Oilseed Production : कैसे बढ़ेगा तिलहन उत्पादन

Oilseed Production :  पिछले दिनों 24 फरवरी,2025 को राष्ट्रीय खाद्य तेल-तिलहन मिशन नेशनल मिशन औन एडिबल औयल (एनएमइओ) योजानान्तर्गत दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला में खेरवाड़ा, मावली, झाड़ोल, फलासिया और नयागांव पंचायत समितियों के चयनित 100 किसानों ने भाग लिया.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी) के निदेशक अनुसंधान के नवीन सभाकक्ष में आयोजित कार्यशाला में किसानों को तिलहन उत्पादन बढ़ाने और खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता संबंधी महत्वपूर्ण गुण सिखाए गए.

एमपीयूएटी के पादप रोग वैज्ञानिक डा. आरएस रत्नू ने तेल वाली फसलों यथा तिल, मूगंफली, सोयाबीन, अरण्डी, सूरजमुखी, सरसों, अलसी, कुसुम आदि में लगने वाली बीमारियों और उन के निदान के बारे में बताया, ताकि तिलहन की खेती करने वाले किसान समय रहते नुकसान से बच सकें.

कीट वैज्ञानिक डा. आर स्वामिनाथन ने तिलहन फसलों में लगने वाले प्रमुख कीट और उन का निदान, मित्र कीट की पहचान और उस का महत्व, फसल चक्र अपनाने के फायदे आदि के बारे में विस्तारपूर्वक बताया. पादप व अनुवांशिकी विभाग के डा. पीबी सिंह, अनुसंधान निदेशक डा. अरविंद वर्मा और डा. अभय दशोरा ने मूगंफली की उन्नत किस्मों व खरपतार नियंत्रण आदि की जानकारी दी.

आरंभ में संयुक्त निदेशक कृषि जिला उदयुपर सुधीर कुमार वर्मा ने कार्यशाला के लक्ष्य पर प्रकाश डालते हुए बताया कि तिलहन उत्पादन मिशन के अंतर्गत 2030-31 तक केंद्र ने 10 हजार 800 करोड़ रूपए की मंजूरी दी है. इस में 20 फीसदी राशि राज्य सरकार वहन करेगी.

पाम औयल की खेती (Palm Oil Cultivation) पर कार्यशाला

गुवाहाटी: असम के कृषि विभाग द्वारा भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (डीएएंडएफडब्लू) के सहयोग से आयोजित सतत तेल पाम खेती पर दोदिवसीय राष्ट्रीय स्तर की समीक्षा और कार्यशाला गुवाहाटी में संपन्न हुई. इस कार्यक्रम में सरकारी निकायों, निजी कंपनियों, किसानों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख हितधारकों को वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं का आदानप्रदान करने और भारत में सतत तेल पाम खेती को आगे बढ़ाने के लिए एकसाथ लाया गया.

कार्यशाला की अगुआई में, किसानों और तेल पाम उद्योग के प्रतिनिधियों के साथ एक संवाद सत्र आयोजित किया गया, जिस में तेल पाम उद्योग की चुनौतियों पर चर्चा की और सर्वोत्तम प्रथाओं पर विचारविमर्श किया गया. देश के विभिन्न हिस्सों से तेल पाम किसानों के साथसाथ उद्योग के प्रतिनिधियों ने संवाद सत्र में भाग लिया. इस के बाद राज्य सरकार के प्रतिनिधियों के साथ खाद्य तेल, तेल पाम (एनएमईओ-ओपी) पर राष्ट्रीय मिशन के कार्यान्वयन में बाधाओं की पहचान करने के लिए राज्य के प्रदर्शन की भौतिक और वित्तीय समीक्षा की गई, जिस से कार्यान्वयन दक्षता में सुधार के लिए भविष्य की कार्रवाई को आकार देने में मदद मिली.

सम्मेलन को संबोधित करते हुए असम के कृषि मंत्री अतुल बोरा ने क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के लिए टिकाऊ तेल पाम की खेती के रणनीतिक महत्व पर जोर दिया और किसानों को सरकार के निरंतर समर्थन का आश्वासन दिया. उन्होंने असम की भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि असम पूरे पूर्वोत्तर और देश में टिकाऊ तेल पाम क्षेत्र को आगे बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है.

भारत सरकार के डीए एंड एफडब्ल्यू के सचिव डा. देवेश चतुर्वेदी ने देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के राष्ट्रीय उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए पाम औयल की खेती के महत्व पर प्रकाश डाला और सभी हितधारकों से यह सुनिश्चित करने के लिए एकसाथ आने को कहा कि घरेलू स्तर पर उत्पादित पाम औयल का हिस्सा अगले 5-6 वर्षों में मौजूदा 2 फीसदी से बढ़ कर 20 फीसदी हो जाए.

चर्चा की शुरुआत करते हुए, संयुक्त सचिव (तिलहन), डीए एंड एफडब्ल्यू अजीत कुमार साहू ने एनएमईओ-ओपी के कार्यान्वयन के मुद्दों के बारे में विस्तार से बताया, चुनौतियों से निबटने के लिए राज्यों, किसानों और उद्योग के बीच सहयोग पर जोर दिया.

कार्यक्रम की शुरुआत में असम की कृषि उत्पादन आयुक्त अरुणा राजोरिया ने सभी प्रतिनिधियों का स्वागत किया और विशेष रूप से पूर्वोत्तर में टिकाऊ तेल पाम प्रथाओं को बढ़ावा देने में राज्य की अग्रणी भूमिका को रेखांकित किया.

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के अध्यक्ष विजय पाल शर्मा ने पाम औयल की खेती के आर्थिक प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया. उन्होंने प्रौद्योगिकी और टिकाऊ प्रथाओं की भूमिका को बेहतर लाभप्रदता से जोड़ते हुए इस के महत्व पर प्रकाश डाला.

संजय अग्रवाल, पूर्व सचिव डीए एंड एफडब्ल्यू की अध्यक्षता में आयोजित एक महत्वपूर्ण सत्र में एनएमईओ-ओपी के कार्यान्वयन चुनौतियों की जांच की गई. उन्होंने तेल पाम उत्पादन में तेजी लाने के लिए सरकारी निकायों, उद्योग जगत के नेताओं और किसानों के बीच अधिक समन्वय का आग्रह किया, जिस में नीति और कार्यान्वयन की बाधाओं पर चर्चा की गई.

कार्यशाला में पौधों की गुणवत्ता और तेल की पैदावार में सुधार के लिए शेल जीन तकनीक सहित तकनीकी प्रगति का प्रदर्शन किया गया. उच्च गुणवत्ता वाली रोपण सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करने पर मुख्य ध्यान दिया गया, जो तेल पाम की खेती की सफलता के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है. इस के अतिरिक्त पाम तेल के स्वास्थ्य और पोषण संबंधी पहलुओं पर चर्चा की गई, गलत धारणाओं को दूर किया गया और इस के लाभों पर प्रकाश डाला गया.

पाम औयल उत्पादक देशों की परिषद (सीपीओपीसी) के प्रतिनिधियों सहित अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों ने पाम औयल की खेती में वैश्विक रुझानों और विनियामक विकास पर जानकारी प्रदान की. राउंड टेबल सस्टेनेबल पाम औयल (आरएसपीओ) और वर्ल्ड वाइड फंड फौर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) ने स्थिरता और जलवायु लचीलेपन पर चर्चा में योगदान दिया, भारत के लिए टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने और अन्य क्षेत्रों में अनुभव किए गए पर्यावरणीय नुकसानों से बचने के लिए रणनीतियों को साझा किया.

पाम औयल की खेती (Palm Oil Cultivation)

गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड (जीएवीएल), 3एफ औयल पाम प्राइवेट लिमिटेड, पतंजलि फूड्स लिमिटेड (पीएफएल) और एएके जैसे उद्योग जगत के नेताओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया और औयल पाम मूल्य श्रंखला में अपने अनुभव साझा किए. उन्होंने भारत में स्थायी औयल पाम उत्पादन को बढ़ाने में निजी क्षेत्र की भूमिका पर प्रकाश डाला, विशेष रूप से सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से.

कार्यक्रम का समापन सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ हुआ, जिस में भारत में, विशेषकर पूर्वोत्तर क्षेत्र में पाम की खेती के भविष्य की संभावनाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया. चर्चाओं में डाउनस्ट्रीम उद्योगों और सार्वजनिक-निजी सहयोग की भूमिका पर विचार किया गया, जिस से घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिल सके.

कार्यशाला से प्राप्त मुख्य बातों से हितधारकों को एनएमईओ-ओपी को लागू करने के लिए अपनी रणनीतियों को परिष्कृत करने में मदद मिलने की उम्मीद है. साथ ही, इस में शामिल सभी लोगों के लिए स्थिरता, लाभप्रदता और आर्थिक विकास सुनिश्चित होगा.

नीति निर्माताओं, उद्योग जगत के नेताओं, किसानों और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के सहयोग ने भारत में पाम औयल उत्पादन के भविष्य के लिए एक मजबूत नींव रखी, जिस में पूरे श्रंखला में विकास और पर्यावरणीय जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया गया.

तिलहन (Oilseeds) का बढ़ेगा उत्पादन

नई दिल्ली: देश में पाम औयल और पेड़ों पर उगने वाले औयल सीड्स के तहत 9 तिलहन (Oilseeds) फसलों के उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि और क्षेत्र विस्तार द्वारा खाद्य तेलों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए वर्ष 2018-19 से एक केंद्र प्रायोजित योजना -राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन- तिलहन और पाम औयल (एनएफएसएम-ओएस और ओपी) लागू की गई है.

एनएफएसएम- औयल सीड्स योजना के तहत 3 व्यापक हस्तक्षेपों के लिए राज्य सरकार के माध्यम से किसानों को प्रोत्साहन व सब्सिडी प्रदान की जा रही है, जिस में पहला सीड कंपोनेंट, जिस में ब्रीडर बीजों की खरीद, आधार बीज और प्रमाणित बीजों का उत्पादन, प्रमाणित बीजों का वितरण, बीज मिनीकिट और बीज हब का वितरण शामिल है.

दूसरा उत्पादन इनपुट कंपोनेंट में घंडारण डब्बे, पौध संरक्षण (पीपी) उपकरण और बीज शामिल हैं. ड्रम, पीपी रसायनों का उपचार, जिप्सम, पाइराइट्स, चूना आदि का वितरण, न्यूक्लियर पौलीहेड्रोसिस वायरस, जैव एजेंट, जैव उर्वरक की आपूर्ति, उन्नत कृषि उपकरण, स्प्रिंकलर सैट, पानी ले जाने वाले पाइप, और तीसरा क्लस्टर को कवर करने वाले टैक्नोलौजी कंपोनेंट का ट्रांसफर या ब्लौक प्रदर्शन, फ्रंटलाइन प्रदर्शन, क्लस्टर फ्रंटलाइन प्रदर्शन और राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली और कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से प्रशिक्षण, किसान फील्ड स्कूल (एफएफएस) मोड के माध्यम से एकीकृत कीट प्रबंधन, किसानों का प्रशिक्षण, अधिकारियों, विस्तार कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण, आवश्यकता आधारित अनुसंधान एवं विकास परियोजना सहित फ्लैक्सी फंड के तहत सैमिनार व किसान मेला और तेल निकालने वाली इकाई है.

सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों और अंडमान व निकोबार पर विशेष ध्यान देने के साथ देश को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए औयल पाम की खेती को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2021-22 में एक अलग मिशन यानी राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (औयल पाम) – एनएमईओ (ओपी) शुरू किया है. अंडमान व निकोबार में औयल पाम का क्षेत्रफल वर्ष 2025-26 में 3.70 लाख हेक्टेयर से बढ़ा कर 10.00 लाख हेक्टेयर किया जाएगा.

एनएफएसएम-तिलहन और एनएमईओ (ओपी) दोनों को तिलहन और तेल पाम के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ा कर और आयात बोझ को कम कर के खाद्य तेलों की उपलब्धता बढ़ाने के उद्देश्य से देश में लागू किया जा रहा है.

इस के अलावा राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-रफ्तार (आरकेवीवाई-रफ्तार) तिलहन पर फसल उत्पादन संबंधी गतिविधियों के लिए प्रावधान प्रदान करती है. आरकेवीवाई-रफ्तार के तहत, राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित राज्य स्तरीय मंजूरी समिति (एसएलएससी) की मंजूरी के साथ तिलहन पर कार्यक्रम भी लागू कर सकते हैं.

वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण 2024 के दौरान की घोषणा’

वर्ष 2022 में घोषित योजना पर आगे बढ़ते हुए सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन और सूरजमुखी जैसे तिलहनों में ‘आत्मनिर्भरता’ हासिल करने के लिए एक रणनीति तैयार की जाएगी. इस में उच्च उपज देने वाली किस्मों के लिए अनुसंधान, आधुनिक कृषि तकनीकों को व्यापक रूप से अपनाना, बाजार से जुड़ाव, खरीद, मूल्यवर्धन और फसल बीमा शामिल होगा.

सरकार के प्रयासों से खाद्य तेलों की आयात निर्भरता वर्ष 2015-16 में 63.25 फीसदी से कम हो कर वर्ष 2022-23 में 57.30 फीसदी हो गई है और खाद्य तेल की कुल मांग में वृद्धि के बावजूद घरेलू उत्पादन वर्ष 2015-16 में देश की कुल मांग का 36.75 फीसदी से बढ़ कर वर्ष 2022-23 में 42.71 फीसदी हो गया है.
भारत सरकार का कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय आगामी बोआई सीजन से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए जायद, खरीफ और रबी के बोआई सीजन से पहले कृषि अभियान पर राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करता है. इन सम्मेलन में बीजों से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की जाती है.

इन सम्मेलनों में राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर कृषि से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की जाती है. इन सम्मेलनों के दौरान बीजों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए बीज की आवश्यकता और उपलब्धता की समीक्षा की जाती है. विभिन्न फसलों की नई जारी उच्च उपज वाली किस्मों व बीजों को किसानों को समय पर उपलब्ध कराने के तौरतरीकों पर चर्चा की गई.

जलवायु परिवर्तन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए स्ट्रेस टोलरेंट, जलवायु लचीली किस्मों को बढ़ावा देने की रणनीति पर चर्चा की गई. इस के अलावा कुपोषण वाले क्षेत्रों में पोषण की कमी से निबटने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बायोफोर्टिफाइड किस्मों को शामिल करने पर भी चर्चा की गई है.

राज्य सरकार द्वारा डायनामिक बीज रोलिंग योजना की तैयारी पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है, जिस में विभिन्न फसलों की नई जारी की गई छोटी और मध्यम अवधि की उच्च उपज वाली किस्में शामिल हैं.

किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज उपलब्ध कराने के लिए बीज कानून प्रवर्तन एजेंसियों, बीज प्रमाणीकरण एजेंसियों, बीज परीक्षण प्रयोगशालाओं की क्षमता निर्माण की योजना बनाई गई है. राज्य सरकार द्वारा किसानों के लिए नई जारी किस्मों, कृषि प्रदर्शन और जागरूकता कार्यक्रमों को लोकप्रिय बनाने की रणनीतियों पर चर्चा की गई.

तोरिया (लाही) की समय से करें बोआई

तोरिया ‘कैच क्रौप’ के रूप में खरीफ व रबी के मध्य में बोई जाने वाली तिलहनी फसल है. इस की खेती कर के किसान अतिरिक्त लाभ हासिल कर सकते हैं. यह 90-95 दिन के भीतर पक कर तैयार हो जाने वाली फसल है. इस के लिए हलकी बलुईदोमट भूमि सब से सही होती है.

तोरिया की उन्नत किस्मों में पीटी 303, तपेश्वरी, गोल्डी, बी-9, उत्तरा, नरेंद्र तोरिया-4 आदि की बोआई की जा सकती है.

प्रमाणित बीज 4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से थीरम अथवा मैंकोजेब की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित कर बोआई करें.

मैटालेक्सिल 1.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधन करने पर शुरुआती अवस्था में सफेद गेरुई व तुलासिता रोग की रोकथाम हो जाती है.

तोरिया की समय पर 30 सैंटीमीटर की दूरी पर कतार में बोआई करने से अधिक उत्पादन मिलने के साथ ही फसल पर रोग और कीटों का प्रकोप भी कम होता है.

तोरिया के बाद गेहूं की फसल लेने के लिए बोआई सितंबर महीने के पहले पखवारे (1 सितंबर से 15 सितंबर) में जरूर कर लेना चाहिए. खाद और उर्वरक प्रबंधन के लिए बोआई के 3-4 हफ्ते पहले खेत में 40-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर या कंपोस्ट खाद का प्रयोग करना चाहिए.

उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण की संस्तुति के आधार पर किया जाए. यदि मिट्टी परीक्षण न हो सके, तो 60:30:20 किलोग्राम नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए.

फास्फेट का प्रयोग सिंगल सुपर फास्फेट के रूप में ज्यादा फायदेमंद होता है, क्योंकि इस से 12 फीसदी गंधक की पूर्ति हो जाती है. सिंगल सुपर फास्फेट न मिलने पर गंधक की पूर्ति के लिए 2 क्विंटल जिप्सम का इस्तेमाल जरूर करें.

तोरिया की अच्छी उपज लेने के लिए बोआई के 20-25 दिन बाद निराई के साथ घने पौधों को निकाल कर पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सैंटीमीटर कर दें.

यदि खरपतवार ज्यादा होने की संभावना हो, तो पेंडीमिथेलिन 30 ईसी का 3.3 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से 700-800 लिटर पानी में घोल बना कर बोआई के 3 दिन के अंदर एकसमान छिड़काव करें.

तोरिया फूल निकलने और दाना भरने की अवस्थाओं पर पानी की कमी के प्रति विशेष संवेदनशील है. पहली सिंचाई फूल बनते समय (बोआई के 30-35 दिन बाद) और दूसरी सिंचाई 60-65 दिन पर करनी चाहिए. यदि एक ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो, तो फूल निकलने पर करें.

तोरिया में जलभराव और नुकसान से बचने के लिए बौछारी यानी स्प्रिंकलर सिंचाई अच्छी पाई गई है.

उपरोक्त उन्नत तकनीक और प्रमाणित किस्मों द्वारा की गई खेती से 12 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है. बीज को अच्छी तरह सुखा कर ही भंडारण करना चाहिए.

केवीके के प्रभारी अधिकारी डा. आरके सिंह ने बताया कि जनपद में तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए केंद्र द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, अटारी, कानपुर के दिशानिर्देश में समूह में तिलहन उत्पादन की उन्नत तकनीक पर प्रदर्शन कराए जाते हैं.