Beekeeping : मधु यानी शहद की अहमियत हमेशा बहुत ज्यादा रही है. मीठा और स्वादिष्ठ शहद सेहत के लिहाज से बहुत अच्छा होता है. देशी दवाओं में शहद का बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. तमाम लोग अपने रोजाना के खानपान में शहद का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि यह थोड़ा महंगा जरूर होता है, मगर इस की खूबियां भी तो बहुत ज्यादा हैं.

मधुमक्खीपालन का मकसद

मधुमक्खीपालन का खास मकसद अपनी आमदनी में इजाफा करना होता है. फसलों के परागण के लिए भी मधुमक्खीपालन कारगर साबित होता है. मधुमक्खीपालन से फसलों की पैदावार व गुणवत्ता में भी इजाफा होता है. इस से मिलने वाला शहद खाने की पौष्टिकता बढ़ा देता है. मधुमक्खीपालन से पर्यावरण की शुद्धता की जांच भी हो जाती है. इस के अलावा मधुमक्खीपालन से तबीयत भी चौकस रहती है.

आसान काम

मधुमक्खीपालन का काम काफी आसान होता है. इस की तकनीक बेहद सरल होती है. चूंकि यह काफी आसान काम होता है, इसलिए औरतें और बच्चे भी इसे आसानी से कर सकते हैं. इस काम में पूंजीनिवेश कम होता है, लिहाजा कोई दिक्कत नहीं होती. इस में आवर्ती खर्च ?भी कम होता है. सरल होने की वजह से इसे खेती के साथसाथ बहुत आसानी से किया जा सकता है. इस काम में रोजाना देखभाल करने की जरूरत नहीं पड़ती है, इसलिए इस से दूसरे कामों में खलल नहीं पड़ता है. जिन के पास अपनी जमीन है, वे तो इसे आसानी से कर ही सकते हैं, लेकिन जिन के पास अपनी जमीन न हो उन्हें भी इस काम में दिक्कत नहीं होती है, क्योंकि इस के लिए ज्यादा जगह की जरूरत नहीं होती है.

किस तरह शुरू करें

मधुमक्खीपालन का काम शुरू करने के लिए किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से तालीम लें. मधुमक्खीपालन के लिए मुनासिब समय अक्तूबर व नवंबर महीने हैं. मधुमक्खीपालन का काम थोड़े मौनवंशों (मधुमक्खियों) से शुरू करें और 1 साल बाद इन की तादाद बढ़ाएं.

जहां मधुमक्खीपालन करना हो, उस के 4-5 किलोमीटर के दायरे में काफी संख्या में बागबगीचे वगैरह मौजूद होने चाहिए. मधुमक्खीपालन वाली जगह के नजदीक नदी या नहर जैसे पानी के साधन मौजूद होने चाहिए. मधुमक्खीपालन के उपकरण भारतीय मानक संस्थान के मापदंडों के मुताबिक ही होने चाहिए. मधुमक्खीपालन के लिए मौनवंश (मधुमक्खियां) नजदीक वाली जगह से ही खरीदने चाहिए. दूर से मधुमक्खियां लाने में दिक्कतें हो सकती हैं.

मधुमक्खियों की प्रजातियां

मधुमक्खियों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं. सभी प्रजातियों की अलगअलग खूबियां व खामियां होती हैं. इन की कुछ खास प्रजातियां हैं: पहाड़ी मधुमक्खी/सारंग, छोटी मधुमक्खी/ मूंगा, इटालियन मधुमक्खी और भारतीय मधुमक्खी.

भारतीय मधुमक्खी

भारतीय मधुमक्खी मिजाज से नर्म होती है. पालतू नस्ल की यह मधुमक्खी अंधेरी जगहों पर समांतर छत्ते बनाती है. इस के छत्ते घरों के आलों, चिमनियों, पेड़ों के कोटरों, खंडहरों की खोखली जगहों और गुफाओं की छतों पर पाए जाते हैं. भारत में इस मधुमक्खी की कई किस्में पाई जाती हैं.

भारतीय मधुमक्खी में अपनी हिफाजत के लिए झिलमिलाने की खूबी पाई जाती है. अपनी सुरक्षा के लिए अकसर यह घर छोड़ कर भागने से भी नहीं चूकती है. इस पर मोमी पतंगे का प्रकोप ज्यादा होता है.

पैदावार

मधुमक्खी पालने का मुख्य मकसद शहद हासिल करना होता है. शहद की औसतन पैदावार 8-10 किलोग्राम प्रति छत्ता प्रति साल होती है. शहद के अलावा मधुमक्खी से मिलने वाला दूसरा खास उत्पाद है मोम. मोम का भी हमारे दैनिक जीवन में खासा योगदान होता है. शहद व मोम के अलावा मधुमक्खी के अन्य खास उत्पाद हैं रायल जैली, प्रोपोलिस व पराग.

कीटनाशियों से बचाव

फसलों पर छिड़के जाने वाले कीटनाशी मधुमक्खियों के लिए काफी घातक साबित होते हैं, लिहाजा उन से मधुमक्खियों का बचाव करना बहुत जरूरी है. अगर मधुमक्खीपालन कर रहे हों तो अपनी फसलों के लिए ऐसे कीटनाशियों का इस्तेमाल करें, जो मधुमक्खियों के लिए खतरनाक न हों. कीटनाशियों के चुनाव के मामले में आप कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक की मदद ले सकते हैं.

चूंकि मधुमक्खियां फूलों से रस लेती हैं, लिहाजा फूल आने के दौरान फसलों पर कीटनाशियों का छिड़काव या बुरकाव न करें. कीटनाशियों का छिड़काव या बुरकाव शाम के वक्त ही करें, क्योंकि उस दौरान मधुमक्खियां सक्रिय नहीं रहती हैं. दवाओं के छिड़काव या बुरकाव के दौरान अपनी मधुमक्खियों के डब्बों को बंद कर दें. अगर मुमकिन हो तो मधुमक्खियों को कीटनाशी के छिड़काव वाली जगह से दूर ले जाएं. जहां तक मुमकिन हो, दवाओं का हवाई छिड़काव न करें.

अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...