडों में उपलब्ध है. इस मशीन से हरा व सूखा चारा, जिस में ज्वार, बाजरा, मक्का का कड़वा भी काटा जाता है.

इस मशीन में मजबूत फ्रैक और हैवी ड्यूटी गियर होने के कारण मशीन लंबे समय तक काम करती है.

यह चारा कटर मशीन 2 टायरों वाले फ्रैम पर लगी होती है, इसलिए इसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से ले जाया जा सकता है.

अधिक जानकारी के लिए फोन नंबर 0562-4042153 या फिर मोबाइल नंबर 09897591803 पर बात कर सकते हैं.

इन कृषि यंत्रों की खरीद पर सरकार की ओर से सब्सिडी का भी लाभ मिलता है.

केंद्र सरकार भी राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत चारा काटने वाली मशीनों पर पशुपालकों और किसानों को अच्छीखासी सब्सिडी देती है. प्रदेश सरकारें भी अपने नियमानुसार छूट देती हैं. यह सब्सिडी 50 फीसदीतक भी हो सकती है या इस से अधिक भी हो सकती है.

आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर (Potato Digger)

खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.

कृषि यंत्र पर आप के द्वारा किया गया खर्चा आप को रिटर्न देने की गारंटी के साथ हार्वेस्टर वाली सभी जरूरतें पूरी करता है. इस पोटैटो डिगर से एक दिन में तकरीबन 6-8 एकड़ क्षेत्रफल की आलू खुदाई की जा सकती है.

यह भारत सरकार द्वारा परीक्षण किया गया आलू खुदाई यंत्र है.

खालसा सिंगल कन्वेयर पोटैटो डिगर

यह सिंगल कन्वेयर 2 लाइनों में आलू खुदाई करने वाला यंत्र है. भारी मिट्टी वाले खेत में भी यह आसानी से काम करता है. इस यंत्र में लगा ङ्क आकार का नोज ब्लेड आलू को खराब होने से बचाता है और सिंगल कन्वेयर आलू से मिट्टी अलग कर उसे साफसुथरा करता है.

इस यंत्र में लगा बैक रोलर खेत की मिट्टी को समतल कर उचित सतह बनाता है, जिस से खुदाई के बाद सभी आलू ऊपरी सतह पर आ जाते हैं. इस वजह से आलू चुनने में दिक्कत नहीं होती.

सभी तरह की मिट्टी के लिए खास पोटैटो डिगर

खालसा ब्रांड का 2 लाइनों में आलू खोदने वाला यह यंत्र चलाने में बहुत आसान है. यह आसानी से ट्रैक्टर से जुड़ सकता है. यह यंत्र सभी प्रकार की मिट्टी, जैसे रेतीली, चिकनी और कठोर सभी के लिए उपयुक्त है. कम समय में भी अधिक रकबे को यह कवर करता है और आलू को नुकसान पहुंचाए बिना उस की बेहतर खुदाई करता है.

फ्रंट कन्वेयर और यंत्र में लगी यूनिट के साथ यह आलू का 100 फीसदी ऐक्सपोजर सुनिश्चित करता है अर्थात आलू मिट्टी के ऊपर आ कर दिखता है, जिस से आलू को खेत से उठाने में भी आसानी होती है.

खालसा विंड्रो पोटैटो डिगर

विंड्रो सिस्टम के साथ लगे 2 पंक्ति वाले डिगर एलिवेटर कटाई की नवीनतम तकनीक प्रदान करते हैं. यह पूरी तरह से एडजस्टेबल है और 20 इंच की डिगर हाई कार्बन स्टील डिस्क में गहराई बनाए रखने के लिए पीछे की तरफ 2 पहिए लगे हैं.

इस यंत्र से आलू खुदाई का समय अन्य डिगर के मुकाबले एकतिहाई ही लगता है, जिस से मेहनत, समय और पैसे की काफी अधिक बचत होती है.

2 पंक्ति वाला पोटैटो हार्वेस्टर

खालसा का ट्रैक्टरचालित 2 पंक्ति आलू कंबाइन हार्वेस्टर वी-नोज खुदाई फ्रंट ब्लेड के साथ आता है. यह भारत का पहला स्वचालित आलू हार्वेस्टर है.

कन्वेयर बेल्ट की मदद से आलू बिना मिट्टी के साफसुथरा निकलता है, जो यंत्र में लगे आलू टैंकर में इकट्ठा किया जाता है. उस के बाद आलू को अपनी सुविधानुसार  ट्रौली/बालटियों में ले जाया जा सकता है. ये सभी काम स्वचालित तरीके से होते हैं. इस में किसी मानवशक्ति की जरूरत नहीं होती.

अधिक जानकारी के लिए आप फोन नंबर 0121-2511627, 6541627 पर बात कर सकते हैं या वैबसाइट पर जानकारी ले सकते हैं.

महिलाओं और युवाओं को मिलेंगे रोजगार (Employment)

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने नई दिल्ली में 10,000 नवगठित बहुद्देशीय प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS), डेयरी व मत्स्य सहकारी समितियों का शुभारंभ किया. उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपयी की जन्म शताब्दी के दिन 10,000 नई बहुद्देश्यीय प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (MPACS), डेयरी व मत्स्य सहकारी समितियों का शुभारंभ हो रहा है.

अमित शाह ने कहा कि 19 सितंबर, 2024 को इसी स्थान पर हम ने एक SOP बनाई थी. उस के 86 दिन के अंदर ही हम ने 10,000 पैक्स को रजिस्टर करने का काम समाप्त कर दिया है. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहकारिता मंत्रालय की स्थापना की, तो उन्होंने ‘सहकार से समृद्धि’ का मंत्र दिया था.

मंत्री अमित शाह ने आगे कहा कि ‘सहकार से समृद्धि’ तभी संभव है, जब हर पंचायत में सहकारिता उपस्थिति हो और वहां किसी न किसी रूप में काम करे. उन्होंने कहा कि हमारे देश के त्रिस्तरीय सहकारिता ढांचे को सब से ज्यादा ताकत प्राथमिक सहकारी समिति ही दे सकती है, इसलिए मोदी सरकार ने 2 लाख नए पैक्स बनाने का निर्णय लिया था.

केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि नाबार्ड (NABARD), एनडीडीबी(NDDB) और एनएफडीबी (NFDB) ने 10,000 प्राथमिक सहकारी समितियों के पंजीकरण में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है. सहकारिता मंत्रालय की स्थापना के बाद सब से बड़ा काम सभी पैक्स का कंप्यूटराइजेशन करने का काम किया गया.

उन्होंने आगे कहा कि कंप्यूटराइजेशन के आधार पर पैक्स को 32 प्रकार की नई गतिविधियों से जोड़ने का काम किया गया. हम ने पैक्स को बहुआयामी बना कर और उन्हें भंडारण, खाद, गैस, उर्वरक एवं जल वितरण के साथ जोड़ा है.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि ट्रेंड मैनपावर न होने के कारण ये सब हम नहीं कर सकते. इस के लिए आज यहां प्रशिक्षण मौड्यूल का भी शुभारंभ हुआ है, जो पैक्स के सदस्यों और कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने का काम करेंगे.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि ये प्रशिक्षण मौड्यूल हर जिला सहकारी रजिस्ट्रार की जिम्मेदारी बनेगी कि पैक्स के सचिव एवं कार्यकारिणी के सदस्यों का अच्छा प्रशिक्षण सुनिश्चित हो.

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि यहां 10 सहकारी समितियों को रुपे किसान क्रेडिट कार्ड (RuPay Kisan Credit Card), माइक्रो एटीएम (Micro ATM) का वितरण किया गया है. इस अभियान के तहत आने वाले दिनों में हर प्राथमिक डेयरी को माइक्रो एटीएम दिया जाएगा. माइक्रो एटीएम और रुपे किसान क्रेडिट कार्ड (RuPay Kisan Credit Card) हर किसान को कम खर्च पर लोन यानी ऋण देने का काम करेगा.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि पैक्स के विस्तार के लिए विजिबिलिटी, रेलेवेंस, वायबिलिटी और वाइब्रेंसी का ध्यान रखा गया है. पैक्स में 32 कामों को जोड़ कर इसे विजिबल और वायबल बनाया गया है.

उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि गांव में कौमन सर्विस सैंटर (Common Service Centre) (CSC) का जब पैक्स बन जाता है, तो गांव के हर नागरिक को किसी न किसी रूप में पैक्स के दायरे में आना पड़ता है. इस प्रकार हम ने इस की रेलेवेंस भी बढ़ाई है.

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जब पैक्स गैस वितरण, भंडारण, पैट्रोल वितरण आदि का काम करते हैं, तो उन की वाइब्रेंसी अपनेआप बढ़ जाती है. साथ ही, पैक्स के बहुद्देश्यीय होने से पैक्स का जीवन भी लंबा होने की पूरी संभावना रहती है.

उन्होंने कहा कि यह एक बहुद्देशीय कार्यक्रम है, जिस से किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने का प्रयास होगा.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि कंप्यूटराइजेशन और टैक्नोलौजी से पैक्स में पारदर्शिता आएगी, सहकारिता का जमीनी स्तर पर विस्तार होगा और ये महिलाओं और युवाओं के रोजगार का माध्यम भी बनेगा. साथ ही, पैक्स, कृषि संसाधनों की आसान उपलब्धता भी सुनिश्चित करेगा.

अमित शाह ने कहा कि हमारी 3 नई राष्ट्रीय स्तर की कोऔपरेटिव्स के माध्यम से पैक्स, और्गेनिक उत्पादों, बीजों और ऐक्सपोर्ट के साथ किसानों की समृद्धि के रास्ते भी खोलेगा. इस से सामाजिक और आर्थिक समानता भी आएगी, क्योंकि नए मौडल में महिलाओं, दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों की भागीदारी सुनिश्चित की है, जिस से सामाजिक समरसता भी बढ़ेगी.

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि मोदी सरकार ने लक्ष्य रखा है कि अगले 5 साल में 2 लाख नए पैक्स का गठन करेंगे. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि 5 साल से पहले ही हम इस लक्ष्य को पूरा लेंगे.

उन्होंने आगे बताया कि पहले चरण में नाबार्ड 22,750 पैक्स और दूसरे चरण में 47,250 पैक्स बनाएगा. इसी प्रकार एनडीडीबी 56,500 नई समितियां बनाएगा और 46,500 मौजूदा समितियों को और मजबूत बनाएगा. वहीं एनएफडीबी 6,000 नई मत्स्य सहकारी समितियां बनाएगा और 5,500 मौजूदा मत्स्य सहकारी समितियों का सशक्तीकरण करेगा. इन के अलावा राज्यों के सहकारी विभाग 25,000 पैक्स बनाएंगे.

अमित शाह ने इस अवसर पर कहा कि नए मौडल के साथ अब तक 11,695 नई प्राथमिक सहकारी समितियां पंजीकृत हुई हैं, जो हमारे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है. साथ ही, 2 लाख नए पैक्स बनने के बाद फौरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेजेस के माध्यम से किसानों की उपज को वैश्विक बाजार में पहुंचाना बड़ा आसान हो जाएगा.

सरस मेलों से ग्रामीण महिलाएं (Rural Women) बन रहीं सशक्त

जयपुर : कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री डा. किरोड़ी लाल मीणा ने राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद (राजीविका) द्वारा जवाहर कला केंद्र, जयपुर में संचालित ‘सरस राजसखी मेला, 2024’ का अवलोकन करते हुए कहा कि सरस मेलों का ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने में अहम योगदान है. इन मेलों में देश की ग्रामीण महिलाएं अपने हाथों से बने शोपीस आइटम बेचती है.

मेले में मंत्री डा. किरोड़ी लाल ने सरस मेले में सभी स्टालों का अवलोकन किया एवं विभिन्न राज्यों से आए स्वयं सहायता समूह की महिलाओं से बातचीत की और उन के उत्पादों की सराहना की. मेले में 250 से अधिक जीआई टैग उत्पादों के तकरीबन 400 स्टाल थे.

उन्होंने आगे कहा कि सरस मेले में राजीविका दीदियों द्वारा बने शिल्पकला, एंब्रौयडरी, जैविक उत्पाद, घर का साजोसामान एवं खानेपीने से संबंधित चीजों को एक स्थान पर खरीदारी करने का अवसर प्रदान करता है. ये मेले पारंपरिक भारतीय कला एवं संस्कृति को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच प्रदान करते हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि मेले में विभाग द्वारा पैकेजिंग, ब्रांडिंग, सोशल मीडिया मार्केटिंग और वित्तीय प्रबंधन जैसे विषयों पर कार्यशालाओं का आयोजन भी किया गया, जिस से कि राजीविका महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा उत्पाद बेचने के अवसर उपलब्ध हो सकें.

सरस मेले में नैशनल क्रेडिट कोर यानी एनसीसी के 70 कैडेटों ने भी अवलोकन किया और खरीदारी कर मेले का लुत्फ उठाया. साथ ही, अजमेर एवं अलवर जिले से आई स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा भी मेले का भ्रमण किया गया एवं भविष्य में मेले में अपने उत्पादों के साथ सहभागिता निभाने की मंशा जाहिर की गई.

यह मेला ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक एवं सामाजिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देने का एक अहम प्रयास है, जिस में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के हस्तनिर्मित उत्पादों का प्रदर्शन किया गया. मेले में देशभर के 250 से अधिक भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग वाले उत्पादों और पारंपरिक शिल्प का शानदार संग्रह देखने को मिला.

सरस राज्य सखी राष्ट्रीय मेला एक अद्वितीय मंच है, जहां विभिन्न राज्यों की महिला सदस्य अपने पारंपरिक हस्तशिल्प, हैंडलूम, खाद्य उत्पाद और उन्नत तकनीकी उत्पादों का प्रदर्शन कर रही है. इस आयोजन में क्षेत्रवाद मंडप बनाए गए, जिन में प्रत्येक राज्य की विशिष्ट सांस्कृतिक कलाकृतियां और पारंपरिक उत्पाद प्रदर्शित हुए. यहां पर तकरीबन 300 से अधिक स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं ने अपने उत्पादों को बेचा. यह मेला देश की सांस्कृतिक विविधता, पारंपरिक स्वादों और हस्तशिल्प के अनूठे संगम को दर्शाता है.