एक ऐसा गांव, जिस के हर घर में हैं दुधारू पशु

सागर : सागर जिले में स्थित विश्वविद्यालय की घाटी पर बसा ग्राम रैयतवारी भैंसपालन और दूध उत्पादन के लिए जाना जाता है. दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कलक्टर संदीप जीआर के मार्गदर्शन में संचालित मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित महिला समूहों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.

इसी क्रम में इस गांव में पशुपालन के साथसाथ बकरीपालन को भी प्राथमिकता दी जा रही है. यहां के अधिकांश घरों में कम से कम 2 से 3 बकरियां पाली जाती हैं. बड़े पशुओं की तुलना में बकरीपालन पशुपालकों के लिए माली रूप से काफी फायदेमंद है. बकरीपालन मजदूर, सीमांत और लघु किसानों में भी काफी लोकप्रिय है.

साल 2019 से राखी स्वयं सहायता समूह से जुड़ी कांती यादव समूह से 50,000 रुपए और 80,000 रुपए का पशुपालन लोन ले चुकी हैं. इन के पास आज 25 से अधिक बकरियां पल रही हैं, यद्यपि उन के पास भैंस और गाय भी हैं.

इस के अलावा शांति यादव, पति किशोरी यादव साल 2018 से दीपक स्वसहायता समूह की सदस्य हैं. उन्होंने समूह से 35,000 रुपए का लोन लिया है, जिस से उन्होंने बकरीपालन की शुरुआत की.

इन दिनों उन के पास 15 बकरियां, 3 बकरे, 4 बकरी के बच्चे और दुधारू गाय हैं. वे बताती हैं कि बकरेबकरियों को पाल कर वे स्थानीय खरीदारों को बेच देती हैं. बड़े पशुओं के साथसाथ बिना अतिरिक्त मेहनत के बकरीपालन का काम आसानी से हो जाता है. इस से मिलने वाली खाद खेतों के लिए बहुपयोगी होती है. वयस्क नर के विक्रय के लिए बाजार आसानी से मिल जाता है. इस के अलावा कई बार कमजोर और अन्य उत्पादक बकरियां भी बेच दी जाती हैं. अब तक वे 48,000 रुपए की बकरियां बेच चुकी हैं .

इसी समूह की हरवो देवी यादव का परिवार पशुपालन पर ही पल रहा है. उन के परिवार में 3 बेटियां और 2 बेटे हैं. 2 बेटियों की शादी के बाद पूरा परिवार इसी काम में लगा है. उन्होंने समूह से पहले 25,000 रुपए और बाद में 50,000 रुपए का लोन लिया, जिस से गाय और बकरियां खरीदीं, कुछ पैसे खेती में भी लगाए. 35,000 रुपए में 3 बकरे बेचने के बाद इन के पास अब 8 दुधारू पशु हैं.

दुधारू गाय से रोज का 6 लिटर दूध भी बेचा जाता है, जिस से उन्हें दूध से अतिरिक्त आमदनी प्राप्त होती है. कम आय वर्ग और छोटी जोत वाले किसानों के लिए बकरीपालन एक आमदनी पाने का एक उत्तम और सरल उपाय है.

शिमला मिर्च की फसल से हो रहा लाखों रुपए का मुनाफा

एकीकृत बागबानी विकास मिशन (एमआईडीएच) बागबानी क्षेत्र के समग्र विकास के लिए केंद्र सरकार की एक प्रायोजित योजना है. इस योजना के तहत फलसब्जियां, जड़कंद वाली फसलें, मशरूम, मसाले, फूल, सुगंधित पौधे, नारियल, काजू, कोको और बांस जैसी बागबानी फसलों को बढ़ावा दिया जाता है.

इस योजना के अंतर्गत ड्रिप इरीगेशन सहप्लास्टिक मल्चिंग का उपयोग कर के सागर जिले के ग्राम खिरियाताज के रहने वाले करन पटेल ने शिमला मिर्च की खेती कर के लाखों रुपए का मुनाफा कमाया और खेती को लाभ का धंधा बना लिया है.

करन पटेल बताते हैं कि पहले हम गेहूं की खेती किया करते थे जिस से हमारी रोजीरोटी का ही गुजरबसर हो पाता था. न तो भविष्य के लिए कोई पैसा जमा कर पाते थे और न ही परिवार को कोई सुखसुविधा दे पाते थे. मेहनत के बराबर मुनाफा भी नहीं हो पाता था.

तब उद्यानिकी विभाग के लोगों ने मुझे ड्रिप इरीगेशन सहप्लास्टिक मल्चिंग खेती करने की सलाह दी और एकीकृत बागबानी विकास मिशन में मिलने वाले फायदों की जानकारी दी. तब मैं ने मल्चिंग और ड्रिप सिस्टम का इस्तेमाल कर शिमला मिर्च की खेती करना शुरू किया, जिस से मुझे मेहनत के मुकाबले खेती से लाखों रुपए का मुनाफा हुआ.

सागर जिले के प्रगतिशील किसान करन पटेल ग्राम खिरियाताज के रहने वाले हैं. उन्होंने बताया  कि उद्यानिकी की उच्च तकनीकी ड्रिप एवं मल्चिंग का उपयोग करते हुए उन के द्वारा शिमला मिर्च, पीकाडोर, टमाटर, आलू, मिर्च की खेती की जा रही है. इस वर्ष उन को टमाटर और शिमला मिर्च का दाम अधिक होने से प्रति एकड़ आय में अधिक मुनाफा हुआ है.

हाइड्रोपोनिक खेती को दें बढ़ावा

सागर जिला कलक्टर संदीप जीआर ने उद्यानिकी विभाग के अंतर्गत उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों को हाइड्रोपोनिक खेती व माइक्रोग्रीन्स की खेती को बढावा देने के लिए निर्देशित किया, जहां हाइड्रोपोनिक खेती में पौधों को मिट्टी के बजाय पानी आधारित पोषक घोल में उगाया जाता है, वहीं माइक्रोग्रीन्स छोटे पौधों की पत्तियां या तने होते हैं, जिन्हें 1 से 3 सप्ताह के बीच में काटा जाता है. ये पौधे विटामिन, मिनरल और एंटीऔक्सीडेंट से भरपूर होते हैं और इन्हें सलाद, सैंडविच, स्मूदी और अन्य व्यंजनों में उपयोग किया जा सकता है.

उपसंचालक, उद्यानिकी, पीएस बडोले ने कलक्टर संदीप जीआर को अवगत कराया कि किसान  करन पटेल को पीडीएमसी योजना के अंतर्गत ड्रिप और अटल भूजल योजना के अंतर्गत सब्जी क्षेत्र विस्तार, वर्मी बेड एवं शेडनेट हाउस का लाभ दिया गया है.

पाले से फसल को कैसे बचाएं

आने वाले दिनों में सर्दी का प्रकोप बढ़ने से फसल में पाला गिरने की पूरी संभावना होती है, जिस से फसल को खासा नुकसान होने का अंदेशा रहता है. इसलिए जरूरी है कि किसानों को पाले से फसल सुरक्षा के उपाय जरूर करने चाहिए.

अनेक कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा समयसमय पर पाले से फसल बचाव को ले कर एडवाइजरी जारी होती है. उन के अनुसार, किसानों को काम करना चाहिए. अभी हाल ही में किसान कल्याण एवं कृषि विभाग, पन्ना द्वारा जिले के किसानों को पाले की स्थिति में फसल के बचाव के संबंध में आवश्यक सलाह जारी की गई है.

मौसम विभाग द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार, प्रदेश के कई जिलों में तापमान तेजी से कम होने की संभावना है. तापमान में होने वाली इस गिरावट का असर फसलों पर पाले के रूप में होने की आशंका रहती है.

पाले की स्थिति के कारण फसलों को नुकसान होने की संभावना के दृष्टिगत विभाग द्वारा सलाह जारी की गई है. किसानों को सुझाव दिए गए हैं कि रात में खेत की मेंडों पर कचरा और खरपतवार आदि जला कर विशेष रूप से उत्तरपश्चिमी छोर से धुआं करें, जिस से धुएं की परत फसलों के ऊपर आच्छादित हो जाए.

फसलों में खरपतवार नियंत्रण करना भी आवश्यक है, क्योंकि खेतों में उगने वाले अनावश्यक और जंगली पौधे सूरज की गरमी जमीन तक पहुंचने में रुकावट पैदा करते हैं. इस तरह से तापमान के असर को कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है.

इसी तरह शुष्क भूमि में पाला पड़ने का जोखिम अधिक होता है, इसलिए फसलों में स्प्रिंकलर के माध्यम से हलकी सिंचाई करनी चाहिए. थायोयूरिया की 500 ग्राम मात्रा का 1,000 लिटर पानी में घोल बना कर 15-15 दिन के अंतर से छिड़काव भी पाले से बचाव के लिए उपयोगी उपाय है.

इस के अलावा 8 से 10 किलोग्राम सल्फर डस्ट प्रति एकड़ का भुरकाव अथवा बेटेवल या घुलनशील सल्फर 3 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करने से भी पाले के असर को नियंत्रित किया जा सकता है.

ड्रैगन फ्रूट परियोजना : चार प्रजातियों का पौधरोपण

भागलपुर : सबौर कृषि विश्वविद्यालय बिहार के उद्यान में ड्रैगन फ्रूट परियोजना के अंतर्गत 4 प्रजातियों का पौधरोपण किया गया. ये प्रजातियां अपने रंग एवं पोषक तत्वों के आधार पर अपनी अलग पहचान बनाती हैं.

प्रमुख रूप से लाल छिलका, सफेद गूदा, जो कि राष्ट्रीय अजैविक स्ट्रेस प्रबंधन संस्थान, बारामती, महाराष्ट्र से लाया गया है. गुलाबी छिलके, बैगनी गूदे वाली प्रजाति को केंद्रीय द्वितीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अंडमान व निकोबार से लाया गया है. इस के अतिरिक्त पीला छिलका और सफेद गूदे वाली प्रजाति को कांधल एग्रो फार्म लुधियाना से लाया गया है.

परियोजना के अंतर्गत इन चारों प्रजातियों का मूल्यांकन कृषि जलवायु क्षेत्र जोन 3-। के अंतर्गत किया जाना है. वर्तमान समय में बढ़ती हुई कुपोषण की समस्या को देखते हुए ड्रैगन फ्रूट अपने विशिष्ट पोषक तत्वों जैसे प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, लोहा एवं फास्फोरस के समावेश होने से एक उत्तम फल है, जो कुपोषण की समस्या को कम करने में लाभकारी सिद्ध होगा.

मत्स्यपालन और पशुधन की योजनाओं से किसान उठाएं लाभ

नई दिल्ली : मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार वित्तीय वर्ष 2020-21 से 5 सालों के लिए मात्स्यिकी क्षेत्र में 20050 करोड़ रुपए के निवेश के साथ एक प्रमुख योजना “प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना यानी पीएमएमएसवाई)” को कार्यान्वित कर रही है. पीएमएमएसवाई योजना का मुख्य उद्देश्य सतत(सस्टेनेबल), जिम्मेदार, समावेशी (इन्क्लूसिव) और उचित तरीके से मात्स्यिकी क्षमता का उपयोग करना है और मत्स्य उत्पादन विधियों को बढ़ावा देना है. यह योजना कर्नाटक सहित सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में लागू की जा रही है.

पीएमएमएसवाई के तहत बीते 4 सालों और वर्तमान वित्त वर्ष के दौरान, मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने कुल 1056.34 करोड़ रुपए की लागत से कर्नाटक सरकार के मात्स्यिकी विकास प्रस्ताव को स्वीकृति दी है.

मत्स्यपालन में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए मंजूर गतिविधियों में गुणवत्तापूर्ण बीज आपूर्ति के लिए फिश हैचरी, मीठे पानी और खारे पानी के एक्वाकल्चर में क्षेत्र विस्तार, प्रौद्योगिकी संचारित कल्चर प्रथाएं जैसे रीसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम, बायोफ्लोक इकाइयां, केज कल्चर, सीवीड फार्मिंग, ओर्नामेंटल ब्रीडिंग और रियरंग यूनिट शामिल हैं.

तटीय समुद्री क्षेत्रों में पीएमएमएसवाई के तहत फिश स्टाक की बहाली के लिए कर्नाटक सहित सभी तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में आर्टिफिशियल रीफ की स्थापना के लिए भी मंजूरी दी गई है. मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र/इंडियन ऐक्सक्लूसिव इकौनोमिक जोन (ईईजेड) में मानसून/मत्स्य प्रजनन अवधि के दौरान एकसमान मत्स्यन पर प्रतिबंध (यूनिफौम फिशिंग बैन) भी लागू कर रहा है और संरक्षण व समुद्री सुरक्षा कारणों से कर्नाटक सहित तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा प्रादेशिक जल (टेरिटोरियल वाटर) के भीतर इस तरह के फिशिंग बैन को लागू किया गया है.

इस के अलावा वित्तीय वर्ष 2023-24 से 2026-27 तक 4 सालों के लिए मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि योजना (पीएम-एमकेएसवाई) नामक एक उपयोजना के कार्यान्वयन के लिए स्वीकृति दे दी है. इस योजना का उद्देश्य मात्स्यिकी क्षेत्र की मूल्यश्रृंखला दक्षता में सुधार के लिए निष्पादन अनुदान के माध्यम से मात्स्यिकी और एक्वाकल्चर सूक्ष्म उद्यमों को बढ़ावा देना है.

पीएमएमएसवाई के तहत राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एनएफडीबी) के माध्यम से जल कृषि के अन्य क्षेत्रों में विभिन्न कृषि पद्धतियों में विभिन्न क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिस में गहन (इंटेंसिव) मीठे पानी की जल कृषि, खारे पानी में जल कृषि, शीत जल मात्स्यिकी, सजावटी मत्स्यपालन, मत्स्य प्रसंस्करण और विपणन, प्रजाति विशिष्ट हैचरी और प्रजाति विशिष्ट कल्चर (कृषि) प्रैक्टिस शामिल हैं.

एनएफडीबी ने बताया कि पीएमएमएसवाई के तहत अब तक कर्नाटक में 141 प्रशिक्षण और आउटरीच गतिविधियों को वित्त प्रदान किया गया है, जिस में 10,150 प्रतिभागी शामिल हैं और 121.15 लाख रुपए की धनराशि मंजूर की गई है.

पशुपालन एवं डेयरी विभाग, भारत सरकार ने डेयरी सहकारी समितियों सहित डेयरी क्षेत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए कई पहल की हैं. यह सूचित किया गया है कि साल 2014 में राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (एनडीडीपी) योजना की शुरुआत के बाद से कर्नाटक में 16 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई, जिन की कुल परियोजना लागत 408.39 करोड़ रुपए है. स्वीकृत परियोजनाओं का कार्यान्वयन कर्नाटक सहकारी दुग्ध विपणन संघ लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है.

इस के अलावा साल 2021-22 से 2025-26 तक, पशुपालन एवं डेयरी विभाग, भारत सरकार 500 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ अंब्रेला योजना “इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट फंड” के एक हिस्से के रूप में डेयरी गतिविधियों में लगे डेयरी सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों (एसडीसीएफपीओ) को सहायता देने की योजना भी लागू कर रही है.

इस योजना को राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के माध्यम से लागू किया जा रहा है, जिस का मुख्य उद्देश्य गंभीर रूप से प्रतिकूल बाजार स्थितियों या प्राकृतिक आपदाओं के कारण संकट से निबटने के लिए सौफ्ट वर्किंग कैपिटल लोन (आसान कार्यशील पूंजी ऋण) दे कर के डेयरी गतिविधियों में लगे सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों की सहायता करना है. यह योजना कर्नाटक में भी लागू की जा रही है.

इस के अलावा फरवरी, 2024 से डेयरी प्रोसैसिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट फंडा (डीआईडीएफ) का पुनर्गठन किया गया है और इसे एनिमल हसबंडरी इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट फंड (एएचआईडीएफ) में एकीकृत किया गया है. इस संशोधित योजना के तहत सहकारी समितियां और प्राइवेट डेयरी प्लांट्स दोनों ही 3 फीसदी हर साल की दर से ब्याज सहायता प्राप्त करने के पात्र हैं. साथ ही, निजी संस्थाओं की तरह सहकारी समितियां भी अब इस योजना के अंतर्गत अर्हता प्राप्त किसी भी ऋण देने वाली संस्था से ऋण प्राप्त कर सकती हैं.

अनाज भंडारण (Grain Storage) में दुनियाभर में सब से आगे होगा भारत

नई दिल्ली : सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सब से बड़ी अनाज भंडारण योजना की पायलट परियोजना के अंतर्गत राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी), राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) और नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विसेज (नैबकौंस) के सहयोग से 11 राज्यों महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, असम, तेलंगाना, त्रिपुरा और राजस्थान में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) स्तर पर इन की 11 पैक्स में गोदामों को बनाया गया है. इन बने 11 भंडारणों में से 3 को महाराष्ट्र, राजस्थान और तेलंगाना राज्य में पैक्स ने स्वयं के उपयोग के लिए रखा है. इस के अलावा 3 भंडारण को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात राज्य में राज्य/केंद्रीय एजेंसियों द्वारा किराए पर लिया गया है.

इस पायलट परियोजना को आगे बढ़ा दिया गया है और सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सब से बड़ी अनाज भंडारण योजना के तहत गोदामों के बनाने के लिए 21 नवंबर, 2024 तक देशभर में 500 से अधिक अतिरिक्त पैक्स की पहचान की गई है.

इस योजना के तहत कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ), कृषि विपणन अवसंरचना योजना (एएमआई) आदि जैसी भारत सरकार की विभिन्न मौजूदा योजनाओं के सम्मिलन के जरीए पैक्स को सब्सिडी और ब्याज सहायता दी जाती है. एआईएफ योजना के तहत 2 करोड़ रुपए तक की परियोजना के लिए 3 फीसदी ब्याज सहायता प्रदान की जाती है, जिस में ऋण चुकाने की अवधि 2+5 साल होती है. इस के अलावा एएमआई योजना के तहत भंडारण इकाइयों के बनाने के लिए पैक्स को 33.33 फीसदी सब्सिडी दी जाती है.

इस के अलावा, एएमआई योजना के तहत पैक्स के लिए उत्पाद की उत्पादन लागत और उस के विक्रय मूल्य के बीच के अंतर की धनराशि (मार्जिन मनी) की आवश्यकता 20 फीसदी से घटा कर 10 फीसदी कर दी गई है. पूंजीगत लागत पर भंडारण अवसंरचना, जिस में बाउंड्री वाल, ड्रेनेज जैसी सहायक चीजें शामिल हैं) के लिए सहायता के अलावा अब पैक्स को सहायक चीजों पर अतिरिक्त सब्सिडी दी जाती है, जो गोदाम घटक की कुल स्वीकार्य सब्सिडी के अधिकतम 1/3 या वास्तविक जो भी कम हो, तक सीमित है.

पायलट परियोजना के अंतर्गत 11 राज्यों की 11 प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों में कुल 9,750 मीट्रिक टन भंडारण क्षमता वाले 11 भंडारण गोदामों को बनाने का काम पूरा हो चुका है.

ग्रामीण महिलाएं (Rural Women): सहकारिता क्षेत्र में कितनी हिस्सेदारी और क्या हैं योजनाएं

नई दिल्ली : राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस के अनुसार, 28 नवंबर, 2024 तक देश में 25,385 महिला कल्याण सहकारी समितियां पंजीकृत हैं. इस के अलावा देश में 1,44,396 डेयरी सहकारी समितियां हैं, जहां काफी तादाद में ग्रामीण महिलाएं इस क्षेत्र में कार्यरत हैं.

सरकार ने सहकारी समितियों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहल की हैं, जिस में बहुराज्य सहकारी समितियां (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 को एमएससीएस (संशोधन) अधिनियम, 2023 के माध्यम से संशोधित किया गया, जिस में एमएससीएस के बोर्ड में महिलाओं के लिए 2 सीटों के आरक्षण के लिए एक विशिष्ट प्रावधान किया गया, जिसे अनिवार्य कर दिया गया है. इस से सहकारी क्षेत्र में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने का रास्ता साफ होगा.

वहीँ सहकारिता मंत्रालय द्वारा पैक्स के लिए मौडल उपनियम तैयार किए गए हैं और देशभर के राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अपनाए गए हैं. इस में पैक्स के बोर्ड में महिला निदेशकों की जरूरत को अनिवार्य किया गया है. इस से 1 लाख से अधिक पैक्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व और उन के द्वारा निर्णय लेना सुनिश्चित हो रहा है.

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी), सहकारिता मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक सांविधिक निगम है, जो पिछले कई सालों से महिला सहकारी समितियों की सामाजिकआर्थिक स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिस से उन्हें व्यवसाय मौडल आधारित गतिविधियां अपनाने में सक्षम बनाया जा सके.

एनसीडीसी विशेष रूप से महिला सहकारी समितियों के लिए निम्नलिखित योजनाओं को लागू कर रहा है :

स्वयंशक्ति सहकारी योजना : इस योजना के अंतर्गत महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को सामान्य/सामूहिक सामाजिकआर्थिक गतिविधियों के लिए पर्याप्त बैंक ऋण की सुविधा के लिए 3 साल तक के लिए कार्यशील पूंजी ऋण प्रदान किया जाता है.

नंदिनी सहकार : इस योजना के तहत महिला सहकारी समितियों को 5-8 साल तक की अवधि के लिए सावधि ऋण प्रदान किया जाता है, जिस में सावधि ऋण पर 2 फीसदी तक की ब्याज छूट दी जाती है. इस योजना के तहत वित्तीय सहायता एनसीडीसी को सौंपे गए व्यवसाय योजना आधारित गतिविधि/सेवा के लिए प्रदान की जाती है.

इस के अलावा सहकारिता मंत्रालय, नाबार्ड, एनडीडीबी, एनएफडीबी और राज्य सरकारों के साथ मिल कर भारत में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है. इस में सभी पंचायतों/गांवों में नई बहुद्देशीय पैक्स, डेयरी और मत्स्य सहकारी समितियों की स्थापना करना शामिल है. प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए, एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) शुरू की गई है. एनडीडीबी को 1,03,000 से अधिक डेयरी सहकारी समितियों के गठन/मजबूतीकरण का काम सौंपा गया है.

इस के अतिरिक्त गुजरात में “सहकारी समितियों के बीच सहयोग” पायलट परियोजना का उद्देश्य प्राथमिक डेयरी सहकारी समितियों को बिजनैस कौरेसपोंडेंट/बैंक मित्र बना कर और सदस्यों को रुपे केसीसी प्रदान कर के उन्हें सशक्त बनाना है. इस पहल का उद्देश्य डेयरी सहकारी समितियों में काफी संख्या में ग्रामीण महिलाओं को शामिल कर के उन की बाजार तक पहुंच को बढ़ाना और उन के वित्तीय व सामाजिक सशक्तीकरण में योगदान देना है.

एमएससीएस (संशोधन) अधिनियम, 2023 के तहत सहकारी चुनाव प्राधिकरण की स्थापना की गई है और इस ने बहुराज्य सहकारी समितियों के 70 चुनाव आयोजित किए हैं और बोर्ड में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की है.

एनसीडीसी ने 31 मार्च, 2024 तक विशेष रूप से महिलाओं द्वारा प्रवर्तित सहकारी समितियों के विकास के लिए क्रमशः 7,708.09 करोड़ रुपए और 6,426.36 करोड़ रुपए की संचयी वित्तीय सहायता स्वीकृत और वितरित की है.

भारत सरकार ने गुजरात राज्य के पंचमहल और बनासकांठा जिलों में “सहकारी समितियों के बीच सहयोग” नामक एक पायलट परियोजना लागू की है, जिस के तहत प्राथमिक डेयरी सहकारी समितियों को जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) का बिजनैस कौरेसपोंडेंट/बैंक मित्र बनाया गया है और सदस्यों को माइक्रोएटीएम प्रदान किए गए हैं.

इस के अलावा डेयरी सहकारी समितियों के सदस्यों (विशेष रूप से महिला सदस्यों) को उन की तत्काल वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए डीसीसीबी द्वारा रुपे केसीसी प्रदान किया जा रहा है. पायलट प्रोजैक्ट के दौरान दोनों जिलों में डीसीसीबी ने अपने सदस्यों को 22,344 रुपे केसीसी जारी किए हैं, जिन में 6,382 पशुपालन केसीसी शामिल हैं, जिस का लाभ ज्यादातर महिलाओं को मिला है. मंत्रालय ने ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण पर इन पहलों के प्रभाव के लिए कोई विशेष अध्ययन नहीं किया है.

केज कल्चर (Cage Culture) तकनीक से कैसे करें मछली (Fish) उत्पादन

लखनऊ : मत्स्य विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा चौधरी चरण सिंह सभागार, सहकारिता भवन लखनऊ में समारोह आयोजित किया गया. इस अवसर पर मत्स्य विकास मंत्री डा. संजय कुमार निषाद ने कहा कि मत्स्यपालन तकनीक एवं नदियों व जलाशयों में मत्स्य अंगुलिका का संचय, मत्स्य आखेट प्रबंधन की जानकारी, जल क्षेत्रों के दोहन न करने व जल क्षेत्र की निरंतरता (सस्टेनेबिलिटी) बनाते हुए अधिक से अधिक मत्स्य उत्पादन के साथसाथ देशीय मत्स्य प्रजातियों का संरक्षण व संवर्धन के लिए समारोह का आयोजन किया गया है. प्रदेश में उपलब्ध कुल जल क्षेत्रों से वर्ष 2023-24 मे उत्तर प्रदेश का कुल मत्स्य उत्पादन 11.60 लाख मीट्रिक टन एवं मत्स्य उत्पादकता 5539.00 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष प्राप्त हुआ.

डा. संजय कुमार निषाद ने कहा कि प्रदेश में गंगा, यमुना, चंबल, बेतवा, गोमती, घाघरा एवं राप्ती सहित कई सदाबाही नदियां बहती हैं, जिन के दोनों किनारे एवं आसपास मछुआ समुदाय की घनी आबादी निवास करती है, जो आजीविका के लिए मुख्यतः मत्स्यपालन, मत्स्याखेट एवं मत्स्य विपणन कार्यों पर निर्भर है. इन्हें रोजगार उपलब्ध कराने एवं उन के आर्थिक उन्नयन के लिए अभियान चला कर मत्स्य जीवी सहकारी समितियों के गठन की कार्यवाही की जा रही है, जिस के अंतर्गत 565 समितियों के गठन का लक्ष्य निर्धारित करते हुए समिति गठन की कार्यवाही कराई जा रही है.

मत्स्य विकास मंत्री संजय कुमार निषाद ने बताया कि केज कल्चर मछली के गहन उत्पादन के लिए एक उभरती हुई तकनीक है. जलाशयों में स्थापित केजों मे पंगेशियस और गिफ्ट तिलपिया का पालन करते हुए उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है.

प्रमुख सचिव, मत्स्य, के. रवींद्र नायक ने कहा कि मत्स्य विभाग द्वारा प्रदेश के मत्स्यपालकों और जलाशय के ठेकेदारों को नवीन तकनीकी प्रदान की जा रहाई है एवं उन के द्वारा प्रदेश के मत्स्य उत्पादन में वृद्धि के लिए पूरे मनोयोग से कार्यवाही की जा रही है. प्रदेश में मात्स्यिकी क्षेत्र के विस्तार से रोजगार के साधन उपलब्ध होने के साथसाथ लक्षित वन ट्रिलियन डालर इकोनोमी में मत्स्य सैक्टर की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. उपस्थित मत्स्यपालकों एवं ठेकेदारों से मत्स्य उत्पादन में वृद्धि लाए जाने के संबंध में सुझाव आमंत्रित किए गए. अधिक से अधिक केज लगाए जाने के संबंध में प्रमुख सचिव मत्स्य द्वारा भारत सरकार से धनराशि की मांग की बात कही और यह भी कहा कि जलाशय के ठेकेदार आर्थिक रूप से संपन्न होते हैं. वह स्वयं के संसाधन से भी जलाशयों में केज स्थापित कराए.

महानिदेशक मत्स्य राजेश प्रकाश ने बताया कि प्रदेश में मत्स्य विकास की अपार संभावनाएं हैं. उपलब्ध जल संसाधनों का वैज्ञानिक एवं तकनीकी दृष्टि से समुचित उपयोग करते हुए प्रदेश को मत्स्य उत्पादन में अग्रणी बनाया जा सकता है. प्रदेश के मत्स्यपालकों द्वारा वर्तमान में नवोन्मेषी तकनीकी के माध्यम से मत्स्य उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि की जा रही है.

विश्व मात्स्यिकी दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में निदेशक मत्स्य एनएस रहमानी विश्व मात्स्यिकी दिवस के बारे में प्रकाश डालते हुए इस के उद्देश्यों एवं प्रदेश में मत्स्य विकास के बारे में विस्तार से बताया गया.

निदेशक एनएस रहमानी ने बताया कि मत्स्य उत्पादन वर्ष 2023-24 में 11.60 लाख मीट्रिक टन प्राप्त किया गया. अंतर्स्थलीय मछली उत्पादन में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी तकरीबन 8.85 फीसदी है. प्रदेश में मत्स्य उत्पादकता 5540 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष है.

प्रदेश को वर्ष 2020 एवं 2023 के दौरान अंतर्स्थलीय मछली उत्पादन में उत्कृष्ट योगदान के लिए सर्वश्रेष्ठ अंतर्स्थलीय मत्स्यपालन राज्य का पुरस्कार प्राप्त हुआ है. वर्ष 2023-24 में प्रदेश में 36664.64 लाख मत्स्य बीज का उत्पादन किया गया और प्रदेश के बाहर भी मेजर कार्प मत्स्य बीज निर्यात किया जा रहा है.

प्रदेश में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत विगत 4 सालों में 1277 इंफ्रास्ट्रक्चर इकाइयां लगाई गई, जिस में मुख्यतः 954 रिसर्कुलेटरी ऐक्वाकल्चर सिस्टम, 63 मत्स्य बीज हैचरी, 123 लघु एवं वृहद मत्स्य आहार मिलों, 55 फिश कियोश्क, 78 जिंदा मछली विक्रय केंद्र, 4 मोबाइल लैब की निजी क्षेत्र में स्थापित कराई गई. मछली की बिक्री के लिए कोल्डचेन के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की 2604 इकाइयों पर अनुदान देते हुए लाभान्वित किया गया है.

मत्स्य बीज की उपलब्धता के लिए 63 मत्स्य बीज हैचरी, 266 हेक्टेयर में मत्स्य बीज रियरिंग यूनिट निर्मित कराई गई है. 2019.72 हेक्टेयर क्षेत्रफल के निजी क्षेत्र में तालाब बनाया गया है. केज में मत्स्य उत्पादकता के दृष्टिगत 682 केज स्थापित कराए जा चुके हैं. डेढ़ लाख मछुआरों को मछुआ दुर्घटना बीमा योजना के तहत पंजीकृत कर आच्छादित किया गया.

मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत पट्टे पर आवंटित तालाबों में प्रथम वर्ष निवेश के लिए अब तक 954 लाभार्थियों को 822.22 हेक्टेयर पर अनुदान प्रदान किया गया एवं मत्स्य बीज बैंक की स्थापना के अंतर्गत 96 लाभार्थियों को 91.044 हेक्टेयर पर अनुदान प्रदान किया गया.

निषादराज बोट सब्सिडी योजना में अब तक कुल 920 मछुआ समुदाय के गरीब व्यक्तियों को जीवकोपार्जन हेतु मछली पकड़ने एवं बेचने के लिए नाव, जाल, आइसबौक्स एवं लाइफ जैकेट उपलब्ध कराए गए. विगत 4 वर्षों में 28,520 व्यक्तियों को मत्स्यपालन के लिए 25858.39 हेक्टेयर क्षेत्रफल के ग्रामसभा के तालाबों के पट्टे उपलब्ध कराए गए.

मत्स्य पालक कल्याण फंड के अंतर्गत मछुआ बाहुल्य 289 गांवों में 3126 सोलर स्ट्रीट लाइट एवं 570 हाईमास्ट लाइट लगाई गई. कोष के माध्यम से चिकित्सा सहायता, दैवीय आपदा, प्रशिक्षण एवं मछुआ आवास बनाने के लिए सहायता प्रदान की गई. माता सुकेता परियोजना के अंतर्गत 250 केज मछुआ समुदाय की महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु लगाए जाने का प्रावधान है. 16757 मत्स्यपालकों को धनराशि 131.00 करोड़ रुपए के किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराए गए.

रिवर रैंचिंग के अंतर्गत मेजर कार्प एवं राज्य मीन चिताला मत्स्य प्रजातियों के नदियों मे संरक्षण के लिए कुल 297 लाख मत्स्य बीज नदियों में संचित कराया गया. विभागीय योजनाओं को पारदर्शी ढंग से औनलाइन पोर्टल के माध्यम से लागू की गई है. मो. परवेज खान प्रगतिशील मत्स्यपालक जनपद बाराबंकी द्वारा आरएएस एवं फीड मिल के बारे में विस्तार से मत्स्यपालकों को जानकारी दी गई.

डा. संजय श्रीवास्तव, जनपद महराजगंज के प्रगतिशील मत्स्यपालक द्वारा हैचरी निर्माण में उस के लाभ लागत के संबंध में उपस्थित मत्स्यपालकों को तकनीकी विधियों के बारे में जानकारी दी गई. मंजू कश्यप, प्रगतिशील मत्स्यपालक जनपद गाजियाबाद द्वारा तालाब प्रबंधन एवं दूषित तालाबों में सफल मत्स्यपालन कैसे किया जाए, के संबंध में मत्स्यपालकों को जानकारी दी गई.

देवमणि निषाद, जनपद, गौरखपुर द्वारा अपनी सफलता की कहानी को मत्स्यपालकों के साथ साझा किया गया और अधिक उत्पादन प्राप्त करने के संबंध में जानकारी दी गई. जय सिंह निषाद द्वारा आरएएस के माध्यम से कम भूमि एवं जल से अधिक से अधिक मत्स्य उत्पादन प्राप्त किए जाने के संबंद में अपने अनुभव को उपस्थित मत्स्यपालकों से साझा किया गया. दरोगा जुल्मी निषाद द्वारा मत्स्यपालन में उत्कृष्ट कार्य किए जाने के संबंध में उन्हें पुरस्कृत किया गया.

मनीष वर्मा द्वारा जलाशयों मे केज स्थापना एवं उस में उत्पादित की जाने वली मछलियों और प्रति केज से प्राप्त की जाने वाली शुद्ध आय के संबंध में अपने उदबोधन में मत्स्यपालकों को जानकारी दी गई. डा. नीरज सूद, प्रधान वैज्ञानिक एनबीएफजीआर लखनऊ द्वारा संस्थान के कार्यों के संबंध में विस्तार से बताते हुए मत्स्य उत्पादन में वृद्धि के लिए उचित मात्रा में गुणवत्तायुक्त मत्स्य अंगुलिका का संचय कराते हुए मत्स्य उत्पादन के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है. प्रदेश की वन ट्रिलियन डालर इकोनोमी के मत्स्य सैक्टर के लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है.

मोनिशा सिंह, प्रबंध निदेशक, उत्तर प्रदेश मत्स्य जीवी सहकारी संघ लि. द्वारा संघ द्वारा समितियों एवं मत्स्यपालकों के लिए संचालित कार्यक्रमों के बारे में बताया गया. अंजना वर्मा, मुख्य महाप्रबंधक, उत्तर प्रदेश मत्स्य विकास निगम लि. द्वारा निगम द्वारा मत्स्य बीज उत्पादन और प्रदेश में मत्स्य बीज की उपलब्धता व जलाशयों में केज कल्चर के माध्यम से जलाशयों के मत्स्य उत्पादकता के बारे में बताया गया.

मंत्री द्वारा मात्स्यिकी के विभिन्न क्षेत्र में प्रदेश में उत्कृष्ट योगदान कर रही मंजू कश्यप, प्रगतिशील मत्स्यपालक, जनपद गाजियाबाद, देवमणि निषाद, जनपद गौरखपुर, जय सिंह निषाद, दरोगा जुल्मी निषाद सहित 16 व्यक्तियों को प्रशस्तिपत्र प्रदान करते हुए सम्मानित किया गया.

कार्यक्रम के दौरान मत्स्य की विभिन्न गतिविधियों में अनुदानित 36 व्यक्तियों को मंत्री द्वारा अनुदान की धनराशि के चेक व प्रमाणपत्र भी वितरित किया गया.

विभाग द्वारा निःशुल्क मछुआ दुर्घटना बीमा योजना से आच्छादित करने के लिए मछुआ दुर्घटना बीमा योजना के माध्यम से वर्ष 2024-25 में कुल लक्षित 1,50,000 मत्स्यपालकों का आच्छादन कराए जाने के लिए कार्यवाही की गई. केज कल्चर के साथसाथ पेन कल्चर और जिंदा मछली विक्रय केंद्र को प्रोसाहित करते हुए उत्पादन के साथसाथ मूल्यवर्धन के माध्यम से आय में वृद्धि लाई जाए. उपस्थित मत्स्यपालकों से सुझाव मांगे गए तदनुसार उत्पादन के बढ़ावा देने के लिए कार्ययोजना तैयार कराई जा सके.
उपनिदेशक पुनीत कुमार द्वारा उपस्थित अतिथियों एवं मत्स्यपालकों और जलाशय के ठेकेदारों का धन्यवाद व्यक्त करते हुए कार्यशाला के समापन की घोषणा की गई. कार्यक्रम उत्तर प्रदेश मत्स्य जीवी सहकारी संघ लि. के सभापति वीरू निषाद एवं विभागीय अधिकारी सहित तमाम मत्स्यपालक उपस्थित रहे.

किसानों को मिले उन्नत तकनीकों का प्रशिक्षण

जयपुर : शासन सचिव, कृषि एवं उद्यानिकी, राजन विशाल ने पिछले दिनों दुर्गापुरा स्थित इंटरनैशनल हौर्टिकल्चर इनोवेशन एंड ट्रेनिंग सैंटर (आईएचआईटीसी) का दौरा किया. उन्होंने अधिकारियों को इस ट्रेनिंग सैंटर में ज्यादा से ज्यादा किसानों को उन्नत तकनीकी का कृषि प्रशिक्षण देने के लिए कहा.

राजन विशाल ने किसानों के प्रशिक्षण के दौरान प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रदान किए जाने के लिए संस्थान के फल वृक्ष क्षेत्र, संरक्षित खेती, सब्जी उत्पादन, नर्सरी, ड्रिप इरिगेशन आदि गतिविधियों का निरीक्षण किया. उन्होंने आईएचआईटीसी के कैंपस,  छात्रावास, प्रयोगशाला आदि सभी जगहों का बारीकी से निरीक्षण किया और संस्थान की साफसफाई एवं मेंटेनेंस के आवश्यक दिशानिर्देश प्रदान किए.

शासन सचिव राजन विशाल ने प्रशिक्षण में किसानों की संख्या को बढ़ाने व पूरा ट्रेनिंग प्लान तैयार रखने के लिए अधिकारियों को निर्देशित किया. साथ ही, संस्थान में हाइड्रोपोनिक्स की स्थापना के लिए भी कहा. हाइड्रोपोनिक प्रणाली मिट्टी के बजाय पानी आधारित पोषक घोल का उपयोग कर के पौधे उगाने की तकनीक है. हाइड्रोपोनिक उत्पादन प्रणाली का प्रयोग छोटे किसानों और वाणिज्यिक उद्यमों द्वारा किया जाता है.

इस के बाद शासन सचिव राजन विशाल ने कर्ण नरेंद्र विश्वविद्यालय के संगठन संस्थान राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान, दुर्गापुरा, जयपुर में स्थित समन्वित कृषि प्रणाली क्षेत्र का दौरा किया. यह समन्वित कृषि प्रणाली डेढ़ हेक्टेयर कृषि जोत के लिए राजस्थान के सिंचित क्षेत्र के किसानों की पोषण उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए विकसित की गई है. इस समन्वित कृषि प्रणाली क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की फसल पद्धतियां, उद्यानिकी फल एवं सब्जियां, डेयरी यूनिट, बकरी यूनिट, पोल्ट्री यूनिट, अजोला यूनिट, वर्मी कंपोस्ट यूनिट और गोबर खाद यूनिट है.

समन्वित कृषि प्रणाली के मुख्य सस्य वैज्ञानिक डा. उम्मेद सिंह ने किसानों के लिए सालभर आय का अच्छा स्रोत होने एवं किसान के परिवार के लिए पोषणयुक्त भोजन जैसे फल, सब्जी, अनाज, दाल, मोटे अनाज, तिलहन, पशुओं के लिए चारा एवं इस से जनित अपशिष्ट के सदुपयोग के लिए वर्मी कंपोस्ट, गोबर की खाद इत्यादि के रूप में प्रयोग करने से मिट्टी की  सेहत में सुधार एवं बाहरी उर्वरकों पर निर्भरता कम करने की जानकारी दी.

विश्वविद्यालय के कुलपति बलराज सिंह ने कृषि विश्वविद्यालय एवं दुर्गापुरा में संचालित विभिन्न कृषि अनुसंधान योजनाओं की जानकारी दी.

इस दौरान आयुक्त उद्यानिकी सुरेश कुमार ओला, अतिरिक्त निदेशक कृषि (रसायन), एचएस मीना, संयुक्त निदेशक कृषि (रसायन) अजय कुमार पचौरी, संयुक्त निदेशक उद्यान महेंद्र कुमार शर्मा, संयुक्त निदेशक कृषि (गुण नियंत्रण) गजानंद यादव, उपनिदेशक, उद्यान (आईएचआईटीसी) राजेश कुमार गुप्ता सहित विभागीय अधिकारी उपस्थित रहे.

ऊंट सरंक्षण योजना में मिल रहे 20,000 रुपए, कैसे उठाएं जल्दी फायदा

जयपुर: राज्य सरकार द्वारा उष्ट्र संरक्षण योजना के तहत डीबीटी को आधार और जनआधार से जोड़ने के लिए अधिसूचना जारी कर दी गई है. पशुपालन और गोपालन विभाग के शासन सचिव डा. समित शर्मा ने बताया कि पशुपालन विभाग द्वारा वर्तमान में ऊंटों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए उष्ट्र संरक्षण योजना का संचालन किया जा रहा है, जिस में टोडियों के जन्म पर उन के पालनपोषण के लिए प्रोत्साहनस्वरूप उष्ट्रपालकों को 2 किस्तों में 20,000 रुपए की माली मदद देने का प्रावधान है.

उन्होंने आगे बताया कि इस अधिसूचना के जारी होने से अब योग्य उष्ट्रपालकों को इस योजना का लाभ लेने के लिए अपना आधारकार्ड और जनआधार संख्या होने का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा, जिस से उन के बैंक खातों में पारदर्शिता एवं सुगमता के साथ राशि हस्तांतरित की जा सकेगी. इस से योजना में पारदर्शिता आएगी और उष्ट्रपालकों को उन की सहायता राशि सरल और निर्बाध तरीके से सीधे प्राप्त हो सकेगी. साथ ही, योजना के तहत आवेदन करते समय कई तरह के पहचानपत्र व अन्य दस्तावेज अपलोड करने की भी बाध्यता नहीं होगी.

डा. समित शर्मा ने बताया कि योजना के तहत लाभार्थियों को सुविधाजनक रूप से लाभ मिल सके, इस के लिए लाभार्थियों को इस के बारे में जागरूक करने के लिए विभिन्न माध्यमों से उन तक सूचना पहुंचाई जाएगी. उन्होंने कहा कि सरकार के इस कदम से लाभार्थियों को समय पर आर्थिक लाभ मिलने के साथसाथ विभाग के काम में भी आसानी होगी और दक्षता आएगी.