देश में धान की कटाई के बाद खेत की तैयारी करने के बाद किसान गेहूं की बोआई करते हैं और गेहूं रबी की बहुत खास फसल है, इसलिए इसकी खेती भी देशभर में बड़े पैमाने पर की जाती है. आइए, जानते हैं गेहूं की खेती के बारे में कुछ खास बातें, जिससे मिलेगी किसान को गेहूं से भरपूर उपज. गेहूं की खेती से अच्छी उपज लेने के लिए उन्नत बीज के साथ – साथ सही समय पर गेहूं की बोआई करना भी जरूरी है. जानिए कब करें गेहूं की बोआई और क्या – क्या करें काम –

जुताई के लिए अपनाएं कृषि यंत्र

इसके लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और बाद में डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से 2-3 जुताई कर के खेत को समतल और भुरभुरा बना लें. फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाने के लिए रोटावेटर का उपयोग करें. बोआई से पहले खेत में पर्याप्त नमी सुनिश्चित करें.

कब है गेहूं बोआई का सही समय

गेहूं की बोआई का सही समय माह नवंबर है. इस समय गेहूं बोआई के लिए उचित तापमान होने से पौधों में जमाव, पौधों की सही बढ़वार होती है, इसलिए जिन किसानों ने गेहूं की बोआई नहीं की है, वे तुरंत बोआई करें.

कब करें गेहूं की पछेती बोआई 

कुछ लोग किसी कारणवश समय पर गेहूं की अगेती बोआई नहीं कर पाते हैं, वे बाद में पछेती बोआई भी कर सकते हैं. पछेती बोआई का समय 1 दिसंबर के बाद का होता है.

उचित किस्मों का करें चुनाव

पछेती बोआई के लिए देरी से पकने वाली किस्में चुनें और बीज की मात्रा लगभग 20 प्रतिशत बढ़ा दें. देर से बोआई पर पैदावार में कमी होती है.

गेहूं की कुछ उन्नतशील किस्में

पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए जलवायु, मृदा, पानी के आधार पर प्रजातियों का चयन करना आवश्यक होता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए प्रमुख प्रजातियां हैं –

डीबीडब्लू-187 (करण वंदना)

यह एक नई और नवीनतम किस्म है जो समय पर बोआई के लिए उपयुक्त है. यह उच्च उपज देती है और मध्यम जलवायु में अच्छी पैदावार देती है.

डीबीडब्लू-222 (करण नरेंद्र)

यह किस्म चपाती और ब्रैड दोनों के लिए अच्छी है और नमी और तापमान में उतारचढ़ाव वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. यह भूरा रतुआ के प्रति प्रतिरोधी है.

डीबीडब्लू-303 (करण वैष्णवी)

यह उच्च उपज देने वाली किस्म है जो गरम मौसम और सूखे को सहन कर सकती है. यह पीला और भूरा रतुआ के प्रति प्रतिरोधी है और इस के लिए अच्छी सिंचाई की आवश्यकता होती है.

डीबीडब्लू-826

यह नमी और गरमी झेलने की क्षमता वाली एक अच्छी किस्म है जो इस क्षेत्र के लिए उपयुक्त है.

एचडी-3411

यह भी एक उपयुक्त किस्म है जो इस क्षेत्र में अच्छी पैदावार दे सकती है.

एचडी-3086

यह एक और उन्नतशील किस्म है जिसे इस क्षेत्र के लिए अनुशंसित किया गया है.

एचयूडब्लू-234

यह एक पुरानी और लोकप्रिय किस्म है जो अपने चपाती बनाने के गुणों के कारण बुजुर्ग किसानों के बीच लोकप्रिय है.

किस्मों का चयन करते समय ध्यान रखें

-क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुसार किस्म का चयन करें.

-कम सिंचाई वाली किस्मों को पानी की कमी वाले क्षेत्रों में प्राथमिकता दें.

-रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली किस्मों का चयन करें.

बीज और बीज दर

समय पर बोआई हेतु 40 किलो बीज प्रति एकड़ देरी से बोआई हेतु 50-55 किलो प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है. बोआई से पहले बीजों को उपचारित करें.

बोआई की विधि कृषि यंत्र का इस्तेमाल

कतारों में बोआई के लिए सीड ड्रिल का उपयोग करना लाभदायक होता है. समय पर बोआई हेतु पंक्ति से पंक्ति की दूरी 18-20 सैंटीमीटर, देरी से बोआई हेतु 15 सैंटीमीटर (दिसंबर के अंत या जनवरी के शुरुआत तक). साथ ही पौधे से पौधे की दूरी 3-5 सैंटीमीटर रखें और बोआई 3-5 सैंटीमीटर से अधिक गहराई पर न करें.

उर्वरक प्रबंधन जरूरी

मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करें. बेसल डोज (बोआई के समय) में संतुलित मात्रा में उर्वरक डालें. डीएपी 60 किलो, पोटाश 30-35 किलो और यूरिया 20 किलो. सल्फर (जैसे बेंटोनाइट सल्फर) 10 किलो प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें.

सिंचाई में करें पानी की बचत

बोआई के बाद खेत में पर्याप्त नमी होना जरूरी है. यदि सूखे खेत में बोआई की है तो सिंचाई करें. सिंचाई में फव्वारा सिंचाई विधि का उपयोग करने पर कम पानी की आवश्यकता होती है. पहली सिंचाई बोआई के 20-25 दिन बाद ताजमूल अवस्था, दूसरी सिंचाई बोआई के 40-50 दिन पर कल्ले निकलते समय, तीसरी बोआई के 60-65 दिन बाद गांठ बनते समय, चौथी सिंचाई बोआई के 80-85 दिन बाद पुष्पावस्था में, 5वीं सिंचाई बोआई के 100 दिन पर दुग्धावस्था, छठी सिंचाई बोआई के 115-120 दिन पर दाना भरते समय करनी चाहिए.

कटाई और मड़ाई

औसतन प्रजातियों, जलवायु, बोआई के समय, तापमान, वातावरण के अनुसार 120-140 दिन में गेहूं की फसल तैयार हो जाती है. औसतन उपज 20-25 क्विंटन प्रति एकड़ प्राप्त हो जाती है,

इसलिए गांठ बांध लें कि गेहूं से अच्छी पैदावार लेने के लिए अच्छी किस्म के बीज के साथ – साथ समय पर बोआई, सिंचाई करना भी बहुत जरूरी है.

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