सरकारी योजनाओं का लाभ उठा कर किसान बढ़ाएं अपनी आमदनी

कृषि राज्य का विषय होने के कारण राज्य सरकारें राज्य में कृषि के विकास के लिए उपयुक्त उपाय करती हैं. हालांकि भारत सरकार भी उपयुक्त नीतिगत उपायों, बजटीय आवंटन और विभिन्न योजनाओं/कार्यक्रमों के माध्यम से राज्यों के इन प्रयासों में मदद करती है.

भारत सरकार की विभिन्न योजनाएं/कार्यक्रम, उत्पादन में वृद्धि, किसानों को लाभकारी आय और आय समर्थन के माध्यम से किसानों का भला कर रही हैं. फसल उत्पादकता में सुधार, उत्पादन लागत को कम करना, कृषि में विविधीकरण, सतत कृषि के लिए जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनना और किसानों के नुकसान की भरपाई, किसानों की आय बढ़ाने की रणनीतियों में शामिल है.

सरकार के विभिन्न सुधारों और नीतियों में लागत में कमी, उत्पादन बढ़ाने, लाभकारी आय, आय समर्थन, वृद्धावस्था सुरक्षा आदि के उपयोग को आधुनिक और तर्कसंगत बना कर किसानों के लिए उच्च आय पर ध्यान केंद्रित किया गया है.

सरकार ने कृषि और किसान कल्याण विभाग के बजट आवंटन को साल 2013-14 के दौरान 21,933.50 करोड़ रुपए से बढ़ा कर साल 2024-25 में 1,22,528.77 करोड़ रुपए कर दिया है. कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों/योजनाओं की सूची इस प्रकार है :

डीए ऐंड एफडब्ल्यू द्वारा शुरू की गई प्रमुख योजनाएं/कार्यक्रम
– प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान)
– प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना (पीएम-केएमवाई)
– प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई)/पुनर्गठित मौसम आधारित – फसल बीमा योजना (आरडब्ल्यूबीसीआईएस)
– संशोधित ब्याज सबवेंशन योजना (एमआईएसएस)
– कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ)
– 10,000 किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) का गठन और संवर्धन
– प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा)
– स्टार्टअप और ग्रामीण उद्यमों के लिए कृषि निधि (एग्रीश्योर)
– प्रति बूंद अधिक फसल (पीडीएमसी)
– कृषि विस्तार पर उपमिशन (एसएमएई)
– कृषि मशीनीकरण पर उपमिशन (एसएमएएम)
– बीज और रोपण सामग्री पर उपमिशन (एसएमएसपी)
– परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई)
– राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और पोषण मिशन (एनएफएसएनएम)
– डिजिटल कृषि मिशन
– कृषि विपणन के लिए एकीकृत योजना (आईएसएएम) – राष्ट्रीय कृषि बाजार (आईएसएएम-ईएनएएम)
– कृषि विपणन के लिए एकीकृत योजना (आईएसएएम) – अन्य (आईएसएएम-अन्य)
– बागबानी के एकीकृत विकास के लिए मिशन (एमआईडीएच)
– मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी)
– वर्षा सिंचित क्षेत्र विकास (आरएडी)
– खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशन (एनएमईओ) – पाम औयल
– खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशन (एनएमईओ) – तिलहन
– राष्ट्रीय मधुमक्खीपालन और शहद मिशन (एनबीएचएम)
– पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए मिशन और्गेनिक वैल्यू चेन डवलपमेंट
– कृषि वानिकी
– फसल विविधीकरण कार्यक्रम (सीडीपी)
– राष्ट्रीय बांस मिशन

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने उन 75,000 किसानों की सफलता की कहानियों का संकलन जारी किया है, जिन्होंने कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और संबद्ध मंत्रालयों/विभागों द्वारा संचालित योजनाओं के जरीए अपनी आय में दोगुना से अधिक वृद्धि की है.

मौजूदा बुनियादी ढांचे के अंतराल को दूर करने और कृषि बुनियादी ढांचे में निवेश जुटाने के लिए, कृषि बुनियादी ढांचे को बदलने के लिए कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ) की शुरुआत की गई थी. एआईएफ, इंटरेस्ट सबवेंशन और क्रेडिट गारंटी समर्थन के जरीए फसल कटाई के बाद प्रबंधन से जुड़े बुनियादी ढांचे और व्यवहार्य कृषि परिसंपत्तियों के लिए व्यावहारिक परियोजनाओं में निवेश के लिए एक मध्यम दीर्घावधि की ऋण वित्तपोषण सुविधा है.

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पात्र परियोजनाओं के दायरे को विस्तार देते हुए 28 अगस्त, 2024 को एआईएफ के प्रगतिशील विस्तार को मंजूरी दी थी. इस में व्यक्तिगत पात्र लाभार्थियों को ‘सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के निर्माण के लिए व्यवहार्य परियोजनाओं’ के तहत बुनियादी ढांचे के निर्माण की अनुमति और एकीकृत प्रसंस्करण परियोजनाओं और पीएम कुसुम ‘ए’ का अभिसरण शामिल है.

एआईएफ के तहत अनुमोदित प्रमुख परियोजनाओं में 18,606 कस्टम हायरिंग सैंटर, 16,276 प्राथमिक प्रसंस्करण इकाइयां, 13,724 गोदाम, 3,102 छंटाई और ग्रेडिंग इकाइयां, 1,909 कोल्ड स्टोरेज परियोजनाएं और तकरीबन 21,394 अन्य प्रकार की फसल कटाई के बाद की प्रबंधन परियोजनाएं और सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियां शामिल हैं.

कृषि भूमि बनेगी उपजाऊ, जानें कैसे?

कृषि भूमि में जैविक कार्बन की उपस्थिति की नियमित रूप से मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) के माध्यम से जांच की जाती है. योजना के दिशानिर्देशों के अनुसार, मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए राज्यों को 3 साल में एक बार मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाना होगा. अब तक 24.60 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाए जा चुके हैं.

मिट्टी में जैविक कार्बन में कमी के प्रमुख कारण हैं :

(i) दोषपूर्ण प्रथाएं जैसे रासायनिक उर्वरक का अविवेकपूर्ण या अत्यधिक उपयोग, बारबार जुताई, ठूंठ जलाना, अतिचारण और कटाव.

(ii) बारहमासी वनस्पतियों की जगह एकल फसल और चारागाह उगाना.

(iii) मिट्टी के भौतिक व रासायनिक गुण जैसे मिट्टी का घनत्व, उच्च बजरी सामग्री, मिट्टी का कटाव और मिट्टी में पानी की कम मात्रा/खराब नमी संरक्षण उपाय.

इस समस्या के समाधान के लिए सरकार किसानों को मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता कार्ड जारी करने के लिए मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता योजना लागू कर रही है. मृदा स्वास्थ्य कार्ड मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा का विवरण देते हैं और मिट्टी में जैविक कार्बन एवं स्वास्थ्य में सुधार के लिए जैविक खादों एवं जैव उर्वरकों के साथसाथ द्वितीयक एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों सहित रासायनिक उर्वरकों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन पर किसानों को सलाह दी जाती है.

सरकार सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) और पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए मिशन और्गेनिक वैल्यू चेन डवलपमेंट (एमओवीसीडीएनईआर) के माध्यम से मिट्टी के जैविक कार्बन में सुधार के लिए जैविक खेती को भी बढ़ावा दे रही है.

परंपरागत कृषि विकास योजना और पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए मिशन और्गेनिक वैल्यू चेन डवलपमेंट के अंतर्गत किसानों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से 3 साल की अवधि के लिए 15,000 रुपए प्रति हेक्टेयर की सहायता प्रदान की जाती है, जिस में मुख्य रूप से जैव उर्वरक शामिल हैं.

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 25 नवंबर, 2024 को बायोमास मल्चिंग, बहुफसल प्रणाली, मिट्टी की जैविक सामग्री, मिट्टी की संरचना, पोषण में सुधार, मिट्टी की जल धारण क्षमता को बढ़ाने के लिए खेत पर बने प्राकृतिक खेती जैव इनपुट के उपयोग जैसे कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय मिशन (एनएमएनएफ) को भी मंजूरी दी है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने वर्षा जल के बहाव के कारण मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए कई स्थान, विशिष्ट जैव इंजीनियरिंग उपाय, हवा के कटाव को रोकने के लिए रेत के टीलों को स्थिर करने और आश्रय बेल्ट तकनीक और समस्याग्रस्त मिट्टी के लिए सुधार तकनीक विकसित की है, जो मिट्टी में जैविक कार्बन को बढ़ाती है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद 16 राज्यों में 20 केंद्रों के साथ “जैविक खेती पर नैटवर्क परियोजना (एनपीओएफ)” को लागू कर रहा है. इस कार्यक्रम के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने 16 राज्यों के लिए उपयुक्त 68 फसल प्रणालियों के लिए स्थान विशिष्ट जैविक खेती पैकेज विकसित किए हैं, जिन्हें विभिन्न केंद्रीय/राज्य योजनाओं के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है.

‘नमो दीदी ड्रोन योजना’ : किसान महिलाएं बनेंगी सशक्त

भारत सरकार ने साल 2023-24 से 2025-26 तक के लिए 1261 करोड़ रुपए के कुल खर्च के साथ महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को ड्रोन प्रदान करने के लिए केंद्रीय क्षेत्र की ‘नमो ड्रोन दीदी’ योजना को मंजूरी दी है.

इस योजना के तहत कुल 15,000 ड्रोन में से प्रमुख उर्वरक कंपनियों (एलएफसी) ने अपने संसाधनों का उपयोग कर के साल 2023-24 में पहले ही  500 ड्रोन खरीद लिए हैं, जो कि चुने हुए स्वयं सहायता समूह को दे दिए गए हैं. वित्तीय वर्ष 2024-25  में 3,090 एसएचजी को ड्रोन बांटने का लक्ष्य रखा गया है.

यह योजना कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, ग्रामीण विकास विभाग और उर्वरक विभाग, दीनदयाल योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिला स्वयं सहायता समूहों और प्रमुख उर्वरक कंपनियों के संसाधनों को साथ ला कर चलाई  जा रही है.

दीनदयाल योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन प्रगतिशील महिला एसएचजी का चयन कर, ड्रोन पायलट और ड्रोन प्रशिक्षण के लिए महिला एसएचजी के सदस्यों को चुन कर, जिलेवार ड्रोन उपयोग का आकलन कर, मौजूदा अंतराल की पहचान कर, ड्रोन उपयोग की उपलब्धता और भविष्य की जरूरतों, एलएफसी और कीटनाशक कंपनियों आदि के समन्वय में चुने गए महिला एसएचजी को व्यवसाय प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है.

‘नमो दीदी ड्रोन योजना’ के तहत ड्रोन की एक पैकेज के रूप में आपूर्ति की जाती है, जिस में ड्रोन पायलट प्रशिक्षण और इन महिला स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों में से एक के लिए पोषक तत्व और कीटनाशक अनुप्रयोग के लिए कृषि उद्देश्य के लिए ट्रेनिंग भी शामिल है.

इस योजना में स्वयं सहायता समूहों के परिवार के सदस्यों को भी ड्रोन सहायक के रूप में प्रशिक्षित करने का प्रावधान किया गया है. इस योजना  का लक्ष्य स्वयं सहायता समूहों को रोजगार और आजीविका सहायता प्रदान करना है.

स्वयं सहायता समूहों को उपलब्ध कराए गए ड्रोन का उपयोग किसानों को तरल उर्वरकों और कीटनाशकों के छिड़काव के लिए किराए पर सेवाएं प्रदान करने के लिए किया जाएगा, जिस से फसल में कीटनाशक छिड़काव करते हुए किसानों को जिन सेहत व सांस संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उन समस्याओं में कमी आएगी.

करें मशरूम (Mushroom) के स्पान का कारोबार

मशरूम का बीज यानी स्पान फफूंद का एक जाल होता है, जो अपने आधार यानी भूसे वगैरह पर उगता है और मशरूम पैदा करने के लिए तैयार किया जाता है. बोलचाल की भाषा में यह एक ऐसा माध्यम है जो कि मशरूम कवक जाल से घिरा होता है और मशरूम उत्पादन के लिए बीज का काम करता है.

वैसे तो मशरूम की पौध नहीं होती है, फिर भी इस की फसल तैयार करने या कह सकते हैं कि बीज तैयार करने की कई तकनीकें हैं यानी स्पान उत्पादन कई तरह से किया जा सकता है.

एक बीजाणु तकनीक

एक बीजाणु से बीज तैयार करने के लिए ये काम किए जाते हैं:

अच्छे बंद मशरूम का चुनाव करना, साफ रुई से धूल हटाना, 70 फीसदी अल्कोहल से इसे साफ करना और मशरूम के तने के निचले हिस्से को तेज धारदार चाकू से काटना.

उपचारित पेट्रीप्लेट में तार की मदद से तैयार किए गए स्टैंड पर मशरूम खड़ी अवस्था में रख देते हैं. इसे एक गोल मुंह वाले बीकर से ढक दिया जाता है.

इस मशरूम वाली पेट्रीप्लेट को 30 मिनट तक सामान्य तापमान पर रखने के बाद, लेमिनारफलो चैंबर के अंदर रख कर पेट्रीप्लेट से मशरूम फलकायन (स्टैंड सहित) व बीकर को हटाया जाता है. पेट्रीप्लेट को दोबारा दूसरी पेट्रीप्लेट से ढक दिया जाता है.

इस से इकट्ठा बीजाणुओं की संख्या को धीरेधीरे कम किया जाता है जब तक बीजाणुओं की गिनती 10 से 20 फीसदी मिलीलीटर तक नहीं पहुंच जाती है. इस के बाद इसे पिघले हुए सादे माध्यम के साथ पेट्रीप्लेट में उड़ेला जाता है.

पेट्रीप्लेटों को 3-4 दिनों तक बीओडी इनक्यूबेटर में तकरीबन 32 डिगरी सैल्सियस तापमान पर गरम किया जाता है. एकल बीजाणु का चयन बीजाणुओं की बढ़वार को सूक्ष्मदर्शी द्वारा देख कर किया जाता है.

एकल बीजाणु संवर्धन का चयन कर के इसे माल्ट एक्सट्रेक्ट यानी एमईए माध्यम पर फैलाया जाता है और 7 से 10 दिनों तक बीओडी इनक्यूबेटर में गरम किया जाता है.

बहुबीजाणु तकनीक

इस तकनीक में स्पोर प्रिंट से स्पोर उठाने के लिए निवेशन छड़ का छल्ला इस्तेमाल किया जाता है.

छल्ला, जिस में हजारों की तादाद में बीजाणु होते हैं, को पेट्रीप्लेट, जिस में माल्ट एक्सट्रेक्ट या कोई दूसरा कवक माध्यम होता है, के ऊपरी धरातल पर स्पर्श करा दिया जाता है. इन पेट्रीप्लेटों को 4-5 दिनों के लिए बीओडी इनक्यूबेटर में 32 डिगरी सैल्सियस तापमान पर गरम किया जाता है.

फफूंद बढ़ाने की तकनीक

फफूंद उगाने वाली जगह और हाथों को कीटाणुनाशक से और बंद मशरूम को 70 फीसदी एल्कोहल से साफ करना चाहिए.

उपचारित की हुई अंडाकार मशरूम को तेजधार और उपचारित चाकू से 2 बराबर भागों में काट दिया जाता है.

इन कटे टुकड़ों के उस स्थान से, जहां तना व छत्रक एकदूसरे से जुड़े होते हैं, ऊतक के छोटेछोटे टुकड़े निकालते हैं और इन टुकड़ों को माल्ट एक्सट्रेक्ट अगर की प्लेट पर रखा जाता है.

इन प्लेटों को 4-5 दिनों तक 32 डिगरी सेल्सियस तापमान पर बीओडी इनक्यूबेटर या कमरे में सामान्य तापमान पर गरम किया जाता है.

कवक जाल फैले इस माध्यम से छोटेछोटे टुकड़े काट कर इन्हें दूसरे माल्ट एस्सट्रेक्ट अगर पर रख दिया जाता है. इस के बाद इन्हें इनक्यूबेटर में 32 डिगरी सेल्सियस तापमान पर 4-5 दिनों के लिए गरम किया जाता है.

इन तकनीकों को सीधे स्पान माध्यम में इस्तेमाल किया जाता है.

मशरूम (Mushroom)माध्यम तैयार करना

बीज तैयार करने के आधार में बहुत से ऐसे माध्यम हैं, जिन पर मशरूम का बीज बनाया जाता है. ऐसे माध्यमों को तैयार करने की विधियां इस तरह हैं:

पीडीए माध्यम : इसे आलू ग्लूकोज अगर कहते हैं. इस के लिए  200 ग्राम आलुओं को धोने, छीलने व काटने के बाद 1000 मिलीलीटर पानी में खाने लायक नरम होने तक उबाला जाता है.

इसे साफ कपड़े से छान लिया जाता है और इस छने पानी को एक सिलेंडर में इकट्ठा किया जाता है. इस में ताजा उबाला पानी मिला कर 1000 मिलीलीटर तक बना लिया जाता है.

बाद में इस में 20 ग्राम शर्करा और 20 ग्राम अगर मिलाया जाता है और अगर के पूरी तरह से घुल जाने तक उबाला जाता है.

इस माध्यम को 10 मिलीलीटर क्षमता वाली परखनली या ढाई सौ मिलीलीटर क्षमता के फ्लास्क में रख दिया जाता है और पानी न सोखने वाली रुई से उन के मुंह को बंद कर दिया जाता है.

इस के बाद इन्हें 121 डिगरी सेल्सियस तापमान पर उपचारित किया जाता है.

गरम टैस्ट ट्यूब को टेढ़ा रखा जाता है और इन्हें अगले 24 घंटों तक ठंडा होने के लिए रखा जाता है.

माल्ट एक्सटे्रेक्ट अगर माध्यम : जौ का अर्क 35 ग्राम, अगर 20 ग्राम, पेप्टोन 5 ग्राम होना चाहिए.

इन चीजों को 1000 मिलीलीटर गरम पानी में मिलाना चाहिए. अब इसे लगातार एक समान आंच पर रख कर अगर के पूरी तरह घुलने तक हिलाएं.

इस माध्यम को परखनली या फ्लास्कों में डाला जाता है और पानी नहीं सोखने वाली रुई से उन के मुंह को बंद कर दिया जाता है.

अब इन्हें 121 डिगरी सेल्सियस तापमान पर उपचारित किया जाता है.

गरम परखनलियों को तिरछा रखा जाता है या माध्यम को उपचारित पेट्रीप्लेटों में डाल दिया जाता है. अब इन्हें कमरे में सामान्य तापमान पर ठंडा किया जाता है.

स्पान माध्यम

बहुत से पदार्थ अकेले या सभी को मिला कर स्पान माध्यम तैयार किया जाता है. धान का पुआल, ज्वार, गेहूं व राई के दाने, कपास, इस्तेमाल की हुई चाय की पत्तियां वगैरह इस के लिए इस्तेमाल की जाती हैं.

अनाज स्पान : इस में गेहूं, ज्वार, राई का इस्तेमाल किया जाता है. 100 किलोग्राम दानों को सब से पहले 150 लीटर पानी में 20-30 मिनट तब उबाला जाता है. इन उबले हुए दानों को छलनी पर फैला कर 12 से 16 घंटों तक छाया में सुखाया जाता है.

सूखे हुए दानों में 2 किलोग्राम चाक पाउडर व 2 किलोग्राम जिप्सम को अच्छी तरह मिला लें. दानों को ग्लूकोज की बोतलों में दोतिहाई हिस्से तक या फिर 100 गेज मोटे पौलीप्रोपेलीन के लिफाफों में भर दिया जाता है.

लिफाफों में भी दाने दोतिहाई भाग तक ही भरने चाहिए. अब इन के मुंह को पानी न सोखने वाली रुई के ढक्कन से बंद कर दिया जाता है. ढक्कन न ज्यादा ढीला और न ही ज्यादा कसा हुआ होना चाहिए.

स्पान माध्यम से भरी हुई ग्लूकोज की बोतलों या पौलीप्रोपेलीन के लिफाफों को 126 डिगरी सेल्सियस तापमान पर उपचारित किया जाता है. अब इन्हें लेमिनार फ्लो में ताजा हवा में ठंडा होने के लिए रख दिया जाता है.

कवक जाल संवर्धन को निवेशन छड़ की सहायता से इन बोतलों में डाल दिया जाता है. बोतलों को 2 हफ्ते के लिए गरम किया जाता है. अब स्पान इस्तेमाल के लिए तैयार है.

पुआल स्पान : सब से पहले धान के पुआल को 2-4 घंटे तक पानी में भिगोया जाता है, फिर इसे साफ किया जाता है और ढाई से 5 सेंटीमीटर तक लंबे टुकड़ों में काटा जाता है.

इस में चाक पाउडर 2 फीसदी व चावल का चोकर 2 फीसदी की दर से मिलाया जाता है और इसे चौड़े मुंह वाली ग्लूकोज की बोतल या पौलीप्रोपेलीन के 100 गेज मोटाई वाले लिफाफों में भर दिया जाता है. बोतलों व लिफाफों के मुंह को रुई के ढक्कन से बंद कर दिया जाता है.

स्पान माध्यम से भरी बोतल या लिफाफों को 126 डिगरी सेल्सियस तापमान पर उपचारित किया जाता है या 22 पीएसआई दबाव पर 2 घंटे के लिए रखा जाता है.

स्पान माध्यम को ठंडा करने के बाद लेमिनार फ्लो चैंबर में रख कर निवेशन छड़ की सहायता से कवक जाल संवर्धन इन में डाला जाता है.

बोतलों या लिफाफों को 2 हफ्ते के लिए गरम करते हैं.

चायपत्ती का स्पान : इस्तेमाल की हुई चाय की पत्ती को इकट्ठा कर के धोया जाता है, ताकि इस में कोई मलवा वगैरह न रहे. फिर निथारा जाता है. इस में 2 फीसदी की दर से चाक पाउडर मिला दें.

इस के बाद सामग्री को बोतलों या पौलीप्रोपेलीन के लिफाफों में भरा जाता है. बाकी के काम अनाज स्पान व पुआल स्पान बनाने की तरह ही किए जाते हैं.

इस तरह कपास के कचरे से स्पान माध्यम तैयार किया जाता है.

खादभूसी स्पान : घोड़े की लीद व कमल के बीज का छिलका समान मात्रा में मिलाए जाते हैं. इस मिश्रण को पानी में भिगोया जाता है. खाद की ढेरी 1 मीटर ऊंचाई तक पिरामिड के आकार में बनाई जाती है. फिर इसे 4-5 दिनों के लिए छोड़ दिया जाता है. ढेरी को तोड़ा जाता है और जरूरत पड़ने पर पानी मिला कर फिर से ढेर बना दें.

मिश्रण को ग्लूकोज की बोतलों या एल्यूमिनियम के हवाबंद डब्बों में भर कर उपचारित किया जाता है.

मिश्रण ठंडा होने के बाद ही इस में मशरूम के कवक जाल को डाला जाता है और खाद को 2 हफ्ते के लिए गरम करते हैं या जब तक कि स्पान तैयार न हो जाए.

मशरूम (Mushroom)

बीज तैयार करते समय बरतें कुछ सावधानियां

*             माध्यम जैसे धान की पुआल या बेकार कपास वगैरह को इतना ज्यादा भी न भिगोएं कि पानी बोतलों या बैगों के तल पर इकट्ठा हो जाए. ऐसे में कवक जाल सही तरह से नहीं फैलेगा.

*             बोतलों या बैगों को इतना कस कर बंद नहीं करना चाहिए कि हवा बाहर न आ सके और भाप अच्छी तरह से अंदर न घुसे.

*             केवल साफ रुई से बने ढक्कनों, डाटों का ही इस्तेमाल करना चाहिए.

*             ढक्कन या डाट के नीचे स्तर व माध्यम के बीच कम से कम 3-4 सेंटीमीटर खाली जगह होनी चाहिए.

*             मेज व सामग्री को उपचारित करना चाहिए.

*             हाथों को साबुन से साफ करना चाहिए.

*             केवल शुद्ध स्पान का ही इस्तेमाल करना चाहिए.

*             कवक डालने के बाद बोतलों व बैगों के मुंह को एल्यूमिनियम फाइल से ढकना चाहिए.

स्पान का स्टोरेज

पुआल मशरूम की बढ़वार के लिए ज्यादातर तापमान 30-35 डिगरी सेल्सियस होना चाहिए. अगर तापमान 45 डिगरी सेल्सियस से बढ़ाया जाए या 15 डिगरी सेल्सियस तक घटाया जाए तो कवक जाल में इजाफा नहीं होता है. इस की ज्यादातर प्रजातियां 15 डिगरी तापमान पर जीवित रह सकती हैं.

स्पान माध्यम में वाल्वेरिएला वाल्वेसिया का कवक जाल पूरी तरह फैलने के बाद यह इस्तेमाल के लिए तैयार होता है. अगर इस का इस्तेमाल नहीं करना हो तो इसे इनक्यूबेटर से निकाल लिया जाता है और कम तापमान पर भंडारण किया जाता है ताकि बीज मर न पाए.

15-20 डिगरी सेल्सियस तापमान पर कवक जाल की बढ़वार रुक जाती है और कवक जाल को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता. इसे लंबे समय तक भंडारण किया जा सकता है.

संतरा उत्पादक किसान योमदेव कालबांडे की सफलता की कहानी

पांढुरना : उद्यानिकी फसलों के उत्पादन में आधुनिक खेती पद्धतियों ने किसानों को लखपति बना दिया है. पांढुरना जिले के ग्राम हिवरा खंडेरवार के किसान योमदेव कालबांडे ने भी परंपरागत खेती को छोड़ कर आधुनिक तकनीक अपनाई, जिस से उन की आमदनी बढ़ गई.

उद्यानिकी विभाग की तकनीकी सलाहों के आधार पर उन्हें संतरे और मौसंबी की खेती से 15 लाख रुपए की शुद्ध आय प्राप्त हुई है. किसान के द्वारा उन्नत तकनीकी से उद्यानिकी खेती करने पर उन्हें एनआरसीसी नागपुर के द्वारा “उत्कृष्ट संतरा उत्पादक किसान” से सम्मानित किया गया है.

किसान योमदेव कालबांडे पहले 40 हेक्टेयर कृषि भूमि में सदियों से चली आ रही परंपरागत खेती करते थे, लेकिन उद्यानिकी विभाग के मार्गदर्शन में उन्हें नया प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया गया, जिस से उन्होंने 25 हेक्टेयर भूमि में उद्यानिकी विभाग के विशेषज्ञों की सलाह पर संतरे और मौसंबी के 7,900 पौधे लगाए. इन पौधों को लगाने और उन की देखभाल करने में उन्होंने आधुनिक तकनीकों का भरपूर उपयोग किया. इन पौधों को लगाने और अन्य खर्चे पर उन्होंने लगभग 5 लाख रुपए खर्च किए.

अब किसान योमदेव कालबांडे का बागान फल देने लगा है. उन के बागान में 500 से अधिक पौधे फल देने लगे हैं और इन से उन्हें लगभग 20 लाख रुपए की आय हुई है.

इस तरह उद्यानिकी विभाग की तकनीकी सलाह से खेती करने पर उन्हें लगभग 15 लाख रुपए  का खालिस मुनाफा हुआ है.

किसान योमदेव कालबांडे की इस सफलता को देख कर दूसरे किसान भी आधुनिक खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं. उन की मेहनत और लगन को देखते हुए और किसान द्वारा उन्नत तकनीकी से उद्यानिकी खेती करने पर एनआरसीसी, नागपुर ने उन्हें “उत्कृष्ट संतरा उत्पादक किसान” के सम्मान से सम्मानित किया है.

एक ऐसा गांव, जिस के हर घर में हैं दुधारू पशु

सागर : सागर जिले में स्थित विश्वविद्यालय की घाटी पर बसा ग्राम रैयतवारी भैंसपालन और दूध उत्पादन के लिए जाना जाता है. दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कलक्टर संदीप जीआर के मार्गदर्शन में संचालित मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित महिला समूहों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.

इसी क्रम में इस गांव में पशुपालन के साथसाथ बकरीपालन को भी प्राथमिकता दी जा रही है. यहां के अधिकांश घरों में कम से कम 2 से 3 बकरियां पाली जाती हैं. बड़े पशुओं की तुलना में बकरीपालन पशुपालकों के लिए माली रूप से काफी फायदेमंद है. बकरीपालन मजदूर, सीमांत और लघु किसानों में भी काफी लोकप्रिय है.

साल 2019 से राखी स्वयं सहायता समूह से जुड़ी कांती यादव समूह से 50,000 रुपए और 80,000 रुपए का पशुपालन लोन ले चुकी हैं. इन के पास आज 25 से अधिक बकरियां पल रही हैं, यद्यपि उन के पास भैंस और गाय भी हैं.

इस के अलावा शांति यादव, पति किशोरी यादव साल 2018 से दीपक स्वसहायता समूह की सदस्य हैं. उन्होंने समूह से 35,000 रुपए का लोन लिया है, जिस से उन्होंने बकरीपालन की शुरुआत की.

इन दिनों उन के पास 15 बकरियां, 3 बकरे, 4 बकरी के बच्चे और दुधारू गाय हैं. वे बताती हैं कि बकरेबकरियों को पाल कर वे स्थानीय खरीदारों को बेच देती हैं. बड़े पशुओं के साथसाथ बिना अतिरिक्त मेहनत के बकरीपालन का काम आसानी से हो जाता है. इस से मिलने वाली खाद खेतों के लिए बहुपयोगी होती है. वयस्क नर के विक्रय के लिए बाजार आसानी से मिल जाता है. इस के अलावा कई बार कमजोर और अन्य उत्पादक बकरियां भी बेच दी जाती हैं. अब तक वे 48,000 रुपए की बकरियां बेच चुकी हैं .

इसी समूह की हरवो देवी यादव का परिवार पशुपालन पर ही पल रहा है. उन के परिवार में 3 बेटियां और 2 बेटे हैं. 2 बेटियों की शादी के बाद पूरा परिवार इसी काम में लगा है. उन्होंने समूह से पहले 25,000 रुपए और बाद में 50,000 रुपए का लोन लिया, जिस से गाय और बकरियां खरीदीं, कुछ पैसे खेती में भी लगाए. 35,000 रुपए में 3 बकरे बेचने के बाद इन के पास अब 8 दुधारू पशु हैं.

दुधारू गाय से रोज का 6 लिटर दूध भी बेचा जाता है, जिस से उन्हें दूध से अतिरिक्त आमदनी प्राप्त होती है. कम आय वर्ग और छोटी जोत वाले किसानों के लिए बकरीपालन एक आमदनी पाने का एक उत्तम और सरल उपाय है.

शिमला मिर्च की फसल से हो रहा लाखों रुपए का मुनाफा

एकीकृत बागबानी विकास मिशन (एमआईडीएच) बागबानी क्षेत्र के समग्र विकास के लिए केंद्र सरकार की एक प्रायोजित योजना है. इस योजना के तहत फलसब्जियां, जड़कंद वाली फसलें, मशरूम, मसाले, फूल, सुगंधित पौधे, नारियल, काजू, कोको और बांस जैसी बागबानी फसलों को बढ़ावा दिया जाता है.

इस योजना के अंतर्गत ड्रिप इरीगेशन सहप्लास्टिक मल्चिंग का उपयोग कर के सागर जिले के ग्राम खिरियाताज के रहने वाले करन पटेल ने शिमला मिर्च की खेती कर के लाखों रुपए का मुनाफा कमाया और खेती को लाभ का धंधा बना लिया है.

करन पटेल बताते हैं कि पहले हम गेहूं की खेती किया करते थे जिस से हमारी रोजीरोटी का ही गुजरबसर हो पाता था. न तो भविष्य के लिए कोई पैसा जमा कर पाते थे और न ही परिवार को कोई सुखसुविधा दे पाते थे. मेहनत के बराबर मुनाफा भी नहीं हो पाता था.

तब उद्यानिकी विभाग के लोगों ने मुझे ड्रिप इरीगेशन सहप्लास्टिक मल्चिंग खेती करने की सलाह दी और एकीकृत बागबानी विकास मिशन में मिलने वाले फायदों की जानकारी दी. तब मैं ने मल्चिंग और ड्रिप सिस्टम का इस्तेमाल कर शिमला मिर्च की खेती करना शुरू किया, जिस से मुझे मेहनत के मुकाबले खेती से लाखों रुपए का मुनाफा हुआ.

सागर जिले के प्रगतिशील किसान करन पटेल ग्राम खिरियाताज के रहने वाले हैं. उन्होंने बताया  कि उद्यानिकी की उच्च तकनीकी ड्रिप एवं मल्चिंग का उपयोग करते हुए उन के द्वारा शिमला मिर्च, पीकाडोर, टमाटर, आलू, मिर्च की खेती की जा रही है. इस वर्ष उन को टमाटर और शिमला मिर्च का दाम अधिक होने से प्रति एकड़ आय में अधिक मुनाफा हुआ है.

हाइड्रोपोनिक खेती को दें बढ़ावा

सागर जिला कलक्टर संदीप जीआर ने उद्यानिकी विभाग के अंतर्गत उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों को हाइड्रोपोनिक खेती व माइक्रोग्रीन्स की खेती को बढावा देने के लिए निर्देशित किया, जहां हाइड्रोपोनिक खेती में पौधों को मिट्टी के बजाय पानी आधारित पोषक घोल में उगाया जाता है, वहीं माइक्रोग्रीन्स छोटे पौधों की पत्तियां या तने होते हैं, जिन्हें 1 से 3 सप्ताह के बीच में काटा जाता है. ये पौधे विटामिन, मिनरल और एंटीऔक्सीडेंट से भरपूर होते हैं और इन्हें सलाद, सैंडविच, स्मूदी और अन्य व्यंजनों में उपयोग किया जा सकता है.

उपसंचालक, उद्यानिकी, पीएस बडोले ने कलक्टर संदीप जीआर को अवगत कराया कि किसान  करन पटेल को पीडीएमसी योजना के अंतर्गत ड्रिप और अटल भूजल योजना के अंतर्गत सब्जी क्षेत्र विस्तार, वर्मी बेड एवं शेडनेट हाउस का लाभ दिया गया है.

पाले से फसल को कैसे बचाएं

आने वाले दिनों में सर्दी का प्रकोप बढ़ने से फसल में पाला गिरने की पूरी संभावना होती है, जिस से फसल को खासा नुकसान होने का अंदेशा रहता है. इसलिए जरूरी है कि किसानों को पाले से फसल सुरक्षा के उपाय जरूर करने चाहिए.

अनेक कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा समयसमय पर पाले से फसल बचाव को ले कर एडवाइजरी जारी होती है. उन के अनुसार, किसानों को काम करना चाहिए. अभी हाल ही में किसान कल्याण एवं कृषि विभाग, पन्ना द्वारा जिले के किसानों को पाले की स्थिति में फसल के बचाव के संबंध में आवश्यक सलाह जारी की गई है.

मौसम विभाग द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार, प्रदेश के कई जिलों में तापमान तेजी से कम होने की संभावना है. तापमान में होने वाली इस गिरावट का असर फसलों पर पाले के रूप में होने की आशंका रहती है.

पाले की स्थिति के कारण फसलों को नुकसान होने की संभावना के दृष्टिगत विभाग द्वारा सलाह जारी की गई है. किसानों को सुझाव दिए गए हैं कि रात में खेत की मेंडों पर कचरा और खरपतवार आदि जला कर विशेष रूप से उत्तरपश्चिमी छोर से धुआं करें, जिस से धुएं की परत फसलों के ऊपर आच्छादित हो जाए.

फसलों में खरपतवार नियंत्रण करना भी आवश्यक है, क्योंकि खेतों में उगने वाले अनावश्यक और जंगली पौधे सूरज की गरमी जमीन तक पहुंचने में रुकावट पैदा करते हैं. इस तरह से तापमान के असर को कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है.

इसी तरह शुष्क भूमि में पाला पड़ने का जोखिम अधिक होता है, इसलिए फसलों में स्प्रिंकलर के माध्यम से हलकी सिंचाई करनी चाहिए. थायोयूरिया की 500 ग्राम मात्रा का 1,000 लिटर पानी में घोल बना कर 15-15 दिन के अंतर से छिड़काव भी पाले से बचाव के लिए उपयोगी उपाय है.

इस के अलावा 8 से 10 किलोग्राम सल्फर डस्ट प्रति एकड़ का भुरकाव अथवा बेटेवल या घुलनशील सल्फर 3 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करने से भी पाले के असर को नियंत्रित किया जा सकता है.

ड्रैगन फ्रूट परियोजना : चार प्रजातियों का पौधरोपण

भागलपुर : सबौर कृषि विश्वविद्यालय बिहार के उद्यान में ड्रैगन फ्रूट परियोजना के अंतर्गत 4 प्रजातियों का पौधरोपण किया गया. ये प्रजातियां अपने रंग एवं पोषक तत्वों के आधार पर अपनी अलग पहचान बनाती हैं.

प्रमुख रूप से लाल छिलका, सफेद गूदा, जो कि राष्ट्रीय अजैविक स्ट्रेस प्रबंधन संस्थान, बारामती, महाराष्ट्र से लाया गया है. गुलाबी छिलके, बैगनी गूदे वाली प्रजाति को केंद्रीय द्वितीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अंडमान व निकोबार से लाया गया है. इस के अतिरिक्त पीला छिलका और सफेद गूदे वाली प्रजाति को कांधल एग्रो फार्म लुधियाना से लाया गया है.

परियोजना के अंतर्गत इन चारों प्रजातियों का मूल्यांकन कृषि जलवायु क्षेत्र जोन 3-। के अंतर्गत किया जाना है. वर्तमान समय में बढ़ती हुई कुपोषण की समस्या को देखते हुए ड्रैगन फ्रूट अपने विशिष्ट पोषक तत्वों जैसे प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, लोहा एवं फास्फोरस के समावेश होने से एक उत्तम फल है, जो कुपोषण की समस्या को कम करने में लाभकारी सिद्ध होगा.

मौजूदा दौर में खेतीकिसानी की हालत

कहा जाता है कि किसान किसी भी देश की रीढ़ होते हैं और उन की दशा ही देश की दिशा सुनिश्चित करती है. जिस देश में किसानों की बदहाली होती है, वह देश कभी विकसित हो ही नहीं सकता. आज यही स्थिति देश के विभिन्न राज्यों में देखने को मिल रही है.

किसानों को बैंकों से लिया कर्ज चुकाने और दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के लिए नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं. इसी के चलते कई किसान अपनी जान की ही बाजी लगा दे रहे हैं. उन के पास इस के अलावा कोई दूसरा तरीका ही नहीं है.

किसान बैंकों से बीज, ट्रैक्टर व ट्यूबवेल वगैरह खरीदने के लिए कर्ज लेते हैं, लेकिन फसल चौपट होने पर वे कर्ज का भुगतान नहीं कर पाते हैं. ऐसे में वे मजबूरन आत्महत्या तक कर लेते हैं. कंगाली और बदहाली के कारण बैंक का कर्ज चुकाना तो दूर वे अपने परिवार का भरणपोषण भी नहीं कर पाते.

यदि किसानों के हालात ऐसे ही बदतर होते रहे तो एक दिन वे खेती करना ही बंद कर देंगे, तब देश में एक भयावह स्थिति पैदा हो जाएगी. इस हालत में दोषी किसान भी  हैं, क्योंकि उन में एकजुटता का अभाव अकसर देखने को मिलता है. इसी का फायदा सरकार उठाती है और वह उन के हितों की अनदेखी कर के उन की मांगों को दरकिनार कर देती है. इन्हीं सब कारणों से किसान तंगहाली से जूझ रहे हैं.

जरूरत है कि किसानों को सही मात्रा में कर्ज व सहायता मुहैया कराई जाए ताकि वे खेतीबारी की दशा सुधार कर के सही तरह से खाद्यान्न उत्पादन कर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकें.

लेकिन ये योजनाएं अधिकारियों और बिचौलियों की कमाई का जरीया बन जाती हैं.

आज के दौर में खेती का अर्थशास्त्र किसानों के खिलाफ है. मजदूरों और छोटे किसानों की बात तो दूर रही, मझोले और बड़े किसानों के सामने भी यह सवाल खड़ा है कि वे किस तरह बैंक का कर्ज चुकाएं और कैसे अपनी दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करें.

हर राज्य में किसानों की हालत एक जैसी है. सरकारें उन्हें झूठा दिलासा दे कर चुप करा देती हैं. आज खेती घाटे का सौदा साबित हो रहा है, इसीलिए छोटेबड़े सभी किसान परेशान हैं कि किस तरह अपनी आजीविका चलाएं. दुनिया में सब से ज्यादा विकास वाला देश होने के बावजूद लगातार हमारी विकास दर में गिरावट आ रही है. साल 1990 में कृषि की जो विकास दर 2-8 फीसदी थी, वह साल 2000-2010 के बीच घट कर 2.4 फीसदी रह गई और वर्तमान दशक में तो यह मात्र 2.1 फीसदी ही है.

खराब फसलों की वजह से किसानों की हालत काफी दयनीय रहती है. यदि सूखे की वजह से खेती खराब हो गई तो उन की जो लागत लगी है, उस के चलते घाटा होना तय है. सरकार अपने वादे के मुताबिक सही समर्थन मूल्य किसानों को नहीं दे पाती, जिस के कारण उनहें अपनी उपज को औनेपौने दामों पर बेचना पड़ता है. अकसर ज्यादा उत्पादन होने पर भंडारण का सही इंतजाम न होने से अनाज पड़ापड़ा सड़ जाता है.

केंद्र और राज्य सरकारों की कर्जमाफी योजना किसानों के लिए कारगर नहीं है, बल्कि यह तो खतरनाक साबित हो सकती है. यह योजना किसानों की समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं है. इस से उन किसानों के लिए मुश्किल हो सकती है, जिन्हें कर्जमाफी नहीं मिली. इस से तमाम किसानों की दिमागी हालत खराब हो सकती है और वे डिप्रेशन की हालात में आ सकते हैं.

खेतीकिसानी के प्रति युवाओं में जज्बा पैदा करने के लिए कृषि को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करना जरूरी है. कृषि को आधुनिक और परंपरागत तरीकों से भी जोड़ने की जरूरत है. साथ ही समयसमय पर इस में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना भी जरूरी है.