Pulasa Fish: गोदावरी नदी की शान ‘पुलासा’ को है खतरा

Pulasa Fish : गोदावरी की शान कही जाने वाली पुलासा मछली अब गंभीर संकट से जूझ रही है. पुलासा मछली एक पौष्टिक मछली है जिस में अच्छे फैटी एसिड्स, मिनरल्स और प्रोटीन होते हैं, जो सेहत के लिए काफी अच्छे होते हैं. लेकिन अब गंभीर संकट का सामना कर रही पुलासा मछली बहुत कम होती जा रही है.

पुलासा मछली की संख्या में भारी कमी के बारे में मत्स्य विभाग ने बताया कि ‘पुलासा’ की भारी मांग के कारण, अत्यधिक मछली पकड़ने से यह प्रजाति अब खतरे में है. मत्स्य विभाग ने कहा कि अगर समय रहते सख्त नियम नहीं बनाए गए तो यह प्रजाति खत्म हो जाएगी. जबकि यह प्रजाति 90 के दशक में काफी संख्या में मिलती थी.

पुलासा मछली के बारे में 145 साल पुरानी डच वैज्ञानिक पत्रिका एल्सेवियर के मुताबिक बताया गया है कि ऊपरी नदियों से पानी का कम बहाव, नदियों में भारी गाद जमाव, नदी के मार्गों में बाधा, भोजन और नर्सरी के मैदानों का नुकसान सहित अत्यधिक मछली पकड़ने के कारण नदियों में पुलासा मछली की संख्या में कमी आई है.

केज कल्चर (Cage Culture) तकनीक से कैसे करें मछली (Fish) उत्पादन

लखनऊ : मत्स्य विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा चौधरी चरण सिंह सभागार, सहकारिता भवन लखनऊ में समारोह आयोजित किया गया. इस अवसर पर मत्स्य विकास मंत्री डा. संजय कुमार निषाद ने कहा कि मत्स्यपालन तकनीक एवं नदियों व जलाशयों में मत्स्य अंगुलिका का संचय, मत्स्य आखेट प्रबंधन की जानकारी, जल क्षेत्रों के दोहन न करने व जल क्षेत्र की निरंतरता (सस्टेनेबिलिटी) बनाते हुए अधिक से अधिक मत्स्य उत्पादन के साथसाथ देशीय मत्स्य प्रजातियों का संरक्षण व संवर्धन के लिए समारोह का आयोजन किया गया है. प्रदेश में उपलब्ध कुल जल क्षेत्रों से वर्ष 2023-24 मे उत्तर प्रदेश का कुल मत्स्य उत्पादन 11.60 लाख मीट्रिक टन एवं मत्स्य उत्पादकता 5539.00 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष प्राप्त हुआ.

डा. संजय कुमार निषाद ने कहा कि प्रदेश में गंगा, यमुना, चंबल, बेतवा, गोमती, घाघरा एवं राप्ती सहित कई सदाबाही नदियां बहती हैं, जिन के दोनों किनारे एवं आसपास मछुआ समुदाय की घनी आबादी निवास करती है, जो आजीविका के लिए मुख्यतः मत्स्यपालन, मत्स्याखेट एवं मत्स्य विपणन कार्यों पर निर्भर है. इन्हें रोजगार उपलब्ध कराने एवं उन के आर्थिक उन्नयन के लिए अभियान चला कर मत्स्य जीवी सहकारी समितियों के गठन की कार्यवाही की जा रही है, जिस के अंतर्गत 565 समितियों के गठन का लक्ष्य निर्धारित करते हुए समिति गठन की कार्यवाही कराई जा रही है.

मत्स्य विकास मंत्री संजय कुमार निषाद ने बताया कि केज कल्चर मछली के गहन उत्पादन के लिए एक उभरती हुई तकनीक है. जलाशयों में स्थापित केजों मे पंगेशियस और गिफ्ट तिलपिया का पालन करते हुए उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है.

प्रमुख सचिव, मत्स्य, के. रवींद्र नायक ने कहा कि मत्स्य विभाग द्वारा प्रदेश के मत्स्यपालकों और जलाशय के ठेकेदारों को नवीन तकनीकी प्रदान की जा रहाई है एवं उन के द्वारा प्रदेश के मत्स्य उत्पादन में वृद्धि के लिए पूरे मनोयोग से कार्यवाही की जा रही है. प्रदेश में मात्स्यिकी क्षेत्र के विस्तार से रोजगार के साधन उपलब्ध होने के साथसाथ लक्षित वन ट्रिलियन डालर इकोनोमी में मत्स्य सैक्टर की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. उपस्थित मत्स्यपालकों एवं ठेकेदारों से मत्स्य उत्पादन में वृद्धि लाए जाने के संबंध में सुझाव आमंत्रित किए गए. अधिक से अधिक केज लगाए जाने के संबंध में प्रमुख सचिव मत्स्य द्वारा भारत सरकार से धनराशि की मांग की बात कही और यह भी कहा कि जलाशय के ठेकेदार आर्थिक रूप से संपन्न होते हैं. वह स्वयं के संसाधन से भी जलाशयों में केज स्थापित कराए.

महानिदेशक मत्स्य राजेश प्रकाश ने बताया कि प्रदेश में मत्स्य विकास की अपार संभावनाएं हैं. उपलब्ध जल संसाधनों का वैज्ञानिक एवं तकनीकी दृष्टि से समुचित उपयोग करते हुए प्रदेश को मत्स्य उत्पादन में अग्रणी बनाया जा सकता है. प्रदेश के मत्स्यपालकों द्वारा वर्तमान में नवोन्मेषी तकनीकी के माध्यम से मत्स्य उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि की जा रही है.

विश्व मात्स्यिकी दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में निदेशक मत्स्य एनएस रहमानी विश्व मात्स्यिकी दिवस के बारे में प्रकाश डालते हुए इस के उद्देश्यों एवं प्रदेश में मत्स्य विकास के बारे में विस्तार से बताया गया.

निदेशक एनएस रहमानी ने बताया कि मत्स्य उत्पादन वर्ष 2023-24 में 11.60 लाख मीट्रिक टन प्राप्त किया गया. अंतर्स्थलीय मछली उत्पादन में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी तकरीबन 8.85 फीसदी है. प्रदेश में मत्स्य उत्पादकता 5540 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष है.

प्रदेश को वर्ष 2020 एवं 2023 के दौरान अंतर्स्थलीय मछली उत्पादन में उत्कृष्ट योगदान के लिए सर्वश्रेष्ठ अंतर्स्थलीय मत्स्यपालन राज्य का पुरस्कार प्राप्त हुआ है. वर्ष 2023-24 में प्रदेश में 36664.64 लाख मत्स्य बीज का उत्पादन किया गया और प्रदेश के बाहर भी मेजर कार्प मत्स्य बीज निर्यात किया जा रहा है.

प्रदेश में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत विगत 4 सालों में 1277 इंफ्रास्ट्रक्चर इकाइयां लगाई गई, जिस में मुख्यतः 954 रिसर्कुलेटरी ऐक्वाकल्चर सिस्टम, 63 मत्स्य बीज हैचरी, 123 लघु एवं वृहद मत्स्य आहार मिलों, 55 फिश कियोश्क, 78 जिंदा मछली विक्रय केंद्र, 4 मोबाइल लैब की निजी क्षेत्र में स्थापित कराई गई. मछली की बिक्री के लिए कोल्डचेन के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की 2604 इकाइयों पर अनुदान देते हुए लाभान्वित किया गया है.

मत्स्य बीज की उपलब्धता के लिए 63 मत्स्य बीज हैचरी, 266 हेक्टेयर में मत्स्य बीज रियरिंग यूनिट निर्मित कराई गई है. 2019.72 हेक्टेयर क्षेत्रफल के निजी क्षेत्र में तालाब बनाया गया है. केज में मत्स्य उत्पादकता के दृष्टिगत 682 केज स्थापित कराए जा चुके हैं. डेढ़ लाख मछुआरों को मछुआ दुर्घटना बीमा योजना के तहत पंजीकृत कर आच्छादित किया गया.

मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत पट्टे पर आवंटित तालाबों में प्रथम वर्ष निवेश के लिए अब तक 954 लाभार्थियों को 822.22 हेक्टेयर पर अनुदान प्रदान किया गया एवं मत्स्य बीज बैंक की स्थापना के अंतर्गत 96 लाभार्थियों को 91.044 हेक्टेयर पर अनुदान प्रदान किया गया.

निषादराज बोट सब्सिडी योजना में अब तक कुल 920 मछुआ समुदाय के गरीब व्यक्तियों को जीवकोपार्जन हेतु मछली पकड़ने एवं बेचने के लिए नाव, जाल, आइसबौक्स एवं लाइफ जैकेट उपलब्ध कराए गए. विगत 4 वर्षों में 28,520 व्यक्तियों को मत्स्यपालन के लिए 25858.39 हेक्टेयर क्षेत्रफल के ग्रामसभा के तालाबों के पट्टे उपलब्ध कराए गए.

मत्स्य पालक कल्याण फंड के अंतर्गत मछुआ बाहुल्य 289 गांवों में 3126 सोलर स्ट्रीट लाइट एवं 570 हाईमास्ट लाइट लगाई गई. कोष के माध्यम से चिकित्सा सहायता, दैवीय आपदा, प्रशिक्षण एवं मछुआ आवास बनाने के लिए सहायता प्रदान की गई. माता सुकेता परियोजना के अंतर्गत 250 केज मछुआ समुदाय की महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु लगाए जाने का प्रावधान है. 16757 मत्स्यपालकों को धनराशि 131.00 करोड़ रुपए के किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराए गए.

रिवर रैंचिंग के अंतर्गत मेजर कार्प एवं राज्य मीन चिताला मत्स्य प्रजातियों के नदियों मे संरक्षण के लिए कुल 297 लाख मत्स्य बीज नदियों में संचित कराया गया. विभागीय योजनाओं को पारदर्शी ढंग से औनलाइन पोर्टल के माध्यम से लागू की गई है. मो. परवेज खान प्रगतिशील मत्स्यपालक जनपद बाराबंकी द्वारा आरएएस एवं फीड मिल के बारे में विस्तार से मत्स्यपालकों को जानकारी दी गई.

डा. संजय श्रीवास्तव, जनपद महराजगंज के प्रगतिशील मत्स्यपालक द्वारा हैचरी निर्माण में उस के लाभ लागत के संबंध में उपस्थित मत्स्यपालकों को तकनीकी विधियों के बारे में जानकारी दी गई. मंजू कश्यप, प्रगतिशील मत्स्यपालक जनपद गाजियाबाद द्वारा तालाब प्रबंधन एवं दूषित तालाबों में सफल मत्स्यपालन कैसे किया जाए, के संबंध में मत्स्यपालकों को जानकारी दी गई.

देवमणि निषाद, जनपद, गौरखपुर द्वारा अपनी सफलता की कहानी को मत्स्यपालकों के साथ साझा किया गया और अधिक उत्पादन प्राप्त करने के संबंध में जानकारी दी गई. जय सिंह निषाद द्वारा आरएएस के माध्यम से कम भूमि एवं जल से अधिक से अधिक मत्स्य उत्पादन प्राप्त किए जाने के संबंद में अपने अनुभव को उपस्थित मत्स्यपालकों से साझा किया गया. दरोगा जुल्मी निषाद द्वारा मत्स्यपालन में उत्कृष्ट कार्य किए जाने के संबंध में उन्हें पुरस्कृत किया गया.

मनीष वर्मा द्वारा जलाशयों मे केज स्थापना एवं उस में उत्पादित की जाने वली मछलियों और प्रति केज से प्राप्त की जाने वाली शुद्ध आय के संबंध में अपने उदबोधन में मत्स्यपालकों को जानकारी दी गई. डा. नीरज सूद, प्रधान वैज्ञानिक एनबीएफजीआर लखनऊ द्वारा संस्थान के कार्यों के संबंध में विस्तार से बताते हुए मत्स्य उत्पादन में वृद्धि के लिए उचित मात्रा में गुणवत्तायुक्त मत्स्य अंगुलिका का संचय कराते हुए मत्स्य उत्पादन के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है. प्रदेश की वन ट्रिलियन डालर इकोनोमी के मत्स्य सैक्टर के लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है.

मोनिशा सिंह, प्रबंध निदेशक, उत्तर प्रदेश मत्स्य जीवी सहकारी संघ लि. द्वारा संघ द्वारा समितियों एवं मत्स्यपालकों के लिए संचालित कार्यक्रमों के बारे में बताया गया. अंजना वर्मा, मुख्य महाप्रबंधक, उत्तर प्रदेश मत्स्य विकास निगम लि. द्वारा निगम द्वारा मत्स्य बीज उत्पादन और प्रदेश में मत्स्य बीज की उपलब्धता व जलाशयों में केज कल्चर के माध्यम से जलाशयों के मत्स्य उत्पादकता के बारे में बताया गया.

मंत्री द्वारा मात्स्यिकी के विभिन्न क्षेत्र में प्रदेश में उत्कृष्ट योगदान कर रही मंजू कश्यप, प्रगतिशील मत्स्यपालक, जनपद गाजियाबाद, देवमणि निषाद, जनपद गौरखपुर, जय सिंह निषाद, दरोगा जुल्मी निषाद सहित 16 व्यक्तियों को प्रशस्तिपत्र प्रदान करते हुए सम्मानित किया गया.

कार्यक्रम के दौरान मत्स्य की विभिन्न गतिविधियों में अनुदानित 36 व्यक्तियों को मंत्री द्वारा अनुदान की धनराशि के चेक व प्रमाणपत्र भी वितरित किया गया.

विभाग द्वारा निःशुल्क मछुआ दुर्घटना बीमा योजना से आच्छादित करने के लिए मछुआ दुर्घटना बीमा योजना के माध्यम से वर्ष 2024-25 में कुल लक्षित 1,50,000 मत्स्यपालकों का आच्छादन कराए जाने के लिए कार्यवाही की गई. केज कल्चर के साथसाथ पेन कल्चर और जिंदा मछली विक्रय केंद्र को प्रोसाहित करते हुए उत्पादन के साथसाथ मूल्यवर्धन के माध्यम से आय में वृद्धि लाई जाए. उपस्थित मत्स्यपालकों से सुझाव मांगे गए तदनुसार उत्पादन के बढ़ावा देने के लिए कार्ययोजना तैयार कराई जा सके.
उपनिदेशक पुनीत कुमार द्वारा उपस्थित अतिथियों एवं मत्स्यपालकों और जलाशय के ठेकेदारों का धन्यवाद व्यक्त करते हुए कार्यशाला के समापन की घोषणा की गई. कार्यक्रम उत्तर प्रदेश मत्स्य जीवी सहकारी संघ लि. के सभापति वीरू निषाद एवं विभागीय अधिकारी सहित तमाम मत्स्यपालक उपस्थित रहे.

मत्स्य योजना (Fishery Scheme) का प्रचार प्रसार जरूरी

भोपाल : मछुआ कल्याण एवं मत्स्य विकास (स्वतंत्र प्रभार) राज्यमंत्री नारायण सिंह पवार ने कहा कि समिति सदस्यों को मत्स्य उत्पादन के साथ लक्ष्यों को पूरा करने के लिए योजनाओं का व्यापक प्रचारप्रसार कर अधिक से अधिक लोगों को लाभान्वित करने के लिए प्रेरित करें.

मंत्री नारायण सिंह पवार 27वीं वार्षिक साधारण सभा को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि खेती के साथ आजीविका के लिए आय के अन्य स्त्रोत का भी होना आवश्यक है. समिति के लोग 10 माह मत्स्य उत्पादन का काम करते हैं. साथ ही, जल संरक्षण के कार्यों को आगे बढ़ाएं. शासन द्वारा रोजगार के साधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं.

राज्य मंत्री नारायण सिंह पवार ने कहा कि शासन द्वारा 70 साल की उम्र से अधिक के सभी वर्ग के लोगों के लिए आयुष्मान कार्ड बनाए जा रहे हैं. 5 लाख तक का नि:शुल्क स्वास्थ्य लाभ मिलता है. अधिक से अधिक लोग आयुष्मान कार्ड बनवा कर शासन की योजनाओं का लाभ उठाएं.

उन्होंने आगे कहा कि योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए वास्तविक हितग्राहियों को लाभ मिले, ऐसे प्रयास किए जाएं और अधिक से अधिक समितियों का पंजीयन कराने में सहयोग करें. खूब प्रचारप्रसार करें और गरीब बस्तियों में पंपलेट बंटवा कर अधिक से अधिक लोगों को लाभ दिलाएं और अपने संसाधनों को बढ़ाएं.

उन्होंने मछुआ समिति सदस्यों से चर्चा की और बताया कि मत्स्य महासंघ का मुख्य उद्देश्य शासन द्वारा 1,000 हेक्टेयर से ऊपर से सौंपे गए बड़े एवं मध्यम जलाशयों में आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर मत्स्य विकास करना एवं महासंघ के जलाशयों में कार्यरत मछुआरों और उन के परिवारों की आजीविका सुरक्षित करते हुए सामाजिक, आर्थिक उन्नति करना है. शासन द्वारा महासंघ को 7 वृहद एवं 21 मध्यम सहित कुल 28 जलाशय उपलब्ध कराए गए हैं, जिन का कुल जल क्षेत्र लगभग 2.31 लाख हेक्टेयर है. 31 मार्च, 2024 की स्थिति में महासंघ के अधीन “क” वर्ग की 222 मत्स्य सहकारी समिति के 15,200 पंजीकृत सदस्य हैं.

वर्ष 2023-24 में जलाशयों में निर्धारित लक्ष्य अनुसार, कुल 896.50 लाख के विपक्ष में कुल 494.86 लाख मत्स्य बीज संचय किया गया है.

उन्होंने योजनाओं की विस्तृत जानकारी दी. इस अवसर पर मत्स्य महासंघ द्वारा संचालित प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत प्रत्येक वित्तीय वर्ष में सर्वश्रेष्ठ कार्य करने वाली मछुआ सहकारी समितियों एवं मछुआरों को प्रोत्साहित किया जाता है.

प्रोत्साहन पुरस्कार योजना के अंतर्गत

गांधी सागर इकाई

      • (अ) उत्कृष्ट मत्स्य सहकारी समिति में प्रथम पुरस्कार नवीन आदर्श म.स.स. बर्डिया को 50 हजार रुपए, द्वितीय पुरस्कार ग्रामीण आदर्श म.स.स. हाड़ाखेड़ी को 40 हजार रुपए, तृतीय पुरस्कार जय भवानी म.स.स. जमालपुरा और चतुर्थ पुरस्कार जय राधा कृष्ण म.स.स. गांधीसागर 20 हजार रुपए
      • (ब) उत्कृष्ट मछुआ प्रथम पुरस्कार गौतम मांझी जय लक्ष्मी म.स.स. 30 हजार रुपए, द्वितीय पुरस्कार भरत नवीन आदर्श म.स.स. बर्डिया 25 हजार रुपए, तृतीय पुरस्कार गिरधारी नवीन आदर्श म.स.स. बर्डिया 20 हजार रुपए, चतुर्थ पुरस्कार श्यामल मंडल जय श्री राधे म.स.स. गांधीसागर 18 हजार रुपए, पंचम पुरस्कार नवीन आदर्श म.स.स. बर्डिया 15 हजार रुपए, छठवां पुरस्कार दिप्तसुंदर जय लक्ष्मी नारायण म.स.स.गांधीसागर,

बाणसागर इकाई

      • (अ) उत्कृष्ट मत्स्य सहकारी समिति प्रथम पुरस्कार कुंदन म.स.स. खजूरी 35 हजार रुपए, द्वितीय पुरस्कार विन्ध्यांचल म.स.स. रामनगर 30 हजार रुपए
      • (ब) उत्कृष्ट मछुआ प्रथम पुरस्कार मो. अजील कुंदन म.स.स. खजूरी 20 हजार रुपए,

जबलपुर

      • (अ) उत्कृष्ट मत्स्य सहकारी समिति प्रथम पुरस्कार आदर्श म.स.स. छपारा 1500 हजार रुपए, द्वितीय पुरस्कार बरमैया म.स.स. झुल्लपुर 10 हजार रुपए
      • (ब) उत्कृष्ट मछुआ प्रथम पुरस्कार कमलू बर्मन आदर्श म.स.स. भीमगढ़ 10 हजार रुपए, द्वितीय अर्जुन बर्मन म.स.स. संकल्प माचागोरा 8 हजार रुपए, तृतीय पुरस्कार नंदलाल बर्मन आदर्श म.स.स. भामगढ़ 7 हजार रुपए,

भोपाल

      • (अ) उत्कृष्ट मत्स्य सहकारी समिति प्रथम पुरस्कार राजीव गांधी म.स.स. नीनोद 25 हजार रुपए, द्वितीय पुरस्कार बूधौरकला म.स.स. बूधौर 15 हजार रुपए, तृतीय पुरस्कार अध्यक्ष संजय सागर म.स.स. शामशाबाद 10 हजार रुपए,
      • (ब) उत्कृष्ट मछुआ तृतीय पुरस्कार रहजीत म.स.स. पोनिया 6 हजार रुपए, सांत्वाना पुरस्कार अनीस खान म.स.स.पोनिया, सीताराम महामई म.स.स. सांगुल, मीराबाई चंद्रशेखर आजाद म.स.स. कायमपुर और सुरैया बाई मछुआ समूह मजूसखर्द को 5-5 हजार रुपए पुरस्कार,

राजगढ़

      • (अ) उत्कृष्ट मत्स्य सहकारी समिति प्रथम पुरस्कार म.स. समिति मुरारिया 10 हजार रुपए
      • (ब) उत्कृष्ट मछुआ प्रथम पुरस्कार देवकरण म.स. समिति तलेन 8 हजार रुपए,

अटलसागर

      • (अ) उत्कृष्ट मत्स्य सहाकारी समिति प्रथम पुरस्कार एकलव्य म.स.स. मगरोनी 40 हजार रुपए, द्वितीय पुरस्कार बुंदेलखंड म.स.स. 15 हजार रुपए,

छतरपुर

      • (अ) उत्कृष्ट सहकारी समिति प्रथम पुरस्कार भोला म.स. समिति 12 हजार रुपए, द्वितीय पुरस्कार म.स. समिति किरवाहा 10 हजार रुपए,
      • (ब) उत्कृष्ट मछुआ प्रथम पुरस्कार समकिशन म.स.स.किरवाह 10 हजार रुपए पुरस्कार वितरित किए.

इस अवसर पर प्रमुख सचिव डीपी आहूजा सहित विभागीय अधिकारी मत्स्य महासंघ के सदस्य उपस्थित थे.

‘राष्ट्रीय मछुआरा दिवस’ का आयोजन

उदयपुर : 10 जुलाई, 2024 को मत्स्य विभाग, उदयपुर द्वारा मत्स्य भवन परिसर में ‘राष्ट्रीय मछुआरा दिवस’ का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की शुरुआत में विभाग के सहायक निदेशक डा. अकील अहमद द्वारा अतिथियों एवं समस्त प्रतिभागियों का स्वागत कर इस कार्यक्रम के उद्देश्यों के बारे में जानकारी दी.

मात्स्यिकी  महाविद्यालय के पूर्व प्रोफैसर एवं डीन डा. सुबोध शर्मा ने प्रतिभागियों को बताया कि मछुआरा दिवस का आयोजन मत्स्य वैज्ञानिक डा. हीरालाल चौधरी एवं डा. केएच अलीकुन्ही द्वारा वर्ष 1957 में हारमोंस इंजेक्शन से प्रेरित प्रजनन द्वारा भारतीय मेजर कार्प मत्स्य बीज उत्पादन कराने में सफलता प्राप्त करने के उपलक्ष्य में हर साल मनाया जाता है. इस के फलस्वरूप मत्स्य बीज उत्पादन के क्षेत्र में क्रांति का आगाज हुआ.

वर्तमान में उक्त तकनीक के विकास के साथ मत्स्य वैज्ञानिकों ने भारतीय मेजर कार्प के साथ विदेशी कार्प मछलिया एवं केट फिश के प्रजनन में भी उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है. भारतीय मेजर कार्प के साथ इन मछलियों का मत्स्य बीज भी किसानों को उपलब्ध होने लगा है.

पूर्व में मछली का बीज प्राकृतिक स्रोतों से संग्रहित किया जाता था, जिस के विभिन्न प्रजाति का मिश्रित मत्स्य बीज प्राप्त होता था, जबकि मत्स्य बीज उत्पादन की नवीन तकनीक के विकास के साथ किसानों को मनचाही प्रजाति का शुद्ध बीज समय पर उपलब्ध होने लगा है.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मात्स्यिकी महाविद्यालय के पूर्व प्रोफैसर एवं डीन डा. एलएल शर्मा ने राष्ट्रीय मछुआरा दिवस के उपलक्ष्य में मत्स्य किसानों को अपनी बधाई संदेश में मछलीपालन की वैज्ञानिक पद्धती अपनाने एवं नवीन तकनीकों का समावेश करते हुए मत्स्य उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि करने का आह्वान किया. साथ ही, राज्य में मत्स्य बीज की उपलब्ता बढाने के लिए भी प्रयास करने पर जोर दिया.

उन्होंने बताया कि 80 के दशक में ही प्रेरित प्रजनन की तकनीक के प्रयोग से स्थानीय मत्स्य प्रजाति सरसी का प्रजनन फतह सागर में सफलतापूर्वक करवाया था. कार्यक्रम में पूर्व उपनिदेशक अरुण कुमार पुरोहित, मत्स्य अधिकारी डा. दीपिका पालीवाल एवं डा. शीतल नरूका सहित उदयपुर क्षेत्र के मत्स्य किसान, मछुआरों एवं प्रगतिशील फिश फार्मर्स ने भाग लिया.

मत्स्यपालन (Fisheries) के लिए सब से अधिक आवंटन

नई दिल्लीः मत्स्यपालन (Fisheries) विभाग को वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए 2,584.50 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की गई है, जो मत्स्यपालन विभाग के लिए अब तक का सब से अधिक वार्षिक आवंटन है. बजटीय आवंटन चालू वित्तीय वर्ष की तुलना में 15 फीसदी ज्यादा है. आवंटित बजट विभाग के लिए अब तक की सब से अधिक वार्षिक बजटीय सहायता में से एक है.

पहली पंचवर्षीय योजना से 2013-14 तक मत्स्यपालन क्षेत्र पर केवल 3,680.93 करोड़ रुपए खर्च किए गए. हालांकि वर्ष 2014-15 से ले कर 2023-24 तक देश में विभिन्न मत्स्य विकास गतिविधियों के लिए 6,378 करोड़ रुपए पहले ही जारी किए जा चुके हैं. इस क्षेत्र में पिछले 9 वर्षों में लक्षित निवेश 38,572 करोड़ रुपए से अधिक है, जो इस उभरते क्षेत्र में अब तक का सब से अधिक निवेश है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने क्षेत्र के विकास पर प्रकाश डाला. अंतरिम बजट में अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने के लिए डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की स्थापना पर भी जोर दिया गया है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि मछुआरों की सहायता के महत्व को समझने के लिए एक अलग मत्स्यपालन विभाग की स्थापना की गई, जिस के परिणामस्वरूप वर्ष 2013-14 के बाद से अंतर्देशीय और जलीय कृषि उत्पादन और समुद्री खाद्य निर्यात दोगुना हो गया है.

प्रधानमंत्री मस्त्य संपदा योजना यानी पीएमएमएसवाई जैसी प्रमुख योजना को मौजूदा 3 से 5 टन प्रति हेक्टेयर तक जलीय कृषि उत्पादकता बढ़ाने, निर्यात को दोगुना कर के एक लाख करोड़ रुपए करने और 55 लाख रोजगार के अवसर पैदा करने के साथसाथ 5 एकीकृत एक्वापार्क स्थापित करने के बड़े बुनियादी ढांचे में बदलाव के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है. इस के अलावा जलवायु लचीली गतिविधियों, बहाली और अनुकूलन उपायों को बढ़ावा देने और एकीकृत और बहुक्षेत्रीय दृष्टिकोण के साथ तटीय जलीय कृषि और समुद्री कृषि के विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए ब्लू इकोनौमी 2.0 लौंच किया जाएगा.

भारतीय अर्थव्यवस्था में मत्स्यपालन क्षेत्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह राष्ट्रीय आय, निर्यात, खाद्य और पोषण सुरक्षा के साथसाथ रोजगार सृजन में योगदान देता है. मत्स्यपालन क्षेत्र को ‘सनराइज सैक्टर‘ के रूप में मान्यता प्राप्त है. यह भारत में तकरीबन 30 मिलियन विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले और कमजोर समुदायों के लोगों की आजीविका को बनाए रखने में सहायक है.

वित्त वर्ष 2022-23 में 175.45 लाख टन के रिकौर्ड मछली उत्पादन के साथ भारत दुनिया का तीसरा सब से बड़ा मछली उत्पादक देश है, जो वैश्विक उत्पादन का 8 फीसदी हिस्सा है. देश के सकल मूल्यवर्धित (जीवीए) में तकरीबन 1.09 फीसदी और 6.724 फीसदी से अधिक का योगदान कृषि जीवीए के लिए देता है. इस क्षेत्र में विकास की अपार संभावनाएं हैं, इसलिए टिकाऊ, जिम्मेदार, समावेशी और न्यायसंगत विकास के लिए नीति और वित्तीय सहायता के माध्यम से ध्यान देने की आवश्यकता है.

5 फरवरी, 2019 को पूर्ववर्ती पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग से मत्स्यपालन विभाग को अलग कर के मत्स्य पालन क्षेत्र को आवश्यक बढ़ावा दिया गया था और इसे प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई), मत्स्यपालन बुनियादी ढांचा विकास निधि (एफआईडीएफ) और किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी), जैसे गहन योजनाओं और कार्यक्रमों से सुसज्जित किया गया है. विभाग अब अमृतकाल में नई ऊंचाइयां हासिल करने के लिए तैयार है.

हाईब्रिड मोड में मत्स्यपालन और ऐक्वाकल्चर इंश्योरैंस

नई दिल्ली: मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला ने पूसा, नई दिल्ली में हाईब्रिड मोड (Hybrid Mode)  में मत्स्यपालन ( Fisheries ) और ऐक्वाकल्चर इंश्योरैंस (Aquaculture Insurance)  पर राष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता की. केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने कुछ लाभार्थियों को समूह दुर्घटना बीमा योजना (जीएआईएस) ( Group Accident Insurance Scheme) के चैक भी बांटे. इस अवसर पर मत्स्यपालन विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी, संयुक्त सचिव सागर मेहरा और नीतू कुमारी प्रसाद भी उपस्थित थे.

अपने संबोधन में मंत्री परषोत्तम रूपाला ने सभी हितधारकों से वेसल्स इंश्योरैंस योजनाओं के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के लिए अपने सुझाव और इनपुट के साथ आगे आने का आह्वान किया. साथ ही, उन्होंने कहा कि ग्रुप ऐक्सीडेंट इंश्योरैंस स्कीम (जीएआईएस) काफी सफल रही है और इसी तरह की सफलता को मछुआरा समुदाय के बीच फसल बीमा और वेसल्स बीमा के लिए भी इस्तेमाल होना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि नई योजनाएं बनाते समय जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न मुद्दों को ध्यान में रखा जाना चाहिए.

उन्होंने सम्मेलन के आयोजन के लिए विभाग की सराहना की, जो सभी हितधारकों को संवेदनशील बनाने में काफी मददगार साबित होगा. मंत्री परषोत्तम रूपाला ने बीमा लाभार्थियों से भी बात की और उन की प्रतिक्रिया ली.

मत्स्यपालन विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी ने अपनी टिप्पणी में कहा कि विभाग जापान और फिलीपींस जैसे अन्य देशों में मछुआरों के लिए सफल बीमा मौडल का अध्ययन करेगा और उन के अनुभवों को स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार अनुकूलित किया जाएगा.

डा. अभिलक्ष लिखी ने यह भी रेखांकित किया कि सरकार कंपनियों से वेसल्स बीमा योजनाओं को बढ़ावा दे रही है और ऐसी योजनाओं के लिए सामान्य मापदंडों पर काम करने के लिए एक समिति बनाई गई है. उन्होंने आगे यह भी कहा कि मछुआरा समुदाय के साथ विश्वास की कमी को दूर करने के लिए फसल बीमा के तहत योजनाओं की समीक्षा की जा रही है.

सचिव अभिलक्ष लिखी ने उल्लेख किया कि ग्रुप ऐक्सीडैंट इंश्योरैंस स्कीम (जीएआईएस) ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना‘ (पीएमएमएसवाई) के तहत सब से पुरानी और सब से कामयाब योजना है.

ऐक्वाकल्चर और वेसल्स बीमा सम्मेलन में बीमा के साथसाथ मत्स्यपालन क्षेत्र के विभिन्न हितधारकों को शामिल किया गया. कार्यक्रम का उद्देश्य मत्स्यपालन बीमा से संबंधित सभी हितधारकों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देना, सहयोगी पहल, सर्वोत्तम प्रथाओं और इनोवेशंस को प्रोत्साहित करना, अनुसंधान और विकास में लक्ष्य निर्धारित करना, किसानों और मछुआरों को प्रभावशाली अनुभवों एवं सफलता की कहानियों के माध्यम से बीमा कवरेज अपनाने के लिए प्रेरित करना और जागरूकता बढ़ा कर मत्स्य समुदाय के भीतर ऐक्वाकल्चर बीमा अपनाने की दर को बढ़ावा देना है.

मछुआरों और मछलीपालन करने वाले किसानों के हितों की सुरक्षा के बारे में जागरूकता पैदा करने और मत्स्यपालन क्षेत्र, बीमा कंपनियों, बीमा मध्यस्थों और वित्तीय संस्थानों में विभिन्न हितधारकों के साथ उत्पादक विचारविमर्श करने की आवश्यकता को पहचानते हुए मत्स्यपालन विभाग ने इस राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया. कार्यक्रम में विचारविमर्श एक व्यापक कार्यान्वयन ढांचे, सहयोगात्मक प्रयास और अभिनव समाधान (प्रोत्साहन, उत्पाद नवाचार इत्यादि) विकसित करने में सहायता करेगा, जो मछुआरों और जलीय कृषि किसानों के लिए बीमा पैकेज को अधिक किफायती और आकर्षक बना सकता है.
एफएओ के अधिकारियों, सीएमएफआरआई और सीआईबीए के वैज्ञानिकों, आईसीआईसीआई लोम्बार्ड, ओरिएंटल इंश्योरैंस कंपनी लिमिटेड, मत्स्यफेड, केरल और द न्यू इंडिया इंश्योरैंस कंपनी लिमिटेड के प्रतिनिधियों सहित उद्योग विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं के साथ भी विचारविमर्श किया गया. किसानों और मत्स्य संघों ने ऐक्वाकल्चर इंश्योरैंस का लाभ उठाने में आने वाली चुनौतियों से संबंधित अपने अनुभव साझा किए.

 

Fisheries

 

सम्मेलन में इन मुद्दों पर हुई चर्चा

– मत्स्यपालन में बीमा के माध्यम से जोखिम को न्यूनतम करना.
– भारत में जलीय कृषि और वेसल्स बीमा की कमियां, चुनौतियां और संभावनाएं.
– विभिन्न बीमा उत्पाद और उन की विशेषताएं, जिन्हें मत्स्यपालन क्षेत्र में लागू किया जा सकता है.
– मत्स्यपालन के लिए फसल बीमा में क्षतिपूर्ति आधारित और सूचकांक आधारित बीमा अवसर.
– मत्स्यपालन में पुनर्बीमा की भूमिका.
– मत्स्यपालन क्षेत्र में सूक्ष्म बीमा की भूमिका.
– न्यूनतम परेशानी में त्वरित दावा निबटान प्रक्रिया के लिए सर्वोत्तम अभ्यास.

सम्मेलन में भाग लेने वालों में मछली किसान और मछुआरे, मत्स्यपालन सहकारी समितियां और उत्पादक कंपनियां, मत्स्यपालन प्रबंधन में शामिल राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के सरकारी अधिकारी, शोधकर्ता और शिक्षाविद, केवीके, बीमा कंपनियां और वित्तीय संस्थान, ट्रेसेबिलिटी और प्रमाणन सेवा प्रदाता आदि शामिल थे. इस के अलावा संबंधित ग्राम पंचायतों, कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके), मत्स्यपालन विश्वविद्यालयों और कालेजों, राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के डीओएफ अधिकारियों ने भी वीसी (वीडियो कौंफ्रैंसिंग) के माध्यम से इस में भाग लिया. सम्मेलन में कुल 300 (फिजिकल-100 एवं वर्चुअल-200) प्रतिभागी शामिल हुए.

मत्स्यपालन और जलीय कृषि भोजन, पोषण, रोजगार, आय और विदेशी मुद्रा के महत्वपूर्ण स्रोत हैं. यह क्षेत्र प्राथमिक स्तर पर 3 करोड़ से अधिक मछुआरों और मछली किसानों और मूल्य श्रंखला के साथ कई लाख से अधिक मछुआरों और मछली किसानों को आजीविका, रोजगार एवं उद्यमशीलता प्रदान करता है. वैश्विक मछली उत्पादन में तकरीबन 8 फीसदी हिस्सेदारी के साथ भारत तीसरा सब से बड़ा मछली उत्पादक देश है. पिछले 9 वर्षों के दौरान भारत सरकार ने देश में मत्स्यपालन और जलीय कृषि क्षेत्र के समग्र विकास के लिए परिवर्तनकारी पहल की है.

भारत की अर्थव्यवस्था में मत्स्यपालन क्षेत्र एक महत्वपूर्ण योगदान करने वाला है, जो लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करता है. इस क्षेत्र में सतत और जिम्मेदार विकास को बढ़ाने के लिए, भारत सरकार ने मई, 2020 में ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना‘ (पीएमएमएसवाई) की शुरुआत की. इस पहल का उद्देश्य मछली उत्पादन, बाद के बुनियादी ढांचे, ट्रेसेबिलिटी में महत्वपूर्ण अंतराल को संबोधित कर के और मछुआरों का कल्याण सुनिश्चित कर के एक ब्लू रैवोल्यूशन को उत्प्रेरित करना है.

राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (एनएफडीबी) को बीमा योजनाओं सहित पीएमएमएसवाई कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया गया है. इस के महत्व के बावजूद मत्स्यपालन क्षेत्र को प्राकृतिक आपदाओं और बाजार में उतारचढ़ाव जैसी कमजोरियों का सामना करना पड़ता है, जो इस में शामिल लोगों की भलाई पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है.

पारंपरिक मछुआरों को प्राकृतिक आपदाओं के दौरान मछली पकड़ने से जुड़े जोखिमों से बचाने की जरूरत है. इस दिशा में पीएमएमएसवाई के तहत मछली पकड़ने वाले जहाजों और समुद्री मछुआरों के बीमा कवर के लिए सहायता का प्रावधान किया गया है. हालांकि मैरीन संबंधी खतरे, पुराना बेड़ा और रखरखाव के मुद्दे, विनाशकारी घटनाएं आदि चुनौतियां भी सामने हैं.

भारत में जलीय कृषि विभिन्न जोखिमों जैसे बीमारियों, पीक सीजन की घटनाओं और बाजार में उतारचढ़ाव से भी घिरी रहती है. जलीय कृषि उद्योग की गतिशील प्रकृति के कारण इन जोखिमों का आकलन और प्रबंधन चुनौती भरा हो सकता है. किसानों ने पायलट ऐक्वाकल्चर फसल बीमा योजना में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई, क्योंकि यह केवल बुनियादी कवरेज प्रदान करती थी और बीमारियों सहित व्यापक कवरेज प्रदान नहीं करती थी.

बीमा कंपनियों के पास जलीय कृषि फसल के नुकसान पर लिगेसी डेटा नहीं है. हालांकि बीमा कंपनियां ऐक्वा फसलों के व्यापक कवरेज की उम्मीद करती हैं, लेकिन उत्पाद अधिक महंगा होने के कारण इस की स्वीकार्यता फिलहाल कम है. कई जल कृषि संचालकों को बीमा के लाभों के बारे में जानकारी नहीं हो सकती है या उपलब्ध उत्पादों के बारे में समझ की कमी हो सकती है. बीमा कंपनियों को पुनर्बीमा सहायता की बहुत जरूरत है.

अंतर्देशीय मछली उत्पादन में बढ़त

नई दिल्ली: पिछले 5 वर्षों के दौरान देश में अंतर्देशीय मछली उत्पादन में 7.94 फीसदी की सालाना वृद्धि देखी गई. वर्ष 2022-23 में 131.13 लाख टन का उच्चतम मछली उत्पादन दर्ज किया गया.

पिछले 5 वर्षों के दौरान वर्षवार साल 2018-19 में अंतर्देशीय मछली उत्पादन 8.62 फीसदी वार्षिक वृद्धि दर्ज करते हुए 97.2 लाख टन रहा, जबकि वर्ष 2019-20 में 7.37 फीसदी वृद्धि दर्ज करते हुए 104.37 लाख टन रहा.

इसी प्रकार वर्ष 2020-21 में 7.8 फीसदी वार्षिक वृद्धि दर्ज करते हुए 112.49 लाख टन और वर्ष 2021-22 में 7.76 फीसदी वार्षिक वृद्धि दर्ज करते हुए 121.21 लाख टन और वर्ष 2022-23 में 8.18 फीसदी वार्षिक वृद्धि दर्ज करते हुए 131.13 लाख टन रहा.

भारत सरकार के मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्रालय के मत्स्यपालन विभाग ने देश में मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहल और कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिन में शामिल हैं :

(i). केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) का कार्यान्वयन: नीली क्रांति: एकीकृत विकास और वर्ष 2015-16 से 2019-20 की अवधि के दौरान मत्स्यपालन का प्रबंधन, 3,000 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ.

(ii). “प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) – भारत में मत्स्यपालन क्षेत्र के सतत और उत्तरदायी विकास के माध्यम से नीली क्रांति लाने की योजना” का कार्यान्वयन 20,050 करोड़ रुपए के निवेश के साथ वित्तीय वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक 5 वर्षों की अवधि के लिए सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को कवर करेगा.

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का उद्देश्य भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना, गुणवत्तापूर्ण मछली उत्पादन, प्रजातियों के विविधीकरण, निर्यात उन्मुख प्रजातियों को बढ़ावा देना, ब्रांडिंग, मानकों और प्रमाणन, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण, उत्पादन के बाद के बुनियादी ढांचे, निर्बाध कोल्ड चेन और आधुनिक मछली पकड़ने के बंदरगाहों और मछली लैंडिंग केंद्रों के विकास पर जोर देते हुए निर्माण के लिए सहायता प्रदान करना है.

(iii). 7522.48 करोड़ रुपए के कुल फंड आकार के साथ मत्स्यपालन और एक्वाकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड का कार्यान्वयन, वर्ष 2018-19 से 2023-24 तक रियायती वित्त प्रदान करने के लिए 5 वर्ष की अवधि के लिए लागू किया गया.

(iv). मछुआरों और मछली किसानों की पूंजी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए वर्ष 2018-19 में किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना का विस्तार.

वर्ष 2018 के बाद से देश में अंतर्देशीय मछली उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2018-19 में 97.20 लाख टन से बढ़ कर वर्ष 2022-23 में 131.13 लाख टन हो गया, जो वर्ष 2018-19 से 2022-23 के दौरान कुल अंतर्देशीय मछली उत्पादन में 34.9 फीसदी की रिकौर्ड वृद्धि दर्शाता है.

मत्स्यपालन के लिए ढेरों योजनाएं

नई दिल्ली : देश में मत्स्यपालन क्षेत्र की क्षमता का भरपूर इस्तेमाल करने के लिए केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अधीन मत्स्यपालन विभाग मछलीपालन के आमूल विकास और मछुआरों के कल्याण के लिए विभिन्न पहल कर रहा है. इन पहलों में अन्य बातों के साथसाथ 3 प्रमुख योजनाओं का कार्यान्वयन शामिल है, जिस में पहला नीली क्रांति पर केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस): मत्स्यपालन का एकीकृत विकास और प्रबंधन वर्ष 2015-16 से 2019-20 की अवधि के दौरान 3,000 करोड़ रुपए के केंद्रीय परिव्यय के साथ कार्यान्वित किया गया. उपरोक्त अवधि के दौरान इस योजना के तहत 5,000 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए, जबकि दूसरा प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक 5 वर्षों की अवधि के लिए लागू की गई, जिस में कुल 20,050 करोड़ रुपए का निवेश और परियोजनाएं शामिल हैं. इस के लिए अब तक 7209.31 करोड़ रुपए की केंद्रीय हिस्सेदारी के साथ 17527.22 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए हैं और

तीसरा, रियायती वित्त प्रदान करने के लिए 7522.48 करोड़ रुपए की निधि के साथ वर्ष 2018-19 से मत्स्यपालन और एक्वाकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (एफआईडीएफ) लागू किया गया है. इस योजना के तहत मत्स्यपालन बुनियादी सुविधाओं के निर्माण के लिए राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों सहित विभिन्न कार्यान्वयन एजेंसियों को 5588.63 करोड़ रुपए की मत्स्यपालन अवसंरचना परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है.

इस के अलावा केंद्रीय बजट 2023-24 में सरकार ने 6,000 करोड़ रुपए के लक्षित निवेश के साथ पीएमएमएसवाई की एक नई उपयोजना की घोषणा की गई है, जिसएनका लक्ष्य मछुआरों, मछली विक्रेताओं और सूक्ष्म व लघु उद्यमों की गतिविधियों को और सक्षम बनाने, मूल्य श्रृंखला दक्षता में सुधार करने और बाजार का विस्तार करना है.

पारंपरिक मछुआरों के लाभ के लिए योजनाओं के तहत समर्थित सुविधाओं में अन्य बातों के अलावा शामिल हैं-

– मछली पकड़ने पर प्रतिबंध की अवधि के दौरान सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े सक्रिय पारंपरिक मछुआरों के परिवारों के लिए आजीविका और पोषण संबंधी सहायता, मछुआरों और मछली पकड़ने वाले जहाजों को बीमा कवर, पारंपरिक मछुआरों को नावें और जाल प्रदान करना, संचार/ट्रैकिंग उपकरण. पीएमएमएसवाई समुद्र में मछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समुद्री सुरक्षा किटों की आपूर्ति, गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाले जहाजों की खरीद के लिए पारंपरिक मछुआरों को समर्थन, समुद्री शैवाल संस्कृति और बाइवाल्व संस्कृति जैसी वैकल्पिक आजीविका गतिविधियों, प्रशिक्%

समुद्री नौकाओं को आधुनिक बनाने के लिए अनुदान

अहमदाबाद: भारत के मत्स्यपालन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए एक महत्वपूर्ण कदम में, मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेरी राज्य मंत्री डा. एल. मुरुगन ने पिछले दिनों नीली क्रांति और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के माध्यम से पारंपरिक मछुआरों को गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की तरफ परिवर्तन में समर्थन देने के लिए केंद्र सरकार की अटूट प्रतिबद्धता पर जोर दिया.

उन्होंने गुजरात साइंस सिटी, अहमदाबाद में आयोजित ग्लोबल फिशरीज कौंफ्रैंस इंडिया 2023 में ‘गहरे समुद्र में मछली पकड़ना: प्रौद्योगिकी, संसाधन और अर्थशास्त्र‘ विषय पर एक तकनीकी सत्र में यह बात कही.

डा. एल. मुरुगन ने कहा कि सरकार पारंपरिक मछुआरों को अपने जहाजों को गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाली नौकाओं में बदलने के लिए 60 फीसदी तक वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है. इस के अतिरिक्त इस परिवर्तन को सुविधाजनक बनाने के लिए ऋण सुविधाएं भी उपलब्ध हैं.

उन्होंने टूना जैसे गहरे समुद्र के संसाधनों के लिए अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों को बनाए रखने के लिए अंतर्निर्मित प्रसंस्करण सुविधाओं से लैस आधुनिक मछली पकड़ने वाले जहाजों की आवश्यकता पर जोर दिया. यह स्वीकारते हुए कि पारंपरिक मछुआरों में वर्तमान में इन क्षमताओं की कमी है. सरकार इस अंतर को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है.

डा. एल. मुरुगन ने आगे कहा कि टूना मछलियों की दुनियाभर में काफी मांग है और भारत में अपनी टूना मछली पकड़ने की क्षमता बढ़ाने की शक्ति है. उन्होंने अधिक स्टार्टअप को गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के क्षेत्र में प्रवेश करने व ईंधन की लागत को कम करने और मछली पकड़ने वाली नौकाओं में हरित ईंधन के उपयोग की खोज पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अनुसंधान का आह्वान किया. गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की क्षमता का स्थायी तरीके से प्रभावी ढंग से उपयोग कर मछली पकड़ने वाले जहाजों को उन्नत करने के लिए अनुसंधान और डिजाइन की आवश्यकता है.

गहरे समुद्र के संसाधनों के उच्च मूल्य पर प्रकाश डालते हुए भारत सरकार के मत्स्यपालन के उपायुक्त डा. संजय पांडे ने कहा कि हिंद महासागर येलोफिन टूना का अंतिम मूल्य 4 बिलियन अमेरिकी डौलर से अधिक है.

विश्व बैंक के सलाहकार डा. आर्थर नीलैंड ने कहा कि भारत के ईईजेड में 1,79,000 टन की अनुमानित फसल के साथ येलोफिन और स्किपजैक टूना की आशाजनक क्षमता के बावजूद वास्तविक फसल केवल 25,259 टन है, जो केवल 12 फीसदी की उपयोग दर का संकेत देती है.

उन्होंने गहरे समुद्र में मछली पकड़ने में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र से निवेश की आवश्यकता पर जोर दिया, जिस से आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभ हो सके.

डा. आर्थर नीलैंड ने आगे कहा, ‘‘विशेषज्ञ मत्स्यपालन विज्ञान और प्रबंधन, मछली प्रोसैसिंग और बुनियादी ढांचे के साथ भारत के मजबूत संस्थागत आधार का उपयोग गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की विकास योजनाओं के लिए भी फायदेमंद होगा.‘‘

Fishermanउन्होंने जानकारी देते हुए आगे कहा कि हितधारकों की भागीदारी और निवेश, प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता एवं क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और साझेदारी को प्रोत्साहित करने के लिए एक माहौल बनाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.

इस विषय पर आयोजित एक पैनल चर्चा में प्रस्ताव दिया गया कि गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के विकास के लिए एक व्यवस्थित ढांचा विकसित करने के लिए सभी हितधारकों की चिंताओं को संबोधित करने वाले सामूहिक और समावेशी प्रयास आवश्यक हैं. गहरे समुद्र के सलाहकार, एनआईओटी, चेन्नई, डा. मानेल जखारियाय, वैज्ञानिक-जीएमओईएस, डा. प्रशांत कुमार श्रीवास्तव, आईसीएआर-केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) के वरिष्ठ वैज्ञानिक, डा. पी. शिनोजय और सीएमएलआरई के वैज्ञानिक डी, डा. हाशिम पैनलिस्ट थे.

गहरे समुद्र में मछली पकड़ने का काम प्रादेशिक जल की सीमा से परे किया जाता है, जो तट से 12 समुद्री मील की दूरी पर है, और तट से 200 समुद्री मील के विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) के भीतर है.

जलीय कृषि में नवाचारों के लिए ब्लू फाइनेंस को बढ़ाने का आह्वान

जलवायु परिवर्तन और खाद्य एवं पोषण सुरक्षा की बढ़ती मांग से उत्पन्न गंभीर खतरों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के वरिष्ठ मत्स्य अधिकारी साइमन फ्यूंजस्मिथ ने जलकृषि क्षेत्र में नवाचारों और विकास के लिए ब्लू फाइनेंस बढ़ाने का आह्वान किया.

उन के अनुसार, वैश्विक जलीय कृषि साल 2030 तक मानव उपभोग के लिए 59 फीसदी मछली प्रदान करेगी. साइमन फ्यूंजस्मिथ ने कहा कि एशिया 82 मिलियन टन के साथ वैश्विक जलीय कृषि उत्पादन का 89 फीसदी प्रदान करता है. एशिया में अधिकतर छोटे पैमाने के उद्यम कुल उत्पादन में 80 फीसदी से ज्यादा का योगदान दे रहे हैं. यह क्षेत्र प्राथमिक क्षेत्र में 20.5 मिलियन लोगों के लिए नौकरियां पैदा करता है. स्थायी मत्स्यपालन और जलीय कृषि को बढ़ावा देने का उल्लेख करते हुए उन्होंने छोटे पैमाने पर मत्स्यपालन और जल किसानों द्वारा स्थायी प्रथाओं का समर्थन करने का सुझाव दिया.

मत्स्य विकास अधिकारी के पदों पर चयन में सर्वाधिक एमपीयूएटी से

उदयपुर : 26सितंबर,2023. मात्स्यिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. बीके शर्मा ने बताया कि 20 से 22 सितंबर को राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा मत्स्य विकास अधिकारी के 6 पदों एवं सहायक मत्स्य विकास अधिकारी के 10 पदों पर साक्षात्कार आयोजित किए गए थे, जिस में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मात्स्यिकी महाविद्यालय के 4 विद्यार्थियों का चयन एफडीओ के पदों पर एवं 8 विद्यार्थियों का चयन एएफडीओ के पदों पर हुआ है.

विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने चयनित विद्यार्थियों को एवं मात्स्यिकी महाविद्यालय की संपूर्ण फैकल्टी को इस उपलब्धि पर बधाई दी है.

उन्होंने आगे कहा कि इन पदों पर भरती से राज्य के मात्स्यिकी विकास को नई ऊर्जा एवं गति मिलेगी. इस प्रकार राजस्थान सरकार के मत्स्य विभाग में विभिन्न पदों पर एमपीयूएटी के योग्य मात्स्यिकी स्नातकों की सेवाओं का लाभ विभाग को मिलेगा. इन भरतियों के द्वारा एफडीओ के पद पर एमपीयूएटी के पूर्व छात्र क्रमशः जय प्रकाश यादव, डा. चेतन कुमार गर्ग, डा. महेश चंद सोनवाल एवं डा. लखन लाल मीना का चयन हुआ है और एएफडीओ के पद पर रवि कुमार पटेल, चेतन कुमार गर्ग, विकास चाहर, शुभम वार्ष्णेय, डा. राजपाल यादव, प्रवीण कुमार, नितिन शर्मा व मेघ चंद मीना का चयन हुआ है.

महाविद्यालय के पूर्व अधिष्ठाता डा. एलएल शर्मा ने बताया कि वर्ष 2015-16 के बाद मत्स्य विभाग में अधिकारियों के एक पद पर भरती हुई है, जो कि हर्ष का विषय है. हालांकि विगत वर्ष 2019 से इन पदों पर भरती प्रक्रिया चल रही थी.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि अभी भी मत्स्य विभाग में अनेक पद रिक्त हैं, विशेष तौर पर फिशरीज इंस्पैक्टर के तो 35 पद खाली हैं, जिस से फील्ड स्तर पर राजस्थान सरकार एवं भारत सरकार की विभिन्न मत्स्य विकास परियोजनाओं एवं मछलीपालन के विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन सुचारु रूप से नहीं हो पा रहा है. यदि इन पदों पर भी शीघ्र ही भरती होती है, तो अवश्य ही राज्य के मात्स्यिकी विकास को नई गति मिलेगी. तेजी से बढ़ते इस क्षेत्र में रोजगार भी बढ़ेगा, इस से दक्षिणी राजस्थान के जनजाति बाहुल्य क्षेत्र के मछुआरों को विशेष लाभ मिलेगा.