तोरिया ‘कैच क्रौप’ के रूप में खरीफ व रबी के मध्य में बोई जाने वाली तिलहनी फसल है. इस की खेती कर के किसान अतिरिक्त लाभ हासिल कर सकते हैं. यह 90-95 दिन के भीतर पक कर तैयार हो जाने वाली फसल है. इस के लिए हलकी बलुईदोमट भूमि सब से सही होती है.

तोरिया की उन्नत किस्मों में पीटी 303, तपेश्वरी, गोल्डी, बी-9, उत्तरा, नरेंद्र तोरिया-4 आदि की बोआई की जा सकती है.

प्रमाणित बीज 4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से थीरम अथवा मैंकोजेब की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित कर बोआई करें.

मैटालेक्सिल 1.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधन करने पर शुरुआती अवस्था में सफेद गेरुई व तुलासिता रोग की रोकथाम हो जाती है.

तोरिया की समय पर 30 सैंटीमीटर की दूरी पर कतार में बोआई करने से अधिक उत्पादन मिलने के साथ ही फसल पर रोग और कीटों का प्रकोप भी कम होता है.

तोरिया के बाद गेहूं की फसल लेने के लिए बोआई सितंबर महीने के पहले पखवारे (1 सितंबर से 15 सितंबर) में जरूर कर लेना चाहिए. खाद और उर्वरक प्रबंधन के लिए बोआई के 3-4 हफ्ते पहले खेत में 40-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर या कंपोस्ट खाद का प्रयोग करना चाहिए.

उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण की संस्तुति के आधार पर किया जाए. यदि मिट्टी परीक्षण न हो सके, तो 60:30:20 किलोग्राम नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए.

फास्फेट का प्रयोग सिंगल सुपर फास्फेट के रूप में ज्यादा फायदेमंद होता है, क्योंकि इस से 12 फीसदी गंधक की पूर्ति हो जाती है. सिंगल सुपर फास्फेट न मिलने पर गंधक की पूर्ति के लिए 2 क्विंटल जिप्सम का इस्तेमाल जरूर करें.

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