White Musli: सफेद मूसली को वैज्ञानिक भाषा में कलोरोफाइटम बोरिविलिएनम के नाम से जाना जाता है, लेकिन इंडियन मेटीरिया मेडिका में इस का नाम क्लोरोफाइटम अरूडीनेशियम बताया गया है. इसे कई भाषाओं में अलगअलग नामों से जाना या पुकारा जाता है. एक अनुमान के अनुसार इस की विश्व भर में मांग 35000 टन सालाना है, जबकि इस का उत्पादन केवल 5000 टन सालाना ही है.
करीब डेढ़ फुट ऊंचाई के इस पौधे की जड़ों से दवाएं बनाई जाती हैं. अगर इस की खेती रोजगार के तौर पर की जाए, तो इस से काफी पैसा कमाया जा सकता है. सफेद मूसली की फसल महज 6 से 8 महीने में प्रति एकड़ 2 से 3 लाख रुपए का फायदा दे सकती है. सुखाई हुई मूसली की बाजार में कीमत 1000 से 1200 रुपए प्रति किलोग्राम है.
सफेद मूसली की कई प्रजातियां पाई जाती हैं जैसे क्लोरोफाइटम बोरिविलएनम, क्लोरोफाइटम ट्यूबरोजम, क्लोरोफाइटम अरुंडीनेशियम, क्लोरोफाइटम एंटेनुएटम, क्लोरोफाइटम ब्रीविस्केपम आदि. इस की खेती के लिए मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, हरियाणा, दिल्ली व राजस्थान में अच्छी बारिश वाले क्षेत्रों की जलवायु मुनासिब रहती है.
खेती : सफेद मूसली वास्तव में एक कंद है, जो देश के जंगलों में अपनेआप उगता है. लेकिन नई कृषि तकनीक का इस्तेमाल कर के अच्छी व ज्यादा मात्रा में फसल ली जा सकती है. सफेद मूसली की जड़ें दवा बनाने के काम आती हैं.
इस की खेती के लिए जमीन थोड़ी नर्म होनी चाहिए, जिस से जड़ें ज्यादा फैल सकें. अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी, जिस में जीवाश्म की सही मात्रा हो इस की खेती के लिए सब से अच्छी मानी जाती है. ज्यादा नर्म मिट्टी होने पर कंद पतले रह जाते हैं, लिहाजा ज्यादा पोली जमीन ठीक नहीं होती है.
इस की खेती के लिए पानी की काफी जरूरत होती है. इसे जून के महीने में लगाया जाता है. जूनजुलाई व अगस्त महीनों में बारिश होती रहती है, लेकिन फिर भी बारिश के 10 दिनों के बाद खेत में पानी देना सही रहता है. पौधों के पत्ते सूख कर झड़ने के बाद भी हलकी सिंचाई करनी चाहिए, जिस से जड़ें बढ़ सकें.
खाद : सफेद मूसली की खेती के लिए गोबर की खाद, रासायनिक हरी खाद, हड्डी या मिट्टी कंडीशनर का इस्तेमाल किया जा सकता है. गोबर की अच्छी पकी हुई खाद 2 से 10 ट्राली प्रति एकड़ के लिए सही मानी जाती है, जबकि अच्छी पकी हरी खाद के लिए जनवरी से फरवरी में मूसली के कंद की खेती वाले स्थानों पर कम समय वाली फसलें जैसे सन, बरू या धतूरा उगाते हैं व मईजून में सफेद मूसली के लिए खेत तैयार करते समय, इसे हल चला कर खेत में ही मिला देते हैं.
मूसली की खेती के लिए गहरी जुताई कर के 3 से 3.5 फुट चौडे़ व 6 इंच से 1.5 फुट तक ऊंचे बेड बना लेते हैं, जिन में पानी के सही निकास के लिए नालियां बनाई जाती हैं. मूसली की बिजाई इस के धनकंदों या ट्यूबर्स से की जाती है.
इस के लिए कंद के साथ पौधे के ऊपरी भाग का कुछ हिस्सा होना जरूरी है. मूसली के पौधों की खेती बीजों से करने में समय ज्यादा लगता है व अच्छी किस्म के पौधे तैयार नहीं हो पाते, लिहाजा सीधे ही पौधे के ऊपरी भाग सहित कंदों/फिंगर्स से बिजाई करना ठीक रहता है.
कंदों को लगाने से पहले 2 मिनट तक बैविस्टीन के घोल में डुबो कर रखा जाता है, इस से पौधे बीमारी से बचे रहते हैं. बिजाई के कुछ दिनों बाद ही पौधों में पत्ते आने लगते हैं, उस के बाद फूल व बीज आते हैं.
अक्तूबर से नवंबर के दौरान पत्ते अपनेआप सूख कर गिर जाते हैं व पौधे के कंद जमीन में रह जाते हैं. पत्ते सूख जाने पर (बिजाई के तकरीबन 3 महीने बाद) फसल तैयार हो जाती है, लेकिन पत्तों के सूख कर गिरने के 1-2 महीने बाद यानी बिजाई के करीब 5 महीने बाद जब कंदों का सफेद रंग गहरा भूरा हो जाए तब उन्हें निकाल लेते हैं.
इस प्रकार जनवरी में हाथों से सभी कंदों को निकाल कर उन को धोया जाता है. इस के बाद इन की छिलाई की जाती है. जिन कंदों को बोआई के लिए रखना हो, उन्हें क्राउन भाग सहित बिना छिलाई किए रख देते हैं. बाकी छिली हुई मूसली को 2-3 दिनों तक धूप में खुला रख कर सुखा लेते हैं और फिर इस की पैकिंग कर देते हैं.
जो मूसली छिलके सूखने पर सफेद रहे और जिस में किसी प्रकार के काले या भूरे धब्बे न हों सही होती है.
सफेद मूसली की खेती से लाभ : 1 एकड़ में मूसली के 80000 पौधे लगाए जाते हैं, जिन में 70000 पौधे बच सकते हैं. इस की खेती के लिए प्लांटिग मैटीरियल यानी कंदों की लागत ही सब से बड़ा खर्च है. प्रति एकड़ यह खर्च करीब 1 लाख रुपए तक आता है.
इस का प्लांटिंग मैटीरियल 300 से 350 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से मिलता है. इस प्रकार 3 से 4 क्विंटल प्रति एकड़ प्लांटिग मैटीरियल की कीमत 1 लाख रुपए तक आती है. इस के अलावा मूसली छीलने व सुखाने पर 50 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से 400 किलोग्राम के लिए 20000 रुपए खर्च आता है.
सूखी हुई 4 क्विंटल मूसली से 1000 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से 4 लाख रुपए और प्लांटिग मैटीरियल के रूप में करीब 50000 रुपए कमाए जा सकते हैं. इस प्रकार प्रति एकड़ 2 से 3 लाख रुपए तक मात्र 6 से 9 महीने की फसल से कमाए जा सकते हैं.
खेती के लिए प्रशिक्षण : मूसली के बीजों को खरीदने व इस के दूसरे कामों के लिए महाराष्ट्र के मित्तल मूसली फार्म से संपर्क किया जा सकता है.
मित्तल मूसली फार्म का पता है: मित्तल मूसली फार्म (पुराने टेलीफोन एक्सचेंज के ऊपर) जलगांव, जामोद, जिला बुल्ढाना, महाराष्ट्र-443402