मत्स्यपालन और पशुधन की योजनाओं से किसान उठाएं लाभ

नई दिल्ली : मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार वित्तीय वर्ष 2020-21 से 5 सालों के लिए मात्स्यिकी क्षेत्र में 20050 करोड़ रुपए के निवेश के साथ एक प्रमुख योजना “प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना यानी पीएमएमएसवाई)” को कार्यान्वित कर रही है. पीएमएमएसवाई योजना का मुख्य उद्देश्य सतत(सस्टेनेबल), जिम्मेदार, समावेशी (इन्क्लूसिव) और उचित तरीके से मात्स्यिकी क्षमता का उपयोग करना है और मत्स्य उत्पादन विधियों को बढ़ावा देना है. यह योजना कर्नाटक सहित सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में लागू की जा रही है.

पीएमएमएसवाई के तहत बीते 4 सालों और वर्तमान वित्त वर्ष के दौरान, मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने कुल 1056.34 करोड़ रुपए की लागत से कर्नाटक सरकार के मात्स्यिकी विकास प्रस्ताव को स्वीकृति दी है.

मत्स्यपालन में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए मंजूर गतिविधियों में गुणवत्तापूर्ण बीज आपूर्ति के लिए फिश हैचरी, मीठे पानी और खारे पानी के एक्वाकल्चर में क्षेत्र विस्तार, प्रौद्योगिकी संचारित कल्चर प्रथाएं जैसे रीसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम, बायोफ्लोक इकाइयां, केज कल्चर, सीवीड फार्मिंग, ओर्नामेंटल ब्रीडिंग और रियरंग यूनिट शामिल हैं.

तटीय समुद्री क्षेत्रों में पीएमएमएसवाई के तहत फिश स्टाक की बहाली के लिए कर्नाटक सहित सभी तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में आर्टिफिशियल रीफ की स्थापना के लिए भी मंजूरी दी गई है. मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र/इंडियन ऐक्सक्लूसिव इकौनोमिक जोन (ईईजेड) में मानसून/मत्स्य प्रजनन अवधि के दौरान एकसमान मत्स्यन पर प्रतिबंध (यूनिफौम फिशिंग बैन) भी लागू कर रहा है और संरक्षण व समुद्री सुरक्षा कारणों से कर्नाटक सहित तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा प्रादेशिक जल (टेरिटोरियल वाटर) के भीतर इस तरह के फिशिंग बैन को लागू किया गया है.

इस के अलावा वित्तीय वर्ष 2023-24 से 2026-27 तक 4 सालों के लिए मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि योजना (पीएम-एमकेएसवाई) नामक एक उपयोजना के कार्यान्वयन के लिए स्वीकृति दे दी है. इस योजना का उद्देश्य मात्स्यिकी क्षेत्र की मूल्यश्रृंखला दक्षता में सुधार के लिए निष्पादन अनुदान के माध्यम से मात्स्यिकी और एक्वाकल्चर सूक्ष्म उद्यमों को बढ़ावा देना है.

पीएमएमएसवाई के तहत राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एनएफडीबी) के माध्यम से जल कृषि के अन्य क्षेत्रों में विभिन्न कृषि पद्धतियों में विभिन्न क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिस में गहन (इंटेंसिव) मीठे पानी की जल कृषि, खारे पानी में जल कृषि, शीत जल मात्स्यिकी, सजावटी मत्स्यपालन, मत्स्य प्रसंस्करण और विपणन, प्रजाति विशिष्ट हैचरी और प्रजाति विशिष्ट कल्चर (कृषि) प्रैक्टिस शामिल हैं.

एनएफडीबी ने बताया कि पीएमएमएसवाई के तहत अब तक कर्नाटक में 141 प्रशिक्षण और आउटरीच गतिविधियों को वित्त प्रदान किया गया है, जिस में 10,150 प्रतिभागी शामिल हैं और 121.15 लाख रुपए की धनराशि मंजूर की गई है.

पशुपालन एवं डेयरी विभाग, भारत सरकार ने डेयरी सहकारी समितियों सहित डेयरी क्षेत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए कई पहल की हैं. यह सूचित किया गया है कि साल 2014 में राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (एनडीडीपी) योजना की शुरुआत के बाद से कर्नाटक में 16 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई, जिन की कुल परियोजना लागत 408.39 करोड़ रुपए है. स्वीकृत परियोजनाओं का कार्यान्वयन कर्नाटक सहकारी दुग्ध विपणन संघ लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है.

इस के अलावा साल 2021-22 से 2025-26 तक, पशुपालन एवं डेयरी विभाग, भारत सरकार 500 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ अंब्रेला योजना “इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट फंड” के एक हिस्से के रूप में डेयरी गतिविधियों में लगे डेयरी सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों (एसडीसीएफपीओ) को सहायता देने की योजना भी लागू कर रही है.

इस योजना को राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के माध्यम से लागू किया जा रहा है, जिस का मुख्य उद्देश्य गंभीर रूप से प्रतिकूल बाजार स्थितियों या प्राकृतिक आपदाओं के कारण संकट से निबटने के लिए सौफ्ट वर्किंग कैपिटल लोन (आसान कार्यशील पूंजी ऋण) दे कर के डेयरी गतिविधियों में लगे सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों की सहायता करना है. यह योजना कर्नाटक में भी लागू की जा रही है.

इस के अलावा फरवरी, 2024 से डेयरी प्रोसैसिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट फंडा (डीआईडीएफ) का पुनर्गठन किया गया है और इसे एनिमल हसबंडरी इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट फंड (एएचआईडीएफ) में एकीकृत किया गया है. इस संशोधित योजना के तहत सहकारी समितियां और प्राइवेट डेयरी प्लांट्स दोनों ही 3 फीसदी हर साल की दर से ब्याज सहायता प्राप्त करने के पात्र हैं. साथ ही, निजी संस्थाओं की तरह सहकारी समितियां भी अब इस योजना के अंतर्गत अर्हता प्राप्त किसी भी ऋण देने वाली संस्था से ऋण प्राप्त कर सकती हैं.

अनाज भंडारण (Grain Storage) में दुनियाभर में सब से आगे होगा भारत

नई दिल्ली : सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सब से बड़ी अनाज भंडारण योजना की पायलट परियोजना के अंतर्गत राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी), राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) और नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विसेज (नैबकौंस) के सहयोग से 11 राज्यों महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, असम, तेलंगाना, त्रिपुरा और राजस्थान में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) स्तर पर इन की 11 पैक्स में गोदामों को बनाया गया है. इन बने 11 भंडारणों में से 3 को महाराष्ट्र, राजस्थान और तेलंगाना राज्य में पैक्स ने स्वयं के उपयोग के लिए रखा है. इस के अलावा 3 भंडारण को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात राज्य में राज्य/केंद्रीय एजेंसियों द्वारा किराए पर लिया गया है.

इस पायलट परियोजना को आगे बढ़ा दिया गया है और सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सब से बड़ी अनाज भंडारण योजना के तहत गोदामों के बनाने के लिए 21 नवंबर, 2024 तक देशभर में 500 से अधिक अतिरिक्त पैक्स की पहचान की गई है.

इस योजना के तहत कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ), कृषि विपणन अवसंरचना योजना (एएमआई) आदि जैसी भारत सरकार की विभिन्न मौजूदा योजनाओं के सम्मिलन के जरीए पैक्स को सब्सिडी और ब्याज सहायता दी जाती है. एआईएफ योजना के तहत 2 करोड़ रुपए तक की परियोजना के लिए 3 फीसदी ब्याज सहायता प्रदान की जाती है, जिस में ऋण चुकाने की अवधि 2+5 साल होती है. इस के अलावा एएमआई योजना के तहत भंडारण इकाइयों के बनाने के लिए पैक्स को 33.33 फीसदी सब्सिडी दी जाती है.

इस के अलावा, एएमआई योजना के तहत पैक्स के लिए उत्पाद की उत्पादन लागत और उस के विक्रय मूल्य के बीच के अंतर की धनराशि (मार्जिन मनी) की आवश्यकता 20 फीसदी से घटा कर 10 फीसदी कर दी गई है. पूंजीगत लागत पर भंडारण अवसंरचना, जिस में बाउंड्री वाल, ड्रेनेज जैसी सहायक चीजें शामिल हैं) के लिए सहायता के अलावा अब पैक्स को सहायक चीजों पर अतिरिक्त सब्सिडी दी जाती है, जो गोदाम घटक की कुल स्वीकार्य सब्सिडी के अधिकतम 1/3 या वास्तविक जो भी कम हो, तक सीमित है.

पायलट परियोजना के अंतर्गत 11 राज्यों की 11 प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों में कुल 9,750 मीट्रिक टन भंडारण क्षमता वाले 11 भंडारण गोदामों को बनाने का काम पूरा हो चुका है.

ग्रामीण महिलाएं (Rural Women): सहकारिता क्षेत्र में कितनी हिस्सेदारी और क्या हैं योजनाएं

नई दिल्ली : राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस के अनुसार, 28 नवंबर, 2024 तक देश में 25,385 महिला कल्याण सहकारी समितियां पंजीकृत हैं. इस के अलावा देश में 1,44,396 डेयरी सहकारी समितियां हैं, जहां काफी तादाद में ग्रामीण महिलाएं इस क्षेत्र में कार्यरत हैं.

सरकार ने सहकारी समितियों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहल की हैं, जिस में बहुराज्य सहकारी समितियां (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 को एमएससीएस (संशोधन) अधिनियम, 2023 के माध्यम से संशोधित किया गया, जिस में एमएससीएस के बोर्ड में महिलाओं के लिए 2 सीटों के आरक्षण के लिए एक विशिष्ट प्रावधान किया गया, जिसे अनिवार्य कर दिया गया है. इस से सहकारी क्षेत्र में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने का रास्ता साफ होगा.

वहीँ सहकारिता मंत्रालय द्वारा पैक्स के लिए मौडल उपनियम तैयार किए गए हैं और देशभर के राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अपनाए गए हैं. इस में पैक्स के बोर्ड में महिला निदेशकों की जरूरत को अनिवार्य किया गया है. इस से 1 लाख से अधिक पैक्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व और उन के द्वारा निर्णय लेना सुनिश्चित हो रहा है.

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी), सहकारिता मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक सांविधिक निगम है, जो पिछले कई सालों से महिला सहकारी समितियों की सामाजिकआर्थिक स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिस से उन्हें व्यवसाय मौडल आधारित गतिविधियां अपनाने में सक्षम बनाया जा सके.

एनसीडीसी विशेष रूप से महिला सहकारी समितियों के लिए निम्नलिखित योजनाओं को लागू कर रहा है :

स्वयंशक्ति सहकारी योजना : इस योजना के अंतर्गत महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को सामान्य/सामूहिक सामाजिकआर्थिक गतिविधियों के लिए पर्याप्त बैंक ऋण की सुविधा के लिए 3 साल तक के लिए कार्यशील पूंजी ऋण प्रदान किया जाता है.

नंदिनी सहकार : इस योजना के तहत महिला सहकारी समितियों को 5-8 साल तक की अवधि के लिए सावधि ऋण प्रदान किया जाता है, जिस में सावधि ऋण पर 2 फीसदी तक की ब्याज छूट दी जाती है. इस योजना के तहत वित्तीय सहायता एनसीडीसी को सौंपे गए व्यवसाय योजना आधारित गतिविधि/सेवा के लिए प्रदान की जाती है.

इस के अलावा सहकारिता मंत्रालय, नाबार्ड, एनडीडीबी, एनएफडीबी और राज्य सरकारों के साथ मिल कर भारत में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है. इस में सभी पंचायतों/गांवों में नई बहुद्देशीय पैक्स, डेयरी और मत्स्य सहकारी समितियों की स्थापना करना शामिल है. प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए, एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) शुरू की गई है. एनडीडीबी को 1,03,000 से अधिक डेयरी सहकारी समितियों के गठन/मजबूतीकरण का काम सौंपा गया है.

इस के अतिरिक्त गुजरात में “सहकारी समितियों के बीच सहयोग” पायलट परियोजना का उद्देश्य प्राथमिक डेयरी सहकारी समितियों को बिजनैस कौरेसपोंडेंट/बैंक मित्र बना कर और सदस्यों को रुपे केसीसी प्रदान कर के उन्हें सशक्त बनाना है. इस पहल का उद्देश्य डेयरी सहकारी समितियों में काफी संख्या में ग्रामीण महिलाओं को शामिल कर के उन की बाजार तक पहुंच को बढ़ाना और उन के वित्तीय व सामाजिक सशक्तीकरण में योगदान देना है.

एमएससीएस (संशोधन) अधिनियम, 2023 के तहत सहकारी चुनाव प्राधिकरण की स्थापना की गई है और इस ने बहुराज्य सहकारी समितियों के 70 चुनाव आयोजित किए हैं और बोर्ड में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की है.

एनसीडीसी ने 31 मार्च, 2024 तक विशेष रूप से महिलाओं द्वारा प्रवर्तित सहकारी समितियों के विकास के लिए क्रमशः 7,708.09 करोड़ रुपए और 6,426.36 करोड़ रुपए की संचयी वित्तीय सहायता स्वीकृत और वितरित की है.

भारत सरकार ने गुजरात राज्य के पंचमहल और बनासकांठा जिलों में “सहकारी समितियों के बीच सहयोग” नामक एक पायलट परियोजना लागू की है, जिस के तहत प्राथमिक डेयरी सहकारी समितियों को जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) का बिजनैस कौरेसपोंडेंट/बैंक मित्र बनाया गया है और सदस्यों को माइक्रोएटीएम प्रदान किए गए हैं.

इस के अलावा डेयरी सहकारी समितियों के सदस्यों (विशेष रूप से महिला सदस्यों) को उन की तत्काल वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए डीसीसीबी द्वारा रुपे केसीसी प्रदान किया जा रहा है. पायलट प्रोजैक्ट के दौरान दोनों जिलों में डीसीसीबी ने अपने सदस्यों को 22,344 रुपे केसीसी जारी किए हैं, जिन में 6,382 पशुपालन केसीसी शामिल हैं, जिस का लाभ ज्यादातर महिलाओं को मिला है. मंत्रालय ने ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण पर इन पहलों के प्रभाव के लिए कोई विशेष अध्ययन नहीं किया है.

पशुधन स्वास्थ (Livestock Health) और उन के विकास के लिए संगोष्ठी

हिसार: लाला लाजपत राय पशुचिकित्सा एवं पशुविज्ञान विश्वविद्यालय में कुलपति, डा. राजा शेखर वुंडरू, आईएएस, अतिरिक्त मुख्य सचिव, हरियाणा सरकार के दिशानिर्देशानुसार लुवास के 15वें स्थापना दिवस के उपलक्ष में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया.

लुवास की स्थापना वर्ष 2010 में शेर-ए-पंजाब, लाला लाजपत राय की स्मृति में की गई थी, जिस का उद्देश्य पशुधन, मुर्गी और पालतू पशुओं की महत्वपूर्ण बीमारियों के निदान, रोकथाम और नियंत्रण पर गहन शोध के माध्यम से पशुओं की पीड़ा को कम करना एवं पशुधन के विकास के लिए निरंतर प्रयासरत रहना हैं.

यह दिन लुवास के लिए हर साल बहुत खास होता है क्योंकि आज के दिन लुवास विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी और यह लुवास में शिक्षण, अनुसंधान और विस्तार में उत्कृष्टता की यात्रा की याद दिलाता है. इस अवसर पर पशु चिकित्सा महाविद्यालय हिसार के वर्ष 1969 के पास आउट बैच के पूर्व छात्रों ने भी अपने परिवार के साथ लुवास परिसर में पुनर्मिलन समारोह मनाया. इस कार्यक्रम का आयोजन पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता द्वारा संस्थागत नवाचार परिषद, मानव संसाधन प्रबंधन निदेशालय के सहयोग से किया गया था.

पशुधन स्वास्थ संगोष्ठी (Livestock Health)
पशुधन स्वास्थ (Livestock Health seminar)

डा. नरेश जिंदल, ने कार्यक्रम अध्यक्ष के रूप में समारोह की अध्यक्षता की और डा. राजेश खुराना, निदेशक, मानव संसाधन प्रबंधन और अध्यक्ष, संस्थागत नवाचार परिषद, लुवास ने सह-अध्यक्ष के रूप में भाग लिया. इस अवसर पर उपस्थित पशु चिकित्सा महाविद्यालय के वर्ष 1969 पासआउट बैच के पूर्व छात्रों ने लुवास स्थापना समारोह की सराहना करते हुए लुवास द्वारा पशु चिकित्सा, पशु विज्ञान शिक्षा तथा अनुसंधान के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए किये जा रहे कार्यो की तारीफ़ करी. पूर्व छात्रों ने अपने विचार साझा किए तथा छात्रों और विभाग के  सदस्यों को पशुधन एवं डेयरी उद्योग की वर्तमान जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान करने की सलाह दी, जिस से नवाचारों को बढ़ावा मिले.

स्थापना दिवस के अवसर पर कुलसचिव डा. एस. एस. ढाका ने लुवास में चल रही विभिन्न शैक्षिक, अनुसंधान एवं विस्तार कार्यक्रमों के बारे में अवगत कराया तथा लुवास की उपलब्धियों और विश्वविद्यालय के विभागीय सदस्यों और विद्यार्थियों द्वारा की जा रही विभिन्न गतिविधियों के साथ-साथ भविष्य के प्रयासों के बारे में भी विचार विमर्श किया.

कार्यक्रम के अंत लुवास के अनुसंधान निदेशक डा. नरेश जिंदल ने पशुपालकों के लाभ के लिए विश्वविद्यालय द्वारा किए जा रहे अनुसंधान पहलुओं पर भी विस्तार से चर्चा करी.

बीएयू मेँ विश्व मृदा दिवस (World Soil Day) 2024 का हुआ आयोजन

बीएयू , सबौर ने 5 दिसंबर 2024 को विश्व मृदा दिवस 2024 बड़े जोश के साथ मनाया. इस वर्ष का विषय, ‘ मिट्टी का खयाल: मापें, निगरानी करें, प्रबंधित करें’ , स्थायी प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने, वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और पर्यावरणीय स्थिरता को मजबूत करने के लिए सटीक मृदा डेटा की आवश्यकता को रेखांकित करता है.

इस अवसर पर, बीएयू सबौर के कुलपति, डा. डी. आर. सिंह ने अपने संदेश में आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करने के लिए मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के महत्त्व पर जोर दिया. उन्होंने मृदा संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए इस तरह की जागरूकता पहलों के आयोजन के महत्व पर प्रकाश डाला.

भागलपुर के छात्रों ने विश्वविद्यालय परिसर में मृदा स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए उत्साहपूर्वक भाग लिया. इस अवसर पर भारतीय मृदा विज्ञान सोसाइटी, सबौर चैप्टर द्वारा ई-न्यूजलैटर के चौथे अंक का विमोचन भी किया गया.

इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण प्रोफैसर गौतम कुमार घोष (विश्वभारती, श्रीनिकेतन, पश्चिम बंगाल) का आमंत्रित व्याख्यान था. उन के विचार “समेकित पोषक प्रबंधन (INM)” के माध्यम से फसल उत्पादकता और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाए रखने की रणनीतियों पर केंद्रित थे.

छात्रकेंद्रित गतिविधियों, जैसे “KNOW YOUR SOIL” क्विज़ और जस्ट-ए-मिनट (JAM) प्रतियोगिता ने प्रतिभागियों की भागीदारी और मृदा संरक्षण की गहरी समझ को प्रोत्साहित किया. विजेताओं को भारतीय मृदा संरक्षण सोसाइटी, सबौर चैप्टर द्वारा पुरस्कार प्रदान किए गए.

हाथोंहाथ सीखने के अनुभव को जोड़ते हुए, मृदा परीक्षण किट पर एक प्रशिक्षण सत्र आयोजित किया गया, जिस में स्कूल के छात्रों को मृदा स्वास्थ्य मूल्यांकन की व्यावहारिक जानकारी दी गई.  पूरे दिन, पीजी लैब-1 के पास पौधारोपण क्षेत्र में मृदा संरक्षण के तरीकों को प्रदर्शित करने वाले शैक्षिक पोस्टर प्रदर्शित किए गए.
विभागाध्यक्ष डा. अंशुमान कोहली ने भी भविष्य में इस तरह के आयोजन के लिए संकाय सदस्यों और छात्रों को प्रोत्साहित किया. नवोदय विद्यालय, नगरपारा, भागलपुर के 100 छात्रों और विभाग के 60 स्नातकोत्तर छात्रों ने कार्यक्रम में भाग लिया.

कार्यक्रम का समापन इस संदेश के साथ हुआ कि मिट्टी के सेहत को बनाए रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है, जो स्थायी कृषि और पर्यावरणीय स्थिरता को प्राप्त करने में इस की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है.

कृषि के लिए डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (Digital Public Infrastructure)

नई दिल्ली: भारत सरकार ने 2 सितंबर, 2024 को घोषित डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डीपीआई) का निर्माण करने की दिशा में आगे बढ़ते हुए एक ऐतिहासिक उपलब्धि प्राप्त की है. गुजरात राज्य 5 दिसंबर, 2024 को किसानों की लक्षित संख्या का 25 फीसदी किसान आईडी बनाने वाला देश का पहला राज्य बन चुका है. यह सफलता भारत सरकार की ‘एग्री स्टैक पहल’ के एक भाग के रूप में एक व्यापक मानकसंचालित डिजिटल कृषि पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम का प्रदर्शन करता है.

किसान आईडी, आधारकार्ड पर आधारित किसानों की एक अनूठी डिजिटल पहचान है, जो राज्य की भूमि रिकौर्ड प्रणाली से सक्रिय रूप से जुड़ी हुई है, जिस का मतलब है कि किसान आईडी एक व्यक्तिगत किसान के भूमि रिकौर्ड विवरण में बदलाव के साथसाथ स्वचालित रूप से अपडेट होती है. डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत डिजिटल रूप से प्राप्त फसल आंकड़े प्राप्त करने के साथ किसान आईडी का उद्देश्य केंद्रित लाभ प्रदान करना है

डिजिटल पहचान, कार्यवाही योग्य अंतर्दृष्टि एवं सूचित नीतिनिर्माण के लिए एक परिवर्तनकारी उपकरण के रूप में भी कार्य करेगा, जिससे अभिनव किसानकेंद्रित समाधान विकसित किए जा सके, कुशल कृषि सेवा वितरण सुनिश्चित किया जा सके और कृषि परिवर्तन के लिए एक डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सके, जिस का लक्ष्य चिरस्थायी कृषि पर ध्यान केंद्रित करते हुए किसानों की आय में बढ़ोतरी करना है.

किसान आईडी निर्माण के लिए व्यापक कवरेज सुनिश्चित करने के लिए, भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने राज्यों के लिए एक बहु-आयामी रणनीति विकसित की है.

ये मोड किसान पहचान पत्र तैयार करने वाले चैनल हैं जैसे कि सेल्फ मोड (मोबाइल का उपयोग कर के किसानों द्वारा स्वपंजीकरण), सहायक मोड (प्रशिक्षित जमीनी कार्यकर्ता/स्वयंसेवकों द्वारा सहायता प्राप्त पंजीकरण), कैंप मोड (ग्रामीण क्षेत्रों में समर्पित पंजीकरण शिविर), सीएससी मोड (सामान्य सेवा केंद्रों के माध्यम से पंजीकरण) आदि.

डिजिटल कृषि मिशन ने किसान रजिस्ट्री बनाने के लिए प्रोत्साहन के रूप में कृषि के लिए डीपीआई एवं पूंजीगत परियोजनाओं हेतु विशेष केंद्रीय सहायता पर समझौता ज्ञापन के माध्यम से कृषि क्षेत्र के लिए डीपीआई निर्माण के लिए राज्यों और केंद्र सरकार के बीच एक सहयोगी प्रयास को सक्षम बनाया है.

इस के अलावा, डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत, केंद्र सरकार तकनीकी दिशानिर्देश, संदर्भ अनुप्रयोग एवं कंप्यूटिंग क्षमता प्रदान कर, क्षमता बढ़ाकर एवं प्रशिक्षण प्रदान कर राज्यों को सक्षम बना रही है. भारत सरकार पंजीकरण शिविरों का आयोजन करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन एवं किसान आईडी तैयार करने में शामिल राज्य के कार्यकर्ताओं को प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन भी प्रदान करती है.

राज्य स्तर पर, पहल के मुख्य आकर्षणों में अंतर्विभागिय समन्वय एवं सहयोग, विशेष रूप से राजस्व और कृषि विभागों के बीच सहयोग शामिल हैं. राज्यों ने कृषि क्षेत्र में डीपीआई विकसित करने के लिए प्रक्रिया सुधारों सहित प्रशासनिक एवं तकनीकी परिवर्तनों को सक्षम बनाया है. राज्यों ने प्रगति की निगरानी करने, स्थानीय सहायता प्रदान करने और उत्पन्न डेटा की गुणवत्ता एवं सटीकता सुनिश्चित करने के लिए परियोजना प्रबंधन इकाइयों (पीएमयू) और समन्वय टीमों का भी गठन किया है.

गुजरात 25 फीसदी किसान आईडी (पीएम किसान में राज्य के कुल किसानों के बीच) के साथ अग्रणी है जब कि दुसरे राज्य भी अच्छी प्रगति कर रहे हैं. मध्य प्रदेश ने कम समय में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है, जो 9 फीसदी तक पहुंच गया है जब कि महाराष्ट्र 2 फीसदी  पर है और उत्तर प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान जैसे दुसरे राज्यों ने भी किसान आईडी बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय इस परिवर्तनकारी यात्रा में राज्यों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक किसान डिजिटल कृषि क्रांति से लाभान्वित हों.

केज कल्चर (Cage Culture) तकनीक से कैसे करें मछली (Fish) उत्पादन

लखनऊ : मत्स्य विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा चौधरी चरण सिंह सभागार, सहकारिता भवन लखनऊ में समारोह आयोजित किया गया. इस अवसर पर मत्स्य विकास मंत्री डा. संजय कुमार निषाद ने कहा कि मत्स्यपालन तकनीक एवं नदियों व जलाशयों में मत्स्य अंगुलिका का संचय, मत्स्य आखेट प्रबंधन की जानकारी, जल क्षेत्रों के दोहन न करने व जल क्षेत्र की निरंतरता (सस्टेनेबिलिटी) बनाते हुए अधिक से अधिक मत्स्य उत्पादन के साथसाथ देशीय मत्स्य प्रजातियों का संरक्षण व संवर्धन के लिए समारोह का आयोजन किया गया है. प्रदेश में उपलब्ध कुल जल क्षेत्रों से वर्ष 2023-24 मे उत्तर प्रदेश का कुल मत्स्य उत्पादन 11.60 लाख मीट्रिक टन एवं मत्स्य उत्पादकता 5539.00 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष प्राप्त हुआ.

डा. संजय कुमार निषाद ने कहा कि प्रदेश में गंगा, यमुना, चंबल, बेतवा, गोमती, घाघरा एवं राप्ती सहित कई सदाबाही नदियां बहती हैं, जिन के दोनों किनारे एवं आसपास मछुआ समुदाय की घनी आबादी निवास करती है, जो आजीविका के लिए मुख्यतः मत्स्यपालन, मत्स्याखेट एवं मत्स्य विपणन कार्यों पर निर्भर है. इन्हें रोजगार उपलब्ध कराने एवं उन के आर्थिक उन्नयन के लिए अभियान चला कर मत्स्य जीवी सहकारी समितियों के गठन की कार्यवाही की जा रही है, जिस के अंतर्गत 565 समितियों के गठन का लक्ष्य निर्धारित करते हुए समिति गठन की कार्यवाही कराई जा रही है.

मत्स्य विकास मंत्री संजय कुमार निषाद ने बताया कि केज कल्चर मछली के गहन उत्पादन के लिए एक उभरती हुई तकनीक है. जलाशयों में स्थापित केजों मे पंगेशियस और गिफ्ट तिलपिया का पालन करते हुए उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है.

प्रमुख सचिव, मत्स्य, के. रवींद्र नायक ने कहा कि मत्स्य विभाग द्वारा प्रदेश के मत्स्यपालकों और जलाशय के ठेकेदारों को नवीन तकनीकी प्रदान की जा रहाई है एवं उन के द्वारा प्रदेश के मत्स्य उत्पादन में वृद्धि के लिए पूरे मनोयोग से कार्यवाही की जा रही है. प्रदेश में मात्स्यिकी क्षेत्र के विस्तार से रोजगार के साधन उपलब्ध होने के साथसाथ लक्षित वन ट्रिलियन डालर इकोनोमी में मत्स्य सैक्टर की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. उपस्थित मत्स्यपालकों एवं ठेकेदारों से मत्स्य उत्पादन में वृद्धि लाए जाने के संबंध में सुझाव आमंत्रित किए गए. अधिक से अधिक केज लगाए जाने के संबंध में प्रमुख सचिव मत्स्य द्वारा भारत सरकार से धनराशि की मांग की बात कही और यह भी कहा कि जलाशय के ठेकेदार आर्थिक रूप से संपन्न होते हैं. वह स्वयं के संसाधन से भी जलाशयों में केज स्थापित कराए.

महानिदेशक मत्स्य राजेश प्रकाश ने बताया कि प्रदेश में मत्स्य विकास की अपार संभावनाएं हैं. उपलब्ध जल संसाधनों का वैज्ञानिक एवं तकनीकी दृष्टि से समुचित उपयोग करते हुए प्रदेश को मत्स्य उत्पादन में अग्रणी बनाया जा सकता है. प्रदेश के मत्स्यपालकों द्वारा वर्तमान में नवोन्मेषी तकनीकी के माध्यम से मत्स्य उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि की जा रही है.

विश्व मात्स्यिकी दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में निदेशक मत्स्य एनएस रहमानी विश्व मात्स्यिकी दिवस के बारे में प्रकाश डालते हुए इस के उद्देश्यों एवं प्रदेश में मत्स्य विकास के बारे में विस्तार से बताया गया.

निदेशक एनएस रहमानी ने बताया कि मत्स्य उत्पादन वर्ष 2023-24 में 11.60 लाख मीट्रिक टन प्राप्त किया गया. अंतर्स्थलीय मछली उत्पादन में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी तकरीबन 8.85 फीसदी है. प्रदेश में मत्स्य उत्पादकता 5540 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष है.

प्रदेश को वर्ष 2020 एवं 2023 के दौरान अंतर्स्थलीय मछली उत्पादन में उत्कृष्ट योगदान के लिए सर्वश्रेष्ठ अंतर्स्थलीय मत्स्यपालन राज्य का पुरस्कार प्राप्त हुआ है. वर्ष 2023-24 में प्रदेश में 36664.64 लाख मत्स्य बीज का उत्पादन किया गया और प्रदेश के बाहर भी मेजर कार्प मत्स्य बीज निर्यात किया जा रहा है.

प्रदेश में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत विगत 4 सालों में 1277 इंफ्रास्ट्रक्चर इकाइयां लगाई गई, जिस में मुख्यतः 954 रिसर्कुलेटरी ऐक्वाकल्चर सिस्टम, 63 मत्स्य बीज हैचरी, 123 लघु एवं वृहद मत्स्य आहार मिलों, 55 फिश कियोश्क, 78 जिंदा मछली विक्रय केंद्र, 4 मोबाइल लैब की निजी क्षेत्र में स्थापित कराई गई. मछली की बिक्री के लिए कोल्डचेन के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की 2604 इकाइयों पर अनुदान देते हुए लाभान्वित किया गया है.

मत्स्य बीज की उपलब्धता के लिए 63 मत्स्य बीज हैचरी, 266 हेक्टेयर में मत्स्य बीज रियरिंग यूनिट निर्मित कराई गई है. 2019.72 हेक्टेयर क्षेत्रफल के निजी क्षेत्र में तालाब बनाया गया है. केज में मत्स्य उत्पादकता के दृष्टिगत 682 केज स्थापित कराए जा चुके हैं. डेढ़ लाख मछुआरों को मछुआ दुर्घटना बीमा योजना के तहत पंजीकृत कर आच्छादित किया गया.

मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत पट्टे पर आवंटित तालाबों में प्रथम वर्ष निवेश के लिए अब तक 954 लाभार्थियों को 822.22 हेक्टेयर पर अनुदान प्रदान किया गया एवं मत्स्य बीज बैंक की स्थापना के अंतर्गत 96 लाभार्थियों को 91.044 हेक्टेयर पर अनुदान प्रदान किया गया.

निषादराज बोट सब्सिडी योजना में अब तक कुल 920 मछुआ समुदाय के गरीब व्यक्तियों को जीवकोपार्जन हेतु मछली पकड़ने एवं बेचने के लिए नाव, जाल, आइसबौक्स एवं लाइफ जैकेट उपलब्ध कराए गए. विगत 4 वर्षों में 28,520 व्यक्तियों को मत्स्यपालन के लिए 25858.39 हेक्टेयर क्षेत्रफल के ग्रामसभा के तालाबों के पट्टे उपलब्ध कराए गए.

मत्स्य पालक कल्याण फंड के अंतर्गत मछुआ बाहुल्य 289 गांवों में 3126 सोलर स्ट्रीट लाइट एवं 570 हाईमास्ट लाइट लगाई गई. कोष के माध्यम से चिकित्सा सहायता, दैवीय आपदा, प्रशिक्षण एवं मछुआ आवास बनाने के लिए सहायता प्रदान की गई. माता सुकेता परियोजना के अंतर्गत 250 केज मछुआ समुदाय की महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु लगाए जाने का प्रावधान है. 16757 मत्स्यपालकों को धनराशि 131.00 करोड़ रुपए के किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराए गए.

रिवर रैंचिंग के अंतर्गत मेजर कार्प एवं राज्य मीन चिताला मत्स्य प्रजातियों के नदियों मे संरक्षण के लिए कुल 297 लाख मत्स्य बीज नदियों में संचित कराया गया. विभागीय योजनाओं को पारदर्शी ढंग से औनलाइन पोर्टल के माध्यम से लागू की गई है. मो. परवेज खान प्रगतिशील मत्स्यपालक जनपद बाराबंकी द्वारा आरएएस एवं फीड मिल के बारे में विस्तार से मत्स्यपालकों को जानकारी दी गई.

डा. संजय श्रीवास्तव, जनपद महराजगंज के प्रगतिशील मत्स्यपालक द्वारा हैचरी निर्माण में उस के लाभ लागत के संबंध में उपस्थित मत्स्यपालकों को तकनीकी विधियों के बारे में जानकारी दी गई. मंजू कश्यप, प्रगतिशील मत्स्यपालक जनपद गाजियाबाद द्वारा तालाब प्रबंधन एवं दूषित तालाबों में सफल मत्स्यपालन कैसे किया जाए, के संबंध में मत्स्यपालकों को जानकारी दी गई.

देवमणि निषाद, जनपद, गौरखपुर द्वारा अपनी सफलता की कहानी को मत्स्यपालकों के साथ साझा किया गया और अधिक उत्पादन प्राप्त करने के संबंध में जानकारी दी गई. जय सिंह निषाद द्वारा आरएएस के माध्यम से कम भूमि एवं जल से अधिक से अधिक मत्स्य उत्पादन प्राप्त किए जाने के संबंद में अपने अनुभव को उपस्थित मत्स्यपालकों से साझा किया गया. दरोगा जुल्मी निषाद द्वारा मत्स्यपालन में उत्कृष्ट कार्य किए जाने के संबंध में उन्हें पुरस्कृत किया गया.

मनीष वर्मा द्वारा जलाशयों मे केज स्थापना एवं उस में उत्पादित की जाने वली मछलियों और प्रति केज से प्राप्त की जाने वाली शुद्ध आय के संबंध में अपने उदबोधन में मत्स्यपालकों को जानकारी दी गई. डा. नीरज सूद, प्रधान वैज्ञानिक एनबीएफजीआर लखनऊ द्वारा संस्थान के कार्यों के संबंध में विस्तार से बताते हुए मत्स्य उत्पादन में वृद्धि के लिए उचित मात्रा में गुणवत्तायुक्त मत्स्य अंगुलिका का संचय कराते हुए मत्स्य उत्पादन के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है. प्रदेश की वन ट्रिलियन डालर इकोनोमी के मत्स्य सैक्टर के लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है.

मोनिशा सिंह, प्रबंध निदेशक, उत्तर प्रदेश मत्स्य जीवी सहकारी संघ लि. द्वारा संघ द्वारा समितियों एवं मत्स्यपालकों के लिए संचालित कार्यक्रमों के बारे में बताया गया. अंजना वर्मा, मुख्य महाप्रबंधक, उत्तर प्रदेश मत्स्य विकास निगम लि. द्वारा निगम द्वारा मत्स्य बीज उत्पादन और प्रदेश में मत्स्य बीज की उपलब्धता व जलाशयों में केज कल्चर के माध्यम से जलाशयों के मत्स्य उत्पादकता के बारे में बताया गया.

मंत्री द्वारा मात्स्यिकी के विभिन्न क्षेत्र में प्रदेश में उत्कृष्ट योगदान कर रही मंजू कश्यप, प्रगतिशील मत्स्यपालक, जनपद गाजियाबाद, देवमणि निषाद, जनपद गौरखपुर, जय सिंह निषाद, दरोगा जुल्मी निषाद सहित 16 व्यक्तियों को प्रशस्तिपत्र प्रदान करते हुए सम्मानित किया गया.

कार्यक्रम के दौरान मत्स्य की विभिन्न गतिविधियों में अनुदानित 36 व्यक्तियों को मंत्री द्वारा अनुदान की धनराशि के चेक व प्रमाणपत्र भी वितरित किया गया.

विभाग द्वारा निःशुल्क मछुआ दुर्घटना बीमा योजना से आच्छादित करने के लिए मछुआ दुर्घटना बीमा योजना के माध्यम से वर्ष 2024-25 में कुल लक्षित 1,50,000 मत्स्यपालकों का आच्छादन कराए जाने के लिए कार्यवाही की गई. केज कल्चर के साथसाथ पेन कल्चर और जिंदा मछली विक्रय केंद्र को प्रोसाहित करते हुए उत्पादन के साथसाथ मूल्यवर्धन के माध्यम से आय में वृद्धि लाई जाए. उपस्थित मत्स्यपालकों से सुझाव मांगे गए तदनुसार उत्पादन के बढ़ावा देने के लिए कार्ययोजना तैयार कराई जा सके.
उपनिदेशक पुनीत कुमार द्वारा उपस्थित अतिथियों एवं मत्स्यपालकों और जलाशय के ठेकेदारों का धन्यवाद व्यक्त करते हुए कार्यशाला के समापन की घोषणा की गई. कार्यक्रम उत्तर प्रदेश मत्स्य जीवी सहकारी संघ लि. के सभापति वीरू निषाद एवं विभागीय अधिकारी सहित तमाम मत्स्यपालक उपस्थित रहे.

किसानों को मिले उन्नत तकनीकों का प्रशिक्षण

जयपुर : शासन सचिव, कृषि एवं उद्यानिकी, राजन विशाल ने पिछले दिनों दुर्गापुरा स्थित इंटरनैशनल हौर्टिकल्चर इनोवेशन एंड ट्रेनिंग सैंटर (आईएचआईटीसी) का दौरा किया. उन्होंने अधिकारियों को इस ट्रेनिंग सैंटर में ज्यादा से ज्यादा किसानों को उन्नत तकनीकी का कृषि प्रशिक्षण देने के लिए कहा.

राजन विशाल ने किसानों के प्रशिक्षण के दौरान प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रदान किए जाने के लिए संस्थान के फल वृक्ष क्षेत्र, संरक्षित खेती, सब्जी उत्पादन, नर्सरी, ड्रिप इरिगेशन आदि गतिविधियों का निरीक्षण किया. उन्होंने आईएचआईटीसी के कैंपस,  छात्रावास, प्रयोगशाला आदि सभी जगहों का बारीकी से निरीक्षण किया और संस्थान की साफसफाई एवं मेंटेनेंस के आवश्यक दिशानिर्देश प्रदान किए.

शासन सचिव राजन विशाल ने प्रशिक्षण में किसानों की संख्या को बढ़ाने व पूरा ट्रेनिंग प्लान तैयार रखने के लिए अधिकारियों को निर्देशित किया. साथ ही, संस्थान में हाइड्रोपोनिक्स की स्थापना के लिए भी कहा. हाइड्रोपोनिक प्रणाली मिट्टी के बजाय पानी आधारित पोषक घोल का उपयोग कर के पौधे उगाने की तकनीक है. हाइड्रोपोनिक उत्पादन प्रणाली का प्रयोग छोटे किसानों और वाणिज्यिक उद्यमों द्वारा किया जाता है.

इस के बाद शासन सचिव राजन विशाल ने कर्ण नरेंद्र विश्वविद्यालय के संगठन संस्थान राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान, दुर्गापुरा, जयपुर में स्थित समन्वित कृषि प्रणाली क्षेत्र का दौरा किया. यह समन्वित कृषि प्रणाली डेढ़ हेक्टेयर कृषि जोत के लिए राजस्थान के सिंचित क्षेत्र के किसानों की पोषण उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए विकसित की गई है. इस समन्वित कृषि प्रणाली क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की फसल पद्धतियां, उद्यानिकी फल एवं सब्जियां, डेयरी यूनिट, बकरी यूनिट, पोल्ट्री यूनिट, अजोला यूनिट, वर्मी कंपोस्ट यूनिट और गोबर खाद यूनिट है.

समन्वित कृषि प्रणाली के मुख्य सस्य वैज्ञानिक डा. उम्मेद सिंह ने किसानों के लिए सालभर आय का अच्छा स्रोत होने एवं किसान के परिवार के लिए पोषणयुक्त भोजन जैसे फल, सब्जी, अनाज, दाल, मोटे अनाज, तिलहन, पशुओं के लिए चारा एवं इस से जनित अपशिष्ट के सदुपयोग के लिए वर्मी कंपोस्ट, गोबर की खाद इत्यादि के रूप में प्रयोग करने से मिट्टी की  सेहत में सुधार एवं बाहरी उर्वरकों पर निर्भरता कम करने की जानकारी दी.

विश्वविद्यालय के कुलपति बलराज सिंह ने कृषि विश्वविद्यालय एवं दुर्गापुरा में संचालित विभिन्न कृषि अनुसंधान योजनाओं की जानकारी दी.

इस दौरान आयुक्त उद्यानिकी सुरेश कुमार ओला, अतिरिक्त निदेशक कृषि (रसायन), एचएस मीना, संयुक्त निदेशक कृषि (रसायन) अजय कुमार पचौरी, संयुक्त निदेशक उद्यान महेंद्र कुमार शर्मा, संयुक्त निदेशक कृषि (गुण नियंत्रण) गजानंद यादव, उपनिदेशक, उद्यान (आईएचआईटीसी) राजेश कुमार गुप्ता सहित विभागीय अधिकारी उपस्थित रहे.

ऊंट सरंक्षण योजना में मिल रहे 20,000 रुपए, कैसे उठाएं जल्दी फायदा

जयपुर: राज्य सरकार द्वारा उष्ट्र संरक्षण योजना के तहत डीबीटी को आधार और जनआधार से जोड़ने के लिए अधिसूचना जारी कर दी गई है. पशुपालन और गोपालन विभाग के शासन सचिव डा. समित शर्मा ने बताया कि पशुपालन विभाग द्वारा वर्तमान में ऊंटों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए उष्ट्र संरक्षण योजना का संचालन किया जा रहा है, जिस में टोडियों के जन्म पर उन के पालनपोषण के लिए प्रोत्साहनस्वरूप उष्ट्रपालकों को 2 किस्तों में 20,000 रुपए की माली मदद देने का प्रावधान है.

उन्होंने आगे बताया कि इस अधिसूचना के जारी होने से अब योग्य उष्ट्रपालकों को इस योजना का लाभ लेने के लिए अपना आधारकार्ड और जनआधार संख्या होने का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा, जिस से उन के बैंक खातों में पारदर्शिता एवं सुगमता के साथ राशि हस्तांतरित की जा सकेगी. इस से योजना में पारदर्शिता आएगी और उष्ट्रपालकों को उन की सहायता राशि सरल और निर्बाध तरीके से सीधे प्राप्त हो सकेगी. साथ ही, योजना के तहत आवेदन करते समय कई तरह के पहचानपत्र व अन्य दस्तावेज अपलोड करने की भी बाध्यता नहीं होगी.

डा. समित शर्मा ने बताया कि योजना के तहत लाभार्थियों को सुविधाजनक रूप से लाभ मिल सके, इस के लिए लाभार्थियों को इस के बारे में जागरूक करने के लिए विभिन्न माध्यमों से उन तक सूचना पहुंचाई जाएगी. उन्होंने कहा कि सरकार के इस कदम से लाभार्थियों को समय पर आर्थिक लाभ मिलने के साथसाथ विभाग के काम में भी आसानी होगी और दक्षता आएगी.

Animal Husbandry: “1962” एप पर मिलेंगी पशुपालन की सभी योजनाएं

जयपुर : शासन सचिव पशुपालन, डा. समित शर्मा ने कहा कि पशुओं का चिन्हीकरण, टीकाकरण, प्रजनन, पोषण व बीमारियों के उपचार और मोबाइल वेटेरिनरी यूनिट सेवा को एकीकृत प्लेटफार्म पर संपादित किया जाएगा. इस विषय पर चर्चा करने के लिए पिछले दिनों डा. समित शर्मा की अध्यक्षता में भारत सरकार के नैशनल डिजिटल लाइवस्टाक मिशन के प्रतिनिधियों के साथ पशुपालन विभाग के अधिकारियों की बैठक सचिवालय में आयोजित की गई. इस चर्चा में बीआईएफएल (मोबाइल वेटेरिनरी यूनिट और काल सैंटर सेवा प्रदाता) के प्रतिनिधि भी औनलाइन शामिल हुए.

बैठक में डा. समित शर्मा ने निर्देश दिया कि ‘‘1962’’ एप अधिक से अधिक पशुपालकों से डाउनलोड करवाया जाए, ताकि वे विभागीय योजनाओं का लाभ आसानी से उठा सकें और अपने पशुओं के बारे में भी जानकारियां ले सकें. उन्होंने कृषि विभाग के अंतर्गत बने किसानों के व्हाट्सअप ग्रुप पर “1962” एप डाउनलोड करने के निर्देश दिए. इस एप के माध्यम से पशुपालक अपने पशुओं के उपचार के लिए सीधे ही काल सैंटर पर फोन कर सकेगा.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि पशुओं के टैग नंबर को उन का आधार नंबर माना जाए और उसी नंबर से उन का रजिस्ट्रेशन “1962” एप पर किया जाए.

उन्होंने निर्देश दिया कि भारत पशुधन एप के एनिमल हेल्थ मौड्यूल को जल्द से जल्द लागू करने के लिए योजनाबद्ध रूप से आवश्यक तैयारी की जाए. इस संबंध में पशु चिकित्सकों को आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करने के निर्देश भी डा. समित शर्मा ने दिए. उन्होंने निर्देश दिए कि पशुओं के उपचार के लिए ई-दवा परची का अधिक से अधिक उपयोग किया जाए. भारत पशुधन एप के नोलेज सैंटर पर उपलब्ध जानकारियों को साझा करने के लिए आई गौट कर्मयोगी प्लेटफार्म का उपयोग किया जाना चाहिए.

डा. समित शर्मा ने बीआईएफएल को निर्देश दिए कि वे टैलीमैडिसिन, व्हाट्सअप और चैटबोट का उपयोग “1962” एप काल सैंटर पर करें.

उन्होंने निदेशक पशुपालन को निर्देश दिए कि विभाग के अधिकारियों को भारत पशुधन एप की अधिक जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए भारत सरकार के अधिकारियों के साथ बैठक कराई जाए, जिस की अनुपालना में बैठक के बाद पशुधन भवन में यह बैठक आयोजित की गई. बैठक में विभाग के अधिकारियों ने पशुधन एप से संबंधित अपनी शंकाओं का समाधान किया.

उल्लेखनीय है कि भारत सरकार द्वारा पशुओं के चिन्हीकरण, टीकाकरण, प्रजनन, पोषण और उपचार के लिए नैशनल डिजिटल लाइवस्टाक मिशन संचालित किया जा रहा है.

बैठक में भारत सरकार के नैशनल डिजिटल लाइवस्टाक मिशन के परियोजना प्रबंधक असद परवेज, वरिष्ठ प्रबंधक आरके श्रीवास्तव, परियोजना प्रबंधक (पीएमयू-ईवाई) आर. रेजिथ और सलाहकार डा. जिगर और पशुपालन निदेशक डा. भवानी सिंह राठौड़ सहित पशुपालन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे