Brinjal : चमकीले और खूबसूरत नजर आने वाले बैगन की खेती समूचे देश में पूरे साल कभी भी की जा सकती है. रबी, खरीफ और गरमी तीनों मौसमों में इसे उपजाया जा सकता है. अधिकतर लोगों में यह भ्रम है कि बैगन सेहत के लिए नुकसान देने वाला है. इस से नाकभौं सिकोड़ने वालों ने इसे ‘बे गुण’ का नाम दे रखा है. सचाई यह है कि खांसी, हाई ब्लड प्रेशर, खून की कमी और दिल की बीमारी जैसे रोगों के लिए यह काफी फायदेमंद है. सफेद बैगन चीनी के मरीजों के लिए फायदेमंद होता है. इस के साथ ही इस की खेती करने वाले को अच्छाखासा मुनाफा भी मिलता है.

बैगन की खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है, पर हलकी भारी और दोमट मिट्टी इस के लिए काफी मुफीद मानी जाती है. इस के लिए खेत तैयार करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से की जाती है. उस के बाद की जुताई कल्टीवेटर से करना बेहतर होता है. हर जुताई के बाद पाटा चला कर मिट्टी को भुरभुरी बना दिया जाता है. उस के बाद निराई व गुड़ाई और सिंचाई  के लिए खेतों को क्यारियों में बांट दिया जाता है.

लंबा बैगनी, लंबा हरा, सफेद कलौंजी, गोल आदि बैगन की मुख्य प्रजातियां हैं. जिस इलाके में जिन प्रजातियों के बैगन की मांग होती है, उस के मुताबिक  इस की खेती की जाती है. इस की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 500 से 700 ग्राम बीजों की जरूरत पड़ती है. बैगन के बीजों को नर्सरी में लगा कर पहले पौध तैयार कर लिए जाते हैं. इस की खरीफ फसल के लिए मार्च में, रबी फसल के लिए जून में और गरमी की फसल के लिए नवंबर में बीजों को बोया जाता है.

नर्सरी में 4 से 5 हफ्ते में तैयार होने वाले पौधों को खेतों में रोपा जाता है. कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए. बैगन के खेत की समयसमय पर निराईगुड़ाई करना जरूरी है. खेत में नमी की कमी होने पर सिंचाई कर देनी चाहिए. बैगन के पौधे लंबे समय तक फल देते हैं, इसलिए खाद और उर्वरक की काफी जरूरत होती है.

बैगन की फसल को सब से ज्यादा नुकसान फल छेदक और तना छेदक कीटों से होता है. इन से बचाव के लिए किसान जरूरत से ज्यादा कैमिकल कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं. इस से मित्र कीट मारे जाते हैं और नुकसान पहुंचाने वाले कीटों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाने से वे मरते नहीं हैं. बैगन के पौधों को पौधा संरक्षण की सामेकित प्रबंधन तकनीक से बचाया जा सकता है. पौध गलन, पौधों में बौनापन, पत्तों में पीलापन, पत्तों का झड़ना, पत्तों का छोटा होना आदि बैगन के मुख्य रोग हैं. इन्हें जैविक तकनीक से दूर किया जा सकता है.

फल छेदक, तना छेदक और किसी भी तरह के कीटों से बचाव के लिए बैसीलस थुरिनजेनसिस (डीपीएल 8, डेलफिन) एनपीबी 4 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिला कर नीम आधारित कीटनाशकों का इस्तेमाल कर के बैगन के पौधों और फसल को बचाया जा सकता है. वहीं बाभेरिया बासियाना फफूंद आधारित कीटनाशक है. इसे 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर इस्तेमाल करना होता है. लाल मकड़ी से बचाव के लिए सल्फर का इस्तेमाल बेहतर होता है.

नई तकनीक के जरीए उन्नत बैगन की खेती करने से प्रति हेक्टेयर 400 क्विंटल की उपज होती है. थोक बाजार में इस की कीमत 1000 से 1200 रुपए प्रति क्विंटल है. इस हिसाब से 1 हेक्टेयर में बैगन की खेती करने पर कम से कम 4 लाख रुपए कमाए जा सकते हैं. प्रति हेक्टेयर बैगन की खेती की लागत डेढ़ लाख रुपए के करीब होती है. इस लिहाज से प्रति हेक्टेयर ढाई लाख रुपए की आमदनी हो जाती है.

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