Lump Disease : पाकिस्तान से राजस्थान के रास्ते आई लंपी स्किन बीमारी की वजह से पशुपालकों को काफी परेशान होना पड़ता है. क्योंकि वायरस से फैलने वाली इस बिमारी का कोई सटीक इलाज अभी भी नहीं खोजा जा सका है. इस वजह से कभीकभी पशुओं की मौत हो जाती है. देश में लंपी बिमारी के चलते अब तक हजारों की तादाद में पशुओं की मौत हो चुकी है. राजस्थान और गुजरात सहित देश के 10 राज्यों में पशुओं में ये बीमारी पाई गई है. इस बीमारी का असर विशेषकर भैंसों की तुलना में गायों में ज्यादा पाया गया है.
लंपी (Lump Disease) एक ऐसी बिमारी है जिस का वायरस तेजी से संक्रमण फैलाता है. यदि समय पर इस की रोकथाम के उपाय नहीं किए जाएं तो इस से पशु की मौत भी हो सकती है. हालांकि, सरकार ने इस बीमारी के लिए एक देसी वैक्सीन भी लौंच कर दी है. इस के बाद भी पशुपालकों को कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि, इस बीमारी के संक्रमण को बढने से रोका जा सके.
लंपी बिमारी (Lump Disease) की पहचान
पशुओं में होने वाला लंपी त्वचा रोग कैप्रीपौक्स वायरस के कारण होता है, जो गायों और भैंसों को संक्रमित करता है. यह बीमारी मुख्य रूप से मक्खी, टिक्स और मच्छर के कारण फैलती है. यह बीमारी नमी वाले तापमान में ज्यादा तेजी से फैलती है. इस बीमारी से प्रभावित पशु के शरीर पर गांठे उभर आती है और इस में से पानी रिसने लगता है. इस से बैक्टीरिया को प्रवेश करने का मौका मिल जाता है. ये फफोले घाव का रूप ले लेते हैं, जिन पर मक्खियां बैठती हैं और संक्रमण का प्रसार करती हैं. भारत में इस बीमारी के लक्षण प्रमुख रूप से गाय जैसे दुधारू पशुओं पर देखे जा रहे हैं. इस बीमारी से कई हजार गायों की मौत हो चुकी है. अभी फिलहाल इस बीमारी का प्रकोप सिर्फ गायों में देखा जा रहा है. भैंसों में अभी तक इस बीमारी के लक्षण नहीं पाए गए हैं.
गायों में होने वाली लंपी बीमारी (Lump Disease) को उस के लक्षणों को देख कर आसानी से पहचाना जा सकता है. इस बीमारी की चपेट में आने वाले पशुओं को शुरू में बुखार आता है. इस से पशु सुस्त रहने लगते हैं. इस रोग से पीड़ित पशु की आंखों और नाक से स्त्राव होता है. पशु के मुंह से लार टपकती रहती है. लंपी बीमारी से ग्रसित पशु के शरीर पर गांठ जैसे छाले हो जाते हैं जो फफोले का रूप ले लेते हैं. इस बीमारी से ग्रस्त पशुओं की अगर सही से देखभाल और बचाव न किया जाए तो पशुओं की मौत भी हो जाती है. क्योंकि रोग से ग्रसित की भूख कम हो जाती है और पशु चारा कम खाना शुरू कर देता है. इस की वजह से पशु की दूध देने की क्षमता कम हो जाती है.
लंपी स्किन रोग का इलाज
अभी तक लंपी बीमारी (Lump Disease) का कोई कारगर इलाज नहीं खोजा जा सका है. इस के लिए हाल ही में एक वैक्सीन विकसित की गई है लेकिन उसे अभी पशुपालकों तक पहुंचाने में समय लगेगा. ऐसी दशा में अगर किसी पशु में लंपी स्किन रोग हो जाता है तो इस का इलाज पारंपरिक आयुर्वेदिक और होमियोपैथी के जरीए किया जा सकता है. इस तरह के उपचार से संक्रमित पशुओं के ठीक होने में काफी अच्छे परिणाम देखे गए हैं.
नीम की पत्तियों को पानी में उबाल कर नीम में उबले पानी को गाय की त्वचा में लगाना. साथ ही उबाली गई पत्तियों को पीस कर त्वचा में लेप लगाना. कई मामलों में यह देखा गया है कि एलोवेरा भी लंपी वायरस के खात्मे में बढ़िया काम करता है. इसलिए पशुपालक ऐलोवेरा का लेप भी पशुओं की त्वचा में लगा सकतें हैं, जो काफी हद तक लंपी वायरस के बचाव में कारगर सिद्ध हुआ है.
लंपी से संक्रमित पशुओं के इलाज के लिए लिए पशु आहार में आयुर्वेदिक खुराक भी जोड़ सकते हैं, जिसे बनाने के लिए 10 पान के पत्ते, 10 ग्राम काली मिर्च, 10 ग्राम नमक और गुड़ आदि सामानों की जरूरत होती है. इन सब को इकट्ठा करने के बाद सब से पहले 10 पान के पत्ते, 10 ग्राम काली मिर्च, 10 ग्राम नमक को पीस कर गाढ़ा पेस्ट बना लें और उस में गुड़ डाल कर मिश्रण बनाएं. पहले दिन में इस आयुर्वेदिक मिश्रण को हर 3 घंटे के बीच पशुओं को सीमित मात्रा में खिलाएं. दूसरे दिन से अगले 15 दिन तक 3 खुराक प्रति दिन के हिसाब से पशुओं को खिलाते रहें.
पशुओं के शरीर पर घाव और गांठों में कीड़े दिखने पर नारियल के तेल में कपूर मिला कर लगाना फायदेमंद रहता है. आप चाहें तो सीताफल की पत्तियों को पीस कर भी घाव पर लगा सकते हैं.
इस के अलावा होमियोपैथी की कुछ दवाएं काफी कारगर पाई गई हैं. पशुपालक किसी अच्छे होमियोपैथी चिकित्सक से मिल, दवाएं ले कर संक्रमित पशुओं को दें.
दूसरे पशुओं को कैसे बचाएं
लंपी स्किन रोग संक्रमण से फैलने वाला रोग है. इसलिए जो गायें इस रोग से संक्रमित हो जाए तो तुरंत ही दूसरे पशुओं में इस बिमारी के फैलाव का उपाय शुरू कर देना चाहिए. इस के लिए लंपी स्किन रोग से प्रभावित पशुओं को इस रोग से बचाने के लिए संक्रमित पशु को स्वस्थ पशु से तुरंत अलग कर देना चाहिए. जिस जगह पर संक्रमित पशुओं को रखा गया वहां और स्वस्थ्य पशुओं के बाड़े में बीमारी फैलाने वाले मक्खीमच्छर की रोकथाम के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए.
पशुओं के खाने और पीने का बरतन या पात्र साफ होना चाहिए. पशुपालक यह कोशिश करें कि जो चारा पशुओं को खिलाया जा रहा है वह ताजा हो और संक्रमित पशु के खानेपीने की नाद स्वस्थ पशु के नाद से दूर या अलग रखें. लंपी बीमारी से संक्रमित पशुओं को एक जगह से दूसरी जगह न ले जाएं. इस से इस बीमारी के फैलने की संभावनाएं बढ़ जाती है.
लंपी वायरस से ग्रस्त पशुओं को जिस जगह पर रखा गया हो वहां पर साफसफाई, जीवाणु और विषाणुनाशक रसायन का प्रयोग करें. चूंकि लंपी बीमारी का प्रभाव अभी तक सिर्फ गायों में देखा गया है ऐसे में लंपी वायरस से बचाव हेतु वायरस का संक्रमण देखते ही नजदीकी पशु चिकित्सालय में या पशु चिकित्सक से संपर्क करें.
लंपी स्किन रोग से बचाव के लिए वैक्सीन तैयार
पशुओं को लंपी स्किन रोग से बचाव के लिए स्वदेशी वैक्सीन (लंपीप्रो वैकइंड) लौंच की गई है. यह वैक्सीन राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार (हरियाणा) ने भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर (बरेली) के सहयोग से बनाई है. इस वैक्सीन को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के निर्देश के क्रम में बनाया गया है. जानकारों का कहना है कि यह वैक्सीन लंपी स्किन रोग पर 100 फीसदी कारगर है.
लंपी बिमारी से बचाव के लिए राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए तीन सालों के शोध से एक कारगर टीका विकसित किए जाने में सफलता मिली है. बायोटैक समूह की कंपनी द्वारा आईसीएआर के साथ मिल कर विकसित गांठदार त्वचा रोग के टीके को सीडीएससीओ का लाइसैंस भी मिल गया है.
बायोवेट का कहना है कि बायोलंपी वैक्सीन लंपी स्किन रोग के लिए विश्व स्तर पर पहला मार्कर टीका है और इसे जल्द ही लौंच किया जाएगा. जो जल्द ही व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हो जाएगी. बायोवेट के मल्लूर संयंत्र में सालाना 50 करोड़ खुराक का उत्पादन किया जा सकता है.
सीडीएससीओ लाइसैंस पशु चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा में भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जिस से आयातित टीकों पर निर्भरता खत्म हो जाती है. यह डीआईवीए मार्कर वैक्सीन रोग निगरानी और उन्मूलन कार्यक्रमों के लिए पशु चिकित्सा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव है और डेयरी उद्योग की स्थिरता में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए तैयार है.
बायोवेट के एक अधिकारी का कहना है कि पिछले दो सालों में, भारत में लंपी स्किन रोग के चलते तकरीबन 2 लाख मवेशियों की मौत हो गई और कई अन्य ने अपनी दूध उत्पादन क्षमता खो दी. बायोलंपी वैक्सीन , जो फ्रीजड्राई रूप में उपलब्ध है, एक एकल टीकाकरण है जो 3 महीने से अधिक उम्र के मवेशियों और भैंसों को साल में 1 बार दिया जाता है.