धान फसल : इस समय खरीफ फसलों पर बहुत ही ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. विशेष कर धान की फसल पर. धान की फसल में खैरा रोग लगने की संभावना इस समय ज्यादा रहती है. खैरा रोग जिंक की कमी के कारण होता है. इस रोग में पत्तियां पीली पड़ जाती हैं, जिस पर बाद में कत्थई रंग के धब्बे बन जाते हैं. इस के प्रबंधन के लिए 2 किलोग्राम जिंक सल्फेट, 8 किलोग्राम यूरिया को 400 लिटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.
इसी तरह बदलते मौसम में जीवाणु झुलसा रोग की संभावना भी बढ़ने लगती है, इस रोग में पत्तियां नोक या किनारे से एकदम सूखने लगती है. सूखे हुए किनारे अनियमित और टेढ़ेमेढ़े हो जाते हैं. इस के नियंत्रण हेतु 6 ग्राम स्ट्रैप्टोमाइसिन सल्फेट 90 फीसदी और टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 फीसदी को 200 ग्राम कौपर औक्सीक्लोराइड 50 फीसदी डब्ल्यूपी के साथ 200-300 लिटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ की दर से मौसम साफ रहने पर छिड़काव करें. ध्यान रहे यह बीमारी लगने पर फसल में यूरिया का प्रयोग न करें. कभीकभी झोका यानी झुलसा बीमारी भी धान की फसल को क्षति पहुंचाती है, इस रोग में पत्तियों पर आंख के आकार की आकृति के धब्बे बनते हैं, जो मध्य में राख के रंग के और किनारे गहरे कत्थई रंग के होते हैं. पत्तियों के अतिरिक्त बालियों, डंठलों पुष्प शाखाओं और गाठों पर भी काले भूरे धब्बे बनते हैं.
इस के प्रबंधन के लिए कार्बेंडाजिम 50 फीसदी डब्ल्यूपी 200 ग्राम को 200-300 लिटर पानी (पौधे की अवस्थानुसार) में घोल कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें. जहां पानी की कमी हो वहां दीमक कीट द्वारा नुकसान किया जा सकता है. यह एक सामाजिक कीट है जो कालोनी बना कर रहते हैं. एक कालोनी में 90 फीसदी श्रमिक, 2-3 फीसदी सैनिक, एक रानी और एक राजा होते हैं. श्रमिक पीलापन लिए हुए सफेद रंग के पंखहीन होते हैं, जो उग रहे बीज, पौधों की जड़ों को खाकर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं.
इस के प्रबंधन के लिए एक एकड़ में क्लोरपाइरीफौस 20 ईसी 1 लिटर को सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करें. तना छेदक कीट की भी निगरानी करते रहना चाहिए, इस कीट की मादा पत्तियों पर समूह में अंडे देती हैं. अंडो से सूड़ियां निकल कर तनों में घुसकर मुख्य गोभ को नुकसान पहुंचाती है, जिस के कारण बढ़वार की स्थिति में मृतगोभ और बालियां आने पर सफेद बाली दिखाई पड़ती है.
इस के प्रबंधन के लिए 25 फैरोमोन ट्रैप प्रति एकड़ में 30-30 मीटर की दूरी पर लगाएं. प्रकाश प्रपंच का प्रयोग करें. रोपाई के 30 दिन बाद (ट्राइकोकार्ड ) ट्राईकोग्रामा जैपोनिकम 50 हजार प्रति एकड़ प्रति सप्ताह की दर से 2-6 सप्ताह तक धान की फसल में छोड़ें. यह एक प्रकार का छोटा कीट है ,जिस के अंडे प्रयोगशाला में तैयार किए जाते हैं, जिसे कार्ड पर चिपका दिया जाता है. इसे पौधों की पत्तियों पर जगहजगह स्टेपलर से लगा देते है, जिस से कीट निकल कर तना छेदक के अंडों को नुकसान पहुंचाते हैं. इन सभी उपायों के अलावा धान की अधिक उपज लेने के लिए समयसमय पर खेत की निगरानी करते रहें और कीट व बीमारियों की पहचान कर उन का प्रबंधन करें.