Mushrooms  : वर्तमान में गावों से ले कर शहरों तक में मशरुम खाने का कल्चर बढ़ गया है. चूंकि मशरुम काफी पौष्टिक होती है, इसलिए अब इसे शहरों में भी बड़े चाव से खाया जाता है और ग्रामीण क्षेत्रों में तो बारिश जैसे मौसम में मशरुम ऐसे ही जंगल वगैरह में उग आती है, जिस को ग्रामीण क्षेत्रों में लोग तोड़ कर खा जाते हैं, और अपनी जान गवां देते हैं.

इस समय बारिश का मौसम है. ऐसे मौसम में ग्रामीण क्षेत्रों से जंगली मशरुम का सेवन कर जान गंवाने और बीमार पड़ने के मामले लगातार सामने आते रहते हैं. ऐसे में लोगों को इस बात की जानकारी होना बहुत जरूरी है, कि कौन सा मशरुम सेहत के लिए सही है और कौन सा सेहत के लिए हानिकारक है.

इसी संदर्भ में कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल के डीएसबी परिसर की प्राध्यापिका डा. प्रभा पंत ने कई शोधपत्रों का अध्ययन किया और बताया कि दुनियाभर में सिर्फ 18 फीसदी ही मशरुम की ऐसी प्रजाति है, जो खाने लायक है. डा. प्रभा पंत कवक यानी फंजाई के बारे में पढ़ाती हैं. ऐसे में उन्होंने लंबे समय से मशरुम पर आधारित कई शोधपत्रों का अध्ययन किया है और अपने अध्ययन में उन्होंने यह पाया कि दुनियाभर मशरुम की 14 हजार प्रजातियों में से सिर्फ 2,500 प्रजाति ही खाने लायक होती हैं.

उन्होंने बताया कि बारिश के दिनों में जंगलों में कई प्रकार के फंगस यानी मशरुम उगते हैं. अब क्योंकि क्लोरोफिल की कमी के चलते ये हरे रंग के नहीं होते हैं. इसलिए कई जहरीले मशरुम होते हैं, जिन को खाने पर जान भी जा सकती है. इसलिए जब तक मशरुम की जानकारी न हो, तब तक न खाएं.

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