मोबाइल वेटेरिनरी पहुंचेगी हर पशुपालक के द्वार, ऐसा है सरकार का विचार

जयपुर : पशुपालन, गोपालन एवं डेयरी मंत्री जोराराम कुमावत ने वित्त वर्ष 2024-25 की बजट घोषणाओं को समय पर पूरा करने के निर्देश देते हुए कहा कि पशु कल्याण और पशुपालक हमारी सरकार की प्राथमिकता है. पशुपालन मंत्री पिछले दिनों सचिवालय स्थित अपने कक्ष में विभागीय समीक्षा बैठक को संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने बजट घोषणा के तहत पशुधन विकास कोष, सैक्स सोर्टेड सीमन और ब्रीडिंग पोलिसी की प्रगति की समीक्षा की. उन्होंने मोबाइल वेटेरिनरी यूनिट के विशेष प्रचारप्रसार पर जोर देते हुए कहा कि अधिक से अधिक लोगों तक इस की जानकारी से ही हमारी इस योजना का लाभ लोगों तक पहुंच पाएगा.

उन्होंने इसे हाइब्रिड मोड पर भी चलाने के निर्देश दिए, जिस से अधिक से अधिक लोग इस का लाभ उठा सकें.
उन्होंने प्रत्येक मोबाइल वेटेरिनरी यूनिट में एक आगंतुकपंजिका रखने के निर्देश दिए, जिस से लाभार्थी अपने सुझाव और शिकायतें उस में दर्ज कर सकें और इस सेवा को और बेहतर करने में विभाग को मदद मिल सके.

मंत्री जोराराम कुमावत ने विभागीय पदोन्नति के लिए निदेशक सहित सभी पदों की डीपीसी जल्द से जल्द कराने के निर्देश दिए. साथ ही, रिक्त पदों की भरती की प्रक्रिया को भी गति प्रदान करने के निर्देश प्रदान किए.

उन्होंने भवनरहित संस्थाओं के लिए भवन निर्माण के कार्य को भी जल्द से जल्द योजनाबद्ध तरीके से पूरा करने का निर्देश दिया, जिस से पशुओं और पशुपालकों को समस्याओं से नजात मिल सके.

मंत्री जोराराम कुमावत ने पशु मेलों में प्रचारप्रसार की स्थिति पर असंतोष जाहिर करते हुए कहा कि इसे दुरुस्त करने का प्रयास होना चाहिए, ताकि लोगों को मेलों और उन में होने वाली गतिविधियों की जानकारी हो सके.

पशुपालन मंत्री जोराराम कुमावत ने गोशालाओं के जमीन की आवंटन नीति की समीक्षा करने के निर्देश देते हुए कहा कि इस का सरलीकरण होना चाहिए. जिला गोपालन समिति की बैठक समय पर आयोजित करने के निर्देश देते हुए उन्होंने कहा कि गोशालाओं को समय पर अनुदान मिलना चाहिए और इस के लिए गोशाला समितियों की बैठक समय पर होना आवश्यक है.

उन्होंने मध्य प्रदेश और ओड़िसा की तरह प्रदेश में भी गौ अभ्यारण्य की स्थापना पर बल दिया, जिस से गायों को आश्रय की सुविधा मिल सके. उन्होंने गाय के गोबर और गौमूत्र के प्रसंस्करण और उस से बनने वाले उत्पादों के लिए योजना बनाने के निर्देश दिए, जिस से किसान और पशुपालक आर्थिक रूप से और मजबूत बन सकें.

उन्होंने गोशालाओं में एआई के उपयोग पर भी बल दिया. साथ ही, एनएलएम की तरह गायों के लिए भी परियोजना तैयार करने के निर्देश दिए.

आगामी बजट घोषणा पर चर्चा करते हुए पशुपालन मंत्री जोराराम कुमावत ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे ऐसी योजना बनाएं, जो अधिक से अधिक किसानों और पशुपालकों के हित में हों और जिन का क्रियान्वयन धरातल पर सुगमता से हो सके.

बैठक में शासन सचिव, पशुपालन एवं गोपालन डा. समित शर्मा ने कहा कि प्रदेश में पशुपालन, डेयरी और पशु चिकित्सा के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं और आने वाले समय में हम इन संभावनाओं को धरातल पर लाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने राइजिंग राजस्थान को इस के लिए एक अच्छा अवसर बताया.

बैठक में पशुपालन निदेशक डा. भवानी सिंह राठौड़, गोपालन निदेशक डा. सुरेश मीणा, पशुपालन विभाग के अतिरिक्त निदेशक डा. आनंद सेजरा और प्रह्लाद सहाय नागा सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.

कृषि विश्वविद्यालय (Agricultural University), कोटा कर रहा नए आयाम स्थापित

कोटा : कृषि विश्वविद्यालय, कोटा ने कृषि प्रसार शिक्षा के क्षेत्र में कृषक हितार्थ नवाचारों की तरफ आगे कदम बढाते हुए कई आयाम स्थापित किए हैं. कृषि विश्वविद्यालय, कोटा के अधीन प्रसार शिक्षा इकाइयों के रूप में 6 कृषि विज्ञान केंद्र (कोटा, अंता, बूंदी, झालावाड़, सवाई माधोपुर एवं हिण्डौन सिटी) कार्यरत हैं. विश्वविद्यालय लक्षित तरीके से किसानों एवं अन्य हितधारक केंद्रित दृष्टिकोण के साथ कृषि शिक्षा, अनुसंधान, प्रसार एवं प्रशिक्षण में गुणवत्ता, उत्कृष्टता और प्रासंगिकता प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित कर पिछले 2 सालों में नई पहलों के साथ उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं.

प्रसार शिक्षा निदेशालय के माध्यम से किसानों, किसान महिलाओं, ग्रामीण युवाओं एवं प्रसार कार्यकर्ताओं के लिए नवीन कृषि तकनीकों के प्रचारप्रसार, कौशल एवं उद्यमिता विकास के लिए विभिन्न फसल प्रदर्शन, प्रशिक्षण एवं तकनीकी सलाह प्रदान करता है.

विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अभय कुमार व्यास ने गत 2 सालों में किए गए प्रसार कार्यों के लिए नई पहल एवं प्रमुख उपलब्धियों का संक्षिप्त ब्योरा देते हुए बताया कि राजस्थान के राजभवन से लगातार 3 सालों यानी 2022 -24 तक विश्वविद्यालय सामाजिक उत्तरदायित्व (यूएसआर) कार्यक्रम के तहत गोद लिए गए गांवों कनवास और आंवा के विकास के लिए विश्वविद्यालय के काम की सराहना करते हुए प्रशंसापत्र प्रदान किए हैं. इन गोद लिए गांवों में ड्रिप इरिगेशन सिस्टम, उन्नत किस्म के पशुओं का वितरण, फसल व बगीचा प्रबंधन, खाद्य प्रसंस्करण, सिलाई प्रशिक्षण पर प्रशिक्षण दिए गए, जिस से ग्रामीणों की आर्थिक उन्नति के नए आयाम खुले हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र, कोटा पर 3.00 करोड़ रुपए की लागत से धनिया, लहसुन प्रसंस्करण और बेकरी उत्पादों के लिए कौमन इनक्यूबेशन सैंटर (सीआईसी) की स्थापना की गई. इस यूनिट पर लघु व दीर्घ अवधि के प्रशिक्षण आयोजित कर युवा ग्रामीणों व किसानों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित एवं लाभान्वित किया गया है.

कृषि विश्वविद्यालय (Agricultural University)

विश्वविद्यालय की वर्तमान गतिविधियों, उपलब्धियों, मौसम की जानकारी, किसानों और अन्य हितधारकों से संबंधित सलाह और नवाचारों को साझा करने के लिए विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर एक आउटडोर एलईडी डिस्प्ले यूनिट स्थापित की गई है, जिस से हर दिन सैकड़ों लोग लाभान्वित हो रहे हैं.

विश्वविद्यालय द्वारा खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में 200 से अधिक उद्यमी अभी तक तैयार किए गए हैं और 600 युवा, किसानों व किसान महिलाओं को सोयाबीन, लहसुन व मोटा अनाज प्रसंस्करण में प्रशिक्षित किया गया है. ये युवा उद्यमी लगभग 10 हजार से 1.5 लाख प्रति माह आय अर्जित कर के स्वयं की और कोटा क्षेत्र की आर्थिक उन्नति में अपना योगदान दे रहे हैं.

कृषि विज्ञान और कैरियर में रुचि पैदा करने के लिए अनुभवी वैज्ञानिकों के साथ बातचीत करने के लिए स्कूली छात्रों, शिक्षकों और किसान समुदायों को आमंत्रित करने की एक नई पहल की गई है, जिस में अभी तक 10,000 से अधिक छात्रों, शिक्षकों और किसानों को विश्वविद्यालय की विभिन्न अनुसंधान व प्रसार इकाइयों सहित कृषि शिक्षा संग्रहालय का भ्रमण करवाया गया.

16,000 से अधिक किसानों और हितधारकों के लिए तकरीबन 400 क्षमता विकास कार्यक्रम आयोजित किए गए.

12 से 38 फीसदी अधिक उपज और रिटर्न के साथ 2,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में किसानों के खेतों पर नवीनतम तकनीकों के प्रदर्शन के लिए 5,000 अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों का आयोजन किया गया. विश्वविद्यालय ने तकनीकी सहायता के माध्यम से 21 कृषक उत्पादक संगठनों को सुगमता प्रदान की.

कृषि विश्वविद्यालय, कोटा द्वारा प्रशिक्षित और नवोन्मेषी और प्रगतिशील किसान किशन सुमन को भारत के राष्ट्रपति द्वारा “प्लांट जीनोम सेवियर फार्मर्स रिकौग्निशन -2023” अवार्ड एवं अवधेश मीना को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा प्रतिष्ठित पुरस्कार “इनोवेटिव फार्मर अवार्ड” से सम्मानित किया गया.

नई कृषि तकनीकों को किसानों तक पहुंचा रहा हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय सभागार में कृषि अधिकारी कार्यशाला (रबी) 2024 का शुभारंभ हुआ. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने विस्तार शिक्षा निदेशालय द्वारा आयोजित 2 दिवसीय कार्यशाला का बतौर मुख्य अतिथि उद्घाटन किया.

कार्यशाला में विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक और प्रदेश के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सभी जिलों से कृषि अधिकारी भाग लिया.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि विश्वविद्यालय लगातार कृषि कार्यों संबंधी सलाह किसानों तक पहुंचा रहा है, जिस के कारण किसानों को कृषि कार्यों से संबंधित फैसले लेने में मदद मिल रही है.

उन्होंने कहा कि कार्यशाला में नई किस्मों, नई तकनीकों और नई सिफारिशों के साथसाथ भविष्य की रणनीति पर विस्तार से चर्चा की जाएगी. कुलपति ने आह्वान किया कि कृषि क्षेत्र को लाभकारी बनाने के लिए किसानों को पारंपरिक फसलों के स्थान पर दलहनी एवं तिलहनी फसलों की खेती करने के लिए प्रेरित किया करें. किसानों को उन फसलों की काश्त करने के लिए जागरूक किया जाए, जिन फसलों में पोषक तत्व एवं पानी की कम मात्रा के साथसाथ उत्पादन लागत कम आए.

उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र एक बहुत बड़ा प्लेटफार्म है और कृषि उत्पादन, खाद्य सुरक्षा, किसानों की आय में बढ़ोतरी व प्राकृतिक संसाधनों का सीमित मात्रा में प्रयोग करना हमारा सर्वोपरि उद्देश्य है. प्राकृतिक एवं और्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय द्वारा योजनाबद्ध ढंग से काम किया जा रहा है.

किसानों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक निरंतर अनुसंधान एवं नई तकनीक पर काम कर रहे हैं व कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों के साथ मिल कर इन तकनीकों को किसानों तक पहुंचाया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि वर्ष 2023-24 में हरियाणा में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ कर 332 लाख मीट्रिक टन हो गया है, जिस के कारण देश के केंद्रीय पूल में हरियाणा दूसरा सब से बड़ा योगदानकर्ता है.

खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोतरी का कारण विश्वविद्यालय द्वारा विकसित उन्नत किस्में, आधुनिक कृषि तकनीक के अलावा कृषि विभाग व कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा उन तकनीकों को किसानों तक पहुंचाने से संभव हो सका है. फसल अवशेष प्रबंधन, फसल विविधीकरण, मृदा स्वास्थ्य व जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों को ध्यान में रखते हुए आधुनिक तकनीक का उपयोग कर के फसल उत्पादन बढ़ाने व कृषि से जुड़ी समस्याओं का तत्परता से समाधान करने की आवश्यकता है.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कार्यशाला में पिछली खरीफ की कार्यवाही रिपोर्ट पुस्तिका का भी विमोचन किया. कार्यशाला में अतिरिक्त मुख्य सचिव कृषि और किसान कल्याण, पशुपालन डेयरी विभाग, हरियाणा सरकार व कुलपति लुवास, हिसार डा. राजा शेखर वुंडरू, आईएएस व कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के निदेशक राज नारायण कौशिक, आईएएस औनलाइन माध्यम से जुड़े.

कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक डा. आरएस सोलंकी ने राज्य सरकार द्वारा किसानों के कल्याणार्थ क्रियान्वित की जा रही योजनाओं जैसे ‘मेरा पानी-मेरी विरासत’, ‘हर खेत स्वस्थ खेत’, ‘मेरी फसल मेरा ब्योरा’ और ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ पर विस्तार से प्रकाश डाला.

उन्होंने कहा कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों के लिए अति आवश्यक है. इस कार्ड के माध्यम से किसानों को उन की भूमि की मिट्टी की स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है.

विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने वर्कशाप की विस्तृत जानकारी देते हुए निदेशालय द्वारा आयोजित की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों के बारे में बताया. साथ ही, उन्होंने गत वर्ष विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्रों एवं कृषि विभाग द्वारा किसानों के खेतों पर लगवाए गए अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन, तकनीकी प्रदर्शन प्रक्षेत्र के आंकड़ों की जानकारी दी.

अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने अनुसंधान परियोजनाओं व विश्वविद्यालय की नवीनतम तकनीकों पर चल रहे शोध के कामों के बारे में बताया. विस्तार शिक्षा निदेशालय के सहनिदेशक डा. सुनील ढांडा ने मंच का संचालन किया. इस अवसर पर विभिन्न महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी, विभागाध्यक्ष, कृषि और किसान कल्याण विभाग के अधिकारी मौजूद रहे.

Agriculture News : हकृवि कार्यशाला (Workshop) में 19 सिफारिशें स्वीकृत

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय के सभागार में आयोजित 2 दिवसीय राज्य स्तरीय कृषि अधिकारी कार्यशाला (Workshop) का समापन हुआ, जिस में मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज रहे. इस कार्यशाला (Workshop) में प्रदेशभर के कृषि अधिकारियों और हकृवि के वैज्ञानिकों द्वारा रबी फसलों की समग्र सिफारिशों के बारे में विस्तृत चर्चा की गई और कई महत्वपूर्ण तकनीकी पहलुओं पर विचारविमर्श किया गया.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि इस कार्यशाला में 19 सिफारिशें स्वीकृत की गई हैं, जिन में एक गेहूं, दो वसंतकालीन मक्का, एक मसूर, एक चारा जई की एवं एक औषधीय फसल बाकला के अलावा गरमी के मौसम में मक्का को चारे की फसल के रूप में उगाने के लिए समग्र सिफारिश, धानगेहूं फसलचक्र में पराली प्रबंधन, गन्ने की फसल में चोटी बेदक व कंसुआ कीट की रोकथाम और एकीकृत कृषि प्रणाली के लिए फसल चक्र भी शामिल हैं.

कार्यशाला (Workshop) में हकृवि के वैज्ञानिकों एवं कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों द्वारा संयुक्त रूप से की गई इन सिफारिशों से किसानों को फायदा होगा. उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला  (Workshop) में दी गई कृषि से संबंधित सिफारिशों से केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा किसानों की आय बढ़ाने के लिए किए जा रहे कार्यों को और गति मिलेगी.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि वे कम जोत के किसानों की समस्या को पहले अच्छे ढंग से समझें, उस के बाद उन समस्या के निवारण पर शोध करें.

इस अवसर पर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त निदेशक डा. आरएस सोलंकी, डा. रमेश वर्मा, डा. एचएस सहारण सहित विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक एवं कृषि और किसान कल्याण विभाग के अधिकारी मौजूद रहे. मंच का संचालन डा. सुनील ढांडा ने किया.

कार्यशाला (Workshop)

इस कार्यशाला (Workshop) में 19 सिफारिशें स्वीकृत हुई हैं, जिन में मुख्य निम्रलिखित हैं :

डब्ल्यूएच 1402 : गेहूं की यह बौनी किस्म सूखा सहनशील एवं अगेती बिजाई के लिए उपयुक्त है. डब्ल्यूएच 1402 की औसत पैदावार 20.1 क्विंटल प्रति एकड़ व उत्पादन क्षमता 27.2 क्विंटल प्रति एकड़ है. यह किस्म अत्यंत रोगरोधी है और गुणवत्ता में उत्तम है.

आईएमएच 225 : यह मक्का की पीले दाने व मध्यम अवधि वाली एकल संकर किस्म है, जो वसंत ऋतु में 115-120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. यह किस्म राष्ट्रीय स्तर पर मक्का की मुख्य बीमारियों व कीटों के अवरोधी व मध्यम अवरोधी पाई गई है. इस की औसत पैदावार 36-38 क्विंटल प्रति एकड़ है.

आईएमएच 226 : यह मक्का की हलकी नारंगी दाने व मध्यम अवधि वाली एकल संकर किस्म है, जो वसंत ऋतु में 115-120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. यह किस्म मुख्य बीमारियों व कीटों के अवरोधी व मध्यम अवरोधी पाई गई है. इस की औसत पैदावार 34-38 क्विंटल प्रति एकड़ है.

एलएच 17-19 : मसूर की इस छोटे दाने वाली किस्म भारत के उत्तरपश्चिमी क्षेत्रों में काश्त के लिए अनुमोदित की गई है. मध्यम अवधि वाली यह किस्म 6.0 – 6.5 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत पैदावार देती है.

आरएच 1975 : इस किस्म की सिफारिश जम्मू, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली एवं उत्तरी राजस्थान के सिंचित क्षेत्रों में समय पर बिजाई के लिए की गई है. यह किस्म 145 दिनों में पक कर 10.5-11.5 क्विंटल प्रति एकड़ औसत पैदावार देती है. इस किस्म में तेल की औसत मात्रा 39.3 फीसदी है.

एचएफओ 906 : एक कटाई वाली चारा जई की इस किस्म की हरियाणा के लिए सिफारिश की गई है. यह किस्म 262.00 क्विंटल प्रति एकड़ हरे चारे की पैदवार देती है.

हरियाणा बाकला 3 : इस किस्म की औसत उपज 9.5 क्विंटल प्रति एकड़ है और इस की अधिकतम उपज 20 क्विंटल प्रति एकड़ है. इस में प्रोटीन की मात्रा 28 फीसदी होती है. इस की खेती हरियाणा के सिंचित और अर्धसिंचित क्षेत्रों में की जा सकती है.

– धानगेहूं फसल चक्र में पराली प्रबंधन के लिए स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम लगे हुए कंबाइन हार्वेस्टर द्वारा धान की कटाई के उपरांत पराली को मिट्टी में मिलाने के साथसाथ गेहूं की बिजाई के लिए सुपर सीडर का उपयोग करें. इस मशीन से गेहूं की बिजाई करने पर परंपरागत विधि की तुलना में 43 फीसदी ईंधन, 36 फीसदी मेहनत और 40 फीसदी बिजाई लागत की बचत होती है.

– गन्ने की फसल में चोटी बेदक व कंसुआ कीट की रोकथाम के लिए अप्रैल माह के अंत से मई माह के पहले सप्ताह तक क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5 फीसदी एससी (कोराजन/सिटीजन) 150 मिलीलिटर प्रति एकड़ की दर से 400 लिटर में मिला कर पीठ वाले पंप से मोटा फव्वारा बना कर फसल के जड़ क्षेत्र में डाल कर हलकी सिंचाई करें.

– गरमी के मौसम में मक्का को चारे की फसल के रूप में उगाने के लिए समग्र सिफारिश.

– एकीकृत कृषि प्रणाली की एक हेक्टेयर मौडल पर शोध के आधार पर मूंगगेहूं (देसी) + सरसों (10:2), मक्का+लोबिया-जई-मीठी सूडानघास एवं मूंगसरसोंमूंग फसल चक्रों की सिफारिश की गई.

Awards: गन्ने की खेती में नए कीर्तिमान बनाते गोल्ड मेडलिस्ट अचल कुमार मिश्रा

अचल कुमार मिश्रा एक स्मार्ट युवा किसान हैं और ग्राम मेडईपुर पुरवा, लखीमपुर खीरी के रहने वाले हैं. वे पढ़ाई के दौरान यूनिवर्सिटी में गोल्ड मेडलिस्ट भी रहे हैं. हाल ही में उन्हें दिल्ली प्रैस की पत्रिका ‘फार्म एन फूड द्वारा’ द्वारा गन्ने की खेती में अनेक कीर्तिमान स्थापित करने के लिए ‘बेस्ट फार्मर अवार्ड इन शुगरकेन फार्मिंग अवार्ड’ से लखनऊ में सम्मानित किया गया.

यह अवार्ड उन्हें दिनेश प्रताप सिंह, कृषि उद्यान मंत्री, उत्तर प्रदेश के द्वारा दिया गया. कृषि मंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने भी उन के कार्यों की खुल कर तारीफ की.

अचल कुमार मिश्रा को जनपद में गन्ना खेती में सर्वाधिक उत्पादन लेने के लिए भी जाना जाता है. वे गन्ने की खेती में इंटरक्रापिंग और अनेक नवाचार अपनाते रहे हैं. इस के अलावा आप ने गन्ने की अनेक प्रजातियां भी विकसित की हैं.

 

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लखीमपुर खीरी के इस किसान ने कृषि में नित नए नवाचारों के लिए जिले में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. अचल कुमार मिश्रा को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली से “नवोन्मेषी किसान” सम्मान भी मिल चुका है.

गन्ने के साथ करते हैं एकीकृत कृषि

अचल कुमार मिश्रा ने अपने खेतों में एक खूबसूरत फार्म बना रखा है, जहां वे गन्ने की नर्सरी के साथ मधुमक्खीपालन, कड़कनाथ मुरगीपालन, अजोला उत्पादन भी करते हैं. जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए वर्मी कंपोस्ट भी खुद बनाते हैं.

Achal Kumar Mishra

अचल कुमार मिश्रा एकीकृत खेती करते हैं. उन्होंने लखनऊ मुलाकात में बताया कि एकीकृत खेती करने में लगने वाली लागत कम हो जाती है और उत्पादन भी अधिक मिलता है. रासायनिक खेती को ले कर उन का कहना है कि आज के समय में ज्यादा उत्पादन के लिए कई किसान मनमाने ढ़ंग से रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने लगे हैं, जिस से खेती में लागत बढ़ती है और किसान खेती को घाटे का सौदा कहने से नहीं चूकते.

उन्होंने बताया कि अगर हम रासायनिक उर्वरकों की जगह मुरगी की खाद, वर्मी कंपोस्ट और अजोला आदि का कृषि में सही तरीके से प्रयोग करें, तो खेती तो अच्छी होगी ही, साथ ही उपज का दाम भी अच्छा मिलेगा.

अचल कुमार का कहना है कि गन्ना एक लंबी अवधि में तैयार होने वाली फसल है, इसलिए हम इसे अधिक मुनाफेदार फसल बनाने के लिए गन्ने के साथ सहफसली खेती करते हैं जैसे गन्ने के साथ लहसुन, सरसों, ब्रोकली आदि को गन्ने के बीच में बो देते हैं और जब तक गन्ने की फसल तैयार होती है, तब तक दूसरी फसलें तैयार हो जाती हैं और हमें अतिरिक्त मुनाफा भी मिलने लगता है. इस से हमें सिर्फ गन्ने के उत्पादन का ही इंतजार नहीं करना पड़ता.

मुख्यमंत्री और प्रधान मंत्री ने भी किया सम्मानित

अचल मिश्रा को कृषि में नवाचार और विविधीकरण को ले कर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सम्मानित कर चुके हैं. इस के अलावा अचल कुमार मिश्रा को कृषि में उन के नवाचारों के लिए देश में अनेक बार सम्मानित किया जा चुका है.

सुपर सीडर यंत्र (Super Seeder Machine) से नरवाई का निदान और बोआई एकसाथ

विदिशा : खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए शासन द्वारा कई योजनाएं लागू की गई हैं. किसानों को आधुनिक तकनीक का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. इसी कड़ी का उदाहरण सुपर सीडर है. सुपर सीडर ट्रैक्टर के साथ जुड़ कर काम करने वाला ऐसा यंत्र है, जो नरवाई की समस्या का निदान करने के साथसाथ बोआई भी करता है.

जो किसान धान की खेती के बाद गेहूं और चने की बोआई करते हैं, उन के लिए यह अत्यंत उपयोगी है. सुपर सीडर धान अथवा अन्य किसी भी फसल के डंठल, जिसे नरवाई कहा जाता है, उसे आसानी से छोटेछोटे टुकड़ों में काट कर मिट्टी में मिला देता है. इस के उपयोग से नरवाई को जलाने की जरूरत नहीं पड़ती. इस से एक ओर  पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण होता है, वहीं दूसरी ओर मिट्टी की ऊपरी परत के उपयोगी जीवाणुओं के जीवन की रक्षा भी होती है.

सुपर सीडर से नरवाई वाले खेत में सीधे गेहूं, चने अथवा अन्य फसल की बोनी की जा सकती है. इस के उपयोग से किसान को नरवाई के झंझट से मुक्ति मिलती है. जो नरवाई किसान के लिए समस्या है, उसे सुपर सीडर खाद के रूप में बदल कर वरदान बना देता है.

किसान कल्याण कृषि विकास विभाग के उपसंचालक केएस खपेडिया ने बताया कि जिले के कृषि अभियांत्रिकी विभाग में सुपर सीडर उपलब्ध है. शासन की योजनाओं के तहत किसान को सुपर सीडर खरीदने पर 40 फीसदी तक छूट दी जा रही है. सुपर सीडर सामान्य तौर पर एक घंटे में एक एकड़ क्षेत्र में नरवाई नष्ट करने के साथ बोआई कर देता है. गेहूं के बाद जिन क्षेत्रों में मूंग की खेती की जाती है, वहां भी सुपर सीडर बहुत उपयोगी है. हार्वेस्टर से कटाई के बाद गेहूं के शेष बचे डंठल को आसानी से मिट्टी में मिला कर सुपर सीडर मूंग की बोआई कर देता है.

सुपर सीडर के उपयोग से जुताई का खर्च बच जाता है. नरवाई नष्ट करने व जुताई और बोआई एकसाथ हो जाने से खेती की लागत घटती है. जिन किसानों के पास ट्रैक्टर हैं, उन के घर के शिक्षित युवा सुपर सीडर खरीद कर एक सीजन में एक लाख रुपए तक की कमाई कर सकते हैं.

उर्वरक एवं कीटनाशी बेचने वाले विक्रेता नहीं डाक्टर बने

उदयपुर : हाल ही में प्रसार शिक्षा निदेशालय, उदयपुर द्वारा 15 दिवसीय खुदरा उर्वरक विक्रेता प्रशिक्षण का आयोजन हुआ. मुख्य अतिथि कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने अपने उद्बोधन में प्रशिक्षणार्थियों से कहा कि उर्वरक विक्रेताओं के लिए यह प्रशिक्षण बहुत ही महत्वपूर्ण है. प्रशिक्षण के बाद वे महज कृषि, खादबीज, उर्वरक विक्रेता नहीं, बल्कि ज्ञानार्जन से कृषि के क्षेत्र में डाक्टर बन जाते हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि वे प्रशिक्षण लेने के बाद सच्ची लगन व निष्ठा से अपने व्यवसाय के साथ किसानों को सही समय पर सही सुझाव दे कर अप्रत्यक्ष रूप से उन के लिए बदलाव अभिकर्ता के रूप में सहायता करें. सभी उर्वरक विक्रेताओं को किसानों से सीधा संपर्क स्थापित कर विभिन्न प्रकार की नवीनतम एवं आधुनिक कृषि तकनीकियों को अपनाने के लिए भी प्रेरित करना चाहिए और उन की आमदनी को बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए.

उन्होंने आगे बताया कि ज्ञान के सीखने की कोई उम्र नहीं होती है. जीवन में ऊंचाइयों को छूना है, तो लर्न, अनलर्न एवं रीलर्न के सिद्धांत को अपनाना चाहिए. इस के लिए सभी प्रतिभागियों को कृषि संबंधित नवीनतम साहित्य एवं विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के संपर्क में रहना चाहिए, ताकि कृषि में हो रहे नवाचारों द्वारा आप किसानों को अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित कर सकते हैं.

इस अवसर पर डा. आरएल सोनी, निदेशक प्रसार शिक्षा निदेशालय, उदयपुर ने उर्वरकों के संतुलित उपयोग एवं मृदा परीक्षण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मृदा स्वास्थ्य कार्ड, पोषक तत्व प्रबंधन, समन्वित पोषक तत्व के लाभ, जैविक खेती और उस के लाभ, कार्बनिक खेती आदि के बारे में भी चर्चा की.

उन्होंने यह भी बताया कि इस प्रशिक्षणार्थियों को उर्वरक उपयोग दक्षता बढ़ाने के उपाय सुझाए और टिकाऊ खेती समन्वित कृषि पद्धति की फसल विविधीकरण आदि विषयों पर जानकारी दे कर उ नका ज्ञानवर्धन किया.

प्रशिक्षण समन्वयक डा. लतिका व्यास, प्राध्यापक ने बताया कि इस प्रशिक्षण में राज्य के विभिन्न जिलों उदयपुर, राजसमंद, चित्तोरगढ़, बासंवाडा, डूंगरपुर, सलूम्बर आदि से 30 प्रशिक्षणार्थियों ने भाग लिया, जिन्हें उर्वरक सर्टिफिकेट कोर्स संबंधी सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक जानकारियां विश्वविद्यालय के विभिन्न कृषि वैज्ञानिकों एवं राज्य सरकार के कृषि अधिकारियों द्वारा प्रदान की गई. साथ ही, अपने विचार व्यक्त करते हुए इस प्रशिक्षण का लाभ किसानों तक पहुंचाने की अपील की.

प्रशिक्षण के समापन समारोह में खुदरा उर्वरक विक्रेता प्रशिक्षण में भाग लेने वाले सभी प्रशिक्षणार्थियों को कार्यक्रम के मुख्य अतिथि द्वारा प्रमाणपत्र एवं प्रशिक्षण संबंधी साहित्य प्रदान किए गए. साथ ही, प्रशिक्षणार्थियों ने प्रशिक्षण के अनुभव भी साझा किए. इस कार्यक्रम में डा. एसके इंदौरिया, प्राध्यापक, कृष्णा शर्मा, कैलाश माली, हिमा आदि उपस्थित थे. डा. राजीव बैराठी भी प्रशिक्षण के समापन समारोह में मौजूद रहे.

बकरीपालन (Goat Rearing) केंद्र का लिया जायजा, 536 पशुओं का हो रहा पालन

विदिशा : भोपाल संभागायुक्त संजीव सिंह ने विदिशा प्रवास के दौरान शासकीय योजनाओं से लाभांवित होने वाले हितग्राही के इकाई यूनिट का भ्रमण कर जायजा लिया है. इस दौरान कलक्टर रोशन कुमार सिंह, एसडीएम क्षितिज शर्मा, तहसीलदार डा. अमित सिंह भी साथ मौजूद रहे.

संभागायुक्त संजीव सिंह ने ग्राम अमाछर में राष्ट्रीय पशुधन मिशन (उद्यमिता विकास) योजना से लाभांवित हितग्राही की इकाई का जायजा लिया. लाभांवित हितग्राही अवधेश यादव के द्वारा बकरीपालन इकाई के अंतर्गत 536 पशुओं का पालन किया जा रहा है. उन के द्वारा योजना के अंतर्गत शेड का निर्माण कराया जा चुका है और 500 से अधिक पशुओं का क्रय कर यूनिट का संचालन किया जा रहा है. पशु चिकित्सा विभाग द्वारा अनुदान की पहली किस्त प्रदाय की जा चुकी है.

उन्होंने हितग्राही से संवाद कर बकरीपालन यूनिट के संबंध में जानकारियां प्राप्त की, जिस में मुख्य रूप से बकरियों की देखभाल, चारा और बकरियां कहां से क्रय की गई के संबंध में पूछा है. इस दौरान पशु चिकित्सा सेवाएं विभाग के उपसंचालक डा. एमके शुक्ला ने योजना के तहत स्वीकृत प्रोजेक्ट व बैंक द्वारा स्वीकृत लोन के संबंध में जानकारी दी है.

दलहनतिलहन (Pulses and Oilseeds) की खरीद को ले कर नैफेड को निर्देश

जयपुर : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री भागीरथ चौधरी ने राजस्थान सरकार द्वारा भेजे गए पत्र का संज्ञान लेते हुए दलहनतिलहन की समर्थन मूल्य पर खरीद को ले कर नैफेड (नैशनल एग्रीकल्चरल कोआपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन) के प्रबंध निदेशक दीपक अग्रवाल से फोन पर वार्ता की. उन्होंने राजस्थान में मूंग, उड़द, मूंगफली और सोयाबीन जैसी फसलों की खरीद सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक दिशानिर्देश जारी किए.

राजस्थान सरकार ने हाल ही में खरीफ 2024-25 की दलहनतिलहन फसलों की खरीद के लिए पीएसएस योजना (प्राइस सपोर्ट स्कीम) के तहत भारत सरकार से अतिरिक्त समर्थन और खरीद की मांग की थी. राज्य में किसानों को उचित मूल्य दिलाने और उन की उपज की खरीद सुनिश्चित करने के लिए यह कदम उठाया गया.

केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों के हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. उन्होंने नैफेड के अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि राजस्थान में अधिसूचित खरीद केंद्रों पर किसानों से उन की फसलें समर्थन मूल्य पर बिना किसी बाधा के खरीदी जाएं. उन्होंने राजस्थान के मूंग, उड़द, मूंगफली और सोयाबीन के खरीद लक्ष्य को समय पर पूरा करने पर विशेष जोर दिया.

किसानों को मिलेगा सीधा लाभ

मंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही समर्थन मूल्य योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को उन की उपज का उचित मूल्य दिलाना और बाजार में मूल्य अस्थिरता से बचाना है. उन्होंने राज्य सरकार के अनुरोध पर तेजी से कार्रवाई करते हुए अतिरिक्त अनुदान और संसाधन आवंटन के लिए भी सहमति जताई.

नैफेड के प्रबंध निदेशक दीपक अग्रवाल को निर्देश देते हुए मंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा कि खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता और सुगमता होनी चाहिए. सभी किसानों को उन की फसल का मूल्य तुरंत उन के खातों में स्थानांतरित किया जाए. साथ ही, खरीद केंद्रों पर किसी भी प्रकार की अनियमितता को सख्ती से रोका जाए.

विश्व में भारत टमाटर (Tomatoes) का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश

नई दिल्ली : विश्व में टमाटर का दूसरा सब से बड़ा उत्पादक देश भारत है, जो वार्षिक 20 मिलियन मीट्रिक टन का शानदार उत्पादन करता है. हालांकि, अत्यधिक बारिश या अचानक गरमी जैसी प्रतिकूल मौसम की स्थिति उत्पादन और उपलब्धता को प्रभावित करती है. इस के परिणामस्वरूप कीमतों में अत्यधिक उतारचढ़ाव होता है. ये चुनौतियां सीधे किसानों की आय को प्रभावित करती हैं और आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित करती हैं एवं बरबादी की वजह बनती हैं. इन महत्वपूर्ण मुद्दों के समाधान और टमाटर की आपूर्ति को स्थिर करने के लिए अभिनव और प्रारूप समाधान खोजने के लिए टमाटर ग्रैंड चैलेंज (टीजीसी) शुरू किया गया है.

ग्रैंड चैलेंज का उद्देश्य टमाटर उत्पादन, प्रसंस्करण और वितरण में प्रणालीगत चुनौतियों का समाधान करने के लिए देश के युवा नवोन्मेषकों और शोधकर्ताओं की प्रतिभा का उपयोग करना था. ये चुनौतियां हैं :
उत्पादन पूर्व : जलवायु अनुकूल बीजों का कम मिलना और खराब कृषि पद्धतियां.
उपज के बाद नुकसान : कोल्ड स्टोरेज जैसी सुविधाओं की कमी और अनुचित रखरखाव के कारण फसल की बरबादी.
प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन : टमाटरों के अधिक उपज होने की स्थिति में प्रसंस्करण के लिए अपर्याप्त बुनियादी ढ़ांचा.
आपूर्ति श्रृंखला : फसल की बाधित आपूर्ति और बिचौलियों का प्रभुत्व मूल्य अस्थिरता का कारण बनता है.
बाजार पहुंच और पूर्वानुमान : फसल की बाधित आपूर्ति और मांग पूर्वानुमान में कमी के कारण मूल्य में गिरावट और बरबादी होती है.
तकनीकी अपनाना : उपयुक्‍त खेती और आईओटी आधारित निगरानी जैसी आधुनिक कृषि तकनीकों के बारे में कम जागरूकता और उपयोग.
पैकेजिंग और परिवहन: फसल को बेहतर और नुकसान को कम करने के लिए नवीन, लागत प्रभावी समाधानों की आवश्यकता.
देशभर के नवोन्मेषकों से कुल 1,376 विचार प्राप्त हुए. उचित मूल्यांकनों के बाद चरण-1 में 423 विचारों को शार्टलिस्ट किया गया. दूसरे चरण में कुल 29 विचार लिए गए, जिस में 28 परियोजनाओं को फंडिंग और मैंटरशिप मिली. परियोजनाओं की समयसमय पर निगरानी की गई, संक्षिप्त दौरे किए गए और एआईसीटीई और डीओसीए की टीजीसी मूल्यांकन समिति द्वारा समीक्षा की गई. विशेषज्ञों के पैनल द्वारा 14-15 अक्तूबर, 2024 को मूल्यांकन को अंतिम रूप दिया गया, जिसे परियोजनाओं को उन की प्रासंगिकता, मापनीयता और नवाचार के आधार पर आंका गया.

टमाटर ग्रैंड चैलेंज ने महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है, जिस के परिणामस्वरूप कई आईपी जिन में 14 पेटेंट, 4 डिजाइन पंजीकरण/ट्रेडमार्क और 10 प्रकाशन दाखिल करने की प्रक्रिया में हैं. कुछ प्रमुख परिणाम ये थे :
– फसल को ज्‍यादा दिन रखने और नुकसान को कम करने के लिए नए पैकेजिंग और परिवहन समाधानों का विकास.
– ऐसे प्रसंस्कृत उत्पादों का निर्माण, जो उपयोगिता को बढ़ाते हैं, बरबादी को कम करते हैं और सालभर उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं.
– टमाटर ग्रैंड चैलेंज से समाधान, टमाटर मूल्य में बदलाव, लचीलापन, बरबादी को कम करने और हितधारकों के लिए लाभप्रदता बढ़ाने का वादा करते हैं. यह पहल भारत में अन्य कृषि वस्तुओं की चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक बेंचमार्क स्थापित करती है.
– टमाटर ग्रैंड चैलेंज सहयोग और नवाचार की शक्ति का एक प्रमाण है. शिक्षा, उद्योग और सरकार को एकसाथ ला कर इस ने भारत की कृषि चुनौतियों के लिए सतत, प्रभावशाली समाधानों का मार्ग प्रशस्त किया है. इस पहल के परिणामों से टमाटर के किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ होगा.