ब्रोकली की प्रमुख किस्में

ब्रोकली काफी सेहतमंद सब्जी मानी गई है, जो देखने में सामान्य गोभी की तरह ही होती है. केवल रंग में फर्क होता है, जो हरापन लिए होती है. ब्रोकली से अच्छी उपज लेने के लिए इस की बेहतर किस्मों का चुनाव करें.

ब्रोकली के स्वस्थ पौधों के लिए अच्छी प्रकार से नर्सरी की तैयारी करनी चाहिए. मिट्टी में सड़ी गोबर की खाद मिला कर उसे तैयार किया जाता है.

पूसा ब्रोकली (केटीएस-1)

ब्रोकली की इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान क्षेत्रीय केंद्र, कटराई से विकसित किया गया है, जिसे आईएआरआई की किस्म अनुमोदन समिति द्वारा 1996 में उगाने के लिए अनुमोदित किया गया. इस किस्म के पौधे मध्यम ऊंचाई (65-70 सैंटीमीटर) के होते हैं. पत्तियों पर मोमी परत होती है. शीर्ष सख्त व हरे रंग का होता है. बीच का भाग थोड़ा उठा हुआ होता है.

पूर्ण विकसित शीर्ष का आकार 6×15.4 सैंटीमीटर (ऊंचाई×व्यास) और वजन 350-450 ग्राम होता है. इस किस्म के शीर्ष बोआई के 125-140 दिन बाद और रोपण के 90-105 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस की औसत उपज पर्वतीय क्षेत्रों में 16.5 टन प्रति हेक्टेयर है.

पालम समृद्धि

इस किस्म को हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर से विकसित किया गया है और राज्य किस्म अनुमोदन समिति द्वारा 1995 में उगाने की संस्तुति की गई. इस किस्म के पौधे मध्यम ऊंचाई के होते हैं. पत्तियां औसत आकार की, हरे रंग की, शीर्ष बड़े, सख्त और लंबे प्ररोह पर लगते हैं. शीर्ष का औसत वजन 300-400 ग्राम.

इस किस्म में शीर्ष रोपण के 85-90 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस में विटामिन और खनिज (कैल्शियम, फास्फोरस व आयरन) की मात्रा अत्यधिक होती है. इस की औसत उपज 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इस के शीर्ष ताजा, मुलायम व अच्छी सुगंध लिए होते हैं.

पालम कंचन

इस किस्म को भी हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर से विकसित किया गया है. यह एक पिछेती किस्म है. इस के पौधे लंबे, पत्तियां बड़ी व नीले रंग की होती हैं. शीर्ष बड़ा, सख्त, आकर्षक व पीले हरे रंग का होता है. शीर्ष सुगंधित होता है.

यह रोपण के 140-145 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इस की औसत उपज 250-275 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

पालम हरीतिका

इस किस्म को पुंज चयन विधि द्वारा हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर में विकसित किया गया है. इस की पत्तियां गहरे रंग की और ऊपर की ओर बढ़ने वाली होती हैं.

पत्तियों पर जगहजगह लाल रंग के धब्बे विकसित होते हैं. पौधे में बड़ा डंठल विकसित होता है, जिस पर शीर्ष विकसित होता है. शीर्ष में कलिकाएं छोटे आकार की होती हैं. इस किस्म में रोपण के 145-150 दिन बाद शीर्ष कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

ज्यादा आमदनी के लिए ब्रोकली की खेती

ब्रोकली अमेरिका की प्रमुख सब्जी मानी जाती है. ब्रोकली का सब्जी के अतिरिक्त सूप, सलाद और दूसरी तरह के व्यंजनों के बनाने में प्रयोग किया जाता है. ब्रोकली में गोभी की अपेक्षा प्रोटीन, कैल्शियम, कैरोटीन व विटामिन सी की मात्रा काफी अधिक पाई जाती है.

जलवायु और भूमि

ब्रोकली ठंडे मौसम की फसल है. मैदानी क्षेत्रों में इस की खेती जाड़े में की जाती है. इस के बीज के अंकुरण के लिए 25-30 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान होता है, जबकि पौधों की बढ़वार के लिए 20-25 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान अच्छा रहता है. शीर्ष बनने के लिए 16-20 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान चाहिए. तापमान में वृद्धि होने से शीर्ष ढीला पड़ जाता है.

ब्रोकली को विभिन्न प्रकार की भूमियों में कामयाबी से उगाया जा सकता है. मिट्टी का पीएच मान 5.0-6.5 उपयुक्त होता है. बलुई दोमट भूमि, जिस में जीवांश की मात्रा और जलनिकास की उपयुक्त सुविधा हो, इस की खेती के लिए उपयुक्त होती है.

बोआई का समय और बीज दर

उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में अगस्त से अक्तूबर के आखिरी हफ्ते तक इस के बीज की बोआई कर के पौध तैयार की जाती है. पर्वतीय क्षेत्रों में इस की बोआई मार्च व जुलाईअगस्त महीने में की जाती है. एक हेक्टेयर क्षेत्र में रोपण के लिए 300-400 ग्राम बीज पर्याप्त होता है.

पौध तैयार करना

Broccoli आमतौर पर क्यारियों की लंबाई जमीन की सतह के अनुसार रखते हैं, जबकि चौड़ाई 1 मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए. क्यारियां जमीन की सतह से 15-20 सैंटीमीटर ऊंची उठी होनी चाहिए. एक हेक्टेयर क्षेत्र में रोपण लिए 70-80 वर्गमीटर में तैयार नर्सरी सही होती है.

बीज को बोआई से पहले ट्राईकोडर्मा से उपचारित करना चाहिए. बीज को बराबर लाइनों में बोना चाहिए और बोआई के बाद मिट्टी या खाद की पतली परत से ढक देना चाहिए और हलकी सिंचाई करनी चाहिए. बोआई के 4 हफ्ते बाद पौधे रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं.

खाद और उर्वरक

इस की अच्छी उपज के लिए तकरीबन 20-25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट को प्रति हेक्टेयर की दर से दिया जाता है. इस

की अच्छी उपज के लिए प्रति हेक्टेयर की दर से 100-200 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60-80 किलोग्राम फास्फोरस और 40-60 किलोग्राम पोटाश देनी चाहिए. वहीं नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत की अंतिम तैयारी के समय देनी चाहिए और बाकी बची नाइट्रोजन की आधी मात्रा को 2 बराबर भागों में बांट कर रोपण के 30 व 40 दिन बाद टौप ड्रैसिंग के रूप में देनी चाहिए.

रोपण

जब पौधे 3-4 हफ्ते के हो जाएं, तब उन को मुख्य खेत में रोप दिया जाता है. रोपण के लिए पौध अंतराल 50×45 सैंटीमीटर रखा जाता है.

सिंचाई व अंत:सस्य

क्रियाएं

रोपण के बाद एक हलकी सिंचाई करें, जिस से पौधे अच्छी तरह लग जाएं. खेत में खरपतवार के नियंत्रण के लिए स्टांप (पेंडीमेथिलिन) की 3 लिटर मात्रा या बैसेलीन (फ्लूक्लोरेलीन) की 2-2.5 लिटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग की जा सकती है.

पौधे जब एक महीने के हो जाते हैं, तब उन के चारों तरफ गुड़ाई कर के मिट्टी चढ़ा दी जाती है, जिस से पौधे गिरते नहीं हैं.

कटाई व उपज

ब्रोकली में रोपण के 65-70 दिन बाद शीर्ष बन जाते हैं. अगेती किस्मों की कटाई आमतौर पर दिसंबर महीने में की जाती है. मध्य मौसमी किस्में जनवरी के अंत से फरवरी तक व पिछेती किस्में मध्य फरवरी के बाद तैयार होती हैं.

जब शीर्ष गठे हुए और सख्त होते हैं और उन की कलियां खिलना शुरू न करें, तभी फसल की कटाई की जाती है. शीर्ष की कटाई करने के लिए लगभग 15 सैंटीमीटर का लंबा डंठल उस के साथ काटना सही होता है.

कटाई के समय शीर्ष का औसत व्यास 15-20 सैंटीमीटर और वजन 400-600 ग्राम होना चाहिए. ब्रोकली की औसत उपज 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

भंडारण

कटाई के बाद ब्रोकली के शीर्षों की छंटाई व श्रेणीकरण कर के पैकिंग कर ली जाती है. कटाई के तुरंत बाद ब्रोकली को ठंडा कर के कम तापमान पर भंडारित कर लिया जाता है. इस के लिए हाइड्रोकूलिंग कर के या आइस पैक में रख कर जीरो डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर रखा जाता है, जिस से उस का हरा रंग और विटामिन सी की मात्रा बनी रहती है.

यदि हवा का संचार अच्छा रहे और गरमी अधिक न उत्पन्न हो, तब इसे 10 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर 10-14 दिन तक रखा जा सकता है.

प्रसंस्करण

ब्रोकली को अच्छी तरह फ्रोजेन किया जाता है. इस के बाद 10-15 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर ठंडा कर दिया जाता है, जिस से उस का रंग और सुगंध सुरक्षित रहे. इस के बाद कार्टन में पैक कर के 20 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर फ्रोजेन कर भंडारित कर लिया जाता है.