सिद्धार्थ नगर में बड़े पैमाने पर काला नमक चावल का हो रहा उत्पादन

सिद्धार्थ नगर: जिला प्रशासन अधिकारियों एवं कृषि विभाग के प्रयास से जिले में काला नमक चावल की पहचान पूरी दुनिया में पहुंचाने के लिए पिछले दिनों क्रेताविक्रेता सम्मेलन का कार्यक्रम 2 दिनों के लिए आयोजित किया गया. जिलाधिकारी का प्रयास जिले के किसानों को काला नमक चावल के उत्पादन की अच्छी कीमत मिले, यह प्रयास अत्यंत सराहनीय है.

कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ओडीओपी के अंतर्गत जिले के काला नमक चावल को चुना गया है. आज जिले में काला नमक चावल का उत्पादन 18,000 एकड़ भूमि में किया जा रहा है. भारत सरकार द्वारा नौनबासमती चावल का निर्यात बंद कर दिया गया था. उस के लिए वाणिज्य मंत्री भारत सरकार से मिल कर किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए खुलवाया गया, जिस से काला नमक चावल व अन्य चावल का उत्पादन करने वाले किसानों को उचित मूल्य प्राप्त हो सके.

सरकार किसानों की आय को दोगुना करने के लिए दृढ़संकल्पित है. इस के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से किसानों को लाभ पहुंचाया जा रहा है. कृषि विभाग द्वारा पारदर्शी रूप से किसानों को सोलर पंप, कृषि यंत्र आदि पर सब्सिडी दे कर लाभांवित किया जा रहा है.

काला नमक चावल लंबे समय तक रखने पर उस की खुशबू चली जाती थी. उस के लिए अब वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं, जिस से काला नमक चावल की सुगंध बनी रहे. किसानों को काला नमक चावल का सही बीज मिले, इस के लिए वैज्ञानिकों द्वारा शोध किया जा रहा है.

काला नमक चावल शुगर फ्री, प्रोटीन, विटामिन व अन्य गुणवत्ता से युक्त है. भारत सरकार द्वारा 2,396 मिलियन टन नौनबासमती चावल का निर्यात किया गया था. इस से अधिक निर्यात केवल उत्तर प्रदेश द्वारा हो, इस के लिए प्रयास किया जाए.

कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही ने जिलाधिकारी को नौगढ़शोहरतगढ़ के बीच आम फैसिलिटेशन सैंटर बनाए जाने का निर्देश दिया, जिस से किसान अपना चावल उस में रख सकें. उन्होंने कहा कि मखाने की खेती करने के लिए ब्लौक स्तर पर गोष्ठी आयोजित कर किसानों को प्रेरित किया जाए, जिस से किसानों को काला नमक चावल के साथ मखाने की खेती से अच्छी आय प्राप्त हो सके.

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डुमरियागंज के सांसद जगदंबिका पाल ने कहा कि काला नमक चावल की ब्रांडिंग एवं निर्यात के लिए क्रेताविक्रेता सम्मेलन कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. जिला प्रशासन द्वारा काला नमक चावल को विश्व में पहचान के लिए निरंतर प्रयास किया जा रहा है. काला नमक चावल विलुप्त होता जा रहा था, लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं कृषि मंत्री के प्रयास से इस की पहचान बढ़ी है.

काला नमक चावल का उत्पादन जिस तरह से हो रहा है, उस की सही कीमत किसानों को नहीं मिल रही है. इस क्वालिटी का चावल पूरी दुनिया में नहीं मिल रहा है. काला नमक चावल को शुगर का मरीज भी खा सकता है. जापान के चावल का मुकाबला आज हमारे जिले का काला नमक चावल कर रहा है. आज पूरी दुनिया में और्गेनिक फूड का महत्व बढ़ रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा डा. स्वामीनाथन की रिपोर्ट को लागू किया गया. जनपद में काला नमक भवन बनाने के लिए भारत सरकार से सीएसआर मद से काम करने का प्रयास किया जा रहा है. इस भवन के बनने से बाहर से आने वाले लोगों को काला नमक चावल आसानी से प्राप्त हो जाएगा. वहीं से ही इस की मार्केटिंग भी हो सकेगी. कार्यक्रम के अंत में सांसद डुमरियागंज ने जिला प्रशासन, कृषि वैज्ञानिकों एवं किसानों को शुभकामनाएं दीं.

हाईटेक कृषि ज्ञान वाहनों से मिल रहा हर सवाल का जवाब

सबौर: बिहार कृषि विश्वविद्यालय, द्वारा संचालित “सवालजवाब” कार्यक्रम अब किसानों तक और भी प्रभावी ढंग से पहुंच रहा है. सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर लोकप्रिय इस कार्यक्रम का प्रसारण आज से कृषि ज्ञान वाहनों के माध्यम से भी किया गया.

समस्तीपुर, पूर्णिया और पटना जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद इन कृषि ज्ञान वाहनों पर किसानों ने विश्वविद्यालय के मीडिया सेंटर से प्रसारित सवालजवाब कार्यक्रम को देखा और वैज्ञानिकों से सीधे प्रश्न पूछे. आज के कार्यक्रम में “जाड़े के मौसम में पशुओं के रखरखाव” विषय पर चर्चा की गई.

इस अवसर पर प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरके सोहाने, पशु विज्ञान विशेषज्ञ डा. राजेश कुमार, डा. एमज़ेड होदा और डा. ज्योतिमला ने किसानों के सवालों के उत्तर दिए. कार्यक्रम का संचालन अन्नू द्वारा किया गया.

यह कार्यक्रम हर शनिवार को प्रसारित होता है. साथ ही, अब बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कृषि ज्ञान वाहनों के साथसाथ बामेती, बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना और डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के वाहनों में भी उपलब्ध है. इन वाहनों में बड़े टीवी स्क्रीन पर कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया गया.

इस नई पहल पर खुशी जाहिर करते हुए कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा ” इस कदम से दूरदराज के किसानों को खेती और पशुपालन से जुड़ी समस्याओं का समाधान रियल टाइम में मिल सकेगा. यह पहल किसानों के सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा.”

हाईटेक कृषि ज्ञान वाहन

गौरतलब है कि इस वर्ष बिहार कृषि विश्वविद्यालय के नेतृत्व में हाईटेक कृषि ज्ञान वाहनों का निर्माण किया गया था, जिस का लोकार्पण बिहार के मुख्यमंत्री द्वारा किया गया था. ये वाहन किसानों को कृषि और पशुपालन से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस हैं.

किसानों के लिए उम्मीद की नई किरण

यह कार्यक्रम न केवल किसानों के दरवाजे तक पहुंच कर उन्हें जागरूक कर रहा है, बल्कि उन की समस्याओं का तुरंत समाधान भी प्रदान कर रहा है. इस से राज्य में कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में प्रगति को नई गति मिलेगी.

कृषि कार्य में काम आने वाले ट्रैक्टरचालित उपयोगी यंत्र

सवाल : खेती की तैयारी और अन्य प्रमुख कृषि कार्य में काम आने वाले ट्रैक्टरचालित कौन से उपयोगी यंत्र हैं?

– दिनेश यादव, मथुरा

जवाब : आज खेती कृषि यंत्रों पर आधारित है. ज्यादातर किसानों के पास अपनी सुविधा के  अनुसार छोटेबड़े कृषि यंत्र भी हैं. लेकिन ट्रैक्टर सभी किसानों की पहुंच में नहीं हैं. यहां हम उन्हीं कृषि यंत्रों की बात करने जा रहे हैं, जो ट्रैक्टर द्वारा चालित हैं.

खेती की तैयारी के लिए ट्रैक्टरचालित उपयोगी यंत्र हैरो/कल्टीवेटर,  हैप्पी सीडर, रिवर्सेबल प्लाऊ, रीपर, रोटावेटर, रीपर कम बाइंडर, जीरो ट्रिल/सीड ड्रिल कम फर्टिलाइजर ड्रिल, थ्रेशर, मल्टीक्राप थ्रेशर, राइस ट्रांसप्लांटर, पोटैटो प्लांटर, पोटैटो डिगर आदि.

इन में कल्टीवेटर, रोटावेटर जैसे यंत्र खेत को तैयार करने यानी खेत की जुताई करने के काम आते हैं. रिवर्सेबल प्लाऊ खेत की मिट्टी में गहराई तक पहुंच कर काम करता है. रीपर यंत्र गेहूंधान जैसी फसलों की कटाई का काम करता है. इसी का अत्याधुनिक यंत्र है, रीपर कम बाइंडर. यह यंत्र फसल की कटाई करने के साथसाथ उन के गट्ठर भी बनाता चलता है.

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जीरो ट्रिल यंत्र से खेत में बिना जुताई किए सीधे ही बीज की बोआई की जाती है. इसी का   आधुनिक कृषि यंत्र जीरो कम फर्टिलाइजर ड्रिल है. यह यंत्र भी बिना जुताई किए खेत में बीज की बोआई करने के साथसाथ खेत में उर्वरक भी डालता है. इस यंत्र के इस्तेमाल से खेत की जुताई का खर्च बचता है. साथ ही, समय की भी बचत होती है. उदाहरण के लिए गेहूं व धान की कटाई के बाद आप सीधे ही बोआई कर सकते हैं.

थ्रेशर यंत्र की बात करें, तो यह बहुत ही आम यंत्र है. यह यंत्र तैयार फसल की गहाई करने के काम आता है, जिस से तैयार उपज से अनाज अलग हो जाता है और भूसा अलग हो जाता है.

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मल्टीक्राप थ्रेशर के बारे में जैसा नाम से ही पता चल रहा है कि इस अकेले यंत्र से कई अलगअलग फसलों की गहाई की जा सकती है. इस में गहाई करने वाली खास फसलें हैं. जैसे गेहूं, धान, मक्का, दलहनी और तिलहनी फसलें आदि.

अब बात करते हैं राइस प्लांटर की. राइस प्लांटर धान की बोआई करने वाला यंत्र है. इस के अलावा धान की रोपाई करने वाला पैडी प्लांटर भी होता है, जिस से धान पौध की बोआई की जाती है. इस यंत्र में ट्रैक्टर की आवश्यकता नहीं होती. यह इंजन फिटेड यंत्र है, जिस को एक व्यक्ति द्वारा खेत में चलाया जाता है. इस यंत्र के इस्तेमाल से धान की रोपाई में अधिक मजदूरों की जरूरत नहीं होती और कम समय में अधिक रकबे में धान की रोपाई की जा सकती है.

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ट्रैक्टर से चलने वाले पोटैटो प्लांटर यंत्र द्वारा आलू कंद की बोआई की जाती है, जो उचित दूरी और गहराई में आलू बीज गिराता है. इस यंत्र के इस्तेमाल से आलू की अच्छी पैदावार मिलती है.

आलू फसल तैयार होने के बाद उस की खुदाई के लिए पोटैटो डिगर यंत्र है. आलू खुदाई करने वाले इस यंत्र को भी ट्रैक्टर द्वारा चलाया जाता है. इस यंत्र से आलू खुदाई के बाद मजदूरों द्वारा आलू को चुन लिया जाता है. इस के अलावा अनेक कृषि यंत्र हैं, जो किसानों के लिए खेती में खासा मददगार हैं.

उत्तर प्रदेश में ये हैं कृषि यंत्रीकरण योजनाएं

सवाल : उत्तर प्रदेश में कृषि यंत्रीकरण की कौन सी योजनाएं संचालित हैं?
– राम किशन, गांव कोटकी, टूंडला

जवाब : किसानों के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा समयसमय पर अनेक योजनाएं संचालित होती रहती हैं. इन योजनाओं के जरीए ज्यादातर किसानों को कृषि यंत्र खरीद पर सरकार द्वारा सब्सिडी दी जाती है, जिस से किसानों को अच्छीखासी आर्थिक मदद मिलती है.

इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए कृषि यंत्रीकरण की सबमिशन औन एग्रीकल्चर मेकैनाइजेशन अंडर नैशनल मिशन औन एग्रीकल्चर ऐक्सटेंशन एंड टैक्नोलौजी योजना संचालित है. इस योजना के जरीए किसान कृषि यंत्रों का फायदा ले सकते हैं.

इस के लिए आप अपने नजदीक कृषि संस्थान से संपर्क कर सकते हैं. साथ ही, इन योजनाओं की जानकारी बड़े कृषि यंत्र विक्रेताओं को भी होती है, वे भी इस बारे में आप की मदद कर सकते हैं.

प्राकृतिक आपदा से किसान की उपज बरबाद , कैसे हो भरपाई?

सवाल : मैं बाराबंकी, उत्तर प्रदेश का किसान हूं. मैं जानना चाहता हूं कि प्राकृतिक आपदा से किसान की उपज बरबाद हो जाती है, तो उस की फसल की भरपाई के लिए क्या पैमाना है और किस तरह से फसल की क्षति का आकलन किया जाता है?

– रामजीवन मिश्रा

जवाब : सरकार द्वारा किसानों के लिए अनेक लाभांवित योजनाएं हैं. उन्हीं योजनाओं में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना है, जो किसानों की प्राकृतिक आपदा से होने वाली फसल नुकसान की भरपाई करती है.

आप के सवाल के जवाब में हम बताना चाहते हैं कि अधिसूचित फसलों पर मौसम के अंत में संपादित फसल कटाई प्रयोगों से प्राप्त उपज के आधार पर फसल की क्षति का आकलन किया जाता है और संबंधित किसानों को उपज में कमी के अनुरूप क्षतिपूर्ति प्रदान की जाती है.

योजना के नियमों के अनुरूप क्षतिपूर्ति देय होने पर बीमा कंपनी द्वारा किसानों के बैंक खाते में क्षतिपूर्ति की धनराशि जमा करा दी जाती है. इसलिए क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए किसानों को व्यक्तिगत दावा प्रस्तुत करना आवश्यक नहीं है.

ग्राम पंचायत में अधिसूचित फसल के अधिकांश किसानों द्वारा फसल की बोआई न कर पाने/असफल बोआई की स्थिति में क्षति का आकलन ग्राम पंचायत स्तर पर करते हुए प्राथमिकता पर क्षतिपूर्ति देय होती है. योजना में स्थानिक आपदाओं, ओला, भूस्खलन व जलभराव और फसल की कटाई के उपरांत आगामी 14 दिन की अवधि तक फसल नष्ट होने की स्थिति में फसल की क्षति का आकलन व्यक्तिगत बीमित किसान के स्तर पर करते हुए किसानों को प्राथमिकता पर आंशिक क्षतिपूर्ति प्रदान की जाती है, जिस को मौसम के अंत में फसल कटाई प्रयोगों से प्राप्त उपज के आधार पर देय कुल क्षतिपूर्ति की धनराशि में समायोजित किया जाता है.

इसी प्रकार फसल की मध्य अवस्था तक ग्राम पंचायत में फसल की संभावित उपज सामान्य उपज से 50 फीसदी कम होने की स्थिति में भी किसानों को आपदा की स्थिति तक उत्पादन लागत में व्यय के अनुरूप तात्कालिक सहायता प्रदान की जाती है, जिसे मौसम के अंत में फसल कटाई प्रयोगों से प्राप्त उपज के आधार पर देय कुल क्षतिपूर्ति की धनराशि में समायोजित किया जाता है.

पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना में फसल की क्षति का आकलन ब्लौक में स्थापित स्वचालित मौसम केंद्र स्तर पर मौसम के प्रतिदिन के आंकड़ों के आधार पर किया जाता है. फसल की बोआई से कटाई के प्रत्येक महत्वपूर्ण चरणों में फसल की आवश्यकतानुसार निर्धारित मौसमीय स्थितियों एवं मौसम की वास्तविक स्थिति में अंतर के अनुरूप फसल की संभावित क्षति को दृष्टिगत रखते हुए किसानों को क्षतिपूर्ति प्रदान की जाती है.

क्या है फसल बीमा योजना (Crop insurance scheme)?

सवाल : फसल बीमा योजना क्या है और इस योजना में कौनकौन से जोखिम कवर होते हैं?
– रामप्रकाश, अलीगढ़

जवाब : केंद्र सरकार द्वारा वर्तमान में उपज गारंटी योजना के रूप में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों के लिए चलाई जा रही है, जिस के अंतर्गत प्रतिकूल मौसमीय स्थितियों के कारण फसल की बोआई न कर पाने/असफल बोआई, फसल की बोआई से कटाई की अवधि में प्राकृतिक आपदाओं, रोगों व कीटों से फसल नष्ट होने की स्थिति एवं फसल कटाई के बाद खेत में कटी हुई फसलों को बेमौसम/चक्रवाती वर्षा, चक्रवात से फसल नुकसान की स्थिति में फसल पैदा करने वाले किसानों, जिन के द्वारा फसल का बीमा कराया गया है, को बीमा कवर के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है.

चयनित जनपदों में पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना को लागू किया गया है, जिस में प्रतिकूल मौसमीय स्थितियों कम व अधिक तापमान, कम व अधिक वर्षा आदि से फसल नष्ट होने की संभावना के आधार पर फसल के उत्पादक किसानों, जिन के द्वारा फसल का बीमा कराया गया है, को बीमा कवर के रूप में वित्तीय सहायता दी जाती है.

किसान दिवस पर खास (Special on Farmer’s Day): 24 फसलों को एमएसपी पर खरीदेगी हरियाणा सरकार

हिसार : किसानों की लंबे समय से चली आ रही मांग को हरियाणा सरकार ने पूरा कर दिया है. अब प्रदेश सरकार किसानों की 24 फसलों को शतप्रतिशत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदेगीं.

ये विचार प्रदेश के कृषि एवं किसान कल्याण, पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्यपालन मंत्री श्याम सिंह राणा ने व्यक्त किए. वे चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में ‘किसान दिवस’ के मौके पर आयोजित समारोह में बतौर मुख्यातिथि प्रगतिशील किसानों एवं वैज्ञानिकों को संबोधित कर रहे थे.

नलवा के विधायक रणधीर पनिहार विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे, जबकि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.

कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा ने बताया कि प्रदेश की सरकार ने किसानों की माली हालत को सुधारने के लिए एमएसपी की गांरटी दे दी है, जिस से किसानों की आय बढ़ाने मे मदद मिलेगी. किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के साथसाथ हमें मिट्टी की सेहत बनाए रखने के लिए खेत को भी आत्मनिर्भर बनाना होगा, जो कि संबंधित खेत में पराली प्रबधंन, फसल अवशेषों को उसी खेत में समाहित करने व अन्य जैविक प्रबधंन करने से संभव है.

उन्होंने प्रदेश के सभी जिलों में कृषि विज्ञान केंद्रों के जरीए किसानों को स्वस्थ पौध, बीज व फलदार पौधे उपलब्ध करवाने पर भी जोर दिया और किसानों से कहा कि प्रदेश सरकार ने किसानों की आय बढाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता सुनिश्चित करते हुए 24 फसलों पर एमएसपी की गांरटी देने के इस फैसले के साथ हरियाणा 24 फसलों को एमएसपी पर खरीदने वाला देश का पहला राज्य बन गया है.

उन्होंने आगे बताया कि प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए भी किसानों को जागरूक किया जा रहा है. खेती में अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशक दवाओं के प्रयोग करने से जमीन खराब होती जा रही है.

उन्होंने यह भी कहा कि किसान को परंपरागत तरीके से खेती करने व रसायनों की सिफारिश के मुताबिक उपयोग करने की जरूरत है. किसानों को कृषि में आधुनिक तकनीकों को अपना कर अपनी आमदनी बढ़ानी चाहिए. किसानों को परंपरागत फसलों के साथसाथ पशुपालन, मत्स्यपालन, मधुमक्खीपालन और खुम्ब उत्पादन को भी प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि उन की माली हालत मजबूत हो सके.

जल, जमीन व पर्यावरण भावी पीढ़ी की धरोहर, उन्हें बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी : प्रो. बीआर कंबोज

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने किसानों से आह्वान किया कि जल, जमीन व पर्यावरण भावी पीढ़ी की धरोहर है, उन्हें बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है. हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों को सही तरीके से उपयोग करने की जरूरत है. साथ ही, हमें अपने लाभ के लिए उन का अत्यधिक दोहन करने से बचना चाहिए. कृषि में विविधीकरण को अपनाएं और उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ाएं, ताकि विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धा का मुकाबला किया जा सके.

उन्होंने आगे कहा कि हर हाथ को रोजगार उपलब्ध करवा कर ही हम भारत को साल 2047 तक स्वावलंबी, आत्मनिर्भर एवं विकसित राष्ट्र बना सकते हैं. विश्वविद्यालय द्वारा प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को कृषि से संबंधित विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण देने के साथसाथ संबंधित सामग्री भी उपलब्ध करवाई जा रही है, ताकि वे स्वरोजगार स्थापित कर के आत्मनिर्भर बन सकें. विश्वविद्यालय टिश्यू कल्चर तकनीक के माध्यम से गन्ने, केले व अन्य तरह की रोगरहित पौध विकसित कर के किसानों को उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. जल संसाधनों का बेहतर प्रयोग, वाटरशेड विकास, वर्षा जल संचय और उन्नत तकनीकों को अपना कर पानी का उचित प्रबंधन करने की बहुत ही जरूरत है.

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नलवा के विधायक रणधीर पनिहार ने सरकार द्वारा फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गांरटी देने पर प्रदेश सरकार का धन्यवाद किया. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे शोध के कामों एवं उन्नत किस्म के बीजों के कारण प्रदेश के कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है.

विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने सभी का स्वागत किया, जबकि कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया.

इस अवसर पर मुख्यातिथि श्याम सिंह राणा ने प्रदर्शनी का अवलोकन किया. इस अवसर पर मुख्यातिथि ने विश्वविद्यालय व कृषि क्षेत्र में स्वरोजगार स्थापित करने वाले किसानों द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया. कार्यक्रम में किसान रत्न सम्मान गांव कनावली, जिला रेवाड़ी के प्रगतिशील किसान यशपाल को प्रदान किया गया. इस के अतिरिक्त प्रत्येक जिले के एक महिला एवं एक पुरुष प्रगतिशील किसान को भी सम्मानित किया गया.

मुख्यातिथि ने खरीफ एवं रबी फसलों की समग्र सिफारिशों पर आधारित पुस्तकों का भी विमोचन किया. इस अवसर पर प्रदेश के सभी जिलों के किसान खासतौर पर महिला किसान उपस्थित रहीं.

‘राष्ट्रीय किसान दिवस’ (National Farmers Day) : किसानों को सम्मानित करने का दिवस

सबौर (भागलपुर): राष्ट्रीय किसान दिवस के अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), सबौर में एक विशेष किसान संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में किसानों, जीविका दीदियों, कृषि छात्रों और अलगअलग राज्यों से आए हुए विशेषज्ञों डा. संजय कुमार राय (पश्चिम बंगाल), डा. वी. प्लानास्वामी (तमिलनाडु), डा. जी. प्रसाद बाबू (आंध्र प्रदेश), डा. चंद्रकांत एमएच (हैदराबाद), डा. रंजन मोहंता (ओडिशा) ने भाग लिया.

कार्यक्रम का शुभारंभ कृषि विज्ञान केंद्र, सबौर के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा. राजेश कुमार संबोधन के साथ शुरू हुआ. उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में किसानों के योगदान को सराहा और कहा, “हमारा उद्देश्य किसानों को तकनीकी रूप से सक्षम बनाना है, ताकि वे नई चुनौतियों का सामना कर सकें और कृषि को एक लाभदायक व्यवसाय बना सकें.”

उन्होंने आगे कहा, “किसान देश की रीढ़ हैं. हमें कृषि में वैज्ञानिक तरीकों को अपना कर उत्पादन को बढ़ाने और किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में काम करना चाहिए.”

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कार्यक्रम में उपस्थित कृषि छात्रों ने किसानों के साथ संवाद किया और आधुनिक तकनीकों को अपनाने के लिए जागरूकता फैलाने की प्रतिबद्धता जताई. केंद्र के वैज्ञानिक द्वारा संगोष्ठी में किसानों को नई फसल पद्धतियों, मिट्टी परीक्षण, जल प्रबंधन और बागबानी के महत्व पर जानकारी दी गई. इस के अलावा जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और उस से निबटने के तरीकों पर भी चर्चा की गई.

कार्यक्रम के अंत में उत्कृष्ट कार्य करने वाले किसानों और जीविका दीदियों को सम्मानित किया गया. इस आयोजन ने किसानों को नई जानकारी और प्रोत्साहन प्रदान करते हुए उन के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया.

डा. होदा ने कार्यक्रम के समापन पर कहा, “राष्ट्रीय किसान दिवस हमारे देश के किसानों की मेहनत और समर्पण को सम्मानित करने का दिन है. हमें गर्व है कि केवीके, सबौर ने इस अवसर पर किसानों के सशक्तीकरण के लिए यह कार्यक्रम आयोजित किया.”

उन्होंने सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद देते हुए आश्वासन दिया कि केवीके भविष्य में भी किसानों की बेहतरी के लिए ऐसे प्रयास करता रहेगा.

‘किसान दिवस’ पर किसानों को मिला सम्मान

बस्ती : प्रधानमंत्री रह चुके चौधरी चरण सिंह के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में आत्मा योजनांतर्गत जनपद स्तरीय किसान मेले का आयोजन कृषि विज्ञान केंद्र, बंजरिया, बस्ती में किया गया, जिस का आरंभ जिलाधिकारी रवीश गुप्ता ने संयुक्त रूप से किया.

हर्रैया के विधायक सरोज मिश्र ने अपने संबोधन में कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा संचालित योजनाओं का लाभ जनपद के सभी किसानों को मिले. उन्होंने किसानों से अपील की कि वे मोटे अनाज की खेती करें, जिस से लोगों की सेहत सुधरने के साथ ही किसानों को लाभ भी हो, मोटा अनाज खाने से ब्लडप्रेशर, शुगर, गठिया आदि तमाम तरह की बीमारियां नहीं होती हैं.

जिला पंचायत अध्यक्ष ने किसानों को संबोधित करते हुए बताया कि सरकार द्वारा किसानों के लिए अनेक योजनाएं चल रही हैं. इस समय किसानों को मुफ्त में बिजली भी दी जा रही है. उन्होंने स्व. चौधरी चरण सिंह के योगदान पर विस्तृत से चर्चा करते हुए उन के द्वारा लिए गए निर्णयों से किसानों में कैसे समृद्धि आई, इस पर बताया.

जिलाधिकारी रवीश गुप्ता ने बताया कि कृषि एवं इस के संवर्गी विभागों द्वारा किसानों के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही  हैं. वर्तमान में किसानों की फार्मर रजिस्ट्री की जा रही है. इस से किसान अपने किसान क्रेडिट कार्ड द्वारा फसल बीमा, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ ले सकते हैं.

उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि किसान कृषि विभाग द्वारा चलाई जा रही भूमि परीक्षण प्रयोगशाला में मिट्टी की जांच करा कर ही उर्वरक का प्रयोग करें, जिस से लागत में कमी आएगी और उर्वरक पर निर्भरता भी कम होगी.

इस अवसर पर कृषि, उद्यान, रेशम, मत्स्य विभाग, फसल बीमा, इफको, कृषि विज्ञान केंद्र, खाद एवं बीज और पशुपालन विभाग से संबंधित स्टालों का विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, जिलाधिकारी व मुख्य विकास अधिकारी ने निरीक्षण किया और उन्नतशील कृषि निवेशों, नवीनतम तकनीकी जानकारी एवं शासन द्वारा किसानों के लिए  चलाई जा रही किसान उपयोगी विभिन्न योजनाओं की जानकारी उन्हें दी गई.

इस अवसर पर कृषि समेत उस के संवर्गी जैसे डेयरी, पशुपालन, सब्जी की खेती, मोटे अनाज की खेती, प्राकृतिक खेती आदि के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले किसानों को पुरस्कृत किया गया, जिस में 15 किसानों को प्रथम पुरस्कार, प्रमाणपत्र, शाल के साथ 7,000 रुपए, 15 किसानों को द्वितीय पुरस्कार हेतु प्रमाणपत्र, शाल एवं 5,000 रुपए और विकास खंड स्तर पर 70 किसानों को प्रथम पुरस्कार हेतु प्रमाणपत्र, शाल एवं 2,000 रुपए का पुरस्कार दिया गया. इस के अलावा कृषि सखियों को भी सम्मानित किया गया.

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इस दौरान विशेषज्ञों ने बताया कि इस समय गेहूं और सरसों की बोआई पूरी हो चुकी है. इस साल बोआई दूसरे सालों की अपेक्षा 10-15 दिन पहले हो गई है, इस से हमारा उत्पादन बढ़ेगा.

उन्होंने आगे बताया कि सरसों की सिंचाई 35-45 दिन के बाद ही करें. सरसों की कच्ची सिंचाई बिलकुल न करें, इस से पौधे मजबूत होते हैं. जिन के गेहूं की पहली सिंचाई हो चुकी हो, वे किसान गेहूं में 10 किलोग्राम प्रति एकड़ जिंक डालें. साथ ही, खरपतवारनाशी का पहले प्रयोग कर फिर उर्वरक का प्रयोग करें. इस के साथ ही गेहूं/सरसों में जिंक के साथ माइक्रोन्यूट्रेंट 3 किलोग्राम प्रति एकड़ डालने से पैदावार बढ़ जाती है. वहीं तिलहनी फसलों में 12 किलोग्राम प्रति एकड़ सल्फर का प्रयोग अवश्य करें. सरसों की पहली सिंचाई के बाद एक बोरी यूरिया प्रति एकड़ प्रयोग करने से उत्पादन अच्छा मिलता है.

उपकृषि निदेशक अशोक कुमार गौतम ने कृषि विभाग एवं संवर्गी विभागों के योजनाओं की विस्तार से जानकारी दी. इस के अलावा मुख्य पशु चिकित्साधिकारी, मुख्य कार्यकारी अधिकारी मत्स्य, जिला उद्यान निरीक्षक, प्रबंधक अग्रणी बैंक, बस्ती आदि ने अपने विभाग से संबंधित योजनाओं की जानकारी दी.

इस अवसर पर हर्रैया के विधायक सरोज मिश्र एवं अखिलेश सिंह, कप्तानगंज के गुलाब चंद्र सोनकर, जिला कृषि अधिकारी, जिला कृषि रक्षा अधिकारी, भूमि संरक्षण अधिकारी, सहायक निदेशक (मृदा परीक्षण/कल्चर), जिला उद्यान अधिकारी, उपदुग्धशाला अधिकारी, जिला प्रबंधक लीड बैंक व अधिक तादाद में किसान उपस्थित रहे.

कपास तेल (Cotton Oil) की खास प्रक्रिया गौसीपोल के लिए मिला पेटेंट

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने कपास बीज उत्पादों से गौसीपोल को हटाने के लिए एक रासायनिक प्रक्रिया में पेटेंट हासिल किया है. इस पेटेंट को भारत सरकार की ओर से प्रमाणपत्र मिल गया है.

भारत सरकार के पेटेंट नियंत्रक की ओर से जैव रसायन, कपास अनुभाग, आनुवांशिकी और पौध प्रजनन विभाग द्वारा विकसित इस तकनीक को पेटेंट संख्या 555667 दी गई है. पेटेंट कार्य में डा. शिवानी मानधनिया, डा. राजबीर सांगवान और डा. अरुण ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

कुलपति प्रो बीआर कंबोज ने कहा कि विश्वविद्यालय के लिए यह गौरव की बात है कि कपास के तेल से हानिकारक गौसीपोल यौगिक को हटाने का पेटेंट विश्वविद्यालय को प्राप्त हुआ है. इस से यह तेल खाने के लिए उपयुक्त हो जाता है. ऐसा तेल खाने से सेहत बिगड़ जाती है. गौसीपोलयुक्त तेल के सेवन से सांस लेने में तकलीफ, शरीर के वजन में कमी और कमजोरी आदि के लक्षण दिखाई देते हैं. कपास के तेल से गौसीपोल के दोनों स्टीरियोइसोमर्स को हटाना इस के सेवन के लिए बहुत जरूरी है.

पेटेंटकर्ता वैज्ञानिक डा. शिवानी मानधनिया ने हटाने गौसीपोल की तकनीकी जानकारी साझा करते हुए बताया कि बिनौले के तेल को कार्बनिक विलायक के साथ मिलाया जाता है और कुछ रासायनिक यौगिकों की उपस्थिति में फिल्टर किया जाता है, जो कि एक सोखना और अवशोषित करने के रूप में काम करता है.

उन्होंने पेटेंट के विश्लेषणात्मक कामों में प्रयुक्त उपकरण की खरीद के लिए धनराशि उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई), हरियाणा सरकार का आभार व्यक्त किया.

पेटेंट की विशेषताएं:

– इस प्रक्रिया का विशेष गुण यह है कि इस में तेल को बिना उबाले गौसीपोल को हटाया जाता है, जिस से कपास के तेल के प्राकृतिक गुण बने रहते हैं.

– गौसीपोल के दोनों आइसोमर्स (+ और -) को हटाने के अलावा बिनौले के तेल से कुछ भारी धातुओं को भी हटाया गया है.

– इस प्रक्रिया को आम आदमी भी आसानी से न्यूनतम संसाधन की सहायता से गौसीपोल को हटा सकता है.

गैरपारंपरिक खाद्य तेलों में कपास के बीज का तेल अपने उच्च पोषक मूल्य, उच्च स्मोक पौइंट और विटामिन ई की उपस्थिति के कारण सब से अधिक उपयोग किया जाता है. वर्ष 2023 में तकरीबन 1.36 मिलियन मीट्रिक टन कपास के बीज के तेल का उपयोग किया गया. कपास के बीज के तेल का उपयोग आमतौर पर खाद्य उत्पादों, सलाद ड्रैसिंग और मार्जरीन के प्रकारों के उत्पादन के लिए किया जाता है.

कपास अनुभाग के प्रमुख डा. करमल सिंह ने बताया कि यह उपलब्धि वैज्ञानिकों को कपास में बेहतर शोध कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करेगी.