एक्वेरियम में ऐसे रखें रंगीन मछलियां

एक्वेरियम में रंगीन मछलियों को रखना और उस का पालन एक दिलचस्प काम है, जो न केवल घर की खूबसूरती बढ़ाता है, बल्कि मन को भी शांत करता है. रंगीन मछलियां व एक्वेरियम व्यवसाय स्वरोजगार के जरीए पैसे बनाने के मौके भी मुहैया कराता है.

दुनियाभर में 10-15 फीसदी वार्षिक वृद्धि दर के साथ रंगीन मछलियों व सहायक सामग्री का कारोबार 8 बिलियन डौलर से ज्यादा का है. इस में भारत की निर्यात क्षमता 240 करोड़ रुपए प्रति वर्ष है. दुनियाभर की विभिन्न जलीय पारिस्थितिकी से तकरीबन 600 रंगीन मछलियों की प्रजातियों की जानकारी हासिल है.

भारत सजावटी मछलियों के मामले में 100 से ऊपर देशी प्रजातियों के साथ बहुत ज्यादा संपन्न है. साथ ही, विदेशी प्रजाति की मछलियां भी यहां पैदा की जाती हैं. शहरों व कसबों में रंगीन मछलियों को एक्वेरियम में रखने का प्रचलन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है.

रंगीन मछलियों को शीशे के एक्वेरियम में पालना एक खास शौक है. रंगबिरंगी मछलियां बच्चे व बूढ़े सभी का मन मोह लेती हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि रंगीन मछलियों के साथ समय बिताने से ब्लडप्रैशर कंट्रोल में रहता है और दिमागी तनाव कम होता है.

आजकल एक्वेरियम को घर में सजाना लोगों का एक प्रचलित शौक हो गया है. रंगीन मछलियों के पालन व एक्वेरियम बनाने की तकनीकी जानकारी से अच्छी आमदनी हासिल की जा सकती है.

बहुरंगी मछलियों की प्रजातियां

देशी और विदेशी मीठे जल की बहुरंगी मछलियों की प्रजातियों की मांग ज्यादा रहती है. व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए उन का प्रजनन और पालन भी आसानी से किया जा सकता है. व्यावसायिक किस्मों के तौर पर आसानी से उत्पादन की जा सकने वाली रंगीन मछलियों की प्रजातियां निम्न हैं :

बच्चे देने वाली मछलियां

गप्पी (पोयसिलिया रेटिकुलेटा), मोली (मोलीनेसिया स्पीशिज) और स्वार्ड टेल (जीफोफोरस स्पीशिज).

अंडे देने वाली मछलियां

गोल्ड फिश (कैरासियस ओराट्स), कोई कौर्प (सिप्रिनस कौर्पियो की एक किस्म), जैब्रा डेनियो (ब्रेकिडेनियो रेरियो), ब्लैक विडो टैट्रा (सिमोक्रो-सिंबस स्पीशिज), नियोन टैट्रा (हीफेसो-ब्रीकोन इनेसी), सर्पी टैट्रा (हाफेसोब्रीकौन कालिसट्स) व एंजिल वगैरह.

एक्वेरियम तैयार करने के लिए जरूरी सामग्री

एक्वेरियम तैयार करने के लिए निम्न सामग्री की जरूरत होती है :

5-12 एमएम की मोटाई का फ्लोट गिलास नाप के मुताबिक कटा हुआ. एक्वेरियम के सही आकार का ढक्कन, जरूरत के मुताबिक और मजबूत तकरीबन 30 इंच ऊंचाई वाला स्टैंड, सिलिकौन सीलेंट, पेस्टिंग गन, छोटेछोटे रंगबिरंगे पत्थर, जलीय पौधे (कृत्रिम या प्राकृतिक), एक्वेरियम के बैकग्राउंड के लिए रंगीन पोस्टर, सजावटी खिलौने व डिफ्यूजर स्टोन, थर्मामीटर व थर्मोस्टेट, फिल्टर उपकरण, एयरेटर व वायु संचरण की नलिकाएं, क्लोरीन फ्री स्वच्छ जल, रंगीन मछलियां पसंद के मुताबिक, मछलियों का भोजन जरूरत के अनुसार, हैंड नैट, बालटी, मग व साइफन नलिका, स्पंज वगैरह.

एक्वेरियम कहां रखें?

एक्वेरियम रखने की जगह समतल होनी चाहिए और धरातल मजबूत होना चाहिए. लोहे या लकड़ी के बने मजबूत स्टैंड या टेबल का इस्तेमाल किया जा सकता है, जहां एक्वेरियम रखना है, वहां बिजली का इंतजाम भी जरूरी है. ध्यान रहे कि एक्वेरियम पर सूरज की सीधी रोशनी न पड़े, वरना उस में काई जमा हो सकती है.

एक्वेरियम कैसा हो?

एक्वेरियम को खुद बनाने में सावधानी की जरूरत होती है. पौलिश किए हुए शीशे की प्लेट को सीलेंट से जोड़ कर आप एक्वेरियम बना सकते हैं.

बाजार में मुहैया एक्वेरियम विक्रेता से अपनी पसंद का एक्वेरियम भी खरीद सकते हैं. आमतौर पर घरों के लिए एक्वेरियम 60×30×45 सैंटीमीटर लंबाई, चौड़ाई व ऊंचाई की मांग ज्यादा रहती है.  शीशे की मोटाई 5-6 मिलीमीटर होनी चाहिए. इस से बड़े आकार का एक्वेरियम बनाने के लिए मोटे शीशे का इस्तेमाल करना चाहिए.

एक्वेरियम को ढकने के लिए फाइबर या लकड़ी के बने ढक्कन को चुन सकते हैं. ढक्कन के अंदर एक बल्ब व ट्यूबलाइट लगी होनी चाहिए. 40 वाट के बल्ब की रोशनी एक साधारण एक्वेरियम के लिए सही है.

Fishएक्वेरियम को कैसे सजाएं?

एक्वेरियम को खरीदने के बाद उसे सजाने से पहले अच्छी तरह साफ  कर लेना चाहिए. साफ करने के लिए साबुन या तेजाब का इस्तेमाल न करें. एक्वेरियम को रखने की जगह तय कर के उसे एक मजबूत स्टैंड पर रखना चाहिए. एक्वेरियम के नीचे एक थर्मोकौल शीट लगानी चाहिए. इस के बाद पेंदे में साफ बालू की 1-2 इंच की मोटी परत बिछा देते हैं और उस के ऊपर छोटेछोटे पत्थर की एक परत बिछा दी जाती है.

पत्थर बिछाने के साथ ही थर्मोस्टेट, एयरेटर व फिल्टर को भी लगा दिया जाता है. एक्वेरियम में जलीय पौधे लगाने से टैंक खूबसूरत दिखता है.

बाजार में आजकल तरहतरह के कृत्रिम पौधे मुहैया हैं. एक्वेरियम को आकर्षक बनाने के लिए तरहतरह के खिलौने अपनी पसंद से लगाए जा सकते हैं.

एक्वेरियम में भरा जाने वाला पानी क्लोरीन से मुक्त होना चाहिए, इसलिए यदि नल का पानी हो तो उसे कम से कम एक दिन संग्रह कर छोड़ देना चाहिए और फिर उस पानी को एक्वेरियम में भरना चाहिए.

एक्वेरियम में कितनी मछलियां रखें?

एक्वेरियम तैयार कर अनुकूलित करने के बाद उस में अलगअलग तरह की रंगबिरंगी मछलियां पाली जाती हैं. रंगीन मछलियों की अनेक प्रजातियां हैं, पर इन्हें एक्वेरियम में एकसाथ रखने के पहले जानना जरूरी है कि यह एकदूसरे को नुकसान न पहुंचाएं. छोटी आकार की मछलियां रखना एक्वेरियम के लिए ज्यादा बेहतर माना जाता है, जिन के नाम निम्नलिखित हैं:

ब्लैक मोली, प्लेटी, गप्पी, गोरामी, फाइटर, एंजल, टैट्रा, बार्ब, औस्कर, गोल्ड फिश.

इन मछलियों के अतिरिक्त कुछ देशी प्रजातियां हैं, जिन को भी एक्वेरियम में रखा जाने लगा है. जैसे लोच, कोलीसा, चंदा, मोरुला वगैरह. आमतौर पर 2-5 सैंटीमीटर औसतन आकार की 5-10 मछलियां प्रति वर्गफुट जल में रखी जा सकती हैं.

एक्वेरियम प्रबंधन के लिए जरूरी बातें

थर्मोस्टेट द्वारा पानी का तापमान 240 सैल्सियस से 280 सैल्सियस के बीच बनाए रखें. 8-10 घंटे तक एयरेटर द्वारा वायु प्रवाह करना चाहिए. पानी साफ रखने के लिए मेकैनिकल व जैविक फिल्टर का इस्तेमाल करना चाहिए.

एक्वेरियम में उपस्थित अनावश्यक आहार, उत्सर्जित पदार्थों को प्रति सप्ताह साइफन द्वारा बाहर निकालते रहना चाहिए. कम हुए पानी के स्थान पर स्वच्छ पानी भरना चाहिए.

यदि कोई मछली मर जाती है, तो उसे तुरंत निकाल दें और यदि कोई मछली बीमार हो, तो उस का उचित उपचार भी करना चाहिए.

एक्वेरियम कारोबार से अनुमानित आमदनी

रंगीन मछलियों के पालन व एक्वेरियम निर्माण से अच्छी आमदनी की जा सकती है. इस के लिए मुख्यत: निम्न आयव्यय का विवरण दिया जा रहा है. समय, जगह व हालात में इस में बदलाव हो सकता है :

स्थायी लागत

शैडनैट (500 वर्गफुट), छायादार जगह (100 वर्गफुट), फाइबर व सीमेंट की टंकियां (10-15), एयर कंप्रैसर और वायु नलिकाएं, औक्सीजन सिलैंडर-1, विद्युत व जल व्यवस्था व अन्य खर्च 1,25,000 रुपए.

कार्यशील पूंजी

शिशु मछलियां (6,000), प्रबंधन खर्च, बिजली, पानी, मत्स्य आहार, एक्वेरियम निर्माण व सहायक सामग्री, स्थायी लागत पर ब्याज व अन्य खर्चे 1,65,000 रुपए.

आय

मछलियां (10,000 × 20 रुपए), एक्वेरियम टैंक व सहायक सामग्री (120 × 2500 रुपए), बेचे गए एक्वेरियम टैंकों की वार्षिक मेंटेनैंस 1200 रुपए टैंक, कुल आय तकरीबन रुपए 5,80,000-6,40,000 रुपए, शुद्ध आय तकरीबन 3,55,000 से 4,15,000 रुपए प्रति वर्ष हासिल की जा सकती.

कृषक समाज के सतत विकास राष्ट्रीय सम्मेलन

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग द्वारा राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना (एनएएचईपी)-आईडीपी प्रोजैक्ट के तहत “कृषक समाज के सतत विकास एवं सामाजिकआर्थिक उत्थान” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन का पिछले दिनों समापन हुआ, जिस में बतौर मुख्यातिथि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज रहे.

मुख्यातिथि प्रो. बीआर कंबोज ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि परिवार समाज का सब से छोटा हिस्सा है, इसलिए उस के सतत विकास के लिए उन्हें नई जानकारियां, नवाचारों व प्रौद्योगिकियों के प्रति प्रोत्साहित करना अनिवार्य है. इसी प्रकार देश के उत्थान में कृषक समाज का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है, इसलिए देश को विकास की पटरी पर लगातार बनाए रखने के लिए इन का उत्थान बहुत जरूरी है, लेकिन नई तकनीकों कों किसानों व समाज की आखिरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक पहुंचाना एक चुनौती भरा काम है. इस प्रक्रिया में समाजशास्त्र से जुड़े विशेषज्ञ महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि यदि नई तकनीकों को ईजाद करने वाले विभाग और समाजशास्त्री एकसाथ मिल कर काम करेंगे, तो इस के बहुत ही सार्थक परिणाम प्राप्त होंगे.

मुख्यातिथि बीआर कंबोज ने आंकड़ा प्रबंधन व विश्लेषण को भी अहम बताते हुए कहा कि इस से हर जगह से मिल रही जानकारियों को दुरुस्त व त्रुटिरहित समाज तक पहुंचाया जा सकता है. इस के लिए सरकारी व गैरसरकारी शिक्षण शोध संस्थानों को एक मंच पर आ कर एकजुटता के साथ जानकारी साझा करनी चाहिए. वर्तमान समय में खेती पर जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम बढ़ रहे हैं. इन्हीं चुनौतियों से निबटने के लिए विभिन्न नवीनतम एवं उन्नत सस्य क्रियाएं मदद कर सकती हैं.

इस अवसर पर कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने सम्मेलन में प्रस्तुत की गई मौखिक व पोस्टर प्रस्तुतियों के विजेता रहे प्रतिभागियों को पुरस्कृत कर उन का उत्साहवर्धन किया.

समाजशास्त्र विभाग की अध्यक्ष डा. विनोद कुमारी, सम्मेलन की आयोजक सचिव डा. जतेश काठपालिया व डा. रश्मि त्यागी ने दोदिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन की तमाम गतिविधियों की विस्तृत रिपोर्ट पेश की.

स्नातकोत्तर शिक्षा अधिष्ठाता व एनएएचईपी-आईडीपी प्रोजैक्ट के नोडल अधिकारी डा. केडी शर्मा ने सभी का स्वागत किया, जबकि मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. नीरज कुमार ने धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया.

इस कार्यशाला में मंच का संचालन डा. रिजुल सिहाग ने किया. हकृवि में आयोजित दोदिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन दौरान हुई पोस्टर व मौखिक प्रस्तुतियों के पोस्टर प्रस्तुतीकरण में प्रथम पुरस्कार अन्नू, निशा, मोनिका, एकता, प्रियंका भाटी, रमेश चंद्र, व विक्रांत हुड्डा ने प्राप्त किया, जबकि द्वितीय पुरस्कार काव्या सहराव, हेमंत कुमार व अन्नू ने प्राप्त किया, वहीं तृतीय पुरस्कार के विजेता प्रीति रानी व प्रियंका रहे, जबकि ज्योति सिहाग, युगुम ढींगड़ा, स्वाति, कीर्ति, प्रियंका ने सांत्वना पुरस्कार जीता.

इसी प्रकार विभिन्न विषयों में आयोजित मौखिक प्रस्तुतियों में मंजु कुमार राठौर, सुनिधि पिलानियां, कोथा सरामाती, आयुशी, रितू छिकारा, इंदु, सीफती, प्रीति, जोन, मोनिका शर्मा, प्रीति नैन, गायत्री पिला व सुभाष ने बेहतरीन प्रदर्शन कर उत्कृष्ट स्थान प्राप्त किया.

हरियाणा दिवस आयोजन : फसल उत्पादन में अग्रणी

हिसार: प्रदेश में हरित क्रांति की सफलता व खाद्यान्न उत्पादन में अपार वृद्धि चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा अधिक पैदावार वाली विभिन्न फसलों की किस्में विकसित करना, नईनई तकनीकें ईजाद करना और प्रदेश के किसानों की कड़ी मेहनत का परिणाम है.

हरियाणा प्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि से अन्य प्रदेशों की तुलना में बहुत ही छोटा प्रदेश है, जबकि देश के खाद्यान्न भंडारण व फसल उत्पादन में अग्रणी प्रदेशों में शामिल है.

हकृवि के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने हरियाणा दिवस के मौके पर बोलते हुए प्रदेशवासियों को हरियाणा दिवस की हार्दिक बधाई दी और कहा कि यह बड़े गर्व का विषय है कि आज चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हरियाणा प्रदेश के साथ नए संकल्पों व लक्ष्यों के साथ नए वर्ष में प्रवेश कर रहा है.

उन्होंने यह भी कहा कि हरियाणा प्रदेश का 1 नवंबर, 1966 को जब अलग राज्य के रूप में गठन हुआ था, उस समय खाद्यान्न उत्पादन मात्र 25.92 लाख टन था, जोकि वर्ष 2022-23 में बढ़ कर 323 मिलियन टन होने की उम्मीद है.

उन्होंने आगे कहा कि आज हरियाणा की गेहूं की औसत पैदावार 46.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर एवं सरसों की औसत पैदावार 20.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

60 प्रतिशत से अधिक बासमती चावल का निर्यात केवल हरियाणा से

खाद्यान्नों के अधिक उत्पादन के चलते हरियाणा राज्य केंद्रीय खाद्यान्न भंडार में योगदान देने वाला दूसरा सब से बड़ा राज्य है. उन्होंने कहा कि हरियाणा बासमती चावल के लिए भी विशेष रूप से विख्यात है और देश के 60 फीसदी से अधिक बासमती चावल का निर्यात केवल हरियाणा से ही होता है.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने सम्मेलन में यह भी कहा कि यह विश्वविद्यालय आज सफलता से भरा वर्ष पीछे छोड़ रहा है. मैं इन सफलताओं के पीछे रीढ़ की तरह काम करने वाले अपने शिक्षक व गैरशिक्षक कर्मचारियों का धन्यवाद करता हूं, जिन्होंने अधिकार व दायित्व में सामंजस्य बनाए रख कर विश्वविद्यालय के शिक्षा, अनुसंधान व विस्तार कार्यक्रमों में अनेक उपलब्धियां हासिल करने के साथ विश्वविद्यालय में विभिन्न कार्यक्रमों के सफल आयोजन में योगदान दिया.

सरसों की आरएच 1975, आरएच 1424 व आरएच 1706 नामक 3 नई उन्नत किस्में विकसित

प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के बाजरा और चारा अनुभागों को इन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियों के परिणामस्वरूप दूसरी बार राष्ट्रीय स्तर पर सर्वश्रेष्ठ अनुसंधान केंद्र अवार्ड प्रदान किया गया. इसी प्रकार, विश्वविद्यालय को सरसों में उत्कृष्ट अनुसंधानों के लिए सर्वश्रेष्ठ केंद्र अवार्ड से नवाजा गया. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सरसों की आरएच 1975, आरएच 1424 व आरएच 1706 नामक 3 नई उन्नत किस्में विकसित करने में सफलता प्राप्त की है.

कृषि शोध संस्थानों में 10वां स्थान

Haryana Diwas

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने जानकारी देते हुए कहा कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने देशभर में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा वर्ष 2023 के लिए जारी नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) में कृषि शोध संस्थानों में 10वां स्थान प्राप्त किया है. विश्वविद्यालय में संरचनात्मक सुविधाओं में विस्तार करते हुए प्रशासनिक भवन में आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित नया सम्मेलन कक्ष भी बनाया गया है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय का नाम आज विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों में शुमार है. यहां के छात्रों का न केवल देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा के लिए चयन हो रहा है अपितु विदेशों में भी फैलोशिप पर जा रहे हैं और दूसरे देशों के छात्र भी यहां पढ़ने आ रहे हैं.

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने बीते अप्रैल माह में 25वां दीक्षांत समारोह आयोजित किया, जिस में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शिरकत कर विश्वविद्यालय का मान बढ़ाया. वहीं देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का भी हकृवि में आयोजित तीनदिवसीय कृषि विकास मेला-2023 के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्यातिथि आगमन हुआ. इस कृषि विकास मेला में हरियाणा व पड़ोसी राज्यों से तकरीबन 2 लाख किसान शामिल हुए, जिन्होंने 2.02 करोड़ रुपए के रबी फसलों के बीज खरीदे.

उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए बताया कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने नूंह में खुलने वाले विश्वविद्यालय के नए कृषि विज्ञान केंद्र का शिलान्यास किया. यह विश्वविद्यालय भविष्य में भी तरक्की के नए मुकाम बनाता रहेगा और किसानों की इसी प्रकार से सेवा करता रहेगा.

एमएसपी : ठगा जा रहा है अन्नदाता

अगर किसान को उस की फसल की लागत से थोड़ा अधिक पैसा मिल जाए तो वह संतुष्ट हो कर अगली फसल के लिए बेहतर बीज, खाद और पानी का इंतजाम कर सकेगा. इस से फसल भी अच्छी, अधिक और उम्दा होगी और इस का सीधा असर उस की खुशहाली पर दिखेगा.

कमजोर तबकों को जो अनाज बांटा जाता है, उस की क्वालिटी भी अच्छी होगी. अच्छे अनाज, दालें और सब्जियों का सीधा संबंध हमारी सेहत से है. लेकिन केंद्र और राज्य की सरकारें किसान की फसल के लिए एमएसपी तय करने में नानुकुर करती हैं. लिहाजा, न तो किसान अच्छे बीज खरीद पाता है, न खाद, न पानी, कीटाणुनाशक दवाओं आदि की व्यवस्था भी नहीं कर पाता है. कई बार तो पैसे के अभाव में अगली फसल की बोआई तक नहीं होती. खेत खाली ही पड़े रहते हैं.

हम में से बहुत से लोग वाकिफ नहीं होंगे कि यह एमएसपी क्या होता है और यह कैसे तय किया जाता है, इस से किसानों को क्या फायदा है. न्यूनतम सर्मथन मूल्य यानी एमएसपी किसानों की फसल की सरकार द्वारा तय कीमत होती है.

एमएसपी के आधार पर ही सरकार किसानों से उन की फसल खरीदती है. राशन सिस्टम के तहत जरूरतमंद लोगों को अनाज मुहैया कराने के लिए इस एमएसपी पर सरकार किसानों से उन की फसल खरीदती है. हालांकि उन किसानों की तादाद महज 6 फीसदी है, जिन को एमएसपी रेट मिल रहे हैं.

हर साल फसलों की बोआई से पहले उस का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय हो जाता है. बहुत से किसान तो एमएसपी देख कर ही फसल की बोआई करते हैं. सरकार विभिन्न एजेंसियों, जैसे एफसीआई आदि के माध्यम से किसानों से एमएसपी पर अनाज खरीदती है. एमएसपी पर खरीद कर सरकार अनाजों का बफर स्टौक बनाती है.

सरकारी खरीद के बाद एफसीआई और नैफेड के गोदामों में यह अनाज जमा होता है. इस अनाज का इस्तेमाल गरीब लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी राशन प्रणाली में वितरण के लिए होता है.

केरल सरकार ने तो सब्जियों के लिए भी आधार मूल्य तय करने की पहल की है. सब्जियों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने वाला केरल पहला राज्य बन गया है. सब्जियों का यह न्यूनतम या आधार मूल्य उत्पादन लागत से तकरीबन 20 फीसदी अधिक होता है.

एमएसपी कौन तय करता है

सरकार हर साल रबी और खरीफ सीजन की फसलों का एमएसपी घोषित करती है. फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य कृषि लागत और मूल्य आयोग तय करता है. यह आयोग तकरीबन सभी फसलों के लिए दाम तय करता है, जबकि गन्ने का समर्थन मूल्य गन्ना आयोग तय करता है.

मूल्य आयोग समय के साथ खेती की लागत के आधार पर फसलों की कीमत तय कर के अपने सुरक्षा व सरकार के पास भेजता है. सरकार इन सुझाव पर स्टडी करने के बाद एमएसपी की घोषणा करती है.

किन फसलों का होता है एमएसपी

MSPकृषि लागत एवं मूल्य आयोग हर साल खरीफ और रबी सीजन की फसल आने से पहले एमएसपी की गणना करता है. इस समय 23 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकार तय करती है, जिन में मुख्य हैं : धान, गेहूं, मक्का, जौ, बाजरा, चना, तुअर, मूंग, उड़द, मसूर, सरसों, सोयाबीन, सूरजमुखी, गन्ना, कपास और जूट वगैरह.

सब को नहीं मिलती एमएसपी

कोई किसान नहीं चाहता कि उस की फसल एमएसपी से कम दाम पर बिके, लेकिन 94 फीसदी किसानों को अपनी फसल औनेपौने दामों पर आढ़तियों को बेचनी पड़ती है. जिन किसानों की फसलें एमएसपी पर बिकती हैं, उन के सामने भी संकट कम नहीं हैं.

कई बार जब फसल की बिक्री का समय आता है, तो मंडियों में सरकारी खरीद केंद्रों पर फसलों से भरे ट्रैक्टरों व ट्रकों की लंबी लाइनें लग जाती हैं. किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए कईकई दिनों इंतजार करना पड़ता है.

इस के अलावा अधिकतर सरकारी केंद्रों पर कुछ न कुछ दिक्कतें रहती हैं. कभी लेबर की कमी, तो कभी सरकारी खरीद केंद्र तय समय से बहुत देरी से खुलते हैं. इस के चलते किसानों को अपनी फसल कम दाम पर आढ़तियों को बेचनी पड़ती है, जिस से उन्हें काफी नुकसान होता है.

कई बार तो किसानों को नुकसान इतना अधिक होता है कि अगली फसल के लिए बीज, खाद, पानी, बिजली, कीटनाशक और लेबर का खर्चा निकालना उन के लिए संभव नहीं होता है. ऐसे में वह कर्ज के बोझ तले दबता चला जाता है.

एक अनुमान के मुताबिक, देश में केवल 6 फीसदी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी का फायदा मिलता है, जिन में से सब से ज्यादा किसान उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के हैं.

यह दर बहुत ही कम है. इस को बढ़ाए जाने की जरूरत है, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान अपनी लागत पर कुछ अतिरिक्त कमा सकें और उस पूंजी का इस्तेमाल अपनी अगली फसल को बेहतर बनाने में कर सकें.

एमएस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें

प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक प्रो. एमएस स्वामीनाथन को हरित क्रांति का जनक कहा जाता है. उन की अगुआई में 18 नवंबर, 2004 को राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया गया था. इस आयोन ने 4 अक्तूबर, 2006 को अपनी 5वीं और अंतिम रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी.

रिपोर्ट का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में व्यापक और स्थायी बदलाव लाने के साथसाथ खेती को कमाई व रोजगार का जरीया बनाना था. उन्होंने किसानों की आय बढ़ाने के लिए जो सुझाव  दिए थे, अगर वे लागू कर दिए जाते तो देशभर के किसानों की दशा बदल जाती. लेकिन मोदी सरकार ने उन की 201 सिफारिशों में से मात्र 25 को ही बमुश्किल लागू किया है और वह भी जमीनी स्तर पर पूरी तरह फायदा नहीं दे रही हैं.

महात्मा गांधी ने 1946 में कहा था कि जो लोग भूखे हैं, उन के लिए रोटी भगवान है. देश में जबजब किसान आंदोलन होता है व किसान जब सड़क पर आते हैं, तबतब स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों की चर्चा होती है.

भूमि सुधार के लिए आयोग की सिफारिशें

इस रिपोर्ट में भूमि सुधारों की गति को बढ़ाने पर खास जोर दिया गया है. सरप्लस व बेकार पड़ी जमीनों को भूमिहीनों में बांटना, आदिवासी क्षेत्रों में पशु चराने के हक यकीनी बनाना व राष्ट्रीय भूमि उपयोग सलाह सेवा सुधारों के विशेष अंग हैं.

किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए

आयोग की सिफारिशों में किसान आत्महत्या की समस्या के समाधान, राज्य स्तरीय किसान कमीशन बनाने, सेहत सुविधाएं बढ़ाने व वित्त बीमा की स्थिति पुख्ता बनाने पर भी विशेष जोर दिया गया है.

एमएसपी औसत लागत से 50 फीसदी ज्यादा रखने की सिफारिश भी की गई है ताकि छोटे किसान भी मुकाबले में आएं, यही ध्येय खास है. किसानों की फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य कुछेक नकदी फसलों तक सीमित न रहें, इस लक्ष्य से ग्रामीण ज्ञान केंद्र व मार्केट दखल स्कीम भी लौंच करने की सिफारिश रिपोर्ट में है.

सिंचाई के लिए

सभी को पानी की सही मात्रा मिले, इस के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग व वाटर शेड परियोजनाओं को बढ़ावा देने की बात रिपोर्ट में है. इस लक्ष्य से पंचवर्षीय योजनाओं में ज्यादा धन आवंटन की सिफारिश की गई है.

फसली बीमा के लिए

रिपोर्ट में बैंकिंग व आसान वित्तीय सुविधाओं को आम किसान तक पहुंचाने पर विशेष जोर दिया गया है. सस्ती दरों पर फसल लोन मिले यानी ब्याजदर सीधे 4 प्रतिशत कम कर दी जाए. कर्ज उगाही में नरमी यानी जब तक किसान कर्ज चुकाने की स्थिति में न आ जाए, तब तक उस से कर्ज न वसूला जाए. उन्हें प्राकृतिक आपदाओं में बचाने के लिए कृषि राहत फंड बनाया जाए.

उत्पादकता बढ़ाने के लिए

भूमि की उत्पादकता बढ़ाने के साथ ही खेती के लिए ढांचागत विकास संबंधी बातें भी रिपोर्ट में कही गई हैं. मिट्टी की जांच व संरक्षण भी एजेंडे में है. इस के लिए मिट्टी के पोषण से जुड़ी कमियों को सुधारा जाए व मिट्टी की टैस्टिंग वाली लैबों का बड़ा नैटवर्क तैयार हो.

MSPखाद्य सुरक्षा के लिए

प्रति व्यक्ति भोजन की उपलब्धता बढ़े, इस मकसद से सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आमूल सुधारों पर बल दिया गया है. कम्यूनिटी फूड व वाटर बैंक बनाने व राष्ट्रीय भोजन गारंटी कानून की संस्तुति भी रिपोर्ट में है.

इस के साथ ही वैश्विक सार्वजनिक वितरण प्रणाली बनाने की सिफारिश की गई है, जिस के लिए जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के एक फीसदी हिस्से की जरूरत होगी. उन्होंने लिखा है, ‘महिला स्वयंसेवी ग्रुप की मदद से ‘सामुदायिक खाना और पानी बैंक’ स्थापित करने होंगे, जिन से ज्यादा से ज्यादा लोगों को खाना मिल सके. कुपोषण को दूर करने के लिए इस के अंतर्गत प्रयास किए जाएं.’ वादा तो था स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश लागू करने का, पर अब एमएसपी ही खतरे में है.

स्वामीनाथन आयोग की एक प्रमुख सिफारिश एमएसपी को ले कर थी. उन्होंने कहा कि किसानों को उन की फसलों के दाम उन की लागत में कम से कम 50 प्रतिशत जोड़ कर दिया जाना चाहिए. देशभर के किसान इसी सिफारिश को लागू करने की मांग ले कर सड़कों पर कई बार आंदोलन कर चुके हैं.

कभी गन्ने के बकाया भुगतान को ले कर, तो कभी प्याज की अचानक घट जाती कीमतों को ले कर, तो कभी कारपोरेट के इशारे पर जमीन के जबरन अधिग्रहण को ले कर, तो कभी बिजली, खाद, डील को रियायती दर पर देने की मांग को ले कर, तो कभी अपनी उपज की वाजिब कीमत को ले कर देश का किसान सड़कों पर उतरता रहा है. लेकिन तमाम वादे करने के बाद भी स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को न तो संप्रग सरकार ने लागू किया और न ही वर्तमान भाजपा सरकार ने.

भाजपा ने साल 2014 के आम चुनाव के समय अपने घोषणापत्र, जिसे वह ‘संकल्पपत्र’ कहती है, में वादा किया है कि वह फसलों का दाम लागत में 50 प्रतिशत जोड़ कर के देगी. लेकिन जब हरियाणा के एक आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने आरटीआई दायर कर के सरकार से इस वादे के बारे में पूछा, तो सरकार ने जवाब दिया कि वह इसे लागू नहीं कर सकती है.

विडंबना है कि जो लोग सरकारी नौकरियों में हैं, उन का वेतन तो 150 गुना तक बढ़ाया गया है और किसान के लिए यही वृद्धि 70 बरस में सिर्फ 21 गुना तक बढ़ी है. लगता यही है कि पूरा तंत्र ही किसानों का विरोधी है.

सरकार क्यों नहीं दे रही एमएसपी की गारंटी

सरकार का सोचना है कि एमएसपी से देश में महंगाई बढ़ेगी. इस से सरकारी खजाने पर बोझ  के साथसाथ आम उपभोक्ताओं की जेब पर भी भारी बोझ पड़ेगा. कृषि उपज में महंगाई की आग भड़केगी, जिस से रसोईघर की लागत बढ़ जाएगी.

सरकार कहती है कि किसानों के लिए कहने को तो यह न्यूनतम समर्थन मूल्य है, लेकिन बाजार में यही अधिकतम मूल्य बन कर महंगाई का दंश देगा. इस से मुट्ठीभर किसानों का हित भले ही हो, पर उपभोक्ताओं के लिए एमएसपी मुश्किलों का सबब बन जाएगा.

आमतौर पर एमएसपी पर होने वाली सरकारी खरीद में अनाज की गुणवत्ता भी सवालों के घेरे में होती है. इस से सरकारी खरीद एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को सालाना कई हजार करोड़ रुपए की चपत लगती है.

खराब अनाज ही राशन में बांटने की होगी मजबूरी

एमएसपी की गारंटी पर खाद्यान्न की खरीद बढ़ने के साथ कम गुणवत्ता वाले अनाज की खरीद भी अधिक करनी पड़ेगी. लिहाजा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत गरीब उपभोक्ताओं को घटिया अनाज प्राप्त करना उन की नियति बन जाएगी.

आमतौर पर मुफ्त अनाज मिलने की वजह से उन का मुखर विरोध कहीं सुनाई नहीं पड़ता. लिहाजा, इस का पूरा खमियाजा सरकारी खजाने के साथ गरीबों और आम उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ेगा. इन्हीं गंभीर चुनौतियों को ध्यान में रख कर पहले की सरकारें भी एमएसपी की गारंटी देने से बचती रही हैं.

पीडीएस में जाता है 90 फीसदी अनाज

सरकारी एजेंसियां सालाना 3.50 करोड़ टन से ले कर 3.90 करोड़ टन तक गेहूं और 5.19 करोड़ टन तक चावल की खरीद करती हैं. गेहूं व चावल की ही सर्वाधिक खरीद होती है, जो कुल पैदावार का 30 फीसद होता है. सरकारी खरीद का 90 फीसदी हिस्सा पीडीएस में वितरित किया जाता है, जबकि 10 फीसदी हिस्सा स्ट्रैटेजिक बफर स्टौक के तौर पर रखा जाता है. एमएसपी पर होने वाली खरीद केवल 6 फीसद किसानों से ही होती है.

एमएसपी को ले कर ज्यादातर किसान अनजान

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के मुताबिक, देश के मुश्किल से 10 फीसदी किसानों को ही एमएसपी अथवा न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में जानकारी है. एमएसपी पर होने वाली सरकारी खरीद का कोई निश्चित क्वालिटी मानक न होने से जैसा भी अनाज बिकने को आता है, सरकारी एजेंसियों पर उन्हें खरीदने का दबाव होता है. यही वजह है कि एफसीआई हर साल कई लाख टन अनाज डैमेज क्वालिटी के नाम पर कौडि़यों के भाव नीलाम करती है.

बढ़ रहा है खाद्य सब्सिडी का बोझ

एमएसपी में लगातार होने वाली वृद्धि और पीडीएस पर बहुत ज्यादा रियायती दरों पर खाद्यान्न के वितरण से खाद्य सब्सिडी का बोझ बढ़ता जा रहा है. समर्थन मूल्य की गारंटी के साथ सरकारी खरीद कई गुना तक बढ़ सकती है. इतने अधिक अनाज को रखने और उस की खपत कहां होगी, इस का बंदोबस्त करना संभव नहीं होगा. स्वाभाविक तौर पर खुले बाजार में अनाज की कमी का सीधा असर कीमतों पर पड़ेगा, जो महंगाई को सातवें आसमान पर पहुंचा देगा.

ये तमाम बातें सरकार को एमएसपी की गारंटी देने से रोकती हैं. एमएसपी पर सरकारी खरीद चालू रहे और उस से कम पर फसल की खरीद को अपराध घोषित करना इतना आसान नहीं हैं जितना किसान संगठनों को लग रहा है.

यह भी सच है कि सरकार हर किसान का अनाज नहीं खरीद सकती. लिहाजा, खुला बाजार और मंडी में बैठे कालाबाजारियों के हाथों किसान लुटता व बरबाद होता रहेगा.

‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित हुए डा. राजाराम त्रिपाठी

पिछले 30 सालों से अधिक समय से हर्बल कृषि के क्षेत्र में नित नएनए शोध एवं प्रयोगों की वजह से हर्बल कृषि में वैश्विक स्तर पर लगातार कई कीर्तिमान स्थापित करते हुए कृषि को फायदे का सौदा बना कर उस से लाभ प्राप्त करने वाले बस्तर संभाग के कोंडागांव जिले के प्रसिद्ध हर्बल किसान डा. राजाराम त्रिपाठी को थिंक मीडिया, बालाजी समूह ने उद्यानिकी विभाग, छत्तीसगढ़ शासन की सहभागिता में छत्तीसगढ़ व बस्तर की कृषि के ज्वलंत मुद्दों पर जीवंत चर्चापरिचर्चा आयोजित की एवं बस्तर के प्रगतिशील किसानों को मंच से सम्मानित किया.

इस आयोजन का प्रमुख आकर्षण था बस्तर के डा. राजाराम त्रिपाठी के द्वारा अंचल की खेतीकिसानी और मुख्य रूप से जनजातीय समुदाय की 30 वर्षों से की गई अनवरत सेवा के लिए ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित करना. उन को यह सम्मान बस्तर के अंचल के लोकप्रिय जननायक केबिनेट मंत्री एवं पूर्व पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम और वरिष्ठ पत्रकार एएन द्विवेदी के द्वारा प्रदान किया गया.

इस कार्यक्रम में प्रदेश में सब से कम उम्र में मंत्री बनाए गए और 15 वर्षों तक लगातार मंत्री रहे कद्दावर नेता केदार कश्यप, शाकंभरी बोर्ड के सदस्य रितेश पटेल, जनप्रतिनिधि तरुण गोलछा, जिजप सदस्य बाल सिंह बघेल, उद्यानकी व कृषि विभाग के उच्चाधिकारी गौतम, ध्रुव, समाजसेवी यतीद्र छोटू सलाम, मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के निदेशक अनुराग कुमार, बलई चक्रवर्ती, शंकर नाग, कृष्णा नेताम, मेंगो नेताम और अनुज नाहरिया, अजय यादव सहित मीडिया जगत के साथियों की मौजूदगी रही.

इस आयोजन में सम्मानित होने वाले प्रगतिशील किसान महिला समूहों ने भी सैकड़ो की संख्या में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. इस अवसर पर डा. राजाराम त्रिपाठी ने उन्हें सम्मानित करने वाली संस्थाओं और स्थानीय जनप्रतिनिधियों, स्थानीय प्रशासन और स्थानीय मीडिया के साथियों को हमेशा सहयोग देने और हौसला बढ़ाने के लिए विशेष रूप से धन्यवाद दिया.

उन्होंने कहा कि यह सम्मान दरअसल उन का सम्मान नहीं है, यह तो बस्तर की माटी का सम्मान है और उन्होंने अपने सम्मान को मां दंतेश्वरी हर्बल समूह परिवार के सभी सदस्यों को सादर समर्पित किया.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि मां दंतेश्वरी, बस्तर की माटी के प्रताप एवं मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के साथियों के कठोर परिश्रम से उन्हें देशविदेश में सैकड़ों अवार्ड और पुरस्कार मिले हैं, किंतु अपनी कर्मभूमि में अपने क्षेत्र के जननायकों के हाथों सम्मानित होना मेरे जीवन का सब से बड़ा सम्मान है.

गौरतलब है कि डा. राजाराम त्रिपाठी द्वारा “मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सैंटर” के जरीए विगत 3 दशकों से कई प्रकार के देशविदेश में भारी मांग वाली हर्बल फसलों जैसे सफेद मूसली, स्टीविया, काली मिर्च, आस्ट्रेलियन टीक आदि फसलों की गुणवत्ता, उत्पादकता और लाभदायकता बढ़ाने के दृष्टिकोण से इन पर निरंतर शोध का काम करते हुए कई हर्बल फसलों की उन्नत किस्में भी डा. राजाराम त्रिपाठी के द्वारा विकसित की गई हैं. इन नई किस्मों की अंकुरण दर और उन की उत्पादन क्षमता में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज हुई है. इन के द्वारा विकसित की गई उन्नत किस्म की काली मिर्च “मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16” और ‘आस्ट्रेलियन टीक’ की सफल जुगलजोड़ी ने कृषि जगत में ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय खबरों में भी धूम मचाई है. हाल में ही इन्हें 40 लाख रुपए में बनने वाले 1 एकड़ के “पौलीहाउस” का मात्र डेढ़ लाख रुपए में सस्ता टिकाऊ और ज्यादा लाभ देने वाला नैसर्गिक विकल्प “नेचुरल ग्रीनहाउस” के सफल मौडल के लिए देश के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के हाथों देश के सर्वश्रेष्ठ किसान का अवार्ड भी प्रदान किया गया है.

बीएससी (गणित), एलएलबी, कार्पोरेट- ला एवं 5 अलगअलग विषयों में स्नातकोत्तर की डिगरियों और डाक्टरेट की उपाधि के साथ डा. राजाराम त्रिपाठी देश के सब से ज्यादा पढ़ेलिखे अग्रिम पंक्ति के किसान नेता के रूप में भी जाने जाते हैं.

सब से बड़ी बात यह है कि इन के इन रिसर्च एवं नवाचारों के फायदे बस्तर, छत्तीसगढ़ में ही नहीं, बल्कि पूरे देश के किसान उठाने लगे हैं.