अंत:फसल या इंटरक्रॉपिंग खेती का एक ऐसा तरीका है, जिसमें किसान एक ही खेत में, एक-साथ 2 अलग-अलग फसल उगाकर बेहतर मुनाफा कमा सकता है. जानिए, इस खास तकनीक के बारे में.
अंतःफसल
एक ही खेत में दो या दो से अधिक फसलें एक-साथ उगाने को अंतःफसल कहा जाता है और वर्षा आधारित क्षेत्रों में फसल जोखिम को कम करने के लिए अंतःफसल एक अच्छा विकल्प है. इसमें दोनों फसलों की बोआई या तो एक-साथ या अलग-अलग चरणों में की जाती है. अंतःफसल खेती भारत में मुख्य रूप से भारत के अर्ध-शुष्क और शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है.
मक्का संग लोबिया : समय लगे कम, मुनाफा मिले ज्यादा
अनाज और दलहनी वर्ग की फसलों को अंतःफसल के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है. मक्का उर्वरता क्षरण के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील है, जिसमें सबसे अधिक मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की हानि होती है, जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है. इस समस्या के निदान के लिए मक्का के साथ लोबिया की खेती की जा सकती है, क्योंकि लोबिया अपनी नाइट्रोजन आवश्यकताओं के अलावा, वायुमंडलीय नाइट्रोजन को भी स्थिर करता है.
लोबिया एक गहरी जड़ वाली, प्रारंभिक विकास के दौरान धीमी गति से बढ़ने वाली फसल है, इसके विपरीत मक्का उथली जड़ वाली तथा अधिक तेजी से बढ़ने वाली फसल है. जब मक्का को लोबिया के साथ उगाया जाता है तब प्रति पौधा अधिकतम उपज, शुष्क पदार्थ प्रतिशत और प्रोटीन प्रतिशत का उत्पादन होता है.
खेती की तैयारी कैसी हो
ऐसी भूमि जहां सिंचाई की ठीक सुविधा हो तथा जल जमाव और ऊसर से मुक्त हो, मक्का और लोबिया के अंतःफसल के लिए उपयुक्त होती है. खेत की तैयारी करते समय मिट्टी पलटने वाले हल से 10-12 सेंटीमीटर गहरी एक जुताई और उसके बाद कल्टीवेटर या देशी हल से दो-तीन जुताइयां करके पाटा लगा देना चाहिए और खेत को खरपतवार मुक्त करें. ऐसा करने से खेत की नमी बनी रहेगी और उत्पादन अच्छा मिलेगा.
किन किस्मों का करें चुनाव
अधिक उपज प्राप्त करने के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव अति आवश्यक है. किस्मों का चुनाव करते समय ध्यान रखना चाहिए कि किस्म रोग प्रतिरोधी हो तथा क्षेत्र विशेष के लिए अनुकूल हो. मक्का की उन्नत किस्में जैसे कंचन और नवजोत आदि का चयन करें व लोबिया की उन्नत किस्मों में पूसा कोमल व पंत लोबिया-3 आदि प्रमुख हैं.
बीजोपचार से स्वस्थ फसल
बीज हमेशा प्रमाणित व फंफूदीनाशक से उपचारित करके बोना चाहिए. लोबिया एक दलहनी फसल है अतः इसे राइजोबियम कल्चर से भी उपचारित करके बोना चाहिए. राइजोबियम कल्चर से उपचारित करने से पौधों की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाली ग्रंथिया अधिक बनती हैं. इससे फसल की अच्छी पैदावार मिलती है.
कब करें बोआई
मक्का और लोबिया के अंतरशस्य खेती करने के लिए फसल की बोआई अगेती करना लाभदायक रहता है. जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो वहां पर 1 जून से 15 जून तक फसल की बोआई कर देनी चाहिए. वर्षा पर निर्भर करने वाले क्षेत्रों में बोआई जुलाई के प्रथम सप्ताह में ही करनी चाहिए. बोआई के समय का प्रभाव उपज पर सीधा पड़ता है. देर से बोआई करने पर उपज में कमी की संभावना रहती है.
बोआई में किस तकनीक का करें इस्तेमाल
पहले मक्का के बीजों की बोआई पारंपरिक विधि से ही कर सकते हैं. बोआई सदैव पंक्तियों में करना उत्तम होता है. मक्का की पंक्ति से पंक्ति की दूरी 90 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखते हुए मक्का की दो पंक्तियों के बीच एक पंक्ति में लोबिया की बोआई करनी चाहिए और 15-20 दिन के बाद निराई के समय अतिरिक्त पौधे निकाल देने चाहिए.
खाद और उर्वरक
उर्वरक डालने से पहले मिट्टी की जांच जरूर कर लेना चाहिए. लोबिया एक दलहनी वर्ग की फसल है अतः इसे नाइट्रोजन की आवश्यकता कम होती है. प्रारंभ में राइजोबियम जीवाणु की कार्यक्षमता बढ़ने तक पौधों को नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है. बोआई से पहले संस्तुत की गई नाइट्रोजन की आधी मात्रा 50 किलो प्रति हेक्टेयर व फॉस्फोरस 60 किलो प्रति हेक्टेयर और पोटाश 40 किलो प्रति हेक्टेयर की पूरी मात्रा मृदा में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए. शेष 50 किलो प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन बोआई के 30-35 दिन बाद पंक्तियों के बीच छिड़कें.
जरूरी है समय पर सिंचाई
पौधों की उचित बढ़वार के लिए समय पर सिंचाई अति आवश्यक है. वर्षा ऋतु में प्रायः सिंचाई की आवश्यकता कम होती है पर वर्षा न होने पर सिंचाई करना आवश्यक होता है. पहली सिंचाई बोआई के 20-25 दिन बाद मृदा की नमी को ध्यान में रखते हुए हलकी करनी चाहिए. दूसरी और तीसरी सिंचाई 15 दिन के अंतराल पर कर देनी चाहिए.
जल निकासी का रखें ध्यान
वर्षा के अधिक जल को खेत से बाहर निकालने के लिए उचित जल निकास की व्यवस्था भी अत्यधिक आवश्यक है, क्योंकि जल जमाव के कारण पौधों का विकास नहीं होगा और पौधे अधिक पानी में सड़ – गल सकते हैं, जिससे उपज में कमी आ जाती है.
अंतःफसल कहें या इंटरक्रॉपिंग, इस तकनीक में एक ही खेत में दो से अधिक फसलें उगाना शामिल होता है और वर्तमान समय में किसान इंटरक्रॉपिंग तकनीक अपनाकर सीमित संसाधनों के साथ भी कम लागत से अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं.





