Processing of Vegetables: गुणों की हिफाजत करे सब्जियों की प्रोसैसिंग

सब्जियों की प्रोसैसिंग (Processing of Vegetables) का खास मकसद उन का इस प्रकार रखरखाव करना है, ताकि उन्हें बाजार की मांग के हिसाब से कभी भी इस्तेमाल में लाया जा सके. ज्यादा हुई पैदावार की प्रोसैसिंग (Processing) कर के फसल के दौरान हुए नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है.

सेहत के प्रति लोगों की जागरूकता की वजह से सब्जियों की प्रोसैसिंग (Processing of Vegetables) में इजाफा हुआ है. लोगों के तेजी से शहरों में बसने व औरतों के घर से बाहर काम के लिए जाने की वजह से इतना समय नहीं होता कि सब्जियों को छील कर पकाया जा सके, इसलिए लोग प्रोसेस्ड सब्जियों को खरीदना पसंद करने लगे हैं. इस के अलावा सब्जियों की प्रोसैसिंग (Processing of Vegetables) किसानों की आमदनी बढ़ाने व गांवों में रोजगार देने में काफी मददगार साबित हो रही है.

खाने की चीजों को लंबे समय तक रखने के लिए तापमान का उपचार देना प्रोसैसिंग (Processing) कहलाता है. डब्बाबंदी उद्योग में डब्बों में गरम या ठंडा करने के उपचार देने को प्रसंस्करण कहते हैं. गरम या ठंडा करना जीवाणुओं को खत्म करने के लिए किया जाता है. ज्यादातर अम्लीय सब्जियों से भरे डब्बों को 110 डिगरी सैंटीग्रेड तापामन में उपचार कर प्रसंस्करित किया जाता है. अम्ल की वजह से जीवाणुओं का विकास रुक जाता है और उन के बीजाणु बनना भी बंद हो जाते हैं. डब्बों में इस्तेमाल की गई चीनी की चाशनी भी जीवाणुओं को रोकने में मददगार होती है.

प्रसंस्करण से सब्जियों का इस प्रकार रखरखाव किया जाता है, ताकि उन्हें बाजार की मांग के मुताबिक कभी भी इस्तेमाल में लाया जा सके. प्रसंस्करण द्वारा जरूरत से ज्यादा पैदावार व कटाई के बाद के नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है. प्रसंस्करण अपना कर हम सब्जियों के 100 फीसदी उत्पादन का इस्तेमाल कर सकते हैं. सब्जियों के प्रसंस्करण से निम्न फायदे हैं:

* कीमती उत्पाद बनाने के लिए उत्पादन का बिना खराब हुए पूरा इस्तेमाल किया जा सकता है.

* एक जगह से दूसरी जगह तक ले जाने और रखरखाव की लागत में काफी हद तक कमी की जा सकती है.

* बिना मौसम के और पूरे साल सब्जियों के संरक्षित उत्पादों द्वारा ताजी सब्जियों जैसा आनंद लिया जा सकता है.

* सब्जी उत्पादों में बेहतर गुणवत्ता नियंत्रण बनाए रखा जा सकता है.

सब्जी प्रसंस्करित उत्पादों को तैयार करने के लिए बहुत से तरीके हैं, जिन्हें अपना कर हम सब्जियों का पूरी तरह से फायदेमंद इस्तेमाल कर सकते हैं.

सब्जी गूदा और जूस : कुछ सब्जियों जैसे टमाटर को कई तरह के उत्पादों को तैयार करने के लिए उस और गूदे के रूप में परिरक्षित किया जा सकता है. सब्जी रस व गूदा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि उन्हें निकाले जाने के एकदम बाद सुरक्षित किया जाए.

टमाटर का इस्तेमाल पूरे साल सभी सब्जियों में व दूसरी खाने की चीजों में किया जाता है. बड़े कारोबारियों द्वारा टमाटर का परिरक्षण साबुत टमाटर या इस का रस निकाल कर और गाढ़े गूदे के रूप में किया जाता है. टमाटर का दूसरा खास उत्पाद चटनी या सास है. बाजार में टमाटर के ये पदार्थ काफी महंगे बिकते हैं, यही वजह है कि ये पदार्थ आम आदमी खरीद नहीं पाता है.

टमाटर का पकाया हुआ गाढ़ा गूदा (बीज और छिलके समेत) ताजे टमाटर जैसा ही काम करता है. इस गूदे को टमाटर क्रश या साबुत टमाटर का गूदा कहते हैं. पूरे साल में केवल कुछ हफ्ते ही टमाटर सस्ते और काफी मात्रा में मिलते हैं. ऐसे समय पर टमाटर का गूदा गाढ़ा कर के रखा जा सकता है. गाढ़े गूदे में ग्लेशियल ऐसेप्टिक एसिड डाल कर 5 मिनट तक आग पर पकाने के बाद रसायन डाल कर गूदे को परिरक्षित किया जा सकता है. यह रसायन फफूंदी और दूसरे जीवाणुओं को गूदे को खराब करने से रोकता है और उस के रंग, स्वाद व पौष्टिकता को ठीक बनाता है.

कम लागत वाले उपाय : रस और गूदे का परिरक्षण कम लागत वाला सब से बढि़या तरीका है, अगर उसे गरम या पाश्चुरीकृत कर के कार्क के ढक्कन वाली बोतलों में रखा जाए. इस के अलावा दूसरा उपाय यह है कि रस या गूदे के परिरक्षक के लिए उस में केएमएस के नाम से लोकप्रिय पोटैशियम मेटाबाइ सलफाइट जैसे रसायनिक परिरक्षण मिलाए जाएं.

उच्च तकनीक प्रसंस्करण : गूदा परिरक्षण के लिए मौजूद तकनीकों में त्वरित प्रशीतन (तेजी से ठंडा करने वाली) सब से अच्छी तकनीक है, क्योंकि इस से गूदे में कुदरती गुण बने रहते हैं. बरफ से ठंडी की जाने वाली सब्जियों की गुणवत्ता को बनाए रखने में प्रशीतन दर की खास भूमिका है. बेहतर गुणवत्ता हासिल करने के लिए त्वरित प्रशीतन की जरूरत होती है.

बल्क एसेप्टिक पैकेजिंग के उत्पादों को खास तरीके से पैकेज किया गया भोजन माना जाता है, जिस से कि गूदे को विसंक्रमित कर के उसे बिना दोबारा गरम किए विसंक्रमण के लिए एसेप्टिक वातावरण के तहत विसंक्रमित पैकेजिंग सामग्री में पैक कर दिया जाता है.  एसेप्टिक प्रसंस्करित भोजन में रस अलग नहीं होते जो कि आमतौर पर दोबारा गरम करने के दौरान हो जाते हैं, जिस से उन के स्वाद में इजाफा होता है और साथ ही ऊर्जा की खपत भी कम होती है. इस के अलावा इस से पैकेजिंग सामग्री और ढुलाई लागत में भी काफी बचत होती है. ज्यादातर सब्जी उत्पाद जैसे कि पेय, कैचअप, चटनी आदि गूदे या रस से तैयार किए जाते हैं. बल्कि एसेप्टिक पैक गूदे को इस्तेमाल करने का सब से बड़ा फायदा यह है कि इस से ऐसी सब्जियों जो जल्दी खराब होने वाली होती है, के रखरखाव से बचा जा सकता है. इस के अलावा छिलका व बीज के रूप में निकाली गई फालतू सामग्री को भी कई उत्पादों में इस्तेमाल किया जा सकता है.

टमाटर का गूदा बनाना

पके हुए लाल व सख्त टमाटरों को धो कर काला व हरा हिस्सा अलग करने के बाद छोटे टुकड़ों में काटें.

स्टील के भगोने में डाल कर कटे हुए टमाटरों को आग पर पकाएं और थोड़ा ठंडा होने पर मिक्सी में पीस कर गूदा बनाएं.

गूदे को तब तक उबालें जब तक कि उस का वजन एकतिहाई रह जाए और गाढ़ा पेस्ट बन जाए. उस के बाद 5 मिलीलीटर ग्लेशियल ऐसीटिक एसिड प्रति किलोग्राम गूदे के हिसाब से डाल कर 5 मिनट तक दोबारा पकाएं. 0.4 ग्राम पोटैशियम मेटाबाइसल्फाइट व 0.2 ग्राम सोडियम बेंजोइट प्रति किलोग्राम गूदे के हिसाब से थोड़े पानी में घोल कर गूदे में मिलाएं.

तैयार गूदे को सूखे कांच के जार में मुंह तक भर दें. जार को बंद करने के बाद सूखी व ठंडी जगह पर रखें.

सब्जी की प्रोसैसिंग (Processing of Vegetables)

सब्जियों को लवणीय जल या 3 फीसदी नमक, 0.8 फीसदी एसीटिक एसिड और 0.2 फीसदी पोटैशियम मेटाबाइसलफाइट के साधारण घोल में भिगो कर परिरक्षित किया जा सकता है. उस के बाद सब्जी के टुकड़ों को अचार या चटनी बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है.

सब्जियों के तरहतरह के रूप जैसे फांकें, क्यूब्स, कतरन आदि एल्यूमीनियम की ट्रे में रख कर डीहाइड्रेटर में रख कर सुखाए जा सकते हैं. सुखाने से पहले तैयार सब्जियों को पोटेशियम मेटाबाइसलफाइट के घोल में उपचारित कर दिया जाए तो अच्छा रहता है. ऐसा करने से कीड़े व फफूंदी आदि नहीं लगते और रंग भी चमकदार हो जाता है. सूखे पदार्थों को सील बंद कर के डब्बों में बंद कर के रखा जाता है, जिस से नमी की मात्रा सूखे पदार्थों को नुकसान नहीं पहुंचा पाती है.

किण्वन विधि से भी सब्जियों का प्रसंस्करण किया जाता है. इस विधि में न केवल सब्जियों को नष्ट होने से बचा सकते हैं, बल्कि इस से उन के पौष्टिक व खनिज तत्त्व भी कम नष्ट होते हैं. किण्वन के दौरान सब्जियों में लैक्टिक अम्ल बनाने वाले जीवाणुओं द्वारा सब्जियों की कुदरती शक्कर लैक्टिक अम्ल में बदल दी जाती है. यह लैक्टिक अम्ल सब्जियों को परिरक्षित करने में मददगार होता है.

खुंबी के प्रसंस्करण के लिए खुंबी को तोड़ कर साफ पानी से धोया जाता है. परिरक्षण से पहले 2-3 मिनट तक उबलते हुए पानी में डाला जाता है, ताकि भंडारण के समय इन का रंग अच्छा रहे. ताजे पानी में 2 फीसदी नमक, 2 फीसदी चीनी, 0.5 फीसदी साइट्रिक एसिड, 1 फीसदी ऐस्कोरबिक और 0.1 फीसदी पोटेशियम मेटाबाइसलफाइड मिला कर रासायनिक घोल तैयार किया जाता है. उपचारित खुंबी को शीशे के जार में भर देते हैं और तैयार किया गया घोल इतनी मात्रा में डालते हैं कि खुंबी उस में अच्छी तरह डूब जाए. जार को अच्छी तरह ढक्कन लगा कर बंद कर के ठंडी जगह पर रखा जाता है.

प्रसंस्करण और भंडारण में सब्जियों की गुणवत्ता को बनाए रखना बहुत जरूरी है. पहले छीलने और काटे जाने वाली सब्जियां आसानी से धोई जा सकने वाली होनी चाहिए ताकि उन की गुणवत्ता अच्छी बनी रहे. इसलिए अच्छी गुणवत्ता की तैयार सब्जियों के लिए प्रसंस्करण से पहले सब्जियों की सावधानी से छंटाई जरूरी है. गाजर, आलू, मूली और प्याज के लिए अच्छी किस्म का होना बहुत जरूरी है. उदाहरण के लिए गाजर और शलजम में रेशेदार भाग उत्पादों में इस्तेमाल नहीं किए जा सकते, क्योंकि ये उत्पाद की गुणवत्ता पर असर डालते हैं. प्रसंस्करण से पहले सब्जियों को क्लोरीन (25-50 पीपीएम) के घोल से धोना चाहिए और उस के बाद क्लोरीन की मात्रा कम करने के लिए उन को पेय जल में भिगो देना चाहिए. यदि छीलने की जरूरत हो तो चाकू से छीला जाना चाहिए. पहले से छीले हुए और फांकें किए गए सेबों और आलुओं का भूरा होना एक समस्या है, जिस से बचने के लिए उन्हें हलके सल्फाइट के घोल में डालना चाहिए.

जब सब्जियों की बहुतायत होती है, उस समय सब्जियों की वैज्ञानिक ढंग से प्रोसेसिंग कर के उन को उस वक्त इस्तेमाल किया जा सकता है, जब उन का मौसम नहीं होता है. इस प्रकार सब्जियों को इच्छानुसार कभी भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

प्रसंस्करण उत्पादों पर असर डालने वाली वजहें

*    सब्जियों की बाहरी और अंदरूनी गुणवत्ता (किस्म, बढ़वार के हालात, कटाई, नुकसान, आयु वगैरह.)

*    छीलने और काटने से पहले और बाद में सब्जियों की धुलाई.

*    छीलने व काटने का तरीका.

*    धुलाई के समय इस्तेमाल किए गए पानी की गुणवत्ता.

*    पैकिंग विधियां और सामग्री.

*    भंडारण का तापमान.

महिला किसान (Women Farmers) खरीफ मौसम का लें फायदा

शहडोल : गृह विज्ञान वैज्ञानिक डा. अल्पना शर्मा ने खरीफ की फसल के लिए महिला किसानों को विषेश सलाह दी. उन्होंने बताया कि महिलाएं खरीफ सीजन में अपने घर के बाड़ी की जमीन में पोषण वाटिका सब्जियों का उत्पादन कर सकती हैं, जिस में खनिज तत्व एवं विटामिन मौजूद रहते हैं, जो हमारे शरीर के लिए काफी लाभदायक होते हैं. इस के साथ ही हरी पत्तेदार सब्जियां एवं कुछ फलियों वाली सब्जियों का भी उत्पादन कर सकते हैं व  इन का उत्पादन भी काफी सरल तरीके से किया जा सकता है.

उन्होंने बताया कि लौकी, तुरई, खीरा आदि का भी उत्पादन कर सकते हैं. इन में खनिज तत्व एवं विटामिन भी काफी मात्रा में मौजूद होते हैं. बारिश के मौसम में गंदे पानी की वजह से कई तरह की बीमारियां होती हैं, खासतौर से उलटी होना, दस्त लगना आदि. इन से बचने के लिए उन्होंने बताया कि कुएं एवं तालाब का पानी पीने से बचें और हैंडपंप के पानी को छान कर व उबाल कर ही पानी को पीना चाहिए.

उन्होंने बताया कि कुछ जमीन जो खाली रहती हैं, किसी कारण उस में खेती नहीं कर पाते हैं, तो उस जमीन में कोदो या कुटकी की खेती करने का प्रयास करें. कोदोकुटकी में रेशा पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है, जो हमारे शरीर को कई रोगों से बचाता है. साथ ही, अन्य कई जानकारियों भी दीं.

जैविक खेती में सिरमौर बनें किसान

राजगढ़ : जिले के ग्राम घोधटपुर के किसान रमेश चंद्र मेरोठा और श्याम सुंदर पाटीदार द्वारा प्राकृतिक कृषि पद्धति से एक बीघा भूमि से जैविक सब्जियों का उत्पादन किया गया. कृषक मेरोठा और पाटीदार द्वारा उपसंचालक कृषि सहपरियोजना संचालक आत्मा एवं उपसंचालक उद्यानिकी विभाग द्वारा सलाह दी गई थी कि प्राकृतिक कृषि पद्धति में अपने घर के उपयोग के लिए सब्जियों का उत्पादन करें. इस से प्रेरित हो कर दोनों कृषक कृषि मेला उज्जैन गए, वहां से करेले का बीज ले कर आए और इन का प्राकृतिक कृषि पद्धति से उत्पादन किया.

इन बीजों को बीजामृत द्वारा बीज उपचारित कर बोआई की. इस के बाद समयसमय पर जीवामृत का छिड़काव किया और भूमि में वर्मी कंपोस्ट मिलाया एवं वर्मीवास करेला की फसल पर टौनिक के रूप में इस्तेमाल किया. सब्जियों में किसी प्रकार के कीट न लगे, इस के लिए समयसमय पर नीमास्त्र एवं ब्रह्मास्त्र का छिड़काव किया, जिस से सब्जियों पर किसी प्रकार के कीट या रोग नहीं लगे. प्राकृतिक पद्धति से उत्पादित सब्जियां स्वाद में बहुत अच्छी एवं उन का आकार सामान्य से ज्यादा है. प्राकृतिक कृषि में उत्पादित उत्पाद सब्जियां स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक है. इन किसानों ने बताया कि प्राकृतिक पद्धति से सब्जियों का उत्पादन कर इस्तेमाल करने से स्वस्थ एवं रोग से मुक्त रहेंगे. एक बीघा सब्जियों की फसल से निम्न सब्जियों का प्रति सप्ताह उत्पादन प्राप्त हो रहा है, जिस में स्वस्थ करेले की औसतन लंबाई 35 से 45 सैंटीमीटर है. सब्जियों में प्रति सप्ताह अनुमानित उत्पादन किलोग्राम में करेला 75, गिलकी 60, खीरा 150, लौकी 160, कद्दू 150 शामिल है.

घर में उगाएं सब्जियां

सब्जियों का हमारे जीवन में काफी महत्त्व है. आमतौर पर हम बाजार से सब्जियां खरीदते हैं, जो कई बार जहरीले पानी में पैदा होती हैं और कई तरह के कैमिकल भी सब्जी की बढ़वार के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, जिन का खराब असर हमारी सेहत पर पड़ता है.

तो क्यों न हम अपने घर के पिछवाड़े या साथ में खाली पड़ी जमीन में सब्जी की खेती करें. घर के गमलों में भी कुछ सब्जियां बोई जा सकती है. इस से हमें पौष्टिकता के साथसाथ खुशी भी मिलेगी.

मिट्टी व क्यारी की तैयारी : आइए सब से पहले हम मिट्टी की बात करते हैं. सब्जी उगाने के लिए दोमट मिट्टी सब से अच्छी होती है, जिस में चिकनी या काली मिट्टी और रेतीली मिट्टी बराबर मात्रा में होती है.

जहां भी हमें अपनी सब्जी की क्यारी तैयार करनी है, वहां 30-40 सैंटीमीटर गहरी खुदाई फावड़ा, कुदाली वगैरह से करें. कंकड़पत्थर व खरपतवार साफ कर दें और उस में जरूरत के मुताबिक गोबर की सड़ी हुई खाद मिला दें या किसी भी खाद वाली दुकान से केंचुए की खाद खरीद कर डाल दें. अगर दोनों तरह की खाद मिला कर डालें तो सोने पर सुहागा वाली बात होगी.

सीधे बोने वाली सब्जियां : भिंडी, बीन, लोबिया, सेम, तुरई, लौकी वगैरह की बोआई मेंड़ पर या क्यारी में की जाती है. बेल वाली सब्जी के बीज मेंड़ पर बोएं.

Home Garden

पौध वाली सब्जियां : बैगन, टमाटर, मिर्च जैसी सब्जियों की पहले पौध तैयार की जाती है, फिर उसी पौध को वहां से निकाल कर क्यारी या गमले में लगाया जाता है. पौध तैयार होने में लगभग 1 माह का समय लगता है. वैसे, आजकल खाद व बीज की दुकानों पर सब्जियों की तैयार पौध भी मिलती है, तो आप वहां से भी खरीद कर पौध लगा सकते हैं. पौध को क्यारी या गमले में लगाने के बाद उस में हलकी सिंचाई करें व प्रारंभिक अवस्था में 2 दिनों में 1 दिन पानी दें. जब कुछ दिनों बाद आप के पौधे ठीक तरह से जम जाएं, तब आप अपनी रसोई वगैरह के पानी का बहाव उन क्यारियों में कर सकते हैं. इस से आप के बेकार पानी का भी इस्तेमाल होता रहता है.

गमलों में सब्जी : छोटे पौधों के लिए आमतौर पर 12 इंच चौड़ाईऊंचाई वाले गमले लिए जा सकते हैं. ज्यादा मिट्टी में पौधे की जड़ ठीक से फैलती है और पौधे की बढ़वार अच्छी होती है और भरपूर सब्जी प्राप्त होती है.

गमले में बेल वाली सब्जियां जैसे तुरई, लौकी भी बोई जा सकती हैं, लेकिन गमलों के साथ रस्सी वगैरह बांध कर ऐसा इंतजाम करना चाहिए, जिस से सब्जी की बेल उस के सहारे चढ़ कर ठीक से फैल सके. गमलों को ऐसी जगह रखें, जहां उन पर सीधी धूप न पड़े. उन्हें दीवार की ओट में रख सकते हैं, वहां धूप भी मिलेगी और छांव भी. साथ ही, बेल को दीवार के सहारे पनपने का मौका भी मिलेगा. गमले बालकनी में भी रखे जा सकते हैं और रेलिंग पर बेल को चढ़ाया जा सकता है.

सब्जी के बगीचे में आप अन्य चीजें भी उगा सकते हैं, जैसे धनिया, प्याज, मेथी, पालक, मूली वगैरह. इन में केवल प्याज की पौध रोपी जाती है. मेथी, पालक, सरसों जैसी सब्जियों के लिए बीजों को क्यारी में बिखेर कर बोया जाता है. मेंड़ बना कर उस पर मूली व शलजम के बीज भी बो सकते हैं. ये हरी सब्जियां बहुत जल्दी बढ़ने वाली होती हैं.

इस तरह घर के बगीचे या गमले में सब्जी उगाना बहुत ही आसान काम है. आप इस के बारे में बहुत सी जानकारी आसानी से ले सकते हैं. जिस दुकानदार से आप बीज, पौध वगैरह ले रहे हैं, वह भी आप को काफी जानकारी दे देगा और बता देगा कि किस समय कौन सा बीज कैसे बोना है. ये बहुत ही साधारण सी बातें हैं. इसलिए आज ही बोएं अपने बगीचे व गमलों में सब्जियां और मस्त व स्वस्थ रहें.

किचन गार्डन में उगाएं स्वास्थ्यवर्धक पोई के पौधे

आजकल लोग खानपान व स्वास्थ्य को ले कर काफी सजग रहने लगे हैं, इसलिए बाजार में मिलने वाली रसायनयुक्त सागसब्जियों से बचने के लिए लोग घरों के किचन गार्डन में सब्जियां और फलफूल उगाते रहते हैं. इस के दो फायदे हैं. एक तो पैसे की बचत होती है, वहीं दूसरा फायदा यह है कि ताजी व रसायनमुक्त सागसब्जियों की उपलब्धता हनेशा रहती है.

बाजार में स्वास्थ्य के नजरिए से मुफीद अनाजों, फलों और सागसब्जियों की डिमांड काफी बढ़ी है. लोगों में बढ़ रही बीमारियों की रोकथाम में ऐसी तमाम सागसब्जियां हैं, जिस का अगर नियमित रूप से सेवन किया जाए, तो होने वाली जानलेवा व गंभीर बीमारियों की चपेट में आने की संभावना काफी कम हो जाती है.

ऐसी ही बेल वाली बहुवर्षीय साग का नाम है पोई. इसे अलगअलग प्रदेशों में अलगअलग नामों से भी जाना जाता है. इस का अंगरेजी नाम मालाबार स्पीनेच है, जबकि इसे बंगाली में पुई, हिंदी भाषी राज्यों में पोई और कन्नड़ में बेसल सोप्पू के नाम से जाना जाता है.

डायटिशियन डा. राम भजन गुप्ता के अनुसार, पोई साग में अन्य साग की अपेक्षा कई गुना ज्यादा पोषक तत्व होते हैं. इस में विटामिन ए, बी और सी की प्रचुर मात्रा पाई जाती है. साथ ही, पोई में दूसरे सागों की तुलना में कई गुना ज्यादा आयरन पाया जाता है.

पोई साग की 100 ग्राम मात्रा में 10 मिलीग्राम आयरन, 87 मिलीग्राम कैल्शियम और 35 मिलीग्राम फास्फोरस पाया जाता है.

डा. राम भजन गुप्ता के अनुसार, पोई साग का अगर नियमित रूप से सेवन किया जाए, तो हार्ट की बीमारी की संभावना बहुत कम होती है. साग के रूप में इस का उपयोग करने से आंत के कैंसर से बचाव होता है. वहीं पोई स्किन को सुरक्षित रखता है.

पोई में पाया जाने वाला डायटरी फाइबर कब्ज से बचाता है, वहीं इस का उपयोग कोलेस्ट्राल लेवल को कम करने के साथ ही रक्त में थक्का बनने से रोकता है.

पोई का साग उपयोग करने वालों को नींद अच्छी आती है. विदेशों में पोई के साग की काफी मांग है. पोई का उपयोग पकौड़े बनाने में भी किया जाता है, जो खाने में बेहद लजीज होता है.

पोई का उपयोग : डा. राम भजन गुप्ता के मुताबिक, पोई की पत्तियों से साग, पकौड़े, सलाद, और सूप जैसे पकवान तैयार किए जाते हैं. पोई से घरों को सजाने के लिए इंडोर पौध के रूप में सजावट के लिए भी उपयोग किया जाता.

वैसे तो पोई का पौधा बारिश के मौसम में अपनेआप उग आता है. इस के तने का रंग लाल और पत्तियां हरे रंग की होती हैं. इस के पत्ते दिल के आकार के मोटे होते हैं. इस की 2 किस्में अधिक पाई जाती हैं, पहली लाल और दूसरी हरी.

खेती करने योग्य मिट्टी

कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती के वैज्ञानिक (कृषि प्रसार) राघवेंद्र विक्रम सिंह का कहना है कि पोई की रोपाई के लिए जीवांशयुक्त दोमट या बलुई दोमट मिट्टी अच्छी होती है. पोई की रोपाई अगर खेतों में करनी है, तो खेत की अच्छी तरह से जुताई कर मिट्टी में सड़े गोबर की खाद, नाडेप या वर्मी कंपोस्ट को मिला देना उपयुक्त होता है. किचन गार्डन में रोपाई के लिए गमलों में गोबर की खाद मिली मिट्टी भर दें और उस में पानी डाल कर उपयुक्त नमी बना लें. जब मिट्टी भुरभुरी हो जाए, तो उचित नमी रहते हुए इस में पोई की रोपाई कर दें.

रोपाई का उचित समय : यह बहुवर्षीय फसल के रूप में उगाया जाता है. इसे एक बार रोपने के बाद कई वर्षों तक इस से साग योग्य पत्तियां प्राप्त की जा सकती हैं. जहां तक इस की रोपाई के उचित समय का सवाल है, तो फरवरी से ले कर जुलाई माह तक का समय सब से मुफीद होता है. वैसे, इसे पूरे साल कभी भी रोपा जा सकता है. सर्दी के मौसम में बीज से पौध उगने में समय लगता है.

रोपाई की विधि : इस की रोपाई 2 विधियों से की जाती है. पहली कटिंग विधि से और दूसरी बीजों द्वारा. बीज को गमलों या जमीन में बोने के लिए 2 से 3 बीज एकसाथ मिट्टी में डालने चाहिए. बीज को 1 से 2 इंच की गहराई में डालें. अगर इसे कटिंग विधि से रोपा जाना है, तो बेल को 14 इंच की लंबाई में टुकड़ेटुकड़े काट कर मिट्टी में 5 इंच की गहराई में गाड़ दें. अगर पोई को सीधे ही जमीन पर रोपा जाना है, तो न्यूनतम पौध से पौध की दूरी 30 सैंटीमीटर और लाइन से लाइन की 75 सैंटीमीटर न्यूनतम दूरी रखें. बीज से रोपे गए पौधे एक से दो सप्ताह में और कटिंग विधि से रोपे गए पौधे 10 से 20 दिन में उग आते हैं.

चूंकि यह बेल वाली पौध है, इसलिए इस के लिए मचान या बाड़ लगा कर बेलों को उस के ऊपर फैलने दें. इस के पौधे 10-20 फुट तक लंबे होते हैं.

सिंचाई और उर्वरक : 15 दिनों के अंतराल पर पोई की फसल को पानी देते रहना चाहिए. गरमियों में 5 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें. पोई के पौधों में कैमिकल खाद का उपयोग करने से बचना चाहिए. इस के प्रत्येक पौधों में प्रत्येक 3 माह पर 500 ग्राम गोबर, नाडेप या वर्मी खाद का उपयोग करें.

कीट और रोग नियंत्रण : इस के पौधों में आमतौर पर किसी तरह की बीमारियों और कीटों का प्रकोप नहीं होता है. लेकिन कभीकभी एक परजीवी के कारण पत्तियों पर लाल धब्बे से बन जाते हैं. इस रोग का प्रकोप दिखने पर रोगग्रस्त पत्तियों को तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.

उपज : पोई के पौधों से प्रत्येक सप्ताह पत्तियों की तुड़ाई करते रहना चाहिए. पोई की फसल से एक वर्ष में 10 वर्गमीटर में लगभग 40-60 किलोग्राम पत्तियां प्राप्त होती हैं, जिस का आम बाजार रेट 50 से 100 रुपया किलोग्राम है.

पोषण वाटिका में पूरे साल सब्जियां

सब्जियां न केवल हमारे पोषण मूल्यों को बढ़ाती हैं, बल्कि शरीर को शक्ति, स्फूर्ति, वृद्धि और अनेक प्रकार के रोगों से बचाने के लिए महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व जैसे कार्बोहाइडे्रट, प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिजलवण इत्यादि प्रदान करती हैं. भारतीय मैडिकल अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार, प्रतिदिन प्रति व्यक्ति निम्न मात्रा (300 ग्राम) में सब्जी की आवश्यकता पड़ती है:

हरी पत्तेदार सब्जी 115 ग्राम, जड़/कंद वर्गीय सब्जी 115 ग्राम, अन्य सब्जी 70 ग्राम की जरूरत होती है.

उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक परिवार अपनी पोषण वाटिका में सब्जी का उत्पादन कर सकता है, जिस से उसे ताजा, सुरक्षित एवं पोषण से भरपूर सब्जियां मिल सकें. प्राय: एक परिवार को पूरे साल सब्जियां प्राप्त करने के लिए 200 से 250 वर्गमीटर का क्षेत्रफल प्रयाप्त होता है. इस में छोटीछोटी क्यारियां बना कर उस में महंगी एवं परिवार की पसंद की सब्जियों का फसलचक्र अपनाया जा सकता है.

अगर एक जगह पर इतनी भूमि नहीं हो, तो बिखरी हुई वाटिका का निर्माण किया जा सकता है. इस प्रकार पोषण वाटिका में सब्जियों के साथसाथ फलदार वृक्ष जैसे पपीता, नीबू, अनार व अमरूद आदि के अलावा दूसरे फूल वाले पौधे भी लगाए जा सकते हैं. पोषण वाटिका से उत्पादित सब्जियों स्वादिष्ठ, ताजा, कीट व बीमारियों से मुक्त होती है.

किसी एक सब्जी की उपलब्धता का समय बढ़ाने के लिए जल्दी, मध्य व देर से पकने वाली किस्मों को उगाना चाहिए. फलदार वृक्षों जैसे नीबू, अमरूद, केला व अनार को एक तरफ लगाना चाहिए, ताकि क्यारियों की जुताई में बाधा न हो सके. अधिक पानी चाहने वाली सब्जियां (पालक, चोलाई) मुख्य नाली के पास लगानी चाहिए. सब्जियों को हमेशा जगह बदलबदल कर लगाएं, ताकि अधिक उत्पादन के साथसाथ कीट एवं बीमारियों का प्रकोप कम हो सके.

स्थान का चयन

घर का पिछला हिस्सा जहां धूप पर्याप्त मात्रा एवं काफी समय तक रहती हो, उत्तम होता है. इस बात का ध्यान देना चाहिए कि बड़े पेड़ की छाया सब्जियों की पैदावार को प्रभावित न करने पाए. इस के लिए 1 या 2 कंपोस्ट के गड्ढे छाया या कम महत्त्व वाली जगह में बनाने चाहिए. यदि पर्याप्त जगह हो, तो पपीता, नीबू, अंगूर, केला इत्यादि को उत्तर दिशा में लगाया जा सकता है.

आवश्यक  कृषि क्रियाएं
* बीजों/पौधों को हमेशा किसी विश्वसनीय संस्थानों जैसे कृषि विज्ञान केंद्र व अन्य से ही खरीदना चाहिए.
* गोबर की सड़ी हुई अथवा कंपोस्ट खादों का ही ज्यादातर प्रयोग करना चाहिए.
* सिंचाई के लिए रसोईघर या घर के बेकार पानी का उपयोग करना चाहिए.

सब्जी फसल की सुरक्षा
* सब्जी फसल में जैविक कीट व व्याधिनाशियों का उपयोग करें.
* प्रकाश प्रपंच का प्रयोग करें.
* नीमयुक्त कीटनाशक के उपयोग को बढ़ावा दें.
* स्टिकी ट्रैप का उपयोग करें.
कुछ आवश्यक सुझाव
* पोषण वाटिका की कोई भी क्यारी खाली नहीं रखनी चाहिए.
* टमाटर, मटर, सेम, परवल आदि को सहारा दिया जाना चाहिए, ताकि ये फसलें कम से कम जगह घेरें एवं बेल/लत्तेदार सब्जियों जैसे लौकी, तुरई, केला, टिंडा इत्यादि को बाड़ के सहारे उगाना चाहिए.
* जल्दी तैयार होने वाली सब्जियों को देर से तैयार होने वाली सब्जियों के बीच कतारों में लगाते हैं.

पोषण वाटिका से लाभ
* परिवार के सभी सदस्यों के लिए मनोरंजन का एक उत्तम साधन है.
* घर के पास पड़ी खाली भूमि का समुचित उपयोग हो जाता है.
* हर समय ताजा, स्वादिष्ठ व विषरहित सब्जी मिल जाती है.
* पोषण वाटिका में सब्जियों को उगाने पर गृहिणी के बजट में अच्छी बचत हो जाती है.
* घर के फालतू पानी व कूड़ेकरकट का सदुपयोग हो जाता है.
* बच्चों में अच्छी आदतों का विकास होता है और वे श्रमजीवी बनते हैं.
* पोषण वाटिका देख कर आंखों को संतोष एवं आनंद मिलता है.
* खाली समय का सदुपयोग हो
जाता है.

सब्जी फसल और उन्नत प्रजातियां
* हरी मिर्च+सगिया मिर्च- एनपी46ए या पूसा ज्वाला भारत, कैलिफोर्निया वंडर
* प्याज- अर्ली ग्रेनो या वीएल प्याज-3
* प्याज- पूसा रैड
* भिंडी- पूसा सावनी या परभनी क्रांति
* बैगन (लंबा)- पूसा परपल लौंग या पंत सम्राट
* बैगन (गोल)- पूसा क्रांति या पंत ऋतुराज
* फूलगोभी- पूसा क्रांतिकी
* फूलगोभी- पूसा दीपाली
* फूलगोभी- स्नोवाल
* मूली लाल/सफेद- रैफ्ट रैड ह्वाइट, जैपनीज ह्वाइट, पूसा हिमानी, चायनीज पिंक
* आलू- कुफरी अलंकार, सिंदूरी, बहार, चंद्रमुखी
* लोबिया- पूसा फाल्गुनी या पूसा दोफसली
* पत्तागोभी- गोल्डन एंकर, रिया, वरुण, यस ड्रमहैड
* ग्वार- पूसा नवबहार
* फ्रैंचबींस- कंटैंडर या पूसा पार्वती
* गाजर, शलजम- उन्नत प्रबेध
* चुकंदर, गांठगोभी, लेट्यूस- ग्रेट लेकेस
* अरबी- अस्थानीय
* पालक (देशी)- अर्ली स्मूथ लीफ
* पालक (विलायती)- पूसा ज्योति
* चौलाई- कोई भी प्रजाति
* लौकी- पूसा मेघदूत या पूसा मंजरी
* कद्दू- लोकल प्रबेध
* स्पंज ग्राडसेनुआ- पूसा चिकनी
* ग्रिजगार्ड (तोरई)- पूसा नसदार
* खीरा- पौइंसैट, जैपनीज, लौंग ग्रीन
* मटर- अर्केल, पीयसयम-3
* सेम- लोकल प्रबेध
* टमाटर- पूसा-120, पूसा रूबी

प्रत्येक क्यारियों की सब्जियों के लिए फसलचक्र
* पत्तागोभी सहफसल लेट्यूस के साथ ग्वार एवं फ्रास्बीन- नवंबर से मार्च, मार्च से अक्तूबर
* फूलगोभी (पछेती) सहफसल गांठगोभी- सितंबर से फरवरी
* लोबिया (ग्रीष्म ऋतु)- मार्च से अगस्त
* लोबिया (वर्षा ऋतु), फूलगोभी (मध्य मौसमी किस्में)- जुलाई से नवंबर
* मूली- नवंबर से दिसंबर
* प्याज- दिसंबर से जून
* आलू- नवंबर से मार्च
* लोबिया- मार्च से जून
* फूलगोभी (अगेती)- जुलाई से अक्तूबर
* बैगन (लंबा) : फसल पालक के साथ- जुलाई से मार्च
* भिंडी सहफसल चौलाई के साथ- मार्च से जून
* बैगन (गोल) सहफसल पालक के साथ- अगस्त से अप्रैल
* भिंडी सहफसल चौलाई के साथ- मई से जुलाई
* मिर्च+सगिया मिर्च- सितंबर से मार्च
* भिंडी- जून से अगस्त
नोट : बोआई का समय जलवायु विशेष के अनुसार बदल सकता है.